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गुरुवार, 20 फरवरी 2025 07:46

सुअर का गोश्त क्यों हराम है

  1. सूअर के मांस का कुरआन में निषेध कुरआन में कम से कम चार जगहों पर सूअर के मांस के प्रयोग को हराम और निषेध ठहराया गया है। देखें पवित्र कुरआन 2:173, 5:3, 6:145 और 16:115 पवित्र कुरआन की निम्र आयत इस बात को स्पष्ट करने के लिए काफी है कि सूअर का मांस क्यों हराम किया गया है: ''तुम्हारे लिए (खाना) हराम (निषेध) किया गया मुर्दार, खून, सूअर का मांस और वह जानवर जिस पर अल्लाह के अलावा किसी और का नाम लिया गया हो। (कुरआन, 5:3)
  2. बाइबल में सूअर के मांस का निषेध ईसाइयों को यह बात उनके धार्मिक ग्रंथ के हवाले से समझाई जा सकती है कि सूअर का मांस हराम है। बाइबल में सूअर के मांस के निषेध का उल्लेख लैव्य व्यवस्था (Book of Leviticus) में हुआ है : ''सूअर जो चिरे अर्थात फटे खुर का होता है, परन्तु पागुर नहीं करता, इसलिए वह तुम्हारे लिए अशुद्ध है। '' इनके मांस में से कुछ न खाना और उनकी लोथ को छूना भी नहीं, ये तुम्हारे लिए अशुद्ध हैं। (लैव्य व्यवस्था, 11/7-8) इसी प्रकार बाइबल के व्यवस्था विवरण (Book of Deuteronomy) में भी सूअर के मांस के निषेध का उल्लेख है : ''फिर सूअर जो चिरे खुर का होता है, परंतु पागुर नहीं करता, इस कारण वह तुम्हारे लिए अशुद्ध है। तुम न तो इनका मांस खाना और न इनकी लोथ छूना। (व्यवस्था विवरण, 14/8)
  3. सूअर का मांस बहुत से रोगों का कारण है ईसाइयों के अलावा जो अन्य गैर-मुस्लिम या नास्तिक लोग हैं वे सूअर के मांस के हराम होने के संबंध में बुद्धि, तर्क और विज्ञान के हवालों ही से संतुष्ट हो सकते हैं। सूअर के मांस से कम से कम सत्तर विभिन्न रोग जन्म लेते हैं। किसी व्यक्ति के शरीर में विभिन्न प्रकार के कीड़े (Helminthes) हो सकते हैं, जैसे गोलाकार कीड़े, नुकीले कीड़े, फीता कृमि आदि। सबसे ज्य़ादा घातक कीड़ा Taenia Solium है जिसे आम लोग Tapworm (फीताकार कीड़े) कहते हैं। यह कीड़ा बहुत लंबा होता है और आँतों में रहता है। इसके अंडे खून में जाकर शरीर के लगभग सभी अंगों में पहुँच जाते हैं। अगर यह कीड़ा दिमाग में चला जाता है तो इंसान की स्मरणशक्ति समाप्त हो जाती है। अगर वह दिल में चला जाता है तो हृदय गति रुक जाने का कारण बनता है। अगर यह कीड़ा आँखों में पहुँच जाता है तो इंसान की देखने की क्षमता समाप्त कर देता है।

अगर वह जिगर में चला जाता है तो उसे भारी क्षति पहुँचाता है। इस प्रकार यह कीड़ा शरीर के अंगों को क्षति पहुँचाने की क्षमता रखता है। एक दूसरा घातक कीड़ा Trichura Tichurasis है। सूअर के मांस के बारे में एक भ्रम यह है कि अगर उसे अच्छी तरह पका लिया जाए तो उसके भीतर पनप रहे उपरोक्त कीड़ों के अंडे नष्ट हो जाते हैंं। अमेरिका में किए गए एक चिकित्सीय शोध में यह बात सामने आई है कि चौबीस व्यक्तियों में से जो लोग Trichura Tichurasis के शिकार थे, उनमें से बाइस लोगों ने सूअर के मांस को अच्छी तरह पकाया था। इससे मालूम हुआ कि सामान्य तापमान में सूअर का मांस पकाने से ये घातक अंडे नष्ट नहीं हो पाते।

4.सूअर के मांस में मोटापा पैदा करने वाले तत्व पाए जाते हैं सूअर के मांस में पुट्ठों को मज़बूत करने वाले तत्व बहुत कम पाए जाते हैं, इसके विपरीत उसमें मोटापा पैदा करने वाले तत्व अधिक मौजूद होते हैं। मोटापा पैदा करने वाले ये तत्व $खून की नाडिय़ों में दाखिल हो जाते हैं और हाई ब्लड् प्रेशर (उच्च रक्तचाप) और हार्ट अटैक (दिल के दौरे) का कारण बनते हैं। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि पचास प्रतिशत से अधिक अमेरिकी लोग हाइपरटेंशन (अत्यन्त मानसिक तनाव) के शिकार हैं। इसका कारण यह है कि ये लोग सूअर का मांस प्रयोग करते हैं।

  1. सूअर दुनिया का सबसे गंदा और घिनौना जानवर है सूअर ज़मीन पर पाया जाने वाला सबसे गंदा और घिनौना जानवर है। वह इंसान और जानवरों के बदन से निकलने वाली गंदगी को सेवन करके जीता और पलता-बढ़ता है। इस जानवर को खुदा ने धरती पर गंदगियों को साफ करने के उद्देश्य से पैदा किया है। गाँव और देहातों में जहाँ लोगोंं के लिए आधुनिक शौचालय नहीं हैं और लोग इस कारणवश खुले वातावरण (खेत, जंगल आदि) में शौच आदि करते हैं, अधिकतर यह जानवर सूअर ही इन गंदगियों को सा$फ करता है। कुछ लोग यह तर्क प्रस्तुत करते हैं कि कुछ देशों जैसे आस्ट्रेलिया में सूअर का पालन-पोषण अत्यंत सा$फ-सुथरे ढ़ंग से और स्वास्थ्य सुरक्षा का ध्यान रखते हुए अनुकूल माहौल में किया जाता है। यह बात ठीक है कि स्वास्थ्य सुरक्षा को दृष्टि में रखते हुए अनुकूल और स्वच्छ वातावरण में सूअरों को एक साथ उनके बाड़े में रखा जाता है। आप चाहे उन्हें स्वच्छ रखने की कितनी भी कोशिश करें लेकिन वास्तविकता यह है कि प्राकृतिक रूप से उनके अंदर गंदगी पसंदी मौजूद रहती है। इसीलिए वे अपने शरीर और अन्य सूअरों के शरीर से निकली गंदगी का सेवन करने से नहीं चुकते। 6. सूअर सबसे बेशर्म (निर्लज्ज) जानवर है इस धरती पर सूअर सबसे बेशर्म जानवर है। केवल यही एक ऐसा जानवर है जो अपने साथियों को बुलाता है कि वे आएँ और उसकी मादा के साथ यौन इच्छा पूरी करें। अमेरिका में प्राय: लोग सूअर का मांस खाते हैं परिणामस्वरूप कई बार ऐसा होता है कि ये लोग डांस पार्टी के बाद आपस में अपनी बीवियों की अदला-बदली करते हैं अर्थात् एक व्यक्ति दूसरे से कहता है कि मेरी पत्नी के साथ तुम रात गुज़ारो और तुम्हारी पत्नी के साथ में रात गुज़ारूँगा (और फिर वे व्यावहारिक रूप से ऐसा करते हैं) अगर आप सूअर का मांस खाएँगे तो सूअर की-सी आदतें आपके अंदर पैदा होंगी। हम भारतवासी अमेरिकियों को बहुत विकसित और साफ-सुथरा समझते हैं। वे जो कुछ करते हैं हम भारतवासी भी कुछ वर्षों के बाद उसे करने लगते हैं।

Island पत्रिका में प्रकाशित एक लेख के अनुसार पत्नियों की अदला-बदली की यह प्रथा मुम्बई के उच्च और सम्पन्न वर्गों के लोगों में आम हो चुकी है।

हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने बुधवार 19 फ़रवरी 2025 की शाम को क़तर के अमीर शेख़ तमीम बिन हमद बिन ख़लीफ़ा आले सानी और उनके साथ आने वाले प्रतिनिधिमंडल से मुलाक़ात में कहां पड़ोसी देशो के साथ संबंधों में विस्तार को ईरान की स्थायी नीति है।

,एक रिपोर्ट के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने बुधवार 19 फ़रवरी 2025 की शाम को क़तर के अमीर शेख़ तमीम बिन हमद बिन ख़लीफ़ा आले सानी और उनके साथ आने वाले प्रतिनिधिमंडल से मुलाक़ात में कहां पड़ोसी मुल्कों के साथ संबंधों में विस्तार को ईरान की स्थायी नीति है।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा कि जनाब पेज़ेश्कियान की घोषित नीतियों में से एक पड़ोसी मुल्कों के साथ संबंधों में विस्तार है और अल्लाह की कृपा से इस क्षेत्र में अच्छे क़दम उठाए गए हैं और कामयाबी भी मिली है और सम्मानीय विदेश मंत्री जनाब इराक़ची भी इस दिशा में सक्रिय हैं।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने उम्मीद जतायी कि तेहरान में हुयी सहमति दोनों मुल्कों के हित में होगी और दोनों पक्ष पड़ोसी होने के अपने कर्तव्यों पर पहले से ज़्यादा अमल कर सकेंगे।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने इस मुलाक़ात में क्षेत्रीय मुद्दों पर क़तर के अमीर के बयान की ओर इशारा करते हुए कहा कि हम क़तर को दोस्त और बंधु मुल्क समझते हैं, अगरचे कुछ अस्पष्ट मुद्दे जैसे दक्षिण कोरिया से क़तर पहुंची ईरान की बक़ाया राशि को लौटाने जैसे कुछ मुद्दे अभी भी बाक़ी हैं और हम जानते हैं कि इस संबंध में हुयी सहमति की राह में मुख्य रुकावट अमरीका है।

उन्होंने कहा कि अगर हम क़तर की जगह होते तो अमरीका के दबाव को कोई अहमियत न देते और सामने वाले पक्ष की बक़ाया राशि लौटा देते और हमें क़तर से भी ऐसे ही क़दम की उम्मीद है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने बल दिया कि अमरीकी राष्ट्रपतियों में कोई अंतर नहीं है।

इस मुलाक़ात में कि जिसमें राष्ट्रपति जनाब पेज़ेश्कियान भी मौजूद थे, क़तर के अमीर शैख़ तमीम बिन हमद बिन ख़लीफ़ा आले सानी ने इस्लामी इंक़ेलाब के नेता से मुलाक़ात पर ख़ुशी जताते हुए फ़िलिस्तीनी जनता सहित दुनिया के पीड़ितों के सपोर्ट में इस्लामी गणराज्य के स्टैंड को सराहा और इस्लामी इंक़ेलाब के नेता से कहा कि फ़िलिस्तीनी जनता के प्रति जनाब के दृढ़ता भरे सपोर्ट को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता।

क़तर के शासक ने क्षेत्र के ख़ास और कठिन हालात की ओर इशारा करते हुए, इन हालात में क्षेत्रीय देशों के बीच ज़्यादा सहयोग को ज़रूरी बाताया।

जनाब शैख़ तमीम बिन हमद बिन ख़लीफ़ा आले सानी ने इसी तरह ईरान और क़तर के बीच हुयी सहमतियों की ओर, जिसमें दोनों मुल्कों के बीच समुद्री टनल का निर्माण शामिल है, इशारा करते हुए कहा कि सहमति के मुताबिक़, दोनों मुल्कों के आयोग जल्द ही अपना काम शुरू कर देंगे और निकट भविष्य में आर्थिक लेन-देन का स्तर बढ़ जाएगा।

सम्पूर्ण राष्ट्र ज्ञान एवं बुद्धि के इस असीम सागर का ऋणी है, जिन्होंने अपनी विशिष्ट बुद्धि एवं योग्यता का समय रहते उपयोग कर धार्मिक समुदाय निर्माण का अनूठा रोडमैप प्रस्तुत किया, जिसके तहत वर्तमान में देशभर में धार्मिक जागरूकता फैलाने के विभिन्न कार्यक्रम चल रहे हैं।

 हमारा धार्मिक और राष्ट्रीय जीवन घोर अव्यवस्था में है, सर्वत्र दोष हैं, बुराइयों ने अपना स्थान बना लिया है, व्यक्ति, विद्वान और शांतिदूत सुधार से निराश हो चुके हैं और निराशा की घोषणा करके वे स्थिति को और अधिक बिगड़ने का अवसर दे रहे हैं। यद्यपि व्यक्तिगत चरित्र अनैतिकता में फंसा हुआ है और सामूहिक चरित्र हर प्रकार के पतन से भरा हुआ है, फिर भी सुधार से निराश होना न तो उचित है और न ही सही। सुधार संभव है और सफलता निश्चित है, बशर्ते कि सही उपाय खोजा जाए और उसे लागू करने के लिए हर साधन का इस्तेमाल किया जाए। जिस धर्म के ज़रिए कल अरबों की अज्ञानता दूर की गई, जिस धर्म के ज़रिए आज गैर-अरबों की अज्ञानता दूर की जाती है, वही धर्म हमारे "अज्ञान" को भी दूर करता है।

यह तन्ज़ीमुल मकातिब-ए-हिंद के संस्थापक ख़तीब-ए-आज़म अल्लामा सय्यद गुलाम असकरी ताबा सराह के निरंतर 17 वर्षों के निस्वार्थ संघर्ष का मीठा फल है कि राष्ट्र बौद्धिक अपव्यय से उभर कर अब मानसिक स्थिरता के मार्ग पर है। भारत में शिया समुदाय के पास आज धार्मिक जागृति आंदोलन (तहरीक मकातिब इमामिया, जिसे तन्ज़ीमुल मकातिब के नाम से भी जाना जाता है) से बड़ी कोई आध्यात्मिक संपत्ति नहीं है, जिसकी स्थापना इस महान और पवित्र व्यक्तित्व ने 1968 में की थी।

सम्पूर्ण राष्ट्र ज्ञान एवं बुद्धि के इस असीम सागर का ऋणी है, जिन्होंने अपनी विशिष्ट बुद्धि एवं योग्यता का समय रहते उपयोग कर धार्मिक समुदाय निर्माण का अनूठा रोडमैप प्रस्तुत किया, जिसके तहत वर्तमान में देशभर में धार्मिक जागरूकता फैलाने के विभिन्न कार्यक्रम चल रहे हैं।

तंज़ीमुल मकातिब के संस्थापक द्वारा किया गया उत्कृष्ट कार्य अविस्मरणीय है, जिससे राष्ट्र अनभिज्ञ नहीं है; उनका मुख्य लक्ष्य इमामिया स्कूलों की स्थापना के माध्यम से देश के बच्चों को बुनियादी धार्मिक शिक्षा से लैस करना था, जो माशा अल्लाह, काफी हद तक हासिल हो चुका है। आज, दुनिया भर के सैकड़ों इमामिया स्कूलों में हजारों बच्चे बुनियादी धार्मिक शिक्षा और अच्छे नैतिक मूल्यों तथा सामाजिक शिष्टाचार सीख रहे हैं।

इस बहुत मशहूर और व्यवहारिक मुजाहिद की बरसी है। इसी दिन उन्होंने जम्मू और कश्मीर के तब्लीगी दौरे के दौरान अपने प्राण ईश्वर को समर्पित कर दिए थे। इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजेऊन

प्रकाशन विभाग, सहायक समिति, तंजीमुल मकातिब कश्मीर

सरदार शहीद सुलेमानी ने कहा, देर या सबेर वैश्विक न्यायालयों में इज़राईली शासन के अपराधी नेताओं पर मुकदमा चलाया जाएगा।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,एक रिपोर्ट के अनुसार ,बसीज मुस्तज़अफीन संगठन के प्रमुख ने ख़ुर्रमशहर में राष्ट्रीय रहआवर्द ए सारज़मीन-ए-नूर महोत्सव में कहा,देर या सबेर वैश्विक न्यायालय ज़ायोनी शासन के अपराधी नेताओं पर मुकदमा चलाने के लिए स्थापित किए जाएंगे।

सरदार शहीद सुलेमानी ने कहा कि बसीज का ऑर्डूई संगठन, राहियान-ए-नूर और पर्यटन विभाग अपने जिहादी सेवाओं के माध्यम से ईरानी राष्ट्र के युवाओं के लिए इस धरती के 'कर्बला' स्थलों की यात्रा का एक सुरक्षित अवसर प्रदान करने का प्रयास कर रहा है।

उन्होंने कहा कि दिफा-ए-मक़दस के गौरवशाली कालखंड को फिर से जनता विशेष रूप से युवाओं और किशोरों तक पहुंचाना साथ ही बलिदान और शहादत की संस्कृति के प्रभावों और संदेशों को फैलाना राहियान-ए-नूर शिविरों के आयोजन के प्रमुख उद्देश्यों में से हैं।

बसीज के राहियान-ए-नूर और पर्यटन संगठन के प्रमुख, ब्रिगेडियर जनरल पासदार माजिद सूरी, ने ख़ुर्रमशहर में 20वें 'रहआवर्द-ए-सारज़मीन-ए-नूर' महोत्सव में कहा कि वर्ष 1403 (2024-25) में राहियान-ए-नूर के दौरों में 30% की वृद्धि दर्ज की गई है।

उन्होंने बताया कि देश के पश्चिम उत्तर-पश्चिम दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम के युद्धकालीन स्थलों से लगभग 50,000 दस्तावेज़ और रिपोर्टें ज़ायरीन (यात्रियों) और सेवकों द्वारा पंजीकृत की गईं और सचिवालय को भेजी गईं।

ब्रिगेडियर जनरल सूरी ने कहा कि यह महोत्सव देश के 32 प्रांतों में आयोजित किया गया था और चयनित रचनाएं राष्ट्रीय केंद्र को भेजी गईं जहां विशेषज्ञों द्वारा उनका मूल्यांकन किया गया।

उन्होंने कहा कि यात्रियों की संख्या में 30% की वृद्धि सेवा नेटवर्क, मार्गदर्शकों और प्रांतीय बसीज और प्रतिरोध बलों के सहयोग का परिणाम है।

ब्रिगेडियर जनरल सूरी ने यह भी कहा,अगर देश की परिवहन क्षमता और बुनियादी ढांचे की स्थिति बेहतर होती तो हम इन दौरों में भाग लेने वाले ज़ायरीन की संख्या को दोगुना देख सकते थे।

उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि कुछ क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे की कमी और परिवहन सीमाओं के कारण वे सभी ज़ायरीन की मांगों को पूरा करने में सक्षम नहीं रहे।

सूरी ने मेज़बान और मार्ग स्थित प्रांतों में बुनियादी ढांचे में सुधार की घोषणा करते हुए कहा कि इन परिवर्तनों ने दौरों की संख्या बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

अंत में उन्होंने आशा व्यक्त की कि अधिकारियों के समर्थन और जिम्मेदार व्यक्तियों के प्रयासों से वे राहियान-ए-नूर कार्यक्रमों में और अधिक मात्रात्मक और गुणात्मक वृद्धि देखेंगे।

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त फिलिपो ग्रांडी के अनुसार, सीरिया में असद शासन के पतन के बाद से 280,000 सीरियाई शरणार्थी और 800,000 से अधिक आंतरिक रूप से विस्थापित लोग अपने घरों को लौट चुके हैं।

  संयुक्त राष्ट्र ने मंगलवार को कहा कि बशर अल-असद की सरकार के पतन के बाद से सीरिया में 10 लाख से ज़्यादा लोग अपने घर लौट चुके हैं, जिनमें विदेश से लौटे 280,000 शरणार्थी भी शामिल हैं। दिसंबर में विद्रोहियों ने असद की सरकार को उखाड़ फेंका था, जिससे 2011 से चल रहा गृहयुद्ध समाप्त हो गया। इस युद्ध में 500,000 से अधिक सीरियाई मारे गए हैं और लाखों लोग विस्थापित हुए हैं।

असद को हिंसक तरीके से सत्ता से बेदखल करने वाले इस्लामी विद्रोही अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को आश्वस्त करने का प्रयास कर रहे हैं कि वे अपने अतीत से विमुख हो गए हैं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों का सम्मान करेंगे। फिलिपो ग्रांडी ने एक्स पर लिखा कि "आरंभिक सुधार प्रयास अधिक साहसिक और तीव्र होने चाहिए, अन्यथा लोग पुनः लत में पड़ जाएंगे।" फरवरी के मध्य में पेरिस में एक बैठक में अरब राज्यों, तुर्की, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा और जापान सहित लगभग 20 देशों ने पेरिस में एक सम्मेलन के अंत में “सीरियाई नेतृत्व परिवर्तन की सफलता सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करने” पर सहमति व्यक्त की थी।
बैठक के अंतिम वक्तव्य में सभी प्रकार के आतंकवाद और उग्रवाद के विरुद्ध लड़ाई में नए सीरियाई प्राधिकारियों को समर्थन देने का भी वचन दिया गया।

बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना ने मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार पर देश को आतंकवाद और अराजकता का केंद्र बनाने का आरोप लगाया उन्होंने पीड़ित परिवारों की मदद करने और उन्हें इंसाफ दिलाने का आश्वासन देते हुए घर लौटने की कसम खाई।

बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना ने मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार पर देश को आतंकवाद और अराजकता का केंद्र बनाने का आरोप लगाया उन्होंने पीड़ित परिवारों की मदद करने और उन्हें इंसाफ दिलाने का आश्वासन देते हुए घर लौटने की कसम खाई।

हसीना ने यूनुस पर आरोप लगाया कि पिछले वर्ष उनके कोटा सुधारों के खिलाफ छात्रों के नेतृत्व में हुए हिंसक आंदोलन के दौरान दर्जनों पुलिस अधिकारियों की हत्या हुई लेकिन यूनुस चुप रहे और अराजकता को पनपने दिया।

पूर्व पीएम ने कहा,यूनुस ने सभी जांच समितियों को भंग कर दिया और लोगों की हत्या करने के लिए आतंकवादियों को छोड़ दिया वे बांग्लादेश को खत्म कर रहे हैं। हम आतंकवादियों की इस सरकार को उखाड़ फेंकेंगे। इंशाअल्लाह

हसीना पिछले कुछ समय से अपनी पार्टी आवामी लीग के कार्यकर्ताओं को संबोधित और उनसे संपर्क स्थापित कर रही हैं। वहीं अंतरिम सरकार और प्रदर्शनकारी संगठन इससे खासे परेशान हैं। वे हसीना और उनके समर्थकों के बीच कोई संपर्क नहीं चाहते हैं। इसे रोकने के लिए वे हिंसक तरीकों का भी इस्तेमाल कर रहे हैं।

हाल ही में राजधानी ढाका के धानमंडी 32 स्थित शेख मुजीबुर रहमान के तीन मंजिला मकान में तोड़फोड़ और आगजनी की गई और उस पर बुलडोजर चलवा दिया गया।

छात्रों का गुस्सा अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना की इस घोषणा से फूटा कि वह ‘छात्र लीग’ संगठन के सदस्यों के साथ एक वर्चुअल सत्र में शामिल होंगी। छात्र लीग हसीना की आवामी लीग पार्टी की स्टूडेंट विंग है जिस पर 23 अक्टूबर 2024 को प्रतिबंध लगा दिया गया।बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीब के जिस घर में तोड़फोड़ की गई उसे उनकी बेटी शेख हसीना ने म्यूजियम में बदल दिया था

शेख नईम कासिम ने लेबनान के हिज़्बुल्लाह के महासचिव चुने जाने के बाद अपना पहला भाषण दिया है।

हिज़्बुल्लाह के महासचिव शेख़ नईम क़ासिम ने अल-मनार टीवी पर प्रसारित अपने भाषण में कहा: हिज़्बुल्लाह की कार्यकारी परिषद के प्रमुख शहीद सय्यद हाशिम सफ़ीउद्दीन एक विनम्र व्यक्ति और इस्लाम और विलायत के प्रेमी थे। वह एक संगठित व्यक्ति थे जो अपने सही दृष्टिकोण के साथ जिहादी गतिविधियों को आगे बढ़ाते थे।

उन्होंने आगे कहा: शहीद सय्यद हाशिम सफीउद्दीन ने प्रतिरोध सेनानियों पर विशेष ध्यान दिया और मोर्चों की मांगों का जवाब देने की कोशिश की। वह उन प्रमुख लोगों में से एक थे जिन पर शहीद सय्यद हसन नसरल्लाह को पूरा भरोसा था।

शेख नईम कासिम ने शहीद कमांडर याह्या अल-सिनवार की भी प्रशंसा करते हुए कहा: शहीद याह्या अल-सिनवार फिलिस्तीन और दुनिया में स्वतंत्रता सेनानियों की बहादुरी और प्रतिरोध का प्रतीक हैं। वह युद्ध के मैदान में अंत तक लड़ते हुए शहीद हो गए।

उन्होंने कहा: शहीद अल-सिनवार एक दृढ़, साहसी, ईमानदार, सम्माननीय और स्वतंत्र व्यक्ति थे। उन्होंने अपनी कैद के दौरान भी दुश्मन को भयभीत किया और अपनी मुक्ति के बाद, उन्होंने दुश्मन के लिए सोना हराम कर दिया और अब भी, उनकी शहादत के बाद, दुश्मन उनसे डरते हैं।

शेख नईम कासिम ने शहीद सय्यद नसरूल्लाह को संबोधित करते हुए कहा: हे हमारे सय्यद, सय्यद हसन नसरूल्लाह! आपने 32 वर्षों तक युवाओं, महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों के दिलों में विश्वास और प्रतिरोध को जीवित रखा। आप प्रतिरोध के ध्वजवाहक थे और प्रतिरोध के विजयी ध्वजवाहक बने रहेंगे। आप युवा प्रतिरोध सेनानियों के दिलों में जीवित रहेंगे और आशा और विजय का शुभ समाचार लेकर आएंगे।

उन्होंने निष्कर्ष देते हुए कहा: मैं हिजबुल्लाह और उसकी प्रतिष्ठित परिषद् तथा मुजाहिद्दीन और लोगों को मुझ पर भरोसा करने के लिए धन्यवाद देता हूं, जिन्होंने इस भारी बोझ को उठाने के लिए मुझे चुना। यह शहीद सय्यद अब्बास मूसवी की विरासत है, जिनकी मुख्य सिफारिश और इच्छा प्रतिरोध को जारी रखने की थी। यह आंदोलन महान नेता सय्यद हसन नसरूल्लाह की अमानत है। मुझे सय्यद अब्बास मूसवी की शहादत के अवसर पर उनके भाषण का यह अंश याद है, जिसमें उन्होंने कहा था, "दुश्मन हिज़्बुल्लाह के महासचिव की हत्या करके हमारे अंदर प्रतिरोध की भावना और जिहाद की इच्छा को नष्ट करना चाहता है, लेकिन शहीद अब्बास मूसवी का खून हमारी रगों में बह रहा है और हम इस दिशा में आगे बढ़ने के अपने संकल्प को और मजबूत करेंगे।"

यह पीढ़ी युवावस्था से ही अवसाद से पीड़ित है, जो पिछले दशकों के लोगों में वयस्कता तक पहुंचने के बाद भी देखा गया था। वही घृणा और ऊब जो पहले बुजुर्ग लोग महसूस करते थे, अब बच्चों में भी महसूस होती है। सवाल यह है कि हम खुश क्यों नहीं रह सकते? इसके बारे में सोचो।

यदि हम आज की पीढ़ी का अवलोकन करें और वर्तमान स्थिति की जांच करें तो सबसे बड़ी त्रासदी यह प्रतीत होती है कि यह पीढ़ी तेजी से मोहभंग की ओर बढ़ रही है। यह पीढ़ी युवावस्था से ही अवसाद से पीड़ित है, जो पिछले दशकों के लोगों में वयस्कता तक पहुंचने के बाद भी देखा गया था। वही घृणा और ऊब जो पहले बुजुर्ग लोग महसूस करते थे, अब बच्चों में भी महसूस होती है। सवाल यह है कि हम खुश क्यों नहीं रह सकते? हमारी खुशी की अवधि इतनी सीमित क्यों होती जा रही है?

 आप शायद यह कहें कि नई पीढ़ी बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी से निराश हो रही है, लेकिन आइए इतिहास के पन्ने पलटें और देखें कि क्या बेरोजगारी कोई नई समस्या है। या फिर अचानक संसाधनों की कमी हो गई है। नहीं, ऐसा नहीं है। पहले भी समस्याएँ थीं, आज भी हैं। लेकिन पहले के लोग डेढ़ रुपए की मूवी टिकट, किताब के पन्ने, दोस्तों से मिलना या फिर अपनी दादी-नानी की कहानियों से खुशियाँ पा लेते थे।

 कई अवसर जो हमारे लिए खुशी का स्रोत हुआ करते थे, वे भी समस्या बन गए हैं। शादी है तो लाखों के दहेज की समस्या है, दहेज का उपाय है तो लहंगे के दाम की समस्या है, सब कुछ ठीक है तो फोटो सही आने की चिंता है, हमने बहुत सस्ते में आइडिया खरीद लिए हैं। जो त्यौहार सामूहिक खुशी लेकर आते थे, वे आज नीरस हो गए हैं। हम ऐसे मानक तय करते हैं जिन्हें हम खुद पूरा नहीं कर पाते और उन्हें पूरा करने के लिए हम अथक प्रयास करते हैं: सुंदरता के मानक, शिक्षा के मानक, भाषा के मानक। हमने उन सभी मामलों पर नियंत्रण की कोशिश की है जो हमारे हाथ में नहीं थे। हमने यह भी समझा कि सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने का मतलब सामाजिक होना है। अरे सर! मनुष्य शुरू से ही समाज से जुड़ा रहा है। मीडिया आदि तो बाद की चीजें हैं। हम जो हैं, वह बनने में धीमे हैं, तो फिर हम वह कैसे बन सकते हैं जो हमें बनना चाहिए!

हमने आईने को ही हकीकत मान लिया है और अपना अस्तित्व खो दिया है। हम छवियों में जीते हैं, हम यादें बटोरने निकलते हैं, हम आज नहीं बल्कि आने वाले कल में जीना चाहते हैं। आज हम खो रहे हैं। हम अब पवित्र स्थानों को भी पवित्र नहीं मानते। हम अपने आप को समय कहां देते हैं... असल में हम तो सिर्फ दिखावा करना चाहते हैं।

अवसाद और कृत्रिमता जो कभी शो-बिज हस्तियों को परेशान करती थी, अब सभी के लिए एक समान हो गई है। पहले तो हमें यह तमाशा देखने में मज़ा आया, लेकिन अब हमने इसे दिखाना शुरू कर दिया है। हमने सब कुछ कैप्शनिंग तक सीमित कर दिया, रिश्तों को ध्यान में रखा, अवसर का आनंद लिया, और लहजे की खूबसूरती को ध्यान में रखा, और खुद को पूरी तरह से निचोड़ लिया, बूंद-बूंद करके चीज़ें भर दीं। हम अब खाली हैं. हम संचार का जाल मकड़ी के जाल की तरह फैला रहे हैं और उसमें उलझते और फंसते जा रहे हैं। हमारा मनोरंजन अब मौज-मस्ती से रहित हो गया है। पहले जहां मनोरंजन दिनभर की थकान से मन को मुक्ति दिलाता था, वहीं अब यह ध्यान भटकाने का जरिया बन गया है। जरा सोचिए, सबसे पहले, हमने मनोरंजन को खुली हवा में अनुभव करने के बजाय, उसे स्क्रीन तक सीमित कर दिया, और हमने उसे इतना सीमित कर दिया कि मन ही सीमित हो गया। हमारी सुबहें पक्षियों की चहचहाहट और सूर्य की शीतल किरणों के अहसास से वंचित हैं। हम सोशल मीडिया के लिए सब कुछ करना चाहते हैं। अगर वे कुछ अच्छा करते हैं तो उसे सोशल मीडिया पर भी पोस्ट करते हैं।

एक अन्य समूह का मानना ​​है कि दुनिया खुश रहने की जगह नहीं है, और वे इसके लिए अजीब तर्क ढूंढते हैं। दुनिया निस्संदेह खुश रहने की जगह नहीं है, लेकिन यह उदासी और निराशा अविश्वास है, क्योंकि विश्वास करने वाले आभारी हैं और धैर्य की अवधि को खुशी के साथ पूरा करते हैं। सर्वशक्तिमान ईश्वर भी एक कमजोर आस्तिक की तुलना में एक मजबूत आस्तिक को पसंद करता है... और मानसिक कमजोरी से बड़ी कमजोरी क्या हो सकती है, कि आप हर आपदा के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय मौत की प्रार्थना करने बैठ जाते हैं? निराशा अविश्वास है. शक्ति, धन, सुन्दरता और पद का प्रदर्शन करने से बचें। "जब आशीर्वाद चला जाता है, तो इच्छा भी गायब हो जाती है।" आशीर्वाद के रक्षक बनो। दिखावा आशीर्वाद को खत्म कर देता है।

इस हताशा से बाहर निकलने के लिए इन चरणों का पालन करें। समय बर्बाद मत करो. रिश्तों की उपेक्षा न करें. अपने आप को सम्मान। स्वार्थी मत बनो, बल्कि अपने आप से प्यार करो। अपने अस्तित्व का सम्मान करें, क्योंकि इसकी लय आपको सक्रिय रखती है। चीजों, स्थितियों और घटनाओं को सकारात्मक दृष्टि से देखें। जल्दबाजी से बचें। मशीनों के इस युग ने हमें बहुत जल्दबाजी करने वाला बना दिया है। जीवन इंस्टॉल और डिलीट के सिद्धांत पर नहीं, बल्कि क्रमिक विकास के सिद्धांत पर चलता है। तथ्यों को नज़रअंदाज़ न करें। सच का सामना करो। खुश रहो इसलिए नहीं कि लोग तुमसे ईर्ष्या करते हैं, बल्कि इसलिए कि तुम इंसान हो, अल्लाह ने तुम्हें मुस्कुराहट का तोहफा दिया है। मैंने कभी किसी जानवर को हँसते नहीं देखा।

घाटी तथा अन्य स्थानों के प्रमुख व्यक्तियों ने पुस्तक तथा विभाग के प्रदर्शन की प्रशंसा की।

जम्मू - कश्मीर अंजुमन शरई शियान के बैनुल मज़ाहिब विभाग द्वारा "इंटरफेथ डायलॉग: फाउंडेशन ऑफ पीसबिल्डिंग" पुस्तक का विमोचन जामिया बाबुल-इल्म के महबूब मिल्लत हॉल में बड़े धूमधाम से किया गया। इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में घाटी और अन्य स्थानों से कई प्रमुख हस्तियों ने भाग लिया, जिन्होंने अंजुमन शरई शियान के बैनुल मज़ाहिब विभाग के महत्व और शांति और सद्भाव को बढ़ावा देने में इसकी भूमिका की पूरी तरह सराहना की।

विशिष्ट अतिथियों ने पुस्तक को इंटरफे़थ की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया तथा विभिन्न धर्मों के बीच संवाद और एकता के महत्व पर बल दिया।

इस अवसर पर अंजुमने शरई शियान के बैनुल मज़ाहिब विभाग के प्रदर्शन की सराहना करते हुए कहा गया कि यह विभाग न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक स्तर पर भी अंतरधार्मिक सद्भाव के लिए सक्रिय भूमिका निभा रहा है, बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी इसका प्रदर्शन दिखाई देता है। अतिथियों ने पुस्तक के संपादक आगा मुंतजा मेहदी और खैरन-ए-निसा आगा के समक्ष अपनी चिंता व्यक्त की।

इस कार्यक्रम में शामिल होने वाले और पुस्तक का लोकार्पण करने वाले प्रमुख हस्तियों में मीरवाइज कश्मीर मौलाना डॉ. मुहम्मद उमर फारूक (यूनाइटेड मजलिस उलेमा जम्मू और कश्मीर के अध्यक्ष), हुज्जत-उल-इस्लाम वल-मुस्लिमीन आगा सैयद हसन अल-मूसावी अल-सफवी (इंटरफेथ विभाग के संस्थापक और जम्मू और कश्मीर अंजुमन शरिया शिया के अध्यक्ष), स्वामी हरि प्रसाद (अध्यक्ष विश्व मोहन फाउंडेशन, चेन्नई), प्रशांत कुमार (गांधी शांति प्रतिष्ठान, दिल्ली के अध्यक्ष), प्रोफेसर हामिद नसीम रफियाबाद, सतीश मालदार (जेके शांति मंच के अध्यक्ष), सतिंदर सिंह, हुज्जत-उल-इस्लाम मौलाना मसरूर अब्बास अंसारी, इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष, बशारत मसूद, जामिया बाब-उल-इल्म के संकाय सदस्य, रविंदर पंडित (शारदा बचाओ समिति), भुट्टो सांगसेना (अंतर्राष्ट्रीय ध्यान केंद्र के संस्थापक) और शांता मंटो (रामकलेश मिशन) शामिल थे।

विशिष्ट अतिथियों ने अंजुमन शरई शियान के बैनुल मज़ाहिब विभाग द्वारा आयोजित कार्यक्रमों की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह विभाग अंतरधार्मिक संवाद, शांति एवं सद्भाव के लिए एक मंच प्रदान कर रहा है, जिसका सामाजिक स्तर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। ऐसे प्रयासों से न केवल क्षेत्रीय स्तर पर बल्कि वैश्विक स्तर पर भी शांति और प्रेम के संदेश को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।

फ़िलिस्तीन के इस्लामी जेहाद संगठन के महासचिव ज़्याद अन्नख़ाला और उनके साथ आए प्रतिनिधिमंडल ने मंगलवार 18 फ़रवरी 2025 की शाम को तेहरान में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई से मुलाकात की।

फ़िलिस्तीन के इस्लामी जेहाद संगठन के महासचिव ज़्याद अन्नख़ाला और उनके साथ आए प्रतिनिधिमंडल ने मंगलवार 18 फ़रवरी 2025 की शाम को तेहरान में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई से मुलाकात की।

इस मुलाक़ात में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने ग़ज़ा में रेज़िस्टेंस की कामयाबी पर मुबारकबाद पेश की और बल दिया कि फ़िलिस्तीनी रेज़िस्टेंस के नेताओं और जियालों के दुश्मन के मुक़ाबले में एकता और दृढ़ता बनाए रखने के कारनामे और वार्ता की जटिल प्रक्रिया को आगे ले जाने और अवाम के धैर्य और दृढ़ता से, क्षेत्र में रेज़िस्टेंस कामयाब हुआ।

उन्होंने ज़ायोनी और अमरीकी दुश्मनों के मुक़ाबले में इस्लामी रेज़िस्टेंस और ग़ज़ा के अवाम की फ़तह को बहुत ही महान बताया और कहा कि इस फ़तह से रेज़िस्टेंस के संघर्ष में एक नया पाठ्यक्रम वजूद में आया है।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने ग़ज़ा सहित फ़िलिस्तीन के संबंध में अमरीकियों या कुछ दूसरों की मूर्खतापूर्ण योजनाओं की ओर इशारा किया और कहा कि ये योजनाएं कामयाब नहीं होंगी और जिस तरह वे लोग जो डेढ़ साल पहले थोड़े समय में रेज़िस्टेंस को मिटाने का दावा कर रहे थे, आज रेज़िस्टेंस के जियालों की ओर से कम कम तादाद में उनके क़ैदियों की रिहाई के बदले में ज़्यादा तादाद में फ़िलिस्तीनी क़ैदियों को रिहा कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि ज़ायोनी क़ैदियों को हवाले करने में रेज़िस्टेंस का अंदाज़, दुनिया वालों की आँखों के सामने रेज़िस्टेंस की महानता के साक्षात रूप को पेश करता है। इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने कहा कि आज दुनिया में जनमत फ़िलिस्तीन के हित में है और इस स्थिति में कोई भी योजना रेज़िस्टेंस और ग़ज़ा के अवाम की मर्ज़ी के बिना अंजाम को नहीं पहुंचेगी।

इस मुलाक़ात में फ़िलिस्तीन के इस्लामी जेहाद संगठन के महासचिव ज़्याद अन्नख़ाला ने ग़ज़ा में रेज़िस्टेंस की बड़ी फ़तह पर इस्लामी इंक़ेलाब के नेता को बधाई पेश की और इसे इस्लामी गणराज्य के निरंतर सपोर्ट और शहीद हसन नसरुल्लाह के दिशा निर्देश का ऋणी बताया।

उन्होंने कहा कि फ़िलिस्तीनी रेज़िस्टेंस पिछले डेढ़ साल में हक़ीक़त में अमरीका और पश्चिम से लड़ रहा था और ताक़त का संतुलन न होने का बावजूद भी फ़िलिस्तीनी रेज़िस्टेंस बड़ी फ़तह हासिल कर सका।

फ़िलिस्तीन के इस्लामी जेहाद संगठन के महासचिव ने जंग के मैदान और राजनीति के क्षेत्र में फ़िलिस्तीनी और लेबनानी रेज़िस्टेंस की एकता और समरस्ता को ग़ज़ा की फ़तह के प्रभावी तत्वों में गिनाया और ग़ज़ा तथा वेस्ट बैंक के ताज़ा हालात और वार्ता प्रक्रिया और इसमें हासिल हुयी सहमति से संबंधित एक रिपोर्ट पेश। ज़्याद अन्नख़ाला ने बल दिया कि हम कभी भी रेज़िस्टेंस को नहीं भूलेंगे और रेज़िस्टेंस के सिपाही के तौर पर इसी रास्ते को जारी रखेंगे।