रमज़ान की पहली तारीख़

Rate this item
(0 votes)

 

वर्ष 1438 हिजरी के रमज़ान मुबारक की पहली तारीख़ है, हम ईश्वर का बहुत बहुत शुक्र अदा करते हैं कि उसने हमें इस महत्वपूर्ण और मुबारक महीने में इबादतों का एक और अवसर प्रदान किया।

रमज़ान की अपनी विशेषताएं हैं, इसमें हमारी आत्मा, विवेक और चरित्र अध्यात्म का एक सुन्दर अनुभव करते हैं। रमज़ान का मुबारक महीना, ईश्वर की बंदगी के अभ्यास का बेहतरीन महीना है। रमज़ान के रूप में ईश्वर ने हमें अवसर प्रदान किया है कि हम उसके कार्यक्रम के मुताबिक़ कुछ प्राकृतिक एवं हलाल चीज़ों से भी एक निर्धारित समय के लिए परहेज़ करें और अपने ईश्वर के समक्ष नतमस्तक हो जायें।

हम आपको और विश्व के समस्त मुसलमानों को इस मुबारक महीने की बधाई प्रस्तुत करते हैं। इस महीने में हम ईश्वर के क्षमा करने की अनुकंपाओं का लाभ उठाते हैं और अपने वजूद को बुराईयों से पाक करते हैं, ताकि हमारी आत्मा ईश्वर के मार्गदर्शन के प्रकाश से प्रकाशमय हो जाए।

ईश्वर की कृपा से हम भी इन तीस दिनों में ईश्वर का महीना नाम से एक कार्यक्रम लेकर आपकी सेवा में उपस्थित रहेंगे। इस आशा के साथ कि आपके आध्यात्मिक अनुभव में हम भी कुछ भुमिका अदा कर सकें। हमने इस कार्यक्रम की पहली कड़ी को पैग़म्बरे इस्लाम (स) के रमज़ान के स्वागत से विशेष कथन से सजाया है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) सिफ़ारिश करते हैं, हे लोगो, ईश्वरीय महीना, बरकत, रहमत और क्षमा के साथ आन पहुंचा है। ऐसा महीना जो ईश्वर के निकट सर्वश्रेष्ठ महीना है और उसके दिन, दिनों में सर्वश्रेष्ठ हैं, उसकी रातें, रातों में सर्वश्रेष्ठ हैं और घंटे, घंटों में सर्वश्रेष्ठ हैं।

यह ऐसा महीना है, जिसमें तुम्हें ईश्वर का अतिथि बनाने के लिए आमंत्रित किया गया है और तुम्हें ईश्वरीय बंदों में गिना गया है। इस महीने में तुम्हरी सांसें, ईश्वर का नाम जपती हैं, तुम्हारी नींद इबादत होती है, तुम्हारे ज्ञान और दुआओं को स्वीकार कर लिया गया है। इस महीने में अपनी भूख और प्यास से प्रलय के दिन की भूख और प्यास को याद करो। ग़रीबों और फ़क़ीरों को दान दो, अपने बड़ों का सम्मान करो और छोटों पर कृपा करो और अपने रिश्तेदारों के साथ भलाई करो। अपनी ज़बान पर निंयत्रण रखो, हराम चीज़ों से अपनी निगाहों को बचाओं, हराम बातें मत सुनों, अनाथों से प्यार करो, ताकि तुम्हारे अनाथों पर भी लोग मोहब्बत करें। ईश्वर से अपने  पापों के लिए क्षमा मांगो, नमाज़ के समय दुआ के लिए अपने हाथों को ऊपर उठाओ, इसलिए कि यह समय सर्वश्रेष्ठ समय होता है, जब ईश्वर अपने बंदों पर रहमत की नज़र डालता है। इसलिए सच्ची नियत से और पाक दिल से अपने पालनहार से चाहो कि वह तुम्हें रोज़ा रखने और क़ुरान की तिलावत का अवसर प्रदान करे। इसलिए कि वह व्यक्ति अभाग्य है जो इस महीने में ईश्वरीय अनुकंपाओं से वंचित रहे। हे लोगो, जो कोई भी इस महीने में अपने आचरण में सुधार करेगा, प्रलय के दिन उसे इसका लाभ मिलेगा, जिन दिन पुले सिरात पर क़दम लड़खड़ायेंगे। और जो कोई भी इस महीने में बुराईयों पर निंयत्रण करेगा, ईश्वर प्रलय के दिन उससे क्रोधित नहीं होगा।

इस महीने में अच्छे संस्कारों में से क़ुरान की तिलावत करना और उसकी आयतों में विचार करना है। हमारे इस कार्यक्रम का एक भाग क़ुरान की आयतों की संक्षेप में व्याख्या करना है। सूरए बक़रा की 183वीं आयत... हे ईमान लाने वालो, तुम पर रोज़ा रखना वाजिब है, जिस तरह से तुमसे पहले वाले लोगों पर वाजिब था, ताकि अच्छा इंसान बन सको।

रमज़ान का महीना, क़ुरान के नाज़िल होने का महीना है। यह ईश्वरीय किताब उन लोगों को आदेश देती है कि जो ईमान लाए हैं कि इस महीने में रोज़ा रखें। जो आयतें रमज़ान के महीने में रोज़ा रखने पर संकेत करती हैं, क़ुरान के सूरए बक़रा में मौजूद हैं, इनमें पहली यही आयत है, जिसकी ओर हमने अभी इशारा किया है।

रोज़ा मुसलमानों की वाजिब इबादतों में से एक महत्वपूर्ण इबादत है, जो आत्मा के शुद्धिकरण में काफ़ी प्रभावी है। लेकिन दिलचस्प बिंदु यह है कि इस ईश्वरीय आदेश के पालन के लिए भूमि प्रशस्त करने के लिए आयत की शुरूआत इस प्रकार से होती है कि हे ईमान लाने वालो, ताकि इस बिंदु की ओर ध्यान आकर्षित करे कि तुम लोग तो ईमान ला चुके हो, इसलिए ईश्वर जो भी आदेश देता है, उसका पालन करो, यद्यपि उसके पालन में कुछ कठिनाईयां हों और भौतिक स्वाद से वंचित रहो और भूख व प्यास सहन करनी पड़े।

इस संदर्भ में इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) फ़रमाते हैं, हे ईमान लाने वालो के संबोधन में इतना अधिक स्वाद है कि इससे इबादत की कठिनाई और समस्या दूर हो गई है। वास्तव में पहली नज़र में रोज़े का आदेश कुछ कठिन लगता है, लेकिन इस संबोधन ने इस बेचैनी को समाप्त कर दिया है। इस वास्तविकता को बयान करने के बाद कि रोज़ा सिर्फ़ मुसलमानों से विशेष नहीं है, बल्कि इससे पहले दूसरे समुदायों में भी प्रचलित रहा है, इस बात का उल्लेख किया गया है कि यह समस्त धर्म के अनुयाईयों का कर्त्वय रहा है, इसलिए यह बात मुसलमानों को प्रेरणा देती है, इसीलिए क़ुरान कहता है कि यह इबादत केवल तुमसे ही विशेष नहीं है, बल्कि कोई भी समुदाय इससे अछूता नहीं रहा है। उसके तुरंत बाद रोज़े का कारण बयान किया गया है। वह यह है कि रोज़े से इंसान में तक़वा अर्थात सदाचार आता है। रोज़ेदार ईश्वर के लिए भौतिक स्वादों से बचता है और स्वयं पर निंयत्रण करने का अभ्यास करता है। वह एक महीने तक यह अभ्यास करता है, इसलिए उसमें पापों से बचने की ताक़त प्रबल होती है और धीरे धीरे उसका इरादा मज़बूत हो जाता है और फिर वह आसानी से पापों से बच सकता है, जैसे कि दूसरों का हराम माल हड़पना और दूसरों के अधिकारों का हनन करना। इसका अर्थ वही है, जो क़ुरान ने बयान किया है कि शायद तुम सदाचारी हो जाओ।

ख़्वाजा अब्दुल्लाह अंसारी इस आयत के संदर्भ में दिलचस्प बात कहते हैं कि अगर आपने शरीर से रोज़ा रखा है, तो वास्तविक सदाचारी दिल से रोज़ा रखते हैं, आप सुबह से शाम तक रोज़ा रखते हैं, लेकिन यह लोग उम्र की शुरूआत से अंत तक रोज़ा रखते हैं, आपका रोज़ा एक दिन का होता है, लेकिन उनका रोज़ा उम्र भर का होता है।

इस कार्यक्रम में हम रमज़ान में आपके लिए सही पोषण और आपके स्वास्थ्य की चर्चा भी करेंगे। महिलाएं पत्नी या मां होने की हैसियत से परिवार के पोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। आज हम रमज़ान के महीने में पोषण के बारे में एक ईरानी महिला के विचार सुनते हैं। रमज़ान के महीने का पहला दिन है और मैं इफ़तार के लिए दस्तरख़्वान लगा रही हूं। यह ऐसे क्षण होते हैं कि जो रमज़ान के अध्यात्म को दोगुना कर देते हैं और यह दुआ व इबादत के क़बूल होने का समय है। आज मैंने इस दस्तरख़्वान को काफ़ी मोहब्बत से लगाया है। मेरे पति ने भी ठीक समय पर घर पहुंचने का काफ़ी प्रयास किया है, इसलिए मुझे इसकी ख़ुशी है। हमारी दादी दस्तरख़्वान के निकट बैठी हुई इबादत में व्यस्त हैं और कमज़ोरी के कारण रोज़ा न रखने की वजह से काफ़ी चिंतित हैं।

मेरी बेटी ज़हरा ने पहला रोज़ा रखा है। वह अपनी दादी के पास बैठकर दस्तरख़्वान की ओर देख रही है और अज़ान की आवाज़ का इंतेज़ार कर रही है। दुआ की आवाज़ ने हमारे घर के आध्यात्मिक माहौल में अधिक वृद्धि कर दी है। आज मैंने चाय, रोटी, पनीर और सब्ज़ी के अलावा सूप बनाया है। रमज़ान में हमारे भोजन का कार्यक्रम कुछ बदल जाता है। डाक्टरों की सिफ़ारिश के मुताबिक़, रोज़ेदारों को इफ़्तार में गर्म पेयजलों का अधिक इस्तेमाल करना चाहिए, जैसे कि दूध और थोड़ी सी रोटी, अनाज, पनीर, अख़रोट और सूप। अधिकांश लोग इस महीने में कुछ बुरी आदतों से दूर हो जाते हैं जैसे कि धूम्रपान।

आज डाक्टर मजीद हाजी फ़र्जी ने रमज़ान में सब्ज़ी और फलों के इस्तेमाल पर काफ़ी बल दिया है और कहा है कि गर्मी के मौसम में रमज़ान आने के कारण, रोज़दारों को अधिक धैर्य से काम लेना होता है, उन्हें चाहिए कि इफ़्तार और सहरी में उचित भोजन करें, ताकि बिना किसी समस्या के इस मुबारक महीने से लाभ उठा सकें और कमज़ोरी, लो ब्लड प्रेशर, प्यास और भूख जैसी समस्याओं से ग्रस्त न हों। रमज़ान के महीने में अगर हम इन नियमों का पालन नहीं करेंगे और अधिक कैलोरी, शुगर और फ़ैट प्राप्त करेंगे तो मोटापे में वृद्धि हो सकती है। अब जबकि रमज़ान में अधिक भूख और प्यास से हमारा सामना है, सब्ज़ी के इस्तेमाल से हमारे शरीर में सही परिवर्तन उत्पन्न होता है। रमज़ान में फल और पकी हुई सब्ज़ियों के इस्तेमाल से हमारे शरीर में काफ़ी मात्रा में पानी स्टोर हो जाता है, सब्ज़ियों और फलों के इस्तेमाल से गैस भी कम बनती है।

मैं परिजनों के स्वास्थ्य को देखते हुए इफ़्तार और रात के खाने में फ़ासला रखती हूं, लेकिन गर्मियों में रातों के छोटा होने के कारण इफ़्तार और खाने के बीच फ़ासला कम होता है, इसीलिए मेरा प्रयास होता है कि खाना बहुत सादा हो और उसमें सब्ज़ियां, प्रोटीन और अनाज शामिल हो।                   

 

 

Read 2277 times