हज हज़रत इमाम अली की दृष्टि में

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ईश्वरीय संदेश वही के उतरने की ज़मीन मक्का पर इस समय ईश्वरीय प्रेम में डूबे हुए लोग बहुत बड़ी संख्यामें उपस्थत हैं। हर वर्ष इन दिनों विभिन्न राष्ट्रों के मुसलमान इस आध्यात्मिक स्थल की यात्रा करते हैं ताकि उनके विचार व ईमान शुद्ध हो जाए। हज का अर्थ उद्देश्य व क़दम बढ़ाना है। ऐसा क़दम जो मन से सभी सांसारिक मोहमाया, भौतिक इच्छाओं व अहम को निकाल कर ईश्वर की ओर बढ़ाया जाता है। इसलिए ईश्वर के निमंत्रण पर जिस व्यक्ति के लिए भी हज के महासम्मेलन में उपस्थित होना संभव है, वह ईश्वर के शांति के घर की ओर जाता है ताकि विशेष स्थान पर विशेष संस्कारों द्वारा अपने मन व आत्मा को पवित्र करे और इस्लामी इतिहास के एक काल को दृष्टि में रखे। वास्तव में हज पर जाना, ईश्वर के सामने आत्मसमर्पण व उसके सामिप्य व आज्ञापालन के उच्च चरण की ओर क़दम बढ़ाना है जिससे एक आम मुसलमान भविष्य के बारे में सोचने वाला, शीघ्र समाप्त होने वाले आनंदों पर ध्यान न देने वाला, आत्मसंयमी और कुल मिलाकर एक ईमान वाला व्यक्ति बन जाता है।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम के ख़ुतबों पर आधारित नहजुल बलाग़ा नामक किताब में हज का विषय भी उन मूल्यवान ज्ञानों में शामिल है जिसका हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने बड़े की सुंदर ढंग से अर्थपूर्ण उल्लेख किया है। हज का सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव मनुष्य की आत्मा व मन में परिवर्तन है। जो लोग हज सच्चे मन से करते हैं वे पूरी आयु इसके आत्मिक प्रभाव का अपने भीतर आभास करते हैं। शायद यही कारण है कि हज मनुष्य की पूरी आयु में केवल एक बार अनिवार्य है। हज के आश्चर्यचकित प्रभाव के दृष्टिगत श्रद्धालु बड़े हर्षोल्लास के साथ हज यात्रा पर जाते हैं। हाजी अपने हर क़दम पर ईश्वर से अधिक से अधिक निकट होता जाता है और अपने वास्तविक प्रियतम व पूज्य की हर स्थान पर उपस्थिति का आभास करता है। इसलिए हज को एक नये जन्म से उपमा दी गयी है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम नहजुल बलाग़ा में एक ख़ुतबे में उत्साह भरे हाजियों की भीड़ का इस प्रकार चित्रण करते हैः महान ईश्वर ने अपने घर का हज तुम पर अनिवार्य किया वह घर जिसे लोगों के लिए क़िबला बनाया। हाजी प्यासों की भांति जो पानी तक पहुंचते हैं, विभिन्न गुट में वहां पहुंचते हैं और हर्षोल्लास से भरे कबूतरों के समान उसकी ओर बढ़ते हैं। हर त्रुटि से पाक ईश्वर ने हज को अपनी महानता के सामने लोगों की दीनता तथा अपनी प्रतिष्ठा के सामने उनके आत्मसमर्पण को प्रकट करने के लिए अनिवार्य किया है।

प्रायः विश्व में प्रचलित आधिकारिक, सामाजिक व राजनैतिक वर्गीकरण का मानदंड किसी विशेष भूभाग की जनता, जाति या विभिन्न शीर्षकों के अंतर्गत संयुक्त भौतिक हित होते हैं।

जबकि हज़रत अली अलैहिस्सलाम के शब्दों में इस्लाम में इनमें से कोई भी मानदंड स्वीकार्य नहीं है बल्कि मनुष्यों के वर्गीकरण का मानदंड सृष्टि के रचयिता पर विश्वास व मानवीय मूल्य व अधिकार हैं। यह मूल्यवान विचार किसी भी उपासना की तुलना में सबसे अधिक हज में अपने व्यवहारिक रंग में दिखता है कि जहां भौगोलिक सीमाओं का कोई महत्व नहीं रह जाता और श्वेत, श्याम, पीले, और लाल वर्ण के लोग चाहे विद्वान हों या अनपढ़, शक्तिशाली हों या कमज़ोर सबके सब एक सादे वस्त्र में मतभेदों से दूर हाजियों के रूप में ईश्वर के अतिथि होते हैं। यह विश्व के मुसलमानों की आस्था की एकता का सबसे आकर्षक व सुदंर अध्याय है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इन एकमत व एकजुट मनुष्यों की पवित्र काबा की परिक्रमा को ईश्वरीय अर्श के निवासियों की परिक्रमा से उपमा देते हुए कहते हैः वे उन फ़रिश्तों जैसे हो गए जो ईश्वर के अर्श के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। अर्श सातवें आकाश पर ईश्वरीय गुणों के प्रतीक उस स्थान को कहते हैं जिसकी फ़रिश्ते परिक्रमा करते हैं।

हज़रत अली की दृष्टि में जो हाजी सही ढंग से हज करने में सफल हो जाते हैं वे वास्तव में ईश्वरीय दूतों के क़दमों की जगह पर क़दम रखते हैं और ईश्वर की बंदगी व उसके प्रति आत्मसमर्पण की दृष्टि से ईश्वरीय दूतों की भांति प्रतिबद्ध हो जाते हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम हाजियों की ओर संकेत करते हुए कहते हैः वे पैग़म्बरों के स्थानों पर ठहरे हुए हैं।

इस्लामी शिक्षाओं के आधार पर वह पहले व्यक्ति जिन्होंने काबे की आधारशिला रखी वह हज़रत आदम अलैहिस्सलाम थे। हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को जब स्वर्ग से निकाला गया तो उन्होंने अपनी ग़लतियों की ईश्वर से क्षमायाचना के लिए एक फ़रिश्ते के दिशा निर्देश पर हज के संस्कार अंजाम दिए। इसके बाद ईश्वरीय दूत हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने उस समय हज किया जब उनकी नाव भयानक तूफ़ान से सुरक्षित बच गयी। काबा, हज़रत इब्राहीम द्वारा पुनर्निर्माण से पूर्व भी लोगों का उपासना स्थल था किन्तु समय बीतने के साथ इसकी दीवारें ख़राब होकर मिट रही थीं। इसलिए ईश्वर के आदेश पर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्साम ने अपने सुपुत्र हज़रत इसमाईल अलैहिस्सलाम की सहायता से काबे के स्तंभों को फिर से उठाया और फिर दोनों हस्तियों ने हज किये। इस्लामी शिक्षाओं में हज़रत मूसा, हज़रत यूनुस, हज़रत ईसा, हज़रत दाउद और हज़रत सुलैमान जैसे ईश्वरीय दूतों के भी हज करने का उल्लेख मिलता है। वास्तव में सभी ईश्वरीय दूत हज के वैश्विक दायित्व से अवगत रहे और इस संस्कार की रक्षा पर नियुक्त रहे हैं।

हज अपने कठिन संस्कारों के दृष्टिगत मन की निष्कपटता व बंदगी को परखने के लिए बहुत बड़ी परीक्षा है। इस संबंध में हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैः क्या इस वास्तविकता को नहीं देखते कि ईश्वर ने आदम के समय के लोगों से लेकर इस संसार के अंतिम व्यक्ति तक सारे मनुष्यों की परीक्षा ली,,, फिर अपने घर को पथरीली, सबसे संकीर्ण घाटियों व सबसे कम वनस्पति वाले भूभाग पर बेडौल पहाड़ों, गर्म रेतों व कम पानी वाले सोतों के बीच ऐसी बस्ती में स्थापित जहां ऊंट, गाय और भेड़ बकरी के किसी और प्रकार का पशु-पालन संभव नहीं है।

यदि ईश्वर चाहता तो अपने बड़े उपासना स्थलों व काबे को बाग़ों व नदियों के बीच तथा घने व फलदार वृक्षों से समृद्ध मैदानी क्षेत्र में एक दूसरे से निकट आबादी व एक दूसरे से जुड़े घरों के पास, या सुनहरे रंग के गेहुं के खेतों के पास या हरे भरे बागों में, पानी से समृद्ध भूभागों और आवाजाही वाले मार्ग पर स्थापित करता किन्तु इस स्थिति में परीक्षा की सरलता के दृष्टिगत हाजियों का पारितोषिक भी कम हो जाता और यदि काबे के पत्थरों के स्तंभ कि जिस पर ईश्वर का घर टिका हुआ है और काबे की दीवारों के पत्थर सबके सब पन्ने व चमकते हुए लाल मणि के होते तो मनों से संदेह कम हो जाता और इबलीस के कुप्रयास का दायरा सीमित हो जाता और लोगों के मन से चिंताएं व असमंजस समाप्त हो जाता किन्तु ईश्वर अपने बंदों की हर प्रकार से परीक्षा लेता है ताकि इस प्रकार उनके मन से अहंकार को निकाल दे और उनकी आत्माओं की गहराई में विनम्रता को रचा बसा दे ताकि यह सब ईश्वर की कृपा के द्वार उसके लिए खुलने व सरलता से उसके क्षमाकिये जाने का कारण बने।

ईश्वर सूरए हज की आयत क्रमांक 27 में हज को ऐसी उपासना कहता है जिसके अनेक लाभ व विभूतियां हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपने संक्षिप्त वर्णन में इसके कुछ लाभों का उल्लेख किया है। हज़रत अली की दृष्टि में सामाजिक व राजनैतिक दृष्टि से हज का व्यापक प्रभाव मुसलमानों के सम्मान, धर्म के स्तंभों के सुदृढ़ होने और शत्रु के मुक़ाबले में उनकी शक्ति व वैभव का कारण बनेगा। ईश्वर के घर के पास हर वर्ष होने वाला यह महासम्मेलन मुसलमानों के लिए एक अवसर है कि वे अपनी क्षमताओं व शक्तियों को संगठित व बंधुत्व को सुदृढ़ करें तथा शत्रुओं के षड्यंत्रों को निष्क्रिय करने के लिए उपाय व कार्यक्रम बनाएं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैः ईश्वर ने धर्म को शक्तिशाली करने के लिए हज को अनिवार्य किया।

इस्लामी शिक्षाओं में इस बिन्दु की ओर संकेत किया गया है कि हज मुसलमानों की आर्थिक शक्ति को बढ़ा कर उन्हें वित्तीय कठिनाइयों से निकाल सकता है। आज के मुसलमान की सबसे बड़ी समस्या विदेशों पर उनकी आर्थिक निर्भरता है। यदि हज के संस्कारों के साथ साथ इस्लामी जगत के अर्थशास्त्रियों के सेमिनार व सम्मेलन आयोजित हों और विशेषज्ञ मुसलमानों के निर्धनता व विदेशों पर निर्भरता के चंगुल से बाहर निकलने के बारे में सोचें व सार्थक योजनाएं प्रस्तुत करें तो इस्लामी जगत अपने अपार संसाधनों व निहित संपत्ति से इस्लामी जगत की निर्धनता व अभाव को समाप्त कर सकता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम हज को निर्धनता व सामाजिक पाप की समाप्ति का कारण बताते हुए कहते हैः हज व उमरे से निर्धनता दूर होती है और पाप धुल जाते हैं।

इसलिए मुसलमान हज का सम्मान करते हैं और ईश्वरीय संदेश वही के उतरने से विशेष इस भूभाग पर जगह जगह पर ईश्वर की याद को ताज़ा करते हैं। इस दृष्टि से हज मनुष्य के लिए एक सुंदर आध्यात्मिक सैर है जिससे ईश्वर की महानता का भव्य प्रदर्शन होता है। यही कारण है कि हज़रत अली ने हज के महत्व के संबंध में कहाः ईश्वर ने काबे को इस्लाम का चिन्ह क़रार दिया है। जो लोग सही इस्लाम को समझने में ग़लती करते या दिगभ्रमित हो जाते हैं उन्हें चाहिए कि शोध व चिंतन मनन द्वारा वास्तविक इस्लाम को हज में देखें।(एरिब डाट आई आर के धन्यवाद के साथ)

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