رضوی

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 यमन की सर्वोच्च राजनीतिक परिषद के सदस्य ने देश पर हमला करने वालों को कड़ी प्रतिक्रिया की चेतावनी दी है।

यमन की सर्वोच्च राजनीतिक परिषद के सदस्य मोहम्मद अली अलहौसी ने ज़ोर देकर कहा कि यमन के खिलाफ दुश्मनों के सारे विकल्प विफल हो चुके हैं। न तो बमबारी और न ही अमेरिका की आक्रामक कार्रवाइयाँ यमन के ग़ाज़ा के समर्थन को रोक सकती हैं।

उन्होंने आगे कहा,यमन के खिलाफ कोई भी ज़मीनी हमला सफल नहीं होगा बल्कि सच्चे लोगों की ओर से नर्क जैसी और ज़बरदस्त प्रतिक्रिया देखने को मिलेगी। बार-बार आज़माए गए को आज़माना मूर्खता है। इस जंग का निश्चित नतीजा हमारी जीत होगा।

अलहौसी ने यह भी कहा,अमेरिका को समझना चाहिए कि यमन के खिलाफ उसके लगातार हमले इस देश की रक्षा शक्ति को कमज़ोर और थका देंगी, और आखिरकार उसे अगली जंग में हार का सामना करना पड़ेगा।

 

 इस्राइली शासन ने ग़ाज़ा नें स्थित अलमामदानी अस्पताल के आपातकालीन और रिसेप्शन विभाग को निशाना बनाया है।

अलजज़ीरा ने रिपोर्ट दी है कि इस्राइली शासन की धमकी के कुछ ही मिनट बाद इस्राइली युद्धक विमानों ने दो मिसाइलें दागीं, जो सीधे अस्पताल के रिसेप्शन और इमरजेंसी सेक्शन पर गिरीं है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, अस्पताल का यह हिस्सा पूरी तरह तबाह हो गया है, और दर्जनों घायल व मरीज़ इस हमले के बाद अस्पताल के आसपास की सड़कों पर शरण लेने को मजबूर हो गए हैं।

इस्राइली सेना पहले ही यह धमकी दे चुका था कि वह ग़ाज़ा शहर के अलमामदानी अस्पताल की एक इमारत को निशाना बनाएगी, जिससे अस्पताल को खाली कराया गया था।फिलिस्तीनी समाचार सूत्रों के मुताबिक, इस इस्राइली हवाई हमले के बाद अलमामदानी अस्पताल अब सेवाएं देने में असमर्थ हो गया है।

हुज्जतुल इस्लाम हामिद मोहम्मदी ने कहा,अरब देशों की सरकारों को चाहिए कि वे पीड़ित फिलिस्तीनी जनता के समर्थन में अपनी इस्लामी आत्म सम्मान और ग़ैरत का प्रदर्शन करें।

उस्तादों, छात्रों और उलमा की बेसिज़ तंजीम संगठन के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम हामिद मोहम्मदी ने हाल ही में फिलिस्तीन की मजलूम अवाम के खिलाफ ज़ायोनी अत्याचारों की कड़ी निंदा करते हुए एक बयान जारी किया है उनके इस बयान का पूरा पाठ निम्नलिखित है:

بسم اللہ الرحمن الرحیم

امیرالمؤمنین علیہ السلام نے فرمایا: "کُونَا لِلظَّالِمِ خَصْماً وَ لِلْمَظْلومِ عَوْناً"

यह जाली, नस्लवादी और मासूम बच्चों की क़ातिल ज़ायोनी रेजीम, अमेरिका और दूसरी गैर-इंसानी हुकूमतों की सरपरस्ती में ग़ज़्ज़ा पट्टी और दूसरे मक़बूज़ा फिलिस्तीनी इलाकों में ज़मीन और फिज़ा से बेकसूर अवाम, औरतों और बच्चों पर हमले कर रही है।

यह हमले एक बार फिर ज़ायोनियों और उनके इलाकाई व आलमी हामीयों की जंगी और जालिम फितरत को बेनक़ाब करते हैं।हम अरब हुकूमतों से सवाल करते हैं,क्या अब भी वह वक़्त नहीं आया है कि आप अपनी इस्लामी ग़ैरत का मुज़ाहिरा करें?
क्या आप उस दिन से नहीं डरते जब अल्लाह तआला आपसे इस जुल्म पर खामोशी की पूछताछ करेगा?

हामिद मोहम्मदी
उस्तादों, छात्रों और उलमा की बेसिज़ तंजीम के प्रमुख

 

शनिवार, 12 अप्रैल 2025 17:10

ईश्वरीय आतिथ्य

रमज़ान के महीने में नमाज़ के बाद जिन दुआओं के पढ़ने की सिफ़ारिश की गई है, उनमें से एक दुआए फ़रज है।

यह दुआ हर ज़रूरतमंद के लिए है, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति से संबंध रखता हो।

रमज़ान के महीने के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमाया है, इस महीने में अपने ग़रीबों और निर्धनों को दान दो, अपने बड़ों का सम्मान करो और अपने छोटों पर दया करो, अपने रिश्तेदारों से मेल-मिलाप रखो, अपनी ज़बान को सुरक्षित रखो, अपनी आंखों से हराम चीज़ों पर नज़र नहीं डालो, हराम बात सुनने से बचो, दूसर लोगों के अनाथों के साथ मोहब्बत से पेश आओ, ताकि वे तुम्हारे अनाथों से मोहब्बत करें और ईश्वर से अपने पापों के लिए तौबा करो।

रमज़ान के महीने में ज़मीन पर ईश्वर की रहमत पहले से अधिक बरसती है। यह महीना प्यार, मोहब्बत, आशा और नेमत का महीना है। ईश्वर इस महीने में निर्धनों को प्रोत्साहित करता है, ताकि ऐसे मार्ग पर अग्रसर रहें, जिसके अंत में ईश्वर की प्रसन्नता और स्वर्ग हासिल हो। ऐसा मार्ग जिसपर हर कोई अकेले चलकर गंतव्य तक नहीं पहुंच सकता, लेकिन ईश्वर इस महीने के रोज़ों के ज़रिए सभी की सहायता करता है, चाहे वे गुनाह करने वाले हों या चाहे अच्छे लोग हों जो हमेशा ईश्वर का ज़िक्र करते हैं।

रोज़े से इंसान में निर्धन वर्ग से हमदर्दी का अहसास पैदा होता है। स्थायी भूख और प्यास से रोज़ा रखने वाले का स्नेह बढ़ जाता है और वह भूखों और ज़रूरतमंदों की स्थिति को अच्छी तरह समझता है। उसके जीवन में ऐसा मार्ग प्रशस्त हो जाता है, जहां कमज़ोर वर्ग के अधिकारों का हनन नहीं किया जाता है और पीड़ितों की अनदेखी नहीं की जाती है। इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) से हेशाम बिन हकम ने रोज़ा वाजिब होने का कारण पूछा, इमाम ने फ़रमाया, रोज़ा इसलिए वाजिब है ताकि ग़रीब और अमीर के बीच बराबरी क़ायम की जा सके। इस तरह से अमीर भी भूख का स्वाद चख लेता है और ग़रीब को उसका अधिकार देता है, इसलिए कि अमीर आम तौर से अपनी इच्छाएं पूरी कर लेते हैं, ईश्वर चाहता है कि अपने बंदों के बीच समानता उत्पन्न करे और भूख एवं दर्द का स्वाद अमीरों को भी चखाए, ताकि वे कमज़ोरों और भूखों पर रहम करें।

रमज़ान में ईश्वर की अनुकंपा सबसे अधिक होती है। इस महीने में ऐसा दस्तरख़ान फैला हुआ होता है कि जिस पर ग़रीब और अमीर एक साथ बैठते हैं और सभी एक दूसरे की मुश्किलों के समाधान के लिए दुआ करते हैं। यह दुआ इंसानों में प्रेम जगाती है। इस महत्वपूर्ण एवं सुन्दर दुआ में हम पढ़ते हैं, हे ईश्वर, समस्त मुर्दों को शांति और ख़ुशी प्रदान कर। हे ईश्वर, समस्त ज़रूरतमंदों की ज़रूरतें पूरी कर। समस्त भूखों का पेट भर दे। दुनिया के समस्त निर्वस्त्रों के बदन ढांप दे। हे ईश्वर, सभी क़र्ज़दारों का क़र्ज़ अदा कर। हे ईश्वर, समस्त दुखियारों के दुख दूर कर दे। हे ईश्वर, समस्त परदेसियों को अपने देश वापस लौटा दे। हे ईश्वर, समस्त क़ैदियों को आज़ाद कर। हे ईश्वर, हमारी बुरी स्थिति को अच्छी स्थिति में बदल दे।

दुआए फ़रज पूर्ण रूप से एक सामाजिक दुआ है, जो हर जाति, रंग और धर्म के लोगों से संबंधित है। एक मुसलमान के लिए दूसरे मुसलमानों और ग़ैर मुस्लिम भाईयों की मदद में कोई अंतर नहीं है। मुसलमान अंहकार के ख़ोल से बाहर आ जाता है, इसलिए वह सभी का भला चाहता है। इसीलिए रमज़ान महीने की दुआ में कुल शब्द आया है, जिसका अर्थ है समस्त। हे ईश्वर समस्त ज़रूरतमंदों की ज़रूरत पूरी कर और समस्त भूखों का पेट भर दे। इस दुआ की व्यापकता इतनी अधिक है कि न केवल धरती पर मौजूद समस्त इंसानों के लिए है, बल्कि मुर्दे भी इसमें शामिल हैं और उनकी शांति के लिए प्रार्थना की गई है। 

इस्लाम दान देने पर काफ़ी बल देता है, ताकि धन वितरण में संतुलन बन सके। दान उस समय अपने शिखर पर होता है, जब इंसान अपनी पसंदीदा चीज़ को दान करता है। कुछ लोगों का मानना है कि दूसरों की उस समय मदद करनी चाहिए जब उन्हें ख़ुद को ज़रूरत न हो। हालांकि वास्तविक भले लोगों के स्थान तक पहुंचने के लिए इंसान को अपनी पसंदीदा चीज़ों को दान में देना चाहिए। जैसा कि क़ुरान में उल्लेख है, तुम कदापि वास्तविक भलाई तक नहीं पहुंचोगे, जब तक कि जो चीज़ तुम्हें पसंद है उसे ईश्वर के मार्ग में न दे दो। इसका मतलब है कि आप दूसरों को ख़ुद से अधिक पसंद करते हैं और जो चीज़ आपको पसंद है वह उन्हें उपहार में दे देते हैं।

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा अपने विवाह से ठीक पहले, शादी का अपना जोड़ा एक भिखारी को दान कर देती हैं, जब पैग़म्बरे इस्लाम (स) को इस बात की ख़बर मिली तो उन्होंने फ़रमाया, तुम्हारा नया जोड़ा कहां है? हज़रत फ़ातेमा ने फ़रमाया, मैंने वह भिखारी को दे दिया। पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया, क्यों नहीं अपना कोई पुराना वस्त्र दे दिया? उन्होंने कहा, उस समय मुझे क़ुरान की यह आयत याद आ गई कि जो चीज़ तुम्हें पसंद है, उसे दान में दो, इसिलए मैंने भी अपना शादी का नया जोड़ा दान कर दिया। इस घटना से पता चलता है कि इस्लाम ग़रीबों की मदद पर कितना बल देता है। जैसा कि दुआए फ़रज में उल्लेख है कि हे ईश्वर, समस्त निर्वस्त्रों के शरीर वस्त्रों से ढांप दे।

दुआए फ़रज के एक भाग में आया है कि हे ईश्वर समस्त दुखियों के दुखों को दूर कर दे। ऐसा समाज जिसके नागरिक दुखी नहीं होते हैं, वह ख़ुशहाल और सुखी होता है और उसके सदस्य कभी भी नकारात्मक गतिविधियां अंजाम नहीं देते हैं, अव्यवस्था उत्पन्न नहीं करते हैं और अनैतिक कार्यों से बचे रहते हैं और हमेशा अपने और दूसरों के सुख के लिए कोशिश करते हैं। एक ख़ुशहाल समाज के लोग ईश्वर से अधिक निकट होते हैं। इसीलिए पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया है, जिसने किसी मोमिन को ख़ुश किया उसने मुझे ख़ुश किया, जिसने मुझे ख़ुश किया उसने ईश्वर को ख़ुश किया। यहां ख़ुश करने से तात्पर्य ग़रीबों को भोजन देना और उनकी मदद करना है, सफ़र में रह जाने वाले मुसाफ़िर को उसके गंत्वय तक पहुंचाना, क़र्ज़ देना और लोगों की समस्याओं का समाधान करना है।

इस दुआ में स्नेह और कृपा के लिए मुस्लिम या ग़ैर मुस्लिम के बीच कोई अंतर नहीं रखा गया है। क़ुरान के सूरए इंसान में भी इस बिंदू को स्पष्ट रूप से बयान किया गया है। पैग़म्बरे इस्लाम, हज़रत अली, हज़रत फ़ातेमा, इमाम हसन और इमाम हुसैन एक दिन रोज़ा रखते हैं, लेकिन इफ़्तार के वक़्त दरवाज़े पर खड़े तीन फ़क़ीरों को अपना पूरा भोजन दे देते हैं। यह तीनों, फ़क़ीर अनाथ और क़ैदी होते हैं। उस ज़माने में मुसलमानों और काफ़िरों के बीच होने वाली लड़ाइयों के दौरान, वह व्यक्ति क़ैदी बना लिया जाता था, जो इस्लाम को नष्ट करने के प्रयास में था और युद्ध में पकड़ा जाता था। लेकिन पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों ने रोज़े में भूखा और प्यासा होने के बावजूद, अपना भोजन उन्हें दे दिया। यही कारण है कि समस्त क़ैदी और ज़रूरतमंद इस दुआ के पात्र हैं।

 

रमज़ान का महीना क़ुरान नाज़िल होने का महीना है। क़ुरान का प्रकाश इतनी शक्ति रखता है कि बुरी चीज़ों के मुक़ाबले में अच्छी चीज़ों को प्रकाशमय कर दे। अर्थात, अमानत को ख़यानत की जगह, मोहब्बत को नफ़रत की जगह, कृतज्ञता को कृतघ्नता की जगह, आशा को निराशा की जगह, निश्चिंतता‎ को चापलूसी की जगह और कुल मिलाकर ईश्वर की प्रसन्नता को हवस की जगह क़रार देता है और हमारी बदहाली दूर कर देता है। बदहाली शैतानी एवं नकारात्मक विचार हैं, जिसे दूर करने के लिए कृपालु ईश्वर से दुआ करनी चाहिए, ताकि वह उसे अच्छी हालत में बदल दे। इसीलिए इस दुआ में उल्लेख है कि हे ईश्वर, हमारी बदहाली को अच्छी हालत में बदल दे।

यह दुआ, एक आदर्श समाज का उल्लेख करती है, जिसकी इंसान को हमेशा तलाश रही है। समस्त ईश्वरीय प्रतिनिधि और दूत इसी समाज का तानाबाना बुनने के लिए आए थे। अंतिम ईश्वरीय मुक्तिदाता की प्रतीक्षा करने वाला का मानना है कि इस दुआ में जो कुछ मांगा गया है, वह अंतिम ईश्वरीय मुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम के शासनकाल में पूरा होगा। यह दुआ वास्तव में अंतिम मुक्तिदाता के प्रकट होने के लिए दुआ करना है। 

हुज्जतुल इस्लाम अल्लामा शिफ़ा नजफ़ी और मौलाना तसव्वुर हुसैन जो इन दिनों बेल्जियम में मुक़ीम हैं ने मरज ए आलीक़द्र आयतुल्लाहिल उज़मा हाफिज़ बशीर हुसैन नजफ़ी से उनके केंद्रीय कार्यालय नजफ़ अशरफ में मुलाक़ात की।

हुज्जतुल इस्लाम अल्लामा शिफ़ा नजफ़ी और मौलाना तसव्वुर हुसैन जो इन दिनों बेल्जियम में मुक़ीम हैं ने मरज ए आलीक़द्र आयतुल्लाहिल उज़मा हाफिज़ बशीर हुसैन नजफ़ी से उनके केंद्रीय कार्यालय नजफ़ अशरफ में मुलाक़ात की।

इस मुलाक़ात में मरज ए आलीक़द्र ने इमाम हुसैन अ:स की अज़मत बयान करते हुए फ़रमाया कि आख़िरत में जब मोमिनीन को इमाम हुसैन अ:स की ज़ियारत नसीब होगी, तो वे इस ज़ियारत से सैर नहीं होंगे।

उन्होंने यह भी फ़रमाया कि कुछ क़ुरआनी आयात इस हक़ीक़त की तरफ इशारा करती हैं कि आख़िरत में जब तक इमाम हुसैन (अ:स) की ज़ियारत करने वाले मोमिनीन जन्नत में दाख़िल नहीं होंगे, तब तक उनके लिए जन्नत के दरवाज़े नहीं खोले जाएंगे।

दूसरी जानिब, इन उलमा-ए-किराम ने मरज ए आलीक़द्र की सेहत के बारे में दिरयाफ़्त किया और उनकी लंबी उम्र के लिए दुआ की।मरज ए आलीक़द्र ने इन उलमा-ए-किराम की कोशिशों को सराहा और उनके लिए और ज़्यादा नेकी व खैर की तौफ़ीक़ात में इज़ाफ़े की दुआ की।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन रज़ा खुदरी ने कहां,इस्लामी गणराज्य ईरान हमेशा रहबर-ए-मआज़्ज़म की दूरदर्शिता और रणनीति के चलते इज़्ज़त, ताक़त और राष्ट्रीय हितों की हिफ़ाज़त पर ज़ोर देता रहा है।

इमाम ए जुमआ चुग़ादक, हुज्जतुल इस्लाम रज़ा खुदरी ने कहां,ऐसे हालात में जब इस्लामी गणराज्य ईरान, रहबर-ए-मआज़्ज़म की दूरदर्शिता और रणनीति के तहत हमेशा इज़्ज़त, ताक़त और राष्ट्रीय हितों की हिफ़ाज़त पर ज़ोर देता आया है, अमेरिका से होने वाले ग़ैरप्रत्यक्ष (indirect) भी मुकम्मल योजना के साथ और इंशा अल्लाह ईरान के फ़ायदे में जारी हैं।

उन्होंने आगे कहा,इन बातचीतों का मक़सद इलाक़ाई मसलों का हल निकालना है और ये इस बात को साबित करता है कि शर्तें तय करने में पहल ईरान की तरफ़ से हो रही है।

हुज्जतुल इस्लाम रज़ा खुदरी ने कहा,रहबर-ए-मआज़्ज़म की समझदार और दूरअंदेशी रणनीति ने अमेरिका को बातचीत की बंद गली (dead end) में पहुँचा दिया है।

उन्होंने यह भी कहा,बातचीत के ढांचे के ताय्युन में ईरान की बरतरी साफ़ तौर पर नज़र आती है। अमेरिका सीधे बातचीत करना चाहता था लेकिन इस्लामी गणराज्य ईरान ने मज़बूत इरादे के साथ ग़ैर-प्रत्यक्ष बातचीत की शकल को तय किया।

इमामे जुमा चुग़ादक ने ज़ोर देते हुए कहा,अमेरिका अपनी तमाम बड़ी-बड़ी बातों के बावजूद ईरान से बातचीत पर मजबूर है अगर रहबर-ए-मआज़्ज़म की हिकमत-ए-अमली न होती, तो कभी भी अमेरिकी राष्ट्रपति की तरफ़ से रहबर-ए-मआज़्ज़म को बातचीत की दरख़्वास्त वाला ख़त न भेजा गया होता।

हुज्जतुल इस्लाम सैयद हुसैन हुसैनी ने आज शहर परदीस में जुमआ की नमाज़ के खुत्बों के दौरान ज़ायोनी क़ाबिज़ हुकूमत की बर्बरता की निंदा करते हुए कहा,हम हर रोज़ ग़ाज़ा में बेगुनाह लोगों के कत्लेआम को देख रहे हैं। यह ज़ुल्म अब बंद होना चाहिए और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को हर संभव तरीके से मज़लूम फ़िलस्तीनी जनता की मदद के लिए क़दम उठाना चाहिए।

हुज्जतुल इस्लाम सैयद हुसैन हुसैनी ने आज शहर परदीस में जुमआ की नमाज़ के खुत्बों के दौरान ज़ायोनी क़ाबिज़ हुकूमत की बर्बरता की निंदा करते हुए कहा,हम हर रोज़ ग़ाज़ा में बेगुनाह लोगों के कत्लेआम को देख रहे हैं। यह ज़ुल्म अब बंद होना चाहिए और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को हर संभव तरीके से मज़लूम फ़िलस्तीनी जनता की मदद के लिए क़दम उठाना चाहिए।

उन्होंने जनता से अपील करते हुए कहा,लोगों को चाहिए कि वे रहबर-ए-मुअज़्ज़म की वेबसाइट के माध्यम से फ़िलस्तीन के लिए अपनी मदद भेजें।

सैयद हुसैन हुसैनी ने आगे कहा,ध्यान रहे कि आर्थिक रूप से छोटी सी मदद और सोशल मीडिया पर फ़िलस्तीन के समर्थन में कोई भी गतिविधि इस दिशा में अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ाने में असरदार हो सकती है।

इमाम ए जुमा परदीस ने यह भी कहा,अंतरराष्ट्रीय वार्ताओं में इस्लामी गणराज्य ईरान के  रुख में कोई बदलाव नहीं आया है और न ही आएगा। हम हमेशा अपनी सिद्धांतवादी नीतियों पर क़ायम रहे हैं।

एजेंसी के मीडिया एवं संचार कार्यालय के निदेशक अनस हमदान ने कहा कि सहायता प्रतिबंध ग़ज़्ज़ा के लोगों के लिए सामूहिक दंड के समान है। इस प्रतिबंध से दो मिलियन फ़िलिस्तीनीयो को गंभीर अकाल का सामना करना पड़ सकता है।

फिलिस्तीन शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र राहत एवं कार्य एजेंसी (यूएनआरडब्ल्यूए) ने चेतावनी दी है कि ग़ज़्ज़ा पट्टी में भोजन के बिना गुजर रहा प्रत्येक दिन ग़ज़्ज़ा वासियो को गंभीर भूख संकट की ओर धकेल रहा है, जिसके परिणाम 2 मिलियन से अधिक लोगों के लिए गंभीर हो सकते हैं। लाखों नागरिक पहले से ही नाकाबंदी और भूख के कारण भयानक स्थिति से पीड़ित हैं, तथा 1 मार्च से शुरू हुई ग़ज़्ज़ा पर इजरायली आक्रमण और नाकाबंदी और अधिक तबाही मचा रही है।

मार्च के प्रारम्भ में युद्ध विराम समझौते के प्रथम चरण की समाप्ति के बाद से ही इजरायल, ग़ज़्ज़ा पट्टी में मानवीय सहायता और वाणिज्यिक वस्तुओं के प्रवेश को रोक रहा है। यूएनआरडब्ल्यूए ने कहा कि इससे आवश्यक आपूर्ति की भारी कमी हो गई है तथा ग़ज़्ज़ा में खाद्यान्न भंडार समाप्त हो गया है।

ग़ज़्ज़ा में एजेंसी के मीडिया एवं संचार कार्यालय के निदेशक अनस हमदान ने कहा कि ग़ज़्ज़ा पर सहायता प्रतिबंध गाजा के लोगों के लिए सामूहिक दंड के समान है, जिन्होंने 16 महीने से अधिक समय से चल रहे विनाशकारी युद्ध के दौरान बहुत कष्ट झेले हैं। हमदान ने अल जज़ीरा नेटवर्क को दिए बयान में बताया कि चिकित्सा आपूर्ति और भोजन की आपूर्ति का सिलसिला समाप्त हो रहा है। इससे मानवीय संकट गहरा रहा है। उन्होंने बताया कि 19 जनवरी 2025 से मार्च के प्रारम्भ तक युद्ध विराम अवधि के दौरान, यूएनआरडब्ल्यूए ने ग़ज़्ज़ा पट्टी में लगभग 1.7 मिलियन फिलिस्तीनियों को खाद्य सहायता प्रदान की।

रूदसर के इमाम जुमआ ने कहा, दुश्मन इस स्थिति में, जब ईरान और अमेरिका के बीच वार्ता की चर्चा हो रही है, यह संदेश देने की कोशिश कर रहा है कि हमारे लोगों को यह समझाया जाए कि समस्याओं से निकलने का अमेरिका के साथ वार्ता के अलावा कोई और रास्ता नहीं है।

रूदसर के इमाम जुमआ ने कहा, दुश्मन इस स्थिति में, जब ईरान और अमेरिका के बीच वार्ता की चर्चा हो रही है, यह संदेश देने की कोशिश कर रहा है कि हमारे लोगों को यह समझाया जाए कि समस्याओं से निकलने का अमेरिका के साथ वार्ता के अलावा कोई और रास्ता नहीं है।

हुज्जतुल इस्लाम अबुलकासिम इब्राहीमी नूरी ने इस हफ्ते रूदसर की जुमा नमाज़ के खुत्बे में ईरान और अमेरिका के बीच अप्रत्यक्ष वार्ता के संदर्भ में कहा,संभावना है कि दुश्मन इस स्थिति में जब ईरान और अमेरिका के बीच अप्रत्यक्ष वार्ता की चर्चा हो रही है।

यह संदेश देने की कोशिश करेगा कि हमारे लोगों को यह समझाया जाए कि समस्याओं से निकलने का अमेरिका के साथ वार्ता के अलावा कोई और रास्ता नहीं है। वे लोगों के जीवन में मुश्किलें और रुकावटें पैदा करना चाहते हैं, हमें सतर्क रहना चाहिए।

उन्होंने आगे कहा,ईरानी इस्लामिक रिपब्लिक ताकत और गर्व की स्थिति में इस वार्ता में जा रही है। दुर्भाग्य से, कुछ लोग बैठे हैं और हर दिन कमजोरी का संदेश बाहर भेज रहे हैं।

रूदसर के इमाम जुमा ने कहा,हमें सतर्क रहना चाहिए कि कुछ लोग अमेरिका का वास्तविक चेहरा हमारे सामने छिपाने या सजाने की कोशिश न करें। अमेरिका और ट्रम्प की हरी झंडी के साथ ही सियोनिस्ट शासन ने गाजा में खून की होली खेली है।

इराक़ मे सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि आयतुल्लाह सय्यद मुज्तबा हुसैनी ने अपने बयान में कहा कि ईरान हमेशा पीड़ितो का समर्थन करता है और इस्लामी क्रांति की शुरुआत से कभी भी युद्ध शुरू नहीं किया है।

इराक़ मे सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि आयतुल्लाह सय्यद मुज्तबा हुसैनी ने अपने बयान में कहा कि ईरान हमेशा पीड़ितो का समर्थन करता है और इस्लामी क्रांति की शुरुआत से कभी भी युद्ध शुरू नहीं किया है।

उन्होंने क्षेत्रीय और वैश्विक घटनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि ईरान हमेशा नैतिकता, न्याय और शांति के सिद्धांतों का पालन करता रहा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि ईरान हमेशा पीड़ितों का समर्थन करता है, अत्याचार को रोकने और पीड़ित राष्ट्रों की रक्षा करने के लिए उनके साथ खड़ा रहता है।

ईरान ने फिलिस्तीन, लेबनान, सीरिया और बोस्निया जैसे देशों की मदद उनकी अपील पर की है। यह सहायता युद्ध के लिए नहीं बल्कि अत्याचारियों के खिलाफ वैध रक्षा के रूप में थी।

आयतुल्लाह हुसैनी ने कहा कि इस्लामी क्रांति की शुरुआत से ही अमेरिका ने ईरान के प्रति शत्रुतापूर्ण रवैया अपनाया है। अमेरिका कभी भी निष्पक्ष बातचीत के लिए तैयार नहीं हुआ और हमेशा अपनी इच्छा थोपने की कोशिश करता रहा है। उन्होंने जोर देकर कहा: अमेरिका न केवल न्यायपूर्ण बातचीत के लिए तैयार नहीं है, बल्कि वह मूल रूप से देशो के आत्मसमर्पण की मांग करता है, न कि उनके साथ रचनात्मक संवाद करने की कोशिश करता है। और अमेरिका की ईरान के साथ शत्रुता केवल इस कारण है कि ईरान उनकी दमनकारी नीतियों के खिलाफ प्रतिरोध करता है।

उन्होंने स्पष्ट किया कि ईरान युद्ध नहीं चाहता, लेकिन अपने अधिकारों से पीछे नहीं हटेगा। उन्होंने परमाणु ऊर्जा के सैन्य उपयोग को हराम (निषिद्ध) बताते हुए कहा कि वैज्ञानिक और तकनीकी विकास हर स्वतंत्र देश का अधिकार है।

सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि ने पश्चिमी देशों द्वारा ईरान पर दबाव डालने की आलोचना करते हुए कहा कि वे ईरान की रक्षा क्षमता को कमजोर करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि ईरान कभी भी अपनी रक्षा शक्ति को छोड़ने वाला नहीं है, क्योंकि यह उसकी सुरक्षा के लिए आवश्यक है।

उन्होंने अमेरिका को दुनिया में सबसे बड़ा परमाणु हथियार धारक बताते हुए उसकी आलोचना की और कहा कि वह अन्य देशों के अधिकारों का विरोध करने का नैतिक अधिकार नहीं रखता। उन्होंने जोर देकर कहा कि ईरान हमेशा न्याय, शांति और सहयोग का समर्थक रहा है।