आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमोली ने कहा कि "ला इलाहा इल्लल्लाह" और "विलायत-ए-अली इब्न अबी तालिब (अ.स.) एक ही वास्तविकता के दो नाम हैं। यह वह किला है जिसका रक्षक स्वयं अल्लाह है और जिसके दरबान अली अ.स.और उनकी संतान हैं। जो ज्ञान इस किला-ए-विलायत से न गुजरे, वह बे-बरकत ज्ञान है, जो न तो इंसान के काम आता है और न दुनिया के।
आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमोली ने अपने एक दर्स-ए-अख़लाक में "हिक्मत-ए-हकीकी" के विषय पर बात करते हुए कहा कि अगर ज्ञान विलायत के रास्ते से हासिल न हो तो वह ज्ञान नहीं बल्कि चोरी है।
उन्होंने पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का यह वचन बयान किया: "أنا مدینة العلم و علی بابها" (मैं ज्ञान का शहर हूं और अली उसका दरवाजा हैं)
उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर कोई व्यक्ति इस दरवाजे से दाखिल न हो और दीवार फांद कर ज्ञान हासिल करे तो वह "चोरी" है, और चोरी के ज्ञान का कभी असर नहीं होता। ऐसा ज्ञान न इंसान के दर्द का इलाज है और न समाज की समस्याओं का समाधान।
आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमोली ने आगे कहा,जो व्यक्ति विलायत से कट कर ज्ञान हासिल करे, उसका ज्ञान उसका रक्षक नहीं बनता। चाहे वह फकीह हो, मुफस्सिर हो या हकीम, अगर विलायत के रास्ते से न आया तो उसके ज्ञान में खैर व बरकत नहीं।
उन्होंने कहा कि असली ज्ञान वही है जो ईमान और अहल-ए-बैत (अ.स.) की शिक्षाओं की छत्रछाया में हासिल किया जाए, क्योंकि विलायत ही वह दरवाजा है जो इंसान को निजात देने वाले ज्ञान तक पहुंचाता है।
स्रोत: दर्स-ए-अख़लाक, सूरत-ए-मुबारक तूर, तारीख 12 बहमन 1395 हिजरी शम्सी













