माहे रमज़ान के अठ्ठाईसवें दिन की दुआ (28)

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माहे रमज़ान के अठ्ठाईसवें दिन की दुआ (28)

माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।

أللّهُمَّ وَفِّرْ حَظِّي فيہ مِنَ النَّوافِلِ وَأكْرِمني فيہ بِإحضارِ المَسائِلِ وَقَرِّبْ فيہ وَسيلَتي إليكَ مِنْ بَيْنِ الوَسائِلِ يا مَن لا يَشْغَلُهُ إلحاحُ المُلِحِّينَ..

अल्लाह हुम्मा वफ़्फ़िर हज़्ज़ी फ़ीहि मिनन नवाफ़िल, व अकरिमनी फ़ीहि बे एहज़ारिल मसाइल, व क़र्रिब फ़ीहि वसीलती इलैका मिन बैनिल वसाइल, या मन ला यश-ग़लुहु इलहाहुल मुलिह्हीन (अल बलदुल अमीन, पेज 220, इब्राहिम बिन अली)

ख़ुदाया! इस महीने के नवाफ़िल और मुस्तहबात इबादतों में मेरे लिए ज़ियादा से ज़ियादा हिस्सा क़रार दे, और मुझे दीनी मसाएल की समझ देकर इज़्ज़त अता कर, और सारे वसीलों में से मेरे वसीले को ख़ुद से क़रीब फ़रमा, ऐ वह जिस से इसरार करने वालों का इसरार दूसरों से ग़ाफ़िल नहीं करता...

अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम.

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