
رضوی
20 सफ़र करबला के शहीदो का चेहलुम
२० सफर सन् ६१ हिजरी कमरी, वह दिन है जिस दिन हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके वफादार साथियों को कर्बला में शहीद हुए चालिस दिन हुआ था। पूरी सृष्टि चालिस दिन से हज़रत इमाम हुसैन के शोक में डूबी हुई थी। जिन लोगों ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की सहायता करने की आवाज़ सुनी परंतु उनकी सहायता के लिए नहीं गये ऐसे लोगों को अपना वचन तोड़ने की पीड़ा चालिस दिनों से सता रही थी। चालिस दिन हो रहे थे जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के कारवां में जीवित बच जाने वाले बच्चों और महिलाओं का शोक उनके हृदयविदारक दुःख का परिचायक था।
चालिस दिन के बाद कर्बला का लुटा हुआ कारवां शाम अर्थात वर्तमान सीरिया से दोबारा कर्बला पहुंचा है। इस कारवां में वे महिलाएं और बच्चे थे जिनके दिल टूट हुए थे और उन्हें पवित्र नगर मदीना भी लौटना था। जब यह कारवां शाम अर्थात वर्तमान सीरिया से दोबारा कर्बला पहुंचा तो उसे दसवीं मोहर्रम के दिन की घटनाओं की याद आ गयी। महिलाओं और बच्चों की रोने की आवाज़ कर्बला के मरुस्थल में गूंजने लगी।
दसवीं मोहर्रम ही वह दुःखद दिन था जब हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके ७२ निष्ठावान साथियों को तीन दिन का भूखा- प्यासा शहीद कर दिया गया था। हर माता अपने शहीद की क़ब्र पर विलाप कर रही थी। हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के ज्येष्ठ सुपुत्र हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम शहीदों की क़ब्रों को देख रहे थे। उन्हें याद आया कि जब उनको इन शहीदों विशेषकर अपने पिता के घायल शरीर को कर्बला रेत पर छोड़कर जाना पड़ा था तो उनका मन किस सीमा तक दुःखी था परंतु उन्हें उनकी फूफी हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने सांत्वनापूर्ण वाक्यों से ढारस बंधाई थी और कहा था" जो कुछ तुम देख रहे हो उससे बेचैन मत हो।
ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) के मानने वालों के एक गुट से वचन लिया है कि वह बिखरे हुए और खून से लथपथ शरीर के अंगों को एकत्रित करेगा और दफ्न करेगा। वह गुट इस धरती पर तुम्हारे पिता की क़ब्र पर ऐसा चिन्ह लगा देगा जो समय बीतने के साथ न तो नष्ट होगा और न ही मिटेगा। अनेकेश्वरवादी और पथभ्रष्ठ लोग उसे मिटाने का प्रयास करेंगे परंतु उनका प्रयास तुम्हारे पिता की और प्रसिद्धि का कारण बनेगा"हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की भविष्यवाणी पूर्णरूप से सही थी। इतिहास में आया है कि कर्बला के अमर शहीदों के पवित्र शवों को बनी असद क़बीले के लोगों ने दफ्न किया। हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का शोकाकुल परिवार शहीदों के अन्य परिजनों के साथ तीन दिन तक कर्बला में रुका रहा और उसने अपने प्रियजनों का शोक मनाया
इतिहास में आया है कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के एक साथी जाबिर बिन अब्दुल्लाह, जो नेत्रहीन थे, बनी हाशिम के क़बीले के कुछ व्यक्तियों के साथ पवित्र मदीना नगर से कर्बला इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की पवित्र क़ब्र के दर्शन के लिए आये थे। उस समय जब इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने जाबिर को देखा तो कहा" हे जाबिर ईश्वर की सौगन्ध यहीं पर हमारे पुरुषों की हत्या की गई, हमारी महिलाओं को बंदी बनाया गया और हमारे ख़ैमों को जलाया गया"जाबिर ने अपने साथियों से कहा कि वे उन्हें हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की पवित्र क़ब्र के पास ले चलें। जाबिर ने अपने हाथ को हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की पवित्र क़ब्र पर रखा और इतना रोये कि बेहोश हो गये। जब होश आया तो उन्होंने कई बार हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का नाम अपनी ज़बान से लिया और उन्हें पुकार कर कहा" मैं गवाही देता हूं कि आप सर्वश्रेष्ठ पैग़म्बर और सबसे बड़े मोमिन के सुपुत्र हैं। आप सबसे बड़े सदाचारियों की गोदी में पले हैं। आपने पावन जीवन बिताया और इस दुनिया से पवित्र गये और मोमिनों के हृदयों को अपने वियोग से दुःखी व क्षुब्ध कर दिया तो आप पर ईश्वर का सलाम हो"हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह भी, जिनकी दुख में डूबी आवाज़ दिलों को रुला रही थी, अपने प्राणप्रिय भाई हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की क़ब्र के निकट बैठ गयीं और धीरे- धीरे अपने भाई से बात करना और विलाप करना आरंभ किया। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह का हृदय दुःखों से भरा हुआ था परंतु वे कर्बला के महाआंदोलन के बाद की अपनी ज़िम्मेदारियों के बारे में सोच रही थीं। कर्बला की अमर घटना को शताब्दियों का समय बीत चुका है परंतु यह घटना आज भी चमकते सूरज की भांति अत्याचार व अन्याय के विरुद्ध संघर्ष का मार्ग दिखाती है।
हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के महाआंदोलन के अमर होने का एक कारण उसकी पहचान व स्वरूप है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने महाआंदोलन के आरंभ से कुछ सिद्धांतों को प्रस्तुत किया जिसे हर पवित्र प्रवृत्ति स्वीकार करती और उसकी सराहना करती है। आज़ादी, न्यायप्रेम और अत्याचार से संघर्ष सदैव ही इतिहास में पवित्र सिद्धांत रहे हैं। हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के महाआंदोलन का लक्ष्य विशुद्ध इस्लाम को मिलावटी इस्लाम से अलग करना था। पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के पश्चात अधिकांश शासक इस्लामी शिक्षाओं को अपने हितों की दिशा में प्रयोग करने का प्रयास करते थे। वे खोखला और फेर बदल किया हुआ इस्लाम चाहते थे ताकि अनभिज्ञ लोगों पर सरलता से शासन कर सकें।
इसी कारण अमवी शासक और उनके बाद की अत्याचारी सरकारें अपनी इच्छा के अनुसार इस्लाम की व्याख्या और उसका प्रचार- प्रसार करती थीं। हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने लोगों को दिग्भ्रमित करने में बनी उमय्या की भूमिका का विश्लेषण करते हुए बड़े गूढ बिन्दु की ओर संकेत किया और कहा" बनी उमय्या ने लोगों के लिए ईमान की पहचान का मार्ग खुला रखा परंतु अनेकेश्वरवाद की पहचान का मार्ग बंद कर दिया। ऐसा इसलिए किया कि जब वह लोगों को अनेकेश्वरवाद के लिए बुलाए तो लोगों को अनेकेश्वरवाद की पहचान ही न रहे"बनी उमय्या ने नमाज़, रोज़ा और हज जैसे धार्मिक दायित्वों को खोखला करने का बहुत प्रयास किया ताकि लोग इन उपासनाओं के केवल बाह्यरूप पर ध्यान दें। क्योंकि यदि लोग इस्लाम की जीवन दायक शिक्षाओं से अवगत हो जाते तो बनी उमय्या के अत्याचारी शासक अपनी सरकार ही बाक़ी नहीं रख सकते थे। हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के अनुसार सत्ता उच्च मानवीय लक्ष्यों को व्यवहारिक बनाने का साधन है।
इस आधार पर आप बल देकर कहते हैं कि मैंने सत्ता की प्राप्ति के लिए नहीं बल्कि ईश्वरीय धर्म के चिन्हों को पहचनवाने के लिए आंदोलन किया। उस अज्ञानता व घुटन के काल में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ज़िम्मेदारी यह थी कि वे अमवी शासकों की वास्तविकताओं को स्पष्ट करें और इस्लामी क्षेत्रों को इस प्रकार के अयोग्य, और भ्रष्ठ शासकों व लोगों से मुक्ति दिलायें। हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का मानना था कि समाज की गुमराही, धार्मिक शिक्षाओं से दूरी का परिणाम है। क्योंकि महान ईश्वर से दूरी मनुष्य को ऐसी घाटी में पहुंचा देती है जहां वह स्वयं से बेगाना हो जाता है। यह वह वास्तविकता है जो हर समय और हर क्षेत्र में जारी है। जिस समय लोग अत्याचारी व भ्रष्ठ शासकों का अनुसरण आरंभ कर देंगे उस समय समाज अपने स्वाभाविक व प्राकृतिक मार्ग से हट जायेगा।
हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम जैसे महान व्यक्ति इस बात को नहीं देख सकते थे कि ग़लत लोग, लोगों को ईश्वर के अतिरिक्त किसी और की दासता स्वीकार करने पर बाध्य करें। जब इस्लाम प्रतिष्ठा, स्वतंत्रता और न्याय का धर्म है तो वह किस प्रकार मनुष्यों के अपमान व दासता को स्वीकार करे और अत्याचार के मुक़ाबले में मौन धारण करे? हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने दर्शा दिया कि जहां पर धर्म का आधार ख़तरे में है, जहां अत्याचार से सांठ- गांठ कर लेना मानवता एवं उच्च मानवीय मूल्यों की हत्या समान है वहां मौन धारण करना ईश्वरीय व्यक्तियों की शैली नहीं है।
हज़रत इमाम हुसैन के महाआंदोलन के अमर होने का एक कारण हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम, जनाब ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा और दूसरे इमामों तथा महान हस्तियों की दूरगामी सोच एवं इस महाआंदोलन के लक्ष्यों को पहचनवाने हेतु उनके प्रयास हैं। बनी उमय्या ने अफवाहें फैलाकर, संदेह उत्पन्न करके और दुष्प्रचार के दूसरे मार्गों का प्रयोग करके वास्तविकता को छिपाने का प्रयास किया और कर्बला की एतिहासिक घटना में असमंजस व संदेह उत्पन्न करने का प्रयास किया परंतु उन सबका प्रयास कर्बला की एतिहासिक घटना के पहले दिन से ही परिणामहीन रहा। क्योंकि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के महाआंदोलन का संदेश पहुंचाने वाले विवेकशील और समय की पूर्ण पहचान रखने वाले लोग थे। हज़रत इमाम ज़ैनुल आबदीन अलैहिस्सलाम और हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के विभिन्न स्थानों पर दिये जाने वाले एतिहासिक भाषणों ने यज़ीदियों के चेहरों पर पड़ी नक़ाब को हटा दिया और उन्हें बुरी तरह अपमानित कर दिया।
इतिहासकारों ने लिखा है कि हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह की आवाज़ का प्रभाव ऐसा था कि सांस सीनों में रूक जाती थी। उनके भाषण की शैली ऐसी थी कि कूफा नगर के बड़े- बूढे कहते थे कि धन्य है ईश्वर! मानो अली की आवाज़ है जो उनकी बेटी ज़ैनब के गले से निकल रही है। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने कूफावासियों को संबोधित करते हुए कहा" ईश्वर का आभार व्यक्त करती हूं और अपने नाना मोहम्मद, चयनित और पवित्र लोगों पर सलाम भेजती हूं। हे कूफे के लोगों! हे धोखेबाज़ो और बेवफा लोग तुम लोग उस महिला की भांति हो जो रूई से धागा बुनती है और फिर धागे को रूई बना देती है। तुमने अपने ईमान को अपने जीवन और पाखंड का साधन बना रखा है और तुम्हारी दृष्टि में उसका कोई मूल्य नहीं है। तुम्हारे अंदर आत्ममुग्धता, झूठ, अकारण शत्रुता, तुच्छता और दूसरों पर आरोप लगाने के अतिरिक्त कुछ नहीं है। तुम किस तरह अंतिम पैग़म्बर के पौत्र और स्वर्ग के युवाओं के सरदार की हत्या के कलंक को स्वयं से मिटाओगे। तुम लोगों ने उसकी हत्या की है जो उन लोगों के लिए शरण था जिनके पास कोई शरण नहीं थी, वह परेशान लोगों का सहारा और धर्म व ज्ञान का स्रोत था।
हुसैन मानवता का सत्य की ओर मार्गदर्शन करने वाले, राष्ट्र व समुदाय के अगुवा और ईश्वर के प्रतिनिधि थे। उनके माध्यम से तुम्हारा मार्गदर्शन होता था। उनकी छत्रछाया में तुम्हें कठिनाइयों में आराम मिलता था और उनके प्रकाश से तुम्हें गुमराही से मुक्ति मिलती थी। जान लो कि तुमने बहुत बुरा पाप किया है जिसके कारण तुम ईश्वर की दया से दूर हो गये हो। तुम्हारा प्रयास विफल हो गया है। ईश्वर के दरबार से तुम्हारा संपर्क टूट गया है और तुमने अपने सौदे में घाटा उठाया है। तुम्हारे पास अब पछताने और हाथ मलने के अतिरिक्त कुछ नहीं है, तुम ईश्वरीय क्रोध के पात्र बन गये हो और तुम्हें अपमान का सामना है" हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के स्पष्ट करने वाले भाषणों के साथ हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा का जागरुक भरा भाषण बनी उमय्या के लक्ष्यों के मार्ग की बाधा बन गया।
पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की होशियारी व जानकारी ने आशूरा की एतिहासिक घटना को इतिहास की अमर घटना के रूप में सुरक्षित रखा। पैग़म्बरे इस्लाम के वंश से पवित्र इमामों ने शत्रुओं के प्रचारों और वास्तविकताओं में फेर -बदल करने हेतु उनके प्रयासों को रोकने और हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के महाआंदोलन को अनुचित दर्शाने हेतु शत्रुओं के प्रयासों को विफल बनाने के लिए इस महाआंदोलन के लक्ष्यों को बयान किया। इमामत का महत्व और उसके स्थान को बयान करना तथा समाज में योग्य व भला नेतृत्व, बनी उमय्या के वास्तविक चेहरों को पहचनवाना और उनके अपराधों को स्पष्ट करना इमामों का ईश्वरीय दायित्व था। कर्बला की हृदयविदारक घटना और शहीदों की याद में शोक सभाओं का आयोजन, हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके निष्ठावान साथियों पर पड़ने वाली विपत्तियों पर रोना भी प्रभावी शैली थी जिसका पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों ने सहारा लिया ताकि कर्बला की अमर व एतिहासिक घटना को फेर- बदल एवं भूलाये जाने से सुरक्षित रखा जा सके।
इस आधार पर कर्बला का महाआंदलन इस्लामी जगत की भौगोलिक सीमा में सीमित नहीं रहा और वह विश्व के स्वतंत्रता प्रेमियों के लिए आदर्श पाठ बन गया। इस प्रकार से कि ग़ैर मुसलमानों ने भी इस महाआंदोल से प्रेरणा ली है। यह वही पैग़म्बरे इस्लाम के वचन का व्यवहारिक होना है जिसमें आपने कहा है कि हुसैन की शहादत के बाद मोमिनों के हृदयों में एक आग जल उठेगी जो कदापि ठंडी नहीं होगी और न बुझेगी"
आज दुनिया में हुसैनी मोर्चा और यज़ीदी मोर्चा, आमने-सामने हैं
तेहरान में स्थित इमाम ख़ुमैनी हुसैनिए में सुप्रीम लीडर की उपस्थिति में इमाम हुसैन (अ) के अरबईन के अवसर एक मजलिस का आयोजन किया गया।
इस मजसिल में धर्मगुरु असलानी ने मजलिस पढ़ी और नौहाख़ानों ने इमाम हुसैन की शहादत में नौहा ख़ानी की। मजलिस के अंत में सुप्रीम लीडर की इमामत में ज़ोहर और अस्र की नमाज़ अदा की गई।
दो नमाज़ों के बीच, सुप्रीम लीडर ने ज़ियारते आशूरा का ज़िक्र करते हुए कहा कि हुसैनी और यज़ीदी मोर्चे में जंग लगातार जारी है और यह कभी ख़त्म नहीं होगी। उन्होंने कहाः
ईरान की इस्लामी क्रांति ने जवानों को अवसर प्रदान किया है और उनके लिए एक विशाल मैदान उपलब्ध करवाया है, क्रांति के उद्देश्य की प्राप्ति के मद्देनज़र, उन्हें अपनी ज़िम्मेदारी को सही से समझते हुए और योजना के अनुसार इस अवसर से लाभ उठाया चाहिए, ताकि प्रगति, समृद्धि और कल्याण प्राप्त हो सके।
सुप्रीम लीडर का कहना था कि इमाम हुसैन ने ज़ुल्म और अत्याचार से मुक़ाबले के लिए आंदोलन किया था। उन्होंने कहाः
ज़ुल्म और क्रूरता से मुक़ाबले के लिए हुसैनी मोर्चे की शैली, परिस्थितियों के अनुसार, भिन्न होती है। तलवार और भाले के दौर में यह मुक़ाबला अलग प्रकार का होता है और परमाणु और एआई के ज़माने में एक दूसरी तरह से, प्रचार के ज़माने में शायरी, क़सीदा और हदीस की एक ख़ास शैली थी, लेकिन इंटरनेट और क्वैंटम के दौर में शैली को बदलना पड़ेगा।
उन्होंने कहा कि शिक्षा ग्रहण करने के दौरान, यह ज़िम्मेदारी अलग तरह की होती है और पद ग्रहण करने के दौरान दूसरी तरह से। उन्होंने कहाः
यज़ीदी मोर्चे से मुक़ाबले का मतलब, हमेशा बंदूक़ उठाना नहीं है, बल्कि सही सोचना चाहिए, सही बात करना चाहिए, सही पहचान करनी चाहिए और ज़िम्मदारी को पहचान कर लक्ष्य पर सटीक निशाना लगाना चाहिए।
सुप्रीम लीडर ने आगे कहाः जवानों को वर्तमान दौर की क़द्र करनी चाहिए, क्योंकि इस दौर में इस्लामी क्रांति की बरकत से उनके लिए विशाल मैदान उपलब्थ हुआ है। योजनाबद्ध, अध्ययन और सही सोच के साथ सही अवसर पर क़दम उठाना चाहिए और सही सोच के लिए क़ुरान का ज्ञान होना ज़रूरी है।
सप्रीम लीडर ने आगे कहाः सही समय पर पहल के लिए सही समय कभी यूनिवर्सिटी का माहौल होता है, तो कभी समाज या राजनीति, और कभी-कभी कर्बला और फ़िलिस्तीन के रास्ते में यह पहल एक उच्च उद्देश्य को हासिल करने के लिए की जाती है।
आख़िर में उन्होंने कहाः युवाओं द्वारा इस ऐतिहासिक अवसर के उपयोग का मतलब, समृद्धि और कल्याण है और अगर इस अवसर का उपयोग नहीं किया जाए और ज़िम्मेदारी को पूरा नहीं किया जाता है, तो उसका परिणाम नुक़सान और घाटा उठाना होगा।
इंडोनेशिया और अन्य देशों में इस्राईली प्रोडक्ट्स के बायकॉट से ज़ायोनी कंपनियों को करोड़ो डॉलर का नुक़सान
इंडोनेशियाई लोगों ने फ़िलिस्तीनियों के समर्थन में इस्राईली प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल बंद कर दिया है, जिससे इस्राईली और ज़ायोनी कंपनियों को करोड़ो डॉलर का नुक़सान उठाना पड़ रहा है।
ग़ौरतलब है कि सिर्फ़ पिछले 4 महीनों के दौरान, अमरीकी फ़ास्ट फ़ूड चेन रोस्टोरैंट केएफ़सी को 21.5 मिलियन डॉलर का नुक़सान भुगतना पड़ा है। इंडोनेशियाई नागरिकों के बायकॉट के कारण, 2023 के पहले चार महीनों की तुलना में केएफ़सी की आय 2024 की इसी अवधि में 60 फ़ीसद कम हो गई है।
इंडोनेशिया एक ऐसा देश है, जहां मुसलमानों की आबादी सबसे ज़्यादा है। ग़ज़ा में इस्राईल के युद्ध अपराधों और अमानवीय हमलों के विरोध में यहां लोगों ने जिन अन्य कंपनियों के प्रोडक्ट्स का बायकॉट किया है, उनमें मैकडॉनल्ड्स और प्यूमा भी शामिल हैं।
इंडोनेशिया उन 5 मुख्य देशों में से एक है, जहां ज़ायोनी शासन से संबंधित कंपनियों के उत्पादों का बायकॉट किया जा रहा है।
फ्रांस, सऊदी अरब, इंग्लैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित दुनिया के 15 देशों के 15,000 लोगों के बीच किए गए सर्वेक्षण से पता चलता है कि कम से कम तीन में से एक व्यक्ति ने इस्राईल का समर्थन करने वाली या उससे संबंधित कंपनियों के ब्रांडों और उत्पादों का बहिष्कार किया है।
इस सर्वे के मुताबिक़, जिन 5 देशों में लोग इस्राईली उत्पादों का बहिष्कार कर रहे हैं, उनमें तीन मुस्लिम देश सऊदी अरब, यूएई और इंडोनेशिया शामिल हैं।
सऊदी अरब में आम नागरिक इस्राईली उत्पादों का बहिष्कार कर रहे हैं, लेकिन आले सऊद शासन ज़ायोनी शासन के साथ अपने संबंधों को सामान्य बनाने की कोशिशें कर रहा है। इस देश के 71 फ़सीद नागरिकों का कहना है कि उन्होंने इस्राईली उत्पादों का इस्तेमाल बंद कर दिया है।
दिसंबर में वाशिंगटन इंस्टीट्यूट द्वारा किए गए एक सर्वे में 96 प्रतिशत सउदी नागरिकों का मानना था कि ग़ज़ा में भयानक युद्ध अपराधों के कारण, अरब देशों को ज़ायोनी शासन से संबंध तोड़ लेने चाहिए। यूएई में 57 फ़ीसद लोगों ने कहा है कि उन्होंने इस्राईली उत्पादों को ब्लैकलिस्ट कर दिया है।
विश्व स्तर पर औसतन 37 फ़ीसदी लोगों ने ज़ायोनी शासन से संबंधित उत्पादों का बहिष्कार किया है। अरब और मुस्लिम देशों में यह आंकड़ा, वैश्विक औसत से अधिक है।
मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीक़ा में बायकॉट के कारण मार्च में स्टारबक्स को अपने 2,000 कर्मचारियों को नौकरी से निकालने के लिए मजबूर होना पड़ा था।
मैकडॉनल्ड्स का कहना है कि मलेशिया और इंडोनेशिया सहित मुस्लिम देशों के साथ-साथ मध्य पूर्व उसके उत्पादों की बिक्री में भारी गिरावट आई है।
इस्राईल और अमरीका से संबंधित उत्पादों के बहिष्कार के कारण, इन देशों में घरेलू उत्पादों की बिक्री में वृद्धि हुई है।
ओमान में बड़ी संख्या में लोगों ने ज़ायोनी शासन से संबंधित कंपनियों की सॉफ़्ट ड्रिंक्स ख़रीदना बंद दिया है।
पाकिस्तान में भी बड़े पैमाने पर इस्राईली उत्पादों का बहिष्कार किया जा रहा है और यहां घरेलू कंपनियों ने वैकल्पिक उत्पाद बनाना शुरू कर दिए हैं।
इमाम ख़ुमैनी इमाम बारगाह में ज़ियारते अरबईन और चेहलुम इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चेहलुम के मौक़े पर स्टुडेंट अंजुमनों ने इमाम ख़ुमैनी इमाम बारगाह में अज़ादारी की। इस प्रोग्राम के आग़ाज़ में ज़ियारते अरबईन पढ़ी गई। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की अज़ादारी के प्रोग्राम में रहबरे इंक़ेलाब आयतुल्लाह ख़ामेनेई भी शरीक हुए।
इस्राईली समाज में फ़िलिस्तीनी क़ैदियों के सामूहिक बलात्कार का समर्थन
इस्राईलियों का मानना है कि निरंतर युद्ध में अपने बचाव के लिए हर हथकंडा अपनाया जा सकता है, चाहे वह अमानवीय ही क्यों न हो।
इस्राईली जेलों में फ़िलिस्तीनी क़ैदियों के बलात्कार की भयानक घटना के नैतिक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं का विश्लेषण करके आप ज़ायोनियों के वैचारिक आयामों और शैक्षिक प्रणाली की हक़ीक़त को भी समझ सकते हैं। इसलिए इस अपराध की समीक्षा का विशेष महत्व है। पार्सटुडे इस नोट में इस मुद्दे पर संक्षिप्त नज़र डालने की कोशिश की गई है।
इस्राईली जेलों में फ़िलिस्तीनी क़ैदियों के यौन शोषण और सामूहिक बलात्कार की जारी होने वाली वीडियो फ़ुटेज पर दुनिया भर में कड़ी प्रतिक्रिया जताई गई। हालांकि इस घटना ने सभी को झकझोर कर रख दिया, लेकिन हैरत की बात यह है कि इस्राईली समाज का एक वर्ग इसके बचाव में आगे आया।
फ़िलिस्तीनी क़ैदियों के यौन शोषण और सामूहिक बलात्कार की वीडियो वायरल होने के बाद, जब दस इस्राईली सैनिकों को गिरफ़्तार किया गया, तो कट्टर दक्षिणपंथी ज़ायोनी उनके बचाव में निकल पड़े और उन्होंने उग्र प्रदर्शन भी किया।
ज़ायोनी सुरक्षा मंत्री इतामर बेन गोयर ने इस संदर्भ में कहाः सुरक्षा के लिए सामूहिक बलात्कार सही है।
इस्राईल के वित्त मंत्री स्मोत्रिच ने भी इस घटना की निंदा करने के बजाए, इस वीडियो के प्रकाशन होने पर ग़ुस्सा उतारा और वीडियो प्रकाशित करने वाले की शनाख़्त के लिए जांच की मांग की।
इस सोच को इस्राईली समाज के हाशिए के कुछ दक्षिणपंथियों तक सीमित नहीं किया जा सकता है, बल्कि इससे इस्राईली समाज में नैतिक व्यवस्था का पता चलता है। ज़ायोनी शासन ने दशकों से समाज में व्यवस्थित तरीक़े से फ़िलिस्तीनियों को जानवरों की तरह पेश किया है। यह सब इसलिए किया गया ताकि फ़िलिस्तीनियों को इंसानी दर्जे से गिराकर, उनके साथ हर तरह का सुलूक किया जा सके।
दूसरे शब्दों में फ़िलिस्तीनियों को इंसानों की तरह दिखने वाले जानवर बनाकर पेश किया गया है। बिल्कुल उसी तरह जैसा कि उपनिवेशवाद विरोधी दार्शनिक फ्रांसिस फ़ैनन ने इस उपनिवेशवादी प्रक्रिया का वर्णन किया है।
इस तरह, इस्राईली समाज में फ़िलिस्तीनियों को नैतिक रूप से कमज़ोर और व्यर्थ जीव के तौर पर देखा जाता है। परिणामस्वरूप उनके खिलाफ़ हिंसा और आक्रामकता को न केवल अनैतिक नहीं माना जाता है, बल्कि कुछ मामलों में नैतिक कार्यवाही के रूप में उचित ठहराया जाता है। इन अत्याचारों को अंजाम देने वाले इस्राईली सैनिक, अपनी नैतिक श्रेष्ठता और दूसरे पक्ष की अमानवीयता में विश्वास के कारण, अपराध बोध या किसी तरह का कोई दोष महसूस नहीं करते हैं। इसके अलावा, उन्हें समाज के एक बड़े वर्गों का समर्थन भी प्राप्त है।
दूसरी ओर, इस्राईली मीडिया युद्ध क्षेत्रों से फ़िलिस्तीनी नागरिकों को निकालने का आदेश जैसे हिटलरी फ़रमानों को इस्राईली सेना की नैतिकता के प्रमाण के रूप में पेश करती है। हालांकि वास्तविकता यह है कि इन नागरिकों को एक छोटे से क्षेत्र में सीमित करके वहां उन्हें निशाना बनाया जाता है।
इसके अलावा, नस्लवादी दृष्टिकोण से यह विश्वास कि इस्राईल को मध्यपूर्व की बर्बरता के ख़िलाफ़ पश्चिमी सभ्यता के प्रतिनिधि के रूप में लड़ना चाहिए, फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ ज़ायोनियों की बर्बरता के लिए एक और औचित्य प्रदान करता है।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि यह ज़ायोनी शासन दुनिया पर एक बदनुमा धब्बा है और यह मानवता के लिए नैतिक पतन के अलावा कुछ नहीं है। जो समाज सामूहिक बलात्कार जैसे भयानक कृत्यों को उचित ठहरा सकता है, उसके पतन की कोई सीमा नहीं हो सकती। नस्लीय श्रेष्ठता में दृढ़ विश्वास से लैस नैतिक पतन से अधिक ख़तरनाक कुछ भी नहीं है।
इस्लाम ज़िन्दा होता है हर कर्बला के बाद
कत्ले हुसैन असल में मर्गे यज़ीद है,
इस्लाम ज़िन्दा होता है हर कर्बला के बाद...
इस्लामी कैलेंडर यानि हिजरी सन् का पहला महीना मुहर्रम है. हिजरी सन् का आगाज़ इसी महीने से होता है। इस माह को इस्लाम के चार पवित्र महीनों में शुमार किया जाता है. अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने इस माह को अल्लाह का महीना कहा है. साथ ही इस माह में रोज़ा रखने की खास अहमियत बयान की गई है. 10 मुहर्रम को यौमे आशूरा कहा जाता है. इस दिन अल्लाह के नबी हज़रत नूह (अ.) की किश्ती को किनारा मिला था.
कर्बला के इतिहास मुताबिक़ सन 60 हिजरी को यजीद इस्लाम धर्म का खलीफा बन बैठा. सन् 61 हिजरी से उसके जनता पर उसके ज़ुल्म बढ़ने लगे. उसने हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के नवासे हज़रत इमाम हुसैन से अपने कुशासन के लिए समर्थन मांगा और जब हज़रत इमाम हुसैन ने इससे इनकार कर दिया तो उसने इमाम हुसैन को क़त्ल करने का फ़रमान जारी कर दिया. इमाम हुसैन मदीना से सपरिवार कुफा के लिए निकल पडे़, जिनमें उनके खानदान के 123 सदस्य यानी 72 मर्द-औरतें और 51 बच्चे शामिल थे. यज़ीद सेना (40,000 ) ने उन्हें कर्बला के मैदान में ही रोक लिया. सेनापति ने उन्हें यज़ीद की बात मानने के लिए उन पर दबाव बनाया, लेकिन उन्होंने अत्याचारी यज़ीद का समर्थन करने से साफ़ इनकार कर दिया. हज़रत इमाम हुसैन सत्य और अहिंसा के पक्षधर थे. हज़रत इमाम हुसैन ने इस्लाम धर्म के उसूल, न्याय, धर्म, सत्य, अहिंसा, सदाचार और ईश्वर के प्रति अटूट आस्था को अपने जीवन का आदर्श माना था और वे उन्हीं आदर्शों के मुताबिक़ अपनी ज़िन्दगी गुज़ार थे. यज़ीद ने हज़रत इमाम हुसैन और उनके खानदान के लोगों को तीन दिनों तक भूखा- प्यास रखने के बाद अपनी फौज से शहीद करा दिया. इमाम हुसैन और कर्बला के शहीदों की तादाद 72 थी.
पूरी दुनिया में कर्बला के इन्हीं शहीदों की याद में मुहर्रम मनाया जाता है. मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है। 10 मुहर्रम को यौमे आशूरा कहा जाता है। उसके बाद से यह दिन कर्बला के शहीदों की यादगार मनाने का दिन बन गया और इसी शोक पर्व को भारत में मुहर्रम के नाम से जाना जाता है. इस दिन भारत के अधिकतर शहरों में ताज़िये का जुलूस निकलता है. ताजिया हज़रत इमाम हुसैन के कर्बला (इराक की राजधानी बगदाद से 100 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में एक छोटा-सा कस्बा) स्थित रौज़े जैसा होता है. लोग अपनी अपनी आस्था और हैसियत के हिसाब से ताज़िये बनाते हैं और उसे कर्बला नामक स्थान पर ले जाते हैं. जुलूस में शिया मुसलमान काले कपडे़ पहनते हैं, नंगे पैर चलते हैं और अपने सीने पर हाथ मारते हैं, जिसे मातम कहा जाता है. मातम के साथ वे हाय हुसैन की सदा लगाते हैं और साथ ही कुछ नौहा (शोक गीत) भी पढ़ते हैं. पहले ताज़िये के साथ अलम भी होता है, जिसे हज़रत इमाम हुसैन के छोटे भाई हज़रत अब्बास की याद में निकाला जाता है.
मुहर्रम का महीना शुरू होते ही मजलिसों (शोक सभाओं) का सिलसिला शुरू हो जाता है. इमामबाड़ा सजाया जाता है. मुहर्रम के दिन जगह- जगह पानी के प्याऊ और शरबत की शबील लगाई जाती है. भारत में ताज़िये के जुलूस में शिया मुसलमानों के अलावा दूसरे मज़हबों के लोग भी शामिल होते हैं.
विभिन्न हदीसों, यानी हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के कथन व अमल (कर्म) से मुहर्रम की पवित्रता और इसकी अहमियत का पता चलता है. ऐसे ही हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने एक बार मुहर्रम का ज़िक्र करते हुए इसे अल्लाह का महीना कहा है. इसे जिन चार पवित्र महीनों में से एक माना जाता है.
एक हदीस के मुताबिक़ अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने फ़रमाया कि रमज़ान के अलावा सबसे उत्तम रोज़े (व्रत) वे हैं, जो अल्लाह के महीने यानी मुहर्रम में रखे जाते हैं. यह फ़रमाते वक़्त नबी-ए-करीम हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने एक बात और जोड़ी कि जिस तरह अनिवार्य नमाज़ों के बाद सबसे अहम नमाज़ तहज्जुद की है, उसी तरह रमज़ान के रोज़ों के बाद सबसे उत्तम रोज़े मुहर्रम के हैं.
मुहर्रम की 9 तारीख को जाने वाली इबादत का भी बहुत सवाब बताया गया है. सहाबी इब्ने अब्बास के मुताबिक़ हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने फ़रमाया कि जिसने मुहर्रम की 9 तारीख का रोज़ा रखा, उसके दो साल के गुनाह माफ़ हो जाते हैं और मुहर्रम के एक रोज़े का सवाब 30 रोज़ों के बराबर मिलता है.
मुहर्रम हमें सच्चाई, नेकी और ईमानदारी के रास्ते पर चलने की प्रेरणा देता है.
विश्वासी अल्लाह की ओर मुड़ते हैं
इस आयत का निष्कर्ष है कि अल्लाह की दया के दरवाजे हमेशा खुले हैं और जो लोग ईमानदारी से अल्लाह की ओर रुख करते हैं, अल्लाह उनके पापों को माफ कर देता है और उनके बुरे कर्मों को दूर कर देता है। यह आयत विश्वासियों को अल्लाह के निमंत्रण को स्वीकार करने और उसकी क्षमा के लिए प्रार्थना करने के लिए प्रोत्साहित करती है ताकि वे धर्मी लोगों के साथ समाप्त हो सकें।
بسم الله الرحـــمن الرحــــیم बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम
رَبَّنَاۤ اِنَّنَا سَمِعْنَا مُنَادِيًا یُّنَادِیْ لِلْاِیْمَانِ اَنْ اٰمِنُوْا بِرَبِّكُمْ فَاٰمَنَّاۚ رَبَّنَا فَاغْفِرْ لَنَا ذُنُوْبَنَا وَ كَفِّرْ عَنَّا سَیِّاٰتِنَا وَ تَوَفَّنَا مَعَ الْاَبْرَارِ रब्बना इन्नना समेअना मनुदेयन लिल ईमाने अन आमेनू बेरब्बेकुम फ़अमन्ना रब्बाना फ़ग़फ़िर लना ज़ोनूबना व कफ़्फ़िर अन्ना सय्येआतेना व तवफ़्फ़ना मआल अबरारे (आले-इमरान, 193)
अनुवाद: हे प्रभु, हमने एक पुकारने वाले की आवाज़ सुनी जो विश्वास करने के लिए कह रहा था, "अपने भगवान पर विश्वास करो, इसलिए हम विश्वास करते हैं।" भगवान! अब हमारे पापों को क्षमा कर, हमारे बुरे कामों को हम से दूर कर, और हमें धर्मियों के साथ मरने दे।
विषय:
इस आयत का विषय विश्वासियों का अल्लाह की ओर मुड़ना, पश्चाताप और क्षमा के लिए प्रार्थना है।
पृष्ठभूमि:
यह आयत सूरह अल-इमरान में उस बिंदु पर प्रकट हुई थी जहां अल्लाह विश्वासियों के गुणों और उनकी प्रार्थनाओं का उल्लेख करता है। पिछली आयतों में, अल्लाह ने स्वर्ग का वादा किया और फिर उन लोगों का उल्लेख किया जो अल्लाह की ओर मुड़ते हैं और अपने उद्धार के लिए प्रार्थना करते हैं। इस आयत में, विश्वासी अल्लाह से उनकी प्रार्थना में अल्लाह के पैगंबर के निमंत्रण को स्वीकार करने और उनके पापों को माफ करने के लिए कह रहे हैं।
तफसीर:
कविता "रब्बाना" से शुरू होती है, जिसके साथ विश्वासी अल्लाह को बुलाते हैं और विनम्र तरीके से अपनी प्रार्थना करते हैं। वे कबूल करते हैं कि उन्होंने ईश्वर के पैगंबर की पुकार सुनी और उस पर विश्वास किया। फिर वे अल्लाह से अपने पापों की क्षमा और बुरे कर्मों को दूर करने की प्रार्थना करते हैं, ताकि उनका अंत नेक लोगों में हो।
यह आयत उन लोगों के लिए एक सबक है जो अल्लाह की ओर मुड़ते हैं और उसकी दया चाहते हैं। यह कविता विश्वास, पश्चाताप और क्षमा के महत्व पर प्रकाश डालती है।
परिणाम:
इस आयत का निष्कर्ष यह है कि अल्लाह की रहमत के दरवाजे हमेशा खुले हैं और जो लोग ईमानदारी से अल्लाह की ओर रुख करते हैं, अल्लाह उनके पापों को माफ कर देता है और उनके बुरे कर्मों को दूर कर देता है। यह आयत विश्वासियों को अल्लाह के निमंत्रण को स्वीकार करने और उसकी क्षमा के लिए प्रार्थना करने के लिए प्रोत्साहित करती है ताकि वे नेक लोगों के साथ समाप्त हो जाएं।
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तफ़सीर राहनुमा, सूर ए आले-इमरान
हिज़्बुल्लाह के ताबड़तोड़ हमले, इस्राईल में एयरपोर्ट बंद और आपातकाल की घोषणा
हिज़्बुल्लाह ने अपने सीनियर कमांडर शहीद फ़ुवाद शुक्र की शहादत का इंतक़ाम लेने के लिए इस्राईली सैन्य ठिकानों पर ड्रोन और मिसाइल बरसाए हैं।
रविवार को एक बयान में हिज़्बुल्लाह ने कहाः सीनियर कमांडर शहीद फ़ुवाद शुक्र की शहादत का बदला लेने के लिए की गई कार्यवाही का पहला चरण सफलता से पूरा कर लिया गया है। इस चरण में इस्राईल के सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया गया है।
बयान में कहा गया हैः
शहीदों के सरदार और बलिदान के प्रतीक इमाम हुसैन (अ) के चेहलुम के अवसर पर दक्षिण बेरूत में महान कमांडर फ़ुवाद शुक्र को शहीद करने के अपराध की सज़ा देने के लिए ज़ायोनी शासन के ख़िलाफ़ प्रारम्भिक कार्यवाही की गई है। इस कार्यवाही में प्रतिरोधी लड़ाकों ने ड्रोन से इस्राईल के काफ़ी भीतर तक हमला किया और इस्राईली सेना की एक महत्वपूर्ण ठिकाने को निशाना बनाया, जिसके बारे में विस्तृत जानकारी बाद में सार्वजनिक की जाएगी। साथ ही इस्लामी प्रतिरोधी लड़ाकों ने उत्तरी अवैध क़ब्ज़े वाले इलाक़ों में कई सैन्य बैरिकों और आयरन डोम पर बड़ी संख्या में मिसाइल दाग़े हैं।
हिज़्बुल्लाह ने अपने बयान में यह भी स्पष्ट कर दिया है कि यह कार्यवाही लम्बी चल सकती है और इस्लामी प्रतिरोध इसके लिए पूरी तरह से तैयार है।
हिज़्बुल्लाह का यह भी कहना था कि इस्राईली सेना की हर हरकत पर नज़र है, अगर आम नागरिकों को नुक़सान पहुंचाया गया, तो उसे इसकी कड़ी से कड़ी सज़ा दी जाएगी।
इस्राईल के 11 सैन्य ठिकानों पर 320 मिसाइलों से हमला
हिज्बुल्लाह का कहना है कि मेरून सैन्य छावनी समेत इस्राईली सेना के 11 अड्डों और वायु रक्षा प्रणालियों के प्लेफ़ार्मों को 320 मिसाइलों से निशाना बनाया गया है।
हिज़्बुल्लाह का सफल ऑप्रेशन
हिज़्बुल्लाह ने इस्राईल के ख़िलाफ़ अपने ऑप्रेशन को कामयाब बताया है। इस्लामी प्रतिरोध ने कहा है कि सभी ड्रोन निर्धारित समय और मार्गों से अपने लक्ष्यों पर जाकर लगे। अलमयादीन टीवी चैनल के साथ बातचीत में हिज़्बुल्लाह के अधिकारी ने कहाः शहीद फ़ुवाद शुक्र की हत्या का इंतक़ाम सफलतापूर्वक लिया गया है।
बेन गुरियन एयरपोर्ट बंद
हिज़्बुल्लाह की जवाबी कार्यवाही की वजह से ज़ायोनी शासन ने कम से कम अगले 48 घंटों के लिए क़ब्जे वाले इलाक़ों में आपातकाल की स्थिति घोषित कर दी है। इसी के साथ बेन गुरियन हवाई अड्डा भी बंद कर दिया गया है।
इस्राईली कैबिनेट में मतभेद
हिज़्बुल्लाह के ऑप्रेशन के बाद, ज़ायोनी मीडिया ने ज़ायोनी नेताओं के बीच मतभेद बढ़ने की सूचना दी देते हुए बताया है कि नेतनयाहू ने अपने मंत्रियों को मीडिया से बात करने के लिए रोक दिया है। रिपोर्टों में उल्लेख किया गया है कि कैबिनेट और लिकुड पार्टी में असहमति बढ़ गई है। नेतनयाहू कैबिनेट में इस बात को लेकर मतभेद बढ़ गया है कि लेबनान के ख़िलाफ़ युद्ध का एलान किया जाए या नहीं।
ज़ायोनी सेना के एक पूर्व जनरल का कहना है कि इस्राईली सेना के वरिष्ठ कमांडरों ने चीफ़ ऑफ स्टाफ़ पर अपना भरोसा खो दिया है, जिन्हें इतिहास के कूड़ेदान में फेंक दिया जाना चाहिए।
तेल अवीव में 240 बंकरों का उद्घाटन
हिज़्बुल्लाह के हमले के बाद ज़ायोनी अख़बार हारेत्ज़ ने तेल-अवीव के मेयर के हवाले से कहा कि ज़ायोनियों को आश्रय देने के लिए 240 बंकर तैयार किए गए हैं।
इस बीच, ज़ायोनी शासन के प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतनयाहू ने दावा किया है कि इस्राईली सेना ने उत्तरी इलाक़ों की ओर लॉन्च किए गए सैकड़ों रॉकेटों को नष्ट कर दिया है।
हालांकि ज़ायोनी शासन की मीडिया ने हिज़्बुल्लाह के रॉकेट हमलों का मुक़ाबला करने में इस शासन की सेना के प्रदर्शन की आलोचना की है।
चेहलुम, इमाम हुसैन की ज़ियारत का सवाब
इमाम हुसैन (अ) के चेहलुम के आते ही इमाम हुसैन (अ) के चाहने वालों और शियों के बीच एक अलग की प्रकार का जोश भर जाता है और उनके दिल हुसैन (अ) की मोहब्बत में और भी तीव्रता से धड़कने लगते हैं। आख़िर क्या कारण हैं कि इमाम हुसैन (अ) के चेहलुम के लिये उनके चाहने वाले बल्कि अगर शब्द बदल कर कह दिया जाए कि सारी दुनिया इतनी बेक़रार और बेचैन क्यों रहती है? यह दिली खिंचाव और अंदरूनी मोहब्बत धार्मिक हस्तियों के एक सामान्य से कथन से कही अधिक है कि जिसमें उन्होंने इस दिन कुछ मुस्तहेब और वाजिब आमाल के बारे में बताया है।
लेकिन चेहलुम के दिन यानी बीस सफ़र को इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत का अपना अलग ही स्थान है, प्रश्न यह उठता है कि इमाम हुसैन (अ) के लिये जो विशेष ज़ियारतें दुआओं और रिवायतों की पुस्तकों में आई हैं उनमें से चेहलुम के दिन की ज़ियारत को विशेष स्थान दिया गया है? इसी प्रकार के और भी बहुत से प्रश्न है जो चेहलुम के बारे में दिमाग़ में आते रहते हैं जैसे यह कि आख़िर क्यों धार्मिक हस्तियों ने अरबईन को इतना आधिक महत्व दिया है? आशूर की क्रांति में चेहलुम का क्या महत्व और रोल है? आदि।
ईश्वर और इमाम हुसैन (अ)
السلام عليك يا ثارالله وابن ثاره (2)
इमाम हुसैन (अ) का ईश्वर से संबंध और उससे लगाव इतना अधिक था कि सैय्यदुश शोहदा का रक्त बहाया जाना ऐसा ही था जैसे धरती पर ईश्वर का ख़ून बहाया गया हो, जिसका बदला ईश्वर के विशेष वलियों के इंतेक़ाम के बिना संभव नहीं होगा। जैसा कि ऐनुल्लाह और यदुल्लाह की उपाधि पाने वाले अमीरुल मोमिनी इमाम हुसैन (अ) के लिये क़तीलुल्लाह के शब्द का प्रयोग करते हैं जो इस बात को दिखाता है कि आपका ईश्वर से कितना अधिक संबंध और लगाव था।
क़ुरआन और इमाम हुसैन (अ)
हज़रत इमाम सादिक़ (अ) फ़रमाते हैं: हर वाजिब और मुस्तहेब नमाज़ में सूर -ए- फ़ज्र पढ़ो क्योंकि यह इमाम हुसैन (अ) का सूरा है। (1)
अरफ़ा और इमाम हुसैन (अ)
अरफ़ा के दिन इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत की फ़ज़ीलत मुतवातिर और बहुत अधिक संख्या में है जैसा कि यह रिवायत जिसमें इमाम सादिक़ (अ) फ़रमाते हैं:
فَمِنْ ذَلِكَ مَا رَوَيْنَاهُ بِإِسْنَادِنَا إِلَى أَبِي جَعْفَرِ بْنِ بَابَوَيْهِ بِإِسْنَادِهِ فِي كِتَابِ ثَوَابِ الْأَعْمَالِ إِلَى أَبِي عَبْدِ اللَّهِ (ع). فِي ثَوَابِ مَنْ زَارَ الْحُسَيْنَ (ع) فَقَالَ مَنْ أَتَاهُ فِي يَوْمِ عَرَفَةَ عَارِفاً بِحَقِّهِ كُتِبَ لَهُ أَلْفُ حَجَّةٍ وَ أَلْفُ عُمْرَةٍ مَقْبُولَةٍ وَ أَلْفُ غَزْوَةٍ مَعَ نَبِيٍّ مُرْسَلٍ أَوْ إِمَامٍ عَادِلٍ . (3)
इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत की फ़ज़ीलत के बारे में फ़रमायाः जो भी अरफ़ा के दिन इस हालत में कि इमाम हुसैन (अ) के हक़ को पहचानता हो उनकी ज़ियारत के लिये जाए उसके लिये 1000 हज और 1000 क़ुबूल उमरे और 1000 बार पैग़म्बर के साथ यान आदिल इमाम के साथ जंग करने का सवाब लिखा जाएगा।
और एक दूसरी रिवायत में आया हैः
وَ مَنْ أَتَاهُ فِي يَوْمِ عَرَفَةَ عَارِفاً بِحَقِّهِ كَتَبَ اللَّهُ لَهُ أَلْفَيْ حَجَّةٍ وَ أَلْفَيْ عُمْرَةٍ مَقْبُولَةٍ [مُتَقَبَّلَاتٍ ] وَ أَلْفَ غَزْوَةٍ مَعَ نَبِيٍّ مُرْسَلٍ أَوْ إِمَامٍ عَادِلٍ قَالَ فَقُلْتُ وَ كَيْفَ لِي بِمِثْلِ الْمَوْقِفِ قَالَ فَنَظَرَ إِلَيَّ شِبْهَ الْمُغْضَبِ ثُمَّ قَالَ يَا فُلَانُ إِنَّ الْمُؤْمِنَ إِذَا أَتَى قَبْرَ الْحُسَيْنِ ع يَوْمَ عَرَفَةَ وَ اغْتَسَلَ بِالْفُرَاتِ ثُمَّ تَوَجَّهَ إِلَيْهِ كَتَبَ اللَّهُ لَهُ بِكُلِّ خُطْوَةٍ حَجَّةً بِمَنَاسِكِهَا وَ لَا أَعْلَمُهُ إِلَّا قَالَ وَ عُمْرَةً (4)
जो भी अरफ़ा के दिन इस हालत में कि वह इमाम हुसैन (अ) के हक़ को पहचानता हो उनकी ज़ियारत को जाए, ईश्वर उसको 1000 हज 1000 क़ुबूल उमरे और 1000 बार पैग़म्बर या आदिल इमाम के साथ जंग करने का सवाब लिखता है।
रावी कहता है मैंने इमाम से कहाः क्या किसी दूसरे स्थान पर भी अरफ़ात के मोक़फ़ के जैसा सवाब है? उन्होंने क्रोध भरी दृष्टि से मुझे देखा और मेरा नाम ले कर संबोधित करते हुए फ़रमायाः जब भी मोमिन अरफ़ा के दिन इमाम हुसैन (अ) की क़ब्र की ज़ियारत के लिये आए और फ़ुरात के पानी से ग़ुस्ल करे और फिर उनकी क़ब्र की तरफ़ चेहरा करके चले, ईश्वर हर क़दम के बदले एक पूर्ण जह का सवाब उसके लिये लिखता है।
एक दूसरी रिवायत में इमाम सादिक़ (अ) ने फ़रमायाः
أَنَّ اللَّهَ تَبَارَكَ وَ تَعَالَى يَتَجَلَّى لِزُوَّارِ قَبْرِ الْحُسَيْنِ ع قَبْلَ أَهْلِ عَرَفَاتٍ وَ يَقْضِي حَوَائِجَهُمْ وَ يَغْفِرُ ذُنُوبَهُمْ وَ يُسْعِفُهُمْ [يُشَفِّعُهُمْ ] فِي مَسَائِلِهِمْ ثُمَّ يَأْتِي أَهْلَ عَرَفَةَ فَيَفْعَلُ بِهِمْ ذَلِكَ (5)
ईश्वर अरफ़ात वालों से पहले इमाम हुसैन (अ) के श्रद्धालुओं पर अपना जलवा दिखाया और उनकी हाजतों को पूर्ण किया और पहले उनके गुनाहों को क्षमा कर ता है और उनके चाहने के अनुसार शिफ़ाअत करता है, उसके बाद अरफ़ात वालों की तरफ़ देखता है और यहीं अनुकम्पा उन पर करता है।
एक दूसरी रिवायत में इमाम सादिक़ (अ) ने फ़रमायाः
إِذَا كَانَ يَوْمُ عَرَفَةَ نَظَرَ اللَّهُ تَعَالَى إِلَى زُوَّارِ قَبْرِ الْحُسَيْنِ بْنِ عَلِيٍّ ع فَقَالَ ارْجِعُوا مَغْفُوراً لَكُمْ مَا مَضَى وَ لَا يُكْتَبُ عَلَى أَحَدٍ ذَنْبٌ سَبْعِينَ يَوْماً مِنْ يَوْمِ يَنْصَرِفُ (6)
जब अरफ़ा का दिन आता है, ईश्वर हुसैन इब्ने अली की क़ब्र के श्रद्धालुओं पर (अनुकम्पा भरी) दृष्टि डालता है औऱ उनको संबोधित करके फ़रमाता हैः पलट आओं, जब कि तुम्हारे पिछले पाप क्षणा कर दिये गये हैं और जिस दिस से श्रद्धालु पलटता है उसके बाद से 70 दिन तक उसके कोई पाप नहीं लिखा जाता है।
इमाम सादिक़ (अ) से एक दूसरी रिवायत में आया हैः
مَنْ زَارَ الْحُسَيْنَ بْنَ عَلِيٍّ ع يَوْمَ عَرَفَةَ كَتَبَ اللَّهُ عَزَّ وَ جَلَّ لَهُ أَلْفَ أَلْفِ حَجَّةٍ مَعَ الْقَائِمِ وَ أَلْفَ أَلْفِ عُمْرَةٍ مَعَ رَسُولِ اللَّهِ ص وَ عِتْقَ أَلْفِ أَلْفِ نَسَمَةٍ وَ حُمْلَانَ أَلْفِ أَلْفِ فَرَسٍ فِي سَبِيلِ اللَّهِ وَ سَمَّاهُ اللَّهُ عَبْدِيَ الصِّدِّيقُ آمَنَ بِوَعْدِي (7)
जो भी अरफ़ा के दिन हुसैन इब्ने अली की ज़ियारत को जाए, ईश्वर इमाम क़ाएम के साथ एक लाख हज और पैग़म्बर के साथ एक लाख उमरे और एक लाख दासों को स्वतंत्र करने और (जिहादियों की सवारी के लिये) एक लाख घोड़ों को ईश्वर की राह में सदक़ा देने का सवाब उसके लिये लिखता है और उसको इस प्रकार से याद करता हैः मेरा बहुत सच्चा बंदा मेरे वादे पर ईमान लाया।
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(1) तफ़्सीरे नमूना जिल्द 26, पेज 439
(2) ज़ियारते वारेसा
(3) सवाबुल आमाल, पेज 115
(4) मन ला यहज़ोरोहुल फ़क़ीह, जिल्द 2, पेज 58, कामिलुज़्ज़ियारात 169
(5) सवाबुल आमाल 116, कामेलुज़्ज़ियारात पेज 170
(6) मिसबाहुल मुजतहिद, पेज 716, कामिलुज़्ज़ियारात पेज 171
(7) तहज़ीबुल अहकाम, जिल्द 6 पेज 49, कामिलुज़्ज़ियारात पेज 172
कर्बला में अबुसमामा अम्र बिन अब्दुल्लाह सैदावी की महान कुर्बानी
आप का पूरा नाम अम्र इब्ने अब्दुल्लाह इब्ने कैब इब्ने शरजील इब्ने उमर इब्ने हाशिद इब्ने जशम इब्ने हैरदन इब्ने औफ बिन हमदान साअएदी अल-सैदावी था और कुन्नियत अबू समामा था।
आप का पूरा नाम अम्र इब्ने अब्दुल्लाह इब्ने कैब इब्ने शरजील इब्ने उमर इब्ने हाशिद इब्ने जशम इब्ने हैरदन इब्ने औफ बिन हमदान साअएदी अल-सैदावी था और कुन्नियत अबू समामा था।
आप ताबई थे। आप का शुमार हज़रत अली अलै० के असहाब में था। आप ने हज़रत अली के साथ तमाम जंगो में शिरकत की थी । आप बड़े शहसवार और शियों में बड़ी अजमतों, शौकत के मालिक थे। अमीरुल मोमिनीन के बाद इमाम हुसैन की खिदमत में रहे।
हजरत मुस्लिम इब्ने अक़ील जब कूफे तशरीफ़ लाये तो आपने उनकी पूरी इमदाद की। उनके लिए असलहे खरीदे और दारुलअमारापर हमले में बनी तमीम, हमदान की कयादत की। हजरते मुस्लिम की शहादत के बाद आप चंद रोज़ रु-पोश हो गए फिर इमाम हुसैन की खिदमत में हाज़िर हो गए।
कर्बला के बाद इब्ने सअद ल० ने कासीर इब्ने अब्दुल्लाह ने शअबी के जरिये से इमाम हुसैन अलै० के पास एक पैगाम भेजा कासिद चाहता था की हथियार लगाये इमाम हुसैन से मिले मगर अबू समामा ने उस को कामयाब न होने दिया और वह बगैर पैगाम पहुंचाये वापस चला गया।
नमाज़े ज़ौहर के लिए आप ने ऐन हंगामा-ए-कार्ज़ार में इमाम हुसैन अलै० से दरखास्त की कि नमाज़े जमाअत होनी चाहिए। चुनांचे इमामे मज़लूम ने नमाज़ पढ़ाई फिर जंग के मौके पर आपने कमाले दिलेरी से शमशीर जनी की।बिल-आखिर आप के चचा ज़ाद भाई कैस ल० इब्ने अब्दुल्लाह अल-सआएदी ने आप को शहीद कर दिया।