رضوی

رضوی

हर घटना इस दुनिया में तब होती है जब उसके लिए सही हालत और कारण मौजूद होते हैं। बिना सही हालत के, कोई भी चीज़ अस्तित्व में नहीं आ सकती।

इमाम महदी अलैहिस्सलाम के ज़ुहूर की कुछ शर्तें और निशानियां हैं, जिन्हें ज़ुहूर के लिए ज़रूरी शर्तें और उसके संकेत कहा जाता है। इन दोनों में फर्क यह है कि शर्तें ज़ुहूर के होने में असली भूमिका निभाती हैं, यानी जब ये शर्तें पूरी हो जाएगी तो इमाम महदी का ज़ुहूर होगा, और बिना इन शर्तों के ज़ुहूर संभव नहीं है। लेकिन निशानियां ज़ुहूर के होने में कोई भूमिका नहीं निभातीं, वे केवल संकेत होती हैं जिनसे हम ज़ुहूर के होने या उसके करीब आने का पता लगा सकते हैं।

इस फर्क को समझकर हम अच्छी तरह जान सकते हैं कि शर्तें निशानियों से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। इसलिए हमें निशानियों को खोजने से ज्यादा शर्तों पर ध्यान देना चाहिए और अपनी ताकत के अनुसार उन्हें पूरा करने की कोशिश करनी चाहिए। इसी वजह से हम पहले ज़ुहूर की शर्तों और हालतों को समझाएंगे।

ज़ुहूर के लिए ज़रूरी हालात 

दुनिया में हर घटना तब होती है जब उसके लिए सही हालत और शर्ते मौजूद हों। बिना इन शर्त और हालात के, कोई भी चीज़ अस्तित्व में नहीं आ सकती। हर जमीन में बीज उगाने की क्षमता नहीं होती और हर मौसम हर पौधे के बढ़ने के लिए सही नहीं होता। जैसे किसान तभी अच्छी फसल की उम्मीद कर सकता है जब उसने फसल उगाने के लिए जरूरी हालत पूरी कर ली हों।

इसी आधार पर, हर क्रांति और सामाजिक घटना भी अपनी हालात और शर्तों पर निर्भर करती है। इमाम महदी (अलैहिस्सलाम) का वैश्विक क़याम और क्रांति, जो सबसे बड़ी वैश्विक हलचल है, भी इसी सिद्धांत पर आधारित है और बिना ज़रूरी शर्तों और हालात के पूरा नहीं होगा।

इसका मतलब यह नहीं है कि इमाम महदी (अलैहिस्सलाम) के क़याम और शासन की बात इस दुनिया के नियमों से अलग है, या उनकी सुधार की हलचल चमत्कार से और बिना सामान्य कारणों और साधनों के पूरी होगी। बल्कि, क़ुरान और मासूम इमामों (अलैहिस्सलाम) की शिक्षाओं के अनुसार, अल्लाह की सुन्नत यही है कि दुनिया के काम सामान्य और प्राकृतिक कारणों और साधनों से होते हैं।

इमाम सादिक़ (अलैहिस्सलाम) ने इस बारे में फ़रमाया है:

أَبَی اَللَّهُ أَنْ یُجْرِیَ اَلْأَشْیَاءَ إِلاَّ بِأَسْبَابٍ अबल्लाहो अय युज्रेयल अश्याआ इल्ला बेअस्बाबिन 

अल्लाह तआला इस बात से इंकार करता है कि कोई काम बिना वजह और साधनों के पूरा हो जाए। (काफी, भाग 1, पेज 183) 

यह बात इसका मतलब नहीं है कि महदी (अलैहिस्सलाम) का बड़ा क़याम में कोई अलौकिक और आसमानी मदद नहीं होगी, बल्कि इसका मतलब यह है कि अल्लाह की मदद के साथ-साथ हालात, कारण और सामान्य शर्तें भी पूरी होनी चाहिए।

महदी (अ) के वैश्विक क़याम और क्रांति के सबसे महत्वपूर्ण चार शर्तें हैं, जिन्हें हम अलग-अलग विस्तार से समझेंगे।

अ) योजना और कार्यक्रम

यह स्पष्ट है कि हर क्रांति और सुधार की हलचल को दो तरह के कार्यक्रम की ज़रूरत होती है:

  1. एक व्यापक योजना जो वर्तमान गलतियों और बुराइयों से लड़ने के लिए ताकतों को संगठित करे।
  2. एक पूरी और सही क़ानून व्यवस्था जो समाज की सभी ज़रूरतों को पूरा करे, हर व्यक्ति और समाज के अधिकारों की रक्षा करे, और एक न्यायपूर्ण शासन व्यवस्था बनाए, जो समाज को आदर्श स्थिति तक पहुंचाने के लिए मार्गदर्शन करे।

क़ुरान मजीद और आइम्मा ए मासूमीन (अलैहेमुस्सलाम) की शिक्षाएँ, जो असली इस्लाम हैं, इमाम ज़माना (अलैहिस्सलाम) के पास सबसे बेहतरीन क़ानून और कार्यक्रम के रूप में मौजूद हैं। वे इस दिव्य और अमर मार्गदर्शिका के अनुसार काम करेंगे। यह किताब (क़ुरआन) अल्लाह की ओर से नाज़िल हुई है, जो इंसान की ज़िंदगी के हर पहलू और उसकी माद्दी और रूहानी ज़रूरतों को जानता है।

इसलिए उनकी वैश्विक क्रांति की योजना और शासन व्यवस्था की कोई तुलना नहीं है। आज की दुनिया ने मानव निर्मित कानूनों की कमजोरी को स्वीकार किया है और धीरे-धीरे आसमानी और इलाही कानूनों को अपनाने के लिए तैयार हो रही है।

ब) नेतृत्व

सभी क्रांतियों में, एक नेता की ज़रूरत सबसे जरूरी होती है। और जितनी बड़ी और ऊँची मंज़िल वाली क्रांति होती है, उतना ही सक्षम और उपयुक्त नेतृत्व चाहिए होता है।

दुनिया में अन्याय और अत्याचार के खिलाफ लड़ाई और न्याय व समानता के शासन के लिए, एक जागरूक, सक्षम और दयालु नेता की मौजूदगी जो सही और दृढ़ प्रबंधन कर सके, क्रांति का मुख्य और सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। हज़रत महदी (अलैहिस्सलाम) जो सभी नबियों और वालियों का सार हैं, एक बड़े आंदोलन के जीवित और मौजूद नेता हैं। वे एक ऐसे नेता हैं जिनका गहरा संबंध ग़ैब की दुनिया से है, इसलिए उन्हें पूरी कायनात और उसके सभी संबंधों की पूरी जानकारी है, और वे अपने समय के सबसे ज्ञानी इंसान हैं।

नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वआलिहि वसल्लम) ने फ़रमाया:
أَلَا إِنَّهُ وَارِثُ کُلِّ عِلْمٍ وَ الْمُحِیطُ بِکُلِّ فَهْمٍ अला इन्नहू वारेसुो कुल्ले इल्मिन वल मोहीतो बेकुल्ले फ़हमिन 

जान लो! वह (महदी) सभी ज्ञान का वारिस है और हर समझदारी पर पूरी पकड़ रखता है। (खुत्बा-ए-ग़दीर)

ज) साथी

ज़ुहूर के लिए एक और ज़रूरी शर्त है कि ऐसे योग्य और काबिल साथी मौजूद हों जो उस क्रांति का समर्थन करें और वैश्विक शासन के कामों को अंजाम दें। यह साफ है कि जब कोई बड़ी वैश्विक क्रांति आकाशीय नेतृत्व के तहत होती है, तो उसे ऐसे साथी चाहिए जो उसके स्तर के हों। हर कोई जो साथी होने का दावा करता है, वह उस मैदान में नहीं आ सकता।

द) आम तैयारी

आइम्मा ए मासूमीन (अलैहिस्सलाम) के इतिहास के विभिन्न दौरों में यह देखा गया है कि लोग इमाम की मौजूदगी का सही फायदा उठाने के लिए तैयार नहीं थे। उन्होंने अलग-अलग समयों में मासूम की उपस्थिति की कदर नहीं की और उनकी सही हिदायतों से उतना लाभ नहीं उठाया जितना चाहिए था। अल्लाह तआला ने आखिरी हुज्जत को छुपा रखा है ताकि जब भी लोगों में उसे स्वीकार करने की आम तय्यारी हो, वह ज़ुहूर करें और सभी को अल्लाह की ज्ञान की स्रोत से लाभान्वित करे।

इसलिए, तैयारी का होना महदी मौऊद के ज़ुहूर के लिए बहुत महत्वपूर्ण शर्त है, और इसी से उनकी सुधार की हलचल सफल होगी। ज़ुहूर तब होगा जब सभी दिल से सामाजिक न्याय, नैतिक और मानसिक सुरक्षा, और आध्यात्मिक विकास और तरक्की की चाह रखेंगे।

यह साफ है कि इमाम की मौजूदगी को महसूस करने की चाह तब सबसे ज्यादा बढ़ेगी जब इंसानियत ने अलग-अलग मानव निर्मित सरकारों और व्यवस्थाओं का अनुभव कर लिया होगा और यह समझ जाएगी कि दुनिया को भ्रष्टाचार और बर्बादी से बचाने वाला केवल अल्लाह का खलीफा और ज़मीन पर उनका वारिस, हज़रत महदी (अलैहिस्सलाम) ही हैं। और जो एकमात्र योजना इंसानों के लिए साफ़ और पवित्र ज़िंदगी लाएगी, वह अल्लाह का क़ानून हैं। इसलिए वे पूरी ताकत से इमाम की ज़रूरत को समझेंगे, ज़ुहूर के लिए ज़रूरी शर्तें पूरी करने की कोशिश करेंगे, रास्ते की बाधाओं को दूर करेंगे, और तभी राहत और फरज आएगा।

हज़रत रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वआलिहि वसल्लम) ने एक हदीस में फ़रमाया:
... حَتَّی لاَ یَجِدُ اَلرَّجُلُ مَلْجَأً یَلْجَأُ إِلَیْهِ مِنَ اَلظُّلْمِ، فَیَبْعَثُ اَللَّهُ رَجُلاً مِنْ عِتْرَتِی...  . ... हत्ता या यजेदुर रज्लो मलजअन यल्जओ इलैहे मिनज़ जुल्मे, फ़यबअसुल्लाहो रजोलन मिन इतरती ...
जब कोई इंसान अन्याय से बचने के लिए कोई ठिकाना नहीं पाएगा, तब अल्लाह मेरी नस्ल में से एक व्यक्ति को भेजेगा (इस्बातुल हुदा, भाग 5, पेज 244)

इक़्तेबास: किताब "नगीन आफरिनिश" से (मामूली परिवर्तन के साथ)

 

अल्जीरियाई अधिकारियों ने फ्रांस की आंतरिक सुरक्षा सेवा से जुड़े दो एजेंटों को देश से निष्कासित कर दिया है।

अल्जीरियाई मीडिया ने सोमवार को बताया कि इस देश के अधिकारियों ने फ्रांस की आंतरिक सुरक्षा सेवा से जुड़े दो एजेंटों को देश से निष्कासित कर दिया है।

 रिपोर्ट में कहा गया है कि ये फ्रांसीसी एजेंट एक राजनयिक मिशन के नाम पर अल्जीरिया में घुसपैठ करने की कोशिश कर रहे थे।

 अल्जीरिया में की गई जांच से यह बात सामने आई है कि फ्रांसीसी पक्ष ने इन एजेंटों की सुरक्षा एजेंसी से जुड़ी पहचान को अल्जीरियाई अधिकारियों के साथ साझा नहीं किया था।  इसी आधार पर अल्जीरिया ने उन्हें देश से बाहर निकालने का निर्णय लिया।

 ग़ौरतलब है कि एक माह पहले भी, अल्जीरिया ने फ्रांस के दूतावास और काउंसलर कार्यालयों के 12 कर्मचारियों को निष्कासित किया था।

 सूडान| फ़ाशर शहर में 14 आम नागरिकों की हत्या का आरोप RSF पर

सूडानी कार्यकर्ताओं ने रविवार को आरोप लगाया कि सूडान के फ़ाशर शहर में त्वरित प्रतिक्रिया बल (RSF) ने 14 आम नागरिकों की हत्या की, जिनमें एक पूरा परिवार भी शामिल है। यह घटना "अबू शौक" शरणार्थी शिविर और शहर के कुछ अन्य इलाकों पर मोर्टार हमले के दौरान हुई।

 रिपोर्टों के अनुसार, इस बमबारी में कई अन्य लोग घायल भी हुए, जिन्हें इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

 अबू शौक शरणार्थी शिविर दारफ़ुर क्षेत्र के सबसे बड़े शिविरों में से एक है, जो फ़ाशर शहर के उत्तर में स्थित है।

 इससे पहले भी, सूडानी सूत्रों ने बताया था कि त्वरित प्रतिक्रिया बल (RSF) द्वारा सूडान के कुर्दफान राज्य के अल-अबीद शहर में एक जेल और अस्पताल पर ड्रोन हमले में दर्जनों लोगों की मौत और घायल होने की घटनाएं हुई थीं।

 मिस्र| मिस्र के विदेश मंत्रालय ने कहा: ग़ज़ा में युद्ध का रुकना बेहद आवश्यक है

मिस्र के विदेश मंत्रालय ने (सोमवार) को एक बयान जारी करके क्षेत्र में व्यापक शांति की दिशा में कदम उठाने की आवश्यकता और ग़ज़ा पट्टी में युद्ध के मानवीय दुष्परिणामों से बचने की ज़रूरत पर बल दिया।

 बयान में हमास द्वारा अपने कब्ज़े में एक अमेरिकी बंधक को रिहा करने की सहमति पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा गया कि मिस्र और क़तर इस कदम का स्वागत करते हैं और इसे वार्ता की बहाली की दिशा में एक सकारात्मक पहल माना जा रहा है।

 मोरक्को| टांजा शहर में मोरक्कावासियों ने ग़ज़ा के साथ आवाज़ मिलाई

मोरक्को के टांजा शहर में सोमवार को फिलिस्तीन समर्थकों ने ग़ज़ा के निवासियों के साथ एकजुटता व्यक्त की और वहां जारी युद्ध, घेराबंदी और जानबूझकर कराई जा रही भुखमरी की निंदा की।

 इस्राइली शासन ने ग़ज़ा पट्टी के सभी मार्ग बंद कर दिए हैं और लगातार तीसरे महीने फिलिस्तीनी पूर्ण नाकेबंदी में जीवन जी रहे हैं।

इस परिस्थिति के कारण भयानक अकाल और लोगों की दैनिक मौतें, विशेष रूप से बच्चों की मौत हो रही हैं।

 लीबिया| लीबिया: हम अमेरिका द्वारा निष्कासित प्रवासियों की मेज़बानी नहीं करेंगे

हालाँकि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने लीबिया में प्रवासियों को निर्वासित करने की किसी भी योजना से अनभिज्ञता जताई है, लेकिन उनकी सरकार के अधिकारी प्रवासियों को विदेशी देशों में वापस भेजने की कोशिश कर रहे हैं।

 इसी संदर्भ में, लीबियाई अधिकारियों ने हाल ही में उन रिपोर्टों का कड़ा खंडन किया है, जिनमें कहा गया था कि लीबिया अमेरिका से निकाले गए बिना दस्तावेज़ों वाले प्रवासियों को स्वीकार करने वाला है।

 ईरान - मिस्र | मिस्र में ईरान की सांस्कृतिक कूटनीति

अनूशीरवान मोहसिनी बंदपेई, ईरान के सांस्कृतिक विरासत, पर्यटन और हस्तशिल्प मंत्रालय के उप मंत्री ने सोमवार को मंत्री सैयद रज़ा सालेही अमीरी की मिस्र यात्रा को "ऐतिहासिक, मार्गदर्शक और अत्यंत प्रभावशाली" बताया।

 उन्होंने कहा कि सालेही अमीरी की यह यात्रा देशी और विदेशी मीडिया में व्यापक रूप से चर्चित रही है और यह यात्रा ईरान की अरब और अफ्रीकी दुनिया के साथ सांस्कृतिक और पर्यटन संबंधों में गंभीर और सकारात्मक परिवर्तन का आधार बन सकती है।

 यह घटनाक्रम ईरान की पर्यटन कूटनीति में एक मील का पत्थर माना जा रहा है, जो शांति, संवाद और सभ्यता-आधारित सोच का संदेश वैश्विक समुदाय तक पहुँचाता है।

 

इस्लामी रिवायतो के अनुसार, कुछ ऐसे काम हैं, जिन्हें अपनाने से व्यक्ति की उम्र बढ़ती है और उसके जीवन में बरकत आती है। आज की भागदौड़ भरी दुनिया में यह जानना जरूरी है कि कौन से काम न सिर्फ परलोक के लिए उपयोगी हैं, बल्कि सांसारिक दृष्टि से भी इंसान के लिए फायदेमंद हैं।

इस्लामी रिवायतो के अनुसार, कुछ ऐसे काम हैं, जिन्हें अपनाने से व्यक्ति की उम्र बढ़ती है और उसके जीवन में बरकत आती है। आज की भागदौड़ भरी दुनिया में यह जानना जरूरी है कि कौन से काम न सिर्फ परलोक के लिए उपयोगी हैं, बल्कि सांसारिक दृष्टि से भी इंसान के लिए फायदेमंद हैं।

सवाल: क्या परंपराओं में ऐसे कोई काम बताए गए हैं, जिनसे उम्र बढ़ती है?

जवाब: हां! इस्लामी हदीसों में ऐसे कई काम और तौर-तरीके बताए गए हैं, जिन्हें व्यक्ति की उम्र बढ़ाने में कारगर माना जाता है। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

  1. इमाम हुसैन (अ) की जियारत करना

हदीसों में इमाम हुसैन (अ) की जियारत को जीवन को लम्बा करने का एक महत्वपूर्ण साधन माना जाता है।

इमाम बाकिर और इमाम सादिक (अ) से वर्णित है कि:

इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत के बदले में, अल्लाह तआला ने उनके हाजियों को यह आशीर्वाद दिया है कि उनकी जियारत के दिन उनकी उम्र में नहीं गिने जाते।

एक अन्य हदीस में, इमाम सादिक (अ) फ़रमाते हैं:

ऐ अब्दुल मलिक! इमाम हुसैन (अ) की जियारत करना न छोड़ें, क्योंकि इससे जीवन लम्बा होता है, आजीविका बढ़ती है और व्यक्ति सुखी जीवन जीता है।

  1. रिश्तेदारी (रिश्तेदारों से संबंध स्थापित करना)

पैग़म्बर (स) ने फ़मायाः जो कोई भी चाहता है कि उसका जीवन लम्बा हो और उसकी आजीविका धन्य हो, उसे रिश्तेदारी संबंध स्थापित करने चाहिए।

एक अन्य हदीस में उन्होंने कहा: भले ही लोग पापी हों, लेकिन रिश्तेदारी का आशीर्वाद उनकी आयु और धन को बढ़ाता है।

  1. तक़वा (धर्मपरायणता)

अल्लाह के रसूल (स) ने फ़रमाया: जो कोई लंबी उम्र और भरपूर जीविका चाहता है, उसे तक़वा का पालन करना चाहिए और अच्छे संबंध बनाए रखने चाहिए।

  1. दुआ

मासूमीन (अ) की दुआएँ बार-बार अल्लाह से लंबी और धन्य जीवन के लिए दुआ करती हैं। इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) अबू हमज़ा सुमाली की दुआ में कहते हैं: हे प्रभु! मुझे उन लोगों में शामिल कर जिनकी आयु लंबी है, जिनके कर्म अच्छे हैं, जिनकी बरकतें पूरी हैं और जिनका जीवन पवित्र है।

  1. भलाई, दान और दयालुता

अमीरुल मोमेनीन (अ) फ़रमाते हैं: बहुत सारे अच्छे काम करने से जीवन बढ़ता है।

इमाम बाकिर (अ) : दान और गुप्त दान गरीबी को दूर करते हैं, आयु बढ़ाते हैं और 70 प्रकार की बुरी मौतों से बचाते हैं।

  1. माता-पिता और परिवार के साथ अच्छा व्यवहार

अल्लाह के रसूल (स) ने फ़रमाया: जो कोई लंबी आयु और भरपूर जीविका चाहता है, उसे अपने माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए।

इमाम सादिक (अ) : यदि आप चाहते हैं कि आपकी आयु बढ़े, तो अपने माता-पिता को खुश करें।

  1. अच्छे इरादे, अच्छे व्यवहार

पवित्र पैग़म्बर (स) : जो व्यक्ति सत्य, न्याय, माता-पिता के प्रति दया और अच्छे संबंधों से संपन्न है, उसकी आयु लंबी होगी, उसे भरपूर जीविका, उत्तम बुद्धि और कब्र के मामलों में सफलता मिलेगी।

इमाम सादिक (अ) फ़रमाते हैं: सदाचार और अच्छे व्यवहार से शहर आबाद होते हैं और जीवन लंबा होता है।

इस्लामी रिवायतो में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि केवल लंबी आयु होना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि यह एक धन्य और सदाचारी जीवन होना चाहिए। यदि किसी व्यक्ति का जीवन बुरे कर्मों में बीतता है, तो बेहतर है कि ऐसे जीवन से पहले मृत्यु आ जाए, जैसा कि इमाम सज्जाद (अ) ने दुआ की है।

 

शहीद-ए-खिदमत की पहली बरसी के मौके पर, ख़ुरासान प्रांत की 100 धार्मिक मदरसे इन शहीदों की याद को ज़िंदा रखने और उनकी क्रांतिकारी व जिहादी मूल्यों को नई पीढ़ी तक पहुँचाने के उद्देश्य से भव्य श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा हैं।

शहीद आयतुल्लाह रईसी और अन्य महान शहीदों की पहली बरसी के अवसर पर ख़ुरासान प्रांत के 100 धार्मिक मदरसों में इन शहीदों के सम्मान में श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित किए जा रहा हैं।

यह कार्यक्रम मदरसों की पहल पर आयोजित किए जा रहे हैं जिनका उद्देश्य बलिदान और शहादत की संस्कृति को समाज में फैलाना और ‘शहीद-ए-खिदमत’ का संदेश लोगों तक पहुँचाना है।

धार्मिक मदरसे अगली पीढ़ी के नैतिक और धार्मिक प्रशिक्षण के केंद्र हैं, और वे धार्मिक तथा क्रांतिकारी मूल्यों को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। ऐसे में इन कार्यक्रमों का आयोजन शहीद रईसी और अन्य शहीदों के उद्देश्यों और आदर्शों को याद करने का एक विशेष अवसर है।

इन आयोजनों का मुख्य उद्देश्य युवाओं में सेवा की भावना और जिहादी सोच को बढ़ावा देना है, जिस पर विशेष रूप से ध्यान दिया गया है।

जिम्मेदार संस्थाओं के अनुसार, इन कार्यक्रमों में शहीदों के जीवन और बहादुरी पर भाषण, डॉक्युमेंट्री फ़िल्मों का प्रदर्शन, सेवा और बलिदान पर आधारित प्रदर्शनियाँ, तथा जिहादी आंदोलनों के सामाजिक और आध्यात्मिक पहलुओं पर विशेष परिचर्चाएँ होंगी। इसके अतिरिक्त, छात्रों और तलबा की ओर से कविता पाठ, भावनात्मक लेख और श्रद्धांजलि संदेश भी पेश किए जाएंगे।

 

फ्रांस के विभिन्न शहरों में इस्लामोफोबिया के खिलाफ अब तक के सबसे बड़े प्रदर्शन आयोजित किए गए।

फ्रांस के विभिन्न शहरों में इस्लामोफोबिया के खिलाफ अब तक के सबसे बड़े प्रदर्शन आयोजित किए गए।

यह विरोध-प्रदर्शन उस समय शुरू हुए जब 25 अप्रैल को फ्रांस के दक्षिणी क्षेत्र "ला ग्रांदे कोब" स्थित "खदीजा मस्जिद" में एक मुसलमान व्यक्ति अबूबक्र सीसे की पिटाई के चलते मौत हो गई।

हमलावर की पहचान ओलिविये एच. नामक एक फ्रांसीसी नागरिक के रूप में हुई है। उसने अबूबक्र सीसे पर हमला किया और इस घटना का वीडियो अपने फोन से रिकॉर्ड किया। हमले के दौरान वह इस्लाम के खिलाफ अपमानजनक शब्दों का भी इस्तेमाल कर रहा था।

अबूबक्र की मौत ने फ्रांस के मुस्लिम समुदाय में गहरी नाराज़गी और आक्रोश पैदा कर दिया।पेरिस, मार्से, और लियोन सहित देश के कई बड़े शहरों में लोग इस्लामोफोबिया के बढ़ते मामलों, मीडिया और सरकारी नीतियों में मुस्लिम विरोधी प्रवृत्तियों के खिलाफ सड़कों पर उतर आए।

प्रदर्शनकारियों ने अबूबक्र सीसे को न्याय दिलाने की मांग की। कई लोगों ने फिलिस्तीन के झंडे लहराए और फिलस्तीनी लोगों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए अपने गले में चफिया पहन रखी थी।

 

पोप लियो चौदहवें ने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम का आहान किया और उम्मीद जताई कि दोनों देशों के बीच सहयोग समान होंगे और ग़ाज़ा में भी शांति आएगी

कैथोलिकों के नए धर्मगुरु पोप लियो चौदहवें ने कहा,मैं आशा करता हूँ कि बातचीत के माध्यम से भारत और पाकिस्तान के बीच एक स्थायी युद्धविराम समझौता हो जाए।

अनातोली समाचार एजेंसी के हवाले से उन्होंने कहा कि एक बड़ी त्रासदी के बाद दुनिया को सबक लेना चाहिए और वैश्विक शक्तियों से आग्रह किया कि वे तीसरे विश्व युद्ध को रोकने के लिए कदम उठाएं। उन्होंने जोड़ा,दुनिया को अब और कोई युद्ध नहीं चाहिए।

नए पोप ने ज़ोर देकर कहा कि हर प्रयास को स्थायी और सच्चे शांति समाधान की ओर ले जाना चाहिए। उन्होंने मांग की कि सभी बंदियों को रिहा किया जाए और बच्चों को उनके परिवारों से मिलाया जाए।

उन्होंने गाज़ा पट्टी में मानवीय संकट को लेकर भी गहरी चिंता जताई, विशेष रूप से दो महीने से अधिक समय से मानवीय सहायता के रोके जाने पर। उन्होंने कहा,मैं इस क्षेत्र में जो हो रहा है उससे गहराई से चिंतित हूँ। युद्ध को तुरंत रोका जाए और मानवीय सहायता को आम नागरिकों तक पहुंचने दिया जाए।

गौरतलब है कि पोप की यह टिप्पणी ऐसे समय आई है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि वह भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर मुद्दे को सुलझाने के लिए प्रयास कर रहे हैं।

 

72 दिनों की घेराबंदी के बाद, खाद्य और चिकित्सा आपूर्ति ले जाने वाले 35 सहायता ट्रक आखिरकार सोमवार, 12 मई, 2025 को ग़ज़्ज़ा शहर में प्रवेश कर गए, जिससे इजरायली प्रतिबंधों के कारण चल रहे मानवीय संकट में थोड़ी राहत मिली।

72 दिनों की घेराबंदी के बाद, खाद्य और चिकित्सा आपूर्ति ले जाने वाले 35 सहायता ट्रक आखिरकार सोमवार, 12 मई, 2025 को ग़ज़्ज़ा शहर में प्रवेश कर गए, जिससे इजरायली प्रतिबंधों के कारण चल रहे मानवीय संकट में थोड़ी राहत मिली।

ट्रक ऐसे समय में ग़ज़्ज़ा पहुंचे, जब एक अमेरिकी-इजरायली कैदी की रिहाई के बदले में एक अस्थायी युद्धविराम की उम्मीद है। यह मानवीय सहायता की पहली नियमित डिलीवरी है जो 2 मार्च को इजरायल द्वारा सभी सीमा क्रॉसिंग बंद करने के बाद से संभव हुई है।

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, इस दौरान ग़ज़्ज़ा में मानवीय स्थिति काफी खराब हो गई थी। 876,000 से ज़्यादा लोग गंभीर रूप से कुपोषित थे, जबकि लगभग 345,000 लोग अकाल के कगार पर थे। हज़ारों बच्चे और लगभग 16,000 गर्भवती या नई माँएँ गंभीर कुपोषण का सामना कर रही थीं। ज़्यादातर अस्पताल मरीजों को भोजन उपलब्ध कराने में असमर्थ थे, और आम नागरिक मुश्किल से एक दिन का खाना जुटा पाते थे।

हालाँकि सहायता की आंशिक डिलीवरी अब शुरू हो गई है, लेकिन सैकड़ों ट्रक अभी भी राफ़ा और करम अबू सलेम सहित विभिन्न सीमा चौकियों पर प्रवेश की अनुमति के लिए प्रतीक्षा कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, अकेले मिस्र की सीमा पर 300 से ज़्यादा सहायता ट्रक प्रतीक्षा कर रहे हैं।

ह्यूमन राइट्स वॉच सहित अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने इज़राइल पर भुखमरी को "युद्ध के हथियार" के रूप में इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है, जो अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून का गंभीर उल्लंघन है।

हालाँकि 35 ट्रकों का आना एक सकारात्मक कदम है, लेकिन यह मात्रा घेरे हुए गाजा पट्टी के लिए बहुत कम है, जिसकी आबादी 2.3 मिलियन है। युद्ध से पहले, लगभग 600 ट्रक प्रतिदिन गाजा में प्रवेश करते थे। सहायता संगठनों ने संभावित अकाल को रोकने के लिए सभी क्रॉसिंग को तत्काल और स्थायी रूप से खोलने का आह्वान किया है।

 

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मुन्तज़िर ज़ादेह ने हौज़ा-ए-इल्मिया में बसीजी सोच के विस्तार की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए कहा, इंक़ेलाब की बुनियाद बसीजी सोच और जिहादी अमल पर टिकी हुई है।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मजीद मुन्तज़िर ज़ादेह क़ुम स्थित इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.स) स्वतंत्र ब्रिगेड' के कमांडर ने क़ुम की जामेअतुल ज़हरा (स) में अबना-ए-ज़हरा (स) बसीजी और हज़रत ज़ैनब (स) बसीज छात्रों की यूनिट के उद्घाटन समारोह में कहा,हमारे इंक़लाब की बुनियाद बसीजी सोच और इंकलाबी जिहाद पर आधारित है, और दीनदार तालीमी इदारों को इस आंदोलन में सबसे आगे रहना चाहिए।

उन्होंने कहा कि चार दशकों के अनुभव ने यह साबित किया है कि जब भी हमारे निज़ाम की रीढ़ बसीज और उसकी सोच पर टिकी होती है, तो हमने बड़े-बड़े संकटों को पार किया है। आज भी यह ज़रूरी है कि तमाम धार्मिक मदरसों में छात्रों और उलेमा के लिए बसीज प्रतिरोध अड्डे बनाए और मज़बूत किए जाएं।

मुन्तज़िर ज़ादेह ने तलबा की इंकलाबी गतिविधियों में भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा,छात्र और उलेमा बसीजी सोच और जिहादी कार्यों में हमेशा सबसे आगे रहे हैं। हमें इन क्षमताओं को एक संगठित ढांचे में लाकर देश और निज़ाम की सेवा के लिए इस्तेमाल करना चाहिए।

उन्होंने एक सवाल के जवाब में बताया कि बसीजी छात्रों के लिए खास तालीमी (शैक्षिक) प्रोग्राम भी तैयार किए गए हैं जिनमें उनके अक़ीदे, इल्म और हुनर (कौशल) को मज़बूत किया जाएगा। यह प्रोग्राम सुप्रीम लीडर के निर्देश के मुताबिक़ लगातार आगे बढ़ाए जा रहे हैं।

उन्होंने कहा,बसीजी उलेमा को ज्ञान और रूहानियत दोनों में सबसे आगे होना चाहिए।

अंत में उन्होंने क़ुम प्रांत की बसीज तलबा यूनिट की कोशिशों की सराहना करते हुए उम्मीद जताई कि इस अड्डे का उद्घाटन हौज़ाओं में और ज़्यादा बसीजी यूनिट्स के विस्तार की शुरुआत बनेगा।

 

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी भारत के पूर्व छात्र की याद मे समारोह हाल ही में कुतुब गोल्फ क्लब, नई दिल्ली में आयोजित किया गया, जिसमें 46 साल पहले के छात्रों ने भाग लिया।

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी भारत के पूर्व छात्र की याद मे समारोह हाल ही में कुतुब गोल्फ क्लब, नई दिल्ली में आयोजित किया गया, जिसमें 46 साल पहले के छात्रों ने भाग लिया।

इस कार्यक्रम में छात्र और कामकाजी जीवन की यादों सहित शैक्षणिक और शोध प्रयासों और प्रदान की गई सेवाओं पर चर्चा की गई।

ईरान के सारी मे स्थित हौज़ा हजरत नरजिस (स) की शिक्षिका फातिमा सुग़रा तालिबजादेह ने एक नैतिकता सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि बुद्धि वह मूलभूत शक्ति है जो मनुष्य को निरंतर आध्यात्मिक प्रगति और अल्लाह की इबादत के मार्ग पर ले जाती है।

ईरान के सारी मे स्थित हौज़ा हजरत नरजिस (स) की शिक्षिका फातिमा सुग़रा तालिबजादेह ने एक नैतिकता सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि बुद्धि वह मूलभूत शक्ति है जो मनुष्य को निरंतर आध्यात्मिक प्रगति और अल्लाह की इबादत के मार्ग पर ले जाती है।

अहले बैत (अ) की शिक्षाओं के प्रकाश में बुद्धि का अर्थ समझाते हुए उन्होंने कहा कि बुद्धि न केवल सोचने और समझने का एक साधन है, बल्कि ईश्वरीय ज्ञान, सेवा और स्वर्ग तक पहुँचने का मार्ग भी है। इमाम सादिक (अ) की एक हदीस का हवाला देते हुए उन्होंने कहा: "बुद्धि वह है जिसके माध्यम से अल्लाह की इबादत की जाती है और जन्नत प्राप्त होती है।"

सुश्री तालिबज़ादा ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अहले-बैत (अ) की बौद्धिक विरासत में, सामान्य ज्ञान मनुष्य को तौहीद और आख़ेरत की ओर बुलाता है, और सांसारिक कर्मों के माध्यम से शाश्वत सुख की नींव रखता है।

इमाम रज़ा (अ) की एक हदीस का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि इसमें "पूर्ण बुद्धि" के दस लक्षण बताए गए हैं। इन लक्षणों में सबसे प्रमुख यह है कि एक विवेकशील व्यक्ति दूसरों के लिए भलाई का स्रोत होता है, किसी को नुकसान या चोट नहीं पहुँचाता है, और उसकी नज़र, भाषण और व्यवहार सम्मान और आदर को दर्शाता है।

उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति की नज़र भी एक संदेश है, और कभी-कभी एक तीखी, तिरस्कारपूर्ण या तिरस्कारपूर्ण नज़र शब्दों से ज़्यादा चोट पहुँचा सकती है। एक बुद्धिमान व्यक्ति न केवल दूसरों के गुणों की सराहना करता है बल्कि अपने कार्यों को भी उपकार के रूप में नहीं बल्कि कर्तव्य के रूप में मानता है।

ज्ञान प्राप्ति के महत्व पर जोर देते हुए तालिबजादा ने कहा कि उत्तम बुद्धि का एक लक्षण यह है कि व्यक्ति कभी भी सीखने से नहीं थकता, बल्कि हमेशा शैक्षणिक और बौद्धिक विकास की तलाश में रहता है। उन्होंने कहा कि "बुद्धि मार्गदर्शन और आध्यात्मिक विकास की कुंजी है, और जो कोई भी सेवा के मार्ग पर चलना चाहता है, उसे अपनी बुद्धि को बेहतर बनाने और उत्तम बुद्धि के गुणों को अपनाने का प्रयास करना चाहिए।"