ईरान में धर्मों के अनुयाइयों के मध्य शांतिपूर्ण जीवन ईरान की नैतिक संस्कृति का परिणाम है।

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ईरान में धर्मों के अनुयाइयों के मध्य शांतिपूर्ण जीवन ईरान की नैतिक संस्कृति का परिणाम है।

डॉक्टर इस्फंदयार अख़्तियारी के अनुसार ईरान की नैतिक संस्कृति है न आइडियालोजी। ईरानी संस्कृति में जो पहली चीज़ महत्वपूर्ण है वह इंसानियत और अख़लाक़ व नैतिकता है।

डॉक्टर इस्फंदयार अख्तियारी ईरान की संसद मजलिसे शुराये इस्लामी में ज़रतुश्तियों के पूर्व सांसद थे। उन्होंने पार्सटुडे के साथ अपने हालिया साक्षात्कार के एक भाग में इस बात का उल्लेख किया कि ईरान में सफल शांतिपूर्ण जीवन का मूल क्या है। यहां हम उनके जवाब और बातों के विश्लेषण पर एक नज़र डालेंगे।

हम ईरान और ईरानी संस्कृति की बात कर रहे हैं। ईरानी संस्कृति का निर्माण पिछले 40 वर्षों में नहीं हुआ है। उसका निर्माण पिछले 1000 सालों में भी नहीं हुआ है। हमारी संस्कृति कई हज़ार साल पुरानी है।

 डॉक्टर इस्फंदयार अख़्तियारी

जब हम कई हज़ार वर्षीय ईरानी संस्कृति की बात करते हैं तो हम कुरूश जैसे व्यक्ति तक पहुंचते हैं। जब वह बाबिल पर विजय हासिल करता है तो आधिकारिक रूप से एलान करता है कि हर कोई अपने धर्म पर बाक़ी रह कर उसका अनुसरण कर सकता है।

इस आधार पर जब हम ईरान में ज़िन्दगी करते हैं तो एक हज़ार 400 साल पहले देखते हैं कि ईसाईयों और यहूदियों ने यहां ज़िन्दगी की है यहां तक कि उनके इतिहास में है कि ईसाईयों के क्षेत्रों के बाद सबसे पुराना गिरजाघर ईरान में था। यह इस बात का सूचक है कि ईरानी संस्कृति का आधार नैतिकता व शिष्टाचार है न कि आइडियालोजी।

ईरानी संस्कृति में सबसे पहली महत्वपूर्ण चीज़ इंसानियत और अख़लाक़ है। इसके बाद आइडियालोजी की बात आती है। यानी हम सब पहले इंसान हैं उसके बाद कुछ और हैं। यह चीज़ ईरानी संस्कृति का आधार है। मिसाल के तौर पर मिर्ज़ा कुचिक ख़ान सड़क के किनारे आतशकदये तेहरान है यानी तेहरान अग्निकुंड और उसके सामने ईसाईयों का गिर्जाघर है। इसी सड़क पर थोड़ा आगे यहूदियों का उपासना स्थल है और उसके आगे मुसलमानों की मस्जिद। इस सड़क का निर्माण अभी नहीं हुआ है, 50 साल पहले भी नहीं हुआ था। यह विषय इस बात का सूचक है कि हमारे देश की संस्कृति शांतिपूर्ण ढंग से रहना है।

इस संस्कृति को उन देशों को समझना बहुत कठिन है जो दाइश को बनाते हैं और वह लोगों का सिर क़लम करता है। क्योंकि उन देशों में आइडियालोजी के आधार पर काम होता है।

मेरे विचार में ईरान न तो दूसरे देशों की तरह है और कभी भी नहीं होगा यहां तक कि अगर कोई गिरोह इस प्रक्रिया को रोकना व बंद करना चाहे तब भी नहीं कर सकता। यह संभव नहीं है क्योंकि संस्कृति एक रात में अस्तित्व में नहीं आती है। संस्कृति सर्क्युलर या परिपत्र से अस्तित्व में नहीं आती है कि उसे एक दूसरे से परिपत्र से बदल दिया जाये। जो भी यह काम करेगा वह हार जायेगा, वह स्वयं को जला व ख़त्म कर लेगा मगर दूसरे देशों में यह होगा क्योंकि उसका मज़बूत सांस्कृतिक पृष्ठिपोषक नहीं है।  दूसरे शब्दों में ईरान में यह होता है कि मैं ज़रतुश्ती हूं एक मुसलमान, एक यहूदी और एक ईसाई का सम्मान करता हूं और इसका उल्टा भी होता है। यह अभी अस्तित्व में नहीं आया है जो अभी समाप्त हो जायेगा। शांतिपूर्ण ढ़ंग से ज़िन्दगी गुज़ारने का अतीत हमारे देश में हज़ारों साल पुराना है जो बाक़ी रहेगा।

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