رضوی

رضوی

इज़रायल की वायु सेना के रिजर्व सैनिकों का कहना है कि ग़ज़्ज़ा युद्ध "राजनीतिक और व्यक्तिगत हितों" के लिए लड़ा जा रहा है। उनकी मांग से नाराज हुए इजरायली प्रधानमंत्री ने उन्हें "मुट्ठी भर लोग" कहा।

इजराइली वायुसेना के वर्तमान और पूर्व रिजर्व सैनिकों के एक समूह ने ग़ज़्ज़ा में बंद सभी कैदियों की वापसी का आह्वान किया, भले ही इसका मतलब युद्ध को समाप्त करना ही क्यों न हो। इजरायली मीडिया में प्रकाशित एक पत्र में रिजर्व सैनिकों ने लिखा, "युद्ध जारी रखने से घोषित लक्ष्यों में से कोई भी हासिल नहीं होगा, बल्कि बंधक सैनिकों और निर्दोष नागरिकों की मौत होगी।"

रिजर्व सैनिकों ने कहा, "केवल समझौता ही बंधकों को सुरक्षित वापस ला सकता है, जबकि तख्तापलट से अनिवार्यतः बंधकों की हत्या होगी और हमारे सैनिकों की जान को खतरा होगा।" "उन्होंने इजरायलियों से इसके खिलाफ लामबंद होने की अपील की।" पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में पूर्व सैन्य प्रमुख डैन हालुट्ज़ भी शामिल हैं। पत्र प्रकाशित होने के बाद नेतन्याहू ने उनकी कड़ी आलोचना की, उन्हें मुट्ठी भर लोग कहा और कहा कि वे इजरायली समाज को भीतर से तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। साथ ही, उन्होंने हस्ताक्षरकर्ताओं पर सरकार को उखाड़ फेंकने का प्रयास करने का आरोप लगाते हुए कहा, "ये सैनिक सैनिकों या जनता का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।"

इजरायल के रक्षा मंत्री इजरायल काट्ज़ ने पत्र पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सेना और वायु सेना प्रमुखों से मामले से उचित तरीके से निपटने का आह्वान किया। इज़रायली अख़बार हारेत्ज़ के अनुसार, वायु सेना प्रमुख ने पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले सक्रिय रिजर्व सैनिकों को बर्खास्त करने का फैसला किया है, लेकिन उनकी संख्या का उल्लेख नहीं किया। यह ध्यान देने योग्य बात है कि इजरायल का अनुमान है कि ग़ज़्ज़ा में अभी भी 59 बंधक हैं, जिनमें से कम से कम 22 जीवित हैं। उन्हें ग़ज़्ज़ा युद्ध विराम और कैदी विनिमय के दूसरे चरण में रिहा किया जाना था, जिसके तहत इजरायल को ग़ज़्ज़ा से अपने सैनिकों को पूरी तरह से वापस बुलाना होगा और युद्ध को स्थायी रूप से समाप्त करना होगा।

इस बीच, नेतन्याहू ने पिछले सप्ताह ग़ज़्ज़ा पर हमले तेज करने की कसम खाई थी, जबकि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की योजना को लागू करने के प्रयास चल रहे हैं, जिसमें ग़ज़्ज़ा से फिलिस्तीनियों को बाहर निकालना भी शामिल है। और इस ज़ायोनी योजना के तहत पिछले अक्टूबर से अब तक 50,800 फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं।

अमेरिकी लड़ाकू विमानों ने हाल ही में यमन के विभिन्न क्षेत्रों पर फिर से हमला किया है। यह हमले इजरायल का समर्थन करने और फिलिस्तीनियों के खिलाफ नरसंहार में यमन की भूमिका को कमजोर करने के उद्देश्य से किए गए हैं।

अमेरिकी लड़ाकू विमानों ने हाल ही में यमन के विभिन्न क्षेत्रों पर फिर से हमला किया है। यह हमले इजरायल का समर्थन करने और फिलिस्तीनियों के खिलाफ नरसंहार में यमन की भूमिका को कमजोर करने के उद्देश्य से किए गए हैं। 

हमले के लक्ष्य,अल हुदायदाह बरा क्षेत्र पर कम से कम 2 बार हमला किया,सना (यमन की राजधानी)बनी हशीश इलाके पर 3 बार बमबारी।मारिब और सादा भी हमलों से प्रभावित हुए। 

स्थानीय सूत्रों ने अमेरिकी लड़ाकू विमानों को यमन की राजधानी के ऊपर कम ऊंचाई पर उड़ते देखा है।यह हमले इजरायल का समर्थन करने और यमन की सैन्य क्षमता को कमजोर करने के लिए किए गए हैं।

यमन के हौथी गुट ने फिलिस्तीन के समर्थन में लाल सागर में इजरायली जहाजों पर हमले किए थे, जिसके जवाब में अमेरिका ने यमन पर हमले तेज कर दिए हैं। 

अमेरिका ने इजरायल के समर्थन में यमन पर फिर से हमले किए हैं, लेकिन अभी तक बड़े पैमाने पर नुकसान की पुष्टि नहीं हुई है। यमन के हौसी गुट ने इन हमलों के बावजूद फिलिस्तीन का समर्थन जारी रखने की घोषणा की है। 

जन्नतुल बक़ीअ के विध्वंस के 102 साल पूरे होने पर मजलिस-ए-उलमा-ए-हिंद का विरोध प्रदर्शन, पवित्र मज़ारों के पुनः निर्माण की मांग की

लखनऊ 11 अप्रैल: जन्नतुल बक़ीअ के विध्वंस के 102 साल पूरे होने पर मजलिस-ए-उलमा-ए-हिंद द्वारा जुमे की नमाज के बाद आसिफी मस्जिद में विरोध प्रदर्शन किया गया इस मौके पर प्रदर्शनकारी अपने हाथों में ऐसे बैनर व पोस्टर लिए हुए थे जिसमें सऊदी सरकार और आले सऊद शासको के ख़िलाफ़ मुर्दाबाद के नारे लिखे हुए थे।

साथ ही प्रदर्शनकारियों के हाथों में "जन्नतुल बक़ी का निर्माण करो की मांग वाले बैनर भी थे। इस मौक़े पर प्रदर्शनकारियों ने वक़्फ़ कानून के खिलाफ भी प्रदर्शन किया और सरकार से वक्फ संशोधन कानून को वापस लेने की मांग की।

मजलिस-ए-उलमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना कल्बे जवाद नक़वी ने प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए सऊदी सरकार को ज़ायोनी सरकार की बदली हुई शक्ल बतलाया। उन्होने कहा कि जो लोग रसूल अल्लाह (स.अ.व) की पत्नियों और उनके साथियों की तौहीन का झूठा इलज़ाम शियो पर लगा कर उन्हें काफिर कहते हैं, वो जन्नत उल बक़ी में मौजूद रसूल अल्लाह की पत्नियों और उनके साथियों की क़ब्रों के विध्वंस पर ख़ामोश क्यों हैं?

उन्होंने कहा कि सऊदी सरकार पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) की मुजरिम है, क्योंकि उन्होंने पैग़म्बर की बेटी, उनकी आल ओ औलाद, पत्नियों और असहाब की कब्रें ध्वस्त कर दी हैं। मौलाना ने आगे कहा कि सऊदी सरकार ब्रिटेन और औपनिवेशिक शक्तियों की गुलाम है।

उन्होंने कहा कि सऊदी मुफ्तियों ने आज तक इस्लाम और कुरान का अपमान करने वालों के खिलाफ कोई फतवा जारी नहीं किया, लेकिन इस्लामी समुदायों के काफ़िर होने के फतवे देते रहते हैं। इससे पता चलता है कि ये सभी मुफ्ती औपनिवेशिक शक्तियों के ख़रीदे हुए हैं।

उन्होंने कहा कि सऊदी अरब में बार, क्लब और कैसीनो खुल रहे हैं। रियाद शराब और शबाब का केंद्र बन चूका है। प्रसिद्ध नर्तकियों को नृत्य करने के लिए आमंत्रित किया जाता है, लेकिन एक भी मौलवी इसकी निंदा करते हुए बयान नहीं देता। मौलाना ने कहा कि ग़ाज़ा युद्ध ने आले सऊद के चेहरे पर पड़ा नक़ाब हटा दिया है और अब मुसलमान उनकी हक़ीक़त से बा ख़बर हो चुके हैं।

उन्होंने कहा कि सभी मुसलमानों को एकजुट होकर जन्नतुल बक़ी के पुनः निर्माण के लिए आवाज़ उठानी चाहिए। यह हमारा इंसानी और इस्लामी कर्तव्य है। मौलाना ने कहा कि जन्नतुल बक़ी को ध्वस्त हुए 102 साल बीत चुके हैं, क्या मुसलमानों का ग़ैरत अभी तक अपने पैग़म्बर (स.अ.व) की बेटी, उनके परिवार, औलाद, पत्नियों और साथियों की कब्रों पर हुए ज़ुल्म का विरोध करने के लिए जागृत नहीं हुई है?

मौलाना रज़ा हुसैन रिज़वी, मौलाना फैज़ अब्बास मशहदी, मौलना शबाहत हुसैन और खानकाह सलाहुद्दीन से बाबर सफ़वी ने भी तक़रीर करते हुए सऊदी सरकार से जन्नत उल बाक़ी के पुनः निर्माण की मांग की। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र और भारत सरकार से आग्रह करते हुए कहा कि सऊदी सरकार पर जन्नतुल बक़ी के पुनः निर्माण के लिए दबाव डाला जाये ताकि पवित्र मज़ारों के निर्माण की अनुमति हमें दी जा सके।

विरोध प्रदर्शन में मौलाना सरताज हैदर ज़ैदी, मौलाना फ़िरोज़ हुसैन ज़ैदी, मौलाना रज़ा हुसैन रिज़वी, मौलाना फैज़ अब्बास मशहदी, मौलाना शबाहत हुसैन, मौलाना नज़र अब्बास ज़ैदी समेत बड़ी संख्या में मोमनीन शामिल हुए निज़मत आदिल फराज़ ने अंजाम दी।

इस अवसर पर मजलिस-ए-उलमा-ए-हिंद ने जन्नतुल बक़ी के पुनः निर्माण के लिए संयुक्त राष्ट्र, दिल्ली स्थित सऊदी अरब दूतावास और भारत सरकार को ईमेल के माध्यम से एक मेमोरेंडम भी भेजा।

 

जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने विधानसभा में वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर सत्तारूढ़ दल नेशनल कॉन्फ्रेंस के विधायकों के प्रदर्शन का बचाव करते हुए कहा कि हाल में पारित इस कानून से केंद्र शासित प्रदेश के बहुसंख्यक लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं।

जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने विधानसभा में वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर सत्तारूढ़ दल नेशनल कॉन्फ्रेंस के विधायकों के प्रदर्शन का बचाव करते हुए कहा कि हाल में पारित इस कानून से केंद्र शासित प्रदेश के बहुसंख्यक लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं।

अब्दुल्लाह ने विपक्षी दल पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के नेतृत्व पर भी पलटवार किया जिन्होंने श्रीनगर के ट्यूलिप गार्डन में केंद्रीय मंत्री किरेन रीजीजू के साथ उनकी हालिया मुलाकात को लेकर उन पर निशाना साधा अब्दुल्लाह ने कहा कि आलोचना करने वाले वही लोग हैं, जो भारतीय जनता पार्टी भाजपा की गोद में बैठ गए और जम्मू-कश्मीर को बर्बाद कर दिया।

उन्होंने कहा, सदन के अधिकतर सदस्य वक्फ संशोधन अधिनियम से नाराज थे और सदन में अपनी बात रखना चाहते थे। दुर्भाग्य से उन्हें इस मामले पर अपनी बात रखने का मौका नहीं मिला।

मुख्यमंत्री ने विधानसभा के बाहर संवाददाताओं से कहा,वे विधानसभा के भीतर मुस्लिम बहुल क्षेत्र की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करना चाहते थे। लेकिन जो काम सदन के भीतर नहीं हो सकता, उसे हम सदन के बाहर करेंगे। संसद में पारित विधेयक ने जम्मू-कश्मीर के बहुसंख्यक लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है।

वक्फ मुद्दे पर चर्चा की मांग को अध्यक्ष द्वारा अस्वीकार किए जाने के खिलाफ गैर-भाजपा दलों के विरोध के कारण लगातार तीन दिन तक कार्यवाही बाधित रहने के बाद सदन को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया।

मुख्यमंत्री ने कहा कि पार्टी वक्फ मुद्दे पर भावी कार्रवाई के बारे में विस्तार से बताएगी। कश्मीर घाटी में अपनी व्यस्तताओं के कारण बजट सत्र के अंतिम तीन दिन अनुपस्थित रहने वाले अब्दुल्ला ने कहा कि विधानसभा में ‘‘अजीब चीजें’’ हुईं, जहां कुछ विपक्षी सदस्यों ने उनके खिलाफ बोला।

परोक्ष रूप से उनका इशारा पीडीपी और पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के नेताओं की ओर था, जिन्होंने हाल में श्रीनगर के ट्यूलिप गार्डन में अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री किरेन रीजीजू की मेजबानी करने को लेकर उनसे सवाल किया था।

 

भारत के मुम्बई में सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि का आभार एवं स्वागत समारोह विद्वानों एवं बुद्धिजीवियों की उपस्थिति में भव्य तरीके से आयोजित किया गया। जिसमें शहर के गणमान्य लोगों के साथ-साथ मुंबई के उपनगरों और शहर के दूरदराज के इलाकों से विद्वान, बुद्धिजीवी और देश-विदेश के नेताओं ने भाग लिया। महाराष्ट्र प्रांत के विभिन्न शहरों से भी विचार और दूरदर्शिता वाले लोग बड़ी संख्या में शामिल हुए।

भारत के मुंबई स्थित प्रसिद्ध एवं ऐतिहासिक मुगल मस्जिद में एक भव्य समारोह आयोजित किया गया, जिसमें इस्लामी क्रान्ति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सय्यद अली हुसैनी ख़ामेनेई के भारत में प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मेहदी महदवीपुर की सेवाओं के लिए आभार व्यक्त किया गया तथा साथ ही उनके उत्तराधिकारी डॉ. हकीम इलाही का गर्मजोशी से स्वागत किया गया।

इस प्रतिष्ठित समारोह में मुंबई से बड़ी संख्या में प्रमुख विद्वान, बुद्धिजीवी और सामाजिक हस्तियां शामिल हुईं और आगा महदवीपुर की धार्मिक, राष्ट्रीय और सामाजिक सेवाओं को श्रद्धांजलि दी। कार्यक्रम की शुरुआत पवित्र कुरान की तिलावत से हुई, जिसे जनाब मुजीज साहब गोवंडी ने प्रस्तुत किया, जिसके बाद कई प्रतिष्ठित वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किए।

जनाब हुसैन मेहदी हुसैनी ने हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन महदवीपुर की भारत में 15 वर्षों की सेवा पर विस्तार से प्रकाश डाला

शहर के बुजुर्ग और प्रसिद्ध धार्मिक विद्वान, हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन, जनाब आगा हुसैन मेहदी हुसैनी ने हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन महदवीपुर की सेवाओं को स्वीकार किया और नए प्रतिनिधि का स्वागत करते हुए कहा, "हम भारत में इस्लामी क्रांति के नेता के प्रतिनिधि जनाब डॉ. हकीम इलाही का स्वागत करते हैं, और दुआ करते हैं कि वह जनाब महदवीपुर के नक्शेकदम पर चलकर देश की सेवा करें।"समारोह को संबोधित करते हुए जनाब महदवीपुर ने भारत के प्रति अपने गहरे लगाव और यहां के लोगों के प्रति प्रेम को याद करते हुए डॉ. हकीम इलाही का परिचय दिया तथा उनके लिए दुआ की कि वे इस महान जिम्मेदारी को अच्छे ढंग से निभाएं।

उन्होंने कहा, "भारत की धरती मेरे दिल के बहुत करीब है। यहां के लोगों का प्यार, ईमानदारी और यादें हमेशा मेरे साथ रहेंगी।"

इस कार्यक्रम में प्रख्यात धार्मिक विद्वान, हज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन, जनाब हसनैन करारवी भी उपस्थित थे, जिन्होंने भाषण देते हुए कहा, "जनाब महदवीपुर ने न केवल भारत में धार्मिक नेतृत्व प्रदान किया, बल्कि मुस्लिम एकता को भी बढ़ावा दिया। हम उनके आभारी हैं।"

हुज्जतुल इस्लाम हसनैन करारवी ने जनाब महदवीपुर के बलिदान और सेवाओं की सराहना करते हुए वली फकीह के नए प्रतिनिधि डॉ. हकीम इलाही का स्वागत किया और उनके लिए शुभकामनाएं व्यक्त कीं।

कार्यक्रम का सुंदर संचालन प्रख्यात पत्रकार जनाब अहमद काजमी ने किया, जबकि शहर की प्रतिष्ठित शख्सियत एवं वरिष्ठ धार्मिक विद्वान एवं वक्ता मौलाना जहीर अब्बास रिजवी ने उनका भरपूर सहयोग किया।

दिल्ली से इस कार्यक्रम में भाग लेने आए प्रसिद्ध पत्रकार एवं कार्यक्रम संचालक जनाब अहमद काजमी ने कहा कि मुगल मस्जिद में यह आध्यात्मिक कार्यक्रम हमारे दिलों को जोड़ने का एक माध्यम है।

कार्यक्रम के दौरान उन्होंने इमाम खुमैनी (र) के कथनों के विभिन्न अंश प्रस्तुत करके कार्यक्रम को और अधिक सुशोभित किया।

कार्यक्रम के अंत में, मुगल मस्जिद के इमाम सय्यद नजीब-उल-हसन जैदी ने सभी मेहमानों, विद्वानों, प्रतिभागियों और आयोजकों के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त किया और कहा, "यह कार्यक्रम इस बात का संकेत है कि हमारा राष्ट्र अपने विद्वानों और नेताओं को महत्व देना जानता है। जब इतने सारे लोग उप इमाम के प्रतिनिधि के लिए एकत्र हुए हैं, तो निश्चित रूप से हम सभी इमाम जमाना का स्वागत करने के लिए और भी बेहतर तरीके से एक साथ होंगे।"

उन्होंने समारोह में उपस्थित मदरसों के छात्रों का विशेष रूप से आभार व्यक्त करते हुए कहा कि हम इस कार्यक्रम में उपस्थित छात्रों के विशेष रूप से आभारी हैं, जो हर तरफ से बड़ी कठिनाइयों और कष्टों के बावजूद मदरसों का गौरव हैं और प्रत्येक कार्यक्रम की भावना को जीवित रखते हैं।

उन्होंने कार्यक्रम में भाग लेने वाले सभी युवाओं, सैनिकों और बुजुर्गों का विशेष रूप से आभार व्यक्त किया तथा कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए जिम्मेदार सभी लोगों और शिया यूथ फेडरेशन, जिनके सहयोग से यह कार्यक्रम आयोजित किया गया, के प्रति भी आभार और शुभकामनाएं व्यक्त कीं।

कार्यक्रम में मुम्बई स्थित ईरानी वाणिज्य दूतावास के प्रमुख डॉ. मोहसेनी फार और मुम्बई स्थित ईरानी कल्चर हाउस के महानिदेशक जनाब आगा फाज़िल ने भाग लिया।

अंत में, जनाब महदवीपुर और जनाब हकीम इलाही को शहर के प्रतिष्ठित व्यक्तियों और संस्थाओं द्वारा शॉल और गुलदस्ते भेंट कर उनकी सेवाओं का स्वागत किया गया।

यह आयोजन न केवल एक यादगार क्षण था, बल्कि उम्माह की एकता, ज्ञान और आध्यात्मिकता और धार्मिक नेतृत्व से जुड़े मूल्यों के नवीनीकरण का प्रकटीकरण भी था।

 

 हुज्जतुल इस्लाम बसीरती ने कहा, प्रतिरोध का शनिवार, ईरानी राष्ट्र की जागरूकता का दिन है यह वह शनिवार है जो हमें याद दिलाता है कि वार्ता एक उपकरण हो सकती है, लेकिन मुक्ति का मार्ग नहीं। सच्ची जीत का एकमात्र रास्ता प्रतिरोध है।

हुज्जतुल इस्लाम मेंहदी बसीरती ने कहा,एक और शनिवार आने वाला है, लेकिन कुछ लोग इसे वार्ता की मेज़ से जोड़ रहे हैं और उन लोगों से बातचीत के परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जिनका ईरानी राष्ट्र के साथ दुश्मनी का रिकॉर्ड स्पष्ट है।

उन्होंने स्पष्ट किया कि वार्ता को एक राजनीतिक रणनीति के रूप में लेने में हमें कोई समस्या नहीं है, बशर्ते यह राष्ट्रीय गौरव और हितों की रक्षा करते हुए हो। यह बुद्धिमान कूटनीति का हिस्सा हो सकती है।लेकिन उन्होंने चेतावनी दी,हमारा अनुभव बताता है कि अमेरिका के साथ नजदीकी न केवल समस्याओं का समाधान नहीं करती, बल्कि नुकसान और पीछे हटने के अलावा कुछ नहीं देती।

उन्होंने जोर देकर कहा,अमेरिका वही देश है जिसने सरकारों की अत्यधिक आशावादिता के दौरान हस्ताक्षरित समझौतों को तोड़ दिया और न केवल व्यवस्था, बल्कि आम लोगों के खिलाफ अधिकतम दबाव की नीति अपनाई।ऐसे दुश्मन के सामने सचेत और सक्रिय प्रतिरोध के अलावा कोई विकल्प नहीं है। 

ईरान का इतिहास दर्शाता है कि जहां हमने प्रतिरोध किया, वहां हम आगे बढ़े; और जहां हमने दुश्मन की मुस्कान पर भरोसा किया, वहां पीछे हटे।प्रतिरोध का शनिवार हमें यह याद दिलाने का दिन है कि वार्ता एक उपकरण हो सकती है, लेकिन मुक्ति का मार्ग नहीं। असली जीत केवल प्रतिरोध से ही संभव है।

 

यौम ए इन्हेदाम जन्नतुल बक़ी की मुनासिबत से फातमिया एजुकेशनल कॉम्प्लेक्स मुज़फ़्फराबाद में एक बड़ी मजलिस-ए-अज़ा का आयोजन किया गया जिसमें मोमिनात ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया।

जन्नतुल बक़ी से जुड़ी एक बड़ी मजलिस-ए-अज़ा मुज़फ़्फ़राबाद में आयोजित की गई। यह मजलिस जन्नतुल बक़ी के ध्वस्त किए जाने की याद में रखी गई थी जिसमें बड़ी संख्या में महिलाओं ने हिस्सा लिया।

मजलिस को ख़्वाहर शहर बानो काज़मी ने संबोधित किया उन्होंने बताया कि जन्नतुल बक़ी वह जगह है जहाँ पैग़म्बर-ए-इस्लाम हज़रत मोहम्मद (स.) के परिवार के अलावा उनके लगभग 10,000 साथी सहाबा भी दफ़न हैं।

उन्होंने कहा कि जन्नतुल बक़ी की अहमियत बहुत ज़्यादा है। खुद पैग़म्बर-ए-इस्लाम (स.ल.व.व.) इस जगह का नाम रख कर वहाँ जाया करते थे रोते थे और दुआ करते थे।

उन्होंने बताया कि 8 शवाल इस्लामी इतिहास का सबसे दुखद दिन है जब सऊदी शासकों ने जन्नतुल बक़ी को 'शिर्क' और 'बिदअत' कहकर तोड़ डाला। यहाँ पैग़म्बर मोहम्मद (स.ल.व.) की बेटी हज़रत फातिमा (स.), उनके पोते इमाम हसन (अ.), इमाम ज़ैनुल आबिदीन (अ.), इमाम मोहम्मद बाकर (अ.), और इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.) की क़ब्रें मौजूद थीं।

इसके अलावा पैग़म्बर (स.) की पत्नियाँ, बेटे इब्राहीम और फूफी आतिका भी यहाँ दफ़न हैं।यह बहुत ही पवित्र और सम्मानित जगह थी, लेकिन सऊदी शासकों ने इसका बिल्कुल भी सम्मान नहीं किया और इसे पूरी तरह से तबाह कर दिया।

 

 आयतुल्लाह अब्बास काबी ने गाजा में हो रहे हालात पर बयान दिया है उन्होंने कहा कि गाजा में हो रही घटनाएं पश्चिमी सभ्यता का नतीजा हैं और दुनिया का चुप रहना मानवता के साथ धोखा है।पश्चिमी संस्कृति ने गाजा का विनाश किया है संसार की खामोशी इंसानियत का अपमान है।

हज़रत आयतुल्लाह अब्बास काबी ने गाजा में हो रहे हालात पर बयान दिया है उन्होंने कहा कि गाजा में हो रही घटनाएं पश्चिमी सभ्यता का नतीजा हैं और दुनिया का चुप रहना मानवता के साथ धोखा है।पश्चिमी संस्कृति ने गाजा का विनाश किया है संसार की खामोशी इंसानियत का अपमान है।

उन्होंने कहा कि इजरायल की हाल की कार्रवाइयां एक सुनियोजित नरसंहार हैं, जिसमें 70% से ज्यादा पीड़ित महिलाएं, बच्चे और राहतकर्मी हैं। गाजा के लोगों को भोजन, दवा और पीने के पानी की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है।

आयतुल्लाह काबी ने इजरायल की तुलना नाजियों से की और कहा कि वे प्रतिबंधित हथियारों का इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने अमेरिका पर इजरायल का साथ देने का आरोप लगाया।

उन्होंने गाजा के लोगों के प्रतिरोध की सराहना की और कहा कि इजरायल उनकी आवाज को दबा नहीं सकता। उन्होंने दुनिया से गाजा के लोगों की मदद करने का आग्रह किया और मुस्लिम देशों से एकजुट होने का आह्वान किया।

आयतुल्लाह काबी ने कहा कि इजरायल के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मामला उठाना चाहिए और अरब देशों को इजरायल के साथ संबंध सामान्य नहीं करने चाहिए।

 

 पिछले 24 घंटे में गाज़ा पट्टी के अलग अलग इलाकों में इसराइली हमलों में 41 फिलिस्तीनी शहीद हो गए।

फिलिस्तीन की स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, पिछले 24 घंटे में 41 शहीदों के शव और 146 घायल अस्पतालों में लाए गए हैं।

मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, 7 अक्टूबर 2023 से अब तक इसराइल के हमलों में 50,887 लोग शहीद और 1,15,875 लोग घायल हो चुके हैं।

इसके अलावा, 18 मार्च के बाद से जब इसराइल ने गाज़ा में युद्धविराम का उल्लंघन किया, तब से 1,523 फिलिस्तीनी शहीद और 3,834 घायल हुए हैं।

गाज़ा के स्वास्थ्य अधिकारियों ने बताया कि कई शहीदों के शव अभी भी मलबे के नीचे दबे हुए हैं या सड़कों पर पड़े हैं, लेकिन राहत टीमों को वहां तक पहुंचने में मुश्किल हो रही है।

 

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने गुरुवार सुबह चेतावनी दी है कि गाज़ा में इंसानी मदद की आपूर्ति पूरी तरह से बंद हो चुकी है और इज़राइल अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत इस मदद की आपूर्ति सुनिश्चित करने का ज़िम्मेदार है।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने गुरुवार सुबह चेतावनी दी है कि ग़ाज़ा में इंसानी मदद की आपूर्ति पूरी तरह से बंद हो चुकी है और इज़राइल अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत इस मदद की आपूर्ति सुनिश्चित करने का जिम्मेदार है।

एंटोनियो गुटेरेस ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स (पहले ट्विटर) पर लिखा,इस वक्त किसी भी तरह की इंसानी मदद ग़ज़ा में नहीं पहुँच सकती, जबकि इज़राइल को एक कब्ज़ा करने वाली ताकत के तौर पर अपनी अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियों को पूरा करना होगा।

उन्होंने आगे कहा कि अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार, ग़ज़ा में बिना किसी रुकावट के इंसानी मदद की पहुंच और मदद करने वाले कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए।

ग़ाज़ा में इज़राइली हमलों और कड़े घेराबंदी की वजह से हालात बहुत ज्यादा खराब हो चुके हैं। फिलिस्तीनी स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक लाखों लोग खाने-पीने की चीज़ों, पानी, दवाइयों और बुनियादी ज़रूरतों से महरूम हो चुके हैं।

संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी फॉर फिलिस्तीन रिफ्यूजी (UNRWA) ने भी चेतावनी दी है कि इज़राइल की लगातार रुकावटों के चलते मदद का सामान ग़ाज़ा तक पहुँचाना नामुमकिन होता जा रहा है।

संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार की कई संस्थाओं ने इज़राइल से तुरंत इंसानी मदद के काफिलों को ग़ाज़ा में जाने की अनुमति देने और जंग से प्रभावित लोगों को बुनियादी सुविधाएँ देने की अपील की है।

कई इस्लामी और पश्चिमी देशों ने भी इज़राइल द्वारा मदद रोकने की कड़ी आलोचना की है। अरब लीग, यूरोपीय यूनियन और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं इस मामले में तुरंत कार्रवाई की मांग कर रही हैं।

हालात तब और बिगड़ गए जब इज़राइली हमलों की वजह से मदद पहुंचाने वाली संस्थाओं के दफ़्तर और काफिलों को भी निशाना बनाया गया, जिससे मदद करने वाले कर्मचारियों की जान भी खतरे में पड़ गई है।