رضوی

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बहराइच के बाद एक बार फिर मुस्लिम समुदाय को टारगेट करते हुए आपत्तिजनक नारे लगाए गए तथा मस्जिद के सामने जमकर अपमानजनक हरकतें की गई।

बहराइच का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि बाराबंकी में मूर्ति विसर्जन जुलूस के दौरान एक बार फिर मुस्लिम समाज को निशाना बनाने की योजना के अंतर्गत मस्जिद के पास डीजे पर आपत्तिजनक गाने बजाए गए।

जुलूस में शामिल असामाजिक तत्वों ने मस्जिद के अंदर जूते-चप्पल और रंग फेंका। इस मामले में पुलिस ने कार्रवाई करते हुए तीन लोगों को गिरफ्तार किया है जबकि बाकी लोगों की तलाश जारी है।

पुलिस को मिली तहरीर के मुताबिक़ उन्मादी लोगों ने मस्जिद के सामने डीजे पर आपत्तिजनक गाने बजाए। साथ ही हिंदू पक्ष के लोगों ने मस्जिद पर जूते चप्पल और रंग भी फेंका। इस घटना का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।

दक्षिणी लेबनान में संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों पर इजरायली सेना द्वारा गोलीबारी के बाद, पोप ने सैनिकों का सम्मान करने का आह्वान करते हुए कहा कि युद्ध एक भ्रम है,यह कभी भी शांति और सुरक्षा नहीं लाएगा।

हाल ही में हुई घटनाओं के बाद, जिसमें इज़रायली सेना की गोलीबारी में कम से कम चार संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिक घायल हो गए, पोप फ्रांसिस ने सैनिकों का "सम्मान" करने की अपील की है।

पोप फ़ांसिस द्वारा एक बार फिर मध्य पूर्व में तत्काल युद्ध विराम के आह्वान करने के बाद यह अपील की गई, जिसमें पक्षों से "शांति प्राप्त करने के लिए कूटनीति और संवाद के मार्ग का अनुसरण करने" का आग्रह किया। पोप फ्रांसिस अक्टूबर 2023 से इस क्षेत्र में शत्रुता को रोकने का आह्वान कर रहे हैं, जो कि किसी भी अन्य विश्व नेता द्वारा किए गए आह्वान का अधिक लंबा समय है।

पोप ने आगे कहा, "युद्ध एक भ्रम है," "यह कभी शांति नहीं लाएगा, यह कभी सुरक्षा नहीं लाएगा। यह सभी के लिए हार है, खासकर उन लोगों के लिए जो खुद को अजेय मानते हैं।" उन्होंने कहा, "मैं सभी पीड़ितों के लिए दुआ करता हूं," "विस्थापितों के लिए, बंधकों के लिए - जिनके बारे में मुझे आशा है कि उन्हें तुरंत रिहा कर दिया जाएगा - और मैं दुआ करता हूं कि घृणा और बदले की भावना से उत्पन्न यह बड़ी अनावश्यक पीड़ा जल्द ही समाप्त हो जाएगी।"

 

 

 

 

 

ईरान और विशेष रूप से क़ुम अलमुकद्देसा में आठवें इमाम अली रज़ा अ.स. की बहन हज़रत फ़ातिमा मासूमा शहादत के मौके पर मोमनिन ने ग़म मानते हुए अजादारी की।

हज़रत फ़ातिमा मासूमा स.अ.सोमवार 10 रबीउस्सानी की बरसी का दिन था हज़रत मासूमा का स्वर्गवास क़ुम में हुआ था और इसी शहर में उनका रौज़ा स्थित है।

हज़रत मासूमा का रौज़ा शिया मुसलमानों के पवित्र स्थलों में से एक है और हर साल लाखों लोग उनके रौज़े की ज़ियारत करने क़ुम जाते हैं।

उनके स्वर्गवास की बरसी के अवसर पर भी पूरे ईरान और पूरी दुनिया से पैग़म्बरे इस्लाम (स.ल.व.) के चाहने वाले बड़ी संख्या में क़ुम पहुंचे हैं और अज़ादारी कर रहे हैं।

क़ुम में मातमी दस्ते मातम करते हुए और नौहा पढ़ते हुए हज़रत मासूमा के रौज़े में पहुंचकर उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं।

क़ुम के उपनगरीय इलाक़े जमकरान में स्थित जमकरान मस्जिद में भी बड़ी संख्या में लोग उपस्थित हैं और शोक सभाएं आयोजित कर रहे हैं।

 

हिज़्बुल्लाह लेबनान के उप महासचिव शैख़ नईम क़ासिम ने अपने संबोधन में हिज़्बुल्लाह की क्षमताओं का उल्लेख करते हुए कहा कि हम अवैध राष्ट्र के किसी भी क्षेत्र पर हमला करने का क़ानूनी हक़ रखते हैं।

हिज़्बुल्लाह लेबनान की मिसाइल क्षमता पर हमला करने में ज़ायोनी सेना की विफलता की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा, "दुश्मन ने हमारी मिसाइल क्षमताओं पर हमला करने की कोशिश की, लेकिन वह असफल रहे। हमारा दुश्मन बौखला गया है वह हताश है और उसकी असंख्य सैन्य क्षमताएं भी उसके किसी काम नहीं आईं। इसलिए, उसने अब आम लोगों के साथ साथ UNIFIL बलों और तटस्थ लेबनानी  सैनिकों को भी मारना शुरू कर दिया है।

शेख नईम क़ासिम ने कहा अतिक्रमणकारी ज़ायोनी सेना ने पूरे लेबनान को निशाना बनाया, हमें भी ज़ायोनी शासन के किसी भी बिंदु को निशाना बनाने का अधिकार है, हम जिस लक्ष्य को भी उचित समझेंगे उसे हमलों का निशाना बनाएंगे।

 

 

 इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) की पेशीन गोई

सादिक़े आले मोहम्मद हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) इरशाद फ़रमाते हैं कि अल्लाह की वजह से मक्का ए मोअज़्ज़मा हरम , रसूल अल्लाह (स.अ.) की वजह से मदीना हरम , अमीरल मोमेनीन (अ.स.) की वजह से कूफ़ा (नजफ़) हरम है और हम दीगर अहले बैत की वजह से शहरे क़ुम हरम है और अन क़रीब इस शहर में हमारी औलाद से एक मोहतरमा दफ़्न होंगी जिनका नाम होगा ‘‘ फ़ात्मा बिन्ते इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) ’’

(सफ़ीनतुल बेहार जिल्द 2 सफ़ा 226)

क़ुम में हज़रत मासूमा ए क़ुम की आमद

हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) की पेशीन गोई के मुताबिक़ बा रवायते अल्लामा मजलिसी (र. अ.) हज़रत फ़ात्मा बिन्ते इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) हमशीरा हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) उस ज़माने में यहां तशरीफ़ लाईं जब कि 200 हिजरी में मामून रशीद ने हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) को जबरन मरू बुलाया था। अल्लामा शेख़ अब्बास क़ुम्मी लिखते हैं कि जब मामून रशीद ने इमाम रज़ा (अ.स.) को बजब्रो इक़राह वली अहद बनाने के लिये दारूल ख़ुलफ़ा मरू में बुला लिया था तो इसके एक साल बाद हज़रत फ़ात्मा (अ.स.) भाई की मोहब्बत से बेचैन हो कर ब इरादा ए मरू मदीना से निकल पड़ी थीं। चुनान्चे मराहले सफ़र तय करते हुए बा मुक़ाम ‘‘ सावा ’’ पहुँची तो अलील हो गईं। जब आपकी रसीदगी सावा और अलालत की ख़बर मूसा बिन खि़ज़रिज़ बिन साद क़ुम्मी को पहुँची तो वह फ़ौरन हाज़िरे खि़दमत हो कर अर्ज़ परदाज़ हुए कि आप क़ुम तशरीफ़ ले चलें। उन्होंने पूछा की क़ुम यहां से कितनी दूर है। मूसा ने कहा कि 10 फ़रसख़ है। वह रवानगी के लिये आमादा हो गईं चुनान्चे मूसा बिन खि़ज़रिज़ उनके नाक़े की मेहार पकड़े हुए कु़म तक लाए। यहां पहुँच कर उन्हीं के मकान में जनाबे फ़ात्मा ने क़याम फ़रमाया। भाई की जुदाई का सदमा शिद्दत पकड़ता गया और अलालत बढ़ती गई यहां तक कि सिर्फ़ 17 यौम के बाद आपने इन्तेक़ाल फ़रमाया। ‘‘ इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजेऊन ’’ आपके इन्तेक़ाल के बाद से गु़स्लो कफ़न से फ़राग़त हासिल की गई और ब मुक़ाम ‘‘ बाबलान ’’ (जिस जगह रोज़ा बना हुआ है) दफ़्न करने के लिये ले जाया गया और इस सरदाब में जो पहले से आपके लिये (क़ुदरती तौर पर) बना हुआ था उतारने के लिये बाहमी गुफ़्तुगू शुरू हुई कि कौन उतारे फ़ैसला हुआ कि ‘‘ क़ादिर ’’ नामी इनका ख़ादिम जो मर्दे सालेह है वह क़ब्र में उतारे इतने में देखा गया कि रेगज़ार से दो नक़ाब पोश नमूदार हुए और उन्होंने नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई और वही क़ब्र में उतरे फिर तदफ़ीन के फ़ौरन बाद वापस चले गए। यह न मालूम हो सका कि दोनों कौन थे। फिर मूसा बिन खि़ज़रिज़ ने क़ब्र पर बोरिया का छप्पर बना दिया इसके बाद हज़रत ज़ैनब बिन्ते हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) ने क़ुब्बा बनवाया । (मुन्थी अलमाल जिल्द 2 सफ़ा 242) फिर मुख़्तलिफ़ अदवार शाही में इसकी तामीर व तज़ीन होती रही तफ़सील के लिये मुलाहेजा़ हो ।

(माहनामा अल हादी क़ुम ईरान ज़ीक़ाद 1393 हिजरी सफ़ा 105)

हज़रत मासूमा ए क़ुम की ज़ियारत की अहमियत

हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.स.) फ़रमाते हैं कि जो मासूमा ए कु़म की ज़्यारत करेगा उसके लिए जन्नत वाजिब होगी। हदीस अयून के अल्फ़ाज़ यह हैं ‘‘ मन जारहा वजबत लहा अलजन्नता ’’ (सफ़ीनतुल बिहार जिल्द 2 सफ़ा 426) अल्लामा शेख़ अब्बास कु़म्मी , अल्लामा क़ाज़ी नूरूल उल्लाह शुस्तरी (शहीदे सालिस) से रवाएत करते हैं कि हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) इरशाद फ़रमाते हैं कि ‘‘ तद खि़ल ब शफ़ाअताहा शैती अ ल जन्नता ’’ मासूमा ए क़ुम की शिफ़ाअत से कसीर शिया जन्नत में जाएगें। (सफ़ीनतुल बेहार जिल्द 2 सफ़ा 386) हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) फ़रमाते हैं कि ‘‘ मन ज़ारहा फ़लहू अल जन्नता ’’ जो मेरी हमशीरा की क़ब्र की ज़्यारत करेगा उसके लिये जन्नत है। एक रवायत में हैं कि अली बिन इब्राहीम ने अपने बाप से उन्होंने साद से उन्होंने अली बिन मूसिए रज़ा (अ.स.) से रवायत की है वह फ़रमाते हैं कि ऐ साद तुम्हारे नज़दीक़ हमारी एक क़ब्र है। रावी ने अर्ज़ की मासूमा ए क़ुम की , फ़रमाया हां ऐ साद ‘‘ मन ज़ारहा अरफ़ाबहक़हा फ़लहू अल जन्नता ’’ जो इनकी ज़्यारत इनके हक़ को पहचान के करेगा इसके लिये जन्नत है यानी वह जन्नत में जायेगा।

(सफ़ीनतुल बेहार जिल्द 2 सफ़ा 376 तबा ईरान)

हज़रत फ़ातिमा मासूमा स.अ.का जन्म सन 173 हिजरी इस्लामी कैलेंडर के ग्यारहवे महीने ज़ीक़ादा की पहली तारीख में मदीना शहर में हुई, आपका पालन पोषण ऐसे परिवार में हुआ जिसका प्रत्येक व्यक्ति अख़लाक़ और चरित्र के हिसाब से अद्वितीय था, आप का घराना इबादत और बंदगी, तक़वा और पाकीज़गी, सच्चाई और विनम्रता, लोगों की मदद करने और सख़्त हालात में अपने को मज़बूत बनाए रखने और भी बहुत सारी नैतिक अच्छाइयों में मशहूर था।

हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स.अ.)कि विलादत पहली ज़ीक़ादा सन 173 हिजरी में मदीना शहर में हुई, आपकी परवरिश ऐसे घराने में हुई जिसका हर शख़्स अख़लाक़ और किरदार के एतबार से बेमिसाल था, आप का घराना इबादत और बंदगी, तक़वा और पाकीज़गी, सच्चाई और विनम्रता, लोगों की मदद करने और सख़्त हालात में अपने को मज़बूत बनाए रखने और भी बहुत सारी नैतिक अच्छाइयों में मशहूर था ।

सभी अल्लाह के चुने हुए ख़ास बंदे थे जिनका काम लोगों की हिदायत था, इमामत के नायाब मोती और इंसानियत के क़ाफ़िले को निजात दिलाने वाले आप ही के घराने से थे।

इल्मी माहौल

हज़रत मासूमा (स.अ) ने ऐसे परिवार में परवरिश पाई जो इल्म, तक़वा और नैतिक अच्छाइयों में अपनी मिसाल ख़ुद थे, आप के वालिद हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद आप के भाई इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम ने सभी भाइयों और बहनों की परवरिश की ज़िम्मेदारी संभाली, आप ने तरबियत में अपने वालिद की बिल्कुल भी कमी महसूस नहीं होने दी, यही वजह है कि बहुत कम समय में इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के बच्चों के किरदार के चर्चे हर जगह होने लगे।

इब्ने सब्बाग़ मलिकी का कहना है कि इमाम मूसा काज़िम (अ) की औलाद अपनी एक ख़ास फ़ज़ीलत के लिए मशहूर थी, इमाम मूसा काज़िम (अ) की औलाद में इमाम अली रज़ा (अ) के बाद सबसे ज़ियादा इल्म और अख़लाक़ में हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स.अ) ही का नाम आता है और यह हक़ीक़त को आप के नाम, अलक़ाब और इमामों द्वारा बताए गए सिफ़ात से ज़ाहिर है।

फ़ज़ाएल का नमूना:

हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स.अ) सभी अख़लाक़ी फ़ज़ाएल का नसूना हैं, हदीसों में आपकी महानता और अज़मत को इमामों ने बयान फ़रमाया है, इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम इस बारे में फ़रमाते हैं कि जान लो कि अल्लाह का एक हरम है जो मक्का में है, पैग़म्बर (स) का भी एक हरम है जो मदीना में है, इमाम अली (अ) का भी एक हरम है जो कूफ़ा में है, जान लो इसी तरह मेरा और मेरे बाद आने वाली मेरी औलाद का हरम क़ुम है। ध्यान रहे कि जन्नत के 8 दरवाज़े हैं जिनमें से 3 क़ुम की ओर खुलते हैं, हमारी औलाद में से (इमाम मूसा काज़िम अ.स. की बेटी) फ़ातिमा नाम की एक ख़ातून वहां दफ़्न होगी जिसकी शफ़ाअत से सभी जन्नत में दाख़िल हो सकेंगे।

आपका इल्मी मर्तबा:

हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स.अ) इस्लामी दुनिया की बहुत अज़ीम और महान हस्ती हैं और आप का इल्मी मर्तबा भी बहुत बुलंद है। रिवायत में है कि एक दिन कुछ शिया इमाम मूसा काज़िम (अ) से मुलाक़ात और कुछ सवालों के जवाब के लिए मदीना आए, इमाम काज़िम (अ) किसी सफ़र पर गए थे, उन लोगों ने अपने सवालों को हज़रत मासूमा (स.अ) के हवाले कर दिया उस समय आप बहुत कमसिन थीं (तकरीबन सात साल) अगले दिन वह लोग फिर इमाम के घर हाज़िर हुए लेकिन इमाम अभी तक सफ़र से वापस नहीं आए थे, उन्होंने आप से अपने सवालों को यह कहते हुए वापस मांगा कि अगली बार जब हम लोग आएंगे तब इमाम से पूछ लेंगे, लेकिन जब उन्होंने अपने सवालों की ओर देखा तो सभी सवालों के जवाब लिखे हुए पाए, वह सभी ख़ुशी ख़ुशी मदीने से वापस निकल ही रहे थे कि अचानक रास्ते में इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम से मुलाक़ात हो गई, उन्होंने इमाम से पूरा माजरा बताया और सवालों के जवाब दिखाए, इमाम ने 3 बार फ़रमाया: उस पर उसके बाप क़ुर्बान जाएं।

शहर ए क़ुम में दाख़िल होना:

क़ुम शहर को चुनने की वजह हज़रत मासूमा (स.अ) अपने भाई इमाम अली रज़ा (अ) से ख़ुरासान (उस दौर के हाकिम मामून रशीद ने इमाम को ज़बरदस्ती मदीना से बुलाकर ख़ुरासान में रखा था) में मुलाक़ात के लिए जा रहीं थीं और अपने भाई की विलायत के हक़ से लोगों को आशना करा रही थी। रास्ते में सावाह शहर पहुंची, आप पर मामून के जासूसों ने डाकुओं के भेस में हमला किया और ज़हर आलूदा तीर से आप ज़ख़्मी होकर बीमार हों गईं, आप ने देखा आपकी सेहत ख़ुरासान नहीं पहुंचने देगी, इसलिए आप क़ुम आ गईं, एक मशहूर विद्वान ने आप के क़ुम आने की वजह लिखते हुए कहा कि, बेशक आप वह अज़ीम ख़ातून थीं जिनकी आने वाले समय पर निगाह थी, वह समझ रहीं थीं कि आने वाले समय पर क़ुम को एक विशेष जगह हासिल होगी, लोगों के ध्यान को अपनी ओर आकर्षित करेगी यही कुछ चीज़ें वजह बनीं कि आप क़ुम आईं।

आपकी ज़ियारत का सवाब:

आपकी ज़ियारत के सवाब के बारे में बहुत सारी हदीसें मौजूद हैं, जिस समय क़ुम के बहुत बड़े मोहद्दिस साद इब्ने साद इमाम अली रज़ा (अ) से मुलाक़ात के लिए गए, इमाम ने उनसे फ़रमाया: ऐ साद! हमारे घराने में से एक हस्ती की क़ब्र तुम्हारे यहां है, साद ने कहा, आप पर क़ुर्बान जाऊं! क्या आपकी मुराद इमाम मूसा काज़िम (अ) की बेटी हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स.अ) हैं? इमाम ने फ़रमाया: हां! और जो भी उनकी मारेफ़त रखते हुए उनकी ज़ियारत के लिए जाएगा जन्नत उसकी हो जाएगी।

शियों के छठे इमाम हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं: जो भी उनकी ज़ियारत करेगा उस पर जन्नत वाजिब होगी।

ध्यान रहे यहां जन्नत के वाजिब होने का मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि इंसान इस दुनिया में कुछ भी करता रहे केवल ज़ियारत कर ले जन्नत मिल जाएगी, इसीलिए एक हदीस में शर्त पाई जाती है कि उनकी मारेफ़त रखते हुए ज़ियारत करे और याद रहे गुनाहगार इंसान को कभी अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की हक़ीक़ी मारेफ़त हासिल नहीं हो सकती। जन्नत के वाजिब होने का मतलब यह है कि हज़रत मासूमा (स.अ) के पास भी शफ़ाअत का हक़ है।

यति नरसिंगानंद द्वारा हज़रत पैगंबर के अपमान के जवाब में जम्मू कश्मीर में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए यह प्रदर्शन श्रीनगर, बडगाम, बारामूला, बांदीपुरा, कुपवाड़ा और पूरे दक्षिण कश्मीर सहित विभिन्न स्थानों पर लोग नारेबाजी करते हुए सड़क पर उतर आए

एक रिपोर्ट के अनुसार, यति नरसिंगानंद द्वारा इस्लाम के पैगंबर के अपमान के जवाब में जम्मू-कश्मीर में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए।

इस संबंध में कश्मीर मीडिया सर्विस सेंटर ने बताया कि श्रीनगर, बडगाम, बारामूला, बांदीपुरा, कुपवाड़ा और पूरे दक्षिण कश्मीर सहित विभिन्न स्थानों पर शुक्रवार की नमाज़ अदा करने के बाद लोग सड़कों पर उतर आए।

प्रदर्शनकारियों ने यति नरसिंगानंद की तत्काल गिरफ्तारी और उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की है राजौरी और पुंछ जिलों के साथ साथ जम्मू क्षेत्र के अन्य मुस्लिम-बहुल इलाकों में भी इसी तरह के विरोध प्रदर्शन की सूचना मिली है।

रैली में वक्ताओं ने नरसिंगानंद के कई इस्लाम विरोधी कार्यों और बयानों की निंदा किया तत्काल उसकी गिरफ्तारी की मांग की और लोगों ने कहा कि ऐसे ही लोग देश में अपने भाषण के माध्यम से नफरत फ्लेट हैं सरकार उनके खिलाफ सख्त कदम उठाए।

 

 

 

 

 

 

पाकिस्तान के पाराचिनार घायल हुए लोगों को चिकित्सा सहायता के लिए डीएचक्यू पाराचिनार अस्पताल पहुंचा दिया गया है और पुलिस ने इलाके को घेरकर आरोपियों की तलाश शुरू कर दी है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, खैबर पख्तूनख्वा के जिला करम में क़बीलों के बीच झड़प और फायरिंग की दो घटनाओं में 15 लोगों की मौत हो गई और 8 लोग घायल हो गए।

सूचनाओं के मुताबिक, फायरिंग की पहली घटना कंज अलीजई के पहाड़ी इलाके में हुई जिसमें 11 लोग मारे गए और एक महिला समेत 5 अन्य घायल हो गए दूसरी फायरिंग की घटना बाईपास के पास हुई जहां हथियारबंद लोगों ने वाहनों पर अंधाधुंध गोलीबारी की हैं।

पुलिस के अनुसार, फायरिंग की घटना पहाड़ों और पास की सड़क पर हुई घायलों में से कुछ की हालत गंभीर है, जिससे मरने वालों की संख्या बढ़ने की आशंका है। घटना के बाद क्षेत्र की पुलिस और सुरक्षा बलों की बड़ी संख्या मौके पर पहुंची और सबूत व बयान इकट्ठा करके जांच शुरू कर दी है।

फायरिंग की घटनाओं में घायल हुए लोगों को चिकित्सा सहायता के लिए डीएचक्यू पाराचिनार अस्पताल पहुंचा दिया गया है और पुलिस ने इलाके को घेरकर आरोपियों की तलाश शुरू कर दी है।

 

 

 

 

 

मान-सम्मान और रुतबे के मामले में स्त्री का स्थान नक्षत्रों से भी ऊंचा है। किसी भी घर को उसकी उपस्थिति से ही घर कहा जाता है। एक महिला को बहन, बेटी, पत्नी, बहू और मां की भूमिका अच्छे से निभानी होती है। अगर वह इन रिश्तों से गुजर जाए और अपना हक सही से अदा कर दे तो यकीनन घर स्वर्ग बन सकता है।

ब्रह्माण्ड की छवि नारी के अस्तित्व से है जीवन की लौ उसके निर्माता से है! पूरब के शायर अल्लामा इकबाल ने क्या खूब कहा है कि औरत के वजूद से ही कायनात में खूबसूरती, आकर्षण और सौन्दर्य है। नारी ऊंचाइयों और महानता का स्रोत है। मान-सम्मान और पद-प्रतिष्ठा की दृष्टि से स्त्री का स्थान तारा समूह से भी ऊंचा है। किसी भी घर को उसकी उपस्थिति से ही घर कहा जाता है। एक महिला घर को स्वर्ग बना सकती है, इसके लिए उसे कई त्याग करने पड़ते हैं और उसमें केंद्रीय भूमिका निभानी पड़ती है। एक महिला को बहन, बेटी, पत्नी, बहू और मां की भूमिका अच्छे से निभानी होती है। अगर वह इन रिश्तों से गुजर जाए और अपना हक अच्छे से अदा कर दे तो यकीनन घर स्वर्ग बन सकता है।

 जब किसी लड़की की शादी हो जाती है तो उसे किसी की पत्नी बनने का सौभाग्य मिलता है। उसे पति के सभी अधिकार और कर्तव्य पूरे करने पड़ते हैं। उदाहरण के लिए, अपने पति के खाने-पीने का ख्याल रखना, उसके कपड़ों का ख्याल रखना, उसकी बीमारी का इलाज करना, उसके साथ प्यार और सम्मान से व्यवहार करना, घर लौटने पर उसका स्वागत करना, उसका पति जो भी कमाता है उसे दिल से स्वीकार करना, ठीक करना मक्का जाने का समय और दिन, पति की मनोदशा और मनोदशा के अनुसार जाना, दूसरे के घर से अपनी तुलना न करना, मक्का में अपनी समस्याओं को न बताना, गलती होने पर अपनी गलती स्वीकार करना, धैर्य रखना और अपने रिश्ते को सुरक्षित रखना धैर्य आदि से विवाद न करना। एक अच्छे आचरण वाली और वफादार पत्नी अपने पति का दिल जीत लेती है और उसका प्यार और सम्मान अर्जित करती है। इन सभी कर्तव्यों और अधिकारों को पूरा करने से वह अपने पति के बहुत करीब हो जाती है और पति-पत्नी में एक-दूसरे के प्रति स्नेह, प्यार, वफादारी, त्याग, बलिदान और सम्मान की भावना विकसित होती है।

स्त्री का उपसर्ग उसके सास, ससुर, ननद, देवर, देवरानी, ​​जेठ, जेठानी से बनता है। अगर कोई महिला सास-ससुर को अपने माता-पिता मानती है। वह उनके खाने-पीने का ख्याल रखती हैं। वह उनके कपड़े, उनकी बीमारी, इलाज और सेवा का ख्याल रखती हैं। अगर वह उनका सम्मान करती है और अपने अच्छे व्यवहार और अच्छे संस्कारों से उनका दिल जीत लेती है तो सास भी बहू को अपनी बेटी मानकर उसका सम्मान करती है। अब उसका उपसर्ग नंद, देवर, देवरानी आदि पर पड़ता है, इसलिए वह अपने अच्छे व्यवहार और खुशमिजाजी से उन्हें भी अपने करीब लाती है। वह उनके साथ मिलकर घर का काम करती है, अपने अहंकार को ऊपर रखकर घर के सभी सदस्यों का ख्याल रखती है, इसलिए घर के सदस्य भी एक-दूसरे का ख्याल रखते हैं और एक-दूसरे के साथ प्यार से पेश आते हैं।

मकान और मकान में फर्क है. एक घर मिट्टी, रेत और मिट्टी सीमेंट से बनता है, जबकि एक घर इच्छा, दया, मिठास, त्याग, बलिदान, धैर्य और धैर्य से बनता है। घर के सदस्यों की आदतें एक जैसी नहीं होती. उनका रहन-सहन, सोचने और बोलने का तरीका अलग-अलग होता है। उन सभी को साथ लेकर चलने, हालात से समझौता करने, माफ करने से घर का माहौल खुशनुमा रहता है और सभी एक-दूसरे के साथ खुशी-खुशी रहते हैं। इन सभी जिम्मेदारियों को निभाते हुए उसे मां का ऊंचा दर्जा मिलता है। यहां उनकी जिम्मेदारी खास और अहम है. बच्चों के खाने का ख्याल रखना, उनकी स्कूल यूनिफॉर्म तैयार करना, उनकी किताबों-कॉपियों का ख्याल रखना, टिफिन का प्रबंधन करना, उनकी सेहत का ख्याल रखना, बीमारी में उनका इलाज करना, उनकी पढ़ाई का ख्याल रखना, उन्हें अच्छा माहौल देना, सुसज्जित करना उन्हें दीनी और दुनियावी तालीम देकर तालीम दिलाना, अच्छी तालीम देना। यदि बच्चों को अपनी माँ से उचित देखभाल, शिक्षा और प्रशिक्षण मिलता है, तो वे भी अपने माता-पिता और बड़ों की देखभाल और सम्मान करते हैं।

हॉल, शयनकक्ष, रसोई की सफाई करना और चीजों को साफ सुथरा रखना, कम कीमत पर चीजों की खरीदारी करना, घरेलू बजट बनाना, स्वादिष्ट व्यंजन बनाना, मेहमानों के आने पर उनका अच्छा आतिथ्य करना, उनके साथ अच्छे व्यवहार करना, उनका सम्मान करना , खाना खाते समय टेबल को अच्छे से सजाना, उनके आने पर खुशी जाहिर करना ताकि मेहमान घर से खुश होकर जा सकें।

एक सभ्य महिला अपने घर को प्यार और ईमानदारी से सजाती है, और अपने घर को अच्छे संस्कारों से सजाती है, स्त्रीत्व की रक्षक, आत्म-सुधार, विनम्रता, आतिथ्य, बातचीत शैली, हंसमुखता, दूसरों पर प्रभाव और स्वयं का व्यक्तित्व भी पूर्ण बनाती है प्रभाव से भरपूर, गरिमा से भरपूर. ऐसी महिला अपने सभी गुणों, अधिकारों और कर्तव्यों को पूरा करके निश्चित ही अपने घर को स्वर्ग बना सकती है।

आयतुल्लाहिल उज़मा नूरी हमदानी ने हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के अध्यापकों से मुलाकात में कहा है कि इस्लामी देशों को अवैध इस्राइली सरकार के साथ अपने संबंध तुरंत समाप्त कर लेने चाहिए शहीदों के पवित्र खून की बरकत से इस्राइली सरकार का अंत होगा।

एक रिपोर्ट के अनुसार, आयतुल्लाह नूरी हमदानी ने रविवार 13 अक्टूबर 2024 को क़ुम के कुछ शिक्षकों से मुलाकात में उम्मत-ए-मुस्लिम के मौजूदा हालात को नाज़ुक बताया और सभी मुसलमानों तथा दुनिया के स्वतंत्र विचार रखने वाले लोगों से इस्राइली सरकार के खिलाफ एकजुट होने की अपील की है।

उन्होंने सैयद हसन नसरल्लाह की शहादत को एक महान त्रासदी करार दिया और कहा कि हिज़्बुल्लाह और मजबूत होगा और शहीदों का खून इस्राइली सरकार के पतन का कारण बनेगा।

आयतुल्लाह नूरी हमदानी ने इस्राइली सरकार द्वारा इस्लामी नेताओं को निशाना बनाने की कोशिशों को उनके पतन का संकेत बताया और इस्लाम में बलिदान और शहादत के महत्व पर ज़ोर दिया।

उन्होंने कहा कि दुश्मन यह नहीं समझते कि इस्लाम में अल्लाह के रास्ते में मौत को एक बड़ी खुशकिस्मती माना जाता है, जैसा कि तेहरान की ऐतिहासिक जुमे की नमाज़ में देखा गया जब रहबर-ए-मुअज़्ज़म ने धमकियों के बावजूद जुमआ की नमाज़ अदा की और एक महान जोशीला ख़ुत्बा दिया।

उन्होंने आयतुल्लाह सीस्तानी को दी गई इस्राइली धमकियों की कड़ी निंदा की और कहा कि दुश्मन आयतुल्लाह सीस्तानी के मज़बूत और प्रभावी रुख से नाराज़ हैं, लेकिन उनकी महानता और बढ़ गई है इस्राइली सरकार द्वारा इस्लामी दुनिया की इस महान शख्सियत के अपमान की हम कड़ी निंदा करते हैं और अल्लाह से दुआ करते हैं कि वह उन्हें और अधिक इज़्ज़त और महानता अता करे।