
رضوی
हम दुनिया में इस्लामी क्रांति का संदेश फैलाने के लिए युद्ध नहीं चाहते
हम इस्लामिक क्रांति का संदेश फैलाने के लिए दुनिया में युद्ध नहीं चाहते हैं, लेकिन साथ ही हम गाजा की समस्याओं को भी नजरअंदाज नहीं कर सकते, क्योंकि इस्लाम किसी विशेष भूमि से संबंधित नहीं है, बल्कि इस्लाम पूरी दुनिया के लिए है इस्लाम की नज़र में, "सभी मुसलमान एक शरीर के विभिन्न हिस्सों की तरह हैं"।
आयतुल्लाह हुसैनी बुशेहरी ने क्यूम अल-मकदीसा के रेडियो और टेलीविजन के प्रमुख के साथ एक बैठक के दौरान कहा कि दर्शकों का विश्वास जीतने के लिए रेडियो और टेलीविजन को दर्शकों तक ईमानदारी से समाचार पहुंचाना चाहिए।
आयतुल्लाह हुसैनी बुशहरी ने क़ुम अल-मुक़द्देसा के रेडियो और टेलीविजन के प्रमुख के साथ एक बैठक के दौरान कहा: रेडियो और टेलीविजन को लोगों का विश्वास हासिल करने के लिए विश्वसनीयता के साथ समाचार देना चाहिए। उन्होंने कहा कि दुश्मन हमारे समाज के सभी तत्वों को निशाना बना रहे हैं और उनका उद्देश्य हमारी सफलताओं को छिपाना और हमारी विफलताओं को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना है।
मीडिया की भूमिका पर बोलते हुए जामिया मुद्ररेसीन हौज़ा इलमिया क़ुम के प्रमुख ने कहा: मीडिया की पहली और सबसे महत्वपूर्ण भूमिका सही जानकारी प्रदान करना और उसका प्रभावी ढंग से विश्लेषण करना है, विश्लेषण के बिना समाचार आमतौर पर सतही होते हैं और उनका प्रभाव सीमित होता है ।
क़ुम के आध्यात्मिक और शैक्षणिक महत्व के बारे में बोलते हुए, आयतुल्लाह हुसैनी बुशहरी ने कहा: क़ुम को एक सामान्य प्रांत के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, क़ुम की धार्मिक और आध्यात्मिक खबरें समाज में अधिक प्रमुख होनी चाहिए।
गाजा की समस्याओं के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, हम नहीं चाहते कि दुनिया में इस्लामिक क्रांति का संदेश फैलाने के लिए युद्ध हो, लेकिन साथ ही हम गाजा की समस्याओं को नजरअंदाज भी नहीं कर सकते, क्योंकि इस्लाम एक विशेष भूमि नंबर से संबंधित है , लेकिन इस्लाम पूरी दुनिया के लिए है, इस्लाम की नज़र में "अल-मुस्लेमूना कलजसद अल-वाहिद" सभी मुसलमान एक शरीर के अलग-अलग हिस्सों की तरह हैं।
साइंस ओलंपियाड, ईरान तीसरी पोज़ीशन पर
इस्लामी गणतंत्र ईरान को 2024 विश्व छात्र ओलंपियाड की पदक रैंकिंग में तीसरा स्थान हासिल हो गया है।
साइंस ओलंपियाड 2024 के समापन के साथ ही, सबसे अधिक भाग लेने वाले देशों यानी (53 से 110 देशों) के साथ 5 ओलंपियाड में, ईरान ने 22 रंग बिरंगे पदक हासिल करके दुनिया में तीसरा स्थान हासिल किया।
पार्सटुडे के अनुसार, ईरान ने 5 ओलंपियाड में कुल 10 स्वर्ण, 10 रजत और 2 कांस्य पदक जीते और दुनिया में तीसरी पोज़ीशन हासिल की।
ज्ञात रहे कि 2024 में ईरानी बुद्धिजीवी विश्व खगोल विज्ञान और खगोल भौतिकी ओलंपियाड में पहला स्थान, जीव विज्ञान और भौतिकी ओलंपियाड में चौथा स्थान, रसायन विज्ञान ओलंपियाड में आठवां स्थान, कंप्यूटर ओलंपियाड में नौवां स्थान और गणित ओलंपियाड में अठारहवां स्थान हासिल करने में कामयाब रहे थे।
गाजा युद्ध: नया स्कूल वर्ष शुरू, 6 लाख छात्र शिक्षा से वंचित, 90% स्कूल नष्ट
फ़िलिस्तीन में एक नया शैक्षणिक वर्ष शुरू हो गया है। फिलिस्तीनी शिक्षा मंत्रालय के अनुसार, गाजा में 600,000 छात्र शिक्षा से वंचित हैं जबकि 85 प्रतिशत स्कूल नष्ट हो गए हैं। शिक्षा की कमी के कारण गाजा के बच्चों को दीर्घकालिक नुकसान का खतरा है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि युद्ध से पहले, गाजा में साक्षरता दर लगभग 98% थी।
दुनिया के कई देशों में नया साल शुरू हो चुका है, वहीं गाजा में युद्ध के दौरान स्कूलों और विश्वविद्यालयों के नष्ट होने के कारण फिलिस्तीनी बच्चे शिक्षा से वंचित हैं। गाजा के शिक्षा मंत्रालय के अनुसार, नए स्कूल वर्ष की शुरुआत से एक दिन पहले 600,000 छात्र स्कूल से बाहर थे। इज़रायली हमलों में 85 प्रतिशत से अधिक स्कूल भवन (सार्वजनिक और निजी स्कूलों सहित) नष्ट हो गए हैं। मंत्रालय के बयान के मुताबिक, इजरायली आक्रामकता के परिणामस्वरूप फिलिस्तीनी क्षेत्र में 25,000 से अधिक बच्चे मारे गए हैं और घायल हुए हैं, जिनमें 10,000 छात्र भी शामिल हैं। गाजा में 307 पब्लिक स्कूल भवनों में से 90% नष्ट हो गए हैं।
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि फिलिस्तीनियों के लिए शिक्षा हमेशा सर्वोच्च प्राथमिकता रही है। युद्ध से पहले, गाजा में साक्षरता दर लगभग 98 प्रतिशत थी। मंत्रालय ने कहा कि शिक्षा तक पहुंच सभी का अधिकार है, इसलिए बमबारी के बावजूद, मंत्रालय ई-लर्निंग के अवसर शुरू करने और टेंट में कक्षाएं बनाने की कोशिश कर रहा है। सहायता कर्मियों ने कहा है कि शिक्षा की कमी के कारण गाजा के बच्चों को दीर्घकालिक नुकसान होने का खतरा है।
संयुक्त राष्ट्र की बच्चों की एजेंसी यूनिसेफ के एक स्थानीय प्रवक्ता ने कहा कि गाजा में छोटे बच्चों का विकास ठीक से नहीं हो रहा है, जबकि बड़े बच्चों को प्रसव पीड़ा या जल्दी शादी का खतरा है। बच्चे जितने अधिक समय तक स्कूल से चूकेंगे, उनके स्कूल छोड़ने या स्कूल न लौटने का जोखिम उतना ही अधिक होगा।
गाज़ा के स्कूलों पर इजराइल के लगातार हमले जारी
एक मानवाधिकार संगठन ने रविवार को घोषणा किया है कि इज़रायली सेना ने पिछले महीने से अब तक 16 स्कूलों को निशाना बनाया हैं।
एक मानवाधिकार संगठन ने रविवार को घोषणा की कि पिछले महीने में इज़राइली सेना ने 16 स्कूलों को निशाना बनाया है।
यूरोप मेडिटेरेनियन ह्यूमन राइट्स ने इज़राईली सरकार द्वारा गाजा के स्कूलों पर लगातार बढ़ते हमलों की सूचना दी है उन स्कूलों को फिलिस्तीनी शरणार्थियों द्वारा आश्रय के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, जिनके घर नष्ट हो चुके हैं।
इस रिपोर्ट के अनुसार, यह हमले बिना किसी पूर्व सूचना के किए गए जिनके परिणामस्वरूप कई फिलिस्तीनी शहीद और घायल हो गए।
यूरोप मेडिटेरेनियन ह्यूमन राइट्स वॉचडॉग की रिपोर्ट के मुताबिक, इजराइली सेना ने अगस्त से अब तक गाजा पट्टी में 16 स्कूलों को निशाना बनाया है इन हमलों में कम से कम 217 फिलिस्तीनी शहीद हुए और कई घायल हुए हैं।
पिछली रात उत्तरी गाजा में हलीमा अससादिया स्कूल पर बमबारी के कारण कम से कम 4 लोग शहीद और 15लोग घायल हो गए यह स्कूल संयुक्त राष्ट्र के स्वामित्व में था और गाजा युद्ध की शुरुआत से ही शरणार्थियों के लिए आवास के रूप में उपयोग किया जा रहा था।
इस मानवाधिकार संगठन ने इन हमलों की निंदा करते हुए कहा कि पिछले हफ्ते ज़ायोनी सरकार के हमलों में नागरिकों पर हमलों में वृद्धि हुई है, और आवासीय क्षेत्र तथा शरणस्थल निशाना बनाए जा रहे हैं।
यूरोप-मेडिटेरेनियन ह्यूमन राइट्स ने इन कृत्यों को गाजा में इजराइली सेना की जनसंहार की कोशिशों का हिस्सा बताया जिसका उद्देश्य अधिक से अधिक फिलिस्तीनियों को बेघर करना है।
गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय की घोषणा के अनुसार, फिलिस्तीनी शहीदों की संख्या 40,972 तक पहुंच गई है।
उत्तराखंड के गांवों में गै़रहिंदुओं और रोहिंग्या मुसलमानों के प्रवेश पर प्रतिबंध
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग ज़िले में कुछ ऐसे बोर्ड लगाए गए हैं जिन पर रोहिंग्या मुसलमानों और ग़ैर हिन्दुओं के गांव में प्रतिबंध की बात लिखी है।
रोहिंग्या मुसलमानों व फेरी वालों का गाँव में व्यापार करना घूमना वर्जित है।पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग ज़िले में कुछ ऐसे बोर्ड लगाए गए हैं जिन पर रोहिंग्या मुसलमानों और ग़ैर हिन्दुओं के गांव में प्रतिबंध की बात लिखी है।
सार्वजनिक जगहों पर लगाए गए इन बोर्ड पर इस बात को एक 'चेतावनी' के रूप में लिखा गया है।
इस मामले पर मुस्लिम प्रतिनिधिमंडलों ने उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक डीजीपी अभिनव कुमार से मुलाक़ात की और मामले के बारे में जानकारी दी है।
स्थानीय पुलिस का कहना है कि उसे जहां ऐसे बोर्ड का पता चला है उसे हटा दिया गया है और इसमें शामिल लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करेंगें।
ईरान का 26 अरब डॉलर का ग़ैर-पेट्रोलियम व्यापार
इस्लामी गणतंत्र ईरान के कस्टम विभाग के प्रमुख ने पिछले पांच महीनों में इस्लामी सहयोग संगठन के सदस्य देशों के साथ ईरान के ग़ैर-पेट्रोलियम व्यापार में वृद्धि का एलान किया है।
ईरान के कस्टम विभाग के महानिदेशक मुहम्मद रिज़वानीफ़र का कहना है: इस्लामी सहयोग संगठन के सदस्य देशों के साथ ईरान का ग़ैर-पेट्रोलियम व्यापार, इस वर्ष के पहले पांच महीनों में 15 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 26.7 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है।
मुहम्मद रिज़वानीफ़र ने इस आंकड़े का एलान करते हुए कहा: इस अवधि के दौरान इस्लामी सहयोग संगठन के सदस्य देशों के साथ ईरान का ग़ैर-पेट्रोलियम व्यापार 42.3 मिलियन टन था जो पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 10 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है।
ईरान के कस्टम विभाग के प्रमुख ने कहा कि इस्लामिक सहयोग संगठन के 56 सदस्य देशों के साथ ईरान के कुल ग़ैर-पेट्रोलियम व्यापार के आदान-प्रदान में से 13.5 बिलियन डॉलर मूल्य के 33.6 मिलियन टन का निर्यात किया गया था।
उन्होंने कहा कि इस अवधि के दौरान इस्लामिक सहयोग संगठन के सदस्य देशों से ईरान में 13.2 अरब डॉलर मूल्य का 8.7 मिलियन टन सामान आयात किया गया जो वजन के मामले में 18 प्रतिशत और मूल्य के लेहाज़ से 15 प्रतिशत बढ़ गया है।
मुहम्मद रिज़वानीफ़र के अनुसार, इस्लामिक सहयोग संगठन के सदस्य देशों के बीच इस वर्ष के पहले पांच महीनों में ईरान का सबसे बड़ा ग़ैर-पेट्रोलियम व्यापार का लेनदेन संयुक्त अरब इमारात, तुर्किए, इराक़, पाकिस्तान और ओमान के साथ था जो ईरान के ग़ैर-पेट्रोलियम व्यापार की लेनदेन की कुल मात्रा का 24 बिलियन डॉलर इन पांच सदस्य देशों से विशेष है।
इसराइल ने सीरिया के कई सैन्य ठिकानों पर हवाई हमले किए
सीरिया की सरकारी न्यूज़ एजेंसी सना के अनुसार,इसराइल ने सीरिया के कई सैन्य ठिकानों पर हवाई हमले किए जिसमें 16 लोगों की मौत और 36 से ज़्यादा लोग घायल हुए हैं।
सीरिया की सरकारी न्यूज़ एजेंसी सना के अनुसार,इसराइल ने सीरिया के कई सैन्य ठिकानों पर हवाई हमले किए जिसमें 16 लोगों की मौत और 36 से ज़्यादा लोग घायल हुए हैं।
सीरिया की सरकारी न्यूज़ एजेंसी सना के अनुसार इसमें 16 लोगों की जान गई है इसमें से 36 गंभीर रूप से घायल हुए हैं।
वहीं इसराइली सेना ने कहा है कि वो विदेशी मीडिया की रिपोर्ट पर कोई टिप्पणी नहीं करेगी सीरिया के विदेश मंत्रालय ने हमले की निंदा की है।
ईरान के विदेश मंत्रालय ने इसे आपराधिक हमला करार दिया है इसराइल पिछले कुछ सालों में सीरिया पर कई हमले किए हैं ।
इमाम हुसैन की विचारधारा जीवन्त और प्रेरणादायक
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का आंदोलन, एक एसी घटना है जिसमें प्रेरणादायक और प्रभावशाली तत्वों की भरमार है। यह आंदोलन इतना शक्तिशाली है जो हर युग में लोगों को संघर्ष और प्रयास पर प्रोत्साहित कर सकता है। निश्चित रूप से यह विशेषताएं उन ठोस विचारों के कारण हैं जिन पर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का आंदोलन आधारित है।
इस आंदोलन में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का मूल उद्देश्य ईश्वरीय कर्तव्यों का पालन था। ईश्वर की ओर से जो कुछ कर्तव्य के रूप में मनुष्य के लिए अनिवार्य किया गया है वह वास्तव में हितों की रक्षा और बुराईयों से दूरी के लिए है। जो मनुष्य उपासक के महान पद पर आसीन होता है और जिसके लिए ईश्वर की उपासना गर्व का कारण होता है, वह ईश्वरीय कर्तव्यों के पालन और ईश्वर को प्रसन्न करने के अतिरिक्त किसी अन्य चीज़ के बारे में नहीं सोचता। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के कथनों और उनके कामों में जो चीज़ सब से अधिक स्पष्ट रूप से नज़र आती है वह अपने ईश्वरीय कर्तव्य का पालन और इतिहास के उस संवेदनशील काल में उचित क़दम उठाना है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए बुराईयों से रोकने की इमाम हुसैन की कार्यवाही, उनके विभिन्न प्रयासों का ध्रुव रही है।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का एक उद्देश्य, ऐसी प्रक्रिया से लोहा लेना था जो धर्म और इस्लामी राष्ट्र की जड़ों को खोखली कर रहे थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने एसे मोर्चे से टकराने का निर्णय लिया जो समाज को धर्म की सही विचारधारा और उच्च मान्यताओं से दूर करने का प्रयास कर रही थी। यह भ्रष्ट प्रक्रिया, यद्यपि धर्म और सही इस्लामी शिक्षाओं से दूर थी किंतु स्वंय को धर्म की आड़ में छिपा कर वार करती थी। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को भलीभांति ज्ञान था कि शासन व्यवस्था में व्याप्त यह बुराई और भ्रष्टाचार इसी प्रकार जारी रहा तो धर्म की शिक्षाओं के बड़े भाग को भुला दिया जाएगा और धर्म के नाम पर केवल उसका नाम ही बाक़ी बचेगा। इसी लिए यज़ीद की भ्रष्ट व मिथ्याचारी सरकार से मुक़ाबले के लिए विशेष प्रकार की चेतना व बुद्धिमत्ता की आवश्यकता थी। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने आंदोलन के आरंभ में मदीना नगर से निकलते समय कहा थाः मैं भलाईयों की ओर बुलाने और बुराईयों से रोकने के लिए मदीना छोड़ रहा हूं।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचार धारा में अत्याचारी शासन के विरुद्ध आंदोलन, समाज के राजनीतिक ढांचे में सुधार और न्याय के आधार पर एक सरकार के गठन के लिए प्रयास भलाईयों का आदेश देने और बुराईयों से रोकने के ईश्वरीय कर्तव्य के पालन के उदाहरण हैं। ईरान के प्रसिद्ध विचारक शहीद मुतह्हरी इस विचारधारा के महत्व के बारे में कहते हैं
भलाईयों के आदेश और बुराईयों से रोकने के विचार ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन को अत्याधिक महत्वपूर्ण बना दिया। अली के पुत्र इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम भलाईयों के आदेश और बुराईयों से रोकने अर्थात इस्लामी समाज के अस्तित्व को निश्चित बनाने वाले सब से अधिक महत्वपूर्ण कार्यवाही की राह में शहीद हुए और यह एसा महत्वपूर्ण सिद्धान्त है कि यदि यह न होता तो समाज टुकड़ों में बंट जाता।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम एक चेतनापूर्ण सुधारक के रूप में स्वंय का यह दायित्व समझते थे कि अत्याचार, अन्याय व भ्रष्टाचार के सामने चुप न बैठें। बनी उमैया ने प्रचारों द्वारा अपनी एसी छवि बनायी थी कि शाम क्षेत्र के लोग, उन्हें पैग़म्बरे इस्लाम के सब से निकटवर्ती समझते थे और यह सोचते थे कि भविष्य में भी उमैया का वंश ही पैग़म्बरे इस्लाम का सब से अधिक योग्य उत्तराधिकारी होगा। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को इस गलत विचारधारा पर अंकुश लगाना था और इस्लामी मामलों की देख रेख के संदर्भ में पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों की योग्यता और अधिकार को सब के सामने सिद्ध करना था। यही कारण है कि उन्होंने बसरा नगर वासियों के नाम अपने पत्र में, अपने आंदोलन के उद्देश्यों का वर्णन करते हुए लिखा थाः
हम अहलेबैत, पैग़म्बरे इस्लाम के सब से अधिक योग्य उत्तराधिकारी थे किंतु हमारा यह अधिकार हम से छीन लिया गया और अपनी योग्यता की जानकारी के बावजूद हमने समाज की भलाई और हर प्रकार की अराजकता व हंगामे को रोकने के लिए, समाज की शांति को दृष्टि में रखा किंतु अब मैं तुम लोगों को कुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम की शैली की ओर बुलाता हूं क्योंकि अब परिस्थितियां एसी हो गयी हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम की शैली नष्ट हो चुकी है और इसके स्थान पर धर्म से दूर विषयों को धर्म में शामिल कर लिया गया है। यदि तुम लोग मेरे निमंत्रण को स्वीकार करते हो तो मैं कल्याण व सफलता का मार्ग तुम लोगों को दिखाउंगा।
कर्बला के महाआंदोलन में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा इस वास्तविकता का चिन्ह है कि इस्लाम एक एसा धर्म है जो आध्यात्मिक आयामों के साथ राजनीतिक व समाजिक क्षेत्रों में भी अत्याधिक संभावनाओं का स्वामी है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा में धर्म और राजनीति का जुड़ाव इस पूरे आंदोलन में जगह जगह नज़र आता है। वास्तव में यह आंदोलन, अत्याचारी शासकों के राजनीतिक व धार्मिक भ्रष्टाचार के विरुद्ध क्रांतिकारी संघर्ष था। सत्ता, नेतृत्व और अपने समाजिक भविष्य में जनता की भागीदारी, इस्लाम में अत्याधिक महत्वपूर्ण और संवेदनशील विषय है।
इसी लिए जब सत्ता किसी अयोग्य व्यक्ति के हाथ में चली जाए और वह धर्म की शिक्षाओं और नियमों पर ध्यान न दे तो इस स्थिति में ईश्वरीय आदेशों के कार्यान्वयन को निश्चित नहीं समझा जा सकता और फेर बदल तथा नये नये विषय, धर्म की मूल शिक्षाओं में मिल जाते हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इन परिस्थितियों को सुधारने के विचार के साथ संघर्ष व आंदोलन का मार्ग अपनाया। क्योंकि वे देख रहे थे कि ईश्वरीय दूत की करनी व कथनी को भुला दिया गया है और धर्म से अलग विषयों को धर्म का रूप देकर समाज के सामने परोसा जा रहा है।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की दृष्टि में मानवीय व ईश्वरीय आधारों पर, समाज-सुधार का सबसे अधिक प्रभावी साधन सत्ता है। इस स्थिति में पवित्र ईश्वरीय विचारधारा समाज में विस्तृत होती है और समाजिक न्याय जैसी मानवीय आंकाक्षाएं व्यवहारिक हो जाती हैं।
आशूर के महाआंदोलन में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा का एक आधार, न्यायप्रेम और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष था। न्याय, धर्म के स्पष्ट आदेशों में से है कि जिसका प्रभाव मानव जीवन के प्रत्येक आयाम पर व्याप्त है। उमवी शासन श्रंखला की सब से बड़ी बुराई, जनता पर अत्याचार और उनके अधिकारों की अनेदेखी थी। स्पष्ट है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम जैसी हस्ती इस संदर्भ में मौन धारण नहीं कर सकती थी। क्योंकि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के विचार में चुप्पी और लापरवाही, एक प्रकार से अत्याचारियों के साथ सहयोग था। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम इस संदर्भ में हुर नामक सेनापति के सिपाहियों के सामने अपने भाषण में कहते हैं।
हे लोगो! पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा है कि यदि कोई किसी एसे अत्याचारी शासक को देखे जो ईश्वर द्वारा वैध की गयी चीज़ों को अवैध करता हो, ईश्वरीय प्रतिज्ञा व वचनों को तोड़ता हो, ईश्वरीय दूत की शैली का विरोध करता हो और अन्याय करता हो, और वह व्यक्ति एसे शासक के विरुद्ध अपनी करनी व कथनी द्वारा खड़ा न हो तो ईश्वर के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि उस व्यक्ति को भी उसी अत्याचारी का साथी समझे। हे लोगो! उमैया के वंश ने भ्रष्टाचार और विनाश को स्पष्ट कर दिया है, ईश्वरीय आदेशों को निरस्त कर दिया है और जन संपत्तियों को स्वंय से विशेष कर रखा है।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के तर्क में अत्याचारी शासक के सामने मौन धारण करना बहुत बड़ा पाप है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के अस्तित्व में स्वतंत्रता प्रेम, उदारता और आत्मसम्मान का सागर ठांठे मार रहा था। यह विशेषताएं इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को अन्य लोगों से भिन्न बना देती हैं। उनमें प्रतिष्ठा व सम्मान इस सीमा तक था कि जिसके कारण वे यजीद जैसे भ्रष्ट व पापी शासक के आदेशों के पालन की प्रतिज्ञा नहीं कर सकते थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा में ऐसे शासक की आज्ञापालन की प्रतिज्ञा का परिणाम जो ईश्वर और जनता के अधिकारों का रक्षक न हो, अपमान और तुच्छता के अतिरिक्त कुछ नहीं होगा। इसी लिए वे, अभूतपूर्व साहस व वीरता के साथ अत्याचार व अन्याय के प्रतीक यजीद की आज्ञापालन के विरुद्ध मज़बूत संकल्प के साथ खड़े हो जाते हैं और अन्ततः मृत्यु को गले लगा लेते हैं। वे मृत्यु को इस अपमान की तुलना में वरीयता देते हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा में मानवीय सम्मान का इतना महत्व है कि यदि आवश्यक हो तो मनुष्य को इसकी सुरक्षा के लिए अपने प्राण की भी आहूति दे देनी चाहिए।
इस प्रकार से इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन में एसे जीवंत और आकर्षक विचार नज़र आते हैं जो इस आंदोलन को इस प्रकार के सभी आंदोलनों से भिन्न बना देते हैं। यही कारण है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का स्वतंत्रताप्रेमी आंदोलन, सभी युगों में प्रेरणादायक और प्रभावशाली रहा है और आज भी है।
इमाम हुसैन अ.स. का ग़म और अहले सुन्नत
इमाम हुसैन अ.स. एक ऐसी ज़ात है जिस से पूरी दुनिया में हर मज़हब और जाति के लोग मोहब्बत करते और आपसे ख़ास अक़ीदत रखते हैं। हम सभी यह बात जानते हैं कि अर्मेनियाई, यहूदी और पारसी से ले कर बौध्दों और कम्युनिस्टों तक जिस किसी के दिल में भी ज़ुल्म और अत्याचार से नफ़रत होगी वह इमाम हुसैन अ.स. से दिली लगाव रखता होगा, और यह आसमानी शख़्सियत केवल मुसलमानों से विशेष नहीं है, इसके बावजूद इंसानियत के दुश्मन और बेदीन वहाबी टोले की हमेशा से कोशिश रही है कि अहले सुन्नत के दिल से इमाम अ.स. की मोहब्बत को कम कर दें और उनको पैग़म्बर स.अ. के नवासे इमाम हुसैन अ.स. की मुसीबत पर आंसू बहाने से महरूम रखें। इस लेख में हमारी कोशिश यह है कि हम इमाम हुसैन अ.स. के लिए अहले सुन्नत की मशहूर, अहम और भरोसेमंद किताबों में किस तरह के अक़ाएद और विचार हैं उनको बयान करें और पैग़म्बर स.अ. द्वारा इमाम हुसैन अ.स. की शान में बयान की गई हदीसों को इन्हीं किताबों से पेश करें ताकि इंसानियत के दुश्मन अपनी साज़िशों में हमेशा की तरह नाकाम रहें।
सबसे पहले हम इस बात को बयान करेंगे कि क्या अहले सुन्नत अल्लाह के अलावा किसी दूसरे के लिए आंसू बहाने को हराम और बिदअत समझते हैं? सूरए यूसुफ़ में अल्लाह हज़रत याक़ूब अ.स. के बारे में फ़रमाता है कि वह हमेशा हज़रत यूसुफ़ के बिछड़ने पर रोते रहते थे यहां तक कि आप हज़रत यूसुफ़ के लिए इतना रोए कि आपकी आंखों की रौशनी चली गई। अहले सुन्नत के बड़े आलिम जलालुद्दीन सियूती अपनी मशहूर तफ़सीर दुर्रुल मनसूर में लिखते हैं कि हज़रत याक़ूब अ.स. ने अपने बेटे हज़रत यूसुफ़ अ.स. के बिछड़ने के ग़म में 80 साल आंसू बहाए और उनकी आंखों की रौशनी चली गई। (दुर्रुल मनसूर, जलालुद्दीन सियूती, जिल्द 4, पेज 31) लेकिन क्या अहले सुन्नत की कुछ किताबों के मुताबिक़ मुर्दे के लिए आंसू बहाना जाएज़ है? तो इसका जवाब भी ख़ुद अहले सुन्नत की किताब में ही मौजूद है कि जब पैग़म्बर स.अ. हज़रत हम्ज़ा के जनाज़े पर पहुंचे तो जनाज़े को देख कर इतना रोए कि बेहोश हो गए। (ज़ख़ाएरुल उक़्बा, तबरी, जिल्द 6, पेज 686) तारीख़ में मिलता है कि ओहद के दिन सब अपने अपने शहीदों की लाश के पास बैठे आंसू बहा रहे थे, पैग़म्बर स.अ. की निगाह जब हज़रत हमज़ा की लाश पर पड़ी आपने कहा कि सब अपने अपने अज़ीज़ों की लाश पर आंसू बहा रहे हैं लेकिन कोई हज़रत हम्ज़ा पर आंसू बहाने वाला नहीं है, उन शहीदों की बीवियों ने पैग़म्बर स.अ. की यह बात जैसे ही सुनी सब अपने शहीदों की लाश को छोड़ कर हज़रत हम्ज़ा पर आंसू बहाने लगीं (मजमउज़ ज़वाएद, हैसमी, जिल्द 6, पेज 646) जिस दिन से पैग़म्बर स.अ. ने यह कहा कि मेरे चचा हज़रत हम्ज़ा पर कोई रोने वाला नहीं है, आपके अन्सार की बीवियां जब भी अपने शहीदों पर रोना चाहती थीं पहले हज़रत हम्ज़ा की मज़लूमी पर रोती थीं फिर अपने घर वालों का मातम करती थीं। (सीरए हलबी, जिल्द 2, पेज 247)
अज़ादारी और मरने वालों पर आंसू बहाने के बारे में अहले सुन्नत की किताबों में बहुत ज़्यादा हदीसें मौजूद हैं, लेकिन हम यहां पर संक्षेप की वजह से केवल एक हदीस उस्मान इब्ने अफ़्फ़ान से नक़्ल कर रहे हैं.... उस्मान एक क़ब्र के किनारे बैठ कर इस क़द्र रोए और आंसू बहाए कि उनकी दाढ़ी तक भीग गई थी। (सोनन इब्ने माजा, जिल्द 4, पेज 6246) लेकिन एक अहम सवाल यह है कि क्या अहले सुन्नत की किताबों में इमाम हुसैन अ.स. पर रोने के बारे में सही रिवायत और हदीस मौजूद है या नहीं? उम्मुल फ़ज्ल का इमाम हुसैन अ.स. की शहादत के बारे में ख़्वाब हाकिमे नेशापूरी ने मुस्तदरकुस सहीहैन में हारिस की बेटी उम्मुल फ़ज़्ल से नक़्ल करते हुए लिखा है कि, एक दिन मैंने बहुत अजीब ख़्वाब देखा और फिर पैग़म्बर स.अ. के पास जा कर बताया, पैग़म्बर स.अ. ने फ़रमाया अपना ख़्वाब बयान करो, उम्मुल फ़ज़्ल ने कहा ऐ अल्लाह के रसूल बहुत अजीब ख़्वाब है बयान करने की हिम्मत नहीं हो रही, पैंगम्बर स.अ. के दोबारा कहने पर उम्मुल फ़ज़्ल अपना ख़्वाब इस तरह बयान करती हैं, मैंने देखा कि आपके बदन का एक टुकड़ा जुदा हो कर मेरे दामन में आ गया, पैग़म्बर स.अ. ने फ़रमाया बहुत अच्छा ख़्वाब देखा है, फिर फ़रमाया बहुत जल्द मेरी बेटी फ़ातिमा स.अ. को अल्लाह एक बेटा देगा, और वह बेटा तुम्हारी गोद में जाएगा, जब इमाम हुसैन अ.स. पैदा हुए तो पैग़म्बर स.अ. ने उन्हें मेरी गोद में दे दिया, एक दिन इमाम हुसैन अ.स. मेरी गोद में थे मैं पैग़म्बर के पास गई, आपने इमाम अ.स. को देखा और आपकी आंखों में आंसू आ गए, मैंने कहा मेरे मां बाप आप पर क़ुर्बान हो जाएं आप क्यों रो रहे हैं, आपने फ़रमाया, अभी जिब्रईल आए थे और मुझे ख़बर दे गए कि मेरी ही उम्मत के कुछ लोग मेरे बेटे को शहीद कर देंगे, और जिब्रईल लाल रंग की मिट्टी भी दे गए हैं। हाकिम नेशापूरी इस रिवायत को लिखने के बाद कहते हैं यह रिवायत सही है लेकिन इसको बुख़ारी और मुस्लिम ने नक़्ल नहीं किया है। (अल-मुस्तदरक अलस-सहीहैन, हाकिम नेशापूरी, जिल्द 3, पेज 194, हदीस न. 4818)
इमाम हुसैन अ.स. पर पड़ने वाली मुसीबतों पर पैग़म्बर का आंसू बहाना अब्दुल्लाह इब्ने नजा अपने वालिद नजा से नक़्ल करते हैं कि वह इमाम अली अ.स. के साथ सिफ़्फ़ीन की जंग में जा रहे थे, रास्ते में इमाम अली अ.स. ने उनसे फ़रमाया कि फ़ुरात के किनारे रुक जाना, मैंने रुकने की वजह पूछी तो फ़रमाया, एक दिन पैग़म्बर स.अ. के पास गया उनकी आंखों में आंसू देखे, मैंने कहा ऐ रसूले ख़ुदा स.अ. आपको किसने रुलाया, पैग़म्बर स.अ. ने फ़रमाया अभी कुछ देर पहले जिब्रईल आए थे और ख़बर दे गए कि फ़ुरात के किनारे इमाम हुसैन अ.स. को शहीद किया जाएगा, फिर कहा क्या आप उस जगह की मिट्टी को सूंघना चाहते हैं, मैंने कहा हां, जैसे ही मेरे हाथ में वहां की मिट्टी रखी मैं अपने आंसुओं को नहीं रोक पाया। (मुस्नदे अहमद बिन हंबल, तहक़ीक़ अहमद मोहम्मद शाकिर, जिल्द 1, पेज 446) इन अहले सुन्नत की किताबों से पेश की गई हदीसों और रिवायतों से पैग़म्बर स.अ. का मरने वाले के लिए आंसू बहाना विशेष कर इमाम हुसैन अ.स. की शहादत की खबर सुन कर बेचैन हो कर आंसू बहाना साबित हो जाता है। अब भी वहाबी टोले का इमाम हुसैन अ.स. पर आंसू बहाने पर बिदअत और हारम के फ़तवे लगाने का एकमात्र कारण अहले बैत अ.स. के घराने से दुश्मनी के अलावा कुछ नहीं है।
ईरान ने तेल टैंकरों के युद्ध में इज़राइल, इंग्लैंड और अमेरिका हराया?
खुले पानी में ईरान और ज़ायोनी शासन के बीच एक ख़ामोश और निर्णायक लड़ाई जारी थी, एक ऐसी लड़ाई जिसका मुख्य निशाना ईरानी तेल ले जाने वाले तेल टैंकर थे।
ईरानी जहाजों पर ज़ायोनी शासन के गुप्त हमलों की वजह से, ईरान समुद्र में एक अनौपचारिक और भूमिगत युद्ध में दाख़िल हो गया, एक ऐसा युद्ध जिसने अंततः अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में ईरान की सर्वोच्च प्रतिरोधक क्षमता को दुनिया के सामने ज़ाहिर कर दिया।
आप ख़ुद ही सोचिए, खुले पानी में बीचो बीच, ईरानी तेल ले जाने वाले विशाल जहाज़ धीरे-धीरे अपने गंतव्य की ओर बढ़ रहे हैं और उन्हें इस बात की भनक भी नहीं थी कि छिपे हुए दुश्मन, उन्हें निशाना बना सकते हैं।
अचानक एक के बाद एक ये जहाज रहस्यमय तरीक़े से दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं। 14 ईरान के तेल जहाजों या टैंकरों को निशाना बनाया गया जबकि शुरुआत में किसी को नहीं पता कि इन रहस्यमय हमलों के पीछे कौन है? लेकिन रिवोल्यूशनरी गार्ड या आईआरजीसी तुरंत सक्रिय हो गया और इन घटनाओं के अपराधियों का पता लगाने में जी जान लगा दी।
थोड़ी देर की ही खोजबीन और जांच पड़ताल के बाद, आईआरजीसी ने आख़िरकार इस रहस्य का ख़ुलासा किया, इन हमलों का मुजरिम ज़ायोनी शासन है।
जटिल और रहस्यमय रणनीति के साथ, उनका इरादा ईरानी तेल के निर्यात को रोकना था और शायद ईरान को एक कठिन आर्थिक स्थिति में फंसा देना था लेकिन यह इस कहानी का केवल एक ही रुख़ था, दूसरा रूख़ ईरान की त्वरित और निर्णायक जवाबी कार्यवाही थी।
इन हमलों पर आईआरजीसी का पहला जवाबी हमला, ज़ायोनी शासन के तेल टैंकरों पर गोलीबारी था। एक के बाद एक, इस शासन के जहाजों को निशाना बनाया गया लेकिन तभी एक निर्णायक और अहम घड़ी आ पहुंची, जब ईरान ने ज़ायोनी शासन के पांचवें जहाज़ को निशाना बनाया।
यहीं से खेल बदल गया, ज़ायोनियों ने जिन्हें तुरंत ही ईरान की जवाबी कार्यवाही की गंभीरता और ताक़त का एहसास हो गया, पीछे हटना शुरू कर दिया और आख़िरकार टैंकर युद्ध रोकने का एलान कर दिया।
लेकिन कहानी यहीं पर ख़त्म नहीं हुई। इसी बीच एक दिन ख़बर आई कि जिब्राल्टर में ब्रिटेन ने ईरानी तेल के एक जहाज़ को जब्त कर लिया है।
इस कार्रवाई पर ईरान की प्रतिक्रिया भी तीखी और समय पर ही थी, ब्रिटेन के स्वामित्व वाले स्टिना इम्पेरो जहाज़ को ईरान ने तुरंत ज़ब्त कर लिया।
इस कार्यवाही के तुरंत बाद ब्रिटेन मैदान छोड़कर पीछे हट गया और घुटने टेककर ईरानी जहाज को छोड़ने पर मजबूर हो गया, ग्रीस में भी पश्चिमी दुश्मन ने यही खेल दोहराया।
जब ग्रीस में दो ईरानी जहाजों को ज़ब्त कर लिया गया, तो ईरान ने भी दो ग्रीक जहाज़ों को ज़ब्त कर लिया जिसके बाद सामने वाला पक्ष पीछे हटने पर मजबूर हो गया।
लेकिन शायद इस कहानी का सबसे दिलचस्प हिस्सा वह क्षण था जब अमेरिका ने वेनेज़ुएला जा रहे ईरानी तेल टैंकरों को ज़ब्त करने की धमकी दी थी।
आईआरजीसी के कमांडर जनरल हुसैन सलामी, आईआरजीसी की नौसेना के कमांडर जनरल तांगसीरी के साथ व्यक्तिगत रूप से घटनास्थल पर पहुंचे।
उन्होंने एक अमेरिकी टैंकर को पकड़ने के लिए एक जाली ऑपरेशन तैयार किया, फिर उन्होंने वायरलेस से एलान किया कि वे अमेरिकी टैंकरों को ज़ब्त करने के लिए तैयार हैं।
नतीजा यह हुआ कि अमेरिकी, जो ईरान की गंभीरता और तत्परता से आश्वस्त थे, अपनी धमकियों से पीछे हट गए और ईरानी तेल टैंकर सुरक्षित रूप से अपने गंतव्य तक पहुंच गए।
ये साहसिक कार्यवाही एक बड़ी लड़ाई का ही हिस्सा थी, एक ऐसी लड़ाई जिसमें ईरान अपने दुश्मनों के खुले और छिपे खतरों के सामने खड़ा हुआ है और पूरी सतर्कता तथा मज़बूती के साथ अपनी शिपिंग लाइनों की सुरक्षा सुनिश्चित कर रहा है। एक ऐसी कहानी जिसने ज़ाहिर कर दिया कि समुद्र भी एक ख़ामोश युद्धक्षेत्र हो सकता है, लेकिन इन लड़ाइयों में इच्छाशक्ति और दृढ़ता का ही बोलबाला होता है।
पार्सटुडे की रिपोर्ट के अनुसार, आपने जो कहानी पढ़ी, वह इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स आईआरजीसी के कमांडर-इन-चीफ़ मेजर जनरल हुसैन सलामी ने अपने शब्दों में बयान की थी। उन्होंने यह कहानी राष्ट्रपति श्री मसऊद पिज़िश्कियान की खातमुल-अंबिया सैन्य छावनी के कमांडरों से मुलाक़ात के दौरान बयान की थी। इस बैठक में उन्होंने हालिया वर्षों में ईरान के सामने आने वाली चुनौतियों और संघर्षों के बारे में विस्तार से बताया था जिसमें तेल टैंकरों का युद्ध और अमेरिका, इज़राइल और इंग्लैंड के प्रतिबंधों और धमकियों से निपटने की कोशिशें भी शामिल हैं।