رضوی

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हौज़ा ए इल्मिया के नए शैक्षणिक वर्ष की शुरुआत और हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के अध्यापकों का कॉन्फ्रेंस,आयतुल्लाहिल उज़मा सुब्हानी के खिताब के साथ शनिवार 7 दिसंबर को मदरसे इल्मिया फैज़िया कुंम में आयोजित होगा।

हौज़ा ए इल्मिया के नए शैक्षणिक वर्ष की शुरुआत और हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के अध्यापकों का कॉन्फ्रेंस,आयतुल्लाहिल उज़मा सुब्हानी के खिताब के साथ शनिवार 7 दिसंबर को मदरसे इल्मिया फैज़िया कुंम में आयोजित होगा।

यह कॉन्फ्रेंस उलेमा दीनीविद्यार्थीयों और हौज़ा ए इल्मिया के टीचरों की मौजूदगी में शनिवार, 7 सितंबर, 2024 को सुबह 9:00 बजे शिक्षकों की उपस्थिति में आयोजित किया जाएगा।

इस कांफ्रेंस में मरजय तकलीद आयतुल्लाहिल उज़मा सुब्हानी के एक विशेष संबोधन से होगा जबकि हौजाए इल्मिया के प्रमुख अयातुल्लाह अली रज़ा अराफी हौज़ा इल्मिया की गतिविधियों और भविष्य की योजनाओं पर एक रिपोर्ट पेश करेंगे।

पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम अपने समय में ज्ञान, समस्त सदगुणों और ईश्वरीय भय व सदाचारिता के प्रतीक थे। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम भी दूसरे इमामों की भांति अत्याचारी शासकों की कड़ी निगरानी में थे। अधिकांश लोग इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का महत्व नहीं समझते थे।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के बारे में एक प्रश्न जो सदैव किया जाता है वह यह है कि इमाम रज़ा ने मामून जैसे अत्याचारी शासक का उत्तराधिकारी बनना क्यों स्वीकार किया? इस प्रश्न के उत्तर में इस बिन्दु पर ध्यान दिया चाहिये कि मामून यह सुझाव इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के सामने क्यों प्रस्तुत किया? क्या यह सुझाव वास्तविक व सच्चा था या मात्र एक राजनीतिक खेल था और मामून इस कार्य के माध्यम से अपनी सरकार के आधारों को मज़बूत करने की चेष्टा में था?

 मामून ने अपने भाई अमीन और दूसरे हज़ारों लोगों की हत्या करके सत्ता प्राप्त की थी वह किस प्रकार इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को अपना उत्तराधिकारी बनाने के लिए तैयार हो गया था जबकि वह स्वयं इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को एक प्रकार से अपना प्रतिस्पर्धी समझता था। उसके सुझाव की वास्तविकता और उसके लक्ष्य को स्वयं मामून की ज़बान से सुनते हैं।

जब मामून ने आधिकारिक रूप से इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के सामने अपने उत्तराधिकारी पद का सुझाव दिया तो बहुत से अब्बासियों ने मामून की भर्त्सना की और कहा कि तू क्यों खेलाफत के गर्व को अब्बासी परिवार से बाहर करना और अली के परिवार को वापस करना चाहता है? तुमने अपने इस कार्य से अली बिन मूसा रज़ा के स्थान को ऊंचा और अपने स्थान को नीचा कर दिया है। तूने एसा क्यों किया? 

मामून बहुत ही धूर्त, चालाक और पाखंडी व्यक्ति था। उसने इस प्रश्न के उत्तर में कहा मेरे इस कार्य के बहुत से कारण हैं। इमाम रज़ा के सरकारी तंत्र में शामिल हो जाने से वह हमारी सरकार को स्वीकार करने पर बाध्य हैं। हमारे इस कार्य से उनके प्रेम करने वाले उनसे विमुख हो जायेंगे और वे विश्वास कर लेंगे कि इमाम रज़ा वैसा नहीं हैं जैसा वह दावा करते हैं। मेरे इस कार्य का दूसरा कारण यह है कि मैं इस बात से डरता हूं कि अली बिन मूसा को उनकी हाल पर छोड़ दूं और वह हमारे लिए समस्याएं उत्पन्न करें कि हम उन पर नियंत्रण न कर सकें। इस आधार पर उनके बारे में लापरवाही से काम नहीं लिया जाना चाहिये। इस प्रकार हम धीरे धीरे उनकी महानता एवं व्यक्तित्व को कम करेंगे ताकि वह लोगों की दृष्टि में खिलाफत के योग्य न रह जायें और जान लो कि जब इमाम रज़ा को हमने अपना उत्तराधिकारी बना दिया तो फिर अबु तालिब की संतान में से किसी से डरने की कोई आवश्यकता नहीं है”

 इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम मामून के षडयंत्र और उसकी चाल से भलिभांति अवगत थे और जानते थे कि उसने अपनी सरकार के आधारों को मज़बूत करने के लिए यह सुझाव दिया है परंतु इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम द्वारा मामून के धूर्ततापूर्ण सुझाव का स्वीकार किया जाना महीनों लम्बा खिंचा यहां तक कि उसने इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को जान से मारने की धमकी दी और इमाम ने विवश होकर इस सुझाव को स्वीकार किया। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम जब मदीने से मामून की सरकार के केन्द्र मर्व आ रहे थे तो उस समय उन्होंने जो कुछ कहा उससे समस्त लोग समझ गये कि मामून इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को किसी चाल के अंतर्गत उनकी मातृभूमि से दूर कर रहा है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम जब मदीने से मर्व जाने के लिए तैयार हुए तो वह पैग़म्बरे इस्लाम की पावन समाधि पर गये, अपने परिजनों से विदा और काबे की परिक्रमा की और अपने कार्यों एवं बयानों से सबके लिए यह सिद्ध कर दिया कि यह उनकी मृत्यु की यात्रा है जो मामून का उत्तराधिकारी बनने और सम्मान की आड़ में हो रही है।

उसके बाद इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने हर अवसर से लाभ उठाया और लोगों तक यह बात पहुंचा दी कि मामून ने बाध्य करके उन्हें अपना उत्तराधिकार बनाया है और इमाम हमेशा यह कहते थे कि हमें हत्या की धमकी दी गयी यहां कि मैंने उत्तराधिकारी के पद को स्वीकार किया।

 साथ ही इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के उत्तराधिकारी बनने की एक शर्त यह थी कि इमाम किसी को आदेश नहीं देंगे, किसी काम को रोकेंगे नहीं, सरकार के मुफ्ती और न्यायधीश नहीं होंगे, किसी को न पद से हटायेंगे और न किसी को पद पर नियुक्त करेंगे और किसी चीज़ को परिवर्तित नहीं करेंगे। इस प्रकार इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने स्वयं को सरकार के विरुद्ध हर प्रकार के कार्य से अलग कर लिया और दूसरी बात यह थी कि  उत्तराधिकारी बनने के लिए इमाम रज़ा ने जो शर्तें लगायी थीं वह इमाम की आपत्ति की सूचक थीं। क्योंकि यह बात स्पष्ट थी कि जो व्यक्ति स्वयं को समस्त सरकारी कार्यों से अलग कर ले वह सरकार का मित्र व पक्षधर नहीं हो सकता। मामून भी इस बात को अच्छी तरह समझ गया अतः बारम्बार उसने इमाम से कहा कि पहले की शर्तों का उल्लंघन व अनदेखी करके वह सरकारी कार्यों में भाग लें। इसी तरह वह अपने विरोधियों को नियंत्रित करने हेतु इमाम रज़ा का दुरूप्रयोग करना चाहता था। इमाम रज़ा उत्तराधिकारी का पद स्वीकार करने की शर्तों को याद दिलाते थे। मामून ने इमाम रज़ा से मांग की कि वह अपने चाहने वालों को एक पत्र लिखकर उन्हें मामून का मुकाबला करने से मना कर दें क्योंकि इमाम के चाहने वालों ने संघर्ष करके मामून के लिए परिस्थिति को कठिन बना दिया था। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने मामून की बात के जवाब में कहा” मैंने शर्त की थी कि सरकारी कार्यो में हस्तक्षेप नहीं करूंगा और जिस दिन से मैंने उत्तराधिकारी बनना स्वीकार किया है उस दिन से मेरी अनुकंपा में कोई वृद्धि नहीं हुई है”

एक बहुत महत्वपूर्ण घटना व नमूना ईद की नमाज़ का है।

मामून ने इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम से ईद की नमाज़ पढ़ाने के लिए कहा। इसके पीछे मामून का लक्ष्य यह था कि लोग इमाम रज़ा के महत्व को पहचानें और उनके दिल शांत हो जायें परंतु आरंभ में इमाम ने ईद की नमाज़ पढ़ाने हेतु मामून की बात स्वीकार नहीं की पंरतु जब मामून ने बहुत अधिक आग्रह किया तो इमाम ने उसकी बात एक शर्त के साथ स्वीकार कर ली। इमाम की शर्त यह थी कि वह पैग़म्बरे इस्लाम और हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शैली में ईद की नमाज़ पढ़ायेंगे। मामून ने भी इमाम के उत्तर में कहा कि आप स्वतंत्र हैं आप जिस तरह से चाहें नमाज़ पढ़ा सकते हैं।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने पैग़म्बरे इस्लाम की भांति नंगे पैर घर से बाहर निकले और उनके हाथ में छड़ी थी। जब मामून के सैनिकों एवं प्रमुखों ने देखा कि इमाम नंगे पैर पूरी विनम्रता के साथ घर से बाहर निकले हैं तो वे भी घोड़े से उतर गये और जूतों को उतार कर वे भी नंगे पैर हो गये और इमाम के पीछे पीछे चलने लगे। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम हर १० क़दम पर रुक कर तीन बार अल्लाहो अकबर कहते थे। इमाम के साथ दूसरे लोग भी तीन बार अल्लाहो अकबर की तकबीर कहते थे। मामून इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के इस रोब व वैभव को देखकर डर गया और उसने इमाम को ईद की नमाज़ पढ़ाने से रोक दिया। इस प्रकार वह स्वयं अपमानित हो गया।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने उत्तराधिकारी के पद से बहुत ही होशियारी एवं विवेक से लाभ उठाया। इमाम ने यह पद स्वीकार करके एसा कार्य किया जो पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के इतिहास में अद्वतीय है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने वह बातें सबके समक्ष कह दीं जिसे पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों ने एक सौ पचास वर्षों के दौरान घुटन के वातावरण में अपने अनुयाइयों व चाहने वालों के अतिरिक्त किसी और से नहीं कहा था।

मामून ज्ञान की सभाओं का आयोजन करता था और उसमें पैग़म्बरे इस्लाम के कथनों को बयान करने वालों और धर्मशास्त्रियों आदि को बुलाता था ताकि वह स्वयं को ज्ञान प्रेमी दर्शा सके परंतु इस कार्य से उसका मूल लक्ष्य यह था कि शायद इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम से कोई कठिन प्रश्न किया जाये जिसका उत्तर वह न दे सकें। इस प्रकार इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम अविश्वसनीय हो जायेंगे किन्तु इस प्रकार की सभाओं का उल्टा परिणाम निकला और सबके लिए सिद्ध हो गया कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ज्ञान, सदगुण और सदाचारिता की दृष्टि से पूरिपूर्ण व्यक्ति हैं और वही खिलाफत के योग्य व सही पात्र हैं। पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों को सत्तर वर्षों तक मिम्बरों से बुरा भला कहा गया और वर्षों तक कोई उनके सदगुणों को सार्वजनिक रूप से बयान करने का साहस नहीं करता था परंतु इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के उत्तराधिकारी काल में उनके सदगुणों को बयान किया गया और उन्हें सही रूप में लोगों के समक्ष पेश किया गया।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने उत्तराधिकारी का पद स्वीकार करके बहुत से उन लोगों को पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से अवगत किया जो अवगत नहीं थे या अवगत थे परंतु उनके दिलों में पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के प्रति द्वेष व शत्रुता थी।  इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के उत्तराधिकारी के संबंध में जो बहुत से शेर हैं वे इसी परिचय एवं लगाव के सूचक व परिणाम हैं। उदाहरण स्वरूप देअबिल नाम के एक सरकार विरोधी प्रसिद्ध शायर थे और उन्होंने कभी भी किसी खलीफा या खलीफा के उत्तराधिकारी के प्रति प्रसन्नता नहीं दिखाई थी। इसी कारण सरकार सदैव उनकी खोज में थी और वह लम्बे वर्षों तक नगरों एवं आबादियों में भागते व गोपनीय ढंग से जीवन व्यतीत करते रहे पंरतु देअबिल इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की सेवा में पहुंचे और उन्होंने अत्याचारी व असत्य अमवी एवं अब्बासी सरकारों के विरुद्ध अपने प्रसिद्ध शेरों को पढ़ा। कुछ ही समय में देअबिल के शेर पूरे इस्लामी जगत में फैल गये। इस प्रकार से कि देअबिल के अपने नगर पहुंचने से पहले ही उनके शेर लोगों तक पहुंच गये और लोगों को ज़बानी याद हो गये थे। यह विषय इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की सफलता के सूचक हैं।

मामून अपनी सत्ता को खतरे से बचाने के लिए इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को मदीने से मर्व लाया था परंतु जब उसने देखा कि इमाम की होशियारी व विवेक से उसके सारे षडयंत्र विफल हो गये हैं तो वह इन विफलताओं की भरपाई की सोच में पड़ गया। अंत में अब्बासी खलीफा मामून ने गुप्त रूप से इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को शहीद करने का निर्णय किया ताकि उसकी सरकार के लिए कोई गम्भीर समस्या न खड़ी हो जाये। अतः उसने इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को विष कर शहीद कर दिया और इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम वर्ष २०३ हिजरी क़मरी में सफर महीने की अंतिम तारीख या 23 ज़ीक़ाद को इस नश्वर संसार से परलोक सिधार गये।

हज़रत पैग़म्बर ए अकरम स.ल.व.व. की ज़िंदगी के अख़लाक़ी पहलू और आप की सीरत के अनेक पहलू के बारे में बहुत कुछ लिखा और पढ़ा जा चुका है, लेकिन आपकी ज़िंदगी का वह पहलू जिसके बारे में बहुत कम किताबों या आर्टिकल्स में मिलता है वह आप की ज़िंदगी के आख़िरी समय के हालात हैं और शायद उस समय के हालात पर कम ध्यान देने के कारण उस समय की बहुत सारी हक़ीक़तों में फेर बदल किया गया और उसके बाद इतिहास के उन हालात का सामना होता है जो पैग़म्बर ए अकरम स.ल.व.व. की वफ़ात के बाद पेश आए, इस लेख में उन्हीं कुछ अहम हक़ीक़तों की तरफ़ इशारा किया गया है।

हज़रत पैग़म्बर ए अकरम स.ल.व.व. की ज़िंदगी के अख़लाक़ी पहलू और आप की सीरत के अनेक पहलू के बारे में बहुत कुछ लिखा और पढ़ा जा चुका है, लेकिन आपकी ज़िंदगी का वह पहलू जिसके बारे में बहुत कम किताबों या आर्टिकल्स में मिलता है वह आप की ज़िंदगी के आख़िरी समय के हालात हैं और शायद उस समय के हालात पर कम ध्यान देने के कारण उस समय की बहुत सारी हक़ीक़तों में फेर बदल किया गया और उसके बाद इतिहास के उन हालात का सामना होता है जो पैग़म्बर ए अकरम स.ल.व.व. की वफ़ात के बाद पेश आए, इस लेख में उन्हीं कुछ अहम हक़ीक़तों की तरफ़ इशारा किया गया है।

हज़रत पैग़म्बर ए अकरम (स) की ज़िंदगी के आख़िरी दिन थे और आप (स) हज़रत अली अलैहिस्सलाम के हाथ को पकड़ कर क़ब्रिस्तान की तरफ़ गए और क़ब्र में लेटे हुए लोगों के लिए आप (स) ने मग़फ़ेरत की दुआ की और फिर इमाम अली अलैहिस्सलाम से फ़रमाया कि जिब्रईल साल में एक बार मेरे सामने क़ुरआन लेकर आते थे लेकिन इस साल दो बार लेकर आए हैं और इसके पीछे मेरी मौत के क़रीब होने के अलावा कोई और राज़ नहीं है, फिर आप ने इमाम अली (अ) से फ़रमाया: अगर मैं इस दुनिया से चला गया तो तुम ही मुझे ग़ुस्ल देना।

एक रिवायत में यह भी है कि आप (स) ने साथ में मौजूद लोगों से यह भी फ़रमाया कि अगर मैंने किसी से कोई वादा किया है तो उसे बता दे ताकि मैं पूरा कर सकूं और अगर किसी का कोई क़र्ज़ मेरे ज़िम्मे है तो बता दे ताकि अदा कर सकूं।

जैसा कि कुछ रिवायतों से ज़ाहिर होता है कि पैग़म्बर ए अकरम (स) अपनी कुछ बीवियों, अपने असहाब और कुछ साथियों से नाराज़ थे, इसीलिए आप ने बिदअत को फैलाने वालों का ज़िक्र करते हुए फ़रमाया: ऐ लोगों! फ़ित्ने और फ़साद की आग भड़क चुकी है, फ़ित्ने अंधेरी रात की तरह तुम तक पहुंच चुके हैं और तुम लोगों के पास मेरे ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं है इसलिए कि मैंने न किसी हलाल को हराम क़रार दिया और ना ही हराम को हलाल क़रार दिया, मैंने केवल क़ुरआन द्वारा हराम की गई चीज़ों को ही हराम कहा है।

पैग़म्बर ए अकरम (स) उम्मत को फ़ित्ने की चेतावनी देने के बाद जनाबे उम्मे सलमा के घर तशरीफ़ ले गए और दो दिन वहीं रुके और फ़रमाया: ख़ुदाया! तू गवाह रहना कि मैंने हक़ीक़तों को बयान कर दिया है, इसके बाद आप (स) अपने घर तशरीफ़ ले गए और एक गिरोह को अपने पास बुलवाया और फ़रमाया: क्या मैंने तुम लोगों से कहा नहीं था कि उसामह के लश्कर के साथ जाओ? जनाबे अबू बक्र ने कहा: मैं गया था लेकिन वापस आ गया ताकि दोबारा अहद कर सकूं, उमर बिन ख़त्ताब ने कहा कि मैं नहीं गया क्योंकि मैं आपके हाल चाल पूछने के लिए किसी क़ाफ़िले का इंतेज़ार नहीं करना चाहता था।

पैग़म्बर ए अकरम (स) बहुत नाराज़ हुए और उसी बीमारी की हालत में मस्जिद तशरीफ़ ले गए और उसामह के कमांडर बनाने पर आपत्ति जताने वालों से फ़रमाया: मैं उसामह के बारे में यह कैसी बातें सुन रहा हूं, तुम लोग इससे पहले उसामह के वालिद के कमांडर बनने पर भी आपत्ति जताते थे, ख़ुदा की क़सम वह कमांडर बनने के क़ाबिल थे और उनका बेटा उसामह भी कमांडर बनने के क़ाबिल है।

पैग़म्बर ए अकरम (स) बिस्तर पर लेटकर भी लोगों से बार बार यही कह रहे थे कि उसामह के लश्कर में शामिल हो जाओ। इसके बाद पैग़म्बर (स) की तबीयत बिगड़ गई जिसे देख आप (स) के घर की औरतें और बच्चे रोने लगे, थोड़ी देर बाद पैग़म्बर ए अकरम (स) ने आंख खोली और हुक्म दिया कि क़लम और दवात ले आओ ताकि तुम्हारे लिए ऐसा नुस्ख़ा लिख दूं जिसके बाद कभी गुमराह नहीं होंगे, पैग़म्बर ए अकरम (स) के हुक्म के बाद कुछ लोग क़लम और दवात लेने चले गए इसी बीच वहीं बैठे एक शख़्स ने कहा: पैग़म्बर (स) पर बीमारी का असर है इसलिए (मआज़ अल्लाह) वह हिज़यान बक रहे हैं,

तुम लोगों के पास क़ुरआन है और वही अल्लाह की किताब तुम लोगों के लिए काफ़ी है, इस शख़्स की घटिया बातों का कुछ लोगों ने विरोध भी किया लेकिन कुछ उसके तरफ़दार भी दिखाई दिए, उसी चीख़ पुकार के बीच वह पैग़म्बर ए आज़म (स) जिन्होंने पूरी ज़िंदगी इत्तेहाद और एकता को क़ायम करने में गुज़ार दी वह यह सब हालात देखकर काफ़ी नाराज़ हुए और उन सभी को अपने पास से भगा दिया।

फिर पैग़म्बर ए करीम (स) ने इमाम अली अलैहिस्सलाम की ओर देखा और उनसे वसीयत करना शुरू की और कहा: ऐ अली! थोड़ा क़रीब आओ और फिर पास बुलाकर आप ने अपनी ज़ेरह, तलवार, अंगूठी और मोहर हज़रत अली अलैहिस्सलाम को दी और फ़रमाया: ऐ अली! जाओ, अब घर चले जाओ, इसके बाद पैग़म्बर ए अकरम (स) आंख बंद कर के आराम करने लगे, कुछ देर बाद आप (स) की तबीयत फिर बिगड़ी और इस बार जब कुछ बेहतर हुई तो आप (स) ने घर की औरतों से कहा कि मेरे भाई और मेरे सबसे क़रीबी को बुलाओ, उन्होंने अबू बक्र को बुला दिया वह जब आए तो पैग़म्बर ए अकरम (स) ने फिर कहा मेरे भाई और मेरे सबसे क़रीबी को बुलाओ, उन्होंने इस बार उमर को बुला दिया उन्हें देखकर फिर पैग़म्बर (स) ने अपनी बात दोहराई,

तभी वहां मौजूद जनाबे उम्मे सलमा ने कहा कि अली (अ) को बुला रहे हैं, आख़िरकार इमाम अली अलैहिस्सलाम को बुलाया गया, इमाम अली (अ) तशरीफ़ लाए उसके बाद पैग़म्बर (स) और इमाम अली (अ) ने कुछ देर एक दूसरे के कान में कुछ बातें कीं, जब इमाम अली (अ) से इस बारे में पूछा गया तो आप ने कहा: रसूले ख़ुदा (स) ने मुझे इल्म के हज़ार दरवाज़े तालीम दिए हैं और इन में से हर दरवाज़े से हज़ार दरवाज़े खुल गए और मुझसे कुछ बातें कहीं हैं जिनपर मैं अमल करूंगा।

  ज़िंदगी के एकदम आख़िरी दिनों में जनाबे बिलाल हबशी को बुलाया ताकि लोगों को मस्जिद में जमा करें, उसके बाद आप ने एक ख़ुत्बा इरशाद फ़रमाया और लोगों से कहा अगर किसी का कोई हक़ मेरे ज़िम्मे है तो वह मांग ले, किसी ने कोई जवाब नहीं दिया, पैग़म्बर ए अकरम (स) ने इसी बात को तीन बार दोहराया तभी एक ग़ुलाम खड़ा हुआ और अपने हक़ का सवाल किया और पैग़म्बर (स) से बदला लेने के लिए एक कोड़ा हाथ में उठाया लेकिन जैसे ही पैग़म्बर (स) के पास आया आप (स) से लिपटकर रोने लगा, पैग़म्बर (स) ने फ़रमाया: यह जन्नत में मेरा साथी होगा, फिर एक बीवी का हवाला देते हुए हज़रत अली (अ) को हुक्म दिया कि कुछ पैसा उनके पास रखा है उसे लेकर ग़रीबों और फ़क़ीरों में बांट दो।

जब आप (स) का बिल्कुल आख़िरी समय आया तो आप की बेटी हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ) बहुत रो रहीं थीं, आप (स) ने उन्हें अपने पास बुलाया और कुछ कहा जिससे आप और ज़ियादा रोने लगीं, थोड़ी देर बाद फिर आप (स) ने कुछ कहा जिसे सुनकर आप मुस्कुराने लगीं, जब आप (स) से रोने और मुस्कुराने की वजह पूछी गई तो आप ने फ़रमाया कि पहली बार में आप (स) ने कहा: मेरी बेटी मैं इसी तकलीफ़ में इस दुनिया से गुज़र जाऊंगा जिसे सुनकर मैं रोने लगी थी और दोबारा में आप (स) ने कहा बेटी मेरे अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम में से सबसे पहले तुम मुझ से मुलाक़ात करोगी जिसे सुनकर मुस्कुराने लगी थी।

  आप की ज़िंदगी के आख़िरी समय में आप (स) का सर इमाम अली अलैहिस्सलाम की गोद में था। पैग़म्बर ए अकरम (स) इस दुनिया से गुज़र गए, इमाम अली (अ) ने वसीयत के मुताबिक़ आप को ग़ुस्ल दिया और कफ़न पहनाया, फिर आप ने पैग़म्बर (स) के चेहरे को कफ़न से बाहर निकाला और चीख़ मारकर रोने लगे और कहा: ऐ अल्लाह के रसूल!

आप की वफ़ात से नबुव्वत और वही (क़ुरआन) का सिलसिला ख़त्म हो गया और आसमानी ख़बरों का सिलसिला भी ख़त्म हो गया, ऐ अल्लाह के नबी! अगर आप ने सब्र करने का हुक्म न दिया होता तो मैं इतना रोता कि मेरी आंखों की रौशनी चली जाती, फिर आप ने पैग़म्बर ए अकरम (स) को ख़ुद उस क़ब्र जिसे अबू उबैदा और ज़ैद इब्ने सहल ने घर के एक कमरे ही में खोदी थी उसमें दफ़्न कर दिया।

ईरान के सशस्त्र बलों के जनरल स्टाफ के सैन्य और नागरिक विशेषज्ञों की एक समिति ने दुर्घटनाग्रस्त हेलीकॉप्टर की गहन तकनीकी, इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रॉनिक और नेविगेशनल जांच की।

ईरान के सेना प्रमुख की उच्च समिति ने एक बयान जारी कर कहा है कि ईरानी राष्ट्रपति शहीद इब्राहिम रईसी के हेलीकॉप्टर के गिरने का मुख्य कारण वहां का जटिल मौसम और पर्यावरणीय परिस्थितियां थीं। क्षेत्र वसंत ऋतु में था, इसलिए घने बादल और कोहरे के कारण हेलीकॉप्टर पहाड़ से टकरा गया।

सशस्त्र बलों के जनरल स्टाफ के सैन्य और नागरिक विशेषज्ञों की एक समिति ने दिन-रात के काम के बाद तकनीकी, इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रॉनिक और नेविगेशनल दृष्टिकोण से दुर्घटनाग्रस्त हेलीकॉप्टर की सावधानीपूर्वक और विशेषज्ञ रूप से जांच की। परिणाम इस प्रकार हैं:

  1. हेलीकॉप्टर की खरीद और उपयोग के समय से लेकर दुर्घटना के समय तक, सभी रखरखाव और मरम्मत दस्तावेजों की जांच की गई और सब कुछ मानक था।
  2. पिछले 4 वर्षों में उक्त हेलीकॉप्टर की मरम्मत से संबंधित दस्तावेजों की भी विशेषज्ञों द्वारा समीक्षा की गई और कोई समस्या नहीं पाई गई।
  3. हेलीकॉप्टर के अनुरोध, हेलीकॉप्टर की डिलीवरी, तेहरान से हेलीकॉप्टर के प्रस्थान, ताब्रीज़ हवाई अड्डे पर प्रतीक्षा, ईंधन भरने आदि के बाद से राष्ट्रपति कार्यालय से सभी प्रासंगिक दस्तावेजों और पत्राचार रिपोर्टों की समीक्षा की गई।
  4. तबरीज़ से अघबंद ब्रिज, क़िज़ किला सी बांध और वहां से तबरीज़ रिफाइनरी तक उड़ान मार्ग की विशेषज्ञों द्वारा सावधानीपूर्वक समीक्षा की गई और यह पुष्टि की गई कि हेलीकॉप्टर निर्धारित मार्ग पर था।
  5. दुर्घटनाग्रस्त हेलीकॉप्टर के पायलट के आईपैड का विशेषज्ञों द्वारा पुनर्निर्माण किया गया और इससे पता चला कि हेलीकॉप्टर का उड़ान पथ तबरेज से उड़ान की शुरुआत से गंतव्य तक सही था और त्रासदी से पहले सब कुछ निर्धारित था।
  6. दुर्घटनाग्रस्त हेलीकॉप्टर के बाकी हिस्सों की रक्षा मंत्रालय और सशस्त्र बल के विशेषज्ञों ने जांच की, जिससे पता चला कि हेलीकॉप्टर में ऐसी कोई खराबी नहीं थी, जिससे यह हादसा होता।
  7. दुर्घटना के एक दिन पहले और दुर्घटना वाले दिन की मौसम संबंधी रिपोर्टों की भी जांच की गई जो दुर्घटना के दिन की स्थितियों के अनुरूप थीं।
  8. सीवीआर और एफडीआर में रिकॉर्ड किए गए संदेशों की समीक्षा की गई और पायलट द्वारा कोई आपातकालीन घोषणा संदेश नहीं भेजा गया।
  9. शहीदों के शवों के टॉक्सिकोलॉजी और पैथोलॉजी परीक्षणों के नतीजों में भी कोई संदिग्ध बात सामने नहीं आई।
  10. विशेषज्ञों द्वारा हेलीकॉप्टर के हिस्सों और प्रणालियों की जांच की गई और किसी भी प्रकार की तोड़फोड़ का कोई सबूत नहीं मिला।
  11. विशेषज्ञों ने हेलीकॉप्टर को लेजर या किसी अन्य माध्यम से निशाना बनाने या इलेक्ट्रॉनिक युद्ध के माध्यम से हेलीकॉप्टर को नुकसान पहुंचाने की संभावना पर भी विचार किया और इस संभावना को खारिज कर दिया गया।

रिपोर्ट के अंतिम निष्कर्ष में कहा गया है: उपरोक्त 11 कारणों से, समिति की अंतिम राय है:

हेलीकॉप्टर दुर्घटना का मुख्य कारण वसंत ऋतु में क्षेत्र के जटिल मौसम और वायुमंडलीय परिस्थितियों और अचानक घने कोहरे के कारण हेलीकॉप्टर का पहाड़ से टकराना है।

 

 

 

 

 

ईरान के हमदान शहर के इमाम जुमा ने कहा: आज हम पवित्र पैगंबर की शिक्षाओं और जीवन से दूरी के कारण कई सामाजिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं। ये दिन हमारे प्यारे पैगंबर (स) के जीवन को जानने और उनका अनुसरण करने का सबसे अच्छा अवसर हैं।

ईरान के हमदान के इमाम जुमा हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन हबीबुल्लाह शबानी ने पैग़म्बर (स) की मृत्यु और इमाम हसन मुजतबा (अ) की शहादत के अवसर पर आयोजित सभा को संबोधित करते हुए कहाः आज हम समाज में जिस खाई का सामना कर रहे हैं, वह पैग़म्बर (स) के जीवन और उनकी शिक्षाओं से दूरी के कारण है।

उन्होंने कहा: हम जितना पवित्र पैगम्बर (स) के करीब होंगे और उनके रास्ते पर चलेंगे, उतना ही हम समाज में सुधार देखेंगे।

हुज्जतुल-इस्लाम शबानी ने कहा: इस्लाम के पैगंम्बर (स) मानव जाति के लिए सबसे अच्छा उदाहरण हैं। पवित्र पैग़म्बर (स) कहते हैं कि समाज की सबसे अच्छी नींव "परिवार और घर" है और भगवान द्वारा एक आदमी को दिया गया सबसे अच्छा आशीर्वाद "एक गुणी पत्नी" है।

उन्होंने पवित्र पैग़म्बर (स) की जीवनी का वर्णन किया और कहा: वह (स) कहते हैं कि "यदि आप किसी का भला करना चाहते हैं, तो सबसे पहले अपने परिवार, अपनी पत्नी और अपने बच्चों से शुरुआत करें।" इसी तरह, पैग़म्बर (स) की नजर में, सबसे अच्छा आदमी वह है जो घर के कामों में अपनी पत्नी की मदद करता है।

उन्होंने कहा: इस्लाम के पैगम्बर (स) खुद घरेलू कामों में अपनी पत्नी की मदद करते थे और इसे अहले-बैत (अ) के जीवन में देखा जा सकता है।

 

 

 

 

 

ईरान के विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता ने ज़ायोनी सरकार के प्रति ब्रिटेन के समर्थन की ओर संकेत करते हुए बल देकर कहा कि क्षेत्रीय राष्ट्र और विश्व के देश इस बात का नहीं भुलेंगे कि ब्रितानी राजनेताओं ने इस्लामी जगत के केन्द्र में अपारथाइड सरकार उत्पन्न करने में किस प्रकार प्रयास किया।

ईरान के विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता नासिर कनआनी ने सोशल साइट एक्स पर लिखा कि एतिहासिक वर्चस्ववादी रवइया, उसे जारी रखने के लिए प्रयास, फूट डालना और फ़िलिस्तीन जैसे मामले व संकट को जन्म देना पश्चिम एशिया में ब्रिटेन की साम्राज्यवादी नीति का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता नासिर कनआनी ने कहा कि ब्रिटेन आज भी ज़ायोनी सरकार का समर्थन करके नरसंहार, सामूहिक हत्या और ग़ज़ा पट्टी और पश्चिमी किनारे के फ़िलिस्तीनियों को बेघर करने में इस्राईल के अपराधों में शामिल है।

विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता ने इसी प्रकार ब्रिटिश साम्राज्य से मुक़ाबला व संघर्ष करने में शहीद रईस अली दिलवारी और उनके प्रयासों को याद किया और कहा कि ब्रिटेन सहित दूसरे साम्राराज्यवादियों से मुक़ाबला करने और राजनीतिक स्वतंत्रता व स्वाधीनता प्राप्त करने में ईरानी राष्ट्र का लंबा व गौरवांवित इतिहास है।

ईरान में शहरीवर महीने की 12 तारीख़ को शहीद रईस अली दिलवारी को याद किया जाता है और 12 शहरीवर को ईरान में ब्रिटेन साम्राज्य से संघर्ष का नाम दिया गया है।

रईस अली दिलवारी एक स्वतंत्रताप्रेमी व्यक्ति थे और ईरान के दक्षिण में स्थित तंगीस्तान और बूशहर में ब्रितानी साम्राज्य के ख़िलाफ़ होने वाले आंदोलन के नेता थे। यह आंदोलन 1882 से लेकर 1915 तक चला। यह वह समय था जब प्रथम विश्व युद्ध चल रहा था।

शेख ज़कज़की ने नाइजीरिया और अफ्रीका के प्रतिष्ठित विद्वानों के साथ नजफ अशरफ में क्रांति के सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि आयतुल्ला मुज्तबा हुसैनी से मुलाकात की।

नाइजीरिया के इस्लामिक मूवमेंट के नेता हुज्जतुल-इस्लाम वल मुस्लिमिन शेख इब्राहिम ज़कज़की ने इराक में क्रांति के सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि आयतुल्लाह सैयद मुजतबा हुसैनी से मुलाकात की और इस्लामिक दुनिया में चल रहे हालातों और घटनाओं पर चर्चा की, खासकर अफ्रीका से जुड़े मुद्दों पर बात की।

बैठक के दौरान इराक में वली फ़क़ीह के प्रतिनिधि ने शेख ज़कज़की के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए प्रसन्नता व्यक्त की और नजफ़ में पढ़ रहे अफ्रीकी छात्रों से भी चर्चा की।

इस नाइजीरियाई शिया नेता ने अपनी गतिविधियों और समर्थन के लिए इराक में क्रांति के सर्वोच्च नेता के कार्यालय को धन्यवाद दिया।

इस मुलाकात में दोनों नेताओं ने इस्लामिक दुनिया के मौजूदा हालात और खासकर अफ्रीका से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की।

आज पूरे ईरान में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत का ग़म मनाया जा रहा है जगह जगह मजलिस और जुलूस निकाले जा रहे हैं।

ईरान में आज इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत का शोक मनाया जा रहा है।

आज 4 सितंबर बुधवार को पैग़म्बरे इस्लाम स.ल. के पौत्र इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत के दुखद अवसर पर पूरे ईरान में शोक सभाएं आयोजित की जा रही हैं और जूलूस निकाले जा रहे हैं।

दुनिया भर में और ख़ास तौर पर ईरान में शिया मुसलमान अपने आठवें इमाम हज़रत इमाम अली रज़ा अ.स. की शहादत की बरसी पर शोक और ग़म मना रहे हैं।

उधर ख़ुरासाने रज़वी प्रांत के गवर्नर ने कहा है कि 1 सितम्बर से अब तक 26 लाख 15 तीर्थयात्री और श्रद्धालु पवित्र नगर मशहद पहुंच चुके हैं।

ख़बरों में बताया गया है कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत के कार्यक्रम में भाग लेने के लिए 10 हज़ार से अधिक पाकिस्तानी तीर्थयात्री ज़मीनी रास्ते से पवित्र नगर मशहद पहुंच चुके हैं जबकि सैकड़ों भारतीय श्रद्धालु भी मशहद में मौजूद हैं।

 

 

 

 

 

आठवें इमाम हज़रत रज़ा अलैहिस्सलाम के शहादत के मौके पर श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा मशहद के चारों तरफ़ दूर दूर की बस्तियों, गावों और शहरों से श्रद्धालु पैदल चलकर मशहद पहुंचे जबकि दुनया के दर्जनों देशों से भी श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या मशहद में नज़र आई।

पैग़म्बरे इस्लाम के वंशज और शिया मसलक के मानने वालों के आठवें इमाम हज़रत रज़ा अलैहिस्सलाम के शहादत दिवस पर शनिवार को पूरा ईरान शोक में डूबा रहा।

आठवें इमाम हज़रत रज़ा अलैहिस्सलाम के शहादत के मौके पर श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा मशहद के चारों तरफ़ दूर दूर की बस्तियों, गावों और शहरों से श्रद्धालु पैदल चलकर मशहद पहुंचे जबकि दुनया के दर्जनों देशों से भी श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या मशहद में नज़र आई।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े के पैग़म्बरे आज़म में लाखों लोगों का मजमा नज़र आया और सबने बड़ी श्रद्धा से इमाम रज़ा का शहादत दिवस मनाया।

इस मौक़े पर सारे ही लोग शोकाकुल थे मगर जिस एकता व समरसता का प्रदर्शन किया गया वो अपने आप में बहुत बड़ा संदेश है।

कल के दिन मशहद में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के हरम में कई पारम्परिक कार्यक्रम आयोजित किए गए जिसमें श्रद्धालुओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के शहादत दिवस पर पवित्र नगर क़ुम में भी श्रद्धालुओं ने भव्य कार्यक्रम आयोजित किया क़ुम में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की बहन हज़रत मासूमा का रौज़ा है श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या ने क़ुम में हज़रत मासूमा के रौज़े में पहुंच कर ताज़ियत संवेदना पेश करने के कार्यक्रम में हिस्सा लिया।

 

 

 

 

 

ईरान के ख़ुरासान रज़वी प्रांत में वली फ़क़ीह के प्रतिनिधि ने कहा: इमाम हसन मुजतबा (अ) की शहादत सकीफ़ा बानी सईदा के परिणामस्वरूप हुई जो नाजायज़ घटना को दर्शाती है। यह एक कड़वी और अप्रिय दुर्घटना थी जो पवित्र पैगंबर (स) की मृत्यु के बाद इस्लाम की उम्मत में घटी और इसने उम्मत को इमामत के रास्ते से भटका दिया।

ईरान के खुरासान-रिज़वी प्रांत मे वली फ़क़ीह के प्रतिनिधि ने पवित्र पैगम्बर (स) ने सफ़र महीने के आखिरी दिनों में महदिया मशहद में आयोजित एक मजलिसे अज़ा को संबोधित किया और कहा: आज वह दिन है अहले-बैत (अ) के सभी कष्टों और उत्पीड़न की शुरुआत।

उन्होंने कहा: पवित्र पैगंबर (स) के स्वर्गवास के दिन, कुछ तथाकथित मुसलमानों की ओर से एक बड़ा फितना हुआ। जिसने उनके अहले-बैत (अ) की तमाम शहादतों और ज़ुल्मों की बुनियाद रखी और यह फ़ितना "सक़ीफ़ा बानी सईदा" था।

आयतुल्लाह अलम उल-हुदा ने कहा: पवित्र पैगंबर (स) के स्वर्गवास हज़रत फातिमा ज़हरा (स) के उत्पीड़न और इमाम हसन मुजतबा (अ) की शहादत के साथ पैगंबर (स) के स्वर्गवास के दिन से जुड़ी हुई है। तकरान इस तथ्य का वर्णन करते हैं कि स्वर्गवास के दिन जो हुआ, उसकी सबसे बड़ी अभिव्यक्ति और उदाहरण इमाम हसन मुजतबा (अ) के जीवन और शहादत में देखा जा सकता है।

उन्होंने कहा: इमाम हसन मुजतबा (अ) की शहादत सकीफ़ा बानी सईदा के परिणामस्वरूप हुई जो गैर-शरिया घटना को दर्शाती है। यह एक कड़वी और अप्रिय दुर्घटना थी जो पवित्र पैगंबर (स) के स्वर्गवास के बाद इस्लाम की उम्मत में घटी और इसने उम्मत को इमामत के रास्ते से भटका दिया।