رضوی
नई पीढ़ी को नए तरबियत की आवश्यकता है
आज हम एक नई पीढ़ी के सामने हैं जो किशोरावस्था में प्रवेश कर चुकी है, और उनकी परवरिश के तरीकों पर ध्यान देना समाज के भविष्य को आकार दे सकता है।
पिछले कुछ वर्षों में बार-बार कहा गया है कि तकनीकी युग के युवाओं और बच्चों के साथ बातचीत के लिए परवरिश के तरीकों में बदलाव जरूरी है। लेकिन आज हम एक और नई पीढ़ी के सामने हैं, जो अब किशोरावस्था में आ चुकी है। उनकी सही परवरिश पर ध्यान देने से भविष्य के समाज की दिशा तय हो सकती है।
यह पीढ़ी तेजी से बदलती तकनीक, इंटरनेट और लगातार बदलाव के दौर में पली-बढ़ी है। सोशल मीडिया और चैटबॉट्स के जरिए ये दुनिया के अलग-अलग मुद्दों से वाकिफ हैं। इसलिए इस पीढ़ी की परवरिश के लिए एक नया, लचीला और रचनात्मक नजरिया जरूरी है।
इसी पृष्ठभूमि में परिवार और संस्कृति के विशेषज्ञों से बातचीत की गई ताकि नई पीढ़ी की परवरिश में आए बदलाव और उनकी विशेषताओं को बेहतर तरीके से समझा जा सके।
माता-पिता को नई कौशल की जरूरत है
ज़ैनब रहीमी तालारपुश्ती ने कहा: नई पीढ़ी के बच्चों के माता-पिता बनने के लिए न केवल एक अलग दृष्टिकोण की जरूरत है, बल्कि नए कौशल, जानकारी और संवाद के तरीके की भी जरूरत है। जो माता-पिता अलग-अलग पीढ़ियों के बच्चों को पालते हैं, वे इस अंतर को अच्छी तरह महसूस करते हैं।
उन्होंने इमाम अली (अ) की नहजुल बलाग़ाह, हिकमत 175 का हवाला देते हुए कहा:
لا تُكرهوا أَولادَكُمْ على آدابِكُمْ فإنَّهُمْ مَخلوقونَ لِزَمانٍ غَيرِ زَمانِكُ ला तकुरेहू औलादकुम अला आदाबेकुम फ़इन्नहुम मख़लूक़ूना लेज़मानिन ग़ैरे ज़मानेका
अपने बच्चों को अपने तरीकों पर मजबूर न करो, क्योंकि वे उस जमाने के लिए बने हैं जो तुम्हारे जमाने से अलग है।
यह उपदेश इस सच्चाई को दर्शाता है कि हर पीढ़ी का समय, माहौल और जरूरतें अलग होती हैं। इसलिए परवरिश का तरीका भी बदलना जरूरी है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि नई पीढ़ी में बुद्धिमत्ता की ऊंचाई, हिम्मत, जानकारी तक व्यापक पहुंच, अपनी राय पर अड़िग रहना, बोर करने वाली चीजों से बचना और औपचारिक परंपराओं से दूरी जैसी विशेषताएं साफ दिखाई देती हैं।
रहीमी के अनुसार, माता-पिता को भी इस पीढ़ी की जरूरतों के अनुसार खुद को बदलना होगा:
- आधुनिक जानकारी से अवगत रहना
- मीडिया साक्षरता (सोशल मीडिया को समझने की क्षमता)
- इस पीढ़ी की भाषा, सोच, रुचियों और मानसिक दुनिया से परिचित होना
- नरमी के साथ प्रभावी संबंध बनाने की क्षमता
- इस्लामी और ईरानी जीवन शैली की रक्षा करना
- सुनने की क्षमता और आलोचनात्मक न होने का रवैया
"चैटबॉट्स" के युग में परवरिश
ज़हरा महरजवाई ने कहा कि हाल की पीढ़ियां पिछली पीढ़ियों से बिल्कुल अलग हैं। सोशल मीडिया के विस्तार और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के क्षेत्र में प्रगति ने जीवन शैली को पूरी तरह बदल दिया है।
उन्होंने कहा: "इस पीढ़ी के साथ प्रभावी संपर्क के लिए जरूरी है कि हम पहले खुद उनकी स्थिति और दुनिया को समझें, उनकी जगह खुद को रखें, और उनके व्यवहार को नष्टकारी न समझें। उनकी बातचीत का तरीका या बाहरी उदासीनता कोई संकट नहीं है, बल्कि उनके जमाने की विशेषता है।"
हुज़ूर व जामिया की एक शिक्षिका ने आगे कहा: "एक अच्छी मां बनने के लिए जरूरी है कि महिला खुद को सुधारे। अगर माता-पिता में धैर्य, क्षमा और सहनशीलता जैसे गुण नहीं हैं, तो वे अपने बच्चों में ये गुण नहीं उत्पन्न कर सकते।"
उन्होंने जोर देकर कहा: "आध्यात्मिक ध्यान और अल्लाह व अहल-ए-बैत (अलैहिमुस्सलाम) से मदद मांगना बेहद जरूरी है, क्योंकि केवल आधुनिक परवरिश के तरीके इंसान को सफल नहीं बना सकते। अल्लाह की मदद के बिना इंसान अकेले सभी पहलुओं को संभाल नहीं सकता।"
नई पीढ़ी में बेटियों की परवरिश
संस्कृति के क्षेत्र में सक्रिय एक महिला ने कहा: बेटियों के साथ लगातार और सार्थक संबंध बनाए रखना, उन्हें आत्मविश्वास, अपने आप पर भरोसा और अपनी पहचान को स्वीकार करने का एहसास दिलाना माता-पिता, खासकर पिता के लिए एक महत्वपूर्ण परवरिशी जरूरत है।
उन्होंने याद दिलाया: "बेटियां धरती पर फरिश्तों की तरह होती हैं, चाहे वे किसी भी दशक या पीढ़ी की हों। उनकी फितरत पाकीजा होती है, इसलिए माता-पिता को इस पाकीजगी को बचाने के लिए एक अच्छा माहौल देना चाहिए। जो बेटी अपनी कद्र जानती है, वह कभी भी खुद को सामान्य या कमजोर नहीं दिखाती। आत्मविश्वासी लड़की अपने गौरव पर समझौता नहीं करती।"
सारांश
आज की पीढ़ी न केवल तकनीक में, बल्कि सोचने और महसूस करने के तरीके में भी अलग है। इसलिए माता-पिता को बीते जमाने की पारंपरिक परवरिश से आगे बढ़कर प्यार, समझ, ज्ञान और आध्यात्मिकता के मिश्रण से काम लेना होगा, ताकि वे नई पीढ़ी को आधुनिक दुनिया में भी ईमान, नैतिकता और गरिमा के साथ बढ़ा सकें।
फिलिस्तीन के लिए आवाज उठाना ईमान की दलील है
अल्लामा सय्यद बाकिर जै़दी ने गाज़ा युद्धविराम समझौते पर चिंता जताते हुए कहा है कि ज़लिम इजराइल वह देश है जिसने दुनिया में सबसे ज्यादा अंतरराष्ट्रीय समझौतों और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का उल्लंघन किया है इसका इतिहास धोखे, छल-कपट और जुल्म से भरा पड़ा है।
अल्लामा सय्यद बाकिर अब्बास जैदी ने इजराइल फिलिस्तीन विवाद पर हाल के युद्धविराम समझौते के संदर्भ में गहरी चिंता जताते हुए कहा है कि इजराइल वह देश है जिसने दुनिया में सबसे ज्यादा अंतरराष्ट्रीय समझौतों और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का उल्लंघन किया है।इसका इतिहास धोखे, छल-कपट और जुल्म से भरा पड़ा है।
इसलिए मौजूदा युद्धविराम समझौता भी इजराइल की एक राजनीतिक चाल और अस्थायी हथकंडा हो सकता है, जिसका मकसद वैश्विक जनमत को गुमराह करना है। इस समझौते में गारंटर के रूप में शामिल देशों की जिम्मेदारी है कि वे इजराइल को समझौते का पालन करने के लिए मजबूर करें और फिलिस्तीनी जनता के बुनियादी मानवीय और राष्ट्रीय अधिकारों के संरक्षण को सुनिश्चित करें।
उन्होंने स्पष्ट किया कि युद्धविराम का कतई यह मतलब नहीं है कि हम फिलिस्तीन के दीर्घकालीन मुद्दे को भूल जाएं या अपने संघर्ष को रोक दें। फिलिस्तीन की आजादी और बैतुल मुक़द्दस का संरक्षण मुस्लिम उम्माह के ईमान, सम्मान और गौरव का मामला है।
उन्होंने आगे कहा कि जब तक फिलिस्तीनी जनता को उनका जायज अधिकार, आत्मनिर्णय और आजाद राष्ट्र नहीं मिल जाता, इस संघर्ष को जारी रखना हर सचेत मुसलमान की जिम्मेदारी है। इजराइल का राज्य जुल्म, नरसंहार और बर्बरता का प्रतीक बन चुका है।
दुनिया के अंतरात्मा को झकझोरने का समय आ गया है। जो ताकतें मानवाधिकारों की पैरोकार बनती हैं, उन्हें गाजा और फिलिस्तीन की मजलूम जनता के जख्मों पर मरहम रखना चाहिए, न कि जालिम को और सुविधाएं देनी चाहिए।
उन्होंने संयुक्त राष्ट्र, इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) और वैश्विक समुदाय से मांग की कि वे फिलिस्तीन के स्थायी और न्यायसंगत समाधान के लिए गंभीर कदम उठाएं।
एम.डब्ल्यू.एम. पाकिस्तान के नेता ने कहा कि फिलिस्तीन के पक्ष में आवाज उठाना केवल एक राजनीतिक कार्य नहीं, बल्कि इबादत और ईमान की मांग है। मुस्लिम उम्माह को चाहिए कि वह एकजुट होकर मजलूमों के समर्थन में अपनी भूमिका निभाए और जालिम ताकतों के खिलाफ शांतिपूर्ण किंतु मजबूत प्रतिरोधी रुख बनाए रखे।
फ़ौजी सलाहियत दुश्मन की धमकी को महत्वहीन बना देती है
कुरआन में अल्लाह ने मुमिनों को हिम्मत और ताकत से लैस होने की सलाह दी है ताकि वे न केवल अपने आप को बल्कि दूसरों को भी सुरक्षित रख सकें।
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने फरमाया,कुरआन में अल्लाह ने मुमिनों को हिम्मत और ताकत से लैस होने की सलाह दी है ताकि वे न केवल अपने आप को बल्कि दूसरों को भी सुरक्षित रख सकें।
दुश्मन जब महसूस करता है कि आप कमज़ोर हैं तो यह एहसास उसे हमले पर उकसाता है और जब वह महसूस करता है कि आप ताक़तवर हैं तो अगर वो हमले का इरादा रखता भी होगा तो दोबारा सोचने पर मजबूर हो जाता है।
इसलिए अल्लाह फ़रमाता हैः “ताकि तुम उस (जंगी तैयारी) से ख़ुदा के दुश्मन और अपने दुश्मन को ख़ौफ़ज़दा कर सको।” (सूरए अन्फ़ाल, आयत-60)
इस तैयारी से जिस पर क़ुरआन मजीद में बल दिया गया है कि जिससे दुश्मन ख़ौफ़ज़दा हो सके, मुल्क में शांति वसुरक्षा क़ायम है। इसीलिए आप देखते हैं कि एक मुद्दत तक(अमरीकी) बार बार कहा करते थे कि फ़ौजी कार्यवाही का आप्शन मेज़ पर है।
अब काफ़ी समय से यह बात दोहराई नहीं जाती। यह बात महत्वहीन हो गयी है, वो जानते हैं कि यह बात निरर्थक हो चुकी है। ये आपकी सलाहियतों की वजह से है।
यमनी कौम अमेरिका और इजरायल के खिलाफ संघर्ष का नेतृत्व कर रहा है
यमन के अंसारुल्लाह आंदोलन के प्रमुख सैय्यद अब्दुल मलिक बदरुद्दीन अल-हौसी ने सेना प्रमुख शहीद मेजर जनरल मोहम्मद अब्दुल करीम अल-गमारी की शहादत के अवसर पर कहा कि यमनी लोगों ने अमेरिका और इजरायल के खिलाफ प्रतिरोध का झंडा बुलंद कर रखा है।
यमन के अंसारुल्लाह आंदोलन के प्रमुख सैय्यद अब्दुल मलिक बदरुद्दीन अल-हौसी ने यमनी सेना के प्रमुख शहीद मेजर जनरल मोहम्मद अब्दुल करीम अल-गमारी की शहादत के अवसर पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा कि यमन के लोग अमेरिका और इजरायल जैसी ताक़तों के मुकाबले में इस्लामी उम्माह के असली ध्वजवाहक हैं।
उन्होंने कहा कि कल यमनी लोगों ने अपने प्यारे सैन्य प्रमुख, शहीद अल-गमारी, के अंतिम संस्कार में बड़ी संख्या में भाग लिया जो उनके दृढ़ संकल्प और स्थिरता का स्पष्ट प्रमाण है। यमनी राष्ट्र अपनी सशस्त्र सेनाओं को अपनी ताकत का प्रतीक मानता है और उनके साथ गहरा रिश्ता रखता है।
सैय्यद अब्दुल मलिक अल-हौसी ने कहा कि शहीद अल-गमारी और अन्य सभी शहीदों ने पवित्र जिहाद के मोर्चों पर सच्चाई, विश्वास और बलिदान की मिसाल कायम की। यमन के लोगों ने हमेशा अपनी आज़ादी और इस्लामी उम्माह के पवित्र स्थानों की रक्षा के लिए बलिदान दिए हैं।
उन्होंने आगे कहा कि यमनी लोगों ने अल्लाह की राह में जिहाद का झंडा बुलंद किया है और वे अमेरिका और इजरायल के खिलाफ और फिलिस्तीन के मजलूम लोगों के समर्थन में डटे हुए हैं। पिछले दो सालों में यमन ने इस मोर्चे पर एक कठिन और ऐतिहासिक मुकाबला किया है।
अंसारुल्लाह के प्रमुख ने कहा कि अमेरिका, इजरायल के सभी अपराधों, साजिशों और योजनाओं में शामिल है। यमनी लोगों ने विश्वास और इंसानी गर्व के साथ अल्लाह के बुलावे का जवाब दिया और फिलिस्तीनी मुजाहिदीन की मदद के लिए हर संभव कोशिश की।
उन्होंने कहा कि यमनी राष्ट्र ने इस दौरान अपने सैनिकों और आम नागरिकों में से असंख्य शहीद पेश किए हैं। यह बलिदान उनकी ईमानदारी, विश्वास और टिकाऊ संकल्प का सबूत हैं। उनका रुख सम्मानजनक, बहादुरी भरा और पवित्र जिम्मेदारी पर आधारित है।
सैय्यद अब्दुल मलिक अल-हौसी ने अरब और इस्लामी देशों की सेनाओं की आलोचना करते हुए कहा कि "आज जब इस्लामी उम्माह के लिए यह सबसे कठिन दौर है, 25 मिलियन से अधिक सैनिक रखने वाली अरब और इस्लामी सेनाएं कहां हैं? उनकी कोई आवाज़, कोई रुख और कोई प्रभाव नजर नहीं आता। सिर्फ ईरान और प्रतिरोध अक्ष की सेनाएं ही इस समय मैदान में मौजूद हैं।
उन्होंने शहीद अल-गमारी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि वह विश्वास, ईमानदारी, पर भरोसे की मूर्ति थे। "वे दुश्मन की ताकत से नहीं डरते थे बल्कि अल्लाह पर पूरा भरोसा रखते थे। उनकी आत्मा जिहाद, धैर्य, ईमानदारी और जिम्मेदारी से भरी हुई थी।
अंसारुल्लाह के प्रमुख ने कहा कि शहीद अल-गुमारी का चरित्र यमनी राष्ट्र के लिए एक चमकदार उदाहरण है।उनकी स्थिरता, धैर्य और बलिदान की भावना हमेशा आने वाली पीढ़ियों के लिए विश्वास, दूरदर्शिता और दृढ़ता की सीख रहेगी।
उन्होंने अंत में कहा कि शहीदों का बलिदार इस्लामी उम्माह के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनके नक्शेकदम पर चलना सम्मान, गरिमा और गौरव का रास्ता है, जबकि दुश्मन के साथ मिलीभगत करने वालों के लिए शर्मिंदगी और बदनामी के अलावा कुछ नहीं है।
विद्यार्थी पढ़ाई की राह में संदेह और भ्रम में क्यों होता है?
कभी कभी तालिबे इल्म पढ़ाई के दौरान उलझन, निरुत्साह और इरादों में कमज़ोरी का सामना करते हैं। यह समस्या हमेशा पाठ्यक्रम की कठिनाइयों या सुविधाओं की कमी का नतीजा नहीं होता, बल्कि अक्सर लक्ष्य की अस्पष्टता और तालिबे-इल्म की पहचान में दुविधा के कारण होती है। यही चीज़ उन्हें रास्ते की निरंतरता या प्राथमिकताओं के निर्धारण में हिचकिचाहट में डाल देती है।
कुछ तालिब ए इल्म की मुख्य मुश्किल उनकी वैज्ञानिक और रूहानी पहचान के चुनाव में दुविधा होती है। इसी सिलसिले में हुज्जतुल इस्लाम हमीद वहीदी ने सहीफा-ए-सज्जादिया की चालीसवीं दुआ की रौशनी में "तूल-ए-अमल" (लंबी-लंबी उम्मीदें) और "पहचान के संकट के आपसी रिश्ते पर बात की है।
उन्होंने कहा, हदीस शरीफ में आया है:
«وَ اکفِنَا طُولَ الْأَمَلِ، وَ قَصِّرْهُ عَنَّا بِصِدْقِ الْعَمَلِ» यानी इमाम (अ.स.) फरमाते हैं कि "ऐ अल्लाह! हमें लंबी-लंबी उम्मीदों से बचा और सच्चे अमल के ज़रिए उन्हें हमसे छोटा कर दे।"
हुज्जतुल इस्लाम वहीदी ने आगे कहा,अगर इंसान इस जुमले के मतलब पर गौर करे तो समझ जाएगा कि ज़्यादातर उदासी और बेचैनी की जड़ "तूल-ए-अमल" यानी भविष्य की अनिश्चित ख्वाहिशें और लंबी आशाएं हैं। इमाम अ.स. फरमाते हैं:
«حَتَّی لَا نُؤَمِّلَ اسْتِتْمَامَ سَاعَةٍ بَعْدَ سَاعَةٍ...»
यानी इंसान ऐसा न हो कि वह एक पल के बाद दूसरे पल या एक दिन के बाद दूसरे दिन की उम्मीद रखे। जो शख्स हर पल अगले पल की आरज़ू में जीता है, वह अपने "वर्तमान" से ग़ाफिल हो जाता है। यही जीने की आरज़ू और भविष्य पर अत्यधिक ध्यान इंसान को उसकी मौजूदा ज़िंदगी से भी दूर कर देती है।
उन्होंने कहा,कुछ स्टूडेंट्स अपनी तालीम को सिर्फ नतीजा-केंद्रित बना लेते हैं; वह सोचते हैं कि पढ़ूं ताकि कुछ बन जाऊं" या "किसी मुकाम पर पहुंच जाऊं"। यह सोच उन्हें बेचैनी और उदासी में डाल देती है क्योंकि मकसद हमेशा आगे ही रहता है।
असल में दरस पढ़ना एक फ़र्ज़ है, जैसे नमाज़ पढ़ना। अगर तालिबे-इल्म यह सोचे कि "मैं पढ़ता हूं क्योंकि यह मेरा फ़र्ज़ है, अल्लाह ने इल्म हासिल करने का हुक्म दिया है तो उसकी सोच नतीजे की बजाय सच्चे अमल में बदल जाती है। फिर वह "वर्तमान" में जीता है, न अतीत पर पछताता है न भविष्य से डरता है।
इज़राईल की वादा खिलाफी जारी; ग़ज़्ज़ा और ख़ान यूनिस पर फायरिंग और गोलाबारी
ग़ज़्ज़ा पट्टी में अवैध इस्राइली सैनिकों ने युद्धविराम के बावजूद फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों और नागरिकों पर हमले जारी रखे हुए हैं; जिनमें 97 लोग शहीद और 230 घायल हुए हैं।
ग़ाज़ा और ख़ान यूनिस में अवैध इस्राइली फौज ने युद्धविराम के बावजूद फ़िलिस्तीनी नागरिकों और शरणार्थियों पर हमले जारी रखे हुए हैं।
फ़िलिस्तीनी ख़बर एजेंसी शहाब के अनुसार, ग़ाज़ा शहर के पूर्वी इलाके पर अवैध इस्राइली फौज ने तोपखाने से गोलाबारी की है। दक्षिणी ग़ाज़ा के शहर ख़ान यूनिस पर भी फौजियों ने फ़िलिस्तीनियों पर गोलियाँ चलाईं।
आंकड़ों के अनुसार, ज़ायोनी फौज ने युद्धविराम के बावजूद कम से कम 100 स्थानों पर बमबारी की है, जिसके कारण 97 लोग शहीद और 230 घायल हुए हैं।
ये घटनाएँ अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के उस दावे के बिलकुल खिलाफ हैं कि ग़ाज़ा में युद्धविराम समझौता कायम है।
दुश्मन की नजर इस्लामी महिलाओं और परिवार पर है
अगर इस्लाम की संस्कृति को सही तरीके से लोगों के सामने रखा जाए तो वे उसकी ओर आकर्षित होंगे और फिर ताकतवरों के आगे नहीं झुकेंगे। इसलिए दुश्मनों ने कई योजनाएं बनाई हैं। इस लड़ाई की अगुवाई हमारी महिला छात्राएं करती हैं, जिन्हें शिक्षकों और आयोजकों की मदद से सही मार्गदर्शन देना चाहिए।
आज के समय में महिलाओं की इस्लामी स्कूलों में सामाजिक भूमिका और प्रभाव पर शिक्षकों, आयोजकों और छात्रों की जिम्मेदारी पर बात करते हुए कहा कि इस्लाम की संस्कृति को लोगों के सामने साफ-साफ रखना बहुत जरूरी है ताकि वे उसकी ओर बढ़ें और ताकतवरों के आगे न झुकें।
उन्होंने कहा कि हम एक नाज़ुक दौर में हैं और हमारे दुश्मनों ने महिलाओं और परिवार पर ध्यान दिया है क्योंकि इस्लाम प्रकृति के अनुसार है। इस्लाम की संस्कृति महिलाओं और परिवार पर ध्यान देती है और यह उन लोगों को आकर्षित करती है जो प्रकृति के अनुसार रहते हैं और ताकतवरों से दूर रहते हैं।
इस रास्ते को तेज़ करने के लिए कई काम करने होंगे। इसमें से एक बहुत जरूरी हिस्सा है दुश्मन को पहचानना। हमें अपने समय और हालात को समझना जरूरी है कि हम किस स्थिति में हैं।
उन्होंने कहा कि समझदारी के अहम हिस्सों में से एक दुश्मन को जानना है। हमें दुश्मन, उसके मकसद और उसकी योजना को अच्छी तरह जानना चाहिए। हर छात्र और शिक्षक का कर्तव्य है कि वो अपने छात्रों को इसके बारे में बताए।
हमें दुश्मन, समय, और अपनी ताकत को अच्छी तरह समझना चाहिए। अपनी ताकतों को पहचानो और समझो कि दुश्मन क्या कर रहा है। अगर हम इसे अच्छे से जानेंगे तो हम बेहतर योजना बना पाएंगे।
अख्लाक वह गौहर है जो अमल की कद्र बढ़ा देता है
आयतुल्लाह अली रज़ा अराफी ने कहा, अख्लाक वह आमिल है जो कर्म का स्तर ऊँचा करता है।अल्लाह से लेन-देन ऐसी आध्यात्मिक खुशियाँ और आशीर्वाद देता है जो कहीं और नहीं मिलती। हर काम में इंसान को अल्लाह के साथ लाभ-हानि की भावना के साथ उपस्थित होना चाहिए।
हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा आराफी ने मराकिज़-ए जिहाद-ए दानिशगाही की सांस्कृतिक संस्थाओं के सांस्कृतिक मामलों के प्रमुखों और ज़िम्मेदारों के साथ आयोजित 93वें सम्मेलन में संबोधित किया।
उन्होंने अपने संबोधन के दौरान कहा,अल्लाह तआला क़ुरआन-ए करीम की सूरह यूसुफ की आयत नंबर 108 में फ़रमाता है:
«قُلْ هَذِهِ سَبِیلِی أَدْعُو إِلَی اللَّهِ عَلَی بَصِیرَةٍ أَنَا وَمَنِ اتَّبَعَنِی وَسُبْحَانَ اللَّهِ وَمَا أَنَا مِنَ الْمُشْرِکِینَ» यानी "कह दो: यह मेरा रास्ता है कि मैं और मेरे अनुयायी समझ-बूझ के साथ अल्लाह की ओर बुलाते हैं, और अल्लाह पवित्र है, मैं मुशरिकों में से नहीं हूँ।"
आयतुल्लाह अराफी ने कहा, यह आयत धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यों के सिद्धांतों का स्रोत है और पैग़म्बरी के रास्ते की बुनियादों को बयान करती है।
उन्होंने सांस्कृतिक मामलों के तीन महत्वपूर्ण तत्व बताते हुए कहा, इन मामलों के तीन महत्वपूर्ण तत्व हैं:
- सांस्कृतिक मामलों का संबंध पवित्र लोक अलम-ए कुद्स से हो यानी सांस्कृतिक गतिविधि सिर्फ़ भौतिक दायरे में सीमित न रहे बल्कि पवित्र और ईश्वरीय उद्देश्यों से जुड़ी होनी चाहिए। ईश्वर को सर्वोच्च लक्ष्य बनाना वह भावना है जो इंसान को संघर्ष और गति की ओर ले जाती है।
हज़रत यूसुफ और जुलैख़ा के इश्क़ की कहानी क़ुरआन की ज़बानी
हज़रत यूसुफ़ आस्था एवं विश्वास के उस स्तर पर थे कि उनके सामने बहुत से रहस्यों से परदे हट गए थे। उन्होंने एकेश्वरवाद की वास्तविकता से उन्हें अवगत करवाते हुए कहा, हे क़ैद में मेरे साथियों, तुम में से एक आज़ाद हो जाएगा और अपने स्वामी की साक़ी बनकर सेवा करेगा, लेकिन दूसरे को फांसी दे दी जाएगी और परिंदे उसका मास खायेंगे। हज़रत यूसुफ़ ने आज़ाद होने वाले से कहा कि जैसे ही तुम आज़ाद होगे तो अपने मालिक राजा से मेरे बारे में बताना, और कहना कि वह मेरे बारे में जांच करायें ताकि मेरा निर्दोष होना सिद्ध हो जाए। वह व्यक्ति कुछ समय बाद रिहा हो गया, लेकिन हज़रत यूसुफ़ को बिल्कुल भूल गया। हज़रत यूसुफ़ एक अजनबी व्यक्ति की तरह वर्षों तक जेल में बंद रहे। वे जेल में आत्मनिर्माण, क़ैदियों की सेवा और उनका मार्गदर्शन करते रहे।
इस घटना को सात वर्ष बीत गए यहां तक कि मिस्र के राजा ने परेशान करने वाला एक सपना देखा। सुबह होते ही उसने सपने की व्याख्या करने वालों और अपने दरबारियों को उपस्थित होने का आदेश दिया।
उसने कहा, मैंने सपने में सात मोटी ताज़ा गायों को देखा जिन्हें सात पतली दुबली गाय खा रही हैं, और सात बालियां हरी हैं और सात अन्य सूखी हुई। (आयत-43)
उसने कहा हे सरदारों अगर मेरे सपने की व्याख्या करत सकते हो तो इसके बारे में मुझे बताओ। लोगों ने राजा से कहा यह बुरा स्वप्न है और हम इस तरह के स्वप्न के बारे में अधिक नहीं जानते हैं।
इस समय उस युवा को हज़रत यूसुफ़ का ख़याल आया और उसने कहा, जेल की एक कोठरी में एक धर्मात्मा क़ैद हैं जो इस सपने की व्याख्या कर सकते हैं। मुझे अनुमति दें ताकि मैं उनसे मिल सकूं। उसने हज़रत यूसुफ़ के पास जाकर कहा, हे सच्च बोलने वाले मुनि आप इस सपने के बारे में क्या कहेंगे?
हज़रत यूसुफ़ ने राजा के सपने की व्याख्या करते हुए कहा, सात वर्षों तक निरंतर गंभीरता से खेती करो, इसलिए कि इन सात वर्षों में काफ़ी बारिश होगी। लेकिन जो भी उत्पादन करो उसे बालियों समेत ही भंडार कर लो, केवल थोड़ी सी मात्रा में निकालों जितनी ज़रूरत हो। लेकिन यह जान लो कि इन सात वर्षों के बाद सात वर्षों तक सूखा पड़ेगा और उस समय केवल जो तुमने भंडारण किया होगा उसे उपयोग कर सकोगे, नहीं तो नष्ट हो जाओगे। अगर योजना अनुसार, इन सात वर्षों को बिताओगे तो ख़तरा टल जाएगा। इसलिए कि उसके बाद ख़ूब बारिश होगी और लोग ईश्वरीय अनुकंपाओं से लाभांवित होंगे।
हज़रत यूसुफ़ ने राजा के सपने की सटीक व्याख्या की और इसी के साथ सूखे का सामना करने के लिए मार्ग प्रशस्त कर दिया। राजा और दरबारी इस व्याख्या से आश्चर्यचकित रह गए।
राजा ने यूसुफ़ को आज़ाद करने का आदेश दिया लेकिन हज़रत यूसुफ़ ने कहा कि वे उस समय आज़ाद होना पसंद करेंगे जब उन पर लगे आरोपों की जांच हों और वे निर्दोष साबित हो जाएं। अंततः ज़ुलेख़ा ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया और कहा, अब सत्य सिद्ध हो चुका है, मैंने काम वासना की इच्छा व्यक्त की थी। इस प्रकार, मिस्र वासियों के लिए हज़रत यूसुफ़ (अ) का निर्दोष होना सिद्ध हो गया।
राजा ने हज़रत यूसुफ़ को अपना सलाहकार नियुक्त कर लिया। राजा ने पाया कि हज़रत यूसुफ़ असाधारण ज्ञान एवं दूरदर्शिता रखते हैं। राजा ने उनसे कहा कि आज हमारे निकट तुम्हारा उच्च स्थान है और हमें तुम पर भरोसा है। हज़रत यूसुफ़ के सुझाव पर उन्हें कोषाध्यक्ष की ज़िम्मेदारी सौंपी गई।
हज़रत यूसुफ़ की भविष्यवाणी के मुताबिक़, अच्छी बारिश होने के कारण सात वर्षों तक अच्छी फ़सल हुई। इस दौरान हज़रत यूसुफ़ ने खाद्य पदार्थों को सुरक्षित रखने के लिए गोदामों के निर्माण का आदेश दिया। उन्होंने जनता से कहा कि अपनी आवश्यकतानुसार फ़सलों में से ले लें और बाक़ी सरकार को बेच दें। इस प्रकार, गोदाम अनाज ने भर गए। सात वर्षों तक अच्छी फ़सल होने के बाद, सूखे का दौर शुरू हो गया और लोगों के पास अनाज की कमी होने लगी। हज़रत यूसुफ़ योजना के अनुसार, लोगों को अनाज बेचते थे और न्यायपूर्ण ढंग से उनकी ज़रूरतों की आपूर्ति किया करते थे। मिस्र के आसपास के इलाक़ों में भी सूखा पड़ रहा था। अतः हज़रत याक़ूब के लड़के अनाज ख़रीदने के लिए मिस्र गए। हज़रत यूसुफ़ स्वयं अनाज के वितृण की निगरानी करते थे, उन्होंने लोगों की भीड़ में अपने भाईयों को पहचान लिया, लेकिन उन्होंने हज़रत यूसुफ़ को नहीं पहचाना। हज़रत यूसुफ़ ने उनके साथ बहुच अच्छा व्यवहार किया और उनसे उनका हालचाल पूछा। भाईयों ने कहा, हज़रत याक़ूब के हम दस बेटे हैं और वे हज़रत इब्राहीम के पौत्र हैं और ईश्वरीय दूत हैं, लेकिन उन्हें गहरा दुख पहुंचा है। उनका एक और बेटा था जिसे वे बहुत चाहते थे, एक दिन शिकार के लिए हमारे साथ जंगल गया, हमारा ध्यान उससे हट गया और भेड़िए ने उसे खा लिया।
हज़रत यूसुफ़ कोशिश में थे कि किसी भी तरह अपने छोटे भाई बिनयामिन को मिस्र बुला लें। उन्होंने अपने भाईयों से कहा, अगर तुम दोबारा यहां आओ तो अपने उस भाई को भी लेकर आना जो तुम्हारे पिता के साथ है। अगर उसे नहीं लाओगे तो तुम्हें अनाज नहीं दिया जाएगा। हज़रत यूसुफ़ के आदेशानुसार, सेवकों ने ख़ुफ़िया रूप से उनके भाईयों के सामान में वह पैसे रखवा दिए जो उन्होंने अनाज ख़रीदने के बदले चुकाए थे। कुछ समय बाद जब हज़रत याक़ूब के बेटे अपने शहर पहुंचे तो उन्होंने अपने पिता से मिस्र के शासक के दयालु और कृपालु होने का उल्लेख किया और उनसे आग्रह किया कि बिनयामिन को उनके साथ मिस्र भेज दें। अंततः बेटों के बहुत अधिक आग्रह के बाद हज़रत याक़ूब ने बिनयामिन को उनके साथ भेजेने की बात स्वीकार कर ली। वे बिनयामिन को लेकर हज़रत यूसुफ़ के पास गए। हज़रत यूसुफ़ ने उनका स्वागत किया और उन्हें सम्मान दिया। फिर चुपके से अपने भाई बिनयामिन से कहा, मैं तुम्हारा भाई यूसुफ़ हूं, दुखी मत होना और उनके व्यवहार से नाराज़ नहीं होना।
हज़रत यूसुफ़ के आदेशानुसार, एक कर्मचारी ने चुपके से बिनयामिन के भार में विशेष प्याला छिपा दिया। क़ाफ़िला जब चलने को हुआ तो सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें सोने का प्याला चुराने के अपराध में रोक लिया। हज़रत यूसुफ़ के भाईयों ने कहा, ईश्वर की सौगंध हमने कभी भी चोरी नहीं की। उनसे कहा गया कि अगर तुममे से किसी के सामान में यह प्याला निकला तो उसे क्या दंड दिया जाना चाहिए? भाईयों ने कहा, हमारी परम्परा के अनुसार, चोर को सेवक के रूप में रोक लिया जाए।
सुरक्षाकर्मियों ने पहले दूसरों के सामान की जांच की और उसके बाद बिनयामिन के सामान की, बिनयामिन के सामान से प्याला निकल आया, भाईयों पर दुखों को पहाड़ टूट पड़ा। उन्होंने लज्जित होते हुए कहा, अगर बिनयामिन चोरी करे तो आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि उसका जो एक भाई था उसने भी चोरी की थी। हज़रत यूसुफ़ को निराधार आरोप सुनकर बहुत दुख पहुंचा लेकिन उन्होंने ज़ाहिर नहीं किया। भाईयों ने कहा, हे मिस्र के शासक, बिनयामिन के पिता बहुत बूढ़े हैं, उसे हमारे साथ भेज दो और हम में से किसी एक को उसके स्थान पर रोक लो, आप तो बहुत दयालु व्यक्ति हो। यूसुफ़ ने कहा, हमें ईश्वर का भय है, जिसके पास से प्याला नहीं मिला है हम उसे नहीं रोक सकते, अगर ऐसा करेंगे तो हम अत्याचारी होंगे।
जब भाई निराश हो गए तो बड़ा भाई मिस्र में रुक गया और दूसरे भाई पिता का आदेश लेने पिता की सेवा में उपस्थित हुए। उन्होंने उपस्थित होकर हज़रत याक़ूब को पूरी बात बताई। पिता ने उनकी बात पर विश्वास नहीं किया और कहा, ऐसा नहीं है बल्कि तुम्हारे मन ने तुम्हें धोखा दिया है, मैं धैर्य से काम लूंगा, और मुझे ईश्वर से आशा है कि वह दूसरे बेटों को भी मुझ से मिला देगा। हज़रत सूसुफ़ की जुदाई में रो रोकर हज़रत याक़ूब की आंखों की पुतलियां सफ़ैद पड़ चुकी थीं और उन्हें दिखाई देना बंद हो गया था। उन्होंने अपने बेटों से कहा, मिस्र वापस जाएं और यूसुफ़ और उनके भाई को खोजें, और ईश्वर की कृपा से निराश न हों। उनके बेटों ने पुनः मिस्र की यात्रा की और हज़रत यूसुफ़ से आग्रह किया कि अपनी महानता के आधार पर उनकी सहायता करें।
हज़रत यूसुफ़ ने कहा, क्या तुम जानते हो कि तुमने अज्ञानता और नादानी में यूसुफ़ और उसके भाई के साथ क्या किया? उन्हें यूसुफ़ जाने पहचाने से लगे लेकिन उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि यूसुफ़ मिस्र के शासक कैसे बन सकते हैं। इसी लिए उन्होंने आशंका व्यक्त करते हुए पूछा क्या तुम ही यूसुफ़ हो? यहां यूसुफ़ ने वास्तविकता स्पष्ट कर दी और कहा, हां मैं यूसुफ़ हूं और यह मेरा भाई बिनयामिन है। ईश्वर ने अपनी कृपा से हमें ख़तरों से बचाया। और यह स्थान ईश्वर ने मुझे धैर्य और अच्छे काम अंजाम देने तथा बुरे कामों से दूर रहने के कारण प्रदान किया है।
उनके भाईयों ने कहा, ईश्वर की सौगंध, ईश्वर ने तुम्हें हम पर वरीयता प्रदान की जबकि हमने तुम्हारे साथ ग़लती की। हज़रत यूसुफ़ ने कहा, अब तुम्हारी ग़लती पर तुम्हें दंडित नहीं किया जाएगा, मैं ईश्वर से तुम्हें क्षमा करने के लिए याचना करता हूं वह क्षमा करने वाला और अति महरबान है।
उसके बाद, अपने भाईयों से कहा, उनका कुर्ता लेकर जाएं और पिता के चेहरे पर डाल दें ताकि उनकी आंखों का प्रकाश लौट आए। हज़रत यूसुफ़ के भाई बहुत ही उत्साहपूर्व कनआन की ओर पलटे और तेज़ी से पिता के पास गए। उन्होंने हज़रत युसूफ़ के कुर्ते को हज़रत याक़ूब के चेहरे पर डाला, उनकी आंखों का प्रकाश लौट आया और उन्होंने कहा, क्या मैंने तुम से नहीं कहा था कि ईश्वर ने मुझे उन चीज़ों का ज्ञान दिया है जिनका ज्ञान तुम्हारे पास नहीं है।
हज़रत याक़ूब और उनके बेटे हज़रत यूसुफ़ से मुलाक़ात के लिए चल दिए। यूसुफ़ भी अपने माता पिता के स्वागत के लिए गए। अंततः हज़रत याक़ूब के जीवन का सबसे अच्छा क्षण आ गया, और वर्षों बाद बाप बेटे एक दूसरे से मिले। यूसुफ़ ने कहा मिस्र में पधारिए और ईश्वर की इच्छा से आप पूर्ण रूप से सुरक्षित रहेंगे। जब वे दरबार में पहुंचे तो उन्होंने अपने माता पिता को सिंहासन पर बैठाया। इस दृश्य से उनके भाई इतने अधिक प्रभावित हुए कि सभी सजदे में गिर गए। इस समय हज़रत सुसूफ़ ने अपने पिता की ओर देखकर कहा, पिता श्री यह उस सपने का सच होना है जो अतीत में मैंने देखा था, ईश्वर ने उसे सच कर दिखाया।
हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा का जीवन
हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा का जीवन तथा उनका व्यक्तित्व विभिन्न आयामों से समीक्षा योग्य है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम, हज़रत अली अलैहिस्सलाम और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा जैसी हस्तियों के साथ रहने से हज़रत ज़ैनब के व्यक्तित्व पर इन हस्तियों का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। हज़रत ज़ैनब ने प्रेम व स्नेह से भरे परिवार में प्रशिक्षण पाया। इस परिवार के वातावरण में, दानशीलता, बलिदान, उपासना और सज्जनता जैसी विशेषताएं अपने सही रूप में चरितार्थ थीं। इसलिए इस परिवार के बच्चों का इतने अच्छे वातावरण में पालन - पोषण हुआ। हज़रत अली अलैहिस्सलाम व फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह के बच्चों में नैतिकता, ज्ञान, तत्वदर्शिता और दूर्दर्शिता जैसे गुण समाए हुए थे, क्योंकि मानवता के सर्वश्रेष्ठ प्रशिक्षकों से उन्होंने प्रशिक्षण प्राप्त किया था।
हज़रत ज़ैनब में बचपन से ही ज्ञान की प्राप्ति की जिज्ञासा थी। अथाह ज्ञान से संपन्न परिवार में जीवन ने उनके सामने ज्ञान के द्वार खोल दिए थे। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के परिजनों के कथनों के हवाले से इस्लामी इतिहास में आया है कि हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा को ईश्वर की ओर से कुछ ज्ञान प्राप्त था। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने अपने एक भाषण में हज़रत ज़ैनब को संबोधित करते हुए कहा थाः आप ईश्वर की कृपा से ऐसी विद्वान है जिसका कोई शिक्षक नहीं है। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा क़ुरआन की आयतों की व्याख्याकार थीं। जिस समय उनके महान पिता हज़रत अली अलैहिस्सलाम कूफ़े में ख़लीफ़ा थे यह महान महिला अपने घर में क्लास का आयोजन करती तथा पवित्र क़ुरआन की आयतों की बहुत ही रोचक ढंग से व्याख्या किया करती थीं। हज़रत ज़ैनब द्वारा शाम और कूफ़े के बाज़ारों में दिए गए भाषण उनके व्यापक ज्ञान के साक्षी हैं। शोधकर्ताओं ने इन भाषणों का अनुवाद तथा इनकी व्याख्या की है। ये भाषण इस्लामी ज्ञान विशेष रूप से पवित्र क़ुरआन पर उस महान हस्ती के व्यापक ज्ञान के सूचक हैं।
हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के आध्यात्मिक स्थान की बहुत प्रशंसा की गई है। जैसा कि इतिहास में आया है कि इस महान महिला ने अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अनिवार्य उपासना के साथ साथ ग़ैर अनिवार्य उपासना करने में भी तनिक पीछे नहीं रहीं। हज़रत ज़ैनब को उपासना से इतना लगाव था कि उनकी गणना रात भर उपासना करने वालों में होती थी और किसी भी प्रकार की स्थिति ईश्वर की उपासना से उन्हें रोक नहीं पाती थी। इमाम ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम बंदी के दिनों में हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के आध्यात्मिक लगाव की प्रशंसा करते हुए कहते हैः मेरी फुफी ज़ैनब, कूफ़े से शाम तक अनिवार्य नमाज़ों के साथ - साथ ग़ैर अनिवार्य नमाज़ें भी पढ़ती थीं और कुछ स्थानों पर भूख और प्यास के कारण अपनी नमाज़े बैठ कर पढ़ा करती थीं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने जो अपनी बहन हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के आध्यात्मिक स्थान से अवगत थे, जिस समय रणक्षेत्र में जाने के लिए अंतिम विदाई के लिए अपनी बहन से मिलने आए तो उनसे अनुरोध करते हुए यह कहा थाः मेरी बहन मध्यरात्रि की नमाज़ में मुझे न भूलिएगा।
हज़रत ज़ैनब के पति हज़रत अब्दुल्लाह बिन जाफ़र की गण्ना अपने काल के सज्जन व्यक्तियों में होती थी। उनके पास बहुत धन संपत्ति थी किन्तु हज़रत ज़ैनब बहुत ही सादा जीवन बिताती थीं भौतिक वस्तुओं से उन्हें तनिक भी लगाव नहीं था। यही कारण था कि जब उन्हें यह आभास हो गया कि ईश्वरीय धर्म में बहुत सी ग़लत बातों का समावेश कर दिया गया है और वह संकट में है तो सब कुछ छोड़ कर वे अपने प्राणप्रिय भाई हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ मक्का और फिर कर्बला गईं।
न्होंने मदीना में एक आराम का जीवन व्यतित करने की तुलना में कर्बला की शौर्यगाथा में भाग लेने को प्राथमिकता दी। इस महान महिला ने अपने भाई इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ उच्च मानवीय सिद्धांत को पेश किया किन्तु हज़रत ज़ैनब की वीरता कर्बला की त्रासदीपूर्ण घटना के पश्चात सामने आई। उन्होंने उस समय अपनी वीरता का प्रदर्शन किया जब अत्याचारी बनी उमैया शासन के आतंक से लोगों के मुंह बंद थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के पश्चात किसी में बनी उमैया शासन के विरुद्ध खुल कर बोलने का साहस तक नहीं था ऐसी स्थिति में हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने अत्याचारी शासकों के भ्रष्टाचारों का पिटारा खोला। उन्होंने अत्याचारी व भ्रष्टाचारी उमवी शासक यज़ीद के सामने बड़ी वीरता से कहाः हे यज़ीद! सत्ता के नशे ने तेरे मन से मानवता को समाप्त कर दिया है। तू परलोक में दण्डित लोगों के साथ होगा। तुझ पर ईश्वर का प्रकोप हो । मेरी दृष्टि में तू बहुत ही तुच्छ व नीच है। तू ईश्वरीय दूत पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के धर्म को मिटाना चाहता, मगर याद रख तू अपने पूरे प्रयास के बाद भी हमारे धर्म को समाप्त न कर सकेगा वह सदैव रहेगा किन्तु तू मिट जाएगा।
हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की वीरता का स्रोत, ईश्वर पर उनका अटूट विश्वास था। क्योंकि मोमिन व्यक्ति सदैव ईश्वर पर भरोसा करता है और चूंकि वह ईश्वर को संसार में अपना सबसे बड़ा संरक्षक मानता है इसलिए निराश नहीं होता। जब ईश्वर पर विश्वास अटूट हो जाता है तो मनुष्य कठिनाइयों को हंसी ख़ुशी सहन करता है। ईश्वर पर विश्वास और धैर्य, हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के पास दो ऐसी मूल्यवान शक्तियां थीं जिनसे उन्हें कठिनाईयों में सहायता मिली। इसलिए उन्होंने उच्च - विचार और दृढ़ विश्वास के सहारे कर्बला - आंदोलन के संदेश को फैलाने का विकल्प चुना। कर्बला से लेकर शाम और फिर शाम से मदीना तक राजनैतिक मंचों पर हज़रत ज़ैनब की उपस्थिति, अपने भाइयों और प्रिय परिजनों को खोने का विलाप करने के लिए नहीं थी। हज़रत ज़ैनब की दृष्टि में उस समय इस्लाम के विरुद्ध कुफ़्र और ईमान के सामने मिथ्या ने सिर उठाया था। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा का आंदोलन बहुत व्यापक अर्थ लिए हुए था। उन्होंने भ्रष्टाचारी शासन को अपमानित करने तथा अंधकार और पथभ्रष्टता में फंसे इस्लामी जगत का मार्गदर्शन करने का संकल्प लिया था। इसलिए इस महान महिला ने हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के पश्चात हुसैनी आंदोलन के संदेश को पहुंचाना अपना परम कर्तव्य समझा। उन्होंने अत्याचारी शासन के विरुद्ध अभूतपूर्व साहस का प्रदर्शन किया। उन्होंने अपने जीवन के इस चरण में पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के अधिकारों की रक्षा की तथा शत्रु को कर्बला की त्रासदीपूर्ण घटना से लाभ उठाने से रोक दिया। हज़रत ज़ैनब के भाषण में वाक्पटुता इतनी आकर्षक थी कि लोगों के मन में हज़रत अली अलैहिस्सलाम की याद ताज़ा हो गई और लोगों के मन में उनके भाषणों का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। कर्बला में हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके साथियों की शहादत के पश्चात हज़रत ज़ैनब ने जिस समय कूफ़े में लोगों की एक बड़ी भीड़ को संबोधित किया तो लोग उनके ज्ञान एवं भाषण शैली से हत्प्रभ हो गए। इतिहास में है कि लोगों के बीच एक व्यक्ति पर हज़रत ज़ैनब के भाषण का ऐसा प्रभाव हुआ कि वह फूट फूट कर रोने लगा और उसी स्थिति में उसने कहाः हमारे माता पिता आप पर न्योछावर हो जाएं, आपके वृद्ध सर्वश्रेष्ठ वृद्ध, आपके बच्चे सर्वश्रेष्ठ बच्चे और आपकी महिलाएं संसार में सर्वश्रेष्ठ और उनकी पीढ़ियां सभी पीढ़ियों से श्रेष्ठ हैं।
कर्बला की घटना के पश्चात हज़रत ज़ैनब ने हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन को इतिहास की घटनाओं की भीड़ में खोने से बचाने के लिए निरंतर प्रयास किया। यद्यपि कर्बला की त्रासदीपूर्ण घटना के पश्चात हज़रत ज़ैनब अधिक जीवित नहीं रहीं किन्तु इस कम समय में उन्होंने इस्लामी जगत में जागरुकता की लहर दौड़ा दी थी। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने अपनी उच्च- आत्मा और अटूट संकल्प के सहारे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन को अमर बना दिया ताकि मानव पीढ़ी, सदैव उससे प्रेरणा लेती रही। यह महान महिला कर्बला की घटना के पश्चात लगभग डेढ़ वर्ष तक जीवित रहीं और सत्य के मार्ग पर अथक प्रयास से भरा जीवन बिताने के पश्चात वर्ष 62 हिजरी क़मरी में इस नश्वर संसार से सिधार गईं।
एक बार फिर हज़रत ज़ैबन सलामुल्लाह अलैहा की शहादत की पुण्यतिथि पर हम सभी श्रोताओ की सेवा में हार्दिक संवेदना व्यक्त करते हैं। कृपालु ईश्वर से हम यह प्रार्थना करते हैं कि वह हम सबको इस महान हस्ती के आचरण को समझ कर उसे अपनाने का साहस प्रदान करे।













