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क्या यमन की रक्षा प्रणाली एफ़-35 जैसे लड़ाकू विमानों के लिए ख़तरा है?
अमेरिकी वायुसेना और नौसेना ने एक हज़ार से अधिक बार यमन के विभिन्न क्षेत्रों को निशाना बनाया। पार्स टुडे के अनुसार, इन हमलों में अमेरिकियों ने हैरी ट्रूमैन और कार्ल विंसन विमानवाहक पोतों पर आधारित हमलावर विमानों का इस्तेमाल किया था।
यहां तक कि बी-2 सामरिक बमवर्षक और अमेरिकी शस्त्रागार में सबसे भारी बंकर बस्टर बम जीबीयू-57 का भी इस्तेमाल किया गया, जिसका वज़न 14 टन है। यमनी भूमिगत लक्ष्यों पर इस बम का हमला सफल नहीं रहा। यही वजह है कि यमनियों ने प्रभावित सुरंगों के प्रवेश और निकास द्वारों का तेज़ी से पुनर्निमाण कर लिया। इसलिए कहा जा सकता है कि इन हथियारों के इस्तेमाल से अपेक्षित परिणाम नहीं मिले और अमेरिकियों को एहसास हुआ कि यमन के अंसारुल्लाह की सैन्य क्षमताओं को नष्ट करना आसान नहीं है।
लगातार विफलताओं और बढ़ती अमेरिकी सैन्य क्षति के साथ, जिसमें कई एफ़-18 और दर्जनों ड्रोन विमानों को मार गिराया जाना और उन्नत अमेरिकी लड़ाकू विमानों, विशेष रूप से पांचवीं पीढ़ी के एफ़-35 को निशाना बनाए जाने की संभावना शामिल है। व्हाइट हाउस ने स्पष्ट और अचानक अपनी स्थिति में परिवर्तन करते हुए यमन में युद्ध विराम की घोषणा कर दी।
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने 8 मई को यमन में अमेरिकी सैन्य अभियानों को रोकने का आदेश दिया। एनबीसी न्यूज़ ने बताया कि मार्च से अब तक इस अभियान पर अमेरिका को 1 बिलियन डॉलर से अधिक का ख़र्च आया है, जिसमें हमलों में इस्तेमाल किए गए हज़ारों बम और मिसाइलें भी शामिल हैं।
"ट्रम्प ने अचानक हौसियों पर हमले रोकने का आदेश क्यों दिया?" शीर्षक वाले लेख में न्यूयॉर्क टाइम्स ने यमन पर अमेरिकी हमलों को अचानक रोकने के कारणों का विश्लेषण किया है। इस आर्टिकल में उल्लेख किया गया है कि ट्रम्प की प्रारंभिक धारणा यह थी कि एक महीने की समय-सीमा के भीतर वांछित परिणाम प्राप्त कर लिए जाएंगे। लेकिन 1 बिलियन डॉलर ख़र्च करने और कई F/A-18 सुपर हॉर्नेट स्ट्राइक फ़ाइटर्स, साथ ही बड़ी संख्या में MQ-9 रीपर टोही और लड़ाकू ड्रोन खोने के बाद, ट्रम्प का धैर्य समाप्त हो गया।
रिपोर्ट के दूसरे भाग में उल्लेख किया गया है कि यमनियों ने अमेरिकी युद्धक विमानों पर विमान भेदी मिसाइलें दाग़ीं, जिससे उन्हें ख़तरा पैदा हो गया और ट्रम्प ने इन मुद्दों के मद्देनज़र हमलों को रोकने का फ़ैसला किया। यह ओमान की मध्यस्थता से किया गया और यह सहमति बनी कि यमन अमेरिकी जहाज़ों को निशाना नहीं बनाएगा और अमेरिकी यमन पर सैन्य हमला नहीं करेंगे। वास्तव में, कई अवसरों पर, अमेरिकी एफ़-35 और एफ-16 लड़ाकू विमानों को यमनी वायु रक्षा प्रणालियों द्वारा गंभीर चुनौती दी गई और लगभग वह निशाने पर आ गए थे, जिसने यमन के ख़िलाफ़ सैन्य अभियान को समाप्त करने के ट्रम्प के निर्णय को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया।
सवाल यह है कि यमनियों ने शत्रुतापूर्ण अमेरिकी विमानों का सामना करने के लिए कौन सी रक्षा प्रणाली और कौन सी मिसाइलों का इस्तेमाल किया, जिससे ट्रम्प में इतनी घबराहट पैदा हो गई है? अगस्त 2019 के अंत में, यमनियों ने अपनी रक्षा मिसाइल का अनावरण किया, जिसे फ़ातिर-1 मिसाइल के रूप में जाना जाता है। यह मिसाइल लगभग 25 किलोमीटर की रेंज वाली सोवियत निर्मित एसएएम-6 वायु रक्षा प्रणाली की 3एम9 मिसाइल की नक़ल प्रतीत होती है, जिसे वर्षों पहले यमन को भी बेचा गया था। यह एक मध्यम दूरी की रक्षा प्रणाली है, जिसमें संभवतः अर्ध-सक्रिय रडार है, और यह अमेरिकी एमक्यू-9 ड्रोन को मार गिराने में सक्षम है।
सऊदी गठबंधन के साथ युद्ध के दौरान यमनियों ने सोवियत निर्मित आर-27 कम दूरी की हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों को इन्फ्रारेड मार्गदर्शन प्रणाली से लैस करके सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों में परिवर्तित करने के कारण एफ-15, टोरनेडो और अपाचे हमलावर हेलीकॉप्टरों सहित कई सऊदी विमानों को मार गिराने में भी सफलता प्राप्त की थी।
इन विमानों को गिराए जाने के वीडियो फ़ुटेज से पता चलता है कि यमनियों ने पहले थर्मल कैमरों का उपयोग करके लक्ष्य का पता लगाया और फिर लक्ष्य विमान पर हीट-सीकिंग (इन्फ्रारेड) हेड वाली मिसाइल दाग़ी। प्रकाशित चित्र, इसकी उड़ान प्रोफ़ाइल और विस्फ़ोटक शक्ति के आधार पर, कम दूरी की आर-27 मिसाइल के उपयोग का संकेत देते हैं।
एफ़-35 एक स्टेल्थ विमान है, इस लड़ाकू विमान में निश्चित रूप से रडार वायु रक्षा प्रणालियों के विरुद्ध महत्वपूर्ण स्तर की सुरक्षा है। इस बीच, आर-27 मिसाइल जैसे इन्फ्रारेड-गाइडेड मिसाइलों से लैस कम दूरी की वायु रक्षा प्रणालियां, इस लड़ाकू विमान को पहचानने और उस पर मिसाइल दाग़ने में सक्षम हैं। इसीलिए यह एफ़-35 और एफ़-16 जैसे लड़ाकू विमानों के लिए गंभीर ख़तरा मानी जा रही हैं।
इस संबंध में, एक अमेरिकी अधिकारी ने "वॉर ज़ोन" वेबसाइट के साथ एक साक्षात्कार में स्वीकार किया कि अमेरिकी एफ़-35 स्टेल्थ लड़ाकू विमान को यमन से सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों से बचने के लिए आक्रामक युद्धाभ्यास करने के लिए मजबूर होना पड़ा। अधिकारी ने कहा, "मिसाइलें इतनी नज़दीक आ गईं कि एफ़-35 को मजबूरन अपना क़दम पीछे खींचना पड़ा।" कई अमेरिकी अधिकारियों ने यह भी कहाः अमेरिका के कई एफ़-16 और एक एफ़-35 यमन के हवाई सुरक्षा द्वारा निशाना बनाए जाने वाले थे, जिससे अमेरिकियों के हताहत होने की संभावना काफ़ी वास्तविक हो गई थी।
इस प्रकार, यमनियों द्वारा अपने पास मौजूद हथियारों के उपयोग में किए गए नवाचारों को उन कारकों में गिना जाना चाहिए, जिनके कारण वाशिंगटन को यमन में सैन्य अभियानों का पुनर्मूल्यांकन करना पड़ा और अंततः उन्हें रोकना पड़ा। वास्तव में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने यमन में सैन्य अभियानों में एक महत्वपूर्ण कारक को नज़रअंदाज कर दिया, अर्थात् यमनी सेना और अंसारुल्लाह आंदोलन के सेनानियों की व्यावसायिकता और यमन के ख़िलाफ़ सऊदी गठबंधन के लंबे युद्ध के अनुभवों से उनका लाभ। पश्चिमी मीडिया के झूठे दावों की वजह से उसने यह ग़लत धारणा बनाई कि वह पेशेवर सैन्य कौशल और संरचना की कमी वाले आदिम लोगों का सामना कर रहा है।
यमनी प्रतिरोध द्वारा 27 एमक्यू-9 रीपर ड्रोन को मार गिराया जाना, जिसकी क़ीमत 800 मिलियन डॉलर से अधिक है, और अमेरिकी एफ़-35 लड़ाकू जेट के लिए गंभीर ख़तरा होने जैसे परिणाम यह दर्शाते हैं कि अमेरिका के साथ विषम युद्ध में यमनी लड़ाकों के पास, अवर्णनीय साहस और बहादुरी के अलावा, ज्ञान, कौशल और सैन्य उपकरण हैं, जिनके कारण वे अमेरिका पर कठोर और प्रभावी प्रहार करने में सक्षम हैं, और उसे भयभीत कर सकते हैं।
"किताब अंदलीबान-ए-इल्म-ए-अदब" (खंड 1-2) का विमोचन
अशरा-ए-करामत के अवसर पर "अंदलीबान-ए-इल्म-ए-अदब" (खंड 2-1) पुस्तक का विमोचन किया गया। क़ुरआन और अतरत फाउंडेशन, क़ुम साइंटिफिक सेंटर ने "अंदलीबान-ए-इल्म-ए-अदब" (खंड 2, भाग 1) पुस्तक का भव्य विमोचन किया। यह भव्य कार्यक्रम बिहार के भीखपुर स्थित बछला इमामबारगाह में आयोजित किया गया।
अशरा-ए-किरामात के अवसर पर "अंदलीबान-ए-इल्म-ए-अदब" (खंड 2, भाग 1) पुस्तक का विमोचन किया गया। यह भव्य कार्यक्रम बिहार के भीखपुर स्थित बछला इमामबारगाह में आयोजित किया गया। यह भव्य कार्यक्रम बिहार के भीखपुर स्थित बछला इमामबारगाह में आयोजित किया गया।
देश के विभिन्न शैक्षणिक और धार्मिक हस्तियों ने इस पहल का गर्मजोशी से स्वागत किया। कुरान और एतरा फाउंडेशन के संस्थापक के नाम, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन, मौलाना सैयद शमा मुहम्मद रिज़वी, इंस्टीट्यूट ऑफ इस्लामिक स्टडीज ऑफ इंडिया के निदेशक मौलाना सिब्त-ए-हैदर आज़मी, मदरसा इस्लामिया काजुवान, नौगावां सादात, मुरादाबाद के निदेशक मौलाना नूर आबिदी, मदरसा इस्लामिया के प्रोफेसर मौलाना सैयद कुनिन रिज़वी, जुमा काजुवान के इमाम, मौलाना सैयद क़मर रिज़वी, मौलाना सैयद तनवीर इमाम समारोह में रिजवी (मुंबई), जुमा पट्टी सादात के इमाम मौलाना गुफरान रजा, किताब के लेखक सैयद आले इब्राहिम रिजवी, सीवान शहर के मौलाना शमीम तुराबी आदि का नाम उल्लेखनीय है.
सभी वक्ताओं ने पुस्तक की वैज्ञानिक एवं साहित्यिक गुणवत्ता की सराहना की तथा इसके प्रकाशन को समय की महत्वपूर्ण आवश्यकता बताया तथा युवा पीढ़ी के बौद्धिक एवं सांस्कृतिक विकास में इसकी भूमिका पर प्रकाश डाला।
ईरान पर अमेरिका ने कुछ नई पाबंदियाँ
अमेरिकी वित्त मंत्रालय ने ईरान के खिलाफ नई प्रतिबंधों के लागू किए जाने की घोषणा की है।
एक रिपोर्ट और रॉयटर्स के हवाले से बताया गया कि अमेरिका ने बुधवार को ईरान से संबंधित कुछ व्यक्तियों और संस्थाओं पर नई आर्थिक पाबंदियाँ लगाई हैं।
अमेरिकी वित्त मंत्रालय की वेबसाइट पर प्रकाशित बयान के अनुसार, ये प्रतिबंध उन व्यक्तियों और संस्थाओं को निशाना बनाते हैं, जो ईरान से जुड़े हुए हैं।
क़तर के अलजज़ीरा चैनल ने भी बताया कि अमेरिकी वित्त मंत्री ने पुष्टि की कि वॉशिंगटन ने ईरान से जुड़े व्यक्तियों और संगठनों पर ये नए प्रतिबंध लगाए हैं।
साथ ही, सीरिया के बारे में बात करते हुए अमेरिकी वित्त मंत्री ने कहा,हम सीरिया पर लगे प्रतिबंधों में कुछ नरमी लाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि वहां स्थिरता लाई जा सके और दमिश्क को शांति की ओर ले जाया जा सके।
इस्लाम में इंसानी गरिमा का विचार बेहद गहरा और आफाक़ी है
जामेअतुज़-ज़हरा (स.ल.) की निदेशक, सैयदा ज़हरा बोरक़ई ने मुबल्लिग़ीने बह्रदोस्ती की तीसरी सालाना बैठक में विचार प्रकट करते हुए कहा कि इस्लाम में आम लोगों की समस्याओं का हल निकालना एक महत्वपूर्ण धार्मिक शिक्षा है। यह सम्मेलन हौज़ा-ए-इल्मिया और रेड क्रिसेंट सोसायटी के आपसी सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आयोजित हुआ।
जामेअतुज़-ज़हरा (स.ल.) की निदेशक, सैयदा ज़हरा बोरक़ई ने मुबल्लिग़ीने बह्रदोस्ती की तीसरी सालाना बैठक में विचार प्रकट करते हुए कहा कि इस्लाम में आम लोगों की समस्याओं का हल निकालना एक महत्वपूर्ण धार्मिक शिक्षा है। यह सम्मेलन हौज़ा-ए-इल्मिया और रेड क्रिसेंट सोसायटी के आपसी सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आयोजित हुआ।
उन्होंने कुरआन और अहलेबैत अ.स. की शिक्षाओं की रोशनी में इंसानियत की सेवा को अत्यधिक सवाब वाला अमल बताया और कहा कि यह भावना समाज में एक सामान्य संस्कृति के रूप में जड़ पकड़नी चाहिए।
सैयदा ज़हरा बोरक़ई ने हज़रत अली अ.स. की एक हदीस का हवाला देते हुए कहा,अमीरुल मोमिनीन (अ.स.) ने कमील से फ़रमाया कि रात के सन्नाटे में भी खुदा की मख़लूक़ की ज़रूरतें पूरी करने की कोशिश करो, क्योंकि किसी मोमिन का दिल खुश करना खुदा की रहमत और मुश्किलों से राहत का ज़रिया बनता है।
उन्होंने कुरआन मजीद में भलाई (नेक़ी) और "एहसान" (उपकार) के अर्थों की तरफ इशारा करते हुए कहा कि एहसान केवल एक व्यक्तिगत गुण नहीं, बल्कि यह सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रिश्तों की प्रेरक शक्ति है इस्लाम ने तक़वा और परहेज़गारी की बुनियाद पर नेक-कार्य को एक धार्मिक कर्तव्य के रूप में पेश किया है, जो सामाजिक न्याय और मानवीय एकता के विकास का ज़रिया बनता है।
जामेअतुज़ ज़हरा की निदेशक ने मानव अधिकारों और ईश्वरीय शिक्षाओं के आपसी संबंध पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इंसानी अधिकारों की अवधारणाएं संयुक्त राष्ट्र के दस्तावेज़ों से बहुत पहले ही कुरआन और नबियों की परंपराओं में मौजूद थीं।
कुरआन की आयत: مَن قَتَلَ نَفْسًا بِغَیْرِ نَفْسٍ...." इंसानी जान की पवित्रता को स्पष्ट रूप से उजागर करती है। इस्लाम में मानव गरिमा का विचार बहुत ही गहरा, मूलभूत और सार्वभौमिक है, जो कि धार्मिक संस्थानों और अंतर्राष्ट्रीय मानवता-सेवी संगठनों जैसे हिलाल अहमर के बीच सकारात्मक सहयोग के लिए एक मज़बूत आधार प्रदान करता है।
बोरक़ई ने रेड क्रिसेंट (हिलाल अहमर) की मानवीय सेवाओं जैसे ज़ख़्मी, पीड़ित और शरणार्थियों की मदद को ईश्वरीय सिद्धांतों के व्यावहारिक कार्यान्वयन की मिसाल बताया और कहा कि मानवाधिकारों के सिद्धांत और इस्लामी शिक्षाएं आपस में गहराई से जुड़ी हुई हैं। इन दोनों के बीच तालमेल से साझा योजनाएं, विशेषज्ञ प्रशिक्षण और वैज्ञानिक व मैदानी सहयोग को बढ़ाया जा सकता है।
उन्होंने मौजूदा वैश्विक हालात की ओर इशारा करते हुए कहा कि आज की दुनिया युद्ध, गरीबी, प्रतिबंधों और अन्याय जैसे संकटों से जूझ रही है। ऐसे समय में हमारी जिम्मेदारी है कि हम मजलूमों की आवाज़ दुनिया तक पहुँचाएं, और यह उद्देश्य केवल धार्मिक और मानवतावादी संगठनों के आपसी सहयोग से ही संभव है।
इराक़ के विदेश मंत्री का ईरान दौरा
इराक़ के विदेश मंत्री फ़ुआद हुसैन ने ऐलान किया है कि वह अरब लीग के शिखर सम्मेलन के बाद ईरान की यात्रा करेंगे।
इराक़ के टीवी चैनल अलशार टीवी से बातचीत में फ़ुआद हुसैन ने बताया कि,मैं बग़दाद में होने वाले अरब लीग शिखर सम्मेलन के बाद तेहरान जाऊंगा और ईरानी अधिकारियों से मुलाक़ात व बातचीत करूंगा।
उन्होंने यह भी कहा कि ईरान और अमेरिका के बीच जारी बातचीत की जानकारी बग़दाद को पूरी तरह है अगर यह बातचीत नाकाम होती है, तो यह एक ख़तरनाक मामला होगा।
फ़ुआद हुसैन ने बताया कि अमेरिका लगातार इराक़ पर दबाव बना रहा है कि वह ईरान के साथ अपने व्यापारिक संबंध ख़ासकर तेल और गैस की खरीदारी को कम करे अमेरिका का कहना है कि यह तेहरान को आर्थिक मदद देने के बराबर है और इसे रोका जाना चाहिए।
ग़ौरतलब है कि अरब लीग का शिखर सम्मेलन अगले शनिवार को बग़दाद में आयोजित किया जाएगा।
आयतुल्लाह "शहीद सालिस (र)" की जीवनी
तेरहवीं शताब्दी हिजरी के प्रसिद्ध शिया विद्वान और न्यायविद, मुजाहिद और शहीद आयतुल्लाह मुहम्मद तकी बरग़ानी, मारूफ बे शहीद सालिस (र) का जन्म 1172 हिजरी में कज़्वीन (ईरान) के बरग़ान क्षेत्र में एक प्रसिद्ध धार्मिक और विद्वान परिवार में हुआ था। उनके पिता, मुल्ला मुहम्मद मलाइका (र) और दादा, मुल्ला मुहम्मद तकी तालेकानी (र), अपने समय के प्रसिद्ध धार्मिक विद्वान थे।
तेरहवीं शताब्दी हिजरी के प्रसिद्ध शिया विद्वान और न्यायविद, मुजाहिद और शहीद आयतुल्लाह मुहम्मद तकी बरग़ानी, मारूफ बे शहीद सालिस (र) का जन्म 1172 हिजरी में कज़्वीन (ईरान) के बरग़ान क्षेत्र में एक प्रसिद्ध धार्मिक और विद्वान परिवार में हुआ था। उनके पिता, मुल्ला मुहम्मद मलाइका (र) और दादा, मुल्ला मुहम्मद तकी तालेकानी (र), अपने समय के प्रसिद्ध धार्मिक विद्वान थे।
आयतुल्लाह मुहम्मद तकी बरग़ानी (र) ने अपनी प्राथमिक धार्मिक शिक्षा बरग़ान में अपने पिता से प्राप्त की, जिसके बाद उन्होंने कज़्विन के हौज़ा-ए-इल्मिया में प्रवेश लिया और आगे की उच्च धार्मिक शिक्षा के लिए वे हौज़ा-ए-इल्मिया क़ुम गए, जहाँ उन्होंने मिर्ज़ा क़ुमी (र) के पाठों में भाग लिया। क़ुम से, वे इस्फ़हान गए और वहाँ महान शिक्षकों से फ़लसफ़ा और कलाम का अध्ययन किया। इसके बाद वे इराक के कर्बला चले गए और वहां उन्होंने कुछ सालों तक साहिब रियाज आयतुल्लहिल उज़्मा सय्यद अली तबातबाई (र) की क्लास में हिस्सा लिया और ईरान लौट आए। ईरान लौटने पर वे तेहरान में बस गए। जहां वे शिक्षण, इमाम जमात और अन्य धार्मिक सेवाओं में व्यस्त हो गए। अपने उत्कृष्ट गुणों के कारण वे जल्द ही लोकप्रिय और प्रसिद्ध हो गए। कुछ समय तेहरान में रहने के बाद वे फिर से इराक के कर्बला चले गए। जहां वे फिर से अपने गुरु साहिब रियाज़ आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली तबातबाई (र) की क्लास में शामिल हो गए। कुछ दिनों बाद, शिक्षक के आदेश पर, उन्होंने कर्बला-ए-मोअल्ला में पढ़ाना शुरू कर दिया और एक मस्जिद बनाई जिसमें वे नमाज जमात के अलावा उपदेश और ख़ुत्बे भी देते थे। पहले, इस मस्जिद को बरगनी के नाम से जाना जाता था, लेकिन उनकी शहादत के बाद, इसे "मस्जिद ए शहीद सालिस" कहा जाने लगा। कर्बला-ए-मोअल्ला में साहिब रियाज़ आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली तबातबाई (र) और दूसरे बुज़ुर्गों ने उन्हें इज्तिहाद करने की इजाज़त दी। कुछ साल बाद वे ईरान लौट आए और क़ज़्विन में बस गए। अध्यापन, उपदेश और प्रचार के अलावा वे क़ज़्विन में दूसरी धार्मिक, वैज्ञानिक, शैक्षिक और कल्याणकारी सेवाओं में भी शामिल हो गए। उन्होंने क़ज़्विन सेमिनरी का भी नेतृत्व किया।
उनके शिष्यों की एक लंबी सूची है। इनमें साहिब क़िसास उलमा, आयतुल्लाह मिर्ज़ा मुहम्मद तुनकाबोनी (र) और आयतुल्लाह सय्यद इब्राहिम मूसवी क़ज़्विनी (र) के नाम सबसे ऊपर हैं।
आयतुल्लाहिल उज्मा मुहम्मद तकी बरग़ानी (र) ने विभिन्न धार्मिक विषयों पर लिखा और संकलित किया। उनकी पुस्तकों की एक लंबी सूची है, जिनमें "अय्यून अल-उसुल", "मिनहाज उल-इज्तिहाद", "मलखुस अल-अकाइद" और "मजलिस अल-मुताकीन" प्रमुख हैं।
अपनी धार्मिक, शैक्षिक और कल्याण सेवाओं के बावजूद, आयतुल्लाह मुहम्मद तकी बरग़ानी (र) इस्लामी दुनिया, खासकर अपने देश की राजनीतिक समस्याओं से अनजान नहीं रहे। बल्कि, ईरान-रूस युद्ध के दौरान, उन्होंने आयतुल्लाह सय्यद मुहम्मद मुजाहिद (र) और अन्य विद्वानों के साथ भाग लिया और अपनी एक किताब में उन्होंने इस्लाम के विरोधी ताकतों की बुराई से सुरक्षा के लिए दुआ भी लिखी।
इसी तरह, उन्होंने विचलित संप्रदायों के सामने चुप रहना अपराध माना और बड़ी हिम्मत और साहस के साथ मुकाबला किया। उदाहरण के लिए, उन्होंने शेखिया और बबिया संप्रदायों का खुलकर विरोध किया।
शेखिया संप्रदाय के संस्थापक शेख अहमद अहसाई जब 1240 हिजरी में ईरान आए तो विभिन्न शहरों में उनका स्वागत किया गया। जब उन्होंने अपने भ्रामक विश्वासों और विचारों को व्यक्त किया तो कुछ विद्वानों के अनुरोध पर आयतुल्लाह मुहम्मद तकी बरग़ानी (र) ने शेख अहमद अहसाई को एक बहस के लिए आमंत्रित किया। जिसमें उन्होंने शेख अहमद अहसाई को काफिर घोषित कर दिया। जिसके बाद, आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद मुहम्मद महदी तबातबाई (र) (साहिब रियाज़ के बेटे), आयतुल्लाहिल उज्मा मुहम्मद जाफ़र उस्तराबादी (र), मुल्ला अका दरबंदी (र), आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद मुहम्मद हुसैन इस्फ़हानी (र), आतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद इब्राहिम मूसवी कज़विनी (र) और साहिब जवाहर आयतुल्लाह मुहम्मद हसन नजफ़ी (र) ने शेख अहमद अहसाई को काफ़िर घोषित करते हुए फ़तवा जारी किया।
आयतुल्लाहिल मुहम्मद तकी बरग़ानी (र) का फ़तवा बहुत तेज़ी से पूरे इस्लामी जगत में फैल गया। नतीजतन, लोगों ने शेख अहमद अहसाई और उनके समर्थकों से दूरी बना ली। शेख अहमद अहसाई को हज के बहाने ईरान से यात्रा करने के लिए मजबूर होना पड़ा और कुछ दिनों बाद उनका निधन हो गया। आयतुल्लाह मुहम्मद तकी बारग़ानी (र) ने शेख अहमद अहसाई के उत्तराधिकारी सैय्यद काज़िम रश्ती को काफ़िर घोषित कर दिया।
आयतुल्लाहिल उज़्मा मुहम्मद तकी बरग़ानी (र) ने बाबियों के जन्म का कड़ा विरोध किया और बाबियों की गुमराही और कुफ़्र के खिलाफ़ फ़तवा जारी किया। इससे बाबियों की नींव हिल गई।
आयतुल्लाहिल उज़्मा मुहम्मद तकी बरग़ानी (र) ने सूफ़ीवाद का भी कड़ा विरोध किया। जिसके कारण उन्हें ईरान से निर्वासित होना पड़ा।
गुमराह शेखियों और बाबियों ने भी उनका विरोध किया, लेकिन वे अपनी स्थिति पर अडिग रहे। आख़िरकार, 15 ज़िल-क़ादा 1263 हिजरी की सुबह, बाबिया संप्रदाय के कुछ आतंकवादियों ने क़ज़्विन में मस्जिद के मेहराब में उन पर हमला किया और वे शहीद हो गए और "शहीद थालिस" के नाम से मशहूर हुए।
हालाँकि शहीद काजी नूरुल्लाह शुस्त्री (र) की प्रसिद्धि "शहीद सालिस" की उपाधि से भी अधिक है, और कुछ लोग आयतुल्लाहिल उज़्मा मुहम्मद तकी बरग़ानी (र) को "शहीद राबेअ" भी कहते हैं। लेकिन सालिस या राबेअ होना महत्वपूर्ण नहीं है। बल्कि, यह जानना महत्वपूर्ण है कि काजी सय्यद नूरुल्लाह शुस्त्री (र) और मुल्ला मुहम्मद तकी बरग़ानी (र) ने अधिकार और सम्मान प्राप्त किया है। धर्म ने सत्य का साथ दिया और पथभ्रष्टों का खुलकर विरोध किया तथा इस मार्ग पर अपने प्राणों की भी परवाह नहीं की। अल्लाह से दुआ है कि हमें शहीदों का ज्ञान प्रदान करें तथा उनके बताए मार्ग पर चलने की क्षमता प्रदान करें।
लेखक: मौलाना सययद अली हाशिम आबिदी
हिज़्बुल्लाह लेबनानी जनता के दुख-दर्द से वजूद में आई
लेबनानी सांसद और हिज़्बुल्लाह से जुड़े प्रतिनिधि हसन फज़लुल्लाह ने कहा है कि हिज़्बुल्लाह लेबनानी जनता की पीड़ा और दुख-दर्द से जन्म लेने वाला एक जन आंदोलन है, जिसने देश की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति दी है।
लेबनानी सांसद और हिज़्बुल्लाह से जुड़े प्रतिनिधि हसन फज़लुल्लाह ने कहा है कि हिज़्बुल्लाह लेबनानी जनता के दुख, कष्ट और पीड़ा से जन्म लेने वाली एक जन-आंदोलन है, जिसने देश की रक्षा में अपनी जानें कुर्बान की हैं।
उन्होंने स्पष्ट किया कि लेबनान पर इस्राइली आक्रमण हमेशा अमेरिका के समर्थन से हुए हैं और ये अत्याचार आज भी जारी हैं।
हसन फज़लुल्लाह ने आगे कहा,हिज़्बुल्लाह ने न केवल देश की रक्षा की, बल्कि अमेरिका की ज़लिम नीतियों से पीड़ित मजलूमों का साथ देने में भी क़ुर्बानियाँ दी हैं।
उनका कहना था कि हिज़्बुल्लाह को लेबनानी जनता का एक बड़ा हिस्सा अपना प्रतिनिधि चुनता है, क्योंकि वे अपने राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा इसी पार्टी को सौंपते हैं।
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि हिज़्बुल्लाह संविधान और देश के क़ानूनों के अनुसार कार्य करती है, और इसे इसकी ईमानदारी, पारदर्शिता और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ संघर्ष के कारण पहचाना जाता है।
फज़लुल्लाह ने हालिया इस्राइली आक्रमण को लेबनान में हुई तबाही का ज़िम्मेदार ठहराया और कहा कि यह सब कुछ पाँच सदस्यीय अंतरराष्ट्रीय समिति की आँखों के सामने हो रहा है, लेकिन फिर भी इस्राइली अत्याचार जारी हैं।
लेबनानी सांसद ने हिज़्बुल्लाह पर सोने की तस्करी के आरोप को सख्ती से ख़ारिज करते हुए माँग की कि संबंधित सरकारी संस्थाएं इस मामले की जानकारी सार्वजनिक करें।
उन्होंने आगे कहा,हम हवाई अड्डे की सुरक्षा को अत्यधिक महत्व देते हैं और क़ानून की समान रूप से अनुपालना में विश्वास रखते हैं। हमने हवाई अड्डे की सुरक्षा और शांति सुनिश्चित करने के लिए सरकारी सुरक्षा एजेंसियों के साथ पूरा सहयोग किया है।
हमारा मसला सिर्फ उनसे है जो हमारी ज़मीन पर क़ब्ज़ा किए हुए हैं
बेरूत के इमामे जुमआ हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैय्यद अली फ़ज़लुल्लाह ने क्षेत्र "हारह हरिक़" में स्थित इस्लामी सांस्कृतिक केंद्र में एक संवादात्मक बैठक को संबोधित करते हुए इस्लाम में बातचीत की अहमियत और उसके उसूलों पर रौशनी डाली।
बेरूत के इमामे जुमा हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैय्यद अली फ़ज़लुल्लाह ने क्षेत्र "हारे हरीक़" में स्थित इस्लामी सांस्कृतिक केंद्र में एक संवादात्मक बैठक को संबोधित करते हुए इस्लाम में संवाद (गुफ़्तगू) की अहमियत और उसके उसूलों (सिद्धांतों) पर रोशनी डाली बैठक के अंत में उन्होंने प्रतिभागियों के सवालों के जवाब भी दिए।
उन्होंने कहा कि हर प्रभावशाली संवाद के लिए कुछ बुनियादी उसूलों का ख्याल रखना जरूरी है, जिनमें सबसे अहम यह है कि कोई भी पक्ष खुद को पूर्ण सत्य (मुतलक हक़) पर न समझे। अगर ऐसा रवैया अपनाया जाए तो संवाद शुरू होने से पहले ही नाकाम हो जाता है। संवाद की बुनियाद हमेशा सत्य की खोज पर होनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि इस्लाम चाहता है कि बातचीत धार्मिक, क़ौमी (राष्ट्रीय) और इंसानी साझा मूल्यों के आधार पर हो और यह विचारात्मक हो, न कि व्यक्तिगत या पक्षपातपूर्ण।
हुज्जतुल इस्लाम फ़ज़लुल्लाह ने आगे कहा कि संवाद के दौरान आपसी सम्मान बहुत जरूरी है। किसी के अकीदे या विचारों की तौहीन (अपमान) या मज़ाक उड़ाना नहीं चाहिए, क्योंकि जब सम्मान की जगह अपमान ले लेता है तो संवाद अपनी अहमियत खो देता है।
बेरूत के इमामे जुमआ ने कहा कि इस्लाम पड़ोसियों के साथ अच्छे बर्ताव की तालीम देता है। हम इस देश में किसी सीमित और संकीर्ण फिरकापरस्ती के घेरे में क़ैद नहीं हैं। हम सभी मसालिक (विचारधाराओं) और मज़ाहिब (धर्मों) के साथ बेहतर ताल्लुकात (संबंध) चाहते हैं और यह हमारी कमजोरी नहीं, बल्कि दीन (धर्म) की तालीमात और इस्लामी उसूलों का तकाज़ा (मांग) है।
अपने ख़िताब (भाषण) के आखिर में उन्होंने वाज़ेह (स्पष्ट) किया कि हमारा दुनिया से कोई मसला नहीं है, हमारा असली मसला उन लोगों से है जो हमारे मुल्क पर हमला करते हैं, हमारी ज़मीन पर क़ब्ज़ा करना चाहते हैं और हमारे वसाइल (संसाधनों) को लूटते हैं। यह हमारा हक़ और फर्ज़ है कि हम अपने वतन का दिफा करें और दुश्मन को उसके नापाक इरादों में कामयाब न होने दें।
संपादी छात्रों की एशियाई भौतिकी ओलंपियाड 2025 सऊदी अरब में सफ़लता
इस्लामी गणराज्य ईरान के स्कूली छात्रों की भौतिकी ओलंपियाड टीम ने 25वीं एशियाई भौतिकी ओलंपियाड में एक रजत पदक और छह कांस्य पदक जीतकर बड़ी सफलता हासिल की है।
25वीं एशियाई भौतिकी ओलंपियाड सऊदी अरब के शहर ज़हरान में 15 से 22 उर्दीबेहश्त 1404 अर्थात 5 से 12 मई 2025 तक आयोजित की गई।
ईरानी टीम के सभी सदस्य इस प्रतिस्पर्धा में पदक जीतने में सफल रहे, जो एक महत्वपूर्ण गौरव है और यह दर्शाता है कि ईरानी छात्रों की वैज्ञानिक क्षमता अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कितनी उच्च है।
इस प्रतियोगिता में एशियाई देशों की 30 टीमों ने हिस्सा लिया, जिनमें चीन, रूस, जापान, दक्षिण कोरिया, भारत, कज़ाक़िस्तान और सिंगापुर जैसे देश शामिल थे। छात्र दो पाँच-पाँच घंटे की परीक्षाओं, एक सैद्धांतिक और एक प्रायोगिक अर्थात theoretical and practical में भाग लेकर आपस में प्रतिस्पर्धा कर रहे थे।
शहीद आयतुल्लाह रईसी सदाक़त की व्यावहारिक मिसाल थे
दक्षिण खुरासान में सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सय्यद अली रजा एबादी ने कहा है कि शहीद आयतुल्लाह इब्राहिम रईसी सदाक़त और सेवा की एक मिसाल थे, जिन्होंने बिना किसी सांसारिक हितों के लोगों की सेवा करने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी और जिहाद के मैदान में डटे रहे।
दक्षिण खुरासान में सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सय्यद अली रजा एबादी ने कहा है कि शहीद आयतुल्लाह इब्राहिम रईसी सदाक़त और सेवा की एक मिसाल थे, जिन्होंने बिना किसी सांसारिक हितों के लोगों की सेवा करने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी और जिहाद के मैदान में डटे रहे।
बीरजंद में मदरसा "सफीरान ए हिदायत" के शिक्षकों और छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि अल्लाह तआला ने इंसान को परीक्षा के लिए बनाया है और "संकट, परीक्षा और चुनाव" जैसी वास्तविकताएं सांसारिक जीवन का आधार हैं। उनके अनुसार, अल्लाह ने 124,000 पैगम्बरों को भेजकर प्रमाण पूरा कर दिया, अब यह इंसान की अपनी पसंद की शक्ति है जो उसकी खुशी या दुख का निर्धारण करती है, न कि समय की परिस्थितियां।
हुज्जतुल इस्लाम एबादी ने मौजूदा राष्ट्रीय संकटों के लिए इस्लामी क्रांति को नहीं बल्कि दुश्मन तत्वों के प्रभाव, अज्ञानता और स्वार्थ को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि "जहां भी क्रांतिकारी और इस्लामी सिद्धांतों पर काम किया गया है, वहां महत्वपूर्ण सफलताएं हासिल हुई हैं, चाहे वह शैक्षणिक, सैन्य या आर्थिक क्षेत्र में हो।"
उन्होंने कहा कि अगर राष्ट्र और जिम्मेदार लोग आस्था के सिद्धांतों के आधार पर काम करते हैं, तो कोई भी कठिनाई नहीं रहेगी।
हुज्जतुल इस्लाम एबादी ने शहीद आयतुल्लाह रईसी के व्यक्तित्व को "सेवा, सदाकत और इमानदारी" का प्रतीक बताया और कहा: "यदि सभी व्यक्ति समान ईमानदारी से काम करें, तो देश जल्द ही सभी कठिनाइयों को पार कर जाएगा।" उन्होंने कहा कि आज सही और गलत के बीच वैश्विक संघर्ष तेज हो गया है और इस्लामी क्रांति पश्चिमी उदार लोकतंत्र के सामने एक सीसे की दीवार बन गई है। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया में, यहां तक कि पश्चिम में भी, लोग अहंकारी उत्पीड़न के खिलाफ जाग रहे हैं और यह भविष्य में सच्चाई की जीत का अग्रदूत है। उन्होंने जोर देकर कहा कि दुश्मन अपने धोखे के माध्यम से अपना असली चेहरा छिपाने की कोशिश कर रहा है, इसलिए आध्यात्मिक और धार्मिक अभिजात वर्ग का कर्तव्य है कि वे युवाओं को इन साजिशों के बारे में सूचित करें। अंत में, उन्होंने मरहूम आयतुल्ललाह हाएरी शिराज़ी की भविष्यवाणी को उद्धृत किया: "दुनिया जल्द ही दो भागों में विभाजित हो जाएगी: एक ओर, पश्चिम के नेतृत्व में धोखेबाज देशद्रोही, और दूसरी ओर, ईरान के नेतृत्व में वफादार लोग। आज, इस परिवर्तन के संकेत स्पष्ट हैं, और अंततः जीत इस्लाम और क्रांति की होगी।"