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युद्ध की आड़ में फ़लस्तीनियों की ज़मीन पर इसराइल कब्जा करते जा रहा है,इसराइल ने इस इलाके़ में नई यहूदी बस्तियों को मान्यता दी है लेकिन इसराइल की अनुमति के बिना यहां नई यहूदी बस्तियों के लिए फ़लस्तीनियों के लोगों की निजी स्वामित्व वाली ज़मीन को छीन लिया गया है और वहां सैन्य चौकियां बना दी गई हैं।

युद्ध की आड़ में फ़लस्तीनियों की ज़मीन पर इसराइल कब्जा करते जा रहा है,इसराइल ने इस इलाके़ में नई यहूदी बस्तियों को मान्यता दी है लेकिन इसराइल की अनुमति के बिना यहां नई यहूदी बस्तियों के लिए फ़लस्तीनियों के लोगों की निजी स्वामित्व वाली ज़मीन को छीन लिया गया है और वहां सैन्य चौकियां बना दी गई हैं।

प्राकृतिक झरनों के पानी से सिंचाई करने वाले पुराने फ़लस्तीनी गांव बतिर में आम ज़िदगी सैंकड़ों सालों से शांत ही रही है।

यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल बतिर गांव को जैतून के बाग़ों और अंगूर के खेतों लिए जाना जाता है. लेकिन मौजूदा वक्त में यह कब्ज़ा किए गए वेस्ट बैंक वाले इलाके़ में बस्तियों को लेकर चर्चा में है।

इसराइल ने इस इलाके़ में नई यहूदी बस्तियों को मान्यता दी है. लेकिन इसराइल की अनुमति के बिना यहां नई यहूदी बस्तियों के लिए फ़लस्तीनियों के लोगों की निजी स्वामित्व वाली ज़मीन को छीन लिया गया है और वहां सैन्य चौकियां बना दी गई हैं.

घासन ओल्यान उन लोगों में से हैं जिनकी ज़मीन पर कब्ज़ा किया गया है ओल्यान कहते हैं हमारी त्रासदी पर अपने सपने बनाने के लिए वो हमसे हमारी ज़मीनें छीन रहे हैं।

यूनेस्को का कहना है कि बतिर के आसपास नई बस्ती और लोगों को लेकर वो चिंतित है. सभी बस्तियां अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के हिसाब से अवैध हैं, हालांकि इसराइल इस बात से सहमत नहीं है।

 

लंदन में इस्लामी गणतंत्र ईरान के दूतावास ने अपने एक्स-हैंडल पर जारी एक संदेश में कहा है, ''30 अगस्त, 1981 को ईरानी राष्ट्रपति और प्रधान मंत्री को मुजाहिदीन ख़ल्क़ नामक समूह ने शहीद कर दिया था, और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय वर्षों से इस समूह की निंदा करते हुए इसे आतंकवादी समूह माना जाने लगा है।'' संदेश में कहा गया है कि हालांकि इस आतंकवादी समूह की प्रकृति नहीं बदली है, लेकिन ईरान पर दबाव बनाने के लिए इस समूह का नाम (आतंकवादी संगठनों) सूची से हटा दिया गया है। इस संदर्भ में, कुछ ब्रिटिश सांसदों ने आश्चर्यजनक रूप से इस समूह के नेता की मेजबानी की, जबकि कुछ कुख्यात रूढ़िवादी समाचार पत्रों ने इस समूह को अपने पृष्ठ दिए हैं। 

  ब्रिटिश अधिकारियों के दोहरे मापदंडों का जिक्र करते हुए ईरानी दूतावास ने लिखा कि ब्रिटेन के लिए आतंकवाद तब सहनीय है जब वह ईरानियों को निशाना बनाता है और अन्य जगहों पर निंदनीय है। उल्लेखनीय है कि ईरान के राष्ट्रपति मोहम्मद अली रजाई और प्रधान मंत्री मोहम्मद जवाद बाहुनर को उपरोक्त आतंकवादी समूह (एमकेओ) ने 30 अगस्त, 1981 को प्रधान मंत्री आवास को उड़ाकर शहीद कर दिया था। 

ईरान के उपरक्षा मंत्री ब्रिगेडियर जनरल सैयद हुज्जतुल्लाह क़ुरैशी का कहना है: इस्लामी गणतंत्र ईरान का रक्षा उद्योग, डिज़ाइन और निर्माण के माध्यम से आंतरिक व स्वदेशी शक्ति व ताक़त तथा नवीनीकरण पर भरोसा करके सैन्य उपकरणों और पुर्ज़ों के क्षेत्र में पूरी तरह से स्वदेशी उद्योग बन गया है।

ब्रिगेडियर जनरल क़ुरैशी ने ईरान के रक्षा उद्योग दिवस के मौक़े पर कहा: आज कठोर, अवैध और ग़ैर क़ानूनी प्रतिबंधों के बावजूद रक्षा उद्योग में प्रगति और आत्मनिर्भरता, इस्लामी क्रांति की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में है।

ईरान के रक्षामंत्री ने कहा इस्लामी क्रांति की सफलता से पहले ईरान के सशस्त्र बल, रणनीतिक और उपकरणों के मामले में पूरी तरह से पश्चिम पर निर्भर थे।

उनका कहना था: चार दशकों के बाद ईरानी युवाओं के प्रयासों, दृढ़ संकल्प और राष्ट्रीय क्षमताओं और प्रतिभाओं पर विश्वास के साथ, सैन्य उपकरणों का डिज़ाइन और निर्माण पूरी तरह से स्वदेशी उद्योग बन गया है।

उन्होंने कहा कि ऐसी क्षमता हासिल करने से इस्लामी गणतंत्र ईरान इस क्षेत्र में एक सक्रिय और निर्णायक खिलाड़ी में तब्दील हो गया है।

उनका कहना था कि मिसाइल, एयर, एयर डिफ़ेंस, नौसेना, अंतरिक्ष, इलेक्ट्रॉनिक, साइबर और आईडी वॉर और अन्य क्षेत्रों में इस्लामी गणतंत्र ईरान के रक्षा मंत्रालय की प्रगति ने आज न केवल उपकरण प्रदान करने में आत्मनिर्भरता पैदा की है बल्कि ईरान के सशस्त्र बलों के लिए आवश्यक हथियार भी बनाने में कामयाबियां हासिल की हैं जबकि इस्लामी गणतंत्र ईरान रक्षा उत्पादों और प्रौद्योगिकी का निर्यात करने वाले देशों में एक बन गया है।

क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले परिवर्तनों का ज़िक्र करते हुए  ईरान के उपरक्षा मंत्री ने कहा: दुनिया सबसे जटिल सैन्य परिस्थितियों से गुजर रही है और बड़े और आश्चर्यजनक ख़तरों के कगार पर है।

जनरल क़ुरैशी की नज़र में वैश्विक सुरक्षा व्यवस्था में परिवर्तन के इशारों में अमेरिकी शक्ति का पतन, राजनीतिक आर्थिक शक्ति के पैरेडाइम का पश्चिमी आधिपत्य से निकलकर स्वतंत्र राजनीतिक, आर्थिक शक्तियों में स्थानांतरण, विश्व शक्तियों की भूरणनीतिक प्रतिस्पर्धा और कुछ देशों की विदेश नीति के हथकंडों के रूप में  छद्म युद्ध और आतंकवाद का विस्तार है।

ईरान के उपरक्षा मंत्री ने कहा: अमेरिका और साम्राज्यवादी शक्तियां, दिखावे के संकट पैदा करके और दूसरों की क़ीमत पर प्रॉक्सी वॉर शुरु करके अपने लक्ष्य हासिल करने की कोशिश कर रही हैं, जैसा कि हम आज सीरिया, इराक़, अफ़ग़ानिस्तान, पूर्वी यूरोप और एशिया में देख रहे हैं।

जनरल क़ुरैशी ने कहा: निश्चित रूप से, अमेरिका के हस्तक्षेप और हमलों के परिणाम से प्रतिरोध की विचारधारा का विस्तार होगा, प्रतिरोध के क्षेत्रों का विकास होगा, आपसी अंतरमहाद्वीपीय गठबंधन का निर्माण होगा, सत्ता के नए ध्रुवों और आधिपत्य-विरोधी गुटों का गठन और दुनिया में धर्म, नस्ल और भूगोल की परवाह किए बिना अधिक स्वतंत्रता के लिए एकता और गठबंधन का निर्माण हो रहा है।

उन्होंने मित्र देशों के बीच सहयोग के महत्व पर ज़ोर दिया और कहा: इसमें जो महत्वपूर्ण है वह मौजूदा अनुचित व्यवस्था के ख़िलाफ सद्भाव और एकता बनाने और बहुपक्षीयवाद की स्थापना की दिशा में आंदोलन को तेज करने के लिए स्वतंत्र देशों के संयुक्त प्रयास हैं।

ज़ायोनी सरकार के आंतरिक सुरक्षा मंत्री ने मस्जिदुल अक़्सा के बारे में जो हालिया बयान दिया है उसकी कुछ देश और फ़िलिस्तीनी गुट भर्त्सना कर रहे हैं और मस्जिदुल अक़्सा की एतिहासिक और क़ानूनी स्थिति बनाये रखने और उसका सम्मान करने पर बल दे रहे हैं।

ज़ायोनी सरकार के आंतरिक सुरक्षा मंत्री इतमार बेन गोविर ने एलान किया है कि वह मस्जिदुल अक़्सा के प्रांगण में यहूदी उपासना स्थल निर्माण करने का इरादा रखता है।

ज़ायोनी सरकार के धरोहर मंत्री ने भी सूचना दी है कि ज़ायोनियों द्वारा मस्जिदुल अक़्सा पर हमले के समर्थन के लक्ष्य से 5 लाख डॉलर विशेष किया गया है।

ज़ायोनी सरकार के इस क़दम के बाद ईरान के विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता नासिर कनआनी ने सोशल मिडिया एक्स पर लिखा कि ज़ायोनी सरकार का जंगी मंत्रिमंडल मस्जिदुल अक़्सा के संबंध में अपने शैतानी व दुष्टतापूर्ण षडयंत्र को व्यवहारिक बनाने की चेष्टा में है यहां तक कि वह मस्जिदुल अक़्सा के प्रांगण में निर्लज्ता के साथ यहूदी उपासना स्थल निर्माण करने की बात कर रहा है।

इस्लामी गणतंत्र ईरान इस प्रकार के बयानों की कड़ी भर्त्सना करता है और साथ ही वह मस्जिदुल अक़्सा के संबंध में हर प्रकार के अतिक्रमण को इस्लामी जगत की रेड लाइन को लांघना समझता है और इसके प्रति चेतावनी देता है। ज़ायोनी जो अपराध कर रहे हैं उससे पूरी दुनिया बेदार व जागरुक हो गयी है और दुनिया के मुसलमान और स्वतंत्रताप्रेमी एक आवाज़ में फ़िलिस्तीन और मस्जिदुल अक़्सा का समर्थन कर रहे हैं और साथ ही वे ज़ायोनी सरकार के अपराधियों पर मुक़द्दमा चलाये जाने की मांग भी कर रहे हैं।

जार्डन के विदेशमंत्री एमन अस्सफ़दी ने भी एक्स के अपने निजी पेज पर लिखा है कि राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद को चाहिये कि मस्जिदुल अक़्सा और पवित्र स्थलों के संबंध में किये जा रहे अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के उल्लंघन को समाप्त कराने के लिए तुरंत क़दम उठाये।

अस्सफ़दी ने बल देकर कहा कि ज़ायोनी सरकार प्रायोजित कार्यक्रम के अनुसार मस्जिदुल अक़्सा की पहचान बदलने की कुचेष्टा में है।

सऊदी अरब के विदेशमंत्रालन ने भी मस्जिदुल अक़्सा में एक यहूदी उपासना स्थल बनाये जाने पर आधारित बेन गोविर के बयानों की प्रतिक्रिया में एलान किया कि वह बारमबार दुनिया के मुसलमानों की भावनाओं को आहत करने को बर्दाश्त नहीं करेगा। इसी प्रकार सऊदी अरब ने मस्जिदुल अक़्सा की क़ानूनी और एतिहासिक स्थिति का सम्मान किये जाने पर बल दिया है।

 फ़िलिस्तीन की स्वशासित सरकार के प्रमुख महमूद अब्बास ने भी बेन गोविर के बयान पर प्रतिक्रिया दिखाई और कहा है कि उनका यह फ़ैसला इस बात का सूचक है कि ज़ायोनियों का प्रयास क्षेत्र को धार्मिक जंग की आग में धकेलना है। उन्होंने बल देकर कहा कि इस्राईल को अमेरिका का राजनीतिक, सैनिक और वित्तीय समर्थन फ़िलिस्तीनी जनता और लोगों पर इस्राईल के हमलों के जारी रहने का कारण है और उसने फ़िलिस्तीनियों की मान्यताओं के अपमान के लिए इस्राईल को अधिक दुस्साहसी बना दिया है।

इसी संबंध में इस्लामी प्रतिरोधी संगठन हमास ने भी एक बयान जारी करके एलान किया है कि मस्जिदुल अक़्सा पर हमला करने हेतु अतिवादी ज़ायोनियों के लिए बजट विशेष किया जाना ख़तरनाक क़दम है और वह आग से खेलना है और एक धार्मिक जंग के आरंभ होने का कारण बन सकता है और उसकी ज़िम्मेदारी ज़ायोनी सरकार और उसके समर्थकों की होगी।

हमास ने अपने बयान में इस्लामी सहयोग संगठन ओआईसी के 57 सदस्य देशों से मांग की है कि वह अपने दायित्वों पर अमल करे और ज़ायोनी दुश्मन के मुक़ाबले में मस्जिदुल अक़्सा की रक्षा के संबंध में कार्यवाही करे।

ज्ञात रहे कि मस्जिदुल अक़्सा को ध्वस्त करके उसके स्थान पर यहूदी उपासना स्थल का निर्माण वह विचारधारा है जिसका संबंध अतिवादी ज़ायोनियों की आस्था से है और सालों से अतिवादी ज़ायोनी इस दिशा में प्रयासरत रहे और कुटिल चाले चलते रहे हैं।

मस्जिदुल अक़्सा बैतुल मुकद्दस नगर में इस्लामी और फ़िलिस्तीनी पहचान की प्रतीक है और अतिवादी ज़ायोनी हमेशा उसे ध्वस्त करने और नुकसान पहुंचाने की चेष्टा में रहे हैं।

ज्ञात रहे कि ब्रिटेन की साम्राज्यवादी नीति के तहत ज़ायोनी सरकार का ढांचा वर्ष 1917 में ही तैयार हो गया था और विश्व के विभिन्न देशों व क्षेत्रों से यहूदियों व ज़ायोनियों को लाकर फ़िलिस्तीनियों की मातृभूमि में बसा दिया गया और वर्ष 1948 में ज़ायोनी सरकार ने अपने अवैध अस्तित्व की घोषणा कर दी। उस समय से लेकर आजतक विभिन्न बहानों से फ़िलिस्तीनियों की हत्या, नरसंहार और उनकी ज़मीनों पर क़ब्ज़ा यथावत जारी है।

इस्लामी गणतंत्र ईरान सहित कुछ देश इस्राईल की साम्राज्यवादी सरकार के भंग व अंत किये जाने और इसी प्रकार इस बात के इच्छुक हैं कि जो यहूदी व ज़ायोनी जहां से आये हैं वहीं वापस चले जायें।

मशहद के म्युनिसिपालिटी ने कहा;मशहद मुकद्देसा में इमाम रज़ा अ.स. स्ट्रेट पर मोकिब लगाए गए हैं यह स्ट्रीट पर जुलूस की व्यवस्था की गई है जो सफ़र महीने के आखिरी तीन दिनों तक जारी रहेगा।

एक रिपोर्ट के अनुसार , मशहद नगर पालिका के सदस्य सैयद जलील बा मिश्की ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए यह बात कही है।

हज़रत इमाम रज़ा अ.स.की शहादत सफ़र महीने के आखिरी तीन दिनों में ज़ायरीन की सेवा के लिए 300 मौकिब आयोजित किए गाए है।

उन्होंने कहा इन 300 मौकिब में लगभग 60 जुलूस केवल सांस्कृतिक सेवाओं में लगे रहेंगे और शेष जुलूस तीर्थयात्रियों के लिए भोजन की व्यवस्था करेंगे।

उन्होंने कहा, इन 300 मौकिबों में से लगभग 60 मौकिब केवल सांस्कृतिक सेवाओं में लगे रहेंगे और शेष जुलूस तीर्थयात्रियों के लिए भोजन की व्यवस्था करेंगे।

उन्होंने कहा कि इमाम रज़ा स्ट्रीट पर कई जुलूस देश के विभिन्न शहरों से होते हैं आते हैं इनमें से अधिकतर जुलूस अनदेखे तीर्थयात्रियों के होते हैं जो पूरे ईरान से इमाम रज़ा अ.स की सेवा के लिए आए हैं।

उन्होंने कहा,यह मौकिब हरम के आसपास स्थित हैं, वह तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए हर समय सेवा के लिए तैयार रहेंगा इसीलिए इमाम रज़ा स्ट्रीट को सर्विस स्ट्रीट का नाम दिया गया है।

उन्होंने कहा कि इन जुलूसों में तीर्थयात्रियों के लिए आवास की कई संभावना है लेकिन शहर में कई स्थान हैं जहां तीर्थयात्रियों के लिए आवास की व्यवस्था की गई हैं।

 

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने बुधवार को जमात ए इस्लामी पर लगी पाबंदी हटा ली है।

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने बुधवार को जमात-ए-इस्लामी पर लगी पाबंदी हटा ली है।जमात-ए-इस्लामी के छात्र संगठन इस्लामी छात्र शिविर और उसके अन्य संगठनों पर भी लगी पाबंदी हटा दी गई है।

इन संगठनों पर शेख़ हसीना सरकार के दौरान साल 2013 में पाबंदी लगाई गई थी पिछले साल बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने जमात के चुनाव लड़ने पर भी प्रतिबंध लगा दिया था।

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के गृह मंत्रालय ने 28 अगस्त को प्रतिबंध हटाने की अधिसूचना जारी की है।

जमात-ए-इस्लामी से पाबंदी हटा लेने के बाद बांग्लादेश की राजनीति में उसके लिए विकल्प खुल गए हैं और देश के चुनावों में वह अपनी भूमिका निभा सकता है।

चीन और फिलीपींस के बीच पिछले कुछ सालों में कई बार टकराव हो चुका है लेकिन पिछले हफ़्ते ये चीज़ें तब अधिक बिगड़ गईं, जब चीन और फिलीपींस के जहाज़ एक दूसरे से सबीना शोल के पास टकरा गए।

फिलीपींस से चीन का बढ़ा टकराव,फिलीपींसी राष्ट्रपति ने चेतावनी दी हैं।

दोनों देश दक्षिण चीन सागर में अलग-अलग द्वीपों पर अपने-अपने दावे करते रहे हैं।इस कारण चीन और फिलीपींस के बीच पिछले कुछ सालों में कई बार टकराव हो चुका है लेकिन पिछले हफ़्ते ये चीज़ें तब अधिक बिगड़ गईं, जब चीन और फिलीपींस के जहाज़ एक दूसरे से सबीना शोल के पास टकरा गए।

इसको लेकर फिलीपींस और चीन ने एक दूसरे पर एक-दूसरे के जहाज़ों को टक्कर मारने का आरोप लगाया है।

शोल पर चीन जियानबिन जिओ और फिलीपींस ईस्कोडा शोल के रूप में दावा करता है.यह फिलीपींस के पश्चिमी तट से लगभग 75 नॉटिकल मील ( लगभग 138 किलोमीटर) और चीन से 630 नॉटिकल मील लगभग ( लगभग1166 किलोमीटर) की दूरी पर स्थित है।

चीन और फिलीपींस के बीच पिछले कुछ सालों में कई बार टकराव हो चुका है लेकिन पिछले हफ़्ते ये चीज़ें तब अधिक बिगड़ गईं, जब चीन और फिलीपींस के जहाज़ एक दूसरे से सबीना शोल के पास टकरा गए।

फिलीपींस से चीन का बढ़ा टकराव,फिलीपींसी राष्ट्रपति ने चेतावनी दी हैं।

दोनों देश दक्षिण चीन सागर में अलग-अलग द्वीपों पर अपने-अपने दावे करते रहे हैं।इस कारण चीन और फिलीपींस के बीच पिछले कुछ सालों में कई बार टकराव हो चुका है लेकिन पिछले हफ़्ते ये चीज़ें तब अधिक बिगड़ गईं, जब चीन और फिलीपींस के जहाज़ एक दूसरे से सबीना शोल के पास टकरा गए।

इसको लेकर फिलीपींस और चीन ने एक दूसरे पर एक-दूसरे के जहाज़ों को टक्कर मारने का आरोप लगाया है।

शोल पर चीन जियानबिन जिओ और फिलीपींस ईस्कोडा शोल के रूप में दावा करता है.यह फिलीपींस के पश्चिमी तट से लगभग 75 नॉटिकल मील ( लगभग 138 किलोमीटर) और चीन से 630 नॉटिकल मील लगभग ( लगभग1166 किलोमीटर) की दूरी पर स्थित है।

क्वालालाम्पुर द्वारा निहत्थे फ़िलिस्तीनियों का समर्थन करने की वजह से अमेरिका और मलेशिया के संबंध तनावग्रस्त हो गये हैं।

जापानी समाचार पत्र "निकी एशिया" का मानना है कि मलेशिया ने हालिया सप्ताहों में फ़िलिस्तीन के प्रति अपने खुल्लम- खुल्ला समर्थन में वृद्धि कर दी है जो अमेरिका और मलेशिया के संबंधों में तनावों का कारण बन सकता है।

मलेशिया के प्रधानमंत्री अन्वर इब्राहीम ने क्वालालाम्पुर में मलेशिया की जामेअ मस्जिद के उद्घाटन समारोह में पश्चिमी जगत से कहा है कि वह ग़ज़्ज़ा युद्ध के बारे में ग़लत ख़बरों को बयान करने और अंतरराष्ट्रीय संचार माध्यमों को नियंत्रित करने के प्रयास से बाज़ आ जाये। अन्वर इब्राहीम ने पश्चिमी देशों को संबोधित करते हुए कहा कि

ज़रूरत नहीं है कि तुम इस्लामी जगत को डेमोक्रेसी, मानवाधिकार और स्थाई विकास के अर्थों को बताओ और उसकी शिक्षा दो।

मलेशिया के प्रधानमंत्री ने इसी संबंध में कहा कि अवैध अतिग्रहित फ़िलिस्तीन में जो अशांति है वह पिछले सात अक्तूबर की वजह से नहीं है बल्कि उसका आरंभ वर्ष 1948 में फ़िलिस्तीन के अतिग्रहण से हुआ है और उस समय से लेकर अब तक जारी है।

उन्होंने बल देकर कहा कि क्वालालाम्पुर इस बात के प्रति कटिबद्ध है कि वह उन कंपनियों को मलेशिया में प्रवेश करने और किसी भी प्रकार की गतिविधि करने की अनुमति न दे जो अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में पंजीकृत हो चुकी हैं। इससे पहले भी मलेशिया और ब्रूनेई ने दोनों देशों की वार्षिक शिखर बैठक में ग़ज़ा में अतिग्रहणकारी ज़ायोनी सरकार द्वारा नरसंहार और नस्ली सफ़ाये की भर्त्सना की और क्षेत्र की स्थिति के प्रति चिंता जताई थी।

ब्रूनेई के सुल्तान हाजी हसन अबूलकियाह और मलेशिया के प्रधानमंत्री अन्वर इब्राहीम ने इस बैठक में पश्चिम एशिया की विषम स्थिति पर चिंता जताई और अतिग्रहणकारी ज़ायोनी सरकार द्वारा ग़ज़ा पट्टी में नस्ली सफ़ाये और अपराधों के जारी रहने की भर्त्सना की।

ज़ायोनी सरकार ने पश्चिमी देशों के व्यापक समर्थन से 7 अक्तूबर 2023 से ग़ज़ा पट्टी और पश्चिमी किनारे पर फ़िलिस्तीन के मज़लूम लोगों के ख़िलाफ़ व्यापक युद्ध आरंभ कर दिया है परंतु अब तक घोषित लक्ष्यों में से किसी भी एक लक्ष्य को वह हासिल नहीं कर सकी है।

प्राप्त अंतिम रिपोर्टों के अनुसार ज़ायोनी सरकार के पाश्विक हमलों में अब तक 40 हज़ार से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीद और 92 हज़ार से अधिक घायल हो चुके हैं।

ज्ञात रहे कि ब्रिटेन की साम्राज्यवादी नीति के तहत ज़ायोनी सरकार का ढांचा वर्ष 1917 में ही तैयार हो गया था और विश्व के विभिन्न देशों व क्षेत्रों से यहूदियों व ज़ायोनियों को लाकर फ़िलिस्तीनियों की मातृभूमि में बसा दिया गया और वर्ष 1948 में ज़ायोनी सरकार ने अपने अवैध अस्तित्व की घोषणा कर दी। उस समय से लेकर आजतक विभिन्न बहानों से फ़िलिस्तीनियों की हत्या, नरसंहार और उनकी ज़मीनों पर क़ब्ज़ा यथावत जारी है।

इस्लामी गणतंत्र ईरान सहित कुछ देश इस्राईल की साम्राज्यवादी सरकार के भंग व अंत किये जाने और इसी प्रकार इस बात के इच्छुक हैं कि जो यहूदी व ज़ायोनी जहां से आये हैं वहीं वापस चले जायें

अलमयादीन नेटवर्क रिपोर्टर ने जुमआ की सुबह लेबनान के दक्षिण में स्थित क्षेत्रों पर इज़राईली शासन के हवाई हमले की सूचना दी है।

अलमयादीन नेटवर्क रिपोर्टर ने  जुमआ की सुबह लेबनान के दक्षिण में स्थित क्षेत्रों पर इज़राईली शासन के हवाई हमले की सूचना दी है।

इस समाचार चैनल ने बताया कि कब्जे वाली सरकार ने दक्षिणी लेबनान में मजदलज़ोन और ज़बकीन के बीच के क्षेत्र को निशाना बनाया है।

अलमायादीन के रिपोर्टर ने यह भी बताया कि इज़राईली शासन ने यारुन, अलनक़ुरा, उलमा अलशाब और वादी हामुल के उपनगरों पर हमला किया हैं।

कुछ घंटे पहले अलमायादीन नेटवर्क ने विश्वसनीय स्रोतों का हवाला देते हुए बताया कि कम से कम 6 ड्रोन सफलतापूर्वक इजरायली रक्षा प्रणालियों से बच गए और यौम अलअरबीन ऑपरेशन में गिललॉट बेस को सही ढंग से निशाना बनाया हैं।

इस रिपोर्ट के अनुसार कब्जे वाली इज़राईल सरकार ने हिज़्बुल्लाह के ऑपरेशन की सफलता और बेस के अंदर 8,200 इकाइयों को सटीक निशाना बनाने की बात स्वीकार की है।

 

इन सूत्रों ने यह भी बताया कि हिज़्बुल्लाह ड्रोन को गिराए जाने के बाद इजरायली सुरक्षा बलों ने गिलोट बेस के आसपास और कई किलोमीटर के भीतर एक कड़ी सुरक्षा परिधि बनाई हैं।