رضوی

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रविवार, 24 मार्च 2024 18:13

दुआ ए मुजीर

रमज़ान के पवित्र महीने में पढ़ी जाने वाली एक अन्य दुआ, दुआए मुजीर है। पापों को क्षमा किए जाने के लिए रमज़ान की रातों विशेष कर तेरहवीं, चौदहवीं और पंद्रहवीं रात में इस दुआ को पढ़ने की काफ़ी सिफ़ारिश की गई है। मुजीर शब्द का अर्थ होता है, रक्षक। इस दुआ का नाम मुजीर रखे जाने का कारण यह कि इसमें यह वाक्य बहुत अधिक दोहराया गया है कि अजिरना मिनन्नारे या मुजीर अर्थात हे रक्षक, नरक से हमारी रक्षा कर।

इस पूरी दुआ में ईश्वर के पवित्र नामों का उल्लेख है और दुआ के हर वाक्य में प्रार्थी ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह उन्हें नरक की आग से शरण दे। आरंभ के बिस्मिल्लाह और अंत के ईश्वरीय गुणगान को छोड़ कर इस दुआ में 90 वाक्य हैं और हर वाक्य में ईश्वर को हर प्रकार की बुराई से पवित्र कह कर और उसकी महानता को मान कर उसे उसके दो नामों से पुकारा जाता है और फिर यह वाक्य दोहराया जाता हैः अजिरना मिनन्नारे या मुजीर अर्थात हे रक्षक, नरक से हमारी रक्षा कर।

हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने इस दुआ को 13,14,15 रमज़ान उल मुबारक में पढ़ने की ताकीद फरमाई हैं।

बिस्मिल्लाह अर्रहमान निर्रहीम

सुब्हानका या अल्लाहो, ताआलैता या रहमानो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या रहीमो, ताआलैता या करीमो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या मालेको, ताआलैता या मालेको, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या क़ुद्दूसो, ताआलैता या सलामो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या मोमिनो, ताआलैता या मोहैमेनो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या अज़ीज़ो, ताआलैता या जब्बारो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या मुतकब्बेरो, ताआलैता या मुतजब्बिरो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या ख़ालिको, ताआलैता या बारेओ, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या मुसव्विरो, ताआलैता या मुक़द्दिरो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या हादी, ताआलैता या बाक़ी, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या वहाबो, ताआलैता या तव्वाबो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या फ़त्ताहो, ताआलैता या मुरताहो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या सय्यिदी, ताआलैता या मौलाया, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या क़रीबो, ताआलैता या रक़ीबो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या मुबदेओ, ताआलैता या मोईदो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या हमीदो, ताआलैता या मजीदो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या क़दीमो, ताआलैता या अज़ीमों, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या ग़फ़ूरो, ताआलैता या शकूरो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या शाहिदो, ताआलैता या शहीदो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या हन्नानो, ताआलैता या मन्नानो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या बाइसो, ताआलैता या वारेसो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या मोहई, ताआलैता या मोमीतो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या शफ़ीक़ो, ताआलैता या रफ़ीक़ो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या अनीसो, ताआलैता या मुनिसो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या जलीलो, ताआलैता या जमीलो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या ख़बीरो, ताआलैता या बसीरो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या ख़फ़ियो, ताआलैता या मलियो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या माबूदों, ताआलैता या मौजूदो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या ग़फ़्फ़ारो, ताआलैता या क़ह्हारो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या मज़कूरो, ताआलैता या मशकूरो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या जवादो, ताआलैता या मआज़ो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

सुब्हानका या जमालो, ताआलैता या जलालो, अजिरना मीनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या साबेक़ो, ताआलैता या राज़ेको, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या सादिक़ो, ताआलैता या फ़ालेक़ो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या समीओ, ताआलैता या सरीओ, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या रफ़ीओ, ताआलैता या बदीओ, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या फ़आलो, ताआलैता या मुतआलो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या क़ाज़ी, ताआलैता या राज़ी, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या क़ाहेरो, ताआलैता या ताहिरो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या आलिमो, ताआलैता या हाकिमो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या दाएमो, ताआलैता या क़ाएमों, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या आसिमो, ताआलैता या क़ासिमो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या ग़नीयो, ताआलैता या मुग़नी, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या वफ़ियो, ताआलैता या क़वियो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या काफ़ी, ताआलैता या शाफ़ी, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या मुक़द्दिमो, ताआलैता या मुअख़्ख़िरो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या अव्वलो, ताआलैता या आख़िरो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या ज़ाहेरो, ताआलैता या बातेनो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या रजाओ, ताआलैता या मुरतजा, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या ज़ल-मन्ने, ताआलैता या ज़त-तौले, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या हैयो, ताआलैता या क़य्यूमो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या वाहिदो, ताआलैता या अहदो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या सय्येदो, ताआलैता या समदो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या क़दीरो, ताआलैता या कबीरो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या वाली, ताआलैता या मुतआली, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या अलिय्यो, ताआलैता या आला, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या वलियो, ताआलैता या मौला, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या ज़ारेओ, ताआलैता या बारेओ, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या हाफ़िज़ो, ताआलैता या राफ़ेओ, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या मुक़सितो, ताआलैता या जामेओ,

अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या मोइज़्ज़ो, ताआलैता या मोज़िल्लो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या हाफ़ेज़ो, ताआलैता या हफ़ीज़ो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या क़ादिरो, ताआलैता या मुक़तदेरो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या अलीमो, ताआलैता या हलीमो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या मुअती, ताआलैता या मानेओ, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या ज़ार-रो, ताआलैता या नाफ़ेओ, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या मोजीबो, ताआलैता या हसीबो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या आदेलो, ताआलैता या फ़ासिलो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या लतीफ़ो, ताआलैता या शरीफ़ो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या रब्बो, ताआलैता या हक़्क़ो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या माजेदो, ताआलैता या वाहेदो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या अफ़ुव्वो, ताआलैता या मुन्तक़िमो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या वासेओ , ताआलैता या मुवस्सेओ, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या रउफ़ो, ताआलैता या अतूफ़ो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या फ़र्दो, ताआलैता या वित्रो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या मुक़ीतो, ताआलैता या मुहीतो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या वकीलो, ताआलैता या अद्लो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या मुबीनो, ताआलैता या मतीनो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या बर्रो, ताआलैता या वदूदो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या रशीदो, ताआलैता या मुर्शिदों, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या नूरो, ताआलैता या मुनव्विरो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या नसीरो, ताआलैता या नासिरो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या सबूरो, ताआलैता या साबेरो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या मुहसी, ताआलैता या मुन्शिओ, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या सुब्हानो, ताआलैता या दय्यानो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या मुग़ीसो, ताआलैता या ग़ियासो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या फ़ातेरो, ताआलैता या हाज़ेरो, अजिरना मिनन नारे या मुजीर

 

सुब्हानका या ज़ल-इज़्ज़े वल जमाल, तबारकता या ज़ल जबरूते वल जलाल, सुब्हानका ला इलाहा इल्ला अन्ता सुब्हानका इन्नी कुन्तो मिनज़ ज़ालिमीन, फ़स-तजब्ना लहू व नज्जैनाहो मिनल ग़म्मे व कज़ालेका नुन जिल मोमिनीना व सल्लल लाहो अला सय्येदिना मोहम्मदिन व आलेही अज-मईन वल हम्दो लिल्लाहे रब्बिल आलमीन व हस-बुनल्लाहो व नेमल वकीलो व ला हौला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाहिल अलिय्यिल अज़ीम।

 

अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम

रविवार, 24 मार्च 2024 18:12

ईश्वरीय आतिथ्य- 13

रमज़ान का पवित्र महीना, ईश्वर का महीना है, क़ुरआने मजीद नाज़िल होने का महीना है, ईश्वरीय दया व क्षमा का महीना है, ईश्वर की विशेष कृपा व अनुकंपा का महीना है।

यह वह महीना है जिसमें मुसलमान और ईमान वाले पूरे उत्साह के साथ क़ुरआने मजीद की आसमानी शिक्षाओं को सीखने की कोशिश करते हैं और अपने धार्मिक दायित्वों का निर्वाह करके अपनी बंदगी का प्रदर्शन करते हैं। वे इस माध्यम से ईश्वर से सामिप्य द्वारा उसकी व्यापक दया का पात्र बनते हैं और ईश्वर से भय के उच्च चरणों तक पहुंचते हैं।

सभी मामलों में सफलता का मंत्र, अवसरों व उचित परिस्थितियों से सही ढंग से लाभ उठाना है। बुद्धिमान लोग हमेशा इस बात की कोशिश करते हैं कि प्राप्त होने वाले अवसरों से भरपूर लाभ उठाएं। वे अच्छी तरह जानते हैं कि समय जल्दी गुज़र जाता है और संभव है कि मामूली सी ढिलाई के चलते सबसे बड़ा अवसर हाथ से निकल जाए और इंसान के हाथ पश्चाताप के अलावा कुछ न लगे। इसी कारण ईश्वरीय दूतों ने हमेशा इस बात पर बल दिया है कि अवसरों से हर संभव लाभ उठाओ क्योंकि ये बादलों की तरह बहुत जल्दी गुज़र जाते हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने फ़रमाया हैः जान लो कि तुम्हारे जीवन के दिनों में ऐसे क्षण आते हैं कि जिनमें ईश्वर की ओर से जीवनदायक हवाएं चलती हैं तो कोशिश करो कि उन अवसरों से लाभ उठाओ और अपने आपको उन अवसरों के समक्ष ले जाओ। एक अन्य हदीस में उन्होंने फ़रमायाः जिसके लिए भी भलाई का कोई दरवाज़ा खुल जाए वह उससे लाभ उठाए क्योंकि उसे नहीं पता है कि वह दरवाज़ा कब बंद हो जाएगा।

रमज़ान का पवित्र महीना उनहीं दिनों में से है जिनमें ईश्वरीय दया की हवाएं चलती हैं और उसका हर पल एक उचित व अद्वितीय अवसर है और अगर उससे अच्छी तरह लाभ न उठाया गया तो फिर केवल पछतावा ही होगा। इसी लिए ईमान वाले इस विभूतिपूर्ण महीने से अधिक से अधिक लाभ उठाने के लिए इसमें अधिक से अधिक क़ुरआन की तिलावत करने और ईश्वर से दुआ व प्रार्थना में बिताने का प्रयास करते हैं।

दुआओं की किताबों में इस पवित्र महीने के हर दिन और हर रात के लिए पैग़म्बर व उनके परिजनों की ओर से अनेक दुआएं मिलती हैं जिनमें से एक दुआए इफ़्तेताह है। यह दुआ रमज़ान की रातों से विशेष है और इसमें बड़े सुंदर व मनमोहक ढंग से ईश्वर का गुणगान किया गया है और ईश्वर के प्रिय बंदे जिस प्रकार से उसे पुकारा करते थे उसी तरह से इसमें ईश्वर को पुकारा गया है। दुआए इफ़्तेताह की एक अहम विशेषता, मानव समाज में व्यापक रूप से पाई जाने वाली समस्याओं व कठिनाइयों पर ध्यान दिया जाना है।

यह दुआ इस प्रकार ईश्वर के गुणगान से शुरू होती है। प्रभुवर! प्रशंसा मैं तेरे गुणगान से आरंभ करता हूं क्योंकि तूने ही मुझे अपनी ओर ध्यान देने का सामर्थ्य प्रदान किया। तेरे उपकार की वजह से दूसरे सीधे मार्ग पर मज़बूती डटे रहते रखता है और मुझे विश्वास है कि तू कृपालुओं में सबसे बड़ा कृपालु है, दंडित करने में सबसे अधिक दंड देने वाला और महानता में सबसे महान है। प्रभुवर! तूने मुझे इस बात की अनुमति दी है कि मैं तुझे पुकारूं, तो हे सुनने वाले ईश्वर! मेरे आभार को स्वीकार कर और हे दयालु ईश्वर! मेरी प्रार्थना को स्वीकार कर और हे क्षमा करने वाले ईश्वर! मेरी ग़लतियों को माफ़ कर दे।

 जो चीज़ मनुष्य के कल्याण का कारण बनती है वह यह समझना है कि वह ईश्वर व उसकी महानता के समक्ष एक छोटा व तुच्छ बंद है जिसका, अपना कुछ भी नहीं है। सभी अच्छाइयां ईश्वर की ओर से हैं और जो भी समस्याएं या बुराइयां हैं उनमें वह अपने बुरे कर्मों के कारण ग्रस्त हुआ है। इंसान को यह समझना चाहिए कि अगर वह ग़लत चयन के कारण बुरे रास्ते पर चलता है तो व्यवहारिक रूप से ईश्वर से लड़ता है। उसे अपने आपको ईश्वर से भय और उससे आशा के बीच की स्थिति में बाक़ी रखना चाहिए यानी ऐसा सोचना चाहिए कि संभव है कि अत्यधिक उपासना के बावजूद किसी बड़ी ग़लती के चलते उसका अंजाम बुरा हो जाए लेकिन उसे हर हाल में ईश्वर की दया की ओर से आशावान रहना चाहिए।

ईश्वर ने स्वयं से निराशा को बड़े पापों की श्रेणी में रखा है। मनुष्य चाहे जितना बड़ा पापी हो, उसे ईश्वर की दया की ओर से निराश नहीं होना चाहिए। ईश्वर की दया इतनी व्यापक है कि अगर मनुष्य सच्चे मन से तौबा व प्रायश्चित करके उसकी ओर लौट आए तो ईश्वर उसे क्षमा कर देगा। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पर पौत्र इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि कोई भी ईमान वाला बंदा ऐसा नहीं है जिसके हृदय में दो प्रकाश न हों, एक ईश्वर से भय का प्रकाश और दूसरे उससे आशा का प्रकाश और अगर इन दोनों को तौला जाए तो इनमें से किसी को भी दूसरे पर श्रेष्ठता प्राप्त नहीं है।

दुआए इफ़्तेताह में एक विषय जिस पर अत्यधिक बल दिया गया है, वह इस्लाम के वैश्विक शासन से प्रेम की अभिव्यक्ति है जो ईश्वर के अंतिम प्रतिनिधि हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के प्रकट होने के बाद स्थापित होगा। यह दुआ पढ़ने वाला ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहता है। प्रभुवर! हम एक ऐसे सम्मानीय शासन के लिए उत्सुक है जिसके माध्यम से तू इस्लाम और उसके मानने वालों को सम्मान प्रदान करेगा और असत्य तथा उसके मानने वालों को अपमानित करेगा। प्रभुवर! हमें उस शासन में लोगों को तेरे आज्ञापालन की ओर बुलाने वालों और तेरे मार्ग पर चलने वालों में रख।

रमज़ान के पवित्र महीने में सहरी के समय पढ़ी जाने वाली अहम दुआओं में से एक दुआए अबू हमज़ा सुमाली भी है। इस दुआ की शिक्षा पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने दी है और इसे उनसे उनके एक साथी अबू हमज़ा ने लोगों तक पहुंचाया है। अबू हमज़ा अपने समय के अत्यंत प्रतिष्ठित लोगों में से थे और उन्हें अपने समय का सलमान कहता जाता था। इस दुआ में ईश्वर के सद्गुणों का उल्लेख है और इसी तरह विभिन्न आध्यात्मिक, सामाजिक, राजनैतिक व नैतिक विषयों की ओर भी संकेत किया गया है। इस दुआ में तौबा और ईश्वर से भय के मार्ग का बड़ी अच्छी तरह से चित्रण किया गया है और ईश्वर की महान अनुकंपाओं को गिनाया गया है। दुआए अबू हमज़ा सुमाली में प्रलय की कठिनाइयों और पापों के बोझ की ओर इशारा करते हुए पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम व उनके परिजनों के आज्ञापालन की आवश्यकता पर बल दिया गया है। इस दुआ में इसी तरह आलस्य और निराशा जैसे अवगुणों से पवित्र किए जाने की प्रार्थना भी की गई है।

दुआए अबू हमज़ा सुमाली की एक अहम विशेषता यह है कि इसमें अपने पालनहार से मनुष्य की प्रार्थना की शैली का भली भांति चित्रण किया गया है। पैग़म्बरे इस्लाम व उनके परिजनों की दुआओं में इस बिंदु पर बहुत ध्यान दिया गया है कि प्रार्थी हमेशा अपने आपको भय व आशा के बीच महसूस करे। एक ओर जब बंदा अपने पापों को देखता है तो उसमें शर्मिंदगी की भावना पैदा होती है और दूसरी ओर जब वह ईश्वर की महान दया की ओर ध्यान देता है तो उसमें आशा की किरण पैदा होती है।

भय व आशा की यह स्थिति इंसान में हमेशा रहनी चाहिए। इसी लिए इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहते हैं। प्रभुवर! मैं तुझे उस ज़बान से पुकार रहा हूं जिसे पापों ने गूंगा बना दिया है। अर्थात जब मैं अपने पापों को देखता हूं तो शर्म के मारे तुझसे बात नहीं कर पाता। प्रभुवर! मैं तुझसे उस हृदय से प्रार्थना कर रहा हूं जिसे पापों व अपराधों ने मार दिया है अर्थात वह निराशा के निकट पहुंच गया है।

ईश्वर यह बात पसंद करता है कि उसके बंदे अपने पापों की स्वीकारोक्ति करें। इससे ईश्वर को कोई लाभ नहीं होता, बंदा चाहे अपने पापों की स्वीकारोक्ति करे या न करे इससे ईश्वर की शक्ति व स्वामित्व में कोई कमी या बेशी नहीं होती लेकिन ईश्वर के समक्ष अपने पापों को स्वीकार करने से बंदा, ईश्वरीय दया का अधिक आभास करता है और ईश्वरीय क्षमा उसके लिए अधिक मोहक हो जाती है। दयालु ईश्वर के समक्ष अपने पापों की स्वीकारोक्ति, वास्तविक तौबा का मार्ग अधिक प्रशस्त करती है। अलबत्ता हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि यह स्वीकारोक्ति केवल ईश्वर के समक्ष होनी चाहिए और किसी को भी इस बात की अनुमति नहीं है कि वह किसी भी व्यक्ति के सामने अपने पापों का उल्लेख करे।

रमज़ान के पवित्र महीने में पढ़ी जाने वाली एक अन्य दुआ, दुआए मुजीर है। पापों को क्षमा किए जाने के लिए रमज़ान की रातों विशेष कर तेरहवीं, चौदहवीं और पंद्रहवीं रात में इस दुआ को पढ़ने की काफ़ी सिफ़ारिश की गई है। मुजीर शब्द का अर्थ होता है, रक्षक। इस दुआ का नाम मुजीर रखे जाने का कारण यह कि इसमें यह वाक्य बहुत अधिक दोहराया गया है कि अजिरना मिनन्नारे या मुजीर अर्थात हे रक्षक, नरक से हमारी रक्षा कर।

इस पूरी दुआ में ईश्वर के पवित्र नामों का उल्लेख है और दुआ के हर वाक्य में प्रार्थी ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह उन्हें नरक की आग से शरण दे। आरंभ के बिस्मिल्लाह और अंत के ईश्वरीय गुणगान को छोड़ कर इस दुआ में 90 वाक्य हैं और हर वाक्य में ईश्वर को हर प्रकार की बुराई से पवित्र कह कर और उसकी महानता को मान कर उसे उसके दो नामों से पुकारा जाता है और फिर यह वाक्य दोहराया जाता हैः अजिरना मिनन्नारे या मुजीर अर्थात हे रक्षक, नरक से हमारी रक्षा कर।

 

 

रविवार, 24 मार्च 2024 18:11

बंदगी की बहार- 13

पवित्र रमज़ान का महीना सभी मुसलमानों को यह अवसर देता है कि वह ख़ुद और अपने आस-पास के समाज को परिपूर्णतः तक पहुंचाने के बारे में सोचे।

रोज़ा आत्मशुद्धि, अपनी इच्छाओं पर क़ाबू पाने और बुरी इच्छाओं से संघर्ष करने का अभ्यास है। रोज़ा इंसान के जीवन के सबसे अहम उद्देश्य अर्थात परिपूर्णतः और ईश्वर का सामिप्य पाने जैसे उद्देश्य की प्राप्ति में बहुत प्रभावी तत्व है। ईश्वर ने पवित्र रमज़ान के महीने में रोज़ा अनिवार्य करके इन्सान को यह अवसर दिया है कि वह अपनी निहित क्षमता को ईश्वर का सामिप्य प्राप्त करने की दिशा में सक्रिय करे। रोज़े का उद्देश्य इंसान का आध्यात्मिक प्रशिक्षण करते हुए उस मार्ग पर ले जाना है जिस पर चलकर वह सदाचारी बन सकता है।

रोज़ा के जहां और भी फ़ायदे वहीं यह अपने मन की शक्ति को प्रदर्शित करने व आत्मबोध का भी साधन है। जब रोज़ादार एक निर्धारित समय तक अपनी सभी शारीरिक ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ करते हुए, भूखा व प्यासा रहता है तो उसे यह विश्वास हो जाता है कि वर्जित चीज़ों से ख़ुद को बचाए रखना मुमकिन है। इस तरह इच्छाओं के मुक़ाबले में प्रतिरोध का द्वार उसके लिए खुल जाता है और वह ख़ुद को अनिवार्य व ग़ैर अनिवार्य कर्म के लिए तय्यार कर सकता है। रोज़े के शारीरिक, नैतिक व सामाजिक फ़ायदे इंसान को धर्मपरायणता के मार्ग पर ले जाते हैं। जैसा कि पवित्र क़ुरआन इस बारे में कहता हैः "हे ईश्वर पर आस्था रखने वालो! तुम्हारे लिए रोज़ा रखना अनिवार्य है जिस तरह तुमसे पहले वालों पर अनिवार्य था ताकि तुम सदाचारी बन सको।"

पवित्र रमज़ान का रोज़ा इंसान को शारीरिक व आत्मिक फ़ायदे के अलावा एक और अहम शिक्षा देता है, वह यह कि रोज़ा रखने वाला भूख और वंचिता का अनुभव करता है। इस तरह उसके मन में ज़रूरतमंद लोगों के प्रति एक तरह की हमदर्दी पैदा होती है।

पैग़म्बरे इस्लाम के ग्यारहवें उत्तराधिकारी इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम से जब पूछा गया कि रोज़ा क्यों अनिवार्य है? आपने फ़रमाया कि धनवान भूख की पीड़ा को महसूस करे और निर्धनो पर ध्यान दे। पैग़म्बरे इस्लाम के छठे उत्तराधिकारी हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के शिष्य हेशाम ने जब उनसे रोज़े अनिवार्य होने की वजह पूछी तो आपने फ़रमायाः "ईश्वर ने रोज़ा अनिवार्य किया ताकि धनवान और निर्धन एक समान हो जाएं इस आयाम से कि धनवान भूख की पीड़ा को महसूस करके निर्धन पर कृपा करे। अगर ऐसा न होता तो धनवान निर्धनों व वंचितों पर दया नहीं करते।"

पवित्र रमज़ान महीने के रोज़े का एक सामाजिक फ़ायदा अपव्यय या ग़ैर ज़रूरी उपभोग से बचना है। रोज़ा अपव्यव के मुक़ाबले में एक ढाल है। रोज़ा एक तरह से विभिन्न वर्गों के बीच आर्थिक दृष्टि से खाई को रोकता है क्योंकि जिस समाज में दान-दक्षिणा होगी वह कभी भी निर्धनता का शिकार नहीं होगा।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैः निर्धनता सबसे बड़ी मौत है। क्योंकि मौत की कठिनाई एक बार है जबकि निर्धनता से उत्पन्न कठिनाई बहुत ज़्यादा होती हैं। रोज़ा इसलिए अनिवार्य है ताकि मुसलमान ख़ुद को भौतिकवाद व लालच में डूबने से बचाए। रोज़ा इंसान को सिखाता है कि वह दूसरों की मुश्किलों के बारे में भी सोचे। अपनी शारीरिक इच्छाओं पर क़ाबू रखे, ज़रूरत भर पर किफ़ायत करे और अपव्यव से दूर रहे। मितव्ययता से इंसान में दानशीलता जैसी विशेषता पैदा होती है। मितव्ययी व्यक्ति दूसरों से आवश्यक्तामुक्त होता है। दूसरों की ओर हाथ नहीं बढ़ाता। जिस समाज में किफ़ायत व मितव्ययता जैसी विशेषता प्रचलित हो जाए वह आत्म निर्भर होगा। ऐसा समाज अनुचित उपभोग से दूर रह कर अपने पांव पर खड़ा हो सकता है।

पवित्र रमज़ान के रोज़े की एक विशेषता संयुक्त धार्मिक अनुभव की प्राप्ति है। रोज़ा समाज के लोगों में संयुक्त धार्मिक अनुभव की प्राप्ति का साधन है। धार्मिक अनुभव ही धर्मपरायणता का आधार है। यह न सिर्फ़ व्यक्ति के विचार में बदलाव लाता है बल्कि उसके सामाजिक संबंध को बेहतर बनाने में भी प्रभावी है। रोज़े का एक अहम सामाजिक आयाम, सामाजिक न्याय को मज़बूत करना है। क्योंकि पवित्र रमज़ान के महीने में समाज के हर वर्ग का व्यक्ति निर्धारित घंटों के लिए एक पहर के भोजन से वंचित रहता है। यह चीज़ धनवान लोगों को समाज के निर्धन व वंचित लोगों को याद करने के लिए प्रेरित करती है जो पूरे साल भूख सहन करते हैं। इस तरह सामाजिक स्तर पर सहानुभूति की भावना मज़बूत होती है।

पवित्र रमज़ान के महीने में एक और सुंदर दृष्य जो नज़र आता है वह सार्वजनिक स्थलों व मस्जिदों में इफ़्तार की व्यवस्था है। निर्धन व धनवान एक ही दस्तरख़ान पर बैठ कर रोज़ा इफ़्तार करते और इफ़्तार के बाद एक साथ सामूहिक रूप से नमाज़ पढ़ते हैं। रमज़ान में समाज के विभिन्न वर्ग एक दूसरे के निकट होते हैं और मस्जिद जैसी धार्मिकि संस्थाओं के ज़रिए सामाजिक तानाबाना मज़बूत होता है।

पवित्र रमज़ान से समाज में नैतिक व सामाजिक मानदंड मज़बूत होता है। पवित्र रमज़ान में सच्चाई, ईमानदारी और सामाजिक स्वास्थ्य के बेहतर होने का मार्ग समतल होता है जिससे समाज मज़बूत होता है और सामाजिक स्तर पर विश्वास की भावना मज़बूत होती है। बहुत से उचित सामाजिक मानदंड जिन्हें आम दिनों में नज़रअंदाज़ किया जाता है, पवित्र रमज़ान में मज़बूत होते हैं। मिसाल के तौर पर अगर कोई व्यक्ति झूठ और पीठ पीछे दूसरों की बुराई से बचता है तो दूसरी बहुत सी बुराइयों का मार्ग उसके लिए बंद हो जाता है। इस तरह पवित्र रमज़ान माहौल के प्रभाव में सामाजिक माहौल बेहतर हो जाता है और व्यक्तिगत क्रियाएं उचित मानदंड की ओर उन्मुख होती हैं।           

ईदुल फ़ित्र में सामूहिक भावना का प्रतिबिंबन नज़र आता है क्योंकि समाज के लोग एक जगह पर सामूहिक उपासना के एक सत्र के बाद इकट्ठा होते और अपनी सफलता का जश्न मनाते हैं। वास्तव में ईदुल फ़ित्र रोज़े जैसी अनिवार्य उपासना को अंजाम देने में समाज की सफलता का जश्न है। अनिवार्य उपासना में धर्म का रोल सामाजिक एकता लाने वाले तत्व के रूप में पूरी तरह स्पष्ट है। जैसा कि पवित्र रमज़ान के महीने में सामाजिक एकता अपनी चरम पर होती है। औद्योगिक समाज भौतिक तरक़्क़ी के बाद भी बहुत से अवसर पर शून्य का आभास करता है यहां तक कि इस तरह के समाज के विद्वान भी धर्म के सार्थक रोल को मानते हैं। मिसाल के तौर पर फ़्रांसीसी समाजशास्त्री ऑगस्त कोन्ट का मानना है कि सामाजिक एकता व अनुशासन धर्म में निहित है। समाज को नुक़सान पहुंचाने वाले तत्वों की नज़र से कुछ विचारों की पवित्र रमज़ान के परिप्रेक्ष्य में समीक्षा करें तो बहुत ही अच्छे नतीजे सामने आते हैं। जैसे ख़ुदकुशी का विचार पेश करने वाले विचारक दुर्ख़ेम ने सामाजिक एकता और ख़ुदकुशी के स्तर के बीच संबंध को पेश किया है। उनका मानना है कि जिस समाज के लोगों में एकता ज़्यादा होगी उसमें ख़ुदकुशी का अनुपात उतना ही कम होगा। चूंकि पवित्र रमज़ान के महीने में सामाजिक एकता अपनी चरम पर होती है इसलिए स्पष्ट है कि ख़ुदकुशी का अनुपात भी कम होता है।

शोध के अनुसार, पवित्र रमज़ान के आते ही सामाजिक अपराध में काफ़ी कमी आती है। इस सामाजिक सुधार के राज़ को समाज के लोगों में अध्यात्म की ओर झुकाव और समाज में अध्यात्मिक माहौल में ढूंढना चाहिए। यह महा-अध्यात्मिक उपाय धार्मिक व आत्मिक मामलों के सही तरह से प्रचार व प्रसार द्वारा दूसरी सामाजिक बुराइयों को रोक सकता है। इस्लामी देशों में पवित्र रमज़ान शुरु होते ही बड़ी संख्या में लोग धर्म विरोधी कर्मों से बचने का संकल्प लेते हैं। इसी वजह से इस महीने में साल के दूसरे महीनों की तुलना में अपराध कम होते हैं। इस महीने में लोगों में आत्मसंयम की भावना मज़बूत हो जाती है यहां तक कि यह भावना उन लोगों में भी पैदा होती है जिनके पास बुराई करने का बहुत अवसर होता है। यही वजह है कि समाजशास्त्रियों का मानना है कि इस तरह का आत्म संयम दूसरे तत्वों की तुलना में लोगों के व्यवहार पर अधिक प्रभावी होता है।

पवित्र रमज़ान में रोज़ा सामाजिक उपासना का अभ्यास है। इसलिए रोज़े में अन्य उपासनाओं की तरह न सिर्फ़ व्यक्तिगत फ़ायदे निहित हैं बल्कि इससे इंसान का आत्मोत्थान और सामाजिक आयाम से विकास होता है। सामाजिक एकता, आपसी सहयोग की भावना का मज़बूत होना, सामाजिक अपराध में कमी, व्यक्तिगत व सामाजिक सुरक्षा का बढ़ना, निर्धन व धनवान वर्ग में खाई का कम होना, निर्धनों की मदद, दूसरों के अधिकारों का पालन, एक दूसरे का सम्मान करना कि इनसे सांस्कृतिक, सामाजिक, नैतिक और आर्थिक सुरक्षा क़ायम होती है, रोज़े की उपलब्धियां हैं।

 

 

माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।

اَللّهُمَّ طَہرْني فيہ مِنَ الدَّنسِ وَالْأقْذارِ وَصَبِّرْني فيہ عَلى كائِناتِ الْأَقدارِ وَوَفِّقْني فيہ لِلتُّقى وَصُحْبَة الْأبرارِ بِعَوْنِكَ ياقُرَّة عَيْن الْمَساكينِ..

अल्लाह हुम्मा तह्हिरनी फ़ीहि मिनल दन सि वल अक़ ज़ार, व सब्बिरनी फ़ीहि अला काएनातिल अक़दार, व वफ़्फ़िक़नी फ़ीहि लित्तुक़ा व सुहबतिल अबरार, बेऔनिका या क़ुर्रता ऐनिल मसाकीन (अल बलदुल अमीन, पेज 220, इब्राहिम बिन अली)

ख़ुदाया! इस महीने में मुझे आलुदगियों और नापाकियों से पाक कर दे, और मुझे सब्र अता कर उन ‌चीज़ों पर जो मेरे लिए मुकर्रर हुई हैं और मुझे परहेज़गारी व नेक लोगों की हमनशीनी की तौफ़ीक़ अता फ़रमा, तेरी मदद के वास्ते ऐ बेचारों (मिस्कीनों) की आंखों की ठंडक.

 

 

 

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने 20 मार्च 2024 को नौरोज़ की तक़रीर में ग़ज़ा के विषय पर बात करते हुए ज़ायोनी हुकूमत की हालत इन लफ़्ज़ों में बयान कीः “ग़ज़ा के वाक़यात में पता चला कि ज़ायोनी हुकूमत न सिर्फ़ अपनी रक्षा के सिलसिले में संकट का शिकार है बल्कि संकट से बाहर निकलने में भी उसे संकट का सामना है। ग़ज़ा में ज़ायोनी हुकूमत के दाख़िल होने से उसके लिए एक दलदल पैदा हो गया। अब अगर वो ग़ज़ा से बाहर निकले तो भी हारी हुयी है और बाहर न निकले तब भी हारी हुयी मानी जाएगी।”

     इस लेख में ये समीक्षा करने की कोशिश की जा रही है कि इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ज़ायोनी हुकूमत के सिलसिले में ये बात क्यों कह रहे हैं और इसके क्या पहलू हैं।

ग़ज़ा में ज़ायोनी हुकूमत के ज़मीनी ऑप्रेशन को 150 से ज़्यादा दिन गुज़र चुके हैं। इस बर्बरतापूर्ण हमले में 13 हज़ार से ज़्यादा बच्चे और 9 हज़ार से ज़्यादा औरतें शहीद हो चुकी हैं, ज़ायोनी हुकूमत ने ये ऑप्रेशन ग़ज़ा में रेज़िस्टेंस के मोर्चे को ख़त्म करने और फ़िलिस्तीनियों को ग़ज़ा से बाहर निकालने के लिए शुरू किया था। 2024 के आग़ाज़ में ज़ायोनी हुकूमत ने दावा किया था कि उसने उत्तरी ग़ज़ा में हमास की फ़ौजी क्षमता को पूरी तरह ख़त्म कर दिया है और यही स्थिति पूरी ग़ज़ा पट्टी में स्थापित करने की कोशिश कर रही है।(1) इस दावे को 70 दिन से ज़्यादा का वक़्त गुज़र जाने के बाद ग़ज़ा जंग के संबंध में दो ख़बरे क़रीब क़रीब एक साथ वायरल हो गयीं। एक ख़बर हमास को ख़त्म करने के लिए ग़ज़ा पट्टी के दक्षिणी इलाक़े रफ़ह में ज़मीनी ऑप्रेशन शुरू करने पर नेतनयाहू की ज़िद के बारे में थी। (2) दूसरी उत्तरी ग़ज़ा के शिफ़ा अस्पताल के आस-पास भीषण झड़पों की ख़बर थी।(3)

ज़ायोनी प्रधान मंत्री ने इससे कुछ दिन पहले हमास के कमांडरों की टार्गेट किलिंग की कोशिशों के बारे में बात की थी। वो कोशिशें जो कई महीने के बाद भी कामयाब नहीं हो सकीं।(4) दूसरी ओर क़रीब हर दिन ग़ज़ा पट्टी के उन इलाक़ों में जिन पर कंट्रोल हासिल कर लेने का ज़ायोनी हुकूमत दावा करती है, रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ के हमलों और ऑप्रेशन की ख़बरें और वीडियोज़ सामने आ रही हैं। ग़ज़ा की ज़मीनी लड़ाई के बारे में इस तरह की विरोधाभासी ख़बरों और ज़ायोनी हुकूमत के दावों से बस एक ही नतीजा निकल सकता है कि ज़ायोनी हुकूमत ग़ज़ा पट्टी में अब तक कोई भी लक्ष्य हासिल नहीं कर सकी है और इस हुकूमत पर दबाव दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है। भीतरी दबाव भी और बाहरी दबाव भी। बाहरी दबाव इतना ज़्यादा है कि इस हुकूमत के पश्चिमी घटकों जैसे कैनेडा ने एलान कर दिया है कि वो ज़ायोनी हुकूमत को हथियारों की सप्लाई रोक रहे है।(5) और वाइट हाउस के अधिकारी दिखावे के लिए ही सही युद्ध विराम की बातें कर रहे हैं।(6) ग़ज़ा पट्टी में ज़ायोनी हुकूमत की हार सिर्फ़ जंग के मैदान और कूटनीति के मैदान तक सीमित नहीं है। आर्थिक क्षेत्र में भी इस क़ाबिज़ हुकूमत को भारी नुक़सान पहुंचा है। इस पर कई रिपोर्टें छप चुकी हैं।(7)

हिज़्बुल्लाह के महासचिव सैयद हसन नसरुल्लाह ने अपनी हालिया तक़रीर में कहा कि ग़ज़ा पट्टी में ज़ायोनी हुकूमत की हार की साफ़ निशानियों में से एक ये है कि उन्होंने जंग के आग़ाज़ में हमास को पूरी तरह ख़त्म कर देने की बातें की थीं, लेकिन आज युद्ध विराम की बातचीत में वो हमास से वार्ता कर रहे हैं।

ये सारी हक़ीक़तें इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की इस बात में नज़र आती हैं जो उन्होंने 20 मार्च की तक़रीर में कही कि ग़ज़ा ज़ायोनी हुकूमत के लिए एक दलदल है, इस हुकूमत की हार निश्चित है, वो ग़ज़ा में अपनी फ़ौजी मौजूदगी जारी रखती है तब भी।

ज़ायोनी हुकूमत की हार का दूसरा पहलू भी है और वो है ग़ज़ा से बाहर निकलने की स्थिति में हार। क़ाबिज़ ज़ायोनी हुकूमत ने अपनी साख बहाल करने और अपनी डिटरेन्स पावर को फिर से हासिल करने की कोशिश में ग़ज़ा में पागलों की तरह ऑप्रेशन शुरू कर दिया। अब अगर वो ग़ज़ा से बाहर निकलती है तो इससे अपनी डिटरेन्स ख़त्म हो जाने पर वो ख़ुद ही मोहर लगाएगी। ज़ायोनी हुकूमत की राजनैतिक पार्टियों के बीच भी गंभीर मतभेद जो पारंपरिक यहूदियों को ग़ज़ा की जंग में भेजने को लेकर ज़्यादा खुलकर सामने आए, (8) ग़ज़ा में हार और वहाँ से ज़ायोनियों के बाहर निकलने की स्थिति में एक नए चरण में दाख़िल हो जाएंगे। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ज़ायोनी हुकूमत जो जातीय सफ़ाए के मसले में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में घसीटी जा चुकी है, इलाक़े के मुल्क़ों के साथ सामान्य संबंध क़ायम करने का अपना एजेंडा गंवा चुकी है और इस वक़्त उसके ख़िलाफ़ कम से कम चार मोर्चे खुल चुके हैं। एक तो उत्तरी सरहदों पर लेबनान के साथ जंग का मोर्च है, दूसरा रेड सी में यमन से मुक़ाबले का मोर्चा है और तीसरा इराक़ की रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ का मोर्चा है जो समय समय पर ज़ायोनी हुकूमत की मुख़्तलिफ़ बंदरगाहों को मीज़ाईल हमलों का निशाना बना रही हैं।

शनिवार, 23 मार्च 2024 20:07

ईश्वरीय आतिथ्य- 12

ईरान की राजधानी तेहरान में प्रतिवर्ष पवित्र रमज़ान के दौरान क़ुरआन की अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी लगती है।

इसबार क़ुरआन की 26वीं अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी लगाई गई है।  यह अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी तेहरान के "मुस्ल्ला इमाम ख़ुमैनी" या इमाम ख़ुमैनी ईदगाह में लगाई गई है।  19 मई से आरंभ होने वाली इस प्रदर्शनी में बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं।  प्रतिवर्ष क़ुरआन की इस प्रदर्शनी में न केवल तेहरान से बल्कि ईरान के दूसरे नगरों से भी लोग भाग लेने आते हैं।  यह प्रदर्शनी, मुसल्ला इमाम ख़ुमैनी में पचास हज़ार वर्गमीटर क्षेत्र में लगाई गई है।

जब कोई भी व्यक्ति तेहरान में आयोजित क़ुरआन की अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी को देखने पहुंचता है तो सबसे पहले उसकी दृष्टि ऐसे कलाकारों पर पड़ती है जो वहां पर बैठे हुए अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं।  यह लोग विभिन्न शैलियों में पवित्र क़ुरआन की आयतें लिखते हुए दिखाई देंगे।  इस प्रदर्शनी में पवित्र क़ुरआन के 20 अन्तर्राष्ट्रीय संस्थान, विश्वविद्यालयों के 16 और धार्मिक शिक्षा केंद्रों के 15 संस्थानों के अतिरिक्त 32 जन संगठन भी भाग ले रहे हैं।   7 देशों के प्रतिनिधि तथा पवित्र क़ुरआन के क्षेत्र में काम करने वाले कई देशों के दसियों लोग, तेहरान की अन्तर्राष्ट्रीय क़ुरआन प्रदर्शनी में भाग ले रहे हैं।  तेहरान में आयोजित “फ़ानूसे हिदायत” नाम से अंतर्राष्ट्रीय क़ुरआन प्रदर्शनी में इराक़, मलेशिया, तुर्की, रूस और आज़रबाइजान सहित दुनिया के विभिन्न देशों से आई क़ुरआन की दुर्लभ और प्राचीन प्रतियां मौजूद हैं, साथ ही कई देशों के प्रसिद्ध विद्वान भी इस प्रदर्शनी में शामिल हुए हैं।

अन्तिम आसमानी किताब क़ुरआन, ऐसी ईश्वरीय पुस्तक है जो मानवता के मार्गदर्शन के लिए है।  इससे संसार के सब लोग लाभ उठा सकते हैं।  इस बारे में सूरे असरा की आयत संख्या 9 में ईश्वर कहता है कि निश्चित रूप से यह क़ुरआन सीधे रास्ते की ओर मार्गदर्शन करता है।  वर्तमान समय में क़ुरआन ही ऐसी किताब है जिसमें शुरू से लेकर अंत तक कोई मतभेद नहीं है।  आज दुनिया भर में पवित्र क़ुरआन की जितनी प्रतियां पाई जाती हैं उनमें से किसी एक में भी एक बिंदु का अंतर नहीं है।  उदाहरण स्वरूप विश्व के किसी भी दूरस्थ गाँव की किसी मस्जिद से क़ुरआन लेकर संसार के किसी एक अन्य दूरस्थ गाँव मे मौजूद क़ुरआन से अगर मिलान किया जाए तो उनमे एक बिंदु का भी अंतर नहीं मिलेगा।  नवीनतम छपे हुए कुरान तथा संग्रहालयों मे रखे हुए प्राचीन से प्राचीन कुरआन में एक शब्द का अंतर भी नहीं मिलेगा। यह विशेषता संसार के किसी अन्य धर्मग्रंथ में नहीं है। दुनिया भर में लाखों लोगों को पूरा कुरआन हिफ़्ज़ या कंठस्थ है।  ऐतिहासिक रूप से यह सिद्ध हो चुका है कि इस धरती पर उपस्थित हर क़ुरआन की प्रति वही मूल प्रति का प्रतिरूप है जो हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) ‎पर नाज़िल हुआ था।

क़ुरआन की 26वीं अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी का शुभारंभ आयतुल्लाह सुब्हानी के संदेश से हुआ।  उन्होंने अपने संदेश में लिखा है कि पवित्र क़ुरआन, ईश्वर का ऐसा चमत्कार है जो पूरी मानवता के लिए है।  आयतुल्लाह सुब्हानी कहते हैं कि पवित्र क़ुरआन प्रकृति की भांति है।  जिस प्रकार से प्रकृति में अनंत रहस्य पाए जाते हैं और वैज्ञानिक इस बारे में आए दिन शोध करते रहते हैं और उसपर शोध का सिलसिला अब भी जारी है ठीक उसी प्रकार से क़ुरआन भी है।  पवित्र क़ुरआन, ईश्वर की ओर से भेजी जाने वाली किताब है जिसमें अनंत रहस्य छिपे हुए हैं।  यह एसी अद्वितीय किताब है जिसके जैसी किताब पूरे संसार में हो ही नहीं सकती।  क़ुरआन में एक स्थान पर ईश्वर कहता है कि अगर संसार के सारे लोग और जिन्नात एक साथ मिलकर क़ुरआन जैसी किताब लाने का प्रयास करें तो भी वे कभी ऐसा नहीं कर सकते।

ईरान के संस्कृति और मार्गदर्शन मंत्री सैयद अब्बास सालेही ने इस प्रदर्शनी के उद्घाटन समारोह में कहा हैं कि यह पवित्र किताब, इस्लामी सभ्यता का आरंभ बिंदु और आस्था का आधार है।  वे कहते हैं कि वे लोग जिन्होंने इस्लामी क्रांति को प्रभावित किया वे वही थे जो क़ुरआन के अनुसरणकर्ता थे।

इस्लामी इतिहास पर शोध करने से संबन्धित आंरभिक काल के स्रोत अधिकतर संग्रहालयों और पुस्तकालयों में अब भी सुरक्षित हैं।  इन स्रोतों पर शोध करने से क़ुरआन के इतिहास, उसकी लीपि और उसके पढ़ने की शैली को उचित ढंग से समझा जा सकता है।  स्वाभाविक सी बात है कि आरंभिक काल के स्रोतों में जो भी इस्लाम के उदयकाल से जितना निकट होगा वह उतना ही विश्वसनीय होगा।  क़ुरआन की अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी में हज़रत अली अलैहिस्सलाम से संबन्धित क़ुरआन की एक प्रति का उद्धाटन किया गया।  इस बारे में पवित्र क़ुरआन की पुरानी प्रतियों के विख्यात जानकार "तैयार क़ूलाच" कहते हैं कि इस समय हम क़ुरआन की एक ऐसी प्रति के समक्ष हैं जो सहाबा के समय से संबन्धित है।  इसको पढ़ना हमारे लिए विशेष महत्व रखता है।  निश्चित रूप से क़ुरआन की यह प्रति हस्तलिखित है।  शोध से यह पता चला है कि इसे दसवीं शताब्दी हिजरी के मध्य में कूफ़े, मदीने और शाम में लिखा गया है।

ईरान के संस्कृति और मार्गदर्शन मंत्री सैयद अब्बास सालेही इस प्रदर्शनी के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि तेहरान में आयोजित होने वाली यह अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी, क़ुरआन के बारे में इस्लामी जगत की बहुत महत्वपूर्ण प्रदर्शनी है जो पूरे संसार में क़ुरआन के क्षेत्र में की जाने वाली गतिविधियों को प्रदर्शित करती है।  पिछली प्रदर्शनियों में जो कुछ महत्वपूर्ण होता है उसे बाद वाली प्रदर्शनी में अवश्य प्रदर्शित किया जाता है।  जनता की ओर से इसका व्यापक स्तर पर स्वागत इस प्रदर्शनी की उपयोगिता को सिद्ध करता है।  उन्होंने कहा कि तेहरान में प्रतिवर्ष रमज़ान के महीने में लगने वाली क़ुरआन की प्रदर्शनी से लोग क़ुरआन के बारे में बहुत कुछ सीखते हैं।

तेहरान में क़ुरआन की 26वीं अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी में भाग लेने वाले एक शिक्षक ने कहा कि क़ुरआन की संस्कृति को फैलाने और युवाओं का मार्गदर्शन करने में इस प्रदर्शनी का बहुत महत्व है।  उन्होंने कहा कि यह एक वास्तविकता है कि क़ुरआन का प्रभाव उसी पर हो सकता है जो स्वयं को बुराइयों से दूर करे और ईश्वरीय प्रकाश को प्राप्त करने के लिए तैयार हो।  मनुष्य का अन्तरमन जितना अधिक स्वच्छ होगा और उसके भीतर क़ुरआन की बातों को जानने की जिज्ञासा जितनी अधिक होगी, वह क़ुरआन से उतना ही अधिक संपर्क प्राप्त कर सकता है।  यह स्पष्ट सी बात है कि यदि किसी गंदे बरतन में स्वच्छ पानी भी दिया जाए तो उस बर्तन में पहुंचने के बाद वह स्वच्छ पानी भी ख़राब हो जाता है।  इसी प्रकार से अच्छी बातों को समझने के लिए मनुष्य को अपने अन्तरमन को स्वच्छ करना चाहिए।

 

 

शनिवार, 23 मार्च 2024 20:06

बंदगी की बहार- 12

सूरे माएदा की आयत संख्या 105 में ईश्वर कहता हैः हे ईमान वालो! अपने आप को बचाओ।

जान लो कि तुम्हें मार्गदर्शन प्राप्त हो गया तो पथभ्रष्ट तुम्हें क्षति नहीं पहुंचा सकेंगे। तुम सबकी वापसी ईश्वर (ही) की ओर है फिर वह तुम्हें तुम्हारे कर्मों से अवगत कराएगा।

मनुष्य को अपने जीवन में जिन शत्रुओं का सामना रहता है वे दो प्रकार के हैं।  पहला शत्रु तो स्वंय उसकी आंतरिक इच्छाए हैं जबकि दूसरा शत्रु शैतान है।  इस्लामी शिक्षाओं में आंतरिक इच्छाओं को भीतरी शत्रु की संज्ञा दी जाती है जबकि शैतान को बाहरी शत्रु कहकर संबोधित किया गया है।  आंतरिक इच्छाओं के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम (स) कहते हैं कि तुम्हारा सबसे बड़ा शत्रु वे इच्छाए हैं जो तुम्हारे अस्तित्व में निहित हैं।  इस बारे में पवित्र क़ुरआन में कहा गया है कि आंतरिक इच्छाएं मनुष्य को बुरे कर्मों की ओर प्रेरित करती हैं।  मनुष्य का दूसरा सबसे बड़ा शत्रु शैतान है।  पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम इस बारे में ईश्वर को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे ईश्वर! मैं तुझसे उस शत्रु की शिकायत करता हूं जो मुझको पथभ्रष्ट करना चाहता है।  यह शैतान मेरे मन में भांति-भांति के विचार लाता है यह मुझको सांसारिक मायामोह की ओर अग्रसर करता है।  यह मुझमें और तेरी उपासना के बीच गतिरोध उत्पन्न करता है।  शैतान की चालों और उसके हथकण्डों से बचने के सबसे अच्छा मार्ग पवित्र रमज़ान का पवित्र महीना है।  इस महीने में रोज़े रखकर मनुष्य शैतान को परास्त कर सकता है।

प्रतिवर्ष रमज़ान के महीने में लोगों के लिए यह अवसर उपलब्ध हो जाता है कि वे अपने शरीर और आत्मा को शुद्ध करने के लिए अधिक से अधिक ध्यान दें।  इस संदर्भ में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्ला ख़ामेनेई कहते हैं कि आत्म निर्माण के लिए रमज़ान का महीना बहुत ही उपयुक्त अवसर है।  हम लोग उस कच्ची मिट्टी की तरह है जिसपर अगर काम किया जाए तो फिर उसे अपने दृष्टिगत आकार में लाया जा सकता है।  यदि हम अपने जीवन में प्रयत्न करते हैं तो उसके परिणाम भी हासिल कर लेंगे।  वैसे जीवन का उद्देश्य भी स्वयं का निर्माण करना है।

रमज़ान का पवित्र महीना एक प्रकार से आत्म निर्माण का महीना है।  इस महीने में आत्मशुद्धि की जा सकती है।  यह महीना शैतान से दूरी का महीना है।  इस महीने में आंतरिक इच्छाओं पर नियंत्रण स्थापित किया जा सकता है।  रमज़ान का हर पल मूल्यवान है।  इस महीने में एक विशेष प्रकार का आध्यात्मिक वातावरण बन जाता है।  इस प्रकार के आध्यात्मिक वातावरण में आत्मनिर्माण करने में बहुत सहायता मिलती है।  आत्मशुद्धि करके मनुष्य बुराइयों से मुक़ाबला कर सकता है।  रमज़ान में एकांत में बैठकर ईश्वर की प्रार्थना करने से विशेष प्रकार का आनंद प्राप्त होता है।  ऐसे में हम व्यक्तिगत या सामूहिक रूप में उपासना करके ईश्वर से अधिक निकट हो सकते हैं।

आत्मनिर्माण ऐसा विषय है जिसके बारे में पवित्र क़ुरआन ने बहुत बल दिया है।  क़ुरआन के अनुसार मनुष्य की आत्मा आरंभ में एक सफ़ेद काग़ज़ की भांति साफ होती है।  उसके भीतर अच्छाइयों की ओर जाने या बुराइयों का रूख करने, दोनो की क्षमता पाई जाती है।  अब मनुष्य के ऊपर है कि वह कौन से मार्ग का चयन करता है।  पवित्र क़ुरआन के सूरे शमस में ग्यारह बार सौगंध खाने के बाद ईश्वर आत्मनिर्माण को सफलता का एकमात्र साधन बताता है।  इसी के साथ वह नैतिक भ्रष्टाचार को मनुष्य के पतन का कारण बताता है।  ईशवर कहता है कि निश्चित रूप से वह सफल रहा जिसने आत्मनिर्माण किया और निश्चित रूप में वह विफल रहा जिसने अपनी आंतरिक इच्छाओं का अनुसरण किया।  जिसने भी स्वयं को पापों में लगा लिया वह अच्छाइयों से वंचित रहा।

ईश्वर ने अपने दूतों को धरती पर इसलिए भेजा कि वे लोगों को बुराइयों के दुष्परिणाम से अवगत करवाते हुए उनको इससे रोकें।  पैग़म्बरे इस्लाम (स) जब भी सूरे शम्स की आयत संखया 9 की तिलावत करते थे तो पहेल कुछ देर ठहरते थे।  उसके बाद ईश्वर से अनुरोध करते हुए कहते थे कि हे ईश्वर, मेरे भीतर अपने भय को जगह दे क्योंकि तूही मेरा स्वामी है।  मेरी आत्मा को पवित्र कर दे क्योंकि तू ही सबसे अच्छा पवित्र करने वाला है।  अपने पूर्वजों की ही भांति इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम भी आत्मा की शुद्धि के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहते थे कि हे पालनहार! मेरे भीतर उन अच्छी विशेषताओं को भर दे जो आत्म शुद्धि का माध्यम हैं।

आत्मशुद्धि का अर्थ होता है आत्मा को स्वच्छ करना।  इसका दूसरा अर्थ आत्मिक विकास भी हो सकता है।  आत्मा को स्वच्छ करना भी एक प्रकार का विकास ही है।  यह बात इसलिए कही जा रही है कि जब आत्मा को शुद्ध किया जाएगा तो वह विकास की ओर उन्मुख होगी जबकि अगर उसे अशुद्ध कर दिया जाए तो उसका विकास रुक जाएगा।  मनुष्य के भीतर आत्मिक विकास धीरे-धीरे होता है इसिलए यह आवश्यक है कि इसके लिए लगातार प्रयास किये जाएं।  आत्मा का विकास उस स्थिति में ही संभव है जब ईश्वरीय आदेशों को व्यवहारिक बनाया जाए।

पवित्र रमज़ान के रोज़े, मनुष्य के आत्म निर्माण और उसके प्रशिक्षण का एक व्यवस्थित कार्यक्रम हैं।  विगत से ही रोज़े को आत्मनिर्माण और अध्यात्म से संपर्क का माध्यम बताया गया है।  कुछ तत्वदर्शी और आत्मज्ञानी, यह मानते हैं कि रोज़ा, तत्वदर्शिता प्राप्त करने का मूल स्तंभ है।  समस्त धर्मों में रोज़े को नियंत्रण के अर्थ में पेश किया गया है जिसके माध्यम से लोगों को ईश्वरीय पहचान, आत्मशुद्धि और इच्छाशक्ति को मज़बूत करने का आह्वान किया गया है।  इस संदर्भ में शहीद आयतुल्लाह मुतह्हरी कहते हैं कि रमज़ान का कार्यक्रम यह है कि जिन लोगों में कुछ कमी है वे अपनी कमियों को दूर करके अच्छाइयां पैदा करें, जो लोग अच्छे हैं वे और अधिक अच्छाइयों को अपने भीतर लाने के प्रयास करें और अंततः परिपूर्णता तक पहुंचने की कोशिश जारी रखें।  इस महीने का कार्यक्रम आत्म निर्माण करते हुए अपने भीतर छिपी बुराइयों को दूर करते रहना है।  रमज़ान में अपनी आंतरिक इच्छाओं पर पूरी तरह से नियंत्रण करके उन्हें बुद्धि के अधीन लाना चाहिए।  कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि रोज़ेदार, रमज़ान में भूखा और प्यासा रहने के साथ ही आत्मविकास के लिए भी प्रयासरत रहे।

अगर कोई व्यक्ति 30 दिनों तक लगातार भूखा और प्यासा रहे तथा उसमें विगत की तुलना में कोई भी परिवर्तन न आए तो इस प्रकार के रोज़े उसके लिए प्रभावहीन हैं।  इसी विषय के दृष्टिगत शहीद मुतह्हरी कहते हैं कि रोज़ा, एसी व्यवहारिक उपासना है जिसका उद्देश्य, आत्मोत्थान करना है।  रोज़े को अगर उसकी सही पहचान और विशेष शर्तों के साथ रखा जाए तो फिर नैतिक, आय्धात्मिक तथा सामाजिक दृष्टि से एसी मूल्यवान उपलब्धियां प्राप्त होंगी जो स्वंय रोज़ेदार के लिए भी लाभदायक होंगी और उस समाज के लिए भी जहां पर वह रहता है।

पवित्र क़ुरआन, तक़वा या ईश्वरीय भय को रोज़े का महत्वपूर्ण परिणाम बताता है।  तक़वे का अर्थ होता है हर प्रकार की बुराई से दूर रहना।  तक़वा कभी भी आत्मशुद्धि के बिना हासिल नहीं हो सकता।  तक़वा एसी सवारी है जिसका सवार पूरे विश्वास के साथ अपने गंतव्य तक पहुंचता है और वह रास्ते में भटक नहीं पाता।  तक़वे को जलती हुई मशाल भी बताया गया है जो राहगीर को अंधकार में उसके लक्ष्य तक पहुंचाती है।  पैग़म्बरे इस्लाम (स) कहते हैं कि तक़वा, हर अच्छाई का स्रोत है।  महापुरूषों ने सदैव ही तक़वे को तरक़्क़ी या विकास की सीढ़ी बताया है।  उनका कहना है कि स्वंय को नियंत्रित करके ईश्वरीय भय या तक़वे के माध्यम से सफलता प्राप्त की जा सकती है।  विशेष बात यह है कि रोज़ा, मनुष्य के मन पर नियंत्रण का माध्यम बनता है एसे में इसे तक़वे तक पहुंचने का सबसे अच्छा रास्ता कहा जा सकता है।

ईश्वरीय दूतों और महापुरूषों के कथनों में आत्मा की गंदगी को परिपूर्णता के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा बताया गया है।  इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम कहते हैं कि एक बार हज़रत मूसा ने ईश्वर से पूछा कि वे लोग कौन हैं जो प्रलय के दिन तेरी छत्रछाया हो होंगे।  उनको जवाब मिला कि पवित्र हृदय वाले ही मेरी छत्रछाया में होंगे।  यह वे लोग होंगे जो ईश्वर के अतिरिक्त और कुछ नहीं देखते और झूठ से दूर रहते हैं।

अपने कर्मों के प्रति सचेत रहने से मनुष्य, बुराइयों से बचा रहता है और ईश्वरीय आदेशों को उचित ढंग से व्यवहारिक बना सकता है।  वह अपने कर्मों को इस प्रकार से अंजाम दे सकता है कि ईश्वर के प्रकोप से सुरक्षित रह जाए।  जो लोग इस बात पर पूरी तरह से विश्वास रखते हैं उनकी पूरी कोशिश यही रहती है कि उनसे कोई भी पाप न होने पाए और वे पापों से बचे रहें।  एसे लोग अपने जीवन में सदैव ही अच्छे-अच्छे काम करने की कोशिश करते रहते हैं।

रमज़ान के पवित्र महीने में रोज़ेदार, अपनी आंतरिक इच्छाओं पर नियंत्रण कर सकता है।  इस बारे में वह ईश्वर से सहायता भी हासिल कर सकता है।  हमारी ईश्वर से प्रार्थना है कि वह रोज़ेदारों को उनकी आंतरिक इच्छाओं पर नियंत्रण का सौभाग्य प्रदान करे।

 

माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।

اَللّهُمَّ زَيِّنِّي فيہ بالسِّترِ وَالْعَفافِ وَاسْتُرني فيہ بِلِباسِ الْقُنُوعِ وَالكَفافِ وَاحْمِلني فيہ عَلَى الْعَدْلِ وَالْإنصافِ وَآمنِّي فيہ مِنْ كُلِّ ما اَخافُ بِعِصْمَتِكَ ياعصمَةَ الْخائفينَ..

अल्लाह हुम्मा ज़ैय्यिनी फ़ीहि बिस्सित्रे वल अफ़ाफ़, वस तुरनी फ़ीहि बेलिबासिल क़ुनूइ वल कफ़ाफ़, वह मिलनी फ़ीहि अलल अद्ले वल इन्साफ़, व‌ आमिन्नी फ़ीहि मिन कुल्ले मा अख़ाफ़ु बे इस मतिका या इस मतल ख़ाएफ़ीन (अल बलदुल अमीन, पेज 220, इब्राहिम बिन अली)

ख़ुदाया! मुझे इस महीने में पर्दा और पाकदामनी से ज़ीनत अता फ़रमा और मुझे किफ़ायते शआरी और इकतेफ़ा का लिबास पहना और मुझे इस महीने में अद्ल व इन्साफ़ पर आमादा कर दे‌ और इस महीने के दौरान मुझे हर उस चीज़ से अमान दे जिससे मैं ख़ौफ़ज़दा होता हूं, ऐ ख़ौफ़ज़दा बन्दों की पनाहगाह.

अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम.

 

हज कमेटी ऑफ इंडिया के सी.ई.ओ डॉ. लियाकत अली आफ़ाक़ी आई.आर.एस ने ड्रा में चयनित सभी भाग्यशाली महिला हज यात्रियों को बधाई देते हुए अपील की है कि आज से ही आप मानसिक रूप से इस पवित्र यात्रा के लिए खुद को तैयार कर लें।

नई दिल्ली।  भारत सरकार की हज नीति 2024 के तहत महरम पालिसी के लिए 500 हज सीटें निर्धारित की गईं।

ऐसी महिलाएं जो पासपोर्ट के अभाव या किसी अन्य कारण से हज के लिए आवेदन नहीं कर सकी थीं और उनका शरई महरम हज 2024 के लिए चयन हो गए है। उन्हें महरम कोटे के तहत हज आवेदन पत्र ऑनलाइन जमा करने का अवसर दिया गया था इस कोटे में 714 आवेदन प्राप्त हुए।

जिनका चयन आज हज कमेटी ऑफ इंडिया के नये शाखा कार्यालय आरके, पुरम सेक्टर-1 में कम्प्यूटरीकृत ड्रा के माध्यम से किया गया जिस में महाराष्ट्र से 87, केरल से 60, उत्तर प्रदेश से 57, जम्मू-कश्मीर और कर्नाटक से 51-51, गुजरात से 38, मध्य प्रदेश से 33, तेलंगाना से 30, तमिलनाडु से 28, दिल्ली से 15, राजस्थान और आंध्र प्रदेश से 11-11, पश्चिम बंगाल से 8, बिहार से 6, उत्तराखंड से 5, असम और छत्तीसगढ़ से 2-2, झारखंड, हरियाणा, ओडिशा, पांडिचेरी और पंजाब से 1-1 हज यात्री चुने गए है।

चयनित हज यात्रियों की सूची हज कमेटी ऑफ़ इंडिया की वेबसाइट पर उपलब्ध है। हज कमेटी ऑफ इंडिया के सी.ई.ओ डॉ. लियाकत अली आफ़ाक़ी आई.आर.एस ने ड्रा में चयनित सभी भाग्यशाली महिला हज यात्रियों को बधाई देते हुए अपील की है कि आज से ही आप मानसिक रूप से इस पवित्र यात्रा के लिए खुद को तैयार कर लें।

तैयारी करें और हर स्तर पर हज ट्रेनिंग प्रोग्राम मे जरूर शामिल हों ताकि हज के दौरान आप सभी परेशानियों से बचे रहें।

डॉ. आफ़ाक़ी ने महरम कोटे में चयनित महिला हज यात्रियों से हज खर्च की पहली और दूसरी किस्त की कुल राशि 2,51,800/- भारतीय स्टेट बैंक या यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की किसी भी शाखा मे 05 अप्रैल 2024 तक या इससे पहले हज कमेटी ऑफ इंडिया के खाते में जमा करने की अपील की तथा अंतर्राष्ट्रीय पासपोर्ट, मेडिकल स्क्रीनिंग, फिटनेस प्रमाणपत्र, शपथ पत्र, बैंक पे-स्लिप, ऑनलाइन हज आवेदन पत्र की डाउनलोड की गई कॉपी वा अन्य संबंधित दस्तावेजों को अपनी राज्य हज कमेटी मे निर्धारित तिथि तक जमा दे।

 

​​​​​​​8  अमेरिकी सीनेटर्ज़ ने एक योजना पेश की है जिसमें अमेरिकी सरकार से अल्बानिया की राजधानी तिराना में स्थित "अशरफ-3" कैंप में एमकेओ के आतंकवादी गुट (मुजाहेदीने ख़ल्क) के सदस्यों की सुरक्षा की गुहार लगाई गयी है।

इस योजना को पेश करने वाले सीनेटर अमरीका की दोनों प्रसिद्ध पार्टियों रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टियों से हैं।

इन सीनेटर्ज़ ने एमकेओ आतंकी गुट के सदस्यों के समर्थन की अपील ऐसे समय में किया गया है कि जब यह आतंकवादी गुट 2010 तक अमेरिका, कनाडा और यूरोपीय संघ के विदेशमंत्रालयों की आतंकवादी गुटों की सूची में था, लेकिन उसके बाद ईरान से दुश्मनी के मक़सद से, इस आतंकी गुट को अमेरिका और कुछ यूरोपीय देशों द्वारा ब्लैक लिस्ट से हटा दिया गया।

इस आतंकवादी गुट का गठन जेल, घुटन, ग़ुलामी, जबरन भर्ती, कैंप के अंदर सदस्यों को क़ैद रखने, उन्हें बाहरी दुनिया से बिल्कुल अलग थलग कर देना, जबरन तलाक़ और विवाह यहां तक ​​कि संगठन की नीतियों का पालन करते हुए ब्रह्मचर्य का आह्वान करना, सदस्यों का ब्रेनवॉश करने के लिए मानसिक प्रेरणा के इस्तेमाल करने के आधार पर किया गया।

आतंकवादी गुट एमकेओ के यह कुछ ऐसे तरीके हैं जो आम यह गुट आम और भोले भाले लोगों पर इस्तेमाल करता है। जिन चीज़ों का हमने उल्लेख किया गया है वे चीज़ें इस खतरनाक आतंकी गुट के शिविरों में देखी गयी हैं।

1980  के दशक में इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद के वर्षों में, एमकेओ आतंकी गुट ने ईरान के अंदर कई आतंकी हमले किए और तब से इस ग्रुप का नाम ईरानी जनता के मन में एक नफ़रती ग्रुप के रूप में दर्जं हो गया।

इस आतंकवादी विचारधारा वाले ग्रुप के समर्थन की गुहार जो "ईरानी जनता की आज़ादी" के दावे करता है, ईरान के ख़िलाफ़ थोपे गए युद्ध के दौरान इराक़ की बास पार्टी के तानाशाह सद्दाम से लगाई गयी जिसकी वजह से ईरानी जनता के के बीच इस गुट की ज़रा भी इज़्ज़त नहीं रही और इस तरह से एमकेओ ईरान में सबसे अधिक घृणित और नफ़रत किया जाने वाला नाम बन गया।

ईरानी जनता के ख़िलाफ़ एमकेओ आतंकवादी गुट द्वारा किए गए कई अपराधों के बावजूद, अमेरिकी राजनेता इस ग्रुप का समर्थन करना जारी रखे हुए हैं।

2013  में अमेरिकी सरकार ने अल्बानिया को इस आतंकवादी गुट के सदस्यों को शरणार्थी के रूप में स्वीकार करने के लिए मजबूर किया था।

इस्लामी क्रांति की सफलता के शुरुआती दिनों से लेकर अब तक एमकेओ आतंकी गुट ने विभिन्न आतंकवादी कार्यवाहियों के दौरान 17 हज़ार से अधिक ईरानी नागरिकों की हत्या कर दी है।

इस्लामी क्रांति की सफलता के शुरुआती दिनों में ईरान के भीतर आतंकी कार्यवाहियों के कारण, इस गुट के कई आतंकियों को न्यायपालिका ने सज़ाए मौत की सज़ा सुनाई।

जॉन बोल्टन सहित कई अमेरिकी राजनेता हमेशा ही इस आतंकवादी गुट के संपर्क में रहे हैं।

मरियम रजावी के नेतृत्व में इस गुट द्वारा ईरान विरोधी प्रदर्शनों और विदेशी मीडिया में तेहरान के ख़िलाफ लगातार प्रोपेगैंडा किया जाता रहा है।

हालिया वर्षों के दौरान आतंकी गुट मुजाहेदीने ख़ल्क़ के सदस्य विभिन्न भाषाओं में सोशल मीडिया पर ईरान के ख़िलाफ़ और अमेरिकी प्रतिबंधों के समर्थन में कामेंट करते रहे हैं।