رضوی

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इमाम हज़रत इमाम हसन असकरी अ.स. 232 हिजरी में मदीना शहर में पैदा हुए चूंकि आप भी अपने वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. की तरह सामर्रा के असकर नामी इलाक़े में मुक़ीम थे इसलिए आप असकरी के नाम से मशहूर हुए, आपकी कुन्नियत अबू मोहम्मद और मशहूर लक़ब नक़ी और ज़की है, आपने 6 साल इमामत की ज़िम्मेदारी संभाली और 28 साल की उम्र में मोतमद अब्बासी के हाथों शहीद हो गए।

हज़रत इमाम हसन असकरी अ.स. 232 हिजरी में मदीना शहर में पैदा हुए चूंकि आप भी अपने वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. की तरह सामर्रा के असकर नामी इलाक़े में मुक़ीम थे इसलिए आप असकरी के नाम से मशहूर हुए, आपकी कुन्नियत अबू मोहम्मद और मशहूर लक़ब नक़ी और ज़की है, आपने 6 साल इमामत की ज़िम्मेदारी संभाली और 28 साल की उम्र में मोतमद अब्बासी के हाथों शहीद हो गए।

हमेशा से यह सुन्नत रही है कि ऐसे बुज़ुर्गों की ज़िंदगी और उनके किरदार ने लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया है जिनमें इंसानी पहलू मौजूद रहा हो, उनमें अल्लाह के भेजे हुए नबी और अलवी मकतब के रहनुमा वह ऐसे लोग हैं जो अल्लाह की ओर से सारे इंसानों के लिए बेहतरीन आइडियल बनाए गए हैं।

शियों के गयारहवें इमाम हज़रत इमाम हसन असकरी अ.स. 232 हिजरी में मदीना शहर में पैदा हुए, चूंकि आप भी अपने वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. की तरह सामर्रा के असकर नामी इलाक़े में मुक़ीम थे इसलिए आप असकरी के नाम से मशहूर हुए, आपकी कुन्नियत अबू मोहम्मद और मशहूर लक़ब नक़ी और ज़की है, आपने 6 साल इमामत की ज़िम्मेदारी संभाली और 28 साल की उम्र में मोतमद अब्बासी के हाथों शहीद हो गए।

इमाम हसन असकरी अ.स. की रणनीति

इमाम हसन असकरी अ.स. ने हर तरह के दबाव और अब्बासी हुकूमत की ओर से कड़ी निगरानी के बावजूद दीन की हिफ़ाज़त और इस्लाम विरोधी विचारधारा का मुक़ाबला करने के लिए अनेक राजनीतिक, सामाजिक और इल्मी कोशिशें अंजाम देते रहे और अब्बासी हुकूमत की इस्लाम की नाबूदी की साज़िश को नाकाम कर दिया, आपकी इमामत के दौरान कुछ अहम रणनीतियां इस तरह थीं.

इस्लाम की हिफ़ाज़त के लिए इल्मी कोशिशें, विरोधियों के कटाक्ष का जवाब, हक़ीक़ी इस्लाम और सही विचारधारा का प्रचार, ख़ुफ़िया राजनीतिक क़दम, शियों की विशेष कर क़रीबी साथियों की जो हर तरह का ख़तरा मोल ले कर हर समय इमाम अ.स. के इर्द गिर्द रहते थे उनकी माली मदद करना, कठिनाईयों से निपटने के लिए बुज़ुर्ग शियों का हौसला बढ़ाना और उनके राजनीतिक दृष्टिकोण को मज़बूत करना, शियों के अक़ीदों और इमामत का इंकार करने वालों के लिए इल्मे ग़ैब का इस्तेमाल करना और अपने बेटे इमाम महदी अ.स. की ग़ैबत के लिए शियों की फ़िक्र को तैयार करना।

इल्मी कोशिशें

हालांकि इमाम हसन असकरी अ.स. के दौर में हालात की ख़राबी और अब्बासी हुकूमत की ओर से कड़ी पाबंदियों की वजह से आप समाज में अपने इलाही इल्म को नहीं फैला सके लेकिन इन सब पाबंदियों के बावजूद ऐसे शागिर्दों की तरबियत की जिनमें से हर एक अपने तौर पर इस्लामी मआरिफ़ और इमाम अ.स. के इल्म को लोगों तक पहुंचाने में अहम रोल निभाता रहा, शैख़ तूसी र.ह. ने आपके शागिर्दों की तादाद सौ से ज़्यादा नक़्ल की है, जिनमें अहमद इब्ने इसहाक़ क़ुम्मी, उस्मान इब्ने सईद और अली इब्ने जाफ़र जैसे बुज़ुर्ग शिया उलमा शामिल हैं, कभी कभी मुसलमानों और शियों के लिए ऐसी मुश्किलें और कठिनाईयां पेश आ जाती थीं कि उन्हें केवल इमाम हसन असकरी अ.स. ही हल कर सकते थे, ऐसे मौक़ों पर इमाम अ.स. अपने इमामत के इल्म और हैरान कर देने वाली तदबीरों से कठिन से कठिन मुश्किल को हल कर दिया करते थे।

शियों का आपसी संपर्क

इमाम हसन असकरी अ.स. के दौर में अनेक इलाक़ों और कई शहरों में शिया फैल चुके थे और कई इलाक़ों में अच्छी ख़ासी तादाद में थे जैसे कूफ़ा, बग़दाद, नेशापुर, क़ुम, मदाएन, ख़ुरासान, यमन और सामर्रा शियों के बुनियादी मरकज़ में से थे, शिया इलाक़ों का इस तरह तेज़ी से फैलने और कई इलाक़ों में शियों का अच्छी ख़ासी तादाद में होने को देखते हुए ज़रूरी था कि उनके बीच आपस में एक दूसरे से संपर्क बनाए रहें ताकि उनकी दीनी और सियासी रहनुमाई हो सके और उन सभी को एक साथ मंज़िल तक पहुंचाया जा सके, यह ज़रूरत इमाम मोहम्मद तक़ी अ.स. के दौर ही से महसूस हो रही थी और वकालत से संबंधित सिस्टम को ईजाद कर के और अलग अलग इलाकों में वकीलों को भेज कर इस काम को शुरू किया जा चुका था, इमाम हसन असकरी अ.स. ने भी इसी को जारी रखा, जैसाकि तारीख़ी हवाले से यह बात साबित है कि आपने शियों के अहम और बुज़ुर्ग लोगों में से अपने वकीलों को चुन कर उनको अलग अलग इलाक़ों में भेज दिया।

ख़त और दूत (क़ासिद) का सिलसिला

वकालत का सिस्टम क़ायम करने के अलावा इमाम हसन असकरी अ.स. अपने सफ़ीर और क़ासिद को भेज कर भी अपने शियों और मानने वालों से संपंर्क करते थे और इस तरह उनकी मुश्किलों को दूर करते थे, अबुल अदयान (जोकि आपके क़रीबी सहाबी थे) के काम उन्हीं कोशिशों का नतीजा हैं, वह इमाम के ख़तों को आपके शियों तक पहुंचाते और उनके ख़तों, सवालों, मुश्किलों, ख़ुम्स और दूसरे माल शियों से लेकर सामर्रा में इमाम अ.स. तक पहुंचाते थे।

क़ासिद और दूत के अलावा इमाम अ.स. ख़तों द्वारा भी अपने शियों से संपर्क में रहते थे और उनकी अपने ख़तों से हिदायत करते थे, इसकी मिसाल इमाम अ.स. का वह ख़त है जो आपने इब्ने बाबवैह र.ह. (शैख़ सदूक़ र.ह. के वालिद) को लिखा था, इसके अलावा इमाम अ.स. ने क़ुम और आवह के शियों को भी ख़त लिखे थे जिनका मज़मून शिया किताबों में मौजूद है।

ख़ुफ़िया राजनीतिक क़दम

इमाम हसन असकरी अ.स. सारी पाबंदियों और हुकूमत की ओर से कड़ी निगरानी के बावजूद कुछ ख़ुफ़िया राजनीतिक क़दम उठा कर शियों की रहनुमाई करते रहते थे, और आपके यह राजनीतिक क़दम दरबारी जासूसों से इसलिए छिपे रहते थे क्योंकि आप बहुत ही सूझबूझ से वह क़दम उठाते थे, जैसे आपके बहुत क़रीबी सहाबी उस्मान इब्ने सईद का तेल की दुकान की आड़ में इमाम अ.स. का पैग़ाम शियों तक पहुंचाना, इमाम हसन असकरी अ.स. के शिया जो भी चीज़ या माल इमाम अ.स. तक पहुंचाना चाहते थे वह उस्मान को दे दिया करते थे और वह यह चीज़ें घी के डिब्बों और तेल की मश्कों में छिपा कर इमाम अ.स. तक पहुंचा दिया करते थे, इमाम अ.स. की कड़ी निगरानी के बावजूद दुश्मन की नाक के नीचे ऐसी बहादुरी वाले क़दम उठाने की वजह से आपकी 6 साल की इमामत अब्बासियों के ख़तरनाक क़ैदख़ानों में गुज़री।

 

शियों की माली मदद

आपका एक और अहम क़दम शियों की विशेष कर क़रीबी असहाब की माली मदद करना था, इमाम अ.स. के कुछ असहाब माली मुश्किल लेकर आते थे और आप उनकी मुश्किल को दूर करते थे, आपके इस अमल की वजह से वह लोग माली परेशानियों से घबरा कर हुकूमती और दरबारी इदारों की ओर आकर्षित होने से बच जाते थे।

इस बारे में अबू हाशिम जाफ़री कहते हैं कि मैं आर्थिक तंगी से गुज़र रहा था, मैंने सोंचा कि एक ख़त द्वारा अपने हाल को इमाम हसन असकरी अ.स. तक पहुंचाऊं, लेकिन मुझे शर्म आई और मैंने अपना इरादा बदल दिया, जब मैं घर पहुंचा तो देखा कि इमाम अ.स. ने मेरे लिए 100 दीनार भेजे हुए हैं और एक ख़त भी लिखा है कि जब कभी तुम्हें ज़रूरत हो तो शर्माना नहीं, हमसे मांग लेना इंशा अल्लाह तुम्हारी मुश्किल दूर हो जाएगी।

बुज़ुर्ग शियों और उनके राजनीतिक मतों को मज़बूत करना

इमाम हसन असकरी अ.स. की एक बहुत अहम राजनीतिक गतिविधि यह थी कि आप शियों के अज़ीम मक़सद को हासिल करने की राह में आने वाली तकलीफ़ों और अब्बासी हाकिमों की साज़िशों का मुक़ाबला करने के लिए शिया बुज़ुर्गों की सियासी हवाले से तरबियत करते और उनके राजनीतिक मतों को मज़बूत करते थे,

चूंकि शिया बुज़ुर्ग शख़्सियतों पर हुकूमत का सख़्त दबाव होता था इसलिए इमाम अ.स. हर एक को उसके विचारों और उसकी फ़िक्र के हिसाब से उसका हौसला बढ़ाते और उनकी रहनुमाई करते थे ताकि कठिन समय में उनका सब्र और हौसला बना रहे और वह अपनी राजनीतिक ज़िम्मेदारियों को सही तरीक़े से निभा सकें,

इस हवाले से इमाम अ.स. ने जो ख़त अली इब्ने हुसैन इब्ने बाबवैह क़ुम्मी र.ह. को लिखा उसमें फ़रमाते हैं कि हमारे शिया कठिन दौर से गुज़रेंगे यहां तक कि मेरा बेटा ज़ुहूर करेगा, यही मेरा वह बेटा होगा जिसके बारे में अल्लाह के रसूल ने बशारत दी है कि वह ज़मीन को अदालत और इंसाफ़ से इस तरह भर देगा जिस तरह वह ज़ुल्म और अत्याचार से भरी होगी।

इल्मे ग़ैब का इस्तेमाल

हमारे सभी इमाम अल्लाह से संपंर्क में रहने की वजह से इल्मे ग़ैब रखते थे और ऐसे हालात में जब इस्लाम की सच्चाई या मुसलमानों के सामाजिक फ़ायदे ख़तरे में पड़ जाएं तो उस समय उस इल्म का इस्तेमाल करते थे, हालांकि इमाम हसन असकरी अ.स. की ज़िंदगी को अगर देखा जाए तो यह बात अच्छी तरह सामने आ जाएगी कि आपने दूसरे इमामों को देखते हुए इल्मे ग़ैब का ज़्यादा इज़हार किया है,

और उसकी सीधी वजह उस दौर के भयानक हालात और ख़तरनाक माहौल था, क्योंकि जबसे आपके वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. को सामर्रा ले जाया गया तबसे आप कड़ी निगरानी में थे, अब्बासी हुकूमत की सख़्तियों और निगरानी की वजह से हालात ऐसे हो गए थे कि आप अपने बाद आने वाले इमाम अ.स. को खुल कर नहीं पहचनवा पा रहे थे,

जिसकी वजह से कुछ शियों के दिलों में शक बैठने लगा था, इमाम अ.स. उन शक और मन की शंकाओं को दूर करने और उस दौर के ख़तरों से अपने असहाब को बचाने के लिए और गुमराहों की हिदायत करने के लिए आप इल्मे ग़ैब का इस्तेमाल करते हुए ग़ैब की ख़बरें दिया करते थे।

इस्लामी तालीमात की हिफ़ाज़त

हुकूमतों द्वारा इमामों का आम मुसलमानों से संपंर्क न बनाने देने के पीछे का राज़ यह है कि कुछ हाकिम चाहते थे कि इस्लामी ख़ेलाफ़त की आड़ में आम मुसलमानों को अपनी ओर खींच लिया जाए और फिर जिस तरह चाहें और जो चाहें अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ उनको रखा जाए, नतीजे में जवानों के अक़ीदों को कमज़ोर किया जाता था और उनको ऐसे बातिल अक़ीदों और नीच सोंच में उलझा देते थे ताकि आम मुसलमानों को गुमराह करने का प्लान कामयाब हो सकें।

इमाम हसन असकरी अ.स. का दौर एक कठिन दौर था जिसमें अनेक तरह की फ़िक्रें और विचारधाराएं इस्लामी समाज के लिए ख़तरा बन चुकी थीं, लेकिन आपने अपने वालिद और दादा की तरह एक पल के लिए भी इस साज़िश से ध्यान नहीं हटाया बल्कि पूरी सावधानी और गंभीरता के साथ इस्लाम की ग़लत तस्वीर बताने वालों, सूफ़ियत, ग़ुलू करने वालों, शिर्क और भी इसके अलावा बहुत सारी ख़ुराफ़ात और वाहियात जो मज़हब के नाम पर दीन का हिस्सा बताई जा रही थीं उन सबका मुक़ाबला किया और इनमें से किसी को भी अपने दौर में पनपने नहीं दिया।

इमाम हसन असकरी अ.स. और इस्लाम का ज़िंदा बाक़ी रखना

अब्बासी हुकूमत दौर और ख़ास कर इमाम हसन असकरी अ.स. का दौर उन सबसे बुरे दौर में से एक था जिसमें हाकिमों की अय्याशी, उनके ज़ुल्म और अत्याचार, दीनी मामलात से बे रुख़ी, और दूसरी ओर मुसलमानों के इलाक़ों में ग़रीबी के फैलने की वजह से दीनी वैल्यूज़ ख़त्म हो चुकी थीं,

इसलिए अगर इमाम हसन असकरी अ.स. द्वारा दिन रात की जाने वाली मेहनतें और कोशिशें न होतीं तो अब्बासियों की सियासत की वजह से इस्लाम का नाम भी लोगों के दिमाग़ से मिट जाता, हालांकि इमाम अ.स. ख़ुद अब्बासी हाकिमों की कड़ी निगरानी में थे लेकिन आपने हर इस्लामी शहर में अपने वकीलों को तैनात कर रखा था जिनके द्वारा मुसलमानों के हालात मालूम करते रहते थे, कुछ शहरों की मस्जिदें और इमारतें भी इमाम अ.स. के हुक्म से बनाई गईं,

जिसमें ईरान के क़ुम शहर में मौजूद इमाम हसन असकरी (अ.स.) मस्जिद शामिल है, इससे पता चलता है कि आप अपने वकीलों और इल्मे इमामत से मुसलमानों की हर तरह की मुश्किल और उनकी पिछड़ेपन को जानते और उसे दूर करते थे।

 

 

 

 

 

इतिहासकारों ने लिखा है कि इमाम हसन असकरी अ.स. की शहादत के बाद लोग 14 या 15 फ़िर्क़ों में बंट गए, कुछ इतिहासकारों के अनुसार 20 फ़िर्क़ों में बंट जाने तक का ज़िक्र मौजूद है।

अब्बासी बादशाह अपनी ज़ुल्म और अत्याचार वाले स्वभाव के चलते दिन प्रतिदिन अपनी लोकप्रियता को खो रहे थे, लेकिन हमारे मासूम इमाम अ.स. अपने पाक किरदार और नेक सीरत के चलते लोगों के दिलों में उतरते जा रहे थे और उनकी लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही थी,

अब्बासी बादशाह सामाजिक तौर पर कमज़ोर होते जा रहे थे और हमारे इमाम अ.स. सामाजिक तौर पर मज़बूत हो रहे थे, और ऐसा होते हुए अपनी आंखों से देखना अब्बासी बादशाहों को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था, वह हमेशा से इमामों पर ज़ुल्म करते आए थे यहां तक कि इमाम असकरी अ.स. का घर अब्बासी हुकूमत की कड़ी निगरानी में था,

इमाम अ.स. के चाहने वाले और आपके शिया इमाम अ.स. से खुलेआम ना ही मुलाक़ात कर सकते थे और ना ही बातचीत, बनी अब्बास ने अपनी पूरी कोशिश और ताक़त केवल इसी में झोंक रखी थी कि जैसे ही इमाम हसन असकरी अ.स. के यहां बेटे की विलादत हुई वह उसे तुरंत जान से मार डालेंगे,

ज़ाहिर सी बात है ऐसे घुटन के माहौल और ऐसे परिस्तिथि और बनी अब्बास की ऐसा साज़िश के चलते इमाम हसन असकरी अ.स. के लिए सावधानी बरतना और तक़य्या के रास्ते को चुनना ज़रूरी हो गया था ताकि अपनी, अपने बेटे, अल्लाह के दीन और साथ ही अपने शियों की जान बचा सकें, यही वजह है कि इमाम हसन असकरी अ.स. के दौर में दूसरे सारे इमामों से ज़्यादा सावधानी बरती जा रही थी और तक़य्या पर अमल हो रहा था और इमाम अ.स. भी बहुत संभल कर क़दम उठा रहे थे और लगभग सारे कामों को छिप कर अंजाम दे रहे थे सारी बातों और ख़बरों को छिपा कर रख रहे थे जिनमें से एक ख़बर इमाम महदी अ.स. की विलादत की ख़बर थी।

नए फ़िर्क़ों के सामने आने की वजह

इमाम ज़माना अ.स. की जान की हिफ़ाज़त के लिए उनकी विलादत की ख़बर को छिपाने के कराण कुछ शिया इमाम हसन असकरी अ.स. और इमाम ज़माना अ.स. की इमामत में शक करने लगे (क्योंकि शिया अक़ीदे के मुताबिक़ इमाम हसन असकरी अ.स. का बेटा होना ज़रूरी है ताकि वह उनके बाद इमाम बन सके और अगर इमाम हसन असकरी अ.स. को बेटा नहीं हुआ तो ख़ुद उनकी इमामत में भी शक होने लगा) लोगों को इस हद तक शक हुआ कि इतिहासकारों ने लिखा है कि इमाम हसन असकरी अ.स. की शहादत के बाद लोग 14 या 15 फ़िर्क़ों में बंट गए, कुछ इतिहासकारों के अनुसार 20 फ़िर्क़ों में बंट जाने तक का ज़िक्र मौजूद है।

एक तरफ़ इमाम ज़माना अ.स. की विलादत की ख़बर को उनकी जान की हिफ़ाज़त की वजह से छिपाना और दूसरी तरफ़ जाफ़र का इमामत का दावा यह दोनों बातें उस दौर के शियों के लिए काफ़ी परेशानी की वजह बनी, इन सारी परेशानियों के साथ साथ दूसरे फ़िक्री और अक़ीदती फ़िर्क़े वालों ने शिया फ़िर्क़े पर जम के आरोप लगाए

और जो कुछ उनसे हो सका उन लोगों ने कहा, मोतज़ेलह, अहले हदीस, ज़ैदिया और ख़ास कर बनी अब्बास ने शिया फ़िर्क़े पर आरोप लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, हक़ीक़त तो यह है कि इमाम हसन असकरी अ.स. की शहादत के बाद शियों में जो शक का दौर रहा है वह उससे पहले कभी नहीं देखा गया,

लेकिन जैसे ही शियों को भरोसेमंद स्रोत से इमाम ज़माना अ.स. की विलादत की ख़बर मिली वह संतुष्ट हो गए और इमाम ज़माना अ.स. की इमामत को स्वीकार भी किया और उनकी पैरवी को अपने ऊपर बाक़ी इमामों की तरह वाजिब समझा, और बाक़ी के सारे फ़िर्क़े जो इस दौर में सामने आए थे वह सब कुछ ही समय में नाबूद हो गए,

आज उन फ़िर्क़ों का कोई भी पैरवी करने वाला मौजूद नहीं है बस केवल किताबों में एक ऐतिहासिक दास्तान बन कर रह गए हैं, यहां तक कि शैख़ मुफ़ीद र.ह. के ज़माने तक भी यह लोग बाक़ी न रह सके, जैसाकि शैख़ मुफ़ीद र.ह. ने इन फ़िर्क़ों के बारे में लिखा है कि, इस साल (373 हिजरी) और हमारे दौर में इन फ़िर्क़ों में से कोई भी बाक़ी नहीं बचा, सब नाबूद हो चुके हैं।

इमाम हसन असकरी अ.स. की शहादत के बाद जो फ़िर्क़े सामने आए वह इस प्रकार हैं.....

इमाम अली नक़ी अ.स. के बेटे जाफ़र की इमामत पर अक़ीदा

जिन लोगों ने जाफ़र का इमाम माना वह चार गिरोह में बंटे हुए थे....

पहला- कुछ लोगों का कहना था कि जाफ़र, इमाम हसन असकरी अ.स. के भाई इमाम हैं लेकिन इस वजह से नहीं कि इमाम हसन असकरी अ.स. ने अपने भाई के लिए वसीयत की हो बल्कि चूंकि इमाम हसन असकरी अ.स. को बेटा नहीं है इसलिए हम मजबूर हैं कि उनके भाई जाफ़र को अपनी बारहवां इमाम मानें।

दूसरा- कुछ लोगों का अक़ीदा था कि जाफ़र ही इमाम हैं क्योंकि इमाम हसन असकरी अ.स. ने वसीयत की है और जाफ़र को अपनी जानशीन क़रार दिया है, यह फ़िर्क़ा भी पहले फ़िर्क़े की तरह जाफ़र को अपनी बारहवां इमाम मानता है।

तीसरा- कुछ का मानना यह था कि जाफ़र इमाम हैं, और उनको यह इमामत अपने वालिद से मीरास में मिली है न कि उनके भाई से, और इमाम हसन असकरी अ.स. की इमामत बातिल थी क्योंकि उन्हें कोई बेटा ही नहीं था जबकि उनको बेटा होना ज़रूरी था ताकि इमामत का सिलसिला आगे बढ़ सके, उनका कहना था कि चूंकि इमाम हसन असकरी अ.स. को बेटा नहीं है इसीलिए इमाम अली नक़ी अ.स. के बाद इमाम हसन असकरी अ.स. इमाम नहीं हो सकते साथ ही इमाम अली नक़ी अ.स. के दूसरे बेटे मोहम्मद भी इमाम नहीं हो सकते क्योंकि वह इमाम अली नक़ी अ.स. की ज़िंदगी में ही इंतेक़ाल कर गए थे, इसलिए हम मजबूर हैं कि इमाम अली नक़ी अ.स. के बाद जाफ़र को इमाम मानें।

चौथा- कुछ लोग इस बात पर अड़े थे कि जाफ़र को उनके भाई मोहम्मद से इमामत मिली है, इन लोगों का कहना था कि इमाम अली नक़ी अ.स. के बेटे अबू जाफ़र मोहम्मद इब्ने अली जो कि अपने वालिद की ज़िंदगी में ही इंतेक़ाल कर गए थे, वह अपने वालिद की वसीयत के मुताबिक़ इमाम थे, और चूंकि मोहम्मद अपनी वफ़ात के समय किसी की तलाश में थे ताकि अपनी जानशीनी और इमामत की ज़िम्मेदारी उसके हवाले कर सकें इसलिए आख़िर में नफ़ीस नाम के ग़ुलाम के हवाले अपनी किताबें और दूसरी चीज़ें कर दीं और उससे वसीयत की कि जब भी उनके वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. की शहादत का समय क़रीब आए तो इन सब चीज़ों को जाफ़र के हवाले कर देना, यह गिरोह इमाम हसन असकरी अ.स. की इमामत को नहीं मानता था, इन लोगों का कहना था इमाम असकरी अ.स. के वालिद ने उन्हें अपना जानशीन नहीं बनाया था इसलिए मोहम्मद इब्ने अली ग्यारहवें इमाम हैं और उसके बाद जाफ़र इमाम होंगे।

इमाम हसन असकरी अ.स. के एक और बेटे की इमामत पर अक़ीदा

यह फ़िर्क़ा भी 4 गिरोह में बंटा हुआ था.

पहला- कुछ लोगों का अक़ीदा था कि इमाम हसन असकरी अ.स. का एक बेटा था जिसका अली नाम रखा और इमामत के बारे में उसी से वसीयत की, इसलिए अली इब्ने हसन बारहवें इमाम हैं।

दूसरा- कुछ लोगों का कहना है कि इमाम हसन असकरी अ.स. की शहादत के 8 महीने बाद एक बेटा पैदा हुआ और वही बारहवां इमाम है।

तीसरा- एक गिरोह का कहना है कि इमाम हसन असकरी अ.स. का एक बेटा है जो अल्लाह के हुक्म से अभी पैदा नहीं हुआ है, वह अभी मां के पेट में है और अल्लाह के हुक्म से पैदा होगा।

चौथा- कुछ लोगों का मानना है कि इमाम असकरी अ.स. के बाद उनका बेटा मोहम्मद इमाम था लेकिन वह इमाम असकरी अ.स. की ज़िंदगी में ही मर गया, अब बाद में ज़िंदा हो कर वापस आएगा और इंक़ेलाब लाएगा।

इमाम हसन असकरी अ.स. की इमामत के बाक़ी रहने पर अक़ीदा

इस अक़ीदे वाले लोग भी 2 गिरोह में बंटे हुए हैं।

पहला- कुछ लोगों का अक़ीदा है कि इमाम हसन असकरी अ.स. ज़िंदा हैं और महदी, मुंतज़र और क़ायम हैं, क्योंकि उनका कोई बेटा नहीं है इसलिए इमाम वही हैं, और ज़मीन भी अल्लाह की हुज्जत से ख़ाली नहीं रह सकती, इस गिरोह का कहना है कि अगर इमाम की शहादत या उनके इंतेक़ाल के समय उनका कोई बेटा नहीं है तो वह ख़ुद ही महदी-ए-क़ायम है और हमें उसके ज़िंदा रहने पर अक़ीदा रखना होगा और शियों को उसके इंतेज़ार में अपनी आंखें बिछाए रहना चाहिए ताकि वह वापस हमारे सामने आ जाएं, क्योंकि जिस इमाम का बेटा न हो और उसका कोई जानशीन न हो तो उसे मुर्दा नहीं समझा जा सकता, हमें कहना ही पड़ेगा कि वह ग़ैबत में हैं।

दूसरा- इन लोगों का मानना है कि इमाम हसन असकरी अ.स. इस दुनिया से चले गए थे फिर वापस ज़िंदा हुए और फिर से अपनी ज़िंदगी जीना शुरू कर दी, वह महदी और क़ायम हैं, क्योंकि हदीस में है कि क़ायम वही है जो मौत के बाद फिर से ज़िंदा हो जाए और उसका कोई बेटा भी न हो।

इमाम हसन असकरी अ.स. के भाई मोहम्मद इब्ने अली की इमामत पर अक़ीदा

इस गिरोह का कहना है कि इमाम अली नक़ी अ.स. के बाद उनके बेटे मोहम्मद इमाम हैं, क्योंकि दो भाईयों जाफ़र और हसन की इमामत सही नहीं है (इमाम हसन अ.स. और इमाम हुसैन अ.स. को छोड़ कर) जाफ़र की इमामत इसलिए सही नहीं है क्योंकि उसका किरदार इमामत की शान के मुताबिक़ नहीं है और वह आदिल नहीं था, और हसन इब्ने अली को कोई बेटा नहीं था इसलिए वह भी इमाम नहीं हो सकते।

शक की हालत में हैं

कुछ शिया का कहना था कि इमाम हसन असकरी अ.स. के बाद इमामत का मामला हमारे लिए साफ़ नहीं है, हमें नहीं मालूम कि जाफ़र इमाम हैं या दूसरे बेटे, हमें नहीं मालूम इमामत, इमाम हसन असकरी अ.स. की नस्ल से हैं या उनके भाईयों की, अब हमारे लिए मामला साफ़ नहीं है इसलिए हम बिना किसी को इमाम माने इम मामले में विचार कर रहे हैं।

ज़मीन अल्लाह की हुज्जत से ख़ाली है

इस गिरोह का अक़ीदा था कि इमाम हसन असकरी अ.स. के बाद अब कोई इमाम नहीं है, और ज़मीन अल्लाह की हुज्जत से ख़ाली है, उनका अक़ीदा यह था कि ज़मीन का अल्लाह की हुज्जत से ख़ाली होने में कोई परेशानी नहीं है क्योंकि हज़रत ईसा अ.स. और पैग़म्बर स.अ. के बीच काफ़ी फ़ासला था।

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि फिलिस्तीनियों के लिए संयुक्त राष्ट्र राहत एजेंसी जिसे यूएनआरडब्ल्यूए के नाम से जाना जाता है,छह कर्मचारी गाज़ा में इज़रायली हवाई हमलों में मारे गए।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि फिलिस्तीनियों के लिए संयुक्त राष्ट्र राहत एजेंसी, जिसे यूएनआरडब्ल्यूए के नाम से जाना जाता है, के छह कर्मचारी गाजा में इजरायली हवाई हमलों में मारे गए।

गुटेरेस ने एक्स पर कहा कि इजरायली हवाई हमलों ने बुधवार को लगभग 12,000 लोगों के लिए स्कूल बने आश्रय स्थल पर हमला किया और मारे गए लोगों में यूएनआरडब्ल्यूए के छह कर्मचारी भी शामिल थे।

उन्होंने कहा,गाजा में जो हो रहा है वह अस्वीकार्य है अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून के इन नाटकीय उल्लंघनों को अब रोकने की जरूरत है।

समाचार एजेंसी ने फिलिस्तीनी सूत्रों के हवाले से बताया कि बुधवार को मध्य गाजा पट्टी में विस्थापित लोगों को शरण देने वाले संयुक्त राष्ट्र द्वारा संचालित स्कूल पर इजरायली हवाई हमले में कम से कम 18 फिलिस्तीनी मारे गए और कई अन्य घायल हो गए।

सूत्रों ने कहा कि एक इजरायली युद्धक विमान ने अलनुसीरत शरणार्थी शिविर में कम से कम एक मिसाइल दागी हमास द्वारा संचालित गाजा सरकार के मीडिया कार्यालय ने कहा कि पीड़ितों में सहायता कर्मी भी शामिल हैं।

ज़ायोनी सेना ने एक बार फिर ग़ज़्ज़ा में आम लोगों को निशाना बनाते हुए एक स्कूल पर बमबारी की। प्राप्त जानकारी के अनुसार ज़ायोनी सेना ने बुधवार को ग़ज़्ज़ा में यूएन के उस स्कूल पर एयर स्ट्राइक की जहां पर विस्थापित लोग ठहरे हुए थे। अवैध राष्ट्र इस्राईल के इस बर्बर हमले में 34 लोगों की मौत हुई, जिसमें दो बच्चे भी शामिल हैं।

फिलिस्तीन में पिछले 11 महीने से जनसंहार कर रहे इस्राईल ने ग़ज़्ज़ा में एक स्कूल पर एयरस्ट्राइक की, इस एयर स्ट्राइक में 34 लोगों की मौत हो गई, जिसमें 19 महिलाएं और दो बच्चे भी शामिल थे। इस एयर स्ट्राइक में यूएन के एक स्कूल पर हमला हुआ, स्कूल में फिलहाल विस्थापित लोग ठहरे हुए थे. हमले में 18 लोग घायल हुए। 

 

हिब्रू मीडिया ने इंटरनेशनल कोर्ट की कार्रवाई के अंतर्गत अनुमान लगाते हुए कहा है कि हेग कोर्ट जल्द ही नेतन्याहू और गैलेंट के लिए गिरफ्तारी वारंट जारी करेगा। इस रिपोर्ट के अनुसार, ज़ायोनी शासन के चैनल 12 टीवी ने घोषणा की कि ज़ायोनी हलकों के अनुमान से संकेत मिलता है कि हेग में अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय जल्द ही इस शासन के प्रधानमंत्री नेतन्याहू और युद्ध मंत्री योआव गैलेंट के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर सकता है। इन अनुमानों में कहा गया है कि ग़ज़्ज़ा में जो कुछ चल रहा है उन मामलों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।

 

वहीँ इस मामले पर गंभीरता दिखते हुए ज़ायोनी शासन के प्रमुख नेतन्याहू और तथाकथित न्यायमंत्री ने हेग कोर्ट के फैसले को रोकने के लिए कैबिनेट के कानूनी सलाहकार से आपराधिक जांच शुरू करने के लिए कहा है।

 

शिमला की संजौली मस्जिद को लेकर कल हुए विवाद के बाद मुस्लिम पक्ष की ओर से बड़ा फैसला लिया गया है। जहां मुस्लिम धर्मगुरु ने कहा कि आपसी प्रेम बनाए रखने के लिए हमने फैसला लिया है कि जो अवैध हिस्सा है उसे हटा दिया जाएगा।

हिमाचल प्रदेश के शिमला के संजौली में स्थित मस्जिद को लेकर हिंदू संगठनों की ओर से मस्जिद के निर्माण को लेकर आंदोलन किया गया, जिसके बाद मुस्लिम धर्मगुरु की ओर से एक बयान सामने आया है। उनका कहना है कि आपसी प्रेम बनाए रखने के लिए हमने फैसला लिया है कि जो अवैध हिस्सा है उसे हटा दिया जाए, अगर हमें इजाजत मिलती है तो उसे हम खुद ही हटा देंगे।

ईरान के राष्ट्रपति मसऊद पीजिश्कियान ने अपनी इराक यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच विभिन्न क्षेत्रों में हुए 14 समझौता पर हस्ताक्षर किए। उनका यह दौरा पश्चिमी देशों के जटिल होते प्रतिबंधों के बीच हुआ है।

ईरानी नेता ने कहा कि तेहरान इराक के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध है, दोनों नेताओं ने एक जैसे मुद्दों पर साथ आने पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि आतंकवादियों को प्रभावी ढंग से रोकने और क्षेत्र को अस्थिर करने वाली साजिशों का मुकाबला करने के लिए दोनों देशों के बीच सुरक्षा समझौतों को लागू किया जाएगा। उन्होंने दोहराया कि ईरान एक मजबूत, स्थिर और सुरक्षित इराक चाहता है जहां भाईचारा और शांति कायम रहे।

फिलिस्तीन विवाद के मुद्दे पर बोलते हुए ईरानी राष्ट्रपति ने कहा कि ग़ज़्ज़ा युद्ध ने मानवाधिकारों के बारे में पश्चिमी दावों के पाखंड को उजागर किया है। साथ ही कहा ग़ज़्ज़ा में अमेरिकी हथियारों को इस्तेमाल कर फिलिस्तीनी नागरिकों का नरसंहार हो रहा है।

हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने अपने एक संदेश में अरबईने हुसैनी के दिनों में मेज़बानी के लिए इराक़ी मौकिबदारों और महान इराक़ी राष्ट्र का शुक्रिया अदा किया।

हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने अपने एक संदेश में अरबईने हुसैनी के दिनों में मेज़बानी के लिए इराक़ी मौकिबदारों और महान इराक़ी राष्ट्र का शुक्रिया अदा किया।

बुधवार 11 सितम्बर 2024 को अपनी इराक़ यात्रा के दौरान राष्ट्रपति श्री डॉक्टर मस्ऊद पेज़िश्कियान ने इराक़ के प्रधान मंत्री श्री शिया अल सूदानी को इस संदेश के अरबी अनुवाद की शील्ड प्रस्तुत की।

रहबरे इंक़ेलाब के इस संदेश का अनुवाद इस प्रकार है:

बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम

सबसे पहले तो शुक्रिया अदा करना है। दिल की गहराई से, अपनी तरफ़ से और ईरान के महान राष्ट्र की तरफ़ से, मैं मौकिबदारों का शुक्रिया अदा करता हूँ जिन्होंने अरबईन के दिनों में अपनी उदारता, अपने प्रेम और अक़ीदत को आख़री सीमा तक पहुँचा दिया।

मैं महान इराक़ी राष्ट्र और इराक़ी सरकार के अधिकारियों का भी शुक्रिया अदा करता हूँ जिन्होंने सुरक्षा, अच्छा माहौल और अनुकूल परिस्थितियां प्रदान की हैं। विशेष रूप से, मैं इराकी धर्मगुरुओं और वरिष्ठ मुजतहेदीन का भी शुक्रिया अदा करता हूँ।

जिन्होंने ज़ियारत के माहौल को दोनों राष्ट्रों और जनता के बीच भाईचारे के माहौल में बदल दिया। वास्तव में इसका शुक्रिया अदा करना चाहिए।

रास्ते में बने मौकिबों में आप प्यारे इराक़ी भाइयों के व्यवहार, हुसैनी ज़ायरीन के प्रति आपके उदार व्यवहार की आज की दुनिया में कोई मिसाल नहीं है, जिस तरह से कि अरबईन की पैदल ज़ियारत की मिसाल पूरे इतिहास में कहीं नहीं मिलती और जिस तरह से करोड़ों लोगों की सुरक्षा को सुनिश्चित बनाना आज की अशांत दुनिया में एक बड़ा कारनामा और एक बेमिसाल काम है।

आपने अपने बर्ताव में और अपने रवैये में इस्लामी और अरबी सख़ावत और उदारता दिखाई है और यह सब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के इश्क़ की वजह से है। हुसैन इब्ने अली से यह प्रेम असाधारण है।

इसकी मिसाल हमने न पहले किसी दौर में देखी और न आज कहीं दिखाई देती है। दुआ है कि अल्लाह आपके दिलों में और हमारे दिलों में इस प्यार को दिन ब दिन बढ़ाता जाए।

आज इस मुहब्बत की कशिश का दायरा इतना बढ़ चुका है कि यह ग़ज़ा के पुरजोश मैदान से लेकर कई ग़ैर मुस्लिम समाजों तक फैल गया है।

अलहम्दो लिल्लाह।

 

सामर्रा में स्थित इमाम हसन असकरी के रौज़े के गुंबद का परचम उनकी शहादत की वर्षगांठ के अवसर पर बदल दिया गया। इस मौके पर हरम के ख़ादिम और ज़ाएरीन की एक बड़ी संख्या मौजूद थी।

रशिया टुडे ने सीरियाई सूत्रों का हवाला देते हुए बताया कि कुनैत्रा दमिश्क रोड पर खान अर्नाबेह के निकट एक कार पर ज़ायोनी सेना के ड्रोन हमले में कम से कम 2 लोग शहीद हो गए।

इस रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिणी सीरिया में कुनैत्रा-दमिश्क मार्ग पर एक कार पर ज़ायोनी शासन के ड्रोन हमले के परिणामस्वरूप कई लोग घायल भी हुए।

सीरिया के "अल-वतन" अखबार ने बताया कि ज़ायोनी सेना ने खान अर्नाबेह के पूर्व में कुनैत्रा-दमिश्क मार्ग पर एक नागरिक कार को ड्रोन से निशाना बनाया, जिससे उसमें सवार लोग घायल हो गए और उन्हें इलाज के लिए अबज़ा अस्पताल ले जाया गया। इस आतंकी घटना की अधिक जानकारी अभी सामने नहीं आई है।