
رضوی
सात दिन के नवजात के साथ ओलंपियाड परीक्षा में माँ ने लिया भाग
एक छात्रा ने अपने सात दिन के नवजात शिशु के साथ धार्मिक छात्रों के ओलंपियाड परीक्षा में भाग लिया जो शैक्षिक के लिए शानदार उदाहरण है।
एक छात्रा ने अपने सात दिन के नवजात शिशु के साथ धार्मिक छात्रों के ओलंपियाड परीक्षा में भाग लिया जो शैक्षिक के लिए शानदार उदाहरण है।
इस कदम की प्रशंसा करते हुए परीक्षा आयोजकों ने उसे सहारा दिया और नवजात की देखभाल भी की यह घटना महिलाओं के ज्ञान और मातृत्व में संघर्ष को प्रदर्शित करती है जो समाज के वैचारिक और नैतिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं।परीक्षा के दौरान आयोजकों ने इस मेहनती मां की सहायता करने के लिए नवजात की देखभाल की।
यह घटना एक बार फिर यह साबित करती है कि महिलाओं का शैक्षिक और मातृत्व संघर्ष समाज के वैचारिक और नैतिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ऐसे महिलाएं न केवल देश की शैक्षिक प्रगति में योगदान करती हैं, बल्कि सार्थक और जिम्मेदार नागरिकों को भी जन्म देती हैं।
हम इस युवा छात्रा और सभी मेहनती माताओं के लिए सफलता की कामना करते हैं और उम्मीद करते हैं कि उनका यह कदम युवा धार्मिक छात्रों के लिए प्रेरणा बने जिससे वे ज्ञान और शिक्षा के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए और भी प्रेरित हों।
प्रतिरोध के हथियार पर कोई समझौता नहीं: हमास
फ़िलिस्तीन के इस्लामिक प्रतिरोध आंदोलन (हमास) के एक सीनियर नेता का कहना है कि अतिग्रहणकारी ज़ायोनी शासन घेराबंदी और भुखमरी जैसी आपराधिक कार्रवाइयों के साथ फ़िलिस्तीनियों से फिरौती लेता है। उनका कहना था: प्रतिरोध के हथियारों पर बातचीत और समझौता नहीं किया जा सकता है और ज़ायोनी क़ैदियों को केवल एक समझौते के तहत ही रिहा किया जाता है।
ज़ायोनी शासन ने युद्धविराम और अपने कैदियों की रिहाई के मामले में हमास को ब्लैकमेल करने के उद्देश्य से, युद्ध रोकने की कोई गारंटी दिए बिना ही, ग़ज़ापट्टी में नागरिकों के खिलाफ एक नई आपराधिक कार्रवाई अंजाम दी और सभी क्रॉसिंग बंद कर दी है और मानवीय सहायता को इस क्षेत्र में दाख़िल होने से रोक दिया है। हमास के एक नेता सामी अबू ज़ोहरी ने घोषणा की कि ज़ायोनियों के कार्य युद्ध अपराध हैं।
अबू ज़ोहरी ने मंगलवार को इस बात पर जोर दिया: प्रतिरोध का हथियार हमारी रेड लाइन है और किसी भी बातचीत या वार्ता में इस पर चर्चा नहीं की जा सकती है।
10 दिनों के भीतर ग़ज़ा पर ज़ायोनी हमले फिर से शुरू
इस बारे में ज़ायोनी शासन के चैनल 12 ने मंगलवार को बताया कि अगर क़ैदियों की रिहाई के लिए हमास आंदोलन के साथ कोई समझौता नहीं हुआ तो इज़राइल 10 दिनों में ग़ज़ापट्टी के खिलाफ हमले फिर से शुरू कर देगा।
हमास: हम विदेशी शक्तियों को ग़ज़ा के प्रशासन में हस्तक्षेप की इजाज़त नहीं देंगे
ज़ायोनी शासन की धमकी के साए में फ़िलिस्तीन के इस्लामिक प्रतिरोध आंदोलन (हमास) के प्रवक्ता हाज़िम क़ासिम ने मंगलवार को एक बयान में घोषणा की कि ग़ज़ा के भविष्य के लिए कोई भी योजना एक राष्ट्रीय समझौते के माध्यम से बनाई जानी चाहिए और यह आंदोलन किसी भी विदेशी शक्ति को हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं देगा।
यह बयान ऐसी स्थिति में सामने आया है कि जब कल मंगलवार को मिस्र में अरब देशों के प्रमुखों की आपातकालीन बैठक हुई जिसे "फिलिस्तीनी शिखर सम्मेलन" का नाम दिया गया। इस बैठक अरब देशों के प्रमुखों ने फिलिस्तीनियों के जबरन प्रवास के विरोध और ग़ज़ापट्टी के पुनर्निर्माण और एक प्रशासन के तहत ग़ज़ा और वेस्ट बैंक के संरक्षण के समर्थन पर ज़ोर दिया।
अरब शिखर सम्मेलन के फैसले आगे की चुनौतियों का जवाब नहीं दे सकते: फिलिस्तीन का जेहादे इस्लामी आंदोलन
इस संदर्भ में, फ़िलिस्तीन के इस्लामी जिहाद ने क़ाहिरा में अरब राष्ट्राध्यक्षों की आपातकालीन बैठक के घोषणापत्र को सकारात्मक क़रार दिया लेकिन साथ ही इस बात पर ज़ोर दिया कि ये निर्णय उन चुनौतियों का जवाब नहीं देते हैं जो ज़ायोनी शासन और अमेरिका ने फ़िलिस्तीनी जनता और अरब देशों पर थोपी हैं।
ग़ज़ा में शहीदों की संख्या में वृद्धि
जैसे ही ग़ज़ापट्टी के विभिन्न क्षेत्रों में अन्य कई शहीदों के शव मलबे से निकाले गए, 7 अक्टूबर, 2023 से इस क्षेत्र में अतिग्रहणकारी शासन के हमलों की वजह से शहीदों की संख्या बढ़कर 48 हजार 405 हो गई है।
पिछले 24 घंटों में 7 शहीदों के शव मलबे से निकाले गए और ग़ज़ा पर अतिग्रहणकारियों के हमले के कारण लगी चोटों की वजह से एक और फ़िलिस्तीनी भी शहीद हो गया जबकि इस दौरान 11 घायल लोगों को अस्पताल पहुंचाया गया।
वेस्ट बैंक में शहादतप्रेमी कार्यवाही
उधर एक फ़िलिस्तीनी नागिरक ने जॉर्डन नदी के पश्चिमी तट के उत्तर में एक सुरक्षा चौकी पर हमला कर दिया और इज़रायली सेना के सैनिकों ने उसे शहीद कर दिया। हमास ने इस शहादत प्रेमी ऑपरेशन की प्रशंसा की और इस बात पर ज़ोर दिया कि फ़िलिस्तीनी क्रांतिकारी युवाओं के दिलों में प्रतिरोध की भावना ज़िंदा है।
क़ालीबाफ़ ने तेहरान शहर के पूर्वी क्षेत्र में एक फलदार पौधा लगाया
इस्लामी सलाहकार परिषद के अध्यक्ष ने आज वृक्षारोपण दिवस के अवसर पर तेहरान के तलवी मार्ग में एक फलदार पौधा लगाया।
इस्लामी संसद (मजलिस) के अध्यक्ष मुहम्मद बाक़िर क़ालीबाफ़ ने आज (बुधवार, को वृक्षारोपण दिवस के अवसर पर तेहरान के तलवी मार्ग में एक फलदार पौधा लगाया।
इसके अलावा क़ालीबाफ़ तेहरान शहर की ग्रीन बेल्ट परियोजना के समापन की घोषणा भी करने वाले हैं जिसमें 2500 हेक्टेयर जंगलारोपण परियोजना जंगलकरी का उद्घाटन किया जाएगा।
ईरान में हर साल 15 इस्फ़ंद को लोगों को वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से वृक्षारोपण दिवस के रूप में मनाया जाता है।
ईरानी ईसाइयों की भूमिका से लेकर एकेश्वरवादी धर्मों में रोज़ा रखने के रहस्यों की समीक्षा
ईरान के ऊरूमिया क्षेत्र के गिरजाघर के ईसाई पादरी ने धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधियों के साथ न्यायपालिका के प्रमुख से भेंट में कहा कि ईरानी ईसाई साफ़्ट युद्ध में पूरी क्षमता के साथ रणक्षेत्र में आ गये हैं।
पिछले गुरूवार को ईरान की न्यायपालिका के प्रमुख के साथ ईरान के पश्चिमी आज़रबाइजान प्रांत में धर्मगुरूओं, धार्मिक शिक्षा केन्द्रों के छात्रों और धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधियों के साथ एक बैठक आयोजित हुई जिसमें इराक़ द्वारा ईरान पर थोपे गये युद्ध के दौरान ईरानी ईसाइयों की भूमिका की ओर संकेत किया गया।
अज़ीज़ियान ने कहा कि इराक़ द्वारा ईरान पर थोपे गये युद्ध के दौरान ईरानी ईसाइयों ने ईरानी मुसलमानों के साथ मिलकर पूरी निष्ठा और ईमान के साथ देश की रक्षा की यहां तक कि युद्ध समाप्त होने के बाद भी देश के पुनर्निर्माण, विकास और पूरी गम्भीरता के साथ दुश्मन से साफ़्ट वार से मुक़ाबले में डटे रहे।
अज़ीज़ियान ने कहा कि ईरानी ईसाइयों ने अपनी संभावनाओं से लाभ उठाकर दुश्मनों के मानसिक और सांस्कृतिक षडयंत्रों के मुक़ाबले में प्रभावी भूमिका निभाई है और उन्होंने दर्शा दिया है कि वे ईरान की इस्लामी व्यवस्था और ईरानी लोगों के साथ हैं।
इस्लाम और एकेश्वरवादी धर्मों में रोज़ा रखने का उद्देश्य और उसका रहस्य
ईरानी शिक्षाकेन्द्र के एक उस्ताद हुज्जतुल इस्लाम मोहम्मद हायेरी शीराज़ी ने इस्लाम और दूसरे आसमानी धर्मों में रोज़ा रखने के उद्देश्यों के बारे में कहा कि इस्लाम में रोज़ा एक मुख्य इबादत व उपासना है और रोज़े को धर्म के पांच स्तंभों में से एक समझा जाता है।
यहूदी धर्म में भी रोज़े को एक महत्वपूर्ण इबादत समझा जाता है जबकि ईसाई धर्म में चालिस दिन का रोज़ा होता है और उसे Easter की आत्मिक तत्परता की भूमिका समझकर रखा जाता है। रोज़े के समय ईसाई मोमिन कुछ खाने- पीने और सांसारिक लज़्ज़तों से परहेज़ करते हैं।
नारांज नामक ईरान का सबसे बड़ा फ़ेस्टिवल
10 इस्फ़ंद को नारांज नामक ईरान का सबसे बड़ा फ़ेस्टिवल शीराज़ नगर में ज़रतुश्तियों यानी पारसियों के धार्मिक और सांस्कृतिक केन्द्र में आयोजित हुआ।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संभल जामा मस्जिद को विवादित ढांचा कहां
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को संभल की जामा मस्जिद को विवादित स्थल के रूप में संदर्भित करने पर सहमति जताई। यह फैसला तब आया जब मस्जिद की प्रशासनिक समिति ने मुगल काल की इस इमारत को रंगने की अनुमति के लिए याचिका दायर की थी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को संभल की जामा मस्जिद को विवादित स्थल के रूप में संदर्भित करने पर सहमति जताई। यह फैसला तब आया जब मस्जिद की प्रशासनिक समिति ने मुगल काल की इस इमारत को रंगने की अनुमति के लिए याचिका दायर की थी।
अदालत ने हिंदू पक्ष की याचिका पर स्टेनोग्राफर को निर्देश दिया कि वह शाही मस्जिद को विवादित ढांचा के रूप में दर्ज करे इस मामले की अगली सुनवाई 10 मार्च को होगी जब पुरातत्व विभाग अपनी रिपोर्ट अदालत में पेश करेगा।
यह मामला तब कानूनी विवाद बना जब एक शिकायत में आरोप लगाया गया कि 16वीं सदी में मुगल बादशाह बाबर ने हरी हर मंदिर को ध्वस्त कर मस्जिद का निर्माण कराया था। अदालत के आदेश पर कराए गए एक सर्वे के दौरान पिछले साल नवंबर में संभल में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन और हिंसा हुई थी।
मस्जिद समिति ने हाईकोर्ट में मस्जिद को पेंट करने की अनुमति के लिए याचिका दायर की थी जिस पर पुरातत्व विभाग ने तर्क दिया कि फिलहाल इसकी जरूरत नहीं है अदालत में हिंदू पक्ष के वकील हरी शंकर जैन ने मस्जिद समिति के 1927 के समझौते के तहत मस्जिद के रखरखाव के दावे को चुनौती देते हुए कहा कि इसकी जिम्मेदारी पुरातत्व विभाग की है।
सुनवाई के दौरान एडवोकेट जैन ने अदालत से आग्रह किया कि मस्जिद को विवादित ढांचा कहा जाए, जिस पर अदालत ने सहमति व्यक्त की। इसके बाद अदालत ने स्टेनोग्राफर को मस्जिद के लिए विवादित ढांचा शब्द का उपयोग करने का निर्देश दिया। 28 फरवरी को अदालत ने पुरातत्व विभाग को आदेश दिया कि वह मस्जिद की सफाई का काम करे, जिसमें धूल हटाना और मस्जिद के अंदर व बाहर उगी झाड़ियों और घास की सफाई शामिल है।
अमेरिका वार्ता करने के लायक नही हैं
उच्च धार्मिक शिक्षण परिषद के सचिव ने अमेरिका द्वारा यूक्रेन के राष्ट्रपति के प्रति अपमानजनक व्यवहार की ओर इशारा करते हुए कहा,यह रवैया दिखाता है कि अमेरिका बातचीत और वार्ता करने की योग्यता नहीं रखता सही मार्ग यह है कि नेतृत्व का अनुसरण किया जाए और उनके मार्गदर्शन के अनुसार कार्य किया जाए।
उच्च धार्मिक शिक्षण परिषद के सचिव ने अमेरिका द्वारा यूक्रेन के राष्ट्रपति के प्रति अपमानजनक व्यवहार की ओर इशारा करते हुए कहा,यह रवैया दिखाता है कि अमेरिका बातचीत और वार्ता करने की योग्यता नहीं रखता सही मार्ग यह है कि नेतृत्व का अनुसरण किया जाए और उनके मार्गदर्शन के अनुसार कार्य किया जाए।
उच्च धार्मिक शिक्षण परिषद के सचिव आयतुल्लाह मेंहदी शब ज़िंदादार ने हौज़ा न्यूज़ एजेंसी से बातचीत में अमेरिका की साम्राज्यवादी और वर्चस्ववादी नीति की आलोचना करते हुए कहा,यूक्रेन के राष्ट्रपति अमेरिका के नौकर थे उन्होंने अमेरिका की इतनी सेवा की लेकिन फिर भी उनके साथ ऐसा व्यवहार किया गया। क्या यह सबक लेने के लिए काफी नहीं है? क्या यह साबित नहीं करता कि ऐसे लोग वार्ता और बातचीत के योग्य नहीं हैं? यदि वे तर्कशील और न्यायप्रिय होते तो ऐसा अपमानजनक व्यवहार नहीं करते।
सही रास्ता यह है कि हम सभी अपनी निगाहें नेतृत्व पर टिकाए रखें और उनके निर्देशों के अनुसार कार्य करें पिछले चालीस वर्षों से हिज़्बुल्लाह और वे सभी जिन्होंने सुप्रीम लीडर का अनुसरण किया सफलता प्राप्त करते रहे हैं।
उन्होंने सीरिया लेबनान, फिलिस्तीन और ग़ज़ा की स्थिति की ओर इशारा करते हुए कहा,मानव इतिहास में ये उतार चढ़ाव हमेशा रहे हैं। परमात्मा ने कुरान में कहा है हम इनकी भी सहायता करते हैं और उनकी भी सहायता करते हैं क्योंकि यह दुनिया परीक्षा की जगह है और इन परीक्षाओं का होना अनिवार्य है।
अमेरिका ने अंसारुल्लाह को तथाकथित आतंकवादी सूची में फिर किया शामिल
अमेरिका जिसने एक समय यमन के अंसारुल्लाह आंदोलन को अपनी तथाकथित आतंकवादी संगठनों की सूची से हटा दिया था उसने एक बार फिर से इस सूची में शामिल कर दिया।
अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने एक बयान में घोषणा किया कि अमेरिका ने यमन के हौसी आंदोलन अंसारुल्लाह को फिर से एक आतंकवादी संगठन घोसित किया।
यह बयान ऐसे समय में आया है जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जनवरी में व्हाइट हाउस का कार्यभार संभालने के तीन दिन बाद ही इस कदम को उठाने का वादा किया था।
इस फैसले के तहत अंसारुल्लाह पर पहले की तुलना में और भी अधिक प्रतिबंध लगाए जाएंगे जो जो बाइडेन सरकार द्वारा इस आंदोलन पर लगाए गए प्रतिबंधों से सख्त होंगे।
बाइडेन ने 2021 में अपने राष्ट्रपति कार्यकाल की शुरुआत में यमन के भीतर मानवीय संकट को देखते हुए अंसारुल्लाह का नाम उस आतंकवादी सूची से हटा दिया था जिसमें ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में इसे जोड़ा था।
पिछली अमेरिकी सरकार ने रेड सी (लाल सागर) में अंसारुल्लाह की गतिविधियों के जवाब में पिछले साल इस आंदोलन को एक विशेष वैश्विक आतंकवादी संगठन करार दिया था लेकिन इसे विदेशी आतंकवादी संगठन घोषित करने से परहेज किया था जो एक और कठोर श्रेणी मानी जाती है।
रहमतो और बरकतो का महीना
अल्लाह के रसूल (स) ने एक रिवायत में रमज़ान उल मुबारक के महीने की तीन विशिष्ट विशेषताओं की ओर इशारा किया है।
हौज़ा न्यूज एजेंसी के अनुसार, यह रिवायत "बिहार उल अनवार" पुस्तक से ली गई है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:
قال رسول اللہ صلی الله علیه وآله:
شَهرُ رَمَضانَ شَهرُ اللّه عَزَّوَجَلَّ وَ هُوَ شَهرٌ یُضاعِفُ اللّه فیهِ الحَسَناتِ وَ یَمحو فیهِ السَّیِّئاتِ وَ هُوَ شَهرُ البَرَکَةِ.
पैग़म्बर (स) ने फ़रमाया:
रमज़ान उल मुबारक का महीना अल्लाह का महीना है। इस महीने में नेकियों का सवाब दोगुना कर दिया जाता है, गुनाहों की माफी मिल जाती है और यह महीना रहमतों और बरकतों का महीना है।
बिहार उल अनवार, भाग 96, पेज 340, हदीस 5
रमज़ानुल मुबारक अल्लाह से क़रीब होने का बेहतरीन मौक़ा
अल्लाह तआला फ़रमाता है:
"ऐ लोगो! तुम्हारे पास तुम्हारे रब की तरफ़ से एक नसीहत आ चुकी है, जो दिलों की बीमारियों की शिफ़ा है और ईमान वालों के लिए हिदायत और रहमत है।" (सूरह यूनुस: 57)
रमज़ान सिर्फ़ एक महीना नहीं, बल्कि यह रूह को पाक करने, अल्लाह की इबादत करने और उससे क़रीब होने का बेहतरीन मौका है। यही वह महीना है जिसमें क़ुरआन मजीद नाज़िल हुआ। यह वह समय होता है जब अल्लाह की रहमत बरसती है, गुनाह माफ़ किये जाते हैं और हर नेकी का इनाम कई गुना बढ़ जाता है।
इसी महीने में शब-ए-क़द्र भी होती है, जो हज़ार महीनों से ज्यादा बेहतर है। रमज़ान हमें सब्र (धैर्य), शुक्र और दूसरों की मदद के लिए त्याग करने का सबक़ देता है। यह हमें ज़िंदगी के असली मक़सद से वाक़िफ़ कराता है और दिलों को गुनाहों से पाक करने का मौका देता है।
रोज़ा सिर्फ़ भूखे-प्यासे रहने का नाम नहीं, बल्कि यह अपने ऊपर कंट्रोल रखने, बुरी आदतों को छोड़ने और अल्लाह की खुशी के लिए खुद को बेहतर बनाने की ट्रेनिंग है। रमज़ान वह समय है जब अल्लाह की रहमत हर तरफ़ होती है, शैतान को जकड़ दिया जाता है और इंसान के लिए खुद को सुधारने का सबसे अच्छा मौका मिलता है।
यह महीना अल्लाह से क़रीब होने का वक्त है। यह रिश्तों को जोड़ने, नाराज़गियाँ खत्म करने और आपसी मोहब्बत को बढ़ाने का बेहतरीन मौका है। खुशकिस्मत हैं वो लोग जो इस महीने की अहमियत को समझते हैं और इसके हर पल को इबादत, दुआ और अल्लाह की याद से रौशन करते हैं।
अल्लाह का शुक्र है कि हमें एक और रमज़ान मिला। उम्मीद है कि यह महीना हमारे लिए सेहत, सुकून, अमन और माफ़ी का ज़रिया बने। इंशाअल्लाह, अल्लाह हमें अच्छे काम करने की तौफ़ीक़ दे और हमें अपने नेक बंदों में शामिल करे।
रमज़ान उल मुबारक: बरकतों का वसंत, पश्चाताप का सर्वोत्तम अवसर
जिस प्रकार रजब का महीना हज़रत अली (अ) से जुड़ा है और शाबान का महीना हज़रत मुहम्मद (स) से जुड़ा है, उसी प्रकार रमज़ान उल मुबारक का महीना अल्लाह तआला के सार से जुड़ा है।
हौज़ा इल्मिया क़ुम के एक शिक्षक हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अबज़ारी ने एक बयान में कहा कि वह दुनिया भर के मुसलमानों और सभी प्यारे दोस्तों को रमज़ान उल मुबारक 1446 के आगमन पर हार्दिक बधाई देना चाहते हैं।
उन्होंने कहा कि जिस प्रकार रजब का महीना हजरत अली (अ) से जुड़ा है और शाबान का महीना हजरत मुहम्मद (स) से जुड़ा है, उसी प्रकार रमज़ान उल मुबारक का महीना अल्लाह तआला के सार से जुड़ा है।
उन्होंने कहा कि यह महीना पूरी तरह से अल्लाह का है और इस दौरान जो भी लोग रोजा रखते हैं, चाहे उनकी जाति, क्षेत्र या राजनीतिक विचारधारा कुछ भी हो, वे अल्लाह के मेहमान हैं। अल्लाह की दया, क्षमा और आशीर्वाद सभी के लिए समान है, जैसे सूर्य का प्रकाश सभी पर समान रूप से चमकता है। अंतर केवल इतना है कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी आध्यात्मिक और शारीरिक क्षमता के अनुसार इस महीने के आशीर्वाद से लाभान्वित होता है।
उन्होंने बताया कि अल्लाह के रसूल (स) ने शाबान के अंतिम दिनों में एक उपदेश दिया था जिसमें उन्होंने कहा था:
"ऐ लोगो! तुम्हारे पास अल्लाह का महीना आ रहा है, जो बरकतों, रहमतों और मगफिरत से भरा हुआ है। यह वह महीना है जो अल्लाह के नज़दीक सबसे बेहतरीन है, इसके दिन सभी दिनों से बेहतर हैं, इसकी रातें सभी रातों से बेहतर हैं और इसके पल सभी पलों से बेहतर हैं। अल्लाह ने इस महीने में तुम्हें अपने मेहमानों में शामिल किया है और तुम्हें सम्मानित किया है। तुम्हारी साँसें तौबा हैं, तुम्हारी नींद इबादत है, तुम्हारे कर्म स्वीकार किए जाते हैं और तुम्हारी दुआएँ कबूल की जाती हैं। इसलिए, तुम्हें सच्चे दिल और नेक नियत के साथ अल्लाह से दुआ करनी चाहिए कि वह तुम्हें रोज़ा रखने और कुरान की तिलावत करने की तौफीक दे।"
उन्होंने कहा कि यह सच है कि रमज़ान उल मुबारक बरकत और रहमत का महीना है। जैसे ही यह महीना आता है, दिलों में एक अजीब सी आध्यात्मिक खुशबू और रोशनी फैल जाती है। प्रत्येक मुसलमान अपने अन्दर एक प्रकाशमय आत्मा और हृदय की शांति महसूस करता है। यह महीना हृदय को पवित्रता, प्रगति और उत्थान की ओर ले जाता है।
हौज़ा ए इल्मिया कुम के शिक्षक ने कहा कि पैगंबर मुहम्मद (स) के शब्द हमें सिखाते हैं कि रमजान हमारी पिछली गलतियों को सुधारने का एक महान अवसर है। जो लोग किसी भी कारण से अपने व्यक्तिगत, सामाजिक या राजनीतिक कर्तव्यों की उपेक्षा करते रहे हैं, उन्हें इस माह के दौरान गंभीरता से अपने आप में सुधार करना चाहिए और पश्चाताप के माध्यम से अपनी गलतियों को सुधारना चाहिए।
यह सुधार और पश्चाताप दो प्रकार का हो सकता है:
- व्यक्तिगत पापों के लिए पश्चाताप: यदि किसी ने झूठ बोलना, चुगली करना, चुगली करना, किसी के अधिकारों का उल्लंघन करना या अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करना जैसे पाप किए हैं, तो पश्चाताप की विधि सरल है। ईश्वर से क्षमा मांगें, पुनः वही गलती न करने का संकल्प लें, और यदि आपने किसी के साथ गलत किया है, तो उसका बदला चुकाएं।
- सामूहिक और सरकारी स्तर पर सुधार: यदि शासक, सरकारी अधिकारी और जिम्मेदार व्यक्ति जनता के अधिकारों को पूरा करने में विफल रहे हैं, जनता की आर्थिक, सामाजिक और न्यायिक आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रहे हैं, तो उनका सुधार और पश्चाताप अधिक आवश्यक है। यदि ये लोग रमजान में केवल भाषण देने और दावे करने में बिताएंगे तथा वास्तविक सुधार नहीं करेंगे, तो इससे पूरे समाज को नुकसान होगा। अल्लाह तआला क्षमाशील है, लेकिन वह अपने बन्दों के अधिकारों में कमी को तब तक क्षमा नहीं करता जब तक कि उसका असली मालिक संतुष्ट न हो जाए।
इसलिए, हमें केवल शब्दों और वादों पर ही ध्यान नहीं देना चाहिए, बल्कि वास्तविक कार्यों के माध्यम से स्वयं और अपने समाज में सुधार लाना चाहिए।
हम अल्लाह तआला से दुआ करते हैं कि यह रमज़ान उल मुबारक हमारे लिए व्यक्तिगत, सामाजिक और राजनीतिक सुधार का स्रोत बने और हम इस पवित्र महीने की कृपा से पूरी तरह लाभान्वित हो सकें। आमीन!