कोपागंज मऊ में एक भव्य वार्षिक समारोह "ताजदार-ए-वफा" का आयोजन हुआ। इस समारोह का नाम "आल इंडिया तारीखी बज्म-ए-मकासिदा" था। यह समारोह हज़रत अबुल फजल अल-अब्बास की विलादत के अवसर पर मनाया गया था।
हज़रत अबुल फजल अल-अब्बास की एक बड़ी विशेषता यह है कि उन्हें इमाम की जुबान से "अब्द सालेह" का खिताब मिला था। अब्द सालेह की महानता यह है कि अब्द होना मुश्किल है, जबकि आबिद होना आसान है। हम कलमा मे शहादतैन में कहते हैं: "अशहदु अन्ना मुहम्मदन अब्दहु व रसूलहु", जिसका अर्थ है कि मुहम्मद अल्लाह के अब्द और रसूल हैं। यहां रिसालत पर अब्दियत को प्राथमिकता दी गई है। शैतान ने अपनी मेहनत और रियाजत से "अब्द" तो नहीं बन सका, लेकिन "अब्द" बनने की कोशिश की। अब्द का अर्थ है कि तुम्हारा खुदा तुमसे क्या चाहता है, यह देखना चाहिए, न कि तुम्हारा दिल तुमसे क्या चाहता है।
हज़रत अबुल फजल अल-अब्बास ने अल्लाह, रसूल और इमाम की इतनी अच्छी तरह से आज्ञा मानी कि इमाम जैनुल आबेदीन ने उन्हें "अब्द सालेह" कहकर सलाम किया। यह बातें हुज्जतुल इस्लाम डॉ. सैयद कमाल हुसैनी ने अपने भाषण में कहीं। वे जमिया अल-मुस्तफा हिंद के प्रतिनिधि हैं और ईरान कल्चर हाउस दिल्ली से जुड़े हैं।
उन्होंने कहा कि दुनिया में एक ही समय में सूरज और चंद्रमा एक साथ नहीं चमकते। लेकिन कर्बला के आसमान पर एक ही समय में सूरज और चंद्रमा दोनों चमक रहे थे। इमाम हुसैन आफताब-ए-इमामत थे, जबकि हज़रत अबुल फजल अल-अब्बास "क़मर बानी हाशिम" थे।
हुज्जतुल इस्लाम डॉ. सैयद कमाल हुसैनी ने फारसी में भाषण दिया, जिसका अनुवाद हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सैयद अतहर जाफरी कश्मीरी ने किया। उन्होंने कहा कि हज़रत अबुल फजल अल-अब्बास को जो उच्च पद मिला, उसमें उनकी माता अम्मुल बनीन, पिता अली इब्न अबी तालिब और रसूल और इमाम के परिवार की शिक्षा और परवरिश का बड़ा योगदान है।
शिया उलेमा काउंसिल ऑस्ट्रेलिया के अध्यक्ष हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सैयद अबुल कासिम रिजवी ने अपने भाषण में कहा कि हज़रत अली को सभी लोग प्यार करते हैं। काबा ने 13 रजब को जिस तरह से हज़रत अली को चाहा, वह एक अनोखी ऐतिहासिक सच्चाई है। उसी तरह हज़रत अली ने जिसे चाहा, वह हज़रत अबुल फजल अल-अब्बास हैं।
उन्होंने कहा कि जब निष्ठा, ईमानदारी और सच्चाई की बात होती है, तो मुहम्मद की शख्सियत समझ में आती है। जब ज्ञान और बहादुरी की बात होती है, तो अली की शख्सियत याद आती है। जब पवित्रता की बात होती है, तो फातिमा की शख्सियत याद आती है। जब धैर्य की बात होती है, तो हसन की शख्सियत याद आती है। जब शहादत की बात होती है, तो हुसैन की शख्सियत याद आती है। और जब वफादारी की बात होती है, तो हज़रत अबुल फजल अल-अब्बास की शख्सियत याद आती है।
इस कार्यक्रम का आरंभ हुज्जतुल इस्लाम मौलाना कारी नाजिम अली नजफी ने कुरआन की तिलावत से किया। शायरों ने "फज़ीलतों के हर आसमान पर वफा का सूरज जगा करेगा" के नाम से अपनी शायरी पेश की। हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सैयद सफदर हुसैन ने स्वागत भाषण दिया। कार्यक्रम के मुख्य आयोजक हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सरकर मुहम्मद ने सभी का धन्यवाद किया। इस कार्यक्रम में कई उलेमा, शायर और मोमिनों ने भाग लिया।