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यमन की सशस्त्र सेना ने हइफ़ा बंदरगाह पर समुद्री घेराबंदी की शुरुआत की घोषणा की है।

यमनी सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ब्रिगेडियर यह्या सरीअ ने सोमवार को एक बयान में हइफ़ा बंदरगाह की समुद्री घेराबंदी शुरू करने के निर्णय की घोषणा की।

 उन्होंने कहा: यह निर्णय इस्राइली दुश्मन की बढ़ती आक्रामकता, बर्बर हमलों और फ़िलिस्तीनी जनता की घेराबंदी व भूख से मारने की नीति के जवाब में लिया गया है।

 इस बयान में यमनी सशस्त्र बलों ने चेतावनी दी कि हइफ़ा बंदरगाह को इस बयान के जारी होने के साथ ही औपचारिक रूप से यमन के सैन्य लक्ष्यों की सूची में शामिल कर लिया गया है।

 साथ ही, उन सभी कंपनियों से, जिनके जहाज़ हइफ़ा बंदरगाह में मौजूद हैं या वहाँ की ओर रवाना हो रहे हैं, अनुरोध किया गया है कि वे घोषित की गई चेतावनियों और उपायों को गंभीरता से लें।

 बयान के अंत में कहा गया है कि ज़ायोनी शासन के ख़िलाफ सभी सैन्य कार्रवाइयाँ और निर्णय उस समय रोक दिए जाएंगे, जब ग़ज़ा पर हमलों को पूरी तरह से बंद किया जाएगा और वहाँ की नाकाबंदी समाप्त की जाएगी।

 हइफ़ा बंदरगाह की घेराबंदी: एक ऐतिहासिक और अनोखा क़दम

 इसी संबंध में, फिलिस्तीन की स्वतंत्रता के लिए जन आंदोलन ने एक बयान जारी करते हुए कहा है कि ग़ज़ा पट्टी की जनता के खिलाफ ज़ायोनी शासन की बढ़ती बर्बरता के जवाब में हइफ़ा बंदरगाह पर यमन द्वारा समुद्री घेराबंदी लागू करने के निर्णय का हम स्वागत और सराहना करते हैं।

 इस आंदोलन ने आगे कहा कि हइफ़ा बंदरगाह की घेराबंदी, जो अवैध अधिकृत भूमि में स्थित है, एक अद्वतीय क़दम और एक महत्वपूर्ण बिन्दु है और इस्राइली शासन के ख़िलाफ यमन के प्रतिरोधक बलों की कार्यवाही के एक नए चरण की शुरुआत मानी जाएगी।

ग़ज़ा में शहीदों की संख्या में वृद्धिः

फ़िलिस्तीनी जनता के ख़िलाफ ज़ायोनी शासन के अपराधों के जारी रहने के बीच, फिलिस्तीनी चिकित्सीय सूत्रों ने मंगलवार को बताया कि सोमवार से अब तक इस्राइली सेना द्वारा ग़ज़ा पट्टी के विभिन्न क्षेत्रों पर किए गए भीषण हमलों में कम से कम 126 फिलिस्तीनी शहीद हुए हैं।

 ग़ज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, इस संख्या को मिलाकर 7 अक्टूबर 2023 से अब तक ग़ज़ा पट्टी में शहीदों की कुल संख्या 53,486 तक पहुँच चुकी है, जबकि घायलों की संख्या 151,398 हो गई है।

 फिलिस्तीनी प्रतिरोध के साथ संघर्ष में एक ज़ायोनी सैनिक मारा गया

 दूसरी ओर इस्राइली सेना ने घोषणा की है कि उसका एक सैनिक, जो 601 इंजीनियरिंग यूनिट से संबंधित था, ग़ज़ा पट्टी के उत्तर में फिलिस्तीनी प्रतिरोध बलों के साथ हुई झड़पों में मारा गया है।

 इस्राइली सुरक्षा सूत्रों ने सोमवार को ग़ज़ा पट्टी में एक सुरक्षा घटना के होने की भी सूचना दी है। इन सूत्रों के अनुसार, इस्राइली सेना के दो बचाव हेलीकॉप्टर घायल सैनिकों को लेकर "सोरोका अस्पताल" में उतरे हैं। ये घायल सैनिक ग़ज़ा से लाए गए थे।

 ज़ायोनी मीडिया रिपोर्टों के अनुसार कम से कम एक सैनिक इस घटना में मारा गया है। इसके अलावा ज़ायोनी सूत्र "हदशोत लेओ तज़नज़ोरा" ने दावा किया है कि इस्राइली सेना का एक सैनिक अपने ही साथियों की गलती से हुई गोलीबारी में मारा गया है।

 ग़ज़ा के इंडोनेशियाई अस्पताल में बिजली पूरी तरह गुल

 ग़ज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय ने जानकारी दी है कि इंडोनेशियाई अस्पताल में बिजली पूरी तरह से कट चुकी है और इस्राइली बलों के सीधे हमलों में अस्पताल के जनरेटरों को निशाना बनाया गया है, जिससे इलाज की सेवाएं पूरी तरह से बर्बादी के कगार पर पहुँच गई हैं।

 इस मंत्रालय ने चेतावनी दी है कि अस्पतालों में बिजली जनरेटरों की तबाही का अर्थ है स्वास्थ्य सेवाओं की रीढ़ का टूट जाना और यह कि इससे ग़ज़ा पट्टी भर के अस्पतालों में सभी ज़रूरी चिकित्सीय गतिविधियाँ पूरी तरह से ठप पड़ जाएंगी।

 लेबनान पर इस्राइली ड्रोन हमले

इसी बीच ज़ायोनी शासन ने सोमवार को संघर्षविराम का उल्लंघन करते हुए कई बार ड्रोन हमले लेबनान पर किए।

 ताज़ा घटना में इस्राइली ड्रोन हमले में लेबनान के दक्षिणी क्षेत्र के हूला कस्बे में एक नागरिक अपने घर के सामने शहीद हो गया।

 इसके अलावा कफ़रकला कस्बे में एक लेबनानी नागरिक इस्राइली सैनिकों की गोलीबारी में कंधे से घायल हो गया, जिसे इलाज के लिए मरजेऊन अस्पताल ले जाया गया।

 लेबनानी सूत्रों ने बताया कि एक इस्राइली ड्रोन ने दक्षिण लेबनान के अज़्ज़हीरा कस्बे में एक कार पर बम गिराया, जिससे वाहन क्षतिग्रस्त हो गया।

 साथ ही दक्षिण लेबनान के बिंते जुबैल क्षेत्र के उपनगर "सर्बीन" के पास "वादिल उयून" इलाके में एक मोटरसाइकिल पर किए गए इस्राइली ड्रोन हमले में दो लोग घायल हुए हैं।

 

फ्रांस के विदेश मंत्री ने इज़राईली शासन के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए कहा है कि फ्रांस, यूरोपीय संघ के सहयोग परिषद द्वारा इस्राईल पर संभावित प्रतिबंधों की समीक्षा का समर्थन करता है।

फ्रांस के विदेश मंत्री जाँ नोएल बारो ने France Inter चैनल से बातचीत में कहा कि इस्राईल द्वारा ग़ाज़ा पट्टी में जिन मददों के प्रवेश की अनुमति दी गई है, वे बिल्कुल भी पर्याप्त नहीं हैं।

उन्होंने ज़ोर दिया कि तेल अवीव को तुरंत अधिक मात्रा में मानवीय मदद की आपूर्ति सुनिश्चित करनी चाहिए।बारो ने यह भी कहा कि फ्रांस, यूरोपीय संघ की सहयोग परिषद द्वारा इस्राईल पर प्रतिबंध लगाने के विचार की पुष्टि करता है।

इससे पहले फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों ने भी अलजज़ीरा चैनल को दिए गए बयान में कहा था,हम ग़ाज़ा पट्टी में तेल अवीव के सैन्य अभियानों के विस्तार का कड़े शब्दों में विरोध करते हैं।

उन्होंने क्षेत्र की मानवीय स्थिति को लेकर चेतावनी दी और कहा,ग़ाज़ा के लोगों का दुख और तकलीफ़ अब असहनीय स्तर पर पहुँच चुका है।

गौरतलब है कि फ्रांस लंबे समय से इस्राईल की ग़ाज़ा पर क्रूर हमलों का प्रमुख समर्थक रहा है, लेकिन अब बदली हुई मानवीय परिस्थितियों में उसकी राजनीतिक भाषा में कुछ बदलाव देखा जा रहा है।

अमेरिकी उपराष्ट्रपति ने कहा कि रूस के राष्ट्रपति को युद्ध से बाहर निकलने का रास्ता ठीक से नहीं मालूम है।

रूस और अमेरिका के राष्ट्रपतियों "व्लादिमीर पुतिन" और "डोनाल्ड ट्रंप" ने सोमवार की शाम एक-दूसरे से टेलीफ़ोन पर दो घंटे से अधिक समय तक बातचीत की। यह बातचीत ऐसे समय हो रही है जब यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध को लेकर हुई वार्ताएं अब तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंची हैं।

 

अमेरिका के उपराष्ट्रपति "जे डी वेंस" ने सोमवार को, अमेरिका और रूस के राष्ट्रपतियों की टेलीफोन वार्ता से पहले, कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि पुतिन को ठीक से नहीं मालूम कि यूक्रेन युद्ध से कैसे बाहर निकला जाए। उन्होंने आगे कहा: यदि रूस संवाद के लिए तैयार नहीं है तो अंततः अमेरिका को यह एलान करना चाहिए कि यह युद्ध हमारा नहीं है।

 ट्रंप: रूस के नेता यूक्रेन के साथ शांति चाहते हैं

इसी बीच अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोमवार को पुतिन से टेलीफ़ोन पर बातचीत के बाद कहा कि उनका मानना है कि रूस के नेता यूक्रेन के साथ शांति चाहते हैं।

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि रूस पर और अधिक प्रतिबंध नहीं लगाए जाएंगे, क्योंकि "प्रगति की संभावना है।

 ट्रंप ने आगे कहा कि मुझे लगता है कि किसी नतीजे पर पहुंचने की संभावना है और अगर आप इस दिशा में कोई कड़ा क़दम उठाते हैं तो स्थिति और भी ज़्यादा ख़राब हो सकती है।

हालांकि उन्होंने यह भी कहस कि परंतु ऐसा समय भी आ सकता है जब यह अर्थात प्रतिबंधों का लागू होना आवश्यक हो जाए

 पुतिन: हम यूक्रेन के साथ शांति समझौते पर काम करने को तैयार हैं

रूस के राष्ट्रपति ने सोमवार को अपने अमेरिकी समकक्ष के साथ हुई टेलीफ़ोनी वार्ता के बारे में कहा कि मा᳴स्को यूक्रेन के साथ भविष्य के शांति समझौते के संबंध में सहयोग करने के लिए तैयार है जिसमें संघर्षविराम और विवाद के समाधान के सिद्धांतों से जुड़ी बातें शामिल हो सकती हैं।

 

पुतिन के अनुसार यूक्रेन संकट के समाधान के सिद्धांत, संभावित शांति समझौते की समय-सीमा और यदि समझौता हो जाता है तो एक निर्धारित अवधि के लिए युद्धविराम, इन सभी मुद्दों को बातचीत का हिस्सा बनाया जा सकता है।

 रूसी राष्ट्रपति ने ज़ोर देकर कहा कि इस दिशा में, रूसी और यूक्रेनी पक्षों को शांति के लिए अधिकतम इच्छाशक्ति दिखानी चाहिए और ऐसा समझौता करना चाहिए जो सभी पक्षों के हित में हो।

 ज़ेलेंस्की: मुझे सहमति पत्र के विवरण की जानकारी नहीं है

यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदिमिर ज़ेलेंस्की ने सोमवार को कहा कि उन्हें रूस के शांति रोडमैप संबंधी सहमति पत्र के विवरण की जानकारी नहीं है लेकिन वे मा᳴स्को के इस संबंध में प्रस्तावों की समीक्षा करने के इच्छुक हैं।

 ज़ेलेंस्की ने कहा कि जब भी हमें रूसी पक्ष से कोई प्रस्ताव मिलेगा तब हम अपनी प्रतिक्रियाएँ और विचार उसके अनुसार तैयार कर सकते हैं।

 उन्होंने यह भी बताया कि ट्रंप और पुतिन की कॉल से पहले उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति से टेलीफ़ोन पर बात की थी और उनसे कहा था कि यूक्रेन के बारे में हमारे बिना कोई निर्णय न लें क्योंकि कीव के लिए कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे हैं।

 यूक्रेन के राष्ट्रपति से जब यह पूछा गया कि क्या वे रूस के चार क्षेत्रों खेरसन,डोनेट्स्क, लुहान्स्क और जापोरिज़्ज़िया से पीछे हटने की मांग को स्वीकार करते हैं? तो इसके जवाब में उन्होंने  कहा कि हम अपनी सेनाओं को अपने क्षेत्र से वापस नहीं हटाएंगे।

 पेसकोव: शांति और संघर्षविराम समझौते का मसौदा जटिल होगा

इसी संदर्भ में क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने सोमवार को कहा कि रूस और यूक्रेन के बीच शांति और संघर्षविराम के समझौते का मसौदा तैयार करना जटिल होगा और इसके लिए कोई निश्चित समयसीमा निर्धारित नहीं की जा सकती।

 उन्होंने कहा कि इस दस्तावेज़ का मसौदा दोनों पक्ष रूसी और यूक्रेनी द्वारा तैयार किया जाएगा और बाद में दोनों पक्ष इसके आदान-प्रदान के लिए संपर्क करेंगे। इसके बाद समान विषय वस्तु तैयार करने के लिए जटिल वार्ताएं होंगी।

 

आयतुल्लाह सैयद यूसुफ़ ताबातबाई नेजाद ने कहा, जनसंपर्क का काम सिर्फ नगरपालिका के संदेशों को जनता तक पहुँचाना ही नहीं है, बल्कि जनता की बातों को भी मेयर और अन्य ज़िम्मेदारों तक पहुँचाना है ताकि उनकी राय, शिकायतों और मौजूदा कमियों की जानकारी हासिल की जा सके।

इस्फहान के इमामे जुमआ आयतुल्लाह ताबातबाई नेजाद ने इस्फहान की 15 ज़िलों पर आधारित नगरपालिका (बलदिया) के जनसंपर्क (रिलेशंस) विभाग के निदेशकों से मुलाकात की यह मुलाकात संचार और जनसंपर्क दिवस के अवसर पर हुई, जिसमें उन्होंने उन्हें मुबारकबाद दी और इस क्षेत्र की अहमियत को उजागर किया।

उन्होंने अपनी बातचीत के दौरान इस्लामी क्रांति की कामयाबियों और सेवाओं को बयान करने की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए कहा, जनता को यह मालूम होना चाहिए कि हमने कुफ्र के अधीन न रहने की नेमत (वरदान) हासिल की है जो कि अपने आप में एक बड़ी कामयाबी है।

आयतुल्लाह ताबातबाई निजाद ने आगे कहा, आज बदक़िस्मती से अरब दुनिया के ज़्यादातर मुल्क अमेरिका के अधीन हो गए हैं और अपनी धार्मिक और इंसानी पहचान खो चुके हैं, क्योंकि उन्होंने खुदा की बजाय ग़ैर ख़ुदा की पैरवी शुरू कर दी है।

मजलिसे खुबर्गान रहबरी के इस सदस्य ने ज़बान से होने वाले गुनाहों, ख़ास तौर पर झूठ की निंदा करते हुए कहा,हमें सिर्फ अल्लाह के अधीन रहना चाहिए और दूसरों की तरक्क़ी या खुशी की ख़ातिर झूठ बोलना या कोई भी गुनाह नहीं करना चाहिए हर मामले में सच हमारी बुनियाद होना चाहिए।

 

ग़ाज़ा सरकार के सूचना कार्यालय के प्रमुख इस्माईल अलथवाबेह ने एक बयान में इस्राईल के उस झूठ को उजागर किया जिसमें दावा किया गया था कि ग़ाज़ा में इंसानी मदद भेजी जा रही है।

शहाब एजेंसी के हवाले से बताया कि इस्माईल अलथवाबेह ने कहा कि इस्राईली क़ब्जाधारियों ने 9 ट्रकों को ग़ाज़ा में इंसानी मदद ले जाने की अनुमति देने का दावा किया है, जबकि असल में ग़ाज़ा को हर दिन 500 से अधिक ट्रकों की मदद और 50 ट्रकों ईंधन की ज़रूरत होती है।

उन्होंने बताया कि ये चंद ट्रक सिर्फ़ बच्चों के लिए कुछ पोषण सामग्री लेकर आए हैं, जो ग़ाज़ा की तत्काल ज़रूरतों के महासागर में महज़ एक बूँद हैं।

थवाबेह ने स्पष्ट किया कि 2 मार्च से अब तक ग़ाज़ा के तमाम बार्डर बंद हैं और कोई भी असली मदद इस इलाके में नहीं पहुंची है।

उन्होंने कहा कि बीते 80 दिनों में, जब से नाकाबंदी और बार्डर बंद हैं, ग़ाज़ा में कम से कम 44,000 ट्रक इंसानी मदद के आने चाहिए थे।

उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की कि ग़ाज़ा में मानवीय मदद के लिए ठोस कदम उठाए जाएं, क्योंकि वहां बाज़ारों में खाने-पीने की चीजें बेहद दुर्लभ हो चुकी हैं।थवाबेह ने बताया कि हर दिन कई ग़ाज़ावासी कुपोषण और खाने की कमी के कारण जान गंवा रहे हैं।

फ़िलिस्तीन सूचना केंद्र की रिपोर्ट के अनुसार, क़ानूनी शोधकर्ता फ़ौआद बक्र ने अलअक़्सा टीवी से बात करते हुए कहा कि ज़ायोनी क़ब्ज़ा करने वाला शासन फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध का समर्थन करने वाली जनता को सज़ा देने के लिए जानबूझकर भुखमरी की नीति अपना रहा है। यह नीति इस्राईल के कट्टरपंथी वित्त मंत्री बेज़ालेल स्मोत्रिच की पहले से घोषित योजना का हिस्सा है।

उन्होंने बताया कि इस योजना के तहत फ़िलिस्तीनियों के सामने तीन ही रास्ते हैं बिना अधिकारों के ज़िंदगी, जबरी पलायन, या मौत।बक्र ने ज़ोर देकर कहा कि यह नीति सिर्फ़ क़ैदियों के मसले पर दबाव डालने के लिए नहीं है, बल्कि एक व्यापक बदले की योजना का हिस्सा है जिसका मकसद फ़िलिस्तीनी क़ौम का सफाया करना और ग़ाज़ा तथा वेस्ट बैंक पर पूरी तरह क़ब्ज़ा जमाना है।

 

ईरान ने देश के भीतर विकसित ज्ञान और स्थानीय विशेषज्ञता के बल पर दुनिया की पाँच सबसे बड़ी साइबर शक्तियों में अपनी जगह बना ली है यह विशेष स्थान इस बात का प्रमाण है कि ईरान विभिन्न साइबर हमलों और जटिल डिजिटल चुनौतियों का उच्च स्तर पर मुकाबला करने की क्षमता रखता है।

ईरान ने देश में विकसित ज्ञान और स्थानीय क्षमताओं के बल पर दुनिया की पाँच सबसे बड़ी साइबर शक्तियों में अपनी जगह बना ली है यह विशिष्ट स्थान इस बात का संकेत है कि ईरान विभिन्न साइबर हमलों और जटिल डिजिटल चुनौतियों का उच्च स्तर पर सफलतापूर्वक सामना करने की क्षमता रखता है।

ईरान ने चुपचाप लेकिन पूरी आत्मनिर्भरता के साथ, साइबर दुनिया में एक बड़ी शक्ति का दर्जा हासिल किया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि ईरान वर्तमान में साइबर क्षेत्र में दुनिया के पाँच सबसे शक्तिशाली देशों में गिना जाता है, जो देश की राष्ट्रीय सुरक्षा और डिजिटल रक्षा के क्षेत्र में उसकी बेहतरीन प्रदर्शन का प्रमाण है।

स्रोत: पुस्तक "सक़वे इफ्तिखार" (इस्लामी क्रांति की सफलताओं की एक समीक्षा)

 

प्रसिद्ध अरब विश्लेषक ने यमनियों द्वारा अतिग्रहित फ़िलिस्तीनी भूमि पर रोज़ाना हो रहे मिसाइल हमलों का उल्लेख करते हुए भविष्य में इस्राइली शासन के बड़े आश्चर्यों का खुलासा किया है।

अब्दुलबारी अत्वान, जो अरब दुनिया के प्रसिद्ध विश्लेषक हैं, ने रविवार को राय अल-यौम में लिखा कि यमन के मिसाइल हमले जो ज़ायोनी शासन के अंदर तक हो रहे हैं, वे सुपरसोनिक मिसाइलों से किए जा रहे हैं और लगभग रोज़ाना अतिग्रहित फ़िलिस्तीन के याफ़ा शहर पर हमला जारी है।

 बेन गुरियन हवाई अड्डा लंबे समय तक बंद रहा है और आने वाले हफ़्तों और महीनों में इसकी ज़्यादातर अंतरराष्ट्रीय उड़ानें रद्द हो गई हैं। इस्राइल की प्रतिक्रिया में यमन की बंदरगाहों पर हवाई हमले किए गए हैं।

 उन्होंने कहा: यह दो बातों व विषयों का प्रमाण है पहला, अमेरिका और अंसार अल्लाह के बीच अस्थायी युद्धविराम, जो अमेरिका के अनुरोध पर हुआ है और यह युद्धविराम अतिग्रहणकारी ज़ायोनी शासन पर लागू नहीं होता है। यमन के मिसाइल और ड्रोन हमले इस शासन की बंदरगाहों और हवाई अड्डों पर जारी रहेंगे और तीव्र भी होंगे।

 

दूसरी बात यह है कि यह समझौता यमनी पक्ष की सूझ-बूझ का शिखर है कि उन्होंने अमेरिका को अस्थायी रूप से मैदान से बाहर कर दिया है ताकि उनका सारा ध्यान अपने विरोधी इस्राइल के साथ टकराव पर केंद्रित हो सकें। यह लड़ाई ग़ाज़ा में ज़ायोनी सैनिकों की ज़मीनी कार्यवाही और हमलों में तेज़ी के साथ और भी तेज़ होगा।

 अतवान ने लिखा: वर्तमान में एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि ट्रंप यमनी बलों के साथ आमने-सामने की टक्कर से ओमान की मध्यस्थता में क्यों बच रहे हैं, जो इस ज़ायोनी शासन में डर और आतंक पैदा कर रहा है और इसे एक लंबे और थकाऊ मिसाइल युद्ध में धकेल रहा है, जिससे बाहर निकलना भारी कीमत और शायद बड़ी हार के साथ हो सकता है।

 इस विश्लेषक ने याद दिलाया: ट्रंप के अंसारुल्लाह के साथ लड़ाई से बचने के कारणों के जवाब में निम्न बातों का उल्लेख करना आवश्यक है।

 सबसे पहले, इस बात का एक मजबूत जवाब अमेरिका के सैन्य मामलों के विशेषज्ञ हैरिसन कास ने दिया है। उन्होंने अमेरिका की प्रसिद्ध पत्रिका नेशनल इंटरेस्ट में एक लेख में खुलासा किया कि यमन की मिसाइल रक्षा प्रणाली ने एक F-35 लड़ाकू विमान की ओर मिसाइल दागी थी और वह लगभग उसे गिरा ही देती।

 यह लड़ाकू विमान अमेरिकी वायु सेना का अत्यंत उन्नत विमान है और अगर पायलट की कुशलता नहीं होती और मिसाइल से बच नहीं पाता, तो यह यमन के लिए एक अभूतपूर्व जीत होती, जो अमेरिका की वैश्विक वायु श्रेष्ठता को तहस-नहस कर देती और यह जीत उस अंसारुल्लाह की ओर से होती जिसे अमेरिका छोटा आंकता व समझता है।

 दूसरे, सैन्य विशेषज्ञ ग्रेगरी बैरो ने यह बताया कि कैसे सात आधुनिक और उन्नतअमेरिकी MQ-9 ड्रोन, जिनमें से हर एक की क़ीमत लगभग 30 मिलियन डॉलर है, गिरा दिए गए। उन्होंने एक और करीब आने वाली आपदा का खुलासा किया, यानी अमेरिकी F-16 लड़ाकू विमान का गिरना और इसके पायलट की मौत से अमेरिकी सेना को भारी क्षति होने का खतरा।

 ग्रेगरी ने अपने लेख में यमन के सशस्त्र बलों की मिसाइल और रक्षा प्रणाली की ताक़त का भी उल्लेख किया जिसमें अपग्रेड किए गए SAM मिसाइलें शामिल हैं, जिनकी मारक क्षमता बढ़ाई गई है और जो अधिक प्रभावी हो गई हैं।

 तीसरा अमेरिका द्वारा ट्रूमैन युद्धपोत को लाल सागर से वापस बुला लेना वह भी उसके स्थान पर किसी दूसरे युद्धपोत को तैनात किया बिना युद्धविराम की वजह से नहीं है, बल्कि यमनी बलों द्वारा उस युद्धपोत पर किए गए मिसाइल हमलों और दो F-18 लड़ाकू विमानों के नष्ट हो जाने के कारण है। इनमें से एक विमान युद्धपोत के डेक पर था और दूसरा आसमान में उड़ान भर रहा था।

इस विश्लेषक ने आगे कहा कि बेन गोरियन हवाई अड्डे और अमेरिकी युद्धपोत के डेक पर लगी बैलिस्टिक मिसाइलें हैफ़ा और अशदूद बंदरगाहों के केन्द्र को  भी निशाना बना सकती हैं विशेषकर इसलिए क्योंकि यमनी नेतृत्व ने आने वाले दिनों में बड़े सैन्य हमलों की ख़बर व चेतावनी दी है। 

 

सैय्यदुस शोहदा (अ) के लिए अज़ादारी शिया धर्म की पहचान, आंदोलन की भावना और जागरूकता का आधार है। यह केवल एक पारंपरिक या सांस्कृतिक प्रथा नहीं है, बल्कि एक महान बौद्धिक, वैचारिक और राजनीतिक अभिव्यक्ति है जिसने न केवल इस्लामी राष्ट्र को बल्कि मानव इतिहास को भी उत्पीड़न और झूठ के खिलाफ खड़े होने का साहस दिया है। इस्लाम के इतिहास में जहाँ भी उत्पीड़न के खिलाफ एक प्रभावी आंदोलन खड़ा हुआ है, उसके पीछे कर्बला का संदेश और अज़ादारी की भावना निश्चित रूप से काम कर रही है। यही कारण है कि अहले-बैत (अ) के दुश्मनों ने हमेशा अज़ादारी को निशाना बनाया है, कभी प्रत्यक्ष राजनीतिक प्रतिबंधों के रूप में तो कभी बौद्धिक और वैचारिक संदेह के रूप में।

सैय्यदुस शोहदा (अ) के लिए अज़ादारी शिया धर्म की पहचान, आंदोलन की भावना और जागरूकता का आधार है। यह केवल एक पारंपरिक या सांस्कृतिक प्रथा नहीं है, बल्कि एक महान बौद्धिक, वैचारिक और राजनीतिक अभिव्यक्ति है जिसने न केवल इस्लामी राष्ट्र को बल्कि मानव इतिहास को भी उत्पीड़न और झूठ के खिलाफ खड़े होने का साहस दिया है। इस्लाम के इतिहास में जहाँ भी उत्पीड़न के खिलाफ एक प्रभावी आंदोलन खड़ा हुआ है, उसके पीछे कर्बला का संदेश और अज़ादारी की भावना निश्चित रूप से काम कर रही है। यही कारण है कि अहले-बैत (अ) के दुश्मनों ने हमेशा अज़ादारी को निशाना बनाया है, कभी प्रत्यक्ष राजनीतिक प्रतिबंधों के रूप में तो कभी बौद्धिक और वैचारिक संदेह के रूप में। वर्तमान युग में, जब सूचना और संचार का दायरा बढ़ गया है और सभी प्रकार की सूचनाएं सोशल मीडिया के माध्यम से जनता, खासकर युवा पीढ़ी तक आसानी से पहुंच रही हैं, अज़ादारी के खिलाफ संदेह और आशंकाएं एक नए तरीके से प्रस्तुत की जा रही हैं। इन शंकाओं का दायरा बहुत व्यापक है:

अज़ादारी को एक नवीनता या गैर-इस्लामी अनुष्ठान घोषित करना

अज़ादारी, छाती पीटना और नौहा को तर्कहीन या गैर-इस्लामी घोषित करना

अज़ादारी को दीने मुहम्मदी के उद्देश्यों से असंबंधित घोषित करना

ऐसी शंकाओं को भावनात्मक रूप से खारिज करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि इस बौद्धिक हमले का अपने स्तर पर, यानी वैज्ञानिक, तर्कपूर्ण और सैद्धांतिक तरीके से जवाब देना अनिवार्य है। हमें इस तथ्य को समझना चाहिए कि दुश्मन अपनी स्थिति का बचाव करने के लिए व्यवस्थित शोध, दर्शन, तर्क और मीडिया का सहारा ले रहा है; इसलिए, अज़ादारी का बचाव भी उसी तीव्रता, व्यापकता और बुद्धिमत्ता के साथ होना चाहिए।

यहां सबसे महत्वपूर्ण जरूरत एक व्यवस्थित बौद्धिक और प्रचार प्रणाली की है जो इस विषय पर युवा विद्वानों, छात्रों, प्रचारकों और धार्मिक कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करती है। इस प्रशिक्षण में निम्नलिखित शामिल होने चाहिए:

  1. अक़ाइद, फ़िक़्ह और तारीखे इस्लाम के विश्वसनीय स्रोतों से संदेहों का विस्तृत विद्वत्तापूर्ण खंडन
  2. तर्क, धार्मिक समझ के सिद्धांतों और शरिया के उद्देश्यों के प्रकाश में अज़ादारी का औचित्य और आवश्यकता
  3. शिया और सुन्नी स्रोतों के संदर्भ में उम्माह की एकता के ढांचे के भीतर अज़ादारी की रक्षा
  4. उपदेश शैलियों, वक्तृत्व, संवाद और सोशल मीडिया में प्रशिक्षण
  5. आधुनिक पीढ़ी के मनोवैज्ञानिक और बौद्धिक रुझानों के प्रकाश में समकालीन तर्क

हौज़ा ए इल्मिया, धार्मिक संगठन और सांस्कृतिक संगठनों को संयुक्त रूप से "अज़ादारी से संबंधित संदेह" विषय पर विशेष पाठ्यक्रम, कार्यशालाएं, प्रशिक्षण सत्र और पुस्तिकाओं के प्रकाशन जैसी परियोजनाएं शुरू करनी चाहिए। इसके अलावा, युवा विद्वानों को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया के माध्यम से बौद्धिक और मिशनरी मोर्चे पर जुटाया जाना चाहिए ताकि वे हर क्षेत्र में शोक का वैज्ञानिक रूप से बचाव कर सकें।

आज के युवाओं में तर्क, तर्क और बौद्धिक गहराई की मांग है। वह सिर्फ़ नारा नहीं बल्कि सच्चाई जानना चाहता है। अगर हम वैज्ञानिक तरीके से इस ज़रूरत का जवाब नहीं देते हैं, तो मुमकिन है कि वह दुश्मन के दुष्प्रचार का शिकार हो जाए और मातम से दूर हो जाए।

यह कहना उचित होगा कि मातम की हिफ़ाज़त के लिए सबसे कारगर हथियार "ज्ञान" है, और इस ज्ञान को नई पीढ़ी तक पहुँचाने का एकमात्र ज़रिया "शिक्षा और प्रशिक्षण का मंच" है। हमें आज वह मंच बनाना है जो पीढ़ी दर पीढ़ी मातम की तर्कपूर्ण हिफ़ाज़त को हस्तांतरित कर सके, ताकि हुसैनियत का झंडा हमेशा ऊँचा रहे, और हर दौर में जुल्म के खिलाफ़ कर्बला की आवाज़ गूंजती रहे।

इस संबंध में, तशक्कुले फरहंगी जिहाद तबीन अपने दृष्टिकोण को कायम रखते हुए, इस संबंध में सेवा करने वाली हर संस्था और संगठन के साथ हमेशा खड़ी है, और इस संबंध में, तशक्कुले फरहंगी जिहाद तबीन ने 11 से 15 मई, 2025 तक क़ुम में आयोजित "मुहर्रम अल-हराम मुबल्लेगीन के लिए अज़ादारी के संदेह के उत्तर" शीर्षक कार्यशाला में पूर्ण रूप से भाग लिया।

यह कार्यशाला वली अस्र इंटरनेशनल फाउंडेशन और मदरसा अल-विलाया द्वारा और आयतुल्लाह सय्यद हुसैनी कज़्विनी के प्रत्यक्ष संरक्षण में आयोजित की गई थी, जिसमें पाकिस्तान और भारत के विभिन्न शहरों से 50 से अधिक विद्वानों, छात्रो, प्रचारकों और शोधकर्ताओं ने भाग लिया।

तशक्कुले फरहंगी जिहाद तबीन की ओर से हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन अहमद फातमी (संगठन के निदेशक), हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लेमीन तसव्वुर अब्बास और हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लेमीन मलिक ज़ईम अब्बास ने इस अकादमिक कार्यशाला में सक्रिय और प्रभावी रूप से भाग लिया। संगठन के सदस्यों ने अकादमिक सामग्रियों का पूरा उपयोग किया और अन्य अंतरराष्ट्रीय उपदेशकों और विद्वानों के साथ विचारों का आदान-प्रदान किया और अज़ादारी के बचाव में अपनी तर्कसंगत स्थिति प्रस्तुत की।

इस कार्यशाला में तश्क्कुले फरहंगी जिहाद तबीन की भागीदारी न केवल इसकी अकादमिक और बौद्धिक परिपक्वता का प्रकटीकरण है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुसैनी अनुष्ठानों के तर्कपूर्ण बचाव में इसकी भूमिका को और मजबूत करती है।

तशक्कुले फरहंगी जिहाद तबीन इस सफल शैक्षणिक कार्यक्रम के आयोजन के लिए मदरसा अल-विलाया, वली अल-असर फाउंडेशन (अ) और आयतुल्लाह कज़्विनी का तहे दिल से शुक्रिया अदा करता है और इस बात पर जोर देता है कि मौजूदा दौर की चुनौतियों के मद्देनजर मातम और अहले-बैत (अ) के स्कूल के खिलाफ उठने वाले संदेहों का जवाब देने के लिए ऐसे अकादमिक सत्र समय की सबसे अहम जरूरत हैं।

तशक्कुले फरहंगी जिहाद तबीन भविष्य में भी ऐसी सभी शैक्षणिक, बौद्धिक और मिशनरी गतिविधियों में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए दृढ़ संकल्प है। वह दृढ़ रहेंगे और ज्ञान, बुद्धि और अंतर्दृष्टि के साथ अहले बैत (अ) के स्कूल की रक्षा करना जारी रखेंगे।

लेखक: मौलाना मुहम्मद अहमद फातमी

हौज़ा ए इल्मिया के निदेशक ने कहा, हौज़वी प्रमाणपत्र एक नाज़ुक और संवेदनशील विषय है, क्योंकि न तो समाज में प्रचलित प्रमाणपत्रों की अनदेखी की जा सकती है, और न ही उनकी विश्वसनीयता की बुनियाद हौज़ा से बाहर होनी चाहिए।

हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह अराफ़ी ने हौज़ा के सहायकों और प्रबंधकों की परिषद के साथ एक बैठक में रहबर-ए-मुअज्ज़म  के हौज़ा से संबंधित ऐतिहासिक संदेश की ओर इशारा करते हुए हौज़ा-ए-इल्मिया में बुनियादी बदलावों की शुरुआत पर बात की।

उन्होंने कहा,रहबर-ए-मुअज्ज़म की हिदायतों की तकमील के रास्ते पर हौज़ा के सभी विभाग सक्रिय और गतिशील रवैये के साथ नए क़दम उठा चुके हैं, जिनकी तफसील बहुत जल्द सामने लाई जाएगी। इस बदलाव की राह का पहला क़दम है राष्ट्रीय स्तर पर हौज़वी प्रमाणपत्रों की स्थिति और विश्वसनीयता की नई परिभाषा।

हौज़ा-ए-इल्मिया के प्रमुख के अनुसार,हौज़वी असनाद (प्रमाणपत्रों) का मुद्दा बहुत नाज़ुक और गहराई से जुड़ा हुआ है; समाज में प्रचलित प्रमाणपत्रों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता, और न ही उनके अधिकारिक मूल्य को हौज़ा से बाहर माना जा सकता है।

आयतुल्लाह आराफ़ी ने रहबर-ए-मुअज्ज़म की दृष्टि में बदलाव के बिंदु को स्पष्ट करते हुए कहा,रहबर के बयानों के अनुसार हौज़ा एक स्वायत्त संस्था है, और हौज़वी प्रमाणपत्रों की वैधता और विश्वसनीयता किसी सरकारी संस्था की मंज़ूरी पर निर्भर नहीं है, बल्कि यह हौज़ा की वैज्ञानिक स्थिति और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से प्राप्त होती है।

इसलिए हौज़वी प्रमाणपत्रों को स्वायत्त होना चाहिए और उनका औपचारिक मूल्य केवल शूरा-ए-इन्क़िलाब-ए-फ़रहंगी की पुष्टि से स्थापित होना चाहिए।

हौज़वी प्रमाणपत्रों की संरचना और विश्वसनीयता में सकारात्मक परिवर्तन/ सुप्रीम लीडर के संदेश की तामीर की दिशा में पहला क़दम

उन्होंने कहा,यह परिवर्तन उस मार्ग की शुरुआत है जो हौज़ा के भविष्य को अधिक प्रतिष्ठित और स्वायत्त बनाएगा। इस संदर्भ में शूरा-ए-इन्क़िलाब-ए-फ़रहंगी की मंज़ूरी केवल इस बिंदु तक सीमित होगी कि हौज़वी प्रमाणपत्र अन्य शैक्षणिक प्रमाणपत्रों के समान प्रभाव रखते हैं। दरअसल, यह परिषद सरकारी संस्थाओं को यह अवगत कराएगी कि इन प्रमाणपत्रों को औपचारिक संस्थानों में मान्यता दी जाए।

हौज़ा इल्मिया ख़ुरासान के निदेशक ने शहीद आयतुल्लाह रईसी की सेवाभावी प्रकृति की ओर इशारा करते हुए कहा, जनता की समस्याओं की सीधे जांच करना और हमेशा मैदान में मौजूद रहना शहीद राष्ट्रपति की सबसे प्रमुख विशेषताओं में से था और यह व्यवहार सभी अधिकारियों के लिए एक आदर्श होना चाहिए।

हौज़ा इल्मिया ख़ुरासान के निदेशक हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन ख़य्यात ने मशहद में शहीद रईसी इंटरनेशनल फ़ाउंडेशन के स्टॉल के दौरे और पत्रकारों से बातचीत के दौरान शहीद आयतुल्लाह रईसी की विशिष्ट शख्सियत की ओर इशारा करते हुए कहा, शहीद रईसी ज़िम्मेदारी निभाने का एक जीवंत और वास्तविक उदाहरण थे जो हमेशा अपनी अहम हैसियत का खयाल रखते थे और कभी भी जनता की समस्याओं से बेखबर नहीं रहते थे।

उन्होंने कहा,शहीद रईसी की बरसी के इन दिनों में उनकी उत्कृष्ट विशेषताओं को बयान किया जाना चाहिए वह हमेशा जनता की समस्याओं के समाधान के लिए प्रयासरत रहते थे और खुद को जनता से अलग नहीं समझते थे। वे स्वयं जनता के बीच मौजूद रहते थे और हालात का सीधा जायज़ा लेकर समस्याओं को हल करने के लिए कदम उठाते थे।

हुज्जतुल इस्लाम ख़य्यात ने आगे कहा,जनता की सेवा का ऐसा जज़्बा और इच्छा हर ज़िम्मेदार व्यक्ति में होनी चाहिए यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रपति जैसे अहम ओहदे पर हो, तो ज़रूरी है कि वह स्वयं मैदान में मौजूद रहे और जनता की समस्याओं की व्यक्तिगत रूप से निगरानी करे। शहीद रईसी की विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय मौजूदगी और उनका कार्यशैली इस बात की स्पष्ट मिसाल है।

उन्होंने आगे कहा, शहीद रईसी की प्रमुख और बहुआयामी विशेषताएं उनके राष्ट्रपति कार्यकाल में और अधिक निखरकर सामने आईं वे हमेशा अल्लाह पर भरोसा रखते थे और जनता की कठिनाइयों को हल करने के लिए बेहद संवेदनशील रहते थे। उनका उद्देश्य अल्लाह की रज़ा और जनता की खुशी को हासिल करना था।

हौज़ा इल्मिया ख़ुरासान की उच्च परिषद के इस सदस्य ने यह भी कहा, अगर कोई क़ीमती और मूल्यवान काम पेश किया जाए तो उसका क़द्रदान ज़रूर मिलता है। सांस्कृतिक समस्याएं कई बार गुणवत्ता की कमी के कारण नहीं होतीं, बल्कि उनके प्रस्तुतीकरण, प्रचार और पहचान के तरीक़ों पर निर्भर करती हैं।

अगर आधुनिक और दिलचस्प तरीक़े से सांस्कृतिक रचनाओं को पेश किया जाए, तो अधिक श्रोताओं को आकर्षित किया जा सकता है और साहित्य व संस्कृति की दुनिया अपनी असली हैसियत पा सकती है।