رضوی

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पश्चिम एशिया के हालिया घटनाक्रमों में लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़बुल्लाह की भूमिका का एक महत्वपूर्ण आयाम यह है कि इस आंदोलन ने बड़े पैमाने पर युद्ध में दाख़िल हुए बिना ही इस्राईल की हत्या मशीन में एक बड़ा व्यवधान पैदा कर दिया है।

पहली बार ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई जब ज़ायोनी शासन को अपने नियंत्रण वाली सीमाओं के भीतर अपने सभी आप्रेशन के फ़ैसलों पर हिज़्बुल्लाह के संभावित हमलों और जवाबी कार्यवाहियों पर नज़र रखनी पड़ी है।

हालिया महीनों में ग़ज़ा में हुए घटनाक्रम के दौरान, लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़बुल्लाह ने यह ज़ाहिर कर दिया कि वह कोई अनुभवहीन ताक़त नहीं है जो जल्दबाज़ी और उत्साह से भरकर कम समय में ही अपनी सारी शक्ति और हथियारों का प्रदर्शन कर दे।

फिलिस्तीनियों के समर्थन में, हिज़बुल्लाह ने पहले अवैध अधिकृत फिलिस्तीन के उत्तर में कॉर्नेट मिसाइलों और मोर्टार गोलों से टारगेट को निशाना बनाया और शक्तिशाली बुरकान मिसाइलों और आत्मघाती ड्रोन के साथ अपने हमलों का क्रम जारी रखा।

हिज़्बुल्लाह का एक जवान

हालिया वर्षों में लेबनान के हिज़बुल्लाह ने हथियारों और सैन्य उपकरणों की तैयारी और अपने जवानों के प्रशिक्षण की गुणवत्ता में सुधार करने के अलावा, एक विशेष मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक पोज़ीशन हासिल कर ली है जिससे कोई भी साम्राज्यवादी शक्ति इस महत्वपूर्ण तत्व को पश्चिम एशियाई क्षेत्र में घुसने के अपने हिसाब किताब से अलग नहीं कर सकती।

मनोवैज्ञानिक रणनीति के संदर्भ में, हिज़बुल्लाह ने ज़ायोनी शासन को उत्तरी और दक्षिणी दोनों क्षेत्रों में एक साथ भय और आतंक के माहौल में उलझा दिया है और इस शासन की एकाग्रता और उसे अपने हमलों को जारी रखने की की क्षमताओं को बाधित कर दिया है।

इस तरह की रणनीति ने ग़ज़ा पट्टी में फिलिस्तीनी प्रतिरोध को युद्ध जारी रखने के लिए अधिक अनुकूल माहौल प्रदान कर दिया है।

7  अक्टूबर के बाद, एक व्यापक और बहुपक्षीय सैन्य रणनीति के अंतर्गत, हिजबुल्लाह ने इस्राईल के रडारों और जासूसी उपकरणों के खिलाफ स्मार्ट ऑपरेशन किए और 2 लाख से अधिक ज़ायोनी बस्तियों के निवासियों को सोचे-समझे और हमलों से क्षेत्र छोड़ने पर मजबूर कर दिया।

हालांकि फ़िलिस्तीन की हालिया घटनाओं के दौरान, कई प्रतिरोधकर्ता गुटों ने इस्राईल पर हमला किया लेकिन हम साहसपूर्वक कह ​​सकते हैं कि हिज़्बुल्लाह की लाजवाब शक्ति और लड़ने की ताक़त, इस आंदोलन की लड़ाई की समझ, बुद्धिमत्ता और नर्म शक्ति, अन्य प्रतिरोधकर्ता गुटों की तुलना में अधिक प्रभावी और कुशल रही है।

इस्राईल को हिज़बुल्लाह का मुंहतोड़ जवाब

हिज़्बुल्लाह की यहीं विशेषताएं इस्रईल के विस्तारवाद और युद्धोन्माद के लिए एक बड़ी बाधाएं हैं और इस तरह इन्हीं विशेषताओं ने दुनिया के ऊर्जा केंद्र के रूप में पश्चिम एशियाई क्षेत्र के लिए स्थिरता के स्तंभ की भूमिका निभाई है।हिज़्बुल्लाह लेबनान में शिया मुसलमानों का एक राजनीतिक-सैन्य संगठन है। यह आंदोलन स्वर्गीय इमाम खुमैनी रहमतुल्लाह अलैह के विचारों से प्रेरित होकर लेबनानी जनता के दिलों से पैदा हुआ है।

हिज़बुल्लाह ने कई मुख्य लक्ष्यों को प्राथमिकता दी है जिनमें पश्चिम एशियाई क्षेत्र में साम्राज्यवादियों का मुकाबला करना, ज़ायोनियों से लड़ना और लेबनान और फिलिस्तीन की स्थिरता में योगदान देना इत्यादि

रसूल अल्लाह स.ल.व.व. ने एक रिवायत में हज़रत ख़दीजातुल क़ुबरा स.ल.के मुकाम को बयान फरमाया हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , इस रिवायत को "बिहारूल अनवार ,,पुस्तक से लिया गया है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:

:قال رسول اللہ صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم

إنَّ جَبْرَئيلَ أتاني لَيْلَةً اُسري بي فَحينَ رَجَعْتُ قُلْتُ: يا جَبْرَئيلُ هَلْ لَكَ مِنْ حاجَةِ؟ قالَ: حاجَتي أنْ تَقْرَءَ عَلي خَديجَةَ مِنَ اللهِ وَ مِنِّي السّلامَ

हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व. फरमाया:

जिस रात मैं मेराज पर गया तो वापस आते हुए हज़रत जिब्राइल अलैहिस्सलाम मेरे पास आए/ मैंने उनसे कहा: ए जिब्राइल आपकी कोई हाजत है?तो उन्होंने जवाब दिया:(जी) मेरी हाजत यह है कि अल्लाह ताला और मेरी ओर से हज़रत ख़तीजा स.ल. को सलाम पहुंचा देना,

 

 

बिहारूल अनवार,भाग 18,पेज 385,हदीस नं 90

हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अलैहा उस ज़माने में भी आप की शख़्सियत इतनी अज़ीम और इज़्ज़तदार थीं कि आप को औरतों का सरदार कहा जाता था।

उम्मत की मां जनाबे ख़दीजा स.अ. एक बा फ़ज़ीलत ख़ातून हैं आपका नाम ख़दीजा, कुन्नियत उम्मे हिन्द थी, आप के वालिद ख़ुवैल्द इब्ने असद और वालिदा का नाम फ़ातिमा बिन्ते ज़ायदा इब्ने असम था।

इन दोनों का नसब आगे चल कर पैग़म्बरे इस्लाम (स.ल.व.व.) के नसब से मिल जाता है, आप की वफ़ात माहे मुबारक रमज़ान की दसवीं तारीख़ बेअसत के दसवें साल, में मक्का शहर में हुई और मक्का के मशहूर क़ब्रिस्तान जन्नतुल मोअल्ला में आप दफ़्न हुईं जहां आज भी आपकी क़ब्र साहिबाने मारेफ़त की ज़ियारतगाह बनी हुई है।

जनाबे ख़दीजा (स.अ) की शादी

जनाबे ख़दीजा की उम्र २८ बरस की थी जब आप की शादी पैग़म्बरे इस्लाम (स.ल.) से हुई और आप रसूले ख़ुदा (स.ल.) से ख़ानदानी रिश्तेदारी तो रखती ही थीं उसके अलावा आप ने चचाज़ाद भाई वरक़ह इब्ने नौफ़िल से आप के फ़ज़ाएल सुने थे और यहूदी और ईसाई उलमा से आप की नबुव्वत और रिसालत की जो ख़बरें उन तक पहुंची थीं इन्हीं सब चीज़ों की वजह से अपने दिमाग़ में पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स.ल.) को जगह दे चुकी थीं और दिल ही दिल में आप पर ईमान ला चुकी थीं।इस्लाम के एलान से पहले आप के अलक़ाब इस्लाम के एलान से पहले आप के बहुत सम्मानित अलक़ाब थें,

मुबारकह: इंजील में जहां पैग़म्बरे इस्लाम स.ल.व.व. की बशारत का ज़िक्र है वहीं पर जनाबे ख़दीजा (स.ल.)के मुबारकह होने और जन्नत में जनाबे मरयम (स) के साथ हमनशीनी का भी ज़िक्र है।

ताहिरा: अरब के ज़माने जाहिलिय्यत में पाकदामन औरतों की तादाद बहुत कम थी और समाज की ख़राबियों की वजह से ज़ियादातर औरतों का किरदार दाग़दार होता था, उस दौर में भी जनाबे ख़दीजा को अपनी पाकीज़गी की वजह से ताहिरा के लक़ब से नवाज़ा गया जो आप के बुलंद मर्तबे की दलील है।

सय्यदुन निसा: उस ज़माने में भी जनाबे ख़दीजा की शख़्सियत इतनी अज़ीम और इज़्ज़तदार थीं कि आप को औरतों का सरदार कहा जाता था।

क़ुरआन और रिवायात में आप का ज़िक्

जैसा कि ज़िक्र हुआ है कि आप अपने चचेरे भाई से पैग़म्बरे इस्लाम (स) के फ़ज़ाएल और अज़मत के बारे में सुन चुकी थीं जिस के बाद न केवल यह कि आप पैग़म्बरे ख़ुदा (स) की नबुव्वत और रिसालत के बारे में जानती थीं बल्कि दिल ही दिल में ईमान भी ला चुकी थीं.

इमाम अली अलैहिस्सलाम नहजुल बलाग़ा में क़ासेआ नामी ख़ुत्बे में फ़रमाते हैं कि: जिस समय पैग़म्बरे इस्लाम (स) की रिसालत का नूर चमका उसकी रौशनी पैग़म्बरे ख़ुदा (स) और जनाबे ख़दीजा के घर के अलावा किसी और घर में नहीं थी और मैं उनमें तीसरा शख़्स था जो रिसालत के नूर को देखता और नबुव्वत की ख़ुशबू सूंघता था। आप का मर्तबा इतना बुलंद था कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) आप से फ़रमाते थे: ऐ ख़दीजा! अल्लाह रोज़ाना कई मर्तबा तुम्हारी वजह से फ़रिश्तों पर फ़ख़्र करता हैं।

मियां बीवी को एक दूसरे के लिए आराम व सुकून का ज़रिया होना चाहिए, दोनों लोगों के लिए घर को अम्न और सुख का स्थान होना चाहिए इस से खुद की जिंदगी और समाज में भी खुशी का माहौल होता हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,सुप्रीम लीडर ने फरमाया,पति और पत्नी जिस वक़्त घर में आते हैं उनका दिल चाहता है कि घर उनको आराम व सुकून, सुख चैन का एहसास दिलाए। दोनों एक दूसरे से तवक़्क़ो रखते हैं कि काश माहौल को ख़ुश, ज़िन्दगी के लायक़, थकन दूर करने के लायक़ बना दें।

यह तवक़्क़ो बिल्कुल सही है और बेजा भी नहीं है कि दोनों एक दूसरे से इस तरह की तवक़्क़ो रखें, अगर कर सकते हों तो यह काम कीजिए, ज़िन्दगी में मिठास आ जाएगी, सभी इंसानों को ज़िन्दगी में इस सुरक्षा की ज़रूरत है।

आप क़ुरआन को पढ़िए तो पाएंगे कि जिस वक़्त क़ुरआन ने शादी की बहस छेड़ी है, फ़रमाया हैः और फिर उसकी जिन्स से उसका जोड़ा बनाया, ताकि वह (उसकी रिफ़ाक़त में) सुकून हासिल करे। (सूरए आराफ़, आयत-189) सुकून का स्रोत, सुकून का ज़रिया हो।

मियां बीवी को एक दूसरे के लिए आराम व सुकून का ज़रिया होना चाहिए, आप दोनों लोगों के लिए घर को अम्न और सुख का स्थान होना चाहिए।

इमाम ख़ामेनेई,

 

 

 

माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।

اَللّٰهُمَّ اجْعَلْ لِی فِیهِ نَصِیباً مِنْ رَحْمَتِكَ الْواسِعَةِ وَاھْدِنِی فِیهِ لِبَراھِینِكَ السّاطِعَةِ، وَخُذْ بِناصِیَتِی إِلی مَرْضاتِكَ الْجامِعَةِ، بِمَحَبَّتِكَ یَا أَمَلَ الْمُشْتاقِینَ

اے معبود! آج کے دن مجھے اپنی وسیع رحمتوں میں سے بہت زیادہ حصہ  عطا کر اور آج کے دن مجھ کو اپنے روشن دلائل کی ہدایت فرما اور میری مہار پکڑ کے مجھے اپنی ہمہ جہتی رضاؤں کی طرف لے جا اپنی محبت سے اے شوق رکھنے والوں کی آرزو۔

ऐ माबूद ! आज के दिन मुझे अपनी ज़्यादा रहमतों में से बहुत ज़्यादा हिस्सा अता कर, और आज के दिन मुझको अपने रौशन दलील की हिदायत फरमा, और मेरी लग़ाम पकड़ कर मुझे अपनी राज़ओं कि तरफ ले जा अपनी मोहब्बत से ए शौक रखने वालों की आरज़ू

अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम..

बुधवार, 20 मार्च 2024 16:14

ईश्वरीय आतिथ्य- 9

हमको एक विशेष दावत अर्थात ईश्वर की दावत पर बुलाया गया है।

हमको एक विशेष दावत अर्थात ईश्वर की दावत पर बुलाया गया है। अल्लाह का विस्तृत दस्तरख़ान सुन्दर तरीक़े से बिछा हुआ है और अब हमको अपनी शक्ति के अनुसार इस दस्तरख़ान की विभूतियों से लाभान्वित होना है। मेज़बान ने हमें बहुत प्रेम और उत्सुकता से अपनी दया, क्षमाशीलता और कृपा की ओर बुलाया है। तो फिर हे अल्लाह के मेहमानो, हे रोज़ेदारो, तौबा व प्रायश्चित करके तथा इस महीने में नेक काम अंजाम देकर अल्लाह की दावत को स्वीकार करें।

पवित्र रमज़ान के महीने में रोज़ेदार व्यक्ति सुबह की अज़ान से लेकर शाम की अज़ान तक खाने पीने से बचकर अपने धार्मिक दायित्वों का निर्वहन करता है। वह रोज़ा रखकर ईश्वर के निकट अपनी बंदगी का प्रदर्शन करके रोज़े के अध्यात्मिक और शारीरिक लाभ उठा सकता है। रोज़ा, एक धार्मिक अवसर से हटकर इस्लाम धर्म का एक अनिवार्य या वाजिब काम है, रोज़े के बहुत से धार्मिक और शारीरिक फ़ायदे भी हैं। इस कार्यक्रम में हम रोज़े के फ़ायदे और मनुष्य के शरीर पर इसके पड़ने वाले प्रभाव पर चर्चा करेंगे।

 ख़ाने पीने से रुकना, विभिन्न धर्मों में प्रचलित है। इन धर्मों में इस बात पर पूर्ण सहमति है कि यह कार्य उनके शरीर और उनकी आत्मा पर प्रभाव डालते हैं। भारतीय योगगुरुओं और तपस्वी लोगों का कहना है कि खाने पीने से रुकना, आत्मा की पवित्रता, इरादे की मज़बूती और धैर्य व सहनशीलता में वृद्धि का कारण बनता है। उन परिज्ञानियों का भी यही कहना है जो ईश्वर के मार्ग में आगे बढ़ते हैं और अधिक अध्यात्म प्राप्त करना चाहते हैं, कि भीतर से ख़ाली पेट हो ताकि उसके भीतर परिज्ञान के प्रकाश देखे। इस्लाम धर्म में भी परिपूर्णता की प्राप्ति और ज्ञान हासिल करने के लिए भूख को महत्वपूर्ण कारक बताया गया है।

पैग़म्बरे इस्लाम (स) का कहना है कि भूख और प्यास द्वारा अपनी आंतरिक इच्छा से संघर्ष करो कि उसका पारितोषिक ईश्वर के मार्ग में संघर्ष है और ईश्वर के निकट भूख और प्यास से अधिक कोई बेहतर कार्य नहीं है। रोज़ेदार खाने पीने से रुककर, प्रतिरोध और सहनशीलता का अभ्यास करता है और  अपनी आवश्यकताओं पर ध्यान न देकर अधिक चाह व उदंडी इच्छा को शांत करता है और बहुत सी बुराईयों में गिरने से रोकता है किन्तु रोज़ा आत्मा के प्रशिक्षण और परिज्ञान की प्राप्ति के लिए दिल के घर को तैयार करने के अतिरिक्त शरीर के स्वास्थ्य के लिए भी बहुत लाभदायक है।

चिकित्सकों और विशेषज्ञों का मानना है कि यदि रमज़ान के महीने में सही ढंग से रोज़ा रखा जाए तो यह ख़ून की चर्बी, शर्करा की कमी और शरीर के हानिकारक पदार्थ को समाप्त करने का अच्छा अभ्यास है। चिकित्सकों का मानना है कि जैसा कि दिल एक क्षण काम करता है और एक क्षण के लिए रुक जाता है उसी प्रकार अमाशय के लिए भी आवश्यक है कि 11 महीने निरंतर काम करने के बाद एक महीने के लिए उसे आराम मिलना चाहिए।

चिकित्सा की प्राचीन किताबों, मुस्लिम और ग़ैर मुस्लिम चिकित्सकों और महापुरुषों की किताबों में रोज़े के चिकित्सकीय फ़ायदे के बारे में बहुत से लेख और बातें लिखी हुई हैं। यह लोग इस परिणाम पर पहुंचे कि रोज़े से अधिक मनुष्य के मिज़ाज के संतुलन और उसको बेहतर बनाने की कोई अच्छी दवा नहीं है। जैसा कि पैग़म्बरे इस्लाम का कथन है कि अमाशय हर मरज़ की जड़ है और खाने से बचना या कम खाना हर मरज़ की दवा है।

हकीमों का कहना है कि अधिक खाना और पीना 70 प्रकार की बीमारियों की जड़ है और इन मरज़ों को रोकने का बेहतरीन रास्ता खाने पीने से रुकना विशेषकर रोज़ा रखना है। इसके अतिरिक्त पारंपरिक चिकित्सकों, हकीमों और नवीन विशेषज्ञों ने भी रोज़े के लाभ के बारे में बयान किया है। चिकित्सा और सर्जरी के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार विजेता डाक्टर एलेक्सिस कार्ल मनुष्य अपरिचित प्राणी नामक अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि दुनिया के समस्त धर्मों में रोज़े की अनिवार्यता पर बल दिया गया है, रोज़े में आरंभ में तो भूख लगती है और कभी कभी कमज़ोरी का आभास करता है किन्तु इसके साथ ही कई छिपी विशेषताएं भी सामने आती हैं, गतिविधियां कम हो जाती हैं और आख़िरकार शरीर के समस्त अंग अपने ख़ास पदार्थों को आंतरिक संतुलन बनाने और रक्षा के लिए बलि चढ़ाते हैं और इस प्रकार रोज़ा शरीर की समस्त बनावटों को धोता है और उनको तरोताज़ा करता है। वह आगे कहते हैं कि रोज़ा रखने से ख़ून की शर्करा यकृत या लीवर में गिरती है और त्वचा के नीचे जमी चर्बी, प्रोटीन, ग्रंथियों और यकृत के सेल्स स्वतंत्र होते हैं और खाद्य पदार्थ में परिवर्तित हो जाते हैं।

अमाशय को शरीर का सबसे सक्रिय भाग कहा जा सकता है और जिस प्रकार शरीर के विभिन्न अंगों के लिए विश्राम आवश्यक है, अमाशय के लिए भी आवश्यक है कि वह भी आराम करे। कितना अच्छा होता कि एक निर्धारित खाद्य कार्यक्रम द्वारा एक महीने तक अपने अमाशय को विश्राम दिया जाए और यह क्रम एक महीने के कार्यक्रम से प्राप्त हो सकता है और इसके बहुत अधिक लाभ हैं।

रोज़ा, बदन के ख़राब पदार्थों को तबाह और अमाशय के आराम का कारण बनता है। अमरीकी चिकित्सक कारियो लिखते हैं कि हर बीमार व्यक्त को एक साल में कुछ दिन के लिए खाने से बचना चाहिए क्योंकि जब तक शरीर में खाना पहुंचता रहता है, विषाणु और रोगाणु विस्तृत होंगे किन्तु जब तक आहार से बचा जाता है, रोगायु कमज़ोर होते हैं। उन्होंने कहा कि इस्लाम ने जिस रोज़े को वाजिब किया है वह शरीर की सुरक्षा की सबसे बड़ी गैरेंटी है।

रोज़ेदार के आहार में अतिरिक्त वसा ख़ून में घुल जाती है, ज़्यादा और नुक़सानदेह मोटापा कमज़ोर होता है, दिल और मांस पेशिया, ग्रंथियां और यकृत व अमाशय व्यवस्थित व संतुलित रहते हैं और शरीर की रक्षा व्यवस्था तैयार हो जाती है। आपके लिए यह जानना रोचक है कि रोज़ा रखने के बहुत से समर्थक हैं यहां तक यह चीज़े ग़ैर मुस्लिम धर्म में भी पैदा हो गयी है। यूरोप के बहुत से चिकित्सकों ने मनुष्य के स्वास्थ्य की सुरक्षा और उसके शरीर पर पड़ने वाले उसके प्रभावों की समीक्षा की है। इसी संबंध में आस्ट्रिया के चिकित्सक बारसीलोस कहते हैं कि संभव है कि उपचार में भूखेपन का फ़ायदा, दवा से अधिक लाभदायक है। डाक्टर हेल्बा अपने मरीज़ों को कुछ दिनों के लिए खाना छोड़ने की सलाह देती हैं और उसके बाद हल्के आहार देती हैं।

रमज़ान मन के साथ साथ शरीर को विषैले तत्वों से मुक्त होने का मौका देता है। पूरे दिन न खाने पीने के चलते एनर्जी हासिल करने के लिए शरीर, अपने अंदर मौजूद फ़ैट का इस्तेमाल करने लगता है। जब ऐसा होता है तो फ़ैट के साथ जमा विषैले तत्व भी बाहर निकलने लगते हैं। आपका लीवर, किडनी और अन्य अंग मिलकर इन विषैले तत्वों को शरीर से बाहर धकेल देते हैं।

कुछ दिन भूखे रहकर वज़न घटाने वाले लोग आमतौर पर जैसे ही खाना शुरू करते हैं उनका वजन फिर बढ़ जाता है, मगर रमज़ान की प्रक्रिया अलग है। दिन के वक्त लगातार भूखे रहने से धीरे-धीरे आपका पेट सिकुड़ने लगता है। आपका शरीर और दिमाग कम भोजन में काम चलाने के लिए तैयार होने लगता है चूंकि यह प्रक्रिया एक माह चलती है इसलिए शरीर और मन दोनों काबू में आ जाते हैं। अगर कोई चाहे तो रमज़ान के बाद वेट लॉस की मुहिम शुरू कर सकता है। भूखा रहने से ग्लूकोज़ को एनर्जी में तब्दील करने की प्रक्रिया तेज़ हो जाती है। इससे शरीर में शुगर का लेवल कम होने लगता है। रोजा रखने से ख़ून में फैट की मात्रा भी कम होने लगती है। रोज़ा खोलते वक्त लोग आमतौर पर नींबू की शिकंजी, फल, सलाद, खजूर वगैरा खाते हैं। यह सभी चीजें सेहत के लिए अच्छी होती हैं। दिन भर न खाने के बाद जब आप कुछ खाते हैं तो शरीर उस भोजन में मौजूद हर पोषक तत्व को हासिल करने की कोशिश करता है। ऐसा एडिपोनेक्टिन हार्मोन में बढ़ोत्तरी के चलते होता है। यह हार्मोन भूखा रहने और देर रात के खाने के चलते बढ़ता है। यह भांसपेशियों की पोषक तत्वों को सोखने की क्षमता को बढ़ा देता है। इससे आपके पूरे शरीर को फायदा पहुंचता है। आम दिनों में हम भूख के बाद इतना खाते पीते हैं कि हमारा शरीर खाने पीने में मौजूद विटामिन, मिनरल्स व प्रोटीन वगैरा को पूरा तरह से इस्तेमाल ही नहीं कर पाता और धीरे धीरे ये उसकी आदत में शुमार हो जाता है। मगर रमज़ान का एक माह उसे फिर पटरी पर ला देता है।

चिकित्सा विज्ञान की एक उपलब्धि इस बात का चिन्ह है कि रोज़े से शरीर में वह पदार्थ पैदा हो जाते हैं जो सीमा से अधिक होते हैं और यह पदार्थ, शरीर में रोगाणुओं, जीवाणुओं और वयारस तथा कैंसर के सेल्ज़ को समाप्त करने में सहायता प्रदान करते हैं । सामान्य हालत में शरीर में मौजूद विषाणु और वायरस गुप्त रूप से सक्रिय होते हैं और जब मनुष्य का बदन कमज़ोर हो जाता तो यह जीवाणु तेज़ी से सक्रिय होते हैं और विध्वसंक कार्यवाहियां शुरु कर देते हैं और यह कैंसर के सेल्ज़, ख़राब कोशिकाओं को खाना शुरु कर देते हैं। वास्तव में यह कहा  जा सकता है कि रोज़ा रखना, शरीर की धुलाई और सफ़ाई और बहुत सी बीमारियों की रोकथाम का कारण बनता है।

इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम इफ़्तार, मीटे से शुरु करते थे और उससे रोज़ा खोलते हैं और यदि वह चीज़ नहीं मिलती थी तो वह कुछ खजूरों से रोज़ा खोलते थे और यदि वह भी नहीं मिलती थी तो गुनगुने पानी से रोज़ा खोलते थे। वह फ़रमाते हैं कि यह वस्तुएं अमाशय और यकृत को साफ़ करती हैं और सिर दर्द को समाप्त कर देती हैं।

बुधवार, 20 मार्च 2024 16:10

बंदगी की बहार- 9

इस कार्यक्रम में हम आपको यह बतायेंगे कि तुर्की, ताजिकिस्तान, रूस और कुछ अरब देशों में रमज़ान का पवित्र महीना कैसे मनाया जाता है और इस महीने में कौन से कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।

रमज़ान का पवित्र महीना आते ही विश्व के विभिन्न क्षेत्रों विशेषकर इस्लामी देशों में एक विशेष प्रकार का माहौल उत्पन्न हो जाता है जिसे शब्दों में नहीं बयान किया जा सकता। आपको अवश्य याद होगा कि पिछले दो कार्यक्रमों में हमने यह बताया था कि कुछ इस्लामी देशों में इस महीने में क्या परम्परायें होती हैं। तुर्की भी एक इस्लामी देश है। इस देश की जनसंख्या लगभग आठ करोड़ 20 लाख है जिनमें 98 प्रतिशत मुसलमान हैं।

तुर्की की अधिकांश जनसंख्या के मुसलमान होने के दृष्टिगत रमज़ान के पवित्र महीने में इस देश का वातावरण विशेष प्रकार का हो जाता है। रमज़ान का पवित्र महीना आरंभ होने से पहले ही इस देश की समस्त मस्जिदों में रमज़ान के आगमन की तैयारी आरंभ हो जाती है। मस्जिद के चारों ओर विशेष प्रकार की लाइटिंग व लोस्टर दिखाई देते हैं और उन पर "ग्यारह महीने का सुल्तान, रमज़ान का स्वागत है और रमज़ान बर्कत का महीना जैसे वाक्य लिखे होते हैं। अय्यूब सुल्तान मस्जिद, सुलैमानिया मस्जिद, मीनार सिनान मस्जिद और सुल्तान अहमद जैसी देश की बड़ी मस्जिदें हैं जिन्हें रमज़ान के पवित्र महीने में अच्छी तरह सजाया जाता है और इन मस्जिदों में रमज़ान के पवित्र महीने में बहुत बड़ी संख्या में मुसलमान नमाज़ पढ़ते हैं और शबे कद्र सहित दूसरे बड़े कार्यक्रम किये जाते हैं।

रमज़ान के पवित्र महीने में तुर्की में जो वातावरण उत्पन्न हो जाता है उसके कारण रोज़ेदारों में विशेष प्रकार की उत्सुकता व अध्यात्मिकता दिखाई देती है। तुर्की में जो विशेष कार्यक्रम होते हैं उनमें से एक "चाऊशी खानी" है। यह कार्यक्रम पारम्परिक ढंग से भोर में होता है। उस समय मस्जिदों में दुआएं पढ़े जाने के अलावा प्राचीन परंपरा के अनुसार भोर में चाऊशी पढ़ने वाले सड़कों, गलियों और देहातों में जाते हैं और सहरी खाने और नमाज़ पढ़ने के लिए लोगों को जगाते हैं।

तुर्की में एक परम्परा यह भी है कि रोज़ा खोलने के समय सड़कों के किनारे सामूहिक रूप से दस्तरखान बिछाया जाता है और यह कार्य लोगों के मध्य अधिक एकता व समरसता का कारण बनता है। इन दस्तरखानों पर विभिन्न प्रकार की ताज़ा रोटियां पेश की जाती हैं, सूप, सब्ज़ी, ज़ैतून और इसी प्रकार की दूसरी चीज़ें रखी जाती हैं और विभिन्न प्रकार के फास्ट फूड भी रखे जाते हैं।

रमज़ान के पवित्र महीने के खत्म हो जाने पर जो ईदे फित्र मनाई जाती है उसके लिए तुर्की में तीन दिन की छुट्टी होती है और तुर्की के लोग कई दिन पहले से ईद मनाने की तैयारी करने लगते हैं। ईदे फित्र से एक दिन पहले सरकारी कार्यालयों और संगठनों आदि में कार्य आधा हो जाता है यानी रोज़ की भांति पूरे दिन नहीं बल्कि आधे समय काम करना पड़ता है और शेष समय में लोग ईद की ज़रूरी खरीदारी करते हैं और जब ईद हो जाती है तो तीन दिनों तक ईद की खुशी का जश्न मनाया जाता है। इस दौरान समस्त सरकारी कार्यालय यहां तक कि संग्रहालय और समस्त पर्यटन स्थलों व केन्द्रों में भी छुट्टी हो जाती है। ईद की सुबह तुर्की के लोग ईदे फित्र की नमाज़ पढ़ने के लिए मस्जिदों में जाते हैं और उसके बाद मिलने जुलने का क्रम आरंभ हो जाता है जो तीन दिनों तक चलता- रहता है।

रमज़ान का पवित्र महीना महान व सर्वसमर्थ ईश्वर के निकट सबसे प्रिय महीना है, यह ईश्वर से प्रायश्चित करने का महीना है, यह ईश्वर की मेहमानी का महीना है और यह वह महीना है जिसमें पवित्र कुरआन नाज़िल हुआ था। यह महीना ताजिकिस्तान में दोस्ती, प्रेम और दूसरे इंसानों की सहायता करने के नाम से प्रसिद्ध है और ताजिकिस्तान के लोग इस महीने में दिलों को द्वेष से पवित्र बनाते हैं और एक दूसरे से दोस्ती व मिलाप को प्राथमिकता देते हैं। ताजिकिस्तान की जनसंख्या इस समय लगभग 72 लाख है जिसमें से 95 प्रतिशत मुसलमान हैं।

ताजिकिस्तान के लोगों का मानना है कि महान ईश्वर से उपासना व प्रार्थना के लिए रमज़ान का पवित्र महीना बेहतरीन अवसर है। वे इस महीने में नमाज़ पढ़ते हैं, पवित्र कुरआन की तिलावत करते हैं और इसी तरह वे इस महीने में विशेष शेर पढ़ते हैं। इस प्रकार वे इस महीने की प्रतिष्ठा को सुरक्षित रखते और अपने बच्चों तथा आगामी पीढ़ियों तक हस्तांतरित करते हैं।

ताजिकिस्तान के लोग “रब्बी मन” नाम का एक विशेष कार्यक्रम करते हैं। यह कार्यक्रम रोज़ा खोलने के बाद होता है और बच्चे अलग- अलग टोलियों व दलों के रूप में गलियों में निकलते और लोगों के घरों पर जाते हैं। घरों पर पहुंचने के बाद सबसे पहले वे घर के मालिक को रमज़ान के आगमन की बधाई देते हैं और उसके बाद कई बच्चे एक साथ मिलकर “रब्बी मन” पढ़ने लगते हैं। रब्बी मन में महान ईश्वर का गुणगान होता है। यह बच्चे इस महीने में घर के मालिक के लिए महान ईश्वर से क्षमा याचना करते हैं और घर का मालिक भी उन्हें उपहार देता है। ताजिकिस्तान के लोगों का मानना है कि रमज़ान के पवित्र महीने में शेर पढ़ने वाले शेर पढ़कर इस्लामी मूल्यों की रक्षा करने और अतीत के लोगों की पसंद के अनुसार इस्लाम धर्म के प्रचार- प्रसार का प्रयास करते हैं।

विश्व के दूसरे स्थानों व क्षेत्रों के मुसलमानों की भांति ताजिकिस्तान के लोग भी शबे कद्र अर्थात क़द्र की रात को बहुत महत्व देते हैं और इस रात जाग कर महान ईश्वर से प्रायश्चित करते हैं। ताजिकिस्तान के लोगों का मानना है कि ईश्वरीय वादे के अनुसार कद्र की रात को लोगों के समस्त पाप माफ कर दिये जाते हैं।

ताजिकिस्तान के लोग धार्मिक समारोहों और राष्ट्रीय परम्पराओं के साथ ईदे फित्र का जश्न मनाते हैं। ताजिकिस्तान के लोग ईद के दिन सबसे पहले ईद की नमाज़ पढ़ते और प्रार्थना करते हैं। ताजिकिस्तान के अधिकांश लोगों की एक परम्परा यह है कि अगर इस दिन बेटा पैदा होता है तो उसका नाम रमज़ान रखते हैं और अगर लड़की पैदा होती है तो उसका नाम सौमिया या सुमय्या रखते हैं जो इस बात की सूचक होती है कि वह ईदे फित्र को पैदा हुआ है। ताजिकिस्तान के लोगों का यह कार्य उनके मध्य ईदे फित्र के महत्व का सूचक है।

अरब देशों में भी अरबी संस्कृति के साथ रमज़ान का पवित्र महीना विशेष ढंग से मनाया जाता है। अरब लोगों के मध्य एक अच्छी परम्परा भोर के समय सहरी खाने के लिए लोगों को जगाना है। अधिकांश अरब देशों में जगाने वाले लोगों को मुसहराती कहा जाता है। मुसहराती, लोगों को भोर में सहरी खाने के लिए जगाते हैं। वे स्थानीय वस्त्र धारण करते, ऊंची आवाज़ में गाते और बजाते हैं। वे कहते हैं" हे सोने वालों उठो और सदैव रहने वाले ईश्वर की   उपासना करो। इसी प्रकार वे कहते हैं" हे सोने वालों उठो और सहरी खाओ, रमज़ान तुमसे मिलने के लिए आया है।"

लेबनान में भी जब रमज़ान का पवित्र महीना आता है तो लोग दोपहर बाद जो एक दूसरे के यहां मिलने- जुलने के लिए जाते हैं उसका समय बदल कर रोज़ा खोलने के बाद रातों को कर देते हैं और लेबनानी रातों को एक दूसरे के पास बैठते हैं और वे इस चीज़ को सहरा या सोहरा कहते हैं।

लेबनानियों के खानों के जो दस्तरखान होते हैं उन पर विभिन्न प्रकार के खाने रखे जाते हैं। लेबनानियों के दस्तरखान खानों की विविधता की दृष्टि से विश्व के महत्वपूर्ण दस्तरखान होते हैं। उनके कुछ महत्वपूर्ण खानों के नाम इस प्रकार हैं जैसे तबूले, फतूश, मुतबल बादुमजान, हुमुस, किब्बे, दुल्मेह बर्गे मू, अराइस, विभिन्न प्रकार के समोसों और फत्ते की ओर संकेत किया जा सकता है।

लेबनानियों के मध्य जो मिठाईयां खाई जाती हैं वे भी बहुत प्रकार की हैं। ये मिठाइयां प्रायः रोज़ा खोलने के बाद खाई जाती हैं। उनमें से कुछ के नाम इस प्रकार हैं" जैसे कताएफ़, कनाफेह और मफरुकेह। ये वे मिठाइयां हैं जिन्हें लेबनान में लोग बहुत पसंद करते हैं।

सऊदी अरब में भी लोग रमज़ान महीने में रोज़ा रखते हैं और सुबह लोग विभिन्न क्षेत्रों से उमरा के संस्कारों को अंजाम देते और उपासना करते हैं। सऊदी अरब में शाम की नमाज़ के बाद भी लोग उपासना व प्रार्थना करते हैं। रमज़ान के पवित्र महीने में सऊदी अरब के लोगों का खाना  खजूर, अरबी कहवा, कीमा किया हुआ मांस और मछली होती है।

सऊदी अरब के लोग एक महीने तक रोज़ा रखने के बाद ईदे फित्र के शुभ अवसर पर एक दूसरे को बधाई देते हैं और सड़कों व गलियों में काफी भीड़ होने के बावजूद लोग अपने- अपने मोहल्लों में ईद की नमाज़ आयोजित करते हैं। सऊदी अरब में ईदे फित्र के दिन इस देश के समस्त शहरों को सजाया जाता है और वहां तीर्थयात्रियों के आव- भगत की तैयारी की जाती है। सड़कों, चौराहों यहां तक बागों को भी लाइटिंग से सजाया जाता है। सऊदी अरब में 15 दिनों की ईदे फित्र की छुट्टी होती है जिसमें अधिकांश लोग यात्रायें करते और घूमते- फिरते हैं।

संयुक्त अरब इमारात में प्राचीन परम्परा के अनुसार आधे शाबान महीने से ही रमजान महीने की ईद मनाई जाने लगती है। संयुक्त अरब इमारात में शाबान महीने के मध्य में “हक खुदा” के नाम से एक जश्न मनाया जाता है। इस जश्न में बच्चे विशेष प्रकार का वस्त्र धारण करके भाग लेते हैं। उनके वस्त्रों के उपर सोने के धागों से सिलाई की जाती है। यह जश्न वास्तव में रमज़ान महीने के आगमन का जश्न होता है।

संयुक्त अरब इमारात के लोग सामूहिक रूप से रोज़ा खोलते हैं और मोहल्ले के समस्त लोग शाम की अज़ान के समय एकत्रित हो जाते हैं इस प्रकार रमजान के पवित्र महीने में संयुक्त अरब इमारात में बहुत अच्छा व सुन्दर दृश्य उत्पन्न हो जाता है। संयुक्त अरब इमारात में विभिन्न मोहल्लों और मस्जिदों को लाइट से सजाया जाता है। संयुक्त अरब इमारात में लोग रमज़ान महीने के अंतिम दिन नया वस्त्र खरीदते हैं। इसी प्रकार संयुक्त अरब इमारात में कुछ लोग ईद से एक दिन पहले घर की कुछ चीज़ों को बदल कर ईद की तैयारी करते हें।

रूस की जनसंख्या लगभग 14 करोड़ 70 लाख है जिनमें दो करोड़ से अधिक मुसलमान हैं। रूस के अधिकांश मुसलमान काकेशिया, तातारिस्तान और बाशक़िरीस्तान में रहते हैं परंतु रूस के लगभग समस्त बड़े शहरों में मस्जिदें हैं और उनमें रमज़ान के पवित्र महीने में सामूहिक रूप से रोज़े खोले जाते हैं और धर्मगुरू भाषण देते हैं। अलग- अलग क्षेत्रों में खाने और परम्परायें भी भिन्न हैं किन्तु चाय और खजूर हर जगह समान है। रूस के मास्को और सेन पीटरबर्ग जैसे बड़े शहरों में लोग सामूहिक रूप से नमाज़ पढ़ते और रोज़ा खोलते हैं। रमज़ान के पवित्र महीने में रूस में एक बहुत अच्छी परम्परा दूसरों को इफ्तारी देना यानी रोज़ादारों को खाना खिलाना है। रूस के जो लोग मुसलमान नहीं है वे रमज़ान महीने में दूसरों को इफ्तार देने से ही समझ जाते हैं कि यह रमज़ान का महीना है। रमज़ान महीने में रूस की राजधानी मास्को में कैंप लगाये जाते हैं। यह कार्यक्रम मास्को में वर्ष 2006 से होता है। इन कैंपों से इफ्तारी दी जाती है, इसी प्रकार इन कैंपों के माध्यम से पवित्र कुरआन की तिलावत और उससे संबंधित कार्यक्रम कराये जाते हैं। इसी प्रकार इन कैंपों से ग़ैर मुसलमानों को परिचित कराने के कार्यक्रम भी चलाये जाते हैं। बहरहाल रूसी मुसलमान भी बड़े हर्ष व उल्लास के साथ ईदुल फित्र का जश्न मनाते और एक दूसरे को बधाई देते हैं।

इमाम जफार सादीक अलैहिस्सलाम ने एक रिवायत में नौरोज़ की अहमियत को बयान फरमाया हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , इस रिवायत को "मुस्तद्रक अलवसाएल"पुस्तक से लिया गया है। इस कथन का पाठ इस प्रकार है:

:قال الامام الصادق علیه السلام

ما من یوم نیروز الا ونحن نتوقع فیه الفرج لانه من أیامنا وأيام شيعتنا

हज़रत इमाम जफार सादीक अलैहिस्सलाम ने फरमाया:

कोई ऐसा नौरोज़ नहीं है मगर यह कि उसमें हम कायम ए आले मुहम्मद के ज़ुहूर के मुंतज़िर होते हैं क्योंकि नौरोज़ हमारे और हमारे शियों के दिनों में से हैं।

मुस्तद्रक अलवसाएल,भाग 6,पेंज 352

नवरोज का त्योहार ईरानी समुदाय में मनाया जाता है. यहां के लोग इसे नए साल का आगमन मानते हैं. ईरानी न्यू ईयर 20 मार्च को पड़ रहा है. जानें क्यों मनाया नवरोज का त्योहार, क्या है

अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से पूरी दुनिया में नए साल का जश्न 1 जनवरी को मनाया जाता है. लेकिन अलग-अलग धर्मों में कैलेंडर के हिसाब से नया साल आता है. हिंदू और इस्लामिक धर्म का अपना अलग कैलेंडर है और इसी को ध्यान में रखकर लोग अपना नववर्ष मनाते हैं. ईरानी समुदाय के लोग इस खास मौके पर अपनों को, दोस्तों और रिश्तेदारों को शुभकामनाएं भेजते हैं.

यहां के लोग सर्दियों के जाने और वसंत के आने की खुशी में भी नवरोज को सेलिब्रेट करते हैं. नवरोज के मौके पर अपनों को शुभकामना संदेश भेजना कॉमन है. ये अलग और अट्रैक्टिव नवरोज शुभकामना संदेश अपनों को भेजें.

क्यों मनाया जाता है नवरोज का त्योहार

नवरोज का त्योहार एक प्राचीन ईरानी त्योहार है. ये नए साल के आगमन से जुड़ा हुआ है और ईरानी इसे सेलिब्रेट करते हैं. वैसे अलग-अलग देशों में अलग टाइमिंग पर इसे लोग अपने-अपने रीति-रिवाजों से मनाते हैं. ईरानीयों में माना जाता है कि ये सर्दियों के जाने और वसंत ऋतु के आगमन को दर्शाता है. इसे नेचर से प्रेम का त्योहार भी माना जाता है. देखा जाए तो नवरोज नेचर को थैंक्यू देने का दिन है. बता दें कि भारत के ईरानी शहंशाही पंचांग के अनुसार नवरोज को मनाते हैं. इस बार इसका दिन 20 मार्च तय किया गया है

नवरोज को मनाने का तरीका

नए साल के जश्न में ईरानी अपनों से मिलते-जुलते हैं और उन्हें गिफ्ट तक देते हैं. त्योहार के आने से पहले घरों में साफ-सफाई का काम शुरू हो जाता है. इस दौरान घरों को सजाने के लिए रंगोली तक बनाई जाती है. वैसे जश्न की बात हो टेस्टी फू्ड्स को कैसे इग्नोर किया जा सकता है. ईरानी समुदाय के लोग इस मौके पर खाने पीने की पारंपरिक चीजें तक तैयार करते हैं. और लोग खुशी में नाचते-गाते भी हैं.

नौरोज़ या नवरोज़ (फारसी: نوروز‎‎ नौरूज़; शाब्दिक रूप से "नया दिन"), ईरानी नववर्ष का नाम है, जिसे फारसी नया साल भी कहा जाता है और मुख्यतः ईरानियों द्वारा दुनिया भर में मनाया जाता है। यह मूलत: प्रकृति प्रेम का उत्सव है। प्रकृति के उदय, प्रफुल्लता, ताज़गी, हरियाली और उत्साह का मनोरम दृश्य पेश करता है। प्राचीन परंपराओं व संस्कारों के साथ नौरोज़ का उत्सव न केवल ईरान ही में ही नहीं बल्कि कुछ पड़ोसी देशों में भी मनाया जाता है। इसके साथ ही कुछ अन्य नृजातीय-भाषाई समूह जैसे भारत में पारसी समुदाय भी इसे नए साल की शुरुआत के रूप में मनाते हैं।पश्चिम एशिया, मध्य एशिया, काकेशस, काला सागर बेसिन और बाल्कन में इसे 3,000 से भी अधिक वर्षों से मनाया जाता है। यह ईरानी कैलेंडर के पहले महीने (फारवर्दिन) का पहला दिन भी है। यह उत्सव, मनुष्य के पुनर्जीवन और उसके हृदय में परिवर्तन के साथ प्रकृति की स्वच्छ आत्मा में चेतना व निखार पर बल देता है। यह त्योहार समाज को विशेष वातावरण प्रदान करता है, क्योंकि नववर्ष की छुट्टियां आरंभ होने से लोगों में जो ख़ुशी व उत्साह दिखाता है वह पूरे वर्ष में नहीं दिखता।

हिजरी शमसी कैलेण्डर के अनुसार नौरोज़ या पहली फ़रवरदीन नव वर्ष का उत्सव दिवस है। नौरोज़ का उदगम तो प्राचीन ईरान ही है किंतु वर्तमान समय में ईरान, ताजिकिस्तान, तुर्कमनिस्तान, क़िरक़ीज़िस्तान, उज़्बेकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, आज़रबाइजान, भारत, तुर्की, इराक़ और जार्जिया के लोग नौरोज़ के उत्सव मनाते हैं। नौरोज़ का उत्सव "इक्वीनाक्स" से आरंभ होता है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है समान। खगोलशास्त्र के अनुसार यह वह काल होता है जिसमें दिवस और रात्रि लगभग बराबर होते हैं। इक्वीनाक्स उस क्षण को कहा जाता है कि जब सूर्य, सीधे भूमध्य रेखा से ऊपर होकर निकलता है। हिजरी शमसी कैलेण्डर का नव वर्ष इसी समय से आरंभ होता है और यह नए वर्ष का पहला दिन होता है। ईसवी कैलेण्डर के अनुसार नौरोज़ प्रतिवर्ष 20 या 21 मार्च से आरंभ होता है।

यह एक ऐसा बेहतरीन अवसर होता है जो पिछले वर्ष की थकावट व दिनचर्या के कामों से छुटकारा व विश्राम की संभावना उत्पन्न कराता है। नववर्ष, अतीत पर दृष्टि डालने और आने वाले जीवन को उत्साह व ख़ुशियों से भर अनुभव से जारी रखने का नाम है। प्रकृति की हरियाली और हरी भरी पत्तियों से वृक्षों का श्रंगार, नये व उज्जवल भविष्य का संदेश सुनाती है। इस अवसर पर प्रचलित बेहतरीन परंपराओं में से एक है सगे संबंधियों से भेंट। इस परंपरा में इस्लाम धर्म में बहुत अधिक बल दिया गया है। यहाँ तक कि नौरोज़ को सगे संबंधियों से भेंट और अपने दिल की बात बयान करने का बेहतरीन अवसर माना जाता है जो परिवारों के मध्य लोगों के संबंधों को अधिक सृदृढ़ करता है। यह त्योहार समाज में नववर्ष के सकारात्मक प्रभाव को दर्शाता है।

नववर्ष के पहले ही दिन से लोगों का एक दूसरे के यहां आने जाने का क्रम आरंभ हो जाता है। समस्त परिवारों में यह प्रचलन है कि वे सबसे पहले परिवार के सबसे बड़े सदस्य के यहां जाते हैं और उन्हें नववर्ष की बधाई देते हैं। उसके बाद परिवार के बड़े सदस्य अन्य लोगों के यहां बधाई के लिए जाते हैं। इस अवसर पर परिवार के अन्य सदस्य एक साथ एकत्रित होते हैं और यह क्रम तेरह तारीख़ तक या महीने के अंत तक जारी रहता है। परिवार के सदस्यों, निकटवर्तियों, मित्रों और पड़ोसियों से मिलने के अतिरिक्त दुखी व संकटग्रस्त लोगों से भी मिलना, नौरोज़ के प्रचलित संस्कारों में से एक है। इस भेंट व मेल मिलाप में यह भी प्रचलित है कि पहले उस व्यक्ति के घर जाते हैं जिसके वर्ष के दौरान किसी सगे संबंधी का निधन हो गया हो। इस संस्कार को नोए ईद भी कहा जाता है। यदि किसी घर में किसी सगे संबंधी का निधन हो जाता है जो शोकाकुल परिवार ईद के पहले दिन घर में बैठता है और सामान्य रूप से परिवार के बड़े सदस्य शोकाकुल परिवार से काले कपड़े उतरवाते हैं और उन्हें नये कपड़े उपहार में देते हैं। ईद के पहले दिन या नोए ईद का प्रतीकात्मक आयाम है और साथ ही नौरोज़ के मेल मिलाप का वातावरण भी उपलब्ध कराता है। भेंटकर्ता, ईद के पहले दिन शोकाकुल परिवार को सांत्वना नहीं देते बल्कि उनके लिए ख़ुशी की कामना करते हैं।

कई अन्य देशों में भी ईरानी लोगों द्वारा यह त्यौहार मनाया जाता है, इन जगहों में यूरोप, अमेरिका भी शामिल है।

शाहनामा नौरोज़ के त्यौहार को महान जमशेद के शासनकाल से जोड़ता है। पारसी ग्रंथों के मुताबिक़ जमशेद ने मानवता की एक ऐसे मारक शीतकाल से रक्षा की थी जिसमें पृथ्वी से जीवन समाप्त हो जाने वाला था।[6] यह पौराणिक राजा जमशेद, पुरा-ईरानी लोगों के शिकारी से पशुपालक के रूप में परिवर्तन और अधिक स्थाई जीवन शैली अपनाने के काल का प्रतिनिधित्व भी करते हैं। शाहनामा और अन्य ईरानी मिथकशास्त्रों में जमशेद द्वारा नौरोज़ की शुरुआत करने का वर्णन मिलता है। पुस्तक के अनुसार, जमशेद ने एक रत्नखचित सिंहासन का निर्माण करवाया और उसे देवदूतों द्वारा पृथ्वी से ऊपर उठवाया और स्वर्ग मने स्थापित करवाया तथा इसके बाद उस सिंहासन पर सूर्य की तरह दीप्तिमान होकर बैठा। दुनियावी लोग और जीव आश्चर्य से उसे देखने हेतु इकठ्ठा हुए और उसके ऊपर मूल्यवान वस्तुयें चढ़ाईं, और इस दिन कोई नया दिन (नौ रोज़) कहा। यह ईरानी कालगणना के अनुसार फ़रवरदीं माह का पहला दिन था।

 

सुप्रीम लीडर ने फरमाया, दुआ हमको हमेशा करनी चाहिए विशेषकर उन अवसरों पर जब दुआ के कबूल होने की बात कही गई है मिसाल के तौर पर शुभ रातों को, आधी रात को, रमज़ान अलमुबारक में भोर के समय कि जब अल्लाह तआला दुआ करने पर बहुत बल दिया गया है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली खामेनेई ने फरमाया, दुआ की विभिन्न विशेषताएं हैं दुआ की कुछ एसी विशेषताएं भी हैं जो बलाओं के दूर करने से भी अधिक महत्वपूर्ण हैं। दुआ के माध्यम से हमारे और ईश्वर के मध्य संपर्क स्थापित होता है।

अतः आप देखते हैं कि इमामों द्वारा दी गयी शिक्षाओं में दुआ की विशेष स्थान है यहां तक कि इमामों ने धार्मिक शिक्षाओं को दुआ के माध्यम से बयान किये हैं।

हमने बार बार कहा है कि सहीफये सज्जादिया की दुआओं में बहुत ही गूढ़ ईश्वरीय व इस्लामी शिक्षाएं नीहित हैं और इंसान कम ही दूसरी हदीसों या इमामों के बयानों में इन शिक्षाओं को पाता है। इमामों ने इन शिक्षाओं को दुआओं के माध्यम से बयान किया है।

यानी इमामों ने हमारा ध्यान दुआओं की ओर दिलाना चाहा है। अतः दुआ के माध्यम से हम ईश्वर से संपर्क स्थापित करते हैं और उन शिक्षाओं से अवगत होते हैं जो दुआओं में हैं। इसी प्रकार दुआएं बलाओं को भी टालती हैं और हम ईश्वर से प्रार्थना करें कि वह दुआओं के माध्यम से बलाओं को टाल दे।

हमेशा दुआ करें विशेषकर उन अवसरों पर जब दुआ के कबूल होने की बात कही गयी है। मिसाल के तौर पर शुभ रातों को, आधी रात को, भोर के समय कि जब महान ईश्वर से प्रार्थना करने पर बहुत बल दिया गया है। इसी तरह उस समय ईश्वर से दुआ करने पर बल दिया गया है जब इंसान के दिल की विशेष आध्यात्मिक स्थिति हो जाती है। एसे समय में ज़रूर दुआ करना चाहिये और महान ईश्वर दुआ को कबूल करता है।

एक रवायत है जिसमें पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं” हर समूह का प्रमुख उस समूह का सेवक होता है।“

पैग़म्बरे इस्लाम के इस कथन के दो अर्थ हो सकते हैं पहला अर्थ यह हो सकता है कि जो व्यक्ति सबसे अधिक सेवा करता है वह प्रमुख बनने का अधिकार रखता है। इस आधार पर हम यह समझने के लिए कि क़ौम व समुदाय का प्रमुख कौन है वंश और नाम आदि का पता लगाने नहीं जा रहे हैं बल्कि हम यह देखना चाहते हैं कि कौम व समुदाय की सेवा कौन सबसे अधिक करता है वही कौम का प्रमुख है।

या पैग़म्बरे इस्लाम का जो यह कथन है कि हर समूह का प्रमुख उस दल का सेवक होता है” इसका अर्थ यह हो सकता है कि हम यह कहें कि जो किसी कौम का प्रमुख व नेता होता है उसे कौम का सेवक होना चाहिये चाहे जिस कारण से भी उसे प्रमुख बनाया गया हो।

कभी जो यह कहा जाता है कि अधिकारी जनता के नौकर हैं तो इस पर कुछ लोग आपत्ति जताते और कहते हैं कि श्रीमान नौकर शब्द का प्रयोग न करें। ठीक है इस शब्द का प्रयोग पैग़म्बरे इस्लाम ने किया है सेवक यानी नौकर। यह शब्द जहां जनता की सेवा के महत्व व मूल्य को दर्शाता है वहीं इस बात का सूचक है कि जनता को लाभ पहुंचाना और उसके लिए परिश्रम करना कितना महत्वपूर्ण है।

जब हम या आप अमुक विभाग या अमुक जनसंख्या के प्रमुक बन जाते हैं तो हमारे मन में एक बात आती है और वह यह कि आम लोगों से हटकर हमारी एक ज़िम्मेदारी बनती है। रवायत यह नहीं कह रही है कि जिस कारण से भी अगर आप किसी जनसंख्या व राष्ट्र के प्रमुख बन गये हैं तो फौरन आप पर एक दायित्व व ज़िम्मेदारी आ जाती है और वह उसकी सेवा है।

देखिये इसका अर्थ क्या है! और जो भौतिक दुनिया की संस्कृति में प्रचलित है उसका क्या अर्थ है! जैसे ही वह केवल अध्यक्ष व प्रमुख पद की कुर्सी पर बैठता है मानो एक प्रकार की दीवार उसके चारों ओर खिंच जाती है और किसी को इस बात का अधिकार नहीं है कि वह उस दीवार को पार करे। आप अध्यक्ष हैं बहुत अच्छा है। आपका दायित्व सेवा करना है।

कार्यक्रम के आरंभ में हमने पैग़म्बरे इस्लाम का जो कथन बयान किया था उसके अर्थ के संबंध में पहली संभावना यह है कि अगर हम यह देखना चाहें कि कौन प्रमुख है तो देखें कि कौन सबसे अधिक सेवा करता है ताकि हम यह समझें कि वही प्रमुक है।