رضوی

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इराक के मशहूर शिया धर्मगुरु ने पाकिस्तान के शहर पाराचिनार में हुए आतंकवादी हमले की कड़ी निंदा करते हुए पाकिस्तान सरकार से मांग की है कि वह शिया मुसलमानों की सुरक्षा सुनिश्चित करे और ऐसे घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाए।

एक रिपोर्ट के अनुसार ,इराक के प्रमुख धर्मगुरु आयतुल्लाह सैयद मोहम्मद तकी मुदर्रसी के कार्यालय से जारी एक बयान:पाकिस्तान के शहर पाराचिनार में हुए आतंकवादी हमले की कड़ी निंदा करते हुए पाकिस्तान सरकार से यह मांग की है कि वह शिया मुसलमानों की सुरक्षा सुनिश्चित करे और ऐसे घटनाओं को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाए।

उनका बयान इस प्रकार है:

بسم اللہ الرحمن الرحیم

"وَمَن یَقْتُلْ مُؤْمِنًا مُّتَعَمِّدًا فَجَزَآؤُهُ جَهَنَّمُ خَالِدًا فِیهَا وَغَضِبَ اللّهُ عَلَیْهِ وَلَعَنَهُ وَأَعَدَّ لَهُ عَذَابًا عَظِیمًا"

(सूरह निसा, आयत 93)

एक बार फिर वैश्विक साम्राज्यवादी ताकतों के एजेंटों ने मुसलमानों के बीच फूट डालने के उद्देश्य से पाकिस्तान के पाराचिनार क्षेत्र के मासूम और निहत्थे लोगों का नरसंहार किया इस हमले में दर्जनों निर्दोष लोग शहीद और घायल हुए।

हम पाकिस्तान के मुसलमानों के प्रति गहरी सहानुभूति और एकजुटता व्यक्त करते हैं और उम्माते मुस्लिमा की एकता पर ज़ोर देते हैं विशेष रूप से ऐसे संवेदनशील समय में जब ज़ायोनी ताकतें फिलिस्तीन और लेबनान के मुसलमानों का नरसंहार कर रही हैं और पूरी मुस्लिम उम्मा को तबाह करने की कोशिश में हैं।

हम पाकिस्तान के अधिकारियों से यह मांग करते हैं कि वे इस क्षेत्र के मासूम लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करें और ऐसे आतंकवादी हमलों को रोकने के लिए तुरंत और प्रभावी कदम उठाएं।

कार्यालय आयतुल्लाह सैयद मोहम्मद तकी मुदर्रसी

कर्बला-ए-मुअल्ला

 

 

 

 

 

 

हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने आज स्वयंसेवी बल बसीज के मुख़्तलिफ़ वर्गों से मुलाक़ात में इसे सांस्कृतिक, सामाजिक और सैन्य नेटवर्क बताया। उन्होंने कहा कि इमाम ख़ुमैनी ने जासूसी के केन्द्र (अमरीकी दूतावास) पर क़ब्ज़ा किए जाने और अमरीका की ओर से खुली धमकी के तीन हफ़्ते बाद, 26 नवम्बर 1979 को बसीज का गठन कर उस बड़े ख़तरे को बड़े अवसर में बदल दिया और इस पाकीज़ा दरख़्त की जड़ को मुल्क के सामाजिक, सांस्कृतिक और सैन्य तानेबाने तक पहुंचा दिया। आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने सैन्य आयाम को स्वयंसेवी बल बसीज के मुख़्तलिफ़ पहलुओं में से एक पहलू बताया और कहा कि बसीज सबसे पहले एक सोच और एक मत है जिसके मूल स्तंभ अल्लाह पर ईमान और आत्म विश्वास है जिसने मुख़्तलिफ़ मंचों पर मुख्य रूप से रोल निभाया और योगदान किया और भविष्य में भी यह सिलसिला जारी रहेगा। 

हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने आज स्वयंसेवी बल बसीज के मुख़्तलिफ़ वर्गों से मुलाक़ात में इसे सांस्कृतिक, सामाजिक और सैन्य नेटवर्क बताया। उन्होंने कहा कि इमाम ख़ुमैनी ने जासूसी के केन्द्र (अमरीकी दूतावास) पर क़ब्ज़ा किए जाने और अमरीका की ओर से खुली धमकी के तीन हफ़्ते बाद, 26 नवम्बर 1979 को बसीज का गठन कर उस बड़े ख़तरे को बड़े अवसर में बदल दिया

और इस पाकीज़ा दरख़्त की जड़ को मुल्क के सामाजिक, सांस्कृतिक और सैन्य तानेबाने तक पहुंचा दिया। आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने सैन्य आयाम को स्वयंसेवी बल बसीज के मुख़्तलिफ़ पहलुओं में से एक पहलू बताया और कहा कि बसीज सबसे पहले एक सोच और एक मत है जिसके मूल स्तंभ अल्लाह पर ईमान और आत्म विश्वास है जिसने मुख़्तलिफ़ मंचों पर मुख्य रूप से रोल निभाया और योगदान किया और भविष्य में भी यह सिलसिला जारी रहेगा।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने अपनी स्पीच में, फ़िलिस्तीन और लेबनान के ताज़ा हालात की ओर इशारा करते हुए कहा कि ज़ायोनी मूर्ख यह न सोचें कि घरों, अस्पतालों और आम सभाओं पर बमबारी, उनकी कामयाबी की निशानी है, दुनिया में कोई भी इसे कामयाबी नहीं मानता। उन्होंने इस बात पर बल देते हुए कि दुश्मन ग़ज़ा और लेबनान में इतने बड़े युद्ध अपराध के बावजूद कामयाब नहीं हुआ और नहीं हो पाएगा, कहा कि नेतनयाहू की गिरफ़्तारी का हुक्म जारी करना काफ़ी नहीं है बल्कि उसके और ज़ायोनी शासन के सरग़नाओं की मौत की सज़ा का हुक्म जारी होना चाहिए। 

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने ग़ज़ा और लेबनान में ज़ायोनी शासन के अपराधों को उनकी इच्छाओं के विपरीत रेज़िस्टेंस के और भी मज़बूत होने और उसकी रफ़तार तेज़ होने का कारण बताया और कहा कि लेबनान और फ़िलिस्तीन का ग़ैरतमंद जवान जिस वर्ग का भी हो, जब देखता है कि चाहे वह जंग के मैदान में हो या न हो उस पर बमबारी और मौत का ख़तरा मंडरा रहा है तो उसके पास संघर्ष और रेज़िस्टेंस के सिवा कोई और रास्ता नहीं बचता, इसलिए ये मूर्ख अपराधी, हक़ीक़त में अपने हाथों से रेज़िस्टेंस मोर्चे के दायरे को बढ़ा रहे हैं। उन्होंने ने रेज़िस्टेंस मोर्चे में विस्तार को एक निश्चित ज़रूरत बताते हुए बल दिया कि रेज़िस्टेंस मोर्चा आज जितना फैला है, कल इससे कई गुना ज़्यादा इसका दायरा फैलेगा।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने आगे कहा कि राष्ट्रों की क्षमताओं का इंकार और उनका अपमान करना, वर्चस्ववादियों की पुरानी नीति रही है। उन्होंने कहा कि क़ुरआन की आयतों के मुताबिक़, फ़िरऔन अपनी क़ौम का अपमान करता और उसे नीचा दिखाता था ताकि वह उसका अनुसरण करे, अलबत्ता फ़िरऔन आज के अमरीका और यूरोप के बादशाहों से ज़्यादा सभ्य था, क्योंकि ये दूसरी क़ौमों का अपमान करने के साथ साथ उनके हितों पर डाका डालते और उनकी सपंत्ति लूटते हैं।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने साम्राज्यवाद के एजेंटों को वर्चस्ववादी ताक़तों के बाहरी और मनोवैज्ञानिक दबावों का पूरक बताते हुए कहा कि ये तत्व जैसा कि तेल के राष्ट्रीयकरण की घटना के दौरान पेश आया, अपने मालिकों की हाँ में हाँ मिलाकर क़ौमों के इतिहास, उसकी पहचान और क्षमता का इंकार करते हैं ताकि वर्चस्ववादियों के लिए रास्ता समतल हो सके। 

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने स्वयंसेवा के विचार को घेरा तोड़ने वाला बताया और कहा कि स्वयंसेवा की भावना से प्रेरित आत्मविश्वास, क़ौम का अपमान करने, उसे झुकाने और नाउम्मीद करने के वर्चस्ववादियों के बहुत ही ख़तरनाक साफ़्ट पावर को नाकाम बनाता है और मुल्क तथा रेज़िस्टेंस मोर्चे के सदस्यों में यह भावना और उससे पैदा होने वाली ताक़त निश्चित तौर पर अमरीका, पश्चिम और ज़ायोनी शासन की सभी नीतियों पर हावी हो जाएगी।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने, इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में 20 फ़ीसदी संवर्धित युरेनियम के मसले में अमरीका की घटिया साज़िश की नाकामी को बसीजी भावना की देन बताया और कहा कि ऐसे हालात में जब मुल्क को 20 फ़ीसदी संवर्धित युरेनियम की बहुत ज़रूरत थी, अमरीकियों ने उस वक़्त दुनिया के दो मशहूर राष्ट्रपतियों की मध्यस्थता से, उसे बेचने के संबंध में होने वाली सहमति के बावजूद, बातचीत के दौरान चालबाज़ी की, लेकिन शहीद शहरयारी सहित हमारे बसीजी वैज्ञानिकों ने 20 फ़ीसदी संवर्धित युरेनियम का उत्पादन करके दिखाया जिससे अमरीकियों की आँखें फटी की फटी रह गयीं। 

उन्होंने निरर्थकता के एहसास और मुश्किलों के सामने में असमर्थता के एहसास तथा मानसिक लेहाज़ से बंद गली में होने की सोच और उसके नतीजे में ख़ुदकुशी को दुनिया के मुख़्तलिफ़ मुल्कों के जवानों की मुश्किल क़रार देते हुए कहा कि बसीजी, वर्चस्ववादियों के शोर ग़ुल से प्रभावित नहीं होता और मुख़्तलिफ़ मसलों के संबंध में अमरीका तथा ज़ायोनी शासन जैसे साम्राज्यवादियों के प्रचारिक हंगामे के सामने मुस्कुराता है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने बल दिया कि स्वयंसेवी बल बसीज अपने मक़सद पर यक़ीन यानी इस्लामी समाज और इस्लामी सभ्यता के निर्माण, न्याय की स्थापना और मौत से निडर होकर शहादत की भावना के साथ आगे बढ़ता है और इसी ख़ूबी की वजह से ईरानी बसीजी को यक़ीन है कि एक न एक दिन ज़ायोनी शासन को उखाड़ फेंकेगा। 

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने अंत में क्षेत्रीय देशों के लिए अमरीका की साज़िश के बारे में जागरुकता और उस साज़िश के मुक़ाबले में दृढ़ता को राजनैतिक क्षेत्र में बसीज के मज़बूत होने का एक कारक बताया और कहा कि अमरीका क्षेत्र में अपने हित साधने के लिए मुल्कों में ज़ुल्म और तानाशाही पैदा करना या अराजकता फैलाना चाहता है। इन दोनों में से कोई भी एक स्थिति मुल्क में पेश आए तो इसमें दुश्मन का हाथ है जिसके ख़िलाफ़ बसीज को डट जाना चाहिए।

धर्म के नाम पर नफरत का खेल अपना दायरा बढ़ाता ही जा रहा है। उत्तर प्रदेश के मेरठ में 'जय श्री राम' का नारा नहीं लगाने पर एक मुस्लिम खिलाड़ी को कथित तौर पर निर्वस्त्र कर पीटा गया। सोमवार को युवक के घर वालों ने आरोप लगाया है कि पहले उसे 'जय श्री राम का नारा लगाने को मजबूर किया गया, और तब उसने ऐसा करने से मना किया तो उसके साथ मारपीट की गई। हालांकि, इस मामले में पुलिस ने इस बात से इनकार किया है कि आरोपियों ने उसके कपड़े उतरवा कर 'जय श्री राम' का नारा लगाने को मजबूर किया। पीड़ित युवक राष्ट्रीय निशानेबाजी प्रतियोगिता की तैयारी कर रहा है।

मेरठ के पल्लवपुरम के सोफीपुर गांव का निवासी गुलफाम मंगल पांडे नगर में एक निजी शूटिंग रेंज में प्रैक्टिस करने के बाद घर लौट रहा था। रास्ते में गुलफाम को मोटरसाइकिल पर तीन नौजवानों ने पकड़ लिया और उसे जबरन विक्टोरिया पार्क ले गया, जहां उन्होंने उसकी पिटाई की। उसके कपड़े उतरवा दिए और उसे 'जय श्री राम' का नारा लगाने को मजबूर किया गया अपराधियों ने गुलफाम का मोबाइल फोन भी छीन लिया।

मंगलवार, 26 नवम्बर 2024 18:59

ईरान कराटे में विश्व उपचैंपियन

ईरानी पुरूषों की कराटे की टीम ने विश्व उपचैंपियन का ख़िताब जीत लिया।

स्पेन की मेज़बानी में होने वाले मुक़ाबले में ईरानी पुरूषों की कराटे की टीम ने उप चैंपियन का ख़िताब जीत लिया।

इस मुक़ाबले में विश्व के 43 देशों की कराटे की 80 टीमों और कराटे के 388 खिलाड़ियों ने भाग लिया। इस मुक़ाबले से पहले यह मुक़ाबला अलग- अलग आयोजित होता था।

ईरानी पुरूषों की कराटे की टीम का मुक़ाबला इटली, ऑस्ट्रेलिया, मैसिडोनिया और क्रुएशिया की टीमों से हुआ और ईरानी टीम ने इन देशों की टीमों को क्वाटर फ़ाइनल मुक़ाबले में हरा दिया।

इसके बाद ईरान की पुरूषों की टीम का मुक़ाबला स्लोवाकिया की टीम से हुआ जिसे हराकर ईरानी टीम सेमीफ़ाइन में पहुंच गयी और उसके बाद ईरानी टीम का मुक़ाबला अपने परम्परागत प्रतिस्पर्धी जापानी टीम से हुआ और ईरानी टीम शून्य के मुक़ाबले तीन प्वांइट से उसे भी पछाड़ कर फ़ाइनल में पहुंच गयी।

इसके बाद ईरानी पुरूषों की कराटे की टीम का मुक़ाबला मिस्र की टीम से हुआ और अंततः उसने उपचैंपियन का ख़िताब जीत लिया और रजत पदक भी हासिल किया।

लेबनान और शाम की ताज़ा स्थिति का जायज़ा लेने के लिए मदरसा आली फकाहत आलम-ए-आले मोहम्मद स.ल.व.में एक बैठक आयोजित की गई जिसमें लेबनान में जामेआतुल मुस्तफा अलआलमिया के प्रतिनिधि कार्यालय के हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद हुसैन मेहदवी मेहर और मदरसा आली फकाहत के छात्रों ने भाग लिया।

एक रिपोर्ट के अनुसार, लेबनान और सीरीया की ताज़ा स्थिति का जायज़ा लेने के लिए मदरसा आली फकाहत आलम-ए-आले मोहम्मद स.ल. में एक बैठक आयोजित की गई।

इस बैठक में लेबनान में जामेआतुल मुस्तफा अल-आलमिया के प्रतिनिधि कार्यालय के हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद हुसैन महदवी मेहर और मदरसा आली फकाहत के छात्रों ने भाग लिया।

जामेआतुल मुस्तफा अलआलमिया की लेबनान शाखा के प्रमुख ने तूफान-अल-अक्सा ऑपरेशन के आरंभ में नेतन्याहू के दावों का जिक्र करते हुए कहा कि नेतन्याहू ने दावा किया था कि पहले तीन दिनों में ही हमास को नष्ट कर देंगे लेकिन एक साल बीतने के बाद भी वह अपने इस दावे को पूरा नहीं कर सका।

हुज्जतुल इस्लाम वल-मस्लिमीन मोहम्मद हुसैन महदवी मेहर ने आगे कहा कि जब नेतन्याहू अपने लक्ष्यों में असफल रहा तो उसने निर्दोष लोगों पर हमले करके अपनी असफलता पर पर्दा डालने की कोशिश की।

हुज्जतुल इस्लाम महदवी मेहर ने बताया कि तूफान-अल-अक्सा ऑपरेशन के बाद सियोनी प्रधानमंत्री न केवल कब्जे वाले इलाकों में सियोनियों को सुरक्षा देने में विफल रहा बल्कि पूरी दुनिया में एक ऐसी लहर उठ खड़ी हुई जिससे लोगों में सियोनियों के प्रति नफरत बढ़ने लगी।

आज दुनिया भर के सियोनी स्वतंत्रता प्रेमियों के डर के साये में हैं और भय और आतंक के माहौल में अपना जीवन बिता रहे हैं।

मेंहदवी मेहर ने दक्षिणी लेबनान की जनता के धैर्य और दृढ़ता का उल्लेख करते हुए कहा कि मैंने दक्षिणी लेबनान से बेरूत की ओर पलायन करने वाले बेघर लेबनानी लोगों में प्रतिरोध और धैर्य को देखा है ऐसा प्रतीत होता था मानो उन पर कोई विपत्ति आई ही न हो।

 

 

 

 

 

ज़ायोनी सरकार अयातुल्ला सैय्यद अली सिस्तानी और सर्वोच्च नेता सैय्यद अली खामेनेई के संभावित जिहाद फतवे से बहुत डरी हुई है, यही कारण है कि वह उन्हें जान से मारने की धमकी दे रही है। इज़राइल के चैनल 14 ने उन्हें संभावित लक्ष्य के रूप में उद्धृत किया, जिससे पूरे इस्लामी जगत में आक्रोश फैल गया।

ज़ायोनी सरकार का अयातुल्ला सैय्यद अली सिस्तानी और सर्वोच्च नेता सैय्यद अली खामेनेई के संभावित जिहाद का डर इस हद तक बढ़ गया है कि वह उन्हें जान से मारने की धमकी दे रही है।

हाल ही में, इज़राइल के चैनल 14 ने इराक के शिया मरजा तकलीद ग्रैंड अयातुल्ला सैय्यद अली सिस्तानी और इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता सैय्यद अली खामेनेई की तस्वीरें प्रसारित कीं, और उन्हें ज़ायोनी शासन के अगले संभावित हत्या लक्ष्य के रूप में उद्धृत किया। इस घोषणा से इराक, ईरान और अन्य इस्लामी देशों में मरजियाह के अनुयायियों और प्रशंसकों के बीच आक्रोश की लहर फैल गई। सोशल मीडिया पर लोगों ने उनके समर्थन में पोस्ट शेयर किए हैं, जिसके बाद उन्हें इंटरनेट से हटाना पड़ा और यूजर्स के अकाउंट ब्लॉक करने पड़े।

ज़ायोनी सरकार के इस डर के पीछे इराक में आईएसआईएस के ख़िलाफ़ युद्ध और आईएसआईएस और उसका समर्थन करने वाली अमेरिकी और ज़ायोनी सरकारों की सबसे बुरी हार है। ईरान और इराक के प्रतिरोध मोर्चे की एकता और अयातुल्ला सैय्यद अली सिस्तानी के जिहाद फतवे ने पश्चिमी शक्तियों की उपज आईएसआईएस को अस्तित्व से ही मिटा दिया था। इससे ज़ायोनी सरकार अब भी डरी हुई है. वह अच्छी तरह जानती है कि अगर शिया सर्वोच्च सत्ता की ओर से जिहाद का फतवा आ गया तो इस युद्ध में उसकी हार निश्चित होगी. इस कारण यह महान शिया अनुयायियों के प्रति शत्रुता पर उतर आया है। कोई अन्य विचारधारा ज़ायोनी शासन के लिए इतना ख़तरा नहीं है, यही कारण है कि वह शिया विद्वानों को धमकी दे रहा है।

हाल ही में शिया मुसलमानों ने लेबनान के हालात को देखते हुए इमाम के हिस्से के ख़ुम्स का एक हिस्सा लेबनानी मुसलमानों को देने की इजाज़त दे दी है. इसी प्रकार पवित्र पैगम्बर के नेता की ओर से यह कथन आया कि "सभी मुसलमानों पर यह अनिवार्य है कि वे अपनी क्षमता के अनुसार लेबनान और हिजबुल्लाह के साथ खड़े हों और उन्हें हड़पने वाली, दमनकारी और दमनकारी सरकार के खिलाफ लड़ने में मदद करें।"

जैसे ही ये आदेश जारी हुए, दुनिया भर के लोगों ने खुले तौर पर उत्पीड़ित लेबनानी और फिलिस्तीनी लोगों का समर्थन किया। महिलाओं ने इस उद्देश्य के लिए अपने गहने भी पेश किए, जिससे यह साबित हुआ कि सभी पुरुष और महिलाएं मरजिया के हर आदेश का पालन करने के लिए हमेशा तैयार थे। यह वैश्विक अहंकारी शक्तियों की नींद में खलल डालने और भय बढ़ाने के लिए काफी है।

ज़ायोनी सरकार द्वारा जारी की गई सूची इस बात का प्रमाण है कि वह बहुत डरी हुई है और बहादुर ताकतों का सामना करने के बजाय मौलवियों और निर्दोष नागरिकों को निशाना बना रही है। लेकिन वह यह भी जानती है कि उनकी इन धमकियों से अनुयायियों की ओर से उत्पीड़कों के समर्थन में कोई कमी नहीं आएगी, बल्कि उत्पीड़कों के खिलाफ लोगों का गुस्सा भड़क उठेगा।

जिहाद का हुक्म आये तो एक पल की भी देरी न करना

हम सिर पर कफन बांध कर हर पल तैयार हैं

संयुक्त राष्ट्र में ईरान के खिलाफ मानवाधिकार उल्लंघन पर प्रस्ताव को अपनाना अंतरराष्ट्रीय राजनीति में दोहरे मानकों और पाखंड का स्पष्ट प्रमाण है। यह प्रस्ताव कनाडा ने पेश किया था, जिसे 77 देशों का समर्थन मिला। ईरान के खिलाफ यह कार्रवाई उन ताकतों द्वारा की गई जो खुद मानवाधिकारों के सबसे बड़े उल्लंघन के लिए जिम्मेदार हैं।

मौलाना इमदाद अली घेलो द्वारा लिखित

संयुक्त राष्ट्र में ईरान के खिलाफ मानवाधिकार उल्लंघन पर प्रस्ताव को मंजूरी मिलना अंतरराष्ट्रीय राजनीति में दोहरे मापदंड और पाखंड का स्पष्ट प्रमाण है। यह प्रस्ताव कनाडा ने पेश किया था, जिसे 77 देशों का समर्थन मिला। ईरान के खिलाफ ये कार्रवाई उन ताकतों ने की है जो मानवाधिकारों के सबसे बड़े उल्लंघन के लिए जिम्मेदार हैं।

इस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करने वाले देशों में संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय देश, जापान, दक्षिण कोरिया और दमनकारी ज़ायोनी राज्य शामिल हैं, जो मानवाधिकारों के नाम पर दुनिया में अपनी शक्ति का उपयोग करता है। दूसरी ओर, रूस, चीन, पाकिस्तान, इराक, सीरिया, इंडोनेशिया और अन्य देशों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया और संदेश दिया कि ईरान को अंतरराष्ट्रीय साजिशों का शिकार नहीं बनाया जा सकता है। ये देश जानते हैं कि पश्चिम मानवाधिकार के हथियार का इस्तेमाल केवल उन राज्यों के खिलाफ करता है जो उसकी औपनिवेशिक परियोजनाओं के सामने झुकने से इनकार करते हैं।

ये वही पश्चिमी देश हैं जो गाजा में इजरायल की आक्रामकता और मानव नरसंहार पर चुप रहते हैं या उसके पक्ष में वीटो का इस्तेमाल करते हैं। हाल के युद्ध में, इज़रायली हमलों में 40,000 से अधिक फिलिस्तीनी मारे गए और हजारों घर नष्ट हो गए; लेकिन इसके बावजूद ये तथाकथित मानवाधिकार रक्षक इजराइल के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोल पाए. ऐसे में उनका ईरान के ख़िलाफ़ प्रस्ताव लाना उनकी महत्वाकांक्षाओं को उजागर करता है।

जो देश ईरान पर मानवाधिकारों के हनन का आरोप लगाते हैं वे वास्तव में उसकी संप्रभुता, परमाणु विकास और साम्राज्यवाद के प्रतिरोध से डरते हैं। ये शक्तियां ईरान को सिर्फ इसलिए निशाना बनाती हैं क्योंकि वह अमेरिकी प्रभुत्व वाले शासन को स्वीकार करने से इनकार करता है। ईरानी लोगों और नेतृत्व ने बार-बार प्रदर्शित किया है कि वे बाहरी दबाव और प्रतिबंधों के बावजूद अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं।

पाकिस्तान, चीन, रूस और अन्य देशों ने इस प्रस्ताव के ख़िलाफ़ मतदान करके ईरान के साथ अपना समर्थन घोषित किया। यह एक स्पष्ट संदेश है कि इस्लामी दुनिया और अन्य स्वतंत्र राज्य पश्चिम की औपनिवेशिक परियोजनाओं का हिस्सा बनने के लिए तैयार नहीं हैं। पाकिस्तान का रुख विशेष रूप से सराहनीय है, क्योंकि यह ईरान के साथ इस्लामी एकजुटता की अभिव्यक्ति है।

ईरान के ख़िलाफ़ साज़िशें इस बात का सबूत हैं कि वह अपने रास्ते पर है। चाहे वह परमाणु ऊर्जा की खोज हो या आंतरिक संप्रभुता, ईरान ने साबित कर दिया है कि वह वैश्विक दबाव की परवाह नहीं करता है। पश्चिम की नाराजगी ईरान के लिए इस बात का सबूत है कि उसकी नीति सही दिशा में जा रही है।

ईरान के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पेश करने वाले देश अपने पाखंड और दोहरे मापदंडों से दुनिया को धोखा देने की कोशिश कर रहे हैं; लेकिन सच तो यह है कि दुनिया के स्वतंत्र और संप्रभु देश इन साजिशों को समझ चुके हैं। ईरान का प्रतिरोध और उसके सहयोगियों का समर्थन साम्राज्यवादी शक्तियों को हराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। यह प्रस्ताव ईरान की महत्वाकांक्षाओं को रोकने के बजाय और मजबूत करेगा।

इसके अतिरिक्त, ईरान के ख़िलाफ़ इस प्रस्ताव का समय भी विचारणीय है। पश्चिमी शक्तियां क्षेत्र में अपनी विफलताओं को छुपाने, फिलिस्तीन और गाजा में अत्याचारों से ध्यान हटाने के लिए ईरान को निशाना बना रही हैं। यह प्रस्ताव उन शक्तियों की हताशा को दर्शाता है जो मध्य पूर्व में अपना आधिपत्य बनाए रखने में विफल हो रही हैं।

यह स्पष्ट है कि ईरान का कड़ा रुख न केवल क्षेत्र में नई आशा की किरण है, बल्कि उत्पीड़ित देशों के लिए एक उज्ज्वल उदाहरण भी है। आज फिलिस्तीन, लेबनान, यमन और अन्य प्रतिरोध आंदोलन ईरान के उसी दृढ़ संकल्प से प्रोत्साहित हैं। पश्चिमी शक्तियां और उनके सहयोगी शायद भूल गए हैं कि ईरान का प्रतिरोध सिर्फ एक रणनीति नहीं है, बल्कि एक विचारधारा है, जो न्याय, स्वतंत्रता और संप्रभुता पर आधारित है।

ईरानी नेतृत्व ने बार-बार प्रदर्शित किया है कि वह बाहरी दबाव या आर्थिक प्रतिबंधों से प्रभावित नहीं होगा। इस प्रस्ताव का मुख्य उद्देश्य ईरान की आंतरिक व्यवस्था को अस्थिर करना और जनता के विश्वास को हिलाना है; लेकिन इतिहास गवाह है कि ईरानी जनता हर साजिश का एकता और दृढ़ता से मुकाबला करती रही है।

अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से वे राष्ट्र जो साम्राज्यवादी शक्तियों का विरोध करते हैं, उन्हें ईरान के साथ खड़ा होना चाहिए और उन विश्व शक्तियों को बेनकाब करना चाहिए जो मानवाधिकारों को अपने राजनीतिक एजेंडे के हिस्से के रूप में उपयोग करते हैं। यह समय न केवल ईरान के लिए बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए एक निर्णायक चरण है, जहां सभी राष्ट्रों को अपनी जिम्मेदारी का एहसास करना होगा।

 

 

 

 

 

ईरान के शहर यज़्द के इमाम जुमआ ने कहा,बसीज एक ऐसी बहुआयामी सोच और संस्कृति है जो ईश्वर पर विश्वास धर्मपरायणता, समझदारी, बुद्धिमत्ता, विलायत पर स्थिरता, मजबूती और मुक़ावमत पर आधारित है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, शहर यज़्द के इमाम जुमा आयतुल्लाह सैय्यद मोहम्मद काज़िम मदरसी ने यज़्द में प्रांतभर के बसीजी केंद्रों के कमांडरों के साथ आयोजित एक बैठक में कहा,इमाम खुमैनी (र.ह.) की खूबसूरत यादगारों में से एक बसीज की स्थापना है।

उन्होंने आगे कहा, हर देश की ताक़त के तत्वों में से एक उसका भौगोलिक स्थान होता है। अलहम्दुलिल्लाह, ईरान भी एक मज़बूत भौगोलिक स्थिति रखता है। यदि ईरान इस क्षेत्र में स्थित न होता तो यह प्रभाव और शक्ति पैदा नहीं कर सकता था।

शहर यज़्द के इमाम जुमा ने कहा,जब यह सवाल उठता है कि तूफ़ान अलअक़्सा क्यों हुआ और 7 अक्टूबर का परिणाम क्या था तो हमें इतिहास का संदर्भ लेना चाहिए।

उन्होंने कहा,यह सारी प्रतिरोध और कामयाबियां उस बसीजी सोच का परिणाम हैं जिसे इमाम खुमैनी (रहमतुल्लाह अलैह) ने पैदा किया और इसे अन्य क्षेत्रों में स्थानांतरित किया।

आयतुल्लाह मदरसी ने कहा,दुनिया में 57 इस्लामी देश हैं लेकिन एकमात्र देश जहां मज़हब-ए-जाफ़रिया का शासन है वह इस्लामी गणराज्य ईरान है क्योंकि यहां के लोग धर्म की खूबसूरती को अच्छी तरह समझते हैं।

उन्होंने आगे कहा, बसीज की एक अहम ज़िम्मेदारी यह है कि वह सांस्कृतिक क्षेत्र में प्रवेश कर अपनी क़दरों और खूबसूरती को दूसरों तक पहुंचाए।

हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लेमीन अली सईदी ने बसीज सप्ताह के अवसर पर जारी एक संदेश में बधाई दी है।

कमांडर-इन-चीफ के वैचारिक और राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख, हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन अली सईदी ने बसीज सप्ताह के अवसर पर एक बधाई संदेश जारी किया है। इस संदेश का पाठ इस प्रकार है:

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्राहीम

यदि बासीजी विचार की मधुर आवाज किसी देश में गूंजती है, तो दुश्मनों और साम्राज्यवादी शक्तियों की नजरें उस पर से हट जाएंगी।'' (इमाम खुमैनी)

बसीज सप्ताह हमें उन ईमानदार लोगों के बलिदान और साहस की याद दिलाता है, जिन्होंने इस्लामी गणतंत्र ईरान की पवित्र व्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में समय पर उपस्थित होकर क्रांति के शहीदों के सिद्धांतों, आकांक्षाओं और उपलब्धियों की रक्षा की।

इस्लामी क्रांति के महान नेता, हज़रत इमाम खुमैनी ने बसीज के गठन के माध्यम से एकता और एकजुटता के लिए एक अद्भुत और स्थायी आधार प्रदान किया और काफिर मोर्चे के खिलाफ मुस्लिम राष्ट्र की शक्ति को मजबूत किया। 5 आज़र 1358 (26 नवम्बर 1979)। सच तो यह है कि बसीज और बसीज फोर्स की शुद्ध सोच, इरादे की ईमानदारी और जिम्मेदारी की भावना ने इस्लामी मूल्यों की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

विभिन्न क्षेत्रों में बासीज की उपस्थिति और बासीजी संस्कृति का उपयोग आज सभी समस्याओं के समाधान की कुंजी है। यह मॉडल प्रतिरोध मोर्चे और इस्लामिक देशों के लिए सत्य और असत्य के युद्ध में सफलता की गारंटी रहा है।

इस धन्य अवसर पर, मैं इस परिवार के महान शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं और इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता, हज़रत अयातुल्लाहिल उज़्मा इमाम खामेनेई, शहीदों के परिवारों और सभी ईमानदार और बहादुर बसीज की सेवा में बसीज सप्ताह की बधाई देता हूं  मैं अल्लाह तआला से दुआ करता हूं कि इमाम ज़माना (अ) के विशेष उपकारों की छाया में बसीजियो को और अधिक सफलता और उन्नति प्रदान करें।

अली सईदी

कमांडर-इन-चीफ के वैचारिक और राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख

हौज़ा इल्मिया ख्वाहरान के प्रबंधन केंद्र ने हफ़्ता ए बसीज के मौके पर जारी अपने बयान में कहा,यदि हर क्षेत्र और मैदान में बसीजी सोच लागू हो जाए तो इसके साथ बड़ी सफलताएं प्राप्त होंगी।

एक रिपोर्ट के अनुसार,मरकज़ ए मुदीरियत हौज़ा ए इल्मिया ख्वाहरान ने हफ्ता-ए-बसीज के अवसर पर एक बयान जारी किया है,

उनके बयान कुछ इस प्रकार है:

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम

بسم الله الرحمن الرحیم

وَأَعِدُّوا لَهُمْ مَا اسْتَطَعْتُمْ مِنْ قُوَّةٍ وَمِنْ رِبَاطِ الْخَیْلِ تُرْهِبُونَ بِهِ عَدُوَّ اللَّهِ وَعَدُوَّکُمْ (آیت ۶۰ سوره انفال)

(सूरह अनफाल, आयत 60)

25 नवम्बर वह दिन है जब इमाम खुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने बसीज बल के गठन का आदेश दिया था। यह वही पौधा है जिसे उन्होंने 44 साल पहले तैय्यर किया था, और आज यह संगठन पूरी दुनिया में विलायत के पालन, दुश्मन की पहचान और प्रेरणादायक कार्यों के लिए जाना जाता है। जहाँ भी दुनिया में किसी मजलूम की आवाज सुनाई देती है बसीज के हाथ उसकी मदद के लिए पहुँच जाते हैं।

बसीज की भूमिका: आठ साल का युद्ध (ईरान-इराक युद्ध),बसीज ने इसमें साहस और वीरता दिखाई।शैक्षिक प्रगति,बसीज ने शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। सांस्कृतिक हमलों का मुकाबला, पश्चिमी संस्कृति और विचारधारा के खिलाफ संघर्ष।आपदा राहत कार्य, प्राकृतिक आपदाओं के दौरान मदद और जिहाद-ए-सेहत (COVID-19 महामारी के दौरान) में सक्रिय भागीदारी। क्रांतिकारी विचारधारा,वेलायत, दृढ़ता, साहस और आशूरा की प्रेरणा से परिपूर्ण।

आज बसीज वैश्विक साम्राज्यवादी ताकतों के खिलाफ विभिन्न क्षेत्रों आर्थिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक, धार्मिक, और सामाजिक में सक्रिय है। यह संगठन दुनिया की साम्राज्यवादी शक्तियों के लिए चिंता का कारण बन चुका है।

 

बसीज का उद्देश्य स्वतंत्रता न्याय और समानता की स्थापना है। यह शोषितों के अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहा है और एक नया इस्लामी सभ्यता स्थापित करने का संकल्प लेता है।

मरकज़ ए मुदीरियत हौज़ा ए इल्मिया ख़वातीन का यह बयान बसीज की वैश्विक भूमिका और उसके क्रांतिकारी दृष्टिकोण को दर्शाता है।