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हज कमेटी ऑफ़ इंडिया ने हज 2025 की वेटिंग लिस्त के 13,549 हाजियो को मौका दिया है और महरम कोटे में आवेदन और शुल्क की दूसरी किस्त के भुगतान की भी घोषणा की है।

हज कमेटी ऑफ़ इंडिया ने हज 2025 के लिए 13,549 वेटिंग लिस्ट वाले हाजीयो का चयन किया है। इसके साथ ही पहले से चयनित तीर्थयात्रियों के लिए हज खर्च की दूसरी किस्त का भुगतान महरम कोटे में नए आवेदन की तारीख की भी घोषणा की गई है।

हज कमेटी ने उन सीटों के लिए 13,549 संभावित तीर्थयात्रियों का चयन किया है जो पहले से चयनित तीर्थयात्रियों के रद्द होने या अग्रिम धनराशि का भुगतान न करने के कारण खाली रह गई थीं। नव चयनित तीर्थयात्रियों को हज खर्च की पहली और दूसरी किस्त की कुल राशि ₹2,72,300 जमा करनी होगी, जिसकी अंतिम तिथि 16 दिसंबर 2024 है।

राज्यवार नवनिर्वाचित तीर्थयात्रियों का विवरण:

  • छत्तीसगढ़: 135
  • दिल्ली: 625
  • गुजरात: 1,723
  • हरियाणा: 24
  • कर्नाटक: 2,074
  • केरल: 1,711
  • मध्य प्रदेश: 905
  • महाराष्ट्र: 3,696
  • तमिलनाडु: 1,015
  • तेलंगाना: 1,631
  • उत्तराखंड: 10

पहले से चयनित तीर्थयात्रियों को हज खर्च की दूसरी किस्त यानी ₹1,42,000 का भुगतान भी 16 दिसंबर 2024 तक करना होगा।

हज नीति के तहत, जो महिलाएं किसी उचित कारण (जैसे पासपोर्ट की कमी) के कारण आवेदन नहीं कर सकती हैं, लेकिन उनके महरम रिश्तेदारों ने समय पर आवेदन किया है, उन्हें महरम श्रेणी में आवंटित 500 सीटों के लिए आवेदन करने का अवसर दिया जा रहा है और वे चुनी गईं प्रासंगिक शर्तों वाली महिलाएं 9 दिसंबर 2024 तक हज कमेटी ऑफ इंडिया की वेबसाइट या हज स्वविधा ऐप पर ऑनलाइन आवेदन कर सकती हैं।

अधिक जानकारी के लिए, हज कमेटी ऑफ़ इंडिया की वेबसाइट https://www.hajcommittee.gov.in पर जाएं।

 

 

 

 

 

पाकिस्तान के पाराचिनार में शिया मुसलमानों के नरसंहार की निंदा करते हुए हौज़ा इलमिया की सर्वोच्च परिषद के सदस्य ने कहा: पाकिस्तानी सरकार को अपने नागरिकों, विशेषकर उत्पीड़ित शिया मुसलमानों के जीवन और संपत्ति की रक्षा करनी चाहिए।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, हौज़ा इलमिया की उच्च परिषद के सदस्य आयतुल्लाह मरवी ने अपने दर्से खारिज की शुरुआत में पाकिस्तान के पाराचिनार शहर में ज़ायोनी तकफ़ीरियों द्वारा किए गए अत्याचारों पर चर्चा करते हुए शहीदों के परिवारों के प्रति सहानुभूति व्यक्त की है।

उन्होंने कहा: मैं पाराचिनार पाकिस्तान में शहीद हुए उत्पीड़ित शिया मुसलमानों की शहादत पर अपनी संवेदना व्यक्त करता हूं। ये उत्पीड़ित लोग ज़ायोनी तकफ़ीरियों के ज़ुल्म का निशाना बने। इस हमले में महिलाएं, बच्चे, बुजुर्ग और अन्य निर्दोष शिया मुसलमान शहीद हो गए।

मैं इमाम अस्र (अ) और पाकिस्तान के उत्पीड़ित शिया मुसलमानों की सेवा में इन शहीदों के बलिदान पर शोक व्यक्त करता हूं।

 

आयतुल्लाह मरवी ने आगे कहा: पाकिस्तानी सरकार के लिए अपने उत्पीड़ित शिया नागरिकों के जीवन और संपत्ति की रक्षा करना आवश्यक है, जिन्होंने इस देश के निर्माण और विकास में ऐतिहासिक सेवाएं प्रदान की हैं। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।

उन्होंने आशा व्यक्त की कि ईश्वर की कृपा से, ये अत्याचार करने वाले दुश्मन अपने नापाक उद्देश्यों में विफल हो जाएंगे और शिया स्कूल हमेशा ऊंचा रहेगा।

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी PTI के आह्वान पर बुलाए गए देश बंद के बाद देश के हालात खराब होने लगे हैं। सोमवार को रैली के दौरान हुई झड़प में कम से कम चार सिक्योरिटी फोर्सेज और एक प्रदर्शनकारी की मौत हो गई। दरअसल  पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के समर्थकों ने राजधानी की ओर मार्च कर रहे हैं और पुलिस उन्हें रोकने की कोशिश कर रही है। बीते दिन भी उन्हें आंसू गैस के गोले दाग कर रोका गया था।

बीती शाम भी भीड़ इस्लमाबाद में दाखिल हो गई थी जिसकी मांग थी कि इमरान खान को रिहा किया जाए। इस भीड़ का नेतृत्व इमरान की पत्नी बुशरा बीबी कर रही हैं। आज दिन भर विरोध प्रदर्शन जारी रहा और प्रदर्शनकारियों ने राजधानी में कई रणनीतिक इमारतों के करीब डी-चौक तक अपना मार्च फिर से शुरू किया।

पीटीआई ने घायल प्रदर्शनकारियों के कई वीडियो और तस्वीरें साझा की हैं और एक पोस्ट को फिर से साझा किया जिसमें दावा किया गया था कि "सरकार विमानों से प्रदर्शनकारियों पर रसायन बरसा रही है। ऑनलाइन वायरल हो रहे वीडियो में कुछ प्रदर्शनकारियों को कंटेनरों को हटाने के लिए भारी मशीनरी चलाते हुए दिखाया गया है।

 

 

भारत में धार्मिक उन्माद के नाम पर बहुसंख्यक समाज की ओर से आए दिन लोगों को प्रताड़ित करने के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं।

मस्जिदों के खिलाफ हिंदुत्ववादी संगठनों के निगेटिव अभियान के लिए चर्चा में रहे हिमाचल से एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें एक महिला दो कश्मीरी लोगों को लताड़ लगाते दिख रही है। पहले महिला दोनों युवकों को 'जय श्री राम' के नारे लगाने के लिए मजबूर करती है और फिर कहती है कि तुम हिंदुस्तान में कपड़े क्यों बेच रहे हो?

सोशल मीडिया पर वायरल हुए इस वीडियो को शिमला का बताया जा रहा है, जिसमें महिला दो लोगों को खदेड़ती हुई दिख रही है। वीडियो में कश्मीर के लोग कहते हैं कि हम हिंदुस्तान के हैं। जिस पर महिला कहती है कि फिर एक बार 'जय श्री राम' बोलो। जिस पर युवक कहता है कि हम मुसलमान हैं, अगर हम आपको बोलेंगे कि कलमा पढ़ो तो क्या आप पढ़ेंगी? जिस पर महिला झेप जाती है और कहती है कि हम नहीं पढ़ेंगे।

मलेशिया के पूर्व प्रधानमंत्री महातीर मोहम्मद का कहना है कि ज़ायोनी प्रधान मंत्री नेतन्याहू और पूर्व युद्ध मंत्री गैलेंट को मौत की सज़ा दी जानी चाहिए।

मलेशिया के पूर्व प्रधानमंत्री महातीर मोहम्मद का कहना है कि ज़ायोनी प्रधान मंत्री नेतन्याहू और पूर्व युद्ध मंत्री गैलेंट को मौत की सज़ा दी जानी चाहिए।

मलेशिया के पूर्व प्रधान मंत्री महातीर मोहम्मद ने एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करने के बाद पत्रकारों से बात की, जिसमें उन्होंने ज़ायोनी प्रधान मंत्री नेतन्याहू और पूर्व युद्ध मंत्री गैलेंट को युद्ध अपराधियों के रूप में गिरफ्तार करने के अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के फैसले का समर्थन करते हुए कहा कि उन्हें मौत की सजा दी जानी चाहिए।

महातीर मोहम्मद ने अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के फैसले को उचित बताते हुए कहा कि इजरायली अधिकारी फिलिस्तीनियों का नरसंहार करने के लिए युद्ध अपराधी है और उन्हें मौत की सजा दी जानी चाहिए।

ज्ञात रहे कि जहा महातीर मोहम्मद ने दो बातो की ओर लोगो का ध्यान आकर्षित किया पहली तो यह उन्होने अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के फैसले को सही ठहराया और दूसरी बात इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह ख़ामनेई की बात का भी समर्थन किया जिसमे आयतुल्लाह खामेनई ने कहा था कि इन अपराधीयो के लिए गिरफ्तारी काफ़ी नही है बल्कि उनकी सजा मृतयुदंड होना चाहिए।

 

 

 

 

 

ईरान के प्रसिद्ध धर्मगुरू हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन रफ़ीई ने कहा है कि इंसान ज़बान से दूसरे के लिए भलाई कर सकता है जिस तरह वह ज़बान से द्वेष उत्पन्न कर सकता है।

धार्मिक शिक्षा केन्द्र के एक उस्ताद हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन नासिर रफ़ीई ने कहा कि इंसान की ज़िन्दगी का एक महत्वपूर्ण मामला ज़बान से होने वाला गुनाह है और यह वह चीज़ है जिसका अधिकांश लोगों को सामना है। ज़बान से गुनाह करना बहुत आसान है और यह गुनाह विभिन्न प्रकार के हैं और इसी वजह से अधिकांश लोग ज़बान से किये जाने वाले गुनाहों में मुब्तेला हैं।

रफ़ीई ने कहा कि हर इंसान समस्त गुनाहे कबीरा अर्थात बड़े गुनाहों को अंजाम नहीं देता है। मिसाल के तौर पर काफ़िरों के हाथ हथियार बेचना गुनाहे कबीरा में से है। सब लोग यह गुनाह नहीं करते हैं। इसी तरह शराब का पीना गुनाहे कबीरा में से है मगर हर आदमी शराब नहीं पीता है। बहुत से इंसान गुनाहे कबीरा नहीं करते हैं मगर ज़बान से किये जाने वाले गुनाहे ऐसे नहीं हैं क्योंकि वे विविध हैं और आराम से किये जा सकते हैं और उनके अंजाम देने में कोई ख़र्च नहीं है।

उस्ताद रफ़ीई ने इस ओर संकेत किया कि क़ुरआने करीम ने ज़बान को नियंत्रित करने की सिफ़ारिश इंसान से की है। रिवायत में है कि इंसान कामिल व परिपूर्ण बंदा नहीं हो सकता मगर यह कि रूह व आत्मा सुरक्षित हो और रूह सुरक्षित नहीं हो सकती मगर यह कि ज़बान सुरक्षित हो।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं कि जब इंसान बात करता है तो पहचाना जाता है, इंसान अपनी ज़बान के नीचे छिपा होता है। इंसान अपनी ज़बान से दूसरे के साथ अच्छाई कर सकता है जिस तरह से इंसान अपनी ज़बान से द्वेष उत्पन्न कर सकता है।

 उन्होंने कहा कि प्रेम उत्पन्न करने का एक तरीक़ा मौन धारण करना है। इसी प्रकार उन्होंने कहा कि इंसान जब चुप रहता है तो अगर वह कोई नेक काम नहीं करता है तो गुनाह भी नहीं करता है। बहुत सी रिवायतों में कम बोलने पर बल दिया गया और कहा गया है कि ख़ामोशी व चुप रहना हिकमत के दरवाज़ों में से एक दरवाज़ा है।

धार्मिक शिक्षाकेन्द्र के उस्ताद रफ़ीई अच्छी बात की विशेषता के बारे में कहते हैं" पवित्र क़ुरआन कहता है कि अच्छी वह बात है जिसका आधार जानकारी पर हो।

आज कुछ लोग artificial-intelligence के माध्यम से लोगों की तस्वीरें और  आवाज़ बनाते और सोशल साइटों पर उसे डालते व प्रकाशित करते हैं। इसलिए ज़रूरी है कि इंसान जिस चीज़ को नहीं जानता है उसका अनुसरण न करे और यह वह चीज़ है जिस पर पवित्र क़ुरआन और हदीस दोनों में बहुत बल दिया गया है और अज्ञानता की बहुत सी बातों का आधार गुमान होता है।

उस्ताद रफ़ीई कहते हैं कि पवित्र क़ुरआन बात के मज़बूत होने पर बल देता है। वह कहते हैं कि बात का तर्कसंगत आधार होना चाहिये। क़ुरआन इंसान को तक़वे के साथ और तार्किक ढंग से बात करने के लिए कहता है। मिसाल के तौर पर राजनीतिक और चुनावी बहसों को अतार्किक नहीं होना चाहिये। इसी प्रकार पवित्र क़ुरआन बल देकर कहता है कि ऐसी बात नहीं होनी चाहिये जिसकी मलामत व आलोचना की जाये।

धार्मिक शिक्षाकेन्द्र के उस्ताद आगे कहते हैं कि एक अन्य विशेषता न्याय है जिस पर पवित्र क़ुरआन बल देता है। राजनीतिक व ग़ैर राजनीतिक बहसों में न्याय का ख़याल रखना चाहिये। उसे विनाशकारी नहीं होना चाहिये। अमल के साथ बाच, अच्छी तरह बात करना, ऐसे अंदाज़ से बात करना कि कहने का तात्पर्य अच्छी तरह स्पष्ट हो अच्छी बात की कुछ विशेषतायें हैं जिनकी पवित्र क़ुरआन इंसान से सिफ़ारिश करता है।

जनाब-ए-फ़ातमा ज़हरा (स.) ने अपनी वसीयत में इमाम अली (अ.) से फ़रमाया कि मुझे रात में दफ़न करना ताकि ज़ालिमों को मेरी तद्फीन में हिस्सा न मिले। आपकी क़ब्र आज भी दुनिया से छुपी हुई है, जो आपकी मज़लूमियत का सबूत है।

अय्याम -ए-फ़ातेमिया, जनाब-ए-फ़ातमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की शहादत की याद में मनाया जाता है। ये दिन उस दुख भरी दास्तान की याद दिलाते हैं जो हज़रत ज़हरा (स.) ने रसूलुल्लाह (स.अ.व.) की वफ़ात के बाद बर्दाश्त किए थे। ऐयाम-ए-फ़ातेमिया में, पूरी दुनिया के शिया जनाब-ए-ज़हरा (स.) की मज़लूमियत की याद में मजलिसें आयोजित करते हैं, नौहा पढ़ते हैं और सोग मनाते हैं। यह मातम सिर्फ़ उनके लिए नहीं है, बल्कि उनके हक़ और अद्ल की आवाज़ को ज़िंदा रखने के लिए है।

जनाब-ए-फ़ातमा ज़हरा (स.) की मज़लूमियत:

हज़रत फ़ातमा ज़हरा (स.) रसूलुल्लाह (स.अ.व.) की सबसे प्यारी बेटी थीं, जिन्हें "उम्म-ए-अबीहा" (अपने पिता की माँ) कहा जाता था। आपने इस्लाम के शुरुआती दौर में नबी करीम (स.अ.व.) का पूरा साथ दिया। लेकिन नबी (स.अ.व.) की वफ़ात के बाद, दुनिया ने आपको उस एहतेराम से  नहीं नवाज़ा जिसकी आप हक़दार थीं। आपने अपने हक़ और विलायत-ए-अली (अ.) के लिए आवाज़ उठाई, लेकिन आपके साथ नाइंसाफ़ी की गई। आपके घर का दरवाज़ा जलाया गया, आपके घर पर हमला किया गया, और आपको शारीरिक रूप से चोट पहुँचाई गई।

जब रसूलुल्लाह (स.अ.व.) ने फ़रमाया था, "फ़ातिमा मेरा हिस्सा हैं," तो क्या ये वही लोग थे जो इस बात को भूल गए? जनाब-ए-ज़हरा (स.) ने अपने हक़ के लिए 'ख़ुत्बा-ए-फ़दक' दिया, जिसमें आपने न केवल फ़दक की बात की, बल्कि दीन के असल उसूलों पर रोशनी डाली। लेकिन आपका हक़ छीना गया और आपकी आवाज़ को दबाया गया।

शहादत की रात:

जनाब-ए-फ़ातमा ज़हरा (स.) ने अपनी वसीयत में इमाम अली (अ.) से फ़रमाया कि मुझे रात में दफ़न करना ताकि ज़ालिमों को मेरी तद्फीन में हिस्सा न मिले। आपकी क़ब्र आज भी दुनिया से छुपी हुई है, जो आपकी मज़लूमियत का सबूत है।

अय्याम-ए-अज़ा-ए-फ़ातेमिया की अहमियत:

ये दिन हमें याद दिलाते हैं कि हम जनाब-ए-फ़ातिमा ज़हरा (स.) की कुर्बानियों और उनके हक़ की लड़ाई को कभी नहीं भूल सकते। इन दिनों में, हम उनकी मज़लूमियत को याद करके, अपनी अक़ीदत (आस्था) को और मजबूत करते हैं। इस मौके पर नौहा, मर्सिया और मातम के ज़रिए उनकी तकलीफ़ों को बयान किया जाता है, ताकि दुनिया को उनकी मज़लूमियत की दास्तान मालूम हो सके।

हमारी ज़िम्मेदारी

आज हमारी ये ज़िम्मेदारी बनती है कि हम ऐयाम-ए-फ़ातेमिया के दौरान जनाब-ए-फ़ातमा ज़हरा (स.) के फ़ज़ाइल और मसायब को आम करें। हमें उनकी सीरत को अपनाना चाहिए और उनके बताए हुए रास्ते पर चलना चाहिए। जनाब-ए-ज़हरा (स.) ने हमें सिखाया कि हक़ और अद्ल के लिए खड़े होना चाहिए, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों।

ये दिन हमें रसूलुल्लाह (स.अ.व.) के इस फ़रमान की याद दिलाते हैं: "फ़ातिमा जन्नत की औरतों की सरदार हैं।" आज हम उनकी याद में आँसू बहाते हैं, उनके मसायब पर ग़मगीन होते हैं, और उनकी कुर्बानी के आगे सर झुकाते हैं।

या ज़हरा (स.), हमें आपकी शिफ़ाअत नसीब हो और आपकी मज़लूमी का दर्द हमारे दिलों में हमेशा ज़िंदा रहे।

 

 

 

 

 

यह आयत मुसलमानों को अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा मानने का महत्व बताती है। साथ ही, यह अल्लाह की दया और क्षमा के व्यापक द्वार की ओर ले जाता है। इस आयत के माध्यम से एक मुसलमान को यह संदेश दिया गया है कि वह पश्चाताप और क्षमा के माध्यम से अपनी गलतियों को सुधार सकता है और अल्लाह की दया से लाभ उठा सकता है।

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم   बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम

وَمَا أَرْسَلْنَا مِنْ رَسُولٍ إِلَّا لِيُطَاعَ بِإِذْنِ اللَّهِ ۚ وَلَوْ أَنَّهُمْ إِذْ ظَلَمُوا أَنْفُسَهُمْ جَاءُوكَ فَاسْتَغْفَرُوا اللَّهَ وَاسْتَغْفَرَ لَهُمُ الرَّسُولُ لَوَجَدُوا اللَّهَ تَوَّابًا رَحِيمًا.    वमा अरसलना मिन रसूलिन इल्ला लेयोताआ बेइज़्निल्लाहे वलौ अन्नहुम इज़ ज़लमू अन्फ़ोसहुम जाऊका फ़स्तग़फ़ोरुल्लाहा वसतग़फ़रा लहोमुर रसूलो ला वजदुल्लाहा तव्वाबर रहीमा (नेसा 64)

 

अनुवाद: और हमने कोई पैगम्बर नहीं भेजा, सिवाय इसके कि वह बुद्धिमान ईश्वर की आज्ञा का पालन करे, और यदि वे लोग तुम्हारे पास आते और अपने पापों की क्षमा माँगते, यदि वे ऐसा करते और रसूल भी उनकी ओर से क्षमा माँगते , तो वे ईश्वर को बहुत पश्चाताप स्वीकार करने वाला और दयालु पाएंगे।

विषय:

पैग़म्बर मुहम्मद (स) की आज्ञाकारिता और हिमायत की भूमिका

पृष्ठभूमि:

इस आयत मे अल्लाह ने अपने रसूल (स) की स्थिति और गरिमा को स्पष्ट किया है। आयत इस बात पर जोर देती है कि सभी पैगंबरों को भेजने का उद्देश्य अल्लाह के आदेश का पालन करना है। आयत में एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि जब लोग अपने कार्यों से पाप करते हैं, तो उनके लिए पश्चाताप करने और अल्लाह के रसूल (स) की हिमायत करने का द्वार खुला होता है।

 

तफ़सीर:

  1. रसूल की आज्ञापालन की आवश्यकता: आयत में कहा गया है कि अल्लाह ने रसूल को आज्ञापालन के लिए भेजा है। यह आज्ञापालन अल्लाह के आदेश के अधीन है और पैगम्बर अल्लाह के आदेशों की अभिव्यक्ति हैं।
  2. तौबा का तरीका: अगर लोग कोई गुनाह करते हैं तो उन्हें अल्लाह के रसूल (सल्ल.) के पास आना चाहिए, अल्लाह से माफ़ी मांगनी चाहिए और रसूल को उनके लिए माफ़ी मांगनी चाहिए।
  3. ईश्वरीय दया का द्वार: आयत के अंत में अल्लाह की दया और क्षमा का उल्लेख किया गया है। अल्लाह दयालु है और अपने बंदों की तौबा स्वीकार करने वाला है।

महत्वपूर्ण बिंदु:

  1. रसूल की आज्ञाकारिता अल्लाह की आज्ञाकारिता है: यह आयत पैगंबर (PBUH) की आज्ञाकारिता को अल्लाह की आज्ञाकारिता से जोड़ती है, जो विश्वास का मूल सिद्धांत है।
  2. रसूल की मध्यस्थता की भूमिका: अल्लाह के रसूल (स) पापियों के लिए अल्लाह के सामने मध्यस्थता करते हैं। यह उम्मत के लिए बहुत बड़ी सुविधा है।
  3. तौबा का महत्व: मनुष्य का अपने पापों का एहसास करना और अल्लाह की ओर फिरना ही उसकी क्षमा का साधन है।

परिणाम:

यह आयत मुसलमानों को अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा मानने का महत्व बताती है। साथ ही, यह अल्लाह की दया और क्षमा के व्यापक द्वार की ओर ले जाता है। इस आयत के माध्यम से एक मुसलमान को यह संदेश दिया गया है कि वह पश्चाताप और क्षमा के माध्यम से अपनी गलतियों को सुधार सकता है और अल्लाह की दया से लाभ उठा सकता है।

हरम-ए-इमाम रज़ा अ.स. के गैर मुल्की ज़ायरीन विभाग की कोशिशों से पाकिस्तान के शहर पाराचिनार में आतंकवाद की घटना में शहीद होने वाले शहीदों के इसाल-ए-सवाब और बुलंदी-ए-दराजात के लिए हरम-ए-इमाम रज़ा अ.स.में मजलिस का आयोजन किया गया।

एक रिपोर्ट के अनुसार , शहीदा ए पाराचिनार के इसाल-ए-सवाब के लिए मजलिस का आयोजन हरम-ए-इमाम रज़ा (अ.स.) के रवाक-ए-ग़दीर में किया गया इस मजलिस में उर्दू भाषा ज़ायरीन और मुज़ावरों की बड़ी संख्या ने शिरकत की।

हुज्जतुल इस्लाम दीदार अली अकबरी ने इस आतंकवादी घटना की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि शहादत हमारा विरसा है जो हमें सय्यदुश शोहदा हज़रत हुसैन (अ.स.) से मिला है। इसलिए हम शहीद होने से डरते नहीं बल्कि इसे अपने लिए सम्मान समझते हैं।

अपनी बात जारी रखते हुए उन्होंने कहा कि पाराचिनार के मज़लूम शहीद, कर्बला के शहीदों के रास्ते पर चल रहे हैं और फ़िलिस्तीन, ग़ज़ा, यमन और लेबनान के मज़लूमों की तरह अपने विचारों की रक्षा में शहीद हुए हैं यह रास्ता आगे भी जारी रहेगा।

हरम-ए-इमाम रज़ा (अ.ल.) के उर्दू भाषा ख़तीब हुज्जतुल इस्लाम अकबरी ने आगे कहा कि इस्लाम के दुश्मनों, खासतौर पर अमेरिका और इस्राइल, के पास न तो कोई स्पष्ट तर्क है, न विचारधारा और न ही कोई सिद्धांत।

यही कारण है कि उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनके सामने कौन खड़ा है। वे फ़िलिस्तीन, लेबनान या पाराचिनार जैसे स्थानों पर मासूम इंसानों की हत्या करते हैं। उनकी इस बर्बरता और जुल्म से उनकी वहशत का पता चलता है।

उन्होंने कहा कि दुनिया के साम्राज्यवादी ताकतों को यह समझ लेना चाहिए कि उनके कायराना और बर्बर कृत्य हमें अपने विचारों से दूर नहीं कर सकते। हम अपने विचारों की रक्षा में एक कदम भी पीछे नहीं हटेंगे।

इस्लाम के बचाव का परचम कभी ज़मीन पर नहीं गिरने देंगे और अपने खून की आखिरी बूंद तक अपने विचारों पर डटे रहेंगे।

मजलिस के दौरान नजफ अली सआदती ने ज़ियारत-ए-अमीनुल्लाह पढ़ी और क़ारी हमीद रज़ा अहमदी ने क़ुरान की कुछ आयतों की तिलावत की।

 

 

 

दक्षिणी और पूर्वी लेबनान पर इजरायली हवाई हमलों में कम से कम 17 लोग शहीद हो गए और 36 अन्य घायल हो गए।

एक रिपोर्ट के अनुसार ,दक्षिणी और पूर्वी लेबनान पर इजरायली हवाई हमलों में कम से कम 17 लोग शहीद हो गए और 36 अन्य घायल हो गए।

पूर्वी लेबनानी गवर्नरेट बालबेक-हर्मेल पर इजरायली हवाई हमले में 11 लोग मारे गए, जिनमें नबी चित गांव के एक आवासीय अपार्टमेंट में आठ लोग और हर्मेल में तीन अन्य शामिल थे।

इस बीच दक्षिणी लेबनान पर इजरायली हवाई हमलों में 25 लोग मारे गए जिनमें मराके गांव में नौ ऐन बाल गांव में तीन गाजीह शहर में दो, टायर जिले में 10 और योहमोर गांव में एक व्यक्ति शामिल है।

एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हिजबुल्लाह ने उत्तरी इज़राइल के दो मोशाविम और मल्कियेह बस्ती में भी इजरायली सेना पर हमला किया, रिपोर्ट में कहा गया है कि हिजबुल्लाह ने अपनी वापसी के दौरान अलबयादा में एक घर में शरण लिए हुए इजरायली बल को निशाना बनाया, संरचना को नष्ट कर दिया और कई लोगों को हताहत किया हैं।