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लोरिस्तान" विश्वविद्यालय के कुलपति का मानना है कि अरबईन या इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चेहलुम में प्रयास व पैदल चलना इस्लामी जगत की एकता का केन्द्र बिन्दु है।

"लोरिस्तान" विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर अली नज़री अरबईन को इस्लामी जगत की एक बहुत बड़ी आध्यात्मिक रैली व झलक मानते हैं।

डॉक्टर अली नज़री ने इस्ना समाचार एजेन्सी से वार्ता में अरबईन के कुछ पहलुओं पर प्रकाश डाला और इराक़ के पवित्र नगर कर्बला जाने वाले इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के श्रद्धालुओं की यात्रा की ओर संकेत करते हुए कहा

अरबईन वह यात्रा है जो दिलों के क़दमों से आरंभ होती है और श्रद्धालु हर क़दम को इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के प्रेम और श्रद्धा में उठाते हैं।

उन्होंने बल देकर कहा कि अरबईन का मिलियन्स मार्च इस्लामी जगत की इज़्ज़त व प्रतिष्ठा का कारण है। उन्होंने कहा कि इस आध्यात्मिक मिलियन्स मार्च में विभिन्न राष्ट्रों के लोगों की भारी उपस्थिति से दुश्मन भयभीत हो जाते हैं और दुश्मनों की पूरी कुचेष्टा इस अपार उपस्थिति को महत्वहीन दर्शाना होता है मगर जो चीज़ स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है वह कर्बला के मार्ग में लाखों की श्रद्धालुओं की अपार उपस्थिति है।

वह आगे कहते हैं

अरबईन के मिलियन्स मार्च में हर समय से अधिक फ़िलिस्तीन और ग़ज़ा पट्टी के मज़लूम लोगों के प्रति समर्थन दिखाई दे रहा है। श्रद्धालुओं के हाथों में प्रतिरोध के शहीदों की तस्वीरें और फ़िलिस्तीनी परचम है इस प्रकार से वे मज़लूमों के प्रति अपने समर्थन को विश्ववासियों तक पहुंचा रहे हैं।

लोरिस्तान विश्वविद्यालय के कुलपति आगे कहते हैं कि अरबईन का मिलियन्स मार्च इस्लामी जगत की एकता का केन्द्र बिन्दु है।

दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों व देशों के लोग आते और अरबईन के मिलियन्स मार्च में शामिल होते हैं जो यह इस बात का सूचक है कि एकता का केन्द्र बिन्दु सय्यदुश्शोहदा इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम हैं।

उन्होंने इस्लाम के दुश्मनों के मुक़ाबले में अरबईन के आध्यात्मिक मिलियन्स मार्च की भूमिका की ओर संकेत करते हुए कहा कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पावन लहू में वह गर्मी है जो इस यात्रा की गर्म हवाओं और दूसरी समस्त कठिनाइयों को बर्दाश्त करने को सरल बना देती है। यह यात्रा न केवल महामुक्तिदाता की सेना में शामिल होकर युद्ध करने का अभ्यास है बल्कि दुश्मन के ख़िलाफ़ एक प्रकार का व्यापक युद्ध है।

नज़री कहते हैं कि दुनिया में एकता का संदेश अरबईन के मिलियन्य मार्च से जाता है और इराक़ के पवित्र नगर नजफ़ से पवित्र नगर कर्बला का 80 किलोमीटर का रास्ता एकता की बेजोड़ झलक व उदाहरण पेश करता है। अरबईन का मिलियन्य मार्च इराक़ी शियों के परित्याग का जीवंत प्रमाण है। वे इराक़ जाने वाले इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के श्रद्धालुओं का पूरी तनमयता से आतिथ्य सत्कार करते हैं और वे अपना सब कुछ इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के श्रद्धालुओं की सेवा में हाज़िर कर देते हैं।

लोरिस्तान विश्व विद्यालय के कुलपति अंत में कहते हैं

अरबईन के मिलियन्य मार्च की भव्यता को देखकर दुश्मन क्रोधित हो गये हैं। महान ईश्वर ने कहा है कि मुसलमानों को उस रास्ते में होना चाहिये जिससे दुश्मन क्रोधित हो जायें और दुश्मनों के मुक़ाबले में अरबईन का मिलियन्स मार्च इस्लामी जगत की ताक़त व शक्ति का स्पष्ट उदाहरण है।

अरबईनः अरबी भाषा में अरबईन शब्द का अर्थात चालिस है और इस्लामी परिभाषा में एक धार्मिक कार्यक्रम व समारोह है जो आशूर के बाद 20 सफ़र को होता है। यह वह दिन होता है जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके वफ़ादार साथियों को शहीद हुए 40 दिन हो जाते हैं।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चाहने वाले 20 सफ़र को इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पावन रौज़े की ज़ियारत के लिए पवित्र नगर कर्बला जाते व यात्रा करते हैं।

सन् 61 हिजरी क़मरी में अबूसुफ़यान बिन मोआविया बिन यज़ीद के राक्षसी सैनिकों ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके 72 वफ़ादार साथियों को तीन दिन का भूखा-प्यास शहीद कर दिया था। आज अरबईन के निकट इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के बहुत से चाहने वाले लोग पैदल कर्बला की ओर जाते हैं और अरबईन का मिलियन्स मार्च दुनिया का एक बहुत बड़ा समारोह है और कुछ साल मिलियन्स मार्च में भाग लेने वालों की संख्या दो करोड़ लोगों से भी अधिक हो जाती है।

शाहगंज,जौनपुर बड़ागांव में रविवार को जुलूस ए अज़ा बरामद हुआ जुलूस की पहली तकरीर मौलाना सैयद आरज़ू हुसैन आब्दी ने शहीद-ए-कर्बला का मसायब अपने मखसूस अंदाज में बयान किया उसके बाद जुलूस चहार रौज़ा से होता हुआ बड़ा गांव स्थित कर्बला पर जाकर खत्म हुआ।

शाहगंज,जौनपुर बड़ागांव में रविवार को जुलूस ए अज़ा बरामद हुआ जुलूस की पहली तकरीर मौलाना सैयद आरज़ू हुसैन आब्दी ने शहीद-ए-कर्बला का मसायब अपने मखसूस अंदाज में बयान किया उसके बाद जुलूस चहार रौज़ा से होता हुआ बड़ा गांव स्थित कर्बला पर जाकर खत्म हुआ।

स्थानीय क्षेत्र के बड़ागांव में रविवार को जुलूस-ए अज़ा बरामद किया गया। जुलूस की पहली तकरीर मौलाना सै. आरज़ू हुसैन आब्दी ने शहीद-ए-कर्बला का मसायब अपने मखसूस अंदाज में बयान किया जिसके बाद ऐतिहासिक जुलूस सै. अरशद हुसैन आब्दी के अज़ाखाने से बरामद होकर निर्धारित मार्ग से भ्रमण करता हुआ चहार रौज़ा से होता हुआ बड़ा गांव स्थित करबला पर जाकर संपन्न हुआ।

जुलूस का नेतृत्व डॉ. सैयद अब्बास ज़ैदी द्वारा किया गया। जुलूस में शामिल ताबूत व सबीह की नेक़ाबत सैय्यद परवेज़ मेहंदी, सहर अर्शी व पैगाम सेराज़ी ने संयुक्त रूप से किया जिसका संचालन कल्बे अब्बास व अली गदीरी ने किया।

जुलूस के दौरान अंजुमन नासरुल अज़ा, अंजुमन तमन्ना-ए ज़हरा, अंजुमन करवाने अज़ा, अंजुमन गुन्च-ए-नासरुल अज़ा बड़ागांव व अज़ादारिया हुसैनाबाद, गुलशन-ए अब्बास भादी ने नौहा खानी व सीना ज़नी पेश किया।

इस अवसर पर जफर अब्बास, आले हसन गुल्ला, बबलू, कमर अब्बास, समीम हैदर, वारिस हाशमी, हसन मेंहदी, अज़मे अब्बास, रामदुलारे, मुख्तार काका समेत हजारों जायरीर उपस्थित रहे।

 

 

 

 

 

कर्बला वालों की शहादत और रसूले इस्लाम (स) के अहलेबैत (अ) को बंदी बनाये जाने के दौरान औरतों ने अपनी व़फादारी, त्याग व बलिदान द्वारा इस्लामी आंदोलन में वह रंग भरे हैं जिनकी अहमियत का अनुमान लगाना भी मुश्किल है। बाप, भाई, पति और कलेजे के टुकड़ों को इस्लाम व कुरआन की बक़ा के लिए अल्लाह की राह में मरने की अनुमति दे देना और घाव और खून से रंगीन जनाज़ों पर शुक्र का सजदा करना आसान बात नहीं है इसी बात ने अंतरात्मा के दुश्मन हत्यारों को मानवता की नज़रों में अपमानित कर दिया, माँओं, बहनों और बेटियों के आंसू न बहाने ने मुरदा दिलों को भी झिंझोड़ कर रख दिया मगर वह खुद पूरे सम्मान और महिमा के साथ क़ैद व बंद के सभी चरणों से गुजर गईं और शिकवे का एक शब्द भी ज़बान पर नहीं आया, इस्लाम की मदद की राह में पहाड़ की तरह दृढ़ रहीं और अपने संकल्प व हिम्मत के तहत कूफ़े व शाम के बाजारों और दरबारों में हुसैनियत की जीत के झंडे लहरा दिये।

हज़रत ज़ैनब (स) और उनके हम क़दम और हम आवाज़ उम्मे कुलसूम (स) रुक़य्या (स) रबाब (स) लैला (स) उम्मे फ़रवह (स) सकीना (स) फ़ातिमा (स) और आतेका (स) तथा इमाम (अ) के असहाब व अंसार की त्यागी औरतों ने बहादुरी और त्याग व बलिदान के वह इतिहास रचा है जिसको किसी भी सूरत इतिहास के पन्नों से मिटाया नहीं जा सकता इसलिए आशूरा को इमाम हुसैन (अ) की शहादत के बाद जब अहले हरम के ख़ैमों में आग लगा दी गई बीबियों के सरों से चादरें छीन ली गईं तो जलते खैमों से निकलकर मज़लूम औरतें और बच्चे कर्बला की जलती रेत पर बैठ गए।

 ज़ै इमाम सैयद सज्जाद (अ) बेहोशी की हालत में थे जनाब नब अ. ने अपनी बहन उम्मे कुलसूम (स) के साथ आग के शोलों से खुद को बचा बचा कर भागते बच्चों को एक जगह जमा किया, किसी बच्चे के पैर में आग लगी थी तो किसी के गाल पर तमांचों के निशान थे कोई ज़ालिमों के हमलों के दौरान पैर तले दब कर जान दे चुका था तो कोई प्यास की शिद्दत से दम तोड़ रहा था।

क़यामत की रात जिसे शामे ग़रीबा कहा जाता है, हुसैन (अ) की बहनों ने अब्बास (अ) की तरह पहरा देते हुए टहल टहल कर गुज़ार दी। ग्यारह मुहर्रम की सुबह यज़ीद की फ़ौज, शिम्र और ख़ूली के नेतृत्व में रस्सियों और ज़नजीरे लेकर आ गया। औरतें रस्सियों में जकड़ दी गईं और सैयद सज्जाद अ. के गले में तौक़ और हाथों और पैरों में ज़नजीरें डाल दी गईं। बे कजावा ऊंटों पर सवार, औरतों और बच्चों को मक़तल से लेकर गुज़रे और बीबियां कर्बला की जलती रेत पर अपने वारिसों और बच्चों के बे सर लाशे छोड़कर कूफ़ा रवाना हो गईं लेकिन इस मुसीबत में भी अहले हरम के चेहरों पर दृढ़ता व ईमान की किरणें बिखरे हुई थीं न घबराहट, न चिंता, न पछतावा, न शिकवा।

मज़लूमियत का यही वह मोड़ है जो बताता है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम अपने इस क्रांतिकारी अभियान में अहले हरम को साथ लेकर क्यों निकले थे? और जनाबे ज़ैनब (स) को क्यों भाई की हमराही पर इतना इसरार था? और इब्ने अब्बास के मना करने पर क्यों इमाम हुसैन (अ) ने कहा था कि “अल्लाह उन्हें बंदी देखना चाहता है” केवल मांओ की गोदीं से दूध पीते बच्चों की क़ुर्बानियां, उनके करबला आने का असली मक़सद नहीं हो सकतीं, जवान बेटों और भाइयों और नौनेहालों की लाशों पर सब्र व शुक्र के सजदे भी उनकी हमराही का असली मक़सद नहीं कहे जा सकते।

बल्कि अहले हरम की असीरी, कर्बला का एक पूरा अध्याय है अगर हुसैन (अ) औरतों को साथ न लाते और उन्हें असीरों की तरह कूफ़ा व शाम न ले जाया जाता तो बनी उमय्या के शातिर नौकर, कर्बला में दिये गये रसूल इस्लाम स. के परिवार के महान बलिदान को बर्बाद कर देते।

यज़ीदी जुल्म व तानाशाही के दौर में जान-माल के ख़ौफ़ और घुटन के साथ दुनिया की लालच व हवस का जो बाजार गर्म था।

और कूफ़ा व शाम में बसे आले उमय्या के नौकरों के लिये बैतुलमाल का दहाना जिस तरह खोला गया था अगर हुसैन (अ) के अहले हरम न होते और हज़रत ज़ैनब (अ) और इमाम सज्जाद (अ) के नेतृत्व में कर्बला के बंदियों ने ख़ुतबों और तक़रीरों से जिहाद न किया होता तो कर्बला की ज़मीन पर बहने वाला शहीदों का खून बर्बाद हो जाता और दुनिया को ख़बर न होती कि आबादी से मीलों दूर कर्बला की गर्म रेत पर किया घटना घटी और इस्लाम व कुरआन को कैसे भालों और तलवारों से ज़िबह कर दिया गया।

दरअसल यज़ीद लश्कर अहले हरम को बाजारों और दरबारों में ज़लील व रुसवा कर देने के लिए ले गया था मगर रसूल स. के अहलेबैत ने अपने बयान व ख़ुत्बों से खुद यज़ीद और यज़ीदियों को क़यामत तक के लिए अपमानित व नाकाम कर दिया। जनाबे ज़ैनब ने ज़ालिम को मुंह छिपाने की मोहलत नहीं दी और यज़ीद का असली चेहरा बेनक़ाब कर दिया।

 

हौज़ा इलमिया खुरासान के जिहादी उपदेश समूहों के कई अधिकारी अर्बेन हुसैनी (अ) के दौरान मेहरान सीमा पर तीर्थयात्रियों को विभिन्न सेवाएं प्रदान कर रहे हैं, जिसमें अहले-बैत (अ) की शिक्षाओं का प्रचार करना भी शामिल है।

हौज़ा इलमिया ख़ुरासान के जिहादी उपदेश समूहों के कई अधिकारी अरबईन हुसैनी (अ) के दौरान तीर्थयात्रियों इमाम हुसैन (अ) को विभिन्न सेवाएँ प्रदान कर रहे थे

हुज्जतुल इस्लाम मेहदी गली, हौज़ा इलमिया मशहद के प्रचारकों में से एक हैं जो मेहरान सीमा पर हुसैनी तीर्थयात्रियों को सेवाएं प्रदान कर रहे हैं।

उन्होंने बातचीत के दौरान कहा: यहां हम सैयद अल-शोहदा (अ) की सेवा में हैं और तीर्थयात्रियों को धार्मिक और सांस्कृतिक सेवाएं प्रदान करने की कोशिश कर रहे हैं। इन दिनों, हम "मोक़ब-ए-हुसैनिया ईरान" में सामूहिक प्रार्थना और अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन करके तीर्थयात्रियों को सैय्यद अल-शोहदा (अ) को कर्बला की ओर भेजते हैं।

हुज्जतुल-इस्लाम महदी गुली ने भव्य अरबईन मिलियन मार्च का जिक्र करते हुए कहा: इन वर्षों में, शहीदों के खून से धन्य, लोगों की एक बाढ़ आती है जो इमाम हुसैन (अ) की दरगाह की ओर बहती है।

उन्होंने कहा: दुनिया भर से इतनी बड़ी संख्या में लोग सैयद अल-शोहदा (अ) के प्रति प्रेम और भक्ति के कारण यह यात्रा करते हैं।

हुज्जतुल इस्लाम महदी गुली ने कहा: चालू वर्ष में फ़िलिस्तीन का नाम और यह अरबईन, अरबईन प्रतिरोध है।

 

 

 

 

अरबईन हुसैनी के अवसर पर, सोशल मीडिया के एक समूह और फिलिस्तीनी मुद्दों के क्षेत्र में कार्यकर्ताओं ने लोगों से पोल संख्या 817 से 833 तक फिलिस्तीन के समर्थन में निदा अल-अक्सा नामक पैदल मार्च में भाग लेने का अनुरोध किया।

अरबईन इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के मौके पर दुनिया भर से लोग नजफ़ से कर्बला तक पैदल चलते हैं, यह इस्लामी दुनिया, ख़ासकर फ़िलिस्तीन की समस्याओं का वर्णन करने का सबसे अच्छा मौका है ।

इसे ध्यान में रखते हुए, अरबईन हुसैनी के अवसर पर, सोशल मीडिया और फिलिस्तीनी मुद्दों के क्षेत्र में कार्यकर्ताओं के एक समूह ने फिलिस्तीन के समर्थन में पोल संख्या 817 से 833 तक निदा अल-अक्सा नामक पैदल मार्च में भाग लिया करने के लिए।

सोशल मीडिया पर एक घोषणा में, समूह ने लोगों से इस पैदल मार्च में भाग लेने का अनुरोध किया और कहा: अल-अक्सा मस्जिद में आग लगने के 55 साल बीत चुके हैं, इसलिए विश्व मस्जिद दिवस के अवसर पर तीर्थयात्री, कारवां, संघ और संगठन शामिल होंगे। उत्पीड़ित फ़िलिस्तीनियों के समर्थन में, आपको अहंकार विरोधी मार्च में भाग लेने, ज़ायोनीवाद और एकता को नष्ट करने के इरादे से कुछ ब्लॉक चलकर मानवता दिखाने और नजफ़ और कर्बला के बीच निदा अल-अक्सा जुलूस में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया जाता है।

रिपोर्ट के मुताबिक, इस मार्च में बहरीन की नोहा खान सादिक रेहानी मौजूद रहेंगी जो अपने अनोखे अंदाज में कविताएं पेश करेंगी।

ज्ञात हो कि यह पैदल मार्च बुधवार 16 सफ़र-उल-मुजफ्फर को शाम 4.30 बजे निकाला जाएगा इसी तरह सभी मोमिन इस दिन सुबह से 800 से 817 बजे के बीच जुलूस में आराम करेंगे और इसके लिए तैयार होंगे।

 

 

 

क़ादेमून वर्ल्ड असेंबली के सचिव ने घोषणा की: "अल-अक्सा, मिनारतुल इस्लाम" सम्मेलन अल-अक़्सा मस्जिद के समर्थन में "क़ादेमून वर्ल्ड असेंबली और इराक की रबात मुहम्मदी असेंबली के प्रयासों से 16 सफ़र अल-मुजफ्फर को आयोजित किया जाएगा।

क़ादेमून वर्ल्ड असेंबली के सचिव ने घोषणा की: "अल-अक्सा, मिनारतुल इस्लाम" सम्मेलन अल-अक़्सा मस्जिद के समर्थन में "क़ादेमून वर्ल्ड असेंबली और इराक की रबात मुहम्मदी असेंबली के प्रयासों से 16 सफ़र अल-मुजफ्फर को आयोजित किया जाएगा।

उन्होंने आगे कहा: यह इतिहास उस दिन की याद दिलाता है जब ज़ायोनी शासन के एक सदस्य ने पागल होने का नाटक करते हुए मस्जिद के नीचे माअबद सुलेमानी के निर्माण के लिए जमीन उपलब्ध कराने के लिए अल-अक्सा मस्जिद में आग लगा दी थी।

"क़ादेमून वर्ल्ड असेंबली के सचिव ने कहा: यह अफ़सोस की बात है कि पिछले साल देश के कुछ अधिकारियों ने इस दिन को अलग तरीके से मनाया और इसे लक्षित मस्जिद कार्यकर्ताओं के लिए प्रोत्साहन का दिन कहा।

बाकेरी ने कहा: इस साल कार्यक्रम अल-अक्सा मस्जिद के समर्थन पर केंद्रित होगा।

क़ादेमून वर्ल्ड असेंबली के सचिव ने कहा: तूफ़ान अल-अक्सा ऑपरेशन के निर्माण का एक कारण अल-अक्सा मस्जिद पर हमला था और इस ऑपरेशन का नाम भी इसी घटना से प्रेरित था।

बाकेरी ने कहा: ज़ायोनी सरकार के एक मंत्री ने ईद के दिन अल-अक्सा मस्जिद को अपवित्र कर दिया, जिसके बाद हमास और हिजबुल्लाह सहित प्रतिरोध समूहों ने अपमान का जवाब दिया और ज़ायोनीवाद के खिलाफ एक सफल अभियान चलाया।

बता दें कि यह कॉन्फ्रेंस इराक में अरबईन वॉक के दौरान होने जा रही है।

हिब्रू मीडिया ने खुलासा किया है कि हिज़्बुल्लाह का लेबनानी जासूसी ड्रोन नेतन्याहू के निजी आवास में घुसने और तस्वीर लेने में कामयाब रहा है।

हिब्रू मीडिया ने खुलासा किया है कि हिजबुल्लाह का लेबनानी जासूसी ड्रोन नेतन्याहू के निजी आवास में घुसने और तस्वीरें लेने में कामयाब रहा है।

अल जजीरा के अनुसार, लेबनानी प्रतिरोध समूह हिजबुल्लाह से संबंधित एक जासूसी ड्रोन कैसरिया में निरंकुश ज़ायोनी प्रधान मंत्री के विशेष निवास में प्रवेश करने और तस्वीरें लेने में कामयाब रहा है।

हिब्रू अखबार इजराइल हम ने खुलासा किया है कि लेबनान के हिजबुल्लाह के ड्रोन के नेतन्याहू के आवास तक पहुंचने के बाद ज़ायोनी अधिकारी बौखला गए हैं।

अख़बार ने आगे लिखा है कि घटना की सूचना मिलते ही ज़ायोनी युद्धक विमान कृतसंकल्प हो गए, लेकिन हिज़्बुल्लाह ड्रोन को पकड़ने में विफल रहे।

गौरतलब है कि अल-मयादीन ने कब्ज़ा किये हुए ज़ायोनी मीडिया के हवाले से यह भी कहा है कि हिज़्बुल्लाह लेबनान के ड्रोन विमान ने नेतन्याहू के विशेष निवास की तस्वीरें ली हैं।

कोलकाता भारत में सभी धर्मों के लिए "पैग़ामे कर्बला" विषय पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया जिसमें सभी धर्मों के अनुयायियों ने भाग लिया।

नूरुल इस्लाम अकादमी और अलवरदिशा सोशल वेलफेयर फाउंडेशन ने संयुक्त रूप से कोलकाता के मिल्ली अलामीन कॉलेज के सभागार में "कर्बला का संदेश" विषय पर एक भव्य सेमिनार का आयोजन किया लोगों के लिए कर्बला का संदेश. इसके अलावा मौलाना आजाद कॉलेज के अरबी विभाग के प्रमुख पीरजादा, प्रोफेसर डॉ. सैयद शाह मुस्तफा जमाल-उल-कादरी शामिल हुए. बौद्ध आदरणीय बधाररक्षिता, कलकत्ता उच्च न्यायालय के वकील श्री जगी प्रतक मजूमदार, मिदनापुर रूजा अकदस पीर सैयद शाह मात्रशिद अली अल कादरी, रोड स्ट्रीट जामा मस्जिद पेश इमाम मौलाना शब्बीर अली मिस्बाही, अल मुस्तफा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और नूरुल इस्लाम अकादमी के अध्यक्ष मौलाना डॉ. रिज़वान सलाम खान, कादरी टाइम्स के संपादक श्री सैयद मिन्हाज हुसैन अल हुसैनी, राह हक पत्रिका के संपादक श्री मुश्ताक अहमद, गुलाम मुस्तफा पब्लिक स्कूल के प्रिंसिपल श्री मुहम्मद जहांगीर साहब, श्री कामरान हुसैन वारसी और मोइन हुसैन अख्तर ने भाग लिया।

वक्ताओं ने कर्बला की जलती धरती पर हजरत इमाम हुसैन (अ) के महान बलिदान का उल्लेख किया और इमाम हुसैन (अ.स.) के लिए संदेश प्रस्तुत किया।

इसके अलावा, प्रत्येक वक्ता ने सभी धर्मों के बीच सद्भाव, प्रेम और मानवीय बंधन पर जोर दिया।

इस दिलचस्प सेमिनार के एक चरण में, जिसमें राज्य के विभिन्न जिलों के गणमान्य लोगों ने भाग लिया, 'सतीर पटले' नामक एक सामाजिक पत्रिका प्रकाशित की गई।

कार्यक्रम के अंत में जिले के 150 से अधिक गणमान्य लोगों को संस्था की ओर से प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया।

अंत में विश्व शांति के लिए विशेष प्रार्थना के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।

अब्दुलबारी अत्वान ग़ज़ा युद्ध के संघर्ष विराम के मुक़ाबले में अरब देशों के रवइये और क्रियाकलापों की समीक्षा करते हैं और वह मिस्र और क़तर जैसे देशों की भूमिका की तीव्र आलोचना करते और कहते हैं कि इन देशों ने किसी प्रकार की शर्त के बिना वार्ता की यहां तक कि इसके बाद नेतनयाहू ने जानबूझकर ग़ज़ा के अद्दरज मोहल्ले में अपराध अंजाम दिया।

अब्दुल बारी अत्वान ने रायुल यौम समाचार पत्र में हमास आंदोलन के नेता यहिया सिन्वार के दोहा वार्ता के बहिष्कार पर आधारित साहसी फ़ैसले की समीक्षा की। पार्सटुडे की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने अपने लेख में लिखा कि यहिया सिन्वार का फ़ैसला विदेशी दबावों के मुक़ाबले में हमास के मज़बूत व ठोस दृष्टिकोण का सूचक है।

इसी प्रकार उन्होंने हमास आंदोलन के फ़ैसले को अमेरिका और मध्यस्थ की भूमिका निभाने वाले अरब देशों के दबाव की नाकामी का सूचक बताया।

उन्होंने कहा कि यह वार्ता अमेरिका की गुप्तचर सेवा सीआईए के प्रमुख विलियम बेन्ज़ की अगुवाई में हुई और इस वार्ता का आयोजन उतावलेपन में किया गया और उसका लक्ष्य तेहरान में हमास के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख इस्माईल हनिया की शहादत और बैरूत में लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह के एक वरिष्ठ कमांडर फ़ोवाद शुक्र की हत्या का बदला लेने से रोकना था पर उसका कोई नतीजा नहीं निकला क्योंकि नेतनयाहू ने जानबूझकर यह कृत्य अंजाम दिया ताकि वह इस रास्ते से क्षेत्र में युद्ध की आग को हवा दे सकें और साथ ही नेतनयाह अमेरिका और पश्चिमी घटकों को भी इस जंग में घसीटना चाहते थे।

अब्दुल बारी ने लिखा कि यहां तक कि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन भी जंग रुकवाने के प्रयास में नहीं हैं और उनके अंदर नेतनयाहू और उनके मंत्रिमंडल पर दबाव डालने का साहस नहीं है और वह अपमान जनक ढंग से नेतनयाहू की मांगों को स्वीकार कर लेते हैं और अभी हाल ही में उन्होंने 20 अरब डॉलर का सैनिक पैकेज इस्राईल की सहायता के लिए दिया तो उसे इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है। इस पैकेज में एफ़ 35 युद्धक विमान, अधिक शक्तिशाली और विनाशकारी बम आदि शामिल है।

अब्दुल बारी अत्वान आगे लिखते हैं हमास आंदोलन के राजनीतिक कार्यालय के नेता यहिया सिन्वार ने अपने क्रियाकलापों से साबित कर दिया है कि वह अमेरिका और ज़ायोनी सरकार से बिल्कुल नहीं डरते हैं और जो अरब नेता अमेरिका और इस्राईल की धौंस में आकर उनके सामने नतमस्तक हो गये हैं उस पर वे ध्यान नहीं देते हैं और वे ज़ायोनियों का जवाब सैनिक और ताक़त की भाषा में दे रहे हैं।

अब्दुल बारी अत्वान ने लिखा कि नेतनयाहू समझते हैं कि ग़ज़्ज़ा के अद्दरज मोहल्ले में स्थित स्कूल पर बमबारी करके और इस्माईल हनिया को शहीद करके प्रतिरोध को डरा सकते हैं और फ़िलिस्तीन के साथ मिस्र की सीमा पर सलाहुद्दीन क्षेत्र में अपने अतिक्रमणकारी सैनिकों को रख सकते हैं और जिस समय चाहें दोबारा ग़ज़्ज़ा पट्टी पर हमला कर सकते हैं। इसी प्रकार वह फ़िलिस्तीनी संघर्षकर्ताओं पर अपनी दूसरी शर्तों को थोपना चाहते हैं परंतु उनकी सोच का उल्टा परिणाम निकला। जिसका जीवंत उदाहरण यह है कि हमास ने दोहावार्ता में भाग नहीं लिया। दूसरे शब्दों में अमेरिका और इस्राईल हमास पर अपनी शर्तों को नहीं थोप सकते और 10 महीनों से जारी युद्ध भी इस बात का कारण नहीं बन सका कि फ़िलिस्तीनी संघर्षकर्ता गुट हमास ग़ज़ा युद्ध में इस्राईल को कोई विशिष्टता दे जबकि इससे पहले जो कैंप डेविड और ओस्लो में समझौते हुए थे वे कुछ ही दिनों में या कुछ ही घंटों के अंदर हुए थे।

 इसी प्रकार उन्होंने इस ओर संकेत किया कि इस वार्ता में अरब देशों की ख़ुफ़िया सेवाओं के प्रमुख अमेरिकी मांगों के सामने झुक गये हैं और इस झुक जाने को उन्होंने ज़ायोनी सरकार को अपरोधों को जारी रखने हेतु प्रोत्साहन के रूप में याद किया। उन्होंने अरब देशों के नेताओं का आह्वान किया है कि वे उपलब्धियों को ध्यान में रखकर और बुद्धि से काम लेकर बात करें और नेतनयाहू और उनके जनरलों की सेवा करने से परहेज़ करें। इसी प्रकार अब्दुलबारी अत्वान ने लिखा कि अरब नेता इस्राईल की खाद्य ज़रूरतों को पूरा करके करके उनकी सेवा न करें विशेषकर इसलिए कि वे ग़ज़ा पट्टी के लोगों के लिए एक पैकेट आटा, पानी का एक बोतल और इसी प्रकार एक कार्टून दवा नहीं भेज सकते।

उन्होंने लिखा कि अमेरिका अरब देशों के नेताओं के साथ बच्चों जैसा व्यवहार व बर्ताव कर रहा है और बड़ी आसानी से उन्हें मूर्ख बना रहा है।

उन्होंने लिखा कि अमेरिका ने क्षेत्र में युद्धपोत भेजा और परमाणु पनडुब्बी भेजी परंतु यमनी उससे भयभीत नहीं हुए। उन्होंने हमास के राजनीतिक कार्यालय के नये प्रमुख की प्रशंसा व सराहना करते हुए लिखा कि यहिया सिन्वार को हक़ है कि वह निश्चिंत होकर ग़ज़ा के नीचे से मोहम्मद ज़ैफ़ और मरवान ईसा जैसे अपने सहायकों के माध्यम से हालात का संचालन व दिशा निर्देशन करें और मेरे विचार में यहिया सिन्वार न केवल फ़िलिस्तीनी जनता बल्कि अरब जगत के मार्गदर्शन व नेतृत्व की क्षमता रखते हैं।

इराकी संचार मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि यह सेवाएँ सऊदी अरब, कुवैत, ईरान या लेबनान जैसे देशों से इराक में प्रवेश करने वाले ज़ायरीन के लिए उपलब्ध होंगी।

इराकी संचार मंत्री ने घोषणा किया कि मंत्रालय अरबईन के दौरान मुफ्त घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय कॉलिंग और इंटरनेट सेवाओं के साथ एक सिम कार्ड प्रदान करेगा।

हयाम अलयासरी ने मंगलवार को एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि इराक के संचार मंत्रालय ने कुछ सप्ताह पहले अरबईन तीर्थयात्रा की तैयारी शुरू कर दी हैं हमने इस यात्रा के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ तैयार करने के लिए एक ऑपरेशन कक्ष स्थापित किया है।

उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि उन्होंने एक अस्थायी हवाई फाइबर ऑप्टिक नेटवर्क के निर्माण और विस्तार का आदेश दिया जो सीमाओं से तीर्थयात्रा मार्गों तक फैला हुआ है।

हयाम अलयासरी ने कहा कि हमने उन मोबाइल फोन कंपनियों और कंपनियों की इंटरनेट कीमतें कम करने का भी आदेश दिया है जो स्वेच्छा से ये सेवाएं मुफ्त में प्रदान करती हैं।

इराकी संचार मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि ये सेवाएँ सऊदी अरब, कुवैत, ईरान या लेबनान जैसे देशों से इराक में प्रवेश करने वाले प्रत्येक तीर्थयात्री के लिए उपलब्ध होंगी।

उन्होंने कहा Supercell कंपनी ने काज़ेमैन हरम के आस पास मुफ्त इंटरनेट सेवा प्रदान की है और हम Iraqcell कंपनी द्वारा नजफ अशरफ और कर्बला में मुफ्त सेवा प्रदान करने की भी जांच कर रहे हैं।