رضوی

رضوی

मिस्र और विश्व के प्रतिष्ठित इस्लामी धार्मिक संस्थान अलअज़हर विश्व विद्यालय के प्रमुख ने मिस्र के नील टीवी से बात करते हुए शिया-सुन्नी मतभेदों के बारे में बड़ी अहम बातें कही हैं।

अहमद तैयब से चैनल के पत्रकार ने पूछा कि क्या उनकी नज़र में शियों की आस्थाओं में को समस्या नहीं हैं? तो उन्होंने कहा कि कोई समस्या नहीं है, 50 साल पहले शैख़ शलतूत ने फ़तवा दिया था कि शिया मत, इस्लाम का पांचवां मत है और अन्य मतों की तरह है। पत्रकार ने पूछा कि हमारे युवा शिया हो रहे हैं, हम क्या करें? तो अहमद तैयब ने कहा कि हो जाएं, जब कोई व्यक्ति हनफ़ी से मालेकी हो जाए तो हमें कोई समस्या नहीं होती उसी तरह से अगर ये युवा भी चौथे मत से पांचवें मत में जा रहे हैं। नील चैनल के पत्रकार ने पूछा कि कहा जाता है कि शियों का क़ुरआन भिन्न है, तो शैख़ ने कहा कि ये बूढ़ी औरतों की बकवास है, शियों के क़ुरआन और हमारे क़ुरआन में कोई अंतर नहीं है यहां तकि उनकी लिखाई भी हमारी लिखाई की तरह है।

 

पत्रकार ने पूछा कि एक अरब देश के 23 धर्मगुरुओं ने फ़तवा दिया है कि शिया काफ़िर हैं, इस बारे में आप क्या कहते हैं? तो अलअज़हर विश्व विद्यालय के प्रमुख ने कहा कि ये मतभेद विदेश षड्यंत्रों का भाग है ताकि शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच मतभेद पैदा किए जा सकें। पत्रकार ने कहा कि मैं एक गंभीर प्रश्न पूछना चाहता हूं और वह यह है कि शिया अबू बक्र व उमर को नहीं मानते, एेसे में आप उन्हें किस प्रकार मुसलमान कह सकते हैं? शैख़ अहमद तैयब ने उत्तर में कहा कि ठीक है वे नहीं मानते लेकिन क्या अबू बक्र व उमर को मानना, इस्लामी आस्थाओं का भाग है? अबू बक्र व उमर का मामला एेतिहासिक है और इतिहास का धार्मिक आस्थाओं से कोई लेना देना नहीं है। इस उत्तर पर हतप्रभ हो जाने वाले पत्रकार ने पूछा कि शिया कहते हैं कि उनके इमाम एक हज़ार साले से ज़िंदा हैं, क्या एेसा हो सकता है? उन्होंने कहा कि एेसा संभव है लेकिन इसे मानना हमारे लिए आवश्यक नहीं है। नील चैनल के पत्रकार ने अंतिम प्रश्न पूछा कि क्या यह संभव है कि आठ साल का बच्चा इमाम हो? शियों का मानना है कि उनके बारहवें इमाम आठ साल में इमाम बन गए थे। अलअज़हर विश्व विद्यालय के प्रमुख ने अहमद तैयब ने कहा कि जब हज़रत ईसा झूले में पैग़म्बर हो सकते हैं तो एक आठ साल के बच्चे का इमाम होना विचित्र नहीं है अलबत्ता हमारे लिए ज़रूरी नहीं है कि हम इस बात पर आस्था रखें लेकिन इस आस्था से इस्लाम को कोई नुक़सान नहीं पहुंचता और जो यह आस्था रखता है वह इस्लाम के दायरे से बाहर नहीं है।

हुज्जतुल इस्लाम क़ाज़ी अस्गर ने कहा है कि ईरान ने कभी यह नहीं सोचा था कि ईरान से हज़ जैसी पवित्र उपासना के लिए श्रद्धालु नहीं भेजे जाएंगे।

हज के मामले में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के विशेष प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम क़ाज़ी अस्गर ने कहा कि हमारी पूरी कोशिश रहेगी कि उन ईरानी श्रद्धालुओं को हज के लिए भेजा जाए जो वर्षों से इस पवित्र इबादत के लिए प्रतीक्षा में हैं।

उन्होंने ईरान तथा सऊदी अरब के कूटनैतिक संबन्धों के टूट जाने की ओर संकेत करते हुए कहा कि स्वीज़रलैण्ड ने दोनो देशों के हितों की आपूर्तिकर्ता के रूप में जो प्रस्ताव स्वीकार किया था वह यह था कि सऊदी अरब, तेहरान में स्वीज़रलैण्ड के माध्यम से अपना काउन्सलेंट खोलेगा ताकि हज पर जाने वाले ईरानियों को वीज़ा दिया जा सके। उन्होंने कहा कि हज के संबन्ध में ईरान तथा सऊदी अरब के बीच महत्वपूर्ण विषय हाजियों की सुरक्षा को लेकर है।

वरिष्ठ नेता के प्रतिनिधि ने कहा कि वार्ता के दौरान सऊदी अरब ने ईरानी हाजियों की सुरक्षा के बारे में अभी तक कोई गारेंटी नहीं दी है।

 

आयतुल्लाह ख़ातमी

तेहरान के जुमे के इमाम ने कहा है कि जब तक फ़िलिस्तीन आज़ाद नहीं हो जाता उस वक़्त तक दुनिया के मुसलमान चैन से नहीं बैठेंगे।

पवित्र रमज़ान के अंतिम जुमे की नमाज़ के विशेष भाषण में आयतुल्लाह अहमद ख़ातमी ने कहा कि मुसलमानों ख़ास तौर पर फ़िलिस्तीनी जनता की समझदारी से दुश्मन की फ़िलिस्तीन और पवित्र क़ुद्स के विषय से ध्यान हटाने की कोशिश कभी कामयाब नहीं होगी।

उन्होंने शुक्रवार को विश्व क़ुद्स दिवस पर ईरान में आयोजित रैलियों में जनता की भव्य उपस्थिति की सराहना करते हुए कहा कि विश्व क़ुद्स दिवस साम्राज्यवाद और ज़ायोनी दुश्मन की इस्लामोफ़ोबिया की कोशिश के ख़िलाफ़ महत्वपूर्ण क़दम है।

 

आयतुल्लाह सय्यद अहमद ख़ातमी ने इस बात की ओर इशारा करते हुए कि फ़िलिस्तीनी राष्ट्र लगभग 70 साल से ज़ायोनी शासल की जेल में ज़िन्दगी गुज़ार रहा है, बल दिया कि पश्चिमी देशों ख़ास तौर पर अमरीका ने फ़िलिस्तीन के विषय से जनमत के ध्यान को हटाने के लिए दाइश को वजूद दिया हालांकि उन्हें यह नहीं मालूम कि इस्लामी जगत इस बात की इजाज़त नहीं देगा कि फ़िलिस्तीन के विषय को भुला दिया जाए।

 

ज़ायोनी शासन ने रमज़ान के अंत तक फ़िलिस्तीनी नमाज़ियों के लिए मस्जिदुल अक़सा के दरवाज़े बंद कर दिये हैं।

क़ुद्सोना समाचार एजेन्सी के अनुसार ज़ायोनी शासन की पुलिस ने घोषणा की है कि रमज़ान के अंत तक फ़िलिस्तीनी नमाज़ियों के लिए मस्जिदुल अक़सा बंद रहेगी।

 

इस समाचार पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए क़ुद्स के वक़्फ़ बोर्ड ने एक बयान जारी करके घोषणा की है कि ज़ायोनी शासन ने स्वयं मस्जिदुल अक़सा और उसमे एतेकाफ़ करने वालों के विरुद्ध युद्ध आरंभ कर रखा है।

 

उल्लेखनीय है कि ज़ायोनी पुलिस ने मस्जिदुल अक़सा को फ़िलिस्तीनी नमाज़ियों के लिए बंद करने की घोषणा एेसी स्थिति में की है कि जब कल शुक्रवार को पूरी दुनिया में अलविदा जुमा या क़ुद्स विश्व दिवस मनाया जाएगा।

 

विश्व क़ुद्स दिवस पर तेहरान में आयोजित रैली की एक तस्वीर

फ़िलिस्तीन पर इस्राईल के अतिग्रहण के ख़िलाफ़ शुक्रवार को विश्व क़ुद्स दिवस के अवसर पर ईरान सहित दुनिया के बहुत से देशों में लोगों ने रैलियाँ निकालीं जिसमें दसियों लाख लोगों ने भाग लिया। इन रैलियों में भाग लेकर लोगों ने फ़िलिस्तीन की पीड़ित जनता के प्रति एकता दर्शायी और इस्राइल के अत्याचार की भर्त्सना की।

राजधानी तेहरान और देश के 850 दूसरे शहरों में स्थानीय समयानुसार 10 बजकर 30 मिनट पर विश्व क़ुद्स दिवस की रैलियाँ निकलना शुरु हुयीं। राजधानी तेहरान में 42 डिग्री सेल्सियस की चिलचिलाती धूप में लाखों की संख्या में रोज़ादारों ने भाग लेकर फ़िलिस्तीन के प्रति एकता का दिखाई।

 

ईरान में आयोजित रैलियों में यहूदी समुदाय सहित ग़ैर मुसलमान समुदाय के लोगों ने भी भाग लिया।

 

ईरान की इस्लामी क्रान्ति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़िलिस्तीन पर इस्राईल के अतिग्रहण की समाप्ति और फ़िलिस्तीनी राष्ट्र का समर्थन करने के लिए पवित्र रमज़ान के अंतिम शुक्रवार को विश्व क़ुद्स दिवस घोषित किया ताकि इस दिन पूरी दुनिया में इंसानियत का दर्द रखने वाले रैलियां निकालें।  

 

तेहरान में शुक्रवार को आयोजित विश्व क़ुद्स दिवस की रैली में राष्ट्रपति रूहानी भी शामिल हुए। उन्होंने पत्रकारों से कहा कि ईरानी राष्ट्र ने इन रैलियों में भाग लेकर यह संदेश दिया है कि फ़िलिस्तीनी अतिग्रहण व अत्याचार के ख़िलाफ़ संघर्ष में अकेले नहीं हैं।

विदेश मंत्री जवाद ज़रीफ़ भी विश्व क़ुद्स दिवस की रैली में शामिल हुए। उन्होंने कहा, “क्षेत्र सहित दुनिया भर के मुसलमान ज़ायोनी शासन को न सिर्फ़ इस्लामी जगत बल्कि अंतर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा ख़तरा समझते हैं।”

 

 1 जुलाई 2016 को विश्व क़ुद्स दिवस की पवित्र नगर मशहद में आयोजित रैली की तस्वीर

 

दुनिया के बहुत से देशों में विश्व क़ुद्स दिवस की रैलियां

 

विश्व क़ुद्स दिवस पर इराक़, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और मलेशिया में रैलियाँ निकाली गयीं। इसी प्रकार यूरोप में जर्मनी, इंग्लैंड, फ़्रांस, नेदरलैंड, स्वीज़रलैंड, कैनडा और अमरीका (यूएसए) के 14 राज्यों में रैलियों के आयोजन का कार्यक्रम है।

 

विश्व क़ुद्स दिवस के अवसर पर राजधानी दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, हैदराबाद, लखनउ, श्रीनगर के अनेक ज़िलों और कर्गिल में मुसलमानों ने रैलियाँ निकालीं और विरोध प्रदर्शन किए जिसमें हज़ारों की संख्या में लोगों ने भाग लिया। मुसलमानों ने रैलियों व प्रदर्शनों में भाग लेकर अलक़ुद्स पर ज़ायोनी शासन के अतिग्रहण की भर्त्सना की और फ़िलिस्तीनियों के प्रति एकता का प्रदर्शन किया।

दिल्ली से संवाददाता के अनुसार, विश्व क़ुद्स दिवस पर दिल्ली के जंतर मंतर पर मुसलमानों ने विशाल विरोध प्रदर्शन करके ज़ायोनी शासन की बर्बरतपूर्ण नीतियों की आलोचना की, मुसलमानों के पहले क़िबले मस्जिदुल अक़सा की आज़ादी की मांग की और फ़िलिस्तीनियों के प्रति समरस्ता प्रकट की। इस रैली में विभिन्न धर्मों व संप्रदायों के नेताओं व धर्मगुरुओं ने भी भाग लिया।

 

उधर लखनऊ में विश्व क़ुद्स दिवस के अवसर पर ऐतिहासिक आसेफ़ी मस्जिद में जुमे की नमाज़ के बाद इस मस्जिद से रूमी गेट तक रैली निकाली गयी जिसमें हज़ारों की संख्या में लोगों ने भाग लिया। इस रैली को वरिष्ठ शीया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जवाद ने संबोधित किया।  

इसी प्रकार भारत के महानगरों मुंबई, चेन्नई, कोलकाता और हैदराबाद में भी विश्व क़ुद्स दिवस के अवसर पर प्रदर्शन कर लोगों ने क़िबलए अव्वल मस्जिदुल अक़्सा सहित अलक़ुद्स की आज़ादी की मांग की।

 

दूसरी ओर भारत प्रशासित कश्मीर के अनेक शहरों व क़स्बों में विश्व क़ुद्स दिवस की रैली निकाली गयी। श्रीगनर की जामा मस्जिद में मीर वाएज़ उमर फ़ारूक़ ने लोगों को संबोधित किया। श्रीनगर के विभिन्न इलाक़ों में दिन भर रैलियों का क्रम जारी रहा।

कश्मीर के बडगाम, कुलगाम, बांडीपूरा, गांदरबल, बारामोला और पुलवामा ज़िलों में लोगों ने विश्व क़ुद्स दिवस की रैली में व्यापक स्तर पर भाग लिया।

 

उधर कर्गिल में विश्व क़ुद्स दिवस की रैली में लाख से ज़्यादा लोगों ने भाग लेकर फ़िलिस्तीन पर इस्राईल के अतिग्रहण की समाप्ति और मस्जिदुल अक़्सा की आज़ादी की मांग की।  

 

ईरान प्रतिदिन भारत को पांच लाख बैरल तेल की आपूर्ति करके सऊदी अरब और इराक़ के बाद कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है।

तेल व ऊर्जा सूचना नैटवर्क के अनुसार वर्ष 2016 की पहली तिमाही में भारत को निर्यात किए गए कच्चे तेल की मात्रा 43 लाख 50 हज़ार बैरल प्रतिदिन रही है जो पिछले साल की पहली तिमाही की तुलना में लगभग 5 लाख बैरल अधिक है। आंकड़ों के अनुसार भारत को कच्चा तेल निर्यात करने वालों में सऊदी अरब सबसे आगे है जो प्रतिदिन साढ़े आठ लाख बैरल प्रतिदिन है। इराक़, भारत को प्रतिदिन छः लाख 58 हज़ार बैरल प्रतिदिन कच्चा तेल निर्यात करता है।

 

ईरान ने मार्च 2016 में भारत को प्रतिदिन पांच लाख पांच हज़ार बैरल कच्चा तेल निर्यात किया है जो उससे पहले महीने की तुलना में दो लाख 90 हज़ार बैरल अधिक है। भारत की एस्सार कंपनी मार्च में ईरान के कच्चे तेल की सबसे बड़ी ग्राहक थी जिसने प्रतिदिन दो लाख 7 हज़ार बैरल कच्चा तेल आयात किया है जिसके बाद मेंगलोर और रिलायंस दूसरे और तीसरे नंबर पर हैं।  

 

मस्जिदुल अक़सार पर इस्राईली पुलिस के संरक्षण में ज़ायोनी कालोनी वासियों के हमले में कम से कम 12 फ़िलिस्तीनी रोज़ेदार घायल हो गए।

अलआलम टीवी चैनेल की रिपोर्ट के अनुसार मस्जिदुल अक़सा के मुतवल्ली शेख उमर अलकिसवान ने बताया कि ज़ायोनी कालोनी वासियों ने इस्राईली सैनिकों के संरक्षण में मस्जिदुल अक़सा पर हमला किया जिसके कारण 12 फ़िलिस्तीनी रोज़ेदार घायल हो गए।

फ़िलिस्तीन की रेड क्रीसेंट ने भी इस हमले की पुष्टि करते हुए 7 घायलोे के अस्पताल भेजे जाने की सूचना दी है। इस पहले भी मस्जिदुल अक़सा पर ज़ायोनियों के आक्रमण में 24 लोग घायल हुए थे।

मस्जिदुल अक़सा के एक अन्य अधिकारी शेख़ुलख़तीब ने बताया है कि इस्राईली पुलिस ने सुनियोजित कार्यक्रम के अन्तर्गत ज़ायोनियों को खुलकर छूट दे रखी है और यही कारण है कि एेसे समय में कि जब फ़िलिस्तीनी मस्जिदुल अक़सा में एतेकाफ़ कर रहे थे, ज़ायोनी कालोनीवासियों ने उनकपर आक्रमण कर दिया।

रमज़ान का पवित्र महीना अपनी पूरी अनुकंपाओं व अध्यात्म के साथ जारी है। इस पवित्र महीने में रोज़ेदार अपने रोज़ेदार भाईयों और बहनों को इफ़्तार का निमंत्रण देते हैं और उनके स्वागत के लिए दस्तरख़्वान पर विभिन्न प्रकार के पकवान सजाते हैं।

कुछ लोग मस्जिदों में ईश्वर के बंदों के लिए इफ़्तार भेजते हैं ताकि अधिक से अधिक लोगों के इफ़्तार का पुण्य उन्हें प्राप्त हो। जब दस्तरख़्वान की बात निकलती है तो इतिहास हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम के दस्तरख़्वान की याद दिलाता है। रमज़ान की पंद्रहवीं तारीख़ को लोग हज़रत इमाम हसन अलैहिस्लाम का अनुसरण करते हुए अपने रोज़े व उपासनाओं की शोभा वंचितों और अनाथों की सहायता करके बढ़ाते हैं और इस्लाम की इस महान हस्ती के जन्म दिन को बड़े ही उत्साह व हर्षोल्लास से मनाते हैं।

  

भलाई करना, हज़रत इमाम हसन अलैहिस्लाम के व्यक्तित्व की विशेष पहचान है। हज़रत इमाम हसन वंचितों और पीड़ितों की आशा की किरण थे। कभी कभी ऐसा होता था कि मांगने वाले ने अभी अपनी मांग बयान ही नहीं की कि उसकी मांग पूरी कर देते थे और उसे इस बात की अनुमति नहीं देते थे कि वह व्यक्ति सवाल करके स्वयं को लज्जित करे। कभी ऐसा होता था कि वंचित को एक साथ इतना पैसा दे देते थे कि वह अपने जीवन चक्र को अच्छे ढंग से चला सके और किसी के आगे हाथ न फैलाए। इसीलिए उन्हें करीमे अहलेबैत अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम के परिजन के दानी की उपाधि दी गयी।

 

सुन्नी मुसलमानों के प्रसिद्ध इतिहासकार सियुती लिखते हैं कि हसन इब्ने अली बहुत अधिक नैतिकता और इंसानी गुणों के स्वामी थे, वह महान हस्ती, विनम्र, सम्मानीय, सुशील, दानी, क्षमा करने वाले और लोगों के मध्य पसंदीदा व्यक्ति थे।

  

पवित्र रमज़ान की पंद्रहवीं तारीख़, सन तीन हिजरी क़मरी को पैग़म्बरे इस्लाम के बाग़ में एक सुन्दर फूल खिला। यह पैग़म्बरे इस्लाम का पहला नवासा था जिसके आने से पूरी दुनिया प्रकाशमान हो गयी और लोग पैग़म्बरे इस्लाम के घर उनको नवासे की बधाई देने के लिए दौड़ पड़े। रेडियो तेहरान भी अपने श्रोताओ की सेवा में इस पावन अवसर पर हार्दिक बधाई प्रस्तुत करता है।

 

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम के जन्म के बाद हज़रत फ़ातेमा ने हज़रत अली से कहा कि नवजात का नाम रख दें। हज़रत अली कहते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम के रहते हुए मैं अपने पुत्र का नाम नहीं रख सकता। उसके बाद वह अपने पुत्र को कपड़े में लपेट कर पैग़म्बरे इस्लाम के पास ले गये । पैग़म्बरे इस्लाम ने बड़े ही प्रेम से नवजात को अपनी गोद में लिया और उसके दाहिने कान में अज़ान दी और बायें कान में अक़ामत कही और उसके बाद कहा कि ईश्वर की ओर से जिब्राइल आये थे और सलाम व पुत्र के जन्म की बधाई देने के बाद कहा कि अली का स्थान आप के निकट वैसा ही है जैसा कि मूसा के निकट उनके भाई हारून का था, इसीलिए अली के बेटे का नाम हारून के बेटे के नाम पर रखिए। मैंने पूछा हारून के बेटे का नाम क्या था? जिब्राइल ने कहा शब्बर, मैंने कहा कि हमारी भाषा अरबी है, कहा अरबी में हसन है।

  

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम का पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों में बहुत उच्च स्थान है। उनके नाना पैग़म्बरे इस्लाम, उनके पिता हज़रत अली और उनकी माता हज़रत फ़ातेमा हैं। उनका पालन पोषण पैग़म्बरे इस्लाम और हज़रत अली की छत्रछाया में हुआ। हज़रत इमाम हसन ने अपने जीवन के सात मूल्यवान वर्ष पैग़म्बरे इस्लाम की छत्रछाया में गुज़ारे। पैग़म्बरे इस्लाम अपने नवासे को बहुत अधिक चाहते थे और उन्हें अपने कंधे पर बिठाते थे और कहते थे कि मेरे ईश्वर मैं इनसे स्नेह करता हूं तू भी इनसे स्नेह कर।

  

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के बेटों को पैग़म्बरे इस्लाम बहुत अधिक चाहते थे। एक दिन हज़रत फ़ातेमा ज़हरा अपने दोनों बेटों इमाम हसन और इमाम हुसैन के साथ पैग़म्बरे इस्लाम से मिलने आईं और कहा कि पिता जी यह दोनों आपके पुत्र हैं, इनके लिए कुछ चीज़ें यागदार कर दें ताकि हमेशा आपको याद रहे। पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा इमाम हसन को मेरा रोब व वीरता मिले और इमाम हुसैन को मेरी क्षमाशीलता और वीरता मिले।

 इमाम हसन इतने महान थे कि पैग़म्बरे इस्लाम ने उनकी अल्पायु के बावजूद अपने कुछ समझौतों में उनको गवाह बनाया। पैग़म्बरे इस्लाम जब ईश्वर के आदेश पर नजरान के निवासियों से मुबाहेले के लिए निकले तो उन्होंने ईश्वर के आदेश से इमाम हसन, इमाम हुसैन, हज़रत अली और हज़रत फ़ातेमा को अपने साथ लिया और उसी समय उनकी पवित्रता का गुणगान करते हुए आयते ततहीर उतरी।

  

हज़रत इमाम हसन अपनी पूरी क्षमता के साथ ईश्वर की प्रसन्नता और उसके मार्ग में भले काम करते थे और ईश्वर के मार्ग में बहुत अधिक धन ख़र्च करते थे। इतिहासकारों और बुद्धिजीवियों ने उनकी गौरवपूर्ण जीवनी में उनकी दानशीलता और वंचित लोगों का ध्यान रखने को अपनी किताबों में वर्णन किया है। एक दिन एक वंचित व्यक्ति इमाम हसन के पास आया किन्तु लज्जा के कारण वह अपने मन की बात उनसे नहीं कह सका। इमाम हसन ने उससे कहा कि अपनी मांग को लिखकर मुझे बताओ, उस व्यक्ति ने अपने दिल की बात लिख दी। जब इमाम हसन ने उसका पत्र पढ़ा तो उन्होंने उसकी मांग का दोगुना उसे प्रदान किया। वहां बैठे एक व्यक्ति ने उनसे कहा कि हे पैग़म्बरे इस्लाम के पुत्र, यह पत्र उसके लिए कितना विभूतियों वाला था। इमाम हसन ने उसके जवाब में कहा उसकी विभूतियां हमारे लिए अधिक थी क्योंकि इसने मुझे भलेकर्म करने वालों में शामिल कर दिया।

 

इमाम हसन ने अपने पूरे जीवन भर लोगों का मार्गदर्शन किया और लोगों के साथ उनके व्यवहार यहां तक कि शत्रुओं के साथ उनके व्यवहार के कारण लोग उनकी ओर खिंचे चले आते थे। वह लोगों को निष्ठापूर्वक ईश्वर की उपासना करने और पवित्र रहने का निमंत्रण देते थे और स्वयं भी नमाज़ के समय बेहतरीन वस्त्र पहनते थे। किसी ने इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि ईश्वर सुन्दर है और उसे सुन्दरता बहुत पसंद है, मैं इसीलिए ईश्वर के दरबार में उपस्थित होने के समय मैं स्वयं को संवारता हूं, ईश्वर ने आदेश दिया है कि अपनी सुन्दरता के साथ और सज धज कर मस्जिद में उपस्थित हो।

 

लोगों के मार्गदर्शन के समय इमाम हसन का धैर्य और उनकी क्षमाशीलता, उनकी एक अन्य विशेषता थी। इसी धैर्य और क्षमाशीलता के कारण उन्होंने तत्कालीन सरकार के कई षड्यंत्रों को विफल बना दिया और मुआविया के साथ शांति समझौता करके वास्तव में एक अन्य शैली द्वारा आत्याचारों से संघर्ष का ध्वज लहरा दिया। इतिहासकार लिखते हैं कि एक दिन इमाम हसन अलैहिस्सलाम घोड़े पर सवार होकर कहीं जा रहे थे । वर्तमान सीरिया का रहने वाला एक व्यक्ति उनके रास्ते में आ गया और उन्हें बुरा भला कहने लगा। इमाम हसन ने उस व्यक्ति को सलाम किया और मुस्कुरा कर कहा कि मुझे लगता है कि तू यात्री है, अगर तू मुझसे कुछ चाहता है तो मैं तुझे प्रदान करूं। यदि तू भूखा है तो तुझे पेटभर खाना दूं, यदि तेरे पास कपड़े नहीं हैं तो मैं तुझे बेहतरीन कपड़े दूं, यदि तुझे किसी चीज़ की आवश्यकता तो मैं तेरी आवश्यकता को पूरा करूं। आओ मेरे मेहमान बनो। जब तक तुम यहां पर हो, मरे मेहमान हो, तत्कालीन सीरिया के उस व्यक्ति ने जब यह सब सुना, वह इमाम हसन के पैरों पर गिर गया और रोने लगा और कहा कि मैं गवाही देता हूं कि आप धरती पर ईश्वर के प्रतिनिधि हैं और ईश्वर भलिभांति जानता है कि यह स्थान किसे प्रदान किया जाए। मैं इससे पहले तक आपका और आपके पिता का बहुत बड़ा शत्रु था किन्तु अब मैं दुनिया में सबसे अधिक आपको चाहता हूं। वह व्यक्ति उस दिन के बाद से इमाम हसन अलैहिस्सलाम के अनुयायियों में हो गया और जब तक वह मदीने में रहा, इमाम हसन का मेहमान था।

 

इमाम हसन अलैहिस्सलाम को सभी लोग बहुत पसंद करते थे, सभी उनका सम्मान करते थे। उनकी लोकप्रियता इन सीमा तक थी कि कभी मदीने शहर के मुख्य द्वार पर उनके लिए चटाई बिछाई जाती थी और वह उस चटाई पर बैठककर लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करते थे और उनकी समस्याओं का समाधान करते थे।

 

वहां से जो भी गुज़रता था एक क्षण के लिए ठहर जाता था ताकि उनकी सुन्दर बातों को सुने और उनके प्रकाशमयी चेहरे को देखे और पैग़म्बरे इस्लाम के प्रकाशमयी चेहरा उनको याद आ जाए। जब वह बाज़ार निकलते थे तो बहुत अधिक लोग उनके इर्दगिर्द एकत्रित हो जाते थे और रास्ता बंद हो जाता था, और जैसे ही इमाम हसन का ध्यान इस ओर जाता था वह फ़ौरन ही उस स्थान से उठ जाते थे ताकि दूसरे लोगों के लिए रास्ता खुल जाए।

 

इमाम हसन अलैहिस्सलाम का कहना है कि ईश्वर के निकट सबसे उच्च स्थान उसका है जो सबसे अधिक लोगों के अधिकारों से अवगत हो, उनके अधिकारों को अदा करने में सबसे अधिक प्रयास करे, जो भी अपने धार्मिक भाइयों के सामने विनम्रता करे, ईश्वर उसे हज़रत अली का मित्र और उनके चाहने वालों में शामिल करता है।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने शनिवार की शाम सन 1981 में तेहरान में आतंकवादी हमले में शहीद होने वालों और सीरिया में हज़रत ज़ैनब के रौज़े की सुरक्षा के दौरान अपनी जान देने वालों के परिजनों से भेंट की।

वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने बल दिया कि आतंकवादी गुट दाइश को इस्लामी गणतंत्र ईरान को पराजित करने के लिए बनाया गया, इराक़ और सीरिया ईरान को पटखनी देने की तैयारी थी लेकिन ईरान की ताक़त ने उन्हें ही पटखनी दे दी।

वरिष्ठ नेता ने इस भेंट में कहा कि वास्तव में ईरान के साथ असमान युद्ध में दुश्मन यह समझ ही नहीं पाते कि अल्लाह और उसकी राह में संघर्ष में ईमान में कितनी शक्ति है।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि जो पैगम्बरे इस्लाम (स) के परिजनों के लिए आगे क़दम बढ़ाता है वह वास्तव में अपने समाज और अपने नगर की रक्षा करता है और यह संघर्ष वास्तव में ईरान की रक्षा के लिए है।

 

वरिष्ठ नेता ने कहा कि बहरैन में अत्याचारी व स्वार्थी अल्पसंख्यक, बहुसंख्यकों पर अत्याचार कर रहे हैं और अब तो उन्होंने ने वरिष्ठ धर्मगुरु शैख ईसा क़ासिम को भी निशाना बनाया है यह वास्तव में मूर्खता है।

 

वरिष्ठ नेता ने कहा कि शैख ईसा क़ासिम हमेशा हिंसा व अतिवाद से रोका करते थे किंतु बहरैन के इन मूर्ख शासकों को यह नहीं समझ में आ रहा है कि शैख ईसा क़ासिम को रास्ते से हटाने का मतलब बहरैन के जोशीले युवाओं के सामने से रुकावट को ख़त्म करना है क्योंकि उनके बाद सरकार के खिलाफ आक्रोश में भरे इन युवाओं को कोई नहीं रोक पाएगा।