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पूरे अधिकार के साथ वार्ता, रोम में ईरान-अमेरिका वार्ता पर एक्स यूज़र की राय
19 अप्रैल, 2025 को इस्लामी गणतंत्र ईरान और अमेरिका के बीच, इटली की राजधानी रोम में परमाणु वार्ता का दूसरा दौर आयोजित हुआ।
विश्लेषकों का मानना है कि रोम में ईरान-अमेरिका परमाणु वार्ता तनाव कम करने और मतभेदों को सुलझाने का कूटनीतिक प्रयास है। विश्लेषक इसे ईरान के शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम के अधिकार को साबित करने और अवैध प्रतिबंधों को हटाने के अवसर के रूप में देखते हैं। पार्स टुडे के अनुसार, एक्स पर अली नाम के एक यूज़र ने लिखाः रोम वार्ता ने दिखाया कि ईरान अधिकार के साथ वार्ता में शामिल हुआ है। हमारे परमाणु अधिकार एक लेड लाइन है। अमेरिका को प्रतिबंध हटाने होंगे, वरना कोई समझौता नहीं होगा।
रहमतुल्लाह बेगदिली नाम के एक दूसरे यूज़र ने अपने ट्वीट में ईरान-अमेरिका वार्ता के दूसरे दौर का ज़िक्र करतेह लिखाः राष्ट्रीय हितों की दिशा में एकजुटता के लिए नेतृत्व की पहल एक पथ-प्रदर्शक रही है। जब व्यवस्था के सभी स्तंभ इस रास्ते पर सहमत होते हैं और लोग एकजुट और ख़ुश होते हैं, तो इसका मतलब है कि व्यवस्था, राष्ट्र और देश सही रास्ते पर हैं।
जवाद नाम के एक अन्य यूज़र का कहना था कि रोम वार्ता में ईरान ने अमेरिका और इज़रायल को दिखा दिया कि हमारे ऊपर उनकी ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं चलेगी। हम 60 फ़ीसद संवर्धन जारी रखेंगे और प्रतिबंधों को बेअसर कर देंगे।
एक्स पर फ़ारसी भाषा के नाज़ी नाम के यूज़र ने लिखाः रोम वार्ता ईरान के सम्मान के लिए एक मंच है। हम सभी को अपनी वार्ता टीम का समर्थन करना चाहिए। न तो अंध आशावाद और न ही शुद्ध निराशावाद। परमाणु ऊर्जा हमारा अधिकार है और मुझे उम्मीद है कि इस अधिकार का दृढ़ता से बचाव किया जाएगा।
यासिर आग़ाई ने लिखाः ईरान के साथ वार्ता में अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख स्टीव विटकॉफ़ और उनके साथ आई टीम की ओर से कोई कठोर रुख़ नहीं देखा गया। यह दृष्टिकोण ईरान के संबंध में ट्रम्प प्रशासन के आधिकारिक और दिखावटी रुख़ से पूरी तरह अलग है।
अहमद ज़ैदाबादी ने ट्वीट किया कि अमेरिकी अधिकारियों ने रोम में इस्लामिक रिपब्लिक के अधिकारियों के साथ दूसरे दौर की वार्ता में व्याप्त माहौल के बारे में अभी तक कोई टिप्पणी नहीं की है। उनकी देरी कुछ हद तक संदिग्ध है, लेकिन यह तथ्य कि तीसरे दौर की वार्ता निर्धारित की गई है, भविष्य के लिए आशा की किरण दिखाता है।
महदिए अल्लाहयारी का कहना थाः रोम वार्ता ईरान के व्यापक कूटनीतिक प्रयासों का एक हिस्सा मात्र है। आंतरिक एकता बनाए रखते हुए, वार्ता दल को ईरान के प्रतिनिधियों के रूप में समर्थन दिया जाना चाहिए। ईरान अलग-थलग नहीं है, और शांतिपूर्ण परमाणु तकनीक हमारी रेड लाइन है।
ईरान के परमाणु कार्यक्रम को संरक्षित रखना, मज़बूती से बातचीत करना और वार्ता दल पर भरोसा करना, इन तीन बिंदुओं को दूसरे दौर की वार्ता में एक्स उपयोगकर्ताओं की सबसे महत्वपूर्ण राय माना जा सकता है।
ईरान-अमरीका वार्तालाप में इज़राइली मीडिया की हार
अमेरिका के सामने अपनी रेड लाइंस निर्धारित करने में ईरान की सफलता से खिन्न ज़ायोनी मीडिया ने वार्ता की पक्षपातपूर्ण कवरेज करके दर्शा दिया कि इज़राइल को हार के अलावा कुछ हासिल नहीं हुआ है।
ट्रम्प द्वारा परमाणु समझौते से निकलने के कारण उत्पन्न हुए तनाव के बाद एक बार फिर ईरान और अमेरिका वार्ता की मेज़ पर लौट आए हैं।
कल इटली की राजधानी रोम में ईरान के विदेश मंत्री सैय्यद अब्बास अराक़ची और पश्चिम एशिया के लिए ट्रम्प के विशेष प्रतिनिधि स्टीव विटकॉफ़ की अध्यक्षता में अप्रत्यक्ष वार्ता हुई।
दोनों पक्षों ने इन वार्ताओं को सकारात्मक और रचनात्मक क़रार दिया है और बताया कि वार्ता अगले सप्ताह भी जारी रखने का निर्णय लिया गया है।
हालिया वार्ता में ईरान ने स्पष्ट सफलता ऐसे समय में हासिल की है, जब ईरान और अमेरिका के बीच अप्रत्यक्ष वार्ता शुरू होने से पहले ज़ायोनी नेताओं और मीडिया ने दावा किया था कि वार्ता में ईरान का पक्ष कमज़ोर रहेगा।
हालांकि, दो दौर की वार्ता के दौरान, हमने देखा कि ईरानी विदेश मंत्री सैय्यद अब्बास अराक़ची और दूसरे ईरानी अधिकारियों के बयानों के अनुसार, वार्ता अप्रत्यक्ष रूप से जारी रही और वार्ता समाप्त होने के बाद, राजनयिक शिष्टाचार का पालन करने के लिए ईरानी और अमेरिकी प्रतिनिधिमंडलों ने एक-दूसरे के साथ एक संक्षिप्त बैठक की।
दूसरी ओर, वार्ता से पहले ही यह स्पष्ट हो गया था कि वाशिंगटन ने दोनों देशों के बीच मध्यस्थ के रूप में ओमान को शामिल करने की ईरान की मांग को स्वीकार कर लिया है, और मध्यस्थ के लिए वाशिंगटन की पसंद यूएई को तेहरान ने स्वीकार नहीं किया है।
बिना किसी धमकी और परस्पर सम्मान के माहौल में निष्पक्ष वार्ता ईरान की मांगों में से एक थी। अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू मीडिया में प्रकाशित रिपोर्टों के अनुसार, वार्ता के सम्मानजनक माहौल के अलावा, पश्चिम एशियाई मामलों के लिए अमेरिकी प्रतिनिधि स्टीव विटकॉफ़ ने अराक़ची को दिए गए मसौदे में ईरान की परमाणु सुविधाओं को नष्ट करने या देश के ख़िलाफ़ किसी भी ख़तरे का उल्लेख नहीं किया है।
हालांकि, प्रतिष्ठित वैश्विक मीडिया की रिपोर्टों के विपरीत, ज़ायोनी शासन के मीडिया ने तेहरान पर कमज़ोर पड़ने और वाशिंगटन की मांगों के आगे झुकने का आरोप लगाया है।
वार्ता की शुरुआत और तेहरान और वाशिंगटन के बीच कूटनीतिक प्रयासों के इस दौर की सफलता के बारे में कई रिपोर्टों के प्रकाशन के बावजूद, ज़ायोनी शासन से जुड़े मीडिया आउटलेट्स ईरान की छवि को ख़राब करने में लग गए।
इन मीडिया संस्थानों द्वारा प्रकाशित सभी रिपोर्टों को तेहरान और वाशिंगटन ने ख़ारिज कर दिया है और दोनों पक्षों ने घोषणा की है कि वार्ता सफल रही और अगले हफ़्ते भी जारी रहेगी।
अपने राष्ट्रीय मूल्यों और हितों के लिए खड़े होने में ईरान का दृष्टिकोण इतना सफल रहा कि तेहरान के राजनीतिक दृष्टिकोण को कमज़ोर करने के ज़ायोनियों के प्रयासों के बावजूद, वैश्विक मीडिया ने वार्ता को ईरान के लिए कूटनीतिक जीत के रूप में संदर्भित किया है।
इस संबंध में अल-जज़ीरा ने ईरान और अमेरिका के बीच अप्रत्यक्ष वार्ता के बारे में कहा कि ओमान में जो कुछ हुआ वह क्षेत्र के सबसे जटिल मामलों में से एक है, जो ईरानी कूटनीति और प्रभाव के लिए एक बड़ी जीत है।
इन व्याख्याओं के संदर्भ में कहा जा सकता है कि वार्ता प्रक्रिया के दौरान जो भी हो, लेकिन अमेरिका से अपनी रेड लाइंस मनवाने में ईरान ने सफलता हासिल की है। इसके अलावा, कूटनीति की जीत को देखते हुए, ज़ायोनी शासन के मीडिया द्वारा इन घटनाक्रमों का पक्षपातपूर्ण कवरेज उसके लिए अपमान से ज़्यादा कुछ नहीं है।
इसराइली सेना ने गाज़ा पट्टी को दो हिस्सों में बाँटने की योजना बना रही है
एक हिब्रू भाषा की वेबसाइट ने बताया है कि इसराइली सेना गाज़ा पट्टी को दो हिस्सों में बाँटने की योजना बना रही है, ताकि उनके अनुसार हमास पर दबाव डाला जा सके।
एक हिब्रू भाषा की वेबसाइट ने बताया है कि इसराइली सेना गाज़ा पट्टी को दो हिस्सों में बाँटने की योजना बना रही है, ताकि उनके अनुसार हमास पर दबाव डाला जा सके।
इस योजना को अमल में लाने के लिए इसराइली एक हिब्रू भाषा की वेबसाइट ने बताया है कि इसराइली सेना गाज़ा पट्टी को दो हिस्सों में बाँटने की योजना बना रही है, ताकि उनके अनुसार हमास पर दबाव डाला जा सके सेना को लेबनान, सीरिया और वेस्ट बैंक जैसे इलाकों से बड़ी संख्या में सैनिकों को बुलाना होगा।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इसराइली सेना अब तक गाज़ा पर 1300 से ज़्यादा हमले कर चुकी है और गाज़ा के करीब 40% हिस्से पर उसका नियंत्रण है।
इसके बावजूद फिलिस्तीनी प्रतिरोध बल पूरी तरह घेराबंदी में होने के बावजूद इसराइली सैनिकों पर अचानक हमले कर रहे हैं और अब भी सक्रिय हैं।यह पूरी स्थिति इस बात को दर्शाती है कि गाज़ा में हालात लगातार तनावपूर्ण हैं और संघर्ष दोनों ओर से जारी है।
इंक़लाब के मिज़ाज के अनुरूप तलबा की तरबियत, मदरसों का सबसे अहम लक्ष्य
यज़्द प्रांत में महिला मदरसों की प्रबंधकों ने कहा,छात्राओं की सही परवरिश बहुत ज़रूरी है और मदरसों के प्रबंधकों का सबसे अहम मकसद यह होना चाहिए कि वे इस्लामी क्रांति के आदर्शों के अनुसार तलबा को तैयार करें।
यज़्द प्रांत में महिला मदरसों की प्रबंधकों ने कहा,छात्राओं की सही परवरिश बहुत ज़रूरी है और मदरसों के प्रबंधकों का सबसे अहम मकसद यह होना चाहिए कि वे इस्लामी क्रांति के आदर्शों के अनुसार तलबा को तैयार करें।
मदरसों का सबसे ज़रूरी मकसद यह है कि वे ऐसे छात्र और छात्राएं (तलबा) तैयार करें जो इस्लामी क्रांति के आदर्शों के अनुसार हों यानी सोचने-समझने वाले, समझदार और समाज के लिए फायदेमंद लोगो हैं।
अच्छे नतीजे के लिए दोनों तरफ से मेहनत चाहिए शिक्षक को सक्रिय होना चाहिए और छात्र को सीखने के लिए तैयार होना चाहिए।उन्होंने कहा कि खुदा ने इंसान के विकास के लिए इस दुनिया को खास बनाया है, ताकि इंसान इसमें तरक्की कर सके और अपनी काबिलियत को उभार सके।
अगर इंसान को सिर्फ आँख-कान नाक के ज़रिए तालीम दी जाए और उसे सोचने की आदत न डाली जाए, तो वह सिर्फ मौज-मस्ती और आसानी की तलाश करेगा। ऐसी पीढ़ी तैयार हो रही है जो बिना दिमाग लगाए चल रही है और यही एक चिंता की बात है।
आजकल के तलबा लंबी भाषणों या भारी किताबों से दूर भागते हैं, इसलिए उन्हें छोटी-छोटी अच्छी कहानियों और प्रेरणादायक उदाहरणों से सिखाना चाहिए। उन्हें सोचने की आदत डालनी चाहिए, क्योंकि आज की सबसे बड़ी कमी यही है लोग सोचते नहीं।
किताबें ऐसी होनी चाहिए जो तलबा को सोचने पर मजबूर करें, न कि उन्हें सिर्फ रटने की मशीन बना दें।उन्होंने कहा कि नौजवानों का दिल एक बहुत कीमती अमानत है, और उनकी परवरिश ऐसे होनी चाहिए कि वे अपने टीचरों से भी आगे सोच सकें।बैठक में मौजूद प्रिंसिपल्स और मैनेजर्स ने अपनी परेशानियाँ भी बताईं, और इब्राहीमीयन साहब ने उनके सवालों के जवाब दिए।
आप अल्लाह को धोखा नहीं दे सकतेः मरहूम अल्लामा मिस्बाह यज़्दी
अल्लाह तआला बाहरी दिखावे और दावों से धोखा नहीं खाता। कोई व्यक्ति दावा कर सकता है कि वह ज्ञान और परहेज़गारी वाला है या दूसरों को भलाई के रास्ते पर ले जाना चाहता है, लेकिन असल में वह चालाकी और धोखे में हो सकता है। अगर कोई सच्चाई से अल्लाह के सामने सच बोलता है, तो उसे शुरू में ही उसके असर के कुछ निशान दिखाई देने लगते हैं।
मरहूम अल्लामा मिस्बाह ने अपनी एक तक़रीर में «अल्लाह के इरादे से जुड़ाव और अमल में सच्चाई» के विषय पर बात की, जो आपके समक्ष प्रस्तुत है। कमजोर इंसान जब ब्राह्माण की शक्ति के स्रोत, यानी «अल्लाह के इरादे» से जुड़ता हैं, तो वे एक अनंत ऊर्जा के स्रोत से ताकत पा सकता हैं। लेकिन यह संबंध केवल दावे या बातों से स्थापित नहीं होता।
* अल्लाह तआला के सामने सच्चे बनो
अल्लाह तआला बाहरी दिखावे और दावों से धोखा नहीं खाता। कोई व्यक्ति दावा कर सकता है कि वह ज्ञान और परहेज़गारी वाला है या दूसरों को भलाई के रास्ते पर ले जाना चाहता है, लेकिन असल में वह चालाकी और धोखे में हो सकता है।
एक बुज़ुर्ग आलिम के शब्दों में, "हम धोखा देने नहीं जाते क्योंकि अल्लाह को धोखा नहीं दिया जा सकता।"
अगर कोई अल्लाह के सामने सच्चाई से कहे, "हे अल्लाह, मैं तेरा बंदा हूँ, मैं वही करना चाहता हूँ जो तू पसंद करता है और इसके लिए हर कीमत चुकाने को तैयार हूँ, हर प्रकार की कुर्बानी देने को तैयार हूँ," और अगर वह सच में सच्चा हो, तो उसे शुरू में ही इसके कुछ असर दिखाई देने लगेंगे।
हालांकि, इस सच्चाई के बड़े इनाम और गहरे प्रभाव पाने के लिए परीक्षा के कई चरणों से गुजरना पड़ता है।
* सच्चाई में सफ़लता के दो हथियार: सब्र और तक़वा
इंसान को विभिन्न चरणों से गुजरना पड़ता है ताकि वह धीरे-धीरे अंतिम इनाम पाने के योग्य बन सके। सब कुछ शुरू में साफ़ नहीं दिखता। जैसे कि विद्वानों ने कहा है: "सच्ची खुशी परीक्षा के समय ही सामने आती है, ताकि हर उस व्यक्ति का असली चेहरा उजागर हो सके जिसका केवल बाहरी रूप होता है।"
परीक्षा में ही पता चलता है कि कौन सच में अपने शब्दों पर कायम है और कौन झूठ बोलता है या चालाक और धोखेबाज़ है।
अगर कोई अपने दावे में कि वह अल्लाह का बंदा है, सच्चा हो और इस रास्ते में धैर्य और स्थिरता दिखाए, तो अल्लाह का वादा कभी टूटता नहीं है और अल्लाह उसे अकेला नहीं छोड़ता। अल्लाह ने क़ुरआन में फरमाया है:
وَلَئِنْ صَبَرْتُمْ وَاتَّقَیْتُمْ وَأَتَوْکُمْ مِنْ فَوْرِهِمْ هَذَا یُمْدِدْکُمْ رَبُّکُمْ بِخَمْسَةِ آلافٍ مِنَ الْمَلائِکَةِ مُسَوِّمِینَ «और यदि तुम सब्र करो और परहेज़गारी अपनाओ और दुश्मन अचानक तुम पर हमला करे, तो तुम्हारा रब तुम्हारी मदद करेगा पाँच हज़ार फरिश्तों के साथ।»
इस आयत में अल्लाह की मदद पाने के लिए दो शर्तें बताई गई हैं:
पहली, सब्र और धैर्य,
और दूसरी, तक़वा और अल्लाह की आज्ञा का पालन।
हमें यकीन होना चाहिए कि अगर हम सब्र और तक़वा (परहेज़गारी) के साथ अल्लाह की राह पर चलें, तो अल्लाह हमें कभी अकेला नहीं छोड़ेगा। भले ही हमारे पास सभी सांसारिक और ज़ाहेरी साधन छिन जाएं, फिर भी अल्लाह की मदद और फरिश्तों की सहायता हमारे साथ बनी रहेगी।
इस अल्लाह की मदद का एक उदाहरण "बदर की लड़ाई" में देखा जा सकता है, और एक और उदाहरण "लेबनान की 33 दिन की लड़ाई" है, जहाँ अल्लाह की मदद स्पष्ट रूप से नजर आई।
अब सवाल यह है कि हम इस अनंत शक्ति के स्रोत से कैसे लाभ उठा सकते हैं?
इसका रास्ता है: ईमान, तक़वा (परहेज़गारी), सब्र और स्थिरता
सबसे पहले यह मानना जरूरी है कि ये बातें हकीकत हैं, सिर्फ़ कल्पना या भ्रम नहीं हैं। फिर हमें अल्लाह की आज्ञा का सच्चा इरादा करना चाहिए।
हमें अल्लाह की हिदायतों को सिर्फ़ नारे की तरह नहीं बोलना चाहिए, बल्कि उनके खिलाफ काम भी नहीं करना चाहिए। पिछले कई दशकों के अनुभवों में भी देखा गया है कि कुछ लोग ज़ाहिर में सही रास्ते और सच्चाई की बात करते हैं, लेकिन असल में उनका व्यवहार उससे उल्टा होता है।
अल्लाह के साथ कोई धोखा नहीं कर सकता। अगर कोई खुद को अल्लाह का बंदा कहता है, तो उसे ईमानदारी से उस बात पर कायम रहना चाहिए। क़ुरआन मजीद में फरमाया गया है:
مِنَ الْمُؤْمِنِینَ رِجَالٌ صَدَقُوا مَا عَاهَدُوا اللَّهَ عَلَیْهِ «मोमिनों में ऐसे लोग भी हैं जो अल्लाह के साथ किए गए अपने वादे पर सच्चाई से कायम हैं।»
अगर इंसान अल्लाह के साथ अपने वादे में सच्चा हो, तो वह अल्लाह की मदद और जीत के वादे पर भरोसा कर सकता है। भले ही उनकी संख्या कम हो, उनके पास दिखावटी ताकत या आधुनिक हथियार न हों, लेकिन अगर उनका ईमान मजबूत हो, अल्लाह की पूरी आज्ञा माने, और धैर्य व स्थिरता दिखाए, तो अल्लाह उनकी मदद करेगा।
अमेरिका के 700 शहरों में ट्रंप सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन
20 अप्रैल 2025 को अमेरिका के 700 से अधिक शहरों में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। यह प्रदर्शन 50501 आंदोलन के बैनर तले आयोजित किए गए।
20 अप्रैल 2025 को अमेरिका के 700 से अधिक शहरों में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। ये प्रदर्शन "50501" आंदोलन के बैनर तले आयोजित किए गए,
प्रदर्शन अमेरिका के सभी 50 राज्यों में हुए, जिसमें वाशिंगटन डीसी, न्यूयॉर्क, शिकागो, लॉस एंजेल्स, मियामी और ह्यूस्टन जैसे प्रमुख शहर शामिल थे केवल वाशिंगटन डीसी में ही 20,000 से अधिक प्रदर्शनकारियों ने भाग लिया अमेरिका के अलावा कनाडा, मैक्सिको और कई यूरोपीय देशों में भी ट्रंप की नीतियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए।
आव्रजन नीतियों, व्यापार शुल्कों, शैक्षिक बजट में कटौती और सरकारी नौकरियों में 20,000 से अधिक कटौती के खिलाफ विरोध टेस्ला के सीईओ एलोन मस्क की सरकार में बढ़ती भूमिका के खिलाफ आक्रोश किल्मार अब्रेगो गार्सिया के मामले पर चिंता, जिन्हें गलती से अल सल्वाडोर भेज दिया गया था।
यह आंदोलन फरवरी 2025 में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म रेडिट से शुरू हुआ और जल्दी ही एक राष्ट्रीय विरोध अभियान में बदल गया आंदोलन ने खुद को "अमेरिकी कामकाजी वर्ग की आवाज" बताया जो "अधिनायकवादी शासन और सरकारी भ्रष्टाचार" के खिलाफ लड़ रहा है 5 अप्रैल को "हैंड्स ऑफ! प्रदर्शनों में 1,400 से अधिक स्थानों पर लाखों लोगों ने भाग लिया, जिसे अब तक के सबसे बड़े जन विरोध में गिना जा रहा है।
सैन फ्रांसिस्को में प्रदर्शनकारियों ने "इम्पीच एंड रिमूव!" शब्दों को बनाने के लिए मानव श्रृंखला बनाई मियामी में कुछ प्रदर्शनकारियों ने अमेरिकी झंडे को उल्टा पकड़ा, जिसे वे "संकट का प्रतीक" बताते हैं कई शहरों में खाद्य और कपड़े वितरण, पर्यावरण सफाई और भविष्य की रणनीति पर चर्चा जैसी गतिविधियाँ भी आयोजित की गईं।
गैलप के हालिया सर्वेक्षण के अनुसार, ट्रंप की लोकप्रियता में गिरावट आई है, जनवरी में 47% से घटकर अब 43% रह गई है डेमोक्रेटिक नेताओं ने इन प्रदर्शनों का समर्थन किया है सीनेट अल्पसंख्यक नेता चक शूमर ने कहा कि "ट्रंप के अराजक और विफल नेतृत्व के तहत बढ़ती लागत और कम स्वतंत्रता का सामना करने वाले अधिक अमेरिकियों के साथ सार्वजनिक भावना डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ बढ़ रही है।
यह विरोध प्रदर्शन अमेरिकी राजनीति में बढ़ते ध्रुवीकरण और ट्रंप प्रशासन की विवादास्पद नीतियों के प्रति जनता के आक्रोश को दर्शाते हैं। आयोजकों का कहना है कि यह आंदोलन जारी रहेगा और 2024 के चुनावों में मतदान केंद्रित कार्रवाई में तब्दील होगा।
दोस्त वह है, जो तुम्हें बुराई से रोके
हर इंसान अपने साथियों से प्रभावित होता है और हर इंसान के भाग्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा उसके साथियों द्वारा निर्धारित होता है।
इस दुनिया में इंसान बिना दोस्तों के, अजनबी और परदेसी की तरह रहता है, और उसके लिए जीवन का कोई अर्थ नहीं होता। ऐसे बहुत से लोग हैं, जो सच्चे और हमदर्द दोस्तों के आशीर्वाद से पूर्णता और समृद्धि के शिखर पर पहुंचे हैं, और दूसरी ओर, ऐसे भी बहुत से लोग हैं जो बुरे और अयोग्य लोगों की संगत और दोस्ती के कारण, असफल रहे हैं। लेकिन अच्छे और सच्चे दोस्त पाने के लिए हमें क्या करना चाहिए? इस संबंध में पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों की हदीसें हमारा मार्गदर्शन कर सकती हैः
अच्छे लोगों की संगति
पैग़म्बरे इस्लाम (स) की हदीस हैः अच्छे लोगों के सथ उठो-बैठो, क्योंकि अच्छा काम करोगे वह तुम्हारा उत्साह बढ़ायेंगे और अगर बुराई करोगे तो वह तुम्हारी आलोचना करेंगे।
अच्छा दोस्त
इमाम हुसैन (अ)
तुम्हारा वह दोस्त है, जो तुम्हें बुराई से रोके और वह तुम्हारा दुश्मन है, जो गुनाह करने के लिए प्रोत्साहित करे।
अधिक दोस्त
इमाम हसन असकरी (अ)
जिस व्यक्ति का चरित्र पवित्र है, जिसका स्वभाव उदार है, और जिसका चरित्र सहनशील है, उसके अनेक मित्र होंगे।
समस्त बुराईयां
हज़रत अली (अ)
तुम्हारी समस्त बुराईयां, बुरी संगति की वजह से हैं।
मुर्दा दिल दोस्त
पैग़म्बरे इस्लाम (अ)
मुर्दा दिल लोगों के साथ उठने-बैठने से बचो। लोगों ने पूछा हे ईश्वरीय दूत, मुर्दा दिल लोग कौन हैं? फ़रमायाः हर धनवान व्यक्ति जिसका धन उसे विद्रोही बनाता है।
दोस्ती का कर्तव्य
इमाम सादिक़ (अ)
जो कोई अपने दोस्त को बुराई करते देखे और सक्षम होने के बावजूद उसे उससे नहीं रोके, तो उसने उसके साथ ग़द्दारी की है, और जो कोई नादान से दोस्ती करने से नहीं बचेगा, संभवतः उसी की तरह हो जाएगा।
दोस्त के साथ बर्ताव
हज़रत अली (अ)
दोस्त के साथ हमदर्दी करो, अगर वह तुम्हारी बात नहीं भी माने और उसके साथ संपर्क में रहो भले ही वह तुम्हे सताए।
तीन आदतें
हज़रत अली (अ)
तीन आदतें दोस्ती का कारण बनती हैः अच्छा स्वभाव, दयालुता और विनम्रता।
हौज़ात ए इल्मिया के निर्माण का मकसद ही लोगों की सेवा करना है
हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख ने कहा,हौज़ा-ए-इल्मिया की स्थापना का मकसद जनता की सेवा करना और उनकी बौद्धिक व सांस्कृतिक ज़रूरतों को पूरा करना है। हमें हौज़ा-ए-इल्मिया को समाज और क्रांति के लक्ष्यों के अधीन करना चाहिए, और इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सामंजस्य और बौद्धिक आदान-प्रदान की आवश्यकता है।
हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा अराफी ने मदरसा ए इल्मिया हज़रत अब्दुल अज़ीम हुसनी अ.स.के आयतुल्लाह बोरोजर्दी (रह.) हॉल में तेहरान प्रांत के सांस्कृतिक व प्रशासनिक अधिकारियों, मजलिस-ए-शूरा-ए-इस्लामी में तेहरान के प्रतिनिधियों और हौज़ा के प्रांतीय संस्थानों की समन्वय परिषद के सदस्यों से मुलाकात में कहा,हौज़ा ए इल्मिया की स्थापना का मकसद जनता की सेवा करना और उनकी बौद्धिक व सांस्कृतिक ज़रूरतों को पूरा करना है।
उन्होंने कहा,हौज़ा को समाज और क्रांति के लक्ष्यों के अनुरूप बनाना चाहिए और इसके लिए समन्वय और बौद्धिक सहयोग ज़रूरी है।आयतुल्लाह आराफी ने कहा,तेहरान देश के अन्य सभी क्षेत्रों से अलग है, इसलिए तेहरान के सांस्कृतिक संस्थान और हौज़ा भी अन्य सभी हौज़ात से अलग हैं।
उन्होंने आगे कहा,अतीत में भी हमारे पास बड़े और महान वैज्ञानिक हौज़ात थे जिन्हें फिर से पुनर्जीवित करना चाहिए। नीति यह है कि हौज़ात ए इल्मिया हर जगह विकास करें।
हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख ने कहा,मस्जिद के मामलों को पर्याप्त और विशेष महत्व देना चाहिए क्योंकि एक सशक्त और सक्रिय मस्जिद ही कई समस्याओं को सीधे और अप्रत्यक्ष रूप से हल कर सकती है।
हिज़्बुल्लाह/ हमने इज़राइल को उसका लक्ष्य हासिल करने से रोक दिया
लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह के महासचिव ने कहा: अगर प्रतिरोध की दृढ़ता न होती, तो ज़ायोनी शासन अपना आक्रमण जारी रखता।
हिज़्बुल्लाह के महासचिव शैख़ नईम क़ासिम ने शुक्रवार रात को एक भाषण में कहा कि दक्षिणी सीमाओं (मक़बूज़ा फिलिस्तीनी क्षेत्रों की सीमाओं) पर लेबनानी प्रतिरोध ने इज़राइल को रोक दिया और इज़राइल को अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने से रोक दिया।
उन्होंने कहा: हिज़्बुल्लाह ने इज़राइली सेना को आगे बढ़ने से रोका और इज़राइल को सहमत होने के लिए मजबूर किया और अगर प्रतिरोध की दृढ़ता नहीं होती, तो ज़ायोनी शासन ने (दक्षिणी लेबनान पर) अपना आक्रमण जारी रखा होता।
लेबनान के हिजबुल्लाह के महासचिव ने कहा: "इजराइली शासन विस्तारवादी है और वह फिलिस्तीन पर क़ब्ज़े से संतुष्ट नहीं है, बल्कि लेबनान पर भी कब्जा करना चाहता है।
उन्होंने कहा कि हिज़्बुल्लाह ने युद्ध विराम समझौते का पूरी तरह पालन किया है। उन्होंने कहा, युद्ध विराम समझौते के बाद से ज़ायोनी शासन ने लेबनान पर 2 हज़ार 700 से अधिक बार हमला किया है।
लेबनान के हिज़्बुल्लाह के महासचिव ने कहा: "जब तक लेबनानी सेना और जनता के साथ प्रतिरोध खड़ा रहेगा, ज़ायोनी शासन अपने लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर पाएगा।"
शैख़ नईम कासिम का यह बयान ऐसे समय में आया है जब लेबनान में हिज़्बुल्लाह की कार्यकारी परिषद के उपाध्यक्ष अली दामूश ने शुक्रवार को एक भाषण में इस बात पर ज़ोर दिया कि लेबनान और क्षेत्र को तोड़ने वाला "कैंसर" इज़राइल है, जिसका समर्थन अमेरिका भी कर रहा है।
दामुश ने कहा: लेबनान में अमेरिका की उपस्थिति का मुख्य उद्देश्य इज़राइल की रक्षा करना और इस शासन को अपना प्रभुत्व मजबूत करने और क्षेत्र में अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करना है।
उन्होंने कहा कि "इज़राइल" लगातार युद्धविराम समझौते का उल्लंघन कर रहा है और लेबनानी नागरिकों पर हमला कर रहा है, जबकि अमेरिका लेबनान पर दबाव बनाने और अपनी मांगें थोपने के लिए इन हमलों का पूरा समर्थन करता है।
हिज़्बुल्लाह की कार्यकारी परिषद के डिप्टी ने इस बात पर जोर दिया कि जो कोई भी इज़राइली धमकियों के अंत और इस्राईल के हमलों को रोकने से पहले प्रतिरोध के निरस्त्रीकरण का आह्वान करता है, वह व्यावहारिक रूप से दुश्मन के लक्ष्यों को पूरा कर रहा है।
उन्होंने कहा: इस समय प्रतिरोध के निरस्त्रीकरण पर चर्चा करना लेबनान के हितों के विरुद्ध है और इससे देश की स्थिति और शक्ति कमज़ोर होगी।
लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह की कार्यकारी परिषद के उपाध्यक्ष ने कहा: हम दिखावे और दबाव से प्रभावित नहीं होंगे और हम ऐसी धमकियों के आगे आत्मसमर्पण नहीं करेंगे।
सैयद बाकिर अलमूसवी के इंतकाल पूरे शिया समुदाय के लिए एक भारी क्षति
मरहूम व मग़फ़ूर विनम्र स्वभाव और अत्यंत सादगी के साथ अपना जीवन दीन-ए-मुबीन की सेवा मकतब-ए-अहलेबैत अ.स. के प्रचार-प्रसार, समाज के सुधार और किताबें लिखने में व्यतीत किया उनका अस्तित्व ज्ञान, सहनशीलता और निष्ठा का एक सुंदर संगम था।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली हुसैनी सिस्तानी के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मौलाना सैयद अशरफ अली ग़रवी का शोक संदेश
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलाही राजी'उन
बेहद दुख और गहरे मातम के साथ यह खबर मिली कि अमल करने वाले आलिम, हुज्जतुल इस्लाम वाल मुस्लिमीन जनाब सैयद बाकिर अलमूसवी इस दुनिया से परलोक की ओर चले गए।
मरहूम बेहद विनम्र स्वभाव, मधुर भाषी और अत्यंत सादगी भरी ज़िंदगी जीने वाले थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन दीन-ए-मुबीन की सेवा, मकतब-ए-अहलेबैत (अ.स.) के प्रचार-प्रसार, समाज की सुधार और किताबें लिखने में बिताया।उनका अस्तित्व इल्म, तक़्वा, हिल्म (सहनशीलता) और इख़्लास (ईमानदारी) का एक सुंदर मिश्रण था।
मिम्बर-ए-हुसैनी पर उनकी गरजती आवाज़, मजलिस-ए-अज़ा में उनके प्रभावशाली भाषण और अहलेबैत (अ.स.) के इल्म को फैलाने वाली उनकी लेखनी हमेशा याद रखी जाएगी। उनके रहन-सहन से नजफ के उलेमा की खुशबू महसूस होती थी।
हुज्जतुल इस्लाम वाल मुस्लिमीन आलिमा आक़ा सैयद बाकिर अल-मूसवी (रहमतुल्लाह अलैह) की रिहलत न सिर्फ खानवादा-ए-इल्म बल्कि पूरी मिल्लत-ए-शिया के लिए एक बड़ा नुकसान है।
हम अल्लाह तआला से दुआ करते हैं कि वह मरहूम को मासूमीन अ.स. की सोहबत में बुलंद मकाम अता करे और उनके परिवार, शागिर्दों, मुरीदों व चाहने वालों को सब्र-ए-जमील व अज्र-ए-जज़ील अता फरमाए।
सैयद अशरफ अली अल ग़रवी
बाब-ए-नजफ, सज्जाद बाग कॉलोनी, लखनऊ