
رضوی
इस्लामिक सहयोग संगठन ने रोहिंग्या मुसलमानों की तुरंत मदद करने की अपील की
बांग्लादेश ने इस्लामिक सहयोग संगठन से रोहिंग्या मुसलमानों के मुद्दे को अपनी कार्ययोजना में शामिल करने और मदद का आह्वान किया हैं।
बांग्लादेशी विदेश मंत्री मोहम्मद जशीमुद्दीन ने इस्लामिक सहयोग संगठन से रोहिंग्या शरणार्थी संकट और उनकी मातृभूमि म्यांमार में वापसी के मुद्दे को अगले 10 वर्षों 2026-2035 के लिए संगठन की परिचालन योजना में शामिल करने का आह्वान किया।
म्यांमार में इस्लामिक सहयोग संगठन के विशेष दूत इब्राहिम खैरत के साथ अपनी बैठक में जशीमुद्दीन ने संगठन और उसके सदस्य देशों से रोहिंग्या मुसलमानों के लिए मानवीय सहायता बढ़ाने का आह्वान किया।
उन्होंने रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ नरसंहार मामले में इस्लामिक सहयोग संगठन के समर्थन की भी सराहना की जिसकी जांच अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में की जा रही है।
बांग्लादेश समाचार एजेंसी ने बताया कि ढाका स्थित देश के विदेश मंत्रालय के मुख्यालय में आयोजित बैठक में रोहिंग्याओं की म्यांमार वापसी सुनिश्चित करने के लिए मानवीय सहायता और कूटनीतिक समन्वय बढ़ाने पर जोर दिया गया।
बैठक के दौरान ओआईसी के दूत ने रोहिंग्या मुसलमानों को आवश्यक सहायता प्रदान करने के लिए सदस्य देशों के साथ मिलकर काम करने की संगठन की प्रतिबद्धता और म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिम अल्पसंख्यकों और अन्य अल्पसंख्यकों के मुद्दे पर इस वर्ष आयोजित होने वाले उच्च स्तरीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के आयोजन में बांग्लादेशी सरकार के साथ सहयोग करने की संगठन की मंशा पर भी जोर दिया।
इज़रायली परिवहन मंत्री की गिरफ्तारी के लिए मोरक्को में अभियान शुरू
मोरक्को के कुछ वकीलों ने दो कानूनी शिकायतें दर्ज कर इज़रायली परिवहन मंत्री मिरी रैगू की गिरफ्तारी और मोरक्को की धरती पर उनके प्रवेश को रोकने की मांग की। यह कार्रवाई तब की गई जब रैगू को 18 से 20 फरवरी तक मोरक्को के शहर रबात में आयोजित चौथी वैश्विक सड़क सुरक्षा मंत्री सम्मेलन में भाग लेने के लिए निमंत्रण मिला है।
मोरक्को के कुछ वकीलों ने दो कानूनी शिकायतें दर्ज कर इज़रायली परिवहन मंत्री मिरी रैगू की गिरफ्तारी और मोरक्को की धरती पर उनके प्रवेश को रोकने की मांग की। यह कार्रवाई तब की गई जब रैगू को 18 से 20 फरवरी तक मोरक्को के शहर रबात में आयोजित चौथी वैश्विक सड़क सुरक्षा मंत्री सम्मेलन में भाग लेने के लिए निमंत्रण मिला है।
युद्ध अपराधों का आरोप रबात और माराकेश के वकील संघों के वकीलों ने जिनका नेतृत्व अब्दुल रहीम जमी’ई खालिद अल सफ़ियानी अब्दुल रहमान बिन अमरू और अब्दुल रहीम बिन बर्का कर रहे थे, दो शिकायतें दाखिल की हैं। पहली शिकायत जो रबात की अपील अदालत में दाखिल की गई है में रैगू को युद्ध अपराध और मानवता के खिलाफ अपराध करने के आरोप में गिरफ्तार करने और उनका मुकदमा चलाने की मांग की है।
दूसरी शिकायत जो आज सुबह रबात की प्रशासनिक अपील अदालत में सुनी गई वकीलों ने मोरक्को के अधिकारियों से रैगू के मोरक्को में प्रवेश को रोकने की मांग की है। उन्होंने रैगू की उपस्थिति को मोरक्को के लोगों और क्षेत्रीय अखंडता पर हमला बताया है।
अब्दुल रहीम जमी’ई ने एक प्रेस बयान में रैगू को एक युद्ध अपराधी करार दिया और कहा कि मोरक्को की न्यायपालिका के पास अधिकार है कि वह उसे देश में प्रवेश करने पर गिरफ्तार कर उसके द्वारा किए गए अपराधों के लिए मुकदमा चलाए।
उन्होंने यह भी कहा कि मोरक्को इंटरपोल से सहयोग की मांग कर सकता है ताकि इस मामले में जरूरी कानूनी और सुरक्षा जांच की जा सके।
इज़रायल के साथ सामान्यीकरण के खिलाफ कार्यकर्ताओं का समर्थन मोरक्को के वकीलों की इस कार्रवाई को फ़िलिस्तीन समर्थक और इज़रायल से संबंध सामान्य करने के विरोध में काम करने वाले समूहों का समर्थन प्राप्त है।
इमाम महदी(अ.स) की ज़ियारत
इस ग़ैबत के ज़माने की सब से बड़ी मुश्किल और परेशानी यह है कि शिया अपने मौला व आक़ा के दर्शन से वंचित हैं। ग़ैबत का ज़माना शुरु होने के बाद से उनके ज़हूर का इन्तेज़ार करने वालों के दिलों को हमेशा यह तमन्नाबेताब करती रही है कि किसी भी तरह से यूसुफे ज़हरा (अ. स.) की ज़ियारत हो जाये। वह इस जुदाई में हमेशा ही रोते बिलकते रहते हैं। ग़ैबते सुग़रा के ज़माने में शिया अपने महबूब इमाम से उनके खास नायबों के ज़रिये संबंध स्थापित किये हुए थे और उनमें से कुछ लोगों को इमाम (अ. स.) की ज़ियारत का भी श्रेय प्राप्त हुआ और इस बारे में बहुत सी रिवायतें मौजूद हैं, लेकिन इस ग़ैबते कुबरा के ज़माने में, जिस में इमाम (अ. स.) पूर्ण रूप से ग़ैबत को अपनाये हुए हैं और किसी से भी उनकी मुलाक़ात संभव नही है, वह संबंध ख़त्म हो गया है। अब इमाम (अ. स.) से आम तरीक़े से या ख़ास लोगों के ज़रिये मुलाक़ात करना भी संभव नहीं है।
लेकिन फिर भी बहुत से आलिमों का मत है कि इस ज़माने में भी उस चमकते हुए चाँद से मुलाक़ात करना संभव है और अनेकों बार ऐसी घटनाएं घटित हुई हैं। कुछ महान आलिमों जैसे अल्लामा बहरुल उलूम, मुकद्दस अरदबेली और सय्यद इब्ने ताऊस आदि की इमाम से मुलाक़ात की घटनाएंबहुत मशहूर हैं और बहुत से आलिमों ने अपनी किताबों में उनका उल्लेख किया है...[1]
लेकिन हम यहाँ पर यह बता देना ज़रुरी समझते हैं कि इमामे ज़माना (अज्जल अल्लाहु तआला फ़रजहू शरीफ़) की मुलाक़ात के बारे में निम्न लिखित बातो पर ज़रूर ध्यान देना चाहिए।
पहली बात तो यह है कि इमाम महदी (अ. स.) से मुलाक़ात बहुत ही ज़्यादा परेशानी और लाचारी की हालत में होती है लेकिन कभी कभी आम हालत में और किसी परेशानी के बग़ैर भी हो जाती है। इससे भी अधिक स्पष्ट शब्दों में यूँ कहें कि कभी इमाम (अ. स.) की मुलाक़ात मोमेनीन की मदद की वजह से होती है जब कुछ लोग परेशानियों में घिर जाते हैं और तन्हाई व लाचारी का एहसास करते हैं तो उन्हें इमाम की ज़ियारत हो जाती है। जैसे कोई हज के सफर में रास्ता भटक गया और इमाम (अ. स.) अपने किसी सहाबी के साथ तशरीफ़ लाये और उसे भटकने से बचा लिया। इमाम (अ. स.) से अधिकतर मुलाक़ातें इसी तरह की हैं।
लेकिन कुछ मुलाक़ातें सामान्य हालत में भी हुई हैं और मुलाक़ात करने वालों को अपनी आध्यात्मिक उच्चता की वजह से इमाम (अ. स.) से मुलाक़ात करने का श्रेय प्राप्त हुआ।
अतः इस पहली बात के मद्दे नज़र यह ध्यान रहे कि इमाम (अ.स.) से मुलाक़ात के संबंध में हर इंसान के दावे को क़बूल नहीं किया जा सकता।
दूसरी बात ये है कि ग़ैबते कुबरा के ज़माने में ख़ास तौर पर आज कल कुछ लोग इमामे ज़माना (अ. स.) से मुलाक़ात का दावा कर के मशहूर होने के चक्कर में रहते हैं। वह अपने इस काम से बहुत से लोगों को अक़ीदे और अमल में गुमराह कर देते हैं। वह कुछ बे-बुनियाद व निराधार दुआओं को पढ़ने और कुछ ख़ास काम करने के आधार पर इमामे ज़माना की ज़ियारत करने का भरोसा दिलाते हैं। वह इस तरह उस ग़ायब इमाम की मुलाक़ात को सबके लिए एक आसान काम के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जबकि इस बात में कोई शक नहीं है कि इमाम (अ. स.) ख़ुदा वन्दे आलम के इरादे के अनुसार पूर्ण रूप से ग़ैबत में हैं और सिर्फ कुछ गिने चुने शार्ष के लोगों से ही इमाम (अ. स.) की मुलाक़ात होती है और उनकी निजात का रास्ता भी अल्लाह के करम को प्रदर्शित करने वाले इमाम का करम है।
तीसरी बात यह है कि मुलाकात सिर्फ़ इसी सूरत में संभव है जब इमामे ज़माना (अ. स.) उस मुलाक़ात में कोई मसलेहत या भलाई देखें। अतः अगर कोई मोमिन अपने दिल में इमाम (अ. स.) की ज़ियारत का शौक पैदा करे और इमाम ( अ. स.) से मुलाक़ात न हो सके तो फिर ना उम्मीदी का शिकार नहीं होना चाहिए और इसको इमाम (अ. स.) के करम के न होने की निशानी नहीं मानना चाहिए, जैसा कि जो अफराद इमाम (अ. स.) से मुलाक़ात में कामयाब हुए हैं उस मुलाक़ात को तक़वे और फ़ज़ीलत की निशानी बताने लगे।
नतिजा यह निकलता है कि इमाम ज़माना (अ. स.) के नूरानी चेहरे की ज़ियारत और दिलों के महबूब से बात चीत करना वास्तव में एक बहुत बड़ी सआदत है लेकिन अइम्मा (अ. स.) ख़ास तौर पर ख़ुद इमामे ज़माना(अ. स.) अपने शिओं से ये नहीं चाहते कि वह उन से मुलाक़ात की कोशिश करें और अपने इस मक़सद तक पहुँचने के लिए चिल्ले ख़ीँचें या जंगलों में भटकते फिरें। बल्कि इसके विपरीत आइम्मा ए मासूमीन (अ. स.) ने बहुत ज़्यादा ताकीद की है कि हमारे शिओं को हमेशा अपने इमाम को याद रखना चाहिए, उनके ज़हूर के लिए दुआ करनी चाहिए, उनको ख़ुश रखने के लिए अपने व्यवहार व आचरण को सुधारना चाहिए और उनके महान उद्देश्यों के लिए आगे क़दम बढ़ाना चाहिए ताकि जल्दी से जल्दी दुनिया की आख़िरी उम्मीद के ज़हूर का रास्ता हमवार हो जाये और संसार उनके वजूद से सीधे तौर पर लाभान्वित हो सके।
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) ख़ुद फरमाते हैं कि
”اٴَکثرُوا الدُّعاءَ بِتَعجِیْلِ الفرجِ، فإنَّ ذَلکَ فرَجُکُم
मेरे ज़हूर के लिए बहुत ज़्यादा दुआएं किया करो, उसमें तुम्हारी ही भलाई और आसानी है।
उचित था कि हम यहाँ पर मरहूम हाज अली बगदादी (जो अपने ज़माने के नेक इंसान थे) की दिल्चस्प मुलाक़ात का सविस्तार वर्णन करते लेकिन संक्षेप की वजह से अब हम उसके महत्वपूर्ण अंशों की तरफ़ इशारा करते हैं।
वह मुत्तक़ी और नेक इंसान हमेशा बगदाद से काज़मैन जाया करते थे और वहाँ दो इमामों (हज़रत इमाम मूसा काज़िम (अ. स.) और हज़रत इमाम मुहम्मद तक़ी (अ. स.) की ज़ियारत किया करते थे। वह कहते हैं कि मेरे ज़िम्मे ख़ुम्स और कुछ अन्य शरई रक़म थी, इसी वजह से मैं नजफ़े अशरफ़ गया और उनमें से 20 दीनार आलमे फ़क़ीह शेख अन्सारी (अलैहिर्रहमा) को और 20 दीनार आलमे फ़क़ी शेख मुहम्मद हसन काज़मी (अलैहिर्रहमा) को और 20 दीनार आयतुल्लाह शेख मुहम्मद हसन शरुक़ी (अलैहिर्रहमा) को दिये और यह इरादा किया कि मेरे ज़िम्मे जो 20 दीनार बाक़ी रह गये हैं वह बग़दाद वापसी पर आयतुल्लाह आले यासीन (अलैहिर्रहमा) को दूँगा। जब जुमेरात के दिन बगदाद वापस आया तो सब से पहले काज़मैन गया और दोनों इमामों की ज़ियारत करने के बाद आयतुल्लाह आले यासीन के घर पर गया। मेरे ज़िम्मे खुम्स की रक्म का जो एक हिस्सा बाक़ी रह गया था वह उनकी खिदमत में पेश की और उन से इजाज़त माँगी कि इसमें से बाक़ी रक़म (इन्शाअल्लाह) बाद में ख़ुद आप को या जिस को मुस्तहक़ समझूँगा अदा कर दूंगा। वह मुझे अपने पास रोकने की ज़िद कर रहे थे, लेकिन मैं ने अपने ज़रुरी काम की वजह से उनसे माफ़ी चाही और ख़ुदा हाफिज़ी कर के बगदाद की तरफ़ रवाना हो गया। जब मैं ने अपना एक तिहाई सफर तय कर लिया तो रास्ते में एक तेजस्वी सैय्यिद को देखा। वह हरे रंग का अम्मामा बाँधे हुए थे और उन के गाल पर काले तिल का एक निशान था। वह ज़ियारत के लिए काज़मैन जा रहे थे। वह मेरे पास आये और मुझे सलाम करने के बाद बड़ी गर्म जोशी के साथ मुझ से हाथ मिलाया और मुझे गले लगा कर कहा खैर तो है कहाँ जा रहे हैं ?
मैं ने जवाब दिया :ज़ियारत कर के बगदाद जा रहा हूँ, उन्हों ने फरमाया :आज जुमे की रात है काज़मैन वापस जाओ और आज की रात वहीं रहो। मैं ने कहा :मैं नहीं जा सकता। उन्होंने कहाः तुम यह काम कर सकते हो, जाओ ताकि मैं यह गवाही दूँ कि तुम मेरे जद्द अमीरुल मोमिनीन (अ. स.) के और हमारे दोस्तों में से हो, और शेख भी गवाही देते हैं,
ख़ुदा वन्दे आलम फरमाता है :
وَ اسْتَشْہِدُوا شَہِیدَیْنِ مِنْ رِجَالِکُم
और अपने मर्दों में से दो को गवाह बनाओ।
हाज अली बग़दादी कहते हैं कि मैं ने इस से पहले आयतुल्लाह आले यासीन से दर्ख्वास्त की थी कि मेरे लिए एक सनद लिख दें जिस में इस बात की गवाही हो कि मैं अहले बैत (अ. स.) के चाहने वालों में से हूँ ताकि इस सनद को अपने कफ़न में रखूँ। मैं ने सैय्यिद से सवाल किया आप मुझे कैसे पहचानते हैं और किस तरह गवाही देते हैं ?उन्होंने जवाब दिया :इंसान उस इंसान को किस तरह न पहचाने जो उस का पूरा हक़ अदा करता हो, मैं ने पूछा कौन सा हक़ ?उन्होंने कहा कि वही हक़ जो तुम ने मेरे वक़ील को दिया है। मैं ने पूछा :आपका वक़ील कौन है ? उन्होंने फरमाया :शेख मुहम्मद हसन। मैं ने पूछा कि क्या वह आप के वक़ील हैं ?उन्होंने जवाब दिया:हाँ।
मुझे उनकी बातों पर बहुत ज़्यादा ताज्जुब हुआ!मैं ने सोचा कि मेरे और उन के बीच कोई बहुत पुरानी दोस्ती है जिसे मैं भूल चुका हूँ, क्यों कि उन्हों ने मुलाक़ात के शुरु ही में मुझे मेरे नाम से पुकारा था। मैं ने यह सोचा चूँकि वह सैय्यिद हैं अतः मुझ से खुम्स की रक़म लेना चाहते हैं। अतः मैं ने उनसे कहा कि कुछ सहमे सादात मेरे ज़िम्मे है और मैं ने उसे खर्च करने की इजाज़त भी ले रखी है। यह सुन कर वह मुस्कुराए और कहा:जी हाँ, आप ने हमारे सहम का कुछ हिस्सा नजफ़ में हमारे वकीलों को अदा कर दिया है। मैं ने सवाल किया :क्या ये काम ख़ुदा वन्दे आलम की बारगाह में क़ाबिले क़बूल है ? उन्हों ने फरमाया :जी हाँ।
मैं ने सोचा भी कि यह सैय्यिद इस ज़माने के बड़े आलिमों को किस तरह अपना वकील बता रहे हैं, लेकिन एक बार फिर मुझे गफ़लत सी हुई और मैं इस बात को भूल गया।
मैं ने कहा :ऐ बुज़ुर्गवार !क्या यह कहना सही है कि जो इंसान जुमे की रात हज़रत इमाम हुसैन (अ. स.) की ज़ियारत करे वह अल्लाह के अज़ाब से बचा रहता है। उन्होंने फरमाया :जी हाँ, यह बातसही है। अब मैं ने देखा कि उनकी आँखें फ़ौरन आंसूओं से भर गईं। कुछ देर बीतने के बादहम ने अपने ापको काज़मैन के रौजे पर पाया, किसी सड़क और रास्ते से गुज़रे बग़ैर, हम रोज़े के सद्र दरवाज़े पर खड़े हुए थे, उन्होंने मुझसे फ़रमाया:ज़ियारत पढ़ो। मैं ने जवाब दिया :बुज़ुर्गवार मैं अच्छी तरह नहीं पढ़ सकूँगा। उन्होंने फरमाया:क्या मैं पढ़ूँ, ताकि तुम भी मेरे साथ पढ़ते रहो?मैं ने कहा:ठीक है।
अतः उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम और अन्य इमामों पर एक एक कर केसलाम भेजा और हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) के नाम के बाद मेरी तरफ़ रुख कर के सवाल किया:क्या तुम अपने इमामे ज़माना को पहचानते हो?मैं ने जवाब में कहा क्यों नहीं पहचानूंगा !यह सुन कर उन्होंने फ़रमाया तो फिर उन पर सलाम करो। मैं ने कहा:
لسَّلامُ عَلَیْکَ یَا حُجَّةَ اللهِ یَا صَاحِبَ الزَّمَانِ یَابْنَ الْحَسَنِ!
अस्सलामो अलैक या हुज्जत अल्लाहे या साहेबज़्ज़मान यबनल हसन। वह बुज़ुर्गवार मुसुकुराए और फरमाया
عَلَیکَ السَّلام وَ رَحْمَةُ اللّٰہِ وَ بَرَکَاتُہُ۔
अलैकस्सलाम व रहमतुल्लाहे व बरकातोह।
उस के बाद हरम में वारिद हुए और ज़रीह का बोसा लेकर मुझ से फरमाया:ज़ियारत पढ़ो। मैं ने अर्ज़ किया ऐ बुज़ुर्गवार मैं अच्छी तरह नहीं पढ़ सकता। यह सुन कर उन्होंने फरमाया:क्या मैं आप के लिए पढ़ूँ, मैं ने जवाब दिया :जी हाँ, अप ही पढ़ा दीजिए। उन्होंने अमीनुल्लाह नामक मशहूर ज़ियारत पढ़ी और फरमाया:क्या मेरे जद (पूर्वज) इमाम हुसैन (अ. स.) की ज़ियारत करना चाहते हो?मैं ने कहा:जी हाँ, आज जुमे की रात है और यह हज़रत इमाम हुसैन (अ. स.) की ज़ियारत की रात है। उन्होंने हज़रत इमाम हुसैन (अ. स.) की मशहूर ज़ियारत पढ़ी। उस के बाद नमाज़े मगरिब का वक़्त हो गया। उन्होंनेने मुझ से फरमाया:नमाज़ को जमाअत के साथ पढ़ो। नमाज़ के बाद वह बुज़ुर्गवार अचानक मेरी नज़रों से गायब हो गए, मैं ने बहुत तलाश किया लेकिन वह न मिल सके।
फिर मेरे ध्यान में आया कि सैय्यिद ने मुझे नाम ले कर पुकारा था और मुझ से कहा था कि काज़मैन वापस लौट जाओ, जबकि मैं नहीं जाना चाहता था। उन्हों ने ज़माने के बड़े फ़क़ीहों और आलिमोंको अपना वकील बताया और आखिर में मेरी नज़रों से अचानक गायब हो गये। इन तमाम बातों पर ग़ौर व फिक्र करने के बाद मुझ पर ये बात स्पष्ट हो गई कि वह हज़रत इमामे ज़माना (अ. स.) थे, लेकिन अफ़सोस कि मैं इस बात को बहुत देर के बाद समझ सका...
इस्राईली अधिकारी ने की आत्महत्या
एक इस्राईली अधिकारी ने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली, जिसे ग़ज़्ज़ा में तेल अवीव द्वारा किए गए जनसंहार के कारण गंभीर मानसिक तनाव और आंतरिक संघर्षों का सामना करना पड़ रहा था।
रिपोर्टों के अनुसार, इजरायली सेना के इस अधिकारी पर ग़ज़ा में युद्ध अपराधों और निर्दोष नागरिकों के खिलाफ अत्याचारों का बोझ था, जिससे वह गहरे मानसिक संकट में चला गया था। ग़ज़ा पर इजरायली हमलों के चलते कई सैनिक और अधिकारी मानसिक अवसाद और नैतिक अपराधबोध से जूझ रहे हैं।
ग़ज़ा में जारी इजरायली सैन्य अभियान के दौरान बड़ी संख्या में सैनिकों ने मनोवैज्ञानिक दबाव के कारण मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की शिकायत की है, जिससे इजरायली सेना के भीतर तनाव बढ़ता जा रहा है।
इस्लाम में औरत का मुकाम: एक झलक
इस्लाम को लेकर यह गलतफहमी है और फैलाई जाती है कि इस्लाम में औरत को कमतर समझा जाता है। सच्चाई इसके उलट है। हम इस्लाम का अध्ययन करें तो पता चलता है कि इस्लाम ने महिला को चौदह सौ साल पहले वह मुकाम दिया है जो आज के कानून दां भी उसे नहीं दे पाए।
इस्लाम में औरत के मुकाम की एक झलक देखिए।
जीने का अधिकार शायद आपको हैरत हो कि इस्लाम ने साढ़े चौदह सौ साल पहले स्त्री को दुनिया में आने के साथ ही अधिकारों की शुरुआत कर दी और उसे जीने का अधिकार दिया। यकीन ना हो तो देखिए कुरआन की यह आयत-
और जब जिन्दा गाड़ी गई लड़की से पूछा जाएगा, बता तू किस अपराध के कारण मार दी गई?"(कुरआन, 81:8-9) )
यही नहीं कुरआन ने उन माता-पिता को भी डांटा जो बेटी के पैदा होने पर अप्रसन्नता व्यक्त करते हैं-
'और जब इनमें से किसी को बेटी की पैदाइश का समाचार सुनाया जाता है तो उसका चेहरा स्याह पड़ जाता है और वह दु:खी हो उठता है। इस 'बुरी' खबर के कारण वह लोगों से अपना मुँह छिपाता फिरता है। (सोचता है) वह इसे अपमान सहने के लिए जिन्दा रखे या फिर जीवित दफ्न कर दे? कैसे बुरे फैसले हैं जो ये लोग करते हैं।' (कुरआन, 16:58-59))
बेटी
इस्लाम के पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया-बेटी होने पर जो कोई उसे जिंदा नहीं गाड़ेगा (यानी जीने का अधिकार देगा), उसे अपमानित नहीं करेगा और अपने बेटे को बेटी पर तरजीह नहीं देगा तो अल्लाह ऐसे शख्स को जन्नत में जगह देगा।इब्ने हंबल) अन्तिम ईशदूत हजऱत मुहम्मद सल्ल. ने कहा-'जो कोई दो बेटियों को प्रेम और न्याय के साथ पाले, यहां तक कि वे बालिग हो जाएं तो वह व्यक्ति मेरे साथ स्वर्ग में इस प्रकार रहेगा (आप ने अपनी दो अंगुलियों को मिलाकर बताया)।
मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया-जिसके तीन बेटियां या तीन बहनें हों या दो बेटियां या दो बहनें हों और वह उनकी अच्छी परवरिश और देखभाल करे और उनके मामले में अल्लाह से डरे तो उस शख्स के लिए जन्नत है। (तिरमिजी)
पत्नी
वर चुनने का अधिकार : इस्लाम ने स्त्री को यह अधिकार दिया है कि वह किसी के विवाह प्रस्ताव को स्वेच्छा से स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है। इस्लामी कानून के अनुसार किसी स्त्री का विवाह उसकी स्वीकृति के बिना या उसकी मर्जी के विरुद्ध नहीं किया जा सकता।
बीवी के रूप में भी इस्लाम औरत को इज्जत और अच्छा ओहदा देता है। कोई पुरुष कितना अच्छा है, इसका मापदण्ड इस्लाम ने उसकी पत्नी को बना दिया है। इस्लाम कहता है अच्छा पुरुष वही है जो अपनी पत्नी के लिए अच्छा है। यानी इंसान के अच्छे होने का मापदण्ड उसकी हमसफर है।
पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया-
तुम में से सर्वश्रेष्ठ इंसान वह है जो अपनी बीवी के लिए सबसे अच्छा है। (तिरमिजी, अहमद)
शायद आपको ताज्जुब हो लेकिन सच्चाई है कि इस्लाम अपने बीवी बच्चों पर खर्च करने को भी पुण्य का काम मानता है।
पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया-
तुम अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए जो भी खर्च करोगे उस पर तुम्हें सवाब (पुण्य) मिलेगा, यहां तक कि उस पर भी जो तुम अपनी बीवी को खिलाते पिलाते हो। (बुखारी,मुस्लिम)।
पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. ने कहा-आदमी अगर अपनी बीवी को कुएं से पानी पिला देता है, तो उसे उस पर बदला और सवाब (पुण्य) दिया जाता है। (अहमद)
मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया-महिलाओं के साथ भलाई करने की मेरी वसीयत का ध्यान रखो। (बुखारी, मुस्लिम)
माँ
क़ुरआन में अल्लाह ने माता-पिता के साथ बेहतर व्यवहार करने का आदेश दिया है,
'तुम्हारे स्वामी ने तुम्हें आदेश दिया है कि उसके सिवा किसी की पूजा न करो और अपने माता-पिता के साथ बेहतरीन व्यवहार करो। यदि उनमें से कोई एक या दोनों बुढ़ापे की उम्र में तुम्हारे पास रहें तो उनसे 'उफ् ' तक न कहो बल्कि उनसे करूणा के शब्द कहो। उनसे दया के साथ पेश आओ और कहो
'ऐ हमारे पालनहार! उन पर दया कर, जैसे उन्होंने दया के साथ बचपन में मेरी परवरिश की थी।(क़ुरआन, 17:23-24))
इस्लाम ने मां का स्थान पिता से भी ऊँचा करार दिया। ईशदूत हजरत मुहम्मद(सल्ल) ने कहा-'यदि तुम्हारे माता और पिता तुम्हें एक साथ पुकारें तो पहले मां की पुकार का जवाब दो।'
एक बार एक व्यक्ति ने हजरत मुहम्मद (सल्ल.) से पूछा'हे ईशदूत, मुझ पर सबसे ज्यादा अधिकार किस का है?'
उन्होंने जवाब दिया 'तुम्हारी माँ का',
'फिर किस का?' उत्तर मिला 'तुम्हारी माँ का',
'फिर किस का?' फिर उत्तर मिला 'तुम्हारी माँ का'
तब उस व्यक्ति ने चौथी बार फिर पूछा 'फिर किस का?'
उत्तर मिला 'तुम्हारे पिता का।'
संपत्ति में अधिकार-औरत को बेटी के रूप में पिता की जायदाद और बीवी के रूप में पति की जायदाद का हिस्सेदार बनाया गया। यानी उसे साढ़े चौदह सौ साल पहले ही संपत्ति में अधिकार दे दिया गया।
ईरान उच्च स्तर पर शहीद हसकन नसरुल्लाह के जनाज़े में करेगा शिरकत।
ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि हिज़्बुल्लाह के दिवंगत महासचिव के जनाज़े में ईरान उच्च स्तर पर शामिल होगा, क्योंकि यह समारोह बहुत महत्वपूर्ण है।
उन्होंने लेबनान द्वारा ईरानी यात्री विमानों को बेरूत एयरपोर्ट पर उतरने से रोके जाने के मुद्दे पर भी बात की।
इस मामले पर ईरान के डिप्टी विदेश मंत्री डॉ. अराकची और उनके लेबनानी समकक्ष की बातचीत हुई है। दोनों देशों ने इस पर सहमति जताई कि ईरान और लेबनान को अपने पुराने और मजबूत रिश्तों को ध्यान में रखकर कोई भी फ़ैसला लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि तीसरे देशों को इन रिश्तों पर असर डालने की इजाज़त नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि उनका कोई भला चाहने वाला नहीं है।
ईरान को उम्मीद है कि जल्द ही इस मुद्दे का ऐसा हल निकलेगा जो दोनों देशों और उनके लोगों के फ़ायदे में होगा।
ईरान और भारत की मुश्किल की वजह तीसरा पक्ष हैः इराक़ची
ईरान के विदेशमंत्री ने ओमान में Indian Ocean की बैठक से इतर एक भारतीय संचार माध्यम से वार्ता में कहा कि ईरान और भारत के बीच मौजूद समस्याओं का संबंध दोनों देशों से नहीं है और उसका कारण तीसरा पक्ष है।
तसनीम के हवाले से बताया है कि ईरान के विदेशमंत्री Indian Ocean की आठवीं बैठक में भाग लेने के लिए ओमान की यात्रा पर गये हैं। उन्होंने इस बैठक के अवसर पर भारतीय टीवी चैनल WION से वार्ता में चाबहार बंदरगाह और भारत के साथ संबंध के बारे में कहा कि चाबहार बंदरगाह के बारे में हमारा भारत के साथ 10 वर्षीय समझौता है हम जानते हैं कि इस संबंध में तीसरे पक्ष की ओर से सवाल किये गये हैं, हम जानते हैं कि भारतीय इस संबंध में अमेरिकियों से विचार- विमर्श कर रहे हैं। इस आधार पर हम फ़ैसला करने के अधिकार को अपने दोस्तों पर छोड़ते हैं।
ईरान के विदेशमंत्री ने कहा कि जहां तक मुझसे संबंधित है, चाबहार बंदरगाह बहुत महत्वपूर्ण है और यह भारत को ईरान, सेंट्रल एशिया और दूसरे क्षेत्रों से जोड़ देगी और हम दोनों के लिए यह बंदरगाह स्ट्रैटेजिक महत्व रखती है।
दोनों पक्षों में विशेषकर चाबहार बंदरगाह में सहयोग के लिए संकल्प व इरादा मौजूद है, 10 वर्षों का सहयोग मौजूद है। इस आधार पर हमें यह देखना चाहिये कि हम किस तरह इस मुश्किल का मुक़ाबला करते हैं।
विदेशमंत्री सैय्यद अब्बास इराक़ची ने ईरान और भारत के संबंधों के बारे में पूछे गये सवाल के जवाब में कहा कि ईरान और भारत के बीच बहुत अच्छे एतिहासिक संबंध हैं और एशिया की दो सभ्यताओं के रूप में हम हमेशा एक दूसरे से संपर्क में रहे हैं और यथावत इस कार्य को जारी रखेंगे और हम भारत के साथ अपने संबंधों को बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं।
उन्होंने कहा कि एक समय था जब ईरान और भारत के मध्य बहुत अच्छा व्यापार था। उतार- चढ़ाव के बावजूद संबंधों को मज़बूत बनाने हेतु दोनों पक्षों में इरादे मौजूद हैं और हम इन संबंधों को जारी रखेंगे।
विदेशमंत्री ने कहा कि ईरान और भारत के बीच मौजूद समस्या का संबंध इन देशों से नहीं है बल्कि इन मुश्किलों व समस्याओं का कारण तीसरा पक्ष है। हम हमेशा इस कोशिश में रहे हैं कि किस प्रकार इन मुश्किलों का मुक़ाबला करें और किस प्रकार ईरान और भारत के बीच अच्छे संबंध क़ायम रहें।
विदेशमंत्री से जब यह पूछा गया कि लोगों के साथ संबंधों में किस प्रकार वृद्धि करेंगे और राष्ट्रीय मुद्रा में व्यापार के संबंध में क्या नीति है? तो उन्होंने कहा कि लोगों के साथ लोगों का संबंध हमेशा रहा है। प्रतिबंध के कारण दूसरे देशों के साथ राष्ट्रीय मुद्रा में और वस्तुओं के आदान- प्रदान का सिस्टम मौजूद है। मैं समझता हूं कि अवसर से लाभ उठाने के लिए भारत के साथ भी यह सिस्टम मौजूद है। यह निजी क्षेत्र पर निर्भर है कि वह इस संबंध में किस प्रकार व्यवहार करता है।
विदेशमंत्री से इसी प्रकार यमन में भारतीय नागरिक की रिहाई के संबंध में ईरान की मदद के संदर्भ में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि हम उस महिला और दूसरे बहुत से लोगों के अंजाम के बारे में यमन में अपने दोस्तों से संपर्क में हैं। इस समय मैं ओमान में हूं और सोमवार को अपने यमनी दोस्तों से मुलाक़ात करूंगा कि किस तरह इस संबंध में हम सहायता कर सकते हैं।
क़ुम अलमुकद्देसा में 15 शाबान के मौके पर 40 मिलियन से ज़्यादा ज़ायरीन ने शिरकत की
क़ुम मुक़द्देसा की प्रांतीय सरकार के सामाजिक, सांस्कृतिक और ज़ियारती मामलों के ज़िम्मेदार ने 15 शाबान के जश्न में जनता की व्यापक भागीदारी की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह आयोजन 800 से अधिक जन संगठनों और विभिन्न संस्थानों के सहयोग से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आयोजित हुआ जिसमें 50 हज़ार से अधिक ख़ादिमीन ने हिस्सा लिया।
क़ुम अलमुक़द्देस की प्रांतीय सरकार के सामाजिक, सांस्कृतिक और ज़ियारती मामलों के ज़िम्मेदार हज़रत हुज्जतुल इस्लाम हुसैनी मुक़द्दम ने 15 शाबान के मौके पर आयोजित कार्यक्रमों के बारे में बात करते हुए कहा कि इस साल हमने गलियों और मोहल्लों पर विशेष ध्यान दिया। इसके तहत मस्जिदों, स्कूलों, इमामज़ादगानों और धार्मिक संगठनों में आयोजनों के लिए आवश्यक समन्वय किया गया। साथ ही जन समूह भी सक्रिय हुए और गलियों व मोहल्लों में शानदार जश्न आयोजित किए गए।
उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि प्रांत का मुख्य ध्यान एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के आयोजन पर था जिसका विषय इंतज़ार था। उन्होंने बताया कि चार दिनों के दौरान क़ुम प्रांत में चार मिलियन से अधिक ज़ायरीन ने शिरकत की जबकि देश के कई प्रांतों में इस दौरान कड़ी सर्दी और बर्फबारी हो रही थी।
हजरत हुज्जतुल इस्लाम हुसैनी मुक़द्दम ने ज़ायरीन की सुविधा के लिए गठित स्टाफ का उल्लेख करते हुए कहा कि इस स्टाफ ने 12 समितियों के माध्यम से ज़ायरीन को बेहतरीन सेवाएं प्रदान करने की कोशिश की। इनमें से एक जन समिति थी, जिसके तहत 800 जन समूहों और संगठनों ने बुलेवार पयाम्बर ए अज़म के सात किलोमीटर लंबे रास्ते पर अपनी सेवाएं दीं। इसके अलावा, स्थानीय समूहों ने विभिन्न मोहल्लों में भी कार्यक्रम आयोजित किए।
उन्होंने इस दौरान की गई व्यापक सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों का ज़िक्र करते हुए कहा कि बड़े पैमाने पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया जिसमें ज़ायरीन में इंतज़ार-ए-इमाम और आध्यात्मिकता की भावना स्पष्ट रूप से देखी गई। विभिन्न प्रकार की मेहमाननवाज़ी, चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवाएं, साथ ही हिलाल ए अहमर के 200 से अधिक सदस्यों द्वारा आवश्यक सहायता प्रदान करना, ज़ायरीन के लिए दी गई सेवाओं में शामिल रहा।
जम्मू और कश्मीर के उलेमा की आयतुल्लाह आराफी से मुलाकात
ईरान के हौज़ा इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा आराफी ने जम्मू और कश्मीर के उलेमा से मुलाकात के दौरान कहा कि हौज़ा इल्मिया क़ुम इस्लामी क्रांति की वैचारिक और बौद्धिक बुनियाद प्रदान करने में केंद्रीय भूमिका निभा रहा है उन्होंने कहा कि यह हौज़ा न केवल इस्लामी क्रांति की स्थापना में प्रभावी रहा है बल्कि इसके वैश्विक प्रभाव को भी बढ़ा रहा है।
ईरान के हौज़ा इल्मिया के प्रमुख, आयतुल्लाह अली रज़ा आराफी ने जम्मू-कश्मीर के उलेमा से मुलाकात के दौरान कहा कि हौज़ा इल्मिया क़ुम इस्लामी क्रांति की वैचारिक और बौद्धिक नींव प्रदान करने में एक केंद्रीय भूमिका निभा रहा है उन्होंने कहा कि यह हौज़ा न केवल इस्लामी क्रांति की स्थापना में प्रभावी रहा है, बल्कि इसके वैश्विक प्रभाव को भी बढ़ा रहा है।
आयतुल्लाह आराफी ने उलेमा के एक प्रतिनिधिमंडल से बातचीत करते हुए कहा कि हौज़ा इल्मिया क़ुम की इतिहास को इस्लामी क्रांति से पहले और बाद के दो युगों में विभाजित किया जा सकता है।
उन्होंने बताया कि यह हौज़ा इमाम जाफर सादिक अ.स.के दौर से जुड़ा हुआ है और पिछले सौ वर्षों में इसने शिया फिक़्ह के आधार पर इस्लामी क्रांति और शासन की वैचारिक व बौद्धिक संरचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
उन्होंने आगे कहा कि इस्लामी क्रांति के बाद, क़ुम एक अंतरराष्ट्रीय बौद्धिक और वैचारिक आंदोलन का केंद्र बन गया है, जिसका प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि इमाम खुमैनी (रह.) ने एक ऐसा अद्वितीय विचार प्रस्तुत किया, जिसने न केवल ईरान बल्कि पूरे विश्व में इस्लामी जागरूकता को बढ़ावा दिया।
आयतुल्लाह आराफी ने इस बात पर जोर दिया कि क़ुम में इस्लामी विज्ञानों का विस्तार किया गया है, जिसमें फिक़्ह, कलाम, दर्शन और आधुनिक इस्लामी अध्ययन शामिल हैं। उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि हौज़ा इल्मिया क़ुम ने इस्लामी कानूनों और व्यवस्था को आधुनिक आवश्यकताओं के अनुरूप ढालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसकी झलक ईरान के संविधान और इस्लामी कानूनों में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।
उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि इस्लामी क्रांति के बाद, इस्लामी शिक्षाओं और ज्ञान का दायरा दुनिया के 100 से अधिक देशों तक फैल चुका है, जबकि पहले यह कुछ गिने-चुने देशों तक ही सीमित था। इसके अलावा, महिलाओं के लिए इस्लामी शिक्षा में भी असाधारण प्रगति हुई है, जिसे इस्लामी इतिहास में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जा सकता है।
आयतुल्लाह आराफी ने इस बात पर जोर दिया कि आधुनिक युग में इस्लामी ज्ञान को नई तकनीक के साथ समायोजित करना आवश्यक है, ताकि बदलते वैश्विक हालात के साथ तालमेल बनाए रखा जा सके। उन्होंने इमामिया उलेमा से आग्रह किया कि वे युवा पीढ़ी की बौद्धिक प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान दें और अहले सुन्नत के बौद्धिक हलकों के साथ मजबूत संबंध स्थापित करें।
इस मुलाकात के दौरान जम्मू-कश्मीर के उलेमा के प्रतिनिधिमंडल ने अपने क्षेत्र में इस्लामी शिक्षाओं के प्रचार और विस्तार से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की।
नेतन्याहू भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी और विश्वासघात के आरोपों में दसवीं बार अदालत में पेश हुए
हिब्रू अखबार यदीऊत अहारीनूत के अनुसार, नेतन्याहू ने अदालत से सीधे तौर पर तेल अवीव जिला कोर्ट में बोलने की अनुमति मांगी, लेकिन जजों ने इसे खारिज कर दिया।
इस्राईली प्रधानंती बेंजामिन नेतन्याहू ने अदालत से सीधे तौर पर तेल अवीव जिला कोर्ट में बोलने की अनुमति मांगी, लेकिन जजों ने इसे खारिज कर दिया।
यह नेतन्याहू की 10 दिसंबर 2024 को उनके मुकदमे की फिर से शुरुआत के बाद अदालत में दसवां पेशी था। दिसंबर में उनकी सर्जरी के कारण मुकदमा स्थगित कर दिया गया था।
नेतन्याहू पर 2019 में तीन अलग-अलग भ्रष्टाचार मामलों में आरोप लगाए गए थे: केस 1000, केस 2000, और केस 4000, जिनमें रिश्वत, धोखाधड़ी और विश्वासघात के आरोप शामिल हैं।
इजराइल के कानून के अनुसार, वह तब तक इस्तीफा देने के लिए बाध्य नहीं हैं जब तक कि उच्चतम न्यायालय द्वारा उन्हें दोषी नहीं ठहराया जाता, जो प्रक्रिया में कई महीने लग सकते हैं।
नेतन्याहू, जिन्हें "गाजा का कसाई" भी कहा जाता है, अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय द्वारा युद्ध अपराध और मानवता के खिलाफ अपराधों के आरोप में गिरफ्तारी वारंट के तहत हैं।