
رضوی
इमाम महदी से क़रीब होने का तरीक़ा
महदवीयत या महदवीइज़्म के क्षेत्र में शोध करने वाले एक शोधकर्ता ने लोगों के दुख दर्द में साथ देने और उनकी मदद करने को अंतिम मुक्तिदाता हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम से नज़दीक होने का सर्वोत्तम तरीक़ा क़रार दिया है।
महदवीइज़्म के क्षेत्र में एक शोधकर्ता हुज्जतुल इस्लाम महमूद अबाज़री, लोगों के दुख दर्द में साथ देने और उनकी मदद करने को अंतिम मुक्तिदाता हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम से नज़दीक होने के सर्वोत्तम, सबसे अच्छे और तेज़ तरीकों में से एक मानते हैं। उनका कहना है: दूसरे के दुख दर्द को अपना दुख दर्द समझना और उसके बाद लोगों की मदद करना।
महदवीयत या महदवीइज़्म के क्षेत्र में शोध करने वाले इस शोधकर्ता ने इस बात पर जोर दिया कि लोगों का अपने साथियों या अपने जैसों के प्रति सहानुभूति रखने और उनकी मदद करने का प्रयास, बहुत ही निर्णायक और महत्वपूर्ण है।
उन्होंने आगे कहा: अगर अहलेबैत या पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों को चाहने वाले और हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम का इंतेज़ार करने वाले,वह काम करें जो उनकी क्षमता और ताक़त में है, तो उन्हें अल्लाह की मदद और उसका समर्थन मिलेगा और हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम जल्द ही प्रकट होंगे।
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के बारे में शोध करने वाले शोधकर्ता हुज्जतुल इस्लाम महमूद अबाज़री पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के हवाले से कहते हैं कि जब हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम प्रकट होंगे और आंदोलन करेंगे तो दुनिया के लोगों के बीच ऐसे दोस्तों और लोगों से उनका सामना होगा जब कोई ज़रूरतंद को ज़रूरत होगी तो वह अपने साथी और भाई की जेब में हाथ डाल कर अपनी ज़रूरत को पूरा कर लेगा।
इस धार्मिक शोधकर्ता ने सूरह निसा की आयत संख्या 165 का हवाला देते हुए जिसमें ईश्वर फ़रमाता है कि
(رُسُلًا مُبَشِّرِینَ وَمُنْذِرِینَ لِئَلَّا یَکُونَ لِلنَّاسِ عَلَى اللَّهِ حُجَّةٌ بَعْدَ الرُّسُلِ ۚ وَکَانَ اللَّهُ عَزِیزًا حَکِیمًا)
यह सारे रसूल बशारत व शुभ सूचना देने वाले और डराने वाले, इस लिए भेजे गये ताकि रसूलों के आने के बाद इंसानों की हुज्जत और तर्क ईश्वर पर क़ाएम न होने पाए और ईश्वर सब पर ताक़त रखने वाला और दूरदर्शी है।
वह कहते हैं: पैग़म्बर सलल्लाहो अलैह व आले व सल्लम के मिशन के बारे में ईश्वसर की परंपरा यह है कि ईश्वर अपना दूत भेजता है, इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि लोग क्या चाहते हैं, क्या नहीं चाहते हैं, जब तक कि इन नबियों के भेजने के बाद सभी लोगों के लिए तर्क और प्रमाण पूरा न हो जाए लेकिन इमाम महदी अलैहिस्सलाम के प्रकट होने के संबंध में ईश्वरीय कानून यह है कि लोगों को न्याय के लिए आंदोलन करना होगा और उठ खड़े होना होगा।
आयतुल्लाह हसन मुर्तज़वी की पत्नी के निधन पर आयतुल्लाहिल सैय्यद अली सिस्तानी का शोक संदेश
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली सिस्तानी ने आयतुल्लाह सैय्यद हसन मुर्तज़वी की पत्नी के निधन पर एक शोक संदेश जारी किया है।
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली सिस्तानी ने आयतुल्लाह सैय्यद हसन मुर्तज़वी की पत्नी के निधन पर एक शोक संदेश जारी किया है।
शोक संदेश कुछ इस प्रकार है:
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलाही राजी'उन
जनाब आयतुल्लाह आगा हाजी सैय्यद हसन मुर्तज़वी दामत बरकातेहु
अस्सलामुअलैकुम वा रहमतुल्लाह वा बरकातहु
उम्मीद है कि आप सदैव हज़रत वली-ए-अस्र अ.स. की विशेष कृपा के अंतर्गत सभी कठिनाइयों से सुरक्षित रहेंगे।
आपकी आदरणीय पत्नी के निधन पर मैं आपको और सभी परिजनों को शोक संवेदना प्रकट करता हूँ। अल्लाह तआला से दुआ करता हु कि मरहूमा पर अपनी रहमत और प्रसन्नता की बारिश करें और परिजनों को धैर्य और उत्तम प्रतिफल प्रदान करें।
अल्लाह तआला से दुआ करता हूं कि अल्लाह तआला मरहूमा की मगफिरत करें और परिवार वालों को सब्र अता करें।
अली हुसैनी अलसिस्तानी
अमेरिका की अद्भुत न्यायिक संरचना ट्रम्प को सज़ा से बचाती है
अमेरिका की कुछ राज्य अदालतों द्वारा पिछले वर्षों में विभिन्न मामलों में इस देश के पूर्व राष्ट्रपति की सज़ा को स्थगित करने के फ़ैसले ने अमेरिकी न्यायिक प्रणाली के कथित न्याय के दावे की पोल खोल दी है।
यद्यपि अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय और इस देश की न्यायिक संरचना ने इस देश के विवादास्पद मामलों के लिए राजनीतिक और क़ानूनी स्वतंत्रता का दावा किया है और हमेशा इस झूठे प्रस्ताव पर जोर दिया है, लेकिन इस देश की न्यायिक प्रणाली की ख़ास इच्छा पूर्व राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प को विभिन्न मामलों में सजा दूर कर सकती है जिनमें ट्रम्प का अपराध साबित हो चुका है, यह विषय अमेरिका की कुछ और ही कहानी सुना रहा है।
न्यूयॉर्क की एक अदालत के फ़ैसले के मुताबिक, "चुप रहने का अधिकार" मामले में डोनल्ड ट्रम्प को सज़ा, राष्ट्रपति चुनाव के बाद सुनाई जाएगी। पहले, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति की सज़ा का ऐलान, सितम्बर के मध्य में किया जाना था।
पार्स टुडे के इस लेख में, हम डोनल्ड ट्रम्प के अपराधों के ख़िलाफ़ अमेरिकी न्यायिक प्रणाली की चुप्पी के बारे में रिसालत अखबार में "हनीफ गेफ़ारी" के आर्टिकल पर एक नज़र डालते हैं।
2020 के विवादास्पद अमेरिकी चुनावों और जॉर्जिया राज्य में चुनाव परिणामों को छूठा साबित करने के ट्रम्प के स्पष्ट प्रयास (जो बाइडेन की जीत के साथ समाप्त हुआ) के बाद से गुजरे चार वर्षों के दौरान, इस देश के पूर्व राष्ट्रपति न्यायिक सुरक्षा के सहारे आगे बढ़ रहे हैं।
यह बिल्कुल निश्चित है कि इस समीकरण में, अमेरिका की न्यायिक संरचना इस देश की सुरक्षा और राजनीतिक संरचना पर निर्भर हो गई है जिसमें वरिष्ठ अधिकारियों के ख़िलाफ़ खुले और छिपे हुए मामलों के सामने अपनी कथित स्वतंत्रता का दावा करने की कोई इच्छाशक्ति ही नहीं है।
इस दावे को साबित करने के लिए हम ब्लू फिल्मों की एक्ट्रेस पर ट्रम्प के चुप रहने के अधिकार के मामले में न्यूयॉर्क कोर्ट के फ़ैसले का हवाला दे सकते हैं।
इस साल जून में, न्यूयॉर्क की एक अदालत की जूरी ने डोनल्ड ट्रम्प को ब्लू फिल्मों की पूर्व अभिनेत्री स्टॉर्मी डेनियल्स को "अनैतिक" भुगतान छुपाने के साथ-साथ व्यावसायिक दस्तावेजों में हेराफेरी करने का दोषी पाया, लेकिन सजा से बचने का आधार इस शर्त के साथ प्रशस्त होगा जब उन्हें नवम्बर में राष्ट्रपति चुनाव जीतने का मौका मिले।
इस अदालत में जो कुछ हुआ और जो गुजरेगा वह अमेरिका की न्यायिक, राजनीतिक और सुरक्षा संरचना में पूर्ण अन्याय का एक सबूत है, एक मज़बूत और सच्चा बयान और आधार जिसे अब साबित करने की ज़रूरत ही नहीं है।
2020 के राष्ट्रपति चुनाव में "हस्तक्षेप" के संबंध में ट्रम्प के ख़िलाफ़ अमेरिकी विशेष अभियोजक के नए अभियोग का भी उनके चुप रहने के अधिकार के मामले और उनके कर चोरी मामले के समान ही हश्र हुआ है।
यदि ट्रम्प यह चुनाव जीत जाते हैं, तो अमेरिकी संविधान के अनुसार, वह दोषी पाए जाने के बावजूद ख़ुद को और अपने आसपास के लोगों को माफ़ कर सकते हैं या माफ़ करा सकते हैं, और इन मामलों की फ़ाइलों को बंद करने का एलान भी कर सकते हैं! यहां, ट्रम्प के लिए जेल की सज़ा या जुर्माना जारी करने से किसी भी तरह का परिचालन और कार्यकारी प्रभाव सामने नहीं आएगा।
ज़ुहूर का रास्ता हमवार होना और ज़हूर की निशानियां
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर की कुछ निशानियाँ और शर्तें हैं, उन्हीं को ज़हूर का रास्ता हमवार होना व ज़हूर की निशानियों के शीर्षक से याद किया जाता है। इन दोनों में फ़र्क यह है कि रास्ते का हमवार होना ज़हूर में प्रभावित है, अर्थात अगर रास्ता हमवार हो गया तो इमाम (अ. स.) का ज़हूर हो जायेगा और अगर रास्ता हमवार न हुआ तो ज़हूर नहीं हो होगा। इसके विपरीत निशानियाँ ज़हूर में प्रभावी नहीं हैं बल्कि सिर्फ़ ज़हूर की निशानी हैं और उनके द्वारा सिर्फ़ ज़हूर के ज़माने या ज़हूर के ज़माने के क़रीब होने का पहचाना जा सकता है।
इस फ़र्क को मद्दे नज़र रखते हुए अच्छी तरह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि ज़हूर की शर्तें और रास्ते का हमवार होना, ज़हूर की निशानियों से ज़्यादा महत्वपूर्ण है। अतः निशानियों को तलाश करने से पहले उन शर्तों पर ध्यान दें और अपनी ताक़त के अनुसार उन शर्तों को पैदा करने की कोशिश करें। इसी वजह से हम पहले ज़हूर के रास्तों के हमवार होने और ज़हूर की शर्तों की व्याख्या करते हैं और आख़िर में ज़हूर की निशानियों का संक्षेप में उल्लेख करेंगे।
ज़हूर की शर्तें और रास्ते का हमवार होना
संसार की हर चीज़ अपनी शर्तों के पूर्ण व रास्ते के हमवार होने से ही अस्तित्व व वजूद में आ जाती है। इन के बग़ैर कोई भी चीज़ वजूद में नहीं आती। हर ज़मीन दाने को उगाने व उसे परवान चढ़ाने की योग्यता नहीं रखती। प्रत्येक जल वायु हर फूल, फल के फलने व फूलने के लिए उचित नहीं होती है। एक किसान ज़मीन से अच्छी फसल काटने का उसी वक़्त उम्मीदवार हो सकता है जब उसने फसल काटने की ज़रूरी शर्तों को पूरा कर लिया हो।
इसी प्रकार कोई परिवर्तन और सामाजिक सुधार भी शर्तों के पूर्ण होने और रास्ते के हमवार होने पर ही आधारित होता है। जिस तरह ईरान का इस्लामी इन्केलाब शर्तों के पूरा होने और रास्तों के हमवार होने के बाद सफल हुआ है, इसी तरह हज़रत इमाम महदी (अ. स.) का विश्वव्यापी इन्क़ेलाब, जो कि दुनिया का सब से बड़ा इन्किलाब होगा, भी उसी क़ानून के अन्तर्गत आता है और जब तक उसका रास्ता हमवार न होगा और शर्तें पूरी न होंगी, उस वक़्त तक घटित नही हो सकता।
इस स्पष्टीकरण का उद्देश्य यह है कि हमारे दिमाग़ में यह ख़्याल न रहे कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के क़ियाम (आन्दोलन) व हुकूमत का मसला इस क़ानून से अलग है, और उनका यह समाज सुधार आन्दोलन किसी मोजज़े (चमत्कार) के आधार पर शर्तों व कारकों के बिना घटित हो जायेगा। बल्कि कुरआन व अहले बैत (अ. स.) की शिक्षाएं और अल्लाह की सुन्नत ये है कि संसार के तमाम काम साधारण रूप से और साधारण शर्तों व कारकों के आधार पर ही क्रियान्वित होते हैं।
हज़रत इमाम सादिक (अ. स.) ने फरमाया :
ख़ुदा वन्दे आलम सब कामों को उनके कारकों के आधार पर ही पूरा करता है...
एक रिवायत में मिलता है कि किसी इंसान ने हज़रत इमाम मुहम्मद बाकिर (अ. स.) से कहा कि मैंने सुना है कि जब हज़रत इमाम महदी (अ. स.) का ज़हूर होगा तो सारे काम उनकी मर्ज़ी के अनुसार होंगे।
इमाम (अ. स.) ने फरमाया : हरग़िज़ ऐसा नहीं है, उस ज़ात की क़सम जिस के क़ब्जें में मेरी जान है, अगर यह तय होता कि हर किसी का काम ख़ुद बख़ुद हो जायेगा तो फिर ऐसा रसूले इस्लाम (स.) के लिए होता...।
अलबत्ता इस बात का यह अर्थ नहीं है कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर के वक़्त ग़ैबी और आसमानी मदद नहीं होगी, बल्कि मक़सद यह है कि उस सहायता के साथ साथ आम शर्तों और रास्तों का हमवार होना ज़रुरी है।
इस बात के सेपष्ट हो जाने के बाद हमें चाहिए कि पहले ज़हूर की शर्तों को पहचाने और फिर उनके लिए रास्ता हमवार करने की कोशिश करें।
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के आन्दोलन और विश्वव्यापी सुधार व परिवर्तन की शर्तों और भूमिकाओं में से निम्न लिखित चार चीज़ें महत्वपूर्ण हैं, हम इन के बारे में अलग अलग वार्तालाप व बहस करते हैं।
योजना व प्लान
यह बात पूर्ण रूप से स्पष्ट है कि प्रत्येक सुधार आन्दोलन के लिए दो चीज़ों की ज़रूरत होती हैः
अ- समाज में मौजूद बुराईयों का मुक़ाबेला करने के लिए एक पूर्ण योजना।
आ- समाज की ज़रुरतों के अनुरूप ऐसे पूर्ण और उचित क़ानून जो हुकूमत की न्याय व्यवस्था में समस्त व्यक्तिगत व सामाजिक अधिकारों के रक्षक हो और जिनके आधार पर समाज तरक्की कर के अपने उद्देश्यों तक पहुँच सके।
सच्चा इस्लाम अर्थात कुरआने करीम की शिक्षाएं और मासूमों (अ. स.) की सुन्नत बेहतरीन कानून के रूप में हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के पास होगी और वह अल्लाह के इसी अमर संविधान के आधार पर काम करेंगे...। कुरआन ऐसी किताब है जिसकी आयतों का ख़ज़ाना उस ख़ुदा वन्दे आलम की तरफ़ से नाज़िल हुआ जो इंसान के तमाम पहलुओं और उसकी समस्त भैतिक व आध्यात्मिक ज़रुरतों को जानता है। अतः इमामे ज़माना (अ. स.) का विश्वव्यापी आन्दोलन हुकूमत के क़ानून के लिहाज़ से बेमिसाल तथ्यों पर आधारित होगा और किसी भी दूसरे अन्दोलन से उसका मुक़ाबेला व उसकी तुलना करना संभव नही है। इस दावे की दलील यह है कि आज की दुनिया ने बहुत से तजर्बे करने के बाद इस बात को क़बूल किया है कि इंसानों द्वारा बनाये गये क़ानूनों में कमज़ोरियाँ पाई जाती हैं। इस लिए आज इंसान आहिस्ता आहिस्ता आसमानी क़ानूनों को क़बूल करने के लिए तैयार होता जा रहा है।
अमेरीकी का राजनीतिक सलाहकार आलवीन टाफलर, इंसानी समाज को गंभीर हालत से निकालने और इसमें सुधार लाने के लिए तीसरी लहर... ...का नज़रिया पेश करता है, लेकिन वह इस बारे में आश्चर्यजनक बातों का इकरार करता है।
हमारे पश्चिमी समाज में मुशकिलों और परेशानियों की लिस्ट इतनी लंबी है कि उसका कोई अन्त नहीं है। औद्योगिक अस्थिरता और अनियमित्ता के कारण अखलाक़ी व सदाचारिक बुराईयाँ इतनी बढ़ गई हैं कि उनकी दुर्गंध से परेशान हो कर इंसान अपने गुस्से को ज़ाहिर करने और समाज में परिवर्तन लाने की कोशिश में और उस पर इसके लिए हर वक़्त दबाव बढ़ रहा है। इस दबाव के जवाब में हज़ारों ऐसी योजनायें पेश की जा चुकी हैं, जिनके बारे में यह दावा किया जाता है कि यह आधारभूत व नई हैं, लेकिन बार बार देखने में आता है कि जो क़ानून और संविधान हमारी मुशकिलों के हल के लिए पेश किये जाते हैं वह हमारी परेशानियों को और ज़्यादा बढ़ा देते हैं। इस कारण इंसान में मायूसी और ना उम्मीदी का एहसास पैदा होता जा रहा है। इसी वजह से इंसान सोचता है कि इनका कोई फायेदा नहीं है किसी क़ानून का कोई असर नहीं होता है। चूँकि यह एहसास हर डिमोक्रेटिक निज़ाम व व्यवस्था के लिए खतरनाक है, इसी लिए मिसालों में बयान होने वाले सफेद घोड़े पर सवार मर्द, की ज़रुरत का बड़ी बेचैनी से इन्तेज़ार से किया जा रहा है...।
रहबरी व नेतृत्व
हर इंकेलाब व आन्दोलन में एक रहबर व नेतृत्व करने वाले की ज़रूरत आधारभूत ज़रूरतों में गिनी जाती है। इंन्केलाब का स्तर जितना अधिक व्यापक होगा और उसके उद्देश्य जितने अधिक उच्चय होंगे, उसी के अनुरूप उसके रहबर को भी ताक़तवर व उन उद्देश्यों को प्रप्त करने में समक्ष होना चाहिए।
विश्व स्तर पर ज़ुल्म व सितम से मुक़ाबेला करने वाला, न्याय व समानता पर आधारित विश्वव्यापी हुकूमत स्थापित करने वाला और पूरी ज़मीन पर समानता फैलाने की ताक़त रखने वाला, हर इल्म का जानने वाला और अपने दिल में इंसानियत का दर्द रखने वाला रहबर, उस इंकेलाब का असली स्तंभ है। ऐसा रहबर जो वास्तव में उस इंकेलाब का सही नेतृत्व कर सके। हज़रत इमाम महदी (अ. स.) जो सब नबियों व वलियों (अ. स.) का सार हैं, वह उस महान रहबर के रूप में ज़िन्दा और हाज़िर हैं। सिर्फ वही एक ऐसे रहबर हैं जो आलमे ग़ैब (अल्लाह, फ़रिश्तें व ......) से संबंध के आधार पर संसार की हर चीज़ के बारे में पूर्ण रूप से जानकारी रखते हैं और अपने ज़माने के सब से बड़े व महान आलिम व ज्ञानी हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमाया :
जान लो कि महदी (अ. स.) सारे इल्मों के वारिस होंगे, और सारे इल्मों पर उनका वर्चस्प होगा...।
वह ऐसे रहबर हैं जो हर तरह की पाबन्दियों से आज़ाद होंगे और सिर्फ़ उनका दिल अल्लाह की मर्ज़ी के तहत होगा।
अतः वह विश्वव्यापी इंकेलाब और हुकूमत के रहबर के लिहाज़ से भी बेहतरीन होंगे।
मददगार
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर की ज़रुरी शर्तों मे से उन के अच्छे, उचित और ऐसे लायक मददगारों का वजूद भी है, जो इस इन्केलाब और हुकूमत के ओहदो पर रह कर इमाम (अ. स.) की मदद करें। ज़ाहिर सी बात है कि जब वह विश्वव्यापी इन्केलाब एक महान आसमानी रहबर के ज़रिये बर्पा होगा तो फिर उनके मददगार भी उसी स्तर के होंगे, ऐसा नहीं है कि जिस ने भी मदद करने का वादा कर लिया वही उन की मददगारों में शामिल हो जाये।
इस बारे में निम्न लिखित घटना पर ध्यान देने की ज़रूरत है :
हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) का सुहैल पुत्र हसन खुरासानी नामक शिया इमाम (अ. स.) की खिदमत में अर्ज़ करता है :
आपके रास्ते में क्या चीज़ रुकावट है कि आप अपने हक़ (हुकूमत) के लिए क़ियाम (आन्दोलन) नहीं करते जबकि आपके एक लाख़ तलवार चलाने वाले घुड़सवार शिया मौजूद हैं ? इमाम (अ. स.) ने हुक्म दिया कि तन्दूर दहकाया जाये। इमाम के हुक्म से तन्दूर दहकाया गया और जब उसमें से आग के शोले बाहर निकलने लगे तो इमाम (अ.स.) ने सुहैल से फरमाया : ऐ खुरासानी ! उठो और इस तन्दूर में कूद जाओ। सुहैल समझे कि इमाम (अ. स.) उसकी बातों से नाराज़ हो गए हैं, अतः उन्हों ने इमाम से माफ़ी माँगते हुए कहा कि : मौला मुझे माफ़ कर दीजिये, मुझे आग में डाल कर सज़ा न दें। इमाम (अ. स.) ने फरमाया: मैं तुम्हें छोड़ता हूँ।
उसी वक़्त वहाँ पर इमाम (अ. स.) के एक सच्चे शिया हारुने मक्की आ गये, उन्होंने इमाम (अ. स.) को सलाम किया। इमाम ने सलाम का जवाब देने के बाद कुछ कहे सुने व बताये बग़ैर उन्हें हुक्म दिया कि इस तन्दूर में कूद जाओ।
हारुने मक्की यह सुनते ही फौरन उस तन्दूर में कूद गये और इमाम (अ. स.) उस खुरासानी से बात चीत करने में व्यस्त हो गये और उसे खुरासान की घटनाएं इस तरह सुनाने लगे जैसे इमाम (अ. स.) वहाँ ख़ुद मौजूद हों। कुछ देर के बाद इमाम (अ. स.) ने फरमाया : ऐ खुरासानी उठो और तन्दूर के अन्दर झाँक कर देखो ! जब सुहैल ने उठ कर तन्दूर के अन्दर झाँका तो देखा कि हारुने मक्की आग के शोलों के के बीच पलोथी मारे बैठे हुए हैं।
उस वक़्त इमाम (अ. स.) ने उस ख़ुरासानी से सवाल किया कि बताओ तुम खुरासान में हारुने मक्की जैसे कितने लोगों को पहचानते हो ? खुरासानी ने जवाब दिया : मैं तो ऐसे किसी इंसान को नहीं जानता !। इमाम (अ. स.) ने फरमाया : जान लो कि जब तक हमें पाँच मददगार नहीं मिलते, हम उस वक़्त तक क़ियाम (आन्दोलन) नहीं करते, हम बेहतर जानते हैं कि क़ियाम और इंकेलाब का कब वक़्त है...?
अतः उचित है कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगारों की सिफ़तों व विशेषताओं को रिवायतों के आधार पर पहचानें ताकि हम उनके अनुरूप ख़ुद को परखें और अपने अन्दर पाई जाने वाली कमियों को पूरा करने की कोशिश करें।
क- इमामत की शनाख़्त व आज्ञापालन
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगारों को ख़ुदा वन्दे आलम और इमाम की गहरी शनाख्त है और वह पूरी जानकारी के साथ हक़ के मैदान में हाज़िर होते हैं।
हज़रत अली (अ. स.) उनके बारे में फरमाते हैं कि
"वह ऐसे इंसान हैं जो ख़ुदा को इस तरह पहचानते हैं कि जो उसे पहचानने का हक़ है।
इमाम की शनाख्त और इमामत का अक़ीदा भी उनके दिल की गहराइयों में अपनी जड़ें मज़बूत कर चुका है और उनके पूरे वजूद पर अपना वर्चस्व जमाये हुए है। उनकी इमामत के प्रति यह शनाख्त, इमाम (अ. स.) का नाम व नस्ब जानने से उच्च है। इमामत की शनाख़्त की वास्तविक्ता यह है कि इंसान इमाम के विलायत के हक़ और संसार में उनके बुलन्द मर्तबे को पहचानें। यही वह शनाख़्त है जिससे उनके दिल मुहब्बत से भर जाते हैं, और फिर वह उनकी आज्ञा पालन के लिए हर वक़्त और हर तरह से तैयार रहते हैं। क्योंकि वह जानते हैं कि इमाम (अ. स.) का हुक्म ख़ुदा का हुक्म है और उनकी इताअत (आज्ञा पालन) ख़ुदा की इताअत है।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने उनकी तारीफ़ में फरमाया कि
वह लोग अपने इमाम की आज्ञा पालन की पूरी कोशिश करते हैं...।
ख- इबादत और दृढ़ता
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगार इबादत में अपने इमाम को नमून ए अमल बनाते हैं और अपना हर दिन व हर रात अल्लाह के ज़िक्र में ग़ुज़ारते हैं।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) ने उन के बारे में फरमाया :
वह रात भर इबादत करते हैं, और दिन में रोज़ा रखते हैं...।
और एक दूसरी हदीस में फरमाते हैं कि
वह घोड़ों पर सवारी की हालत में भी अल्लाह की तस्बीह करते हैं...।
यही अल्लाह का ज़िक्र है जिस से वह फ़ौलादी मर्द बनते हैं, अतः उनकी दृढ़ता और मज़बूती को कोई भी चीज़ खत्म नहीं कर सकती।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) फरमाते हैं कि
वह ऐसे मर्द होंगे कि उनके दिल लोहे के टुक्ड़े जैसे होंगे...।
ग- शहादत की तमन्ना
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगारों की मअरेफ़त उन के दिलों को अपने इमाम की मुहब्बत से भर देती है, अतः वह जंग के मैदान में इमाम को अपने बीच में लेकर कर अपनी जान को इमाम की ढाल बना देंगे।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) ने फरमाया :
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगार जंग के मैदान में उनके चारों तरफ़ हल्का बनाए होंगें और अपनी जान को उनकी ढाल बना कर अपने इमाम की हिफ़ाज़त करेंगे...।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) ही ने दूसरी जगह फरमाया :
वह अल्लाह की राह में शहादत पाने की तमन्ना करेंगे...।
घ- बहादुरी और दिलेरी
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगार अपने मौला की तरह बहादुर और लोहपुरूष होंगे।
हज़रत अली (अ. स.) उनकी तारीफ़ में फरमाते हैं कि
"वह ऐसे शेर हैं जो अपने वन से बाहर निकल आये हैं और अगर चाहें तो पहाड़ों को भी हिला सकते हैं...।
ङ- सब्र और बुर्दबारी
स्पष्ट है कि विश्वव्यापी ज़ुल्म व सितम से मुक़ाबेला करने और विश्व स्तर पर न्याय व समानता पर आधारित हुकूमत की स्थापना करने में बहुत से मुशकिलों व परेशानियों का सामना होगा और इमाम (अ. स.) के मददगार अपने इमाम के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए मुशकिलों व परेशानियों को बर्दाश्त करेंगे, लेकिन इखलास व निस्वर्थता के आधार पर अपने काम को साधारण व बहुत छोटा मानेंगे।
हज़रत अली (अ. स.) ने फरमाया :
वह ऐसा गिरोह है जो अल्लाह की राह में काम करने पर अपनी बुर्दबारी और सब्र की वजह से अल्लाह पर एहसान नहीं जतायेंगे, और अपनी जान को हज़रते हक़ के सामने पेश करने पर अपने ऊपर गर्व नहीं करेंगे और उस चीज़ को महत्व नहीं देंगे...।
च- एकता
हज़रत अली (अ. स.) हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगारों की एकता के बारे में फरमाते हैं कि
"वह लोग एक दिल और एक सूत्र में बंधे होंगे...।
उस एकता का कारण यह है कि उनके अन्दर स्वार्थता नहीं पाई जायेगी, वह सही अक़ीदे के साथ एक परचम के नीचे और एक मकसद को पाने के लिए क़ियाम (आन्दोलन) करेंगे, और यह दुशमन के मुक़ाबले में उनकी कामयाबी का एक राज़ है।
छ- ज़ोह्द व तक़वा
हज़रत अली (अ. स.) इमाम महदी (अ. स.) के यारो मददगारों के बारे में फरमाते हैं कि
वह अपने मददगारों से बैअत लेंगे कि सोना व चाँदी जमा न करें और गेहूँ व जौ का भण्डार इकठ्ठा न करें...
उनके उद्देश्य महान हैं और वह एक महान उद्देश्य के लिए ही क़ियाम (आन्दोलन) करेंगे। दुनिया का माल व धन उनको उस महान मक़सद से पीछे नहीं हटा सकता। अतः जिन लोगों की आँखें दुनिया की चमक दमक देख कर चौंधियां जाती हैं और जिनका दिल धन दौलत देख कर पानी पानी हो जाता है, उन लोगों को इमाम महदी (अ. स.) के ख़ास मददगारों में कोई जगह नहीं मिलेगी।
प्रियः पाठकों ! हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगारों की जिन सिफ़तों व विशेषताओं का वर्णन हुआ है, इन्हीँ सिफ़तों व विशेषताओं की वजह से उन्हें रिवायतों में आदर व एहतेराम के साथ याद किया गया है और सभी मासूम इमामों (अ. स.) की ज़बानों पर उनकी तारीफ़ व प्रशंसा रही हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने उनकी तारीफ़ में फरमाया :
”اُوْلَئِکَ ہُمْ خِیَارُ الاٴمَّةِ“
अर्थात वह लोग मेरी उम्मत के सब से अच्छे इंसान हैं।
हज़रत अली (अ. स.) फरमाते हैं कि
فَبِاَبِی وَ اُمّی مِنْ عِدّةٍ قَلِیْلَةٍ اَسْمَائُہُمْ فِی الاٴرْضِ مَجْہُولَة“
मेरे माँ बाप उस छोटे से गिरोह पर कुर्बान जो ज़मीन पर गुमनाम हैं।
अलबत्ता हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगार अपनी योग्यता व सलाहियत के आधार पर विभिन्न दर्जों व श्रेणियों में बटे होंगे। रिवायतों में उल्लेख हुआ है कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के उन ख़ास 313 मददगारो (जिन के हाथों में क़ियाम का नक्शा होगा) के अलावा दस हज़ार लोगों की एक फ़ौज भी होगी और उनके अतिरिक्त इन्तेज़ार करने वाले मोमिनों की एक बहुत बड़ी संख्या उनकी मदद के लिए दौड़ पड़ेगी।
आम तैयारियाँ
मासूम इमामों (अ. स.) की ज़िन्दगी में विभिन्न अवसरों पर यह बात देखने में आई है कि लोग इमाम को मौजूद होने की सूरत में उनसे बेहतर फ़ायदा उठाने के लिए ज़रूरी तैयारी नहीं रखते थे। किसी भी ज़माने में मासूम इमाम (अ. स.) के मौजूद होने की क़दर नहीं की गई और उनकी हिदायत से उचित लाभ नहीं उठाया गया। अतः ख़ुदा वन्दे आलम ने अपनी आखरी हुज्जत को ग़ैबत में भेज दिया, ताकि जब सब लोग उनको क़बूल करने के लिए तैयार हो जायेंगे तो इमाम (अ. स.) को ज़ाहिर कर दिया जायेगा और तब सभी उनसे लाभान्वित होंगे।
इस आधार पर हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर के लिए तैयार रहना महत्वपूर्ण शर्तों में से एक है, क्योंकि इस तैयारी की वजह से इमाम (अ. स.) का समाज सुधार आन्दोलन अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर सकता है।
कुरआने क़रीम में बनी इस्राईल के एक गिरोह का वर्णन हुआ है, उस गिरोह के लोग अपने ज़माने के ज़ालिम व आत्याचारी शासक जालूत के ज़ुल्म व अत्याचारों से बहुत ज़्यादा परेशान हो चुके थे, उन्होंने अपने ज़माने के नबी से निवेदन किया कि आप हमारे लिए एक ताक़तवर सरदार निश्चित कर दीजिये ताकि हम उसके आधीन रह कर जालूत से जंग कर सकें।
इस घटना का वर्णन कुरआने मजीद में इस प्रकार हुआ है :
< اٴَلَمْ تَرَ إِلَی الْمَلَإِ مِنْ بَنِی إِسْرَائِیلَ مِنْ بَعْدِ مُوسَی إِذْ قَالُوا لِنَبِیٍّ لَہُمْ ابْعَثْ لَنَا مَلِکًا نُقَاتِلْ فِی سَبِیلِ اللهِ قَالَ ہَلْ عَسَیْتُمْ إِنْ کُتِبَ عَلَیْکُمْ الْقِتَالُ اٴَلاَّ تُقَاتِلُوا قَالُوا وَمَا لَنَا اٴَلاَّ نُقَاتِلَ فِی سَبِیلِ اللهِ وَقَدْ اٴُخْرِجْنَا مِنْ دِیَارِنَا وَاٴَبْنَائِنَا فَلَمَّا کُتِبَ عَلَیْہِمْ الْقِتَالُ تَوَلَّوْا إِلاَّ قَلِیلًا مِنْہُمْ وَاللهُ عَلِیمٌ بِالظَّالِمِینَ>
क्या तुम ने मूसा के बाद बनी इस्राईल के उस गिरोह को नहीं देखा जिस ने अपने नबी से कहा कि हमारे लिए एक बादशाह निश्चित कर दीजिये ताकि हम अल्लाह की राह में जिहाद करें, नबी ने फरमाया कि मुझे यह अंदेशा है कि तुम पर जिहाद वाजिब हो जायेगा और तुम जिहाद नहीं करोगे, उन लोगों ने कहा कि हम क्यों जिहाद नहीं करेंगे जबकि हमें हमारे घरों बाहर निकाल दिया गया है और बाल बच्चों से अलग कर दिया गया है, इसके बाद जब उन पर जिहाद वाजिब कर दिया गया तो थोड़े से लोगों के अलावा सब अपनी बात से फिर गये और अल्लाह ज़ालमीन को अच्छी तरह जानता है।
जंग के लिए सरदार निश्चित करने का आवेदन एक तरह से इस बात को स्पष्ट करता था कि वह जंग के लिए तैयार हैं, जबकि रास्ते में एक बहुत बड़ी संख्या में लोग सुस्त पड़ गये और बहुत कम लोग जंग मैदान में हाज़िर हुए।
अतः इमाम महदी (अ. स.) का ज़हूर भी उसी वक़्त होगा जब सभी लोगों में समाजिक न्याय, अखलाक़ी व सदाचारिक स्वच्छता और आत्मीय शाँति के प्रति जागरूकता पैदा हो जायेंगी। जब लोग अनयाय और क़बीला परस्ती से थक जायेंगे, जब कमज़ोर लोगों के अधिकार मालदारों व ताक़तवरों के पैरों तले कुचले जायेंगे, जब माल व दौलत सिर्फ़ कुछ ख़ास लोगों के क़ब्ज़े में होगी और कुछ लोगों के पास रात में खाने के लिए रोटी भी न होगी, एक गिरोह अपने लिए महल बनाता हुआ दिखाई देगा और अपने परोग्रामों में बहुत ज़्यादा खर्च करेगा और उनके लिए ऐसे ऐसे खाने व ऐशो आराम के ऐसे ऐसे सामान उपलब्ध होंगे कि उन्हें देख कर आँखें चका चौंध होंगी, तो ऐसे मौक़े पर न्याय व समानता की प्यास अपने चरम बिन्दु पर पहुँच जायेगी।
जब समाज में विभिन्न बुराईयाँ फैलती जा रही हों और लोग बुरे काम करने में एक दूसरे से आगे बढ़ रहे हों, बल्कि अपने बुरे कामों पर गर्व कर रहे हो, इंसानी और इलाही उसूल से दूर भागा जा रहा हो, पवित्रता व पाकीज़गी के विपरीत कामों को कानूनी शक्ल दी जा रही हो जिसके नतीजे में पारिवारिक व्यवस्था चर मरा रही हो, लावारिस बच्चों को समाज के हवाले किया जा रहा हो, तो इस अवसर पर ऐसे रहबर के ज़हूर की अभिलाषा बहुत ज़्यादा की जायेगी जिसकी हुकूमत अखलाकी व आत्मीय सुख व शाँति का पैगाम ले कर आये। जिस वक़्त इंसान के पास मोज मस्ती के समस्त भौतिक साधन मौजूद हों लेकिन वह अपनी ज़िन्दगी से खुश न हो और उसे किसी ऐसी दुनिया की तलाश हो जो आध्यात्म से भरी हो तो उस मौक़े पर इंसान को उस महान इमाम की ज़रूरत का एहसास होगा।
स्पष्ट है कि इमाम (अ. स.) के हाज़िर होने को समझने का शौक़ उस वक़्त अपनी चरम सीमा पर होगा जब आदमी अपने व्यक्तिगत तजर्बे से इंसानी बुद्धिमत्ता के विभिन्न कारनामों को देख कर यह समझ जायेगा कि दुनिया को ज़ुलम व सितम और बुराईयों से छुटकारा दिलाने वाला ज़मीन पर अल्लाह के खलीफ़ा हज़रत इमाम महदी (अ. स.) ही हैं और इंसानों के लिए पाक व साफ और बेहतरीन ज़िन्दगी प्रदान करने वाला विधान सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह का क़ानून हैं। अतः उस मौक़े पर इंसान अपने पूरे वजूद से इमाम (अ. स.) की ज़रुरत का एहसास करेगा और इस एहसास की वजह से उनके ज़हूर के लिए रास्ता हमवार करने की कोशिश करते हुए उस राह में मौजूद रुकावटों को दूर करेगा। यह उसी वक़्त होगा जब फरज और ज़हूर का वक़्त पहुँच जायेगा।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) आख़िरी ज़माने अर्थात ज़हूर से पहले के ज़माने के बारे में फरमाते हैं कि
एक ज़माना ऐसा आयेगा जिसमें मोमिन को पनाह लेने की जगह नहीं मिलेगी ताकि ज़ुल्म व सितम और बर्बादी से छुटकारा मिल सके, अतः उस वक़्त ख़ुदा वन्दे आलम मेरी नस्ल से एक इंसान को भेजेगा...
ज़हूर की निशानियाँ
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के विश्वव्यापी इंकेलाब और क़ियाम व आन्दोलन के लिए कुछ निशानियों का वर्णन हुआ हैं और उन निशानियों की पहचान बहुत से सकारात्मक प्रभाव रखती हैं। चूँकि यह महदी ए आले मुहम्मद स. के ज़हूर कि निशानियाँ है अतः इनमें से हर एक के प्रकट होने से इन्तेज़ार करने वालों के दिलों में उम्मीद की किरणों में वृद्धी होगी और दुश्मनों व भटके हुए लोगों के लिए ख़तरे की घन्टी बजेगी ताकि वह बुराईयों से दूर हो जायें। इसी तरह इन तरह निशानियों के ज़ाहिर होने से इन्तेज़ार करने वालों में अपने अन्दर इमाम (अ. स.) के साथ रहने और उनकी मदद करने की क्षमता प्राप्त करने का शौक पैदा होगा। इस के अलावा भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं का परिचय इंसान को भविष्य के लिए योजना बनाने में सहायक सिद्ध होगा और यह निशानियाँ महदवियत के सच्चे और झूटे दावेदारों को परखने की सबसे अच्छी कसौटी हैं। अतः अगर कोई महदवियत का दावा करे और उसके क़ियाम (आन्दोलन) में यह ख़ास निशानियाँ न पाई जाती हों तो उसके झूठे होने का आसानी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
हमारे मासूम इमामों (अ. स.) की रिवायतों में हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर की बहुत सी निशानियों का वर्णन हुआ हैं. उनमें से कुछ साधारण व प्रकृतिक हैं और कुछ असाधारण व चमत्कारिक हैं।
हम इन निशानियों में से पहले उन स्पष्ट और उच्च निशानियों का उल्लेख करते हैं जिनका वर्णन विश्वसनीय किताबों और विश्वसनीय रिवायतों में हुआ हैं और आखिर में कुछ अन्य निशानियों का संक्षेप में वर्णन करेंगे।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) ने एक रिवायत के अन्तर्गत फरमाया :
क़ाइम (अ. स.) के ज़हूर की पाँच निशानियां है, सुफ़यानी का ख़रुज, यमनी का क़ियाम, आसमानी आवाज़, नफ्से ज़किय्या का क़तल और खस्फे बैदा... ... ।
प्रयः पाठकों ! अब हम उपरोक्त वर्णित इन पाँचो निशानियों के बारे में व्याख्या करते हैं इनका वर्णन अन्य बहुत रिवायतों में भी हुआ हैं, लेकिन इन घटनाओं से संबंधित समस्त व्याख्या हमारे लिए यक़ीनी नहीं है।
सुफ़यानी का ख़रुज (आक्रमण)
सुफ़यानी का आक्रमण उन निशानियों में से एक है जिनका वर्णन अनेकों रिवायतों में हुआ है। सुफ़यानी अबू सुफ़यान की नस्ल से होगा और ज़हूर से कुछ समय पहले शाम नामक स्थान से आक्रमण करेगा। वह ज़ालिम व अत्याचारी होगा और क़त्ल व ग़ारत में किसी तरह की कोई पर्वा नहीं करेगा। वह अपने दुशमनों से बहुत ही बुरा व्यवहार करेगा।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) उसके बारे में फरमाते हैं कि
“अगर तुमने सुफ]यानी को देख लिया तो ऐसा है जैसे तुमने सब से नीच और बुरे इंसान को देख लिया हो...”
उसका आक्रमण रजब के महीने से शुरु होगा, वह शाम और उसके आस पास के इलाकों पर क़ब्ज़ा करने के बाद इराक़ पर हमला करेगा और वहाँ बड़े पैमाने पर कत्ल व ग़ारत करेगा।
कुछ रिवायतों में वर्णन मिलता है कि उसके आक्रमण और उसके क़त्ल होने तक की मुद्दत 15 महीने होगी...।
खस्फ़े बैदा
खस्फ़ का अर्थ फटना व गिरना हैं और बैदा मक्के व मदीने के बीच एक जगह का नाम है।
खस्फ़ बैदा से यह अभिप्रायः है कि सुफ़यानी इमाम महदी (अ. स.) से मुक़ाबले के लिए एक फ़ौज को मक्के की तरफ़ भेजेगा और जब उसकी यह फ़ौज बैदा नामक स्थान पर पहुँचेगी तो चमत्कारिक रूप से ज़मीन फट जायेगी और वह फ़ौज वहीँ ज़मीन में धँस जायेगी।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ. स.) ने इस बारे में फरमाया कि
“सुफ़यानी की फ़ौज के सरदार को खबर मिलेगी कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) मक्के की तरफ़ रवाना हो चुके हैं अतः वह उनके पीछे एक फ़ौज रवाना करेगा, लेकिन वह फ़ौज उनको नहीं पा सकेगी और जब सुफ़यानी की फ़ौज बैदा नामक ज़मीन पर पहुंचेगी तो एक आसमानी आवाज़ आयेगी कि ऐ बैदा की ज़मीन इनको भस्म कर दे। यह सुनने के बाद वह ज़मीन सुफ़यानी की फौज को अपने अन्दर खींच लेगी...।
यमनी का क़ियाम (आन्दोलन)
यमन नामक जगह का एक सरदार का आन्दोलन इमाम (अ. स.) के ज़हूर की निशानी है। यह निशानी इमाम के ज़हूर से कुछ ही दिनों पहले ज़ाहिर होगी। वह एक ऐसा नेक और मोमिन इंसान होगा, जो बुराइयों के खिलाफ़ आन्दोलन चलायेगा और अपनी पूरी ताक़त से बुराइयों व अश्लीलता का मुक़ाबला करेगा, परन्तु उसके आन्दोलन का पूर्ण विवरण हमारे लिए स्पष्ट नहीं है।
इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ. स.) उस बारे में फरमाते हैं कि
“हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के क़ियाम से पहले बुलन्द होने वाले झंड़ो के बीच यमनी का झंडा हिदायत करने वालों में सब से बेहतर होगा, क्यों कि वह लोगों को तुम्हारे मौला हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की तरफ़ बुलायेगा...।”
आसमान से आवाज़ का आना
इमाम (अ. स.) के ज़हूर की निशानियों में से एक निशानी आसमान से चीख़ की आवाज़ आना है। कुछ रिवायत के आधार पर यह आसमानी आवाज़ जनाबे जिब्रइल की आवाज़ होगी, जो रमज़ान के महीने में सुनाई देगी...।
और चूँकि पूर्ण समाज सुधारक का इंकेलाब एक विश्वव्यापी इंकेलाब होगा और सभी को उसका इंतेज़ार होगा, अतः दुनिया भर के लोगों को उसी आसमानी आवाज़ के ज़रिये खबर दी जायेगी।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ. स.) ने फरमाया :
“क़ाइम आले मुहम्मद (अ. स.) का ज़हूर उस वक़्त तक नहीं होगा जब तक आसमान से आवाज़ न दी जाये और उस आवाज़ को पूरब व पश्चिम के सभी निवासी सुनेंगे...।”
यह आवाज़ जिस तरह मोमिनों के लिए खुशी का पैग़ाम बनेगी उसी तरह बुरे लोगों के लिए ख़तरे की घन्टी होगी ताकि वह अपने बुरे कामों से दूर हो कर हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगारों में शामिल हो जायें।
उस आवाज़ की व्याख्या का विभिन्न रिवायतों में वर्णन हुआ हैं, इसके बारे में हज़रत इमाम सादिक (अ. स.) ने फरमाया :
आसमान से आवाज़ देने वाला हज़रत इमाम महदी (अ. स.) को उनके और उनके पिता के नाम के साथ पुकारेगा...।
नफ़्से ज़किया का क़त्ल
नफ्से ज़किया का अर्थ ऐसा इंसान हैं जो कमाल के बुलन्द दर्जे पर पहुँचा हुआ हो या ऐसा पाक, पाक़ीज़ा व बेगुनाह इंसान जिसने किसी को क़त्ल न किया हो। नफ्से ज़किय्या के क़त्ल से यह अभिप्रायः है कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर से कुछ पहले एक उच्च और बेगुनाह इंसान को इमाम (अ. स.) के मुखालिफ़ो के द्वारा क़त्ल किया जायेगा।
कुछ रिवायतों के आधार पर यह घटना इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर से 15 दिन पहले घटित होगी।
इस बारे में हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) ने फरमाया :
क़ाइमे आले मुहम्मद (स.) के ज़हूर और नफ्से ज़किय्या के क़त्ल में सिर्फ़ 15 दिन का फ़ासला होगा...।
प्रियः पाठकों ! उपरोक्त वर्णित निशानियों के अलावा भी कुछ अन्य निशानियों का वर्णन हुआ हैं उनमें से कुछ ख़ास निशानियाँ निम्न लिखित है :
दज्जाल का ख़रुज, दज्जाल एक ऐसा धोकेबाज़ और मक्कार आदमी होगा जिसने बहुत से लोगों को गुमराह किया होगा, रमज़ान के मुबारक़ महीने में सूरज ग्रहण होना, चाँद ग्रहण होना, उपद्रवों का फैलना और खुरासानी का आन्दोलन।
उल्लेखनीय है कि इन निशानियों का सविस्तार वर्णन बड़ी किताबों में मौजूद हैं।
ज़हूर से पहले दुनिया की हालत
हम ने इमामे ज़माना (अज्जल अल्लाहु तआला फरजहू शरीफ़) की ग़ैबत और उसके कारणों का उल्लेख किया है। हम ने बताया कि अल्लाह की वह आख़िरी हुज्जत ग़ायब हो गये हैं और जब उनके ज़हूर का रास्ता हमवार हो जायेगा तो वह ज़ाहिर हो कर दुनिया को अपनी हिदायत व मार्गदर्शन से लाभान्वित करेंगे। ग़ैबत के ज़माने में लोग ऐसे काम कर सकते हैं जिनसे इमाम (अ. स.) के ज़हूर का रास्ता जल्दी से जल्दी हमवार हो जाये। लेकिन वह, शैतान, इच्छाओं के अनुसरण, कुरआन की सही तरबियत से दूरी और मासूम इमामों (अ. स.) की विलायत और इमामत को क़बूल न करने की वजह से ग़लत रास्ते पर चल पड़े है। आज इस दुनिया में हर दिन नये ज़ुल्म व अत्याचार की बुनियादें रखी जाती हैं। पूरी दुनिया में ज़ुल्म व सितम बढ़ता जा रहा है और इंसानियत इस रास्ते के चुनाव से एक बहुत भयंकर नतीजे की तरफ़ बढ़ रही है। आज दुनिया की हालत यह है कि चारों तरफ़ ज़ुल्म व अत्याचार फैला हुआ है, बुराईयों का बोल बाला है, अखलाक़ी व सदाचारिक मर्यादाओं का अंत हो चुका है, शाँति व सुरक्षा का दूर दूर तक भी कहीँ पता नहीं है, ज़िन्दगी आध्यात्म व पवित्रता से खाली है, समाज में मातहत लोगों के हक़ों को पैरों तले रौंदा जा रहा है, यह सब चीज़ें ग़ैबत के ज़माने में इंसान का नाम ए आमाल है। यह एक ऐसी हक़ीक़त है जिस के बारे में मासूमीन (अ. स.) ने शताब्दियों पहले भविषय वाणी कर के इसकी काली तस्वीर पेश कर दी थी।
इमाम सादिक (अ. स.) अपने एक सहाबी से फरमाते हैं कि
"जब तुम देखो कि ज़ुल्म व सितम आम हो रहा है, कुरआन को एक तरफ़ रख दिया गया है, हवा व हवस के आधार पर क़ुरआन की तफ्सीर की जा रही है, अहले बातिल (झूठे) हक़ परस्तों (सच्चों) से आगे बढ़ रहे हैं, ईमानदार लोग ख़ामोश बैठे हुए हैं, रिश्तेदारी के बंधन टूट रहे हैं, चापलूसी बढ़ रही है, नेकियों का रास्ता खाली हो रहा है और बुराइयों के रास्तों पर भीड़ दिखाई दे रही है, हलाल हराम हो रहा है और हराम हलाल शुमार किया जाने लगा है, माल व दौलत गुनाहों और बुराइयों में खर्च किया जा रहा है, हुकूमत के कर्मचारियों में रिशवत का बाज़ार गर्म है, बुरे खेल इतने अधिक चलने लगे कि कोई भी उनकी रोक थाम की हिम्मत नही करता है, लोग कुरआन की हक़ीक़तों को सुनने के लिए तैयार नहीं हैं, लेकिन बातिल और फुज़ूल चीज़ें सुनना उनके लिए आसान है, अल्लाह के गर का हज दिखावे के लिए किया जा रहा है, लोग संग दिल होने लगें हैं, मोहब्बत का जनाज़ा निकल चुका है, अगर कोई अम्र बिल मअरुफ़ और नेही अनिल मुन्कर करे तो उस से कहा जाये कि यह तुम्हारी ज़िम्मेदारी नहीं है, हर साल एक नई बुराई और नई बिदअत पैदा हो रही है, तो ख़ुद को सुरक्षित रखना और इस खतरनाक माहौल से बचने के लिए अल्लाह से पनाह माँगना और समझना कि अब ज़हूर का ज़माना नज़दीक है...।
लेकिन याद रहे कि ज़हूर से पहले की यह काली तस्वीर सब लोगों की नही होगी बल्कि अधिकाँश लोगों की होगी, क्योंकि उस ज़माने में भी कुछ मोमेमीन ऐसे होंगे जो अल्लाह से किये हुए अपने वादों पर बाक़ी रहेंगे और अपने दीन व अक़ीदों की हिफ़ाज़त करेंगे। वह ज़माने के रंग में नहीं रंगे जायेंगे और अपनी ज़िन्दगी का अंजाम बुरा नहीं करेंगे। यह लोग ख़ुदा वन्दे आलम के बेहतरीन बन्दे और मासूम इमामों (अ. स.) के सच्चे शिया होंगे। यही वह लोग होंगे जिनकी रिवायतों में तारीफ़ व प्रशंसा हुई है। यह लोग ख़ुद भी नेक होंगे और दूसरों को भी नेकी की तरफ़ बुलायेंगे, क्योंकि वह इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि नेकियों और अच्छाईयों को फैलाने और ईमान के इत्र से माहौल को सुगंधित करने से नेकियों के इमाम का ज़हूर जल्दी हो सकता है और उनके क़ियाम व हुकूमत का रास्ता हमवार किया जा सकता है। वह अच्छी तरह समझते हैं कि बुराईयों का मुक़ाबला उसी वक़्त किया जा सकता है जब उस महान सुधारक (इमाम) के मददगार मौजूद हों।
हमारा यह नज़रिया उस नज़रिये के बिल्कुल मुख़ालिफ़ है जिस में कहा गया है कि बुराईयों का फैलाना ज़हूर में जल्दी का सबब बनेगा। क्या यह बात स्वीकारीय है कि मोमेनीन बुराईयों के मुक़ाबले में खामोश बैठे रहें और समाज में बुराईयां फैलती रहें ताकि इस तरह इमाम (अ. स.) के ज़हूर का रास्ता हमवार हो जाये ?! क्या नेकियों और अच्छाईयों का विस्तार इमाम (अ. स.) के ज़हूर में जल्दी का कारण नहीं बन पायेगा।
अम्र बिल मअरुफ़ और नही अनिल मुनकर ऐसा फर्ज़ है जो हर मुसलमान पर वाजिब है और इसको किसी भी ज़माने में नज़र अन्दाज़ नहीं किया जा सकता है। अतः बुराईयों और ज़ुल्म व सितम का फैलाना इमाम ज़माना (अ. स.) के ज़हूर में जल्दी का कारण किस तरह बन सकता है ?
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमाया :
उस उम्मत के आखिर में एक ऐसी क़ौम आयेगी जिसका सवाब व ईनाम इस्लाम के प्रथम चरण के मुसलमानों के बराबर होगा, वह लोग अम्र बिल मअरुफ़ और नही अनिल मुनकर करते हुए बुराईयों का मुक़ाबला करेंगे।
अनेकों रिवायतों में जो यह वर्णन हुआ है कि दुनिया ज़ुल्म व सितम से भर जायेगी, इसका मतलब यह नहीं है कि सभी इंसान ज़ालिम बन जायेंगे !। बल्कि अल्लाह के रास्ते पर चलने वाले कुछ लोग मौजूद होंगे और उस माहौल में भी अखलाक़ी व सदाचारिक मर्यादाओं की खुशबू दिलों को सुगंधित करती हुई नज़र आयेगी।
अतः ज़हूर से पहले का ज़माना वैसे तो बड़ी कड़वाहट ज़माना होगा लेकिन वह ज़हूर के मिठास पर खत्म होगा। वह ज़माना ज़ुल्म, अत्याचार और बुराईयों से तो भरा होगा, लेकिन उस ज़माने में ख़ुद पाक रहना और दूसरों को अच्छाईयों व नेकियों की तरफ़ बुलाना, इन्तेज़ार करने वालों की अत्यावश्यक ज़िम्मेदारी होगी और यह क़ाइम आले मुहम्मद (अ. स.) के ज़हूर में प्रभावी होगी।
अब हम इस हिस्से को हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की इस निम्न लिखित हदीस पर खत्म करते हैं।
"हमें अपने शिओं से कोई चीज़ दूर नहीं करती, मगर हम तक पहुँचने वाले, उनके वह क्रिया कलाप जो हमें पसन्द नहीं हैं और न हम उनसे उनको करने की उम्मीद रखते हैं...
इमामे ज़माना (अ) की ग़ैबत में हमारी जिम्मेदारियां।
ग़ैबते कुबरा के ज़माने में उम्मत का सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य इमामे ज़माना अलैहिस्सलाम की पहचान हासिल करना है और यह इतना महत्वपूर्ण है कि पैग़म्बर स. ने फ़रमायाः
من مات ولم یعرف امام زمانہ مات میتة جاہلیة
जो इंसान इस हालत में मरे कि उसे अपने ज़माने के इमाम की पहचान न हो वह जाहेलियत (कुफ़्र) की मौत मरता है।
असलिए उम्मत की ज़िम्मेदारी है कि इमाम अलैहिस्सलाम की सही पहचान के लिए संघर्ष करे ख़ास कर उन दुआओं को ज़्यादा पढ़ा जाए जो इस काम में मददगार साबित हों जैसा कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रामाया है
اللھم عرفنی نفسک فانک ان لم تعرفنی نفسک لم اعرف نبیک اللھم عرفنی نبیک فانک ان لم تعرفنی نبیک لم اعرف حجتک اللھم عرفنی حجتک فانک ان لم تعرفنی حجتک ضللت عن دینی۔
हे मेरे अल्लाहः मुझे अपनी सही पहचान प्रदान कर क्योंकि अगर तू मुझे अपनी ही सही पहचान प्रदान न करे तो मैं तेरे नबी की पहचान हासिल नहीं कर सकता हूं। हे मेरे अल्लाह मुझे अपने नबी की पहचान प्रदान कर क्योंकि यदि तू मुझे अपने नबी की सही पहचान प्रदान न करे तो मैं तेरी हुज्जत (इमाम) को नहीं पहचान सकता। हे मेर अल्लाह मुझे अपनी हुज्जत की सही पहचान करा दे क्योंकि यदि मुझे अपनी हुज्जत की पहचान नहीं करे तो अपने दीन से भटक जाऊँगा।
عن الی عبداللہ علیہ السلام فی قول اللہ عزوجل من یوت الحکمہ فقد اوتی خیرا کثیرا فقال طاعة اللہ و معرفة الامام
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने इस आयत के संबंध में जिसको हिकमत दी गई उसे बहुत ज्यादा ख़ैर (नेकी) दिया गया इस हिकमत से मुराद अल्लाह की पैरवी और इमाम की सही पहचान है। (उसूले काफी)
इताअत और पैरवी
कुरान और हदीस के अनुसार इमाम अलैहिस्सलाम की इताअत को बिना किसी क़ैद व शर्त के वाजिब किया गया है लेकिन ग़ैबते कुबरा के जमाने में यह जिम्मेदारी और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।
عن الی جعفر علیہ السلام فی قول اللہ عزوجل واٰتمنا ھم ملکا عظیما قال الطاعة المفروضة۔
इस आयत और हमने उनको मुल्के अजीम दिया के संबंध में इमाम मोहम्मद बाकर अलैहिस्सलाम ने फरमाया कि इससे मुराद हमारी वह पैरवी है जो लोगों पर वाजिब की गई है।
ज़ुहूर की दुआ
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के ज़ुहूर में जल्दी की बहुत ज्यादा दुआएं मांगे क्योंकि खुद इमाम ज़माना ने फरमाया हैः
اکثر و الدعاءبتعجیل الفرج فان ذلک فرجکم
मेरे ज़ुहूर में जल्दी के लिए बहुत ज्यादा दुआ करो क्योंकि तुम्हारे मुश्किलों का हल इसी में है इसके अलावा दुआ ए फर्ज पढ़ने की भी बहुत ज़्यादै ताकीद की गई है जो अक्सर दुआओं की किताबों में दर्ज है।
بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِیمِ
اِلهى عَظُمَ الْبَلاَّءُ وَبَرِحَ الْخَفاَّءُ وَانْكَشَفَ الْغِطاَّءُ وَانْقَطَعَ الرَّجاَّءُ
وَضاقَتِ الاْرْضُ وَمُنِعَتِ السَّماَّءُ واَنْتَ الْمُسْتَعانُ وَاِلَيْكَ
الْمُشْتَكى وَعَلَيْكَ الْمُعَوَّلُ فِى الشِّدَّةِ وَالرَّخاَّءِ اَللّهُمَّ صَلِّ عَلى
مُحَمَّدٍ وَ الِ مُحَمَّدٍ اُولِى الاْمْرِ الَّذينَ فَرَضْتَ عَلَيْنا طاعَتَهُمْ
وَعَرَّفْتَنا بِذلِكَ مَنْزِلَتَهُمْ فَفَرِّجْ عَنا بِحَقِّهِمْ فَرَجاً عاجِلا قَريباً كَلَمْحِ
الْبَصَرِ اَوْ هُوَ اَقْرَبُ يا مُحَمَّدُ يا عَلِىُّ يا عَلِىُّ يا مُحَمَّدُ اِكْفِيانى
فَاِنَّكُما كافِيانِ وَانْصُرانى فَاِنَّكُما ناصِرانِ يا مَوْلانا يا صاحِبَ
الزَّمانِ الْغَوْثَ الْغَوْثَ الْغَوْثَ اَدْرِكْنى اَدْرِكْنى اَدْرِكْنى السّاعَةَ
السّاعَةَ السّاعَةَ الْعَجَلَ الْعَجَلَ الْعَجَلَ يا اَرْحَمَ الرّاحِمينَ بِحَقِّ
مُحَمَّدٍ وَآلِهِ الطّاهِرينَ
इंतेज़ार
इमाम महदी अलैहिस्सलाम के ज़हूर का इंतजार सबसे अच्छी इबादत है इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं कि हमारा क़ाएम महदी है उनके गायब होने के दौरान उनका इंतजार करना वाजिब है और उसका सवाब इमाम ने यूं बयान किया है कि जो इंसान हमारे महदी का इंतेज़ार करेगा वह उस इंसान की तरह है जो अल्लाह की राह में अपने खून में लथपथ होता है बस यह इंतजार इस तरह होना चाहिए कि किसी भी पल लापरवाही ना हो इमाम सादिक़ अ.स फरमाते हैं
وانتظرو الفرج صباحاً و مساء
तुम लोग सुबह व शाम ज़हूर का इंतजार करो।
ज़ियारत की तमन्ना
अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम के शियों की इमामे ज़माना अलैहिस्सलाम की ग़ैबत में एक बड़ी जिम्मेदारी आप की जियारत की तमन्ना और उसके शौक का इज़हार करना भी है। हर वक्त दिल में उनके दीदार की तड़प रहनी चाहिए अपने आका से बात करने के लिए हर जुमे की सुबह दुआए नुदबा पढ़े जिस में बार-बार यह आया है कि हम तेरे बंदे तेरे उस बली की जियारत के मुश्ताक़ हैं कि जो तेरे व तेरे रसूल की याद ताजा करता है।
इमाम ज़माना की सलामती के लिए दुआ
एक सच्चे मोमिन और शिया की जिम्मेदारी यह है कि वह अपनी दुआओं में अपने मार्गदर्शक और आका की सलामती का इच्छुक रहे खास तौर से इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम की सलामती के लिए बहुत ज्यादा दुआ मांगे। और लगातार यह दुआ पढ़े
اللھم کن لولیک الحجة ابن الحسن علیہ السلام صلواتک علیہ و علی آبائہ فی ھذة الساعة و فی کل ساعة ولیا و حافظا و قائدا و ناصرا و دلیلا و عینا حتی تسکنہ ارضک طوعا و تمتعہ فیھا طویلا۔
इमाम ज़माना की सलामती के लिए सदका देना
एक और पसंदीदा काम जिसकी हमारे इमामों ने बहुत ज्यादा ताकीद की है वह यह है कि इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम की सलामती की नियत से सदक़ा दिया जाए सदक़ा अपने आप में एक पसंदीदा काम है और इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम की सलामती के नियत से उसका महत्व और भी बढ़ जाता है।
इमाम जाफ़र सादिक अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि अल्लाह के नजदीक इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम के लिए माल खर्च करने से ज्यादा पसंदीदा कोई और काम नहीं है जो मोमिन अपने माल से एक दिरहम इमाम अलैहिसलाम के लिए खर्च करेगा अल्लाह ताला जन्नत में ओहद के पहाड़ के बराबर उसे उसका बदला देगा। (उसूले काफी)
इमाम अलैहिस्सलाम के उत्तराधिकारियों की पैरवी
ग़ैबत के जमाने में कोई इंसान इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम का खास उत्तराधिकारी नहीं है बल्कि फ़ुक़हा ही हज़रत इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम के आम प्रतिनिधि हैं इसलिए उनकी पैरवी वाजिब है जिसे फ़िक़्ह (धर्मशास्त्र) में तक़लीद कहा जाता है खुद इमामे ज़माना फरमाते हैं हमारी ग़ैबत में पेश आने वाले हालात और समस्याओं के सिलसिले में हमारी हदीसों को बयान करने वाले उलमा से संपर्क करो इसलिए कि वह हमारी तरफ से तुम पर हुज्जत हैं और हम अल्लाह की तरफ से उन पर हुज्जत हैं।
इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम का नाम लेने की मनाही
इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम का नाम हमारे आख़री नबी हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलिही वसल्लम के नाम पर है लेकिन हदीसों में हज़रत का नाम पुकारने से मना किया गया है बल्कि आपकी जो उपाधियां हैं उनमें से किसी उपाधि द्वारा आपको पुकारे जैसे हुज्जत, महदी-ए-मुंतज़र आर इमाम ग़ाएब या कोई दूसरी उपाध्यि।
सम्मान में खड़े होना
जब इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम का नाम लिया जाए और आपको क़ाएम के उपाधि से पुकारा जाए तो सम्मान के लिए खड़े होना मासूम इमामों की सुन्नत है क्योंकि जब देबिल ख़ुज़ाई ने आठवें इमाम अलैहिस्सलाम की सेवा में अपना कसीदा पेश किया था तो जैसे ही आखरी इमाम अलैहिस्सलाम का नाम आया तो इमाम सम्मान में खड़े हो गए थे।
इमामे हसन असकरी(अ)
हज़रत इमाम अस्करी अलैहिस्सलाम का नाम हसन व आपकी मुख्य उपाधि अस्करी है।
जन्म व जन्म स्थान
हज़रत इमाम अस्करी अलैहिस्सलाम का जन्म सन् 232 हिजरी क़मरी मे रबि उल आखिर मास की आठवी (8) तिथि को पवित्र शहर मदीने मे हुआ था।
माता पिता
हज़रत इमाम अस्करी अलैहिस्सलाम के पिता हज़रत इमाम नक़ी अलैहिस्सलाम व आपकी माता हज़रत सलील थी। जिनका नाम कुछ इतिहास कारों ने सोसन व हुदैस भी लिखा है।
शहादत (स्वर्गवास)
हज़रत इमाम अस्करी की शहादत सन् 260 हिजरी क़मरी मे रबी उल अव्वल मास की आठवी(8) तिथि को हुई।अब्बासी खलीफ़ा मोतामिद अब्बासी ने आपको विष खिलवाया जो आपकी शहादत का कारण बना।
समाधि
हज़रत इमाम अस्करी अलैहिस्सलाम की समाधि बग़दाद के समीप सामर्रा नामक स्थान पर है। जहाँ पर लाखो श्राद्धालु आपकी समाधि के दर्शन कर आप पर सलाम पढ़ते हैं।
इमामे असकरी अलैहिस्सलाम की शहादत- 2
उस समय अब्बासी शासक मोतमिद के हाथ में सत्ता थी। वह सोचता या कि इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को अपने मार्ग से हटाकर वह उनकी याद को भी लोगों के मन से मिटा देगा और वे सदैव के लिए भुला दिए जाएंगे किन्तु जिस दीपक को पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम और उनके परिजनों ने जलाया हो वह कभी बुझ नहीं सकता बल्कि वह मानवता का सदैव मार्गदर्शन करता रहे गा।
जैसाकि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने फ़रमाया हैं: मेरे परिजन नूह की नौका की भांति हैं जिसने उनके दामन में पनाह ली वह मुक्ति पाएगा और जो उनसे दूर होगा वह डूब जाएगा।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की शहादत के अवसर पर पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों पर ईश्वर का सलाम हो हम इस बात के लिए ईश्वर का आभार व्यक्त करते हैं कि उसने मानवता के मार्गदर्शन के लिए इस महान हस्ती को संसार में भेजा।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम धार्मिक बंधुओं के अधिकारों की पहचान और उनके समक्ष विनम्रता के बारे में कहते हैं: जिसे अपने धार्मिक बंधुओं के अधिकारों की अधिक पहचान हो और वह उसके लिए अधिक प्रयास करे, ईश्वर के निकट उसका स्थान बहुत ऊंचा होगा। जो अपने धार्मिक बंधुओं से विनम्रता से मिले तो ईश्वर के निकट उसकी गणना सत्यवादियों व सत्य के अनुयाइयों में होगी।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की इमामत अर्थात ईश्वरीय आदेशानुसार जनता के मार्गदर्शन का काल, अब्बासी शासन श्रृंखला का सर्वाधिक हिंसाग्रस्त काल था। अब्बासी शासकों की अयोग्यता और दरबरियों में आपस में अंतरकलह, जनता में असंतोषत और निरंतर विद्रोह, दिगभ्रमित विचारों का प्रसार, उस काल की राजनैतिक व सामाजिक उथल पुथल के कारणों में थे। शासक, जनता का शोषण कर रहे थे और वंचितों व बेसहारा लोगों की संपत्ति बलपूर्वक हथि रहे थे। वे जनता के पैसों से भव्य महलों का निर्माण करते थे और जनता की निर्धनता व समस्याओं की ओर तनिक भी ध्यान नहीं देते थे।
अब्बासी शासक अपने अत्याचारी शासन को चलाने के लिए किसी भी अपराध की ओर से संकोच नहीं करते थे और समाज के सभी वर्गों के साथ उनका व्यवहार कठोर था। उस दौरान पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के परिजनों को और अधिक घुटन भरे वातावरण का सामना था। क्योंकि ये हस्तियां अत्याचार व भ्रष्टाचार के समक्ष मौन धारण नहीं करती थीं बल्कि उनके विरुद्ध आवाज़ उठाती थीं।
अब्बासी शासकों ने इमाम हसन अस्करी और उनके पिता इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को मदीना नगर से जो पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों का केन्द्र था, तत्कालीन अब्बासी शासन की राजधानी सामर्रा नगर पलायन के लिए विवश किया। सामर्रा नगर में इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम अब्बासी शासन के अधिकारियों के नियंत्रण में थे। उन्हें सप्ताह में कुछ दिन अब्बासी शासन के दरबार में उपस्थित होना पड़ता था। अब्बासी शासक, इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम पर विभिन्न शैलियों से दबाव डालते थे क्योंकि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का यह कथन सब को याद था कि विश्व को उत्याचार से मुक्ति दिलाने वाला उन्हीं का पौत्र होगा। वह मानवता को मुक्ति दिलाने वाले वही मोक्षदाता हैं जिन के प्रकट होने से संसार से अत्याचार जड़ से समाप्त हो जाएगा। ऐसे किसी शिशु के जन्म की कल्पना, अत्याचारी अब्बासी शासकों को अत्यधिक भयभीत करने वाली थी।
अब्बासी शासकों के व्यापक स्तर पर प्रयासों के बावजूद इस शिशु के जन्म लेने का ईश्वर का इरादा व्यावहारिक हुआ और इमाम महदी अलैहिस्सलाम ने इस संसार में क़दम रखा। इमाम मेहदी अलैहिस्सलाम के जन्म के पश्चात, इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कठिन भविष्य का सामना करने के लिए समाज को तैयार करने का बीड़ा उइया।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम उचित अवसरों पर ग़ैबत अर्थात इमाम मेहदी अलैहिस्सलाम के लोगों की दृष्टि से ओझल रहने के काल की विशेषताओं तथा संसार के भावी नेतृत्व में अपने सुपुत्र की प्रभावी भूमिका का उल्लेख करते थे।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम बल दिया करते थे कि उनके सुपुत्र के हातों पूरे विश्व में न्याय व शांति स्थापित होगी।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम का व्यक्तित्व इतना आकर्षक था कि जिसकी भी दृष्टि उन पर पड़ती वह ठहर कर उन्हें देखने लगता और बरबस उनकी प्रशंसा करता था।
अब्बासी शासन की इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम से शत्रुता के बावजूद इस शासन का एक मंत्री इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के महान व्यक्तित्व का उल्लेख इन शब्दों में करता है। मैंने सामर्रा में हसन बिन अली के जैसा किसी को न पाया। गरिमा, सुचरित्र और उदारता में कोई उनके जैसे नहीं मिला।
हालांकि वह युवा हैं किन्तु बनी हाशिम उन्हें अपने वृद्धों पर वरीयता देते हैं। वह इतने महान हैं कि मित्र और शत्रु दोनों ही प्रशंसा किए बिना नहीं रह सकते।
वंचितों और बेसहारों पर इमाम की कृपादृष्टि उनके लिए आशा की किरण थी इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की कृपा से लाभान्वित होने वाला एक व्यक्ति कहता है: मेरी और मेरे पिता की आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय हो चुकी थी कि लोगों की दान दक्षिणा से बड़ी मुश्किल से जीवन व्यतीत हो रहा था। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम से भेंट करना बहुत कठिन था क्योंकि अब्बासी शासन ने उन पर बहुत रोकटोक लगा रखी थी। इमाम हसन अलैहिस्सलाम की उदारता विख्यात थी। वे समस्याओं में घिरे लोगों की सहायता के लिए जाने जाते थे। इसलिए मुझे आशा थी कि वे मेरी आर्थिक समस्या का निदान करेंगे। मार्ग में पिता ने मुझसे कहा कि यदि इमाम पॉच सौ दिरहम दे दें तो मेरी बहुत सी समस्याओं का निदान हो जाएगा। मैं भी मन ही मन सोच रहा था कि यदि इमाम मुझे तीन सौ दिरहम दे दें तो में जबल नगर जाकर अपना नया जीवन आरंभ करुंगा। हम लोग इमाम के घर में प्रविष्ट हुए और एक कमरे में प्रतीक्ष करने लगे। उनके एक संबंधी, कमरे में आए और पॉंच सौ और तीन सौ दिरहम की दो थेलियां पिता को और मुझे दे दीं। में आश्चर्य में पड़ गया, समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहूं। मैं और पिता आश्चर्य की स्थिति में थे कि इमाम के दूत ने मुझसे कहा: इमाम ने तुम्हें जबल नगर जाने से रोका है बल्कि जीवन यापन के लिए सूरा नगर का सुझाव दिया है। ईश्वर का आभार व्यक्त करते हुए बहुत प्रसन्न हो कर इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के घर से निकला मैं इमाम के सुझाव के अनुसार सूरा नगर गया और इमाम की सहायता से वहॉ अच्छा जीवन व्यतीत करने लगा। यह सब पैग़म्बरे इस्लाम के महान पौत्र इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की कृपा दृष्टि का फल था।
उस समय लोगों के विचारों पर संकीर्णता छाई हुई थी और धर्म में नई नई बातें शामिल की जा रही थीं, ऐसी स्थिति में इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने धर्म के वास्तविक रुप को लोगों के सामने स्पष्ट किया। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के पास भी पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेहि व सल्लम के अन्य परिजनों की भांति ज्ञान का अथाह सागर था। लोगों की ज़बान पर इमाम अलैहिस्सलाम के ज्ञान की चर्चा रहती थी। वे सत्य के मार्ग की खोज करने वालों का मार्गदर्शन करते थे। शास्त्रार्थों में इमाम ऐसे प्रभावी र्तक देते थे कि तत्कालीन अरब दार्शनिक याक़ूब बिन इस्हाक़ कन्दी ने इमाम से शास्त्रर्थ के पश्चात उस किताब को जला दिया जिसमें उसने कुछ धार्मिक बातों की आलोचना की थी। उस समय इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को लोगों तक अपना दृष्टिकोण पहुंचाने में भी कठिनाइयों का सामना था। इसलिए इमाम अनेक शैलियों तथा अपने विश्वस्नीय प्रतिनिधियों के माध्यम से जनसंपर्क बनाते थे और सुदूर क्षेत्रों के मुसल्मानों की स्थिति से अवगत होते थे।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ईश्वर की इतनी उपासना करते थे कि बहुत से पथभ्रष्ट उनकी उपासना को देखकर सत्य के मार्ग पर आ जाते थे। ऐसे ही लोगों में सालेह बिन वसीक़ नामक जेलर भी था। जिस समय इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को जेल ले जाया गया उस समय सालेह बिन वसीक़ जेलर था। वह इमाम के व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुआ कि उसकी गणना उस समय के महाउपासकों व धर्मनिष्ठों में होने लगी। वह कहता है:जैसे ही में इमाम को देखता हूं, मेरे भीतर ऐसा परिवर्तन होने लगता है कि मैं स्वंय पर नियंत्रण नहीं रख पाता और ईश्वर की उपासना करने लगता हूं।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम फ़र्माते हैं: मिथ्या, व्यक्ति को झूठ , बेइमानी, वचन तोड़ने और छल कपट की ओर ले जाती है और सत्य के मार्ग से दूर कर देती है। मिथ्याचारी व्यक्ति भरोसे के योग्य नहीं है। जान लो कि मिथ्या को समझने के लिए पैनी दृष्टि और बहुत चेतना की आवश्यक्ता होती है।
एक अन्य स्थान पर फ़रमाते हैं: तुम्हारा जीवन बहुत सीमित और इसके दिन निर्धारित है और मृत्यु अचानक आ पहुंचती है। जो सदकर्म करता है उससे लाभानिवत होता है और जो बुराई करता उसके परिणाम में उसे पछतावा होता है तुम्हें धर्म को समझने, शिष्टाचार अपनाने, और सदकर्म की अनुशंसा करता हूं।
हज़रत इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की शहादत -1
इमाम हज़रत इमाम हसन असकरी अ.स. 232 हिजरी में मदीना शहर में पैदा हुए चूंकि आप भी अपने वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. की तरह सामर्रा के असकर नामी इलाक़े में मुक़ीम थे इसलिए आप असकरी के नाम से मशहूर हुए, आपकी कुन्नियत अबू मोहम्मद और मशहूर लक़ब नक़ी और ज़की है, आपने 6 साल इमामत की ज़िम्मेदारी संभाली और 28 साल की उम्र में मोतमद अब्बासी के हाथों शहीद हो गए।
हज़रत इमाम हसन असकरी अ.स. 232 हिजरी में मदीना शहर में पैदा हुए चूंकि आप भी अपने वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. की तरह सामर्रा के असकर नामी इलाक़े में मुक़ीम थे इसलिए आप असकरी के नाम से मशहूर हुए, आपकी कुन्नियत अबू मोहम्मद और मशहूर लक़ब नक़ी और ज़की है, आपने 6 साल इमामत की ज़िम्मेदारी संभाली और 28 साल की उम्र में मोतमद अब्बासी के हाथों शहीद हो गए।
हमेशा से यह सुन्नत रही है कि ऐसे बुज़ुर्गों की ज़िंदगी और उनके किरदार ने लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया है जिनमें इंसानी पहलू मौजूद रहा हो, उनमें अल्लाह के भेजे हुए नबी और अलवी मकतब के रहनुमा वह ऐसे लोग हैं जो अल्लाह की ओर से सारे इंसानों के लिए बेहतरीन आइडियल बनाए गए हैं।
शियों के गयारहवें इमाम हज़रत इमाम हसन असकरी अ.स. 232 हिजरी में मदीना शहर में पैदा हुए, चूंकि आप भी अपने वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. की तरह सामर्रा के असकर नामी इलाक़े में मुक़ीम थे इसलिए आप असकरी के नाम से मशहूर हुए, आपकी कुन्नियत अबू मोहम्मद और मशहूर लक़ब नक़ी और ज़की है, आपने 6 साल इमामत की ज़िम्मेदारी संभाली और 28 साल की उम्र में मोतमद अब्बासी के हाथों शहीद हो गए।
इमाम हसन असकरी अ.स. की रणनीति
इमाम हसन असकरी अ.स. ने हर तरह के दबाव और अब्बासी हुकूमत की ओर से कड़ी निगरानी के बावजूद दीन की हिफ़ाज़त और इस्लाम विरोधी विचारधारा का मुक़ाबला करने के लिए अनेक राजनीतिक, सामाजिक और इल्मी कोशिशें अंजाम देते रहे और अब्बासी हुकूमत की इस्लाम की नाबूदी की साज़िश को नाकाम कर दिया, आपकी इमामत के दौरान कुछ अहम रणनीतियां इस तरह थीं.
इस्लाम की हिफ़ाज़त के लिए इल्मी कोशिशें, विरोधियों के कटाक्ष का जवाब, हक़ीक़ी इस्लाम और सही विचारधारा का प्रचार, ख़ुफ़िया राजनीतिक क़दम, शियों की विशेष कर क़रीबी साथियों की जो हर तरह का ख़तरा मोल ले कर हर समय इमाम अ.स. के इर्द गिर्द रहते थे उनकी माली मदद करना, कठिनाईयों से निपटने के लिए बुज़ुर्ग शियों का हौसला बढ़ाना और उनके राजनीतिक दृष्टिकोण को मज़बूत करना, शियों के अक़ीदों और इमामत का इंकार करने वालों के लिए इल्मे ग़ैब का इस्तेमाल करना और अपने बेटे इमाम महदी अ.स. की ग़ैबत के लिए शियों की फ़िक्र को तैयार करना।
इल्मी कोशिशें
हालांकि इमाम हसन असकरी अ.स. के दौर में हालात की ख़राबी और अब्बासी हुकूमत की ओर से कड़ी पाबंदियों की वजह से आप समाज में अपने इलाही इल्म को नहीं फैला सके लेकिन इन सब पाबंदियों के बावजूद ऐसे शागिर्दों की तरबियत की जिनमें से हर एक अपने तौर पर इस्लामी मआरिफ़ और इमाम अ.स. के इल्म को लोगों तक पहुंचाने में अहम रोल निभाता रहा, शैख़ तूसी र.ह. ने आपके शागिर्दों की तादाद सौ से ज़्यादा नक़्ल की है, जिनमें अहमद इब्ने इसहाक़ क़ुम्मी, उस्मान इब्ने सईद और अली इब्ने जाफ़र जैसे बुज़ुर्ग शिया उलमा शामिल हैं, कभी कभी मुसलमानों और शियों के लिए ऐसी मुश्किलें और कठिनाईयां पेश आ जाती थीं कि उन्हें केवल इमाम हसन असकरी अ.स. ही हल कर सकते थे, ऐसे मौक़ों पर इमाम अ.स. अपने इमामत के इल्म और हैरान कर देने वाली तदबीरों से कठिन से कठिन मुश्किल को हल कर दिया करते थे।
शियों का आपसी संपर्क
इमाम हसन असकरी अ.स. के दौर में अनेक इलाक़ों और कई शहरों में शिया फैल चुके थे और कई इलाक़ों में अच्छी ख़ासी तादाद में थे जैसे कूफ़ा, बग़दाद, नेशापुर, क़ुम, मदाएन, ख़ुरासान, यमन और सामर्रा शियों के बुनियादी मरकज़ में से थे, शिया इलाक़ों का इस तरह तेज़ी से फैलने और कई इलाक़ों में शियों का अच्छी ख़ासी तादाद में होने को देखते हुए ज़रूरी था कि उनके बीच आपस में एक दूसरे से संपर्क बनाए रहें ताकि उनकी दीनी और सियासी रहनुमाई हो सके और उन सभी को एक साथ मंज़िल तक पहुंचाया जा सके, यह ज़रूरत इमाम मोहम्मद तक़ी अ.स. के दौर ही से महसूस हो रही थी और वकालत से संबंधित सिस्टम को ईजाद कर के और अलग अलग इलाकों में वकीलों को भेज कर इस काम को शुरू किया जा चुका था, इमाम हसन असकरी अ.स. ने भी इसी को जारी रखा, जैसाकि तारीख़ी हवाले से यह बात साबित है कि आपने शियों के अहम और बुज़ुर्ग लोगों में से अपने वकीलों को चुन कर उनको अलग अलग इलाक़ों में भेज दिया।
ख़त और दूत (क़ासिद) का सिलसिला
वकालत का सिस्टम क़ायम करने के अलावा इमाम हसन असकरी अ.स. अपने सफ़ीर और क़ासिद को भेज कर भी अपने शियों और मानने वालों से संपंर्क करते थे और इस तरह उनकी मुश्किलों को दूर करते थे, अबुल अदयान (जोकि आपके क़रीबी सहाबी थे) के काम उन्हीं कोशिशों का नतीजा हैं, वह इमाम के ख़तों को आपके शियों तक पहुंचाते और उनके ख़तों, सवालों, मुश्किलों, ख़ुम्स और दूसरे माल शियों से लेकर सामर्रा में इमाम अ.स. तक पहुंचाते थे।
क़ासिद और दूत के अलावा इमाम अ.स. ख़तों द्वारा भी अपने शियों से संपर्क में रहते थे और उनकी अपने ख़तों से हिदायत करते थे, इसकी मिसाल इमाम अ.स. का वह ख़त है जो आपने इब्ने बाबवैह र.ह. (शैख़ सदूक़ र.ह. के वालिद) को लिखा था, इसके अलावा इमाम अ.स. ने क़ुम और आवह के शियों को भी ख़त लिखे थे जिनका मज़मून शिया किताबों में मौजूद है।
ख़ुफ़िया राजनीतिक क़दम
इमाम हसन असकरी अ.स. सारी पाबंदियों और हुकूमत की ओर से कड़ी निगरानी के बावजूद कुछ ख़ुफ़िया राजनीतिक क़दम उठा कर शियों की रहनुमाई करते रहते थे, और आपके यह राजनीतिक क़दम दरबारी जासूसों से इसलिए छिपे रहते थे क्योंकि आप बहुत ही सूझबूझ से वह क़दम उठाते थे, जैसे आपके बहुत क़रीबी सहाबी उस्मान इब्ने सईद का तेल की दुकान की आड़ में इमाम अ.स. का पैग़ाम शियों तक पहुंचाना, इमाम हसन असकरी अ.स. के शिया जो भी चीज़ या माल इमाम अ.स. तक पहुंचाना चाहते थे वह उस्मान को दे दिया करते थे और वह यह चीज़ें घी के डिब्बों और तेल की मश्कों में छिपा कर इमाम अ.स. तक पहुंचा दिया करते थे, इमाम अ.स. की कड़ी निगरानी के बावजूद दुश्मन की नाक के नीचे ऐसी बहादुरी वाले क़दम उठाने की वजह से आपकी 6 साल की इमामत अब्बासियों के ख़तरनाक क़ैदख़ानों में गुज़री।
शियों की माली मदद
आपका एक और अहम क़दम शियों की विशेष कर क़रीबी असहाब की माली मदद करना था, इमाम अ.स. के कुछ असहाब माली मुश्किल लेकर आते थे और आप उनकी मुश्किल को दूर करते थे, आपके इस अमल की वजह से वह लोग माली परेशानियों से घबरा कर हुकूमती और दरबारी इदारों की ओर आकर्षित होने से बच जाते थे।
इस बारे में अबू हाशिम जाफ़री कहते हैं कि मैं आर्थिक तंगी से गुज़र रहा था, मैंने सोंचा कि एक ख़त द्वारा अपने हाल को इमाम हसन असकरी अ.स. तक पहुंचाऊं, लेकिन मुझे शर्म आई और मैंने अपना इरादा बदल दिया, जब मैं घर पहुंचा तो देखा कि इमाम अ.स. ने मेरे लिए 100 दीनार भेजे हुए हैं और एक ख़त भी लिखा है कि जब कभी तुम्हें ज़रूरत हो तो शर्माना नहीं, हमसे मांग लेना इंशा अल्लाह तुम्हारी मुश्किल दूर हो जाएगी।
बुज़ुर्ग शियों और उनके राजनीतिक मतों को मज़बूत करना
इमाम हसन असकरी अ.स. की एक बहुत अहम राजनीतिक गतिविधि यह थी कि आप शियों के अज़ीम मक़सद को हासिल करने की राह में आने वाली तकलीफ़ों और अब्बासी हाकिमों की साज़िशों का मुक़ाबला करने के लिए शिया बुज़ुर्गों की सियासी हवाले से तरबियत करते और उनके राजनीतिक मतों को मज़बूत करते थे,
चूंकि शिया बुज़ुर्ग शख़्सियतों पर हुकूमत का सख़्त दबाव होता था इसलिए इमाम अ.स. हर एक को उसके विचारों और उसकी फ़िक्र के हिसाब से उसका हौसला बढ़ाते और उनकी रहनुमाई करते थे ताकि कठिन समय में उनका सब्र और हौसला बना रहे और वह अपनी राजनीतिक ज़िम्मेदारियों को सही तरीक़े से निभा सकें,
इस हवाले से इमाम अ.स. ने जो ख़त अली इब्ने हुसैन इब्ने बाबवैह क़ुम्मी र.ह. को लिखा उसमें फ़रमाते हैं कि हमारे शिया कठिन दौर से गुज़रेंगे यहां तक कि मेरा बेटा ज़ुहूर करेगा, यही मेरा वह बेटा होगा जिसके बारे में अल्लाह के रसूल ने बशारत दी है कि वह ज़मीन को अदालत और इंसाफ़ से इस तरह भर देगा जिस तरह वह ज़ुल्म और अत्याचार से भरी होगी।
इल्मे ग़ैब का इस्तेमाल
हमारे सभी इमाम अल्लाह से संपंर्क में रहने की वजह से इल्मे ग़ैब रखते थे और ऐसे हालात में जब इस्लाम की सच्चाई या मुसलमानों के सामाजिक फ़ायदे ख़तरे में पड़ जाएं तो उस समय उस इल्म का इस्तेमाल करते थे, हालांकि इमाम हसन असकरी अ.स. की ज़िंदगी को अगर देखा जाए तो यह बात अच्छी तरह सामने आ जाएगी कि आपने दूसरे इमामों को देखते हुए इल्मे ग़ैब का ज़्यादा इज़हार किया है,
और उसकी सीधी वजह उस दौर के भयानक हालात और ख़तरनाक माहौल था, क्योंकि जबसे आपके वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. को सामर्रा ले जाया गया तबसे आप कड़ी निगरानी में थे, अब्बासी हुकूमत की सख़्तियों और निगरानी की वजह से हालात ऐसे हो गए थे कि आप अपने बाद आने वाले इमाम अ.स. को खुल कर नहीं पहचनवा पा रहे थे,
जिसकी वजह से कुछ शियों के दिलों में शक बैठने लगा था, इमाम अ.स. उन शक और मन की शंकाओं को दूर करने और उस दौर के ख़तरों से अपने असहाब को बचाने के लिए और गुमराहों की हिदायत करने के लिए आप इल्मे ग़ैब का इस्तेमाल करते हुए ग़ैब की ख़बरें दिया करते थे।
इस्लामी तालीमात की हिफ़ाज़त
हुकूमतों द्वारा इमामों का आम मुसलमानों से संपंर्क न बनाने देने के पीछे का राज़ यह है कि कुछ हाकिम चाहते थे कि इस्लामी ख़ेलाफ़त की आड़ में आम मुसलमानों को अपनी ओर खींच लिया जाए और फिर जिस तरह चाहें और जो चाहें अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ उनको रखा जाए, नतीजे में जवानों के अक़ीदों को कमज़ोर किया जाता था और उनको ऐसे बातिल अक़ीदों और नीच सोंच में उलझा देते थे ताकि आम मुसलमानों को गुमराह करने का प्लान कामयाब हो सकें।
इमाम हसन असकरी अ.स. का दौर एक कठिन दौर था जिसमें अनेक तरह की फ़िक्रें और विचारधाराएं इस्लामी समाज के लिए ख़तरा बन चुकी थीं, लेकिन आपने अपने वालिद और दादा की तरह एक पल के लिए भी इस साज़िश से ध्यान नहीं हटाया बल्कि पूरी सावधानी और गंभीरता के साथ इस्लाम की ग़लत तस्वीर बताने वालों, सूफ़ियत, ग़ुलू करने वालों, शिर्क और भी इसके अलावा बहुत सारी ख़ुराफ़ात और वाहियात जो मज़हब के नाम पर दीन का हिस्सा बताई जा रही थीं उन सबका मुक़ाबला किया और इनमें से किसी को भी अपने दौर में पनपने नहीं दिया।
इमाम हसन असकरी अ.स. और इस्लाम का ज़िंदा बाक़ी रखना
अब्बासी हुकूमत दौर और ख़ास कर इमाम हसन असकरी अ.स. का दौर उन सबसे बुरे दौर में से एक था जिसमें हाकिमों की अय्याशी, उनके ज़ुल्म और अत्याचार, दीनी मामलात से बे रुख़ी, और दूसरी ओर मुसलमानों के इलाक़ों में ग़रीबी के फैलने की वजह से दीनी वैल्यूज़ ख़त्म हो चुकी थीं,
इसलिए अगर इमाम हसन असकरी अ.स. द्वारा दिन रात की जाने वाली मेहनतें और कोशिशें न होतीं तो अब्बासियों की सियासत की वजह से इस्लाम का नाम भी लोगों के दिमाग़ से मिट जाता, हालांकि इमाम अ.स. ख़ुद अब्बासी हाकिमों की कड़ी निगरानी में थे लेकिन आपने हर इस्लामी शहर में अपने वकीलों को तैनात कर रखा था जिनके द्वारा मुसलमानों के हालात मालूम करते रहते थे, कुछ शहरों की मस्जिदें और इमारतें भी इमाम अ.स. के हुक्म से बनाई गईं,
जिसमें ईरान के क़ुम शहर में मौजूद इमाम हसन असकरी (अ.स.) मस्जिद शामिल है, इससे पता चलता है कि आप अपने वकीलों और इल्मे इमामत से मुसलमानों की हर तरह की मुश्किल और उनकी पिछड़ेपन को जानते और उसे दूर करते थे।
हज़रत इमाम हसन अस्करी अ.स. के बाद सामने आने वाले कई फ़िर्क़े उनकी संक्षिप्त परिचय
इतिहासकारों ने लिखा है कि इमाम हसन असकरी अ.स. की शहादत के बाद लोग 14 या 15 फ़िर्क़ों में बंट गए, कुछ इतिहासकारों के अनुसार 20 फ़िर्क़ों में बंट जाने तक का ज़िक्र मौजूद है।
अब्बासी बादशाह अपनी ज़ुल्म और अत्याचार वाले स्वभाव के चलते दिन प्रतिदिन अपनी लोकप्रियता को खो रहे थे, लेकिन हमारे मासूम इमाम अ.स. अपने पाक किरदार और नेक सीरत के चलते लोगों के दिलों में उतरते जा रहे थे और उनकी लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही थी,
अब्बासी बादशाह सामाजिक तौर पर कमज़ोर होते जा रहे थे और हमारे इमाम अ.स. सामाजिक तौर पर मज़बूत हो रहे थे, और ऐसा होते हुए अपनी आंखों से देखना अब्बासी बादशाहों को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था, वह हमेशा से इमामों पर ज़ुल्म करते आए थे यहां तक कि इमाम असकरी अ.स. का घर अब्बासी हुकूमत की कड़ी निगरानी में था,
इमाम अ.स. के चाहने वाले और आपके शिया इमाम अ.स. से खुलेआम ना ही मुलाक़ात कर सकते थे और ना ही बातचीत, बनी अब्बास ने अपनी पूरी कोशिश और ताक़त केवल इसी में झोंक रखी थी कि जैसे ही इमाम हसन असकरी अ.स. के यहां बेटे की विलादत हुई वह उसे तुरंत जान से मार डालेंगे,
ज़ाहिर सी बात है ऐसे घुटन के माहौल और ऐसे परिस्तिथि और बनी अब्बास की ऐसा साज़िश के चलते इमाम हसन असकरी अ.स. के लिए सावधानी बरतना और तक़य्या के रास्ते को चुनना ज़रूरी हो गया था ताकि अपनी, अपने बेटे, अल्लाह के दीन और साथ ही अपने शियों की जान बचा सकें, यही वजह है कि इमाम हसन असकरी अ.स. के दौर में दूसरे सारे इमामों से ज़्यादा सावधानी बरती जा रही थी और तक़य्या पर अमल हो रहा था और इमाम अ.स. भी बहुत संभल कर क़दम उठा रहे थे और लगभग सारे कामों को छिप कर अंजाम दे रहे थे सारी बातों और ख़बरों को छिपा कर रख रहे थे जिनमें से एक ख़बर इमाम महदी अ.स. की विलादत की ख़बर थी।
नए फ़िर्क़ों के सामने आने की वजह
इमाम ज़माना अ.स. की जान की हिफ़ाज़त के लिए उनकी विलादत की ख़बर को छिपाने के कराण कुछ शिया इमाम हसन असकरी अ.स. और इमाम ज़माना अ.स. की इमामत में शक करने लगे (क्योंकि शिया अक़ीदे के मुताबिक़ इमाम हसन असकरी अ.स. का बेटा होना ज़रूरी है ताकि वह उनके बाद इमाम बन सके और अगर इमाम हसन असकरी अ.स. को बेटा नहीं हुआ तो ख़ुद उनकी इमामत में भी शक होने लगा) लोगों को इस हद तक शक हुआ कि इतिहासकारों ने लिखा है कि इमाम हसन असकरी अ.स. की शहादत के बाद लोग 14 या 15 फ़िर्क़ों में बंट गए, कुछ इतिहासकारों के अनुसार 20 फ़िर्क़ों में बंट जाने तक का ज़िक्र मौजूद है।
एक तरफ़ इमाम ज़माना अ.स. की विलादत की ख़बर को उनकी जान की हिफ़ाज़त की वजह से छिपाना और दूसरी तरफ़ जाफ़र का इमामत का दावा यह दोनों बातें उस दौर के शियों के लिए काफ़ी परेशानी की वजह बनी, इन सारी परेशानियों के साथ साथ दूसरे फ़िक्री और अक़ीदती फ़िर्क़े वालों ने शिया फ़िर्क़े पर जम के आरोप लगाए
और जो कुछ उनसे हो सका उन लोगों ने कहा, मोतज़ेलह, अहले हदीस, ज़ैदिया और ख़ास कर बनी अब्बास ने शिया फ़िर्क़े पर आरोप लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, हक़ीक़त तो यह है कि इमाम हसन असकरी अ.स. की शहादत के बाद शियों में जो शक का दौर रहा है वह उससे पहले कभी नहीं देखा गया,
लेकिन जैसे ही शियों को भरोसेमंद स्रोत से इमाम ज़माना अ.स. की विलादत की ख़बर मिली वह संतुष्ट हो गए और इमाम ज़माना अ.स. की इमामत को स्वीकार भी किया और उनकी पैरवी को अपने ऊपर बाक़ी इमामों की तरह वाजिब समझा, और बाक़ी के सारे फ़िर्क़े जो इस दौर में सामने आए थे वह सब कुछ ही समय में नाबूद हो गए,
आज उन फ़िर्क़ों का कोई भी पैरवी करने वाला मौजूद नहीं है बस केवल किताबों में एक ऐतिहासिक दास्तान बन कर रह गए हैं, यहां तक कि शैख़ मुफ़ीद र.ह. के ज़माने तक भी यह लोग बाक़ी न रह सके, जैसाकि शैख़ मुफ़ीद र.ह. ने इन फ़िर्क़ों के बारे में लिखा है कि, इस साल (373 हिजरी) और हमारे दौर में इन फ़िर्क़ों में से कोई भी बाक़ी नहीं बचा, सब नाबूद हो चुके हैं।
इमाम हसन असकरी अ.स. की शहादत के बाद जो फ़िर्क़े सामने आए वह इस प्रकार हैं.....
इमाम अली नक़ी अ.स. के बेटे जाफ़र की इमामत पर अक़ीदा
जिन लोगों ने जाफ़र का इमाम माना वह चार गिरोह में बंटे हुए थे....
पहला- कुछ लोगों का कहना था कि जाफ़र, इमाम हसन असकरी अ.स. के भाई इमाम हैं लेकिन इस वजह से नहीं कि इमाम हसन असकरी अ.स. ने अपने भाई के लिए वसीयत की हो बल्कि चूंकि इमाम हसन असकरी अ.स. को बेटा नहीं है इसलिए हम मजबूर हैं कि उनके भाई जाफ़र को अपनी बारहवां इमाम मानें।
दूसरा- कुछ लोगों का अक़ीदा था कि जाफ़र ही इमाम हैं क्योंकि इमाम हसन असकरी अ.स. ने वसीयत की है और जाफ़र को अपनी जानशीन क़रार दिया है, यह फ़िर्क़ा भी पहले फ़िर्क़े की तरह जाफ़र को अपनी बारहवां इमाम मानता है।
तीसरा- कुछ का मानना यह था कि जाफ़र इमाम हैं, और उनको यह इमामत अपने वालिद से मीरास में मिली है न कि उनके भाई से, और इमाम हसन असकरी अ.स. की इमामत बातिल थी क्योंकि उन्हें कोई बेटा ही नहीं था जबकि उनको बेटा होना ज़रूरी था ताकि इमामत का सिलसिला आगे बढ़ सके, उनका कहना था कि चूंकि इमाम हसन असकरी अ.स. को बेटा नहीं है इसीलिए इमाम अली नक़ी अ.स. के बाद इमाम हसन असकरी अ.स. इमाम नहीं हो सकते साथ ही इमाम अली नक़ी अ.स. के दूसरे बेटे मोहम्मद भी इमाम नहीं हो सकते क्योंकि वह इमाम अली नक़ी अ.स. की ज़िंदगी में ही इंतेक़ाल कर गए थे, इसलिए हम मजबूर हैं कि इमाम अली नक़ी अ.स. के बाद जाफ़र को इमाम मानें।
चौथा- कुछ लोग इस बात पर अड़े थे कि जाफ़र को उनके भाई मोहम्मद से इमामत मिली है, इन लोगों का कहना था कि इमाम अली नक़ी अ.स. के बेटे अबू जाफ़र मोहम्मद इब्ने अली जो कि अपने वालिद की ज़िंदगी में ही इंतेक़ाल कर गए थे, वह अपने वालिद की वसीयत के मुताबिक़ इमाम थे, और चूंकि मोहम्मद अपनी वफ़ात के समय किसी की तलाश में थे ताकि अपनी जानशीनी और इमामत की ज़िम्मेदारी उसके हवाले कर सकें इसलिए आख़िर में नफ़ीस नाम के ग़ुलाम के हवाले अपनी किताबें और दूसरी चीज़ें कर दीं और उससे वसीयत की कि जब भी उनके वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. की शहादत का समय क़रीब आए तो इन सब चीज़ों को जाफ़र के हवाले कर देना, यह गिरोह इमाम हसन असकरी अ.स. की इमामत को नहीं मानता था, इन लोगों का कहना था इमाम असकरी अ.स. के वालिद ने उन्हें अपना जानशीन नहीं बनाया था इसलिए मोहम्मद इब्ने अली ग्यारहवें इमाम हैं और उसके बाद जाफ़र इमाम होंगे।
इमाम हसन असकरी अ.स. के एक और बेटे की इमामत पर अक़ीदा
यह फ़िर्क़ा भी 4 गिरोह में बंटा हुआ था.
पहला- कुछ लोगों का अक़ीदा था कि इमाम हसन असकरी अ.स. का एक बेटा था जिसका अली नाम रखा और इमामत के बारे में उसी से वसीयत की, इसलिए अली इब्ने हसन बारहवें इमाम हैं।
दूसरा- कुछ लोगों का कहना है कि इमाम हसन असकरी अ.स. की शहादत के 8 महीने बाद एक बेटा पैदा हुआ और वही बारहवां इमाम है।
तीसरा- एक गिरोह का कहना है कि इमाम हसन असकरी अ.स. का एक बेटा है जो अल्लाह के हुक्म से अभी पैदा नहीं हुआ है, वह अभी मां के पेट में है और अल्लाह के हुक्म से पैदा होगा।
चौथा- कुछ लोगों का मानना है कि इमाम असकरी अ.स. के बाद उनका बेटा मोहम्मद इमाम था लेकिन वह इमाम असकरी अ.स. की ज़िंदगी में ही मर गया, अब बाद में ज़िंदा हो कर वापस आएगा और इंक़ेलाब लाएगा।
इमाम हसन असकरी अ.स. की इमामत के बाक़ी रहने पर अक़ीदा
इस अक़ीदे वाले लोग भी 2 गिरोह में बंटे हुए हैं।
पहला- कुछ लोगों का अक़ीदा है कि इमाम हसन असकरी अ.स. ज़िंदा हैं और महदी, मुंतज़र और क़ायम हैं, क्योंकि उनका कोई बेटा नहीं है इसलिए इमाम वही हैं, और ज़मीन भी अल्लाह की हुज्जत से ख़ाली नहीं रह सकती, इस गिरोह का कहना है कि अगर इमाम की शहादत या उनके इंतेक़ाल के समय उनका कोई बेटा नहीं है तो वह ख़ुद ही महदी-ए-क़ायम है और हमें उसके ज़िंदा रहने पर अक़ीदा रखना होगा और शियों को उसके इंतेज़ार में अपनी आंखें बिछाए रहना चाहिए ताकि वह वापस हमारे सामने आ जाएं, क्योंकि जिस इमाम का बेटा न हो और उसका कोई जानशीन न हो तो उसे मुर्दा नहीं समझा जा सकता, हमें कहना ही पड़ेगा कि वह ग़ैबत में हैं।
दूसरा- इन लोगों का मानना है कि इमाम हसन असकरी अ.स. इस दुनिया से चले गए थे फिर वापस ज़िंदा हुए और फिर से अपनी ज़िंदगी जीना शुरू कर दी, वह महदी और क़ायम हैं, क्योंकि हदीस में है कि क़ायम वही है जो मौत के बाद फिर से ज़िंदा हो जाए और उसका कोई बेटा भी न हो।
इमाम हसन असकरी अ.स. के भाई मोहम्मद इब्ने अली की इमामत पर अक़ीदा
इस गिरोह का कहना है कि इमाम अली नक़ी अ.स. के बाद उनके बेटे मोहम्मद इमाम हैं, क्योंकि दो भाईयों जाफ़र और हसन की इमामत सही नहीं है (इमाम हसन अ.स. और इमाम हुसैन अ.स. को छोड़ कर) जाफ़र की इमामत इसलिए सही नहीं है क्योंकि उसका किरदार इमामत की शान के मुताबिक़ नहीं है और वह आदिल नहीं था, और हसन इब्ने अली को कोई बेटा नहीं था इसलिए वह भी इमाम नहीं हो सकते।
शक की हालत में हैं
कुछ शिया का कहना था कि इमाम हसन असकरी अ.स. के बाद इमामत का मामला हमारे लिए साफ़ नहीं है, हमें नहीं मालूम कि जाफ़र इमाम हैं या दूसरे बेटे, हमें नहीं मालूम इमामत, इमाम हसन असकरी अ.स. की नस्ल से हैं या उनके भाईयों की, अब हमारे लिए मामला साफ़ नहीं है इसलिए हम बिना किसी को इमाम माने इम मामले में विचार कर रहे हैं।
ज़मीन अल्लाह की हुज्जत से ख़ाली है
इस गिरोह का अक़ीदा था कि इमाम हसन असकरी अ.स. के बाद अब कोई इमाम नहीं है, और ज़मीन अल्लाह की हुज्जत से ख़ाली है, उनका अक़ीदा यह था कि ज़मीन का अल्लाह की हुज्जत से ख़ाली होने में कोई परेशानी नहीं है क्योंकि हज़रत ईसा अ.स. और पैग़म्बर स.अ. के बीच काफ़ी फ़ासला था।