رضوی

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आज हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े के पावन प्रांगण का वातावरण ही कुछ और है। आपकी शहादत के दुखद अवसर पर आपके पवित्र रौज़े और उसके प्रांगण में विभिन्न संस्कृतियों व राष्ट्रों के हज़ारों श्रृद्धालु एकत्रित हैं ताकि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम और उनके पवित्र परिजनों के प्रति अपनी श्रृद्धा व्यक्त कर सकें। आपके पवित्र रौज़े के कोने-कोने से क़ुरआन पढ़ने और दुआ करने की आवाज़ें आ रही हैं। श्रृद्धालुओं की अपार भीड़ यहां पर एकत्रित हुई है ताकि अपने नेत्रों के आंसूओं से अपने हृदयों के मोर्चे को छुड़ा सके और इस पवित्र रौज़े में अपने हृदय व आत्मा को तरुणाई प्रदान कर सके। श्रृद्धालुओं के हृदय शोक में डूबे हुए हैं परंतु आपके पवित्र रौज़े एवं प्रांगण में उनकी उपस्थिति से जो आभास उत्पन्न हुआ है उसका उल्लेख शब्दों में नहीं किया जा सकता।

 पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से प्रेम करने वालों के लिए आज एक अवसर है ताकि वे इन महान हस्तियों की आकांक्षाओं के साथ दोबारा प्रतिबद्धता व्यक्त करें। प्रिय श्रोताओ हम भी हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत के दुखद अवसर पर आप सबकी सेवा में हार्दिक संवेदना प्रस्तुत कर रहे हैं और हम आज के कार्यक्रम में हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के विभूतिपूर्ण जीवन के कुछ पहलुओं पर प्रकाश डालेंगे। इमाम रज़ा अली बिन मूसा अलैहिस्सलाम के पावन अस्तित्व का चेराग़ उस घर में प्रकाशित हुआ जिस घर के परिवार के अभिभावक सदाचारी, ईश्वरीय दास और पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम थे। अली बिन मूसा अलैहिस्सलाम की माता मोरक्को के एक गणमान्य व प्रतिष्ठित व्यक्ति की बुद्धिमान सुपुत्री थीं जिनका नाम नज्मा था। हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का नाम अली और आपकी सबसे प्रसिद्ध उपाधि रज़ा है जिसका अर्थ प्रसन्नता है। आपके सुपुत्र हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम अपने पिता की उपाधि रज़ा रखे जाने के बारे में कहते हैं" ईश्वर ने उन्हें रज़ा की उपाधि दी क्योंकि आसमान में ईश्वर और ज़मीन में पैग़म्बरे इस्लाम तथा उनके पवित्र परिजन उनसे प्रसन्न थे और इसी तरह उनके अच्छे स्वभाव के कारण उनके मित्र, निकटवर्ती और शत्रु भी उनसे प्रसन्न थे"हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम के परिजनों में से एक हैं जिन्होंने ईश्वरीय दायित्व इमामत के काल में लोगों को पवित्र क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की शिक्षा की पहचान करवाई।

हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का ज्ञान, धैर्य, बहादुरी, उपासना, सदाचारिता एवं ईश्वरीय भय और एक वाक्य में यह कि आपका अध्यात्मिक व्यक्तित्व इस सीमा तक था कि आपके काल में किसी को भी आपके ज्ञान एवं अध्यात्मिक श्रेष्ठता में कोई संदेह नहीं था और इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम अपने समय में "आलिमे आले मोहम्मद" अर्थात हज़रत मोहम्मद के परिवार के ज्ञानी के नाम से प्रसिद्ध थे।हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के काल में इस्लामी जगत ने भौगोलिक, आर्थिक और शैक्षिक दृष्टि से बहुत अधिक प्रगति की थी परंतु इन सबके साथ ही उस समय अब्बासी शासकों की अत्याचारी सरकार जारी थी।

हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के काल में बनी अब्बास, हारून रशीद और अमीन व मामून की तीन सरकारें थीं और आपके जीवन के अंतिम पांच वर्षों में बहुत ही धूर्त और पाखंडी अब्बासी ख़लीफा मामून की सरकार थी। मामून ने अपने भाई अमीन की हत्या कर देने के बाद सत्ता की बाग़डोर अपने हाथ में ले ली और उसने अपने मंत्री फज़्ल बिन सहल की बुद्धि व चालाकी से लाभ उठाकर अपनी सरकार के आधारों को मज़बूत बनाने का प्रयास किया। इसी दिशा में उसने हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को अपना उत्तराधिकारी बनने का सुझाव दिया ताकि पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से प्रेम करने वालों के ध्यान को अपनी ओर आकर्षित कर ले और इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को अपना उत्तराधिकारी बनाकर वह अपनी सरकार को वैध दर्शाना चाहता था।

अलबत्ता उसने बहुत चालाकी से यह दिखाने का प्रयास किया कि इस कार्य में उसकी पूरी निष्ठा है और उसने हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के प्रति सच्चे हृदय, विश्वास तथा लगाव से यह कार्य किया। मामून के इस निर्णय पर अब्बासी सरकार के समर्थकों व पक्षधरों ने जो आपत्ति जताई उसके जवाब में मामून ने जो चीज़ें बयान कीं उससे उसके इस कार्य के लक्ष्य स्पष्ट हो जाते हैं। मामून ने कहा" इन्होंने अर्थात इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने अपने कार्यों को हमसे छिपा रखा है और लोगों को अपनी इमामत की ओर बुलाते हैं। इस आधार पर वह जब हमारे उत्तराधिकारी बन जायेगें तो लोगों को हमारी ओर बुलायेंगे और हमारी सरकार को स्वीकार कर लेगा और साथ ही उनके चाहने वाले भी समझ जायेंगे कि सरकार के योग्य हम हैं न कि वह"इस आधार पर यदि मामून की इच्छानुसार हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम उसके उत्तराधिकारी होने को स्वीकार कर लेते तो यह एसा कि जैसे उन्होंने बनी अब्बासी सरकार की वैधता को स्वीकार कर लिया हो और यह अब्बासी ख़लीफ़ाओं के लिए बहुत बड़ी विशिष्टता समझी जाती। दूसरी बात यह थी कि मामून यह सोचता था कि हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम द्वारा उसके उत्तराधिकारी होने को स्वीकार कर लेने से उनका स्थान व महत्व कम हो जायेगा।

विदित में मामून की ये पाखंडी व धूर्त चालें बहुत सोची- समझी हुई थीं परंतु इन षडयंत्रों के मुक़ाबले में हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की क्या प्रतिक्रिया रही है?इस षडयंत्र के मुक़ाबले में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की पहली प्रतिक्रिया यह रही कि आप मामून की सरकार के केन्द्र मर्व आने से कतराते रहे यहां तक कि मामून के कारिन्दें इमाम को विवश करके मर्व लाये। प्रसिद्ध विद्वान शेख सदूक़ ने अपनी पुस्तक "ऊयूनो अख़बारि र्रेज़ा" में लिखा है" इमाम पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम से विदा लेने के लिए आपके मज़ार पर गये। कई बार वहां से बाहर निकले और फिर पलट आये तथा ऊंची आवाज़ में विलाप किया।

उसके पश्चात इमाम ने परिवार के लोगों को एकत्रित किया और उनसे विदा ली तथा उनसे कहा" अब मैं आप लोगों की ओर वापस नहीं आऊंगा"दूसरा महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम अपने परिवार के किसी भी व्यक्ति को अपने साथ नहीं ले गये। इन सब बातों से आपकी पहचान रखने वालों विशेषकर शीया मुसलमानों के लिए, जो सीधे आपके संपर्क में थे, स्पष्ट हो जाता है कि हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने विवश होकर इस यात्रा को स्वीकार किया था। दूसरे चरण में इमाम ने यह प्रयास किया कि अपना उत्तराधिकारी बनाने हेतु मामून के कार्य को पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के अधिकारों को पहचनवानें का माध्यम बना दें। क्योंकि उस समय तक अब्बासी और अमवी शासकों ने पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की इस योग्यता को स्वीकार नहीं किया था कि सरकार के वास्तविक पात्र पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजन ही हैं। मामून की कार्यवाही से अच्छी तरह पहले वाले अब्बासी शासकों की नीतियों व दृष्टिकोणों पर पानी फिर जाता। हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने मामून द्वारा उत्तराधिकारी का पद स्वीकार करने से पहले एक भाषण दिया जिसमें यह शर्त लगा दी कि उत्तराधिकारी का पद स्वीकार करने की स्थिति में वह किसी भी राजनीतिक मामले में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करेंगे, न किसी को काम पर रखेंगे और न ही किसी को उसके पद से बर्खास्त करेंगे। सरकार की कोई परम्परा नहीं तोड़ेंगे और उनसे केवल परामर्श किया जायेगा। दूसरे शब्दों में हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने मामून की अत्याचारी सरकार के किसी काम में कोई हस्तक्षेप नहीं किया ताकि उसकी अत्याचारी सरकार के ग़ैर इस्लामी क्रिया- कलापों को इमाम के खाते में न लिख दिया जाये और लोग यह सोचें कि हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम अब्बासी सरकार का समर्थन व पुष्टि कर रहे हैं।मामून इमाम को मदीने से मर्व लाने के बाद विभिन्न विद्वानों की उपस्थिति में शास्त्रार्थ की बैठकें आयोजित करता था।

इस कार्य से उसका विदित उद्देश्य यह था कि लोग यह समझें कि वह ज्ञानप्रेमी है जबकि उसका वास्तविक उद्देश्य इमाम को इस प्रकार की बैठकों में बुलाकर उनके ज्ञान की शक्ति को प्रभावित करने की चेष्टा थी परंतु हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के ज्ञान की शक्ति से मामून के लिए समस्याएं उत्पन्न हो गयीं। शेख़ सदूक़ इस बारे में लिखते हैं" मामून हर सम्प्रदाय के उच्च कोटि के विद्वानों के मुक़ाबले में हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को लाता था ताकि वे इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की इमामत के तर्क को अस्वीकार कर दें और यह इस कारण था कि वह इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के ज्ञान के स्थान एवं सामाजिक महत्व से ईर्ष्या करता था परंतु कोई भी व्यक्ति आपके सामने नहीं आता था किन्तु यह कि वह आपके स्थान व प्रतिष्ठा को स्वीकार न कर लेता हो। इमाम की ओर से सामने वाले पक्ष के विरुद्ध जो तर्क प्रस्तुत किये जाते थे।

वे उन्हें स्वीकार करने पर बाध्य हो जाते थे। जब मामून यह समझ गया कि इस प्रकार के शास्त्राथों से केवल हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के ज्ञान का स्थान और अधिक स्पष्ट होने का कारण बना है तो उसने ख़तरे का आभास किया और इमाम को पहले से अधिक सीमित कर दिया। एक अन्य घटना ईद की नमाज़ के लिए इमाम का जाना था जिसने मामून के षडयंत्रों का रहस्योदघाटन कर दिया। मामून ने इमाम से मांग की कि वह ईद की नमाज़ पढ़ायें।

आरंभ में इमाम ने स्वीकार नहीं किया परंतु मामून के काफी आग्रह के बाद इमाम ने कहा" तो मैं अपने नाना पैग़म्बरे इस्लाम की भांति नमाज़ पढ़ाने जाऊंगा" मामून ने इसे भी स्वीकार कर लिया। लोगों को आशा व अपेक्षा थी कि इमाम शासकों की भांति ताम झाम और दरबारियों की भीड़ के साथ घर से निकलेंगे परंतु लोग उस समय हतप्रभ रह गये जब उन्होंने यह देखा कि इमाम नंगे पैर अल्लाहो अकबर कहते हुए रास्ता चल रहे हैं। दरबारी लोगों ने, जो सरकारी वेशभूषा में थे, जब यह आध्यात्मिक दृश्य देखा तो वे अपने अपने घोड़ों से नीचे उतर आये और उन्होंने अपने जूते उतार दिये और वे लोग भी अल्लाहो अकबर कहते हुए इमाम के पीछे पीछे चलने लगे।

इस्लामी इतिहास में आया है कि सहल बिन फज़्ल ने, जो मामून का मंत्री था, मामून से कहा कि यदि इमाम इसी तरह ईदगाह तक पहुंच गये तो लोग इमाम के श्रृद्धालु बन जायेंगे और बेहतर यही है कि तू उनसे लौटने के लिए कहे" इसके बाद मामून ने एक व्यक्ति को भेजा और उसने इमाम से लौटने के लिए कहा। मामून अच्छी तरह समझ गया कि लोगों के निकट इमाम की लोकप्रियता दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। मामून ने इस घटना से जिस ख़तरे का आभास किया था उससे वह इस सोच में पड़ गया कि इमाम का अस्तित्व न केवल उसके दर्द की दवा नहीं कर रहा है बल्कि स्थिति और भी उसके विरुद्ध हो जायेगी। इस आधार पर उसने इमाम पर कड़ी दृष्टि रखने के लिए कुछ लोगों को तैनात किर दिया ताकि इमाम की गतिविधियों पर सूक्ष्म व पैनी दृष्टि रखें और सारी बातों की जानकारी मामून को दें ताकि कहीं एसा न हो कि इमाम उसके विरुद्ध कोई कार्यवाहीं कर बैठें। जो बात सही होती थी इमाम मामून से किसी प्रकार के भय के बिना उसे बयान कर देते थे।

बहुत से अवसरों पर इमाम स्पष्ट शब्दों में मामून के क्रिया- कलापों पर टीका- टिप्पणी करते थे। उनमें से एक अवसर यह है कि जब वह ग़ैर इस्लामी क्षेत्रों पर सैनिक चढ़ाई के प्रयास में था तो इमाम ने उसे संबोधित करते हुए कहा" तू क्यों मोहम्मद के अनुयाइयों की चिंता में नहीं है और उनकी भलाई व सुधार के लिए कार्य नहीं करता? इमाम की ये बातें उनके प्रति मामून की ईर्ष्या, द्वेष और शत्रुता में वृद्धि का कारण बनीं। इस आधार पर मामून समझ गया कि इमाम को मदीने से मर्व लाने का वांछित परिणाम नहीं निकला है और यदि स्थिति इसी तरह जारी रही तो उसे एसी क्षति का सामना करना पड़ेगा जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती। मामून अपनी सत्ता की सुरक्षा में किसी की हत्या करने में संकोच से काम नहीं लेता था और इस बार भी उसने अपनी सत्ता की सुरक्षा के उद्देश्य से पैग़म्बरे इस्लाम के प्राणप्रिय पौत्र की हत्या में संकोच से काम नहीं लिया।

इस प्रकार हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम भी अपने पवित्र पूर्वजों की भांति सत्य बोलने और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करने के मार्ग में शहीद हो गये परंतु उन्होंने मामून की अत्याचारी सरकार के साथ सहकारिता करने के अपमान को कभी स्वीकार नहीं किया। हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत के दुःखद अवसर पर एक बार फिर आप सबकी सेवा में संवेदना प्रस्तुत करते हैं और आज के कार्यक्रम को उनके स्वर्ण कथन से समाप्त कर रहे हैं।

आप कहते हैं" ऐसा न हो कि तुम मोहम्मद के परिवार से मित्रता के आधार पर भला कर्म करना छोड़ दो और ऐसा भी न हो कि भले कार्यों के आधार पर मोहम्मद के परिवार से मित्रता करना छोड़ दो क्योंकि इनमें से कोई भी अकेले स्वीकार नहीं किया जायेगा"

 

 

आज इमाम अली इब्ने मूसर्रज़ा अलैहिस्सलाम का शुभ जन्म दिवस है। वह इमाम जो प्रकाशमई सूर्य की भांति अपना प्रकाश बिखेरता है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम का कथन है कि जो भी यह चाहता है कि प्रलय के दिन हंसते हुए तथा प्रसन्नचित मुद्रा में ईश्वर की सेवा में उपस्थित हो उसे चाहिए कि अली इब्ने मूसर्रज़ा से लौ लगाए।

इस समय पवित्र नगर मशहद में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का मक़बरा प्रकाश में डूबा हुआ है। हर वह व्यक्ति जो लंबी यात्रा करके इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में प्रविष्ट होता है, वहां पर विशेष शांति का आभास करता है। आइए हम भी इस महान इमाम की पहचान और उनकी महानता के अथाह सागर से अपने लिए कुछ मोती चुन ले। आज का दिन आप सब को मुबारक हो।

जिस समय तीर्थयात्रियों का जनसमूह उनके रौज़े से बाहर आता है तो उसके मुख पर उपस्थित हर्ष और संतोष का आभास सरलता से किया जा सकता है। मैं सोच में डूबा हुआ था और धीरे-धीरे इमाम रज़ा के मक़बरे की ओर आगे बढ़ रहा था। सहसा मैंने अपने सामने एक महिला को देखा। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह ग़ैर मुस्लिम है जो इमाम के मक़बरे में प्रविष्ट होना चाहती है। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। मैंने बड़े ही सम्मान से उससे पूछा, क्या मैं आपकी कोई सेवा कर सकता हूं? उसने मुस्कुराते हुए बड़ी विनम्रता से कहा, मैं मुसलमान नहीं, इसाई हूं। मैं इमाम रज़ा का आभार व्यक्त करने आई हूं।

उसने जब आश्चर्य से भरी मेरी आखों को देखा तो कहा, मेरा एक अपंग बेटा था। उसके उपचार के लिए मैंने हर संभव प्रयास किये किंतु उसे किसी भी दवा ने लाभ नहीं पहुंचाया। मेरा बेटा स्कूल जाया करता था। उसके मुसलमान मित्रों ने कहा कि तुम्हारी माता उपचार के लिए तुम्हें मशहद में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के मक़बरे पर क्यों नहीं ले जातीं? मेरा बेटा घर आया और उसने मुझसे कहा कि आपने यह कहा है कि मेरे उपचार के लिए आप मुझे अनेक विशेषज्ञों के पास ले गईं। तो फिर यह इमाम रज़ा कौन हैं जो बीमारों की बीमारियां दूर कर देते हैं। मैने निराशा के साथ उससे कहा कि इमाम रज़ा तो मुसलमानों के मार्गदर्शक हैं जबकि हम इसाई हैं। किंतु मेरा पुत्र लगातार इसी बात पर बल दे रहा था। एक दिन वह रोते हुए अपने बिस्तार पर गया। आधी रात को उसकी आवाज़ से मैं जाग पड़ी। मेरा बेटा लगातार मुझको पुकार रहा था और कहता जा रहा था, मां आइए और देखिये कि इन महाशय ने मेरे पैरों को ठीक कर दिया है। वे स्वयं ही मेरे घर पर आए और उन्होंने मुझसे कहा कि अपनी मां से कह दो कि जो भी मेरे दरवाज़े पर आता है उसे हम निरुत्तर नहीं जाने देते। उस महिला की बात जब यहां पर पहुंची तो सहसा मेरी आखों से आंसू बहने लगे।

इमामत, मार्गदर्शन और विकास का स्रोत है। इमाम स्वंय ईश्वर की ओर से मार्गदर्शन प्राप्त होता है और उसे मानवजाति के मार्गदर्शन की सबसे अधिक चिंता हुआ करती है। इमाम वास्तव में मानव की महानता और उसके मूल अधिकारों के संरक्षक होते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम के परिजन, मोक्ष तथा कल्याण की ओर मानवजाति के पथप्रदर्शक और अंधकार तथा समस्याओं में आशा की किरण हैं। कल्याण की ओर गतिशीलता उन प्रभावों में से है जो इमाम तथा अच्छे मार्गदर्शक समाज पर छोड़ते हैं अतः हर वह समाज जो इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम जैसे मार्गदर्शकों की शिक्षाओं को ग्रहण करते हैं वे जड़ता और पिछड़ेपन का शिकार नहीं बनते।

वाशिगटन पोस्ट समाचारपत्र के एक टीकाकार ईरान के बारे में अपनी रिपोर्ट में लिखते हैं कि अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के सत्तासीन होने के आरम्भिक सप्ताहों में उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती अर्थात ईरान पर अध्धयन आरंभ किया। मैंने ईरान के विभिन्न क्षेत्रों की यात्राएं कीं और इस बात को समझने का प्रयास किया कि वर्तमान समय में ईरानी जनता के लिए कौन सी चीज़ सबसे महत्वपूर्ण है? मैंने जो बातें सुनीं उनमें अधिकांश इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के बारे में थीं। इमाम रज़ा, अलैहिस्सलाम इस्लाम की सम्मानीय हस्तियों में से एक हैं जिनका रौज़ा मशहद में है।

शताब्दियों से लोग विभिन्न क्षेत्रों से उनके दर्शन के लिए मशहद जाते हैं। उस समय मैंने आभास किया कि हम पश्चिम में ईरान के परमाणु ईंधन की अधिवृद्धि जैसे विषय पर अपना ध्यान केन्द्रित किये हुए हैं, जो इस देश की शक्ति का प्रतीक है, जबकि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का मक़बरा इस गूढ़ विषय को दर्शाता है कि परमाणु विषय से अलग हटकर ईरान, एक महान आध्यात्मिक शक्ति का स्वामी है। मेरे गाइड ने मुझसे कहा कि प्रतिवर्ष एक करोड़ बीस लाख लोग पवित्र नगर मशहद की यात्रा करते हैं। इमाम रज़ा का अस्तित्व की बहुत अधिक अनुकंपाए हैं और यह ईरानी जनता के लिए गर्व का कारण है। उस समय मैने सोचा कि ईरान की वास्तविक शक्ति को प्रत्यक्ष रूप से इमाम रज़ा के रौज़े में देखा जा सकता है। वे लोगों के हृदयों और उनके विचारों पर राज करते हैं।

वर्ष १४८ हिजरी क़मरी में मदीना नगर में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का जन्म हुआ था। दूरदर्शिता, अत्यधिक ज्ञान, ईश्वर पर गहरी आस्था तथा लोगों का ध्यान आदि ऐसी विशेषताए हैं जो इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को दूसरों से श्रेष्ठ करती हैं। इमाम रज़ा ने लगभग २० वर्षों तक मुसलमानों का नेतृत्व किया।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की उपाधियों में से एक उपाधि कृपालु है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के संबन्ध निर्धन-धनवान, ज्ञानी-अज्ञानी, मित्रों यहां तक कि अपने विरोधियों के साथ भी मैत्रीपूर्ण थे। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के एक साथी का कहना है कि जब कभी इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम दैनिक कार्यों से छुटटी पाते तो अपने परिवाजनो तथा निकटवर्तियों के प्रति प्रेम एवं स्नेह व्यक्त करते थे। वे जब भी खाना खाने बैठते तो छोटे-बड़ें सबको यहां तक कि नौकरों को भी खाने पर निमंत्रित करते। ऐसे काल में कि जब दासों और नौकरों का किसी भी प्रकार का कोई अधिकार नहीं हुआ करता था, इमाम रज़ा उनके साथ प्रेम और सदभावना के साथ व्यवहार किया करते थे। यह लोग इमाम रज़ा के घर में सम्मान पाते थे और उनसे शिष्टाचार तथा मानवता का पाठ सीखते थे। इमाम इन वंचित लोगों के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार के साथ ही कहा करते थे कि यदि किसी व्यक्ति के साथ इसके अतिरिक्त व्यवहार किया जाए तो इसाक अर्थ यह है कि उसपर अत्याचार किया गया है।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के साथियों में से एक का कहना है कि मैं ख़ुरासान की यात्रा में इमाम रज़ा की सेवा में उपस्थित हुआ। एक दिन उन्होंने खाना मंगवाया। उन्होंने अपने सभी सेवकों को, जिनमें काले वर्ष वाले भी सम्मिलित थे, खाने के लिए निमंत्रित किया। मैंने उनसे कहा, मैं आप पर न्योछावर हो जाऊं, उचित यह होगा कि सेवक अन्य स्थान पर खाना खाएं। इसके उत्तर में उन्होंने कहा कि शांत रहो। सबका ईश्वर एक है। हम सबकी मां हव्वा और पिता आदम हैं। कल अर्थात प्रलय के दिन का पुरुस्कार और दण्ड, लोगों के कर्मों पर निर्भर है।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के शिष्टाचार और उनकी शालीनता के संबन्ध में इब्राहीम इब्ने अब्बास कहते हैं कि ऐसा कभी नहीं हुआ कि उन्होंने वार्ता में किसी पर अत्याचार किया हो। जो भी उनसे वार्ता करता वे उनकी बात को नहीं काटते और इसका पूरा अवसर देते कि वह अपनी बात पूरी करे। वे शिष्टाचारिक गुणों से इतने सुसज्जित थे कि मैंने कभी नहीं देखा कि किसी अन्य की उपस्थिति में वे पैर फैलाकर या टेक लगाकर बैठे हों। मैंने कभी नहीं देखा कि उन्होंने अपने किसी भी सेवक के साथ कड़ाई का व्यवहार किया हो। उन्हें मैंने ऊंची आवाज़ में हंसते हुए नहीं देखा। वे सामान्यतः मुस्कुराते रहते थे।

आज विश्व के कोने-कोने से लोग बड़ी उत्सुक्ता के साथ ऐसे इमाम के दर्शन के लिए जा रहे हैं जिसके जीवन काल में, यदि कोई भी उनसे कोई चीज़ मांगता था तो उनके भीतर उस व्यक्ति के चेहरे की पीड़ाभाव को सहन करने की शक्ति नहीं होती थी। एक इतिहासकार कहते हैं कि एक बार मैं इमाम रज़ा की सेवा में था। लोग उनसे विभिन्न विषयों पर प्रश्न कर रहे थे। सहसा एक ख़ुरासान वासी वहां पर आया। उसने सलाम किया और कहा कि हज की यात्रा से वापसी पर मेरा पैसा और मेरी वस्तुएं समाप्त हो गईं। इमाम ने कहा, बैठ जाओ। धीरे-धीरे सब लोग चले गए। मैं तथा कुछ अन्य लोग ही बाक़ी बचे। इमाम ने कहा कि ख़ुरासानी व्यक्ति कहा है? वह व्यक्ति उठा और कहने लगा कि मैं यहां पर हूं। इमाम ने उसकी ओर देखे बिना ही उसे २०० दीनार दे दिये। किसी ने कहा कि यद्यपि सहायता की राशि बहुत थी किंतु आपने अपना मुख उसकी ओर क्यों नही किया? इमाम ने उत्तर दिया कि मैं उसके मुख पर दुख के लक्षण नहीं देखना चाहता था। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शिष्टाचारिक विशेषताओं में इस प्रकार की बहुत सी घटनाएं देखने को मिलती हैं। निःसन्देह, प्रशिक्षण के इस सूक्ष्म बिंदु की पहचान उन नैतिक समस्याओं से बचने के लिए उचित मार्ग हो सकती है जिनमें हम वर्तमान समय में बुरी तरह से घिरे हुए हैं।

शियों के बीच इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की आध्यात्मिक भूमिका की ओर संकेत करते हुए अमरीका के वर्जीनिया विश्वविद्यालय में धार्मिक अध्धयन के विशेषज्ञ प्रोफेसर अब्दुल अज़ीज़ साशादीना कहते हैं कि समस्त विश्व के शिया अपने आठवें इमाम को सुरक्षा सुनिश्चित करने वाला इमाम मानते हैं अर्थात ऐसा इमाम जो भय और समस्याओं के समय आवश्यक सुरक्षा सुनिश्चित करता है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम आज भी अपने अनुयाइयों के दुख और सुख में सहभागी हैं। लोग उनको इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की भांति ऐसे मार्गदर्शक के रूप में याद करते हैं जो लोगों का मार्गदर्शन मोक्ष के तट तक करती है। दूसरे शब्दों में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम उन लोगों के लिए शांति एव आत्मविश्वास का स्रोत हैं जो ईश्वरीय मार्गदर्शन के इच्छुक हैं।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के ज्ञान एवं उनकी आध्यात्मिक महानता ने अपने समय में इस्लामी जगत को प्रभावित किया था। यह प्रभाव इतना अधिक था कि उनके विरोधी भी उनकी प्रशंसा किया करते थे। एक इतिहासकार मसऊदी लिखते हैं कि वर्ष २०० हिजरी क़मरी में मामून ने अपने समस्त निकटवर्तियों को मर्व में एकत्रित किया और उनसे कहा कि मैंने मुसलमानों के वरिष्ठ लोगों के बीच बहुत खोजबीन की किंतु ख़िलाफ़त अर्थात मुस्लिम समाज के नेतृत्व के लिए मुझे अली इब्ने मुसर्रेज़ा से शालीन, योग्य और सच्चा कोई अन्य दिखाई नहीं दिया।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का ज्ञान निर्मल जल के सोते की भांति था और विद्धान तथा वास्तविक्ता के खोजी लोग उससे लाभान्वित होते थे। अपने अथाह ज्ञान के बावजूद इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम, विभिन्न विचारधाराओं के प्रतिनिधियों और विभिन्न प्रकार के विचार रखने वालों के साथ ज्ञान संबधी शास्त्रार्थ में बड़ी ही शालीनता और सम्मान के साथ व्यवहार करते थे। वे उनके प्रत्येक प्रश्न का उत्तर देते और उनकी शंकाओं का समाधान करते थे। वे कभी भी ज्ञान-विज्ञान संबन्धी शास्त्रार्थ से पीछे नहीं हटते थे। वे शक्तिशाली तर्कों से अन्य लोगों को वास्तविक्ता की मिठास प्रदान करते और एकेश्वरवाद की विचारधारा की सफलता का प्रदर्शन करते थे। इन्ही शास्त्रार्थों के दौरान वास्तविक्ता प्रकट हुआ करती थी तथा इमाम रज़ा के तर्कों के सम्मुख ज्ञान के खोजी नतमस्तक हो जाया करते थे।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के जीवनकाल की विशेषताओं में से एक विशेषता, अत्याचार तथा अन्याय के मुख्य स्रोत के साथ संघर्ष है। वे विभिन्न शैलियों के माध्यम से अब्बासी शासक की अत्याचारपूर्ण तथा धोखा देने वाली नीतियों का विरोध किया करते थे। इस्लामी जगत की जनता के बीच इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के अभूतपूर्व प्रभाव के दृष्टिगत तत्कालीन अब्बासी शासक मामून बहुत ही भयभीत और चिन्तित रहा करता था। इसी कारण उसने इमाम रज़ा से अपने सत्ता केन्द्र मर्व नगर आने का अनुरोध किया। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने अनिच्छा से यह निमंत्रण स्वीकार किया। मामून, जनता के बीच इमाम रज़ा के वैचारिक तथा सांस्कृति प्रभाव को कम करने तथा इमाम और जनता के बीच दूरी उत्पन्न करने के प्रयास में था। इसीलिए उसने अपने उत्तराधिकार का प्रस्ताव इमाम को दिया। वह अपने प्रस्ताव पर लगातार बल देता रहता था। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने कुछ विशेष शर्तों के साथ उत्तराधिकार के विषय को स्वीकार किया। इमाम की शर्तों में से एक शर्त यह थी कि वे किसी भी स्थिति में सरकारी मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। इमाम की इस शर्त के कारण मामून अपना राजनैतिक उद्देश्य प्राप्त करने में विफल रहा।

एक पश्चिमी लेखक कहते हैं कि दूसरे धर्मों को सहन करने के बारे में इस्लाम का इतिहास उदाहरणीय है। इस्लाम का उद्देश्य यह है कि वह मानव जाति की प्रत्येक पीढ़ी को सौभाग्य के नियम से अवगत करवाए। इस्लाम इस बात के प्रयास में है कि अपने मार्गदर्शकों की शिक्षाओं के परिप्रेक्ष्य में एक ऐसे मानव समाज का गठन करे जिसमें धार्मिक एवं नैतिक नियमों के मापदण्डों के पालन में सब एकसमान हों। वर्तमान समय में न्यायप्रिय और बुद्धिमान लोग विश्व को इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम जैसे मार्गदर्शकों का ऋणी मानते हैं जिन्होंने उच्च नैतिक विशेषताओं तथा आध्यात्मिक गुणों से मानवता को सौभाग्य व कल्याण का मार्ग दिखाया।

 

 

आज एक मूल्यवान हस्ती का जन्मदिवस है। आज के दिन पूर्वोत्तरी ईरान में स्थित प्रकाशमयी रौज़े की ओर मन लगे हुए हैं और पवित्र नगर मश्हद में सदाचारियों के वंश से एक आध्यात्मिक हस्ती के दरबार में अतिथि हैं। यह वह स्थान है जहां पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र हज़रत अली इब्ने मूसा रज़ा अलैहिस्सलाम का रौज़ा है। हज़ार वर्ष से अधिक समय से यह पवित्र स्थल उन भटके हुए लोगों के लिए शांति का स्थान है जो आत्मा की शुद्धता व मन की शांति की खोज में हैं और वे इस महान हस्ती के रौज़े में ईश्वर से लोक परलोक की भलाई की प्रार्थना करते हैं। हम भी इन श्रद्धालुओं की भीड़ में शामिल होकर पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों पर सलाम व दुरूद भेजते हैं और ईश्वर से सत्य के मार्ग पर क़दम के जमे रहने की प्रार्थना करते हैं।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम 148 हिजरी क़मरी में मदीना नगर में पैदा हुए और अपने पिता इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की शहादत के पश्चात 35 वर्ष की आयु में उन्होंने मुसलमानों के मार्गदर्शन अर्थात इमामत का ईश्वरीय दायित्व संभाला और बीस वर्षों तक इस दायित्व को निभाते रहे किन्तु भाग्य ने कुछ इस प्रकार करवट ली कि उन्हें तत्कालीन अब्बासी शासक मामून के दबाव में पवित्र नगर मदीना से मर्व नगर जाना पड़ा जहां उन्होंने अपनी आयु के अंतिम तीन वर्ष गुज़ारे और इसी भूभाग में शहीद हुए। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने चाहे मदीना हो या मर्व में कुछ वर्षों के आवास का समय हो, लोगों के बीच धार्मिक पहचान व चेतना के स्तंभों को सुदृढ़ किया और समाज की आवश्यकता व क्षमता के अनुसार पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की शिक्षाओं व ईश्वरीय संदेश वहि की सही व्याख्या प्रचलित की। यद्यपि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की मदीना से मर्व यात्रा अब्बासी शासकों के उनके विरुद्ध षड्यंत्र व द्वेष का परिणाम थी किन्तु इस यात्रा की, लोगों के बीच पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों की स्थिति सुदृढ़ होने के अतिरिक्त और भी विभूतियां थीं क्योंकि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम जिस स्थान पर पहुंचते वहां कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती थी।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने इस विभूति भरी यात्रा के दौरान पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की महान स्थिति से संबंधित पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के विख्यात कथन को लोगों के सामने बयान किया। यह मूल्यवान कथन इस वास्तविकता का वर्णन करता है कि पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों पर एकेश्वरवाद सहित अन्य आस्था संबंधि विचारों को सुदृढ़ करने और इसी प्रकार मुसलमानों के राजनैतिक व सामाजिक मामलों में दृष्टिकोण अपनाने का महत्वपूर्ण दायित्व है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने अपनी पवित्र आयु के दौरान धार्मिक शिक्षाओं के विस्तार का बहुत प्रयास किया। विशेष कर इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के काल में धर्मों व विभिन्न मतों के बीच शास्त्रार्थ का काफ़ी चलन था और उन्होंने इन्हीं शास्त्रार्थों के माध्यम से सही धार्मिक शिक्षाओं को लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ईश्वरीय संदेश वहि के प्रतीक, क़ुरआन को धर्म की पहचान के मूल स्रोत के रूप में पेश करते थे। इमाम रज़ा अलैहिस्साम ने विभिन्न शैलियों द्वारा मुसलमानों को पवित्र क़ुरआन के उच्च स्थान को पहचनवाया है। पवित्र क़ुरआन के महत्व का उल्लेख करने के लिए इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की एक शैली यह थी कि आप बहुत से अवसरों पर चाहे वह शास्त्रार्थ हो या दूसरी बहसें हों, पवित्र क़ुरआन की आयतों को तर्क के रूप में पेश करते थे। इसी प्रकार इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम पवित्र क़ुरआन पढ़ने और उसकी आयतों में चिंतन मनन पर बहुत बल देते थे। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने क़ुरआन के महत्व के संबंध में कहा है कि क़ुरआन, ईश्वर का कथन है, उससे आगे न बढ़ो और उसके निर्देशों का उल्लंघन न करो और क़ुरआन को छोड़ कहीं और से मार्गदर्शन मत ढूंढो अन्यथा पथभ्रष्ट हो जाओगे।
प्रश्न, ज्ञान की उच्च चोटियों तक पहुंचने व प्रगति की सीढ़ी का पहला पाएदान है। पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजन चिंतन मनन व धार्मिक प्रश्नों को बहुत महत्व देते और अज्ञानता की कड़े शब्दों में निंदा करते थे। इस संदर्भ में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम, पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के एक कथन को उद्धरित करते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम फ़रमाते हैः ज्ञान, एक ख़ज़ाना है जिसकी कुंजी प्रश्न करना है अतः पूछो! कि प्रश्न पूछने वाले और उत्तर देने वाले को आध्यात्मिक पारितोषिक मिलता है।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम भी प्रश्न करने वालों का बड़े खुले मन से स्वागत करते और शास्त्रार्थ के निमंत्रण को स्वीकार करते थे। इस्लाम की जीवनदायी संस्कृति के विस्तार में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के शास्त्रार्थों का बहुत बड़ा योगदान है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के शास्त्रार्थों की एक विशेषता यह भी थी कि शास्त्रार्थों में आपका मुख्य उद्देश्य दूसरों का मार्गदर्शन होता न कि सामने वाले पर अपनी वरीयता सिद्ध करता। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं यदि लोगों को हमारी बातों का सौंदर्य बोध हो जाए तो निःसंदेह वे हमारा अनुसरण करेंगे।
कितनी बार ऐसा होता था कि वैज्ञानिक व आत्मबोध से भरी इन वार्ताओं के कारण बहुत सी शत्रुताएं, मित्रता में बदल जाया करती थीं। शास्त्रार्थों में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का एक उद्देश्य विभिन्न मतों के शास्त्रार्थियों के संदेहों को दूर करना भी था। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम उस समय के सांस्कृतिक स्तर व संबोधक के वैचारिक स्तर के अनुसार बात करते थे। कभी ऐसा भी होता था कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम विभिन्न धर्मों के विचारकों के साथ शास्त्रार्थों में संयुक्त बिन्दुओं का उल्लेख करते या फिर उन्हें उनकी पसंद के अनुसार तर्कपूर्ण बातों से समझाते थे। जैसे जब इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ईसाइयों से शास्त्रार्थ करते थे तो बाइबल से या जब यहूदियों से बहस करते तो तौरैत की आयतों को उद्धरित करते थे।

नीशापूर के फ़ज़्ल इब्ने शाज़ान, इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का एक कथन प्रस्तुत करते हैं कि यदि यह पूछा जाए कि धर्म का सबसे पहला आदेश क्या है? तो इसके उत्तर में कहा जाएगा कि पहला अनिवार्य काम ईश्वर, उसके पैग़म्बरों व पैग़म्बरे इस्लाम के वंश से बारह इमामों पर आस्था है। यदि यह प्रश्न किया जाए कि ईश्वर ने इसे क्यों अनिवार्य किया है तो इसका उत्तर यह है कि ईश्वर और उसके पैग़म्बरों पर ईमान की आवश्यकता के कई तर्क हैं जिनमें से एक यह है कि यदि लोग ईश्वर के अस्तित्व पर ईमान नहीं लाएंगे और उसके अस्तित्व को नहीं मानेंगे तो वे अत्याचार, अपराध व दूसरे बुरे कर्मों से दूर नहीं होंगे। जो चीज़ पसंद आएगी उसकी ओर, किसी को अपने ऊपर निरीक्षक समझे बिना बढ़ेंगे। यदि लोगों की यही सोच हो जाए तो मानव समाज का सर्वनाश हो जाएगा और हर व्यक्ति एक दूसरे पर अत्याचार द्वारा वर्चस्व जमाने का प्रयास करेगा।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम मन की बुराइयों को रोकने में ईश्वर पर आस्था की भूमिका को इन शब्दों में व्यक्त करते हैं कि व्यक्ति एकांत में कभी पाप करता है। इस स्थिति में कोई भी मानव क़ानून उसे ऐसा करने से नहीं रोक सकता, केवल ईश्वर पर आस्था ही व्यक्ति व समाज को एकांत में व खुल्लम खुल्ला ऐसा करने से रोक सकती है। यदि ईश्वर पर ईमान और उसका भय न होगा तो कोई भी व्यक्ति एकांत में पाप करने से नहीं चूकेगा।

जनसेवा, ईश्वर पर दृढ़ आस्था रखने वालों व परिपूर्ण व्यक्तियों की सबसे महत्वपूर्ण निशानियों में से है। पवित्र क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के परिजनों के आचरण व कथनों में, सहायता, ईश्वर के मार्ग में ख़र्च करने, वंचितों व अत्याचारियों के समर्थन तथा निर्धनों की आवश्यकतओं की पूर्ति जैसे शब्दों में इसका स्पष्ट उदाहरण मिलता है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की दृष्टि में वंचितों व निर्धनों की सेवा के बहुत मूल्यवान लाभ हैं। आप फ़रमाते हैं कि धरती पर ईश्वर के कुछ ऐसे बंदे हैं जो वंचितों की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं और जनसेवा में किसी भी प्रयास से पीछे नहीं हटते। ये लोग प्रलय के दिन के कष्ट से सुरक्षित रहेंगे। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम आगे फ़रमाते हैं कि जो भी किसी मोमिन को प्रसन्न करेगा तो ईश्वर प्रलय के दिन उसके मन को प्रसन्न करेगा। इतिहास साक्षी है कि सभी ईश्वरीय पैग़म्बर, लोगों से प्रेम व जनसेवा करते थे। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम केवल ईमान वालों की सेवा व उनके साथ भलाई की अनुशंसा नहीं करते बल्कि पवित्र क़ुरआन के अनुसार इस बिन्दु पर बल देते थे सेवा द्वारा शत्रु को मित्र में बदलो। उन्होंने लोगों को इस्लाम की ओर आकर्षित करने की पैग़म्बरे इस्लाम इस शैली को अपनाया था।

पैग़म्बरे इस्लाम व उनके पवित्र परिजनों के आचरण पर थोड़ा सा ध्यान देने से समाज में उनकी लोकप्रियता व सफलता के रहस्य को समझा जा सकता है। वे पवित्र क़ुरआन के सूरए फ़ुस्सेलत की इन आयतों का व्यवहारिक उदाहरण थे जिनमें ईश्वर कहता है कि भलाई व बुराई कदापि बराबर नहीं हो सकते, दुर्व्यवहार को भलाई से दूर करो इस स्थिति में तुम उसे सबसे अच्छा मित्र पाओगे जो तुम्हारा शत्रु है।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के वैचारिक व सांस्कृतिक प्रयासों में यह भी था कि आप इस्लामी जगत में धार्मिक नेतृत्व व शासन के विषय की व्याख्या करते थे। नेतृत्व ऐसा विषय है जिसका महत्व केवल इस्लामी समाज में हीं नहीं बल्कि सभी समाजों में विशेष महत्व है और इसे एक सामाजिक आवश्यकता समझा जाता है। इस संबंध में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं कि नेतृत्व समाज की स्थिरता का आधार है। इस नेतृत्व की छत्रछाया में जनसंपत्ति का सही उपयोग किया जा सकता है, शत्रु से लड़ा जा सकता है, पीड़ितों के सिर से अत्याचारियों के अत्याचार को दूर किया जा सकता है।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम इस्लामी समाज के नेता की विशेषताओं का इन शब्दों में उल्लेख करते हैं। उसे ईमानदार व आध्यात्मिक व धार्मिक मूल्यों का संरक्षक तथा भरोसे योग्य अभिभावक होना चाहिए। क्योंकि यदि इस्लामी जगत के शासक में ये गुण नहीं होंगे तो धर्म बाक़ी नहीं बचेगा। धार्मिक व ईश्वरीय आदेश व परंपरा बदल जाएगी। धर्म में बाहर की बातें अधिक शामिल हो जाएंगी और ऐसी स्थिति में अधर्मी टूट पड़ेंगे और मुसलमानों के सामने धर्म की बातें अस्पष्ट हो जाएंगी।

 

 

हालिया वर्षों में अमरीका में ऐसे क्रोधित लोगों की एक बड़ी संख्या को देखा जा सकता है, जो प्रवासियों पर अपना ग़ुस्सा उतारते हैं और अपनी हिफ़ाज़त के लिए हथियार लेकर चलते हैं।

यह लोग अपना काफ़ी वक़्त विदेशी और घरेलू ख़तरों के भय में गुज़ारते हैं। लोग वीकेंड में फ़ायरिंग की प्रैक्टिस करते हैं और अपने चेहरों को मास्क से छिपाते हैं।

यह लोग इन कामों को सिर्फ़ मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि प्रवासियों की संभावित ख़तरों से निपटने के लिए करते हैं। अकसर उनके पास हथियार होते हैं और वे निजी मुलाक़ातों और डेली वॉकिंग के वक़्त भी अपने पास हथियार रखते हैं।

यह लोग तनहाई का एहसास करते हैं, जिसके नतीजे में वह ख़ुद को निचले दर्जे का अमरीकी समझने लगे हैं और असुरक्षा की भावना में उनमें दिन ब दिन मज़बूत होती जा रही है।

2019 में कोविड-19 से पहले, सामाजिक कार्यकर्ताओं और अधिकारियों का ध्यान इस बात की तरफ़ गया कि अकसर अमरीकी ख़ुद को तनहा समझते हैं। ख़ास तौर पर ग्रामीण इलाक़ो में हर पांच में से तीन लोग ख़ुद को अकेला समझते हैं।

इस तरह की भावनाओं का न सिर्फ़ सेहत पर बुरा असर पड़ता है, बल्कि दिल की बीमारियों, नशा, निराशा और ख़ुदकुशी के रुझान में इज़ाफ़ा होता है। दूसरे शब्दों में, कमज़ोर सामाजिक रिश्ते उन्हें विनाश की ओर ले जाते हैं।

हालिया वर्षों में आपने देखा होगा कि अमरीका में प्रवासियों के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा बढ़ रहा है और अमरीकी लोग ख़ुद को अलग-थलग समझने लगे हैं। ट्रम्प और उनके समर्थकों का शुमार इन्हीं लोगों में होता है, जो ख़ुद को अलग-थलग समझते हैं और अकेलेपन की वजह से हर वक़्त ग़ुस्से में रहते हैं।

ट्रम्प के अकसर समर्थक गोरे और ज़्यादा उम्र के लोग हैं। वे सामूहिक बैठकों में पहचान से संबंधित नारे लगाते हैं और यह एहसास दिलाने का प्रयास करते हैं कि वह एक नए समाज का गठन कर रहे हैं।

मशहूर दार्शनिक हना आर्नेट ने इस संदर्भ में कहा थाः जिन लोगों में हीन भावना और तनहाई का एहसास होता है, वे इस तरह के आंदोलनों से जुड़ जाते हैं। दर असल, ट्रम्प और उनके साथियों ने लोगों के इस एहसास से फ़ायदा उठाया और उसे एक सामाजिक आंदोलन में बदल दिया।

यहां यह जानना ज़रूरी है कि अमरीका युद्धों और सैन्य मामलों पर भारी बजट ख़र्च करता है, जिसकी वजह से सामाजिक ज़रूरतों पर कम ख़र्च किया जा रहा है, जिससे लोगों में अकेलनेपन का एहसास बढ़ रहा है। ब्राउन यूनिवर्सिटी ने युद्धों पर ख़र्च होने वाले बजट को 8 ट्रिलियन डॉलर से ज़्यादा बताया है। अगर यही बजट लोगों के जीवन स्तर में सुधार के लिए ख़र्च किया जाता, तो समाज में कई तरह की बुराईयों से छुटकारा पाया जा सकता था।

आख़िर में कहा जा सकता है कि अगर सामाजिक प्राथमिकताओं और बजट में कोई बदलाव नहीं आएगा और युद्धों के बजाए अलग-थलग पड़ते जा रहे नागरिकों की सामाजिक ज़रूरतों पर ध्यान नहीं दिया जाएगा, तो अमरीकी समाज में ग़ुस्सा लावा बनकर फूट सकता है।

ईरान के सुन्नी समुदाय के शिक्षकों और बुद्धिजीवियों का सम्मान कार्यक्रम, सुन्नी मुसलमानों के धार्मिक ज्ञान की योजना परिषद द्वारा आयोजित किया गया था।

शुरुआत में ईरान के पश्चिमी भाग के आदर्श शिक्षक मौलवी महमूद मुदर्रिस ने भाषण दिया और कहा:

हम एक ऐसे दशक में हैं जो शुभ अवसरों और स्मरणोत्सवों से सजा हुआ है और इस ज़मीन के लोग इन दिनों को नहीं भूले हैं जिनमें हज़रत फ़ातेमा मासूमा और हज़रत इमाम अली रज़ा का जन्म दिन है और दोनों बड़ी हस्तियों के जन्म दिन के अवसर पर पूरे ईरान में करामत दशक मनाया जाता है।

उन्होंने कहा:

हमें खुशी है कि इन गौरवपूर्ण अवसरों पर ईरान के सुन्नी मुसलमानों की इस्लामिक साइंसेज प्लानिंग काउंसिल और अन्य समूहों के स्कूलों के प्रयासों से ये प्रेमपूर्ण समारोह आयोजित किए जाते हैं।

सुन्नी मुसलमानों के इस विद्वान और प्रोफ़ेसर कहते हैं:

जब तक हम शिक्षा और प्रशिक्षण के मार्ग में प्रयास करते हैं और अपने पूर्वजों के अवशेषों को संरक्षित करने का प्रयास करेंगे, तब तक शत्रुओं को निश्चित रूप से अपनी साज़िशों और षडयंत्रों पर पछतावा होगा और उन्हें निराशा होगी।

ईरान के विश्वविद्यालयों में सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि निकाय के प्रमुख मुस्तफ़ा रुस्तमी ने भाषण देते हुए कहा:

सृष्टि से संबंधित आयतों में जिसमें बताया गया है कि ईश्वर ने सृष्टि के बाद हज़रत आदम को जो पहली चीज़ प्रदान की, वह ज्ञान है।

ज्ञान और उपासना में, पैग़म्बरे इस्लाम ज्ञान का चयन करते हैं और कुछ रिवायतों में यह उल्लेख किया गया है कि विद्वान, भक्त और उपासक से श्रेष्ठ है क्योंकि उपासक ख़ुद को बचाना चाहता है और विद्वान और आलिम ईश्वरी बंदों को बचाना चाहता है, अलबत्ता इस इल्म की भी ज़िम्मेदारी है और उसे जुल्म के सामने चुप नहीं रहना चाहिए।

मौलाना रुस्तमी ने कहा: ओलमा, पैग़म्बरों के उत्तराधिकारी हैं और यह आलिमों की महान प्रतिबद्धता और कर्तव्य को दर्शाता है। इस्लामी क्रांति व्यवस्था के गौरवपूर्ण कार्यों में एक वैज्ञानिक विकास और परिवर्तन है। हमको यह नहीं भूलना चाहिए कि इस्लामी क्रांति की सफलता से पहले देश की वैज्ञानिक स्थिति कैसी थी, इस हद तक कि देश का केंद्रीय इलाक़े को समाज की सामान्य और बुनियादी जरूरतों की को पूरा करने के लिए विदेशी प्रोफेसरों की सेवाएं लेनी पड़ती थीं।

सीस्तान और बलूचिस्तान प्रांत में खातमुल-अंबिया स्पेशलाइज्ड सेंटर के प्रमुख मौलवी नरोई ने भाषण देते हुए कहा:

शोधकर्ताओं और छात्रों को प्रोत्साहित करने के लिए अनुसंधान कार्यक्रमों को मज़बूत करने पर विचार किया जाना चाहिए, विशेष क्षेत्रों और विभागों में नज़रियतं और सूचनाओं के आदान-प्रदान के अवसर पैदा करने के लिए सेमिनार और अनुसंधान सम्मेलन आयोजित करने और शिक्षा के क्षेत्र में प्रशिक्षण पर विशेष रूप से ध्यान देने पर विचार किया जाना चाहिए।

ईरान के संस्कृति और इस्लामी मार्गदर्शन मंत्रालय में सुन्नी समुदाय के सलाहकार, मामुस्ता अब्दुस्सलाम इमामी ने इस अवसर पर भाषण देते हुए कहा:

इन चार दशकों में सुन्नी और शिया ओलमा, हमेशा एकता और एकजुटता के अग्रदूत रहे हैं।

नसरोई कहते हैं:

ईरान के सुन्नी मौलवियों ने स्पष्टीकरण और बयान के मैदान में तथा फ़िलिस्तीन की मज़लूम जनता के प्रतिरोध और प्रतिरोध की रक्षा के क्षेत्र में हमेशा अच्छी भूमिका अदा की है। आज इस्लामी जगत और फिलिस्तीन के शक्तिशाली लोगों के ख़िलाफ़ एक असंतुलित और असमान युद्ध छेड़ रखा है और सबसे महत्वपूर्ण बात जो बुजुर्गों ने कही वह यह है कि फ़िलिस्तीन, मानव अधिकारों के झूठे दावेदारों की पोल खोलने का मंच है।

ईरान के सुन्नी ओलमा और विद्वानों के सम्मान समारोह में सुन्नी और शिया विद्वानों और बुद्धिजीवियों की उपस्थिति

मामुस्ता इमामी ने कहा:

35 हजार मज़लूमों को पूरी दुनिया की नज़रों के सामने शहीद कर दिया गया जिनमें आधी निर्दोष महिलाएं और बच्चे हैं,और पूरी दुनिया इस पर चुप है। फ़िलहाल फ़िलिस्तीन इस्लामी जगत की व्यावहारिक कार्रवाई की प्रतीक्षा कर रहा है और सुन्नी मौलवियों ने कई बार इस महत्व को ज़ाहिर भी किया है और इस अहम मुद्दे पर बल भी दिया है।

ईरान के संस्कृति और इस्लामी मार्गदर्शन मंत्रालय में सुन्नी समुदाय के सलाहकार कहते हैं:

आज दुनिया यूक्रेन और ग़ज़ा के दो बड़े परीक्षणों का सामना कर रही है। पश्चिम ने यूक्रेन के लिए क्या किया, लेकिन ग़ज़ा की रक्षा के लिए कोई व्यावहारिक कार्रवाई नहीं की गई। इस्लामी जगत का जागना ज़रूरी है और अफसोस की बात यह है कि अमेरिकी और यूरोपीय छात्र तो जाग गए और घटनास्थल पर आ भी गए लेकिन वे ग़ज़ा के पड़ोसी देशों से व्यावहारिक कार्रवाई करने में नाकामी पर अफ़सोस के अलावा कुछ भी नहीं कर सके जिन्होंने कफन भेजने के अलावा कुछ नहीं किया। कई लोगों को इस बात पर गर्व था कि उन्होंने ग़ज़ा के लोगों के लिए आसमान से खाना गिराने के लिए हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल किया जो इस्लामी उम्मा की शान में नहीं है।

ईरान की नेश्नल ताइक्वांडो टीम ने पांचवीं बार एशियाई ताइक्वांडो चैम्पियनशिप जीत ली।

वियतनाम की मेजबानी में 33 देशों के 244 ताइक्वांडो खिलाड़ियों की भागीदारी से 16 मई से वियतनाम के दनांग शहर के टीएन सोन हॉल में आयोजित 26वीं एशियाई ताइक्वांडो चैंपियनशिप 18 मई को समाप्त हुई जिसमें ईरान की पुरुष टीम ने चैंपियनशिप का ख़िताब जीत लिया।

इस टूर्नामेंट के आख़िर में, ईरान की नेश्नल मेन्स ताइक्वांडो टीम ने 3 स्वर्ण पदक, एक रजत और एक कांस्य मैडल जीता और इस तरह से एशिया में अपनी पांचवीं चैंपियनशिप का ख़िताब जीत लिया।

ईरान की तरफ़ से मेहदी हाजी मूसाई, मुहम्मद हुसैन यज़दानी और आरियन सलीमी ने गोल्ड मैडल जीते जबकि अली ख़ुशरू रजत पदक हासिल किया और मतीन रेज़ाई ने ब्रान्ज़ मैडल जीता।

दक्षिण कोरिया भी तीन स्वर्ण, एक रजत और एक कांस्य के साथ दूसरे स्थान पर रहा जबकि उज़्बेकिस्तान और सऊदी अरब तीसरे और चौथे स्थान पर रहे।

ईरान की राष्ट्रीय ताइक्वांडो टीम ने इससे पहले 2008, 2010, 2014 और 2016 में चैंपियनशिप जीती थी।

ईरान की महिला खिलाड़ी मेल्का मीरहुसैनी और सईदा नासिरी ने एशियाई ताइक्वांडो चैंपियनशिप के महिला वर्ग में क्रमशः रजत और कांस्य पदक जीते।

 

फ़िलिस्तीनियों के समर्थन में यमनियों का मिलियन मार्च, आतकंवादियों के पासपोर्ट कैंसल करने का इराक़ का फ़ैसला और इस्राईली सरकार में मतभेदों का गहराना मध्यपूर्व में पिछले 24 घंटों में घटने वाली कुछ महत्वपूर्ण घटनाए हैं।

आतकंवादियों के पासपोर्ट कैंसल करने का इराक़ का फ़ैसला

अल-अरबी अल-जदीद की रिपोर्ट के मुताबिक़, इराक़ी सरकार ने ईरान विरोधी अलगाववादियों और आतकंवादियों के पासपोर्ट कैंसल करने का फ़ैसला लिया है, जिसे इस देश के कुर्दिस्तान इलाक़े ने जारी किया है।

ग़ज़ा में इस्राईल ने अब तक 600 मस्जिदों को ध्वस्त कर दिया है

ग़ज़ा के वक़्फ़ मंत्रालय का कहना है कि ज़ायोनी सेना के हमलों में अब तक 604 मस्जिदें ध्वस्त हो चुकी हैं और 200 से ज़्यादा मस्जिदों को नुक़सान पहुंचा है।

मेरकावा-4 का शिकार

हमास की सैन्य शाख़ा अल-क़स्साम ब्रिगेड के लड़ाकों ने शनिवार को इस्राईल के एक मेरकावा— टैंक का शिकार किया। इस टैंक को रफ़ह में यासीन 105 से निशाना बनाया गया है।

इस्राईल के हमलों में शहीद होने वाले 40 फ़ीसदी फ़िलिस्तीनी सुरक्षित इलाक़ों में शहीद हुए हैं  

ग़ज़ा की रेड क्रीसेंट सोसाइटी की रिपोर्ट के मुताबिक़, इस्राईल के हमलों में शहीद होने वाले 40 फ़िलिस्तीनी उन इलाक़ों में शहीद हुए हैं, जिनके लिए इस्राईल ने दावा किया था कि यह इलाक़े नागरिकों के लिए सुरक्षित हैं। रिपोर्ट के मुताबिक़, इस्राईली सेना ने ग़ज़ा की क्रासिंग्स को बंद कर दिया है, जिसकी वजह से इस युद्ध ग्रस्त इलाक़े में मानवीय संकट और अधिक गहरा गया है।

केलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी में फ़िलिस्तीन समर्थक छात्रों का दमन

ग़ज़ा में इस्राईली नरसंहार का विरोध और पीड़ित फ़िलिस्तीनियों का समर्थन करने वाले केलिफ़ोर्निया में मेडिकल यूनिवर्सिटी के छात्रों के ख़िलाफ़ अमरीकी पुलिस ने हिंसा का इस्तेमाल किया है और उनके साथ मारपीट की है।

कान्स फ़िल्म फ़ेस्टिवल में फ़िलिस्तीनी फ़िल्म निर्माता

फ़िलिस्तीनी फ़िल्म निर्माताओं का एक प्रतिनिधिमंडल, अंतर्राष्ट्रीय समर्थन हासिल करने और फ़िलिस्तीनियों के अधिकारों के बारे में लोगों को जागरुक करने के लिए कान्स फ़िल्म फ़ेस्टिवल में भाग ले रहा है।

हमासः अमरीकी सरकार ग़ज़ा युद्ध को लंबा खींचने के लिए ज़िम्मेदार है

हमास के एक सीनियर नेता सामी अबू ज़ोहरी ने कहा है कि फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ इस्राईल के युद्ध अपराधों में अमरीका भी शरीक है और वह इस्राईल को हथियारों और सैन्य उपकरणों की आपूर्ति करके इस युद्ध को लंबा खींच रहा है। 

अबू-उबैदाः हम लंबे युद्ध के लिए तैयार हैं

अल-क़स्साम ब्रिगेड के प्रवक्ता अबू उबैदा ने बेनज़ीर प्रतिरोध के लिए ग़ज़ा के लोगों की तारीफ़ करते हुए कहा है कि फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध लंबे समय तक चलने वाले युद्ध के लिए तैयार है। अबू उबैदा का कहना था कि रफ़ह, अल-ज़ैतून और जबालिया मैं दाख़िल होकर दुश्मन ने अपने लिए नरक के दरवाज़े खोल दिए हैं।

ग़ज़ा युद्ध में फ़िलिस्तीनियों के समर्थन में यमनी नागरिकों ने मिलियन मार्च किया है

लाखों यमनी नागरिकों ने राजधानी सना के अल-सबईन स्क्वायर और कई अन्य शहरों में लगातार 31वें हफ़्ते, ग़ज़ा युद्ध में फ़िलिस्तीनियों के समर्थन में मार्च निकाला है। प्रदर्शनकारियों ने ग़ज़ा के समर्थन में पवित्र जिहाद और हमारे लिए कोई रेड लाइन नहीं जैसे नारे लगाए।

इस्राईल की वार कैबिनेट में बिखराव

हेब्रू टीवी चैनल कैन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि नेतनयाहू के नेतृत्व वाली वार कैबिनेट में मतभेद इतने गहरा गए हैं कि यह बिखरने की कगार पर है। रिपोर्ट के मुताबिक़, गैंट समेत कई इस्राईली नेताओं ने कैबिनेट से निकलने की धमकी दी है।

फिलिस्तीनी आंदोलन हमास के वरिष्ठ नेता ने कहा है कि ज़ायोनी दुश्मन को हार का सामना करना पड़ा है और वह पीछे हट रहा है और आठ महीने के गाजा युद्ध के बाद उसने अपनी विश्वसनीयता खो दी है।

अल-जज़ीरा टीवी चैनल के अनुसार, हमास आंदोलन के प्रमुख खालिद मेशाल ने शनिवार को तुर्की के इस्तांबुल में तोर्फ अल-अहरार बैठक में अपने संबोधन में इस बात पर जोर दिया कि प्रतिरोध बेहतर स्थिति में है। गाजा और क्षेत्र में, हर जगह प्रतिरोध फिर से उभर आया है और मुस्लिम उम्मा से नरसंहार शासन की आक्रामकता को रोकने के लिए अपना विरोध जारी रखने की अपील कर रहा है।

उन्होंने कहा कि इस समय हमारे पास इजराइल को हराने और ज़ायोनी परियोजना को नष्ट करने का ऐतिहासिक अवसर है। उन्होंने कहा कि इजराइल तूफान की तरह अमेरिका के समर्थन से अपराध कर रहा है.

इस बीच, अल-क़सम ब्रिगेड के प्रवक्ता अबू ओबैदाह ने कहा कि नेतन्याहू कैदियों की अदला-बदली करने के बजाय अपने सैनिकों को कैदियों की तलाश में गाजा की सड़कों पर भेजना पसंद करते हैं, लेकिन उन्हें मार दिया जाता है और ताबूतों में वापस लाया जाता है

हजारों लोगों ने तेल अवीव में प्रधान मंत्री नेतन्याहू और उनके युद्ध मंत्रिमंडल के खिलाफ प्रदर्शन किया और गाजा में युद्धविराम और इजरायली बंधकों को जीवित वापस करने की मांग की।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, तेल अवीव में हुए प्रदर्शन में बड़ी संख्या में महिलाएं भी शामिल हुईं. प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए बलों ने पानी की बौछारें कीं। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि इजरायली पुलिस हिंसा का प्रतीक है और अराजकता फैला रही है.

उधर, गाजा के प्रति अमेरिका और ज़ायोनी सरकार की क्रूर कार्रवाइयों की निंदा करते हुए बड़ी संख्या में फ़िलिस्तीन समर्थकों ने वाशिंगटन और न्यूयॉर्क में विरोध प्रदर्शन किया है। शनिवार शाम को, लगभग 400 प्रदर्शनकारी वाशिंगटन के नेशनल मॉल सार्वजनिक पार्क में एकत्र हुए और गाजा पर इज़राइल के युद्ध को तत्काल समाप्त करने की मांग की। प्रदर्शनकारियों ने "कब्जे वाली भूमि पर कोई शांति नहीं होगी", "नरसंहार बंद करो", "अपराध बंद करो" और "इजरायल को फिलिस्तीन से बाहर निकालो" जैसे नारे लगाए। प्रदर्शनकारियों ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन की भी आलोचना की और उन पर गाजा युद्ध में मानव जीवन के लिए चिंता का दिखावा करने का आरोप लगाया।

दूसरी ओर, ऐसी खबरें हैं कि पुलिस ने न्यूयॉर्क शहर के ब्रुकलिन में फिलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन कर रहे सैकड़ों लोगों पर हमला किया। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक पुलिस ने फिलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन कर रहे दर्जनों लोगों को गिरफ्तार भी किया है. वियना, बर्लिन, पेरिस और जिनेवा समेत कई यूरोपीय शहरों से भी इसी तरह के विरोध प्रदर्शन की खबरें आई हैं।

बता दें कि 7 अक्टूबर से अब तक इजरायली हमलों में शहीद फिलिस्तीनियों की संख्या 35,000 से ज्यादा हो गई है.

हमास की सैन्य शाखा कताएब अलकेसाम ने घोषणा की है कि उन्होंने दक्षिणी गाजा में 15 इज़रायली सैनिकों को मार डाला।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हमास की सैन्य शाखा ने आज सुबह शनिवार को घोषणा की है की इजरायली सैनिकों का एक समूह दक्षिणी गाजा में राफा शहर के पूर्व में अलतंवर नामक पड़ोस में एक घर में छिपा हुआ था, इस दौरान प्रतिरोध बलों ने उन पर हमला किया और उन्हें मार डाला।

अलक़ेसाम ने बताया,कि प्रतिरोध बलों ने घर को राडिया नामक एक कार्मिक विरोधी बम से उड़ा दिया और तुरंत घर में प्रवेश किया और शेष सैनिकों को मार डाला और उन पर मशीन गन और ग्रेनेड से हमला किया।हमास की सैन्य शाखा ने घोषणा की ऑपरेशन में 15 इजरायली सैनिक मारे गए।

यह ऑपरेशन पिछले हफ्ते बुधवार शाम को इजरायली मीडिया की रिपोर्ट के बाद किया गया था कि गाजा के उत्तर में फिलिस्तीनी प्रतिरोध बलों द्वारा किए गए ऑपरेशन में कम से कम 5 इजरायली सैनिक मारे गए थे

इज़रायली सूत्रों ने कहा कि ऑपरेशन में 10 से अधिक इज़रायली सैनिक घायल हो गए उनमें से कुछ की हालत गंभीर हैं इज़रायली मीडिया की रिपोर्ट के बाद यह ऑपरेशन चलाया गया कि हमास की सेनाएं उत्तरी गाजा में फिर से युद्ध के लिए तैयार हो गई हैं।