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अमेरिकी स्कूल और विदेश विभाग के अधिकारियों ने खबर देते हुए कहा है कि पूर्वोत्तर चीन के बीहुआ विश्वविद्यालय में अध्यापन कर रहे आयोवा के कॉर्नेल कॉलेज के चार प्रशिक्षकों पर एक पार्क में चाकू से हमला किया गया है। कॉर्नेल कॉलेज के अध्यक्ष जोनाथन ब्रांड ने एक बयान में कहा कि जब प्रशिक्षक बीहुआ के एक संकाय सदस्य के साथ पार्क में थे, उसी समय उन पर हमला हुआ। हमलावार घटना को अंजाम देने के बाद मौके से फरार हो गए।

यह टीचर्स अमेरिका और चीन के बीच चल रहे पार्टनरशिप प्रोग्राम के तहत चीन के शहर जीलिन में मौजूद बेइहुआ यूनिवर्सिटी में पढ़ा रहे थे। अमेरिकी विदेश विभाग ने एक बयान में बताया कि वह चाकू मारने की खबरों से अवगत है और स्थिति पर नजर रख रहा है। प्रशिक्षकों को कितनी चोट पहुंची और हमला साजिशन था या कोई और कारण था, इन सब के बारे में अब तक स्थिति स्पष्ट नहीं हो सकी है।

 

 

जम्मू में आतंकी घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है। तीन दिन में तीसरे आतंकी हमले ने इस इलाक़े में दहशत फैला दी है। जम्मू संभाग में आतंकी वारदातों में इजाफा हुआ है। तीन दिनों में तीसरी आतंकवादी घटना हुई है। रविवार को रियासी जिले में आतंकियों ने बस पर हमला कर दिया था, जिसमें नौ लोगों की मौत हुई थी और 41 लोग घायल हुए थे।

इसके बाद जिला कठुआ की तहसील हीरानगर की गांव सोहले सैडा में आतंकवादियों ने गोलीबारी की, जिसमें एक नागरिक घायल हो गया।

अब तीसरा आतंकी हमला डोडा में हुआ। देर रात डोडा के छत्रगलां में भी आतंकियों ने नाका पार्टी पर हमला किया। आतंकियों ने ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं। सुरक्षा बलों की जवाबी कार्रवाई से मुठभेड़ शुरू हो गई। इस हमले में सेना के पांच जवान और एक एसपीओ (स्पेशल पुलिस ऑफिसर) घायल हो गया।

अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता में तालिबान की वापसी के साथ ही हालात सुधरने के बजाए दिन प्रतिदन और बिगड़ते जा रहे हैं। अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र ने चिंता जताते हुए कहा है कि दमन रोकने के लिए वैश्विक कार्रवाई की ज़रूरत है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कई चिंताजनक आंकड़े पेश किए गए हैं। जिनके अनुसार, अफगानिस्तान में 11 लाख लड़कियां स्कूल नहीं जा रही हैं और एक लाख से ज्यादा महिलाएं यूनिवर्सिटी में पढ़ाई नहीं कर पा रही हैं।

संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूएन वूमन ने अपनी एक नई रिपोर्ट में अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति पर चिंता जाहिर की है। रिपोर्ट में यूएन वूमन संस्था ने अफगानिस्तान में महिलाओं का दमन रोकने के लिए वैश्विक कार्रवाई की मांग की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अफगानिस्तान में बीते कई दशकों में जो प्रगति हुई थी, उसे तालिबान के तीन वर्षों के शासन में ही मिटा दिया गया है।

 

सेनेगल के प्रधानमंत्री ने फिलिस्तीन में जारी क़त्ले आम पर चिंता जताते हुए कहा कि खुद को बड़ा लोकतंत्र और मानवाधिकारों का रक्षक बताने वाले ही आज फिलिस्तीन में जारी क़त्ले आम और नस्लीय सफाये में लगे हुए हैं।

सेनेगल के प्रधानमंत्री उस्मान सोन्को ने फ़िलिस्तीनी शहीदों के सम्मान में एक मिनट का मौन और दुआ के एक कार्यक्रम में कहा कि जो लोग अपने आप को दुनिया की बड़ी डेमोक्रेसी के रूप में याद करते हैं और जो लोग मानवाधिकारों की रक्षा का दावा करते हैं आज वही फ़िलिस्तीनी लोगों के नस्ली सफ़ाये में सबसे बड़े अपराधी हैं।

सेनगल के प्रधानमंत्री उस्मान सोन्को ने इस देश के राष्ट्रपति से मांग की है कि उनका देश भी उस शिकायत में दक्षिण अफ्रीका के साथ हो जाये जो उसने राष्ट्रसंघ में की है।

उल्लेखनीय है कि दिसंबर 2023 को दक्षिण अफ्रीक़ा ने जायोनी सरकार के विरुद्ध मुक़द्दमा दर्ज करते हुए ज़ायोनी सरकार पर गज्जा पट्टी में नस्लीय सफाया करने का आरोप लगाया है।

 

 

पिछले लगभग एक साल से हिंसा का सामना कर रहे मणिपुर को लेकर केंद्र सरकार और खुद नरेंद्र मोदी ने उदासीन रवैया अपना रखा है जिस पर संघ प्रमुख मोहन भगवत ने भी अपने हालिया बयान में कड़ा रुख अपनाते हुए केंद्र सरकार औरखास कर मोदी को नसीहत दी है।

भागवत ने एक दिन पहले कहा था कि मणिपुर एक साल से शांति की राह देख रहा है और हिंसाग्रस्त राज्य की स्थिति पर प्राथमिकता से विचार करना चाहिए।

अब विपक्षी दलों ने उनके बयान के सहारे फिर से प्रधानमंत्री को घेरते हुए कहा की उन्हें भागवत की बात पर कान धरने चाहिए। विपक्षी दलों ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मणिपुर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत की सलाह पर ध्यान देना चाहिए। उन्हें मणिपुर का दौरा करना चाहिए जहां एक साल से अधिक समय से हिंसा हो रही है।

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि शायद मोहन भागवत के बयान के बाद अब पीएम मोदी मणिपुर का दौरा करें। उन्होंने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा, अगर एक तिहाई प्रधानमंत्री की अंतरात्मा या मणिपुर के लोगों की बार-बार की मांग को नहीं गया है तो शायद भागवत पूर्व आरएसएस पदाधिकारी को मणिपुर जाने के लिए जारी कर सकते हैं। उन्होंने आगे लिखा, याद कीजिए 22 साल पहले वाजपेयी ने मोदी से राजधर्म निभाने को कहा था।

निर्दलीय सांसद कपिल सिब्बल ने कहा, विपक्ष की सलाह पर ध्यान देना पीएम मोदी के डीएनए में नहीं है, लेकिन उन्हें आरएसएस प्रमुख के शब्दों पर ध्यान देना चाहिए। राजद नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि संघ प्रमुख ने मणिपुर हिंसा पर चिंता व्यक्त करने में बहुत देर कर दी। प्रधानमंत्री ने हर संकट पर चुप्पी साध रखी है, चाहे वह पूर्वोत्तर के राज्य में हिंसा हो, या दिल्ली में किसानों और महिला पहलवानों का विरोध प्रदर्शन हो।

कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा, संघ प्रमुख भागवत ने मणिपुर की स्थिति पर प्राथमिकता से विचार करने का सुझाव दिया है, लेकिन उम्मीद नहीं है कि पीएम उनके सुझाव पर ध्यान देंगे, बल्कि उसकी अनदेखी करेंगे। वह केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग करेंगे और भारतीय संविधान को बदलने का प्रयास करेंगे।

 

बॉम्बे हाईकोर्ट ने भारत को इस्लामी राष्ट्र बनाने की साज़िश रचने के आरोप में नदी बनाए गए तीन लोगों को ज़मानत देने से इंकार कर दिया। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के तीन सदस्यों की जमानत याचिका खारिज कर दी।

न्यायमूर्ति अजय गडकरी, न्यायमूर्ति श्याम चांडक की खंडपीठ ने रजी अहमद खान, उनैस उमर खय्याम पटेल और कय्यूम अब्दुल शेख की जमानत याचिका खारिज की। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि आरोपी व्यक्तियों ने आपराधिक बल का उपयोग करके सरकार को डराने की साजिश रची थी।

अदालत ने तीनों को यह कहते हुए जमानत देने से इन्कार कर दिया कि उन्होंने 2047 तक भारत को एक इस्लामिक देश में बदलने की साजिश रची थी। अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया तीनों के खिलाफ सबूत हैं। बता दें कि केंद्र सरकार ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर 2022 में प्रतिबंध लगा दिया था।

फिलिस्तीन के समर्थन में चलाए जा रहे अपने अभियान के तहत इराकी प्रतिरोधी संगठनों ने मक़बूज़ा फिलिस्तीन के ईलात बंदरगाह पर ड्रोन हमले की खबर दी है।

रसिस्टेंस ने अपने बयान में कहा कि ज़ायोनी शासन का मुकाबला जारी रखने, ग़ज़्ज़ा के निवासियों की मदद करने और ज़ायोनीवादियों द्वारा फिलिस्तीनी नागरिकों की हत्या के जवाब में, हमारे मुजाहिदीन ने मक़बूज़ा फिलिस्तीन के ईलात में ज़ायोनी शासन के सैन्य हवाई अड्डे को ड्रोन से निशाना बनाया।

 इराकी प्रतिरोध ने मकब्बूजा फिलिस्तीन के दक्षिण में स्थित इलियट में एक संवेदनशील और महत्वपूर्ण लक्ष्य को ड्रोन हमलों का निशाना बनाया।

बता दें कि इराकी प्रतिरोध ने इस से पहले अपने अभियान के अंत में धमकी दी थी कि अगर ग़ज़्ज़ा के खिलाफ ज़ायोनी अभियान को न रोका गया तो इस्राईल के खिलाफ हमारे हमले व्यापक और अधिक विध्वंसकारी होंगे।

 

अमेरिका ने एक बार फिर हमास पर दबाव बढ़ते हुए उसे बाइडन के शांति प्रस्ताव के आगे झुकने के लिए विवश करना शुरू कर दिया है।

अवैध राष्ट्र इस्राईल के दौरे पर पहुंचे अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने दावा किया कि दुनिया इस योजना के समर्थन में है। उन्होंने दोहराया कि हमास पर इसे स्वीकारने का दबाव है।

पिछले 8 महीने से फिलिस्तीन जनता के जनसंहार में लगे इस्राईल को भरपूर सैन्य एवं आर्थिक समर्थन दे रहे अमेरिका के विदेश मंत्री ब्लिंकेन ने कहा की ज़ायोनी पीएम बेंजामिन नेतन्याहू ने भी प्रस्ताव पर अपनी प्रतिबद्धता जताई है। उन पर ग़ज़्ज़ा में युद्ध के बाद की योजना लागू करने का दबाव है।

बता दें कि 8 अक्टूबर को ग़ज़्ज़ा में ज़ायोनी हमलों कोई शुरुआत के बाद से अमेरिका के ज़ायोनी विदेश मंत्री आठवीं बार इस्राईल यात्रा पर आए हुए हैं।

अल-जज़ीरा टीवी चैनल ने हिज़्बुल्लाह का वीडियो जारी किया, जिसमें देखा जा सकता है कि किस तरह से हिज़्बुल्लाह इस्राईल के सैनिकों पर नज़र रखे हुए है, यहां तक कि कमरों में भी उसकी उनपर नज़र है।

 

पार्सटुडे की रिपोर्ट के मुताबिक़, वैश्विक प्रतिरोध के प्रतिनिधि के रूप में हिज़्बुल्लाह ने 8 अक्तूबर से ही स्पेशल ज़ोन में इस्राईल के जासूसी के केन्द्रों और रडारों को निशाना बनाना शुरू कर दिया था।    

 

हिज़्बुल्लाह ने मेरून सैन्य अड्डे को 7 बार निशाना बनाया है और तबरिया में इस्राईल के दो जासूसी बैलून को भी नष्ट किया है।

 

लेबनान के इस्लामी प्रतिरोधी संगठन के हमलों में सीमावर्ती इलाक़ों के आसमान पर इस्राईल का वर्चस्व अब कमज़ोर पड़ गया है, यही वजह है कि हिज़्बुल्लाह के ड्रोन इस्राईल के रडारों को चकमा देकर और ख़तरे का अलार्म बजे बिना लक्ष्यों को निशाना बना रहे हैं। इसके अलावा, हिज़्बुल्लाह लेबनान की वायु सीमा में इस्राईल के कई ड्रोन विमानों का शिकार कर चुका है।

 

इस्लामी प्रतिरोध ने अरब अल-अरामेशा में अपने जासूसी ड्रोन विमानों द्वारा महत्वपूर्ण जानकारियां इकट्ठा कीं और इस इलाक़े में स्थित ज़ायोनी सेना के अड्डे को निशाना बनाया, जिसमें एक दर्जन से भी ज़्यादा ज़ायोनी सैनिक मारे गए और ज़ख़्मी हो गए।

हिज़्बुल्लाह ने अपने हमलों का दायरा बढ़ा दिया है। इस्राईल के दो जासूसी बैलूनों को मार गिराए जाने के बारे में कहा जा सकता है कि इस्लामी प्रतिरोध ने बहुत ही होशियारी से यह काम किया है। लेबनानी सैन्य अदालत के पूर्व प्रमुख मुनीर शहादा ने मेहर न्यूज़ एजेंसी के साथ बातचीत में कहा हिज़्बुल्लाह ने रणनीति के तहत पहले कंट्रोल रूम को निशाना बनाया, उसके बाद बैलून को मार गिराया। क्योंकि अगर ऐसा नहीं किया जाता, तो कंट्रोल रूम ऑटोमैटिक तरीक़े से बैलून में मौजूद जानकारियों को डिलीट कर देता।

दूसरे बैलून को सीमा से 32 किलोमीडर अंदर तबरिया के इलाक़े में मार गिराया गया। हिज़्बुल्लाह ने सिर्फ़ इस बैलून को ही नहीं गिराया, बल्कि अपने जासूसी ड्रोन को इस्राईल के काफ़ी भीतर घुसा दिया, जिसके बाद वह ड्रोन बैलून से जानकारियां एकत्रित करके और लक्ष्यों की वीडियो और तस्वीरें लेकर वापस लौट आया।

अल-जज़ीरा टीवी पर जो वीडियो हिज्बुल्लाह ने जारी किया है, उसमें देखा जा सकता है कि इस्राईली सैनिकों की समस्त गतिविधियों पर हिज़्बुल्लाह की नज़र है और यहां तक कि बेत हीलल में वह इस्राईली सैन्य बैरकों पर मिसाइलों की बारिश कर सकता है। सोशल मीडिया पर घायल इस्राईली सैनिकों की कई तस्वीरें भी वायरल हुई हैं।

इससे हिज़्बुल्लाह ने साबित कर दिया है कि उसके ड्रोन विमान दुश्मन के बारे में सटीक जानकारियां एकत्रित कर रहे हैं, इस हद तक कि इस्राईली सैन्य अड्डों में आने-जाने वाली गाड़ियों की भी पहचान की जा सकती है।

इसके अलावा, हाल ही में हिज़्बुल्लाह ने आत्मघाती ड्रोन का भी अनावरण किया है, जो 2 साम-5 मिसाइल अपने साथ ले जा सकता है। इस तरह से यह ड्रोन एक ही साथ तीन लक्ष्यों को निशाना बना सकता है। यह ड्रोन हमला करने के अलावा, टारगेट की वीडियो और तस्वीरें भी भेजा सकता है। अलमास मिसाइल में भी यह टेक्नॉलोजी मौजूद है।

डॉक्टर इस्फंदयार अख़्तियारी के अनुसार ईरान की नैतिक संस्कृति है न आइडियालोजी। ईरानी संस्कृति में जो पहली चीज़ महत्वपूर्ण है वह इंसानियत और अख़लाक़ व नैतिकता है।

डॉक्टर इस्फंदयार अख्तियारी ईरान की संसद मजलिसे शुराये इस्लामी में ज़रतुश्तियों के पूर्व सांसद थे। उन्होंने पार्सटुडे के साथ अपने हालिया साक्षात्कार के एक भाग में इस बात का उल्लेख किया कि ईरान में सफल शांतिपूर्ण जीवन का मूल क्या है। यहां हम उनके जवाब और बातों के विश्लेषण पर एक नज़र डालेंगे।

हम ईरान और ईरानी संस्कृति की बात कर रहे हैं। ईरानी संस्कृति का निर्माण पिछले 40 वर्षों में नहीं हुआ है। उसका निर्माण पिछले 1000 सालों में भी नहीं हुआ है। हमारी संस्कृति कई हज़ार साल पुरानी है।

 डॉक्टर इस्फंदयार अख़्तियारी

जब हम कई हज़ार वर्षीय ईरानी संस्कृति की बात करते हैं तो हम कुरूश जैसे व्यक्ति तक पहुंचते हैं। जब वह बाबिल पर विजय हासिल करता है तो आधिकारिक रूप से एलान करता है कि हर कोई अपने धर्म पर बाक़ी रह कर उसका अनुसरण कर सकता है।

इस आधार पर जब हम ईरान में ज़िन्दगी करते हैं तो एक हज़ार 400 साल पहले देखते हैं कि ईसाईयों और यहूदियों ने यहां ज़िन्दगी की है यहां तक कि उनके इतिहास में है कि ईसाईयों के क्षेत्रों के बाद सबसे पुराना गिरजाघर ईरान में था। यह इस बात का सूचक है कि ईरानी संस्कृति का आधार नैतिकता व शिष्टाचार है न कि आइडियालोजी।

ईरानी संस्कृति में सबसे पहली महत्वपूर्ण चीज़ इंसानियत और अख़लाक़ है। इसके बाद आइडियालोजी की बात आती है। यानी हम सब पहले इंसान हैं उसके बाद कुछ और हैं। यह चीज़ ईरानी संस्कृति का आधार है। मिसाल के तौर पर मिर्ज़ा कुचिक ख़ान सड़क के किनारे आतशकदये तेहरान है यानी तेहरान अग्निकुंड और उसके सामने ईसाईयों का गिर्जाघर है। इसी सड़क पर थोड़ा आगे यहूदियों का उपासना स्थल है और उसके आगे मुसलमानों की मस्जिद। इस सड़क का निर्माण अभी नहीं हुआ है, 50 साल पहले भी नहीं हुआ था। यह विषय इस बात का सूचक है कि हमारे देश की संस्कृति शांतिपूर्ण ढंग से रहना है।

इस संस्कृति को उन देशों को समझना बहुत कठिन है जो दाइश को बनाते हैं और वह लोगों का सिर क़लम करता है। क्योंकि उन देशों में आइडियालोजी के आधार पर काम होता है।

मेरे विचार में ईरान न तो दूसरे देशों की तरह है और कभी भी नहीं होगा यहां तक कि अगर कोई गिरोह इस प्रक्रिया को रोकना व बंद करना चाहे तब भी नहीं कर सकता। यह संभव नहीं है क्योंकि संस्कृति एक रात में अस्तित्व में नहीं आती है। संस्कृति सर्क्युलर या परिपत्र से अस्तित्व में नहीं आती है कि उसे एक दूसरे से परिपत्र से बदल दिया जाये। जो भी यह काम करेगा वह हार जायेगा, वह स्वयं को जला व ख़त्म कर लेगा मगर दूसरे देशों में यह होगा क्योंकि उसका मज़बूत सांस्कृतिक पृष्ठिपोषक नहीं है।  दूसरे शब्दों में ईरान में यह होता है कि मैं ज़रतुश्ती हूं एक मुसलमान, एक यहूदी और एक ईसाई का सम्मान करता हूं और इसका उल्टा भी होता है। यह अभी अस्तित्व में नहीं आया है जो अभी समाप्त हो जायेगा। शांतिपूर्ण ढ़ंग से ज़िन्दगी गुज़ारने का अतीत हमारे देश में हज़ारों साल पुराना है जो बाक़ी रहेगा।