رضوی

رضوی

हुर्र बिन यज़ीद बिन नाजिया बिन क़अनब बिन अत्ताब बिन हारिस बिन उमर बिन हम्माम बिन बनू रियाह बिन यरबूअ बिन हंज़ला, तमीम नामक क़बीले की एक शाख़ा से संबंधित हैं (1) इसीलिये उनको रियाही, यरबूई, हंज़ली और तमीमी कहा जाता है (2) हुर्र का ख़ानदान जाहेलीयत और इस्लाम दोनों युगों में बहुत सम्मानित रहा है (3)

हुर्र आशूरा से पहले

हुर्र कूफ़ा के एक प्रसिद्ध योद्धा थे (4)

वह इब्ने ज़ियाद की सेना के एक विश्वस्त कमांडर और एक हज़ार सिपाहियों से सेनापति थे और आप सैन्य अनुशासन और आदेशों का पूर्णरूप से पालन करने वालों में से थे (5) हुर्र को सियासत से कोई दिलचस्पी नहीं थी इसीलिये किसी भी ऐतिहासिक दस्तावेज़ में 60 हिजरी के तनावपूर्ण माहौल में भी हुर्र के किसी भी राजनीतिक क़दम उठाए जाने के बारे में कुछ नहीं लिखा है, लेकिन बलअमी ने अपनी संदिग्ध रिवायत में आपको उन शियो में से लिखा है जिन्होंने अपने अक़ीदे को छिपा रखा था। (6)

कूफ़े की सेना का सेनापति होना

 

उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद को जब इमाम हुसैन (अ) के कूफ़ा की तरफ़ आने की सूचना मिली तो उसने हुर्र को उनके क़बीले के बड़े लोगों के साथ बुलाया और एक हज़ार की सेना का सेनापति बना कर इमाम हुसैन (अ) से मुक़ाबले के लिये भेजा

आवाज़ जो हुर्र ने सुनी

हुर्र से रिवायत की गई है कि जब मैं इब्ने ज़ियाद के महल से बाहर निकला और हुसैन (अ) की तरफ़ चला तो मैंने अपने पीछे से तीन बार आवाज़ सुनी जो कह रही थीः

“ए हुर्र तुमको स्वर्ग की शुभसूचना मुबारक हो” वह कहते हैं कि मैंने अपने पीछे देखा तो किसी को न पाया, अपने आप से कहा “ईश्वर की सौगंध यह बशारत नहीं है, यह कैसे बशारत हो सकती है जब कि मैं हुसैन (अ) से लड़ने जा रहा हूँ”

यह बात हुर्र के दिमाग़ में रह गई और जब आप हुसैनी सेना में पहुँचे तो आपने उनसे यह बात कही इमाम हुसैन (अ) ने फ़रमायाः

तुम वास्तव में नेकी और सौभाग्य के रास्ते पर आ गए हो। (7,8)

इमाम हुसैन से आमना सामना

ज़ीहुस्म पर इमाम हुसैन (अ) और हुर्र की सेना का आमना सामना हुआ (9) ऐतिहासिक स्रोत यह कहते हैं कि हुर्र को इमाम हुसैन (अ) से युद्ध करने के लिये नहीं बल्कि केवल हुसैन (अ) को इब्ने ज़ियाद तक लाने के लिये भेजा गया था और यही कारण था कि वह अपनी सेना के साथ इमाम हुसैन (अ) के ठहरने के स्थान पर खड़ा हो गया (10)

अबू मख़निफ़ ने हुर्र की सेना की इमाम हुसैन (अ) से मुलाक़ात के बारे में दो असदी लोगो की ज़बानी जो कि जो इमाम के साथ इस यात्रा में थे इस प्रकार बयान करते हैं

जब हुसैनी काफ़िल अपने स्थान से चला तो दिन में दूरे से शत्रु सेना का अग्रदल दिखाई दिया, इमाम ने अपने साथियों से फ़रमायाः

“क्या इस क्षेत्र में कोई पनाहगाह है जिसमें हम पनाह ले सकें और उसको अपने पीछें रखें और इन लोगों से एक तरफ़ से मुक़ाबला करें” कहा हां बाईं तरफ़ एक जगह है जिसका नाम ज़ू हुस्म है।

इमाम ज़ु हुस्म की तरफ़ चल पड़े, शत्रु सेना भी उसी तरफ़ चली जा रही थी लेकिन इमाम अपने साथियों के साथ पहले उस स्थान पर पहुँच गए, इमाम ने ख़ैमे लगाए जाने का आदेश दिया।

हुर्र बिन यज़ीद रियाही और उसकी सेना ज़ोहर के समय वहां पहुँची और वह लोग प्यास की हालत में इमाम हुसैन (अ) और उनके साथियों के सामने पहुँचे, बावजूद इसके कि वह शत्रु सेना थी लेकिन इमाम हुसैन (अ) ने उनके साथ अच्छा बर्ताव किया और इमाम ने अपने साथियों को आदेश दिया कि हुर्र की सेना और उनके घोड़ों को पानी पिलाया जाए, और जब हुर्र ने कहा कि वह अपने साथियों के साथ इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ना चाहता है तो आपने स्वीकार कर लिया।

हुर्र ने इमाम को अपने आने का कारण बताया। इमाम ने फ़रमायाः

कूफ़े के लोगों ने उनको कूफ़ा बुलाया है और उनकी तरफ़ से पत्राचार के बारे में बताया और कहा कि अगर कूफ़े वाले अपने इरादे से पलट गए हैं तो वह भी वापस चले जाएंगे।

हुर्र ने इस प्रकार के पत्राचार के अनभिज्ञ्ता प्रकट की और कहा वह और उसके साथी पत्र लिखने वालों में से नहीं है और उसको आदेश दिया गया है कि इमाम को कूफ़े में इब्ने ज़ियाद के समक्ष प्रस्तुत करे।

जब इमाम हुसैन (अ) अपने साथियों के साथ चलने लगे तो हुर्र ने इमाम को कूफ़े की तरफ़ जाने या फिर वापस हिजाज़ जाने से रोक दिया, हुर ने सुझाव दिया कि इमाम कूफ़ा या मदीना के अतिरिक्त किसी और रास्ते का चुनाव कर लें ताकि वह इब्ने ज़ियाद से दूसरे आदेश को प्राप्त कर सके।

हुर्र ने इमाम से कहाः “मुझे आपसे युद्ध का आदेश नही दिया गया है लेकिन मुझे आदेश दिया गया है कि मैं आपका पीछा न छोड़ूँ यहां तक कि आपको कूफ़ा पहुँचा दूँ, अब अगर आप मेरे साथ आने से इंकार करते हैं तो कोई ऐसा रास्ता चुने जो न आपको कूफ़ा पहुँचाए और न ही मदीने, ताकि मैं एक पत्र उबैदुल्लाह को लिखूँ और अगर आप भी चाहें तो यज़ीद को पत्र लिखें, ताकि यह मामला अच्छे से और बिना युद्ध के समाप्त हो जाए और मेरे लिये यह इससे कहीं अच्छा है कि आपसे युद्ध करूँ।”

उसके बाद इमाम हुसैन (अ) और उनके साथी ओज़ीब और क़ादेसिया की तरफ़ चल पड़े और हुर्र भी आपके साथ था। (11)

ओज़ीब में कूफ़े से इमाम के चार साथी इमाम के पास पहुँचे हुर्र ने उनको गिरफ़्तार करना चाहा लेकिन इमाम ने रोक दिया उन्होंने कूफ़े के बिगड़ते हालात और इमाम के दूत क़ैस बिन मुसह्हर सैदावी की शहादत की सूचना दी और युद्ध के लिये एक बड़ी सेना के आने की ख़बर दी। (12)

हुर्र ने पत्र के बारे में हुसैन (अ) को बताया तो आपने कहा कि हमें नैनवा या ग़ाज़ेरिया में उतर जाने दो।

दो मोहर्रम को इमाम हुसैन (अ) और हुर्र के बीच की सदभावना समाप्त हो गई, जब यह दोनों नैनवा पहुँचे तो हुर्र के पास इब्ने ज़ियाद की तरफ़ से एक पत्र पहुँचा जिसमें लिखा था कि हुसैन (अ) के साथ सख़्ती से पेश आओ और उनको किसी बियाबन और बंजर स्थान पर रोक दो। (13)

हुर्र ने इब्ने ज़ियाद की तरफ़ से लगाए गए जासूसों के कारण मजबूरन इमाम हुसैन (अ) और उनके साथियों को नैनवा, ग़ाज़ेरिया या उसके आसपास ठहरने से रोक दिया और इमाम विवश होकर करबला में उतरे।

ज़ोहैर ने इमाम से कहाः ख़ुदा की क़सम मैं देख रहा हूँ कि इसके बाद से हमारे लिये सख़्तियां बढ़ जाएंगी, हे पैग़म्बर के बेटे इस समय इस गुट (हुर्र और उसके साथी) से युद्ध करना हमारे लिये उससे कहीं आसान है जो इनके बाद आ रहे हैं, मुझे मेरी जान की क़सम है कि इनके बाद वह लोग आएंगे जिसने लड़ना आसान न होगा।

इमाम ने फ़रमायाः ज़ोहैर सही कह रहे हो लेकिन मैं युद्ध आरम्भ नहीं करूँगा।

इमाम हुर्र के साथ चलते रहे यहां तक कि करबला पहुँच गए, हुर्र और उसके साथियों ने इमाम को और आगे जाने से रोक दिया, हुर्र ने कहां यहीं रुक जाइये कि फ़ुरात पास में ही है। हुर्र ने एक पत्र इब्ने ज़ियाद को लिखा और उसको इमाम के करबला में ठहरने की सूचना दी।

हुर्र की तौबा

हुर्र अगरचे इमाम के साथ सख़्ती से पेश आया लेकिन उसका व्यहार इमाम के साथ सम्मान जनक था यहां तक कि उसने एक बार हज़रत फ़ातेमा (स) के विशेष सम्मान की भी बात कही। (14)

 

आशूरा को उमरे सअद ने अपनी सेना को तैयार किया और सेना की हर टुकड़ी का कमांडर नियुक्त किया, उसने हुर्र को बनी तमीम और बनी हमदान का सेनापति नियुक्त किया और इस प्रकार उमरे सअद की सेना हुसैन (अ) की साथ युद्ध के लिये तैयार हो गई।

हुर्र ने जब कूफ़ियों को इमाम हुसैन (अ) के साथ युद्ध करने के लिये तैयार देखा तो उमरे सअद के पास गया और कहाः क्या तुम इस मर्द (इमाम हुसैन) से युद्ध करना चाहते हो? उसने कहाः हां ख़ुदा की क़सम ऐसी जंग करूँगा कि सर और हाथ हवा में उड़ते दिखाई देंगे।

हुर्र ने कहाः क्या तुमको उनका सुझाव पसंद नहीं आया? इब्ने सअद ने कहाः अगर चीज़ें मेरे हाथ में होती तो स्वीकार कर लेता लेकिन तेरा अमीर (उबैदुल्लाह) नहीं मानता है।

हुर्र उमरे सअद से अलग हो गए और सेना के एक कोने में खड़े हो गए और धीरे धीरे इमाम की सेना के क़रीब बढ़ने लगे। मोहाजिर बिन ओवैस (जो सअद की सेना में था) ने हुर्र से कहाः क्या हमला करना चाहते हो? हुर्र ने कांपते हुए उत्तर दियाः नहीं, मोहाजिर ने कहाः ख़ुदा की क़सम मैंने तुमको किसी भी युद्ध में इस प्रकार नहीं देखा अगर कोई मुझसे पूछता कूफ़ा का सबसे बहादुर व्यक्ति कौन है तो मैं तेरा नाम लेता, तुम इस प्रकार क्यों कांप रहे हो?

हुर्र ने कहाः निसंदेह मैं स्वंय को स्वर्ग और नर्क के बीच पाता हूँ ईश्वर की सौगंध अगर टुकड़े टुकड़े कर दिया जाऊँ और मुझे आग में जला दें तो मैं स्वर्ग के अतिरिक्त किसी दूसरी चीज़ को स्वीकार नहीं करूँगा। हुर्र ने यह कहा और अपने घोड़े को एड़ लगाई और हुसैनी ख़ैमों की तरफ़ चल पड़ा।

उसने इमाम से क्षमा मांगी, इमाम ने उसको क्षमा किया और फ़रमाया तुम दुनिया और आख़ेरत में आज़ाद (हुर्र) हो। (15)

शहादत

हज़रत हुर्र की तौबा और उनकी शहादत में बहुत अधिक फ़ासेला नहीं था, एक रिवायत के अनुसार हुर्र ने इमाम हुसैन (अ) से कहा कि चूँकि उसी ने सबसे पहले इमाम का रास्ता रोका था इसलिये अनुमति जीजिए की वही सबसे पहले शत्रु की सेना से लड़ने जाए और शहादत पेश करे। (16)

हुर्र इमाम हुसैन (अ) की सेना में शामिल होने के तुरन्त बाद ही युद्ध के लिये चले गए और शत्रु के साथ लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुती दे दी। (17)

हज़रत हुर्र बहुत ही वीरता से लड़े और अगरचे उसका घोड़ा घायल हो चुका था और उसके कानों एवं माथे से ख़ून बह रहा था लगातार सिंहनाद पढ़ रहे ते और युद्ध करते जा रहे थे यहां तक की आपने शत्रु सेना के चालीस लोगों को मौत के घाट उतार दिया

इब्ने सअद की पैदल सेना ने एक साथ मिलकर उनपर आक्रमण किया और उनको शहीद कर दिया कहा जाता है कि आपकी शहादत में दो लोग शरीक थे एक अय्यूब बिन मिसरह और दूसरा कूफ़े का एक व्यक्ति।

इमाम के साथी उनकी लाश को लाए इमाम ने उनके सरहाने पर बैठकर हुर्र के चेहरे से ख़ून को साफ़ किया और फ़रमायाः तुम आज़ाद हो जैसे कि तुम्हारी माँ ने तुम्हारा नाम रखा है, तुम दुनिया में भी आज़ाद हो और आख़ेरत में भी।

अंतिम संस्कार

सैय्यद मोहसिन अमीन के अनुसार (18) जब करबला के शहीदों को बनी असद के लोदों द्वारा दफ़्न किया जाने लगा तो हुर्र के क़बीले के एक गुट ने हुर्र को करबला के दूसरे शहीदों के साथ दफ़्न न होने दिया और उनको दूसरे शहीदों से दूर एक स्थान पर जिसका पहले नाम नोवावीस था दफ़्न किया (19) और यही कारण है कि हुर्र की क़ब्र इमाम हुसैन (अ) की क़ब्र से एक मील की दूरी पर स्थित है, इस समय हुर्र का मक़बरा करबला से सात किलोमीटर की दूरी पर है।

 

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(1)इब्ने कल्बी जिल्द 1, पेज 213, 216

(2)बिलाज़री जिल्द 2, पेज 472,476,489, दैनवरी पेज 249, तबरी जिल्द 5, पेज 422

(3)देखें समावी पेज 203

(4)तबरी जिल्द 5, पेज 392, 427, इब्ने कसीर जिल्द 8, पेज 195

(5)बलाज़री जिल्द 2, पेज 473, दैनवरी पेज 252, तबरी जिल्द 5, पेज 402-403।

(6)जिल्द 4, पेज 704।

(7.8)मसीरुल अहज़ान, पेज 44.

(9)नफ़सुल महमूम, पेज 231.

(10)बिलाज़री जिल्द 2, पेज 472, तबरी जिल्द 5, पेज 400, मुफ़ीद जिल्द 2, पेज 69, अख़तब ख़्वारज़्म, जिल्द 1, पेज 327, 330.

(11)बिलाज़री जिल्द 2, पेज 473, दैनवरी पेज 249-250, मुफ़ीद जिल्द 2, पेज 80, अख़तब ख़्वारज़्म जिल्द 1, पेज 332.

(12)बिलाज़री जिल्द 2, पेज 473-474, तबरी जिल्द 5, पेज 403-406, अख़तब ख़्वारज़्म जिल्द 1, पेज 331-333

(13)दैनवरी, पेज 251, तबरी जिल्द 5, पेज 408-409, मुफ़ीद जिल्द 2, पेज 81-84, अख़तब ख़्वारज़्म जिल्द 1, पेज 334

(14)बिलाज़री जिल्द 2, पेज 475-476, 479, तबरी जिल्द 5, पेज 392, 422, 427-428, मुफ़ीद जिल्द 2, पेज 100-101, अख़तब ख़्वारज़, जिल्द 2, पेज 12-13 इमाम के इस कथन को हुर्र के युद्ध के बाद का समझते हैं

(15)बिलाज़री जिल्द 2, पेज 475-476, 479, तबरी जिल्द 5, पेज 392, 422, 427-428, मुफ़ीद जिल्द 2, पेज 100-101, अख़तब ख़्वारज़, जिल्द 2, पेज 12-13 इमाम के इस कथन को हुर्र के युद्ध के बाद का समझते हैं

(16)इब्ने अअसम कूफ़ी, जिल्द 5, पेज 101, अख़तब ख़्वारज़म, जिल्द 2, पेज 13

(17)बिलाज़री जिल्द 2, पेज 476, 489, 494, 517, तबरी जिल्द 5, पेज 428-429, 434-435, 437, 440-441, मुफ़ीद, जिल्द 2, पेज 102-104

(18)जिल्द 1, पेज 613

(19)इब्ने कल्बी, जमहरतुन नसब, जिल्द 1, पेज 216

आप महान व सर्वसमर्थ ईश्वर से प्रेम करने वाले व्यक्तियों को पहचानते हैं? ईश्वर से प्रेम करने वालों का हृदय उसके प्रेम में डूबा होता है। वे लोगों की समस्याओं का समाधान करते हैं और वे हर उस कार्य के लिए कदम बढ़ाते हैं और प्रयास करते हैं जिसमें महान ईश्वर की प्रसन्नता होती है। वे महान ईश्वर के प्रेम में रातों को उपासना करते हैं, प्रार्थना करते हैं और पवित्र कुरआन की तिलावत करते हैं। वे दुनिया में रहते हैं कार्य व प्रयास करते हैं परंतु कभी भी वे दुनिया के क्षणिक आनंदों के धोखे में नहीं आते और पवित्र कुरआन के अनुसार ईश्वर के प्रेम में जीवन बिताने वाले व्यक्ति को व्यापार उसकी याद से निश्चेत नहीं कर सकते।

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम उन महान हस्तियों में से एक हैं जो ईश्वरीय प्रेम की प्रतिमूर्ति थे और पवित्र कुरआन के अस्तित्व से मिश्रित हो गये थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम, हज़रत अली और हज़रत फातेमा ज़हरा की गोद में पले बढ़े थे और बाल्याकाल से ही वह ईश्वरीय ग्रंथ पवित्र कुरआन से पूर्णरूप से परिचित थे। पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने प्रसिद्ध कथन में कहा है कि हमारे परिजन और कुरआन एक दूसरे से अलग नहीं होगें। उनका कथन है कि मैं तुम्हारे बीच दो मूल्यवान चीज़ें छोड़ कर जा रहा हूं एक अपने परिजन और दूसरे ईश्वरीय किताब कुरआन और यह दोनों एक दूसरे से अलग नहीं होंगे यहां तक कि वे हौज़े कौसर पर एक साथ मेरे पास आयेंगे” जब पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों और पवित्र कुरआन के मध्य इस प्रकार का संबंध है तो स्पष्ट है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम सदगुणों व ईश्वरीय विशेषताओं के स्वामी एवं प्रतिमूर्ति हैं।

क्योंकि जिस हस्ती को पैग़म्बरे इस्लाम ने पवित्र कुरआन का समतुल्य बताया है उसे प्रकार के अवगुणों से पवित्र होना चाहिये वरना पैग़म्बरे इस्लाम के प्रसिद्ध कथन पर प्रश्न चिन्ह लग जायेगा। दूसरे शब्दों में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम कुरआने नातिक़ यानी बोलने वाला कुरआन हैं और उनका सदाचरण पवित्र कुरआन की अमली व्याख्या है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का सदाचरण पवित्र कुरआन से इस प्रकार मिश्रित था कि उन्होंने कर्बला की तपती भूमि पर पवित्र कुरआन की आयतों की तिलावत करके यज़ीद की राक्षसी सेना को उसके परिणामों से अवगत कराया परंतु जब राक्षसी सेना पर उनकी नसीहतों का कुछ असर नहीं हुआ तो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने यज़ीदी सेना से कहा तुम्हारे पेट हराम से भरे हुए हैं इसलिए मेरी नसीहतों का तुम पर कोई प्रभाव नहीं हो रहा है। यहां इस बात का उल्लेख आवश्यक है कि अगर इंसान का पेट हराम से भरा होता है तो नसीहतें उस पर असर नहीं करती हैं और नसीहत करने वाला इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम जैसी महान हस्ती ही क्यों न हो।

मोआविया के मर जाने के बाद जब धर्मभ्रष्ठ व अत्याचारी यज़ीद शासक बना तो पवित्र नगर मदीना के गवर्नर की ओर से यज़ीद की बैअत करने के लिए उन पर दबाव में वृद्धि हो गयी। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इस दबाव के जवाब में स्वयं को और पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों को पहचनवाया और उन्हें ज्ञान का स्रोत बताया और यज़ीद को धर्मभ्रष्ठ व्यक्ति बताया तथा उसके बाद पवित्र नगर मदीने के गवर्नर से कहा कि जब वह धर्मभ्रष्ठ व्यक्ति है तो किस प्रकार मैं उसकी बैअत कर सकता हूं? पवित्र नगर मदीना के गवर्नर ने जब यज़ीद की बैअत के लिए आग्रह किया तो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने उसे कुरआन की ततहीर नाम से प्रसिद्ध आयत की तिलावत करके सुनाया जिसमें महान ईश्वर कहता है कि हमने अहले बैत को हर प्रकार की बुराई व गन्दगी से पवित्र रखा है जिस तरह से पवित्र रखने का हक़ है।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पर धर्मभ्रष्ठ शासक यज़ीद की बैअत के लिए जब दबाव बहुत बढ़ गया तो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम अपने निकट परिजनों के साथ पवित्र नगर मदीना से मक्का की ओर चले गये ताकि वहां पर हज कर सकें और काबे के पास खतरों से सुरक्षित रहें और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पवित्र कुरआन के सूरे क़सस की २१वीं आयत की बार बार तिलावत फरमाते थे कि हे हमारे पालनहार! अत्याचारी कौम से हमें मुक्ति प्रदान कर” यह आयत वह दुआ है जो हज़रत मूसा ने फिरऔन से मुक्ति पाने के लिए किया था। हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने जिन आयतों की तिलावत की वह इस बात की सूचक हैं कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को जनाब मूसा की भांति केवल अत्याचारी शासक यज़ीद की ओर से खतरा था। इसी प्रकार इन आयतों की तिलावत इस बात की सूचक है कि मुसलमानों ने पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के साथ अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभाई। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम, यज़ीद जैसे धर्मभ्रष्ठ व्यक्ति की न तो बैअत कर सकते थे और न ही इस्लामी शिक्षाओं की उपेक्षा के प्रति निश्चिन्त  रह सकते थे इसलिए उन्होंने लोगों को जागरुक बनाने का फैसला किया। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने पवित्र नगर मक्का में दो पत्र लिखा एक बसरा के लोगों के नाम और दूसरा कूफा वासियों के लिए। इमाम हुसैन ने बसरा के लोगों को संबोधित करते हुए लिखा” बेशक पैग़म्बरे इस्लाम कुरआन के साथ तुम्हारे पास भेजे गये और मैं तुम्हें ईश्वर की किताब और पैग़म्बरे इस्लाम की परंपरा की ओर बुला रहा हूं क्योंकि पैग़म्बरे इस्लाम की सुन्नत व परम्परा को भुला दिया गया है और नई नई चीज़ों को धर्म में उत्पन्न कर दिया गया है। अगर हमारी बात सुनोगे तो हम सफलता व मुक्ति के मार्ग की ओर पथप्रदर्शन करेंगे।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इसी प्रकार कूफा वासियों के नाम पत्र में लिखा” मार्गदर्शक नहीं है मगर यह कि जो ईश्वर की किताब का पालन करने के लिए आमंत्रित करे, न्याय लागू करे और सत्य व हक को समाज के संचालन का आधार बनाये और ईश्वर के सीधे मार्ग में स्वयं की रक्षा करे”

जी हां पवित्र कुरआन और सुन्नत की ओर लोगों का मार्गदर्शन इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ज़िम्मेदारी थी। कूफावासियों ने हज़ारों पत्र लिखकर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को बुलाया जिसके बाद इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम इराक की ओर रवाना हो गये लेकिन शत्रु की सेना ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को कर्बला पहुंचने से पहले उनका रास्ता रोक लिया। उस समय कूफावासियों ने न केवल अपने वचनों पर अमल नहीं किया बल्कि उसके विपरीत व्यवहार किया और बहुत से कूफावासी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को शहीद करने के लिए उमर बिन साअद की सेना से जा मिले परंतु इमाम हुसैन अलैहिस्लाम का हृदय ईश्वरीय प्रेम से ओत प्रोत था और वह अच्छी तरह जानते थे कि सच्चा रास्ता वही है जिस पर वे अग्रसर हैं।

जब नवीं मोहर्रम की दोपहर को उमर बिन साद ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के खैमों पर हमले का आदेश दिया और सेना उनके ख़ैमों की तरफ बढने लगी तब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने प्राणप्रिय भाई जनाब अब्बास से कहा कि वह दुश्मन से जाकर कह दें कि एक रात का हमें अवसर दिया जाये ताकि हम नमाज़ पढें और कुरआन की तिलावत करें और ईश्वर से प्रार्थना करें। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने आशूरा की रात को एक वाक्य कहा जो महान व सर्वसमर्थ ईश्वर के प्रति उनके अथाह प्रेम व निष्ठा को दर्शाता है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि ईश्वर अच्छी तरह जानता है कि मैं हमेशा नमाज़ पढ़ने, कुरआन की तिलावत करने, बहुत दुआ करने और उसकी बारगाह में प्रायश्चित करने को बहुत पसंद करता हूं”

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने आशूरा की रात और दिन को लोगों के मार्गदर्शन के लिए विभिन्न आयतों की तिलावत फरमाई। आशूरा की रात को इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने पवित्र कुरआन की इस आयत की तिलावत की कि जो लोग काफिर हो गये हैं वे इस बात की कल्पना न करें कि अगर उन्हें अवसर दिया गया है तो उनके फायदे में है! हम उन्हें अवसर देते हैं ताकि वे अपने पापों में वृद्धि करें और उनके लिए अपमानित करने वाला दंड तैयार है। एसा नहीं है कि तुम जैसे हो ईश्वर ने मोमिनों को अपनी हाल पर छोड़ दिया है किन्तु यह कि पवित्र को अपवित्र से अलग करे”

इसी तरह इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम आशूरा के दिन जब भी खुत्बा देते थे पवित्र कुरआन की विभिन्न आयतों का सहारा लेते थे ताकि दिग्भ्रमित लोगों व सैनिकों को उनकी ग़लती से अवगत करायें। आशूरा के दिन जब उमरे साअद की सेना के मोहम्मद बिन असअस नाम के एक व्यक्ति ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पर कटाक्ष करते हुए कहा कि हे फातेमा के बेटे हुसैन! तुम्हारे अंदर पैग़म्बरे इस्लाम की कौन सी विशेषता व श्रेष्ठता है जो दूसरों में नहीं है? इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने उसके उत्तर में सूरे आले इमरान की ३३वीं आयत की तिलावत की कि ईश्वर ने आदम, नूह, आले इब्राहीम और आले इमरान को विश्व वासियों पर श्रेष्ठता प्रदान की है” इस प्रकार उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि मैं हज़रत इब्राहीम की योग्य संतान हूं और ईश्वर ने उन्हें दूसरों पर वरियता दी है। जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने देखा कि शत्रु की सेना पर उनकी नसीहतों का कोई प्रभाव नहीं हो रहा है तो पवित्र कुरआन की इस आयत की तिलावत फरमाई” हे मेरी कौम! अगर मेरी नसीहतें तुम पर भारी हैं तो तुम जो कर सकते हो करो मैंने ईश्वर पर भरोसा किया है अपनी सोचों और अपने पूज्यों की शक्ति एकट्ठा करो उसके बाद तुम पर कोई चीज़ पोशीदा नहीं रहेगी अपने कार्यों के हर आयाम पर सोच लो उसके बाद मेरे जीवन को समाप्त कर दो और एक क्षण का भी मुझे अवसर मत देना!” क्रूर शत्रुओं ने हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके वफादार साथियों के साथ भी यही किया और उन्हें तथा उनके वफादार एवं निष्ठावान साथियों को तीन दिन का भूखा प्यासा कर्बला के मरूस्थल में शहीद कर दिया।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पवित्र कुरआन से बहुत प्रेम करते थे उनका यह प्रेम उनके भौतिक जीवन तक सीमित नहीं था बल्कि शहादत के बाद भी जारी था। सल्मा  बिन कुहैल कहती हैं” मैंने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पवित्र सिर को देखा जो भाले पर इस आयत की तिलावत कर रहा था ईश्वर उनकी बुराई को तुमसे दूर करता है वह देखने व जानने वाला है” इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की नसीहतें, सदाचरण और कथन सबके सबका स्रोत पवित्र कुरआन है। इमाम हुसैन अलैहिस्लाम ने क्षण भर के लिए भी अपमान को स्वीकार नहीं किया और उनका महाआंदोलन प्रतिष्ठा और पवित्र कुरआन पर चलने का सर्वोत्तम उदाहरण है।

राष्ट्रपति और ईरानी सरकार के प्रतिनिधिमंडल के सदस्य तेहरान में इस्लामी व्यवस्था के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. के हरम में हाज़िर हुए और स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. की आकांक्षाओं के प्रति वचनबद्धता जताई।

राष्ट्रपति मसऊद पिज़िश्कियान और ईरानी सरकार के प्रतिनिधिमंडल के सदस्य सरकार का हफ़्ता या सत्ता सप्ताह आरंभ होने के अवसर पर इस्लामी व्यवस्था के संस्थापक के रौज़े में हाज़िर हुए।

प्रेस टीवी की रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रपति मसऊद पिज़िश्कियान ने इस समारोह में कहा कि ईरानी सरकार के प्रतिनिधिमंडल के सदस्य अपने उन वचनों के प्रति कटिबद्ध हैं जो उन्होंने लोगों को दिया है।

राष्ट्रपति ने इसी प्रकार ग़ज़ा पट्टी और पश्चिम एशिया में ज़ायोनी सरकार के अपराधों की ओर संकेत करते हुए कहा कि अगर मुसलमान अल्लाह की रस्सी को थामे होते यानी एकजुट होते तो ज़ायोनी सरकार क्षेत्र में इन अपराधों को अंजाम देने का दुस्साहस न करती।

 

 उल्लेखनीय है कि (राष्ट्रपति) मोहम्मद अली रजाई और (प्रधानमंत्री) हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मोहम्मद जवाद बाहुर की शहीदत के उपलक्ष्य में शहरीवर महीने के पहले हफ़्ते को ईरान में सत्ता सप्ताह के रूप में मनाया जाता है।

वर्ष 1981 में प्रधानमंत्री कार्यालय में आतंकवादी गुट एमकेओ के तत्वों ने बम का धमाका किया था जिसमें तत्कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद अली रजाई और प्रधानमंत्री मोहम्मद जवाद बाहुनर शहीद हो गये थे।

ईरान के इंटेलिजेन्स मंत्रालय ने एक बयान जारी करके देश के चार प्रांतों में दाइश के 14 आतंकवादियों की गिरफ़्तारी की सूचना दी है। 

ईरान के इंटेलिजेन्स मंत्रालय ने अपने बयान में एलान किया है कि अदालत के आदेश से (दाइश ख़ुरासान) नामक अमेरिकी- ज़ायोनी आतंकवादी गुट के 14 तत्वों की पहचान करके गिरफ़्तार कर लिया गया है।

ईरान के इंटेलिजेन्स के बयान के अनुसार 14 आतंकवादियों में से दाइश के सात आतंकवादियों को फ़ार्स प्रांत में और सात अन्य को तेहरान, अलबुर्ज़ और ख़ुज़िस्तान प्रांतों में गिरफ़्तार किया गया है।

आतंकवादी गुट दाइश ने 2011 में कुछ देशों के संदिग्ध समर्थन से पश्चिम एशिया, इराक़ और सीरिया में अपने अस्तित्व का एलान किया। इस गुट के अस्तित्व में लाने का लक्ष्य ज़ायोनी सरकार के विरोधी देशों की सामाजिक और राष्ट्रीय व्यवस्था में अराजकता फ़ैलाना था।

इस आतंकवादी गुट ने स्वयं का परिचय इस्लाम के प्रतिनिधि के रूप में कराया है और इस्लाम के प्रतिनिधि के नाम पर उसने बहुत से मुसलमानों की हत्या की है और बहुत से मुसलमानों की एतिहासिक धरोहरों को तबाह कर दिया।

इस्लामी गणतंत्र ईरान, इराक़ी और सीरियाई सरकार की आधिकारिकारिक मांग पर आतंकवाद से मुक़ाबले में इन देशों की मदद कर और सैनिक परामर्श दे रही है और अंत में वर्ष 2017 में ईरान की सिपाहे पासदारान फ़ोर्स के क़ुद्स ब्रिगेड के कमांडर जनरल क़ासिम सुलैमानी और प्रतिरोध के जियालों के संघर्ष से दाइश की सरकार का अंत व सफ़ाया हो गया और इसके बाद से हर कुछ समय पर दाइश के बचे- खुचे तत्व आतंकवादी कार्यवाहियां करते रहते हैं।

अमेरिकी अधिकारियों के दावों के बावजूद इस्लामी गणतंत्र ईरान ने बारमबार दावा किया है कि कोई कारण नहीं है कि तेहरान अमेरिकी चुनावों में हस्तक्षेप करे क्योंकि अमेरिका में चुनाव इस देश का आंतरिक मामला है।

ट्रंप के चुनावी प्रवक्ता ने ईरान के ख़िलाफ़ दावा किया कि ईरान से संबंधित हैकरों ने जून महीने में एक वरिष्ठ अधिकारी के एकाउंट से अमेरिका में राष्ट्रपति के चुनावों में घुसपैठ करने की कोशिश की।

ईरानी समाचार पत्र क़ुद्स ने लिखा कि steven chong ने किसी प्रकार के प्रमाण के बिना दावा किया परंतु अमेरिका की फ़ेडरल जांच एजेन्सी एफ़बीआई ने एलान किया है कि अमेरिकी चुनाव में हस्तक्षेप के संबंध में डोनाल्ड ट्रंप के चुनावी कंपेन ने जो दावा किया है उसके बारे में जांच की जा रही है।

इसी संबंध में राष्ट्रसंघ में इस्लामी गणतंत्र ईरान के राजदूत ने अमेरिकी चुनावों में हस्तक्षेप पर आधारित डोनाल्ड ट्रंप के दावों को रद्द कर दिया और बल देकर कहा है कि कोई लक्ष्य व कारण नहीं है कि ईरानी सरकार अमेरिका में होने वाले राष्ट्रपति के चुनावों में हस्तक्षेप करे।

इससे पहले अमेरिका की रिपब्लिकन पार्टी की ओर से चलाये जा रहे कंपेन्स की ओर से यह दावा किया गया था कि तेहरान अमेरिका में राष्ट्रपति के लिए होने वाले चुनावों में नकारात्मक प्रभाव डालने की कोशिश कर रहा है। इसी प्रकार ट्रंप के चुनावी आयोग की ओर से ईरान पर हैक करने और कुछ पेपरों की चोरी का आरोप लगाया था।

चुनाव में जीत हासिल करने के लिए ट्रंप का पुराना हथकंडा 

अमेरिकी मामलों के जानकार व विशेषज्ञ अमीर अली अबूल फ़त्ह ने समाचार पत्र क़ुद्स से वार्ता में अमेरिकी चुनाव में हस्तक्षेप पर आधारित ट्रंप के चुनावी आयोग के दावे की ओर संकेत करते हुए कहा कि अमेरिका में राष्ट्रपति के चुनाव का समय निकट है और इस देश में संचार माध्यमों की सरगर्मियों को ध्यान में रखते हुए ट्रंप की कोशिश है कि वह चुनावी दावं व चाल का प्रयोग करके अमेरिकी समाज को ऐसी तरफ़ ले जाना चाहते हैं कि दुनिया की सतह पर अपने को पेश करने के अलावा बाइडेन सरकार के सुरक्षा तंत्रों विशेषकर अमेरिका की फ़ेडरल पुलिस एफ़बीआई की क्षमताओं पर प्रश्न चिन्ह लगा सकें।

अबूल फ़त्ह कहते हैं कि यह वही चाल है जिसका प्रयोग ट्रंप ने वर्ष 2016 में अमेरिका में होने वाले राष्ट्रपति पद के चुनावों में इस्तेमाल किया था और दावा किया था कि रूस ने अमेरिकी चुनावों में हस्तक्षेप किया है। वास्तव में वह इंटरनेश्नल पैमाने पर चर्चित ईरान, रूस और चीन जैसे देशों का नाम लेकर अधिक से अधिक मत हासिल करने की चेष्टा में हैं। ट्रंप के चुनावी आयोग ने पेपरों को हैक करने के संबंध में जो दावा किया है वह ट्रंप का जाना पहचाना दावं है और उसे गंभीरता से नहीं लेना चाहिये।

उन्होंने कहा कि ट्रंप के चुनावी प्रवक्ता steven chong के दावे के साथ राष्ट्रसंघ में ईरानी राजदूत ने एलान किया है कि यह दावा निराधार आरोप के सिवा कुछ और नहीं है बल्कि अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों में तेहरान के हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है कि वह किसी उम्मीदवार के हित में या उसके ख़िलाफ़ हस्तक्षेप करे। साथ ही ईरानी राजदूत ने अमेरिका की फ़ेडरल पुलिस से मांग की है कि वह तेहरान के हस्तक्षेप पर आधारित सुबूतों को पेश करे ताकि उसका उचित जवाब दिया जा सके। यह ऐसी स्थिति में है जब अभी तक अमेरिकी चुनाव में हस्तक्षेप पर आधारित ट्रंप के चुनावी आयोग की ओर की ओर से कोई प्रमाण पेश नहीं किया गया है।

अमेरिकी मामलों के विशेषज्ञ बल देकर कहते हैं कि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान के पास दुनिया में साइबर क्षमता व ताक़त है और अमेरिका के सुरक्षा तंत्रों की घोषणा के आधार पर इंटरनेश्नल पैमाने पर ईरान को साइबर शक्ति समझा जाता है। इसी प्रकार अमेरिकी मामलों के विशेषज्ञ कहते हैं कि साइबर क्षेत्र में ईरान के पास ताक़त होने के बावजूद वह अमेरिका में होने वाले चुनाव में किसी प्रकार का हस्तेक्षप नहीं कर रहा है जबकि अमेरिका ने दुनिया के 80 से अधिक स्वतंत्र व स्वाधीन देशों में विद्रोह कराने और वहां की सरकारों को गिराने में परोक्ष और अपरोक्ष भूमिका निभाई है और आज अमेरिका पर विश्व के विभिन्न देशों में होने वाले चुनावों में हस्तक्षेप का भी आरोप है और इस्लामी गणतंत्र ईरान जैसे देशों पर अमेरिकी चुनाव में हस्तक्षेप पर आधारित आरोप निराधार आरोप से अधिक कुछ और नहीं है।

शुक्रवार, 23 अगस्त 2024 15:29

सियाहपोस्त गुलाम “जौन”

जौन बिन हुवैइ बिन क़तादा बिन आअवर बिन साअदा बिन औफ़ बिन कअब बिन हवी (1), कर्बला के बूढ़े शहीदों मे से थे। आप अबूज़र ग़फ़्फ़ारी और इमाम हुसैन (अ) के दास थे। आप अबूज़र ग़फ़्फ़ारी के दास होने से पहले फ़ज़्ल बिन अब्बास बिन मुत्तलिब के दास थे लेकिन इमाम अली (अ) ने आपको फज़्ल से 150 दीनार में ख़रीद के अबूज़र को दे दिया ताकि आप अबूज़र की सेवा करें, जब उस्मान ने पैग़म्बर के सहाबी अबूज़र को मदीने से मबज़ा निर्वासित कर दिया तो हज़रत जौन भी आपके साथ रबज़ा चले गए और सन 32 हिजरी में अबूज़र के निधन के बाद आप वापस मदीने आए और इमाम अली (अ) के घर में दोबारा रहने लगे और उसके बाद सदैव इस ख़ानदान के सेवक बन के रहे, पहले इमाम अली (अ) की सेवा की फ़िर इमाम हसन के ग़ुलाम रहे उसके बाद इमाम हुसैन और अंत में इमाम सज्जाद (अ) की दासता का सम्मान आपको नसीब हुआ।

कर्बला में उपस्थिति

सन साठ हिजरी में जब इमाम हुसैन ने मदीने से मक्के की तरफ़ अपनी यात्रा आरम्भ की तो जौन भी आपके साथ साथ मक्के आ गए और फिर आपने अपने आक़ा इमाम हुसैन के साथ मक्के से कर्बला तक का सफ़र किया और शत्रुओं के साथ जंग में अपने ख़ून की अंतिम बूंद तक अपने इमाम की सुरक्षा की।(2)

बहुत से इतिहासकारों और रेजाल के ज्ञाताओं ने अपनी पुस्कों में हज़रत जौन के बारे में इस प्रकार लिखा हैः

चूँकि यह दास हथियारों का अच्छा जानकार और हथियार एवं युद्ध अस्त्रों को बनाने में माहिर था इसलिये, आशूरा की रात को इमाम हुसैन (अ) के विशेष ख़ैमे में केवल यह जौन ही थे जो इमाम के पास थे और तलवारों को सही कर रहे थे और उनकी धार तेज़ कर रहे थे। (3)

इमाम सज्जाद (अ) से मिलता है किः जौन मेरे पिता के ख़ैमे में तलवारों पर धार रख रहे थे और मेरे पिता यह शेर पढ़ रहे थेः

یا دهر اف لک من خلیل، کم لک بالاشراق و الاصیل...

हे ज़माने वाय हो तुझ पर कि हर सुबह और शाम मेरे एक दोस्त को मुझसे छीन लेता है.... (4)

जंग की अनुमति मांगना

आशूर के दिन जौन ने ज़ोहर की नमाज़ इमाम के साथ पढ़ी लेकिन उसके बाद जब इस बूढ़े ग़ुलाम ने मौला के साथियों को एक के बाद एक मैदान में जाकर अपनी जान क़ुरबान करते देखा तो एक बार यह बूढ़ा दास अपनी कमर को थामे हुए इमाम हुसैन (अ) के पास आता है और आपने युद्ध की अनुमति मांगता है।

इमाम ने फ़रमायाः یا جون، انت فی اذن منی، فانما تبعتنا طلبا للعافیة فلا تبتل بطریقتنا

 

हे जौर तुम तो हमसे आराम और सुकून के लिये मिले थे और हमारे अनुयायी हुए थे तो अपने आप को हमारी मुसीबत में न डालो।

जब जौन ने यह सुना तो अपने आप को इमाम के पैरों पर गिरा दिया और कहाः मैं सुकून के दिनों में आपकी क्षत्रछाया में आराम के साथ था, यह कहां का इंसाफ़ है कि अब जब आपकी मुसीबतों के दिन आरम्भ हुए हैं मैं आपको अकेला छोड़ दूँ और यहां से चला जाऊँ,

लेकिन इसके  बाद भी इमाम हुसैन (अ) ने जौन को मैदान में जाने की आज्ञा नहीं दी तो जौन ने एक जुम्ला कहाः हे मेरे आक़ा यह सही है कि मेरे बदन के ख़ून से बदबू आती है, मेरा स्थान छोटा है, मेरा रंग काला है लेकिन क्या आप मुझे स्वर्ग में जाने से रोक देंगे? मेरे लिये दुआ कीजिये... ख़ुदा की क़सम मैं आपसे अलग नहीं होऊँगा यहां तक की अपने काले ख़ून को आपके ख़ून से लिया दूँ।

हज़रत जौन का सिंहनाद

उसके बाद जौन को मैदान में जाने की अनुमति मिलती है आप मैदान में आते हैं और इस प्रकार सिंहनाद करते हैः

 کَیْفَ یَریَ الْفجَّارُ ضَرْبَ الأَسْوَدِ • بِالْمُشْرِفِی الْقاطِعِ الْمُهَنَّدِ

 

بِالسَّیْفِ صَلْتاً عَنْ بَنی مُحَمَّدٍ • أَذُبُّ عَنْهُمْ بِاللِّسانِ وَالْیَدِ  (5)

أَرْجُو بِذاکَ الْفَوْزَ عِنْدَ الْمَوْرِدِمِنَ الالهِ الْواحِدِ الْمُوَحَّدِ (6)

कैसा देखते हैं पापी हिन्दुस्तानी तलवार की मार को एक काले ग़ुलाम के हाथों

में अपने हाथ और ज़बान से पैग़म्बर (स) के बेटों की सुरक्षा करूँगा

ईश्वर के नज़दीक एकमात्र शिफ़ाअत करने वाले से शिफ़ाअत की आशा लगाये हूँ।

शहादत

इतिहासकारों के कथानुसार आपने 25 यजीदियों (7) और मक़तले अबी मख़निफ़ के अनुसार आपने 70 यज़ीदियों को नर्क भेजा और कुछ को घायल कर दिया, लेकिन चूँकि जौन भी तीन दिन से भूखे प्यासे थे और ऊपर से उनकी आयु भी अधिक हो चुकी थी इसलिये थकन आप पर हावी होने लगी और इसी बीच एक मलऊन ने आप पर तलवार से हमला कर दिया तलवार आपके सर पर लगी और आप घोड़े से नीचे गिर पड़े अपने आक़ा को आवाज़ दी, इमाम हुसैन दौड़ते हुए जौन के पास पहुँचे और जौन के सर को अपने ज़ानू पर रख लिया और इमाम को याद आया कि जौन के किस प्रकार अपने काले रंग और बदबू का ख़्याल था एक बार हुसैन ने आसमान की तरफ़ हाथों को प्रार्थना के लिये उठाया और फ़रमायाः

हे ईश्वर उनके चेहरो को सफ़ेद कर दे औऱ उसकी बू को ख़ुशबू में बदल दे और उनके अच्छों के साथ महशूर कर और उसके और मोहम्मद व आले मोहम्मद के बीच दूर न पैदा कर।

इमाम बाक़िर (अ) से रिवायत है किः आशूर के बाद लोग शहीदों की लाशों को जब दफ़नाने के लिये आये तो दस दिन के बाद जौन की लाश उनको मिली और उस समय भी आप से मृगमद की ख़ुशबू आ रही थी। (8)

ज़ियारत

इमामे ज़माना (अ) से मंसूब जियारते नाहिया में हज़रत जौन को इस प्रकार याद किया गया है और समय का इमाम हुसैन पर अपनी जान निछावर कर देने वाले दास पर इन शब्दों में ज़ियारत पढ़ रहा हैः

السَّلامُ عَلی جُونِ بْنِ حَرِیّ مَوْلی ابی ذَرِ الْغَفّارِیِّ (9)

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  1. तंक़ीहुल मक़ाल, जिल्द 1 पेज 238
  2. रेजाले शेख़ तूसी, पेज 99
  3. तारीख़े तबरी, जिल्द 5, पेज 420
  4. फ़रहंगे आशूरा
  5. मनाक़िब इबने शहर आशोब, जिल्द 3, पेज 252
  6. बिहारुल अनवार, जिल्द 45, पेज 23
  7. मक़तलुल हुसैन (अ) मक़रम, पेज 252
  8. नफ़सुल महमूम, पेज 264
  9. बिहारुल अनवार जिल्द 45. पेज 71

तौहीद का अक़ीदा सिर्फ़ मुसलमानों के ज़हन व फ़िक्र पर असर अंदाज़ नही होता बल्कि यह अक़ीदा उसके तमाम हालात शरायत और पहलुओं पर असर डालता है। ख़ुदा कौन है? कैसा है? और उसकी मारेफ़त व शिनाख्त एक मुसलमान की फ़रदी और इज्तेमाई और ज़िन्दगी में उसके मौक़िफ़ इख़्तेयार करने पर क्या असर डालती है? इन तमाम अक़ायद का असर और नक़्श मुसलमान की ज़िन्दगी में मुशाहेदा किया जा सकता है।

हर इंसान पर लाज़िम है कि उस ख़ुदा पर अक़ीदा रखे जो सच्चा है और सच बोलता है अपने दावों की मुख़ालेफ़त नही करता है जिसकी इताअत फ़र्ज़ है और जिसकी नाराज़गी जहन्नमी होने का मुजिब बनती है। हर हाल में इंसान के लिये हाज़िर व नाज़िर है, इंसान का छोटे से छोटा काम भी उसे इल्म व बसीरत से पोशीदा नही है... यह सब अक़ायद जब यक़ीन के साथ जलवा गर होते हैं तो एक इंसान की ज़िन्दगी में सबसे ज़्यादा मुवस्सिर उन्सुर बन जाते हैं। तौहीद की मतलब सिर्फ़ एक नज़रिया और तसव्वुर नही है बल्कि अमली मैदान में इताअत में तौहीद और इबादत में तौहीद भी उसी के जलवे और आसार शुमार होते हैं। इमाम हुसैन (अ) पहले ही से अपने शहादत का इल्म रखते थे और उसके ज़ुज़ियात तक को जानते थे। पैग़म्बर (स) ने भी शहादते हुसैन (अ) की पेशिनगोई की थी लेकिन इस इल्म और पेशिनगोई ने इमाम के इंके़लाबी क़दम में कोई मामूली सा असर भी नही डाला और मैदाने जेहाद व शहादत में क़दम रखने से आपको क़दमों में ज़रा भी सुस्ती और शक व तरदीद ईजाद नही किया बल्कि उसकी वजह से इमाम के शौक़े शहादत में इज़ाफ़ा हुआ, इमाम (अ) उसी ईमान और एतेक़ाद के साथ करबला आये और जिहाद किया और आशिक़ाना अंदाज़ में ख़ुदा के दीदार के लिये आगे बढ़े जैसा कि इमाम से मशहूर अशआर में आया है:

ترکت الخلق طرا فی ھواک و ایتمت العیال لکی اراک

कई मौक़े पर आपके असहाब और रिश्तेदारों ने ख़ैर ख़्वाही और दिलसोज़ी के जज़्बे के तहत आपको करबला और कूफ़े जाने से रोका और कूफ़ियों की बेवफ़ाई और आपके वालिद और बरादर की मजलूमीयत और तंहाई को याद दिलाया। अगरचे यह सब चीज़ें अपनी जगह एक मामूली इंसान के दिल शक व तरदीद ईजाद करने के लिये काफ़ी हैं लेकिन इमाम हुसैन (अ) रौशन अक़ीदा, मोहकम ईमान और अपने अक़दाम व इंतेख़ाब के ख़ुदाई होने के यक़ीन की वजह से नाउम्मीदी और शक पैदा करने वाले अवामिल के मुक़ाबले में खड़े हुए और कज़ाए इलाही और मशीयते परवरदिगार को हर चीज़ पर मुक़द्दम समझते थे, जब इब्ने अब्बास ने आप से दरख़्वास्त की कि इरा़क जाने के बजाए किसी दूसरी जगह जायें और बनी उमय्या से टक्कर न लें तो इमाम हुसैन (अ) ने बनी उमय्या के मक़ासिद और इरादों की जानिब इशारा करते हुए फ़रमाया انی ماض فی امر رسول اللہ صلی اللہ علیہ و آلہ وسلم و حیث امرنا و انا الیہ راجعون

और यूँ आपने रसूलल्लाह (स) के फ़रमूदात की पैरवी और ख़ुदा के जवारे रहमत की तरफ़ बाज़गश्त की जानिब अपने मुसम्मम इरादे का इज़हार किया, इस लिये कि आपने रास्ते की हक्क़ानियत का यक़ीन, दुश्मन के बातिल होने का यक़ीन, क़यामत व हिसाब के बरहक़ होने का यक़ीन, मौत के हतमी और ख़ुदा से मुलाक़ात का यक़ीन, इन तमाम चीज़ों के सिलसिले में इमाम और आपके असहाब के दिलों में आला दर्जे का यक़ीन था और यही यक़ीन उनको पायदारी, अमल की क़ैफ़ियत और राहे के इंतेख़ाब में साबित क़दमी की रहनुमाई करता था।

 

कलेम ए इसतिरजा (इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहे राजेऊन) किसी इंसान के मरने या शहीद होने के मौक़े पर कहने के अलावा इमाम हुसैन (अ) मंतिक़ में कायनात की एक बुलंद हिकमत को याद दिलाने वाला है और वह हिकमत यह है कि कायनात का आग़ाज़ व अँजाम सब ख़ुदा की तरफ़ से है। आपने करबला पहुचने तक बारहा इस कलेमे को दोहराया ताकि यह अक़ीदा इरादों और अमल में सम्त व जहत देने का सबब बने।

 

आपने मक़ामे सालबिया पर मुस्लिम और हानी की खबरे शहादत सुनने के बाद मुकर्रर इन कलेमात को दोहराया और फिर उसी मक़ाम पर ख़्वाब देखा कि एक सवार यह कह रहा है कि यह कारवान तेज़ी से आगे बढ़ रहा है और मौत भी तेज़ी के साथ उनकी तरफ़ बढ़ रही है, जब आप बेदार हुए तो ख़्वाब का माजरा अली अकबर को सुनाया तो उन्होने आप से पूछा वालिदे गिरामी क्या हम लोग हक़ पर नही हैं? आपने जवाब दिया क़सम उस ख़ुदा की जिसकी तरफ़ सबकी बाज़गश्त है हाँ हम हक़ पर हैं फिर अली अकबर ने कहा: तब इस हालत में मौत से क्या डरना है? आपने भी अपने बेटे के हक़ में दुआ की। (1)

 

तूले सफ़र में ख़ुदा की तरफ़ बाज़गश्त के अक़ीदे को बार बार बयान करने का मक़सद यह था कि अपने हमराह असहाब और अहले ख़ाना को एक बड़ी क़ुरबानी व फ़िदाकारी के लिये तैयार करें, इस लिये कि पाक व रौशन अक़ायद के बग़ैर एक मुजाहिद हक़ के देफ़ाअ में आख़िर तक साबित क़दम और पायदार नही रह सकता है।

करबला वालों को अपनी राह और अपने हदफ़ की भी शिनाख़्त थी और इस बात का भी यक़ीन था कि इस मरहले में जिहाद व शहादत उनका वज़ीफ़ा है और यही इस्लाम के नफ़अ में है उनको ख़ुदा और आख़िरत का भी यक़ीन था और यही यक़ीन उनको एक ऐसे मैदान की तरफ़ ले जा रहा था जहाँ उनको जान देनी थी और क़ुरबान होना था जब बिन अब्दुल्लाह दूसरी मरतबा मैदाने करबला की तरफ़ निकले तो अपने रज्ज़ में अपना तआरुफ़ कराया कि मैं ख़ुदा पर ईमान लाने वाला और उस पर यक़ीन रखने वाला हूँ। (2)

मदद और नुसरत में तौहीद और फक़त ख़ुदा पर ऐतेमाद करना, अक़ीदे के अमल पर तासीर का एक नमूना है और इमाम (अ) की तंहा तकियागाह ज़ाते किर्दगार थी न लोगों के ख़ुतूत, न उनकी हिमायत का ऐलान और न उनकी तरफ़ आपके हक़ में दिये जाने वाले नारे, जब सिपाहे हुर ने आपके काफ़ले का रास्ता रोका तो आपने एक ख़ुतबे के ज़िम्न में अपने क़याम, यज़ीद की बैअत से इंकार, कूफ़ियों के ख़ुतूत का ज़िक्र किया और आख़िर में गिला करते हुए फ़रमाया मेरी तकिया गाह ख़ुदा है वह मुझे तुम लोगों से बेनियाज़ करता है। सयुग़निल्लाहो अनकुम (3) आगे चलते हुए जब अब्दुल्लाह मशरिकी से मुलाक़ात की और उसने कूफ़े के हालात बयान करते हुए फ़रमाया कि लोग आपके ख़िलाफ़ जंग करने के लिये जमा हुए हैं तो आपने जवाब में फ़रमाया: हसबियलल्लाहो व नेअमल वकील (4)

आशूर की सुबह जब सिपाहे यज़ीद ने इमाम (अ) के ख़ैमों की तरफ़ हमला शुरु किया तो उस वक़्त भी आप के हाथ आसमान की तरफ़ बुलंद थे और ख़ुदा से मुनाजात करते हुए फ़रमा रहे थे: ख़ुदाया, हर सख़्ती और मुश्किल में मेरी उम्मीद, मेरी तकिया गाह तू ही है, ख़ुदाया, जो भी हादेसा मेरे साथ पेश आता है उसमें मेरा सहारा तू ही होता है। ख़ुदाया, कितनी सख़्तियों और मुश्किलात में तेरी दरगाह की तरफ़ रुजू किया और तेरी तरफ़ हाथ बुलंद किये तो तूने उन मुश्किलात को दूर किया। (5)

इमाम (अ) की यह हालत और यह जज़्बा आपके क़यामत और नुसरते इलाही पर दिली ऐतेक़ाद का ज़ाहिरी जलवा है और साथ ही दुआ व तलब में तौहीद के मफ़हूम को समझाता है।

दीनी तालीमात का असली हदफ़ भी लोगों को ख़ुदा से नज़दीक करता है चुँनाचे यह मतलब शोहदा ए करबला के ज़ियारत नामों में ख़ास कर ज़ियारते इमाम हुसैन (अ) में भी बयान हुआ है। अगर ज़ियारत के आदाब को देखा जाये तो उनका फ़लसफ़ा भी ख़ुदा का तक़र्रुब ही है जो कि ऐने तौहीद है इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत में ख़ुदा से मुताख़ब हो के हम यूँ कहते हैं कि ख़ुदाया, कोई इंसान किसी मख़लूक़ की नेमतों और हदाया से बहरामद होने के लिये आमादा होता है और वसायल तलाश करता है लेकिन ख़ुदाया, मेरी आमादगी और मेरा सफ़र तेरे लिये और तेरे वली की ज़ियारत के लिये हैं और इस ज़ियारत के ज़रिये तेरी क़ुरबत चाहता हूँ और ईनाम व हदिये की उम्मीद सिर्फ़ तुझ से रखता हूँ। (6)

और इसी ज़ियारत के आख़िर में ज़ियारत पढ़ने वाला कहता है ख़ुदाया, सिर्फ़ तू ही मेरा मक़सूदे सफ़र है और सिर्फ़ जो कुछ तेरे पास है उसको चाहता हूँ। ''फ़ इलैका फ़क़दतो व मा इनदका अरदतो''

यह सब चीज़े शिया अक़ायद के तौहीदी पहलू का पता देने वाली हैं जिनकी बेना पर मासूमीन (अ) के रौज़ों और अवलिया ए ख़ुदा की ज़ियारत को ख़ुदा और ख़ालिस तौहीद तक पहुचने के लिये एक वसीला और रास्ता क़रार दिया गया है और हुक्मे ख़ुदा की बेना पर उन की याद मनाने की ताकीद है।

हवालाजात:

(1) बिहारुल अनवार जिल्द 44 पेज 367

(2) बिहारुल अनवार जिल्द 45 पेज 17, मनाक़िब जिल्द 4 पेज 101

(3) मौसूअ ए कलेमाते इमाम हुसैन (अ) पेज 377

(4) मौसूअ ए कलेमाते इमाम हुसैन (अ) पेज 378

(5) बिहारुल अनवार जिल्द 45 पेज 4

(6) तहज़ीबुल अहकाम शेख़ तूसी जिल्द 6 पेज 62

यह आयत प्रत्येक आस्तिक के लिए एक उदाहरण है कि वह आसपास के परिदृश्यों में अल्लाह के संकेतों को देखे और उन पर विचार करे। जिसने ब्रह्मांड और व्यवस्था को बनाया, जिसने इसे मेरे दिल में रखा, भगवान आपकी महानता को पहचानें और आस्तिक के अस्तित्व को मजबूत करें।

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم   बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम

إِنَّ فِي خَلْقِ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَاخْتِلَافِ اللَّيْلِ وَالنَّهَارِ لَآيَاتٍ لِأُولِي الْأَلْبَابِ इन्यना फ़ी ख़ल्क़िस समावाते वल अर्ज़े वखतिलाफ़िल लैले वन्नहारे लेआयातिन ऊलिल अलबाब (आले-इमरान 190)

अनुवाद: वास्तव में, आकाशों और धरती की रचना में, और रात और दिन के आने और जाने में, समझ वालों के लिए निशानियाँ हैं।

विषय:

अल्लाह की शक्ति और महानता के लक्षण

पृष्ठभूमि:

यह आयत लोगों को अल्लाह की शक्ति की ओर आकर्षित करती है। सूरह अल-इमरान एक मदनी सूरह है और इसमें विश्वासियों को विश्वास की गहराई और विश्वास की ताकत सिखाई जाती है। इस आयत में, अल्लाह ताला अपने रचित ब्रह्मांड के संकेतों की ओर इशारा कर रहा है और बुद्धिमानों को उन पर विचार करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है ताकि वे अल्लाह की महानता और उसकी रचनात्मकता को पहचान सकें।

तफसीर:

इस आयत में अल्लाह तआला ने अपने प्राणियों की निशानियों का जिक्र किया है जो इंसान को विचार करने के लिए आमंत्रित करती हैं। आकाश और पृथ्वी का निर्माण, और रात और दिन का क्रम स्पष्ट प्रमाण है कि इस ब्रह्मांड का एक निर्माता है जो सर्वशक्तिमान है।

बुद्धिमान पुरुष (ओवली अल-अलबाब) उन लोगों को संदर्भित करते हैं जो इन संकेतों पर ध्यान देते हैं और उनके माध्यम से अल्लाह का ज्ञान प्राप्त करते हैं। समय का रात और दिन के अलग-अलग घंटों में विभाजन और पृथ्वी और आकाश का निर्माण एक प्रणाली द्वारा संचालित होता है, जो एक महान ज्ञान और योजना का संकेत देता है।

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तफ़सीर राहनुमा, सूर ए आले-इमरान

इस्राईलियों का मानना है कि निरंतर युद्ध में अपने बचाव के लिए हर हथकंडा अपनाया जा सकता है, चाहे वह अमानवीय ही क्यों न हो।

इस्राईली जेलों में फ़िलिस्तीनी क़ैदियों के बलात्कार की भयानक घटना के नैतिक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं का विश्लेषण करके आप ज़ायोनियों के वैचारिक आयामों और शैक्षिक प्रणाली की हक़ीक़त को भी समझ सकते हैं। इसलिए इस अपराध की समीक्षा का विशेष महत्व है। पार्सटुडे इस नोट में इस मुद्दे पर संक्षिप्त नज़र डालने की कोशिश की गई है।

इस्राईली जेलों में फ़िलिस्तीनी क़ैदियों के यौन शोषण और सामूहिक बलात्कार की जारी होने वाली वीडियो फ़ुटेज पर दुनिया भर में कड़ी प्रतिक्रिया जताई गई। हालांकि इस घटना ने सभी को झकझोर कर रख दिया, लेकिन हैरत की बात यह है कि इस्राईली समाज का एक वर्ग इसके बचाव में आगे आया।

फ़िलिस्तीनी क़ैदियों के यौन शोषण और सामूहिक बलात्कार की वीडियो वायरल होने के बाद, जब दस इस्राईली सैनिकों को गिरफ़्तार किया गया, तो कट्टर दक्षिणपंथी ज़ायोनी उनके बचाव में निकल पड़े और उन्होंने उग्र प्रदर्शन भी किया।

ज़ायोनी सुरक्षा मंत्री इतामर बेन गोयर ने इस संदर्भ में कहाः सुरक्षा के लिए सामूहिक बलात्कार सही है।

इस्राईल के वित्त मंत्री स्मोत्रिच ने भी इस घटना की निंदा करने के बजाए, इस वीडियो के प्रकाशन होने पर ग़ुस्सा उतारा और वीडियो प्रकाशित करने वाले की शनाख़्त के लिए जांच की मांग की।

इस सोच को इस्राईली समाज के हाशिए के कुछ दक्षिणपंथियों तक सीमित नहीं किया जा सकता है, बल्कि इससे इस्राईली समाज में नैतिक व्यवस्था का पता चलता है। ज़ायोनी शासन ने दशकों से समाज में व्यवस्थित तरीक़े से फ़िलिस्तीनियों को जानवरों की तरह पेश किया है। यह सब इसलिए किया गया ताकि फ़िलिस्तीनियों को इंसानी दर्जे से गिराकर, उनके साथ हर तरह का सुलूक किया जा सके।

दूसरे शब्दों में फ़िलिस्तीनियों को इंसानों की तरह दिखने वाले जानवर बनाकर पेश किया गया है। बिल्कुल उसी तरह जैसा कि उपनिवेशवाद विरोधी दार्शनिक फ्रांसिस फ़ैनन ने इस उपनिवेशवादी प्रक्रिया का वर्णन किया है।

इस तरह, इस्राईली समाज में फ़िलिस्तीनियों को नैतिक रूप से कमज़ोर और व्यर्थ जीव के तौर पर देखा जाता है। परिणामस्वरूप उनके खिलाफ़ हिंसा और आक्रामकता को न केवल अनैतिक नहीं माना जाता है, बल्कि कुछ मामलों में नैतिक कार्यवाही के रूप में उचित ठहराया जाता है। इन अत्याचारों को अंजाम देने वाले इस्राईली सैनिक, अपनी नैतिक श्रेष्ठता और दूसरे पक्ष की अमानवीयता में विश्वास के कारण, अपराध बोध या किसी तरह का कोई दोष महसूस नहीं करते हैं। इसके अलावा, उन्हें समाज के एक बड़े वर्गों का समर्थन भी प्राप्त है।

दूसरी ओर, इस्राईली मीडिया युद्ध क्षेत्रों से फ़िलिस्तीनी नागरिकों को निकालने का आदेश जैसे हिटलरी फ़रमानों को इस्राईली सेना की नैतिकता के प्रमाण के रूप में पेश करती है। हालांकि वास्तविकता यह है कि इन नागरिकों को एक छोटे से क्षेत्र में सीमित करके वहां उन्हें निशाना बनाया जाता है।

इसके अलावा, नस्लवादी दृष्टिकोण से यह विश्वास कि इस्राईल को मध्यपूर्व की बर्बरता के ख़िलाफ़ पश्चिमी सभ्यता के प्रतिनिधि के रूप में लड़ना चाहिए, फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ ज़ायोनियों की बर्बरता के लिए एक और औचित्य प्रदान करता है।

 

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि यह ज़ायोनी शासन दुनिया पर एक बदनुमा धब्बा है और यह मानवता के लिए नैतिक पतन के अलावा कुछ नहीं है। जो समाज सामूहिक बलात्कार जैसे भयानक कृत्यों को उचित ठहरा सकता है, उसके पतन की कोई सीमा नहीं हो सकती। नस्लीय श्रेष्ठता में दृढ़ विश्वास से लैस नैतिक पतन से अधिक ख़तरनाक कुछ भी नहीं है।

ईरान की फ्रीस्टाइल कुश्ती के नौजवानों की टीम ने विश्व चैंपियन का ख़िताब जीत लिया।

ईरानी नौजवानों की फ्रीस्टाइल कुश्ती की टीम ने तीन स्वर्ण और तीन कांस्य पदक प्राप्त करके विश्व चैंपियन का ख़िताब जीत लिया हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार जार्डन की राजधानी अम्मान में 19 अगस्त से लेकर 21 अगस्त तक फ्रीस्टाइल कुश्ती का मुक़ाबला हुआ था।

अम्मान में आयोजित प्रतिस्पर्धा में ईरानी टीम ने 140 अंक प्राप्त करके विश्व चैंपियन का ख़िताब जीत लिया जबकि उज़्बेकिस्तान 113 अंक हासिल करके दूसरे स्थान पर और 105 अंक हासिल करके आज़रबाईजान गणराज्य तीसरे स्थान पर रहा।

ईरान की फ्रीस्टाइल कुश्ती की टीम ने इससे पहले वाले मुक़ाबले में भी चैंपियन का ख़िताब जीता था।