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ईरानी ड्रोनों की लोकप्रियता से अमेरिकी थिंकटैंक चिंतित
एक अमेरिकी थिंकटैंक ने कहा है कि ईरानी ड्रोनों की लोकप्रियता यूक्रेन और इस्राईल से बहुत आगे जा चुकी है और यह लोकप्रियता कम से कम दो महाद्वीपों में देखी गयी है।
"डिफ़ेन्स ऑफ़ डेमोक्रेसी" ने अपनी हालिया रिपोर्ट में लिखा है कि दुनिया में ईरानी ड्रोनों का स्वागत किया जा रहा है जबकि बाइडेन सरकार इस्राईल के ख़िलाफ़ ईरान के प्रक्षेपास्त्रिक और ड्रोन हमलों और इसी प्रकार छद्मयुद्ध को रोकने या उसे सीमित करने का प्रयास कर रही है और इस बात को याद रखना चाहिये कि मध्यपूर्व इस समय ईरानी हथियारों से भर गया है।
पार्सटुडे ने समाचार एजेन्सी इर्ना के हवाले से बताया है कि "डिफ़ेन्स ऑफ़ डेमोक्रेसी" ने लेबनान में कुछ ईरानी हथियारों के होने की ओर संकेत किया और कहा कि कुछ समय पहले यमन के अंसारुल्लाह संगठन ने तेलअवीव पर जो ड्रोन हमला किया था और उसमें एक व्यक्ति की मौत हो गयी थी वह इतिहास में इतना दूर तक मार करने वाला पहला ड्रोन हमला और वह ड्रोन ईरान निर्मित था और 2 हज़ार 600 किलोमीटर की दूरी तय करके वह तेलअवीव पहुंचा था।
"डिफ़ेन्स ऑफ़ डेमोक्रेसी" के विश्लेषण के अनुसार यह केवल चिंता का एक विषय नहीं है बल्कि इस्लामी गणतंत्र ईरान इस समय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्पन्न स्थिति से लाभ उठा रहा है और सैनिक संसाधनों और रक्षा उपकरणों का महत्वपूर्ण निर्यातक बनना चाहता है। अमेरिकी थिंकटैंक की रिपोर्ट के अनुसार एक चीज़ जो ईरानी हथियारों की मांग व डिमांड का कारण बनी है वह यह है कि ईरानी हथियार अधिक मंहगे नहीं होते हैं जैसे ड्रोन। उसका एक उदाहरण ईरान का "शाहिद– 136" नामक ड्रोन है जिसने यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूसी जंग में महत्पूर्ण भूमिका निभाई है इस प्रकार से कि जंग के आरंभिक दो साल में मॉस्को ने इस प्रकार के 4 हज़ार 600 ड्रोनों को उड़ाया और यही ड्रोन था जो कुछ समय पहले तेलअवीव पहुंचा था।
इसी प्रकार "डिफ़ेन्स ऑफ़ डेमोक्रेसी" की रिपोर्ट में आया है कि ईरानी ड्रोन यूक्रेन और तेलअवीव से बहुत आगे जा चुके हैं और कम से कम उन्हें दो महाद्वीपों में देखा जा चुका है और यह विषय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ईरानी हथियारों से लाभ उठाये जाने के महत्व का सूचक है। तेहरान स्थानीय ड्रोनों के उत्पादन में वेनेज़ुएला की मदद कर रहा है और लैटिन अमेरिका की सशस्त्र सेनाएं ड्रोन 100 ANSU और ड्रोन 200 ANSU का इस्तेमाल कर रही हैं जबकि यह दोनों ड्रोन ईरान के मुहाजिर- 2 और शाहिद- 171 ड्रोनों से बहुत मिलते- जुलते हैं।
इथोपिया की सेना भी ईरान के मुहाजिर-6 ड्रोन से लाभ उठा रही है। सूडान के गृहयुद्ध में भी इसी ड्रोन का इस्तेमाल किया जा रहा है। सूडान की सशस्त्र सेना हमलावरों की प्रगति को रोकने और इसी प्रकार कुछ क्षेत्रों को वापस लेने के लिए इसी ड्रोन का इस्तेमाल कर रही है। इस आधार पर यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि ईरान और आर्मीनिया के मध्य 500 मिलियन डॉलर के हथियारों के समझौते में ड्रोन विमानों का भी स्थान हो।
इस अमेरिकी थिंक टैंक की रिपोर्ट के अनुसार तेहरान का इरादा है कि 2028 तक अंतरराष्ट्रीय मंडियों में तुर्किये के स्थान को ले ले और इस आधार पर साढ़े 6 अरब डॉलर मूल्य के एक चौथाई बाज़ार को अपने लिए विशेष कर ले। अमेरिकी थिंकटैंक के विशेषज्ञ अपनी रिपोर्ट के एक अन्य भाग में कहते हैं कि रक्षा प्रदर्शनियों में प्रतिरक्षा के क्षेत्र में ईरानी उत्पादों की सक्रिय उपस्थिति ईरान की क्षमताओं से दुनिया को परिचित कराने का एक बेहतरीन अवसर है।
इस्लामी गणतंत्र ईरान ने वर्ष 2024 में मलेशिया, क़तर और इराक़ में होने वाली प्रदर्शनी में अपने रक्षा उत्पादों का स्टॉल लगाया था और सऊदी अरब में होने वाली प्रदर्शनी में एक गुट को भेजा है। मॉस्को और बेल्ग्रेड में भी आयोजित होनी वाली दूसरी प्रदर्शनियां थीं जहां ईरान ने अपने रक्षा उत्पादों को रखा था।
इसी प्रकार अमेरिकी थिंकटैंक की रिपोर्ट में आया है कि ईरान को अमेरिका और यूरोप के प्रतिबंधों के अलावा इस संबंध में किसी प्रकार की अंतरराष्ट्रीय सीमा का कोई सामना नहीं है और मिसाइलों के परीक्षण के संबंध में सुरक्षा परिषद की ओर से जो सीमायें व प्रतिबंध ईरान पर थे वे समाप्त हो चुके हैं।
जर्मन और ऑस्ट्रियाई वैज्ञानिक ईरान के रोयान पुरस्कार से सम्मानित
स्टेम सेल के क्षेत्र में सक्रिय एक जर्मन वैज्ञानिक और प्रयोगशाला भ्रूण के क्षेत्र में सक्रिय एक युवा ऑस्ट्रियाई वैज्ञानिक को संयुक्त रूप से ईरान के रोयान इंटरनेशनल रिसर्च फ़ेस्टिवल में डॉ. काज़ेमी पुरस्कार के छठे संस्करण का विजेता घोषित किया गया है।
दिवंगत ईरानी वैज्ञानिक डॉ. सईद काज़ेमी आश्तियानी रोयान रिसर्च इंस्टीट्यूट के संस्थापक थे। रोयान इंटरनेशनल ईरान फ़ेस्टिवल अवार्ड, उनके प्रयासों का सम्मान करने और उनकी यादों को जीवित रखने के लिए हर साल जैविक विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति या शोध करने वाले वैज्ञानिक को प्रदान किया जाता है।
स्टेम सेल के क्षेत्र में सक्रिय जर्मन वैज्ञानिक थॉमस ब्राउन, और प्रयोगशाला भ्रूण के क्षेत्र में सक्रिय युवा ऑस्ट्रियाई वैज्ञानिक निकोलस रिवरोन को रोयान काज़ेमी पुरस्कार का विजेता घोषि किया गया है।
2010 से डॉ. काज़ेमी पुरस्कार, अमेरिका, जर्मनी, हॉलैंड और इटली के 5 प्रमुख शोधकर्ताओं को दिया जा चुका है।
पहली बार यह पुरस्कार 2010 में जीन विनियमन, स्टेम सेल बायोलॉजी और स्टेम सेल थेरेपी के विकासात्मक जीव विज्ञान के क्षेत्र में सबसे रचनात्मक वैज्ञानिकों में से एक, अमेरिका के प्रोफ़ेसर रुडोल्फ़ साएनिश को दिया गया था।
दुश्मन के हथकंडे को नाकाम बनाने का मूलमंत्र
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहगीलूये व बुवैर अहमद प्रांत के शहीदों को श्रद्धांजलि पेश करने के लिए राष्ट्रीय कान्फ़्रेंस की आयोजक कमेटी के सदस्यों से मुलाक़ात की।
इस मुलाक़ात में उन्होंने अपने ख़ेताब के दौरान मुख़्तलिफ़ मैदानों में ईरानी क़ौम को पीछे हटने पर मजबूर करने के लिए ख़ौफ़ पैदा करने और मनोवैज्ञानिक जंग शुरू करने के दुश्मनों के हथकंडें की ओर इशारा करते हुए, अपनी क्षमताओं की पहचान और दुश्मनों की क्षमता बढ़ा चढ़ाकर पेश करने से परहेज़ को, इस हथकंडे से निपटने का रास्ता बताया।
उन्होंने कहा कि शहीदों ने इस मनोवैज्ञानिक जंग के मुक़ाबले में अपने बलिदान और संघर्ष का प्रदर्शन किया और इस हथकंडे को नाकाम बना दिया।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता का कहना था कि श्रद्धांजलि पेश करने के प्रोग्रामों में भी इस हक़ीक़त को नुमायां करना और इसे ज़िंदा रखना चाहिए।
उन्होंने कहा कि ईरान और ईरान की अज़ीज़ क़ौम के ख़िलाफ़ मनोवैज्ञानिक जंग का एक तत्व, दुश्मनों की क्षमताओं को बढ़ा चढ़ाकर पेश करना है और इंक़ेलाब की कामयाबी के वक़्त से ही उन्होंने मुख़्तलिफ़ तरीक़ों से हमारी क़ौम को यह समझाने की कोशिश की कि उसे अमरीका, ब्रिटेन और ज़ायोनियों से डरना चाहिए।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने कहा कि इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह का बड़ा कारनामा क़ौम के दिल से डर को बाहर निकालना और उसमें आत्मविश्वास पैदा करना था। उन्होंने कहा कि हमारी क़ौम ने महसूस किया कि वह अपनी ताक़त पर भरोसा करके बड़े बड़े काम कर सकती है और दुश्मन इतना ताक़तवर नहीं है जितना वह ख़ुद को ज़ाहिर करता है।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने फ़ौजी मैदान में मनोवैज्ञानिक जंग का लक्ष्य दुश्मन में ख़ौफ़ पैदा करना और उसे पीछे हटने पर मजबूर करना बताया और कहा कि क़ुरआन मजीद के लफ़्ज़ों में किसी भी मैदान में, चाहे वह फ़ौजी मैदान हो या राजनैतिक, प्रचारिक या आर्थिक मैदान हो, स्ट्रैटेजी के बिना पीछे हटना, अल्लाह के क्रोध का सबब बनता है।
उन्होंने कमज़ोरी और अलग थलग पड़ जाने की भावना और दुश्मन की इच्छा के सामने घुटने टेक देने को राजनीति के मैदान में दुश्मन की क्षमताओं को बढ़ा चढ़ाकर पेश करने का नतीजा बताया और कहा कि आज छोटी बड़ी क़ौमों वाली जो भी सरकारें साम्राज्यवादियों के सामने घुटने टेके हुए हैं, अगर अपनी क़ौमों और अपनी सलाहियतों पर भरोसा करें और दुश्मन की सलाहियतों को समझ जाएं तो वो दुशमन की मांगें मानने से इंकार कर सकती हैं।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने कहा कि सांस्कृतिक मैदान में भी दुश्मन की ताक़त को बढ़ा चढ़ाकर पेश करने का नतीजा पिछड़ेपन का एहसास, दुश्मन की संस्कृति पर रीझना और अपनी संस्कृति को हीन भावना से देखना बताया। उन्होंने कहा कि इस तरह की संवेदनहीनता का नतीजा, सामने वाले पक्ष की जीवन शैली को मानना यहाँ तक कि विदेशी लफ़्ज़ों और शब्दावलियों को इस्तेमाल करना है।
उन्होंने शहीदों और मुजाहिदों को दुश्मन की मनोवैज्ञानिक जंग के मुक़ाबले में डट जाने वाले लोगों में बताया और कहा कि ऐसे जवानों की क़द्रदानी होनी चाहिए जो किसी भी तरह के ख़ौफ़ के एहसास और दूसरों की बातों से प्रभावित हुए बिना मनोवैज्ञानिक जंग के ख़िलाफ़ डट गए। उन्होंने कहा कि यह हक़ीक़त कला उत्पादों और श्रद्धांजलि पेश करने के प्रोग्रामों में प्रतिबिंबित होनी चाहिए और इसे ज़िंदा रखा जाना चाहिए।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने शहीदों और पाकीज़ा डिफ़ेंस के बारे में किताब और फ़िल्म जैसे आर्ट और कलचर प्रोडक्ट्स तैयार किए जाने पर बल देते हुए इस कान्फ़्रेंस के प्रबंधकों की क़द्रदानी की और कहा कि एक क़ौम के जवानों की शहादत और बलिदान, मुल्क की तरक़्क़ी का एक बड़ा सहारा है जिसकी रक्षा की जानी चाहिए और ऐसा न हो कि इसमें फेर बदल हो जाए और इसे भुला दिया जाए।
पाकिस्तानी ज़ायरीन की दर्दनाक बस दुर्घटना पर आयतुल्लाह अराफ़ी का शोक संदेश
अरबईने हुसैनी के लिए जा रहें पाकिस्तानी ज़ायरीन की एक बस ईरान के शहर यज़्द के पास एक गंभीर दुर्घटना का शिकार हो गई जिसके परिणामस्वरूप कई ज़ायरीन की मौत हो गई इस मौके पर आयतुल्लाह अली रज़ा आराफी ने दु:ख व्यक्त करते हुए शोक संदेश जारी किया हैं।
अरबईने हुसैनी के लिए जा रहें पाकिस्तानी ज़ायरीन की एक बस ईरान के शहर यज़्द के पास एक गंभीर दुर्घटना का शिकार हो गई जिसके परिणामस्वरूप कई ज़ायरीन की मौत हो गई इस मौके पर आयतुल्लाह अली रज़ा आराफी ने दु:ख व्यक्त करते हुए शोक संदेश जारी किया हैं।
शोक संदेश इस प्रकार है:
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलाही राजी'उन।
अहले अलबैत अ.स.के अरबईन हुसैनी में भाग लेने जा रहे पाकिस्तान तीर्थयात्रियों की बस की दिल दहला देने वाली दुर्घटना की खबर सुनकर मुझे गहरा दुख हुआ है।
यह जायरीन अरबईन हुसैनी में भाग लेने के लिए लंबी दूरी की यात्रा कर रहे थे वह निर्दोषों, विशेष रूप से हज़रत इमाम हुसैन अ.स. और उनके साथीयों का चेहलूम मामने जा रहे थे कि शहीद हो गए यह इमाम के मेहमान हैं इनका दरजा बहुत बुल्ंद हैं।
इस दुखत घडी में हौज़ा ए इल्मिया और मैं अपनी तरफ से मरहूमीन के लिए दुआ करता हु अल्लाह तआला से दुआ करते हैं कि अल्लाह तआला मरहूमीन की मगफिरत करें और परिवार वालों को सब्र अता करें।
आयतुल्लाह अली रज़ा आराफी
प्रमुख हौज़ा ए इल्मिया
भारतीय आज़ादारों द्वारा कर्बला इराक में अरबाईन मातमी और जुलूस अज़ा की तैयारिया पूरी
कर्बला इराक,भारतीय अज़ादार दिन बा दिन बड़ी तादात में कर्बला पहुंच कर इमाम हुसैन के रोज़े पर सलामी दे रहे है इसी क्रम में हर साल की तरह इस साल भी "अज़ा इल हुसैन अल हिंद" भारतीय आजादरो की तंज़ीम ने अरबाईन मातमी जुलूस का एहतेमाम किया है।
कर्बला इराक,भारतीय अज़ादर दिन बा दिन बड़ी तादात में कर्बला पहुंच कर इमाम हुसैन के रोज़े पर सलामी दे रहे है इसी क्रम में हर साल की तरह इस साल भी "अज़ा इल हुसैन अल हिंद" भारतीय आजादरो की तंज़ीम ने अरबाईन मातमी जुलूस का एहतेमाम किया है।
भारत के सोशल रिफॉर्मर ,हमदर्द ए मिल्लत आगा सुलतान बताते है हम भारतीय कर्बला के शहीदों को अपना नजराना पेश करने के लिए आज 23 अगस्त जूमे की रात ठीक दस बजे खैमेगाह में इकट्ठा होकर जुलूस निकालेंगे,जो हरम इमाम हुसैन बैनूल हरमैन ,हरम हजरत अब्बास के अंदर गश्त करेेंगा,बाद में दुआ भी आयोजित होगी।
सुलतान आगा साहब ने सभी भारतीय अजादार,मीडियनपर्सन से अपील की इस प्रोग्राम में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले ये आपका और अपने देश भारत का सबसे बड़ा और ऐतिहासिक जुलूस है,आइए हम सब मिलकर इमामे मजलूम को अपना नजरनाए अकीदत पेश करे
उन्होंने ये भी कहा कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने भारत आने की तमन्ना की थी,तो आपको बता दे दुनिया में हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों का गम मनाने वाले पूरी दुनिया में सबसे अधिक भारतीय अजादार है,इस वक्त बड़ी तादात में करबला का चहल्लूम करने पहुंचे है।
यूरोपीय देशों के साथ संबंधों में सुधार के लिए ईरान ने रखी शर्त
ईरान के नए विदेश मंत्री सैयद अब्बास इराक़ची ने विदेशी मीडिया के साथ अपने पहले इंटरव्यू में कहा है कि तेहरान, वाशिंगटन के साथ तनाव को मैनेज करने और यूरोपीय देशों के साथ सशर्त संबंधों में सुधार के लिए तैयार है।
ईरानी संसद से विश्वासमत प्राप्त करने के बाद, इराक़ची ने अपने पहले इंटरव्यू में कहाः विदेश मंत्रालय यूरोपीय देशों के साथ संबंधों में सुधार करने के लिए तैयार है, लेकिन इसके लिए पहले उन्हें शत्रुतापूर्ण रवैया छोड़ना होगा और 2015 परमाणु समझौते को जीवित करने के लिए प्रयास करने होंगे।
जापान की क्यूडो न्यूज़ एजेंसी के साथ बातचीत में उन्होंने कहाः मैंने संसद में अपने भाषण में कहा है कि हमारा उद्देश्य, गंभीर वार्ता द्वारा प्रतिबंधों और विशेष रूप से एकपक्षीय प्रतिबंधों को हटवाना है।
उन्होंने ईरान और जापान के बीच अच्छे संबंधों का उल्लेख करते हुए कहाः
ईरान का विदेश मंत्रालय तेहरान और टोक्यो के बीच सभी क्षेत्रों में संबंधों को मज़बूत बनाने पर काम करेगा और जापान के अपने गहन ज्ञान के आधार पर बनाए गए व्यापक रोड मैप के आधार पर क्षेत्रीय संकटों से निपटने के लिए टोक्यो के साथ सहयोग करेगा।
उन्होंने कहा कि ईरान, तेल और ऊर्जा के क्षेत्र में जापानी कंपनियों का स्वागत करेगा। ईरान का मानना है कि दोनों देशों के बीच सहयोग की असीम संभावनाएं हैं, जिससे पूरे एशिया में एक लाभदायक भागीदारी बन सकती है।
ईरानी विदेश मंत्री का कहना था कि दोनों देशों के बीच दोस्ती, परस्पर समझ, सम्मान और भरोसा बना हुआ है। ईरान की नई सरकार पूर्वी एशिया के साथ अपने संबंधों में विस्तार पर काम करेगी।
ज़ियारते अरबईन
सलाम हो हुसैन पर, सलाम हो कर्बला के असीरों पर, सलाम हो कटे हुए सरों पर, सलाम हो प्यासे बच्चों पर, सलाम हो टूटे हुए कूज़ों पर,
सलाम हो उन थके हुए क़दमों पर जो चेहलुम पर हुसैन की माँ कायनात की शहज़ादी हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के सामने शोक व्यक्त करने के लिए कर्बला की तरफ़ पैदल चले जा रहे हैं।
सलाम हो उन अज़ादारों पर जो इश्के हुसैन में पैरों में पड़े हुए छालों के साथ पैदल चल रहे है
चेहलुम शीअत और इन्सानियत के इतिहास का ऐसा दिन है जब हर हुसैन का चाहने वाला यह सोंचता है कि चेहलुम के दिन आपके हरम में पहुँच कर आपको पुरसा दे आपके सामने शोक व्यक्त करे।
और यही वह दिन है जिसके बारे में हमारी दुआओं की पुस्तकों में एक ज़ियारत के बारे में लिखा गया है कि इस ज़ियारत को उस दिन पढ़ना चाहिए और वह ज़ियारत है
ज़ियारते अरबईन
ज़ियारते अरबईन के बारे में इमाम हसन अस्करी (अ) फ़रमाते हैं:
मोमिन की पाँच निशानियाँ है
- एक दिन में 51 रकअत नमाज़ पढ़ना।
- दाहिने हाथ में अंगूठी पहनना।
- मिट्टी पर सजदा करना।
- बिस्मिल्लाह को तेज़ आवाज़ में पढ़ना।
- ज़ियारते अरबई पढ़ना।
तो यह वह ज़ियारत है जो मोमिन की निशानियों में से है, अब प्रश्न यह उठता है कि आख़िर इस ज़ियारत में है क्या जो इसको मोमिन की निशानियों में से कहा गया है।
इस लेख में हम संक्षिप्त रूप में ज़ियारते अरबईन के बार में और उसमें क्या बयान किया गया है बताएंगे।
इमाम हुसैन (अ) के मक़ामात
यह वह महान ज़ियारत है जिसमें इमाम हुसैन (अ) के मक़ामात के बयान किया गया है कि इमाम हुसैन कौन थे और उनके क्या मक़ामात थे।
आपके बारे में कहा गया है कि हुसैन ख़ुदा के वली है, इमाम हुसैन अल्लाह के हबीब है हुसैन अल्लाह के ख़लील है।
अब यहा पर यह संदेह न पैदा हो कि यह कैसे हो सकता है कि हुसैन ख़लील और हबीब हों क्योंकि यह तो इब्राहीम और पैग़म्बर थे, तो याद रखिए कि हुसैन को नबियों का वारिस कहा गया है तो जो विशेषताएं पहले के नबियों में थी वही हुसैन में भी मौजूद हैं, अगर इब्राहीम ख़लील हुए तो वह हुसैन का सदक़ा है क्योंकि आयत में कहा गया है कि
وَإِنَّ مِن شِیعَتِهِ لَإِبْرَاهِیمَ.
इब्राहीम उनके शियों में से थे।
फिर कहा गया है कि हुसैन शहीद हैं, शहीद का महत्व क्या है ? शहादत वह स्थान है जो ख़ुदा हर एक को नही देता है
हुसैन असीरे कुरोबात हैं,
यह असीरे कुरोबात क्या है?
इसका अर्थ समझने के लिए इस मिसाल को देखें , कभी आपने किसी भेड़िये को देखा है भेड़िये की आदत यह होती है कि अगर वह किसी भेड़ के गल्ले पर हमला कर दे तो वह आख़िर कितनी भेड़ों को खा सकता है एक या दो इससे अधिक नही लेकिन अगर वह हलमा कर दे तो वह जितनी भेड़ों को पाता है मार देता है खा पाए या न खा पाए, यानी भेड़िये का गुण यह है कि जिसको पाए क़त्ल कर दो अगर एक बेड़िये की यह आदत होती है तो आप सोंचें कि अगर किसी एक भेड़ पर दस भेड़िये हमला कर दें तो उस भेड़ का क्या होगा उसमें क्या बचेगा।
इसी प्रकार इमाम हुसैन (अ) भी थे जब यज़ीदी भेड़ियों ने इमाम हुसैन पर हमला किया तो हुसैन में कुछ नहीं बचा जिसके बताया जा सकता, एक लाश ती जिसका सर कटा हुआ था लिबास नहीं था, जिस्म घोड़ों की टापों से पामाल था, जिस्म टुकड़े टुकड़े हो चुका था।
फ़ातेमा का वह हुसैन कहां था.... जिसे उन्होंने बहुत प्यार से चक्कियां पीस पीस कर पाला था।
हुसैन क़तीले अबरात हैः यानी हुसैन की शहादत रहती दुनिया तक के लिए लोगों के रिए इबरत बन गई।
फ़िर इस ज़ियारत में ज़ियारत पढ़ने वाला कहता है कि मैं गवाही देता हूँ कि हुसैन ख़ुदा के वही हैं उनको शहादत के माध्यम से सम्मान दिया गया.... और हुसैन नबियों के वारिस हैं
हुसैन नबियों के वारिस हैं हर चीज़ में अगर नूह ने अपने ज़माने में तूफ़ान देका तो वारिसे नूह ने हुमराही के तूफ़ान से मुक़ाबला किया अगर मूसा ने अपने ज़माने के फ़िरऔन को ग़र्क़ किया तो वारिसे मूसा ने युग के फ़िरऔर यज़ीद को डिबो दिया, अगर याबूक़ ने अपने यूसुफ़ को खो दिया तो वारिसे याक़ूब हुसैन ने अपने यूसुफ़ अली अक़बर के सीने पर भाला लगा देखा।
फिर इसके बाद इस ज़ियारत में उन लोगों के बारे में कहा गया है जो हुसैन के दुश्मन थे।
किन लोगों ने हुसैन से शत्रुता की
हुसैन के शत्रु वह लोग हैं जिनको इस दुनिया ने धोखा दिया, उन्होंने इस दुनिया के चार दिन के जीवन के लिए रसूल ने नवासे को शहीद कर दिया और सदैव के लिए ख़ुदा का क्रोध ख़रीद लिया, यह लोग दुनिया की चकाचौंध में खो गए और आख़ेरत को भूल गए और उसके बाद
न ख़ुदा ही मिला न विसाले सनम
यह दुनिया क्या है?
दुनिया एक बूढ़ी कुवांरी औरत की तरह है जिसने श्रंगार कर लिया है और इस संसार के सारे लोगों से शादी की है लेकिन किसी हो भी स्वंय पर हावी नहीं होने दिया है और अपने सारे पतियों की हत्या कर दी है।
यह है दुनिया की वास्तविक्ता
न दुनिया मिली और न ही आख़ेरत दुनिया में लानती क़रार पाए और आख़ेरत में नर्क की आग उनका ठिकाना बनी।
यह ज़ियारत बता रही है कि हुसैन के शत्रु सभी आरम्भ से ही बेदीन नहीं थे बल्कि कुछ वह लोग भी थे जो ईश्वर की इबादत करने वाले थे लेकिन जब इम्तेहान का मौक़ा आया तो वह फ़ेल हो गए।
आपने बलअम बाऊर का वाक़ेआ तो सुना ही होगा, वह बलअम जिसके पास इसमे आज़म था जिससे वह बड़े बड़े काम कर सकता था लेकिन उसने इस इसमें आज़म को ख़ुदा के नबी मूसा के मुक़ाबले में प्रयोग किया और हमेशा के लिए ख़ुदा के क्रोध का पात्र बन गया।
इसी प्रकार वह इबादत करने वाले जो ख़ुदा के वली हुसैन के मुक़ाबले में आ गए वह हमेशा के लिए ख़ुदा के क्रोध का पात्र बन गए।
इसके बाद ज़ियारत पढ़ने वाला हुसैन पर सलाम भेजता है, सलाम हो तुम पर हे पैग़म्बर के बेटे मैं गवाही देता हूँ कि आप ख़ुदा की अमानत के अमानतदार हैं... आप मज़लूम शहीद किए गए, ख़ुदा आपका साथ छोड़ देने वालों पर अज़ाब करेगा और उन पर जिन्होंने आपको क़त्ल किया।
फिर कहता है, ख़ुदा लानत करे उस उम्मत पर जिन्होंने आपको क़त्ल किया और उस उम्मत पर जिन्होंने इसको सुना और इस पर राज़ी रहे।
हे ख़ुदा मैं मुझे गवाह बनाता हूँ कि मैं उसका दोस्त हो जिसने उनसे दोस्ती रखी और उनका दुश्मन हो जिन्होंने उनसे शत्रुता दिखाई।
मेरी सहायता आपके लिए तैयार है।
और यही कारण है कि आज जैसा जैसा समय व्यतीत होता जा रही है हुसैन का चेलहुल और अज़ीम होता जा रहा है यह पैदल चलने वालों का काफ़िला बढ़ता जा रहा है आज लोग 1000 से भी अधिक किलोमीटर का फ़ासेला पैदल तै कर के आ रहे हैं ख़तरा है, मौत का डर हैं लेकिन हुसैन के इन आशिक़ों पर किसी चीज़ का असर नहीं है, और इसीलिए कहा गया है कि इमामे ज़माना के ज़ुहूर का समय जितना पास आता जाएगा हुसैन का चेहलुम उनता ही अधिक शानदार और अज़ीम होता जाएगा।
मैं गवाही देता हूँ कि मैं आप पर विश्वास रखता हूँ और आपके पलट कर आने पर मेरा अक़ीदा है मेरा दिल आपके साथ है, मैं आपके साथ हूँ आपके साथ हूँ, आपके शत्रुओं के साथ नहीं हूँ।
ख़ुदा का सलाम हो आपकी आत्मा पर आपके शरीर पर आपके अपस्थित पर अनुपस्थित पर आपके ज़ाहिर और बातिन पर।
अंत में ईश्वर से यही प्रार्थना है कि हमको हुसैन के सच्चे मानने वालों में शुमार करे
मर्द को क़द्रदान होना चाहिए
सुप्रीम लीडर ने फरमाया, जहां घर में औरतों का मुख रोल होता है वहीं पर मर्द का भी किरदार किसी चीज़ से काम नहीं होता लेकिन शर्त यह है कि मर्द को क़द्रदान होना चाहिए।
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने फरमाया,घर में औरत के किरदार के बारे में मुसलसल कुछ न कुछ कहा जाता है, इसका तर्क भी स्पष्ट है क्योंकि औरत का घर में मुख्य रोल होता है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि घर में मर्द का कोई फ़रीज़ा, कोई ज़िम्मेदारी और कोई किरदार न हो।
वह मर्द जो बेफ़िक्र हों, जोश व जज़्बे से ख़ाली हों, भोग विलास के आदी हों और घर में औरत की ज़हमतों की क़द्र न करते हों वे घर के माहौल को नुक़सान पहुंचाते हैं मर्द को क़द्रदान होना चाहिए।
कुछ घरेलू औरतें काम काज के लिए बाहर जा सकती थीं, कुछ उच्छ शिक्षा के लिए बाहर जा सकती थीं, कुछ उच्च शिक्षा से संपन्न थीं लेकिन उन्होंने कहा कि हम बच्चे की देखभाल करना चाहते हैं।
उसकी अच्छी परवरविश करना चाहते हैं और इसीलिए हमने मुलाज़ेमत के लिए बाहर जाना नहीं चाहा। इस तरह की औरतों की क़द्रदानी करनी चाहिए।
फ़्रीस्टाइल कुश्ती में ईरानी नौजवानों की टीम ने चैंपियन का ख़िताब जीत लिया
इस्लामी गणतंत्र ईरान की फ्रीस्टाइल कुश्ती के नौजवानों की टीम ने विश्व चैंपियन का ख़िताब जीत लिया।
ईरानी नौजवानों की फ्रीस्टाइल कुश्ती की टीम ने तीन स्वर्ण और तीन कांस्य पदक प्राप्त करके विश्व चैंपियन का ख़िताब जीत लिया।
जार्डन की राजधानी अम्मान में 19 अगस्त से लेकर 21 अगस्त तक फ्रीस्टाइल कुश्ती का मुक़ाबला हुआ था।
अम्मान में आयोजित प्रतिस्पर्धा में ईरानी टीम ने 140 अंक प्राप्त करके विश्व चैंपियन का ख़िताब जीत लिया जबकि उज़्बेकिस्तान 113 अंक हासिल करके दूसरे स्थान पर और 105 अंक हासिल करके आज़रबाईजान गणराज्य तीसरे स्थान पर रहा। ईरान की फ्रीस्टाइल कुश्ती की टीम ने इससे पहले वाले मुक़ाबले में भी चैंपियन का ख़िताब जीता था।
गाज़ा में इज़रायली सेना के 6 शव बरामद
इजरायल और हमास के बीच लड़ाई रुकने का नाम नहीं ले रही है इस बीच गाज़ा में इज़रायली सेना को 6 बंधकों के शव बरामद हुए हैं।
इजरायल और हमास के बीच लड़ाई रुकने का नाम नहीं ले रही है इस बीच गाजा में इजरायली सेना को 6 बंधकों के शव मिले हैं इजरायली सेना ने यह नहीं बताया कि इन लोगों की मौत कैसे हुई।
इजराइल की सेना ने कहा है कि उसने पिछले साल सात अक्टूबर को हमास के हमले के दौरान बंधक बनाए गए छह लोगों के शव बीती रात बरामद किए हैं।
सेना ने मंगलवार को एक बयान में कहा कि उसके सैनिकों ने दक्षिण गाजा में बीती रात अभियान के दौरान ये शव बरामद किए हैं।
सेना के मुताबिक मृतकों की पहचान यागेव बुश्ताब, एलेक्जेंडर डैनकिग, अवराहम मंडर, योराम मेत्सगर, नदाव पोपलवेल और हाइम पेरी के रूप में हुई है।
हालांकि सेना ने यह नहीं बताया कि उनकी मौत कब और कैसे हुई ये शव ऐसे समय में बरामद हुए हैं जब अमेरिका, मिस्र व कतर इजराइल और हमास के बीच संघर्ष विराम समझौते के लिए प्रयास कर रहे हैं।