
رضوی
मशहद में गाज़ा के समर्थन में विभिन्न देशों के स्टूडेंट का इज़्तेमा
विश्व के 20 देशों के शिक्षकों, धार्मिक विद्वानों और गैरईरानी छात्रों की उपस्थिति में, मशहद स्थित जामिया अलमुस्तफा अलआलमिया के प्रतिनिधि कार्यालय में विश्व इस्लामी मदरसों के छात्रों का ग़ाज़ा के मज़लूम लोगों और प्रतिरोध मोर्चे के समर्थन तथा ज़ायोनी शासन के अत्याचारों के खिलाफ विरोध सम्मेलन आयोजित किया गया।
विश्व के 20 देशों के शिक्षकों, धार्मिक विद्वानों और गैरईरानी छात्रों की उपस्थिति में, मशहद स्थित जामिया अलमुस्तफा अलआलमिया के प्रतिनिधि कार्यालय में विश्व इस्लामी मदरसों के छात्रों का ग़ाज़ा के मज़लूम लोगों और प्रतिरोध मोर्चे के समर्थन तथा ज़ायोनी शासन के अत्याचारों के खिलाफ विरोध सम्मेलन आयोजित किया गया।
आज शनिवार को जामिया अल-मुस्तफा खुरासान के प्रार्थना कक्ष में हुए इस सम्मेलन में अफ्रीका, पूर्वी एशिया, दक्षिण अमेरिका, अरब देशों और भारतीय उपमहाद्वीप के छात्र-छात्राओं ने भाग लिया विभिन्न भाषाएं बोलने वाले इन छात्रों ने एकजुट होकर फिलिस्तीनी जनता के प्रति अपना अटूट समर्थन व्यक्त किया।
कुरान, किबला और न्याय के प्रति प्रेम ने विभिन्न संस्कृतियों, नस्लों और रंगों के छात्रों के दिलों को जोड़ा इस्राइल मुर्दाबाद और अमरीका मुर्दाबाद के नारों से पूरा हॉल गूंज उठा। छात्रों ने ज़ायोनी शासन के बच्चों को मारने वाले अत्याचारों की निंदा की और मुस्लिम व गैर-मुस्लिम देशों की खामोशी की कड़ी आलोचना की।
समारोह के अंत में छात्र प्रतिनिधियों ने एक प्रस्ताव पढ़ा, जिसमें,प्रतिरोध मोर्चे, इस्लामी जागृति और जिहाद-ए-तब्यीन (सत्य का प्रचार) के समर्थन को सभी मुसलमानों का वैश्विक कर्तव्य बताया गया ज़ायोनी शासन द्वारा ग़ज़ा के निर्दोष लोगों, विशेषकर महिलाओं, बच्चों और अस्पतालों पर हमलों को युद्ध अपराध और नरसंहार करार दिया गया।अंतरराष्ट्रीय संगठनों से इन अत्याचारों को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की मांग की गई ।
बयान में वैश्विक समुदाय से ग़ाज़ा की घेराबंदी हटाने, चिकित्सा सहायता भेजने और अमेरिकी-इजरायली उत्पादों का बहिष्कार करने का आग्रह किया गया ।
परमाणु समझौते की ग़लतियाँ दोहराई नहीं जाएंगी
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन हुसैनी ने कहा,वार्ताएं विदेश मंत्रालय के दर्जनों अन्य साधनों में से सिर्फ़ एक ज़मीनी साधन हैं, और परमाणु समझौते में जो पहले ग़लतियाँ हुई थीं उन्हें दोबारा नहीं दोहराया जाएगा।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद सईद हुसैनी ने मस्जिदे बक़ियतुल्लाहुल आज़म काशान में नमाज़े जुमा के खुतबों (उपदेशों) के दौरान भाषण देते हुए कहा,इस्लामी क्रांति की शुरुआत में मुनाफिक़ों और इस्लाम व व्यवस्था के दुश्मनों ने भी सेना को ख़त्म करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी थी।
उन्होंने आगे कहा,इस्लामी क्रांति की जीत के सिर्फ़ एक दिन बाद ही सेना ने अमेरिका द्वारा ईरान में पैदा किए गए फित्नों (साज़िशों) का डटकर मुक़ाबला किया और एक अहम व बुनियादी भूमिका निभाई।
काशान के इमामे जुमा ने रहबर-ए-मआज़म (आयतुल्लाह ख़ामेनेई) के नौरोज़ के मौके पर सरकारी अधिकारियों से मुलाक़ात में ग़ज़्ज़ा को लेकर दिए गए अहम बयानों का ज़िक्र करते हुए कहा,दुश्मन ने निर्दयता की सभी हदें पार कर दी हैं और जब फसाद अपनी चरम सीमा तक पहुँचता है तो अल्लाह की ‘कोड़े वाली परंपरा’ लागू होती है।
हुज्जतुल इस्लाम हुसैनी ने कहा,इस्लामी दुनिया को आर्थिक, राजनीतिक और ज़रूरत पड़ने पर व्यवहारिक स्तर पर एकता और सामूहिक कदम उठाने की आवश्यकता है।
उन्होंने अमेरिका में ट्रंप की नीतियों और ईरान को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति की सोच का हवाला देते हुए कहा,हालिया बातचीत के बाद, अमेरिकी वित्त मंत्री ने दावा किया है कि ईरान पर अधिकतम दबाव डाला जाएगा ताकि उसकी ऊर्जा की निर्यात को शून्य तक पहुंचाया जा सके।हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन हुसैनी ने कहा,
आज अमेरिका की अपनी 50 रियासतों के साथ-साथ फ्रांस, कनाडा, जर्मनी, मैक्सिको, पुर्तगाल और तक़रीबन 1200 इलाक़ों में ट्रंप के ख़िलाफ़ जन आंदोलन (प्रदर्शन) हो रहे हैं।
गाज़ा में इजराइल के हवाई हमले में 17 लोग शहीद
गाज़ा में शुक्रवार तड़के इजराइली हवाई हमले में बच्चों सहित कम से कम 17 लोग मारे गए चिकित्सा कर्मियों ने यह जानकारी दी।
गाज़ा में शुक्रवार को इजराइली हवाई हमले में बच्चों सहित कम से कम 17 लोग मारे गए चिकित्सा कर्मियों ने यह जानकारी दी।
इंडोनेशियाई अस्पताल के चिकित्सा कर्मियों ने बताया कि मृतकों में शामिल 10 लोग जबालिया शरणार्थी शिविर से हैं। वहीं नासिर अस्पताल के कर्मियों ने बताया कि दक्षिणी शहर खान यूनिस में सात लोग मारे गए, जिनमें एक गर्भवती महिला भी शामिल है ये सातों शव इस अस्पताल में लाये गए थे।
इजराइली हमले तेज होने के बाद गाजा में एक दिन पहले दो दर्जन से अधिक लोग मारे गए थे।इजराइल में नियुक्त अमेरिका के राजदूत माइक हकाबी शुक्रवार को ‘वेस्टर्न वाल’ पहुंचे जो यरूशलम के पुराने शहर में यहुदियों का एक प्रमुख प्रार्थना स्थल है।
हकाबी ने दीवार पर एक प्रार्थना पत्र को भी संलग्न किया जिस बारे में उन्होंने बताया कि इसे अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने हाथों से लिखा है।
हकाबी ने बताया कि ट्रंप ने उन्हें यरूशलम में शांति के लिए उनके प्रार्थना पत्र को लेकर जाने को कहा था। हकाबी ने यह भी कहा कि हमास की गिरफ्त में मौजूद शेष सभी बंधकों को वापस लाने के लिए हर कोशिश की जा रही है।
गाजा में 18 महीने से जारी युद्ध के महत्वपूर्ण समय में हकाबी का आगमन हुआ है। अमेरिका सहित अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थ युद्ध विराम को फिर से पटरी पर लाना चाहते हैं।इजराइल की मांग है कि हमास कोई युद्ध विराम शुरू होने से पहले और भी बंधकों की रिहाई करे और आखिरकार क्षेत्र को खाली करने के लिए सहमत हो।
इजराइल ने कहा है कि उसकी योजना गाजा के अंदर बड़े ‘‘सुरक्षा क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण स्थापित करने की है।हमास के वार्ता प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख खलील अलहय्या ने बृहस्पतिवार को कहा था कि समूह ने इजराइल के नवीनतम प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है।
ईरान हमेशा दुनिया भर में मजलूमों के समर्थन में सबसे आगे रहा है
हुज्जतुल इस्लाम इज़दी ने कहा, अगर अमेरिका का समर्थन न होता तो कई साल पहले ही इस्राइली ग़ासिब हुकूमत का नापाक वजूद खत्म हो चुका होता इस्लामी ईरान, जब और जहां भी ज़रूरत पड़ी, मजलूमों की हिमायत समर्थन में सबसे आगे रहा है।
कोहबनान के इमामे जुमआ हुज्जतुल इस्लाम हसन इज़दी ने इस शहर में जुमा के खुतबों के दौरान ग़ज़्ज़ा की स्थिति की तरफ़ इशारा करते हुए कहा,ग़ज़्ज़ा की अवाम तन्हा (अकेले) और मजलूमियत के साथ अपना बचाव कर रही है।
उन्होंने कहा,अमेरिका और ज़ायोनी हुकूमत पूरी दुनिया को जंगल के क़ानून और वहशियत (दरिंदगी) की तरफ़ ले जा रहे हैं, जबकि हम देख रहे हैं कि ये ग़ासिब और ज़ालिम ज़ायोनी ग़ज़्ज़ा के बच्चों और औरतों को खून में नहला रहे हैं।
इमामे जुमा ने आगे कहा अगर अमेरिका का समर्थन न होता, तो कई साल पहले ही ज़ायोनी हुकूमत का नासूर मिट चुका होता। इस्लामी ईरान हमेशा मजलूमों की हिमायत में जहां ज़रूरत पड़ी, वहां मौजूद रहा है।
उन्होंने रहबर-ए-मुअज़्ज़म की हिदायतों का हवाला देते हुए कहा,इस्लामी देशों के बीच आपसी सहयोग और एतबार (भरोसा), दूसरों पर निर्भरता से बेहतर है। हमें अपने विरोधियों से बदगुमानी (संदेह) जरूर है, लेकिन अपनी काबिलियतों पर पूरा भरोसा भी है।
ईरान की वर्तमान शक्ति और अधिकार ने दुश्मन के दांत खट्टे कर दिए
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन शाबानी ने कहा: यदि अमेरिकी राष्ट्रपति ईरान पर अपने रुख से पीछे हटते हैं, तो यह इस राष्ट्र के उत्साही बेटों के संघर्ष का परिणाम होगा। आज देश की ताकत दुश्मन को किसी भी तरह का अतिक्रमण करने की इजाजत नहीं देती।
हमादान के इमाम जुमा हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हबीबुल्लाह शाबानी ने हमादान प्रांत में तैनात सशस्त्र बलों की परेड के अवसर पर "सेना दिवस" की बधाई देते हुए कहा: आज देश की ताकत सभी सैन्य और सुरक्षा संस्थानों के निरंतर प्रयासों का परिणाम है जो लोगों और देश की सुरक्षा के लिए दिन-रात काम कर रहे हैं।
उन्होंने कहा: यदि अमेरिकी राष्ट्रपति ईरान के संबंध में अपने शब्दों को वापस लेते हैं, तो यह ईरान के बहादुर बेटों के जिहादी प्रयासों का परिणाम होगा। आज देश की ताकत दुश्मन को किसी भी तरह का आक्रमण करने की इजाजत नहीं देती।
हमदान के इमाम जुमा ने कहा: ईरान की वर्तमान शक्ति और अधिकार ने दुश्मन के दांत खट्टे कर दिए हैं। दुश्मन को अच्छी तरह पता है कि वह इस देश की सेना, सैनिकों और लोगों के दृढ़ संकल्प का मुकाबला नहीं कर सकता।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन शाबानी ने कहा: आज हम इस शक्ति को परमाणु वार्ता के क्षेत्र में भी देख रहे हैं। दूसरे पक्ष की कुछ मांगों और दावों के बावजूद, यह केवल इस्लामी गणराज्य ईरान ही था जिसने वार्ता के लिए समय, स्थान और प्रक्रिया निर्धारित की।
इज़राइल का मस्जिद ए अक्सा को ध्वस्त करने की योजना हैं
फ़िलिस्तीनी स्वायत्त प्रशासन के विदेश मंत्रालय ने इब्रानी मीडिया में ज़ायोनी बस्तियों से जुड़ी संगठनों द्वारा मस्जिद ए अक़्सा को ढहाने और उसकी जगह जाली हैकल ए सुलेमान बनाने की योजनाओं को लेकर चेतावनी दी है।
फ़िलिस्तीनी विदेश मंत्रालय ने चेतावनी दी है कि यह योजनाएँ बहुत ही खतरनाक हैं और यह यहूदी उग्रपंथी संगठनों से जुड़े मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर जानबूझकर फैलाई जा रही उकसावे वाली बातों का हिस्सा हैं।
फ़िलिस्तीनी समाचार एजेंसी "वफ़ा" के मुताबिक़, मंत्रालय ने शनिवार को कहा कि इस तरह की घोषणाएँ एक सोची-समझी उकसावे की कोशिश हैं, जिनका उद्देश्य कब्ज़े वाले यरूशलेम (बैतुल-मक़दिस) में इस्लामी और ईसाई पवित्र स्थलों को निशाना बनाना है।
खास तौर पर, इस समय जब ग़ाज़ा में हो रहे नरसंहार पर वैश्विक प्रतिक्रिया कमज़ोर दिख रही है, इसराइल में सत्ता में बैठे अतिदक्षिणपंथी गुट इस अवसर का फायदा उठाकर अपने विस्तारवादी और नस्लभेदी 'यहूदीकरण' के एजेंडे को तेज़ी से आगे बढ़ा रहे हैं।
फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और वैश्विक संगठनों से अपील की है कि वे इन भड़काऊ कार्रवाइयों को गंभीरता से लें और (यहूदी उग्रपंथी) सरकार को अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत रोकेँ, जो फिलिस्तीनी जनता के खिलाफ अत्याचार कर रही है।
ग़ौरतलब है कि पिछले गुरुवार को हज़ारों यहूदी उग्रवादियों ने यहूदी त्योहार 'पेसह' के पाँचवें दिन मस्जिद ए अक्सा और बाबुर्रहमा (रहमत का द्वार) पर हमला बोला था।
आपस में एक दूसरे को समझना, मियां बीवी के बीच मोहब्बत को बढ़ा देता है
शादी का मतलब दो वजूदों का एक साथ ज़िन्दगी में एक दूसरे को समझना और आपस में मोहब्बत है।
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने फरमाया,शादी का मतलब दो वजूदों का एक साथ ज़िन्दगी में एक दूसरे को समझना और आपस में मोहब्बत है।
अलबत्ता यह एक स्वाभाविक सी बात है लेकिन इस्लाम ने जो तरीक़े, रस्म रवाज और उसूल तय किए हैं और शादी के लिए जो हुक्म बयान किए हैं उनके ज़रिए इस रिश्ते में बर्कत और मज़बूती दी है।मियां बीवी को एक दूसरे को समझना चाहिए।
एक दूसरे के जज़्बात को महसूस करना चाहिए। यूरोप वालों की यह समझ है लेकिन अच्छी समझ है कि हर एक को एक दूसरे के दर्द और इच्छाओं को महसूस करना चाहिए और उसके अनुकूल व्यवहार करना चाहिए।
इसी को कहते हैं सामने वाले को समझना, यानी आम लोगों की ज़बान में एक दूसरे को समझना ज़रूरी है, ये चीज़ें मोहब्बत को बढ़ा देती हैं।
शफाअत के नियम (2)
जैसा कि संकेत किया गया शफाअत करने या शफाअत पाने के लिए मूल शर्त ईश्वर की अनुमति है जैसा कि सूरए बक़रा की आयत 255 में कहा गया हैः
और कौन है जो उसकी अनुमति के बिना उसके पास सिफारिश करता हैं।
इसी प्रकार सूरए युनुस की आयत 3 में कहा जाता हैः
कोई भी सिफारिश करने वाला नही है सिवाए उसकी अनुमति के बाद।
इसी प्रकार सूरए ताहा की आयत 109 मे आया हैः
और उस दिन किसी की सिफारिश का लाभ नही होगा सिवाएं उसकी कृपालु ईश्वर ने अनुमति दी होगी और जिस बात को पसन्द करता होगा।
और सूरए सबा की आयत हैं
उसके निकट सिफारिश का लाभ नही होगा सिवाए उसकी जिसे उसन अनुमति दी।
इन आयतों से सामूहिक रूप से ईश्वर की अनुमति की शर्त सिध्द होती है किंतु जिन लोगो की अनुमति प्राप्त होगी उनकी विशेषताओ का पता नही चलता.
किंतु ऐसी बहुत सी आयत है जिनकी सहायता से सिफारिश पाने और करने वालो की कुछ विशेषताओं का पता लगाया जा सकता हैं। जैसा कि सूरए ज़ोखरूफ की आयत 86 मे आया हैः
और वे ईश्वर को छोड़ कर जिन लोगो को बुलाते है वे सिफारिश के स्वामी नही हैं सिवाए उसके जिसने सत्य की गवाही दी और वे लोग जानकारो मे से हैं।
शायद सत्य की गवाही देने वाले से यहॉ आशय, कर्मो की गवाही देने वाले वह लोग हों जिन्हे मनुष्य के दिल की बातो का ज्ञान होता हैं और मनुष्य के व्यवहार और उसके महत्व व सत्यता के बारे मे गवाही दे सकता हो। इस से यह भी समझा जा सकता हैं कि सिफारिश करने वाले पास ऐसा ज्ञान होना चाहिए कि जिस के बल पर वह सिफारिश पाने की योग्यता रखने वाले लोगो को जान सके और इस प्रकार की विशेषता रखने वालो मे निश्चित रूप से जिन लोगो का नाम लिया जा सकता हैं वह ईश्वर के वह विशेष दास हैं जिन्हे पापों से पवित्र बताया हैं।
दूसरी ओर, बहुत सी आयतो से यह समझा जा सकता हैं कि जिन लोगो को सिफारिश प्राप्त होनी होगी, उन से प्रसन्न होना भी आवश्यक हैं। जैसा कि सूरए अंबिया की आयत 28 में कहा गया हैः
और वे किसी की सिफारिश नही करेगें सिवाए उसकी जिस से ईश्वर प्रसन्न होगा।
इसी प्रकार सूरए अन्नज्म में आया हैः
और आकाशो मे कितने ऐसे फरिश्ते हैं जिन की सिफारिश का कोई लाभ नही होगा सिवाए इसके कि ईश्वर ने उन्हे जिस के लिए चाहा अनुमति दी हो और जिस से प्रसन्न हुआ हो।
स्पष्ट है कि सिफारिश पाने वालो से ईश्वर के प्रसन्न होने का अर्थ यह नही है कि उन लोगो के सारे काम अच्छे होगें क्योकि अगर ऐसा होगा तो फिर उन्हे सिफारिश की आवश्यकता ही न होती बल्कि इस का आशय यह हैं कि ईश्वर धर्म व ईमान की दृष्टि से उन से प्रसन्न हो जैसा कि हदीसों मे भी इस विचार की पुष्टि की गई है।
इसके साथ ही कुछ आयतो मे उन लोगों की विशेषताओ का भी वर्णन किया गया हैं जिन्हे सिफारिश मिल नही सकती हैं जैसा कि सुरए शोअरा की आयत 100 में अनेकेश्वादियों की इस बात का वर्णन है कि हमारी सिफारिश करने वाला कोई नही हैं। इसी प्रकार सूरए मुद्दस्सिर की आयत 40 से लेकर 48 तक में वर्णन किया गया है कि पापियों से नर्क में जाने का कारण पूछा जाएगा और वे उत्तर में नमाज़ छोड़ने, निर्धनों की सहायता न करने तथा क़यामत जैसे विश्वासो के इन्कार का नाम लेगें और फिर कुरआन में कहा गया है कि उन्हे सिफारिश करने वालो की सिफारिशों से भी कोई लाभ नही होगा। इस आयत से समझा जा सकता है कि अनेकेश्वरवादी और प्रलय व कयामत का इन्कार करने वाले कि जो ईश्वर की उपासना नही करते और आवश्यकता रखने वालो की सहायता नही करते तथा सही सिध्दान्तो का पालन नही करते, वे किसी भी स्थिति मे सिफारिश के पात्र नही बनेगें। और इस बात के दृष्टिगत कि संसार में पैगम्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व सल्लम द्वारा अपने अनुयाईयो के पापो को माफ करने कि ईश्वर से प्रार्थना भी एक प्रकार की शफाअत व सिफारिश है तो फिर पैगम्बरे इस्लाम (स.अ.व.व) की शिफाअत व सिफारिश में विश्वास रखने वाले के लिए उनकी सिफारिश का कोई प्रभाव वही होगा, यह समझा जा सकता है कि शिफाअत का इन्कार करने वाला भी सिफारिश का पात्र नही बन सकता और इस बात की पुष्टि हदीसों से भी होती हैं।
निष्कर्ष यह निकला की मुख्य सिफारिश करने वाले के लिए ईश्वर की अनुमति के साथ ही साथ स्वंय पवित्र होना भी आवश्यक है तथा इसी प्रकार उसमे इस बात की योग्यता हो कि वह लोगो की वास्तविकता तथा अवज्ञा व कर्तव्य पालन की भावना का ज्ञान प्राप्त कर सके और इस प्रकार के लोग ही ईश्वर की अनुमति से लोगो की सिफारिश कर सकते है जो निश्चित रूप से ईश्वर के योग्य व चयनित दास ही होगें दूसरी ओर यह सिफारिश उन्ही लोगों को प्राप्त होगी जो सिफारिश की योग्यता रखते होगे जिस के लिए ईश्वर की अनुमति के साथ, इस्लाम के आवश्यक व मूल सिध्दान्तो मे मृत्यु तक विश्वास व आस्था आवश्यक है।
शफाअत का अर्थ (1)
अरबी भाषा में शफाअत के शब्द को आम तौर पर इस अर्थ में प्रयोग किया जाता हैं कि प्रतिष्ठित व्यक्ति, किसी सम्मानीय व बड़े आदमी से किसी अपराधी को क्षमा कर देने की अपील करे या किसी सेवक के इनाम को बढ़ा दे।
आम परिस्थितियों में अगर कोई किसी की सिफारिश स्वीकार करता हैं तो इस भावना के कारण कि अगर उस ने सिफारिश करने वाले की सिफारिश स्वीकार नही की तो सिफारिश करने वाले को दुःख होगा जिससे उस सिफारिश करने वाले प्रिय मित्र की मित्रता से वचिंत होना पड़ेगा या फिर, नुकसान उठाना पड़ सकता है। अनेकश्वरवादी जो ईश्वर के लिए मानवीय गुणों मे विश्वास रखते थे और समझते थे कि उसे भी पत्नी व साथियो तथा सहयोगियो की आवश्यकता है तथा वह अन्य देवताओ से डरता हैं, ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए या उसके प्रकोप से बचने के लिए अन्य देवताओ की पूजा करते थे तथा फरिश्तों व जिन्न व परियो के सामने शीश नवाते थे तथा कहते थेः
यह लोग ईश्वर के समक्ष हमारी सिफारिश करेगे।
(युनुस 18)
इसी प्रकार उनका कहना थाः
हम तो इनकी पूजा केवल इस लिए करते हैं यह हमे ईश्वर से निकट कर दें।
(ज़ुम्र 3)
कुआन इस प्रकार की बातो के उत्तर मे कहता हैः
इन लोगो मे ईश्वर के अतिरिक्त कोई भी अभिभावक है न कोई सिफारिश करने वाला।
(अनआम 51 व 70)
किंतु इस बात पर ध्यान रखना चाहिए कि इस प्रकार के सिफारिश करने वालो और उन की सिफारिश को नकराने का अर्थ यह यही हैं कि पूर्णरूप से सिफारिश को ही नकारा जा रहा हैं क्येकि स्वयं कुरआन मजीद मे ईश्वर की अनुमति से सिफारिश व शफाअत की बात कही गई हैं। तथा इसके साथ ही कुरआन ने सिफारिश करने वालों और जिन लोगो के बारे में सिफारिश की जाएगी, उनकी विशेषताओ का वर्णन किया हैं। इस प्रकार से ईश्वर की अनुमती के बाद कुछ लोगो की सिफारिश का स्वीकार किया जाना इस लिए नही है कि ईश्वर सिफारिश करने वालों से डरता हैं अथवा उसे उनकी आवश्यकता होती हैं बल्कि यह तो वह मार्ग है जो स्वयं ईश्वर ने उन लोगो के लिए रखा है जो अनन्त ईश्वरीय कृपा की प्राप्ति की न्यूनतम क्षमता रखते है और उसने इस लिए कुछ नियम बनाए हैं और वास्तव मे सही प्रकार की सिफारिश अनेकश्वरवादियों के दृष्टिगत सिफारिश के मध्य अंतर उसी प्रकार का है जैसा अंतर, ईश्वर की अनुमति से विश्व के संचालन तथा स्वाधीन रूप से कुछ लोगो द्वारा संसार के संचालन मे विश्वासो के मध्य है और इस पर विस्तार पूर्वक चर्चा किताब के आंरभ मे हो चुकी है।
शफाअत के शब्द को कभी कभी अधिक व्यापक अर्थ में प्रयोग किया जाता हैं तो उस स्थिति में किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किसी भी प्रकार की भलाई को शफाअत कहा जाता हैं। इस अर्थ के अंतर्गत माता पिता अपने संतान या फिर संतान अपनी माता पिता के लिए, शिक्षक अपने छात्रों के लिए बल्कि अज़ान देकर नमाज़ पढ़ने हेतु मस्जिद मे बुलाने वाला व्यक्ति भी दूसरो के लिए सिफारिश करने वाला हो सकता हैं। अर्थात जो भी अपने प्रयास से किसी अन्य की भलाई चाहे वह सिफारिश करने वाला होता हैं।
दूसरी बात यह कि इसी संसार मे पापियों की ओर से क्षमा व प्रायश्चित भी एक प्रकार की सिफारिश हैं बल्कि दूसरो के लिए दुआ करना और उनकी मनोकामनाएं पूरी होने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करना भी सिफारिश के अर्थ के दायरे मे आता हैं क्योकि यह सब कुछ ईश्वर से किसी अन्य के लिए भलाई चाहना हैं।
हमास का वैश्विक स्तर पर साप्ताहिक विरोध प्रदर्शन का आह्वान
हमास ने विश्व भर के राष्ट्रों, विशेषकर अरब और इस्लामी देशों के लोगों से आह्वान किया है कि वे "ग़ज़्ज़ा रो रहा है" शीर्षक के तहत आगामी सप्ताह भर चलने वाले वैश्विक विरोध प्रदर्शन में पूरी तरह से भाग लें, ताकि ग़ज़्ज़ा में घिरे फिलिस्तीनी लोगों की दुखद स्थिति की ओर वैश्विक ध्यान आकर्षित किया जा सके।
फ़िलिस्तीनी प्रतिरोधी आंदोलन "हमास" ने एक बयान में ज़ायोनी सरकार द्वारा किए जा रहे "बर्बर आक्रमण" की कड़ी निंदा करते हुए कहा है कि ये अत्याचार अमेरिकी समर्थन और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की संदिग्ध चुप्पी की छाया में जारी हैं।
हमास ने विश्व भर के लोगों, विशेषकर अरब और इस्लामी देशों से, "ग़ज़्ज़ा रो रहा है" के नारे के तहत आगामी सप्ताह भर चलने वाले वैश्विक विरोध प्रदर्शन में पूर्ण रूप से भाग लेने का आह्वान किया है, ताकि गाजा में घिरे फिलिस्तीनी लोगों की दुखद स्थिति की ओर वैश्विक ध्यान आकर्षित किया जा सके।
हमास आंदोलन ने मंगलवार को एक बयान में कहा: "हम ग़ज़्ज़ा प्रतिरोध के समर्थन और ज़ायोनी आक्रमण की निंदा में दुनिया भर की राजधानियों, शहरों और चौराहों पर विरोध रैलियां, धरने और बड़े पैमाने पर प्रदर्शन आयोजित करने के लिए सभी उपलब्ध साधनों और बलों को जुटाने का आह्वान करते हैं।"
हमास ने 18-20 अप्रैल (शुक्रवार, शनिवार, रविवार) को वैश्विक आक्रोश दिवस घोषित किया है, जिसमें ज़ायोनी कब्जे, अमेरिकी समर्थन और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की आपराधिक चुप्पी के खिलाफ वैश्विक विरोध का आह्वान किया गया है।
बयान में कहा गया है कि हमास आंदोलन अंतर्राष्ट्रीय जनता और छात्र संघों द्वारा चल रहे आंदोलनों का स्वागत करता है, और सभी छात्रों और मजदूर वर्ग से आह्वान करता है कि वे 22 अप्रैल (मंगलवार) को अंतर्राष्ट्रीय हड़ताल दिवस के रूप में मनाएं और ग़ज़्ज़ा के साथ एकजुटता और घेरे हुए फिलिस्तीनी लोगों के समर्थन में दुनिया भर के विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों में पूर्ण हड़ताल करें।
दूसरी ओर, हमास ने इजरायली अत्याचारों का ब्यौरा देते हुए कहा कि कब्जे वाली ज़ायोनी सरकार न केवल गाजा में भोजन, दवा और ईंधन की आपूर्ति को रोक रही है, बल्कि जानबूझकर पानी के कुओं और विलवणीकरण संयंत्रों (जल शोधन कारखानों) को भी निशाना बना रही है।
अंततः, हमास ने अरब और इस्लामी देशों, उनकी सरकारों, लोगों और राजनीतिक दलों से ऐतिहासिक रुख अपनाने और गाजा पर लगाए गए घेरे को समाप्त करने के लिए व्यावहारिक कदम उठाने का आह्वान किया।