हसद व जलन एक बुरी नैतिक बुराई है। हसद का अर्थ यह है कि इंसान उस इंसान से नेअमत के ख़त्म होने की तमन्ना करे जिसे अल्लाह ने कोई नेअमत दे रखी है।
जो इंसान जलता या ईर्ष्या करता है वह दूसरों को खुश नहीं देख सकता है। वह उस चीज़ के ख़त्म होने की आकांक्षा करता है जिसकी वजह से सामने वाला ख़ुश होता है। इसी तरह हसद करने वाला व्यक्ति नेअमत के ही ख़त्म होने की तमन्ना करता है ताकि कोई भी उससे लाभ न उठा सके।
हसद ऐसी बीमारी है जो इंसान की पूरी ज़िन्दगी को प्रभावित करती है और इंसान से आराम व सुकून छीन लेती है। यहां पर हम हसद के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के कुछ कथनों का वर्णन कर रहे हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम फ़रमाते हैं
हसद करने वाला इंसान सबसे कम आनंद उठाता है।
पैग़म्बरे इस्लाम के उत्तराधिकारी हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं
हसद शैताना का सबसे बड़ा जाल है।
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम इरशाद फ़रमाते हैं
हसद करने वाला इंसान जिससे हसद करता है उसे नुक़सान पहुंचाने से पहले ख़ुद को नुक़सान पहुंचाता है।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम इरशाद फ़रमाते हैं
हसद करने वाला इंसान हमेशा बीमार रहता है यद्यपि वह शारीरिक दृष्टि से स्वस्थ ही क्यों न हो।
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम इरशाद फ़रमाते हैं
हसद करने वाले इंसान की तीन अलामते हैं" जिससे जलता है उसके पीठ पीछे उसकी ग़ीबत करता है और जब वह सामने होता है तो उसकी चापलूसी करता है और मुसीबत के वक़्त उसकी आलोचना व निंदा करता है।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम इरशाद फ़रमाते हैं
जो व्यक्ति हसद करना छोड़ दे तो लोग उससे मोहब्बत करने लगेंगे।
इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम इरशाद फ़रमाते हैं"
हसद करने से परहेज़ करो और यह जान लो कि हसद करने का असर ख़ुद तुम्हारे अंदर ज़ाहिर होगा और तुम्हारे दुश्मन के अंदर उसका कुछ असर नहीं हो