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विश्व क़ुद्स दिवस पर भारत के अनेक शहरों में इस्राईल के ख़िलाफ़ रैलियाँ निकलीं
विश्व क़ुद्स दिवस के अवसर पर राजधानी दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, हैदराबाद, लखनउ, श्रीनगर के अनेक ज़िलों और कर्गिल में मुसलमानों ने रैलियाँ निकालीं और विरोध प्रदर्शन किए जिसमें हज़ारों की संख्या में लोगों ने भाग लिया। मुसलमानों ने रैलियों व प्रदर्शनों में भाग लेकर अलक़ुद्स पर ज़ायोनी शासन के अतिग्रहण की भर्त्सना की और फ़िलिस्तीनियों के प्रति एकता का प्रदर्शन किया।
दिल्ली से संवाददाता के अनुसार, विश्व क़ुद्स दिवस पर दिल्ली के जंतर मंतर पर मुसलमानों ने विशाल विरोध प्रदर्शन करके ज़ायोनी शासन की बर्बरतपूर्ण नीतियों की आलोचना की, मुसलमानों के पहले क़िबले मस्जिदुल अक़सा की आज़ादी की मांग की और फ़िलिस्तीनियों के प्रति समरस्ता प्रकट की। इस रैली में विभिन्न धर्मों व संप्रदायों के नेताओं व धर्मगुरुओं ने भी भाग लिया।
उधर लखनऊ में विश्व क़ुद्स दिवस के अवसर पर ऐतिहासिक आसेफ़ी मस्जिद में जुमे की नमाज़ के बाद इस मस्जिद से रूमी गेट तक रैली निकाली गयी जिसमें हज़ारों की संख्या में लोगों ने भाग लिया। इस रैली को वरिष्ठ शीया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जवाद ने संबोधित किया।
इसी प्रकार भारत के महानगरों मुंबई, चेन्नई, कोलकाता और हैदराबाद में भी विश्व क़ुद्स दिवस के अवसर पर प्रदर्शन कर लोगों ने क़िबलए अव्वल मस्जिदुल अक़्सा सहित अलक़ुद्स की आज़ादी की मांग की।
दूसरी ओर भारत प्रशासित कश्मीर के अनेक शहरों व क़स्बों में विश्व क़ुद्स दिवस की रैली निकाली गयी। श्रीगनर की जामा मस्जिद में मीर वाएज़ उमर फ़ारूक़ ने लोगों को संबोधित किया। श्रीनगर के विभिन्न इलाक़ों में दिन भर रैलियों का क्रम जारी रहा।
कश्मीर के बडगाम, कुलगाम, बांडीपूरा, गांदरबल, बारामोला और पुलवामा ज़िलों में लोगों ने विश्व क़ुद्स दिवस की रैली में व्यापक स्तर पर भाग लिया।
उधर कर्गिल में विश्व क़ुद्स दिवस की रैली में लाख से ज़्यादा लोगों ने भाग लेकर फ़िलिस्तीन पर इस्राईल के अतिग्रहण की समाप्ति और मस्जिदुल अक़्सा की आज़ादी की मांग की।
ईरान, भारत का तीसरा बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता
ईरान प्रतिदिन भारत को पांच लाख बैरल तेल की आपूर्ति करके सऊदी अरब और इराक़ के बाद कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है।
तेल व ऊर्जा सूचना नैटवर्क के अनुसार वर्ष 2016 की पहली तिमाही में भारत को निर्यात किए गए कच्चे तेल की मात्रा 43 लाख 50 हज़ार बैरल प्रतिदिन रही है जो पिछले साल की पहली तिमाही की तुलना में लगभग 5 लाख बैरल अधिक है। आंकड़ों के अनुसार भारत को कच्चा तेल निर्यात करने वालों में सऊदी अरब सबसे आगे है जो प्रतिदिन साढ़े आठ लाख बैरल प्रतिदिन है। इराक़, भारत को प्रतिदिन छः लाख 58 हज़ार बैरल प्रतिदिन कच्चा तेल निर्यात करता है।
ईरान ने मार्च 2016 में भारत को प्रतिदिन पांच लाख पांच हज़ार बैरल कच्चा तेल निर्यात किया है जो उससे पहले महीने की तुलना में दो लाख 90 हज़ार बैरल अधिक है। भारत की एस्सार कंपनी मार्च में ईरान के कच्चे तेल की सबसे बड़ी ग्राहक थी जिसने प्रतिदिन दो लाख 7 हज़ार बैरल कच्चा तेल आयात किया है जिसके बाद मेंगलोर और रिलायंस दूसरे और तीसरे नंबर पर हैं।
मस्जिदुल अक़सा में झड़पें 12 रोज़ेदार घायल
मस्जिदुल अक़सार पर इस्राईली पुलिस के संरक्षण में ज़ायोनी कालोनी वासियों के हमले में कम से कम 12 फ़िलिस्तीनी रोज़ेदार घायल हो गए।
अलआलम टीवी चैनेल की रिपोर्ट के अनुसार मस्जिदुल अक़सा के मुतवल्ली शेख उमर अलकिसवान ने बताया कि ज़ायोनी कालोनी वासियों ने इस्राईली सैनिकों के संरक्षण में मस्जिदुल अक़सा पर हमला किया जिसके कारण 12 फ़िलिस्तीनी रोज़ेदार घायल हो गए।
फ़िलिस्तीन की रेड क्रीसेंट ने भी इस हमले की पुष्टि करते हुए 7 घायलोे के अस्पताल भेजे जाने की सूचना दी है। इस पहले भी मस्जिदुल अक़सा पर ज़ायोनियों के आक्रमण में 24 लोग घायल हुए थे।
मस्जिदुल अक़सा के एक अन्य अधिकारी शेख़ुलख़तीब ने बताया है कि इस्राईली पुलिस ने सुनियोजित कार्यक्रम के अन्तर्गत ज़ायोनियों को खुलकर छूट दे रखी है और यही कारण है कि एेसे समय में कि जब फ़िलिस्तीनी मस्जिदुल अक़सा में एतेकाफ़ कर रहे थे, ज़ायोनी कालोनीवासियों ने उनकपर आक्रमण कर दिया।
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम का जन्म दिवस
रमज़ान का पवित्र महीना अपनी पूरी अनुकंपाओं व अध्यात्म के साथ जारी है। इस पवित्र महीने में रोज़ेदार अपने रोज़ेदार भाईयों और बहनों को इफ़्तार का निमंत्रण देते हैं और उनके स्वागत के लिए दस्तरख़्वान पर विभिन्न प्रकार के पकवान सजाते हैं।
कुछ लोग मस्जिदों में ईश्वर के बंदों के लिए इफ़्तार भेजते हैं ताकि अधिक से अधिक लोगों के इफ़्तार का पुण्य उन्हें प्राप्त हो। जब दस्तरख़्वान की बात निकलती है तो इतिहास हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम के दस्तरख़्वान की याद दिलाता है। रमज़ान की पंद्रहवीं तारीख़ को लोग हज़रत इमाम हसन अलैहिस्लाम का अनुसरण करते हुए अपने रोज़े व उपासनाओं की शोभा वंचितों और अनाथों की सहायता करके बढ़ाते हैं और इस्लाम की इस महान हस्ती के जन्म दिन को बड़े ही उत्साह व हर्षोल्लास से मनाते हैं।
भलाई करना, हज़रत इमाम हसन अलैहिस्लाम के व्यक्तित्व की विशेष पहचान है। हज़रत इमाम हसन वंचितों और पीड़ितों की आशा की किरण थे। कभी कभी ऐसा होता था कि मांगने वाले ने अभी अपनी मांग बयान ही नहीं की कि उसकी मांग पूरी कर देते थे और उसे इस बात की अनुमति नहीं देते थे कि वह व्यक्ति सवाल करके स्वयं को लज्जित करे। कभी ऐसा होता था कि वंचित को एक साथ इतना पैसा दे देते थे कि वह अपने जीवन चक्र को अच्छे ढंग से चला सके और किसी के आगे हाथ न फैलाए। इसीलिए उन्हें करीमे अहलेबैत अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम के परिजन के दानी की उपाधि दी गयी।
सुन्नी मुसलमानों के प्रसिद्ध इतिहासकार सियुती लिखते हैं कि हसन इब्ने अली बहुत अधिक नैतिकता और इंसानी गुणों के स्वामी थे, वह महान हस्ती, विनम्र, सम्मानीय, सुशील, दानी, क्षमा करने वाले और लोगों के मध्य पसंदीदा व्यक्ति थे।
पवित्र रमज़ान की पंद्रहवीं तारीख़, सन तीन हिजरी क़मरी को पैग़म्बरे इस्लाम के बाग़ में एक सुन्दर फूल खिला। यह पैग़म्बरे इस्लाम का पहला नवासा था जिसके आने से पूरी दुनिया प्रकाशमान हो गयी और लोग पैग़म्बरे इस्लाम के घर उनको नवासे की बधाई देने के लिए दौड़ पड़े। रेडियो तेहरान भी अपने श्रोताओ की सेवा में इस पावन अवसर पर हार्दिक बधाई प्रस्तुत करता है।
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम के जन्म के बाद हज़रत फ़ातेमा ने हज़रत अली से कहा कि नवजात का नाम रख दें। हज़रत अली कहते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम के रहते हुए मैं अपने पुत्र का नाम नहीं रख सकता। उसके बाद वह अपने पुत्र को कपड़े में लपेट कर पैग़म्बरे इस्लाम के पास ले गये । पैग़म्बरे इस्लाम ने बड़े ही प्रेम से नवजात को अपनी गोद में लिया और उसके दाहिने कान में अज़ान दी और बायें कान में अक़ामत कही और उसके बाद कहा कि ईश्वर की ओर से जिब्राइल आये थे और सलाम व पुत्र के जन्म की बधाई देने के बाद कहा कि अली का स्थान आप के निकट वैसा ही है जैसा कि मूसा के निकट उनके भाई हारून का था, इसीलिए अली के बेटे का नाम हारून के बेटे के नाम पर रखिए। मैंने पूछा हारून के बेटे का नाम क्या था? जिब्राइल ने कहा शब्बर, मैंने कहा कि हमारी भाषा अरबी है, कहा अरबी में हसन है।
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम का पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों में बहुत उच्च स्थान है। उनके नाना पैग़म्बरे इस्लाम, उनके पिता हज़रत अली और उनकी माता हज़रत फ़ातेमा हैं। उनका पालन पोषण पैग़म्बरे इस्लाम और हज़रत अली की छत्रछाया में हुआ। हज़रत इमाम हसन ने अपने जीवन के सात मूल्यवान वर्ष पैग़म्बरे इस्लाम की छत्रछाया में गुज़ारे। पैग़म्बरे इस्लाम अपने नवासे को बहुत अधिक चाहते थे और उन्हें अपने कंधे पर बिठाते थे और कहते थे कि मेरे ईश्वर मैं इनसे स्नेह करता हूं तू भी इनसे स्नेह कर।
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के बेटों को पैग़म्बरे इस्लाम बहुत अधिक चाहते थे। एक दिन हज़रत फ़ातेमा ज़हरा अपने दोनों बेटों इमाम हसन और इमाम हुसैन के साथ पैग़म्बरे इस्लाम से मिलने आईं और कहा कि पिता जी यह दोनों आपके पुत्र हैं, इनके लिए कुछ चीज़ें यागदार कर दें ताकि हमेशा आपको याद रहे। पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा इमाम हसन को मेरा रोब व वीरता मिले और इमाम हुसैन को मेरी क्षमाशीलता और वीरता मिले।
इमाम हसन इतने महान थे कि पैग़म्बरे इस्लाम ने उनकी अल्पायु के बावजूद अपने कुछ समझौतों में उनको गवाह बनाया। पैग़म्बरे इस्लाम जब ईश्वर के आदेश पर नजरान के निवासियों से मुबाहेले के लिए निकले तो उन्होंने ईश्वर के आदेश से इमाम हसन, इमाम हुसैन, हज़रत अली और हज़रत फ़ातेमा को अपने साथ लिया और उसी समय उनकी पवित्रता का गुणगान करते हुए आयते ततहीर उतरी।
हज़रत इमाम हसन अपनी पूरी क्षमता के साथ ईश्वर की प्रसन्नता और उसके मार्ग में भले काम करते थे और ईश्वर के मार्ग में बहुत अधिक धन ख़र्च करते थे। इतिहासकारों और बुद्धिजीवियों ने उनकी गौरवपूर्ण जीवनी में उनकी दानशीलता और वंचित लोगों का ध्यान रखने को अपनी किताबों में वर्णन किया है। एक दिन एक वंचित व्यक्ति इमाम हसन के पास आया किन्तु लज्जा के कारण वह अपने मन की बात उनसे नहीं कह सका। इमाम हसन ने उससे कहा कि अपनी मांग को लिखकर मुझे बताओ, उस व्यक्ति ने अपने दिल की बात लिख दी। जब इमाम हसन ने उसका पत्र पढ़ा तो उन्होंने उसकी मांग का दोगुना उसे प्रदान किया। वहां बैठे एक व्यक्ति ने उनसे कहा कि हे पैग़म्बरे इस्लाम के पुत्र, यह पत्र उसके लिए कितना विभूतियों वाला था। इमाम हसन ने उसके जवाब में कहा उसकी विभूतियां हमारे लिए अधिक थी क्योंकि इसने मुझे भलेकर्म करने वालों में शामिल कर दिया।
इमाम हसन ने अपने पूरे जीवन भर लोगों का मार्गदर्शन किया और लोगों के साथ उनके व्यवहार यहां तक कि शत्रुओं के साथ उनके व्यवहार के कारण लोग उनकी ओर खिंचे चले आते थे। वह लोगों को निष्ठापूर्वक ईश्वर की उपासना करने और पवित्र रहने का निमंत्रण देते थे और स्वयं भी नमाज़ के समय बेहतरीन वस्त्र पहनते थे। किसी ने इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि ईश्वर सुन्दर है और उसे सुन्दरता बहुत पसंद है, मैं इसीलिए ईश्वर के दरबार में उपस्थित होने के समय मैं स्वयं को संवारता हूं, ईश्वर ने आदेश दिया है कि अपनी सुन्दरता के साथ और सज धज कर मस्जिद में उपस्थित हो।
लोगों के मार्गदर्शन के समय इमाम हसन का धैर्य और उनकी क्षमाशीलता, उनकी एक अन्य विशेषता थी। इसी धैर्य और क्षमाशीलता के कारण उन्होंने तत्कालीन सरकार के कई षड्यंत्रों को विफल बना दिया और मुआविया के साथ शांति समझौता करके वास्तव में एक अन्य शैली द्वारा आत्याचारों से संघर्ष का ध्वज लहरा दिया। इतिहासकार लिखते हैं कि एक दिन इमाम हसन अलैहिस्सलाम घोड़े पर सवार होकर कहीं जा रहे थे । वर्तमान सीरिया का रहने वाला एक व्यक्ति उनके रास्ते में आ गया और उन्हें बुरा भला कहने लगा। इमाम हसन ने उस व्यक्ति को सलाम किया और मुस्कुरा कर कहा कि मुझे लगता है कि तू यात्री है, अगर तू मुझसे कुछ चाहता है तो मैं तुझे प्रदान करूं। यदि तू भूखा है तो तुझे पेटभर खाना दूं, यदि तेरे पास कपड़े नहीं हैं तो मैं तुझे बेहतरीन कपड़े दूं, यदि तुझे किसी चीज़ की आवश्यकता तो मैं तेरी आवश्यकता को पूरा करूं। आओ मेरे मेहमान बनो। जब तक तुम यहां पर हो, मरे मेहमान हो, तत्कालीन सीरिया के उस व्यक्ति ने जब यह सब सुना, वह इमाम हसन के पैरों पर गिर गया और रोने लगा और कहा कि मैं गवाही देता हूं कि आप धरती पर ईश्वर के प्रतिनिधि हैं और ईश्वर भलिभांति जानता है कि यह स्थान किसे प्रदान किया जाए। मैं इससे पहले तक आपका और आपके पिता का बहुत बड़ा शत्रु था किन्तु अब मैं दुनिया में सबसे अधिक आपको चाहता हूं। वह व्यक्ति उस दिन के बाद से इमाम हसन अलैहिस्सलाम के अनुयायियों में हो गया और जब तक वह मदीने में रहा, इमाम हसन का मेहमान था।
इमाम हसन अलैहिस्सलाम को सभी लोग बहुत पसंद करते थे, सभी उनका सम्मान करते थे। उनकी लोकप्रियता इन सीमा तक थी कि कभी मदीने शहर के मुख्य द्वार पर उनके लिए चटाई बिछाई जाती थी और वह उस चटाई पर बैठककर लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करते थे और उनकी समस्याओं का समाधान करते थे।
वहां से जो भी गुज़रता था एक क्षण के लिए ठहर जाता था ताकि उनकी सुन्दर बातों को सुने और उनके प्रकाशमयी चेहरे को देखे और पैग़म्बरे इस्लाम के प्रकाशमयी चेहरा उनको याद आ जाए। जब वह बाज़ार निकलते थे तो बहुत अधिक लोग उनके इर्दगिर्द एकत्रित हो जाते थे और रास्ता बंद हो जाता था, और जैसे ही इमाम हसन का ध्यान इस ओर जाता था वह फ़ौरन ही उस स्थान से उठ जाते थे ताकि दूसरे लोगों के लिए रास्ता खुल जाए।
इमाम हसन अलैहिस्सलाम का कहना है कि ईश्वर के निकट सबसे उच्च स्थान उसका है जो सबसे अधिक लोगों के अधिकारों से अवगत हो, उनके अधिकारों को अदा करने में सबसे अधिक प्रयास करे, जो भी अपने धार्मिक भाइयों के सामने विनम्रता करे, ईश्वर उसे हज़रत अली का मित्र और उनके चाहने वालों में शामिल करता है।
दाइश को ईरान को हराने के लिए बनाया गया, वरिष्ठ नेता
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने शनिवार की शाम सन 1981 में तेहरान में आतंकवादी हमले में शहीद होने वालों और सीरिया में हज़रत ज़ैनब के रौज़े की सुरक्षा के दौरान अपनी जान देने वालों के परिजनों से भेंट की।
वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने बल दिया कि आतंकवादी गुट दाइश को इस्लामी गणतंत्र ईरान को पराजित करने के लिए बनाया गया, इराक़ और सीरिया ईरान को पटखनी देने की तैयारी थी लेकिन ईरान की ताक़त ने उन्हें ही पटखनी दे दी।
वरिष्ठ नेता ने इस भेंट में कहा कि वास्तव में ईरान के साथ असमान युद्ध में दुश्मन यह समझ ही नहीं पाते कि अल्लाह और उसकी राह में संघर्ष में ईमान में कितनी शक्ति है।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि जो पैगम्बरे इस्लाम (स) के परिजनों के लिए आगे क़दम बढ़ाता है वह वास्तव में अपने समाज और अपने नगर की रक्षा करता है और यह संघर्ष वास्तव में ईरान की रक्षा के लिए है।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि बहरैन में अत्याचारी व स्वार्थी अल्पसंख्यक, बहुसंख्यकों पर अत्याचार कर रहे हैं और अब तो उन्होंने ने वरिष्ठ धर्मगुरु शैख ईसा क़ासिम को भी निशाना बनाया है यह वास्तव में मूर्खता है।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि शैख ईसा क़ासिम हमेशा हिंसा व अतिवाद से रोका करते थे किंतु बहरैन के इन मूर्ख शासकों को यह नहीं समझ में आ रहा है कि शैख ईसा क़ासिम को रास्ते से हटाने का मतलब बहरैन के जोशीले युवाओं के सामने से रुकावट को ख़त्म करना है क्योंकि उनके बाद सरकार के खिलाफ आक्रोश में भरे इन युवाओं को कोई नहीं रोक पाएगा।
म्यांमार में बौद्ध चरमपंथियों का मुसलमानों के गांव पर हमला, मस्जिद का एक हिस्सा तबाह
इस तस्वीर में म्यांमार के राख़ीन प्रांत के सितवे में थेल चाउंग शरणार्थी कैंप में रोहिंग्या मुसलमान महिला और बच्चे दिखाई दे रहे हैं।
म्यांमार में लगभग 200 बौद्ध चरपमंथियों ने मुसलमानों के एक गांव पर हमला किया, जिसमें गांव में स्थित मस्जिद का एक भाग तबाह हो गया।
प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार, केन्द्रीय म्यांमार के बागो प्रांत के थूये था मेन नामक गांव में यह घटना गुरुवार को उस समय घटी जब इस गांव में मुसलमानों के लिए एक स्कूल के निर्माण के विषय पर ग्रामवासियों के बीच बहस हो गयी।
इस गांव के प्रधान ला टिंट ने कहा कि हिंसा उस समय भड़की जब एक मुसलमान मर्द और एक बौद्ध महिला के बीच बहस शुरु हुयी और लोग उससे लड़ने के लिए आ गए।
इस हिंसा के कारण इस गांव में रहने वाले मुसलमान पुलिस स्टेशन में पनाह लेने पर मजबूर हुए।
ग्राम प्रधान ने बताया कि उपद्रवियों ने मुसलमानों के क़ब्रिस्तान की चहारदीवारी को भी ध्वस्त कर दिया।
ग्राम प्रधान ने बताया कि उपद्रवियों के कारण लगभग 70 मुसलमान मर्द, औरत और बच्चे पुलिस स्टेशन में शरण लेने पर मजबूर हुए। उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि इस हिंसा में किसी व्यक्ति को गंभीर चोट नहीं आयी है और इलाक़े में शांति बहाल हो गयी है।
हालांकि इस गांव के एक स्थानीय मुसलमान निवासी का कहना है कि इस गांव में 150 लोगों पर आधारित मुसलमान समुदाय भय के माहौल में रह रहा है। टिन श्वे ऊ ने कहा कि हमें छिपना पड़ा क्योंकि कुछ लोग मुसलमानों को जान से मारने की धमकी दे रहे थे। टिन श्वे वू ने कहा, “इससे पहले ऐसे हालात कभी नहीं हुए। मुझमें अपने घर में रहने की हिम्मत नहीं है। अपने परिवार की सुरक्षा के लिए मैं एक दो हफ़्ते कहीं और रहना चाहता हूं।”
ज्ञात रहे हालिया हफ़्तों में म्यांमार में ख़ास तौर पर राख़ीन राज्य में बौद्ध चरमपिंयों के हमलों में बड़ी संख्या में रोहिंग्या मुसलमान हताहत जबकि हज़ारों बेघर हुए हैं।
साफ़्ट वार में शायरी की भूमिका
ईरान, भारत पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के कवियों और साहित्यकारों ने इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनई से मुलाक़ात की।
इस मुलाक़ात में इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने समकालीन विषयों और मुद्दों से संबंधित शायरी किए जाने और उसके प्रचार की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि अब अतीत की तुलना में फ़िलिस्तीन, यमन, बहरैन, पवित्र प्रतिरक्षा और शहीदों तथा शैख़ ज़कज़की के समान महान व साहिसी संघर्षकर्ताओं जैसे जीवंत विषयों के बारे में अधिक शेर कहे जा रहे हैं लेकिन खेद की बात है कि इन शेरों को ठीक प्रकार से प्रचारित नहीं किया जाता।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस समय समय लड़ाई बाहरी वर्चस्व को रोकने के लिए है और इस मैदान में इच्छशक्ति का मुक़ाबला हो रहा है और इस मुक़ाबले में एक महत्वपूर्ण माध्यम शायरी भी है। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता का यह बयान वास्तव में समकालीन विषयों और इतिहास को पेश करने में शेर की प्रभावी भूमिका का चिन्ह है। शेर अपने विशेष प्रवाह द्वारा बड़ी सूक्ष्मता और रोचकता के साथ विषयों की समीक्षा करता है और उसे सुनने वालों के मन मस्तिष्क में उतार देता है।
ईरान में शायरी का इतिहास बहुत पुराना है जबकि हालिया कुछ दशकों में इसका रुख़ समकालीन विषयों की ओर केन्द्रित रहा है। यह एक तथ्य है कि आज साफ़्ट वार जारी है जो हथियारों के बजाए विचारों और इरादों से लड़ी ज़ाती है और इस लड़ाई में शायरी की प्रभावी भूमिका हो सकती है।
इस समय पश्चिमी मीडिया प्रचारिक वातावरण पर छाया हुआ है। फ़िलिस्तीन, यमन बहरैन तथा अन्य क्षेत्रों में इंसान बेदर्दी से मारे जा रहे हैं यहां तक कि अमरीका और यूरोप के भीतर कालों पर खुले आम अत्याचार हो रहा है। शायरी के मध्यम से इन कड़वी सच्चाइयों को बयान किया जा सकता है। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता का कहना है कि संयुक्त समग्र कार्य योजना के संबंध में अमरीका के उल्लंघनों और विश्वासघात को भी शेर के रूप में बयान किया जा सकता है।
जेसीपीओए के संबंध में अमरीका की ग़द्दारी से जनमत को अवगत किया जाना चाहिए
ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई ने सोमवार की रात इमाम हसन (अ) के शुभ जन्म दिवस के अवसर पर आयोजित समारोह में कहा कि परमाणु समझौते के बारे में अमरीका की ग़द्दारी से जनमत को अवगत करवाया जाना चाहिए।
समारोह में मौजूद ईरान, पाकिस्तान, भारत और अफ़ग़ानिस्तान के कवियों एवं साहित्यकारों को संबोधित करते हुए वरिष्ठ नेता ने कहा कि जेसीपीओए को लेकर अमरीका के छल-कपट के बारे में कवि जीवित कविताएं लिख सकते हैं।
उन्होंने कहा कि राजनीतिज्ञों के अलावा कलाकारों विशेष रूप से कवियों को इस वास्तविकता को जनता तक पहुंचाना चाहिए।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता का कहना था कि आज एक अन्य प्रकार की सॉफ़्ट वार एवं राजनीतिक तथा सांस्कृतिक लड़ाई जारी है, इस दौरान शायरी को प्रभावशाली ढंग से अपनी ज़िम्मेदारी अदा करनी चाहिए।
आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई ने उल्लेख किया कि आज अतीत की तुलना में फ़िलिस्तीन, यमन, बहरैन, ईरान-इराक़ युद्ध, शहीदों और नाइजीरिया के बहादुर, दृढ़ संकल्पित एवं पीड़ित शेख़ ज़कज़की जैसे वीरों के बारे में जीवित एवं विशिष्ट शेर लिखे जा रहे हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश इन प्रभावशाली शेरों का अच्छी तरह प्रचार नहीं किया जा रहा है और इस संबंध में लापरवाही से काम लिया जा रहा है।
शिक्षकों और छात्रों से वरिष्ठ नेता की भेंट , तेज़ रफ्तार तरक्क़ी में युनिवर्सिटियों की भूमिका पर बल
इस्लमाी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने क्रांति के उच्च लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए यूनिवर्सिटियों को उस मिशन का आधार बताया है।
वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने शनिवार की शाम कुछ छात्रों, शिक्षकों और प्रोफेसरों से भेंट में कहा कि शिक्षा केन्द्रों और विश्वविद्यालयों में वैज्ञानिक विकास में तेज़ी, युवाओं में गौरवशाली इस्लामी-ईरानी पहचान का सशक्तिकरण, और युनिवर्सिटियों और छात्रों में क्रांतिकारी भावना, इस्लामी व्यवस्था को एक बड़ी वैज्ञानिक शक्ति और इस्लामी प्रजातंत्र के आदर्श में बदलने के लिए ज़रूरी शर्तों में से है।
वरिष्ठ नेता ने यह सवाल करते हुए कि बीस साल के बाद के ईरान को आप लोग कैसा देखते हैं? कहा कि अगर आप की नज़र में भावी ईरान, शक्तिशाली, सम्मानीय, स्वाधीन, धार्मिक, धनी, न्याय से परिपूर्ण, प्रजातांत्रिक, पवित्र, संघर्ष से भरा, हमदर्द और पवित्र है तो फिर यह ज़रूरी है कि युनिवर्सिटियां इन गुणों से सुसज्जित हों जहां प्रतिबद्ध और धर्मपरायण युवा पीढ़ी का प्रशिक्षण हो।
वरिष्ठ नेता ने छात्रों में ईरानी- इस्लामी पहचान को मज़बूत बनाने में शिक्षकों की भूमिका का उल्लेख किया और कहा कि शिक्षक, एरो स्पेस, नेनो, परमाणु, चिकित्सा व जीव विज्ञान जैसे क्षेत्रों में देश की प्रगति का उल्लेख करके छात्रों में अपनी पहचान को मज़बूत बना सकते हैं।
उन्होंने कहा कि हालांकि वैज्ञानिक तरक्क़ी के क्षेत्र में हम एतिहासिक पिछड़ेपन का शिकार हैं लेकिन देश के योग्य युवाओं के संघर्ष व प्रयासों से हम इस पिछड़ेपन को दूर कर सकते हैं।
वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने कहा कि युनिवर्सिटियों में अलग-अलग राजनीतिक रुझानों से कोई समस्या नहीं है किंतु युनिवर्सिटियों के ज़िम्मेदारों और संबंधित मंत्रालयों के पदाधिकारियों को हमेशा युनिवर्सिटियों को इस्लामी क्रांति के उच्च लक्ष्यों की राह में आगे बढ़ाने वाले की भूमिका निभानी चाहिए और किसी को भी यह अधिकार नहीं है कि वह क्रांति विरोधी भावनाओं का पोषण करें।
इस्राईल ने हिज़्बुल्लाह की सैन्य क्षमता को माना
ज़ायोनी शासन के परिवहन मंत्री ने लेबनान के हिज़्बुल्लाह संगठन की सैन्य क्षमता को स्वीकार किया है।
यिस्राईल काट्ज़ ने अतिग्रहित फ़िलिस्तीन में एक कान्फ़्रेंस में कहा कि हिज़्बुल्लाह, इस्राईल के आंतरिक मोर्चे, उसके मूलभूत ढांचे, हवाई अड्डों, बंदरगाहों और ऊर्जा स्रोतों को भारी क्षति पहुंचाने में सक्षम है। उन्होंने कहा कि इस्राईल, हिज़्बुल्लाह के साथ लम्बी लड़ाई नहीं लड़ सकता अतः युद्ध का समय कम करने और आंतरिक मोर्चे की क्षति को रोकने के लिए उसे लेबनान में हर लक्ष्य पर व्यापक रूप से हमला करना होगा।
ज़ायोनी शासन के विपक्षी नेता इस्हाक़ हर्टज़ोग ने भी लेबनान के हिज़्बुल्लाह संगठन से युद्ध निकट होने संबंधी कुछ इस्राईली नेताओं के बयानों की ओर संकेत करते हुए कहा है कि युद्ध कोई खेल नहीं है और कुछ लोगों को ग़ैर ज़िम्मेदाराना रवैया अपना कर बिना सोचे-समझे फ़ैसला नहीं करना चाहिए। ज्ञात रहे कि लेबनान के हिज़्बुल्लाह संगठन ने ज़ायोनी शासन को कई बार चेतावनी दी है कि अगर उसने एक बार फिर लेबनान पर हमला किया तो उसे अधिक बड़ी पराजय का सामना करना पड़ेगा।