
رضوی
माहे रमज़ान के चौदहवें दिन की दुआ (14)
माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।
اَللّهُمَّ لاتُؤاخِذْني فيہ بالْعَثَراتِ وَاَقِلْني فيہ مِنَ الْخَطايا وَالْهَفَواتِ وَلا تَجْعَلْني فيہ غَرَضاً لِلْبَلايا وَالأفاتِ بِعزَّتِكَ يا عِزَّ المُسْلمينَ...
अल्लाह हुम्मा ला तुआख़िज़नी फ़ीहि बिल असरात, व अक़िलनी फ़ीहि मिनल ख़ताया वल हफ़वात, व ला तज अलनी फ़ीहि ग़रज़न लिल बलाया, वल अफ़ाति बे इज़्ज़तिका या इज़्ज़ल मुस्लिमीन (अल बलदुल अमीन, पेज 220, इब्राहिम बिन अली)
ख़ुदाया! इस महीने में मेरी लग़ज़िशों पर मेरी गिरफ़्त ना फ़रमा, मुझे ख़ताओं व गुनाहों में मुब्तला होने से दूर रख, मुझे मुश्किलों और आफ़तों का निशाना क़रार ना दे, तेरी इज़्ज़त के वास्ते, ऐ मुसलमानों की इज़्ज़त व अज़मत...
अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम.
बंदगी की बहार- 14
रमज़ान का पवित्र महीना तक़वे, ईश्वर की उपासना और आत्ममंथन का महीना है।
इस महीने में अन्य महीनों की तुलना में ईश्वर के बंदों पर उसकी अनुकंपाएं अधिक होती हैं। रमज़ान में लोगों पर ईश्वर की कृपा, तुल्नात्मक रूप में अधिक रहती है। इस महीने में हर रोज़ेदार का यह प्रयास रहता है कि वह ईश्वरीय आदेशों पर अधिक से अधिक पालन करके उसकी अधिक से अधिक अनुकंपाओं को हासिल करे और ईश्वर से निकट हो जाए। इस्लामी शिक्षाओं में बताया गया है कि रोज़े का अर्थ केवल यह नहीं है कि मनुष्य खाना-पीना छोड़ दे बल्कि इस महीने में उसके शरीर के सारे अंग भी रोज़ेदार रहें अर्थात वह हर प्रकार के बुरे कामों से बचता रहे। रमज़ान का बेहतरीन काम यह है कि रोज़ा रखने वाला ईश्वर की उपासना करते हुए हर प्रकार की बुराइयों से बचता रहे।
रमज़ान के पवित्र महीने में रोज़ा रखने वाले ईश्वर के अतिथि होते हैं इसलिए पवित्र हृदय और ईश्वरीय प्रेरणा से उसकी मेहमानी में जाने की कोशिश करें। रमज़ान के दौरान मुसलमान, इसके पवित्र दिनों में आध्यात्मिक क्षणों का आभास करते हुए धैर्य का पाठ सीखते हैं। बहुत से समाजशास्त्रियों का मानना है कि रमज़ान में ऐसी भूमिका प्रशस्त होती है जिसके माध्यम से रोज़ेदार सच्चाई, परोपकार और मानवजाति से प्रेम की भावना में वृद्धि होती है। इसका परिणाम यह निकलता है कि लोगों के भीतर अपने समाज और परिवार के सदस्यों के साथ प्रेम बढ़ता है और ख़तरे कम होते हैं।
एक समाजशास्त्री डाक्टर मजीद अबहरी का मानना है कि रमज़ान का माहौल, बुराइयों से दूरी की भी भूमिका प्रशस्त करता है। इसका मुख्य कारण यह है कि जब कोई व्यक्ति ईश्वर की प्रशंसा के कारण घण्टों तक भूखा और प्यासा रहता है तो फिर वह नैतिक मूल्यों को क्षति नहीं पहुंचाएगा। रोज़ा रखने से पाप करने की इच्छा प्रभावित होती है जिसके परिणाम स्वरूप पाप और अपराध कम होते हैं। रोज़े में भूखा रहकर मनुष्य के मन में ग़रीबों, भूखों, दीन-दुखियों और वंचितों के लिए सहानुभूति उत्पन्न होती है। ऐसा व्यक्ति इन लोगों की अधिक से अधिक सहायता करना चाहता है। इस महीने में न केवल रोज़ेदार ही रमज़ान से लाभान्वित होते हैं बल्कि दूसरे लोग भी रोज़ेदारों को देखकर भलाई की ओर उन्मुख होते हैं। इस दौरान लोगों के भीतर एक विशेष प्रकार का बदलाव आता है। लोगों के प्रति अधिक कृपालू होना, दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करना, मानवजाति की सहायता के लिए सदैव तत्पर रहना और नैतिकता का ध्यान वे बातें हैं जो रमज़ान की ही देन होती हैं।
पवित्र रमज़ान और रोज़ा रखने का एक बहुत प्रभावी असर यह है कि इससे, अपने जैसे इंसानों के प्रति दोस्ती की भावना जागृत होती है। रोज़े के ज़रिए दूसरों को किसी हद तक मदद अवश्य मिलती है। हक़ीक़त में रोज़ा रखने से इंसान, दूसरों के दुख-दर्द को समझने लगता है। इंसान की ज़िन्दगी में नाना प्रकार के दुख व दर्द होते हैं। इस बात की कल्पना नहीं की जा सकती कि सभी इंसान सभी प्रकार के दुखों का शिकार हों। जब मनुष्य हर प्रकार के दुख का शिकार नहीं होगा तो वह उनको समझेगा कैसे? जैसे कुछ लाइलाज बीमारियां होती हैं जो बहुत कम लोगों को होती हैं। कुछ ख़ास प्रकार की मुश्किलें और संकट होते हैं जिनसे कुछ विशेष वर्ग को सामना होता है लेकिन एक पीड़ा ऐसी है जिसे प्राचीन समय से लेकर आज के इस आधुनिक युग में सभी इंसान महसूस करता है और वह है भूख व प्यास की पीड़ा। ईश्वर ने पवित्र रमज़ान के महीने में भूख और प्यास की मुसीबत को बर्दाश्त करने का आदेश दिया है ताकि सभी लोग भूख और प्यास की मुसीबत को समझें। शायद अगर पवित्र रमज़ान का महीना न होता तो धनवान कभी भी निर्धन की मुश्किलों के बारे में न सोचता। इसलिए पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने रमज़ान से पहले शाबान के महीने में पवित्र रमज़ान के महत्व के बारे में अपने भाषण में कहा था कि "इस महीने में भूख और प्यास के ज़रिए प्रलय के दिन की भूख-प्यास को याद करो। निर्धनों व ज़रूरतमंद लोगों की मदद करो।" इसी प्रकार पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने अपने जैसे लोगों से मेलजोल के महत्व को समझाने के लिए कहा है, “हे लोगो! तुममे से जो भी इस महीने अपने किसी मोमिन भाई को इफ़्तार कराए तो उसे एक क़ैदी को आज़ाद कराने का पुण्य तथा पापों के क्षमा होने का बदला मिलेगा।”
पवित्र रमज़ान का वातावरण समाज के भीतर आध्यात्म को अधिक से अधिक सुदृढ़ करता है। इस महीने का वातावरण पाप और अपराध की भावना को कुचल देता है। रमज़ान के दौरान ईश्वर और उसके दास के बीच संबन्धों के मज़बूत होने के कारण मनुष्य के व्यवहार पर इसके सकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं।
रमज़ान का एक लाभ यह भी है कि इस में खाने और पीने पर नियंत्रण करने से आंतरिक इच्छाएं नियंत्रित रहती हैं। इसका परिणाम यह निकलता है कि पाप और अपराध की भावना कम होती है और समाज के भीतर फैली बहुत सी बुराइयां कम हो जाती हैं। यह वे बुराइयां हैं जो दूसरे अन्य महीनों में अधिक दिखाई देती हैं। एक अन्य बिंदु यह भी है कि खाने-पीने पर नियंत्रण से आंतरिक इच्छाएं दबने लगती है और जिसके नतीजे में बुरे कामों की ओर झुकाव में कमी आ जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि समाजिक बुराइयों को कम करने का यह बहुत बड़ा कारण है। बहुत से पाप और अपराध एसे हैं जो मनुष्य एकदम से अंजाम देता है और उसके लिए वह पहले से कोई योजना नहीं बनाता। कभी एसा होता है कि मनुष्य किसी बात पर एकदम से क्रोधित हो जाता है और झगड़ा करने लगता है। यही झगड़ा कभी-कभी हत्या का भी कारण बन जाता है। रोज़े की स्थिति में ऐसी भावना का उत्पन्न होना लगभग असंभव होता है क्योंकि एक तो मनुष्य भूखा और प्यासा होता है दूसरे उसके मन में सदैव यह रहता है कि किसी भी प्रकार के ग़लत काम से उसका रोज़ा बातिल हो जाएगा इसलिए वह कोई भी अनुचित हरकत करने से बचता है।
शरीर पर रोज़े के प्रभाव के बारे में हालांकि अबतक बहुत से शोध किये गए हैं किंतु मनुष्य के मन पर पड़ने वाले इसके प्रभाव एसे हैं जिन्हें अनेदखा नहीं किया जा सकता। इस बारे में ईरान में किये जाने वाले शोध से पता चलता है कि रोज़ा रखने से तनाव, चिंता और अवसाद जैसी समस्याओं के समाधान में सहायता मिलती है। इस बारे में डाक्टर अब्बास इस्लामी कहते हैं कि रोज़ा सामाजिक एकता और एकजुटता का कारण बनता है। जब एसा वातावरण बन जाता है तो लोगों के भीतर परस्पर सहयोग की भावना बढ़ जाती है। जब सब लोग एक प्रकार से सोचने लगते हैं तो बहुत सी सामाजिक समस्याएं हल होने लगती हैं।
रमज़ान में मस्जिदों में जब लोग एकसाथ मिलकर उपासना में व्यस्त होते हैं तो उसका दृश्य बहुत ही मनमोहक होता है। इससे एक प्रकार की सामाजिक एकता का प्रदर्शन होता है। यह भावना संसार के बहुत से हिस्सों में बहुत ही कम देखने को मिलती है। एसे दृश्यों को केवल उन स्थानों पर ही देखा जा सकता है जहां पर बड़ी संख्या में नमाज़ी, उपासना में व्यस्त हों।
मनुष्य अपने जीवन में चाहे कोई भी काम करे, उस काम को करने के लिए उसके भीतर किसी भावना का पाया जाना ज़रूरी है। अच्छा या बुरा कोई भी काम हो उसके करने की अगर भावना या कारक नहीं है तो वह काम हो ही नहीं सकता। रोज़े की एक विशेषता यह है कि वह रोज़ेदार के भीतर सदकर्म करने की भावना जागृत करता है। रोज़े से ईमान को भी मज़बूत किया जा सकता है। ईमान को मज़बूत करके कई प्रकार की बुराइयों से बचा जा सकता है। यदि ईमान को मज़बूत करने के साथ ही आंतरिक इच्छाओं का भी दमन किया जाए तो भी मनुष्य निश्चित रूप से सफलता की ओर बढ़ेगा। रोज़े से मनुष्य के भीतर तक़वे या ईश्वरी भय की भावना बढ़ती है जो हर अच्छाई की कुंजी है। इस बारे में सूरे बक़रा की आयत संख्या 183 में ईश्वर कहता है कि हे ईमान लाने वालो! रोज़े तुम्हारे लिए निर्धारित कर दिये गए उसी प्रकार से जैसे कि तुमसे पहले वालों पर निर्धारित किये गए थे। हो सकता है कि तुम परहेज़गार बन जाओ।
तक़वे का अर्थ होता है स्वयं को पापों से सुरक्षित रखना। कहते हैं कि अधिकांश पाप, दो चीज़ों से अस्तितव में आते हैं क्रोध और वासना से। रोज़े की एक विशेषता यह है कि वह इन दोनों को नियंत्रित करता है। रोज़े की देन तक़वा या ईश्वरीय भय है और यही तक़वा मनुष्य का मुक्तिदाता है।
ईश्वरीय आतिथ्य- 14
इस महीने में रोज़ेदार, ईश्वर के मेहमान होते हैं। यह ऐसा महीना है जिसमे ईश्वरीय अनुकंपाएं नाज़िल होती हैं और इसमे पापों का प्रायश्चित होता है। यह महीना ईश्वर का है जिसमें प्रार्थना करने का आह्वान किया गया है। इस महीने में जितना भी संभव हो उतनी ही ईश्वर से दुआ या प्रार्थना की जाए। रमज़ान के महीने के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम (स) कहते हैं कि हे लोगो! इस महीने में ईश्वर से गिड़गिड़ाकर दुआ करो क्योंकि तुम्हारे जीवन का यह अति महत्वपूर्ण काल है। रमज़ान के महीने में ईश्वर अपने बंदों पर विशेष प्रकार की कृपा करता है।
दुआ अरबी भाषा का शब्द है जिसे हम प्रार्थना कहते हैं। दुआ का शाब्दिक अर्थ होता है मांगना। इसको हम इस प्रकार से भी कह सकते हैं कि खुशी-ग़म, आसानी-परेशानी, उतार-चढ़ाव और हर स्थिति में मनुष्य को ईश्वर से ही मांगना चाहिए। दुआ का एक अर्थ है केवल ईश्वर से ही मांगना। रमज़ान के पवित्र महीने में ईश्वर के विशेष बंदों की दुआएं बढ़ जाती हैं और वे हर पल उसकी सेवा में उपस्थित रहना चाहते हैं। दुआ मांगने की एक परंपरा यह है कि दुआ मांगने वाला अपने दोनो हाथों को ऊपर की ओर उठाकर ईश्वर की सेवा में अपनी मांग पेश करे क्योंकि इस महीने में ईश्वर अपने बंदों की दुआओं को अवश्य सुनता है।
आइए अब हम दुआए जौशने कबीर के बारे में बात करते हैं। रमज़ान के पवित्र महीने में जिन दुआओं के पढ़ने पर बल दिया गया है उनमें से एक जौशने कबीर नाम की दुआ है। जौशन, अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है युद्ध की पोशाक या ज़िरह। इसे हिंदी में कवच कहते हैं। धर्मगुरूओं का कहना है कि इस दुआ का नाम जौशने कबीर इसलिए पड़ा क्योंकि एक युद्ध में पैग़म्बरे इस्लाम (स) जो कवच पहने हुए थे वह बहुत भारी थी। कवच इतनी भारी थी जिससे आपको परेशानी हो रही थी। इस युद्ध में जिब्रईल, ईश्वर की ओर से एक संदेश लाए। उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम (स) को संबोधित करते हुए कहा कि हे मुहम्मद! ईश्वर आपको सलाम भेजते हुए कहता है कि आप उस भारी कवच को उतार दीजिए और इस दुआ को पढ़िए। यह एसी दुआ है जो आपको और आपके मानने वालों को हर प्रकार के ख़तरों से सुरक्षित रखेगी। इस घटना के बाद से इस दुआ का नाम जौशने कबीर पड़ गया। आइए देखते हैं कि दुआए जौशने कबीर क्या है?
दुआए जौशने कबीर एक बड़ी दुआ है। इस दुआ के 100 भाग हैं और हर भाग में अल्लाह के दस नाम हैं। दुआए जौशने कबीर के 100 भागों में से केवल 55वें भाग में ईश्वर के ग्यारह नाम हैं। इस प्रकार से जौशने कबीर में ईश्वर के एक हज़ार एक नाम हैं। पैग़म्बरे इस्लाम (स) जौशने कबीर के महत्व की ओर संकेत करते हुए कहते हैं कि मेरे मानने वालों में से कोई भी ऐसा बंदा नहीं है जो रमज़ान के पवित्र महीने में इसे तीन बार पढ़े, ईश्वर नरक की आग को उससे दूर कर देता है और जन्नत उसके लिए वाजिब कर देता है। एक अन्य स्थान पर कहा गया है कि दुआए जौशने कबीर का महत्व इतना अधिक है कि यदि संभव न हो तो इसे जीवन में कम से कम एक बार अवश्य पढ़ना चाहिए।
दुआए जौशने कबीर में ईश्वर के जिन हज़ार नामों का उल्लेख किया गया है वे बहुत ही अच्छे ढंग से एकेश्वरवाद, प्रलय और अन्य उच्च इस्लामी विषयों को पेश करते हैं। आइए अब हम दुआए जौशने कबीर के 55वें भाग का उल्लेख करने जा रहे हैं जिसमें ईश्वर के ग्यारह नामों का ज़िक्र किया गया है। इस दुआ के हर भाग की कुछ पक्तियां हैं। 55वें भाग की ग्यारह पक्तियां है जिनका अनुवाद इस प्रकार हैः हे वह कि जिसका आदेश हर चीज़ पर चलता है। हे वह जिसके ज्ञान में सबकुछ है। हे वह कि जिसकी शक्ति के घेरे में सबकुछ है। हे वह कि जिसकी अनुकंपाओं को बंदे गिनने में अक्षम हैं। हे वह कि बनाने वाले उसकी प्रशंसा न कर सकें। हे वह कि जिसकी महानता को बुद्धियां न समझ सकें। हे वह कि महानता जिसकी पोशाक है। हे वह कि तेरे बंदे, जिसकी हिकमत को न समझ सकें। हे वह कि उसके अतिरिक्त कोई शासक नहीं। हे वह कि जिसके अतिरिक्त कोई अन्य देने वाला नहीं है अर्थात उसके जैसा कोई भी देने वाला है ही नहीं।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) के एक कथन में मिलता है कि ईश्वर के 99 नाम हैं। जो भी ईश्वर को इन नामों के माध्यम से पुकारे, उसकी दुआ सुनी जाती है। जो भी ईश्वर के इन नामों को याद करे वह स्वर्ग में जाएगा। जैसाकि आप जानते हैं कि ईश्वर का हर नाम उसकी एक विशेषता का प्रतीक है। जो भी इन्सान, इन नामों को सोच-विचार के साथ याद कर ले वह स्वर्ग जाने वालों में से होगा।
जैसाकि हमनें आरंभ में बताया था कि दुआए जौशने कबीर के सौ भाग हैं। इस दुआ का हर भाग कुछ पक्तियों पर आधारित है। इन पक्तियों को बंद भी कहा जाता है। परंपरा यह रही है कि जब दुआए जौशने कबीर पढ़ी जाती है तो उसके हर भाग या बंद के अंत में एक वाक्य पढ़ा जाता है जिसका अर्थ इस प्रकार होता है कि हे ईश्वर! तू हर बुराई से पवित्र है और तेरे अतिरिक्त कोई अन्य ईश्वर नहीं है। हे ईश्वर! हमे आग से सुरक्षित रख। इस वाक्य को हर बंद के बाद पढ़ना चाहिए जिसका विशेष प्रभाव है।
पवित्र क़ुरआन की शिक्षाओं में बताया गया है कि पापियों और काफ़िरों को नरक की आग में डाला जाएगा। आग देखने में तो प्रकाशमान होती है किंतु भीतर से झुलसा देने वाली होती है। पाप और भीतरी नकारात्मक सोच, कुछ एसी होती हैं जो देखने में तो शायद सुन्दर दिखाई दें किंतु भीतर से यह अंधकार में डूबे होते हैं। एक रोज़ा रखने वाला, दुआए जौशने कबीर जैसी दुआ पढ़कर वास्तव में ईश्वर से कहता है कि हम तेरे बारे में कही जाने वाली सारी वास्तविकताओं को स्वीकार करते हैं। हे ईश्वर तू मेरी ग़लतियों और बुराइयों को क्षमा कर दे और अपने नामों की वास्तविकता को मेरे अस्तित्व में उतार दे ताकि उनके प्रभाव से मैं उन सभी व्यर्थ बातों से दूर हो जाऊं जो मेरी समस्याओं और कठिनाइयों का कारण बनती रहती हैं।
एसे लोग जो मन की गहराइयों से इस बारे में विश्वास रखते हों कि सृष्टि में जो कुछ भी पाया जाता है वह सब ईश्वर का है, इस प्रकार के लोग सांसारिक सुख-दुख से बिल्कुल भी प्रभावित नहीं होते। एसे लोग सांसारिक मायामोह की वास्तविकता को भलिभांति पहचानते हैं। अगर कोई इन्सान कठिनाई के समय में भी ईश्वर को याद रखता है तो वह हर प्रकार की चिंता से सुरक्षित हो जाता है। इस प्रकार का व्यक्ति अपने जीवन में कभी भी निराश नहीं हो सकता। वह अपने समाज में लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन जाता है।
यही कारण है कि इस दुआ को पढ़कर पहले ईश्वर की विशेषताओं की वास्तविकता का स्मरण किया जाता है। हम एसा इसलिए करते हैं कि यदि इसके बारे में हम यदि कुछ भूल जाएं या कुछ छूट जाए तो उसको दोहरा लिया जाए। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह हमको नरक की आग और वास्तविकताओं को भूल जाने जैसी बुराई से बचाए रखे। यह इस अर्थ में है कि हे! ईश्वर, हम तेरे नामों की वास्तविकताओं पर पूरा भरोसा रखते हैं अतः तू हमे इस मार्ग से हटने से दूर रख। अपनी वास्तविकताओं को हमारे अस्तित्व में उंडेल दे ताकि इसके माध्यम से हम हर प्रकार की बुराई से बच सकें।
युद्धविराम के बिना कैदियों की अदला-बदली संभव नहीं, हमास
हमास आंदोलन के एक नेता ने 40 इजरायली कैदियों के बदले 700 फिलिस्तीनी कैदियों को रिहा करने के समझौते के बारे में कहा है कि अगर युद्ध, अपराध और घेराबंदी जारी रहेगी तो कैदियों की अदला-बदली नहीं होगी.
हमास के वरिष्ठ नेता ने अपना नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा कि ज़ायोनी मीडिया में यह दावा कि इज़राइल हमास को उदारवादी समाधान दे रहा है और रियायतें दे रहा है, निराधार और खोखला प्रचार है।
हमास के नेता ने कहा कि ज़ायोनी दुश्मन के प्रचार का उद्देश्य इज़रायली सरकार की कठोरता को छिपाना और सुलह के रास्ते में बाधा डालने की ज़िम्मेदारी से बचना है।
हमास के नेता ने कहा कि हमने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है और हम इससे पीछे नहीं हटेंगे और अगर युद्ध, अपराध और घेराबंदी जारी रही तो कैदियों की अदला-बदली नहीं होगी.
इससे पहले ज़ायोनी सरकार के टीवी-रेडियो ने एक सरकारी अधिकारी के हवाले से घोषणा की थी कि तेल अवीव 40 इज़रायली कैदियों के बदले में 700 हमास कैदियों को रिहा करने के लिए तैयार है। वे वापसी के लिए बड़ी रियायतें देने के लिए भी तैयार हैं।
ब्रिटिश न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्ज़ दुनिया का सबसे झूठा मीडिया, मस्क
माइक्रोब्लॉगिंग वेबसाइट एक्स पर एलन मस्क ने अपनी एक पोस्ट में ब्रिटिश न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्ज़ को दुनिया का सबसे झूठा संचार माध्यम क़रार दिया है।
पूर्व में ट्विटर के नाम से जानी जाने वाली वेबसाइट पर मस्क ने लिखाः मेन स्ट्रीम मीडिया आउलेट्स अपने संबंधोकों से पानी पीने की तरह आसानी से झूठ बोलते हैं और इनमें रॉयटर्ज़ का हाल सबसे बुरा है।
इससे पहले एलन मस्क ने कहा था कि अमरीकी नागरिकों को अमरीकी सरकार द्वारा सेंसरशिप का थोड़ा सा भी आइडिया नहीं है।
दक्षिण अफ्रीका में गाजा के पक्ष में 41 किलोमीटर की पैदल यात्रा
दुनिया भर से हजारों लोग दक्षिण अफ़्रीकी शहर केपटाउन में एकत्र हुए और गाजा में युद्धविराम की मांग करते हुए 41 किलोमीटर लंबा मार्च निकाला.
दक्षिण अफ्रीकी मीडिया सूत्रों के अनुसार, दुनिया के 20 देशों के 160 शहरों से हजारों लोग फिलिस्तीन के साथ एकजुटता व्यक्त करने और चर्चों की अपील पर "गाजा में संघर्ष विराम के लिए मार्च" करने के लिए केप टाउन में एकत्र हुए। ईसाई समुदाय। के शीर्षक के तहत
पैदल मार्च किया. मार्च केप टाउन के दक्षिण में साइमन टाउन से शुरू हुआ और केप टाउन शहर के केंद्र में समाप्त हुआ।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, गाजा पट्टी की लंबाई को देखते हुए 41 किलोमीटर तक का मार्च निकाला गया, जिसमें शामिल होने वालों की संख्या हजारों में थी. प्रदर्शनकारियों ने फ़िलिस्तीनी झंडे पकड़ रखे थे और मार्च के अंत तक गाजा में संघर्ष विराम का आह्वान किया और फ़िलिस्तीनियों के लिए प्रार्थना की।
मार्च के दौरान प्रदर्शनकारियों ने दमनकारी इजरायली सरकार के खिलाफ नारे भी लगाए।
तेहरान में फ़िलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन
तेहरान विश्वविद्यालय के छात्र और जनता रविवार रात को ज़ायोनी अपराधों की निंदा करने और फ़िलिस्तीनियों का समर्थन करने के लिए एकत्र हुए।
तेहरान विश्वविद्यालय के छात्र और लोग ज़ायोनी अपराधों की निंदा करने और फ़िलिस्तीनियों का समर्थन करने के लिए रविवार रात ब्रिटिश दूतावास के सामने एकत्र हुए, जबकि इसी तरह की एक सभा तेहरान के फ़िलिस्तीन स्क्वायर और ज़ायोनी अपराधों पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में आयोजित की गई थी। संस्थानों से जवाब मांगा गया.
तेहरान की मस्जिद में पवित्र कुरान की प्रदर्शनी के अवसर पर लोगों ने एकत्र होकर फिलिस्तीनियों के समर्थन में नारे लगाये और ज़ायोनी अपराधों की निंदा की। आज रात फ़िलिस्तीनियों के समर्थन में और तेहरान की अर्ग मस्जिद में ज़ायोनी अपराधों की निंदा करने के लिए एक सभा आयोजित करने की घोषणा की गई है। इसी तरह की सभाएं ईरान के कई अन्य शहरों में भी आयोजित की जा रही हैं।
जनाबे मुख्तार की शहादत पर मजलिस मुनअक़िद
लखनऊ, 13 माहे रमज़ान अल मुबारक को एलिया कालोनी पीर बुख़ारा चौक में जनाब सैयद मज़हर अब्बास साहब के घर पर मग़रिब बाद रात 8 बजे दौरा ए क़ुरआन हुआ जिसमें मोमनीन के अलावा उल्मा व तुल्लाब ने क़ुरआन ख़्वानी की।
उसके बाद मजलिस ए अज़ा मुनअक़िद हुई जिसे मौलाना सैयद अली हाशिम आब्दी इमाम जमाअत मस्जिद काला इमामबाड़ा ने ख़ेताब किया।
मौलाना सैयद अली हाशिम आब्दी ने फ़रमाया: माहे रमजान खुद को नेक बनाने का महीना है, कुरान की तालीमात और अहलेबैत अ०स० की हदीसों और सीरत सीखने और उस पर चलने का महीना हैं।
मौलाना सैयद अली हाशिम आब्दी ने जनाबे मुख्तार की शहादत का हवाला देते हुए बयान किया कि हमारी जिंदगी का एक अहम मक़सद यह होना चाहिए की इमामे वक़्त हमसे राज़ी हो जाएं और हमारे अमल से खुश हो जाएं जो सबसे बड़ी सआदत और कामयाबी हैं।
जनाबे मुख्तार ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के कातिलों को क़त्ल किया और जब आपने इब्ने ज़ेयाद मलऊन और उमर बिन साद का सर अपने इमाम ज़माना यानी इमाम ज़ैनुलआब्दीन अ०स० को भेजा तो इमाम ज़ैनुलआब्दीन अ०स० ख़ुश हुए, क्या कोई दावा कर सकता है कि उसके फलां अमल से इमाम ज़माना अ०स० ख़ुश हुए? मौलाना सैयद अली हाशिम आब्दी ने बयान किया कि इमामे वक़्त को हज़रत मुख्तार ने खुश करने का सलीक़ा सिखाया
मौलाना सैयद अली हाशिम आब्दी ने बयान किया कि रिवायत में है इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने जनाबे मुस्लिम अ०स० को कूफा भेजते हुए फरमाया कि तुम्हें जिस पर भरोसा हो वहां उसके घर रुकना और जनाब मुस्लिम अ०स० कूफे में जनाबे मुख्तार के घर मेहमान हुए।
जिससे ज़ाहिर होता है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के सफीर जनाबे मुस्लिम अ०स० को जनाबे मुख्तार पर भरोसा था।
गाजा में ज़ायोनी सेना के बर्बर युद्ध अपराध
फ़िलिस्तीन रेड क्रिसेंट सोसाइटी ने घोषणा की है कि कब्ज़ा करने वाले ज़ायोनी शासन के हमलावर सैनिकों ने अल-अमल और नासिर अस्पतालों को घेर लिया है।
फिलिस्तीनी रेड क्रिसेंट सोसाइटी ने घोषणा की है कि कब्जे वाले ज़ायोनी शासन के आक्रामक सैनिकों के वाहन गाजा के दक्षिण में खान यूनिस में नासिर और अल-अमल अस्पतालों के पास तैनात किए गए हैं, और गोलियों और अल की आवाज़ें आ रही हैं। -अमल। उसे अस्पताल से काट दिया गया है।
ऐसे में ही कुछ दिन पहले अल-शफ़ा हॉस्पिटल पर हमला बोलकर कब्ज़ा करने वाली ज़ायोनी सरकार ने भयानक तरीके से नरसंहार किया है। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि फ़िलिस्तीनियों को गिरफ़्तार किया जा रहा है, उन्हें फाँसी दी जा रही है
उनसे जबरन मजदूरी करवाना एक अमानवीय अपराध है जो बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। अल-जज़ीरा टीवी चैनल ने भी अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि ज़ायोनी सैनिक अल-शफ़ा अस्पताल के मरीज़ों को टैंकों से कुचल रहे हैं। गाजा में स्वास्थ्य मंत्रालय ने घोषणा की है कि गाजा के खिलाफ 170 दिनों से जारी बर्बर ज़ायोनी आक्रमण में बत्तीस हजार दो सौ छब्बीस फिलिस्तीनी शहीद हो गए हैं और 74 हजार पांच सौ अठारह अन्य घायल हो गए हैं।
इस्लाम दुश्मन प्रोपेगेंडे को नाकाम करने के लिए इस्लाम का हाकीकी चेहरा पेश किया जाए। मौलाना अबुल कासिम रिज़वी
अध्यक्ष शिया उलेमा काउंसिल मौलाना अबुल कासिम रिज़वी ऑस्ट्रेलिया ने कहां,ऑस्ट्रेलिया:इस्लाम दुश्मन मीडिया के प्रोपांडे को नाकाम करने के लिए ज़रूरी है इस्लाम का हाकीकी चेहरा दुनिया के सामने पेश किया जाए।
इस्लाम शांति का दूत है इस्लामी शिक्षाएं प्रेम, भाईचारा, सहिष्णुता और उच्च मूल्य नैतिक और मानवीय पर आधारित हैं। यह प्रत्येक शिया की जिम्मेदारी है कि वह अपनी तबलीग़ में कुरान और अहल-अल-बैत (अ.स) की शिक्षाओं का प्रसार करें।
कॉलेज, विश्वविद्यालय, कार्यालय, कारखाना, बाजार, पड़ोस, पार्क, यात्रा और शहर इस सम्बन्ध में यथासंभव धार्मिक अनुष्ठानों के कार्यक्रम किये जाने चाहिए।
इसी सिलसिले में सोमवार 18 मार्च को इमामबारगाह कायम में इफ्तार multicultural Iftar Dinner का आयोजन किया गया जिसमें बहुसांस्कृतिक मंत्री Multicultural Minister, स्थानीय संसद सदस्य, शिक्षा मंत्री, मेयर और परिषद के सदस्यों के साथ-साथ विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
इस आयोजन की खास बात यह थी कि गैरमुस्लिम महिलाओं ने पूरा हिजाब पहना था और उन्होंने कहा कि वह हिजाब पहनकर खुश हैं।
यह याद रखना चाहिए कि ऑस्ट्रेलिया के मशहूर खतीब और इमाम जुमा मेलबर्न अध्यक्ष शिया उलेमा काउंसिल मौलाना अबुल कासिम रिज़वी ऑस्ट्रेलिया ने निमंत्रण के साथ प्रतिभागियों के लिए एक ड्रेस कोड का अनुरोध किया था जिसे पहले लागू किया गया था।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मेहमानों ने अपनी खुशी जाहिर की बल्कि मौलाना सैयद अबुल कासिम रिजवी के नेतृत्व में इस्लाम की शिक्षाओं और इंटर-रिलिजियस काइम फाउंडेशन की सेवाओं की सराहना की और नफरत के इस दौर में मौलाना की प्रशंसा की।
आए हुए प्रतिभागियों ने सवाल पूछे और जवाब से बहुत खुश और संतुष्ट हुए सवाल था कि किस उम्र में रोजा रखना अनिवार्य है। मौलाना अबुल कासिम रिजवी ने कहा कि लड़कों के लिए पंद्रह साल की उम्र में और लड़कियों के लिए नौ साल की उम्र में रोजा रखना अनिवार्य है।
सबसे पहले, लड़कों की तुलना में वे बुद्धिमान, कर्तव्यनिष्ठ और जिम्मेदार हैं और हम इसे अपने जीवन में देख रहे हैं, इसलिए अल्लाह हमारा निर्माता है।
इसी तरह आए हुए मेहमानों का मौलाना ने प्रश्न का उत्तर दिया और वह लोग बहुत प्रसन्न हुए और मौलाना की बहुत तरीफ की,
इसी तरह जब मौलाना अबुल कासिम रिज़वी ने रोज़े का मकसद और रोज़ा तोड़ने, कफ़्फ़ारा और फिरौती का कारण रोज़ेदार को समझाया, तो उन्होंने कहा कि आज दुनिया का एक तिहाई हिस्सा भूख से पीड़ित है, इसका उद्देश्य भूख और अभाव को खत्म करना है। समाज की ओर से इफ्तार के बाद उपहार के रूप में गुलदस्ते, किताबें और चॉकलेट भी भेंट की गई
मौलाना सैयद अबुल कासिम रिज़वी साहब ने पड़ोसियों, चर्च, मस्जिद और अहले सुन्नत के अन्य केंद्रों को उनके सहयोग के लिए धन्यवाद दिया कि हमारे बड़े कार्यक्रम में वे उसी प्रेम और सहिष्णुता के लिए आज अपने केंद्रों के दरवाजे खोलते हैं और पार्किंग की सुविधा प्रदान करते हैं।
ज्ञात हो कि मौलाना अबुल कासिम रिज़वी को उनकी सेवाओं के लिए दो साल पहले कायम फाउंडेशन ऑस्ट्रेलिया की ओर से संसद द्वारा सम्मानित किया गया था।