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लेबनान के इस्लमी प्रतिरोध संगठन हिज़्बुल्लाह ने अतिग्रहित फ़िलिस्तीन में तेल अवीव के केंद्र में फ़िलिस्तीनी संघर्षकर्ताओं की साहसी कार्यवाही की सराहना करते हुए कहा है कि फ़िलिस्तीनी राष्ट्र ने इस कार्यवाही से यह सिद्ध कर दिया है कि वह सभी अतिग्रहित क्षेत्रों की स्वतंत्रता के लिए प्रतिरोध को स्थायी विकल्प के रूप में देखता है।

हिज़्बुल्लाह ने गुरुवार को एक बयान जारी करके कहा है कि तेल अवीव में दो फ़िलिस्तीनी युवाओं की कार्यवाही ने दर्शा दिया है कि क्षेत्र व संसार में ज़ायोनियों व उनके समर्थकों के अत्याचार, दबाव और अतिक्रमण, फ़िलिस्तीनियों के संकल्प में तनिक भी डिगा नहीं सकते और उन्हें अपने अधिकारों, मातृभूमि व अतीत की अनदेखी करने पर विवश नहीं कर सकते। हिज़्बुल्लाह ने इस्राईल के मुक़ाबले में प्रतिरोध की उपलब्धियों व सफलताओं की सराहना करते हुए सभी अरब व इस्लामी राष्ट्रों और इसी प्रकार संसार के सभी स्वतंत्रता प्रेमियों से अपील की है कि वे प्रचारिक, राजनैतिक व अन्य सभी मार्गों से फ़िलिस्तीनी राष्ट्र का समर्थन करें ताकि वह अतिग्रहणकारियों से मुक्ति के अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सके।

 

इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति डाक्टर हसन रूहानी ने कहा है देश के विरुद्ध अमरीकी सरकार की आपराधिक कार्यवाहियों के कारण जो नुक़सान हुआ है

उसके संबंध में अमरीका के विरुद्ध क़ानूनी कार्यवाही शुरू करने संबंधी क़ानून से विदेश मंत्रालय को अवगत करा दिया गया है। यह क़ानून ईरान की संसद से पास हुआ है जिसके तहत संसद ने देश और जनता के अधिकारों की रक्षा संबंधित कार्यसूचि निर्धारित की है। इस क़ानून का एक भाग अंतर्राष्ट्रीय कन्वेन्शनों से संबंधित है जो ईरानी नागरिकों के अधिकारों की रक्षा से जुड़े हैं।

ईरान जिन मामलों में अमरीका के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्यवाही करेगा उनमें वर्ष 1953 में अमरीका द्वारा ईरान के भीतर करवाई गई सैनिक बग़ावत है जिसमें ईरान की क़ानूनी सरकार गिर गई थी। इसी प्रकार अमरीकी बैंकों में ईरान की संपत्ति का ज़ब्त कर लिया जाना और उसका एक भाग लूट लेना भी उन मामलों में शामिल है जिसकी शिकायत अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में की जा सकती है।

अमरीका की मानवता विरोधी कार्यवाहियों और ईरान के अधिकारों के हनन के बहुत से साक्ष्य मौजूद हैं जिनके आधार पर अमरीका के विरुद्ध क़ानूनी कार्यवाही की जा सकती है।

अमरीका ने ईरान पर इराक़ की सद्दाम सरकार की ओर से थोपे गए आठ वर्षीय युद्ध के दौरान सद्दाम शासन को रासायनिक हथियारों की सप्लाई में भूमिका निभाई थी। जो दस्तावेज़ मिले हैं उनके अनुसार अमरीका ने सद्दाम को रासायनिक आयुद्ध उपलब्ध कराने में प्रत्यक्ष रूप से भूमिका निभाई है।

सद्दाम के रासायनिक हमलों में ईरान के एक लाख से अधिक नागरिक शहीद और बीमार हो गए थे। इस मामले को कई साल पहले ही अंतर्राष्ट्रीय अदालतों में उठाया जा चुका है।

अमरीका ने ईरान के यात्री विमान को मिज़ाइल से मार गिराया था जिसमें 290 यात्री सवार थे। अमरीका ने ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध लगाकर देश की जनता को बहुत परेशान किया है। अमरीका ने जो प्रतिबंध लगाए वह अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों की दृष्टि से अमानवीय हैं।

अमरीकी कांग्रेस में उन आतंकी सगठनों की सहायता के लिए बजट भी पास किया जाता है जो ईरान के विरुद्ध सक्रिय हैं।

हालांकि अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं पर अमरीका का दबाव है अतः उनकी ओर से कोई विशेष उम्मीद नहीं है लेकिन यह भी अपने आप में महत्वपूर्ण है कि अमरीका के विरुद्ध मानवता विरोधी अपराधों का मुक़द्दमा शुरू हो।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने वर्तमान युग में वैचारिक व आस्था की पहचान को गंवाने की ओर से सावधान करते हुए कहा है कि अपने ईमान को मज़बूत करके और अन्य लोगों तक कुरआने के संदेश पहुंचाने के लिए उपयोगी भाषा का ज्ञान प्राप्त करके, कुरआनी अर्थों को वर्तमान विश्व के सामने पेश करने की ज़रूरत है।

वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने मंगलवार को रमज़ान के पवित्र महीने के पहले दिन, कुरआने मजीद की तिलावत की विशेष बैठक में कहा कि अगर कुरआन मजीद के उच्च अर्थ समकालीन भाषा में लोगों के सामने पेश किये जाएं तो उस बहुत प्रभाव होगा और इससे मानवता का सही अर्थ में विकास होगा क्योंकि भौतिक सुख, आध्यात्मिक विकास, वैचारिक विस्तार और आत्मिक शांति, कुरआने मजीद के आदेशों के पालन पर निर्भर है।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि हालांकि कुरआने मजीद के शब्दों की सुन्दरता व आर्कषण एक चमत्कार है किंतु इन खूबसूरत लफ्ज़ों का उद्देश्य, कुरआने मजीद के उच्च अर्थों से परिचित कराना है।

वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने बल दिया कि अगर कुरआन के अर्थों का वर्णन किया जाए तो निश्चित रूप से कुरआन पूरी दुनिया में प्रभावशाली होगा और बड़ी शक्तियां, उनके हथियार, और ज़ायोनी शासन, कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे।  

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने नव निर्वाचित सांसदों से कहा है कि वे क्रांतिकारी रवैया अपनाएं क्योंकि अमरीका के नेतृत्व में शत्रुओं की ओर से ख़तरे जारी हैं।

आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने रविवार को संसद सभापति और नव निर्वाचित सांसदों से मुलाक़ात में आंतरिक, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संसद की प्राथमिकताओं का उल्लेख करते हुए कहा कि ईरान की संसद मजलिसे शूराए इस्लामी को क्रांतिकारी होना चाहिए, क्रांतिकारी व्यवहार करना चाहिए, अमरीका की शत्रुतापूर्ण नीतियों पर प्रतिक्रिया दिखाना चाहिए और साम्राज्य के षड्यंत्रों के मुक़ाबले में डट जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि मजलिसे शूराए इस्लामी एक क्रांतिकारी और क्रांति के कोख से जन्म लेने वाली संस्था है और सांसदों को अपनी बातों और नीतियों में क्रांतिकारी रवैया अपनाना चाहिए।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने सांसदों द्वारा क्रांतिकारी रवैया अपनाने पर जो बल दिया है उसका कारण यह है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान के ख़िलाफ़ अमरीका की शत्रुतापूर्ण नीतियां यथावत जारी हैं। संसद, ईरानी जनता के मतों से अस्तित्व में आती है इस लिए सांसदों का परम कर्तव्य है कि वे ईरान व विदेश स्तर पर समय पर ठोस व सटीक नीतियां अपनाएं। इस्लामी क्रांति की सफलता के साथ ही ईरान के साथ वर्चस्ववादी व्यवस्था की दुश्मनी शुरू हो गई थी जो अब भी जारी है। एेेसे में क़ानून बनाने वाली संस्था व जनता की आवाज़ के रूप में मजलिसे शूराए इस्लामी की, देश व राष्ट्र के हितों की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका है।

 

वास्तविकता यह है परमाणु समझौते से पहले और उसके बाद भी ईरान के संबंध में अमरीका के रवैये में कोई परिवर्तन नहीं आया है और इस देश की सरकार, संसद और राष्ट्रपति चुनाव के प्रत्याशी अब भी ईरान को धमकियां दे रहे हैं। इस बात के दृष्टिगत ईरान की संसद को इस्लामी क्रांति की शिक्षाओं के आधार पर अमरीका के दुस्साहस पर चुप नहीं बैठना चाहिए। अगर मजलिसे शूराए इस्लामी, क़ानून बनाने वाली एक क्रांतिकारी संस्था के रूप में काम करे तो ईरान शत्रु की ओर से पहुंचाए जाने वाले संभावित नुक़सानों से सुरक्षित रहेगा।  

 

ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता अयातुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई ने ईरानियों से आह्वान किया है कि अपनी उस 'क्रांतिकारी भावना' की हिफ़ाज़त करें जिसने 38 साल पहले देश से दुश्मनों को बाहर निकाल खड़ा किया था।

शुक्रवार को ईरान की इस्लामी क्रांति के संस्थापक इमाम ख़ुमैनी की 27वीं बरसी के अवसर पर उनके मज़ार में आयोजित शोकसभा को संभोधित करते हुए वरिष्ठ नेता ने कहा, हमारे अनेक छोटे और बड़े दुश्मन हैं, लेकिन उनमें सबसे दुष्ट अमरीका और ब्रिटेन हैं।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने ईरान के प्रति अमरीका की दुश्मनी के इतिहास का उल्लेख करते हुए कहा कि वाशिंगटन ने इस्लामी गणतंत्र के ख़िलाफ़ युद्ध में सद्दाम का समर्थन किया, ईरान के यात्री विमान को मार गिराया, ईरान के तेल प्लेटफ़ार्मों पर हमला किया और ईरान में सीआईए ने तख़्तापलट किया।

दास लाख से भी अधिक विदेशी एवं ईरानी नागरिकों एवं गणमान्य हस्तियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि अगर कोई व्यक्ति इस्लाम के लिए काम करता है और अमरीका पर भरोसा करता है तो वह अपने चेहरे पर थप्पड़ ज़रूर खाएगा।

वरिष्ठ नेता का कहना था कि ईरान से दुश्मनी का कारण उसकी क्रांतिकारी भावना है। जो दबाव ईरान पर डाला जा रहा है वह इसी क्रांति की वजह से है, इसलिए कि दुश्मन इससे भयभीत है।

उन्होंने सवाल किया कि क्यों वे क्रांति का विरोध करते हैं, इसलिए कि इससे पहले देश पूर्ण रूप से उनके निंयत्रण में था। इसके अलावा, क्रांति के बाद अब यह अन्य देशों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया है।

जब भी हमारा आंदलोन क्रांतिकारी रहा हम सफल हुए, लेकिन जब भी हमने इसकी उपेक्ष की हम पीछे धकेल दिए गए। अगर आप अपने मार्ग इस्लाम और क्रांति को छोड़ेंगे तो आपके चेहरे पर ज़ोरदार थप्पड़ पड़ेगा।

इमाम ख़ुमैनी की बरसी पर शोकसभा आयोजित कराने वाली संस्था के एक अधिकारी अली अंसारी का कहना है कि इस वर्ष क़रीब 13 लाख लोग देश विदेश से ईरान की इस्लामी क्रांति के संस्थापक के मज़ार पर एकत्रित हुए हैं।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनई ने कहा कि इमाम ख़ुमैनी ईश्वर में आस्था और लोगों पर विश्वास रखते थे, और ख़ुद को ईश्वर का सेवक मानते थे।

 

मुसलमानों के पहले क़िबले मस्जिदुल अक़सा का ऐतिहासिक दरवाज़ा “अल-रहमा” उजड़ गया है।

प्राप्त समाचारों के अनुसार मस्जिदुल अक़सा का ऐतिहासिक द्वार अल-रहमा रख-रखाव पर ध्यान न दिए जाने के कारण तबाह हो गया है। अल-रहमा द्वार क़ुब्बतुस्सख़रा के निर्माण से पहले बना था।  

उल्लेखनीय है कि क़ुब्बतुस्सख़रा मस्जिदुल अक़सा के पास एक ऐतिहासिक चट्टान के ऊपरी स्वर्ण गुंबद वाली इमारत है। क़ुब्बतुस्सख़रा जिसको (The Dome of the Rock) भी कहा जाता है पिछली 13 सदियों से दुनिया की सबसे सुन्दर इमारतों में से एक मानी जाती है। अल-रहमा द्वार क़ुब्बतुस्सख़रा से एक साल पुराना है।

 

वास्तव में यह एक ऐतिहासिक कब्रिस्तान है जो 1400 वर्ष पुराना है। अल-रहमा द्वार मस्जिदुल अक़सा के 12 दरवाज़ों में से एक बड़ा दरवाज़ा है। इतिहास में मिलता है कि उमवी और अब्बासी ख़लीफ़ाओं ने इस दरवाज़े का विस्तार किया था और उसके बिल्कुल ऊपर एक चबूतरा बनवाया था, जिस चबूतरे पर इमाम गज़ाली लंबे समय तक लेखन में व्यस्त रहे थे।

 

स्थानीय मीडिया और लोगों के अनुसार मुसलमानों के पहले क़िबले मस्जिदुल अक़सा के दरवाज़ों में सबसे पुराना और ऐतिहासिक द्वार अल-रहमा इस्राईल के प्रतिबंध के कारण फ़िलिस्तीनी मुसलमानों के लिए बंद कर दिया गया है, लेकिन ज़ायोनी अपने लिए इस दरवाज़े का प्रयोग करते हैं।

 

इतिहासकारों के अनुसार इस्राईली कब्ज़े से पहले मस्जिदुल अक़सा का ऐतिहासकि द्वार अल-रहमा शिक्षा का मुख्य केंद्र था जहां क़ुरान के साथ-साथ दूसरी इस्लामी शिक्षाएं दी जाती थीं, लेकिन अब इस दरवाज़े से मिले हुए दो बड़े हॉल पूरी तरह उजड़ चुके हैं।  

 

 

वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने कहा है कि देश की वास्तविक पहचान और महासंघर्ष से, इस्लामी क्रान्ति के उद्देश्यों को प्राप्त करके व्यवस्था को बचाते हुए उसे आगे ले जाया जा सकता है।

वरिष्ठ नेता का चयन करने वाली पांचवीं विशेषज्ञ परिषद के सदस्यों ने गुरूवार को आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई से मुलाक़ात की। उन्होंने कहा कि दुश्मन का अनुसरण न करना ही महासंघर्ष है।

उन्होंने ईरानी जनता के विभिन्न वर्गों के साथ, विशेषज्ञ परिषद के सदस्य धर्मगुरुओं व विद्वानों के संपर्क और इन वर्गों पर उनके प्रभाव की ओर इशारा करते हुए कहा कि संविधान में वर्णित कर्तव्यों को पूरा करने के लिए ज़रूरी समय के आने तक इस परिषद के सदस्यों को हाथ पर हाथ धरे बैठा नहीं रहना चाहिए।

वरिष्ठ नेता ने इस बात पर बल दिया कि विशेषज्ञ परिषद का मार्ग व लक्ष्य वही होना चाहिए जो क्रान्ति का मार्ग व लक्ष्य है। उन्होंने इस्लाम की प्रभुसत्ता, स्वतंत्रता, स्वाधीनता, सामाजिक न्याय, जनकल्याण, निर्धनता व निरक्षरता उन्मूलन, पश्चिम के अनैतिक भ्रष्टाचार से मुक़ाबला, आर्थिक, सामाजिक व राजनैतिक बुराइयों के ख़िलाफ़ प्रतिरोध और साम्राज्यवादी मोर्चे के मुक़ाबले में दृढ़ता को ईरानी राष्ट्र के महत्वपूर्ण लक्ष्य बताया।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने वर्चस्ववाद को साम्राज्य की प्रवृत्ति का हिस्सा बताते हुए कहा कि साम्राज्यवादी मोर्चा राष्ट्रों पर वर्चस्व के दायरे को बढ़ाना चाहता है। उन्होंने कहा कि जो राष्ट्र उसका मुक़ाबला नहीं करेगा उसके जाल में फंस जाएगा।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस बात में शक नहीं कि इस्लाम ही साम्राज्य व अत्याचार को ख़त्म करेगा। उन्होंने कहा कि वह इस्लाम ही दुनिया के वर्चस्ववादी मोर्चे को ख़त्म कर सकता है जो प्रशासनिक व्यवस्था के रूप में स्थापित हो और राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, मीडिया और सैन्य शक्ति के साधन से संपन्न हो।  

 

तेल, गैस और पेट्रोकेमिकल के क्षेत्र में ईरान तथा यूरोप के बीच 3 अरब यूरो का समझौता हुआ है।

ईरान की ग़दीर पूंजिनिवेश कंपनी के सीईओ ग़ुलाम रज़ा सुलैमानी ने यह ख़बर दी है। उन्होंने अपने एक इंटर्व्यू में कहा है कि यूरोपीय कंपनियों के साथ तेल, गैस, पेट्रोकेमिकल, बिजलीघर, सीमेंट और मूल संरचनाओं से संबंधित लगभग 3 अरब यूरो मूल्य की परियोजनाओं के संबंध में सहमति हुई है। इन परियोजनाओं से संबंधित लगभग 1 अरब यूरो के बारे में फ़ैसला, अंतिम चरण में है।

ग़ुलाम रज़ा सुलैमानी ने इस बात का उल्लेख करते हुए कि बाक़ी 2 अरब यूरो की परियोजनाओं के बारे में तकनीकी बातचीत चल रही है। उन्होंने कहा कि इतालवी व यूनानी कंपनियों के साथ परियोजनाओं को लागू करने से संबंधित समझौते को अंतिम रूप दिया जा चुका है और उन पर काम भी शुरु हो गया है।

 

लेबनान के हिज़्बुल्लाह संगठन के वरिष्ठ कमांडर शहीद मुस्तफ़ा बदरुद्दीन के परिजनों ने इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता से मुलाक़ात की है।

आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने इस मुलाक़ात में शहीद बदरुद्दीन के साहस और शौर्य की सराहना करते हुए कहा कि मैंने इस महान शहीद के ठोस और फ़ौलादी व्यक्तित्व के बारे में बहुत कुछ सुना है और ईश्वर से उनके दर्जे उच्च करने और आप लोगों के धैर्य की प्रार्थना करता हूं। वरिष्ठ नेता ने कहा कि हिज़्बुल्लाह और प्रतिरोधकर्ताओं के अस्तित्व की बरकत से लेबनान एक आदर्श भूमि में बदल चुका है और वास्तव में एेसी जगहें कम ही होंगी जहां इतने सारे सच्चे ईमान वाले और निष्ठावान लोग मौजूद हों।

उन्होंने कहा कि यद्यपि भौगोलिक दृष्टि से लेबनान एक छोटा सा देश है लेकिन आध्यात्मिक दृष्टि से वह पूरे क्षेत्र में प्रभाव रखता है और एेसा प्रतिरोध आंदोलन के शहीदों के ख़ून की बरकत से है। इस मुलाक़ात में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने शहीद मुस्तफ़ा बदरुद्दीन के पुत्र अली बदरुद्दीन को अपनी अंगूूठी भेंट स्वरूप दी। ज्ञात रहे कि लेबनान के हिज़्बुल्लाह संगठन के वरिष्ठ कमांडर मुस्तफ़ा बदरुद्दीन 13 मई को सीरिया की राजधानी दमिश्क़ के हवाई अड्डे के निकट तकफ़ीरी आतंकी गुटों द्वारा किए गए तोपख़ाने के हमले में शहीद हो गए थे।  

 

इस्राईल की ओर से पाबंदी लगाए जाने के बावजूद ग़ज़्ज़ा से आने वाले तीन सौ से अधिक फ़िलिस्तीनी बैतुल मुक़द्दस में नमाज़े जुमा में भाग लेने के लिए पहुंचे हैं।

फ़िलिस्तीन के नागरिक मामलों के अधिकारी ने बताया है कि शुक्रवार को ग़ज़्ज़ा के 300 से अधिक नागरिक बैत हानून से हो कर अतिग्रहित बैतुल मुक़द्दस पहुंच गए ताकि मस्जिदुल अक़सा में होने वाली नमाज़े जुमा में भाग ले सकें। ज्ञात रहे कि इस्राईली सैनिक फ़िलिस्तीनी नमाज़ियों को बड़ी मुश्किल से मस्जिदुल अक़सा में नमाज़े जुमा में भाग लेने की अनुमति देते हैं और 45 साल से कम आयु के लोगों को नमाज़े जुमा में शामिल होने की अनुमति नहीं होती।

उधर फ़िलिस्तीनी अधिकारियों ने आशंका जताई है कि एविग्डर लिबरमैन को ज़ायोनी शासन का युद्ध मंत्री बनाए जाने से फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध अपराधों और अत्याचारों की नई लहर शुरू हो सकती है। पीएलओ के कार्यकारी समिति के प्रमुख साएब उरैक़ात ने कहा कि लिबरमैन को इस्राईल का युद्ध मंत्री बनाए जाने से पहले की तुलना में जातिवादी कार्यवाहियों और ज़ायोनी काॅलोनियों के निर्माण में वृद्धि होगी और दो सरकारों के गठन की योजना ठप्प पड़ जाएगी। उन्होंने कहा कि इससे धार्मिक व राजनैतिक चरमपंथ, आतंकवाद, हिंसा और रक्तपात में बढ़ोतरी होगी।