رضوی

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गुरुवार, 21 मार्च 2024 12:35

बंदगी की बहार – 10

आस्ट्रेलिया से संबंध रखने वाले अयूत बालदाचीनो कहते हैं कि मेरे लिए रमज़ान का महीना, बेहतरीन और आदर्श छुट्टी है, अल्लाह के साथ छुट्टियां बिताने का अवसर, यही वह महीना है जिसने यह अवसर प्रदान किया है ताकि हम दुनिया के झमेलों से मुक्ति पाएं और दिनों रात ईश्वर की उपासना में व्यस्त रहें।

रमज़ान का महीना, ईश्वर की इबादत और उससे दुआ करने का, पवित्र क़ुरआन पढ़ने का, दुआ करने का, इस महीने की बेहतरीन विभूतियों से लाभान्वित होने और ईश्वर का सामिप्य प्राप्त करने का बेहतरीन समय है। पवित्र रमज़ान, सभी मुसलमानों के लिए, अध्यात्मिक व परिज्ञानी यादों से ओतप्रोत हैं कि यह महीना दूसरे महीनों से अलग है। वह मुसलमान जो मुस्लिम देशों में जीवन व्यतीत करते हैं, वह बचपने से ही रमज़ान के महीने से अवगत रहे हैं और जब वह वयस्क हो जाते हैं तो रोज़ा रखना शुरू कर देते हैं।

यहां पर बात उन लोगों की है जो नए मुसलमान हैं या जिन्होंने इस्लाम धर्म को जल्द ही स्वीकार किया है, विशेषकर वह लोग जो ग़ैर मुस्लिम समाज में जीवन व्यतीत करते हैं, उनका मामला किसी सीमा तक अलग है।  वह लोग बिना जाने पहचाने और अतीत के अनुभवों के बिना ही पहली बार रमज़ान के रोज़े रखते हैं। यही कारण है कि एक ओर वह इस बात से भी चिंतित रहते हैं कि कहीं रोज़ा ही न रख सकें और दूसरी ओर इस महीने की आध्यात्मिक व आत्मिक प्रफुल्लता, उन्हें अपनी की ओर आकर्षित करती हैं।

अमरीका की एक नव मुस्लिम महिला समान्था कैस्नीच कहती हैं कि पवित्र रमज़ान के आगमन को लेकर मैं बहुत उत्तेजित थी, मैंने इसके बारे में बहुत अध्ययन किया और अब मैं रोज़ा रखने में धैर्य नहीं रख सकती थी। वह कहती हैं कि वास्तव में मैं रमज़ान को ईश्वर से निकट होने का काल समझती हूं।

जर्मनी की एक मुस्लिम महिला ज़ैनब कारीन भी अपने पहले रमज़ान के अनुभवों को शेयर करते हुए कहती हैं कि जब रमज़ान का महीना आया तो मैंने रोज़ा रखकर पहला क़दम बढ़ाने का फ़ैसला किया। पहले मैं यह सोचती थी कि यह मेरे लिए कठिन होगा किन्तु मेरे अंदर एक अजीब प्रकार की शक्ति पैदा हो गयी थी और बिना किसी परेशानी के क्योंकि मैं एक नौकरीपेशा महिला थी, मैंने रोज़ा रख लिया, मैंने रोज़ के साथ ईश्वर की उपासना भी की और अब मुझे ईश्वर से निकटता का आभास हो रहा था, गर्मी के मौसम की भीषण गर्मी भी मुझे डिगा नहीं सकी।

समान्था और ज़ैनब जैसी अन्य नव मुस्लिम महिलाओं को भी अच्छी तरह पता है कि पवित्र रमज़ान का महीना, उपासना और ईश्वर से अधिक से अधिक निकटता प्राप्त करने का बेहतरीन अवसर है। आस्ट्रेलिया से संबंध रखने वाले अयूत बालदाचीनो कहते हैं कि मेरे लिए रमज़ान का महीना, बेहतरीन और आदर्श छुट्टी है, अल्लाह के साथ छुट्टियां बिताने का अवसर, यही वह महीना है जिसने यह अवसर प्रदान किया है कि हम दुनिया के झमेलों से मुक्ति पाएं और दिनों रात ईश्वर की उपासना में व्यस्त रहें। जब हम अपने व्यक्तिगत और भौतिक लक्ष्यों को छोड़ देते हैं और अपने जीवन के केन्द्र और उसके सही अर्थ की ओर पलट जाते हैं,तो वास्तव में हमें अपने जीवन में एक भॉडर्न व्यक्ति के रूप में एसे ही महीने की आवश्यकता होती है।

वह बहुत ही संवेदनशील और महत्वपूर्ण बिन्दु की ओर संकेत करते हैं और यह है कि इंसान वर्तमान समय में जीवन के झमेलों और भौतिकवाद में डूब चुका है और उसे पहले से अधिक पवित्र रमज़ान के आध्यात्मिक और आत्मिक माहौल की आवश्यकता होती है। इस महीने से अधिक से अधिक लाभान्वित होने के लिए विशेष प्रकार की दुआओं और कार्यों का अहवान किया गया है, इन्हीं कर्मों में से एक रोज़ा रखना है। रोज़ा रखने के साथ साथ इस महीने में क़ुरआन पढ़ने, दुआ करने, नमाज़ पढ़ने पर भी बहुत अधिक बल दिया गया है और इन सबसे बंदा अपने पालनहार से निकट होता है और अध्यात्म की सीढ़ियां चढ़ता है।

अमरीका के एक नए मुसलमान आज़म नसीम जान्सन ने इस बात को अच्छी तरह समझ लिया है। वह कहते हैं कि पहले रमज़ान में हमारा काम निरंतर क़ुरआन पढ़ना और दुआएं करना था। मुझे यह भी पता नहीं कि मैं नमाज़ और दुआ सही भी पढ़ता हूं या नहीं। मेरे पास ऐसी किताब है जिसमें सारी दुआएं और रमज़ान के सारे कर्म लिखे हुए हैं, मैं उसी के आधार पर उसपर अमल करता हूं। आध्यात्मिक लेहाज़ से मुझे बहुत अच्छा महसूस हो रहा है और मुझे नमाज़ और क़ुरआन पढ़ने में मज़ा आता है।          

नसीम के ही देश के एक अन्य साथी आइटन गाट्सचाक भी पवित्र क़ुरआन की तिलावत और नमाज़ को महत्व देते हैं। वह अपनी प्यास को ईश्वर की याद और पवित्र क़ुरआन की तिलावत से दूर करते हैं और कहते हैं कि जब मुझे प्यास लगती है, मेरे दिल में यह उत्सुकता पैदा होती है तो मैं क़ुरआने मजीद खोलता, या अधिकतर नमाज़ पढ़ता हूं, अपने समय को अल्लाह के हवाले कर देता हूं, मैं इस बात का आभास कर सकता हूं कि किसी प्रकार रमज़ान मनुष्य को ईश्वर से निकट करता है और उसके लक्ष्य को इस दुनिया में निर्धारित करना है।

यद्यपि रोज़ा, भूख और प्यास के साथ होता है, लेकिन यह सारी परेशानियां और कठिनाइयां अल्लाह के लिए है, इसका सहन करना सरल होगा, यहां तक कि मनुष्य की इच्छा शक्ति में वृद्धि होती है। क्रिस दाफ़ी कहते हैं कि मुझे रोज़ा रखकर शक्ति मिलती थी। आरंभ में यह सरल नहीं था किन्तु मैंने अपने शरीर को सेट कर लिया और उसके बाद ऊर्जा में वृद्धि का आभास करता था। रोज़ा इस चीज़ में सहायता प्रदान करता है कि जो भी आपके पास है उसी को दृष्टिगत रखें।

गाट्स्चाक भी जिनका काम बीमारों और अक्षम लोगों की देखभाल करना है, कहते हैं कि मैं बहुत ज़्यादा रोज़ा रखने का प्रयास करता हूं किन्तु वास्तव में बहुत कठिन हो जाता है। इसके बावजूद यह रमज़ान संयम का बहुत अधिक पाठ देता है।

कुछ ताज़ा मसुलमान लोग भी रोज़े के सामाजिक व राजनैतिक लाभ पर ध्यान देते हैं। इस बारे में ज़ैनब कारेन कहती हैं कि पवित्र रमज़ान के महीने में मुसलमानों के बीच ज़बरदस्त एकता और एकजुटता ने मुझे अपनी ओर आकृष्ट कर लिया था और मुझ में भी यही एहसास पैदा हो गया था।

अमरीका की एक अन्य ताज़ा मुस्लिम महिला हलीमा ख़ान भी बदन से ज़हरीले पदोर्थों के कम होने और अमाशय को आराम देने जैसे रोज़े के चिकित्सकीय और शारीरिक लाभ की ओर संकेत करते हुए कहती हैं कि यदि आप यह आझास करें कि आप भूखे हैं तो इसका यह अर्थ है कि आप पूरी दुनिया में बहुत से भूखे रहने वालों के बारे में सोचा है।

इस पवित्र महीने में मुसलमान हकट्रठा हो कर इबादत करते नज़र आते हैं। इस महीने में मुसलमानों के बीच भाईचारे और अध्यात्म का बहुत अधिक चलन हो जाता है। उदाहरण स्वरूप रोम के ताज़ा मुसलमान पवित्र रमज़ान को एक दूसरे मुसलमानों के बीच संबंध के लिए बेहतरीन अवसर क़रार देते हैं।

 

रमज़ान के महीने में मुसलमान आपस में एक दूसरे को इफ़्तार की दावत देते हैं और अपने धार्मिक कार्यक्रम एक साथ आयोजित करते हैं। वह पवित्र रमज़ान के महीने में मुस्लिम समाज के भविष्य के बारे में वार्ता करने के लिए कार्यक्रम आयोजित करते हैं और इस कार्यक्रम में अपने अपने दृष्टिकोण पेश करते हैं। ईश्वर का आभार व्यक्त करने की एक निशानी, लोगों के साथ भलाई करना और उनका आभार व्यक्त करना है। कभी कुछ लोग ईश्वर की अनुकंपाएं पहुंचने का माध्यम बनते हैं, यहां पर लोगों का आभार व्यक्त करना, एक प्रकार से ईश्वर का आभार व्यक्त करने जैसा हैं। ईश्वर का आभार व्यक्त करने की संस्कृति, महत्वपूर्ण इस्लामी शिष्टाचार का भाग है जिसमें ईश्वर की प्रसन्नता भी शामिल होती है।

चीन से संबंध रखने वाले नए मसुलमान हलीम अब्दुल्लाह कहते हैं कि मेरे परीवार के लोग मेरे इस्लाम धर्म स्वीकार करने के बहुत विरोधी थे, उन्होंने मुझे घर से निकाल दिया किन्तु मेरा इस्लामी परिवार मेरा भरपूर समर्थन करता था। उन्होंने नमाज़ सीखने, क़ुरआन की तिलावत सीखने और इस्लामी जीवन शैली सीखने में मेरी बहुत अधिक मदद की।

इस्लाम स्वीकार करने वाले बहुत से लोगों के साथ समस्या यह है कि इन लोगों के परिवारों ने इना बहुत अनादर किया क्योंकि उनके आसपास कोई मुस्लिम नहीं था इसीलिए वे अकेले थे और बहुत अधिक परेशान थे। चीन के एक अन्य नए मसुलमान ग्लादीस लीम येन येन की मां ने उनका और उनकी बहन का साथ दिया। वे उनके लिए खाने पकाती और उन्हें हर प्रकार की सुविधाएं देती हैं।

अलबत्ता कुछ मुसलमानों को मस्जिदों और इस्लामी सेन्टर में उपस्थित होने का अवसर नहीं मिल जाता। नूरुद्दीन लीम सियासिया के हालात ऐसे हैं किन्तु वे बताते हैं कि उन्होंने अपनी समस्या को इस प्रकार हल किया। मेडिकल छात्र के रूप में हमारे बिखरे हुए कार्यक्रम थे, यद्यपि मैं हमेशा मस्जिद में नमाज़ नहीं पढ़ सकता था किन्तु मेरे दोस्त अच्छे थे और उनके साथ मैं हमेशा घर में नमाज़ पढ़ लेता था, रमज़ान के महीने में उपासन के लिए हम घर ही में कार्यक्रम आयोजित करते थे।

गुरुवार, 21 मार्च 2024 12:34

ईश्वरीय आतिथ्य- 10

एक व्यक्ति पैग़म्बरे इस्लाम के पास आया और उसने पैग़म्बरे इस्लाम से पूछा हे ईश्वरीय दूत!

क्या ईश्वर हमसे निकट है और हम उससे धीरे से प्रार्थना कर सकते हैं या वह हमसे दूर है और हम उसे ज़ोर से बुलाने के लिए मजबूर हैं?  पैग़म्बरे इस्लाम कुछ बोले नहीं यहां तक कि उन पर पवित्र कुरआन की आयत नाज़िल हुई और उस आयत ने समस्त कालों के एकेश्वरवादियों का जवाब दे दिया। आयत में महान ईश्वर कहता है" और जब मेरे बंदे मेरे संबंध में आपसे पूछें तो मैं बहुत निकट हूं और मैं पुकार का जवाब देता हूं जब मुझे पुकारा जाता है। तो उन्हें चाहिये कि मेरा आदेश मानें और मुझ पर ईमान रखें ताकि सीधे मार्ग पर उनका पथ प्रदर्शन हो जाये।"

आजकल हर रोज़ेदार की ज़बान पर है हे हमारे पालनहार! हमने तेरे लिए रोज़ा रखा और तेरी आजीविका से रोज़ा खोलता हूं और तुझ पर भरोसा रखता हूं।

दुआ ईश्वरीय बंदगी का प्रतीक है। दुआ इसी तरह इंसानों में बंदगी की भावना को मज़बूत करती है। महान व सर्वसमर्थ ईश्वर की बंदगी का एहसास वह चीज़ है जो समस्त ईश्वरीय दूतों के प्रयासों का आधार थी और वे इंसानों में बंदगी की भावना उत्पन्न करना चाहते थे। कुछ लोग यह सोचते हैं कि केवल धार्मिक मार्गदर्शक ही दुआ के महत्व  के बारे में बात करते हैं और अपने अनुयाइयों का आह्वान उसके प्रति कटिबद्ध रहने के लिए करते हैं। यह दृष्टिकोण वास्तविकता से बहुत दूर है। क्योंकि दुआ वह चीज़ है जिसे सब करते हैं और वह किसी समय या स्थान से विशेष नहीं है और वह सर्वकालिक है। दुआ इंसान की स्वाभावित आवश्यकता है। यही वजह है कि जब इंसान सांसारिक कार्यों से थक जाता है तो वह दुआ के माध्यम से अपने पालनहार से संपर्क करके अपनी आत्मा को शांति प्रदान करता है। दुआ का मूल्य व महत्व समझने के लिए बस इतना ही काफी है कि महान ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरे फुरक़ान की 77वीं आयत में कहता है" हे पैग़म्बर आप कह दीजिये कि हमारे पालनहार को तुम्हारी परवाह नहीं है अगर तुम उससे दुआ न करो।" इस आधार पर जीवन में सुकून हासिल करने के लिए दुआ से लाभ उठाना चाहिये। जैसाकि आज समस्त जागरुक और बुद्धिजीवी व विचारक दुआ से लाभ उठा रहे हैं और शांति पहुंचा रहे हैं और स्वयं को अधिक ऊर्जा से समृद्ध बना रहे हैं।

अमेरिकी लेखक डॉक्टर वेन डायर,,,, कहते हैं" मैं प्रार्थना के समय अविश्वसनीय ढंग से ईश्वरीय प्रकाश से लाभान्वित होता हूं और मैं इस बात का आभास करता हूं कि मेरा समूचा अस्तित्व आत्मा है यद्यपि मैं एक शरीर के होने से अवगत हूं कि मेरे पास एक शरीर है और जब मैं इस एहसास और आत्माओं के संसार में भ्रमण करने के बाद अपने शरीर में लौटता हूं तो शक्ति का आभास करता हूं जैसे मेरे शरीर में बहुत अधिक ऊर्जा भर गयी है।

इसी प्रकार डेल कारनेगी,,,भी लिखते हैं जब मैं यह आभास करता हूं कि मैं बहुत थक गया हूं तो उस गिरजाघर के अंदर चला जाता हूं जिसका द्वार खुला देखता हूं। उसमें जाने के बाद मैं अपनी आंखों को बंद कर लेता हूं और दुआ करता हूं और मैं इस बात का आभास करता हूं कि शरीर, स्नायु तंत्र और आत्मा में दुआ का बहुत प्रभाव है।

दुआ का सबसे महत्वपूर्ण लाभ व प्रभाव यह है कि वह इंसान में आशा की किरण जगा देती है। निराश इंसान बेजान इंसान की भांति है। बीमार इंसान को जब ठीक होने की आशा होती है तो वह ठीक हो जाता है और अगर वह निराश हो जाये तो उसके दिल में आशा की किरण बुझ जायेगी और उसके ठीक होने की आशा खत्म हो जायेगी। जिस तरह रणक्षेत्र में विजय का मुख्य कारण सिपाहियों का ऊंचा मनोबल होता है। इस आधार पर अगर निराश सैनिक आधुनिकतम हथियारों से भी लैस हों तब भी वे रणक्षेत्र में हार जायेंगे।

जो इंसान दुआ करता और महान ईश्वर पर भरोसा करता है अगर वह महान ईश्वर की बारगाह में दुआ करता है, उससे आशा करता है और उससे अपने दिल की बात करता है तो कठिनाइयों के अधिक होने के बावजूद उसके दिल में आशा की किरण पैदा होती है और जीवन के प्रति आशावान हो जाता है। ऐसा लगता है जैसे उसे दोबारा ज़िन्दगी मिल गयी हो। इंसान के अंदर यह आभास होता है कि उसने उसकी ओर हाथ फैलाया है जिसके लिए दुनिया की कठिन से कठिन मुश्किल भी बहुत आसान है और उनका समाधान महान ईश्वर के लिए कुछ भी नहीं है। महान ईश्वर जिसके लिए कठिन और आसान का कोई अर्थ नहीं है। वह महान व सर्वसमर्थ है वह तत्वदर्शी रचयिता है वह समूचे ब्रह्मांड को चलाता है। वह जिस चीज़ का भी इरादा करता है वह चीज़ तुरंत हो जाती है। जिस सूरज को हम देखते हैं उस जैसे लाखों सूरज ही क्यों न हों। जब इंसान इस प्रकार के महान ईश्वर से संपर्क करता है, इस प्रकार के सक्षम व सर्वशक्तिमान को पुकारता है, उससे अपने दिल की बात करता है, उसके सामने सज्दा करता है, आंसू बहाता है अपनी मुश्किलों को उससे बयान करता है तो निःसंदेह महान ईश्वर उसके दिल में आशा की किरण पैदा कर देता है।

दुआ का एक लाभ यह है कि उससे इंसान के अंदर तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय पैदा होता है। तक़वा इंसान के महान ईश्वर से निकट होने और लोक -परलोक में सफल होने का कारण है। दुआ इंसान के दिल में प्रकाश का दीप जलाती है। जब इंसान दुआ के लिए हाथ उठाता है, महान ईश्वर से मदद मांगता है, महान ईश्वर को उसके अच्छे नामों व विशेषताओं से बुलाता है। इंसान के इस कार्य का प्रभाव होता है और निश्चित रूप से उसका ध्यान महान ईश्वर की ओर जाता है और इंसान यह सोचेगा कि अगर महान ईश्वर चाहेगा तो उसकी दुआ कबूल होगी।

इसी तरह दुआ इंसान को प्रायश्चित करने का आह्वान करती है और प्रायश्चित इंसान को दोबारा अपने जीवन पर नज़र डालने के लिए प्रेरित करता है। यह चीज़ इंसान के जीवन में ईश्वरीय भय को जीवित करती है। रवायतों में है कि महान ईश्वर ने एक अपने दूत हज़रत ईसा मसीह से कहा हे ईसा! मुझे उस तरह से बुलाओ जिस तरह पानी में डूबते इंसान की कोई मदद करने वाला नहीं होता है और मेरी ओर आओ। हे ईसा! मेरे समक्ष अपने हृदय को स्वच्छ व पवित्र बनाओ और अकेले में मुझे बुलाओ। अपनी दुआ में अपने दिल को हाज़िर बनाओ और रोकर और गिड़गिड़ा कर मुझे बुलाओ।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपने बड़े बेटे इमाम हसन अलैहिस्सलाम के नाम जो वसीयतें की हैं उसमें फरमाते हैं ईश्वर की दया व कृपा के खज़ाने से एसी चीज़ मांगो जो उसके अलावा कोई और नहीं दे सकता। जैसे लंबी उम्र, स्वास्थ्य और अधिक रोज़ी। दुआ की कबूली में विलंब से कभी भी निराश न हो क्योंकि ईश्वरीय दान नियत के अनुसार है। कभी दुआ के कबूल होने में विलंब होता है ताकि दुआ करने वाले का पारितोषिक अधिक और परिपूर्ण हो जाये। कभी दुआ करते हैं परंतु कबूल नहीं होती है क्योंकि जो तुम मांगे हो जल्द ही या नियत समय पर उससे बेहतर तुम्हें दिया जायेगा। तो तुम्हारी मांगें इस प्रकार की होनी चाहिये कि जो तुम्हारी सुन्दरता को पूरा करे और तुम्हारी समस्याओं व कठिनाइयों को दूर करे कि दुनिया का माल हमेशा नहीं रहेगा और न ही तुम दुनिया के माल के लिए बाकी रहोगे।

इस बात को ध्यान में रखना चाहिये कि जब हम महान ईश्वर से दुआ करें तो वह सुन्दर व शोभनीय हो। इसी तरह वह पवित्र व स्वच्छ हृदय से होनी चाहिये। क्योंकि अपवित्र और दूषित मन ईश्वरीय अनुकंपाओं को प्राप्त करने का न तो उचित पात्र है और न ही दुआओं के कबूल होने के योग्य है। रवायत में है कि बनी इस्राईल को सात साल तक विचित्र अकाल का सामना रहा। इस प्रकार से कि उन्हें मरे हुए जानवरों और कूड़े केंदर को भी खाना पड़ा। उन्होंने पहाड़ पर जाकर और मरुस्थल में जाकर जितनी भी दुआ की उसका कोई लाभ नहीं हुआ। तो ईश्वर ने उनके पैग़म्बर पर अपना संदेश भेजा कि उनसे कह दें कि जितनी भी मुझसे दुआ करो मैं तुम्हारी दुआओं को कबूल नहीं करूंगा किन्तु यह कि जो माल दूसरों पर अत्याचार करके लिया हैं उसे लोगों को वापस कर दो। इसके बाद उन लोगों ने ईश्वर के आदेशानुसार किया तो उन पर ईश्वरीय कृपा की वर्षा हुई।

रमज़ान का पवित्र महीना चल रहा है। यह महान ईश्वर की कृपा का द्वार खुलने का महीना है। इस महीने में दुआ कबूल होती है। यह बंदे और अपने रचयिता के बीच वार्ता का महीना है। यह दुआ करने और दुआ कबूल होने का महीना है। पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया है रमज़ान की पहली रात को आसमान के दरवाज़े खोल दिये जाते हैं और महीने की अंतिम रात तक यह दरवाज़े बंद नहीं किये जाते हैं। शुभ सूचना है उन लोगों के लिए जो इस अवसर से लाभ उठाते हैं और दिल को इस महीने की प्राणदायक हवाओं से प्रफुल्लित बनाते हैं। कितना सुन्दर है कि सूर्यास्त और रोज़ा खोलने के समय दुआ के लिए हाथ उठायें और अपने और दूसरों के मोक्ष के लिए दुआ करें।

जनाबे ख़दीजा स.अ.पूरे अरब में दौलतमन्द और मश्हूर थीं आपका लक़्ब मलीकतुल अरब था आप को अमीरतुल क़ुरैश भी कहा जाता था आपकी इतनी दौलत थी कि कारवाने तिजारत तमाम क़ुरैश के कारवान से मिलकर भी ज़्यादा हुआ करते थी आपने अपनी सारी दौलत इस्लाम पर कुर्बान कर दिया तारीख ए इस्लाम में जनाबे ख़तीजा का बहुत बड़ा एहसान हैं।

किसी भी मिशन की कामयाबी के लिए जितना ख़ुलूसे नियत की ज़रूरत होती है उस से कहीं ज़्यादा सरमाया (माल) दरकार होता है। हर आलमी (दुन्यवी) रहबर और सरबराहे कौम को साहिबे सरवत मुख़्लिस मददगारों की हमेशा ज़रूरत पेश आती है।

सिर्फ़ ख़ालिस साथियों का होना मिशन को कामयाब नही बना सकता। मक्के की ज़मीन पर जब हुज़ूरे सरवरे काएनात स.अ.ने ऐलाने रिसालत किया तो उनको भी माल और दौलत की सख्त़ ज़रूरत पेश आई।

शुरू में रसूलुल्लाह स.अ. की हिमायत में ग़रीब और मिसकीन खड़े हुए और मालदार गिरोह आपके मिशन का सख्त़ मुखा़लिफ़ था इन हालत में हज़रत स.अ. को मुख़लिस मददगारों के साथ साथ सरमाए की ज़रूरत भी थी उस वक्त अल्लाह ने अपने नबी की मदद जनाबे ख़दीजा स.अ. के माल से फ़रमाई।

जनाबे ख़दीजा स.अ.पूरे अरब में दौलतमन्द और मश्हूर थीं आपका लक़्ब ‘मलीकतुल अरब’ था। आप को ‘अमीरतुल क़ुरैश’ भी कहा जाता था। आपकी इतनी दौलत थी कि कारवाने तिजारत तमाम क़ुरैश के कारवान से मिलकर भी ज़्यादा हुआ करते थे। (तबका़त इब्ने साद, जि. 8)

क़ुरआन की आय़त ऐलान करती है व वजदक आएलन फ अग़ना उसने आपको फ़कीर पाया तो आप को ग़नी (मालदार) बनाया। (सुरए अज़्ज़ुहा, आयत 8)

इस आय़त की तफ़सीर में इब्ने अब्बास से रिवायत है कि वह कहते हैं कि मैंने इस आय़त के मुतअल्लिक़ रसूलल्लाह स.अ. से सवाल किया, तो हज़रत ने जवाब में फ़रमाया:

फ़कीरो इन्द क़ौमेका यकूलून ला माल लक फ अग़ना कल्लाहो बे माले ख़दीजा, आप के पास दौलत न होने के सबब आपकी क़ौम आपको फ़कीर समझती थी पस अल्लाह ने आप को जनाबे ख़दीजा स.अ.की दौलत से मालदार कर दिया (मानिल अखबार, तफ़सीरे बुरहान)

सिर्फ़ माल और दौलत ही नहीं बल्कि हर महाज़ पर जनाबे ख़दीजा स.अ. पेश पेश रहीं। आप स.अ. की खि़दमत की इस्लाम में कोई मिसाल नहीं मिलती। आप स.अ. ने अल्लाह के दीन की हर मुमकिन मदद की है।

आप ने रसूलुल्लाह स.अ. का उस वक़्त साथ दिया जब कोई उनका पुरसाने हाल न था कोई उनका हामी और मददगार न था ख़ुद सरवरे काएनात स.अ. का बयान सही मुस्लिम में इस तरह नक़्ल हुआ है।

अल्लाह ने मुझे ख़दीजा से बेहतर कोई चीज़ नहीं दी है, उन्होंने मुझे उस वक्त क़ुबूल किया जब सबने मुझे ठुकरा दिया था। उनका मेरी रिसालत पर उस वक़्त भी मुकम्मल ईमान था जब लोगों को मेरी नबुव्वत पर शक हुआ करता था।

क़ुरआन में इरशादे रब्बुल इज़्ज़त है मन ज़ल लज़ी युकरेज़ुल्लाह क़र्ज़न हसनन फ युज़ाएकहू लहू आज़आफन कसीरा  (सुरए बकरह, आयत 245)

कौन है जो अल्लाह को क़र्ज़े हसाना दे ताकि अल्लाह उस में बहुत ज़्यादा कर के लौटाए।

अगर अल्लाह ख़ुद को किसी के माल का मकरूज़ कह रहा है तो यक़ीनन वह ख़ुलूस और वह पाक माल और दौलत, ख़दीजा स.अ. की दौलत है।

उम्मुल मोमेनीन जनाबे ख़दीजा स.अ. वह खा़तून हैं जिन्होंने राहे ख़ुदा में सब कुछ सर्फ़ कर दिया, यहाँ तक कि वक्ते आख़िर रसूलुल्लाह स.अ. के पास अपनी ज़ौजा ख़दीजा स.अ. को देने के लिए कफ़न भी न था।

यक़ीनन खुदा का दीन और उसके मानने वाले इस बीबी के मकरूज़ हैं

  उस ज़माने में भी जनाबे ख़दीजा (स.अ) की शख़्सियत इतनी अज़ीम और इज़्ज़तदार थीं कि आप को औरतों का सरदार कहा जाता था।

  उम्मत की मां जनाबे ख़दीजा (स.अ) एक बा फ़ज़ीलत ख़ातून हैं. आपका नाम ख़दीजा, कुन्नियत उम्मे हिन्द थी, आप के वालिद ख़ुवैल्द इब्ने असद और वालिदा का नाम फ़ातिमा बिन्ते ज़ायदा इब्ने असम था।

  इन दोनों का नसब आगे चल कर पैग़म्बरे इस्लाम (स) के नसब से मिल जाता है, आप की वफ़ात माहे मुबारक रमज़ान की दसवीं तारीख़ (बेअसत के दसवें साल) में मक्का शहर में हुई और मक्का के मशहूर क़ब्रिस्तान जन्नतुल मोअल्ला में आप दफ़्न हुईं जहां आज भी आपकी क़ब्र साहिबाने मारेफ़त की ज़ियारतगाह बनी हुई है।

  *जनाबे ख़दीजा (स.अ) की शादी*

  जनाबे ख़दीजा की उम्र २८ बरस की थी जब आप की शादी पैग़म्बरे इस्लाम (स) से हुई और आप रसूले ख़ुदा (स) से ख़ानदानी रिश्तेदारी तो रखती ही थीं उसके अलावा आप ने चचाज़ाद भाई वरक़ह इब्ने नौफ़िल से आप के फ़ज़ाएल सुने थे और यहूदी और ईसाई उलमा से आप की नबुव्वत और रिसालत की जो ख़बरें उन तक पहुंची थीं इन्हीं सब चीज़ों की वजह से अपने दिमाग़ में पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स) को जगह दे चुकी थीं और दिल ही दिल में आप पर ईमान ला चुकी थीं।

  *इस्लाम के एलान से पहले आप के अलक़ाब*

  इस्लाम के एलान से पहले आप के बहुत सम्मानित अलक़ाब थे जैसेकि:

  मुबारकह: इंजील में जहां पैग़म्बरे इस्लाम (स) की बशारत का ज़िक्र है वहीं पर जनाबे ख़दीजा (स) के मुबारकह होने और जन्नत में जनाबे मरयम (स) के साथ हमनशीनी का भी ज़िक्र है।

  ताहिरा: अरब के ज़माने जाहिलिय्यत में पाकदामन औरतों की तादाद बहुत कम थी और समाज की ख़राबियों की वजह से ज़ियादातर औरतों का किरदार दाग़दार होता था, उस दौर में भी जनाबे ख़दीजा को अपनी पाकीज़गी की वजह से ताहिरा के लक़ब से नवाज़ा गया जो आप के बुलंद मर्तबे की दलील है।

  सय्यदुन निसा: उस ज़माने में भी जनाबे ख़दीजा की शख़्सियत इतनी अज़ीम और इज़्ज़तदार थीं कि आप को औरतों का सरदार कहा जाता था।

  *क़ुरआन और रिवायात में आप का ज़िक्र*

  जैसा कि ज़िक्र हुआ है कि आप अपने चचेरे भाई से पैग़म्बरे इस्लाम (स) के फ़ज़ाएल और अज़मत के बारे में सुन चुकी थीं जिस के बाद न केवल यह कि आप पैग़म्बरे ख़ुदा (स) की नबुव्वत और रिसालत के बारे में जानती थीं बल्कि दिल ही दिल में ईमान भी ला चुकी थीं.

  इमाम अली अलैहिस्सलाम नहजुल बलाग़ा में क़ासेआ नामी ख़ुत्बे में फ़रमाते हैं कि: जिस समय पैग़म्बरे इस्लाम (स) की रिसालत का नूर चमका उसकी रौशनी पैग़म्बरे ख़ुदा (स) और जनाबे ख़दीजा के घर के अलावा किसी और घर में नहीं थी और मैं उनमें तीसरा शख़्स था जो रिसालत के नूर को देखता और नबुव्वत की ख़ुशबू सूंघता था। आप का मर्तबा इतना बुलंद था कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) आप से फ़रमाते थे: ऐ ख़दीजा! अल्लाह रोज़ाना कई मर्तबा तुम्हारी वजह से फ़रिश्तों पर फ़ख़्र करता है...

? *अल्लाह हुम्मा अज्जिल ले वलियेकल फ़रज...*

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने नए हिजरी शम्सी साल के पहले दिन बुधवार 20 मार्च की शाम को तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में अवाम के मुख़्तलिफ़ तबक़ों के हज़ारों लोगों से मुलाक़ात की।

    उन्होंने क़ौम के सभी लोगों को नौरोज़ की मुबारकबाद पेश करते हुए, प्रकृति की बहार और अध्यात्म की बहार के एक साथ आगमन को इंसान के जिस्म, आत्मा और जान की ताज़गी की राह समतल होने का सबब बताया और कहा कि रमज़ानुल मुबारक की ताक़त और कमाल ये है कि वो रोज़े, इबादत और दुआओं के ज़रिए ग़ाफ़िल न रहने वाले इंसान को शौक़ जद्दोजेहद के साथ बेहतरी और बंदगी की राह की ओर ले आता है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने कहा कि ग़ज़ा के वाक़ेयात और कथित सभ्य व मानवाधिकार की रक्षा की दावेदार दुनिया की नज़रों के सामने 30000 से ज़्याद बच्चों, औरतों, बूढ़ों और जवानों के क़त्ले आम ने पश्चिमी दुनिया पर छाए हुए अंधकार को स्पष्ट कर दिया है। उन्होंने कहा कि अमरीका और योरोप वालों ने न सिर्फ़ यह कि क़ाबिज़ ज़ायोनी शासन के जुर्म की रोकथाम नहीं की बल्कि आग़ाज़ के दिनों में ही मक़बूज़ा फ़िलिस्तीन का दौरा करके अपने सपोर्ट का एलान किया और अपराध जारी रखने के लिए तरह तरह के हथियार और मदद भेजी।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने पश्चिम एशिया में प्रतिरोध के मोर्चे के गठन की उपयोगिता उजागर होने को हालिया कुछ महीनों के दौरान के वाक़यों का नतीजा बताया और कहा कि इन वाक़यों ने दिखा दिया कि इस क्षेत्र में प्रतिरोध के मोर्चे की मौजूदगी, सबसे अहम मुद्दों में से एक है और बेदार ज़मीरों से निकलने वाले तथा ज़ायोनी अपराधियों के 70 वर्षीय ज़ुल्म व नाजायज़ क़ब्ज़े के ख़िलाफ़ गठित होने वाले इस मोर्चे को दिन ब दिन अधिक मज़बूत बनाना चाहिए।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने प्रतिरोध के मोर्चे की क्षमता के सामने आने को ग़ज़ा की मौजूदा जंग का एक और नतीजा बताया और कहा कि पश्चिम वालों को भी और क्षेत्र की सरकारों को भी प्रतिरोध के मोर्चे की ताक़त व सलाहियतों के बारे में कुछ पता नहीं था लेकिन आज ग़ज़ा के मज़लूम अवाम के सब्र, हमास और दूसरे प्रतिरोधी गुटों सहित फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध के इरादे व संकल्प और लेबनान, यमन तथा इराक़ में प्रतिरोध की ताक़त व संकल्प उनकी नज़रों के सामने हैं।

उन्होंने प्रतिरोध के मोर्चे की ताक़त के ज़ाहिर होने को अमरीकियों के अंदाज़ों और क्षेत्रीय मुल्कों पर हावी होने की उनकी योजना के नाकाम होने का सबब बताया और कहा कि प्रतिरोध की ताक़त ने उनके अंदाज़ों को नाकाम कर दिया और ये दिखा दिया कि अमरीकी न सिर्फ़ इलाक़े पर हावी नहीं हो सकते बल्कि वो क्षेत्र में रुक भी नहीं सकते और इलाक़े से निकलने पर मजबूर हैं।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने सभी के लिए ज़ायोनी शासन की संकटमय स्थिति के ज़ाहिर हो जाने को ग़ज़ा के वाक़यों की एक और उपयोगिता बताया और कहा कि इन वाक़यों ने दिखा दिया कि ज़ायोनी सरकार न सिर्फ़ यह कि अपनी रक्षा करने में संकट का शिकार है बल्कि वो संकट से बाहर निकलने में भी संकट का शिकार है क्योंकि ग़ज़ा की जंग में दाख़िल होकर वो एक दलदल में फंस गयी है और वो चाहे ग़ज़ा से बाहर निकले या न निकले उसकी हार तय है। 

उन्होंने कहा कि क़ाबिज़ ज़ायोनी शासन के अधिकारियों के बीच गहरे मतभेद और टकराव इस शासन को पतन के क़रीब कर रहे हैं।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने इस बात पर बल देते हुए कि अमरीका ने ग़ज़ा के मामले में सबसे बुरा स्टैंड लिया, कहा कि लंदन, पेरिस और ख़ुद अमरीका में सड़कों पर फ़िलिस्तीनियों के हित में अवाम के प्रदर्शन हक़ीक़त में अमरीका से नफ़रत का एलान हैं।

उन्होंने ग़ज़ा के मामले में अमरीका के ग़लत स्टैंड और अंदाज़े को दुनिया में अमरीका से नफ़रत बढ़ने और क्षेत्र में उससे नफ़रत में दस गुना इज़ाफ़े का सबब बताया और कहा कि यमन से इराक़ और सीरिया से लेबनान तक क्षेत्र में जहाँ भी प्रतिरोध के वीर मुजाहिद अमरीकियों के ख़िलाफ़ कोई भी कार्यवाही करते हैं, अमरीकी उसे ईरान से जोड़ देते हैं, जिससे पता चलता है कि अमरीकियों ने क्षेत्र के अवाम और उसके वीर व इरादों से भरपूर जवानों को नहीं पहचाना है और यही ग़लत अंदाज़ा निश्चित तौर पर अमरीकियों को धूल चटा देगा।

उन्होंने इस बात पर बल देते हुए कि इस्लामी गणराज्य जितना मुमकिन है प्रतिरोध का सपोर्ट और मदद कर रहा है, कहा कि अलबत्ता ये ख़ुद रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ हैं जो फ़ैसला लेती और कार्यवाही करती हैं और वो बिल्कुल सही हैं।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने कहा कि क्षेत्र में मौजूद ज़ुल्म के स्रोत यानी ज़ायोनी शासन के वजूद को ख़त्म कर दिया जाना चाहिए और हम हर उस शख़्स के समर्थक और मददगार हैं जो इस इस्लामी, इंसानी और अंतरात्मा के जेहाद में शामिल हो।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने अपने ख़ेताब के एक दूसरे हिस्से में इस साल को "अवाम की भागीदारी से पैदावार में छलांग" का नाम दिए जाने को एक अहम नारा बताया और कहा कि अधिकारियों की योजनाबंदी और कोशिश से, अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में सक्रियता के लिए अवाम लामबंद हो जाएं तो पैदावार में छलांग के बहुत ही अहम नारे को व्यवहारिक बनाना मुमकिन हो जाएगा।

उन्होंने ईरान की अर्थव्यवस्था के ताने बाने को बिखेरने और ईरानी क़ौम को घुटने टेकने पर मजबूर करने की अमरीका और उसके पिछलग्गुओं की मुसलसल कोशिशों की ओर इशारा करते हुए कहा कि अल्लाह की मदद से वो अब तक अपने इस मक़सद में नाकाम रहे हैं और इसके बाद भी अधिकारियों और अवाम की कोशिश, जद्दो जेहद, इरादे और संकल्प से नाकाम ही रहेंगे।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने विदेशी व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक कोशिशों के जारी रहने को भी ज़रूरी व अहम बताते हुए कहा कि मुल्कों के साथ सहमति पत्रों को समझौतों में बदलना चाहिए ताकि उनके नतीजे व्यवहारिक तौर पर नज़र आएं।

उन्होंने राष्ट्रीय हित और मुल्क के उज्जवल भविष्य को, ईमान और उम्मीद पर निर्भर बताया और कहा कि अगर दिलों में उम्मीद की किरण बुझ जाए तो फिर कोई भी काम नहीं होगा।

उन्होंने प्रतिभावान जवान, काम के लिए तैयार क़ौम, बेनज़ीर राष्ट्रीय संसाधन और विशिष्ट भौगोलिक पोज़ीशन को ईरान की तरक़्क़ी के जारी रहने की बेपनाह गुंजाइशों में गिनवाते हुए कहा कि तरक़्क़ी के लिए ज़रूरी है कि सभी भविष्य की ओर से आशावान रहें।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने कमज़ोरियों को बढ़ा चढ़ाकर दिखाने और विकास व तरक़्क़ी के इंकार के लिए तरह तरह के प्रचारिक हथकंडों के इस्तेमाल को दुश्मन की मुसलसल जारी रहने वाली साज़िशों में बताया और कहा कि वो बरसों से इस तरह के काम कर रहा है लेकिन मुल्क के भीतर हमें इस तरह की ग़लती व ग़फ़लत का शिकार नहीं होना चाहिए।

उन्होंने जवानों को दुश्मन की साज़िशों से आगाह रहने की ताकीद करते हुए कहा कि दुश्मन आपको निराश करना चाहते हैं और तरक़्क़ी की कुछ आवाज़ें आप तक नहीं पहुंचने देना चाहते हैं लेकिन आप दुश्मन की निराशाजनक कोशिशों से ज़्यादा उम्मीद और तरक़्क़ी के लिए काम कीजिए।

 

साल 1403 हिजरी शम्सी के पहले दिन 20 लाख से अधिक लोगों ने हरम ए इमाम रज़ा (अ.स.) की दरगाह का दौरा किया और दरगाह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लिया, एक रिपोर्ट के अनुसार ,साल 1403 हिजरी शम्सी के पहले दिन 20 लाख से अधिक लोगों ने हरम ए इमाम रज़ा (अ.स.) की दरगाह का दौरा किया और दरगाह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लिया,

हरम ए इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम में नए साल के मौके पर प्रोग्राम की शुरुआत कुरान करीम की तिलावत से हुई उसके बाद ईरान के विभिन्न भाषाओं और बोलियों में नए साल की शुभकामनाएं दी गईं ।

सिस्तान और बलूचिस्तान, लुरिस्तान और अजरबैजान उन प्रांतों में से जिन्होंने इस अवसर पर हज़रत इमाम रज़ा अ.स. की दरगाह के तीर्थयात्रियों और ईरान के लोगों को उनकी जबान में बधाई दी गई

इस प्रोग्राम के बाद दुआ सहर पढ़ी गई और उसके बाद कुछ नौजवानों ने बेहतरीन तरीके से एक साथ आज़ान दी,

ईरान की महिला धावक मरयम तूसी ने दक्षिणी अफ्रीका का पुरस्कार जीतकर रेकार्ड बनाया।

पार्स टुडे के अनुसार ईरान की महिला धावक मरयम तूसी ने साउथ अफ्रीका की एथेलेटिक प्रतियोगिता की चैंपियनशिप जीत ली।

ईरानी महिला धावक मरयम तूसी ने 100 और 200 मीटर में चैंपियनशिप का ख़िताब जीतने के अतिरिक्त उन्होंने 200 मीटर में अपने राष्ट्रीय रेकार्ड में भी सुधार किया।

इस प्रतियोगिता में मरयम तूसी, 23.35 सेकेण्ड (+0.3) का समय दर्ज करके अपने प्रतिद्दवी से पहले ही फिनिश लाइन पार करने में सफल रहीं।

ईरान की इस महिला एथलीट तूसी ने 100 मीटर की प्रतियोगिता में भाग लिया था।  इस प्रतियोगिता में तूसी ने 11.60 सैकेण्ड का कोरम दर्ज करके पहला ख़िताब जीतने में सफलता हासिल की।

विभिन्न षडयंत्रों के माध्यम से अमरीका, इराक़ में बाक़ी रहने की कोशिशें कर रहा है।

पार्स टुडे के अनुसार इराक में आम जनमत इस देश में आतंकवादी गुट दाइश की गतिविधियों को अमरीकी योजना का हिस्सा मानता है ताकि इस माध्यम से वह इराक़ में अपनी उपस्थति का औचित्य दर्शा सके।

इराक़ और अमरीकी अधिकारियों के बीच होने वाली आधिकारिक सहमति के बावजूद इराक़ से सारे विदेशी सैनिकों को बाहर निकालने पर आधारित इराक़ की संसद के प्रस्ताव को लागू करने में अमरीका आनाकानी कर रहा है।  अमरीका ने इराक़ में अपने बने रहने का बहाना, इस देश में मौजूद दाइश के तत्वों के विरुद्ध संघर्ष को बना रखा है।

यही वजह है कि इराक़ी जनता और वहां के जानकार इस देश में हालिया विस्फोटों और आतंकी हमलों को अमरीकी योजना का भाग बता रहे हैं जिनकों आतंकवादी गुट दाइश के तत्वों ने अंजाम दिया है।  उनका मानना है कि दाइश के बहाने अमरीका, इराक़ में अपनी उपस्थति को जारी रखना चाहता है।

इराक़ के एक विशेषज्ञ काज़िम अलहाज कहते हैं कि आतंकवादी तत्व, इराक़ में अमरीकी सैनिकों के आदेश पर गतिविधियां करते हैं।  उनका कहना है कि इराक़ से विदेशी सैनिकों विशेषकर अमरीकी सैनिकों की वापसी के साथ ही आतंकवाद से संबन्धित सभी सुरक्षा ख़तरे समाप्त हो जाएंगे।  अलहाज ने इराक़ में मौजूद अमरीकी सैनिकों को अतिग्रहरकारी बताते हुए कहा कि इन्होंने अमरीका और अवैध ज़ायोनी शासन से संनब्धित जासूसों के गुटों को इराक़ में स्थापित किया है।

इराक में आतंकी अमरीकी सैनिकों की संदिग्ध गतिविधियों के संदर्भ में चेतावनी देते हुए कुछ समय पहले जब्बार अलमामूरी ने बताया था कि इराक़ की सुरक्षा के बारे में अमरीका की नकारात्मक भूमिका, उसके द्वारा आतंकी गुटों के समर्थन और इस देश के राजनीतिक मामलों में वाशिग्टन के हस्तक्षेप से सारे ही लोग अवगत हैं।

फ़िलिस्तीनियों के जातीय सफाए में लिप्त लोगों को दंडित किये जाने की मांग उठने लगी है।

पार्सटुडे के अनुसार पूर्व ट्वीटर तथा वर्तमान एक्स के अकाउंट पर जनसंहार में लिप्त अवैध ज़ायोनी शासन और उसके समर्थकों के लिए वैश्विक न्याय की बात कही गई है।

इस अकाउंट पर अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडेन, अवैध ज़ायोनी शासन के प्रधानमंत्री नेतनयाहू, यूरोपीय आयोग की प्रमुख उरसुला वानडेरलियेन, और विकीलीक्स के संस्थापक मैंडेक्स जूलियन असांजे के चित्रों को पेश करके लिखा गया है कि एक न्यापूर्ण दुनिया में जूलियन असांजे स्वतंत्र होकर ग़ज़्ज़ा के जनसंहार की रिपोर्टिंग कर सकेंगे जबकि बाइडेन, नेतनयाहू और उरसुला जैसे क़साई, फ़ांसी के फंदे की प्रतीक्षा में होंगे।

इस समय जब ज़ायोनी शासन, ग़ज़्ज़ा में निर्दोष फ़िलिस्तीनियों के जनसंहार में लगा हुआ है, इस काम में पश्चिमी देश उसका खुलकर समर्थन कर रहे हैं।  मानवाधिकारों की सुरक्षा के अपने समस्त दावों के बावजूद पश्चिम, इस जनसंहार में ज़ायोनियों को हथियार उपलब्ध करवा रहा है।

फ़िलिस्तीनियों के समर्थन में इराक़,यमन, लेबनान और सीरिया में प्रतिरोधक गुट, अवैध ज़ायोनी शासन हमले कर रहे हैं।

इराक़ के प्रतिरोध ने अत्याचार ग्रस्त फ़िलिस्तीनियों का समर्थन करते हुए अतिग्रहकारियों के ठिकानों पर हमले किये हैं।

इराक़ी प्रतिरोध ने घोषणा की है उसने कि अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन के भीतर बिन गोरियन हावाई अड्डे पर कई मिसाइल बरसाए हैं।  दूसरी ओर यमन की सेना ने भी ज़ायोनियों के ईलात बंदरगाह पर मिसाइलों से हमला किया है।  इसी के साथ यमन की सेना ने लाल सागर में अमरीका के Mado नामक जहाज को लक्ष्य बनाया है।  उधर हिज़बुल्ला ने भी लगातार पांच कार्यवाहियां करते हुए इस्राईल दुश्मन के कुछ सैन्य अड्डों पर मिसाइल और राकेटो से हमला किया है।

अवैध ज़ायोनी शासन ने पश्चिमी देशों के समर्थन से ग़ज़्ज़ा में फ़िलिस्तीनियों का जनसंहार आरंभ कर रखा है।  इसके मुक़ाबले में ग़ज़्ज़ा में फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध और इराक़,यमन, लेबनान और सीरिया में प्रतिरोधक गुटों ने घोषणा कर रखी है कि वे अवैध ज़ायोनी शासन से उसके अपराधों का बदला लेकर रहेंगे।  ग़ज़्ज़ा पर किये गए ज़ायोनियों के हमलों में अबतक 31 हज़ार से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं।  इन हमलों में 72 हज़ार से अधिक फ़िलिस्तीनी घायल हुए हैं।

ब्रिटेन के समर्थन से विभिन्न देशों से यहूदियों का पलायन करवाकर 1917 से अवैध ज़ायोनी शासन के गठन की भूमिका प्रशस्त की गई थी।  बाद में सन 1948 में इस अवैध शासन के गठन का एलान कर दिया गया।  उस समय से ज़ायोनियों के हाथों फ़िलिस्तीनियों के नरसंहार और उनकी भूमि पर क़ब्ज़ा करने का क्रम अबतक जारी है।