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सीरिया पर एक बार फिर अमेरिका ने हवाई हमला किया
अमेरिकी सेना के दावे के अनुसार ISIS (आईएसआईएस) के लड़ाके हथियारों की खेप को स्थानांतरित कर रहे थे जिसे इस हवाई हमले में नष्ट कर दिया।
एक रिपोर्ट के अनुसार ,अमेरिकी सेना ने दावा किया है कि उसने एक हवाई हमले में सीरिया में ISI के लड़ाकों को निशाना बनाया है।
अमेरिकी सेना की केंद्रीय कमान सेंटकॉम जिसे आतंकवादी संगठन भी कहा जाता है ने एक बयान जारी करते हुए कहा 24 दिसंबर को केंद्रीय कमान (सेंटकॉम) के सैनिकों ने सीरिया के दैरअल-ज़ोर प्रांत में एक सटीक हवाई हमला किया जिसमें ISIS के दो लड़ाके मारे गए और एक घायल हुआ।
अमेरिकी सेना के दावे के अनुसार, ISIS (आईएसआईएस) के लड़ाके हथियारों की खेप को स्थानांतरित कर रहे थे जिसे इस हवाई हमले में नष्ट कर दिया गया।
सीरिया पर फिर से अमेरिका का हमला
आतंकवादी संगठन सेंटकॉम ने एक बयान जारी कर बताया कि अमेरिकी लड़ाकू विमानों ने एक बार फिर सीरिया के दैरअल-ज़ोर क्षेत्र को निशाना बनाया।अंतरराष्ट्रीय समाचार अमेरिकी सेना ने दावा किया है कि उसने एक हवाई हमले में ISIS के लड़ाकों को निशाना बनाया है।
अमेरिकी सेना की केंद्रीय कमान सेंटकॉम ने बयान में कहा,23 दिसंबर को केंद्रीय कमान सेंटकॉम के सैनिकों ने सीरिया के दैरअल-ज़ोर प्रांत में एक सटीक हवाई हमला किया जिसमें ISIS के दो लड़ाके मारे गए और एक घायल हुआ।
अमेरिकी सेना का दावा है कि ISIS आईएसआईएस के लड़ाके हथियारों की खेप को स्थानांतरित कर रहे थे जिसे इस हवाई हमले में नष्ट कर दिया गया।
इससे पहले भी सेंटकॉम ने दावा किया था कि उसने पिछले शुक्रवार को दैरअल ज़ोर में ISIS आईएसआईएस के नेता अबू यूसुफ को एक हवाई हमले में निशाना बनाकर मार गिराया।
सीरियाई राष्ट्रपति बशरअल असद के पतन राजनीतिक अस्थिरता और सत्ता परिवर्तन के बीच अमेरिका ने इस देश में कई हवाई हमले किए हैं।
ग़ाज़ा पर इज़रायली हमलों में दर्जनों नागरिक शहीद
ग़ाज़ा पट्टी में जारी इज़रायल के हमलों ने एक बार फिर निर्दोष नागरिकों को अपनी चपेट में ले लिया है फिलिस्तीनी मीडिया के अनुसार, बुधवार तड़के इज़रायली सेना ने ग़ाज़ा के विभिन्न इलाकों में बमबारी जारी रखी।
एक रिपोर्ट के अनुसार ,ग़ाज़ा पट्टी में जारी इज़रायल के हमलों ने एक बार फिर निर्दोष नागरिकों को अपनी चपेट में ले लिया है फिलिस्तीनी मीडिया के अनुसार, बुधवार तड़के इज़रायली सेना ने ग़ाज़ा के विभिन्न इलाकों में बमबारी जारी रखी इन हमलों में बड़ी संख्या में लोग शहीद और घायल हो गए हैं।
अलजज़ीरा नेटवर्क ने ग़ाज़ा पट्टी के अस्पताल सूत्रों के हवाले से जानकारी दी कि बुधवार सुबह से ग़ाज़ा पट्टी के विभिन्न क्षेत्रों में बमबारी के कारण शहीदों की संख्या 32 हो चुकी है इसके अलावा दर्जनों लोग गंभीर रूप से घायल हैं जिनमें से कई की हालत नाजुक बताई जा रही है।
ग़ाज़ा शहर में सोने के बाज़ार के पास स्थित एक रिहायशी अपार्टमेंट पर इज़रायली हमले में चार लोग शहीद हो गए इनमें दो महिलाएं एक बच्चा और एक अन्य व्यक्ति शामिल हैं इस हमले में कई अन्य लोग घायल हुए हैं, जिनका इलाज अस्पताल में चल रहा है।
अलजज़ीरा के संवाददाता ने बताया कि इज़रायली तोपखाने ने उत्तरी ग़ाज़ा पट्टी के बैत लाहिया शहर को निशाना बनाया इसके साथ ही दक्षिण-पूर्वी गज़ा शहर के अल-ज़ैतून इलाके में स्थित एक घर पर इज़रायली विमानों ने बमबारी की इस हमले में भी कई फिलिस्तीनी शहीद और घायल हो गए।
इन हमलों में रिहायशी इलाकों बाजारों और घरों को खास तौर पर निशाना बनाया जा रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह हमले न केवल उनके घरों और संपत्तियों को तबाह कर रहे हैं बल्कि उनके जीवन के लिए भी गंभीर खतरा बने हुए हैं।
इन हमलों के कारण ग़ाज़ा पट्टी में मानवीय संकट और गहरा गया है। घायलों को पर्याप्त चिकित्सा सुविधा नहीं मिल पा रही है क्योंकि अस्पताल पहले से ही संसाधनों की कमी और दवाईयों की कमी का सामना कर रहे हैं। इसके अलावा बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं भी प्रभावित हो रही हैं।
कतर में इजरायली नेताओं और हमास के बीच संभावित युद्धविराम वार्ता समाप्त
इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने घोषणा की है कि इजरायली वार्ता दल एक सप्ताह की महत्वपूर्ण वार्ता के बाद हमास के साथ संभावित युद्धविराम और कैदियों के आदान प्रदान पर आंतरिक परामर्श के लिए कतर से वापस हुए।
एक रिपोर्ट के अनुसार , नेतन्याहू ने अपने कार्यालय से जारी एक बयान में कहा कि यह टीम जिसमें मोसाद, शिन बेट इजरायली सुरक्षा एजेंसी और इजरायली सेना के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं,
मंगलवार रात को इजरायल वापस लौटी। बयान में कहा गया है कि यह दल आंतरिक परामर्श के लिए लौटा है ताकि युद्धविराम वार्ता और इजरायली कैदियों की रिहाई पर विचार किया जा सके।
कैदियों की स्थिति:
रिपोर्ट्स के अनुसार, इजरायल ने 10,300 से अधिक फिलिस्तीनी कैदियों को जेल में रखा है, जबकि हमास के कब्जे में लगभग 100 इजरायली कैदी गाजा में मौजूद हैं हमास का दावा है कि इजरायली हवाई हमलों में कई इजरायली कैदी मारे गए हैं।
वार्ता के परिणाम और प्रगति:
इजरायली अखबार येदिओत अहारोनोत ने रिपोर्ट किया है कि इजरायल और हमास के बीच मतभेद कम हो रहे हैं और एक समझौते की संभावना बढ़ रही है। रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण और मध्य गाजा के प्रमुख मुद्दों पर प्रगति हुई है, हालांकि अधिक जानकारी साझा नहीं की गई।
हमास ने कई बार समझौते पर सहमति जताई है और यहां तक कि मई में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा समर्थित प्रस्ताव को भी स्वीकार किया था। लेकिन नेतन्याहू ने इस समझौते से पीछे हटते हुए गाजा पर सैन्य कार्रवाई जारी रखने और सेना वापस न बुलाने की शर्तें रखीं जबकि हमास पूर्ण युद्धविराम और इजरायली सेना की पूरी तरह से वापसी की मांग कर रहा है।
नेतन्याहू की आलोचना और आंतरिक दबाव:
नेतन्याहू को इजरायल के भीतर तीखी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है विपक्षी दलों और कैदियों के परिजनों ने उन पर आरोप लगाया है कि वे अपनी सरकार बचाने के लिए वार्ता को विलंबित कर रहे हैं।
दूसरी ओर कट्टरपंथी मंत्री जिनमें इतामार बेन-गवीर और बेज़लाल स्मोट्रिच शामिल हैं ने चेतावनी दी है कि यदि नेतन्याहू गाजा पर हमले रोकने पर सहमत होते हैं तो वे सरकार से अलग हो जाएंगे।
कतर और ईरान के साथ द्विपक्षीय संबंधों पर हमें गर्व है
कतर के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माजिद बिन मोहम्मद अलअंसारी ने मंगलवार शाम एक साप्ताहिक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि हमें इस्लामी गणराज्य ईरान के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों पर गर्व है और क्षेत्रीय घटनाक्रमों पर हमारी बातचीत जारी है।
एक रिपोर्ट के अनुसार , कतर की आधिकारिक समाचार एजेंसी (QNA) ने बताया कि माजिद बिन मोहम्मद अलअंसारी ने साप्ताहिक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, कि कतर और ईरान के संबंध सुदृढ़ और सिद्धांतों पर आधारित हैं उन्होंने यह भी बताया कि दोनों देश कुछ गैस परियोजनाओं में सहयोग कर रहे हैं।
उन्होंने कहा,हम क्षेत्रीय मुद्दों और निरंतर सहयोग पर बातचीत कर रहे हैं हमें इस्लामी गणराज्य ईरान के साथ अपने संबंधों पर गर्व है।
मोहम्मद अलअंसारी ने रूस के साथ कतर के संबंधों का भी उल्लेख करते हुए कहा कि कतर और रूस के बीच संबंध सकारात्मक हैं और जारी हैं।
उन्होंने रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष के कारण प्रभावित बच्चों को उनके परिवारों तक वापस पहुंचाने के प्रयासों में दोहा की मध्यस्थता की भूमिका पर जोर दिया।
इस्राइल द्वारा सीरियाई कब्जे वाले गोलन हाइट्स में बस्तियों के विस्तार की कोशिशों के बारे में उन्होंने कहा,कतर पहले भी ऐसे किसी भी कदम की कड़ी निंदा कर चुका है हमें एकजुटता दिखानी चाहिए ताकि इस्राइल की अवसरवादी योजनाओं का मुकाबला किया जा सके।
कतर के विदेश मंत्रालय ने सीरिया की संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता के समर्थन में दोहा के स्थायी रुख पर जोर दिया और सीरिया में सुरक्षा और स्थिरता लाने के लिए क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रयासों का समर्थन किया हैं।
गाजा युद्धविराम वार्ता पर उन्होंने कहा,हालांकि दोहा और काहिरा में संभावित युद्धविराम पर बातचीत जारी है गाजा में स्थिति बिल्कुल भी सुधर नहीं है और मानवीय संकट और गंभीर हो गया है।
कतर के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा फिलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र राहत और कार्य एजेंसी (UNRWA) की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने के फैसले को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में ले जाने के लिए प्रस्ताव पारित करने का स्वागत किया।
उन्होंने कहा कि इस प्रस्ताव को 137 मतों से मंजूरी मिली जो इस्राइल के UNRWA की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने के निर्णय को व्यापक रूप से खारिज करता है।
इस्राईल ने हमास नेता हनिया की हत्या में शामिल होना स्वीकार किया
इस साल जुलाई के अंत में, फिलिस्तीनी प्रतिरोध समूह हमास के राजनीतिक नेता इस्माईल हनिया की तेहरान में हत्या कर दी गई थी, जिसके लिए इस्राईल को जिम्मेदार ठहराया गया था।
इज़राइल के रक्षा मंत्री, इज़राइल काट्ज़ ने पहली बार सार्वजनिक रूप से इस्माइल हनिया की हत्या में इज़राइल के हाथ होने का स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि हनिया की हत्या तेहरान में इज़राइल ने की थी। इसके साथ ही काट्ज़ ने यमन के हूथी नेताओं को भी "सज़ा" देने का संकेत दिया और कहा कि इज़राइल की सेना हूथी नेताओं का सिर कलम करेगी, जैसा कि उसने हनिया, याह्या सिनवार और हसन नसरुल्लाह के साथ किया। जुलाई में हनिया की हत्या का आरोप इज़राइल पर था, लेकिन तब इज़राइल ने इसे स्वीकार नहीं किया था। हनिया कतर में रहकर हमास की अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का नेतृत्व कर रहे थे और ग़ज़्ज़ा संघर्ष के लिए बातचीत में शामिल थे।
इसके बाद, 27 सितंबर को हिज़बुल्लाह के नेता हसन नसरुल्लाह की हत्या और 16 अक्टूबर को याह्या सिनवार की हत्या हुई। इन घटनाओं ने क्षेत्र में युद्ध फैलने का खतरा बढ़ा दिया। 7 अक्टूबर 2023 से ग़ज़्ज़ा में इज़राइल के हमलों में 45,300 से अधिक फिलिस्तीनी मारे गए, जिनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे हैं। ग़ज़्ज़ा में बुनियादी आवश्यकताएं घातक रूप से कम हो गईं, और लगभग पूरी आबादी बेघर हो गई।
सीरिया में शिया बहुल इलाकों पर हमले
सीरिया की पूर्व सरकार के पतन के बाद हम्स के आसपास के शिया बहुल गांव और कस्बे सशस्त्र समूहों के अत्याचारों का शिकार बन रहे हैॆ इन हमलों में लूटपाट आगजनी और अन्य अत्याचार शामिल हैं इन हमलों का उद्देश्य स्थानीय आबादी में भय पैदा कर उन्हें बेघर करना है।
एक रिपोर्ट के अनुसार ,सीरिया की पूर्व सरकार के पतन के बाद हम्स के आसपास के शिया बहुल गांव और कस्बे सशस्त्र समूहों के अत्याचारों का शिकार बन रहे हैॆ इन हमलों में लूटपाट आगजनी और अन्य अत्याचार शामिल हैं इन हमलों का उद्देश्य स्थानीय आबादी में भय पैदा कर उन्हें बेघर करना है।
अलअशरफिया, अलमुख्तारिया, कफर अब्द, हुम्स के उत्तरी क्षेत्र अल-गंत्तो और अल-कुसैर के पश्चिमी इलाकों में सशस्त्र समूहों ने घरों पर हमले किए लूटपाट की और कई मकानों को आग के हवाले कर दिया।
मकामी सूत्रों का कहना है कि इन हमलों के दौरान शिया अल्पसंख्यक समुदाय के युवाओं का अपहरण भी किया गया सोशल मीडिया पर इन घटनाओं की तस्वीरें वायरल हो रही हैं, जिनमें नष्ट किए गए मकान और जलाई गई संपत्तियां देखी जा सकती हैं।
बेघर हुए लोगों ने नई सीरियाई सरकार और अंतरराष्ट्रीय संगठनों से अपील की है कि इन सशस्त्र समूहों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की जाए जो इन हालात का फायदा उठाकर शिया अल्पसंख्यकों को निशाना बना रहे हैं।
दूसरी ओर सीरिया की नई सरकार ने सामंजस्य और प्रतिशोधी कार्रवाइयों से बचने पर जोर दिया है लेकिन कई इलाकों में सशस्त्र समूहों के हमले अब भी जारी हैं।
लेबनान की सीमा पर हजारों सीरियाई शरणार्थी और विस्थापित लोग मौजूद हैं जिनमें महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग शामिल हैं ये लोग खुले आसमान के नीचे कड़ाके की ठंड में रहने पर मजबूर हैं,
यूरोप में इस्लामोफोबिया में रिकॉर्ड वृद्धि: रिपोर्ट
रिपोर्ट में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डाला गया है जैसे यूरोपीय देशों में इस्लामोफोबिया के खिलाफ विश्व दिवस की मान्यता और ग़ज़्ज़ा में इस्राईल के नरसंहार के बाद मुस्लिम विरोधी भावनाओं का बढ़ना।
एक हालिया रिपोर्ट से पता चला है कि ग़ज़्ज़ा में इजरायल के क्रूर युद्ध ने यूरोप में इस्लामोफोबिया की लहर को बढ़ावा दिया है, जिसके बाद से इस्लामोफोबिया में रिकॉर्ड वृद्धि देखी गई है। "यूरोपीय इस्लामोफोबिया रिपोर्ट 2023" नामक एक हालिया रिपोर्ट 28 यूरोपीय देशों में मुस्लिम विरोधी भावना की जांच करती है। इस्तांबुल तुर्की जर्मन विश्वविद्यालय के अनाइस बेराकली और अमेरिका के विलियम और मैरी विश्वविद्यालय के फरीद हफीज ने रिपोर्ट तैयार करने में योगदान दिया है। शनिवार को एक ऑनलाइन समाचार सम्मेलन के दौरान प्रस्तुत की गई रिपोर्ट से पता चला कि ग़ज़्ज़ा पर इजरायल के हालिया हमलों के परिणामस्वरूप पश्चिमी यूरोप में इस्लामोफोबिया काफी बढ़ गया है। रिपोर्ट में यूरोपीय देशों में इस्लामोफोबिया के खिलाफ विश्व दिवस की मान्यता, गाजा में इजरायल के नरसंहार के बाद मुस्लिम विरोधी भावनाओं का बढ़ना और मुख्यधारा मीडिया और सोशल मीडिया में मुसलमानों के बारे में गलत सूचना के प्रसार पर प्रकाश डाला गया है। अमेरिका और यूरोप के विभिन्न संस्थानों और संगठनों ने इस रिपोर्ट का समर्थन किया है।
संस्थागत नस्लवाद
रिपोर्ट में कहा गया है कि अक्टूबर 2023 में फ्रांस में हमास ऑपरेशन के बाद, राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन के इजरायल समर्थक बयानों ने मुसलमानों के खिलाफ संस्थागत नस्लवाद को बढ़ा दिया है। रिपोर्ट के फ्रांस खंड के लेखक कौसर नजीब ने कहा कि शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर सरकार के प्रतिबंध ने मुस्लिम छात्रों और उनके परिवारों के लिए काफी चिंता पैदा कर दी है। इस कदम को फ्रांस में मुस्लिम विरोधी भावना की संस्थागत प्रकृति के संकेत के रूप में देखा जाता है।
राजनीतिक शोषण
शोधकर्ता नादिया लाहदिली ने कहा कि स्विट्जरलैंड में आप्रवासी विरोधी भावना ने सीधे तौर पर इस्लामोफोबिया को बढ़ाने में योगदान दिया है। 2023 में देश में 1,58 इस्लाम विरोधी घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें नस्लीय भेदभाव की 876 घटनाएं और 62 मुस्लिम विरोधी हमले शामिल हैं। लाहदिली ने कहा कि मुस्लिम महिलाओं, विशेषकर सिर पर स्कार्फ पहनने वाली महिलाओं को कार्यस्थल पर महत्वपूर्ण भेदभाव का सामना करना पड़ता है। रिपोर्ट में चुनाव प्रचार के दौरान राजनेताओं द्वारा इस्लामी पोशाक के राजनीतिक शोषण पर भी प्रकाश डाला गया है।
मस्जिदों को बंद करना
साराजेवो विश्वविद्यालय के शोधकर्ता हेकमत कारचक ने बोस्निया और हर्जेगोविना में, विशेषकर सर्बियाई राष्ट्रवादियों द्वारा मुस्लिम विरोधी बयानबाजी में उल्लेखनीय वृद्धि पर प्रकाश डाला। रिपोर्ट में कहा गया है कि कई मस्जिदों को बंद करना और मस्जिद की जमीन पर होटलों का निर्माण देश की सांस्कृतिक विरासत को मिटाने और मुस्लिम विरोधी भावनाओं को बढ़ावा देने के प्रयासों का हिस्सा है।
ऑस्ट्रिया में बढ़ता इस्लामोफ़ोबिया
फरीद हाफ़िज़ ने ऑस्ट्रिया की ओर ध्यान आकर्षित किया जहां यूएई मुस्लिम विरोधी समूहों को वित्तपोषण करने में शामिल है। गाजा युद्ध के बाद से मुस्लिम विरोधी बयानबाजी बढ़ गई है। ऑस्ट्रियाई स्कूलों ने कट्टरवाद विरोधी कार्यशालाएँ आयोजित कीं जहाँ इस्लाम विरोधी भावनाओं को बढ़ावा दिया गया। रिपोर्ट में गाजा हिंसा के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के पुलिस दमन और गाजा में संघर्ष विराम पर संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव के खिलाफ ऑस्ट्रिया के वोट का भी उल्लेख किया गया है।
मोटर क्रियाओं की आवश्यकता
रिपोर्ट पूरे यूरोप में मुस्लिम विरोधी भावना में चिंताजनक वृद्धि की पहचान करती है, जो राजनीतिक बयानबाजी और सोशल मीडिया से प्रेरित है। इसके अलावा, पूरे यूरोप में भेदभाव से निपटने और मुस्लिम समुदायों की सुरक्षा के लिए और अधिक प्रभावी उपायों की मांग की गई।
दीन की तबलीग़़ में आर्टिफ़ीशियल इंटेलिजेंस का किरदार
आर्टिफ़ीशियल इंटैलीजेंस एक सहायक उपकरण के रूप में प्रचारक के हाथ में हो सकती है, और व्यक्ति को धार्मिक स्रोतों की बेहतर खोज, त्वरित रूप से अवधारणाओं को समझने, और यहां तक कि अपने धार्मिक सवालों को तेज़ और प्रभावी तरीके से पूछने में मदद कर सकती है।
हौज़ा ए इल्मिया के स्मार्ट प्रौद्योगिकी रणनीति समिति के सचिव डॉ. मुहम्मद रज़ा क़ासिमी ने एक संवाददाता से बातचीत में "धर्म के प्रचार में आर्टिफ़ीशियल इंटैलीजेंस की भूमिका और प्रभावी प्रचार के लिए समाधान" पर चर्चा की। यह बातचीत हम आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं:
हौज़ा ए इल्मिया के उच्चतम निर्देशों में तीन मुख्य उद्देश्य बताए गए हैं: शिक्षा, शोध और प्रचार। तकनीकी क्षेत्रों में हो रही महत्वपूर्ण प्रगति को देखते हुए, आज के समय में यह एक दिलचस्प सवाल है कि आर्टिफ़ीशियल इंटैलीजेंस (AI) का उपयोग धर्म के प्रचार और धार्मिक अवधारणाओं के प्रसार के लिए कैसे किया जा सकता है। हौज़ा ए इल्मिया इस क्षेत्र में AI का क्या उपयोग कर सकता है?
आर्टिफ़ीशियल इंटैलीजेंस के डेटा प्रोसेसिंग और सूचना विश्लेषण की क्षमताओं के कारण यह धर्म के प्रचार में कई तरीकों से सहायक हो सकता है। इसका एक प्रमुख उपयोग प्रचार सामग्री तैयार करने में हो सकता है। आर्टिफ़ीशियल इंटैलीजेंस के एल्गोरिदम का इस्तेमाल करके धार्मिक स्रोतों, किताबों और लेखों का विश्लेषण और सारांश तैयार किया जा सकता है, और प्रचार के मुख्य बिंदुओं को व्यवस्थित तरीके से प्रस्तुत किया जा सकता है। इस प्रकार, प्रचारक को सूचना जुटाने में कम समय लगेगा।
क्या इस सामग्री उत्पादन में कोई खतरा हो सकता हैं? क्याआर्टिफ़ीशियल इंटैलीजेंस जानकारी को गलत तरीके से वर्गीकृत कर सकती है और गलत डेटा उत्पन्न कर सकती है?
हां, यह सच है। आर्टिफ़ीशियल इंटैलीजेंस का उपयोग करते समय यह ध्यान में रखना चाहिए कि यह एक धार्मिक विद्वान या विशेषज्ञ की तरह गहरी और समग्र समझ नहीं रखती, क्योंकि धार्मिक अवधारणाओं को अक्सर गहरे विचार और विश्लेषण की आवश्यकता होती है। हालांकि, आर्टिफ़ीशियल इंटैलीजेंस एक सहायक उपकरण के रूप में कार्य कर सकती है, और प्रचारक को धार्मिक स्रोतों को बेहतर तरीके से खोजने, अवधारणाओं को जल्दी से समझने, और यहां तक कि अपने धार्मिक प्रश्नों को जल्दी और प्रभावी ढंग से पूछने में मदद कर सकती है।
उदाहरण के लिए, चैटबॉट्स, जो विशेष रूप से धार्मिक प्रश्नों का उत्तर देने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं, उपयोगकर्ताओं को क़ुरआन, हदीस, और पैगंबर (स) के जीवन से सटीक और व्यापक जानकारी प्रदान कर सकते हैं। हालांकि, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि ये उपकरण केवल मानव संसाधनों के पूरक हों, न कि उनके प्रतिस्थापन के। इसका मतलब है कि विशेषज्ञ इन जानकारियों के संगठन पर निगरानी रखें और परिणामों का मूल्यांकन करें और एल्गोरिदम को सही करें।
क्या प्रचार के लिए आर्टिफ़ीशियल इंटैलीजेंस से संबंधित अन्य अपेक्षाएँ हैं?
आर्टिफ़ीशियल इंटैलीजेंस का एक अन्य प्रमुख लाभ सामाजिक और जनसांख्यिकी अध्ययनों से प्राप्त बड़े डेटा का विश्लेषण करने की क्षमता है। यदि यह डेटा आर्टिफ़ीशियल इंटैलीजेंस को प्रदान किया जाए, तो यह प्रचारक को ऐसे संसाधनों की पहचान करने में मदद कर सकता है जो दर्शकों की आवश्यकताओं के अनुसार अधिक उपयुक्त हों। जैसे, विद्यार्थियों, युवाओं, बुजुर्गों, और यहां तक कि भौगोलिक क्षेत्रों के आधार पर, उचित विषयों का चयन किया जा सकता है और ऐसे जानकारी का प्रचार किया जा सकता है जो दर्शकों के लिए अधिक फायदेमंद हो।
इसके अतिरिक्त, आर्टिफ़ीशियल इंटैलीजेंस का उपयोग भाषणों या किसी अन्य प्रचार कार्यक्रम की प्रतिक्रिया का मूल्यांकन करने के लिए भी किया जा सकता है। इस प्रकार, हम यह समझ सकते हैं कि दर्शकों ने विभिन्न विषयों पर क्या प्रतिक्रिया दी है; चाहे वह सोशल मीडिया और सार्वजनिक डेटा के विश्लेषण के माध्यम से हो, या मौखिक डेटा संग्रहण के द्वारा। इस डेटा का विश्लेषण संस्थाओं जैसे दफ़्तर तबलीग़ात और तबलीग संगठन यह निर्धारित करने में मदद कर सकता है कि कौन सा प्रचारक या वक्ता किसी विशेष क्षेत्र या प्रचार के प्रकार के लिए उपयुक्त है। इस प्रकार, स्मार्ट सिस्टमों की मदद से हम तीन बिंदुओं: क्षेत्र, सामग्री और प्रचारक को आपस में जोड़ सकते हैं, और धार्मिक प्रचार में एक बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं।
इसके अलावा, क्या आप अन्य संभावित उपयोगों के बारे में सोच सकते हैं, जो आर्टिफ़ीशियल इंटैलीजेंस द्वारा धार्मिक प्रचार में किए जा सकते हैं?
एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण में, आर्टिफ़ीशियल इंटैलीजेंस से अधिक उम्मीद की जा सकती हैं। जैसे, विद्वानों के भाषणों और उपदेशों को सरलता से और स्मार्ट सिस्टमों के माध्यम से विभिन्न भाषाओं में अनुवाद किया जा सकता है। इस प्रकार, भाषणों का वीडियो डबिंग के साथ किसी भी भाषा में प्रसारित किया जा सकता है, और यह सभी लोगों के लिए उपलब्ध हो सकता है। यह क्षमता ऑनलाइन उपदेशों के लिए उपयोगी हो सकती है, जो एक साथ कई भाषाओं में प्रसारित हो सकते हैं। इसका मतलब यह है कि आर्टिफ़ीशियल इंटैलीजेंस एक ही समय में फारसी आवज़ को अन्य भाषाओं में ध्वनित कर सकती है।
इसके अलावा, आभासी वास्तविकता (VR)और संवर्धित वास्तविकता (AR) जैसी प्रौद्योगिकियों को धार्मिक प्रचार में उपयोग करने के बारे में भी विचार किया जा सकता है। आभासी वास्तविकता और संवर्धित वास्तविकता दोनों तकनीकें एक भाषण या उपदेश में श्रोताओं को आकर्षक अनुभव प्रदान कर सकती हैं। कल्पना कीजिए कि जब प्रचारक किसी कथा या उसकी व्याख्या को प्रस्तुत कर रहे होते हैं, तो श्रोताओं को इस सामग्री के साथ संबंधित चित्र और टेक्स्ट तत्काल दिखाई दे सकते हैं, बिना यह आवश्यकता महसूस किए कि वक्ता पहले से ही पावरपॉइंट तैयार करें।
एक दिलचस्प और उपयोगी पहलू यह है कि आर्टिफ़ीशियल इंटैलीजेंस खुद धर्म के प्रचार में उसके उपयोग के तरीके सुझा सकती है। इसका मतलब है कि जब हम धार्मिक प्रचार के विभिन्न कार्यों को स्मार्ट सिस्टम में डालते हैं, जैसे: उपदेश, कक्षाएं, भाषण, बैठकों, चर्चाएँ, आदि, तो गहरे शिक्षण एल्गोरिदम इन डेटा का विश्लेषण करके सबसे अच्छे तरीके सुझा सकते हैं। यानी आर्टिफ़ीशियल इंटैलीजेंस खुद बता सकती है कि कहां और कैसे इसका उपयोग किया जाए!
क्या अन्य धर्मों और मतों में आर्टिफ़ीशियल इंटैलीजेंस के उपयोग का कोई उदाहरण है?
नई तकनीकों की आकर्षक विशेषता यह है कि यह दुनिया भर में समान शुरुआत से शुरू होती हैं, और सभी देशों के बीच की खाई कम हो जाती है। वर्तमान में, हम इस स्थिति में हैं, और हमारे प्रयास और अन्य देशों और विशेषज्ञ केंद्रों के प्रयास लगभग समान हैं। उदाहरण के लिए, जैसे हमने धार्मिक प्रश्नों के उत्तर देने वाले चैटबॉट बनाए हैं, वैसे ही कैथोलिक चर्च ने "Ask a Priest" नामक चैटबॉट बनाया है। अगर हम पीछे रहते हैं, तो तकनीकी खाई बढ़ सकती है, और भविष्य में आर्टिफ़ीशियल इंटैलीजेंस की सीमाओं तक पहुंचना कठिन हो सकता है।
अंतिम शब्द
भविष्य बहुत रोमांचक है। हम भविष्य में वर्चुअल रियलिटी और संवर्धित रियलिटी का अधिक व्यापक उपयोग देखेंगे। शायद हम जल्द ही वर्चुअल वातावरण में इस्लामिक इतिहास के महान व्यक्तित्वों से मुलाकात कर सकेंगे या धर्म की अवधारणाओं को और अधिक आकर्षक तरीके से सीख सकेंगे। इसके अतिरिक्त, कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग धार्मिक ग्रंथों के विश्लेषण और यहां तक कि क़ुरआन की आयतों के नए तरीको को प्रस्तुत करने में धार्मिक समझ को बढ़ाने में मदद कर सकता है, और धार्मिक संदेशों को सरल और समकालिक अनुवादों के माध्यम से अधिक आसानी से प्रसारित किया जा सकता है। इस तरह से, विश्व की धार्मिक संस्कृति में एकजुटता बढ़ेगी और विचारों में अंतर घटेगा।
हालांकि, मैं यह फिर से जोर देता हूं कि इन उपकरणों और स्मार्ट प्रौद्योगिकियों का उपयोग सही निगरानी और सावधानी से किया जाना चाहिए ताकि उनका नकारात्मक प्रभाव न पड़े। आर्टिफ़ीशियल इंटैलीजेंस इस्लाम धर्म के प्रचार और प्रसार के लिए एक शक्तिशाली उपकरण हो सकता है, लेकिन यह भी आवश्यक है कि हम इसका उपयोग जिम्मेदारी और धार्मिक सिद्धांतों की गहरी समझ के साथ करें। यह प्रौद्योगिकी इस तरह से विकसित होनी चाहिए कि यह ज्ञान और धार्मिक जागरूकता के प्रचार में मदद करे और धार्मिक स्रोतों की गलत व्याख्याओं से बचने में सहायक हो।
ईरान ने सीरिया में संकट बढ़ने से कैसे रोका
ईरान के विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता इस्माईल बक़ाई ने एक साक्षात्कार में कहा कि सीरिया में परामर्शदाता के रूप में ईरान की उपस्थिति का उद्देश्य इस देश की सेना की सहायता, आतंकवादी गुटों से मुक़ाबला और पूरे क्षेत्र में असुरक्षा को बढ़ने से रोकना था और अपने परामर्शदाता सैनिकों को निकालने पर आधारित निर्णय भी ज़िम्मेदारी से भरा क़दम था और सीरिया और क्षेत्र की स्थिति को ध्यान में रखते हुए ऐसा किया गया।
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतीन ने सीरिया में बश्शार असद की सरकार के ख़त्म हो जाने के बाद पहली बार एक प्रेस कांफ्रेन्स में सीरिया में होने वाले परिवर्तनों के बारे में किये गये प्रश्नों का जवाब दिया।
इस प्रेस कांफ्रेन्स में रूसी राष्ट्रपति से विभिन्न प्रश्नों को पूछा गया और उनके जवाबों से स्पष्ट हो गया कि उनकी बातें सूक्ष्म नहीं थीं। मिसाल के तौर पर रूसी राष्ट्रपति ने कहा कि सीरिया में रूस का कोई थल सैनिक नहीं था। इसी प्रकार रूसी राष्ट्रपति ने कहा कि वहां पर हमारी सैनिक छावनियां हैं एक वायुसेना की है जबकि दूसरी नौसेना की।
सीरिया में जो ज़मीनी व थलसेना थी उसमें सीरियाई सैनिक और कुछ दूसरे सैनिक थे। जैसकि हम सभी जानते हैं कि हमारे पास छिपाने के लिए कोई बिन्दु नहीं है दूसरे शब्दों में लड़ने वाले ईरान के समर्थक थे यहां तक कि वहां से हमने अपनी विशेष कार्यवाही के सैनिकों को निकाल लिया था हमारा काम वहां केवल लड़ना नहीं था।
रूसी राष्ट्रपति से जब यह पूछा गया कि सीरिया में अंतिम दिनों में क्या हुआ जिसकी वजह से बहुत कुछ बदल गया तो उन्होंने सीरिया के रणक्षेत्र में जो कुछ हुआ था उसे बयान किया और कहा कि जब विद्रोही गुट हलब के नज़दीक पहुंच गये तो लगभग 30 हज़ार लोग हलब की रक्षा के लिए लड़ रहे थे। 350 अर्धसैनिक नगर में दाख़िल हो गये। सीरियाई सैनिक और उनके साथ ईरान के समर्थक लड़ने वाले बिना लड़ाई के पीछे हट गये और अपने ठिकानों को विस्फ़ोटों से उड़ा दिया।
रूसी राष्ट्रपति ने कहा कि कुछ जगहों पर सशस्त्र झड़पें हुईं पर उन्हें छोड़कर समूचे सीरिया की यही हालत थी। अगर पहले हमारे ईरानी दोस्त हमसे कहते कि हमारी मदद करें ताकि हम अपने सैनिकों को सीरिया पहुंचा सकें पर अब वे हमसे कह रहे हैं कि हमें सीरिया से निकाले लें। हमने चार हज़ार ईरानी संघर्षकर्ताओं को हमीम छावनी से तेहरान स्थानांतरित किया। कुछ ईकाइयां जिन्हें ईरान का समर्थक कहा जाता है लड़ाई के बिना लेबनान और इराक़ चली गयीं।
जब से सीरिया में बश्शार असद की सरकार सरकार गिरी है और बश्शार असद सीरिया से रूस चले गये हैं उसके बाद से ईरान के विदेशमंत्री और विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता सहित विभिन्न ईरानी अधिकारियों ने टीवी कार्यक्रमों और प्रेस कांफ्रेन्सों में हाज़िर होकर सीरिया में होने वाले परिवर्तनों के संबंध में वास्तविकताओं को बयान किया परंतु रूसी राष्ट्रपति ने जो बातें वार्षिक प्रेस कांफ्रेन्स में कही वे कुछ आयामों से सूक्ष्म नहीं थीं।
इसी संबंध में ईरान के विदेशमंत्राल के प्रवक्ता इस्माईल बक़ाई ने रूसी राष्ट्रपति की हालिया बातों के संबंध में एक साक्षात्कार किया है जिसके महत्वपूर्ण अंशों का उल्लेख हम यहां कर रहे हैं।
इस्माईल बक़ाई ने सीरिया में आतंकवाद से मुक़ाबले के लिए लंबे समय से ईरान और रूस के मध्य होने वाली सहकारिता व सहयोग की ओर संकेत किया और कहा कि यह अस्वाभाविक नहीं है कि सीरिया के परिवर्तनों में प्रभावी भूमिका निभाने वाले पक्ष अपने विचारों को विशेष व भिन्न रूप में बयान करें और पेश करें परंतु प्रतीत नहीं हो रहा है कि सीरिया में बश्शार असद की सरकार के अंतिम दिनों में ईरान की परामर्शदाता के रूप में भूमिका के बारे में बातें व जानकारियां सूक्ष्म नहीं थीं।
विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि सीरिया में परामर्शदाता के रूप में ईरान की उपस्थिति का उद्देश्य इस देश की सेना की सहायता, आतंकवाद से मुक़ाबला और पूरे क्षेत्र में असुरक्षा फ़ैलने से रोकना था और सीरिया से निकलने का जो फ़ैसला किया गया वह भी सीरिया की सैनिक व सुरक्षा स्थिति को ध्यान में रखकर गया।
दाइश के ख़त्म होने के बाद सीरिया में ईरान की सैन्य उपस्थिति बदल गयी।
ईरान के विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता इस्माईल बक़ाई ने कहा कि सीरिया की क़ानूनी सरकार के आह्वान व मांग पर ईरान वहां गया था और ईरान और सीरिया ने आतंकवाद से मुक़ाबले में वर्षों तक प्रभावी सहयोग किया और सीरिया और इराक़ में दाइश को पैर जमाने और क्षेत्र में आतंकवाद को फ़ैलने से रोक दिया।
उन्होंने आगे कहा कि सीरिया में दाइश के प्रभाव के कम व ख़त्म हो जाने के बाद इस देश में ईरान की सैन्य उपस्थिति परिवर्तित हो गयी और ईरान की सैन्य उपस्थिति दाइश और तकफ़ीरी आतंकवादी गुटों को दोबारा अस्तित्व में आने से रोकने और ज़ायोनी सरकार के मुक़ाबले में सीरियाई सैनिकों की मज़बूती तक सीमित हो गयी, यह काम सफ़ल था और सबने देख लिया कि सीरिया से ईरान के परामर्शदाता सैनिकों के निकलने के बाद अतिग्रहणकारियों ने तुरंत सीरिया के महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर क़ब्ज़ा कर लिया और साथ ही सीरिया की आधारभूत सेवाओं को नष्ट व बर्बाद कर दिया।
तेहरान मा᳴स्को के साथ विचारों के आदान- प्रदान को आधिकारिक रास्तों से किये जाने को प्राथमिकता देता है।
सीरिया से ईरान स्थानांतरित किये जाने वाले व्यक्तियों की संख्या के बारे में जब विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि इनमें ईरानी कूटनयिकों के परिवार, ईरानी और ग़ैर ईरानी तीर्थयात्री और इसी प्रकार कुछ वे ग़ैरईरानी नागरिक थे जो सीरिया में लेबनानी शरणार्थियों की मदद करने के लिए वहां गये थे और इन सभी लोगों को ईरानी विमानों से हमीम एअरपोर्ट से और रूस के सहयोग से ईरान स्थानांतरित कर दिया गया।
विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता ने अपनी वार्ता के अंत पर बल देकर कहा कि ईरान और रूस के विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण सहयोग हैं और विभिन्न सतहों पर दोनों देशों के मध्य वार्ता होती रहती है और तेहरान इस बात को प्राथमिकता देता है कि दोनों देशों के मध्य विचारों और अनुभवों का आदान- प्रदान भी औपचारिक मार्गों से हो
इस्लामी क्रांति ने महिलाओं को ज्ञान की ऊंचाईयो तक पहुंचने का अवसर दिया
जामेअतुज ज़हरा (स) की शिक्षिका ने कहा: इस्लामी क्रांति ने महिलाओं को वैज्ञानिक उन्नति प्राप्त करने का अवसर दिया ताकि वे समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें। क्रांति के सुप्रीम लीडर ने हाल ही में अपने भाषण में कहा कि महिलाएं अपनी विशेष समस्याओं में महिला मुजतहिदों की तक़लीद कर सकती हैं, यानी इस्लामी क्रांति ने ऐसे हालात पैदा किए हैं कि आज हम समाज में महिला मुजतहिदों को धार्मिक नेता के रूप में पेश कर सकते हैं।
जामेअतुज ज़हरा (स) क़ुम की शिक्षिका, श्रीमति हाशमी ने हौज़ा न्यूज के एक संवाददाता से बातचीत के दौरान कहा: जब सर्वोच्च नेता हज़रत ज़हरा (स) के जन्म दिवस के अवसर पर महिलाओं के विभिन्न वर्गों से बात करते हैं और किसी मसले को उठाते हैं, तो इसका मतलब यह है कि वह मुद्दा बहुत महत्वपूर्ण है और इस्लामी समाज के बुनियादी मसलों पर असर डालता है।
उन्होंने कहा: इस्लामी क्रांति की बदौलत महिलाओं ने वैज्ञानिक क्षेत्र में उन्नति की, जिससे वे समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के काबिल हो गईं और आज हम इस्लामी क्रांति के परिणामस्वरूप महिलाओं को मुजतहिद और धार्मिक नेता के रूप में पेश करने में सक्षम हैं।
महिलाओं की तक़लीद का ऐतिहासिक संदर्भ
श्रीमति हाशमी ने कहा कि महिलाओं की तक़लीद का मुद्दा नया नहीं है, बल्कि इतिहास में फुक़हा और उलेमा ने इस पर बहस की है। हालांकि, अधिकतर उलेमा ने मरजा-ए-तकलिद के लिए पुरुष होने की शर्त रखी है, फिर भी इस्लामी क्रांति ने इस मुद्दे को और स्पष्ट किया है।
उन्होंने कहा कि कुछ लोग कहते हैं कि सुप्रीम लीडर का दृष्टिकोण प्रसिद्ध राय के खिलाफ है, जिससे यह जाहिर होता है कि यह एक पुराना फ़िक़्ही मुद्दा है।
महिला मुजतहिद की तक़लीद के बारे में दो राय हैं: 1. प्रसिद्ध राय जिसमें मरजा की एक शर्त "पुरुष होना" है। इस समूह के लोग अपने दृष्टिकोण को दो आधारों पर प्रस्तुत करते हैं: पहली दलील क़ुरआनी आयतें हैं जो पुरुष की महिलाओं पर श्रेष्ठता साबित करती हैं, और दूसरी दलील वो रिवायतें हैं जिनमें उमर बिन हनज़ला और अबू खदीजा जैसे लोग इमाम मासूम अलीहिस्सलाम से सवाल करते हैं, और इमाम ने "रजलुन मिंकुम व मिंकुम" यानी "तुममें से पुरुष" का इस्तेमाल किया। इसलिए ये लोग मरजा-ए-तकलिद के लिए पुरुष होने के पक्षधर हैं।
इस्लामी क्रांति के कारण महिलाओं ने इल्मी बुलंदिया हासिल की
मरजा-ए-तकलिद बनने के चरण
उन्होंने कहा: एक मरजा-ए-तकलिद के साबित होने के लिए तीन चरण होते हैं: 1. इज्तिहाद 2. फतवा का जारी होना 3. تقلید के लिए उसकी ओर रुख करना संभव और जायज होना। तो अब:
इज्तिहाद: सभी उलेमा सहमत हैं कि महिलाएं इज्तिहाद के स्तर तक पहुंच सकती हैं।
फ़तवा का जारी होना: महिलाओं के फतवा देने और आदेश जारी करने में कोई विवाद नहीं है।
तक़लीद का जवाज़: यहां पर विवाद है कि क्या महिलाओं के फतवे पर व्यावहारिक तकलीद जायद है या नहीं।
उन्होंने कहा: सुप्रीम लीडर ने एक विशेषज्ञ की तरह और एक सभा में इस मुद्दे को स्पष्ट रूप से बताया है कि इस दृष्टिकोण का बचाव तर्कों के साथ किया जा सकता है, और उन लोगों के तर्कों को खारिज किया है जो यह समझते हैं कि मरजा-ए-तकलिद होना केवल पुरुषों तक सीमित है।
श्रीमति हाशमी ने शहीद मुताहरी और अन्य उलेमा के तर्कों का हवाला देते हुए कहा: तक़लीद के जायज़ होने की दलीलो में से एक "सीरत-ए-ओक़ला" है और अक्ल और शरीअत दोनों के अनुसार आलिम की ओर रुख करना जरूरी है, और इसमें दलील के मुतलक होने के कारण पुरुष और महिला में कोई फर्क नहीं।
उन्होंने आगे कहा: इमाम हसन अस्करी अलीहिस्सलाम का फरमान है: "व अम्मा मंन काना मिनल फुक़ाहा-ए-साएनन ले-नफ्सेही हाफ़िज़न ले दीनेही मुखालिफ़न-ले हवाहो मुतीअन ले अमरे मौलाहो फ़लिल अवामे अन योक़ल्लेदहू", यानी "जो फुक़हा में से अपनी जान को गुनाहों से बचाने वाला, अपने धर्म की हिफाज़त करने वाला, अपनी इच्छाओं के खिलाफ चलने वाला और खुदा के आदेश का पालन करने वाला हो, तो आम लोगों पर उसकी तक़लीद करना जरूरी है।" यह हदीस हर मुजतहिद आलिम, चाहे वह पुरुष हो या महिला, पर लागू होती है।
यह बात इस बात का प्रतीक है कि इस्लामी क्रांति ने महिलाओं को वैज्ञानिक और धार्मिक क्षेत्रों में आगे बढ़ने के मौके दिए और उन्हें सामाजिक और शरई नेताओं के रूप में स्वीकार करने का रास्ता खोला।