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ईरान के राष्ट्रपति की उपस्थिति के साथ पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस
ईरान के राष्ट्रपति डॉक्टर मसऊद पिज़िश्कियान पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस मंगलवार, 26 सितंबर को दोपहर 3 बजे इस्लामी देशों के प्रमुखों के सम्मेलन कक्ष ,सालोन एजलास,में आयोजित होगी।
एक रिपोर्ट के अनुसार,ईरान के राष्ट्रपति डॉक्टर मसऊद पिज़िश्कियान पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस मंगलवार, 26 सितंबर को दोपहर 3 बजे इस्लामी देशों के प्रमुखों के सम्मेलन कक्ष ,सालोन एजलास,में आयोजित की जाएगी जिसमें देशी और विदेशी मीडिया शामिल होंगें।
पिज़िश्कियान ने अपनी पहली टेलीविज़न बातचीत जो 10 सितंबर 2024 को हुई थी वह कहे थे कि जल्द ही देशी और विदेशी मीडिया की उपस्थिति में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करेंगें।
राष्ट्रपति कार्यालय के संचार और सूचना उपाध्यक्ष सैयद मेहदी तबातबाई ने अपने सोशल मीडिया पेज पर घोषणा की थी कि राष्ट्रपति डॉ. मसूद पेज़िश्कियान की पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस मंगलवार, 26 सितंबर 2024 को 12 रबीउ अव्वल और हफतह ए वहदत के पहले दिन आयोजित की जाएगी।
उन्होंने यह भी लिखा कि इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में जो पिछले वर्षों की तुलना में कुछ बदलावों के साथ आयोजित होगी, ईरान के राष्ट्रपति आंतरिक और बाहरी मुद्दों पर पत्रकारों और मीडिया के सवालों का जवाब देंगे।
ईरान और बेलारूस: आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने पर ज़ोर
ईरान कि और बेलारू कि सुरक्षा अधिकारियों ने द्विपक्षीय राजनीतिक, सुरक्षा और आर्थिक संबंधों को मजबूत करने की आवश्यकता पर रौशनी डाली।
ईरान कि और बेलारू कि सुरक्षा अधिकारियों ने द्विपक्षीय राजनीतिक, सुरक्षा और आर्थिक संबंधों को मजबूत करने की आवश्यकता पर रौशनी डाली।
बेलारूस की राजधानी मिन्स्क में एक बैठक के दौरान ईरान की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव अली अकबर अहमदियन और सुरक्षा परिषद के बेलारूस के राज्य सचिव अलेक्जेंडर वोल्फोविच ने शुक्रवार को औद्योगिक, खनन और व्यापार क्षेत्रों में विस्तारित सहयोग का आह्वान किया।
स्थानीय मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि दोनों पक्षों ने रणनीतिक क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाने और शंघाई सहयोग संगठन और ब्रिक्स जैसे ढांचे सहित अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रों में तेहरान और मिन्स्क के बीच सहयोग को बढ़ावा देने का भी आह्वान किया।
अहमदियन ने अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली में बहुपक्षवाद को आगे बढ़ाने के लिए दोनों देशों के सामान्य दृष्टिकोण को रेखांकित किया और इस क्षेत्र में द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने का आह्वान किया, और कहा कि एससीओ, ब्रिक्स और इसी तरह के ढांचे एक नई विश्व व्यवस्था के अग्रदूत थे।
उन्होंने पश्चिम की एकतरफा नीतियों का मुकाबला करने के लिए स्वतंत्र राज्यों के बीच विस्तारित सहयोग की आवश्यकता पर भी बल दिया और कहा कि कुछ पश्चिमी राज्य अन्य देशों को नुकसान पहुंचाने के लिए प्रतिबंधों का उपयोग करते हैं।
वोल्फोविच ने बहुपक्षवाद को बढ़ावा देने पर अहमदिया के साथ सहमति व्यक्त की, यह देखते हुए कि मिन्स्क और तेहरान समान विचार साझा करते हैं और उस दिशा में ठोस कदम उठा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर बेलारूस की स्थिति ईरान के समान है, दोनों देशों का संघर्षों पर समान आकलन है।
अमेरिका, ब्रिटेन और इस्राईल को स्तब्ध रहने की प्रतीक्षा में रहना चाहिये
यमन के प्रतिरक्षामंत्री ने अमेरिका और ब्रिटेन के गठबंधन को चेतावनी देते हुए कहा है कि आगामी दिनों में दुश्मन विश्वास न करने वाली हतप्रभ चीज़ें दिखेंगे।
यमनी सरकार के प्रतिरक्षामंत्री मोहम्मद अलआतेफ़ी ने अमेरिका, ब्रिटेन और इस्राईली गठबंधन को चेतावनी दी है कि हमारा जवाब उनके लिए डरावने स्वप्न में बदल जायेगा और उनकी सुरक्षा ख़तरे में पड़ जायेगा।
पार्सटुडे ने यमन के अलमसीरा टीवी चैनल के हवाले से बताया है कि अलआतेफ़ी ने बल देकर कहा कि हम अपने दुश्मनों को चेतावनी देते हैं कि भावी दिन उनके लिए हतप्रभ करने वाले होंगे जिसकी उन्हें अपेक्षा नहीं है।
इससे पहले राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद ने 20 दैय 1402 अर्थात 10 जनवरी 2024 को जापान और अमेरिका के सुझाव पर यमन के अंसारुल्लाह संगठन के ख़िलाफ़ प्रस्ताव नंबर 2722 पारित किया था। इस प्रस्ताव के पारित होने के एक दिन बाद अमेरिका और ब्रिटेन ने आठ अन्य देशों के साथ मिलकर यमन में अंसारुल्लाह के ठिकानों पर हमला किया था।
यमनी सेना इस बात के प्रति कटिबद्ध हो गयी है कि जब तक ग़ज़ा पट्टी पर इस्राईल के पाश्विक हमले बंद नहीं होते तब तक वह ज़ायोनी सरकार के जहाज़ों पर या हर उस जहाज़ को लक्ष्य बनायेगी जो अवैध अधिकृत की ओर जायेंगे। यमनी सेना ने बल देकर कहा है कि अदन की खाड़ी और लाल सागर में जहाज़ों की आवाजाही आज़ाद है और उन्हें पूरी सुरक्षा प्राप्त है।
केजरीवाल देंगे इस्तीफ़ा दिल्ली को मिलेगा नया मुखिया
जेल से बाहर आते ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने इस्तीफ़ा देने की घोषणा कर दी है। उनके एलान को राजनैतिक जानकार ट्रंप कार्ड बता रहे हैं।
अरविंद केजरीवाल के इस्तीफा देने की सबसे बड़ी वजह सुप्रीम कोर्ट की शर्तें हैं। कहा जा रहा है कि इन शर्तों की वजह से आप की सरकार राजनीतिक और संवैधानिक संकट में फंस सकती थी, इसी संकट से बचने के लिए केजरीवाल ने इस्तीफे का ट्रंप कार्ड खेला है।
केजरीवाल के इस्तीफे की घोषणा से जो सवाल सबसे ज्यादा उठ रहा है, वो यह कि 177 दिन तक जेल में रहने के बाद भी पद नहीं छोड़ने वाले आप के मुखिया अरविंद केजरीवाल जेल से बाहर आते ही सीएम की कुर्सी क्यों छोड़ रहे हैं?
बता दें कि केजरीवाल को शराब घोटाला केस में जमानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कई शर्तें लगाई है। इनमें 2 शर्तें प्रमुख है। पहला, अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री दफ्तर नहीं जा सकेंगे। दूसरा मुख्यमंत्री होने के नाते किसी फाइल पर साइन नहीं कर सकेंगे। कहा जा रहा है कि इस्तीफा देने की सबसे बड़ी वजह यही है।
9 रबीउल अव्वल को "ज़हूर-ए-मुंज़ी-ए-आलम बशरियत" के शीर्षक से एक विशेष अंतर्राष्ट्रीय वर्चुअल कॉन्फ्रेंस
ज़हूर-ए-मुंज़ी-ए-आलम बशरियत" के शीर्षक से एक विशेष अंतर्राष्ट्रीय वर्चुअल कॉन्फ्रेंस आयोजित किया जा रहा है, जिसमें मशहूर उलमा और शिक्षकों कि तकारीर शामिल होंगी।यह कार्यक्रम शुक्रवार, 23 सितंबर 2024 को रात 9 बजे ऑनलाइन आयोजित किया जाएगा ज़हूर और मुंज़ी से संबंधित विषयों में रुचि रखने वाले लोग इस वर्चुअल कॉन्फ्रेंस में शामिल होकर विभिन्न विचारों और विश्लेषणों से लाभ उठा सकते हैं।
ज़हूर-ए-मुंज़ी-ए-आलम बशरियत" के शीर्षक से एक विशेष अंतर्राष्ट्रीय वर्चुअल कॉन्फ्रेंस आयोजित किया जा रहा है, जिसमें मशहूर उलमा और शिक्षकों कि तकारीर शामिल होंगी।यह कार्यक्रम शुक्रवार, 23 सितंबर 2024 को रात 9 बजे ऑनलाइन आयोजित किया जाएगा।
ज़हूर और मुंज़ी से संबंधित विषयों में रुचि रखने वाले लोग इस वर्चुअल कॉन्फ्रेंस में शामिल होकर विभिन्न विचारों और विश्लेषणों से लाभ उठा सकते हैं।
इस कॉन्फ्रेंस में:
मस्जिदे जमकरान क़ुम ईरान के मुतवल्ली, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन उजाक नेज़ाद,
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद हैदर आफ़ताब रिज़वी (इमामे जुमआ केप टाउन, दक्षिण अफ्रीका)
याक़ूब तौकली इतिहासकार और
भारत से आयतुल्लाह नजमुल मिल्लत र.ह.
मौलाना सैयद इमान अहमद लखनऊ (सामाजिक कार्यकर्ता और 'राह-ए-नाब' के संस्थापक ,ज़हूर-ए-मुंज़ी पर अलग अलग पहलुओं से चर्चा करेंगे।
इसके अलावा मुकर्रेरीन में :तौफ़ीक अलविया क़ुरानी शोधकर्ता, लेबनान,शेख़ मुर्तज़ा (धार्मिक प्रचारक, तुर्की)
डॉ. हमीद रज़ा बेगदली यूनिवर्सिटी ऑफ़ अदयान व मजाहिब के फैकल्टी सदस्य और डॉ. ईरान रक़्नाबादी मजमए अहल-ए-बैत की महिला मामलों की निदेशक शामिल हैं।
यह कार्यक्रम शुक्रवार, 23 सितंबर 2024 को रात 9 बजे ऑनलाइन आयोजित किया जाएगा। ज़हूर और मुंज़ी से संबंधित विषयों में रुचि रखने वाले लोग इस वर्चुअल कॉन्फ्रेंस में शामिल होकर विभिन्न विचारों और विश्लेषणों से लाभ उठा सकते हैं। यह कार्यक्रम विभिन्न चैनलों पर भी प्रसारित किया जाएगा।
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की ज़िन्दगी पर एक नज़र
शियों के आखरी इमाम और रसूले इस्लाम (स.) के बारहवें जानशीन 15 शाबान सन् 255 हिजरी क़मरी व सन् 868 ई. में जुमे के दिन सुबह के वक़्त इराक के शहर (सामर्रा) में पैदा हुए।
उन के पिता शियों के ग्यारहवें इमाम हज़रत हसन अस्करी (अ. स.) और उन की माता जनाबे नर्जिस ख़ातून थीं। उनकी माता की क़ौम के बारे में रिवायतों में मत भेद पाया जाता हैं। एक रिवायत के अनुसार जनाबे नर्जिस खातून, रोम के बादशाह यशूअ की बेटी थीं और उन की माँ, हज़रत ईसा (अ. स.) के वसी जनाबे शमऊन की नस्ल से थीं। एक
रिवायत के अनुसार जनाबे नर्जिस खातून एक ख्वाब के नतीजे में मुसलमान हुईं और इमाम हसन अस्करी (अ. स.) की हिदायत (मार्गदर्शन) की वजह से मुसलमानों से जंग करने वाली रोम की फ़ौज के साथ रहीं और जब उस जंग में मुसलमानों को सफलता मिली तो वह भी अन्य बहुत से लोगों के साथ इस्लामी फ़ौज के द्वारा क़ैदी बना ली गईं। हज़रत इमाम अली नकी (अ. स.) ने एक इंसान को वहाँ भेजा ताकि वह उन्हें खरीद कर सामर्रा ले आये।[1]
इस बारे में अन्य रिवायतें भी मिलती हैं [2] लेकिन महत्वपूर्ण और ध्यान देने योग्य बात यह है कि हज़रत नर्जिस खातून एक मुद्दत तक हक़ीमा खातून (इमाम अली नक़ी (अ. स.) की बहन) के घर में रहीं और उन्होंने ही जनाबे नर्जिस ख़ातून की तरबियत की, जिस की वजह से जनाबे हकीमा खातून उन का बहुत ज़्यादा एहतिराम किया करती थीं।
जनाबे नर्जिस खातून (अ. स.) वह बीबी हैं जिनकी पैग़म्बरे इस्लाम (स.)[3] हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अ. स.)[4] और हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.)[5] ने बहुत ज़्यादा तारीफ़ की है और उन को क़नीज़ों में बेहतरीन क़नीज़ और क़नीज़ों की सरदार कहा है।
यह बात बताना भी ज़रूरी है कि हज़रत इमामे ज़माना (अज्जल अल्लाहु तआला फरजहु शरीफ़) की आदरनीय माता को दूसरे नामों से भी पुकारा जाता था, जैसे- सोसन, रिहाना, मलीका, और सैक़ल व सक़ील।
इमामे ज़माना(अ. स.) का नाम कुन्नियत और अलक़ाब
हज़रत इमामे ज़माना (अज्जल अल्लाहु तआला फरजहु शरीफ़) का नाम और क़ुन्नियत[6] पैग़म्बरे इस्लाम (स.) का नाम और कुन्नियत है। कुछ रिवायतों में उनके ज़हूर तक उनका नाम लेने से मना किया गया है।
उन के मशहूर अल्काब इस तरह हैं, महदी, क़ाइम, मुन्तज़िर, बक़ीयतुल्लाह, हुज्जत, ख़लफे सालेह, मंसूर, साहिबुल अम्र, साहिबुज़्ज़मान, और वली अस्र, इन में महदी लक़ब सब से ज़्यादा मशहूर है।
इमाम (अ. स.) का हर लक़ब उनके बारे में एक मख़सूस पैग़ाम रखता है।
खूबियों के इमाम को (महदी) कहा गया है, क्यों कि वह ऐसे हिदायत याफ्ता हैं जो लोगों को हक़ की तरफ़ बुलायें गे और उन को क़ाइम इस लिए कहा गया है क्यों कि वह हक़ के लिए क़ियाम करेंगे और उन को मुन्तज़िर इस लिए कहा गया है क्यों कि सभी उन के आने का इन्तेज़ार कर रहे हैं। उन्हें ब़कीयतुल्लाह लक़ब इस वजह से दिया गया है क्यों कि वह ख़ुदा की हुज्जतों में से बाक़ी हुज्जत हैं और वही अल्लाह का आख़िरी ज़ख़ीर हैं।
(हुज्जत) का अर्थ मखलूक पर ख़ुदा के गवाह, और ख़लफ़े सालेह का अर्थ अल्लाह के नेक जानशीन है। उनको मंसूर इस वजह से कहा गया है कि ख़ुदा की तरफ़ से उनकी मदद होगी। वह साहबे अम्र इस वजह से कहलाये जाते हैं कि अदले इलाही की हुकूमत क़ायम करना उन्हीं की ज़िम्मेदारी है। साहिबुज़्ज़मान और वली अस्र भी इसी अर्थ में हैं कि वह अपने ज़माने के तन्हा हाकिम होंगे।
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[1] . कमालुद्दीन, जिल्द न. 2, बाब 41, पेज न. 132,
[2] . बिहार उल अनवार, जिल्द न. 5, पेज न. 22, और हदीस 14, पेज न. 11,
[3] . बिहार उल अनवार, जिल्द न. 5 पेज न. 22, और हदीस 14, पेज न. 11.
[4] . ग़ैबते तूसी अलैहिर्रहमा, हदीस 478, पेज न. 470.
[5] . कमालूद्दीन, जिल्द न. 2, बाब 33, हदीस 31, पेज न. 21.
[6] . कुन्नियत ऐसे नाम को कहा जाता है जो (अब) या ( अम) से शुरु होते हैं जैसे अबू अब्दील्लाह और उम्मुल बनीन
जन्म की स्थिति
बहुत सी रिवायतों में पैग़म्बरे इस्लाम (स.) से नक्ल हुआ है कि मेरी नस्ल से महदी नाम का इंसान क़याम करेगा, जो ज़ुल्मो सितम की बुनियादों को खोखला कर देगा।
बनी अब्बास के ज़ालिम व सितमगर बादशाहों ने इन रिवायत को सुन कर यह तय कर लिया था कि इमाम महदी (अ. स.) को जन्म के समय ही क़त्ल कर दिया जाये। इसी वजह से इमाम मुहम्मद तक़ी (अ. स.) के ज़माने से ही अइम्मा ए मासूमीन (अ. स.) पर बहुत ज़्यादा सख्तियाँ की गईं और इमाम हसन अस्करी (अ. स.) के ज़माने में यह सख्तियां अपनी आख़िरी हद तक पहुँच गईं। हालत यह थी कि अगर कोई हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) के घर पर जाता था तो उसका आना जाना उस वक़्त की हुकूमत की नज़रों से छुपा नहीं था। ज़ाहिर है कि ऐसे माहौल में अल्लाह की आखरी हुज्जत का जन्म गोपनीय तरीके से होना चाहिए था। इसी दलील की वजह से इमाम के जन्म को इतना छुपा कर रखा गया कि हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) के नज़दीकी साथी भी हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के जन्म से बे खबर थे। हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के जन्म से कुछ घण्टे पहले तक भी उनकी माँ जनाबे नर्जिस खातून के जिस्म में किसी बच्चे को जन्म देने की निशानियाँ नही पाई जाती थीं।
जनाबे हकीमा खातून जो कि हज़रत इमाम मुहम्मद तकी (अ. स.) की बेटी हैं, हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के जन्म के बारे में इस तरह विवरण देती हैं।
हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) ने मुझे बुलाया और कहा : ऐ फुफी जान आज आप हमारे यहाँ इफ़्तार करना, क्यों कि आज पन्द्रहवीं शाबान की रात है और ख़ुदा वन्दे आलम इस रात में अपनी आख़री हुज्जत को ज़मीन पर ज़ाहिर करने वाला है। मैं ने सवाल किया उसकी माँ कौन है ? इमाम (अ. स.) ने जवाब दिया कि नर्जिस खातून। मैं ने कहा कि मैं आप पर कुर्बान, उन में तो हम्ल (गर्भ) की कोई भी निशानी नही दिखाई दे रही हैं। इमाम (अ. स.) ने फरमाया : बात वही है जो मैं ने कही है। इस के बाद मैं नर्जिस ख़ातून के पास गई और सलाम कर के उन के पास बैठ गई। वह मेरी जूतियाँ उतारने के लिए मेरे पास आईं और मुझ से कहा कि ऐ मेरी मलका, आपका क्या हाल है ? मैं ने कहा कि नहीं आप ही मेरी और मेरे खानदान की मलीका हैं। उन्हों ने मेरी बात को नही माना और कहा फुफी जान आप क्या फरमाती हैं ? मैं ने कहा, आज की रात ख़ुदा वन्दे आलम तुम को एक बेटा ऐसा बेटा देगा जो दुनिया और आखिरत का सरदार होगा। वह यह सुन कर शर्मा गईं।
हक़ीमा खातून कहती हैं कि मैं ने इशा की नमाज़ के बाद इफ़्तार किया और उस के बाद आराम के लिए अपने बिस्तर पर लेट गई। आधी रात बीतने के बाद मैं नमाज़े शब पढ़ने के लिए उठी और नमाज़ पढ़ कर नर्जिस की तरफ़ देखा तो वह उस वक़्त तक आराम से ऐसे सोई हुई थीं, जैसे उनके सामने कोई मुश्किल न हो। मैं नमाज़ की ताक़िबात (नमाज़ के बाद पढ़ी जाने वाली दुआओं को ताक़ीबात कहते हैं) के बाद फिर पलटी और नर्जिस खातून की तरफ़ देखा तो वह उसी तरह सोई हुई थीं। थोड़ी देर के बाद वह नींद से जागी और नमाज़े शब पढ़ कर दो बारा सो गईं।
हकीमा खातून का कहना है कि मैं सहन में आई ताकि देखूं कि सुब्हे सादिक (सुब्ह की नमाज़ के वक़्त को सुब्हे सादिक़ कहते हैं) हुई या नहीं, मैं ने देखा कि अभी सुब्हे काज़िब (रात का वह आख़िरी हिस्सा जिस में ऐसा लगता है कि सुब्ह हो गई है, लेकिन वास्तव में रात ही होती है उसे सुब्हे काज़िब कहते हैं) है। मैं जब यह देखने के बाद अन्दर आयी तो उस वक़्त तक भी नर्जिस खातून सोई हुई थीं। मुझे शक होने लगा ! अचानक हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) ने अपने बिस्तर से आवाज़ दी : ऐ फुफी जान जल्दी न करें बच्चे के जन्म का समय नज़दीक है। मैं ने सूरः ए सजदा और सूरः ए यासीन की तिलावत शुरु कर दी। तभी जनाबे नर्जिस परेशानी की हालत में नींद से जागीं, मैं जल्दी से उन के पास गई और कहा, ”اسم اللہ علیک“ (तुम से बला दूर हो) क्या तुम्हें किसी चीज़ का एहसास हो रहा है ? उन्होंने कहा कि हाँ फुफी जान, मैं ने कहा कि अपने ऊपर कन्ट्रोल रखो, और अपने दिल को मज़बूत कर लो, यह वही वक़्त है जिस के बारे में मैं आपको पहले बता चुकी हूँ। इस मौके पर मुझे और नर्जिस खातून को कमज़ोरी का एहसास हुआ। इस के बाद मेरे सैय्यद व सरदार बच्चे की आवाज़ सुनाई दी। मैं ने उनके ऊपर से चादर हटाई तो उन को सजदे की हालत में देखा, मैं आगे बढ़ी और बच्चे को गोद में ले लिया। मैंने देखा कि बच्चा पूरी तरह से पाक व पाक़ीज़ा है।
उस मौक़े पर हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) ने मुझ से फरमाया : ऐ फुफी जान मेरे बेटे को मेरे पास ले आइये। मैं उस को उनके पास ले गई, उन्होंने अपनी गोद में ले कर फरमायाः ऐ मेरे बेटे कुछ बोलो ! यह सुन कर वह बच्चा बोलने लगा और कहा कि اشھد ان لا الہ الا الله وحدہ لا شریک لہ و اشھد انّ محمداً رسول الله“, इस के बाद अमीरुल मोमिनीन और अन्य मासूम इमामों (अ. स.) पर दुरुद भेजा और अपने पिता का नाम लेने पर रुक गये। इमामे हसन अस्करी (अ. स.) ने फरमायाः फुफी जान! इस बच्चे को इस की माँ के पास ले जाओ, ताकि यह उन्हें सलाम करे।
हकीमा खातून कहती हैं, कि दूसरे दिन जब में इमाम हसन अस्करी (अ. स.) के यहाँ गई तो मैं ने इमाम (अ. स.) को सलाम किया, मैं ने अपने मौला व आक़ा (इमाम महदी) को देखने के लिए पर्दा उठाया, लेकिन वह दिखाई न दिये, अतः मैं ने उन के हज़रत इमाम हसन अस्करी से सवाल किया : मैं आप पर कुर्बान, क्या मेरे मौला व आक़ा के लिए कोई इत्तिफाक़ पेश आ गया है ? इमाम (अ. स.) ने फरमायाः ऐ फुफी जान मैं ने उस को उस ख़ुदा के सुपुर्द कर दिया है जिस को जनाबे मूसा की माँ ने जनाबे मूसा को सिपुर्द किया था।
हकीमा खातून कहती हैं, जब सातवां दिन आया मैं फिर इमाम (अ. स.) के यहाँ गई और सलाम करके बैठ गई। इमाम (अ. स.) ने फरमायाः मेरे बेटे को मेरे पास लाओ, मैं अपने मौला व आक़ा को उन के पास ले गई, इमाम (अ. स.) ने फरमाया : ऐ मेरे बेटे कुछ बात करो, बच्चे ने ज़बान खोली और ख़ुदा वन्दे आलम की वहदानियत (एकेश्वरवाद) की गवाही देने और पैग़म्बरे इस्लाम (स.) व अपने बाप दादाओं पर दुरुद व सलाम भेजने के बाद इन आयतों की तिलावत फरमाई। بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰن الرَّحِیْمِ
(وَنُرِیدُ اٴَنْ نَمُنَّ عَلَی الَّذِینَ اسْتُضْعِفُوا فِی الْاٴَرْضِ وَنَجْعَلَہُمْ اٴَئِمَّةً وَ نَجْعَلَہُمُ الْوَارِثِینَ ۔ وَنُمَکِّنَ لَہُمْ فِی الْاٴَرْضِ وَنُرِی فِرْعَوْنَ وَہَامَانَ وَجُنُودَہُمَا مِنْہُمْ مَا کَانُوا یَحْذَرُونَ و [ (1) ]2]
शुरु करता हूँ अल्लाह के नाम से जो बड़ा रहमान व रहीम है, और हम ये जानते हैं कि जिन लोगों को ज़मीन में कमज़ोर कर दिया गया है उन पर एहसान करें और उन्हें लोगों का इमाम और ज़मीन का वारीस बनायें और उन्हीं को ज़मीन पर हुकूमत दें और फिरौन व हामान और उनकी फ़ौजों को उन्हीँ कमज़ोरों के हाथों वह मंज़र दिखलायें जिस से ये डर रहे हैं।
हज़रते इमाम महदी (अ. स.) की विशेषताएं
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) और अहलेबैत (अ. स.) की रिवायतों में इमाम महदी (अ. स.) की शक्ल व सूरत और विशेषताओं का जो उल्लेख मिलता है, यहाँ पर उन में से कुछ की तरफ़ इशारा किया जा रहा है।
इमाम के चेहरे का रंग गेहूँआ, ऊँचा व चमकता हुआ माथ, भंवैं गोल और आँखें बड़ी बड़ी, नाक लम्बी और खूबसूरत, दाँत चौड़े और चमकदार, दाहिने गाल पर एक काले तिल का निशान, काँधे पर नबूवत जैसी एक निशानी, जिस्म मज़बूत और दिलरुबा है।
आपकी जो निशानियाँ व विशेषताएं मासूम इमामों (अ. स.) की हदीसों में बयान हुई हैं उन में से कुछ इस तरह हैं।
(हज़रत महदी अ. स.) बहुत इबादत करने वाले हैं और वह रात भर जाग कर इबादत करते हैं। वह ज़ाहिद और सादी ज़िन्दगी बसर करने वाले हैं। वह सब्र और बर्दाश्त करने वाले हैं। वह न्याय से काम करने वाले और नेक किरदार के मालिक हैं। वह इल्म के लिहाज़ से सब लोगों से उत्तम हैं और उनका मुबारक वजूद बरकत और पाकिज़गी का समुन्द्र है। वह जुल्म के ख़िलाफ़ उठ खड़े होंगे और जंग करेंगे। वह पूरी दुनिया के लोगों का नेतृत्व करेंगे और दुनिया में बहुत बड़ा इन्केलाब (परिवर्तन) लायेंगे। वह लोगों को निजात (मुक्ति) दिलाने वाले आख़िरी हादी होंगे और इंसानियत का सुधार करने वाले होंगे। वह पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की नस्ल से, हज़रत फ़ातिमा (स.अ.) की औलाद हैं और हज़रत इमाम हुसैन (अ. स.) के नवें बेटे हैं। वह अपने ज़हूर के वक़्त खान- ए- काबा की दीवार के सहारे खड़े होंगे और पैग़म्बरे इस्लाम (स.) का परचम अपने हाथ में लिए होंगे। वह अपने क़ियाम से अल्लाह के दीन को ज़िन्दा करेंगे और अल्लाह के अहकाम (आदेशों) को पूरी दुनिया में लागू करेंगे। वह अपने ज़हूर के बाद दुनिया को अदल व इंसाफ (न्याय) और मुहब्बत से भर देंगे, जैसा कि वह उनके आने से पहले ज़ुल्म व अत्याचार से भरी होगी।[3]
इमाम महदी (अज्जल अल्लाहु तआला फरजहु शरीफ़) की ज़िन्दगी तीन हिस्सों में बटी हुई है-
- मख़फ़ी ज़माना—जन्म के वक़्त से हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) की शहादत तक आपकी ज़िन्दगी लोगों से मख़फ़ी (गुप्त) रही।
- ग़ैबत का ज़माना- हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) की शहादत के बाद से इमाम (अ. स.) की ग़ैबत का सिलसिला शुरु हुआ और जब तक ख़ुदा वन्दे आलम चाहेगा ये सिलसिला जारी रहेगा।
- ज़हूर का ज़माना- ग़ैबत का वक़्त पूरा होने के बाद इमामे ज़माना (अ. स.) अल्लाह के हुक्म से ज़हूर फरमायेंगे और दुनिया को अदल व इन्साफ़ और नेकियों से भर देंगे। उनके ज़हूर का वक़्त कोई भी नहीं जानता और इमामे ज़माना (अ. स.) से रिवायत है कि जो लोग हमारे ज़हूर के लिए कोई ख़ास वक़्त निश्चित करें वह झूठे हैं।[4]
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[1] सूरः ए क़िसस आयत न. 5 व 6۔
[2] कमालुद्दीन, जिल्द न.2, बाब न. 42, पेज न. 143
[3] मुन्तखिबुलअसर, फ़सले दोवम, पेज न. 239 ता 383.
[4] एतेजाज, जिल्द न. 2, नम्बर 344, पेज न. 542.
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम की इमामत
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम का नाम हज़रत पैगम्बर(स.) के नाम पर है। तथा आपकी मुख्य़ उपाधियाँ महदी मऊद, इमामे अस्र, साहिबुज़्ज़मान, बक़ियातुल्लाह व क़ाइम हैं।
जन्म व जन्म स्थान
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम का जन्म सन् 255हिजरी क़मरी मे शाबान मास की 15वी तिथि को सामर्रा नामक सथान पर हुआ था। यह शहर वर्तमान समय मे इराक़ देश की राजधानी बग़दाद के पास स्थित है।
माता पिता
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के पिता हज़रत इमाम अस्करी अलैहिस्सलाम व आपकी माता हज़रत नरजिस खातून हैं।
पालन पोषण
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम का पालन पोषण 5वर्ष की आयु तक आपके पिता की देख रेख मे हुआ। तथा इस आयु सीमा तक आप को सब लोगों से छुपा कर रखा गया। केवल मुख्य विश्वसनीय मित्रों को ही आप से परिचित कराया गया था
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम की इमामत
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम की इमामत का समय सन् 260 हिजरी क़मरी से आरम्भ होता है। और इस समय आपकी आयु केवल 5वर्ष थी। हज़रत इमाम अस्करी अलैहिस्सलाम ने अपनी शहादत से कुछ दिन पहले एक सभा मे जिसमे आपके चालीस विश्वसनीय मित्र उपस्थित थे, कहा कि मेरी शहादत के बाद वह (हज़रत महदी) आपके खलीफ़ा हैं। वह क़ियाम करने वाले हैं तथा संसार उनका इनतेज़ार करेगा। जबकि पृथ्वी पर चारों ओर अत्याचार व्याप्त होगा वह उस समय कियाम करेंगें व समस्त संसार को न्याय व शांति प्रदान करेंगें।
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम की ग़ैबत(परोक्ष हो जाना)
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम की ग़ैबत दो भागों मे विभाजित है।
(1) ग़ैबते सुग़रा
अर्थात कम समय की ग़ैबत यह ग़ैबत सन् 260 हिजरी क़मरी मे आरम्भ हुई और329 हिजरी मे समाप्त हुई। इस ग़ैबत की समय सीमा मे इमाम केवल मुख्य व्यक्तियों से भेंट करते थे।
(2) ग़ैबत कुबरा
अर्थात दीर्घ समय की ग़ैबत यह ग़ैबत सन् 329 हिजरी मे आरम्भ हुई व जब तक अल्लाह चाहेगा यह ग़ैबत चलती रहेगी। जब अल्लाह का आदेश होगा उस समय आप ज़ाहिर(प्रत्यक्ष) होंगे वह संसार मे न्याय व शांति स्थापित करेंगें।
नुव्वाबे अरबा
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम ने अपनी 69 वर्षीय ग़ैबते सुग़रा के समय मे आम जनता से सम्बन्ध स्थापित करने लिए बारी बारी चार व्यक्तियों को अपना प्रतिनिधि बनाया। यह प्रतिनिधि इमाम व जनता की मध्यस्था करते थे। यह प्रतिनिधि जनता के प्रश्नो को इमाम तक पहुँचाते व इमाम से उत्तर प्राप्त करके उनको जनता को वापस करते थे। इन चारों प्रतिनिधियो को इतिहास मे “नुव्वाबे अरबा” कहा जाता है। यह चारों क्रमशः इस प्रकार हैं।
(1) उस्मान पुत्र सईद ऊमरी यह पाँच वर्षों तक इमाम की सेवा मे रहे।
(2) मुहम्द पुत्र उस्मान ऊमरी यह चालीस वर्ष तक इमाम की सेवा मे रहे।
(3) हुसैन पुत्र रूह नो बखती यह इक्कीस वर्षों तक इमाम की सेवा मे रहे।
(4) अली पुत्र मुहम्मद समरी यह तीन वर्षों तक इमाम की सेवा मे रहे। इसके बाद से ग़ैबते सुग़रा समाप्त हो गई व इमाम ग़ैबते कुबरा मे चले गये।
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम सुन्नी विद्वानों की दृष्टि मे
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम मे केवल शिया सम्प्रदाय ही आस्था नही रखता है। अपितु सुन्नी सम्प्रदाय के विद्वान भी हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम को स्वीकार करते है। परन्तु हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के सम्बन्ध मे उनके विचारों मे विभिन्नता पाई जाती है। कुछ विद्वानो का विचार यह है कि हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम अभी पैदा नही हुए है व कुछ विद्वानो का विचार है कि वह पैदा हो चुके हैं और ग़ैबत मे(परोक्ष रूप से) जीवन यापन कर रहे हैं।
सुन्नी सम्प्रदाय के विभिन्न विद्वान अपने मतों को इस प्रकार प्रकट करते है।
(1) शबरावी शाफ़ाई---,, अपनी किताब अल इत्तेहाफ़ मे इस प्रकार लिखते हैं कि शिया महदी मऊद के बारे मे विश्वास रखते हैं वह (हज़रत इमाम) हसन अस्करी के पुत्र हैं और अन्तिम समय मे प्रकट होगे। उनके सम्बन्ध मे सही हादीसे मिलती है। परन्तु सही यह है कि वह अभी पैदा नही हुए हैं और भविषय मे पैदा होगें तथा वह अहलेबैत मे से होंगें।,,
(2) इब्ने अबिल हदीद मोताज़ली---,,शरहे नहजुल बलाग़ा मे इस प्रकार लिखते हैं कि अधिकतर मोहद्देसीन का विश्वास है कि महदी मऊद हज़रत फ़ातिमा के वंश से हैं।मोतेज़ला समप्रदाय के बुज़ुरगों ने उनको स्वीकार किया है तथा अपनी किताबों मे उनके नाम की व्याख्या की है। परन्तु हमारा विश्वास यह है कि वह अभी पैदा नही हुए हैं और बाद मे पैदा होंगें।,,
(3) इज़्ज़ुद्दीन पुत्र असीर -----,,260 हिजरी क़मरी की घटनाओ का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि अबु मुहम्मदअस्करी (इमामे अस्करी) 232 हिजरी क़मरी मे पैदा हुए और 260 हिजरी क़मरी मे स्वर्गवासी हुए। वह मुहम्मद के पिता हैं जिनको शिया मुनतज़र कहते हैं।,,
(4) इमादुद्दीन अबुल फ़िदा इस्माईल पुत्र नूरूद्दीन शाफ़ई----,,. इमाम हादी का सन् 254 हिजरी क़मरी मे स्वर्गवास हुआ। वह इमाम हसन अस्करी के पिता थे। इमाम अस्करी बारह इमामों मे से ग्यारहवे इमाम हैं वह उन इमामे मुन्तज़र के पिता हैं जो 255 हिजरी क़मरी मे पैदा हुए।,,
(5) इब्ने हजरे हीतमी मक्की शाफ़ई------,, अपनी किताब अस्सवाइक़ुल मोहर्रेक़ाह मे लिखते हैं कि इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम सामर्रा मे स्वर्गवासी हुए उनकी आयु 28 वर्ष थी। कहा जाता है कि उनको विष दिया गया। उन्होने केवल एक पुत्र छोड़ा जिनको अबुलक़ासिम मुहम्मद व हुज्जत कहा जाता है। पिता के स्वर्ग वास के समय उनकी आयु पाँच वर्ष थी । लेकिन अल्लाह ने उनको इस अल्पायु मे ही इमामत प्रदान की वह क़ाइमे मुन्तज़र कहलाये जाते हैं।,,
(6) नूरूद्दीन अली पुत्र मुहम्मद पुत्र सब्बाग़ मालकी-----,, इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ;की इमामत दो वर्ष दो वर्ष थी । उन्होने अपने बाद हुज्जत क़ाइम नामक एक बेटे को छोड़ा। जिनका सत्य पर आधारित शासन की स्थापना के लिए इंतिज़ार( प्रतीक्षा) किया जायेगा। उनके पिता ने लोगों से गुप्त रख कर उनका पालन पोषण किया। तथा ऐसा अब्बासी शासक के अत्याचार से बचने के लिए किया गया था।,,
(7) अबुल अब्बास अहम पुत्र यूसुफ़ दमिश्क़ी क़रमानी ----- ,,अपनी किताब अखबारूद्दुवल वा आसारूल उवल की ग्यारहवी फ़स्ल मे लिखते हैं कि खलफ़े सालेह इमाम अबुल क़ासिम मुहम्मद इमाम अस्करी के बेटे हैं। जिनकी आयु उनके पिता के स्वर्गवास के समय केवल पाँच वर्ष थी। परन्तु अल्लाह ने उनको हज़रत याहिय की तरह बचपन मे ही हिकमत प्रदान की। वह मध्य क़द सुन्दर बाल सुन्दर नाक व चोड़े माथे वाले हैं।,, इस से ज्ञात होता है कि इस सुन्नी विद्वान को हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के जन्म पर पूर्ण विश्वास था यहाँ तक कि उन्होने आपके शारीरिक विवरण का भी उल्लेख किया है। और खलफ़े सालेह की उपाधि के साथ उनका वर्णन किया है।
(8) हाफ़िज़ अबु अब्दुल्लाह मुहम्मद पुत्र य़ूसुफ़ कन्जी शाफ़ई---- ,,अपनी किताब किफ़ायातुत तालिब के अन्तिम भाग मे लिखते हैं कि इमाम अस्करी सन् 260 हिजरी मे रबी उल अव्वल मास की आठवी तिथि को स्वर्ग वासी हुए व उन्होने एक पुत्र छोड़ा जो इमामे मुन्तज़र हैं।,,
(9) ख़वाजा पारसा हनफ़ी---- अपनी किताब फ़ज़लुल ख़िताब मे इस प्रकार लिखते हैं कि “ अबु मुहम्द हसन अस्करी ने अबुल क़ासिम मुहम्मद मुँतज़र नामक केवल एक बेटे को अपने बाद इस संसार मे छोड़ा जो हुज्जत क़ाइम व साहिबुज़्ज़मान से प्रसिद्ध हैं। वह 255 हिजरी क़मरी मे शाबान मास की 15 वी तिथि को पैदा हुए व उनकी माता नरजिस थीं।,,
(10) इब्ने तलहा कमालुद्दीन शाफ़ई -----अपनी किताबमतालिबुस्सऊल फ़ी मनाक़िबिर रसूल मे लिखते हैं कि “अबु मुहम्मद अस्करी के मनाक़िब (स्तुति या प्रशंसा) के बारे इतना कहना ही अधिक है कि अल्लाह ने उनको महदी मऊद का पिता बनाकर सबसे बड़ी श्रेष्ठता प्रदान की हैं। वह आगे लिखते हैं कि महदी मऊद का नाम मुहम्मद व उनकी माता का नाम सैक़ल है। महदी मऊद की अन्य उपाधियाँ हुज्जत खलफ़े सालेह व मुँतज़र हैं।,,
(11) शम्सुद्दीन अबुल मुज़फ़्फ़र सिब्ते इब्ने जोज़ी -----अपनी प्रसिद्ध किताब तज़किरातुल ख़वास मे लिखते हैं “ कि मुहम्मद पुत्र हसन पुत्र अली पुत्र मुहम्मद पुत्र अली पुत्र मूसा पुत्र जाअफ़र पुत्र मुहम्मद पुत्र अली पुत्र हुसैन पुत्र अली इब्ने अबी तालिब की कुन्नियत अबुल क़ासिम व अबु अबदुल्लाह है। वह खलफ़े सालेह, हुज्जत, साहिबुज्जमान, क़ाइम, मुन्तज़र व अन्तिम इमाम हैं।अब्दुल अज़ीज़ पुत्र महमूद पुत्र बज़्ज़ाज़ ने हमको सूचना दी है कि इबने ऊमर ने कहा कि हज़रत पैगम्बर ने कहा कि अन्तिम समय मे मेरे वँश से एक पुरूष आयेगा जिसका नाम मेरे नाम के समान होगा व उसकी कुन्नियत मेरी कुन्नियत के समान होगी। वह संसार से अत्याचार समाप्त करके न्याय व शाँति की स्थापना करेगा। यही वह महदी हैं।,,
(12) अबदुल वहाब शेरानी शाफ़ई मिस्री---- अपनी प्रसिद्ध किताब अल यवाक़ीत वल जवाहिर मे हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलामके सम्बन्ध मे लिखते हैं कि “ वह इमाम हसन की संतान है उनका जन्म सन् 255 हिजरी क़मरी मे शाबान मास की 15वी तिथि को हुआ। वह ईसा पुत्र मरीयम से भेँट करेगें व जीवित रहेगें। हमारे समय (किताब लिखने का समय) मे कि अब 958 हिजरी क़मरी है उनकी आयु 706 वर्ष हो चुकी है।
।।अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिंव वा आले मुहम्मद व अज्जिल फ़राजहुम।।
ईरान ने अफगानिस्तान के दाईकुंडी प्रांत में ISIS के हमले की कड़ी निंदा की
ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने अफगानिस्तान के दाईकुंडी प्रांत में कर्बला से लौटने वाले ज़ायरिन के स्वागत के लिए आए काफिले पर ISIS के हमले की कड़ी निंदा की है।
ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नासिर कनआनी ने अफगानिस्तान के दाईकुंडी प्रांत में कर्बला से लौटने वाले ज़ायरिन के स्वागत के लिए आए काफिले पर ISIS के हमले की कड़ी निंदा की है।
ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने हमले में शहीद हुए लोगों की आत्मा की शांति और घायलों के शीघ्र स्वस्थ होने की दिआ के साथ-साथ अफगानिस्तान के शासकों से इस हमले में शामिल आतंकवादियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की मांग भी की है।
गौरतलब है कि आज सुबह अफगानिस्तान के दाईकुंडी प्रांत में कर्बला की यात्रा से लौटने वाले ज़ायरिन के स्वागत के लिए आए काफिले पर ISIS ने हमला कर दिया था जिसमें 14 लोग शहीद और 6 घायल हो गए थे इस हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन ISIS ने ली है।
इस्लामी देश इजराइल के दूतावासों को बंद करके अपने संबंध को समाप्त करें
इमामे जुमआ क़ुम ने कहां,अगर इस्लामी देश वास्तव में गंभीर हैं तो उन्हें इज़राइल के दूतावासों को बंद कर देना चाहिए और उसके साथ अपने संबंध समाप्त कर लेना चाहिए इस्लामी उम्मत को चुप्पी साधने के बजाय सक्रिय कदम उठाने चाहिए और इज़राइल को यह स्पष्ट हो कि वह घेराबंदी में है जो जारी रहेगी।
एक रिपोर्ट के अनुसार, क़ुम मुकद्देसा में जुमआ की नमाज़ के खुत्बे के दौरान हौज़ा ए इल्मिया ईरान के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा आराफ़ी ने कहा, ईरान की विदेश नीति का मुख्य उद्देश्य वैश्विक बहुपक्षवाद को समाप्त करना और नए राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा केंद्रों की स्थापना करना है।
उन्होंने रूस और अन्य देशों को चेतावनी दी कि ईरान के तीन द्वीप और ज़ंगज़ूर क्रॉसिंग ईरान की लाल रेखा हैं और ईरान अपने राजनीतिक क्रांतिकारी और राष्ट्रीय हितों के खिलाफ किसी भी उल्लंघन को बर्दाश्त नहीं करेगा।
आयतुल्लाह आराफ़ी ने आगे कहा, यदि इस्लामी देश वास्तव में गंभीर हैं तो उन्हें इसराइल के दूतावासों को बंद करना चाहिए और उसके साथ अपने संबंधों को समाप्त करना चाहिए।
उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि इस्लामी उम्मत को खामोश रहने के बजाय सक्रिय कदम उठाना चाहिए और इसराइल को स्पष्ट करना चाहिए कि वह घेराबंदी में है जो जारी रहेगी।
उन्होंने ईरान की व्यापक और बुद्धिमान रणनीति की प्रशंसा करते हुए कहा,ईरान इज़राईल सरकार के अत्याचारों का बदला ले रहा है और यह प्रक्रिया जारी रहेगी आयतुल्लाह आराफ़ी ने कहा कि ईरान की विदेश नीति वैश्विक बहुपक्षवाद को समाप्त करने और नए ताकतवर केंद्रों की स्थापना पर केंद्रित है।
हौज़ा ए इल्मिया ईरान के प्रमुख ने शिक्षा और प्रशिक्षण पर भी ज़ोर दिया और कहा: नई पीढ़ी के प्रशिक्षण में परिवारों, मदरसों, विश्वविद्यालयों और मीडिया की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने ईरान की शैक्षणिक प्रगति की सराहना की और कहा कि विश्वविद्यालयों और शैक्षिक केंद्रों को अपने काम में तेजी लानी चाहिए ताकि ईरान को वैश्विक स्तर पर विशिष्ट बनाया जा सके।
उन्होंने दिफ़ा ए मुकद्दस के महत्व पर भी प्रकाश डाला और कहा, ईरान ने इस असमान युद्ध में बड़ी शक्तियों को हराया और एक नया सांस्कृतिक और प्रतिरोधी मॉडल पेश किया। पवित्र रक्षा ने ईरान की सैन्य और शैक्षणिक प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और देश को एक आत्मनिर्भर शक्ति बना दिया हैं।
आयतुल्लाह आराफ़ी ने कहा, फिलिस्तीन और ग़ाज़ा इस्लामी दुनिया के महत्वपूर्ण मुद्दे हैं और इस्लामी देशों को इन मुद्दों में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए यदि इस्लामी देश अन्याय के खिलाफ खड़े नहीं होते हैं तो वे खुद भी उसी अन्याय का शिकार हो सकते हैं।
इराक की यात्रा का मुख्य लक्ष्य एकता और एकजुटता को बढ़ावा देना
ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेज़ेशकियान ने कहा कि उनकी इराक की तीन दिवसीय यात्रा का उद्देश्य दोनों देशों के बीच एकता और एकजुटता को बढ़ावा देना है।
ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेज़ेशकियान ने कहा कि उनकी इराक की तीन दिवसीय यात्रा का उद्देश्य दोनों देशों के बीच एकता और एकजुटता को बढ़ावा देना है।
उनके कार्यालय की वेबसाइट द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, उन्होंने शुक्रवार को इराक से ईरान की राजधानी तेहरान पहुंचने पर पत्रकारों को संबोधित करते हुए यात्रा के परिणामों के बारे में विस्तार से बताया।
एक रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने कहा कि इराकी राष्ट्रपति अब्दुल लतीफ राशिद, प्रधान मंत्री मोहम्मद शिया अलसुदानी और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ उनकी चर्चा में राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और सुरक्षा संबंध शामिल थे।
पेज़िशकियान ने कहा कि, 14 समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर करने के अलावा यात्रा के दौरान इस बात पर सहमति हुई कि दोनों देशों की टीमें भविष्य में हस्ताक्षरित होने वाली दीर्घकालिक रणनीतिक योजनाएं विकसित करेंगी।
जुलाई के अंत में ईरान के नौवें राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभालने के बाद अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए पेज़ेशकियान एक उच्च रैंकिंग प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करते हुए बुधवार को इराकी राजधानी बगदाद पहुंचे।