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स्पेन ने ज़ायोनी सरकार के लिए हथियार ले जा रहे दो अमेरिकी जहाज़ों को लंगर डालने की अनुमति नहीं दी।

स्पेन के विदेशमंत्रालय ने एक बयान जारी करके एलान किया है कि अमेरिकी हथियारों से लदा एक अमेरिकी जहाज़ (Maersk Denver)  31 अक्तूबर को और 4 नवंबर को दूसरा जहाज़ (Maersk Seletar) अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन के लिए न्यूयार्क से रवाना हुआ था और इन जहाज़ों को स्पेन में नहीं रुकना चाहिये।

समाचार एजेन्सी मेहर के हवाले से बताया है कि स्पेन के सांसद Enrique Santiago ने इस देश के अटार्नी जनरल से मांग की थी कि जारी महीने की 9 और 14 तारीख़ को इस्राईल के लिए हथियारों से लदे दो अमेरिकी जहाज़ स्पेन की बंदरगाह Algeciras से गुज़रने वाले हैं इस संबंध में वह कार्यवाही करें।

इसी बीच स्पेन के प्रतिरक्षामंत्रालय ने कहा था कि यह देश फ़िलिस्तीन और लेबनान में शांति स्थापित करने और स्पेन की सरकार अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के प्रति कटिबद्ध है।

इसी प्रकार स्पेन के प्रतिरक्षामंत्रालय ने कहा है कि ज़ायोनी सरकार की सैन्य कंपनियां वर्ष 2025 में मैड्रिड में आयोजित होने वाली प्रदर्शनी में भाग लेने से वंचित रहेंगी।

संगठन के अध्यक्ष ने कहा कि हमारे धर्म को नुकसान न पहुंचे, इसलिए हम यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं कि मेले के लिए आरक्षित क्षेत्र में कोई गैर-हिंदू दुकानें न हों।

हिंदू धार्मिक संगठन अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष ने हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के पत्रकार के साथ बात चीत मे 2025 मे होने वाले महाकुंभ मेले मे ग़ैर हिंदूओ को दिए जाने वाले स्टॉलो के हवाले से इनकार करते हुए कहा, अगले साल जनवरी-फरवरी में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आयोजित होने वाले महाकुंभ मेले में "गैर-हिंदुओं" को कोई स्टॉल उपलब्ध नहीं कराया जाएगा।

जब पत्रकार ने ग़ैर हिंदूओ को स्टॉल उपलब्ध न कराए जाने के कारण से संबंधित सवाल किया तो इस पर उनका कहना था कि कुछ कट्टरपंथी हमारे धर्म को खराब करना चाहते है। उन्होने आगे कहा कि हमारा धर्म खराब न होइसके लिए हम यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं कि मेले के लिए आरक्षित क्षेत्र में कोई गैर-हिंदू दुकानें न हों।

जब हमारे पत्रकार ने कुंभ मेला प्रभारी अधिकारी विजय करण से बात की तो उन्होने बताया कि इस धार्मिक आयोजन में दुकानों का आवंटन बोली प्रक्रिया के जरिये किया जाता है। जो व्यक्ति बोली मानदंडों को पूरा करता है उसे दुर्कन आवंटित किया जाता है। बीच में किसी और चीज का सवाल ही नहीं उठता।

उधर अखिल भारतीय मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रिजवी बरेलवी ने हौज़ा न्यूज़ को बताया कि यह फैसला सांप्रदायिकता को बढ़ावा देगा और समाज में नफरत फैलाएगा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि त्योहार शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो।

मौलाा शहाबुद्दीनन रिजवी ने यह भी बताया कि हमने उत्तर प्रदेश सरकार से ऐसी मांग करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की अपील की है।

 

ईरान में बोरुजार्ड शहर के इमाम जुमा ने कहा: सय्यद हसन नसरुल्लाह की शहादत ने प्रतिरोध मोर्चे को और अधिक ताकत के साथ आगे बढ़ने का कारण बना दिया।

हुज्जतुल इस्लाम सय्यद अली हुसैनी ने सय्यद हसन नसरल्लाह और शहीद निलफरोशन के चेहलम के अवसर पर आयोजित समारोह में बोलते हुए कहा: सय्यद हसन नसरल्लाह की शहादत ने प्रतिरोध मोर्चे को आगे बढ़ने के लिए मजबूर किया।

उन्होंने कहा, "प्रतिरोध मोर्चे के कमांडरों के मारे जाने से न केवल इस मोर्चे की ताकत कम हो जाएगी, बल्कि यह मोर्चा दुश्मन के खिलाफ पहले से भी अधिक दृढ़ता और मज़बूती के साथ खड़ा होगा।"

बुरुजर्द के इमाम जुमा ने कहा: प्रतिरोध मोर्चा पूरी ताकत के साथ युद्ध के मैदान में रहेगा और यह मोर्चा कुद्स शरीफ की पूर्ण मुक्ति तक धैर्य और दृढ़ संकल्प के साथ इज़राइल के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रखेगा।

उन्होंने कहा: सय्यद हसन नसरुल्लाह की शहादत हम सभी के लिए बहुत दर्दनाक थी। शहीद सय्यद हसन नसरुल्लाह एक बहादुर, समझदार और योग्य व्यक्ति थे, जो वर्षों तक दुश्मन के सामने खड़े रहे और दुश्मन की कई साजिशों को नाकाम कर दिया।

हुज्जतुल इस्लाम हुसैनी ने कहा: प्रतिरोध मोर्चे के शहीदों का खून व्यर्थ नहीं जाएगा। इस मोर्चे के हर शहीद की शहादत के बाद और भी वीर लोग प्रतिरोध का परचम थामकर दुश्मन को तबाह करने के लिए उठ खड़े होंगे।

 

 

 

 

 

हुज्जतुल इस्लाम सादेकी ने कहा, विद्वानो और विद्यार्थियों को सामाजिक चुनौतियों से अच्छी तरह से अवगत होना चाहिए और उनके समाधान के लिए प्रयास करना चाहिए यह जागरूकता सामाजिक नुकसानों की रोकथाम में सहायक साबित हो सकती है।

एक रिपोर्ट के अनुसार , हुज्जतुल इस्लाम आबिदीन सादेकी ने मदरसा इल्मिया ज़ैनब कुबरा स.ल.उरुमिया में आयोजित एक सभा में बातचीत करते हुए कहा, वर्तमान वैश्विक हालात के मद्देनजर उलमा और तलबा (विद्यार्थियों) का यह फर्ज़ है कि वे एक धार्मिक प्रचारक के रूप में इस्लामी शिक्षाओं को समाज तक पहुंचाएं और लोगों को नैतिकता और सही व्यवहार की ओर मार्गदर्शन करें।

उन्होंने आगे कहा, उलमा की एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी यह भी है कि वे लोगों में राजनीतिक समझ और जागरूकता को बढ़ावा दें उन्हें देश की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति का सही विश्लेषण करने और लोगों को मौजूदा समस्याओं से अवगत कराने में सक्षम होना चाहिए।

उरुमिया में प्रतिनिधि वली ए फकीह ने कहा, उलमा को सामाजिक चुनौतियों से अवगत होना चाहिए और उनके समाधान के लिए प्रयास करना चाहिए। यह जागरूकता सामाजिक नुकसानों को रोकने में सहायक साबित हो सकती है।

उन्होंने कहा, सोशल मीडिया और इंटरनेट पर झूठी खबरें आज के दौर की एक बड़ी चुनौती हैं। इंटरनेट और सोशल नेटवर्क के प्रसार के साथ, गलत और फर्जी जानकारियों का फैलाव एक आम समस्या बन गया है।

जो सार्वजनिक सोच और समाज पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। इसलिए हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम लोगों को इन समस्याओं से अवगत कराएं और इसका समाधान प्रस्तुत करें।

 

नजफ अशरफ, इराक में जामिया इमामिया तंज़ीम अल मकातिब के छात्रों की ओर से, मौलाना मुमताज अली ताबा सारा (जामिया इमामिया तंज़ीम अल मकातिब लखनऊ के उपाध्यक्ष) और स्वर्गीय श्री सैयद रियाज हुसैन (जामिया इमामिया तंज़ीम अल मकातिब लखनऊ के अंग्रेजी शिक्षक) के इसाले सवाब के लिए एक मजलिस का आयोजन किया गया।

ज़हरा सेंटर, नजफ अशरफ, इराक में जामिया इमामिया तंज़ीम अल मकातिब के छात्रों की ओर से, मौलाना मुमताज अली ताबा सारा (जामिया इमामिया तंज़ीम अल मकातिब लखनऊ के उपाध्यक्ष) और स्वर्गीय श्री सैयद रियाज हुसैन (जामिया इमामिया तंज़ीम अल मकातिब लखनऊ के अंग्रेजी शिक्षक) के इसाले सवाब के लिए एक मजलिस का आयोजन किया गया।  इस मजलिस को हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना सैयद अब्दुल्ला आब्दी ने  संबोधित किया जिसमें बड़ी संख्या में विद्वान और छात्र शामिल हुए।

मरहूम मौलाना मुमताज अली न केवल अपने नाम से बल्कि अपने चरित्र और कार्यों से भी प्रतिष्ठित थे, मौलाना सैयद अब्दुल्ला आबिदी

मौलाना अब्दुल्ला आबिदी ने अपने संबोधन में कहा कि मरहूम मौलाना मुमताज अली नव्वरल्लाहो मरकदहू न केवल अपने नाम से बल्कि अपने चरित्र और कार्यों से भी प्रतिष्ठित थे। सम्मेलन का शीर्षक था "कुरान और हदीस की नजर में मनुष्य की श्रेष्ठता और उत्कृष्टता का मानक और उसकी अलग विशिष्टता"।

मरहूम मौलाना मुमताज अली न केवल अपने नाम से बल्कि अपने चरित्र और कार्यों से भी प्रतिष्ठित थे, मौलाना सैयद अब्दुल्ला आबिदी

इस विषय पर चर्चा करते हुए, मौलाना अब्दुल्ला आबिदी ने कहा कि सृजन, ज्ञान और बुद्धि, और चेतना, नैतिकता और चरित्र और अहले-बैत (अ) की संरक्षकता और प्रेम मानव भेद का कारण है। उन्होंने आगे कहा कि मरहूम मौलाना मुमताज साहब हर मामले में प्रतिष्ठित थे, चाहे वह ज्ञान और साहित्य हो या विचार और चेतना, नैतिकता और चरित्र या वाणी हो।

आयतुल्लाहिल उज़्मा नूरी हमदानी ने (जबल आमुल) नामक महान कॉन्फ्रेंस के अवसर पर अपने संदेश में कहा कि ईरान हमेशा प्रतिरोधी मोर्चे (मुक़ावेमत) के साथ खड़ा है और उसका समर्थन करता रहेगा ईरान की सशस्त्र सेनाएं पूरी ताकत के साथ इसराइल की गतिविधियों पर नजर रखे हुए हैं और किसी भी आक्रामकता का कड़ा जवाब देगा।

एक रिपोर्ट के अनुसार, हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा नूरी हमदानी ने "जबल आमुल" कॉन्फ्रेंस में शामिल उलमा और राजनीतिक एवं शैक्षिक हस्तियों को संबोधित करते हुए एक व्यापक संदेश दिया जिसमें उलमा के ऐतिहासिक महत्व और उनकी भूमिका पर प्रकाश डाला।

उन्होंने कहा कि इस्लाम के इतिहास में उलमा की भूमिका हमेशा से प्रमुख और प्रभावशाली रही है। एक धार्मिक, ईमानदार और संघर्षशील कारक वह होता है जिसने हमेशा धर्म की रक्षा की है विशेष रूप से जबल आमुल के उलमा का योगदान विशेष रूप से उल्लेखनीय रहा है जिन्होंने शेख बहाई, शहीद अव्वल, शहीद सानी, मुहकिक करकी और अल्लामा अमीनी जैसी महान हस्तियों को जन्म दिया।

हज़रत आयतुल्लाह नूरी हमदानी ने कहा कि आज के दौर में हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद हसन नसरुल्लाह जैसे संघर्षशील आलिम ने प्रतिरोध (मुकावेमत) में एक नया अध्याय लिखा है, जिन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और साहस के साथ इसराइल के बुरे इरादों को नाकाम किया और स्वतंत्रता प्रेमियों के लिए नई राहें खोलीं।

उन्होंने आगे कहा कि ईरान की सरकार और जनता प्रतिरोधी मोर्चे के साथ खड़ी हैं और अपनी सशस्त्र सेनाओं के माध्यम से इसराइल की सभी गतिविधियों पर कड़ी नजर रखे हुए हैं उन्होंने इस विश्वास का इज़हार किया कि रहबर ए मोज़्ज़म इंक़लाब की रहनुमाई में यह प्रतिरोधी मोर्चा विजय प्राप्त करेगा।

आयतुल्लाह नूरी हमदानी ने ग़ाज़ा, लेबनान, सीरिया, इराक और ईरान के सभी शहीदों विशेष रूप से सैयद ए मुकावमत सैयद हसन नसरुल्लाह और सैयद हाशिम सफीउद्दीन को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए इस कॉन्फ्रेंस के आयोजकों का भी धन्यवाद किया।

 

 

 

 

 

इस्लामी क्रांति के नेता ने हमास आंदोलन और हिज़्बुल्लाह के मज़बूत और शक्तिशाली प्रतिरोध का ज़िक्र करते हुए कहा कि ईश्वर की मदद के वादों और पिछले दशकों में हिज़्बुल्लाह और हमास के सफल अनुभवों के आधार पर ज़ायोनी शासन के मुक़ाबले में हालिया संघर्षों में भी निश्चित रूप से प्रतिरोधी मोर्चे की जीत होगी।

इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाह सैयद अली ख़ामेनई ने गुरुवार की सुबह विशेषज्ञों की एसेंबली के सदस्यों के मुलाक़ात में कहा कि ग़ज़ा और लेबनान में जो अपराध किए जा रहे हैं, उसमें अमेरिका और कुछ यूरोपीय देशों के हाथ ख़ून में डूबे हुए हैं। उन्होंने आगे कहाः दुनिया और क्षेत्र देखेंगे कि एक दिन इन मुजाहिदीन के हाथों ज़ायोनी शासन की स्पष्ट हार होगी।

सुप्रीम लीडर ने कहा कि पिछले 4 दशकों के दौरान, हिज़्बुल्लाह ने विभिन्न चरणों में बेरूत, सेदा और सूर और आख़िरकार दक्षिणी लेबनान से पूरी तरह पीछे हटने पर मजबूर कर दिया और इस देश के गांवों और शहरों और पहाड़ियों को इस अशुभ शासन के वजूद से पाक कर दिया। 

इस्लामी क्रांति के नेता ने कहा कि विभिन्न प्रकार के सामरिक, प्रचारिक और आर्थिक हथियारों से लैस और अमरीकी राष्ट्रपतियों जैसे विश्व के बड़े शैतानों का समर्थन प्राप्त दुश्मन को हराने वाले हिज़्बुल्लाह की शक्ति आश्चर्यचकित करने वाली है, जो दिन ब दिन बढ़ रही है और आज एक छोटे से समूह से एक बड़ी शक्ति में बदल चुकी है। उन्होंने कहा कि फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध का भी यही अनुभव रहा है। वह भी 1388 शम्सी हिजरी से आज तक 9 बार ज़ायोनी शासन से टकरा चुका है और हर बार ज़ायोनी शासन पर हावी रहा है।

आयतुल्लाह ख़ामेनई ने हिज़्बुल्लाह को मज़बूत बताते हुए कहाः सैयद हसन नसरुल्लाह और सैयद सफ़ीद्दीन जैसी महान हस्तियों के अभाव के बावजूद, हिज़्बुल्लाह संगठन भरपूर आत्मविश्वास से दुश्मन से लोहा ले रहा है और दुश्मन उसे हराने में न सक्षम था और भविष्य में भी नहीं होगा।

अपने भाषण के एक अन्य हिस्से में सुप्रीम लीडर ने महान प्ररिरोधकर्ता सैयद हसन नसरुल्लाह की शहादत के चालीस दिन बीत जाने के अवसर पर उन्हें और शहीद हनिया, सफ़ियुद्दीन, सिनवर और नीलफ़रोशान जैसे प्रतिरोध के महान कमांडरों को याद करते हुए कहाः इन शहीदों ने इस्लाम और प्रतिरोध मोर्चे की शक्ति और गौरव कई गुना बढ़ा दिया।

हिज़्बुल्लाह को शहीद नसरुल्लाह की यादगार बताते हुए उन्होंने कहाः प्रतिरोध के लीडर के साहस, समझ, धैर्य और अजीब विश्वास के कारण, हिज़्बुल्लाह ने ऐसा ज़बरदस्त विकास किया है कि विभिन्न प्रकार के हथियारों से लैस होने के बावजूद दुश्मन उस पर जीत हासिल नहीं कर सका और इस आश्चर्यचकित शक्ति पर जीत हासिल कर भी नहीं पाएगा।

इस्लामी क्रांति के नेता का कहना था कि इस युद्ध में भी फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध की जीत हुई है। क्योंकि इस युद्ध में ज़ायोनी शासन का लक्ष्य, हमास को जड़ से उखाड़ फेंकना था, लेकिन वह दसियों हज़ार आम नागरिकों के नरसंहार और प्रतिरोध और हमास के नेताओं को शहीद करने और दुनिया वालों के सामने अपना बदसूरत, घृणित और निंदीय चेहरा पेश करने के बावजूद, इस लक्ष्य को हासिल नहीं कर सका। हमास आज भी प्रतिरोध कर रहा है, जिसका मतलब है कि ज़ायोनी शासन को हार का मुंह देखना पड़ा है।

क़ुम के इमाम ए जुमआ आयतुल्लाह अली रज़ा आराफ़ी ने इज़राइल की आक्रामकता और इस्लामी देशों के खिलाफ उसकी नापाक योजनाओं की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि इज़राइल का उद्देश्य केवल फ़िलस्तीन पर नहीं, बल्कि पूरे इस्लामी दुनिया पर हुकूमत स्थापित करना है और उसके खिलाफ प्रतिरोध ही उम्मत ए मुस्लिम की प्रतिष्ठा की गारंटी है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, क़ुम के इमाम ए जुमआ आयतुल्लाह अली रज़ा आराफ़ी ने शुक्रवार के ख़ुतबे में इज़राइली आक्रामकता इस्लामी देशों के खिलाफ उसकी नापाक योजनाओं और वैश्विक ताकतों द्वारा इज़राइल को दी जा रही समर्थन की कड़ी आलोचना की।

उन्होंने कहा कि इज़राइल न केवल एक अवैध राज्य है बल्कि एक सैन्य अड्डा है जो पश्चिमी साम्राज्यवादी ताकतों के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए इस्लामी दुनिया के खिलाफ षड्यंत्र करता है।

आयतुल्लाह आराफ़ी ने शहीद सैयद हसन नसरुल्लाह के चालीसवें (चेहलुम) के अवसर पर उनकी कुर्बानियों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि सैयद हसन नसरुल्लाह ने इस्लामी क्रांति से प्रेरित होकर क्षेत्र में प्रतिरोध की नींव रखी और अरब देशों को नए संकल्प के साथ मुकाबले की राह दिखाई।

उन्होंने पिछले सात दशकों में इज़राइल के खिलाफ अरब देशों की असफलताओं का उल्लेख करते हुए कहा कि इन असफलताओं का कारण इस्लामी दुनिया में एकता की कमी और पश्चिमी ताकतों द्वारा इज़राइल को निरंतर समर्थन प्रदान करना है।

उन्होंने कहा कि हर बार जब अरब देशों ने इज़राइल का सामना करने की कोशिश की तो वैश्विक शक्तियों ने इज़राइल का साथ दिया जिससे अरब दुनिया को हार का सामना करना पड़ा।

आयतुल्लाह आराफ़ी ने वैश्विक समुदाय विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र और सुरक्षा परिषद की आलोचना करते हुए कहा कि इज़राइल ने कभी भी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के प्रस्तावों को महत्व नहीं दिया और अपने अपराधों को निर्भीक होकर जारी रखा। उन्होंने कहा कि इज़राइल का असली उद्देश्य इस्लामी दुनिया को पीछे रखना और उसके आंतरिक मामलों में विघटन उत्पन्न करना है।

उन्होंने उम्मत ए मुस्लिम को फ़िलस्तीन के मुद्दे पर एकजुट रहने की सलाह दी और इस्लामी देशों को चेतावनी दी कि इज़राइल का उद्देश्य केवल फ़िलस्तीन पर कब्जा करना नहीं है बल्कि पूरे इस्लामी जगत पर अपनी सत्ता स्थापित करना है।

उन्होंने कहा कि प्रतिरोध और इस्लामी एकता ही वे एकमात्र रास्ते हैं जिनसे इस्लामी दुनिया अपनी स्वतंत्रता और संप्रभुता को सुरक्षित रख सकती है।

क़ुम के इमाम जुमआ ने इस्लामी प्रतिरोध विशेष रूप से हिज़बुल्लाह और हमास जैसी संगठनों के समर्थन पर जोर देते हुए कहा कि ये प्रतिरोधी शक्तियां उम्मत-ए-मुस्लिम की बचे रहने और उसके सम्मान की प्रतीक हैं।

उन्होंने स्पष्ट किया कि हिज़बुल्लाह और अन्य प्रतिरोधी आंदोलन इज़राइल के सामने मजबूती से खड़े रहेंगे और इस्लामी दुनिया के अधिकारों की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास करेंगे।

अंत में उन्होंने हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की जयंती और नर्सिंग डे के अवसर पर ईरान, लेबनान और फ़लस्तीन के सभी नर्सों को बधाई दी उन्होंने जनता से प्रतिरोधी मोर्चे का समर्थन जारी रखने और पीड़ित फ़िलस्तीनी लोगों के प्रति अपनी सहानुभूति और सहायता बढ़ाने की अपील की हैं।

 

इजरायली संसद ने गुरुवार को एक ऐसे अजीब कानून को मंजूरी दे दी, जो कब्जे वाले क्षेत्रों से इजरायलियों के खिलाफ हमलों में भाग लेने वाले फिलिस्तीनियों के परिवार के सदस्यों के निष्कासन और निर्वासन की अनुमति देता है।

इस बिल को दूसरे और तीसरे रीडिंग में 61 वोटों के साथ मंजूरी दे दी गई, जबकि विपक्ष में 41 वोट पड़े, और अब यह एक कानून बन गया है जो ज़ायोनी शासन के अरब नागरिकों और पूर्वी यरूशलेम मे रहने वाले फिलिस्तीनोय को व्यापक रूप से लक्षित करता है।

इस कानून मे यह निर्दिष्ट नहीं किया गया है कि परिवारों या रिश्तेदारों को कहां निर्वासित किया जाएगा, लेकिन इजरायली मीडिया के अनुसार, गाजा निर्वासित लोगों के गंतव्यों में से एक है।

नया कानून आंतरिक मंत्री को यह निर्धारित करने का अधिकार भी देता है कि परिवार के किस सदस्य को निर्वासित किया जाएगा यदि सबूत प्रस्तुत किया जाता है कि परिवार के किसी सदस्य को हमले से पहले पता था या उसका समर्थन किया गया था।

संसद के बयान में घोषणा की गई कि इस कानून के अनुसार, निर्वासन की अवधि इजरायली नागरिकता वाले व्यक्ति के लिए 7 से 15 साल के बीच और कानूनी निवास परमिट वाले व्यक्ति के लिए 10 से 20 साल के बीच होगी।

इसके अलावा आज, केंसेट ने एक और कानून पारित किया, जिसके अनुसार चौदह वर्ष से कम उम्र के फ़िलिस्तीनी बच्चों को, जिसे इज़राइल आतंकवाद या आतंकवादी गतिविधियों कहता है, उससे संबंधित हत्या के अपराध का दोषी ठहराया जाता है, तो उनकी गिरफ्तारी की अनुमति है और कानूनी है।

 

 

 

 

 

आयरिश अधिकारियों ने इस देश में फ़िलिस्तीनी राजदूत की तैनाती पर सहमति जताई है।

आयरलैंड के सरकारी अधिकारियों ने मंगलवार 5 नवंबर को एलान किया है कि इस समय जीलान वह्बे अब्दुल मजीद आयरलैंड में फ़िलिस्तीनी प्रतिनिधिमंडल के अध्यक्ष हैं और अब वह नये पद पर आसीन होंगे।

समाचार एजेन्सी मेहर के हवाले से बताया है कि पिछले महीने आयरलैंड ने कुछ यूरोपीय देशों के साथ फ़िलिस्तीन को एक देश के रूप में मान्यता दी।

फ़िलिस्तीन ने भी अक्तूबर महीने में एलान किया है कि वह आयरलैंड के साथ अपने डिप्लोमैटिक संबंधों को प्रतिनिधिमंडल की सतह से दूतावास की सतह पर ले जाना चाहता है और अब उसने अपना एक राजदूत आयरलैंड के लिए चुना है।

आयरलैंड गणराज्य उन गिने- चुने यूरोपीय देशों में से है जिसे ज़ायोनी सेना द्वारा फ़िलिस्तीन के मज़लूम लोगों के नस्ली सफ़ाये पर एतराज़ है और इस देश के सांसदों ने बारमबार ज़ायोनी सरकार द्वारा नस्ली सफ़ाये और दूसरे अपराधों के जारी रखने पर यूरोपीय संघ सहित विभिन्न अंतरराष्ट्रीय समाजों व मंचों पर आपत्ति जताई है।