رضوی

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तेहरान में स्थित इमाम ख़ुमैनी हुसैनिए में सुप्रीम लीडर की उपस्थिति में इमाम हुसैन (अ) के अरबईन के अवसर एक मजलिस का आयोजन किया गया।

इस मजसिल में धर्मगुरु असलानी ने मजलिस पढ़ी और नौहाख़ानों ने इमाम हुसैन की शहादत में नौहा ख़ानी की। मजलिस के अंत में सुप्रीम लीडर की इमामत में ज़ोहर और अस्र की नमाज़ अदा की गई।

दो नमाज़ों के बीच, सुप्रीम लीडर ने ज़ियारते आशूरा का ज़िक्र करते हुए कहा कि हुसैनी और यज़ीदी मोर्चे में जंग लगातार जारी है और यह कभी ख़त्म नहीं होगी। उन्होंने कहाः

ईरान की इस्लामी क्रांति ने जवानों को अवसर प्रदान किया है और उनके लिए एक विशाल मैदान उपलब्ध करवाया है, क्रांति के उद्देश्य की प्राप्ति के मद्देनज़र, उन्हें अपनी ज़िम्मेदारी को सही से समझते हुए और योजना के अनुसार इस अवसर से लाभ उठाया चाहिए, ताकि प्रगति, समृद्धि और कल्याण प्राप्त हो सके।

 

सुप्रीम लीडर का कहना था कि इमाम हुसैन ने ज़ुल्म और अत्याचार से मुक़ाबले के लिए आंदोलन किया था। उन्होंने कहाः

ज़ुल्म और क्रूरता से मुक़ाबले के लिए हुसैनी मोर्चे की शैली, परिस्थितियों के अनुसार, भिन्न होती है। तलवार और भाले के दौर में यह मुक़ाबला अलग प्रकार का होता है और परमाणु और एआई के ज़माने में एक दूसरी तरह से, प्रचार के ज़माने में शायरी, क़सीदा और हदीस की एक ख़ास शैली थी, लेकिन इंटरनेट और क्वैंटम के दौर में शैली को बदलना पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि शिक्षा ग्रहण करने के दौरान, यह ज़िम्मेदारी अलग तरह की होती है और पद ग्रहण करने के दौरान दूसरी तरह से। उन्होंने कहाः

यज़ीदी मोर्चे से मुक़ाबले का मतलब, हमेशा बंदूक़ उठाना नहीं है, बल्कि सही सोचना चाहिए, सही बात करना चाहिए, सही पहचान करनी चाहिए और ज़िम्मदारी को पहचान कर लक्ष्य पर सटीक निशाना लगाना चाहिए।

सुप्रीम लीडर ने आगे कहाः जवानों को वर्तमान दौर की क़द्र करनी चाहिए, क्योंकि इस दौर में इस्लामी क्रांति की बरकत से उनके लिए विशाल मैदान उपलब्थ हुआ है। योजनाबद्ध, अध्ययन और सही सोच के साथ सही अवसर पर क़दम उठाना चाहिए और सही सोच के लिए क़ुरान का ज्ञान होना ज़रूरी है।

सप्रीम लीडर ने आगे कहाः सही समय पर पहल के लिए सही समय कभी यूनिवर्सिटी का माहौल होता है, तो कभी समाज या राजनीति, और कभी-कभी कर्बला और फ़िलिस्तीन के रास्ते में यह पहल एक उच्च उद्देश्य को हासिल करने के लिए की जाती है।

आख़िर में उन्होंने कहाः युवाओं द्वारा इस ऐतिहासिक अवसर के उपयोग का मतलब, समृद्धि और कल्याण है और अगर इस अवसर का उपयोग नहीं किया जाए और ज़िम्मेदारी को पूरा नहीं किया जाता है, तो उसका परिणाम नुक़सान और घाटा उठाना होगा।

इंडोनेशियाई लोगों ने फ़िलिस्तीनियों के समर्थन में इस्राईली प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल बंद कर दिया है, जिससे इस्राईली और ज़ायोनी कंपनियों को करोड़ो डॉलर का नुक़सान उठाना पड़ रहा है।

ग़ौरतलब है कि सिर्फ़ पिछले 4 महीनों के दौरान, अमरीकी फ़ास्ट फ़ूड चेन रोस्टोरैंट केएफ़सी को 21.5 मिलियन डॉलर का नुक़सान भुगतना पड़ा है। इंडोनेशियाई नागरिकों के बायकॉट के कारण, 2023 के पहले चार महीनों की तुलना में केएफ़सी की आय 2024 की इसी अवधि में 60 फ़ीसद कम हो गई है।

इंडोनेशिया एक ऐसा देश है, जहां मुसलमानों की आबादी सबसे ज़्यादा है। ग़ज़ा में इस्राईल के युद्ध अपराधों और अमानवीय हमलों के विरोध में यहां लोगों ने जिन अन्य कंपनियों के प्रोडक्ट्स का बायकॉट किया है, उनमें मैकडॉनल्ड्स और प्यूमा भी शामिल हैं।

इंडोनेशिया उन 5 मुख्य देशों में से एक है, जहां ज़ायोनी शासन से संबंधित कंपनियों के उत्पादों का बायकॉट किया जा रहा है।

फ्रांस, सऊदी अरब, इंग्लैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित दुनिया के 15 देशों के 15,000 लोगों के बीच किए गए सर्वेक्षण से पता चलता है कि कम से कम तीन में से एक व्यक्ति ने इस्राईल का समर्थन करने वाली या उससे संबंधित कंपनियों के ब्रांडों और उत्पादों का बहिष्कार किया है।

इस सर्वे के मुताबिक़, जिन 5 देशों में लोग इस्राईली उत्पादों का बहिष्कार कर रहे हैं, उनमें तीन मुस्लिम देश सऊदी अरब, यूएई और इंडोनेशिया शामिल हैं।

सऊदी अरब में आम नागरिक इस्राईली उत्पादों का बहिष्कार कर रहे हैं, लेकिन आले सऊद शासन ज़ायोनी शासन के साथ अपने संबंधों को सामान्य बनाने की कोशिशें कर रहा है। इस देश के 71 फ़सीद नागरिकों का कहना है कि उन्होंने इस्राईली उत्पादों का इस्तेमाल बंद कर दिया है।

दिसंबर में वाशिंगटन इंस्टीट्यूट द्वारा किए गए एक सर्वे में 96 प्रतिशत सउदी नागरिकों का मानना था कि ग़ज़ा में भयानक युद्ध अपराधों के कारण, अरब देशों को ज़ायोनी शासन से संबंध तोड़ लेने चाहिए। यूएई में 57 फ़ीसद लोगों ने कहा है कि उन्होंने इस्राईली उत्पादों को ब्लैकलिस्ट कर दिया है।

विश्व स्तर पर औसतन 37 फ़ीसदी लोगों ने ज़ायोनी शासन से संबंधित उत्पादों का बहिष्कार किया है। अरब और मुस्लिम देशों में यह आंकड़ा, वैश्विक औसत से अधिक है।

मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीक़ा में बायकॉट के कारण मार्च में स्टारबक्स को अपने 2,000 कर्मचारियों को नौकरी से निकालने के लिए मजबूर होना पड़ा था।

मैकडॉनल्ड्स का कहना है कि मलेशिया और इंडोनेशिया सहित मुस्लिम देशों के साथ-साथ मध्य पूर्व उसके उत्पादों की बिक्री में भारी गिरावट आई है।

इस्राईल और अमरीका से संबंधित उत्पादों के बहिष्कार के कारण, इन देशों में घरेलू उत्पादों की बिक्री में वृद्धि हुई है।

ओमान में बड़ी संख्या में लोगों ने ज़ायोनी शासन से संबंधित कंपनियों की सॉफ़्ट ड्रिंक्स ख़रीदना बंद दिया है।

पाकिस्तान में भी बड़े पैमाने पर इस्राईली उत्पादों का बहिष्कार किया जा रहा है और यहां घरेलू कंपनियों ने वैकल्पिक उत्पाद बनाना शुरू कर दिए हैं।

 

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चेहलुम के मौक़े पर स्टुडेंट अंजुमनों ने इमाम ख़ुमैनी इमाम बारगाह में अज़ादारी की। इस प्रोग्राम के आग़ाज़ में ज़ियारते अरबईन पढ़ी गई। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की अज़ादारी के प्रोग्राम में रहबरे इंक़ेलाब आयतुल्लाह ख़ामेनेई भी शरीक हुए।

इस्राईलियों का मानना है कि निरंतर युद्ध में अपने बचाव के लिए हर हथकंडा अपनाया जा सकता है, चाहे वह अमानवीय ही क्यों न हो।

इस्राईली जेलों में फ़िलिस्तीनी क़ैदियों के बलात्कार की भयानक घटना के नैतिक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं का विश्लेषण करके आप ज़ायोनियों के वैचारिक आयामों और शैक्षिक प्रणाली की हक़ीक़त को भी समझ सकते हैं। इसलिए इस अपराध की समीक्षा का विशेष महत्व है। पार्सटुडे इस नोट में इस मुद्दे पर संक्षिप्त नज़र डालने की कोशिश की गई है।

इस्राईली जेलों में फ़िलिस्तीनी क़ैदियों के यौन शोषण और सामूहिक बलात्कार की जारी होने वाली वीडियो फ़ुटेज पर दुनिया भर में कड़ी प्रतिक्रिया जताई गई। हालांकि इस घटना ने सभी को झकझोर कर रख दिया, लेकिन हैरत की बात यह है कि इस्राईली समाज का एक वर्ग इसके बचाव में आगे आया।

फ़िलिस्तीनी क़ैदियों के यौन शोषण और सामूहिक बलात्कार की वीडियो वायरल होने के बाद, जब दस इस्राईली सैनिकों को गिरफ़्तार किया गया, तो कट्टर दक्षिणपंथी ज़ायोनी उनके बचाव में निकल पड़े और उन्होंने उग्र प्रदर्शन भी किया।

ज़ायोनी सुरक्षा मंत्री इतामर बेन गोयर ने इस संदर्भ में कहाः सुरक्षा के लिए सामूहिक बलात्कार सही है।

इस्राईल के वित्त मंत्री स्मोत्रिच ने भी इस घटना की निंदा करने के बजाए, इस वीडियो के प्रकाशन होने पर ग़ुस्सा उतारा और वीडियो प्रकाशित करने वाले की शनाख़्त के लिए जांच की मांग की।

इस सोच को इस्राईली समाज के हाशिए के कुछ दक्षिणपंथियों तक सीमित नहीं किया जा सकता है, बल्कि इससे इस्राईली समाज में नैतिक व्यवस्था का पता चलता है। ज़ायोनी शासन ने दशकों से समाज में व्यवस्थित तरीक़े से फ़िलिस्तीनियों को जानवरों की तरह पेश किया है। यह सब इसलिए किया गया ताकि फ़िलिस्तीनियों को इंसानी दर्जे से गिराकर, उनके साथ हर तरह का सुलूक किया जा सके।

दूसरे शब्दों में फ़िलिस्तीनियों को इंसानों की तरह दिखने वाले जानवर बनाकर पेश किया गया है। बिल्कुल उसी तरह जैसा कि उपनिवेशवाद विरोधी दार्शनिक फ्रांसिस फ़ैनन ने इस उपनिवेशवादी प्रक्रिया का वर्णन किया है।

इस तरह, इस्राईली समाज में फ़िलिस्तीनियों को नैतिक रूप से कमज़ोर और व्यर्थ जीव के तौर पर देखा जाता है। परिणामस्वरूप उनके खिलाफ़ हिंसा और आक्रामकता को न केवल अनैतिक नहीं माना जाता है, बल्कि कुछ मामलों में नैतिक कार्यवाही के रूप में उचित ठहराया जाता है। इन अत्याचारों को अंजाम देने वाले इस्राईली सैनिक, अपनी नैतिक श्रेष्ठता और दूसरे पक्ष की अमानवीयता में विश्वास के कारण, अपराध बोध या किसी तरह का कोई दोष महसूस नहीं करते हैं। इसके अलावा, उन्हें समाज के एक बड़े वर्गों का समर्थन भी प्राप्त है।

दूसरी ओर, इस्राईली मीडिया युद्ध क्षेत्रों से फ़िलिस्तीनी नागरिकों को निकालने का आदेश जैसे हिटलरी फ़रमानों को इस्राईली सेना की नैतिकता के प्रमाण के रूप में पेश करती है। हालांकि वास्तविकता यह है कि इन नागरिकों को एक छोटे से क्षेत्र में सीमित करके वहां उन्हें निशाना बनाया जाता है।

इसके अलावा, नस्लवादी दृष्टिकोण से यह विश्वास कि इस्राईल को मध्यपूर्व की बर्बरता के ख़िलाफ़ पश्चिमी सभ्यता के प्रतिनिधि के रूप में लड़ना चाहिए, फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ ज़ायोनियों की बर्बरता के लिए एक और औचित्य प्रदान करता है।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि यह ज़ायोनी शासन दुनिया पर एक बदनुमा धब्बा है और यह मानवता के लिए नैतिक पतन के अलावा कुछ नहीं है। जो समाज सामूहिक बलात्कार जैसे भयानक कृत्यों को उचित ठहरा सकता है, उसके पतन की कोई सीमा नहीं हो सकती। नस्लीय श्रेष्ठता में दृढ़ विश्वास से लैस नैतिक पतन से अधिक ख़तरनाक कुछ भी नहीं है।

कत्ले हुसैन असल में मर्गे यज़ीद है,

इस्लाम ज़िन्दा होता है हर कर्बला के बाद...

 

इस्लामी कैलेंडर यानि हिजरी सन् का पहला महीना मुहर्रम है. हिजरी सन् का आगाज़ इसी महीने से होता है। इस माह को इस्लाम के चार पवित्र महीनों में शुमार किया जाता है. अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने इस माह को अल्लाह का महीना कहा है. साथ ही इस माह में रोज़ा रखने की खास अहमियत बयान की गई है. 10 मुहर्रम को यौमे आशूरा कहा जाता है. इस दिन अल्लाह के नबी हज़रत नूह (अ.) की किश्ती को किनारा मिला था.

 

 

कर्बला के इतिहास मुताबिक़ सन 60 हिजरी को यजीद इस्लाम धर्म का खलीफा बन बैठा. सन् 61 हिजरी से उसके जनता पर उसके ज़ुल्म बढ़ने लगे. उसने हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के नवासे हज़रत इमाम हुसैन से अपने कुशासन के लिए समर्थन मांगा और जब हज़रत इमाम हुसैन ने इससे इनकार कर दिया तो उसने इमाम हुसैन को क़त्ल करने का फ़रमान जारी कर दिया. इमाम हुसैन मदीना से सपरिवार कुफा के लिए निकल पडे़, जिनमें उनके खानदान के 123 सदस्य यानी 72 मर्द-औरतें और 51 बच्चे शामिल थे. यज़ीद सेना (40,000 ) ने उन्हें कर्बला के मैदान में ही रोक लिया. सेनापति ने उन्हें यज़ीद की बात मानने के लिए उन पर दबाव बनाया, लेकिन उन्होंने अत्याचारी यज़ीद का समर्थन करने से साफ़ इनकार कर दिया. हज़रत इमाम हुसैन सत्य और अहिंसा के पक्षधर थे. हज़रत इमाम हुसैन ने इस्लाम धर्म के उसूल, न्याय, धर्म, सत्य, अहिंसा, सदाचार और ईश्वर के प्रति अटूट आस्था को अपने जीवन का आदर्श माना था और वे उन्हीं आदर्शों के मुताबिक़ अपनी ज़िन्दगी गुज़ार थे. यज़ीद ने हज़रत इमाम हुसैन और उनके खानदान के लोगों को तीन दिनों तक भूखा- प्यास रखने के बाद अपनी फौज से शहीद करा दिया. इमाम हुसैन और कर्बला के शहीदों की तादाद 72 थी.

 

 

पूरी दुनिया में कर्बला के इन्हीं शहीदों की याद में मुहर्रम मनाया जाता है. मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है। 10 मुहर्रम को यौमे आशूरा कहा जाता है। उसके बाद से यह दिन कर्बला के शहीदों की यादगार मनाने का दिन बन गया और इसी शोक पर्व को भारत में मुहर्रम के नाम से जाना जाता है. इस दिन भारत के अधिकतर शहरों में ताज़िये का जुलूस निकलता है. ताजिया हज़रत इमाम हुसैन के कर्बला (इराक की राजधानी बगदाद से 100 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में एक छोटा-सा कस्बा) स्थित रौज़े जैसा होता है. लोग अपनी अपनी आस्था और हैसियत के हिसाब से ताज़िये बनाते हैं और उसे कर्बला नामक स्थान पर ले जाते हैं. जुलूस में शिया मुसलमान काले कपडे़ पहनते हैं, नंगे पैर चलते हैं और अपने सीने पर हाथ मारते हैं, जिसे मातम कहा जाता है. मातम के साथ वे हाय हुसैन की सदा लगाते हैं और साथ ही कुछ नौहा (शोक गीत) भी पढ़ते हैं. पहले ताज़िये के साथ अलम भी होता है, जिसे हज़रत इमाम हुसैन के छोटे भाई हज़रत अब्बास की याद में निकाला जाता है.

 

 

मुहर्रम का महीना शुरू होते ही मजलिसों (शोक सभाओं) का सिलसिला शुरू हो जाता है. इमामबाड़ा सजाया जाता है. मुहर्रम के दिन जगह- जगह पानी के प्याऊ और शरबत की शबील लगाई जाती है. भारत में ताज़िये के जुलूस में शिया मुसलमानों के अलावा दूसरे मज़हबों के लोग भी शामिल होते हैं.

 

 

विभिन्न हदीसों, यानी हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के कथन व अमल (कर्म) से मुहर्रम की पवित्रता और इसकी अहमियत का पता चलता है. ऐसे ही हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने एक बार मुहर्रम का ज़िक्र करते हुए इसे अल्लाह का महीना कहा है. इसे जिन चार पवित्र महीनों में से एक माना जाता है.

 

 

एक हदीस के मुताबिक़ अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने फ़रमाया कि रमज़ान के अलावा सबसे उत्तम रोज़े (व्रत) वे हैं, जो अल्लाह के महीने यानी मुहर्रम में रखे जाते हैं. यह फ़रमाते वक़्त नबी-ए-करीम हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने एक बात और जोड़ी कि जिस तरह अनिवार्य नमाज़ों के बाद सबसे अहम नमाज़ तहज्जुद की है, उसी तरह रमज़ान के रोज़ों के बाद सबसे उत्तम रोज़े मुहर्रम के हैं.

 

 

मुहर्रम की 9 तारीख को जाने वाली इबादत का भी बहुत सवाब बताया गया है. सहाबी इब्ने अब्बास के मुताबिक़ हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने फ़रमाया कि जिसने मुहर्रम की 9 तारीख का रोज़ा रखा, उसके दो साल के गुनाह माफ़ हो जाते हैं और मुहर्रम के एक रोज़े का सवाब 30 रोज़ों के बराबर मिलता है.

मुहर्रम हमें सच्चाई, नेकी और ईमानदारी के रास्ते पर चलने की प्रेरणा देता है.

इस आयत का निष्कर्ष है कि अल्लाह की दया के दरवाजे हमेशा खुले हैं और जो लोग ईमानदारी से अल्लाह की ओर रुख करते हैं, अल्लाह उनके पापों को माफ कर देता है और उनके बुरे कर्मों को दूर कर देता है। यह आयत विश्वासियों को अल्लाह के निमंत्रण को स्वीकार करने और उसकी क्षमा के लिए प्रार्थना करने के लिए प्रोत्साहित करती है ताकि वे धर्मी लोगों के साथ समाप्त हो सकें।

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम

رَبَّنَاۤ اِنَّنَا سَمِعْنَا مُنَادِيًا یُّنَادِیْ لِلْاِیْمَانِ اَنْ اٰمِنُوْا بِرَبِّكُمْ فَاٰمَنَّاۚ رَبَّنَا فَاغْفِرْ لَنَا ذُنُوْبَنَا وَ كَفِّرْ عَنَّا سَیِّاٰتِنَا وَ تَوَفَّنَا مَعَ الْاَبْرَارِ  रब्बना इन्नना समेअना मनुदेयन लिल ईमाने अन आमेनू बेरब्बेकुम फ़अमन्ना रब्बाना फ़ग़फ़िर लना ज़ोनूबना व कफ़्फ़िर अन्ना सय्येआतेना व तवफ़्फ़ना मआल अबरारे (आले-इमरान, 193)

अनुवाद: हे प्रभु, हमने एक पुकारने वाले की आवाज़ सुनी जो विश्वास करने के लिए कह रहा था, "अपने भगवान पर विश्वास करो, इसलिए हम विश्वास करते हैं।" भगवान! अब हमारे पापों को क्षमा कर, हमारे बुरे कामों को हम से दूर कर, और हमें धर्मियों के साथ मरने दे।

विषय:

इस आयत का विषय विश्वासियों का अल्लाह की ओर मुड़ना, पश्चाताप और क्षमा के लिए प्रार्थना है।

पृष्ठभूमि:

यह आयत सूरह अल-इमरान में उस बिंदु पर प्रकट हुई थी जहां अल्लाह विश्वासियों के गुणों और उनकी प्रार्थनाओं का उल्लेख करता है। पिछली आयतों में, अल्लाह ने स्वर्ग का वादा किया और फिर उन लोगों का उल्लेख किया जो अल्लाह की ओर मुड़ते हैं और अपने उद्धार के लिए प्रार्थना करते हैं। इस आयत में, विश्वासी अल्लाह से उनकी प्रार्थना में अल्लाह के पैगंबर के निमंत्रण को स्वीकार करने और उनके पापों को माफ करने के लिए कह रहे हैं।

तफसीर:

कविता "रब्बाना" से शुरू होती है, जिसके साथ विश्वासी अल्लाह को बुलाते हैं और विनम्र तरीके से अपनी प्रार्थना करते हैं। वे कबूल करते हैं कि उन्होंने ईश्वर के पैगंबर की पुकार सुनी और उस पर विश्वास किया। फिर वे अल्लाह से अपने पापों की क्षमा और बुरे कर्मों को दूर करने की प्रार्थना करते हैं, ताकि उनका अंत नेक लोगों में हो।

यह आयत उन लोगों के लिए एक सबक है जो अल्लाह की ओर मुड़ते हैं और उसकी दया चाहते हैं। यह कविता विश्वास, पश्चाताप और क्षमा के महत्व पर प्रकाश डालती है।

परिणाम:

इस आयत का निष्कर्ष यह है कि अल्लाह की रहमत के दरवाजे हमेशा खुले हैं और जो लोग ईमानदारी से अल्लाह की ओर रुख करते हैं, अल्लाह उनके पापों को माफ कर देता है और उनके बुरे कर्मों को दूर कर देता है। यह आयत विश्वासियों को अल्लाह के निमंत्रण को स्वीकार करने और उसकी क्षमा के लिए प्रार्थना करने के लिए प्रोत्साहित करती है ताकि वे नेक लोगों के साथ समाप्त हो जाएं।

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तफ़सीर राहनुमा, सूर ए आले-इमरान

हिज़्बुल्लाह ने अपने सीनियर कमांडर शहीद फ़ुवाद शुक्र की शहादत का इंतक़ाम लेने के लिए इस्राईली सैन्य ठिकानों पर ड्रोन और मिसाइल बरसाए हैं।

रविवार को एक बयान में हिज़्बुल्लाह ने कहाः सीनियर कमांडर शहीद फ़ुवाद शुक्र की शहादत का बदला लेने के लिए की गई कार्यवाही का पहला चरण सफलता से पूरा कर लिया गया है। इस चरण में इस्राईल के सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया गया है।

बयान में कहा गया हैः

शहीदों के सरदार और बलिदान के प्रतीक इमाम हुसैन (अ) के चेहलुम के अवसर पर दक्षिण बेरूत में महान कमांडर फ़ुवाद शुक्र को शहीद करने के अपराध की सज़ा देने के लिए ज़ायोनी शासन के ख़िलाफ़ प्रारम्भिक कार्यवाही की गई है। इस कार्यवाही में प्रतिरोधी लड़ाकों ने ड्रोन से इस्राईल के काफ़ी भीतर तक हमला किया और इस्राईली सेना की एक महत्वपूर्ण ठिकाने को निशाना बनाया, जिसके बारे में विस्तृत जानकारी बाद में सार्वजनिक की जाएगी। साथ ही इस्लामी प्रतिरोधी लड़ाकों ने उत्तरी अवैध क़ब्ज़े वाले इलाक़ों में कई सैन्य बैरिकों और आयरन डोम पर बड़ी संख्या में मिसाइल दाग़े हैं।

हिज़्बुल्लाह ने अपने बयान में यह भी स्पष्ट कर दिया है कि यह कार्यवाही लम्बी चल सकती है और इस्लामी प्रतिरोध इसके लिए पूरी तरह से तैयार है।

हिज़्बुल्लाह का यह भी कहना था कि इस्राईली सेना की हर हरकत पर नज़र है, अगर आम नागरिकों को नुक़सान पहुंचाया गया, तो उसे इसकी कड़ी से कड़ी सज़ा दी जाएगी।

इस्राईल के 11 सैन्य ठिकानों पर 320 मिसाइलों से हमला

हिज्बुल्लाह का कहना है कि मेरून सैन्य छावनी समेत इस्राईली सेना के 11 अड्डों और वायु रक्षा प्रणालियों के प्लेफ़ार्मों को 320 मिसाइलों से निशाना बनाया गया है।

हिज़्बुल्लाह का सफल ऑप्रेशन

हिज़्बुल्लाह ने इस्राईल के ख़िलाफ़ अपने ऑप्रेशन को कामयाब बताया है। इस्लामी प्रतिरोध ने कहा है कि सभी ड्रोन निर्धारित समय और मार्गों से अपने लक्ष्यों पर जाकर लगे। अलमयादीन टीवी चैनल के साथ बातचीत में हिज़्बुल्लाह के अधिकारी ने कहाः शहीद फ़ुवाद शुक्र की हत्या का इंतक़ाम सफलतापूर्वक लिया गया है।

बेन गुरियन एयरपोर्ट बंद

हिज़्बुल्लाह की जवाबी कार्यवाही की वजह से ज़ायोनी शासन ने कम से कम अगले 48 घंटों के लिए क़ब्जे वाले इलाक़ों में आपातकाल की स्थिति घोषित कर दी है। इसी के साथ बेन गुरियन हवाई अड्डा भी बंद कर दिया गया है।

इस्राईली कैबिनेट में मतभेद

हिज़्बुल्लाह के ऑप्रेशन के बाद, ज़ायोनी मीडिया ने ज़ायोनी नेताओं के बीच मतभेद बढ़ने की सूचना दी देते हुए बताया है कि नेतनयाहू ने अपने मंत्रियों को मीडिया से बात करने के लिए रोक दिया है। रिपोर्टों में उल्लेख किया गया है कि कैबिनेट और लिकुड पार्टी में असहमति बढ़ गई है। नेतनयाहू कैबिनेट में इस बात को लेकर मतभेद बढ़ गया है कि लेबनान के ख़िलाफ़ युद्ध का एलान किया जाए या नहीं।

ज़ायोनी सेना के एक पूर्व जनरल का कहना है कि इस्राईली सेना के वरिष्ठ कमांडरों ने चीफ़ ऑफ स्टाफ़ पर अपना भरोसा खो दिया है, जिन्हें इतिहास के कूड़ेदान में फेंक दिया जाना चाहिए।

तेल अवीव में 240 बंकरों का उद्घाटन

हिज़्बुल्लाह के हमले के बाद ज़ायोनी अख़बार हारेत्ज़ ने तेल-अवीव के मेयर के हवाले से कहा कि ज़ायोनियों को आश्रय देने के लिए 240 बंकर तैयार किए गए हैं।

इस बीच, ज़ायोनी शासन के प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतनयाहू ने दावा किया है कि इस्राईली सेना ने उत्तरी इलाक़ों की ओर लॉन्च किए गए सैकड़ों रॉकेटों को नष्ट कर दिया है।

हालांकि ज़ायोनी शासन की मीडिया ने हिज़्बुल्लाह के रॉकेट हमलों का मुक़ाबला करने में इस शासन की सेना के प्रदर्शन की आलोचना की है।

इमाम हुसैन (अ) के चेहलुम के आते ही इमाम हुसैन (अ) के चाहने वालों और शियों के बीच एक अलग की प्रकार का जोश भर जाता है और उनके दिल हुसैन (अ) की मोहब्बत में और भी तीव्रता से धड़कने लगते हैं। आख़िर क्या कारण हैं कि इमाम हुसैन (अ) के चेहलुम के लिये उनके चाहने वाले बल्कि अगर शब्द बदल कर कह दिया जाए कि सारी दुनिया इतनी बेक़रार और बेचैन क्यों रहती है? यह दिली खिंचाव और अंदरूनी मोहब्बत धार्मिक हस्तियों के एक सामान्य से कथन से कही अधिक है कि जिसमें उन्होंने इस दिन कुछ मुस्तहेब और वाजिब आमाल के बारे में बताया है।

लेकिन चेहलुम के दिन यानी बीस सफ़र को इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत का अपना अलग ही स्थान है, प्रश्न यह उठता है कि इमाम हुसैन (अ) के लिये जो विशेष ज़ियारतें दुआओं और रिवायतों की पुस्तकों में आई हैं उनमें से चेहलुम के दिन की ज़ियारत को विशेष स्थान दिया गया है? इसी प्रकार के और भी बहुत से प्रश्न है जो चेहलुम के बारे में दिमाग़ में आते रहते हैं जैसे यह कि आख़िर क्यों धार्मिक हस्तियों ने अरबईन को इतना आधिक महत्व दिया है? आशूर की क्रांति में चेहलुम का क्या महत्व और रोल है? आदि।

 

ईश्वर और इमाम हुसैन (अ)

السلام عليك يا ثارالله وابن ثاره (2)

इमाम हुसैन (अ) का ईश्वर से संबंध और उससे लगाव इतना अधिक था कि सैय्यदुश शोहदा का रक्त बहाया जाना ऐसा ही था जैसे धरती पर ईश्वर का ख़ून बहाया गया हो, जिसका बदला ईश्वर के विशेष वलियों के इंतेक़ाम के बिना संभव नहीं होगा। जैसा कि ऐनुल्लाह और यदुल्लाह की उपाधि पाने वाले अमीरुल मोमिनी इमाम हुसैन (अ) के लिये क़तीलुल्लाह के शब्द का प्रयोग करते हैं जो इस बात को दिखाता है कि आपका ईश्वर से कितना अधिक संबंध और लगाव था।

क़ुरआन और इमाम हुसैन (अ)

हज़रत इमाम सादिक़ (अ) फ़रमाते हैं: हर वाजिब और मुस्तहेब नमाज़ में सूर -ए- फ़ज्र पढ़ो क्योंकि यह इमाम हुसैन (अ) का सूरा है। (1)

अरफ़ा और इमाम हुसैन (अ)

अरफ़ा के दिन इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत की फ़ज़ीलत मुतवातिर और बहुत अधिक संख्या में है जैसा कि यह रिवायत जिसमें इमाम सादिक़ (अ) फ़रमाते हैं:

فَمِنْ ذَلِكَ مَا رَوَيْنَاهُ بِإِسْنَادِنَا إِلَى أَبِي جَعْفَرِ بْنِ بَابَوَيْهِ بِإِسْنَادِهِ فِي كِتَابِ ثَوَابِ الْأَعْمَالِ إِلَى أَبِي عَبْدِ اللَّهِ (ع). فِي ثَوَابِ مَنْ زَارَ الْحُسَيْنَ (ع) فَقَالَ مَنْ أَتَاهُ فِي يَوْمِ عَرَفَةَ عَارِفاً بِحَقِّهِ كُتِبَ لَهُ أَلْفُ حَجَّةٍ وَ أَلْفُ عُمْرَةٍ مَقْبُولَةٍ وَ أَلْفُ غَزْوَةٍ مَعَ نَبِيٍّ مُرْسَلٍ أَوْ إِمَامٍ عَادِلٍ . (3)

इमाम हुसैन (अ) की  ज़ियारत की फ़ज़ीलत के बारे में फ़रमायाः जो भी अरफ़ा के दिन इस हालत में कि इमाम हुसैन (अ) के हक़ को पहचानता हो उनकी ज़ियारत के लिये जाए उसके लिये 1000 हज और 1000 क़ुबूल उमरे और 1000 बार पैग़म्बर के साथ यान आदिल इमाम के साथ जंग करने का सवाब लिखा जाएगा।

और एक दूसरी रिवायत में आया हैः

وَ مَنْ أَتَاهُ فِي يَوْمِ عَرَفَةَ عَارِفاً بِحَقِّهِ كَتَبَ اللَّهُ لَهُ أَلْفَيْ حَجَّةٍ وَ أَلْفَيْ عُمْرَةٍ مَقْبُولَةٍ [مُتَقَبَّلَاتٍ ] وَ أَلْفَ غَزْوَةٍ مَعَ نَبِيٍّ مُرْسَلٍ أَوْ إِمَامٍ عَادِلٍ قَالَ فَقُلْتُ وَ كَيْفَ لِي بِمِثْلِ الْمَوْقِفِ قَالَ فَنَظَرَ إِلَيَّ شِبْهَ الْمُغْضَبِ ثُمَّ قَالَ يَا فُلَانُ إِنَّ الْمُؤْمِنَ إِذَا أَتَى قَبْرَ الْحُسَيْنِ ع يَوْمَ عَرَفَةَ وَ اغْتَسَلَ بِالْفُرَاتِ ثُمَّ تَوَجَّهَ إِلَيْهِ كَتَبَ اللَّهُ لَهُ بِكُلِّ خُطْوَةٍ حَجَّةً بِمَنَاسِكِهَا وَ لَا أَعْلَمُهُ إِلَّا قَالَ وَ عُمْرَةً (4)

जो भी अरफ़ा के दिन इस हालत में कि वह इमाम हुसैन (अ) के हक़ को पहचानता हो उनकी ज़ियारत को जाए, ईश्वर उसको 1000 हज 1000 क़ुबूल उमरे और 1000 बार पैग़म्बर या आदिल इमाम के साथ जंग करने का सवाब लिखता है।

रावी कहता है मैंने इमाम से कहाः क्या किसी दूसरे स्थान पर भी अरफ़ात के मोक़फ़ के जैसा सवाब है? उन्होंने क्रोध भरी दृष्टि से मुझे देखा और मेरा नाम ले कर संबोधित करते हुए फ़रमायाः जब भी मोमिन अरफ़ा के दिन इमाम हुसैन (अ) की क़ब्र की ज़ियारत के लिये आए और फ़ुरात के पानी से ग़ुस्ल करे और फिर उनकी क़ब्र की तरफ़ चेहरा करके चले, ईश्वर हर क़दम के बदले एक पूर्ण जह का सवाब उसके लिये लिखता है।

एक दूसरी रिवायत में इमाम सादिक़ (अ) ने फ़रमायाः

أَنَّ اللَّهَ تَبَارَكَ وَ تَعَالَى يَتَجَلَّى لِزُوَّارِ قَبْرِ الْحُسَيْنِ ع قَبْلَ أَهْلِ عَرَفَاتٍ وَ يَقْضِي حَوَائِجَهُمْ وَ يَغْفِرُ ذُنُوبَهُمْ وَ يُسْعِفُهُمْ [يُشَفِّعُهُمْ ] فِي مَسَائِلِهِمْ ثُمَّ يَأْتِي أَهْلَ عَرَفَةَ فَيَفْعَلُ بِهِمْ ذَلِكَ (5)

ईश्वर अरफ़ात वालों से पहले इमाम हुसैन (अ) के श्रद्धालुओं पर अपना जलवा दिखाया और उनकी हाजतों को पूर्ण किया और पहले उनके गुनाहों को क्षमा कर ता है और उनके चाहने के अनुसार शिफ़ाअत करता है, उसके बाद अरफ़ात वालों की तरफ़ देखता है और यहीं अनुकम्पा उन पर करता है।

एक दूसरी रिवायत में इमाम सादिक़ (अ) ने फ़रमायाः

إِذَا كَانَ يَوْمُ عَرَفَةَ نَظَرَ اللَّهُ تَعَالَى إِلَى زُوَّارِ قَبْرِ الْحُسَيْنِ بْنِ عَلِيٍّ ع فَقَالَ ارْجِعُوا مَغْفُوراً لَكُمْ مَا مَضَى وَ لَا يُكْتَبُ عَلَى أَحَدٍ ذَنْبٌ سَبْعِينَ يَوْماً مِنْ يَوْمِ يَنْصَرِفُ (6)

जब अरफ़ा का दिन आता है, ईश्वर हुसैन इब्ने अली की क़ब्र के श्रद्धालुओं पर (अनुकम्पा भरी) दृष्टि डालता है औऱ उनको संबोधित करके फ़रमाता हैः पलट आओं, जब कि तुम्हारे पिछले पाप क्षणा कर दिये गये हैं और जिस दिस से श्रद्धालु पलटता है उसके बाद से 70 दिन तक उसके कोई पाप नहीं लिखा जाता है।

इमाम सादिक़ (अ) से एक दूसरी रिवायत में आया हैः

مَنْ زَارَ الْحُسَيْنَ بْنَ عَلِيٍّ ع يَوْمَ عَرَفَةَ كَتَبَ اللَّهُ عَزَّ وَ جَلَّ لَهُ أَلْفَ أَلْفِ حَجَّةٍ مَعَ الْقَائِمِ وَ أَلْفَ أَلْفِ عُمْرَةٍ مَعَ رَسُولِ اللَّهِ ص وَ عِتْقَ أَلْفِ أَلْفِ نَسَمَةٍ وَ حُمْلَانَ أَلْفِ أَلْفِ فَرَسٍ فِي سَبِيلِ اللَّهِ وَ سَمَّاهُ اللَّهُ عَبْدِيَ الصِّدِّيقُ آمَنَ بِوَعْدِي (7)

जो भी अरफ़ा के दिन हुसैन इब्ने अली की ज़ियारत को जाए, ईश्वर इमाम क़ाएम के साथ एक लाख हज और पैग़म्बर के साथ एक लाख उमरे  और एक लाख दासों को स्वतंत्र करने और (जिहादियों की सवारी के लिये) एक लाख घोड़ों को ईश्वर की राह में सदक़ा देने का सवाब उसके लिये लिखता है और उसको इस प्रकार से याद करता हैः मेरा बहुत सच्चा बंदा मेरे वादे पर ईमान लाया।

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(1)    तफ़्सीरे नमूना जिल्द 26, पेज 439

(2)    ज़ियारते वारेसा

(3)    सवाबुल आमाल, पेज 115

(4)    मन ला यहज़ोरोहुल फ़क़ीह, जिल्द 2, पेज 58, कामिलुज़्ज़ियारात 169

(5)    सवाबुल आमाल 116, कामेलुज़्ज़ियारात पेज 170

(6)    मिसबाहुल मुजतहिद, पेज 716, कामिलुज़्ज़ियारात पेज 171

(7)    तहज़ीबुल अहकाम, जिल्द 6 पेज 49, कामिलुज़्ज़ियारात पेज 172

 

 

आप का पूरा नाम अम्र इब्ने अब्दुल्लाह इब्ने कैब इब्ने शरजील इब्ने उमर इब्ने हाशिद इब्ने जशम इब्ने हैरदन इब्ने औफ बिन हमदान साअएदी अल-सैदावी था और कुन्नियत अबू समामा था।

आप का पूरा नाम अम्र इब्ने अब्दुल्लाह इब्ने कैब इब्ने शरजील इब्ने उमर इब्ने हाशिद इब्ने जशम इब्ने हैरदन इब्ने औफ बिन हमदान साअएदी अल-सैदावी था और कुन्नियत अबू समामा था।

आप ताबई थे। आप का शुमार हज़रत अली अलै० के असहाब में था। आप ने हज़रत अली के साथ तमाम जंगो में शिरकत की थी । आप बड़े शहसवार और शियों में बड़ी अजमतों, शौकत के मालिक थे। अमीरुल मोमिनीन के बाद इमाम हुसैन की खिदमत में रहे।

हजरत मुस्लिम इब्ने अक़ील जब कूफे तशरीफ़ लाये तो आपने उनकी पूरी इमदाद की। उनके लिए असलहे खरीदे और दारुलअमारापर हमले में बनी तमीम, हमदान की कयादत की। हजरते मुस्लिम की शहादत के बाद आप चंद रोज़ रु-पोश हो गए फिर इमाम हुसैन की खिदमत में हाज़िर हो गए।

कर्बला के बाद इब्ने सअद ल० ने कासीर इब्ने अब्दुल्लाह ने शअबी के जरिये से इमाम हुसैन अलै० के पास एक पैगाम भेजा कासिद चाहता था की हथियार लगाये इमाम हुसैन से मिले मगर अबू समामा ने उस को कामयाब न होने दिया और वह बगैर पैगाम पहुंचाये वापस चला गया।

नमाज़े ज़ौहर के लिए आप ने ऐन हंगामा-ए-कार्ज़ार में इमाम हुसैन अलै० से दरखास्त की कि नमाज़े जमाअत होनी चाहिए। चुनांचे इमामे मज़लूम ने नमाज़ पढ़ाई फिर जंग के मौके पर आपने कमाले दिलेरी से शमशीर जनी की।बिल-आखिर आप के चचा ज़ाद भाई कैस ल० इब्ने अब्दुल्लाह अल-सआएदी ने आप को शहीद कर दिया।

हुर्र बिन यज़ीद बिन नाजिया बिन क़अनब बिन अत्ताब बिन हारिस बिन उमर बिन हम्माम बिन बनू रियाह बिन यरबूअ बिन हंज़ला, तमीम नामक क़बीले की एक शाख़ा से संबंधित हैं (1) इसीलिये उनको रियाही, यरबूई, हंज़ली और तमीमी कहा जाता है (2) हुर्र का ख़ानदान जाहेलीयत और इस्लाम दोनों युगों में बहुत सम्मानित रहा है (3)

हुर्र आशूरा से पहले

हुर्र कूफ़ा के एक प्रसिद्ध योद्धा थे (4)

वह इब्ने ज़ियाद की सेना के एक विश्वस्त कमांडर और एक हज़ार सिपाहियों से सेनापति थे और आप सैन्य अनुशासन और आदेशों का पूर्णरूप से पालन करने वालों में से थे (5) हुर्र को सियासत से कोई दिलचस्पी नहीं थी इसीलिये किसी भी ऐतिहासिक दस्तावेज़ में 60 हिजरी के तनावपूर्ण माहौल में भी हुर्र के किसी भी राजनीतिक क़दम उठाए जाने के बारे में कुछ नहीं लिखा है, लेकिन बलअमी ने अपनी संदिग्ध रिवायत में आपको उन शियो में से लिखा है जिन्होंने अपने अक़ीदे को छिपा रखा था। (6)

कूफ़े की सेना का सेनापति होना

 

उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद को जब इमाम हुसैन (अ) के कूफ़ा की तरफ़ आने की सूचना मिली तो उसने हुर्र को उनके क़बीले के बड़े लोगों के साथ बुलाया और एक हज़ार की सेना का सेनापति बना कर इमाम हुसैन (अ) से मुक़ाबले के लिये भेजा

आवाज़ जो हुर्र ने सुनी

हुर्र से रिवायत की गई है कि जब मैं इब्ने ज़ियाद के महल से बाहर निकला और हुसैन (अ) की तरफ़ चला तो मैंने अपने पीछे से तीन बार आवाज़ सुनी जो कह रही थीः

“ए हुर्र तुमको स्वर्ग की शुभसूचना मुबारक हो” वह कहते हैं कि मैंने अपने पीछे देखा तो किसी को न पाया, अपने आप से कहा “ईश्वर की सौगंध यह बशारत नहीं है, यह कैसे बशारत हो सकती है जब कि मैं हुसैन (अ) से लड़ने जा रहा हूँ”

यह बात हुर्र के दिमाग़ में रह गई और जब आप हुसैनी सेना में पहुँचे तो आपने उनसे यह बात कही इमाम हुसैन (अ) ने फ़रमायाः

तुम वास्तव में नेकी और सौभाग्य के रास्ते पर आ गए हो। (7,8)

इमाम हुसैन से आमना सामना

ज़ीहुस्म पर इमाम हुसैन (अ) और हुर्र की सेना का आमना सामना हुआ (9) ऐतिहासिक स्रोत यह कहते हैं कि हुर्र को इमाम हुसैन (अ) से युद्ध करने के लिये नहीं बल्कि केवल हुसैन (अ) को इब्ने ज़ियाद तक लाने के लिये भेजा गया था और यही कारण था कि वह अपनी सेना के साथ इमाम हुसैन (अ) के ठहरने के स्थान पर खड़ा हो गया (10)

अबू मख़निफ़ ने हुर्र की सेना की इमाम हुसैन (अ) से मुलाक़ात के बारे में दो असदी लोगो की ज़बानी जो कि जो इमाम के साथ इस यात्रा में थे इस प्रकार बयान करते हैं

जब हुसैनी काफ़िल अपने स्थान से चला तो दिन में दूरे से शत्रु सेना का अग्रदल दिखाई दिया, इमाम ने अपने साथियों से फ़रमायाः

“क्या इस क्षेत्र में कोई पनाहगाह है जिसमें हम पनाह ले सकें और उसको अपने पीछें रखें और इन लोगों से एक तरफ़ से मुक़ाबला करें” कहा हां बाईं तरफ़ एक जगह है जिसका नाम ज़ू हुस्म है।

इमाम ज़ु हुस्म की तरफ़ चल पड़े, शत्रु सेना भी उसी तरफ़ चली जा रही थी लेकिन इमाम अपने साथियों के साथ पहले उस स्थान पर पहुँच गए, इमाम ने ख़ैमे लगाए जाने का आदेश दिया।

हुर्र बिन यज़ीद रियाही और उसकी सेना ज़ोहर के समय वहां पहुँची और वह लोग प्यास की हालत में इमाम हुसैन (अ) और उनके साथियों के सामने पहुँचे, बावजूद इसके कि वह शत्रु सेना थी लेकिन इमाम हुसैन (अ) ने उनके साथ अच्छा बर्ताव किया और इमाम ने अपने साथियों को आदेश दिया कि हुर्र की सेना और उनके घोड़ों को पानी पिलाया जाए, और जब हुर्र ने कहा कि वह अपने साथियों के साथ इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ना चाहता है तो आपने स्वीकार कर लिया।

हुर्र ने इमाम को अपने आने का कारण बताया। इमाम ने फ़रमायाः

कूफ़े के लोगों ने उनको कूफ़ा बुलाया है और उनकी तरफ़ से पत्राचार के बारे में बताया और कहा कि अगर कूफ़े वाले अपने इरादे से पलट गए हैं तो वह भी वापस चले जाएंगे।

हुर्र ने इस प्रकार के पत्राचार के अनभिज्ञ्ता प्रकट की और कहा वह और उसके साथी पत्र लिखने वालों में से नहीं है और उसको आदेश दिया गया है कि इमाम को कूफ़े में इब्ने ज़ियाद के समक्ष प्रस्तुत करे।

जब इमाम हुसैन (अ) अपने साथियों के साथ चलने लगे तो हुर्र ने इमाम को कूफ़े की तरफ़ जाने या फिर वापस हिजाज़ जाने से रोक दिया, हुर ने सुझाव दिया कि इमाम कूफ़ा या मदीना के अतिरिक्त किसी और रास्ते का चुनाव कर लें ताकि वह इब्ने ज़ियाद से दूसरे आदेश को प्राप्त कर सके।

हुर्र ने इमाम से कहाः “मुझे आपसे युद्ध का आदेश नही दिया गया है लेकिन मुझे आदेश दिया गया है कि मैं आपका पीछा न छोड़ूँ यहां तक कि आपको कूफ़ा पहुँचा दूँ, अब अगर आप मेरे साथ आने से इंकार करते हैं तो कोई ऐसा रास्ता चुने जो न आपको कूफ़ा पहुँचाए और न ही मदीने, ताकि मैं एक पत्र उबैदुल्लाह को लिखूँ और अगर आप भी चाहें तो यज़ीद को पत्र लिखें, ताकि यह मामला अच्छे से और बिना युद्ध के समाप्त हो जाए और मेरे लिये यह इससे कहीं अच्छा है कि आपसे युद्ध करूँ।”

उसके बाद इमाम हुसैन (अ) और उनके साथी ओज़ीब और क़ादेसिया की तरफ़ चल पड़े और हुर्र भी आपके साथ था। (11)

ओज़ीब में कूफ़े से इमाम के चार साथी इमाम के पास पहुँचे हुर्र ने उनको गिरफ़्तार करना चाहा लेकिन इमाम ने रोक दिया उन्होंने कूफ़े के बिगड़ते हालात और इमाम के दूत क़ैस बिन मुसह्हर सैदावी की शहादत की सूचना दी और युद्ध के लिये एक बड़ी सेना के आने की ख़बर दी। (12)

हुर्र ने पत्र के बारे में हुसैन (अ) को बताया तो आपने कहा कि हमें नैनवा या ग़ाज़ेरिया में उतर जाने दो।

दो मोहर्रम को इमाम हुसैन (अ) और हुर्र के बीच की सदभावना समाप्त हो गई, जब यह दोनों नैनवा पहुँचे तो हुर्र के पास इब्ने ज़ियाद की तरफ़ से एक पत्र पहुँचा जिसमें लिखा था कि हुसैन (अ) के साथ सख़्ती से पेश आओ और उनको किसी बियाबन और बंजर स्थान पर रोक दो। (13)

हुर्र ने इब्ने ज़ियाद की तरफ़ से लगाए गए जासूसों के कारण मजबूरन इमाम हुसैन (अ) और उनके साथियों को नैनवा, ग़ाज़ेरिया या उसके आसपास ठहरने से रोक दिया और इमाम विवश होकर करबला में उतरे।

ज़ोहैर ने इमाम से कहाः ख़ुदा की क़सम मैं देख रहा हूँ कि इसके बाद से हमारे लिये सख़्तियां बढ़ जाएंगी, हे पैग़म्बर के बेटे इस समय इस गुट (हुर्र और उसके साथी) से युद्ध करना हमारे लिये उससे कहीं आसान है जो इनके बाद आ रहे हैं, मुझे मेरी जान की क़सम है कि इनके बाद वह लोग आएंगे जिसने लड़ना आसान न होगा।

इमाम ने फ़रमायाः ज़ोहैर सही कह रहे हो लेकिन मैं युद्ध आरम्भ नहीं करूँगा।

इमाम हुर्र के साथ चलते रहे यहां तक कि करबला पहुँच गए, हुर्र और उसके साथियों ने इमाम को और आगे जाने से रोक दिया, हुर्र ने कहां यहीं रुक जाइये कि फ़ुरात पास में ही है। हुर्र ने एक पत्र इब्ने ज़ियाद को लिखा और उसको इमाम के करबला में ठहरने की सूचना दी।

हुर्र की तौबा

हुर्र अगरचे इमाम के साथ सख़्ती से पेश आया लेकिन उसका व्यहार इमाम के साथ सम्मान जनक था यहां तक कि उसने एक बार हज़रत फ़ातेमा (स) के विशेष सम्मान की भी बात कही। (14)

 

आशूरा को उमरे सअद ने अपनी सेना को तैयार किया और सेना की हर टुकड़ी का कमांडर नियुक्त किया, उसने हुर्र को बनी तमीम और बनी हमदान का सेनापति नियुक्त किया और इस प्रकार उमरे सअद की सेना हुसैन (अ) की साथ युद्ध के लिये तैयार हो गई।

हुर्र ने जब कूफ़ियों को इमाम हुसैन (अ) के साथ युद्ध करने के लिये तैयार देखा तो उमरे सअद के पास गया और कहाः क्या तुम इस मर्द (इमाम हुसैन) से युद्ध करना चाहते हो? उसने कहाः हां ख़ुदा की क़सम ऐसी जंग करूँगा कि सर और हाथ हवा में उड़ते दिखाई देंगे।

हुर्र ने कहाः क्या तुमको उनका सुझाव पसंद नहीं आया? इब्ने सअद ने कहाः अगर चीज़ें मेरे हाथ में होती तो स्वीकार कर लेता लेकिन तेरा अमीर (उबैदुल्लाह) नहीं मानता है।

हुर्र उमरे सअद से अलग हो गए और सेना के एक कोने में खड़े हो गए और धीरे धीरे इमाम की सेना के क़रीब बढ़ने लगे। मोहाजिर बिन ओवैस (जो सअद की सेना में था) ने हुर्र से कहाः क्या हमला करना चाहते हो? हुर्र ने कांपते हुए उत्तर दियाः नहीं, मोहाजिर ने कहाः ख़ुदा की क़सम मैंने तुमको किसी भी युद्ध में इस प्रकार नहीं देखा अगर कोई मुझसे पूछता कूफ़ा का सबसे बहादुर व्यक्ति कौन है तो मैं तेरा नाम लेता, तुम इस प्रकार क्यों कांप रहे हो?

हुर्र ने कहाः निसंदेह मैं स्वंय को स्वर्ग और नर्क के बीच पाता हूँ ईश्वर की सौगंध अगर टुकड़े टुकड़े कर दिया जाऊँ और मुझे आग में जला दें तो मैं स्वर्ग के अतिरिक्त किसी दूसरी चीज़ को स्वीकार नहीं करूँगा। हुर्र ने यह कहा और अपने घोड़े को एड़ लगाई और हुसैनी ख़ैमों की तरफ़ चल पड़ा।

उसने इमाम से क्षमा मांगी, इमाम ने उसको क्षमा किया और फ़रमाया तुम दुनिया और आख़ेरत में आज़ाद (हुर्र) हो। (15)

शहादत

हज़रत हुर्र की तौबा और उनकी शहादत में बहुत अधिक फ़ासेला नहीं था, एक रिवायत के अनुसार हुर्र ने इमाम हुसैन (अ) से कहा कि चूँकि उसी ने सबसे पहले इमाम का रास्ता रोका था इसलिये अनुमति जीजिए की वही सबसे पहले शत्रु की सेना से लड़ने जाए और शहादत पेश करे। (16)

हुर्र इमाम हुसैन (अ) की सेना में शामिल होने के तुरन्त बाद ही युद्ध के लिये चले गए और शत्रु के साथ लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुती दे दी। (17)

हज़रत हुर्र बहुत ही वीरता से लड़े और अगरचे उसका घोड़ा घायल हो चुका था और उसके कानों एवं माथे से ख़ून बह रहा था लगातार सिंहनाद पढ़ रहे ते और युद्ध करते जा रहे थे यहां तक की आपने शत्रु सेना के चालीस लोगों को मौत के घाट उतार दिया

इब्ने सअद की पैदल सेना ने एक साथ मिलकर उनपर आक्रमण किया और उनको शहीद कर दिया कहा जाता है कि आपकी शहादत में दो लोग शरीक थे एक अय्यूब बिन मिसरह और दूसरा कूफ़े का एक व्यक्ति।

इमाम के साथी उनकी लाश को लाए इमाम ने उनके सरहाने पर बैठकर हुर्र के चेहरे से ख़ून को साफ़ किया और फ़रमायाः तुम आज़ाद हो जैसे कि तुम्हारी माँ ने तुम्हारा नाम रखा है, तुम दुनिया में भी आज़ाद हो और आख़ेरत में भी।

अंतिम संस्कार

सैय्यद मोहसिन अमीन के अनुसार (18) जब करबला के शहीदों को बनी असद के लोदों द्वारा दफ़्न किया जाने लगा तो हुर्र के क़बीले के एक गुट ने हुर्र को करबला के दूसरे शहीदों के साथ दफ़्न न होने दिया और उनको दूसरे शहीदों से दूर एक स्थान पर जिसका पहले नाम नोवावीस था दफ़्न किया (19) और यही कारण है कि हुर्र की क़ब्र इमाम हुसैन (अ) की क़ब्र से एक मील की दूरी पर स्थित है, इस समय हुर्र का मक़बरा करबला से सात किलोमीटर की दूरी पर है।

 

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(1)इब्ने कल्बी जिल्द 1, पेज 213, 216

(2)बिलाज़री जिल्द 2, पेज 472,476,489, दैनवरी पेज 249, तबरी जिल्द 5, पेज 422

(3)देखें समावी पेज 203

(4)तबरी जिल्द 5, पेज 392, 427, इब्ने कसीर जिल्द 8, पेज 195

(5)बलाज़री जिल्द 2, पेज 473, दैनवरी पेज 252, तबरी जिल्द 5, पेज 402-403।

(6)जिल्द 4, पेज 704।

(7.8)मसीरुल अहज़ान, पेज 44.

(9)नफ़सुल महमूम, पेज 231.

(10)बिलाज़री जिल्द 2, पेज 472, तबरी जिल्द 5, पेज 400, मुफ़ीद जिल्द 2, पेज 69, अख़तब ख़्वारज़्म, जिल्द 1, पेज 327, 330.

(11)बिलाज़री जिल्द 2, पेज 473, दैनवरी पेज 249-250, मुफ़ीद जिल्द 2, पेज 80, अख़तब ख़्वारज़्म जिल्द 1, पेज 332.

(12)बिलाज़री जिल्द 2, पेज 473-474, तबरी जिल्द 5, पेज 403-406, अख़तब ख़्वारज़्म जिल्द 1, पेज 331-333

(13)दैनवरी, पेज 251, तबरी जिल्द 5, पेज 408-409, मुफ़ीद जिल्द 2, पेज 81-84, अख़तब ख़्वारज़्म जिल्द 1, पेज 334

(14)बिलाज़री जिल्द 2, पेज 475-476, 479, तबरी जिल्द 5, पेज 392, 422, 427-428, मुफ़ीद जिल्द 2, पेज 100-101, अख़तब ख़्वारज़, जिल्द 2, पेज 12-13 इमाम के इस कथन को हुर्र के युद्ध के बाद का समझते हैं

(15)बिलाज़री जिल्द 2, पेज 475-476, 479, तबरी जिल्द 5, पेज 392, 422, 427-428, मुफ़ीद जिल्द 2, पेज 100-101, अख़तब ख़्वारज़, जिल्द 2, पेज 12-13 इमाम के इस कथन को हुर्र के युद्ध के बाद का समझते हैं

(16)इब्ने अअसम कूफ़ी, जिल्द 5, पेज 101, अख़तब ख़्वारज़म, जिल्द 2, पेज 13

(17)बिलाज़री जिल्द 2, पेज 476, 489, 494, 517, तबरी जिल्द 5, पेज 428-429, 434-435, 437, 440-441, मुफ़ीद, जिल्द 2, पेज 102-104

(18)जिल्द 1, पेज 613

(19)इब्ने कल्बी, जमहरतुन नसब, जिल्द 1, पेज 216