رضوی

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यमन की राजधानी सना में शहीद जनरल मोहम्मद अब्दुल करीम अलगुमारी के अंतिम संस्कार में लाखों लोगों ने भाग लिया। वह इजरायली हवाई हमले में अपने बेटे और अंगरक्षकों के साथ शहीद हुए थे। अंतिम संस्कार जुलूस के दौरान "अमेरिका मुर्दाबाद, इजरायल मुर्दाबाद" के नारों से गूंज उठा।

सना में यमनी सेना के पूर्व प्रमुख और अंसारूल्लाह कमांडर शहीद जनरल मोहम्मद अब्दुल करीम अलगुमारी उर्फ हाशिम का अंतिम संस्कार सम्मान पूर्वक किया गया। उनकी हत्या पिछले हफ्ते इजरायली हवाई हमले में उनके तेरह वर्षीय बेटे और अंगरक्षकों के साथ हुई थी।

वह दो दशकों से अंसारूल्लाह की सैन्य कमान में केंद्रीय भूमिका निभा रहे थे और यमन की रक्षा रणनीति की आधारशिला माने जाते थे।

अंतिम संस्कार सुबह दस बजे अलसबीन स्क्वायर पर हुआ, जिसमें बड़ी संख्या में आम नागरिकों, सैन्य कमांडरों, अंसारूल्लाह नेताओं और सरकारी अधिकारियों ने भाग लिया। शहीद का ताबूत उनके बेटे और अंगरक्षकों के साथ झंडों के साथ लोगों के कंधों पर उठाया गया।

प्रतिभागियों ने यमन और फिलिस्तीन के झंडे लहराए और जोरदार नारे लगाए अमेरिका मुर्दाबाद, इजरायल मुर्दाबाद, फिलिस्तीन ज़िंदाबाद।

यमन के मुफ्ती ए आज़म अल्लामा शम्सुद्दीन शरफुद्दीन ने अंतिम संस्कार की नमाज के बाद कहा,जो इजरायल और अमेरिका की दोस्ती को स्वीकार करता है, वह इस्लाम का दुश्मन है, और जो जासूसी या विश्वासघात के बारे में जानकर चुप रहता है, वह अपराध में साझीदार है।

उन्होंने कहा कि यह त्रासदी विश्वासियों के लिए एक दिव्य परीक्षा है ताकि वे सच्चाई के मार्ग पर डटे रहें और उत्पीड़ितों का समर्थन जारी रखें।

पिछले कुछ दिनों में, सना सहित विभिन्न प्रांतों में लाखों यमनियों ने इजरायली आक्रामकता के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किए और शहीद अलगुमारी को श्रद्धांजलि दी।

याद रहे कि यमन सशस्त्र बलों ने 24 अक्टूबर को एक आधिकारिक बयान में शहीद जनरल अलगुमारी और उनके बेटे की शहादत की पुष्टि की थी। उनके बाद यूसुफ हसन अल-मदानी को नया चीफ ऑफ स्टाफ नियुक्त किया गया है।

 

गज़्जा में तीन लाख छात्रों के लिए शैक्षिक गतिविधियाँ फिर से शुरू हो गई हैं। शनिवार से संयुक्त राष्ट्र संस्था UNRWA ने अपने स्कूल फिर से खोल दिए हैं जबकि छात्रों की संख्या में और वृद्धि की उम्मीद है।

UNRWA ने गाज़ा में शैक्षिक गतिविधियाँ फिर से शुरू कर दी हैं, जिससे लगभग 3 लाख फिलिस्तीनी छात्र लाभान्वित हो रहे हैं।

संस्था के मीडिया सलाहकार अदनान अबू हस्ना ने बताया कि "UNRWA ने गाज़ा में 3 लाख फिलिस्तीनी छात्रों के लिए शैक्षिक प्रक्रिया बहाल करने की योजनाएं तैयार कर ली हैं और उम्मीद है कि यह संख्या और बढ़ सकती है।

उन्होंने स्पष्ट करते हुए कहा कि लगभग 10 हज़ार छात्र स्कूलों और आश्रयों में सीधे कक्षाओं में भाग लेंगे, जबकि अधिकांश छात्रों को दूरस्थ शिक्षा दी जाएगी।

अबू हस्ना ने आगे कहा कि 8 हज़ार शिक्षक इस कार्यक्रम में भाग लेंगे और इस बात पर जोर दिया कि दो साल बिना स्कूली शिक्षा के गुजारना बिल्कुल असंभव है, खासकर जब इससे पहले के दो साल COVID-19 की वजह से प्रभावित हुए थे।"

शैक्षिक बहाली की चुनौतियाँ

गाज़ा में शैक्षिक प्रणाली 8 अक्टूबर 2023 से निलंबित थी जब से इजरायली सैन्य कार्रवाइयों की शुरुआत हुई। संघर्ष के दौरान कई स्कूलों को नष्ट कर दिया गया है या विस्थापित परिवारों के लिए आश्रयों में बदल दिया गया है।

फिलिस्तीनी शिक्षा मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, इजरायली कार्रवाइयों में 172 सरकारी स्कूल पूरी तरह से नष्ट हो चुके हैं जबकि 118 अन्य स्कूलों को नुकसान पहुंचा है। इसके अलावा UNRWA के प्रबंधन वाले 100 से अधिक स्कूल भी निशाने पर आए हैं।

मंत्रालय के अनुसार, 17,711 छात्र मारे गए हैं और 25,897 घायल हुए हैं, जबकि 763 शिक्षा क्षेत्र से जुड़े कर्मचारी भी मारे गए हैं।

मानवीय संकट और सहायता में बाधाएँ

अबू हस्ना ने बताया कि UNRWA गाज़ा में 22 मुख्य स्वास्थ्य केंद्रों को भी बहाल करने की योजना रखता है और हजारों कर्मचारियों के साथ दर्जनों राहत केंद्रों पर काम जारी रखे हुए है।

हालाँकि, उन्होंने चेतावनी दी कि कई बुनियादी जरूरतें, जिनमें आश्रय सामग्री, कंबल, सर्दियों के कपड़े और दवाएं शामिल हैं, इजरायली प्रतिबंधों के कारण गाज़ा में प्रवेश नहीं कर पा रही हैं जिससे मानवीय स्थिति और खराब हो रही है।

उन्होंने बताया कि गाज़ा की 95% आबादी अब मानवीय सहायता पर निर्भर है और युद्धविराम के बाद गाज़ा शहर लौटने वाले हजारों विस्थापित लोग अभी भी खुले आसमान के नीचे जीवन बसर कर रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि अक्टूबर 2023 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा प्रस्तावित योजना पर आधारित युद्धविराम समझौते में फिलिस्तीनी कैदियों के बदले इजरायली बंधकों की रिहाई और हमास के बिना नई सरकारी व्यवस्था के तहत गाज़ा के पुनर्निर्माण की योजना शामिल थी।

 

इंकेलाब इस्लामी गार्ड्स कोर ने 'क़द्र' और 'इमाद' मिसाइलों के नए मॉडल पेश किए हैं जिनमें इलेक्ट्रॉनिक रक्षा प्रणाली और परिचालन क्षमताओं को और बेहतर बनाया गया है।

इंकेलाब इस्लामी गार्ड्स कोर की वायु सेना ने अपनी नवीनतम 'इमाद' और 'क़द्र' मिसाइलों का अनावरण किया है।

विवरण के अनुसार, इस्लामी गणतंत्र ईरान की इंकेलाब इस्लामी गार्ड्स IRCG कोर ने भूमिगत मिसाइल शहरों के दृश्य दिखाते हुए नवीनतम मिसाइलों का अनावरण किया, जिसमें इन मिसाइलों की क्षमताओं और उन्नयन को प्रदर्शित किया गया।

रिपोर्ट के अनुसार, 'क़द्र' बैलिस्टिक मिसाइल को आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक रक्षा प्रणाली से लैस किया गया है, जो दुश्मन के रडार और संचार प्रणालियों को प्रभावित करने की क्षमता रखती है। दूसरी ओर, 'इमाद' मिसाइल को भी आधुनिक मानकों पर उन्नत करके पूरी तरह से सक्रिय कर दिया गया है।

स्पष्ट रहे कि इसे ईरानी रक्षा क्षमताओं में वृद्धि और क्षेत्र में उसकी सामरिक स्थिति को और मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम और प्रगति माना जा रहा है।

 

हुज्‍जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन रब्बानी ने समाज में अम्र बिल मारूफ और नही अनिल मुनकर की ज़िम्मेदारी को आम करने की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए कहा कि इसका आरंभ सरकारी संस्थानों से होना चाहिए और हर व्यक्ति को इसके अमल में मदद करनी चाहिए।

अमर बिल मारूफ व नही अनिल मुनकर कमेटी” के प्रमुख डॉ. मुहम्मद रज़ा मीर शम्सी ने कृषि मंत्रालय में वली-ए-फ़क़ीह के प्रतिनिधि हुज्‍जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन रब्बानी से मुलाक़ात की और कई अहम मामलों पर बातचीत की।

डॉ. मीर शम्सी ने कहा कि विभिन्न सरकारी व सामाजिक संस्थानों में अम्र बिल मारूफ और नही अनिल मुनकर की काउंसिलें कायम करना बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि ऐसी काउंसिलें संस्थानों के प्रबंध और प्रशासनिक कामों में बहुत असरदार मदद साबित हो सकती हैं।

हुज्‍जतुल इस्लाम रब्बानी ने इस इलाही फर्ज़ के प्रचार पर बल देते हुए कहा कि अम्र बिल मारूफ और नही अनिल मुनकर का फैलाव एक बहुत क़ीमती और मेहनततलब काम है, जो इंसान के अच्छे अमलों का हिस्सा बनता है और उसके लिए अल्लाह के यहां सवाब का ज़रिया होता है।

उन्होंने कहा कि जो लोग इस रास्ते पर आगे बढ़ते हैं, वे असल में समाज की भलाई और सुधार के लिए मेहनत कर रहे होते हैं। इसलिए उन्हें इस मार्ग में आने वाली मुश्किलों के सामने डटे रहना चाहिए और हिम्मत नहीं हारनी चाहिए।

आख़िर में उन्होंने समाज में इस इलाही ज़िम्मेदारी को आम करने की ज़रूरत पर दोबारा ज़ोर देते हुए कहा कि अम्र बिल मारूफ और नही अनुल मुनकर सबकी सामूहिक ज़िम्मेदारी है। समाज के हर व्यक्ति को इसे लागू करने में एक-दूसरे का साथ देना चाहिए।

 

 न्यूयॉर्क में हज़ारों ऑर्थोडॉक्स यहूदियों ने इजरायली दूतावास के सामने ज़बरदस्त विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें इजरायल में सैन्य सेवा को अनिवार्य बनाने वाले कानून का विरोध किया गया। प्रदर्शनकारियों ने नारे लगाए कि हम मर जाएंगे लेकिन सेना में नहीं जाएंगे।

अमेरिकी शहर न्यूयॉर्क में इजरायली दूतावास के बाहर हज़ारों ऑर्थोडॉक्स यहूदियों ने सैन्य सेवा अनिवार्य करने के फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। यह प्रदर्शन उन लगातार हो रहे विरोध प्रदर्शनों की एक कड़ी है जो हाल के महीनों में फिलिस्तीन के विभिन्न कब्जे वाले इलाकों में हरेडी यहूदियों ने किए हैं।

रिपोर्टों के मुताबिक प्रदर्शनकारियों ने इजरायली सरकार से मांग की कि वह अपने उस विवादास्पद कानून को वापस ले जिसके तहत हरेडी युवाओं को भी सेना में भर्ती होने पर मजबूर किया जा रहा है। प्रदर्शनकारियों ने जोशीले अंदाज में नारे लगाए: "हम मर जाएंगे, लेकिन सेना में नहीं जाएंगे।

हरेडी यहूदियों का कहना है कि सैन्य सेवा उनके धार्मिक विश्वासों और जीवनशैली के खिलाफ है। वे 1948 में इजरायल के गठन से ही उस कानून के तहत सैन्य सेवा से छूटे हुए हैं जो धार्मिक शिक्षा को सैन्य सेवा के बराबर मानता है।

हालांकि, गाज़ा युद्ध में जायोनी सेना को भारी जनहानि के बाद इजरायली सरकार को गंभीर कर्मचारियों की कमी का सामना करना पड़ रहा है और इसी वजह से सुप्रीम कोर्ट ने धार्मिक वर्ग को भी सेना में शामिल करने का आदेश दिया था।

ध्यान रहे कि इस प्रदर्शन ने न्यूयॉर्क के धार्मिक यहूदियों और इजरायल के बीच जटिल संबंधों को उजागर किया। न्यूयॉर्क की प्रसिद्ध "सतमार" समुदाय के दो प्रभावशाली रब्बियों ने अपने अनुयायियों से विरोध प्रदर्शन में पूरी तरह से भाग लेने की अपील की थी।

यह विरोध प्रदर्शन ऐसे समय में हुआ जब न्यूयॉर्क में मेयर के चुनाव नजदीक हैं, जिनमें मुस्लिम उम्मीदवार ज़हरान ममदानी फिलहाल काफी आगे चल रहे हैं।

 

हुज्‍जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मुताहर खू ने कहा कि अमेरिकी जब अपनी नीतियों में नाकामी महसूस करते हैं, तो तुरंत बातचीत और समझौते की बात करने लगते हैं। ग़ज़्ज़ा में किए गए अत्याचारों के मैदान में वे आखिरकार हार चुके हैं, क्योंकि वे हमास को हथियार डालने या निशस्त्र करने में पूरी तरह नाकाम रहे। यह सब इज़राइल को मुश्किल हालात से निकालने का एक अमेरिकी योजना थी, जिसमें वह खुद फँस गया।

ईरान के शहर नाइइन के इमामे जुमा हुज्‍जतुल इस्लाम मुहम्मद मुताहर खू ने कहा कि शर्म-अश्शेख़ (मिस्र) कॉन्फ़्रेंस वस्तुतः पश्चिमपरस्त तत्वों की बदनामी थी। लेकिन अफसोस कि कुछ पश्चिमपरस्त लोगों ने ईरान के राष्ट्रपति और विदेश मंत्री से भी इस बैठक में भाग लेने की मांग की, यह कहते हुए कि “यह ईरान के लिए एक अवसर है” और उसे अमेरिका से बातचीत और सहयोग के दरवाज़े खोलने चाहिए।

उन्होंने कहा कि ट्रम्प और नेतनयाहू की बेहूदा बयानबाज़ी — ईरानी क़ौम और शहीद सरदार क़ासिम सुलेमानी के खिलाफ — के कुछ घंटे पहले और बाद में जो शर्मनाक बयान दिए गए, और उसी समय सम्मेलन में भाग लेने वाले देशों के नेताओं के साथ जो अनुचित व्यवहार किया गया, उससे यह साबित हुआ कि ईरान के राष्ट्रपति डॉ. मसऊद पज़ेश्कियन का सम्मेलन में हिस्सा न लेना बहुत अच्छा फैसला था।

हुज्‍जतुल इस्लाम मुताहर खू ने आगे कहा कि सरकार के इस निर्णय और राष्ट्रपति, विदेशी मंत्री और सरकार के रुख़ की प्रशंसा करनी चाहिए, जिन्होंने पश्चिमपरस्त दबाव में आकर ऐसा कोई कदम नहीं उठाया और ईरान की इज़्ज़त को सुरक्षित रखा।

नाईन के इमामे जुमा ने कहा कि 12-दिवसीय युद्ध के बाद पश्चिमपरस्त तबकों में कई स्तरों पर बातचीत की कोशिशें चल रही हैं, जिनमें से एक है सरकार और राष्ट्रपति पर दबाव डालना।

उन्होंने दोबारा कहा कि अमेरिका जब अपनी नीतियों की विफलता महसूस करता है, तो बातचीत और समझौतों की आड़ लेता है। ग़ज़्ज़ा के हालात में वह हमास को झुकाने में नाकाम रहा, और यह सब इज़राइल को मुश्किल से निकालने की योजना थी, जिसमें वह खुद फँस चुका है।

हुज्‍जतुल इस्लाम मुतहर खू ने ट्रम्प द्वारा चलाए गए प्रचार और धोखे की रणनीति के पीछे के कारणों पर रोशनी डालते हुए कहा कि ट्रम्प “नया मध्य पूर्व” बनाने की कोशिश कर रहा है — जैसा कि अमेरिका के पहले के राष्ट्रपति भी करते आए थे। फर्क सिर्फ़ इतना है कि वह इसे ज़्यादा लापरवाही और ज्यादा जंगजुई अंदाज़ में आगे बढ़ा रहा है। इसी कारण उसने ग़ज़्ज़ा और इस्लामी गणराज्य ईरान दोनों के खिलाफ जंग छेड़ दी, ताकि यह दिखाए कि "ईरान को निशाना बनाकर उसने फिलिस्तीन का मसला हल कर दिया" और जनता के ज़ेहन में यह धारणा बैठा दे कि "उसने इस पूरे इलाके को पर शांत बना दिया है"।

 

रसूल(स.) के बाद धर्म के सर्वोच्च अधिकारी का पद अल्लाह ने अहलेबैत को ही दिया। इतिहास का कोई पन्ना अहलेबैत में से किसी को कोई ग़लत क़दम उठाते हुए नहीं दिखाता जो कि धर्म के सर्वोच्च अधिकारी की पहचान है। यहाँ तक कि जो राशिदून खलीफा हुए हैं उन्होंने भी धर्म से सम्बंधित मामलों में अहलेबैत व खासतौर से हज़रत अली(अ.) से ही मदद ली।

अगर ग़ौर करें रसूल(स.) के बाद हज़रत अली की जिंदगी पर तो उसके दो हिस्से हमारे सामने ज़ाहिर होते हैं। पहला हिस्सा, जबकि वे शासक नहीं थे, और दूसरा हिस्सा जबकि वे शासक बन चुके थे। दोनों ही हिस्सों में हमें उनकी जिंदगी नमूनये अमल नज़र आती है। बहादुरी व ज्ञान में वे सर्वश्रेष्ठ थे, सच्चे व न्यायप्रिय थे, कभी कोई गुनाह उनसे सरज़द नहीं हुआ और कुरआन की इस आयत पर पूरी तरह खरे उतरते थे :
(2 : 247) और उनके नबी ने उनसे कहा कि बेशक अल्लाह ने तुम्हारी दरख्वास्त के (मुताबिक़) तालूत को तुम्हारा बादशाह मुक़र्रर किया (तब) कहने लगे उस की हुकूमत हम पर क्यों कर हो सकती है हालांकि सल्तनत के हक़दार उससे ज़यादा तो हम हैं क्योंकि उसे तो माल के एतबार से भी खुशहाली तक नसीब नहीं (नबी ने) कहा अल्लाह ने उसे तुम पर फज़ीलत दी है और माल में न सही मगर इल्म और जिस्म की ताक़त तो उस को अल्लाह ने ज़यादा अता की है.

जहाँ तक बहादुरी की बात है तो हज़रत अली(अ.) ने रसूल(स.) के समय में तमाम इस्लामी जंगों में आगे बढ़कर शुजाअत के जौहर दिखाये। खैबर की जंग में किले का दरवाज़ा एक हाथ से उखाड़ने का वर्णन मशहूर खोजकर्ता रिप्ले ने अपनी किताब 'बिलीव इट आर नाट' में किया है। वह कभी गुस्से व तैश में कोई निर्णय नहीं लेते थे। न पीछे से वार करते थे और न कभी भागते हुए दुश्मन का पीछा करते थे। यहाँ तक कि जब उनकी शहादत हुई तो भी अपनी वसीयत में अपने मुजरिम के लिये उन्होंने कहा कि उसे उतनी ही सज़ा दी जाये जितना कि उसका जुर्म है।

17 मार्च 600 ई. (13 रजब 24 हि.पू.) को अली(अ.) का जन्म मुसलमानों के तीर्थ स्थल काबे के अन्दर हुआ. ऐतिहासिक दृष्टि से हज़रत अली(अ.) एकमात्र व्यक्ति हैं जिनका जन्म काबे के अन्दर हुआ. जब पैगम्बर मुहम्मद (स.) ने इस्लाम का सन्देश दिया तो लब्बैक कहने वाले अली(अ.) पहले व्यक्ति थे.
हज़रत अली(अ.) में न्याय करने की क्षमता गज़ब की थी।
उनका एक मशहूर फैसला ये है जब दो औरतें एक बच्चे को लिये हुए आयीं। दोनों दावा कर रही थीं कि वह बच्चा उसका है। हज़रत अली(अ.) ने अपने नौकर को हुक्म दिया कि बच्चे के दो टुकड़े करके दोनों को आधा आधा दे दिया जाये। ये सुनकर उनमें से एक रोने लगी और कहने लगी कि बच्चा दूसरी को सौंप दिया जाये। हज़रत अली ने फैसला दिया कि असली माँ वही है क्योंकि वह अपने बच्चे को मरते हुए नहीं देख सकती।
एक अन्य मशहूर फैसले में एक लड़का हज़रत अली(अ.) के पास आया जिसका बाप दो दोस्तों के साथ बिज़नेस के सिलसिले में गया था। वे दोनों जब लौटे तो उसका बाप साथ में नहीं था। उन्होंने बताया कि वह रास्ते में बीमार होकर खत्म हो गया है और उन्होंने उसे दफ्न कर दिया है। जब उस लड़के ने अपने बाप के माल के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि व्यापार में घाटे की वजह से कोई माल भी नहीं बचा। उस लड़के को यकीन था कि वो लोग झूठ बोल रहे हैं लेकिन उसके पास अपनी बात को साबित करने के लिये कोई सुबूत नहीं था। हज़रत अली(अ.) ने दोनों आदमियों को बुलवाया और उन्हें मस्जिद के अलग अलग खंभों से दूर दूर बंधवा दिया। फिर उन्होंने मजमे को इकटठा किया और कहा अगर मैं नारे तक़बीर कहूं तो तुम लोग भी दोहराना। फिर वे मजमे के साथ पहले व्यक्ति के पास पहुंचे और कहा कि तुम मुझे बताओ कि उस लड़के का बाप कहां पर और किस बीमारी में मरा। उसे दवा कौन सी दी गयी। मरने के बाद उसे किसने गुस्ल व कफन दिया और कब्र में किसने उतारा।
उस व्यक्ति ने जब वह सारी बातें बतायीं तो हज़रत अली ने ज़ोर से नारे तकबीर लगाया। पूरे मजमे ने उनका अनुसरण किया। फिर हज़रत अली दूसरे व्यक्ति के पास पहुंचे तो उसने नारे की आवाज़ सुनकर समझा कि पहले व्यक्ति ने सच उगल दिया है। नतीजे में उसने रोते गिड़गिड़ाते सच उगल दिया कि दोनों ने मिलकर उस लड़के के बाप का क़त्ल कर दिया है और सारा माल हड़प लिया है। हज़रत अली(अ.) ने माल बरामद कराया और उन्हें सज़ा सुनाई ।
इस तरह के बेशुमार फैसले हज़रत अली(अ.) ने किये और पीडि़तों को न्याय दिया।
हज़रत अली(अ.) मुफ्तखोरी व आलस्य से सख्त नफरत करते थे। उन्होंने अपने बेटे इमाम हसन (अ.) से फरमाया, 'रोजी कमाने में दौड़ धूप करो और दूसरों के खजांची न बनो।'
मज़दूरों से कैसा सुलूक करना चाहिए इसके लिये हज़रत अली (अ.) का मशहूर जुमला है, 'मज़दूरों का पसीना सूखने से पहले उनकी मज़दूरी दे दो।'
हज़रत अली(अ.) ने जब मालिके अश्तर को मिस्र का गवर्नर बनाया तो उन्हें इस तरंह के आदेश दिये 'लगान (टैक्स) के मामले में लगान अदा करने वालों का फायदा नजर में रखना क्योंकि बाज और बाजगुजारों (टैक्स और टैक्सपेयर्स) की बदौलत ही दूसरों के हालात दुरुस्त किये जा सकते हैं। सब इसी खिराज और खिराज देने वालों (टैक्स और टैक्सपेयर्स) के सहारे पर जीते हैं। और खिराज को जमा करने से ज्यादा जमीन की आबादी का ख्याल रखना क्योंकि खिराज भी जमीन की आबादी ही से हासिल हो सकता है और जो आबाद किये बिना खिराज (रिवार्ड) चाहता है वह मुल्क की बरबादी और बंदगाने खुदा की तबाही का सामान करता है। और उस की हुकूमत थोड़े दिनों से ज्यादा नहीं रह सकती।
मुसीबत में लगान की कमी या माफी, व्यापारियों और उधोगपतियों का ख्याल व उनके साथ अच्छा बर्ताव, लेकिन जमाखोरों और मुनाफाखोरों के साथ सख्त कारवाई की बात इस खत में मौजूद है। यह लम्बा खत इस्लामी संविधान का पूरा नमूना पेश करता है। और किताब नहजुल बलागाह में खत नं - 53 के रूप में मौजूद है। यू.एन. सेक्रेटरी कोफी अन्नान के सुझाव पर इस खत को यू.एन. के वैशिवक संविधान में सन्दर्भ के तौर पर शामिल किया गया है।
हजरत अली (अ.) का शौक था बाग़ों को लगाना व कुएं खोदना। यहाँ तक कि जब उन्होंने इस्लामी खलीफा का ओहदा संभाला तो बागों व खेतों में मजदूरी करने का उनका अमल जारी रहा। उन्होंने अपने दम पर अनेक रेगिस्तानी इलाकों को नखिलस्तान में बदल दिया था। मदीने के आसपास उनके लगाये गये बाग़ात आज भी देखे जा सकते हैं।
तमाम अंबिया की तरह हज़रत अली ने मोजिज़ात भी दिखाये हैं। सूरज को पलटाना, मुर्दे को जिंदा करना, जन्मजात अंधे को दृष्टि देना वगैरा उनके मशहूर मोजिज़ात हैं।
ज्ञान के क्षेत्र में भी हज़रत अली सर्वश्रेष्ठ थे ।
यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि हज़रत अली(अ.) एक महान वैज्ञानिक भी थे और एक तरीके से उन्हें पहला मुस्लिम वैज्ञानिक कहा जा सकता है.
हज़रत अली(अ.) ने वैज्ञानिक जानकारियों को बहुत ही रोचक ढंग से आम आदमी तक पहुँचाया. एक प्रश्नकर्ता ने उनसे सूर्य की पृथ्वी से दूरी पूछी तो जवाब में बताया कि एक अरबी घोड़ा पांच सौ सालों में जितनी दूरी तय करेगा वही सूर्य की पृथ्वी से दूरी है. उनके इस कथन के चौदह सौ सालों बाद वैज्ञानिकों ने जब यह दूरी नापी तो 149600000 किलोमीटर पाई गई. अरबी घोडे की औसत चाल 35 किमी/घंटा होती है और इससे यही दूरी निकलती है. इसी तरह एक बार अंडे देने वाले और बच्चे देने वाले जानवरों में फर्क इस तरह बताया कि जिनके कान बाहर की तरफ होते हैं वे बच्चे देते हैं और जिनके कान अन्दर की तरफ होते हैं वे अंडे देते हैं.
अली(अ.) ने इस्लामिक थियोलोजी को तार्किक आधार दिया। कुरान को सबसे पहले कलमबद्ध करने वाले भी अली ही हैं. बहुत सी किताबों के लेखक हज़रत अली(अ.) हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं
1. किताबे अली - इसमें कुरआन के साठ उलूम का जि़क्र है।
2. जफ्रो जामा (इस्लामिक न्यूमरोलोजी पर आधारित)- इसके बारे में कहा जाता है कि इसमें गणितीय फार्मूलों के द्वारा कुरान मजीद का असली मतलब बताया गया है. तथा क़यामत तक की समस्त घटनाओं की भविष्यवाणी की गई है. यह किताब अब अप्राप्य है.
3. किताब फी अब्वाबुल फिक़ा
4. किताब फी ज़कातुल्नाम
5. सहीफे अलफरायज़
6. सहीफे उलूविया   
इसके अलावा हज़रत अली(अ.) के खुत्बों (भाषणों) के दो मशहूर संग्रह भी उपलब्ध हैं। उनमें से एक का नाम नहजुल बलाग़ा व दूसरे का नाम नहजुल असरार है। इन खुत्बों में भी बहुत से वैज्ञानिक तथ्यों का वर्णन है.
माना जाता है की जीवों में कोशिका (cell) की खोज 17 वीं शताब्दी में लीवेन हुक ने की. लेकिन नहजुल बलाग का निम्न कथन ज़ाहिर करता है कि अली(अ.) को कोशिका की जानकारी थी. ''जिस्म के हर हिस्से में बहुत से अंग होते हैं. जिनकी रचना उपयुक्त और उपयोगी है. सभी को ज़रूरतें पूरी करने वाले शरीर दिए गए हैं. सभी को रूहानी ताक़त हासिल करने के लिये दिल दिये गये हैं.  सभी को काम सौंपे गए हैं और उनको एक छोटी सी उम्र दी गई है. ये अंग पैदा होते हैं और अपनी उम्र पूरी करने के बाद मर जाते हैं. (खुत्बा-81) स्पष्ट है कि 'अंग से अली का मतलब कोशिका ही था.'
हज़रत अली सितारों द्वारा भविष्य जानने के खिलाफ थे, लेकिन खगोलशास्त्र सीखने के हामी थे, उनके शब्दों में ''ज्योतिष सीखने से परहेज़ करो, हाँ इतना ज़रूर सीखो कि ज़मीन और समुद्र में रास्ते मालूम कर सको. (77वाँ खुत्बा - नहजुल बलागा)
इसी किताब में दूसरी जगह पर यह कथन काफी कुछ आइन्स्टीन के सापेक्षकता सिद्धांत से मेल खाता है, ''उसने मख्लूकों को बनाया और उन्हें उनके वक़्त के हवाले किया. (खुत्बा - 01)
चिकित्सा का बुनियादी उसूल बताते हुए कहा, ''बीमारी में जब तक हिम्मत साथ दे, चलते फिरते रहो."
ज्ञान प्राप्त करने के लिए अली ने अत्यधिक जोर दिया, उनके शब्दों में, ''ज्ञान की तरफ बढ़ो, इससे पहले कि उसका हरा भरा मैदान खुश्क हो जाए." इमाम अली(अ.) दुनिया के एकमात्र व्यक्ति हैं जिन्होंने दावा किया, "मुझ से जो कुछ पूछना है पूछ लो." और वे अपने इस दावे में कभी गलत सिद्ध नहीं हुए.     
इस तरह निर्विवाद रूप से हम पैगम्बर मोहम्मद(स.) के बाद हज़रत अली(अ.) को इस्लाम का सर्वोच्च अधिकारी कह सकते हैं।

 ईरान के हौज़ा ए इल्मिया के मशहूर कुरआन के मुफ़स्सिर आयतुल्लाहिल उज़मा जावादी आमुली ने तालिबे इल्म और बुद्धिजीवियों को सलाह देते हुए कहा कि अगर कोई शख्स इल्म हासिल करे लेकिन दूसरों को पढ़ाने वाला अच्छा शिक्षक न बन सके तो उसने यक़ीनन अपनी उम्र बर्बाद कर दी।

ईरान के हौज़ा ए इल्मिया के मशहूर कुरआन के मुफ़स्सिर और अहलेबैत के फक़ीह आयतुल्लाहिल उज़मा जावादी आमुली ने तालिबे इल्म और बुद्धिजीवियों को सलाह देते हुए फरमाया कि अगर कोई शख्स इल्म हासिल करे मगर दूसरों को तालीम देने वाला अच्छा मुदर्रिस व मुआल्लिम न बन सके तो यक़ीनन उसने अपनी उम्र जाया कर दी क्योंकि यह दरुस दरअस्ल अमानते इलाही हैं।

उन्होंने कहा,हमें सिखाया गया है कि दरस को अमानत समझकर हासिल करें पेश मुताला करें, मुबाहिसा करें, सवालात उठाएं, नोट्स तैयार करें और खुद एक बेहतरीन उस्ताद बनें। अगर कोई शख्स एक किताब से दूसरी किताब की तरफ बढ़ जाए लेकिन पहली किताब को दूसरों को सिखाने के काबिल न हो तो उसे यक़ीन रखना चाहिए कि उसने उम्र बर्बाद कर दी।

आयतुल्लाह जावादी आमोली ने आगे फरमाया कि जो उलेमा व असातिजा हमारे लिए किताबें लिख गए या हमें पढ़ाया, उन्होंने यह सब कुछ ख़ालिसतन ख़ुदा के लिए किया, इसलिए हमारी भी ज़िम्मेदारी है कि हम इन उलूम को अमानत समझकर आने वाली नस्लों तक पहुंचाएं।

 

कारगिल में कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस और लद्दाख एपेक्स बॉडी द्वारा एक शांतिपूर्ण मौन मार्च निकाला गया, जिसमें बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया। प्रदर्शनकारियों ने लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने इसे संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने और सोनम वांगचुक सहित सभी गिरफ़्तार लोगों को रिहा करने की मांग की। इस मार्च से पहले प्रशासन ने सुरक्षा कड़ी कर दी थी और मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी थीं।

कारगिल में कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस और लद्दाख एपेक्स बॉडी द्वारा एक शांतिपूर्ण मौन मार्च निकाला गया, जिसमें बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया। प्रदर्शनकारियों ने लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने इसे संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने और सोनम वांगचुक सहित सभी गिरफ़्तार लोगों को रिहा करने की मांग की। इस मार्च से पहले प्रशासन ने सुरक्षा कड़ी कर दी थी और मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी थीं।

इस मौन मार्च में स्थानीय नागरिकों ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया। मार्च का उद्देश्य लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाना इसे भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करना और मशहूर पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक सहित सभी गिरफ़्तार लोगों की तत्काल रिहाई की मांग करना था।

मार्च के दौरान सभी लोगों ने शांतिपूर्वक अपनी मांगें रखीं और सरकार से लद्दाख के लोगों के संवैधानिक और लोकतांत्रिक अधिकारों की बहाली की मांग की। स्थानीय नेताओं ने कहा कि लद्दाख के लोग अपनी पहचान, रोज़गार के संरक्षण और स्थानीय स्वशासन के लिए प्रतिबद्ध हैं।

प्रशासन की ओर से मार्च से पहले ही कड़े सुरक्षा इंतज़ाम कर लिए गए थे। संभावित विरोध को देखते हुए अधिकारियों ने पिछली रात से ही मोबाइल इंटरनेट सेवाएं रोक दी थीं, ताकि किसी भी तरह की अप्रिय घटना को टाला जा सके।

गौरतलब है कि लद्दाख के लोग पिछले कई महीनों से अपने संवैधानिक अधिकारों और छठी अनुसूची के तहत विशेष संरक्षण की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि साल 2019 में जम्मू-कश्मीर राज्य के विभाजन के बाद लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने से स्थानीय लोगों के अधिकार सीमित हो गए हैं, जिन्हें वे फिर से हासिल करना चाहते हैं।

 

एक रिवायत में, पैग़म्बर मुहम्मद (स) ने फ़रमाया है कि लोगों की गलतियों को क्षमा करना जहन्नम के अज़ाब से नेजात का ज़रिया है।

निम्नलिखित रिवायत "तंबीह अल-ख्वातिर" पुस्तक से ली गई है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:

قال رسول اللہ صلى ‏الله ‏عليه ‏و‏آله:

تَجاوَزوا عَن ذُنوبِ النّاسِ يَدفَعِ اللّهُ عَنكُم بِذلكَ عَذابَ النّارِ.

अल्लाह के रसूल (स) ने फ़रमाया:

लोगों के गुनाहों को क्षमा कर दो, उसके बदले मे अल्लाह तुम से जहन्नम के अज़ाब को दूर कर देगा।

तंबीह अल-ख्वातिर, खंड 2, पृष्ठ 120