
رضوی
मुनाज़ेरा ए इमाम सादिक़ अ.स.
इब्ने अबी लैला से मंक़ूल है कि मुफ़्ती ए वक़्त अबू हनीफ़ा और मैं बज़्मे इल्म व हिकमते सादिक़े आले मुहम्मद हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस सलाम में वारिद हुए।
इमाम (अ) ने अबू हनीफ़ा से सवाल किया कि तुम कौन हो?
मैं: अबू हनीफ़ा
इमाम (अ): वही मुफ़्ती ए अहले इराक़
अबू हनीफ़ा: जी हाँ
इमाम (अ): लोगों को किस चीज़ से फ़तवा देते हो?
अबू हनीफ़ा: क़ुरआन से
इमाम (अ): क्या पूरे क़ुरआन, नासिख़ और मंसूख़ से लेकर मोहकम व मुतशाबेह तक का इल्म है तुम्हारे पास?
अबू हनीफ़ा: जी हाँ
इमाम (अ): क़ुरआने मजीद में सूर ए सबा की 18 वी आयत में कहा गया है कि उन में बग़ैर किसी ख़ौफ़ के रफ़्त व आमद करो।
इस आयत में ख़ुदा वंदे आलम की मुराद कौन सी चीज़ है?
अबू हनीफ़ा: इस आयत में मक्का और मदीना मुराद है।
इमाम (अ): (इमाम (अ) ने यह जवाब सुन कर अहले मजलिस को मुख़ातब कर के कहा) क्या ऐसा हुआ है कि मक्के और मदीने के दरमियान में तुम ने सैर की हो और अपने जान और माल का कोई ख़ौफ़ न रहा हो?
अहले मजलिस: बा ख़ुदा ऐसा तो नही है।
इमाम (अ): अफ़सोस ऐ अबू हनीफ़ा, ख़ुदा हक़ के सिवा कुछ नही कहता ज़रा यह बताओ कि ख़ुदा वंदे आलम सूर ए आले इमरान की 97 वी आयत में किस जगह का ज़िक्र कर रहा है:
व मन दख़लहू काना आमेनन
अबू हनीफ़ा: ख़ुदा इस आयत में बैतल्लाहिल हराम का ज़िक्र कर रहा है।
इमाम (अ) ने अहले मजलिस की तरफ़ रुख़ कर के कहा क्या अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर और सईद बिन जुबैर बैतुल्लाह में क़त्ल होने से बच गये?
अहले मजलिस: आप सही फ़रमाते हैं।
इमाम (अ): अफ़सोस है तुझ पर ऐ अबू हनीफ़ा, ख़ुदा वंदे आलम हक़ के सिवा कुछ नही कहता।
अबू हनीफ़ा: मैं क़ुरआन का नही क़यास का आलिम हूँ।
इमाम (अ): अपने क़यास के ज़रिये से यह बता कि अल्लाह के नज़दीक क़त्ल बड़ा गुनाह है या ज़ेना?
अबू हनीफ़ा: क़त्ल
इमाम (अ): फ़िर क्यों ख़ुदा ने क़त्ल में दो गवाहों की शर्त रखी लेकिन ज़ेना में चार गवाहो की शर्त रखी।
इमाम (अ): अच्छा नमाज़ अफ़ज़ल है या रोज़ा?
अबू हनीफ़ा: नमाज़
इमाम (अ): यानी तुम्हारे क़यास के मुताबिक़ हायज़ा पर वह नमाज़ें जो उस ने अय्यामे हैज़ में नही पढ़ी हैं वाजिब हैं न कि रोज़ा, जब कि ख़ुदा वंदे आलम ने रोज़े की क़ज़ा उस पर वाजिब की है न कि नमाज़ की।
इमाम (अ): ऐ अबू हनीफ़ा पेशाब ज़्यादा नजिस है या मनी?
अबू हनीफ़ा: पेशाब
इमाम (अ): तुम्हारे क़यास के मुताबिक़ पेशाब पर ग़ुस्ल वाजिब है न कि मनी पर, जब कि ख़ुदा वंदे आलम ने मनी पर ग़ुस्ल को वाजिब किया है न कि पेशाब पर।
अबू हनीफ़ा: मैं साहिबे राय हूँ।
इमाम (अ): अच्छा तो यह बताओ कि तुम्हारी नज़र इस के बारे में क्या है, आक़ा व ग़ुलाम दोनो एक ही दिन शादी करते हैं और उसी शब में अपनी अपनी बीवी से हम बिस्तर होते हैं, उस के बाद दोनो सफ़र पर चले जाते हैं और अपनी बीवियों को घर पर छोड़ देते हैं एक मुद्दत के बाद दोनो के यहाँ एक एक बेटा पैदा होता है एक दिन दोनो सोती हैं, घर की छत गिर जाती है और दोनो औरतें मर जाती हैं, तुम्हारी राय के मुताबिक़ दोनो लड़कों में से कौन सा ग़ुलाम है, कौन आक़ा, कौन वारिस है, कौन मूरिस?
अबू हनीफ़ा: मैं सिर्फ़ हुदूद के मसायल में बाहर हूँ।
इमाम (अ): उस इंसान पर कैसे हद जारी करोगे जो अंधा है और उस ने एक ऐसे इंसान की आंख फोड़ी है जिस की आंख सही थी और वह इंसान जिस के हाथ में नही हैं और वह इंसान जिस के हाथ नही है उस ने एक दूसरे इंसान का हाथ काट दिया है।
अबू हनीफ़ा: मैं सिर्फ़ बेसते अंबिया के बारे में जानता हूँ।
इमाम (अ): अच्छा ज़रा देखें यह बताओ कि ख़ुदा ने मूसा और हारून को ख़िताब कर के कहा कि फ़िरऔन के पास जाओ शायद वह तुम्हारी बात क़बूल कर ले या डर जाये। (सूर ए ताहा आयत 44)
यह लअल्ला (शायद) तुम्हारी नज़र में शक के मअना में है?
इमाम (अ): हाँ
इमाम (अ): ख़ुदा को शक था जो कहा शायद
अबू हनीफ़ा: मुझे नही मालूम
इमाम (अ): तुम्हारा गुमान है कि तुम किताबे ख़ुदा के ज़रिये फ़तवा देते हो जब कि तुम उस के अहल नही हो, तुम्हारा गुमान है कि तुम साहिबे क़यास हो जब कि सब से पहले इबलीस ने क़यास किया था और दीने इस्लाम क़यास की बुनियाद पर नही बना, तुम्हारा गुमान है कि तुम साहिबे राय हो जब कि दीने इस्लाम में रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अलैहि वा आलिहि वसल्लम के अलावा किसी की राय दुरुस्त नही है इस लिये कि ख़ुदा वंदे आलम फ़रमाता है:
फ़हकुम बैनहुम बिमा अन्ज़ल्लाह
तू समझता है कि हुदूद में माहिर है जिस पर क़ुरआन नाज़िल हुआ है तुझ से ज़्यादा हुदुद में इल्म रखता होगा। तू समझता है कि बेसते अंबिया का आलिम है ख़ुदा ख़ातमे अंबिया अंबिया के बारे में ज़्यादा वाक़िफ़ थे और मेरे बारे में तूने ख़ुद ही कहा फ़रजंदे रसूल ने और कोई सवाल नही किया, अब मैं तुझ से कुछ सवाल पूछूँगा अगर साहिबे क़यास है तो क़यास कर।
अबू हनीफ़ा: यहाँ के बाद अब कभी क़यास नही करूँगा।
इमाम (अ): रियासत की मुहब्बत कभी तुम को इस काम को तर्क नही करने देगी जिस तरह तुम से पहले वालों को हुब्बे रियासत ने नही छोड़ा।
(ऐहतेजाजे तबरसी जिल्द 2 पेज 270 से 272)
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने पहलगाम आतंकवादी हमले की कड़ी निंदा की है
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले की कड़ी आलोचना की और ‘आतंकवाद के इस निंदनीय कृत्य’’ के दोषियों एवं उनके मददगारों को जवाबदेह ठहराने तथा उन्हें न्याय के कटघरे में लाने की जरूरत पर बल दिया।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले की कड़ी आलोचना की और ‘‘आतंकवाद के इस निंदनीय कृत्य’’ के दोषियों एवं उनके मददगारों को जवाबदेह ठहराने तथा उन्हें न्याय के कटघरे में लाने की जरूरत पर बल दिया।
एक बयान जारी कर इस बात को दोहराया कि हर तरह का आतंकवाद अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए सबसे गंभीर खतरों में से एक है।
मीडिया में यह बयान यूएनएससी अध्यक्ष द्वारा सभी 15 सदस्य देशों की ओर से जारी किया गया है। पाकिस्तान वर्तमान में यूएनएससी में एक अस्थायी सदस्य है।
यूएनएससी के सदस्यों ने पीड़ितों के परिवारों और भारत एवं नेपाल की सरकारों के प्रति गहरी सहानुभूति और संवेदना व्यक्त की उन्होंने घायलों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना की।सदस्यों ने आतंकवाद के इस निंदनीय कृत्य’ के दोषियों और उनके मददगारों को जवाबदेह ठहराने तथा उन्हें न्याय के कटघरे में लाने की जरूरत पर भी बल दिया।
यूएनएससी ने कहा कि इन हत्याओं के लिए जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराना जरूरी है। उसने सभी देशों से आग्रह किया कि वे अंतरराष्ट्रीय कानून एवं सुरक्षा परिषद के प्रासंगिक प्रस्तावों के तहत अपने दायित्वों के अनुसार इस संबंध में सभी सक्षम अधिकारियों के साथ सक्रिय सहयोग करें।
शहीद मुर्तज़ा मोत्तहरी के विचारों को समाज में बढ़ावा देना चाहिए
माज़ंदरान प्रांत में वली ए फकीह के प्रतिनिधि, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद बाक़िर मोहम्मदी नएनी ने शहीद मुर्तज़ा मोत्तहरी की विचारधारा को समाज में प्रसारित करने पर ज़ोर दिया है।
,हुज्जतुल इस्लाम मोहम्मदी नइनी ने कहा कि हम सभी के लिए ज़रूरी है कि शहीद मुत्तहरी और शहीद रईसी जैसी महान हस्तियों के स्कूल ऑफ थॉट और विचारों से लाभ उठाएं, ताकि हम अपने विश्वास, धर्म, आस्था और इस्लामी क्रांति के मूल्यों को मजबूत कर सकें और प्रभावी ढंग से दूसरों तक पहुंचा सकें।
उन्होंने आगे कहा कि शहीद मुत्तहरी, इमाम खुमैनी (रहमतुल्लाह अलैह) के अनुसार, दुश्मनों की आंखों का कांटा थे उन्होंने बताया कि जब मुनाफिकों के घरों पर छापे मारे जाते थे, तो कभी भी शहीद मुतहरी की किताबें नहीं मिलती थीं, क्योंकि उनकी शिक्षाएं शुद्ध इस्लाम का प्रतिनिधित्व करती थीं और मार्क्सवादी विचारधारा के लोगों के लिए असहनीय थीं।
मोहम्मदी लाइनी ने इमाम खुमैनी (रह.) के इस कथन का हवाला दिया कि हर व्यक्ति को शहीद मुतहरी की पुस्तकों से लाभ उठाना चाहिए।उन्होंने कहा कि इस्लामी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स और बसीज बलों के लिए शहीद मुतहरी जैसे विद्वान के विचार एक महान पूंजी हैं, क्योंकि वे इमाम खुमैनी के सच्चे प्रेमी और राष्ट्र के सेवक थे।
प्रतिनिधि ने ज़ोर दिया कि मूल्यों की रक्षा और सामाजिक बुराइयों को रोकने के लिए शहीद मुतहरी के विचारों का प्रचार सबसे बेहतरीन निवेश है।उन्होंने कहा कि यह बौद्धिक संपदा इस्लामी क्रांति के वैचारिक मोर्चे को मजबूत करने में एक मौलिक भूमिका निभा सकती है।
महमूद अब्बास इज़राइल के सहयोगी हैं:अतवान
अरब जगत के जाने-माने विश्लेषक अब्दुल बारी अतवान ने फ़िलिस्तीनी प्रशासन के प्रमुख की हमास और ग़ज़ा प्रतिरोध के खिलाफ अश्लील भाषा के प्रयोग और अभद्रता का उल्लेख करते हुए उन्हें इज़राइल का सहयोगी और बहुत बड़ा देशद्रोही क़रार दिया है।
अरब जगत के जाने-माने विश्लेषक "अब्दुल बारी अतवान" ने पश्चिमी तट के फिलिस्तीनी प्रशासन के प्रमुख महमूद अब्बास द्वारा हमास और प्रतिरोध के विरुद्ध हाल ही में किए गए हमले और उनके द्वारा अभद्र भाषा के इस्तेमाल का उल्लेख करते हुए एक लेख में लिखा: महमूद अब्बास ने हमास और उसके मुजाहिदों का अपमान किया है जिन्होंने डेढ़ साल से अधिक समय तक डटे रहकर ग़ज़ा में इज़राइल की योजनाओं को नाकाम बना दिया है और अपने प्रतिरोध और वीरतापूर्ण कार्रवाइयों से अरब और इस्लामी जगत को गौरवान्वित किया है।
"अब्दुल बारी अतवान" ने इस लेख में लिखा है: नेतृत्व, अश्लीलता या कब्जा करने वाले दुश्मन के साथ मिलीभगत और उसके नरसंहारों को उचित ठहराने के माध्यम से प्राप्त नहीं होता है, बल्कि प्रतिरोध और शहादत के माध्यम से प्राप्त होता है।
अतवान ने महमूद अब्बास द्वारा किए गए खोखले वादों और इस तथ्य का ज़िक्र करते हुए कि वह ग़ज़ा में बच्चों की हत्याएं देख रहे हैं और कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा: सबसे बुरी बात यह है कि आप हमास को जिम्मेदार ठहराते हैं, न कि ज़ायोनी कसाईयों को, जिनके हाथ खून से रंगे हैं। आप चाहते हैं कि कैदियों को मुफ्त में रिहा कर दिया जाए, जबकि हजारों फिलिस्तीनी कैदियों को प्रतिरोध और हमास द्वारा क़ब्ज़े वाली जेलों से रिहा कर दिया गया है।
विश्लेषक कहते हैं: हम महमूद अब्बास से कहते हैं कि इज़राइल को ग़ज़ा में नरसंहार और क़त्ले आम करने के लिए कैदियों का इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं है, क्या इसमें कोई वीरता थी जब उन्होंने लेबनान में "दैरे यासीन" या "सबरा और शतीला" का नरसंहार किया था? उस वक़्त, यह फ़त्ह आंदोलन था, जिसके आप प्रमुख हैं।
राय अल-यौम के संपादक ने महमूद अब्बास से कहा: ये नरसंहार करने वाले हत्यारे ओस्लो समझौते में आपके साझेदार हैं जो सबसे बड़ा मानवीय विश्वासघात था और आप ही इसे अंजाम देने वाले थे। फिलिस्तीन के नाम पर आपके अधीन 60 हज़ार सैनिक वहां कब्जाधारियों और बसने वालों का समर्थन करने के लिए हैं, फिलिस्तीनियों का नहीं।
विश्लेषक ने यह लिखकर नतीजा निकाला कि: फिलिस्तीनी जनता के प्रतिनिधि महमूद अब्बास और केंद्रीय परिषद ही नहीं हैं जो हमास के खिलाफ इन अपमानजनक बातों को सुनती है और अपनी सांस नहीं रोक सकती बल्कि वे प्रतिरोध के लोग और ग़ज़ा के शहीद हैं, जिनका नेतृत्व शहीद यहिया सिनवार कर रहे हैं, जिन्होंने अपने जीवन के 23 साल आपराधिक क़ब्ज़े वाले शासन की जेलों में सलाखों के पीछे बिताए और शहादत प्राप्त की। खुद कब्जा करने वालों के अनुसार, उनका पोस्टमार्टम होने के बाद पता चवला कि उन्होंने तीन दिनों से कुछ नहीं खाया था। यह फ़िलिस्तीनी जनता का कानूनी और एकमात्र प्रतिनिधि है।
न्यूयॉर्क टाइम्स का स्वीकार/अमेरिका ने परमाणु समझौते में वादा खिलाफी की है
न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में स्वीकार किया है कि अमेरिका ने परमाणु समझौते (बरजाम) के तहत अपनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों को पूरा नहीं किया जिसके परिणामस्वरूप ईरान को समझौते के तहत वादा किए गए आर्थिक लाभ नहीं मिल सके।
न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी हालिया रिपोर्ट में स्वीकार किया है कि अमेरिका ने परमाणु समझौते (बरजाम) के तहत अपनी मुख्य जिम्मेदारियों को पूरा नहीं किया जिससे ईरान को आर्थिक लाभ नहीं मिला।
ईरान ने 2015 में अमेरिका और यूरोपीय देशों के साथ परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन एक साल बाद भी उसे कोई आर्थिक फायदा नहीं हुआ यह स्वीकारोक्ति ऐसे समय में आई है जब ईरान और अमेरिका के बीच नई अप्रत्यक्ष वार्ताओं का तीसरा दौर शुरू होने वाला है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने फरवरी 2017 में एक विशेष रिपोर्ट जारी की थी जिसमें यह स्पष्ट किया गया था कि "परमाणु समझौते के एक साल बाद भी ईरान पर वित्तीय प्रतिबंध समाप्त नहीं हुए थे। इस रिपोर्ट में यह भी स्वीकार किया गया था कि बरजाम पर हस्ताक्षर के बावजूद ईरान पर परमाणु प्रतिबंध जारी रहे और अमेरिकी बाधाओं के कारण ईरानी बैंकों को वैश्विक बैंकिंग प्रणाली से जोड़ने में समस्याएं रहीं।
न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपने विश्लेषण में लिखा है कि ईरान नए दौर की वार्ता में "गहरे अविश्वास" के साथ शामिल हो रहा है। रिपोर्ट में वर्तमान तकनीकी और विशेषज्ञ स्तर की बातचीत के महत्व पर भी जोर दिया गया है।
विश्लेषकों का कहना है कि पिछले वर्षों में जब ईरान को समझौते के तहत वादे किए गए आर्थिक लाभ नहीं मिले तो उसने अपनी परमाणु प्रतिबद्धताओं से सशर्त दूरी बना ली और यूरेनियम संवर्धन की मात्रा बढ़ाकर दबाव बनाया। रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया है कि अमेरिका की वादाखिलाफी या समझौते के उल्लंघन के जवाब में ईरान के पास उचित प्रतिक्रिया देने की क्षमता है।
रिपोर्ट के अनुसार, ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम का विस्तार करते हुए 60 प्रतिशत तक यूरेनियम संवर्धन शुरू कर दिया है, जो समझौते में तय सीमा से काफी अधिक है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम अमेरिका और यूरोपीय देशों पर दबाव बनाने के लिए उठाया गया है ताकि वे अपने वादों को पूरा करें।
न्यूयॉर्क टाइम्स की इस रिपोर्ट ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस बात को बल दिया है कि बरजाम की असफलता की मुख्य वजह अमेरिका की वादाखिलाफी रही है। रिपोर्ट के अनुसार, ईरान ने समझौते की सभी शर्तों का पालन किया था, लेकिन अमेरिका ने वास्तव में प्रतिबंधों में कोई ठोस ढील नहीं दी, जिसके कारण ईरान को कोई आर्थिक लाभ नहीं मिला।
इस समय नई वार्ताओं के नौ दौर चल रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अमेरिका और यूरोपीय देश अपने वादों को निभाने के प्रति गंभीर नहीं हुए, तो ईरान के पास समझौते से पूरी तरह से हटने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा। रिपोर्ट के अंत में कहा गया है कि मौजूदा हालात में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को चाहिए कि वह अमेरिका पर दबाव डाले ताकि वह अपने वादे निभाए और क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित की जा सके।
ईरान के परमाणु वार्ताओं का सुरक्षा और राजनीतिक दृष्टि से इराक पर प्रभाव पड़ेगा
बगदाद और नजफ अशरफ़ के प्रख्यात शिक्षक और इमाम ए जुमाआ आयतुल्लाह सैयद यासीन मूसवी ने अपने जुमे के खुतबे में ईरान की परमाणु वार्ताओं और इराक के आंतरिक राजनीतिक संकट पर चर्चा की।
बगदाद और नजफ अशरफ़ के प्रख्यात शिक्षक और इमाम ए जुमाआ आयतुल्लाह सैयद यासीन मूसवी ने अपने जुमे के खुतबे में ईरान की परमाणु वार्ताओं और इराक के आंतरिक राजनीतिक संकट पर चर्चा की।
उन्होंने कहा कि ईरान का परमाणु मसला एक आंतरिक मामला है और इसमें विदेशी हस्तक्षेप उचित नहीं है लेकिन भौगोलिक और राजनीतिक निकटता के कारण इराक इस से प्रभावित होता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि ईरान में स्थिरता या अशांति का सीधा असर इराक पर पड़ता है।
आयतुल्लाह मूसवी ने आगे कहा कि अमेरिका ने इराक की स्थिति को ईरान के साथ बातचीत की प्रगति से जोड़ रखा है। उनके अनुसार, जब से ओमान में वाशिंगटन और तेहरान के बीच बातचीत शुरू हुई है, इराक पर अमेरिकी दबाव में कमी आई है, जिसे उन्होंने एक सकारात्मक प्रगति बताया।
उन्होंने चेतावनी दी कि यदि ईरान और अमेरिका के बीच युद्ध होता है तो इसके परिणाम इराक के लिए विनाशकारी होंगे क्योंकि ईरान क्षेत्र में शक्ति संतुलन बदलने की क्षमता रखता है जबकि इराक रक्षा के लिहाज से कमजोर है।
बगदाद के इमामे जुमा ने इराक के आंतरिक राजनीतिक हालात की भी कड़ी आलोचना की। उन्होंने आगामी चुनावों की तैयारियों को अराजकता और अनिश्चितता से भरा बताया और संसद में गहरे मतभेदों और सरकार के अन्य संस्थानों में हस्तक्षेप को संकट के मुख्य कारणों में से गिना है।
उन्होंने चुनावों में वोटों की खरीद-फरोख्त और जनमत के साथ छेड़छाड़ की कड़ी निंदा की और कुछ राजनीतिक दलों पर निजी स्वार्थ के लिए सत्ता हथियाने का आरोप लगाया।
आयतुल्लाह मूसवी ने आतंकवादी शख्सियतों जैसे जौलानी को सकारात्मक तरीके से प्रस्तुत करने की चुनावी कोशिशों को नैतिक और राजनीतिक आपदा बताया और कहा कि इराक आज भी आतंकवाद के विनाशकारी प्रभावों से जूझ रहा है।
अंत में, उन्होंने जनता से अपील की कि वे चुनावों में जागरूकता दिखाएं, ईमानदार और देशभक्ति से भरे हुए लोगों का चुनाव करें और देश को भ्रष्टाचार और सत्ता-लोभियों के चंगुल से मुक्त कराएं।
इजरायली सामानों के संबंध में अयातुल्लाह सिस्तानी का फतवा
अयातुल्लाह सिस्तानी के कार्यालय ने कहा,इजरायली सरकार द्वारा उत्पादित उन सामानों का उपयोग करना जायज़ नहीं है जो इस सरकार का समर्थन करती हों।
अयातुल्लाहिल उज़मा सिस्तानी के कार्यालय ने उन दुकानों से खरीदारी के संबंध में पूछे गए एक सवाल का जवाब दिया, जिनका मुनाफ़ा इज़राईली सरकार के समर्थन में जाता है।
जब यकीन के साथ यह साबित हो जाए कि वे कंपनियाँ इजरायल का प्रभावी तरीके से समर्थन कर रही हैं, तो उनसे खरीद-फरोख्त करना और उनके उत्पादों का इस्तेमाल करना जायज़ नहीं है।
कार्यालय ने स्पष्ट किया कि इजरायली सरकार द्वारा बनाई गई उन चीज़ों का इस्तेमाल हराम (वर्जित) है जो उस सरकार की मदद करती हों।
इस फतवे में इजरायल को समर्थन देने वाली कंपनियों के उत्पादों के बहिष्कार पर जोर दिया गया है, जब तक कि उनका समर्थन स्पष्ट रूप से सिद्ध हो।
विश्व को इस तरह के आतंकवाद की सार्वजनिक रूप से निंदा करनी चाहिए।संयुक्त राष्ट्र
संयुक्त राष्ट्र और भारत के शीर्ष नेताओं के साथ साथ अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सदस्यों ने जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुए घातक आतंकवादी हमले की कड़ी निंदा की और कहा कि नागरिकों को निशाना बनाना अस्वीकार्य है, जिसे किसी भी परिस्थिति में उचित नहीं ठहराया जा सकता।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस भी भारत और पाकिस्तान के बीच की स्थिति पर ‘बहुत बारीकी से और बहुत चिंता के साथ’ नजर रख रहे हैं। उनके प्रवक्ता ने बताया कि वह दोनों सरकारों से अधिकतम संयम बरतने और यह सुनिश्चित करने की अपील करते हैं कि स्थिति और न बिगड़े।
महासचिव के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक ने बृहस्पतिवार को दैनिक प्रेस वार्ता में कहा,हम जम्मू कश्मीर में दो दिन पहले 22 तारीख को हुए आतंकवादी हमले की निंदा करते हैं।
दुजारिक इस सवाल का जवाब दे रहे थे कि क्या गुतारेस ने पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद बढ़ते तनाव के बीच भारत और पाकिस्तान की सरकारों से कोई संपर्क किया है।
उन्होंने कहा कि गुतारेस ने कोई सीधा संपर्क नहीं किया है,लेकिन मैं आपको बता सकता हूं कि वह स्पष्ट रूप से स्थिति पर बहुत बारीकी से और बहुत चिंता के साथ नज़र रख रहे हैं।जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुए इस हमले में 26 लोग मारे गए थे जिनमें एक नेपाली नागरिक शामिल था मारे गए लोगों में ज्यादातर पर्यटक थे।
संयुक्त राष्ट्र महासभा के 79वें सत्र के अध्यक्ष फिलेमोन यांग ने कहा, सबसे पहले, मैं जम्मू कश्मीर में हाल ही में हुए हमलों के पीड़ितों के परिजनों के प्रति अपनी हार्दिक संवेदना व्यक्त करना चाहता हूं।
विद्वानो के वाकेआतः जुमे का दिन मेरे परिवार के लिए है
"क्रांति की भारी जिम्मेदारियों के बीच, शहीद बहिश्ती ने हमें सिखाया कि परिवार का ख़याल करना चाहिए।"
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, " डॉ. शहीद बहिश्ती के जीवन की एक याद अपने प्रिय पाठको के लिए प्रस्तुत की जा रही है।"
बार-बार मैंने देखा है कि
कुछ लोग जुमे के दिन अपने काम के लिए डॉ. बहिश्ती से मिलने आते थे और उनकी राय लेना चाहते थे।
लेकिन डॉ. बेहिश्ती उन्हें कहते थे:
"जुमे का दिन मेरे परिवार के लिए है।"
हवालाः किताब सीर ए डॉ शहीद बहिश्ती, पेज 70
लेबनान में ड्रोन विस्फोट में 8 सीरियाई शरणार्थी घायल
दमिश्क, पूर्वी लेबनान के शहर होश अलसैय्यद अली के एक खेत में गुरुवार को एक बम से भरे ड्रोन के विस्फोट में आठ सीरियाई शरणार्थी घायल हो गए। लेबनान की सरकारी राष्ट्रीय समाचार एजेंसी ने यह जानकारी दी।
दमिश्क, पूर्वी लेबनान के शहर होश अलसैय्यद अली के एक खेत में गुरुवार को एक बम से भरे ड्रोन के विस्फोट में आठ सीरियाई शरणार्थी घायल हो गए। लेबनान की सरकारी राष्ट्रीय समाचार एजेंसी ने यह जानकारी दी।
ड्रोन को सीरियाई सीमा के पास तैयार किया गया था और उसमें विस्फोट किया गया, साथ ही कहा कि आठ घायल सीरियाई लोगों को लेबनान के पूर्वी शहर हरमेल के अस्पतालों में ले जाया गया है।
गुरुवार को ही सीरियाई अधिकारियों ने लेबनान के हिजबुल्लाह मिलिशिया पर पश्चिमी सीरिया के होम्स प्रांत के अलकुसैर शहर के पास सीरियाई सेना के ठिकानों पर तोपखाने के गोले दागने का आरोप लगाया।
सीरिया की सरकारी समाचार एजेंसी ‘साना’ द्वारा जारी एक बयान के अनुसार जिसमें एक रक्षा सूत्र का हवाला दिया गया है, लेबनानी क्षेत्र से अलकुसायर क्षेत्र में सीरियाई सेना के ठिकानों पर पांच गोले दागे गए और सेना ने गोलाबारी के स्रोत को निशाना बनाकर जवाब दिया।