
رضوی
हज़रत इमाम अली अ.स.की शहादत, हर ज़माने का ग़म
इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनेई ने कहां,हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत, वह ग़म नहीं है जो किसी ज़माने में पड़ा हो और फिर आज हम उसकी याद में आंसू बहांए! नहीं, यह ग़म, हर ज़माने का ग़म है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम को शहीद करने का दुख, यह ख़ुदा की क़सम हिदायत की बुनियाद तबाह हो गयी” जो कहा गया है वह सिर्फ़ उस ज़माने का नुक़सान नहीं हुआ बल्कि इन्सानियत की पूरी तारीख़ का नुक़सान हुआ हैं।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनेई ने कहां,हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत, वह ग़म नहीं है जो किसी ज़माने में पड़ा हो और फिर आज हम उसकी याद में आंसू बहांए! नहीं, यह ग़म, हर ज़माने का ग़म है।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम को शहीद करने का दुख, यह “ख़ुदा की क़सम हिदायत की बुनियाद तबाह हो गयी” जो कहा गया है वह सिर्फ़ उस ज़माने का नुक़सान नहीं हुआ बल्कि इन्सानियत की पूरी तारीख़ का नुक़सान हुआ हैं।
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने इस तारीख़ से 25 बरस पहले बीमारी की हालत में मदीना की औरतों से कहा था कि अगर अली को ख़िलाफ़त सौंपते तो “वह उनकी ज़िंदगी का सफ़र आसान कर देते।” यानी आम इंसान की ज़िदंगी का सफ़र आसान हो जाता उन्हें कोई नुक़सान न पहुंचने देते।
पैग़म्बरे इस्लाम के ज़माने में इस्लामी समाज क्या था? दस बरसों तक तो एक मदीना ही था, एक छोटा सा शहर जहां कुछ हज़ार लोग रहते थे। उसके बाद मुसलमानों ने मक्का और ताएफ़ को भी जीत लिया वह भी छोटा सा इलाक़ा, मामूली सी दौलत के साथ। हर तरफ़ ग़रीबी थी सहूलतों का अभाव था।
इस्लामी वैल्यूज़ और शिक्षाएं इस तरह के माहौल में अस्तित्व में आईं। पैग़म्बरे इस्लाम को इस दुनिया से गये 25 बरस बीत चुके थे। इन 25 बरसों में, इस्लामी हुकूमत की सरहदें, सैंकड़ों गुना विस्तृत हो गयीं, दोगुना, तीन गुना, या दस गुना नहीं। यानी जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम को ज़ाहिरी तौर पर हुकूमत मिली, तो सेंट्रल एशिया से लेकर नार्थ अफ़्रीक़ा यानि मिस्र तक, इस्लामी हुकूमत की सरहदें फैली हुई थीं।
इस्लामी हुकूमत की दो बड़ी पड़ोसी सलतनतें यानी ईरान और रोम में से एक तो पूरी तरह से ख़त्म हो गयी थी। यह ईरानी सलतनत थी और उस दौर में ईरान के हर इलाक़े पर इस्लाम पर क़ब्ज़ा हो गया था।
दूसरी रोम की सलतनत थी जिसके बड़े हिस्से यानी शाम्मात, फ़िलिस्तीन, मौसिल और दूसरे इलाक़ों पर भी इस्लाम का क़ब्ज़ा हो गया था। इतना बड़ा इलाक़ा इस्लाम के क़ब्ज़े में था, इस लिए दौलत भी बहुत ज़्यादा बढ़ गयी थी। अब ग़रीबी और खाने पीने की चीज़ों की कमी नहीं थी। सोना था, दौलत की भरमार थी, बहुत दौलत जमा हो गयी थी।
इसी लिए इस्लामी मुल्क मालदार हो गया था। बहुत से लोगों की ज़िंदगी तो ज़रूरत से ज़्यादा ही आराम में गुज़र रही थी।
इन बरसों में बहुत से लोगों ने सरकारी ख़जाने से अपनी जेबें भरी थीं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि मैं यह सारी दौलत सरकारी ख़ज़ाने में वापस लाऊंगा यहां तक कि अगर वह दौलत औरतों के मेहर में भी इस्तेमाल हो चुकी हो या उससे कऩीज़ें ख़रीदी जा चुकी हों मैं उन सब को सरकारी ख़ज़ाने में वापस लौटाऊंगा, लोगों को और समाज के बड़े लोगों को यह जान लेना चाहिए कि मेरा तरीक़ा यही है।
आज अमीरुल मोमेनीन की शहादत का दिन है। मैं थोड़ा सा मसायब पढ़ना चाहता हूं। “ए अमीरुलमोमेनीन फ़रिश्ते ने आप पर दुरूद भेजा। “कितने ख़ुशक़िस्मत हैं वे लोग जो आज नजफ़ में, हज़रत अली अलैहिस्सलाम के रौज़े में हैं और उनकी पाकीज़ा क़ब्र पर क़रीब से सलाम कर सकते हैं। हम भी यहीं दूर से कहते हैं।
अस्सलामो अलैका या अमीरुल मोमेनीन! सलाम हो मुत्त़क़ियों के इमाम पर, सलाम हो वलियों के सरदार पर” 19 रमज़ान की सुबह को जब क़यामत आयी, तो ग़ैब से हर तरफ़ यह आवाज़ गूंजी “ख़ुदा की क़सम, हिदायत की बुनियाद तबाह हो गयी” कूफ़ा और उस दौर में जहां तक यह ख़बर पहुंची वहां के लोगों में बेचैनी फैल गयी। हज़रत अली अलैहिस्सलाम को कूफ़ा के लोग बहुत चाहते थे, उनसे मुहब्बत करते थे।
मर्द, औरतें, बड़े-छोटे, ख़ास तौर पर अमीरुल मोमेनीन के क़रीबी साथी बहुत ज़्यादा बेचैन थे। कल के दिन शाम के वक़्त, शहादत से एक दिन पहले, वह सब अमीरुल मोमेनीन के घर के बाहर जमा हो गये थे।
इमाम हसन मुजतबा ने, जैसा कि तारीख़ में लिखा है, जब यह देखा कि लोग बेचैन हैं और अमीरुल मोमेनीन को देखना चाहते हैं तो उन्होंने कहा कि भाइयो, मोमिनो! अमीरुल मोमेनीन की हालत अच्छी नहीं है, उनसे मिलना मुमकिन नहीं है, आप सब चले जाएं। सब लोग वहां से हट गये और अपने अपने घर चले गये।
असबग़ बिन नबाता कहते हैं कि बहुत कोशिश की लेकिन अमीरुल मोमेनीन के घर से हट नहीं पाया, इस लिए मैं वहीं ठहरा रहा। थोड़ी देर बाद, इमाम हसन अलैहिस्सलाम घर से बाहर आए और जब उनकी नज़र मुझ पर पड़ी तो फ़रमायाः असबग़! सुना नहीं कि यहां से जाना है? मुलाक़ात नहीं हो सकती।
मैंने कहा फ़रज़ंदे रसूल! मेरे बदन में जान नहीं है, मैं यहां से हिल नहीं पा रहां हूं, क्या यह नहीं हो सकता कि कि मैं एक लम्हे के लिए आकर अमीरुल मोमेनीन को देख लूं? इमाम हसन अलैहिस्सलाम घर के अंदर गये और फिर बाहर आए और मुझे अदंर जाने की इजाज़त दी। असबग़ कहते हैं कि मैं कमरे में गया।
मैंने देखा कि अमीरुलमोमेनीन, बिस्तर पर लेटे हैं, और उनके घाव पर एक पीला कपड़ा बंधा हुआ है लेकिन मैं यह नहीं समझ पाया कि कपड़ा ज़्यादा पीला है या इमाम का चेहरा! इमाम, कभी बेहोश होते थे कभी होश में आते।
एक बार जब होश में आए तो असबग़ का हाथ पकड़ा और एक हदीस बयान की। हिदायत की बुनियाद जो कहते हैं उसकी यही वजह है। ज़िदंगी के आख़िरी लम्हे में, इस हालत में भी हिदायत करते हैं।
लंबी हदीस बयान की और फिर बेहोश हो गये। इसके बाद न असबग़ बिन नताता और न ही अमीरुल मोमेनीन के किसी और सहाबी ने उस दिन के बाद अली की ज़ियारत की। अली इसी रात 21वीं की रात इस दुनिया से चले गये और एक दुनिया को ग़मज़दा और एक तारीख को ग़मगीन कर दिया।
मालिके अशतर के नाम हज़रत अली का ख़त
जब पैगम़्बरे इस्लाम के उत्तराधिकारी और दुनिया के शियों के पहले इमाम हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने मालिके अशतर को मिस्र का शासन सौंपा तो उन्हें एक पत्र लिखा जो शासन शैली का अहदनामा है। इस ख़त में इस्लामी हुकूमत, इस्लामी शासक, नागरिकों के अधिकारों और सत्ता व नागरिकों के संबंध के बारे में बुनियादी उसूल और बिंदु बयान किए गए हैं।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम की ज़िंदगी पर एक संक्षेप नज़र
हज़रत अली (सन 23 हिजरत पूर्व- सन 40 हिजरी) शियों के पहले इमाम, पैग़म्बर के सहाबी, पैग़म्बर की हदीसों के रावी, इसी तरह पैग़म्बर के चचेरे भाई और उनके दामाद थे। वो क़ुरआन और वहि के कातिब भी थे। हज़रत अली अहले सुन्नत अक़ीदे के अनुसार चार ख़लीफ़ाओं में चौथे ख़लीफ़ा हैं। शिया इतिहासकारों और बहुत से सुन्नी धर्मगुरुओं के अनुसार हज़रत अली अलैहिस्सलाम का जन्म काबे के भीतर हुआ। पैग़म्बरे इस्लाम पर ईमान लाने वाले वह पहले शख़्स थे।
शियों के दृष्टिकोण से अल्लाह के फ़रमान के मुताबिक़ और पैग़म्बरे इस्लाम के बिल्कुल स्पष्ट एलान के अनुसार वो पैग़म्बर के बाद पहले ख़लीफ़ा हैं। क़ुरआन की कुछ आयतें उन्हें हर प्रकार के गुनाह और बुराइयों से पाक व पाकीज़ा और मासूम साबित करती हैं।
शिया किताबों और कुछ सुन्नी किताबों के अनुसार लगभग 300 आयतें क़ुरआन में ऐसी हैं जो हज़रत अली अलैहिस्सलाम की प्रशंसा में नाज़िल हुईं। वो हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के पति और शियों के बाक़ी 11 इमामों के पिता और दादा हैं।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम 19 रमज़ान 40 हिजरी को मस्जिदे कूफ़ा में ख़वारिज कही जाने वाली चरमपंथी विचारधारा से तअल्लुक़ रखने ववाले एक व्यक्ति के हमले में घायल हुए और 21 रमज़ान को शहीद हो गए।
नहजुल बलाग़ा
नहजुल बलाग़ा हज़रत अली अलैहिस्सलाम के ख़ुतबों, पत्रों और हिकमत से भरी बातों का संग्रह है जिसे चौथी हिजरी क़मरी के आख़िर में महान धर्मगुरू सैयद रज़ी ने एकत्रित किया। यह किताब साहित्यिक महानताओं और अर्थों की गहराई के कारण क़ुरआन का भाई कही जाती है।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम के बहुत मशहूर पत्रों में से एक वह पत्र है जो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने मिस्र में अपने पसंदीदा गवर्नर मालिके अशतर नख़ई को लिखा।
यह एक तरह का अहदनामा है जिसका हर शब्द इल्म और मारेफ़त का ख़ज़ाना है, ख़ास तौर पर न्यायप्रेमी राजनेताओं और उन लोगों के लिए जो किसी भी क्षेत्र में कोई ज़िम्मेदारी संभाल रहे हैं।
हम इस पत्र के कुछ हिस्सों को यहां तीन भागों में पेश कर रहे हैं,
पहला हिस्साः
शासकों को हज़रत अली अलैहिस्सलाम की कुछ नसीहतें:
- इस्लामी शासक आम लोगों से हमदर्दी, प्रेम और कृपा के साथ पेश आए ख़ूंख़ार दरिंदों की तरह न हो कि लोगों खा जाना चाहिए।
- जहां मुमकिन हो लोगों की ग़लतियों को माफ़ और नज़रअंदाज़ करे क्योंकि आम लोगों से ग़लती की संभावना रहती है, शासक को चाहिए कि उन्हें माफ़ कर दे।
- शासक को चाहिए कि लोगों के अंदर से द्वेष और कुठा को दूर करे, लोगों के बारे में अच्छी सोच रखे क्योंकि अच्छी सोच लंबी कठिनाइयों को दूर कर देती है।
- इस्लामी शासक ख़ुद को लोगों की कमियों की तलाश में न रहे और इस इस आदत के लोगों को अपने से दूर रखे क्योंकि लोगों में कमियां होती हैं, शासन की ज़िम्मेदारी होती है कि उन्हें ढांके।
- शासक चुग़लख़ोर इंसान की बात की पुष्टि न करे चाहे वह भलाई ही क्यों न करना चाहता हो।
- इस्लामी शासक अल्लाह से किए गए वादे में तभी कामयाब हो सकता है जब वह अल्लाह से मदद मांगे और ख़ुद को हक़ का सम्मान करने के लए तैयार करे।
- शासक किसी को माफ़ करने के बाद पछताए नहीं और किसी को सज़ा देने के बाद ख़ुश न हो।
- शासक अपने दिन रात का बेहतरीन भाग अल्लाह से बातें करने के लिए रखे और ख़ुलूस की बुलंदी पर पहुंचने के लिए वाजिब कामों और सारी इलाही ज़िम्मेदारियों को बिना किसी कोर कसर के पूरा करे।
- शासक अपन वादों पर क़ायम रहे और उनसे पीछे न हटे।
- शासक अपनी बदगुमानी, कठोरता, रोब और ज़बान व हाथ के हमले को नियंत्रण में रखे और जान बूझकर किसी की हत्या से परहेज़ करे।
दूसरा भागः
दूसरा भाग हज़रत अली अलैहिस्सलाम की सामाजिक नसीहतों के बारे में है जो उन्होंने शासकों को की हैं:
- इस्लामी शासक के निकट सबसे पसंदीदा काम वह हो जो हक़ बात को सबसे स्पष्ट रूप में पहंचाए, न्याय के मामले में सबसे ज़्यादा व्यापक हो और समाज के सबसे ज़्यादा लोगों को संतुष्ट करने वाला हो।
- इस्लामी शासक के निकट सबसे ज़्यादा तरजीह उस व्यक्ति को हासिल हो जो हक़ को सबसे ज़्यादा कड़वे हालात में दूसरों से ज़्यादा स्पष्ट शब्दों में बयान करे।
- समाज के लोगों की बुराइयों और गुनाहों में जो पर्दे में छिपे हैं और इस्लामी हाकिम के इल्म में नहीं हैं उसके बारे में ख़ुद को बेतवज्जो ज़ाहिर करे।
- शासकों का फ़र्ज़ है कि जिस दिन उन्हें लोगों की ज़रूरतों के बारे में पता चले उसी दिन उन्हें पूरा करे। हर दिन का काम उसी दिन अंजाम दे क्योंकि हर दिन का अपना एक मौक़ा होता है।
- शासक ख़ुद को आम लोगों से दूर न रखे क्योंकि समाज के लोगों से शासक के दूर रहने का नतीजा यह है कि वह मामलों और मसलों से बेख़बर हो जाता है।
- शासक का फ़र्ज़ है कि अपने रिश्तेदारों को दूसरों पर तरजीह देने से कड़ाई से परहेज़ करे।
- शासक समाज के लोगों के साथ जो अच्छाइयां कर रहा है उसका एहसान न जताए और जो काम समाज की भलाई वाला हो उसे मद्देनज़र रखे।
तीसरा हिस्सा
शासकों को हज़रत अली अलैहिस्सलाम की कुछ राजनैतिक नसीहतें:
- शासक कंजूस, बुज़दिल, और लालची लोगों से मशिवरा करने से परहेज़ करे क्योंकि, कंजूसी, डर और लालच वह रजहान हैं जो आपस में मिल जाने के बाद अल्लाह के बारे में बदगुमानी को जन्म देते हैं।
- नेक और बुरे लोग शासक के निकट एक समान न हों क्योंकि इसका नतीजा यह होगा कि नेक इंसान को नेक कामों के लिए अपमान झेलना पड़ेगा और बुरे कर्म वाले को बुराई करने का और हौसला मिलेगा।
- कोई भी शासक उन परम्पराओं को न तोड़े जिन पर समाज के ज्ञानी लोगों ने अमल किया है और जिनसे समाज के लोगों के बीच एक तार्किक समन्वय पैदा हुआ है। ऐसा कोई कायदा लागू न करे जो लोगों की अच्छी पराम्पराओं को ख़त्म कर दे।
- अगर लोगों की तरफ़ से अन्याय का आरोप लगाया जा रहा है तो शासक अपने ऊपर से इस तरह के आरोप हटाए। अगर समाज के लोग शासक के बारे में सोचें कि वह ज़ुल्म कर रहा है तो अपनी उसे अमल और रवैए के बारे में सफ़ाई पेश करे जिसकी वजह से लोगों में बदगुमानी पैदा हुई है और लोगों की बदगुमानी दूर करे।
- शासक किसी भी मामले में उसका सही समय आने से पहले जल्दबाज़ी न दिखाए।
- शासक के लिए अगर कोई चीज़ स्पष्ट नहीं है और उसमें भ्रांति है तो भ्रांति दूर होने से पहले तक उसे हरगिज़ स्वीकार न करे।
- उन मामलों में जिनमें लोग एक समान होते हैं ख़ुद को दूसरों से बेहतर न समझे। यानी शासक जीवन के अधिकारी, मर्यादा के अधिकार और आज़ादी आदि के अधिकार में ख़ुद को दूसरो से श्रेष्ट न समझे।
- शासक उन मामलों में जिसकी ज़िम्मेदारी उस पर है और लोगों की निगाहें उस पर लगी हुई हैं हरगिज़ कोई ग़फ़लत न बरते और यह ज़ाहिर न करे कि वह समझ नहीं पा रहा है।
क़ुरआन नहजुल बलाग़ा के आईने में
इस वक्त क़ुरआन करीम ही एक आसमानी किताब है जो इन्सान की दस्तरस में है।नहजुल बलाग़ा में बीस (20)से ज़ियादा ख़ुतबात हैं जिन में क़ुरआने मजीद का तआर्रुफ़ और उस की अहमियत व मौक़ेईयत बयान हुई है बाज़ औक़ात आधे से ज़्यादा खु़त्बे में क़ुरआने करीम की अहमियत, मुसलमानों की ज़िन्दगी में इस की मौक़ेईयत और उस के मुक़ाबिल मुसलमानों के फ़राइज़ बयान हुए हैं। यहां हम सिर्फ़ बाज़ जुमलों को तौज़ी व तशरीह पर इकतेफ़ा करेंगे।
अमीरुल मोमिनीन (अ) ख़ुत्बा 133 में इर्शाद फ़रमाते हैं (व किताबल्लाहे बेना अज़्हरोकुम नातिक़ ला याई लिसानहो)
तर्जुमा
: और अल्लाह की किताब तुम्हारी दस्तरस में है जो क़ुव्वते गोयाई रखती है और उस की ज़बान गुंग नहीं।
क़ुरआन आसमानी किताबों तौरात व इन्जील व ज़बूर के बरखिलाफ़ तुम्हारी दस्तरस में है। यह बात तवज्जोह तलब है उम्मतों ख़ुसुसन यहूद व बनी इसराईल के अवाम के पास न थी बल्कि इस के कुछ नुस्ख़े उलामा ए यहूद के पास थे यानी आम्मतुन नास के लिये तौरात की तरफ़ रुजू करने का इम्कान न था। इन्जील के बारे में तो वज़ईयत इस से ज़्यादा परेशान कुनिन्दा है क्यों कि वह इन्जील जो आज ईसाईयों के पास है यह वह इन्जील नहीं जो हज़रत ईसा (अ) पर नाज़िल हुई थी बल्कि मुख़्तलिफ़ अफ़राद के जमा शुदा मतालिब हैं और चार अनाजील के तौर पर मअरूफ़ हैं। पस गुज़िश्ता उम्मतें आसमानी किताबों तक दस्तरसी न रखती थीं। लेकिन क़ुरआने करीम को ख़ुदा वन्दे मुतआल ने ऐसे नाज़िल फ़रमाया और पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने उसे इन्सानों तक ऐसे पहुंचाया कि आज लोग बड़ी आसानी से उसे सीख और हिफ़्ज़ कर सकते हैं।
इस आसमानी किताब की एक दूसरी ख़ुसूसियत यह है कि ख़ुदा वन्दे मुतआल ने उम्मते मुस्लेमा पर यह अहसान फ़रमाया है कि इस की हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी ख़ुद अपने ज़िम्मे ली है कि यह किताब हर तरह के इन्हेराफ़ या मुक़ाबिला आराई से महफ़ूज़ रहे। ख़ुद आँ हज़रत (स.) ने इस के सीख़ने और इसकी आयात के हिफ़्ज़ करने की मुसलमानों को इस क़द्र ताकीद फ़रमाई कि बहुत सारे मुसलमान आपके ज़माने में ही हाफ़िज़े क़ुरआन थे जो आयत तद्रीजन नाज़िल हुई थीं तो हज़रत (स) मुसलमानों के लिये बयान फ़रमाते थे इस तरह मुसलमान उन को हिफ़्ज़ करते, लिखते, और उन को आगे बयान करते। इस तरिक़े से क़ुरआन पूरी दुनिया में फ़ैलता गया। मौला ए कायनात फ़रमाते हैं : अल्लाह की किताब तुम्हारे दरमियान और तुम्हारे इख़्तियार में है, ज़रूरत है कि हम इस जुम्ले में ज़्यादा ग़ौर करें “नातेक़ुन ला यअई लिसानहू” यह किताब बोलने वाली है और इस की ज़बान कभी गुंग या कुन्द नहीं हुई। यह बोलने से ख़स्तगी का अहसास नहीं करती और न कभी इस में लुक्नत पैदा हुई है इस के बाद आप इर्शाद फ़रमाते हैं “व बयता ला तह्दमो अर्कानहु व अज़्ज़ा ला तह्ज़मो अअवानहु”यह एक ऐसा घर है जिसके सुतून कभी मुन्हदिम होने वाले नहीं हैं और ऐसी इज़्ज़त व सर बलन्दी है जिस के यार व अन्सार कभी शिकस्त नहीं खाते।
शब ए क़द्र की अज़मत
हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व. ने एक रिवायत में शब ए क़द्र की अज़मत को बयान फरमाया हैं।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , इस रिवायत को "बिहारूल अनवार ,,पुस्तक से लिया गया है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:
:قال رسول الله صلی الله علیه وآله وسلم
في أوَّلِ لَيلَةٍ مِن شَهرِ رَمَضانَ تُغَلُّ المَرَدَةُ مِنَ الشَّياطينِ ، و يُغفَرُ في كُلِّ لَيلَةٍ سَبعينَ ألفا ، فَإِذا كانَ في لَيلَةِ القَدرِ غَفَرَ اللّه ُ بِمِثلِ ما غَفَرَ في رَجَبٍ وشَعبانَ وشَهرِ رَمَضانَ إلى ذلِكَ اليَومِ إلاّ رَجُلٌ بَينَهُ وبَينَ أخيهِ شَحناءُ، فَيَقولُ اللّه ُ عز و جل : أنظِروا هؤُلاءِ حَتّى يَصطَلِحوا
हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व. ने फरमाया:
माहें रमज़ान उल मुबारक की पहली रात को शैतान को बांध दिया जाता है और हर रात 70हज़ार लोगों के गुनाह बख्श दिए जाते हैं और जब शबे कद्र आती है तो जितने लोग की माहे रजब,शाबान और रमज़ान में बख्शीश होती थी,अल्लाह तआला इतने ही लोगों को सिर्फ इसी रात बख्श देता है मगर दो मोमिन भाइयों की आपस में दुश्मनी(जो गैरक्षमा का कारण बनता हैं) तो इस सूरत में अल्लाह ताला फरमाता है कि जब तक यह आपस में सुलाह नहीं कर लेते तब तक उनकी मगफिरत को टाल दो,
बिहारूल अनवार,97/36/16
ईश्वरीय आतिथ्य- 22
हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कूफ़े की मस्जिद में रमज़ान का महत्व बताते हुए अपने भाषण में कहा कि हे लोगो! पवित्र रमज़ान का सूरज, रोज़ा रखने वालों पर ईश्वर की कृपा के साथ चमक रहा है।
इस पवित्र महीने के दिन औ-र रात हर समय ईश्वर की अनुकंपाएं, रोज़ेदारों पर उतर रही हैं। ऐसे में जो भी ईश्वर की छोटी सी भी अनुकंपा से लाभान्वित होगा वह प्रलय के दिन ईश्वर से मुलाक़ात के समय सम्मानीय होगा। ईश्वर का कोई भी बंदा उसके निकट सम्मानीय नहीं हो सकता मगर यह कि स्वर्ग उसका स्थान होगा।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम जब ख़ुत्बा देकर मिंबर से नीचे उतरे तो "हमदान" क़बीले से संबन्ध रखने वाले एक व्यक्ति ने आपसे अनुरोध किया कि हे अमीरल मोमेनीनः आप रमज़ान के बारे में हमें और अधिक बताइए। इमाम अली ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) के कुछ कथन सुनाए। हज़रत अली के ख़ुत्बे के अंत में उस व्यक्ति ने कहा कि हे अमीरल मोमेनीन, पैग़म्बरे इस्लाम ने रमज़ान के बारे में आपसे क्या कहा इस बारे में हमें बताइए। इसपर हज़रत अली ने कहा कि पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा था कि सर्वश्रेष्ठ महीने में ईश्वर का पसंदीदा व्यक्ति मारा जाएगा।
हमदान क़बीले के उस व्यक्ति ने पूछा कि वह ईश्वर का पसंदीदा व्यक्ति कौन है? पैगम्बर ने कहा कि सर्वश्रेष्ठ महीना रमज़ान है और पसंदीदा इंसान तुम हो। इमाम अली ने कहा कि हे पैग़म्बरे इस्लाम (स) क्या एसा होगा? रसूले ख़ुदा ने कहा कि हे अली हां एसा ही है। ईश्वर की सौगंध, मेरी उम्मत का एक अति दुष्ट व्यक्ति तुम्हारे सिर पर वार करके तुमको घायल कर देगा। यह सुनकर लोग रोने लगे। इसके बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपना ख़ुत्बा रोक दिया और मिंबर से नीचे उतर आए।
आधा रमज़ान गुज़र चुका था। अब शबेक़द्र नज़दीक आ रही थी। वह रात आ पहुंची थी जिसने पूरी मानवता को दुखी किया था। नमाज़ की हालत में सजदे की स्थिति में इब्ने मुल्जिम नामक दुष्ट ने हज़रत अली के सिर पर तलवार से वार किया जिसके बाद ख़ून में डूबे हुए अली ने कहा था कि ईश्वर की सौगंध अली कामयाब हो गया।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम इतिहास के एसे महान व्यक्ति हैं जिनकी प्रशंसा हर काल के महान लोगों ने की है। उनकी जवानी हर युवा के लिए आदर्श है। उनकी दूरदर्शिता सर्वविदित है। हज़रत अली ने कहा है कि लोगो, तुक दूसरों के दास न बनो क्योंकि ईश्वर ने तुम्हें स्वतंत्र पैदा किया है। ईश्वर के मार्ग में अडिग रहो। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने पूरी दृढ़ता के साथ न्याय की स्थापना का प्रयास किया। वे न्याय के ध्वजवाहक थे जो सरकारों और नेताओं के लिए भी आदर्श हैं। हज़रत अली के संबन्ध में एक जर्मनी कवि जेनिन कहते हैं कि मैं अली से प्रेम करने के लिए इस लिए मजबूर हुआ क्योंकि वे महान व्यक्तित्व के स्वामी थे, उनकी अंतरात्मा पवित्र थी, उनका मन त्याग और बलिदान से भरा हुआ था। वे बहुत वीर थे। अली, वीर होने के साथ ही कृपालु और हमदर्द भी थे।
इमाम अली अलैहिस्सलाम ईश्वरीय शासन का नमूना और पवित्र क़ुरआन का जीता-जागता रूप थे। लोगों के साथ कृपालू और काफ़िरों के विरुद्ध कठोर थे। निर्धनों के निकट रहते और कमज़ोरों का सहारा थे। वे लोग जिन्होंने धन और बल के सहारे स्वयं को चर्चित करवा रखा था वे लोग हज़रत अली की दृष्टि में आम लोगों की दृष्टि में महत्व नहीं रखते थे। जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने सत्ता संभाली तो उनसे कहा कि वे प्रभावशाली लोग जो उच्च पदों पर आसीन हैं उनको पदों से हटाना आपके हित में नहीं है। इसके जवाब में आपने कहा था कि क्या तुमको इस बात की अपेक्षा है कि अली, अत्याचार के माध्यम से सत्ता में बाक़ी रहे।
जब तक दुनिया बाक़ी है उस समय तक अली ऐसा कर ही नहीं सकते। हज़रत अली की दृष्टि में जो चीज़ महत्वपूर्ण थी वह ईमान और तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय था। वे मानवता को महत्व देते थे। उनके निकट निष्ठा और संघर्ष को विशेष महत्व प्राप्त है। उन्होंने पूरी ईमानदारी और न्याय के साथ शासन किया। यह बात पूरे विश्वास के साथ कही जा सकती है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम जिस निष्ठा के साथ ईश्वर की उपासना करते थे उसका मुख्य कारण उनके निकट ईश्वर का महत्व था। एक स्थान पर वे कहते हैं कि हे ईश्वर! मैं तेरी उपासना न तो नरक के भय से करता हूं और न ही स्वर्ग के लालच में करता हूं बल्कि तेरी उपासना इसलिए करता हूं कि तू इसका हक़दार है।
रमज़ान के पवित्र महीने में हज़रत अली अलैहिस्सलाम रात के अधिकांश भाग में उपासना करते थे। रमज़ान के बारे में वे कहते थे कि हे लोगो! रमज़ान के दौरान अधिक से अधिक दुआएं और प्रायश्चित करो। इसका कारण यह है कि दुआ, बलाओं और संकटों को दूर करती है तथा इस्तग़फ़ार या प्रायश्चित, पाप को समाप्त कर देती है। जब पवित्र रमज़ान आधा गुज़र जाता था तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहा करते थे कि लोगों, आधा रमज़ान गुज़र चुका है। अब रमज़ान के कुछ ही दिन बचे हैं। रमज़ान एक ख़ज़ाने की तरह है। अब इस ख़ज़ाने से जितना हो सके अपने लिए लेकर रख लो ताकि आवश्यकता के समय उसका प्रयोग किया जा सके और दूसरों के मोहताज न बनो। हज़रत अली अलैहिस्सलाम शियों को संबोधित करते हुए उनसे सिफ़ारिश करते हैं कि हर रात ईश्वर के द्वार पर जाकर उसे खटखटाओ। उसके नामों से उसकी प्रशंसा करो। उसकी अनुकंपाओं से लाभ उठाओ और उसके मेहमान बने रहो।
पवित्र क़ुरआन ऐसी किताब है जिसकी तिलावत मनुष्य को विशेष शक्ति प्रदान करती है लेकिन रमज़ान के पवित्र महीने में इसकी तिलाव करने से विशेष आनंद प्राप्त होता है। इसीके साथ इस महीने में क़ुरआन पढ़ने का बहुत सवाब भी है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने जहां पवित्र क़ुरआन के पढ़ने पर बहुत बल दिया है वहीं पर कहा है कि इसपर अधिक से अधिक अमल करने का प्रयास करता रहे। अपने संबोधन में वे कहते हैं कि ऐसा न हो कि क़ुरआन पर अमल करने के मामले में दूसरे तुमसे आगे निकल जाएं। एक अन्य स्थान पर वे कहते हैं कि क़ुरआन का विदित रूप नरक से मुक्ति दिलाता है। अगर क़ुरआन के आदेशों पर अमल किया जाए तो ईश्वर उसे माफ़ कर देता है। उसने जो वादा किया है उसे वह पूरा करता है।
निर्धन्ता को दूर करना और वंचितों की सहायता ऐसे काम हैं जिनकी सिफ़ारिश क़ुरआन में की गई है। इसका इतना महत्व है कि ईश्वर क़ुरआन में कहता है मुसलमानों की संपत्ति में निर्धनों और वंचितों का अधिकार है। जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम शहीद हो गए तो कुछ एसे भी अनाथ थे जो भूखे थे। बाद में पता चला कि हज़रत अली उन अनाथों को खाना पहुंचाया करते थे। वे रमज़ान में पाबंदी से लोगों के लिए खाने का प्रबंध करते थे। वे लोगों के लिए इफतारी का प्रबंध करते और उसे उनतक पहुंचाते थे। वे निर्धनों और भूखों का बहुत ध्यान रखते थे।
हज़र अली अलैहिस्सलाम साहस, संघर्ष तथा नेतृत्व का प्रतीक हैं। इमाम अली अलैहिस्सलाम को समाज के अनाथ बच्चे व असहाय लोग एक दयालु पिता के रूप में पाते और उनसे अथाह प्रेम करते थे। वे ईश्वर की गहरी पहचान और विशुद्ध मन के साथ ईश्वर की उपसना करते थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि संसार के लोग दो प्रकार के होते हैं। एक गुट ऐसा है जो अपने आप को भौतिक इच्छाओं के लिए बेच देता है और स्वयं को तबाह कर लेता है। दूसरा गुट वह है जो को ईश्वर के आज्ञापालन द्वारा स्वयं को स्वतंत्र कर लेता है। यही गुट कल्याण प्राप्त करता है।
हज़र अली अलैहिस्सलाम साहस, संघर्ष तथा नेतृत्व का प्रतीक हैं। इमाम अली अलैहिस्सलाम को समाज के अनाथ बच्चे व असहाय लोग एक दयालु पिता के रूप में पाते और उनसे अथाह प्रेम करते थे परन्तु ईश्वर का इन्कार करने वालों से युद्ध और अत्याचारग्रस्तों की सुरक्षा करते हुए रक्षा क्षेत्रों में उनके साहस और वीरता के सामने कोई टिक ही नहीं पाता था। ख़ैबर के युद्ध में जिस समय विभिन्न सेनापति ख़ैबर के क़िले का द्वार खोलने में विफल रहे तो अंत में पैग़म्बरे इस्लाम ने घोषणा की कि कल मैं इस्लामी सेना की पताका एसे व्यक्ति को दूंगा जिससे ईश्वर और उसका पैग़म्बर प्रेम करते हैं। दूसरे दिन लोगों ने यह देखा कि सेना की पताका हज़रत अली अलैहिस्सलाम को दी गयी और उन्होंने ख़ैबर के अजेय माने जाने वाले क़िले पर उन्होंने वियज प्राप्त कर ली।
बंदगी की बहार- 22
21वीं रमज़ान ईमान वालों के सरदार हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत की तारीख़ है और हम आप सबकी सेवा में हार्दिक संवेदना प्रकट करते हैं।
इस रात एक ऐसे व्यक्ति ने दुनिया को विदा कहा जिसकी वास्तविकता को न तो पहले वाले लोग समझ सके हैं और न ही आने वाले उस जैसा व्यक्ति देख सकेंगे। ऐसा महान व्यक्ति जिसका संपूर्ण अस्तित्व हर भलाई की कुंजी था और अगर लोग उसे स्वीकार कर लेते तो उन पर ईश्वर की अनुंकपाओं की वर्षा होने लगती लेकिन वे अनुकंपाओं पर अकृतज्ञ रहे और उन्होंने संसार को प्रलय पर प्राथमिकता दी। इस प्रकार संसार हज़रत अली अलैहिस्सलाम के अस्तित्व और उनके ईमान व ज्ञान की छाया में जीने की अनुकंपा से वंचित हो गया।
"ईश्वर की सौगंध! मार्गदर्शन के स्तंभ ध्वस्त हो गए, ईश्वरीय भय की निशानियां मिट गईं और रचयिता व रचना के बीच जो मज़बूत रस्सी थी वह टूट गई। मुहम्मद मुस्तफ़ा के चचेरे भाई की हत्या कर दी गई, अली शहीद हो गए और सबसे बड़े दुर्भागी ने उन्हें शहीद कर दिया।" यह आवाज़ कूफ़े में गूंजी और इसने दुनिया को एक बड़ी दुर्घटना से अवगत करा दिया। इस आवाज़ ने बताया कि मानवता, अनाथ हो गई और ईश्वर द्वारा लोगों की मुक्ति के लिए तैयार किया गया मार्गदर्शन का सबसे मज़बूत स्तंभ धराशायी हो गया और इसके बाद इस धरती पर मानव इतिहास का हर क्षण अंधकार में डूब जाएगा।
दो दिन से हज़रत अली अलैहिस्सलाम का घायल शरीर बिस्तर पर है और पूरा कूफ़ा व्याकुल है। यह वही कूफ़ा है जिसने उन्हें कई बार दुखी किया था, यहां तक कि संसार के सबसे दयालु व कृपालु व्यक्ति ने अपने हाथ आसमान की ओर उठा कर कहा थाः प्रभुवर! मेरे लिए ऐसे लोग भेज दे जो इनसे बेहतर हों और इनके लिए ऐसे को भेज दे जिसके आने से इन्हें मेरे मूल्य का पता चले। जी हां! वही लोग जिन्होंने अपने अज्ञान व समय की सही पहचान न होने के कारण हज़रत अली अलैहिस्सलाम को बहुत अधिक दुखी किया था, अब चिंताग्रस्त थे कि अब अली के बिना, उनके प्रेम के बिना, उनके साहस के बिना, उनके न्याय के बिना, उनके फ़ौलादी संकल्प के बिना, उनकी दोधारी तलवार के बिना और उनके प्रकाशमयी अस्तित्व के बिना उनके शांत व सुरक्षित जीवन और कमज़ोर ईमान का क्या होगा?
दूसरी ओर हज़रत अली अलैहिस्सलाम के मित्र, सहायक व चाहने वाले, जो हमेशा उनकी सेवा में रहते थे और उनके हर आदेश का हर क़ीमत पर पालन करते थे, व्याकुल थे और आंसू भरी आंखों के साथ उनके घर के बाहर एकत्रित थे। वे ऐसे लोग थे जो ग़दीर की घटना को भूले नहीं थे जब पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने हज़रत अली को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था और कहा था कि जिसका मैं स्वामी हूं, उसके ये अली स्वामी हैं। इसके बाद उन्हों ने सभी से उनके आज्ञापालन का वचन लिया था। इन लोगों को मुस्लिम समाज की चिंता थी और उस महान सभ्यता की चिंता थी जिसकी नींव पैग़म्बरे इस्लाम ने रखी थी और पैग़म्बर के तथाकथित मानने वाले उसके स्तंभों को धराशायी करते जा रहे थे। इन्हें मानव इतिहास की चिंता थी कि अली के बिना उसका क्या होगा?
हज़रत अली अलैहिस्सलाम के घर के बाहर एकत्रित व्याकुल लोगों के बीच कुछ ऐसे लोग भी थे जिन्होंने हज़रत अली के प्रेम व स्नेह का सबसे अधिक स्वाद चखा था और वे थे कूफ़े के अनाथ व दरिद्र बच्चे। उनकी रोती हुई आंखें और रंग उड़े चेहरे, पिछले दो दिनों में हज़रत अली के घर के बाहर एक हृदय विदारक दृश्य पेश कर रहे थे। इनमें से हर एक बच्चा अपने हाथ में दूध का एक प्याला लेकर आया था ताकि अपने आध्यात्मिक पिता के उपचार में मदद कर सके, उन्हें आशा थी कि इस तरह हज़रत अली के घायल शरीर में एक नई जान पड़ जाएगी, लेकिन खेद कि ऐसा न हो सका।
दो दिन से हज़रत अली अलैहिस्सलाम बिस्तर पर निढाल पड़े हुए थे और उनके घर के बाहर एकत्रित होने वाले चिंतित लोगों को उनसे मिलने की अनुमति थी। वे एक एक करके उनके पास जाते और उन्हें सलाम करते थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम, जिनके शरीर में विष का प्रभाव बड़ी तेज़ी से फैल रहा था, उसी कमज़ोरी की हालत में लोगों से कहते थे कि इससे पहले कि तुम मुझे खो दो, मुझसे जो चाहो पूछ लो लेकिन संक्षेप में पूछो। विष के प्रभाव के कारण बेहोश होने से पहले वे हर क्षण लोगों का मार्गदर्शन करते रहते थे और उनसे कहते थे कि वे उनके ज्ञान से लाभ उठाएं।
इन दो दिनों में लोगों से मुलाक़ात के अलावा, जिसके दौरान उनकी बिगड़ती हालत और लोगों की अधिक संख्या के कारण कोई प्रश्न व उत्तर नहीं हो पाता था, उनके कुछ विशेष साथियों को भी उनके जीवन के अंतिम क्षणों में उनसे मिलने का अवसर मिला। उन्हीं में से एक हबीब बिन अम्र थे। वे कहते हैं कि मैं उनके घर में प्रविष्ट हुआ और उन्हें देख कर रोने लगा, कई और लोग रोने लगे। जब घर के अंदर से रोने की आवाज़ बाहर गई तो लोगों के धैर्य का बांध भी टूट गया और वे भी ऊंची आवाज़ से रोने लगे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपनी आंखें खोलीं और कहाः जो कुछ मैं देख रहा हूं, उसे अगर तुम भी देखते तो न रोते। मैंने पूछाः हे ईमान वालों के सरदार! आप क्या देख रहे हैं? उन्होंने कहा कि मैं ईश्वर के फ़रिश्तों को देख रहा हूं, मैं पैग़म्बरों व रसूलों को देख रहा हूं जो पंक्ति बना कर मुझे सलाम कर रहे हैं और स्वागतम कह रहे हैं। मैं पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम को देख रहा हूं जो मेरे पास बैठे हुए हैं और कह रहे हैं कि हे अली! जल्दी आओ, जो संसार तुम्हारी प्रतीक्षा में है, वह उस संसार से कहीं बेहतर है जिसमें तुम इस समय हो।
जब चिकित्सक ने हज़रत अली अलैहिस्सालम के उपचार से अपने असहाय व अक्षम होने की घोषणा कर दी तो उन्होंने अपने बड़े बेटे इमाम हसन अलैहिस्सलाम को अपने क़रीब बुलाया और वसीयत करने लगे। अपनी वसीयत के एक भाग में उन्होंने कहा कि मैं तुम सबको ईश्वर से डरने की सिफ़ारिश करता हूं, दुनिया के पीछे न भागना, चाहे वह तुम्हारे पीछे आती रहे, दुनिया की धन संपत्ति में से जो तुम्हारे हाथ से निकल जाए उस पर दुखी मत होना, सच्ची बात कहना, हक़ का साथ देना, प्रलय के पारितोषिक के लिए काम करना और अत्याचारी के दुश्मन और अत्याचारग्रस्त के सहायक रहना।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपनी वसीयत के एक अन्य भाग में कहा थाः अनाथों पर बहुत अधिक ध्यान देना, पड़ोसियों का बहुत ख़याल रखना, पैग़म्बर ने पड़ोसियों के बारे में इतनी सिफ़ारिश की कि हमें लगने लगा कि शायद पड़ोसी विरासत में भी भागीदार बन जाएंगे। क़ुरआने मजीद पर बहुत ध्यान देना, ऐसा न हो कि उस पर अमल करने के संबंध में दूसरे तुम से आगे बढ़ जाएं। नमाज़ पर भी बहुत अधिक ध्यान देना कि वह तुम्हारे धर्म का आधार है। इसी तरह काबे पर भी बहुत अधिक ध्यान देना, कहीं ऐसा न हो कि हज बंद हो जाए, अगर हज को छोड़ दिया गया तो तुम्हें मोहलत नहीं दी जाएगी और दूसरे तुम्हें अपना शिकार बना लेंगे। ये हज़रत अली अलैहिस्साम की वसीयत के केवल कुछ ही भाग हैं। उनकी वसीयत यद्यपि छोटी थी लेकिन उसने मानवता के घोषणापत्र और मानव समाज की परिपूर्णता के रास्ते का रेखांकन किया है।
आज लगभग 14 सदियों के बाद भी दुनिया उस व्यक्ति के लिए शोकाकुल है जिसके साथ रहने की लालसा संसार के सभी स्वतंत्रताप्रेमियों के दिल में है। ब्रिटेन के प्रख्यात दार्शनिक कारलायल कहते हैं। हम अली (अलैहिस्सलाम) को चाहने और उनसे प्रेम करने के अलावा कुछ नहीं कर सकते क्योंकि वे एक महान हृदय वाले साहसी पुरुष हैं। उनकी आत्मा के स्रोत से भलाई के अलावा और कुछ नहीं निकलता था, उनके हृदय से साहस व शौर्य के शोले निकलते थे, वे शेर से ज़्यादा बहादुर थे लेकिन उनकी बहादुरी दया, कृपा, स्नेह और नर्मदली से जुड़ी हुई थी। वे कूफ़ा में शहीद हुए, उनका अत्यधिक न्याय ही इस अपराध की वजह बना, उन्होंने अपनी मौत से पहले अपने हत्यारे के बारे में कहा थाः अगर में ज़िंदा रहा तो मैं ख़ुद उसके बारे में फ़ैसला करूंगा लेकिन अगर मैं मर गया तो फिर फ़ैसला तुम्हें करना होगा, अगर तुम उससे बदला लेना चाहोगे तो एक वार के बदले में सिर्फ़ एक ही वार करना और अगर तुम उसे क्षमा कर दोगे तो यह ईश्वरीय भय के अधिक निकट है।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत, मानव इतिहास की सबसे पीड़ादायक घटनाओं में से एक है। वे न केवल मुसलमानों के लिए बल्कि सभी सत्य व न्याय प्रेमियों और नैतिक गुणों के खोजियों के लिए एक सम्मानीय आदर्श थे और हैं। यही कारण है कि सभी पवित्र हृदय वाले उनकी शहादत के दिन शोकाकुल हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम नमाज़ की स्थिति में मस्जिद में ज़हर से बुझी हुई तलवार से उन लोगों के हाथों शहीद हुए जो अपने आपको मुसलमान कहते थे। उनके बारे में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने कहा थाः हे अली! ईमान आपके अस्तित्व से गूंधा गया और वह आपके मांस और ख़ून में जुड़ा हुआ है जैसा कि वह मेरे मांस और ख़ून से जुड़ा हुआ है।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद उनके सुपुत्र इमाम हसन अलैहिस्सलाम लोगों के सामने आए और उन्होंने ईश्वर के गुणगान के बाद कहाः आज उस व्यक्ति ने दुनिया को विदा कहा है जिसकी वास्तविकता को न तो पहले वाले लोग समझ सके हैं और न ही आने वाले उस जैसा व्यक्ति देख सकेंगे। वे जब युद्ध नहीं कर रहे होते थे तो जिब्रईल उनके दाहिनी और मीकाईल बाईं ओर रहा करते थे। ईश्वर की सौगंध! वे उसी रात इस संसार से गए जिस रात हज़रत मूसा का निधन हुआ था, हज़रत ईसा को आसमान में ले जाया गया था और क़ुरआने मजीद नाज़िल हुआ था। जान लो कि उन्होंने अपने लिए सात सौ दिरहम के अलावा कोई सोना-चांदी नहीं छोड़ा है और वह भी उनके वेतन का बचा हुआ पैसा है। हे ईमान वालों के सरदार! ईश्वर आपसे प्रसन्न रहे। ईश्वर की सौगंध! आपका पूरा अस्तित्व हर भलाई की कुंजी था और अगर लोग आपका स्वीकार कर लेते तो उन पर ईश्वर की अनुंकपाओं की वर्षा होने लगती लेकिन वे अनुकंपाओं पर अकृतज्ञ रहे
माहे रमज़ान के बाईसवें दिन की दुआ (22)
माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।
اَللَّـهُمَّ افْتَحْ لي فيهِ اَبْوابَ فَضْلِكَ، وَاَنْزِلْ عَلَيَّ فيهِ بَرَكاتِكَ، وَوَفِّقْني فيهِ لِمُوجِباتِ مَرْضاتِكَ، وَاَسْكِنّي فيهِ بُحْبُوحاتِ جَنّاتِكَ، يا مُجيبَ دَعْوَةِ الْمُضْطَرّينَ.
अल्लाह हुम्मफ़-तह ली फ़ीहि अबवाब फ़ज़लिक, व अनज़िल अलैय फ़ीहि बरकातिक, व वफ़्फ़िक़नी फ़ीहि ले मूजिबाति मरज़ातिक, व अस-किन्नी फ़ीहि बुह-बूहाति जन्नातिक, या मुजीबा दावतिल मुज़तर्रीन (अल बलदुल अमीन, पेज 220, इब्राहिम बिन अली)
ख़ुदाया! मुझ पर इस महीने में अपने फ़ज़्ल के दरवाज़े खोल दे, और इस में अपनी बरकतें मुझ पर नाज़िल कर दे, और इस में अपनी ख़ूशनूदी के असबाब फ़राहम करने की तौफ़ीक़ अता कर, और इस के दौरान मुझे अपनी जन्नत के दरमियान बसा दे, ऐ बे बसों की दुआ क़ुबूल करने वाले...
अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम.
जनता ने ईरान में इस्लामी गणतंत्र को क्यों चुना ?
रविवार 12 फ़रवरदीन बराबर 1 अप्रैल था जो "इस्लामिक रिपब्लिक" का दिन था। यह दिन राष्ट्रीय सम्मान को साकार करने और क्रांतिकारी जनता के हाथों देश की नियति निर्धारित करने में महान ईरानी राष्ट्र की इच्छा की एक वास्तविक अभिव्यक्ति का दिन था।
यह वह दिन है जब महान ईरानी राष्ट्र ने अपने तानाशाही विरोधी संघर्षों का नतीजा अपने सामने देखा।
इस लेख में हम इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद ईरान में इस्लामी गणराज्य की स्थापना के बारे में होने वाले जनमत संग्रह पर एक नज़र डालेंगे।
1- अस्थायी सरकार का गठन
17 बहमन सन 1357 हिजरी शम्सी को यानी इमाम खुमैनी के ईरान पहुंचने के पांच दिन बाद ही, इमाम ख़ुमैनी के आदेश पर इंजीनियर बाज़रगान को एक अंतरिम सरकार बनाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी।
इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद अंतरिम सरकार का एक कर्तव्य जनता के वोट द्वारा राजनीतिक व्यवस्था का निर्धारण करने के लिए जनमत संग्रह कराना था। यह एक ऐसी घटना थी जो विश्व के इतिहास में आज भी अभूतपूर्व है।
2- इस्लामिक रिपब्लिक का चयन
आख़िरकार 10 और 11 फ़रवरदीन सन 1358 को इस्लामी गणराज्य नामक राजनीतिक व्यवस्था को स्वीकार करने या अस्वीकार करने के लिए पूरे ईरानभर में एक जनमत संग्रह आयोजित किया गया।
इस्लामी गणराज्य के जनमत संग्रह में जनता की भव्य भागीदारी
इस जनमत संग्रह के नतीजे के अनुसार जिसकी घोषणा 12 फ़रवरदीन सन 1358 हिजरी शम्सी बराबर 1 अप्रैल वर्ष 1979 को की गई थी।
जनमत संग्रह में भाग लेने के योग्य लोगों में 98 प्रतिशत से अधिक लोग, ईरान के इस्लामी गणराज्य की स्थापना पर सहमत थे।
इसी अवसर पर 12 फ़रवरदीन के दिन को ईरानी कैलेंडर में इस्लामी गणतंत्र ईरान का नाम दिया गया।
3- इमाम खुमैनी का संदेश
इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने इस ऐतिहासिक घटना और ईरानी राष्ट्र की अमर गाथा बयान करने वाले दिन के अवसर पर जारी किए गए संदेश में कहा कि 12 फ़रवरदीन की सुबह जो अल्लाह के शासन का पहला दिन है, हमारी सबसे बड़ी धार्मिक और राष्ट्रीय छुट्टियों में है।
हमारे राष्ट्र को इस दिन जश्न मनाना चाहिए और इसे जीवित रखना चाहिए।
यह वह दिन है जब अत्याचारी शासन की 2500 साल पुरानी राजशाही व्यवस्था ढह गई और शैतानी शासन हमेशा के लिए ख़त्म हो गया और उसकी जगह दीन-दुखियों की सरकार ने ले लिया जो ईश्वर की सरकार है।
सर्वशक्तिमान ईश्वर ने हम पर कृपा की और अहंकारी शासन की बिसात अपने शक्तिशाली हाथ से जो मज़लूमों का दाता है, लपेट दी और हमारे महान राष्ट्र को दुनिया के मज़लूम राष्ट्रों का नेता और प्रतिनिधि बनाया और "इस्लामिक रिपब्लिक" की स्थापना करके उन्हें वह विरासत दी जिनके वे हक़दार थे।
4 - इस्लामी गणतंत्र का अर्थ
इस्लामी क्रांति की सफलता के साथ ही इस्लामी क्रांति के नेता इमाम खुमैनी ने ईश्वर और जनता के अधिकारों को एक सरकार में मिलाने का सिद्धांत पेश किया और इसे इस्लामी गणतंत्र प्रणाली के रूप में दुनिया के सामने पेश किया जिसका जनता और बुद्धिजीवियों ने भरपूर स्वागत किया।
"गणतंत्र" शब्द का अर्थ लोगों का जनसमूह होता है। क्रांति के बाद की व्यवस्था के लिए इस तरह के शब्द को शामिल करने से पता चलता है कि यह क्रांति जनता की थी और लोगों के वोट उनके भाग्य निर्धारण को किस तरह प्रभावित करते हैं।
"इस्लामी" शब्द भी इसे अन्य गणतांत्रिक प्रणालियों से अलग करता है और यह प्रणाली ईश्वरीय और क़ुरआनी मूल्यों की सत्ता की ओर इशारा करती है।
इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था में प्रत्येक लोगों के वोट और उनकी राय का सम्मान किया जाता है और मुस्लिम जनता के बीच से उत्पन्न होने वाले शासक, उन इस्लामी आदेशों को लागू करने का प्रयास करते हैं जिनमें समाज की खुशी शामिल होती है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई जिन्हें इमाम खुमैनी के बाद इस्लामी क्रांति के नेता के रूप में नियुक्त किया गया था, इस संबंध में और इस्लामी गणराज्य शब्द की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि इस्लामी गणराज्य का शाब्दिक अर्थ, दो बुनियादों पर आधारित होता है, पूरी जनता अर्थात देश की जनता और जनसंख्या ही देश के प्रशासन और सरकारी संस्थाओं तथा देश के प्रबंधन का निर्धारण करती है जबकि दूसरी बुनियाद इस्लामी है यानी लोगों का ये आंदोलन इस्लामी विचारों और इस्लामी क़ानूनों पर आधारित है।
यह एक स्वाभाविक सी बात है। जिस देश में लगभग सभी बहुसंख्यक मुसलमान हों, यानी मोमिन, ईश्वर पर आस्था रखने वाले और सक्रिय मुसलमान हैं जिन्होंने पूरे इतिहास के दौरान इस्लाम में अपनी गहरी आस्था को साबित भी किया है, ऐसे देश में अगर कोई जन सरकार है, तो स्वभाविक सी बात है कि वह इस्लामी सरकार भी होगी।
5 - दुनिया में प्रभाव
12 फ़रवरदीन सन 1358 हिजरी शम्सी को ईरान इस्लामी गणतंत्र सरकार की घोषणा की वजह से दुनिया के मज़लूम, अत्याचारग्रस्त और कमज़ोर राष्ट्रों के बीच आशा की किरण पैदा हो गयी।
वास्तव में इस्लामी क्रांति ने उन लोगों को एक नए समाज और मज़बूत धर्म के आधार के लिए एक मज़बूत विचार और इच्छाशक्ति प्रदान की जो पश्चिमी मॉडल और साम्यवादी मॉडल से हतोत्साहित और निराश हो चुके थे।
दुनिया के मज़लूम और वंचित लोगों को एहसास हुआ कि एकेश्वरवादी धार्मिक शिक्षाओं और ईरान राष्ट्र की तरह राष्ट्रीय इच्छा का समर्थन करके वे समस्याओं को दूर कर सकते हैं और अपनी मन पसंद और जन सरकार बना सकते हैं जो साम्राज्यवादियों पर मज़लूमों और कमज़ोरों की जीत का वादा है जिस की ओर पवित्र क़ुरआ ने भी इशारा किया है।
ईरान की थ्री मैन नेश्नल बास्केटबॉल टीम ने एशिया कप में मचाई धूम
ईरान की मेन्स थ्री मैन नेश्नल बास्केटबॉल टीम एशियाई कप में उपविजेता बन गयी।
ईरान की मेन्स थ्री मैन नेश्नल बास्केटबॉल टीम, जो पहली बार एशियाई कप के फाइनल तक पहुंचने में कामयाब रही, ऑस्ट्रेलिया से हारने के बाद इस प्रतियोगिता की उपविजेता बनी।
एशिया कप 2024 सिंगापुर के फाइनल में पहुंचने के दौरान ईरान की तीन सदस्यीय राष्ट्रीय बास्केटबॉल टीम ने चीन ताइपे, हांगकांग, चीन, सिंगापुर, जापान और न्यूजीलैंड की टीमों को हराया था।
अल-शफा अस्पताल पूरी तरह नष्ट, हर तरफ लाशें
गाजा में अल-शफा अस्पताल की घेराबंदी के दौरान कब्जा करने वाले ज़ायोनी सैनिकों द्वारा कम से कम तीन सौ फ़िलिस्तीनी शहीद हो गए।
फ़िलिस्तीनी सूत्रों ने कहा है कि पिछले दो सप्ताह की घेराबंदी के दौरान ज़ायोनी सेना के आक्रामक हमलों और ज़ायोनी सेना की वापसी के परिणामस्वरूप गाजा शहर में अल-शफ़ा अस्पताल पूरी तरह से नष्ट हो गया है। इस अस्पताल के आसपास। वहीं, दर्जनों फिलिस्तीनियों के शव सड़कों पर और अस्पताल परिसर में और उसके आसपास बिखरे हुए हैं।
ज़ायोनी मीडिया सूत्रों ने यह भी स्वीकार किया है कि ज़ायोनी सेना ने पिछले दो सप्ताह से अल-शफा अस्पताल की घेराबंदी के दौरान 200 फ़िलिस्तीनियों को शहीद कर दिया है और 900 फ़िलिस्तीनियों को गिरफ्तार कर लिया है। इस बीच, ज़ायोनी सेना ने आज सोमवार सुबह गाजा में कई फ़िलिस्तीनियों को शहीद कर दिया है।
उधर, ज़ायोनी सेना ने घोषणा की है कि दक्षिणी ग़ज़ा में फ़िलिस्तीनी मुजाहिदीन के साथ लड़ाई में उसका एक और सैनिक मारा गया है।
ज़ायोनी सूत्रों ने स्वीकार किया है कि पिछले साल 7 अक्टूबर को जब अल-अक्सा तूफान शुरू हुआ था तब से 600 ज़ायोनी सैनिक मारे गए हैं - इन सूत्रों के अनुसार, गाजा पर ज़मीनी हमले के बाद मुजाहिदीन के साथ लड़ाई में 246 इज़रायली सैनिक मारे गए हैं-
दूसरी ओर, ज़ायोनी कैदियों के परिजन ज़ायोनी संसद के सामने एकत्र हुए और ज़ायोनी प्रधान मंत्री नेतन्याहू को बर्खास्त करने और कैदियों की अदला-बदली के लिए हमास और ज़ायोनी सरकार के बीच एक समझौते पर पहुंचने की आवश्यकता पर बल दिया।
ज़ायोनी प्रधान मंत्री नेतन्याहू के विपक्ष के नेता यायर लापिड रविवार रात ज़ायोनी कैदियों के परिवारों के बीच पहुँचे और कहा कि जल्दी चुनाव कराने से ज़ायोनी सरकार की स्थिति पर कोई असर नहीं पड़ेगा, जबकि यह सरकार कहीं अधिक है फिलहाल हार गया। खुदरा बना हुआ है। इससे पहले, ज़ायोनी प्रधान मंत्री नेतन्याहू ने शीघ्र चुनाव के लिए विपक्ष के अनुरोधों की ओर इशारा किया और कहा कि चुनाव बातचीत प्रक्रिया को पंगु बना देंगे।
नेतन्याहू ने दावा किया है कि सैन्य दबाव और बातचीत के जरिए इजरायली कैदियों को वापस लाने की कोशिश की जा रही है. उन्होंने यह दावा ऐसी स्थिति में किया है कि नेतन्याहू पिछले छह महीनों से ज़ायोनी आक्रामकता जारी रखते हुए अपने किसी भी लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाए हैं।