
رضوی
अरबईन के मौके पर 5 हज़ार से ज़्यादा ज़ायरीन अपने हाथों से कुरान लिखें
अरबईने हुसैनी के मौके पर इस साल कपड़े पर कुरआन लिखने की परियोजना में पांच हज़ार से अधिक अरबईन हुसैनी ज़ायरीन ने भाग लिया।
आस्ताने मुक़द्दस हुसैनी के सूचना आधार का हवाला देते हुए, आस्ताने मुक़द्दस हुसैनी अ.स.ने घोषणा की कि पवित्र कुरान की एक प्रति पांच हजार से अधिक अरबईन हुसैनी ज़यारीन की भागीदारी के साथ लिखी गई।
बहरैनी हुकूमत की ओर से एक शिया खतीबे हुसैनी को तीन महीने की सजा
बहरैन की एक अदालत ने शिया खतीबे हुसैनी शेख़ अब्दुल अमीर मालाल्लाह को तीन महीने जेल की सजा सुनाई है।
एक रिपोर्ट के अनुसार , बहरैन शासन की अदालत ने मुहर्रम के दौरान शिया खतीबे हुसैनी शेख़ अब्दुल अमीर मालाल्लाह को एक तकरीर के सिलसिले में 3 महीने की कैद की सजा सुनाई हैं।
गौरतलब है कि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन "मालाल्लाह" का उल्लेख लगभग एक महीने पहले मुहर्रम के पहले दशक के दौरान बहरैनी सरकार द्वारा की गई नागरिकों की गिरफ्तारी और सम्मन के दौरान किया गया था।
जिसमें दर्जनों उपदेशकों, विद्वानों को निशाना बनाया गया था। और बड़ों को पूछताछ के लिए बुलाया गया और फिर गिरफ्तार कर लिया गया।
नई हज नीति की कई शर्तें हज यात्रियों के लिए परेशानी का सबब
नई हज नीति के कुछ प्रावधान तीर्थयात्रियों के लिए चिंता का विषय हैं। इनमें से एक प्रावधान यह है कि 65 साल के तीर्थयात्री के साथ एक सहायक भी होगा, लेकिन उसकी उम्र 60 साल या उससे कम होनी चाहिए स्थिति ऐसी है कि इससे पति-पत्नी को हज के लिए आवेदन करने में परेशानी हो रही है।
भारतीय हज समिति ने भी क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालयों के अधिकारियों को अन्य तीर्थयात्रियों के लिए पासपोर्ट बनाने पर तत्काल ध्यान देने का आश्वासन दिया है तीर्थयात्री बार-बार कर रहे हैं हज कमेटी से संपर्क क्रांति के प्रतिनिधि के पूछने पर महाराष्ट्र हज कमेटी की ओर से भी ये शिकायतें की गईं और बताया गया कि इन हालातों के कारण कई तीर्थयात्री परेशान हैं. केंद्रीय हज समिति ने भी शिकायतों को स्वीकार किया। कार्यपालक पदाधिकारियों ने इन समस्याओं का विशेष तौर पर जिक्र किया था।
सेंट्रल हज कमेटी ने 4 मुद्दों को सुलझाने का आश्वासन दिया
भारतीय हज समिति के अतिरिक्त सीईओ ओलियाकत अली अफाकी ने मंगलवार, 27 अगस्त की शाम रिवोल्यूशन से बात करते हुए कहा, ''65 वर्ष के तीर्थयात्रियों के लिए आरक्षण श्रेणी में सहायक की आयु की आवश्यकता आज से हटा दी गई है, लेकिन यह छूट केवल पति, भाई-बहन या अन्य रक्त संबंधियों को ही मिलेगा। यदि कोई सामान्य व्यक्ति इस आरक्षण श्रेणी में जाता है तो गतवास के लिए सहायक के लिए आयु सीमा 60 वर्ष या उससे कम रहेगी।
पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग आवास!
उन्होंने यह भी कहा कि, "इस बार हज के दौरान पुरुष और महिला तीर्थयात्रियों को अलग-अलग कमरों में ठहराया जाएगा। जब उनसे पूछा गया कि क्या वे पति-पत्नी होंगे, तो सीईओ का जवाब था कि उनके लिए भी यही शर्त लागू की जाएगी।" तरीका ये होगा कि एक कमरे में सिर्फ पुरुष होंगे और बगल वाले कमरे में महिलाएं होंगी, ये फैसला सऊदी सरकार ने लिया है और काफी समय से भारतीय तीर्थयात्री भी नग्नता का हवाला देकर इस तरह की मांग कर रहे थे। हालांकि, अब एक वर्ग इसे अनुचित बताकर इसका विरोध करने को तैयार है।
पासपोर्ट के बदले घोषणा पत्र
भारतीय हज समिति के सीईओ ने यह भी कहा कि ''चूंकि इस बार हज की प्रक्रिया काफी पहले शुरू कर दी गई है, इसलिए यह निर्णय लिया गया है कि 7 महीने पहले मूल पासपोर्ट जमा करना अतिरिक्त होगा, इसलिए चयनित तीर्थयात्रियों से घोषणा पत्र लिया जाएगा।'' जब हज के दिन करीब आ जाएंगे और वीजा मिलने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी, तब राज्य हज समितियां यात्रियों से मूल पासपोर्ट लेंगी।
हज पासपोर्ट के लिए सिफ़ारिश पत्र
सीईओ ने आगे बताया कि "राज्य हज समितियों के अनुरोध पर, भारतीय हज समिति ने केंद्र सरकार से अनुरोध किया है कि वह सभी क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकारियों को देश भर के तीर्थयात्रियों के पासपोर्ट जल्द से जल्द तैयार करने का निर्देश दें ताकि वे आसानी से आवेदन करें।" कर सकते हैं सरकार से मंजूरी मिलने के बाद इसे भारतीय हज समिति की वेबसाइट पर भी डाला जाएगा।'' केंद्रीय हज समिति के सीईओ ने कहा, ''अधिकारी उनका सहयोग करेंगे।''
तुर्कमनिस्तान से संबंधों को बढ़ावा देना हमारा मुख्य लक्ष्य है।सुप्रीम लीडर
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई बुधवार की शाम तुर्कमनिस्तान के राष्ट्रीय नेता व पीपल्ज़ काउंसिल के चेयरमैन क़ुरबान अली बर्दीमोहम्मदोफ़ और उनके साथ आए प्रतिनिधिमंडल से मुलाक़ात में दोनों मुल्कों के आपसी संबंधों को बढ़ावा देने को मुख्य प्राथमिकता बताया और कहा कि हालिया बरसों में ईरान-तुर्कमनिस्तान के संबंध काफ़ी विकसित हुआ हैं।
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई बुधवार की शाम तुर्कमनिस्तान के राष्ट्रीय नेता व पीपल्ज़ काउंसिल के चेयरमैन क़ुरबान अली बर्दीमोहम्मदोफ़ और उनके साथ आए प्रतिनिधिमंडल से मुलाक़ात में दोनों मुल्कों के आपसी संबंधों को बढ़ावा देने को मुख्य प्राथमिकता बताया और कहा कि हालिया बरसों में ईरान-तुर्कमनिस्तान के संबंध काफ़ी विकसित हुआ हैं लेकिन आपसी सहयोग बढ़ाने में अभी और गुंजाइश मौजूद है जिसे व्यवहारिक बनाना चाहिए।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई का कहना था कि आपसी संबंधों को बढ़ावा देना दोनों मुल्कों के हित में है और हम उम्मीद करते हैं कि डाक्टर मसऊद पेज़ेश्कियान की ऊर्जावान सरकार दोनों मुल्कों के संबंधों को बढ़ावा देने से संबंधित मामलों को ज़्यादा गंभीरता से अंजाम देगी।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने तुर्कमनिस्तान के साथ संबंध बढ़ाने में ईरानी राष्ट्रपति की ख़ास दिलचस्पी की ओर इशारा करते हुए कहा कि आदरणीय फ़रज़ाना सादिक़ रोड ऐंड डेव्लपमेंट मिनिस्टर और संयुक्त आयोग की प्रमुख की हैसियत से दोनों मुल्कों के समझौतों के लागू होने की प्रक्रिया पर नज़र रखेंगी ताकि मद्देनज़र नतीजे हासिल हों।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने दोनों मुल्कों के संयुक्य प्रोजेक्टों उत्तर-दक्षिण हाइवे और तुर्कमनिस्तान गैस पाइप लाइन प्रोजेक्ट के बारे में तुर्कमनिस्तान पीपल्ज़ पार्टी के चेयरमैन की बातचीत का हवाला देते हुए कहा कि इन बड़े प्रोजेक्टों के ईरानी माहिरों की मदद से व्यवहारिक होने की स्थिति में, दोनों मुल्कों के संबंध पहले से ज़्यादा मज़बूत होंगे और दोनों मुल्कों के बीच निकटता बढ़ेगी।
इस मुलाक़ात में राष्ट्रपति डाक्टर मसऊद पेज़ेश्कियान भी मौजूद थे। इस मौक़े पर क़ुरबान अली बर्दीमोहम्दोफ़ ने दोनों मुल्कों को एक दूसरे का रिश्तेदार क़रार दिया और कहा कि तेहरान में जनाब राष्ट्रपति से वार्ता बहुत अच्छी रही और हम उम्मीद करते हैं कि समझौता ज्ञापनों से, जिन पर दस्तख़त हुए, अच्छे नतीजे हासिल होंगे।
तुर्कमनिस्तान के राष्ट्रीय नेता ने मरहूम राष्ट्रपति शहीद रईसी को याद किया और दोनों मुल्कों के संबंधों को बढ़ावा देने के लिए उनकी कोशिशों की क़द्रदानी करते हुए कहा कि तुर्कमनिस्तान-ईरान की लंबी संयुक्त सरहदें हमेशा दोस्ती व सुलह की सरहदें रही हैं और भविष्य में भी रहेंगी और हम हर क्षेत्र में आपसी संबंधों को बढ़ावा देने के लिए तैयार हैं।
ज़ायोनी सरकार अपने अंत का मार्ग तय कर रही है
नाइजीरिया के इस्लामी आंदोलन के नेता ने ज़ायोनी सरकार को ख़त्म होने वाली सरकार के रूप में याद किया कि जो अपने अंत के मार्ग में अग्रसर है।
नाइजीरिया के इस्लामी आंदोलन के नेता शैख़ इब्राहीम ज़कज़की ने इराक़ के पवित्र नगर कर्बला में" नेदाये अलअक़सा" नामक मोकिब में हाज़िर होकर कहा कि अतिग्रहणकारी ज़ायोनी सरकार हिल गयी है और वह अपने अंत का मार्ग तय कर रही है।
शैख़ ज़कज़की ने ज़ायोनी सरकार को मिलने वाली नाकामियों की ओर संकेत करते हुए कहा कि ग़ासिब व क़ाबिज़ ज़ायोनी सरकार का अंत तूफ़ान अलअक़्सा से आरंभ हो गया है और अल्लाह की इच्छा से जल्द की उसका अंत होगा यह मात्र अच्छी उम्मीद व सोच नहीं है बल्कि इस मामले में मौजूद प्रमाण इस बात के सूचक हैं।
नाइजीरिया के मुसलमानों के नेता ने आगे कहा कि आज और इतना लहू बहाने के बाद अल्लाह की इच्छा से ग़ज़ा को सफ़लता मिलेगी और उसके बाद फ़िलिस्तीन विजयी होगा और हम शीघ्र ही मस्जिदुल अक़्सा में नमाज़ अदा करेंगे।
एक ज़ायोनी विशेषज्ञ हागी उल्शान्तिस्की ने इससे पहले एक लेख में लिखा था कि सात अक्तूबर को पेश आनी घटना ने विदित में विजयी होने के मापदंड को बदल दिया है और अब इस्राईल को मिलने वाली विजय का अस्तित्व ही नहीं है।
इस्लामी गणतंत्र ईरान सहित कुछ देश इस्राईल की साम्राज्यवादी सरकार के भंग व अंत किये जाने और इसी प्रकार इस बात के इच्छुक हैं कि जो यहूदी व ज़ायोनी जहां से आये हैं वहीं वापस चले जायें।
प्राप्त अंतिम रिपोर्टों के अनुसार ज़ायोनी सरकार के पाश्विक हमलों में अब तक 40 हज़ार से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीद और 92 हज़ार से अधिक घायल हो चुके हैं।
ज्ञात रहे कि ब्रिटेन की साम्राज्यवादी नीति के तहत ज़ायोनी सरकार का ढांचा वर्ष 1917 में ही तैयार हो गया था और विश्व के विभिन्न देशों व क्षेत्रों से यहूदियों व ज़ायोनियों को लाकर फ़िलिस्तीनियों की मातृभूमि में बसा दिया गया और वर्ष 1948 में ज़ायोनी सरकार ने अपने अवैध अस्तित्व की घोषणा कर दी। उस समय से लेकर आजतक विभिन्न बहानों से फ़िलिस्तीनियों की हत्या, नरसंहार और उनकी ज़मीनों पर क़ब्ज़ा यथावत जारी है।
इस्लामी गणतंत्र ईरान सहित कुछ देश इस्राईल की साम्राज्यवादी सरकार के भंग व अंत किये जाने और इसी प्रकार इस बात के इच्छुक हैं कि जो यहूदी व ज़ायोनी जहां से आये हैं वहीं वापस चले जायें
गाज़ा जंग के 327वें दिन शहीदों की संख्या 40 हज़ार 534 हो गई
फ़िलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय ने आज बुधवार को घोषणा की है कि इज़राईल शासन ने पिछले 24 घंटों के दौरान गाज़ा में 200 अन्य फ़िलिस्तीनियों को मार डाला और कई को घायल कर दिया हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार , फ़िलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय ने आज बुधवार को घोषणा की है कि इज़राईल शासन ने पिछले 24 घंटों के दौरान गाज़ा में 200 अन्य फ़िलिस्तीनियों को मार डाला और कई को घायल कर दिया हैं।
गाज़ा में फ़िलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय ने घोषणा की है की इज़राईल सरकार ने युद्ध के 327वें दिन चार नए हमले किए हैं, जिनमें 58 लोग शहीद हुए और 131 लोग घायल हुए हैं।
बड़ी संख्या में फ़िलिस्तीनी पीड़ित अभी भी मलबे के नीचे दबे हुए हैं और उन्हें निकालना या सहायता प्रदान करना संभव नहीं है।
रिपोर्ट के मुताबिक, 7 अक्टूबर 2023 के बाद से गाजा में शहीदों की संख्या 40,534 और घायलों की संख्या 93,778 हो गई है।
ऑस्ट्रेलिया की विक्टोरियन संसद में पहली बार योमे हुसैन का आयोजन
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद अबुल कासिम रिज़वी ने ऑस्ट्रेलिया की विक्टोरियन संसद में पहली बार हज़रत इमाम हुसैन दिवस का आयोजन करके एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार , शिया उलेमा काउंसिल ऑफ़ ऑस्ट्रेलिया के अध्यक्ष और इमाम जुमआ मेलबर्न ऑस्ट्रेलिया के मौलाना सैयद अबुल कासिम रिज़वी ने ऑस्ट्रेलिया की विक्टोरियन संसद में पहली बार यौम हुसैन का आयोजन करके एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की हैं।
खैरूल अमल टीवी के प्रमुख सैयद असद तक्वी ने कार्यक्रम के आयोजन से लेकर अंत तक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और कार्यक्रम के आयोजन के कर्तव्यों में महान पालन किया।
इस अवसर पर संसद सदस्यों और विभिन्न धर्मों शिया, सुन्नी, बोहौरा, आगा ख्वानी, हिंदू, सिख, ईसाई, कुलपति और प्रोफेसरों के सदस्यों ने भाग लिया।
मौलाना सैयद अबुल कासिम रिज़वी ने संसद भवन में सभी धर्म और मजहब के लोगों को हुसैनियत का संदेश दिया और कहा कि कर्बला की घटना के बाद यह साबित हो गया है कि दो ही धर्म हैं या तो हुसैनी या फिर यजीदी।
उन्होंने आगे कहा,इमाम हुसैन (अ.स.) मार्गदर्शन का दीपक और मुक्ति के नाव हैं आज जब पूरी दुनिया में आतंकवाद और नफरत फैली हुई है, तो हुसैन अ.स. की शिक्षाओं से ही इस नफरत को खत्म किया जा सकता है।
शिया उलमा काउंसिल ऑफ ऑस्ट्रेलिया के अध्यक्ष ने कहा,यहां विभिन्न धर्मों के लोग हैं आप खुद देखें कि इमाम हुसैन अ.स.ने मानवता के नाम पर इन सभी धर्मों को कैसे एकजुट किया है।
ईरानी राष्ट्रपति अपनी पहली विदेशी यात्रा पर इराक जाएंगे
ईरान के राष्ट्रपति डॉक्टर मसऊद पिज़िश्कियान इराक से अपनी विदेशी यात्राएं शुरू करेंगें।
ईरान के राष्ट्रपति डॉक्टर मसऊद पिज़िश्कियान अपनी पहली विदेशी आधिकारिक यात्रा में समझौतों पर हस्ताक्षर करने के लिए इस महीने इराक का दौरा करेंगें।
इराक में इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान के राजदूत मोहम्मद काज़िम अलसादिक ने जानकारी दी और कहा, इराकी प्रधान मंत्री मोहम्मद शियाआ अलसुदानी के निमंत्रण पर ईरानी राष्ट्रपति अगले कुछ दिनों में इस देश का दौरा करने वाले हैं।
उन्होंने कहा,डॉक्टर मसऊद पिज़िश्कियान की आगामी इराक यात्रा के दौरान, दिवंगत राष्ट्रपति शहीद इब्राहिम राईसी के शासनकाल के दौरान सहमत समझौता ज्ञापन पर भी हस्ताक्षर किए जाएंगे।
ईरानी राजदूत ने आशा व्यक्त की कि ईरानी राष्ट्रपति की यात्रा दोनों पड़ोसी देशों के बीच राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों के विकास में बहुत सहायक और उपयोगी होगी।
ईरान आख़िर तक फ़िलिस्तीन के साथ रहेगाः ईरान के नये विदेशमंत्री
ईरान के नये विदेशमंत्री ने फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोधी संगठन हमास के राजनीतिक कार्यालय के सदस्य से टेलीफ़ोनी वार्ता में कहा कि फ़िलिस्तीन की मज़लूम जनता और प्रतिरोध के समर्थन में इस्लामी गणतंत्र ईरान का दृष्टिकोण जारी रहेगा।
हमास के राजनीतिक कार्यालय के सदस्य ख़लीलुल हय्या ने ईरान के नये विदेशमंत्री सैय्यद अब्बास एराक़्ची से टेलीफ़ोनी वार्ता की।
ईरान के विदेशमंत्री ने ख़लील अलहय्या के साथ टेलीफ़ोनी वार्ता में ग़ज़्ज़ा पट्टी के लोगों के 11 महीनों के प्रतिरोध और ज़ायोनी सरकार के अपराधों के मुक़ाबले में प्रतिरोध के संघर्षकर्ताओं की सराहना की और कहा कि अंतिम विजय फ़िलिस्तीनी जनता की होगी और इस्लामी गणतंत्र ईरान आख़िर तक फ़िलिस्तीनी लोगों के साथ रहेगा।
ईरान के विदेशमंत्री ने बल देकर कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान हर उस समझौते का समर्थन करेगा जिसमें युद्ध विराम और ग़ज़्ज़ा जंग की समाप्ति की बात कही गयी हो और उस समझौते को फ़िलिस्तीनी लोग और प्रतिरोधक गुट और हमास क़बूल करते हों।
इसी प्रकार इस टेलीफ़ोनी वार्ता में हमास के राजनीतिक कार्यालय के सदस्य ख़लील अलहय्या ने भी ईरान का विदेशमंत्री बनने पर अब्बास एराक़ची को मुबारकबाद दी और ग़ज़ा में युद्ध विराम के संबंध में वार्ता की ताज़ा स्थिति और अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों में ज़ायोनी सरकार के अपराधों और मस्जिदुल अक़्सा की स्थिति को परिवर्तित करने हेतु ज़ायोनी सरकार के प्रयासों से अवगत कराया।
अलहय्या ने इसी प्रकार फ़िलिस्तीनी जनता के समर्थन में ईरान के पूर्व विदेशमंत्री शहीद हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान के प्रयासों की प्रशंसा की और बल देकर कहा कि फ़िलिस्तीनी लोग ज़ायोनी सरकार के अपराधों के मुक़ाबले में प्रतिरोध और फ़िलिस्तीनी आकांक्षाओं के प्रति ईरान के समर्थन के सदैव आभारी रहेंगे।
करबला करामाते इंसानी की मेराज
करबला के मैदान में दोस्ती, मेहमान नवाज़ी, इकराम व ऐहतेराम, मेहर व मुहब्बत, ईसार व फ़िदाकारी, ग़ैरत व शुजाअत व शहामत का जो दर्स हमें मिलता है वह इस तरह से यकजा कम देखने में आता है। मैंने ऊपर ज़िक किया कि करबला करामाते इंसानी की मेराज का नाम है।
वह तमाम सिफ़ात जिन का तज़किरा करबला में बतौरे अहसन व अतम हुआ है वह इंसानी ज़िन्दगी की बुनियादी और फ़ितरी सिफ़ात है जिन का हर इंसान में एक इंसान होने की हैसियत से पाया जाना ज़रुरी है। उसके मज़ाहिर करबला में जिस तरह से जलवा अफ़रोज़ होते हैं किसी जंग के मैदान में उस की नज़ीर मिलना मुहाल है। बस यही फ़र्क़ होता है हक़ व बातिल की जंग में।
जिस में हक़ का मक़सद, बातिल के मक़सद से सरासर मुख़्तलिफ़ होता है। अगर करबला हक़ व बातिल की जंग न होती तो आज चौदह सदियों के बाद उस का बाक़ी रह जाना एक ताज्जुब ख़ेज़ अम्र होता मगर यह हक़ का इम्तेयाज़ है और हक़ का मोजिज़ा है कि अगर करबला क़यामत तक भी बाक़ी रहे तो किसी भी अहले हक़ को हत्ता कि मुतदय्यिन इंसान को इस पर ताज्जुब नही होना चाहिये।
अगर करबला दो शाहज़ादों की जंग होती?। जैसा कि बाज़ हज़रात हक़ीक़ते दीन से ना आशना होने की बेना पर यह बात कहते हैं और जिन का मक़सद सादा लौह मुसलमानों को गुमराह करने के अलावा कुछ और होना बईद नज़र आता है तो वहाँ के नज़ारे क़तअन उस से मुख़्तलिफ़ होते जो कुछ करबला में वाक़े हुआ।
वहाँ शराब व शबाब, गै़र अख़लाक़ी व गै़र इंसानी महफ़िलें तो सज सकती थीं मगर वहाँ शब की तारीकी में ज़िक्रे इलाही की सदाओं का बुलंद होना क्या मायना रखता?
असहाब का आपस में एक दूसरों को हक़ और सब्र की तलक़ीन करना का क्या मफ़हूम हो सकता है?। माँओं का बच्चों को ख़िलाफ़े मामता जंग और ईसार के लिये तैयार करना किस जज़्बे के तहत मुमकिन हो सकता है?। क्या यह वही चीज़ नही है जिस के ऊपर इंसान अपनी जान, माल, इज़्ज़त, आबरू सब कुछ क़ुर्बान करने के लिये तैयार हो जाता है मगर उसके मिटने का तसव्वुर भी नही कर सकता।
यक़ीनन यह इंसान का दीन और मज़हब होता है जो उसे यह जुरअत और शुजाअत अता करता है कि वह बातिल की चट्टानों से टकराने में ख़ुद को आहनी महसूस करता है। उसके जज़्बे आँधियों का रुख़ मोड़ने की क़ुव्वत हासिल कर लेते हैं। उसके अज़्म व इरादे बुलंद से बुलंद और मज़बूत से मज़बूत क़िले मुसख़्ख़र कर सकते हैं।
यही वजह है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पाये सबात में लग़ज़िश का न होना तो समझ में आता है कि वह फ़रज़ंदे रसूल (स) हैं, इमामे मासूम (अ) हैं, मगर करबला के मैदान में असहाब व अंसार ने जिस सबात का मुज़ाहिरा किया है उस पर अक़्ल हैरान व परेशान रह जाती है।
अक़्ल उस का तजज़िया करने से क़ासिर रह जाती है। इस लिये कि तजज़िया व तहलील हमेशा ज़ाहिरी असबाब व अवामिल की बेना पर किये जाते हैं मगर इंसान अपनी ज़िन्दगी में बहुत से ऐसे अमल करता है जिसकी तहलील ज़ाहिरी असबाब से करना मुमकिन नही है और यही करबला में नज़र आता है।
हमारा सलाम हो हुसैने मज़लूम पर
हमारा सलाम हो बनी हाशिम पर
हमारा सलाम हो मुख़द्देराते इस्मत व तहारत पर
हमारा सलाम हो असहाब व अंसार पर।
या लैतनी कुन्तो मअकुम।