
رضوی
अराफ़ात मैदान: महमूद और अयाज़ एक ही पंक्ति में खड़े
दुनिया भर से करीब 20 लाख तीर्थयात्री हज करने के लिए सऊदी अरब पहुंचे हैं।
लबक अल्लाहुम लबक, लबक ला श्रीक लबक के शब्दों के साथ मीना से हज प्रमुख वक्फ अराफा अदा करने के लिए दुनिया भर से लगभग 20 मिलियन तीर्थयात्री अराफात मैदान में पहुंच रहे हैं
लाखों हज यात्री आज अराफात के मैदान में सूर्यास्त तक इबादत में मशगूल रहेंगे.
तीर्थयात्री अराफात चौक स्थित निमरा मस्जिद में इमाम साहब का हज उपदेश सुनेंगे और ज़ुहर और अस्र की नमाज़ अदा करेंगे। वे सूर्यास्त तक अराफ़ात के मैदान में खड़े रहेंगे। यहां वे दिन भर याद और इबादत में मशगूल रहेंगे और अल्लाह के सामने दुआ करेंगे.
सूरज डूबते ही हाजी मुजदलिफा की ओर रवाना होंगे और वहां पहुंचकर मगरिब और ईशा की नमाज एक साथ अदा करेंगे. तीर्थयात्री मुजदलिफा में खुले आसमान के नीचे रात बिताएंगे और रूमी जमरात के लिए कंकड़ चुनेंगे। तीर्थयात्री अपने रब के सामने प्रार्थना करने के साथ-साथ सुन्नत के अनुसार यहां विश्राम करेंगे।
रविवार यानी 10 जिलहिज्जा को फज्र की नमाज अदा करने के बाद हाजी सूरज उगने तक नमाज अदा करेंगे, गुनगुनाकर अल्लाह के सामने दुआ करेंगे।
गौरतलब है कि सऊदी अरब में ईद-उल-अजहा कल रविवार को है, जबकि ईरान, पाकिस्तान और भारत समेत कई देशों में ईद-उल-अजहा सोमवार 17 जून को मनाई जाएगी.
अरफ़ा, दुआ और इबादत का दिन
दुआ इबादत की रूह है। जो इबादत दुआ के साथ होती है वह प्रेम और परिज्ञान को उपहार स्वरूप लाती है। दुआ ऐसी आत्मिक स्थिति है कि जो इंसान और उसके जन्मदाता के बीच मोहब्बत एवं लगाव पैदा करती है। दुआ से जीवन के प्रति सकारात्मक सोच पैदा होती है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) फ़रमाते हैं, सर्वश्रेष्ठ इंसान वह है कि जो इबादत और दुआ से लगाव रखता हो।
विभिन्न परिस्थितियों और स्थानों के दृष्टिगत दुआ और इबादत का महत्व भी भिन्न होता है। जैसे कि मस्जिदों, उपासना स्थलों और काबे की दिशा में दुआ और इबादत का महत्व कुछ और ही है। उचित समय भी दुआ के क़बूल होने का एक महत्वपूर्ण कारण है। कुछ ऐसे दिन होते हैं कि जब ईश्वर से हमारा प्राकृतिक प्रेम जागरुक होता है, जिससे हमारे अस्तित्व में आध्यात्म की ज्योति जागती है। अरफ़े का दिन दुआ और इबादत के लिए कुछ ख़ास दिनों में से एक है, विशेषकर जब उस दिन अरफ़ात के मैदान में हों।
हज के अविस्मरणीय संस्कारों में से एक अरफ़ात के मैदान में ठहर कर ईश्वर की उपासना करना भी है। ज़िलहिज्ज महीने की 9 तारीख़ को हाजियों को सुर्योदय से सूर्यास्त तक अरफ़ात के मैदान में ठहरना होता है। अरफ़ात पवित्र नगर मक्का से 21 किलोमीटर दूर जबलुर्रहमा नामक पहाड़ के आंचल में एक मरूस्थलीय क्षेत्र है। ऐसा विशाल मैदान जहां इन्सान सांसारिक व भौतक चीज़ों को भूल जाता है। अरफ़ात शब्द की उत्पत्ति मारेफ़त शब्द से है जिसका अर्थ होता है ईश्वर की पहचान और अरफ़ा का दिन मनुष्य के लिए परिपूर्णतः के चरण तय करने की पृष्ठिभूमि तय्यार करने का सर्वश्रेष्ठ अवसर है। इन्सान पापों से प्रायश्चित और प्रार्थना द्वारा पापों और बुरे विचारों से पाक हो जाता है और कृपालु ईश्वर की ओर पलायन करता है।
पूरे इतिहास में ऐसे महान लोग गुज़रे हैं जिन्होंने अरफ़ात के मैदान में ईश्वर की इबादत की और अपने पापों की स्वीकारोक्ति की है। इतिहास में है कि हज़रत आदम अलैहिस्सलाम और हज़रत हव्वा ने पृथ्वी पर उतरने के बाद अरफ़ात के मैदान में एक दूसरे को पहचाना और अपनी ग़लती को स्वीकार किया। जी हां अरफ़े का दिन पापों की स्वीकारोक्ति, उनसे प्रायश्चित और ईश्वर की कृपा की आशा करने का दिन है।
अरफ़ा वह दिन है कि जब ईश्वर अपने बंदों का इबादत और उपासना के लिए आहवान करता है, इस दिन ईश्वरीय कृपा और दया धरती पर फैली हुई होती है और शैतान अपमानित हो जाता है।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) फ़रमाते हैं: हे लोगो, क्या मैं तुम्हें कोई शुभ सूचना दूं? लोगो ने कहा हां, हे ईश्वरीय दूत। आप ने फ़रमाया, जब इस दिन सूर्यास्त होता है, ईश्वर फ़रिश्तों के सामने अरफ़ात में ठहरने वालों पर गर्व करता है और कहता है, मेरे फ़रिश्तो मेरे बंदों को देखो कि जो धरती के कोने कोने से बिखरे हुए और धूल में अटे हुए बालों के साथ मेरी ओर आए हैं, क्या तुम जानते हो वे क्या चाहते हैं? फ़रिश्ते कहते हैं, हे ईश्वर तुझ से अपने पापों के लिए क्षमा मांगते हैं। ईश्वर कहता है, मैं तुम्हें साक्षी बनाता हूं, मैंने इन्हें क्षमा कर दिया है। अतः (हे हाजियों) जिस स्थान पर तुम ठहरे हो वहां से क्षमा प्राप्त किए हुए एवं पवित्र होकर वापस लौट जाओ।
अरफ़े का दिन इबादत और प्रार्थना का दिन है। विशेष रूप से उन लोगों के लिए जिन्हें हज करने और अरफ़ात के मरूस्थलीय मैदान में उपस्थित होने का सुअवसर मिला है। अरफ़ात की वादी में हाजी, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की इस दिन की विशेष दुआ पढ़ते हैं। मानो किसी विशाल समारोह का आयोजन है, जिसमें ईश्वर के बंदे जीवन एवं ब्रह्मांड के रहस्यों को प्राप्त करना चाहते हैं और ईश्वर से निकट होने के लिए एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं। अरफ़ात के ईश्वरीय एवं आध्यात्मिक वातावरण में हृद्य कांप उठते हैं और आँखों से आंसू बहने लगते हैं। हाजी पवित्र हृदयों एवं एक तरह के वस्त्र धारण किए हुए हाथों को ऊपर उठाते हैं और गिड़गिड़ाते हैं: हे ईश्वर हम तेरी प्रशंसा करते हैं कि तूने अपनी संपूर्ण शक्ति से हमें पैदा किया, अपनी कृपा और अनुकंपा से तूने मुझे सर्वश्रेष्ठ प्राणी बनाया, हालांकि तुझे मेरी कोई आवश्यकता नहीं थी, हे ईश्वर इस दोपहर में जो कुछ तू अपने बंदों को भलाई प्रदान करे और उनका कल्याण करे हमें भी उसमें शामिल रख, हे ईश्वर हमें वंचित नहीं रखना और अपनी असीम कृपा से हमें दूर न कर, हे ईश्वर जब भी जीवन अपनी समस्त व्यापकता के साथ मेरे लिए तंग हो जाता है तो तू मेरा सहारा होता है, यदि तेरी कृपा नहीं होगी तो निःसंदेह मैं नष्ट हो जाऊंगा, हे ईश्वर तू अपने पवित्र और हलाल माल से मुझे व्यापक आजीविका प्रदान कर और स्वास्थ्य एवं शांति प्रदान कर और भय एवं डर के समय मुझे साहस दे।
अरफ़ात की वादी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की इस दिन की विशेष दुआ की याद अपने दामन में समेटे हुए है। अरफ़े के दिन इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम अपने बेटों, परिजनों और साथियों के एक समूह के साथ ऐसी स्थिति में अपने ख़ेमे से बाहर आए कि उनके चेहरे से विनम्रता व शिष्टता का भाव प्रकट था। उसके बाद इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम जबलुर्रहमा नामक पहाड़ के बाएं छोर पर खड़े हो गए और काबे की ओर मुंह करके अपने हाथों को इस प्रकार चेहरे तक उठाया जैसे कोई निर्धन खाना मांगने के लिए हाथ उठाता है और फिर अरफ़े के दिन की विशेष दुआ पढ़ना शुरु की। यह दुआ शुद्ध एकेश्वरवाद और ईश्वर से क्षमा याचना जैसे विषयों से संपन्न है।
वास्तव में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने दुआए अरफ़ा द्वारा अनेक नैतिक एवं प्रशैक्षिक बिंदुओं का हमें पाठ दिया है। इस मूल्यवान दुआ में जगह जगह पर नैतिकता के उच्च अर्थ निहित हैं। कभी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ईश्वरीय अनुकंपाओं का उल्लेख करते हैं, कभी ईश्वर से आत्मसम्मान की दुआ मांगते हैं और कभी कर्म में निष्ठा की प्रार्थना करते हैं।
दुआए अरफ़ा में अन्य भाग ऐसे भी हैं कि जो केवल ईश्वर से बातचीत, प्रेम और उसकी प्रशंसा पर आधारित हैं। यह दुआ इस बात को दर्शाती है कि दुआ का अर्थ केवल ईश्वर से मांगना ही नहीं है, बल्कि अपने प्रेमी ईश्वर से बातचीत वह भी एक ज़रूरतमंद एवं असहाय बंदे की ओर से, काफ़ी दिलचस्प एवं मनमोहक हो सकती है और उसे आत्मिक प्रसन्नता एवं मानसिक शांति प्रदान कर सकती है।
अरफ़े के दिन विशेष उपासना एवं इबादत का उल्लेख किया गया है, रोज़ा रखना, ग़ुस्ल करना अर्थात विशेष स्नान करना, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की दुआ का पढ़ना, नमाज़े अस्र के बाद दो रकत नमाज़ का पढ़ना, इसके अलावा चार रकत नमाज़ पढ़ना और दुआ करना विशेष रूप से दुआए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम।
जाबिर इब्ने अब्दुल्लाह अंसारी से रिवायत है कि पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया, अरफ़े के दिन मैदाने अरफ़ा की ओर चलते ही मैदाने अरफ़ा में एकत्रित होने वालों पर ईश्वर की कृपा शुरू हो जाती है। उस समय शैतान अपने सिर पर ख़ाक डालता है, रोता पीटता है, दूसरे शैतान उसके चारो ओर इकट्ठे हो जाते हैं और कहते हैं, तुझे क्या हो गया है? वह कहता है कि जिन लोगों को मैंने 60 और 70 वर्षों तक (पापों में लिप्त करके) नष्ट किया, पलक झपकते ही उन्हें क्षमा कर दिया गया। इसी प्रकार पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया, जो कोई अरफ़े के दिन अपने कान, आँखे और ज़बान पर निंयत्रण रखेगा, ईश्वर उसे अरफ़े से दूसरे अरफ़े के दिन तक सुरक्षित रखेगा।
अरफ़ात में जैसे जैसे सूर्यास्त होता है, धीरे धीरे हाजियों के क़दम मशअर की ओर बढ़ने लगते हैं, मशअर भी ज्ञान प्राप्ति एवं जागरुकता की सरज़मीन है। मशअर चिंतन मनन का दूसरा पड़ाव है, यहां हाजी कल के लिए स्वयं को तैयार करते हैं ताकि मिना में शैतान से प्रतिकात्मक युद्ध करें। रात को ईश्वर की उपासना और प्रार्थना में गुज़ारते हैं और 10 ज़िलहिज्जा की सुबह सफ़ैद वस्त्र धारण किए हाजियों का विशाल समूह सुबह की नमाज़ अदा करता है और मिना की ओर चल पड़ता है। 10 जिलहिज्जा, बलिदान एवं भलाई की ईद है।
इमाम मोहम्मद बाक़िर और इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम का तारीख़ी सफ़रे शाम
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने अपनी एक तक़रीर में फ़रज़ंदे रसूल इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की शख़्सियत के कुछ पहलुओं का जायज़ा लिया और इमाम के तारीख़ी सफ़रे शाम के सिलसिले में बड़े अहम बिंदुओं पर रौशनी डाली तक़रीर के कुछ चुनिंदा हिस्से निम्नलिखित हैं।
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने अपनी एक तक़रीर में फ़रज़ंदे रसूल इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की शख़्सियत के कुछ पहलुओं का जायज़ा लिया और इमाम के तारीख़ी सफ़रे शाम के सिलसिले में बड़े अहम बिंदुओं पर रौशनी डाली तक़रीर के कुछ चुनिंदा हिस्से निम्नलिखित हैं।
बिस्मिल्लाह-अर्रहमान-अर्रहीम
दोस्तों की ख़्वाहिश है कि मैं इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के सिलसिले में वक़्त का ख़्याल रखते हुए कुछ बयान करूं।
इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की इमामत की शुरुआत सन 94 हिजरी में हुई जो सन 114 हिजरी तक जारी रही, यही उनकी शहादत का साल है, उनकी इमामत का दौर 19 या 20 बरस रहा। इन 20 बरसों में इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने क़ुरआने मजीद, हदीस, अहकाम, वाजिबात और अख़लाक़ी ख़ूबियों की व्याख्या पर आधारित नज़रियाती, वैचारिक और दीनी मिशन के साथ ही साथ ख़िलाफ़त के खिलाफ लड़ाई, लोगों में एकजुटता, शिया मुसलमानों को एक प्लेटफ़ार्म पर जमा करने और लोगों को, यानी मुसलमानों को इमामत से जोड़ने की सियासी राह पर चलना भी जारी रखा।
हेशाम बिन अब्दुलमलिक वह ख़लीफ़ा है जिसके दौर में इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की उम्र का अक्सर हिस्सा गुज़रा है। उसे अचानक यह महसूस होने लगा कि इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम उसके लिए ख़तरा हैं। कहते हैं कि मस्जिदुल हराम या फिर मक्का व मदीना के किसी रास्ते में हेशाम जब चल रहा था और उसके साथ उसका ख़ास ग़ुलाम सालिम भी था, अचानक उसे एक बड़ी हस्ती नज़र आयी तो उसने पूछा कि यह कौन है?
सालिम ने कहा कि यह मुहम्मद बिन अली बिन हुसैन हैं, उसने इमाम के बारे में बताया, जब हेशाम को पता चला कि यह इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम हैं तो वह कहने लगा कि अच्छा! “यह वही हैं जिनके इराक़ी आशिक़ हैं” (1) जिन पर इराक़ के लोग जान छिड़कते हैं? उसे लगा कि इमाम उसके लिए ख़तरा हैं। इसी लिए उसने इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम को परेशान करने का इरादा किया।
यह तो पक्की बात है कि उसने इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम को एक बार मदीना से शाम बुलाया था, मेरे ख़्याल में तो एक बार से ज़्यादा तलब किया था। इमाम को तलब करने के सिलसिले में जो रवायतें हैं वह ऐसी हैं जिनमें कुछ ऐसे वाक़ेआत का ज़िक्र है जिनके बीच वक़्त का बहुत फ़ासला है जिससे पता चलता है कि हेशाम ने इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम को दो बार बल्कि तीन बार मदीना से शाम तलब किया और उन्हें वहां ले जाया गया। लेकिन बहरहाल एक बार जब उसने इमाम को तलब किया तो अगर मैं तलब किए जाने का पूरा वाक़या बताऊं तो इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम से हमारी अक़ीदत और उनकी इज़्ज़त और बढ़ जाएगी और इसके साथ ही इमाम का सियासी नज़रिया भी सामने आ जाएगा।
हेशाम ने मदीना के गर्वनर को हुक्म दिया कि मुहम्मद बिन अली और उनके बेटे जाफ़र बिन मुहम्मद को पकड़ कर हमारे पास भेज दो, इस से पता चलता है कि उस दौर में कि जब इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम एक नौजवान थे तब भी ख़िलाफ़त की नज़र में वह ख़तरा थे। यानी वह सिर्फ़ इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम को ही बुलाने को काफ़ी नहीं समझता बल्कि कहता है कि दोनों को मेरे पास भेजा जाए। इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम और इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम को सवारियों पर बिठाया जाता है और सिपाहियों के साथ शाम रवाना कर दिया जाता है।
उधर हेशाम बिन अब्दुलमलिक को चैन नहीं था क्योंकि वह किसी आम आदमी से नहीं मिलने वाला था बल्कि ऐसी हस्तियों का सामना करना था जो असाधारण और ग़ैर मामूली हैं, सब से पहले तो इस लिए कि वो पैग़म्बरे इस्लाम की संतान हैं और यह वह ख़ूबी थी जिसे बनी उमैया के ख़लीफ़ा, बहुत ज़्यादा अहम समझते थे और दूसरी बात यह थी कि यह हस्तियां ठोस अंदाज़ में अपनी बात रखती थीं और हाज़िर जवाब थीं जो बहुत आसानी से हेशाम और उसके दरबारियों को अपमानित कर सकती थीं। तीसरी बात यह कि वे बड़ी जानकार और इल्म रखने वाली हस्तियां थीं और इस तरह की बड़ी हस्तियों से बात करना आसान नहीं है।
बहरहाल हेशाम डरा हुआ था और उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि इन हस्तियों का सामना कैसे करे? उसे यह डर भी सता रहा था कि कहीं यह लोग महल और दरबार में आने के बाद ऐसी बातें न कह दें जिससे वह और उसके दरबारियों की बेइज़्ज़ती हो जाए और वे लोग जवाब न दे पाएं, जिस की वजह से वह ग़ुस्सा दिखाने पर मजबूर हो जाए जो वह नहीं चाहता था। इस लिए उसने एक मंसूबा तैयार किया जो इस तरह थाः कुछ दरबारियों और पिट्ठुओं को लाया गया और उन सब को उस हॉल में चारों तरफ़ बिठा दिया गया जहां इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम को लाया जाने वाला था, ख़ुद हेशाम बीच में बैठा और उसने कहा कि जब मुहम्मद बिन अली अंदर आएं तो तुम लोगों में से कोई भी उनकी इज़्ज़त करने के लिए खड़ा न हो और न ही उन्हें कोई बैठने की जगह दे ताकि वो मजबूरन खड़े रहें, तुम सब ख़ामोश रहना और मैं उन्हें बुरा भला कहना शुरु कर दूंगा। जब मेरी बात ख़त्म हो जाएगी तो तुम लोग भी एक एक करके उन्हें बुरा भला कहना और कुछ इस तरह से हर तरफ़ से उन्हें घेर लेना कि उन्हें कुछ बोलने या जवाब देने का मौक़ा ही न मिले।
अब अगर हेशाम अपने इस प्लान में कामयाब हो जाता तो सच में उसकी जीत होती क्योंकि उसने जान तो नहीं ली होती, जेल में भी नहीं डाला होता, बस दरबार में बुला कर इमाम को बेइज़्ज़त कर देता और फिर बेइज़्ज़त करके उन्हें वापस भेज देता। फिर सब को पता चल जाता क्योंकि दरबार में शायर लोग भी बैठे थे, वह सब इस घटना पर शेर कहते। कभी एक बार मैंने कहा था कि पुराने दौर के शायर आज के रिपोर्टरों की तरह होते थे, किसी भी घटना पर शेर कह कर उसे चारों तरफ़ फैला देतेः “अच्छा तो आप वही हैं जिन्हें हेशाम के दरबार में ख़लीफ़ा ने यह कहा था, वह कहा था और आप के पास कहने को कुछ नहीं था।” यह सब बातें कही जातीं और हर तरफ़ फैलायी जातीं, पूरी दुनिया को पता चल जाता, इराक़ में भी यह ख़बर फैल जाती और सब को पता चल जाता। इस तरह हेशाम का मक़सद पूरा हो जाता।
इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम उस हॉल में दाख़िल हुए, वहां सब लोग पहले से ही तैयार थे। इमाम ने सब से पहला काम तो यह किया कि हेशाम को सलाम नहीं किया, उन्होंने सलाम तो किया क्योंकि सलाम मुस्तहब है, लेकिन हेशाम को नहीं किया बल्कि सब को सलाम किया और कहा कि अस्सलामो अलैकुम! जबकि तरीक़ा क्या था? तरीक़ा यह था कि जब ख़लीफ़ा बैठा हो वह भी इस तरह का ज़ालिम ख़लीफ़ा तो फिर जब आप उसके दरबार में पहुंचें तो सब से पहले उसे सलाम करें, जैसे ख़ास एहतेराम के साथ यह कहें कि सलामुन अलैकुम या अमीरलमोमेनीन! यह ख़लीफ़ा जो होते थे वह ख़ुद को अमीरुलमोमेनीन कहलवाना पसंद करते थे। लेकिन इमाम ने यह नहीं कहा, जब वो हॉल में दाख़िल हुए तो आप ने देखा कि कुछ लोग बैठे हुए हैं, ख़लीफ़ा कौन है, इस पर ध्यान ही नहीं दिया। उसके बाद जहां जगह मिली वहीं जाकर बैठ गये। ख़ुद इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम और इसी तरह इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम भी। उन्होंने इस बात का इंतेज़ार ही नहीं किया कि उनसे कहा जाएः “तशरीफ़ लाइये, यहां बैठिए, ऊपर बैठिए, नीचे बैठिए।” शायद ख़ुद हेशाम के क़रीब ही जगह ख़ाली थी जहां इमाम जाकर बैठ गये और इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम भी उनके पास ही बैठ गये।
हेशाम ने इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम को बुरा भला कहना शुरु कर दिया। “आप यह करते हैं, आप वह करते हैं, लोगों में झगड़े करवाते हैं।” उसकी जो बातें मुझे याद आ रही हैं वह यह थीं कि आप का पूरा घराना ही हमेशा मुसलमानों की एकता को नुक़सान पहुंचाता रहा है, आप लोग ख़ुद को बहुत बड़ा साबित करना चाहते हैं और ख़लीफ़ा बनना चाहते हैं। ख़ुद सब से ऊपर रहना चाहते हैं। आप लोग हमें इस तरह से नहीं देख सकते। हेशाम ने इसी तरह की बातें इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम को सुनाना शुरु कर दीं। जब उसकी बातें ख़त्म हो गयीं तो दूसरों ने भी शुरु कर दिया। “जी हां! बादशाह सलामत ने सही कहा।” उस दौर का अमीरुलमोमेनीन वही बादशाह सलामत होता था, कोई फ़र्क़ नहीं है, कोई यह कह रहा था कि आप लोग ऐसे हैं, आप लोग वैसे हैं, कोई कुछ कहता कोई कुछ और। हेशाम की बातें ख़त्म हो गयी थीं तो उन लोगों के पास भी कहने को कुछ ख़ास नहीं था, वह सब भी अपनी अपनी बात कह कर चुप हो गये।
इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने बहुत गंभीरता और सब्र व हौसले से उन सब की बातें सुनीं, उनके चेहरे पर नाराज़गी का कोई निशान नहीं था न ही माथे पर कोई सिलवट। उन्होंने बड़े सुकून से सब की बातें सुनीं। जब सब ने बोलना ख़त्म कर दिया तो इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम अपनी जगह से उठे क्योंकि वह समझ गये थे कि बैठे रहने से कुछ नहीं होने वाला। उन सब का जवाब, खड़े होकर देना चाहिए, खड़े होकर उन्हें मुहतोड़ जवाब देना ज़रूरी है। इस लिए इमाम ने खड़े होकर ख़ुत्बा देना शुरु कर दिया, कुछ इस तरह से जैसे वो हेशाम या वहां बैठे चार दूसरे मामूली हैसियत के लोगों से नहीं बल्कि मानो इतिहास से बातें कर रहे हों, जैसे वो इस्लामी उम्मत के सामने तथ्यों को बयान कर रहे हों। आप देखें, उनकी वह तक़रीर और बयान, इतिहास में दर्ज हो गया, बाक़ी रहा और आज हम सब तक पहुंचा। पूरी इस्लामी तारीख़ में इस तक़रीर के अलफ़ाज़ बार बार दोहराए गये।
इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने बिस्मिल्लाह और ख़ुदा की हम्द व सना से अपना ख़ुत्बा शुरु किया और फिर बेहद दिलचस्प अंदाज़ में अपनी बात इस तरह से रखीः “हे लोगो!” उन्होंने यह नहीं कहा कि “मौजूद लोगो! भाईयो! मोमिनो!” बल्कि कहा कि “हे लोगो!” जिसका मतलब साफ़ है कि वो वहां दरबार में बैठे कुछ गिनती के लोगों से मुख़ातिब नहीं थे। इमाम ने कहा, “तुम लोग कहां जा रहे हो? तुम्हें कहां ले जाया जा रहा है? तुम्हारी मंज़िल कहां है? क्या है? यह जो तुम्हारा सफ़र है कहां ख़त्म होने वाला है? तुम लोग कर क्या रहे हो?” इस तरह से इमाम उन लोगों की बौखलाहट सब के सामने ले आते है, यह साबित कर देते हैं कि वहां बैठे लोग, ग़ुलाम और कठपुतली हैं जिनका अपना कोई इरादा नहीं है, इमाम बहुत अच्छी तरह से यह साफ़ कर देते हैं कि वहां बैठे लोग कठपुतली और ख़िलाफ़त व ख़लीफ़ा के पिट्ठू हैं। इमाम कहते हैं कि ख़ुदा ने हमारे ज़रिए तुम्हारे बाप दादा को हिदायत से नवाज़ा है यानी आख़िर में हम ही रहेंगे और तुम सब चले जाओगे। आज अगर तुम्हारे हाथ में यह चार दिन की हड़पी हुई हुकूमत है तो जान लो अल्लाह ने हमारे लिए हमेशा रहने वाली एक हुकूमत रखी है।
ग़ौर कीजिए! यूं तो वो एक सियासी क़ैदी हैं, एक ऐसे सियासी क़ैदी जो वक़्त के बादशाह के सामने खड़े होकर इस तरह से उससे बहस कर रहे हैं और यह कह रहे हैं कि तुम चार दिनों से ज़्यादा इस तख़्त व ताज के मालिक नहीं हो और यह समझ बैठे हो कि सब कुछ तुम्हारे हाथ में है!? तुम सब चले जाओगे और जो चीज़ रह जाएगी, जिसकी तारीख़ बनेगी और जिसका भविष्य होगा वह हम हैं। क्योंकि हम दूसरी दुनिया और अंजाम के मालिक हैं। अल्लाह ने कहा ही है कि दूसरी दुनिया और अच्छा अजांम मोमिनों के लिए है। उन लोगों के लिए है जो तक़वा वाले हैं जो अल्लाह से डरते हैं। यानी हम तक़वा वाले हैं तुम लोग तक़वे से दूर हो, फ़ासिक़ व फ़ाजिर और बुरे काम करने वाले दीन से दूर लोग हो। दीन से दूर रहने वाले बुरे लोगों का तारीख़ में नाम व निशान मिट जाता है, वह ख़त्म हो जाते हैं लेकिन तक़वा रखने वाले और अल्लाह से डरने वाले हमेशा ज़िंदा रहते हैं।
इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के इस बयान की तफ़सीर किसी और वक़्त के लिए रख देते हैं क्योंकि पूरी तफ़सील बताने में काफ़ी वक़्त लग जाएगा। मैं यहां बस कुछ बातें ही बता सकता हूं। बहरहाल इमाम इस तरह का ख़ुत्बा देते हैं। इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम जब ख़ुत्बा देते हैं तो जैसा कि पहले से ही उम्मीद थी, इमाम के ठोस बयान के आगे यह लोग बौखला जाते हैं और उनके हाथ पांव फूल जाते हैं। उनकी सारी हिम्मत और आत्मविश्वास ख़त्म हो जाता है। हेशाम घबराकर इमाम से कहता है किः मेरे चचेरे भाई आप नाराज़ न हों, हम आप का बुरा नहीं चाहते, इस तरह वह पीछे हट जाता है।
जैसाकि मैंने कहा इस मुलाक़ात के बारे में कई रवायतें हैं जिनमें एक रवायत में अब शायद वह यही रवायत हो या फिर कोई और रवायत, बहराल एक रवायत में कहा गया है कि हेशाम ने इस उम्मीद में कि अब वह किसी और तरीक़े से इमाम की बेइज़्ज़ती कर सकता है, उसने इमाम से कहा कि सुना है आप बहुत अच्छे निशानेबाज़ हैं और तीर बहुत अच्छा चलाते हैं, मेरा दिल चाहता है कि हम लोग थोड़ा तीर कमान चला लें और हम आप का निशाना भी देख लेंगे। इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम कहते हैं कि मैं बूढ़ा हो चुका हूं, तीर कमान जवानी की बात है। इमाम यह नहीं कहते कि मुझे इन सब कामों में कोई दिलचस्पी नहीं है बल्कि कहते हैं कि हां जवानी के दौर में तीर व कमान चलाना सीखा है, मुझे तीर चलाना आता है लेकिन अब मैं बूढ़ा हो गया हूं। हेशाम, ज़िद करता है तो इमाम कहते हैं कि अच्छी बात है, कमान ले आओ। तीर व कमान लाया जाता है और एक निशान बनाया जाता है जिसके बाद इमाम कमान उठा कर तीर चलाते हैं जो सीधे जाकर निशाने पर लगता है। वह दूसरा तीर चलाते हैं तो वह पहले तीर को चीरता हुआ निशाने पर लगता है, तीसरा तीर मारते हैं तो वह दूसरे तीर को चीर देता है! इमाम सात तीर चलाते और हर तीर पहले वाले तीर को चीरता हुआ निशाने पर लगता है। इमाम कहते हैं कि यह लो यह तीर चलाना भी देख लो।
एक और रवायत में कहा गया है कि इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम को एक जेल में ले जाया गया था लेकिन दूसरी में है कि ऐसा नहीं हुआ था लेकिन उन्हें फिर मदीना भेज दिया जाता है और जब इमाम मदीना वापस जाते हैं तो हेशाम एक और साज़िश रचता है। वह यह सोचता है कि अब यह लोग यहां से जीत कर जा रहे हैं तो वापसी में यक़ीनी तौर पर हर शहर में तक़रीर करेंगे और कहेंगे कि हां हम गये थे, हेशाम को हरा दिया, उन सब को धूल चटा कर अब वापस जा रहे हैं, तो यह तो बहुत बुरा होगा। इस लिए वह इमाम से पहले ही कुछ लोगों को आगे आगे भेज देता है ताकि वे रास्ते में पड़ने वाले शहरों में अफ़वाह फैलाएं कि यह लोग यहूदी हैं और इन्हें रास्ता न दिया जाए। इस तरह से वे लोग रास्ते के हर शहर में जाते हैं और कहते हैं कि दो यहूदी यहां से गुज़रने वाले हैं, शहर के लोगो! ध्यान रखना, उन लोगों को खाना पीना न देना। आप सोचें! उस दौर में लोग इतने नासमझ थे कि इस तरह के प्रोपगंडे पर यक़ीन कर लेते हैं और यह समझ बैठते हैं कि मुहम्मद बिन अली और जाफ़र बिन मुहम्मद यहूदी हैं! इसी दौरान इमाम मदयन पहुंचते हैं जो उनके रास्ते में पड़ता था। शहर के लोगों से कहा गया था कि उन्हें खाना पीना न दिया जाए, इमाम वहां पहुंचे तो लोग उन्हें देख कर कहते हैं कि जी हां यह तो वही दो लोग हैं जिनका हुलिया बताया गया था अब यह लोग आ गये हैं, यह यहूदी हैं, लोग शहर का दरवाज़ा बंद कर लेते हैं और इमाम को खाना पीना कुछ नहीं देते।
आप को पता ही है कि उस दौर में रेस्टोरेंट, कार, हवाई जहाज़ तो थे नहीं, कई दिनों से वे रास्ते में थे, खाने पीने की चीज़ों की ज़रूरत थी, ख़ुराक चाहिए थी, खाना बहुत अहम था उन लोगों के लिए। तो अगर कोई खाना बेचने पर तैयार न होगा तो फिर इन्सान को रेगिस्तान में भूख प्यास से मर जाना होगा। इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम उनसे खाना ख़रीदने की बहुत कोशिश करते हैं लेकिन वो देखते हैं कि इन लोगों की समझ में बात नहीं आ रही है और वे कुछ भी सुनने पर तैयार नहीं हैं। फिर इमाम अपने बेटे इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के साथ शहर से बाहर एक टीले पर जाते हैं और मदयन के रहने वालों को मुख़ातिब करते हुए कहते हैं कि “हे मदयन के लोगो! अल्लाह की तरफ़ से जो जख़ीरा है वह तुम्हारे लिए भलाई है अगर तुम मोमिन हो।” (3) फिर कहते हैं कि “मैं अल्लाह की तरफ़ से बाक़ी रहने वाला ज़ख़ीरा हूं।” एक बूढ़ा आदमी भी वहां मौजूद था जब उसने यह सब देखा तो कहने लगा कि मैंने अपने बड़े बूढ़ों से हज़रत शोएब के बारे में कुछ बातें सुनी हैं, मैंने सुना है कि नबी शोएब अलैहिस्सलाम, इसी टीले पर और इसी पहाड़ी पर गये थे और लोगों से इसी तरह कहा था जिसका ज़िक्र क़ुरआन में है और मैं इस आदमी के चेहरे में हज़रत शोएब की तस्वीर देख रहा हूं। जाओ जाकर दरवाज़ा खोल दो वर्ना अल्लाह का अज़ाब आ जाएगा। लोग जाकर दरवाज़ा खोल देते हैं तो इमाम कहते हैं कि मैं पैग़म्बरे इस्लाम की औलाद हूं, लोग आप को पहचान जाते हैं और ख़लीफ़ा को बुरा भला कहने लगते हैं, उसके दरबार की इस हरकत से सब लोग काफ़ी नाराज़ होते हैं और हेशाम को ख़ूब बुरा भला कहते हैं और शायद आज के दौर की ज़बान में प्रोटेस्ट करते हैं। जब हेशाम को यह पता चलता है तो वह हुक्म देता है कि उस बूढ़े को पकड़ कर लाया जाए जिसकी वजह से यह सब हंगामा हुआ है। उस बूढ़े को सिपाही पकड़ कर ले जाते हैं। रावी का कहता है कि फिर उस बूढ़े के बारे में कुछ पता नहीं चला कि वह कहां गया, उसे ग़ायब कर दिया जाता है।
यह इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की सियासी ज़िंदगी की एक झलक है। इमाम ने अपनी इमामत के बेहद फ़ायदेमंद बीस बरसों में दीनी तालीम को आम किया, क़ुरआने मजीद की अच्छी बातों को, उसके सबक़ को हर कोने तक पहुंचाया, इस्लामी हुकूमत बनाने और अलवी विलायत के शिया नज़रिये को फैलाने के लिए लोगों को हर इलाक़े में भेजा और बहुत बड़ी तादाद को अपने से क़रीब किया, अपने दुश्मनों को धूल चटाई और दोस्तों और चाहने वालों को जमा किया और इस तरह से इस्लाम में ऐसी नींव रखी जो बाद में बड़े बड़े क़दमों की बुनियाद बनी और इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की इमामत के लिए माहौल बना। आख़िरकार हेशाम से रहा न गया और उसने इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम को ज़हर दे दिया।
अल्लाह हमें इस अज़ीम इमाम और अहलेबैत के चाहने वालों और उनकी राह पर चलने वालों में रखे।
वस्सलामो अलैकुम व रहमतुल्लाह व बरकातोहू
(1) अलइरशाद फ़ी मारेफ़ते होजजिल्लाह अललइबाद, जिल्द 2 पेज 163
(2) काफ़ी, जिल्द 1 पेज 471
(3) दलाएलुलइमामा, पेज 241 थोड़े से फ़र्क़ के साथ।
राष्ट्रपति रईसी के हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त के बाद ईरान में सैन्य तख्तापलट की आरज़ू करने वाली अमेरिकी मैगज़ीन
अमेरिकी मैगजीन हिल की वेबसाइट पर शहरज़ाद अहमदी का लिखा एक लेख प्रकाशित हुआ है जिसमें ईरान के राष्ट्रपति के हेलीकॉप्टर हादसे के बाद ईरान के राजनीतिक हालात को गंभीर बताने की कोशिश की गई है।
अमेरिकी मैगजीन हिल की वेबसाइट पर शहरज़ाद अहमदी का लिखा एक लेख प्रकाशित हुआ है जिसमें ईरान के राष्ट्रपति के हेलीकॉप्टर हादसे के बाद ईरान के राजनीतिक हालात को गंभीर बताने की कोशिश की गई है।''ईरान के चुनाव एक और सैन्य तख्तापलट को जन्म दे सकते हैं'' (Iran’s elections could give rise to another military coup) शीर्षक के तहत यह आर्टिकल हिल साइट पर प्रकाशित हुआ था।
लेखिका, शहरज़ाद अहमदी, सेंट थॉमस विश्वविद्यालय में इतिहास की एसोसिएट प्रोफेसर हैं, जो ईरान और इराक़ मामलों की माहिर हैं। वह ईरानी मूल की हैं और ईरान के खिलाफ अमेरिकी सरकार की सेवा में व्यस्त रहती हैं।
पार्सटुडे ने पत्रिका की इस रिपोर्ट के बारे में लिखा कि हम इस आर्टिकल की लेखिका और अमेरिकी पत्रिका द हिल (The Hill) के कुछ दावों पर एक नज़र डालते हैं।
यह आर्टिकल एक अजीब कल्पना के आधार पर शुरू होता है और अंत तक उसी कल्पना के आधार पर ही आगे बढ़ता रहता है: "इस्लामी गणतंत्र की स्थिरता, निश्चित रूप से सवालों के घेरे में है"। इस आर्टिकल की लेखक को लगता है कि यदि वह "निश्चित रूप से" शब्द का उपयोग करती हैं तो उपरोक्त अप्रामाणित आधार सिद्ध हो जाएगा।
हालांकि सभी साक्ष्यों और पुख़्ता सबूतों से संकेत मिलता है कि पिछली सरकार से वर्तमान सरकार को सत्ता का हस्तांतरण योजना के अनुसार और निश्चित रूप से ईरान के इस्लामी गणतंत्र के संविधान के आधार पर हुआ था जिसे कई दशक पहले ही मंज़ूरी मिल गयी थी।
लेख में एक अन्य स्थान पर कहा गया है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान में अप्रत्याशित परिवर्तन हुए हैं क्योंकि अब व्यवस्था की समर्थक हस्तियां राष्ट्रपति की भूमिका के लिए प्रतिस्पर्धा कर रही हैं।
लेखक का यह दावा कि इस्लामी गणतंत्र में अप्रत्याशित परिवर्तन हुए हैं और वह इस दावे की वजह, राष्ट्रपति पद के लिए व्यवस्था के समर्थकों की प्रतिस्पर्धा क़रार दे रहे हैं।
हिल वेबसाइट पर आर्टिकल लिखने वाली शायद यह भूल गयीं कि किसी भी राजनीतिक व्यवस्था में चुनावी प्रतिद्वंद्वी वे लोग होते हैं जिन्होंने उस देश की राजनीतिक संरचना को स्वीकार किया हो और यह लोग उस देश के संविधान के तहत प्रतिस्पर्धा करते हैं।
दुनिया के कई हिस्सों में होने वाली गर्मागरम और तनावपूर्ण प्रतिस्पर्धा, किसी भी तरह से किसी भी राजनीतिक व्यवस्था के लिए स्थिति के आपातकालीन होने का संकेत नहीं देती।
हिल पत्रिका की लेखिका शहरज़ाद अहमदी के लेख के एक अन्य हिस्से में उन्होंने अमेरिका और ज़ायोनी शासन द्वारा मारे गए और शहीद हुए ईरानियों का ब्योरा, इस्लामी गणतंत्र के लिए मारे गये लोगों के रूप में की है और इन अपराधों में इस्राईली शासन और अमेरिका की भागीदारी का उल्लेख तक नहीं किया है।
एक क़ानूनी राजनीतिक व्यवस्था के प्रति एक लेखिका का इस प्रकार का रवैया, लेखिका और इस लेख को प्रकाशित करने वाली वेबसाइट की दुश्मनी और द्वेष को ज़ाहिर करता है।
क़ुद्स फ़ोर्स के कमांडर जनरल क़ासिम सुलेमानी, ब्रिगेडियर जनरल मुहम्मद रज़ा ज़ाहेदी और ब्रिगेडियर जनरल मोहम्मद हादी हाजी रहीमी, सीरिया में ईरानी सैन्य सलाहकार और ईरान के आठवें राष्ट्रपति शहीद सैयद इब्राहीम रईसी के नाम इस पक्षपातपूर्ण आर्टिकल में ज़िक्र किए गये हैं।
आर्टिकल में दावा किया गया है कि केवल एक प्रमुख सदस्य बचा है जो संभव है कि सभी चीज़ों को बचाए रखे वह हैं ईरान के सुप्रीम लीडर सैयद अली ख़ामेनेई।
किसी को हिल साइट की आर्टिकल लिखने वाली लेखिका से पूछना चाहिए कि जब एकमात्र बचे प्रमुख सदस्य वह स्वयं ही हैं तो हर कोई सुप्रीम लीडर को कैसे बचा सकता है? साथ ही, यह सवाल भी किया जा सकता है कि आखिरकार कैसे यही एक इंसान एक ईरानी सैन्य प्रमुख और कमांडर हैं और बाकी ईरानी सैन्य कमांडर, ईरानी राजनीतिक ढांचे के शेष प्रमुख सदस्य नहीं हैं?
आर्टिकल लिखने वाली लेखिका ने बचकानी भविष्यवाणी करते हुए दावा किया है कि इस्लामी गणतंत्र के मौजूदा नेता के बाद उनके बेटे सैयद मुजतबा ख़ामेनेई, ईरान के अगले सुप्रीम लीडर बनेंगे।
एक असंभव और ग़ैर मुमकिन दावा जिसके बारे में एक कहावत मशहूर है ख़याली पुलाव पकाना, यह सब चीज़ें ईरान में नेतृत्व चयन की संरचना और क्रांति के वरिष्ठ नेता के परिवार की राजनीतिक पोज़ीशन के बारे में लेखिका की कम जानकारी और अज्ञानता को दर्शाती हैं।
इस लेख के अंत में राष्ट्रपति सैयद इब्राहीम रईसी के अंतिम संस्कार और जनरल सुलेमानी के अंतिम संस्कार, जो कि 5 साल पहले हुआ था, की तुलना करके बताया गया है कि इस कार्यक्रम में कम लोगों ने भाग लिया था और लिखका के अनुसार, इससे पता चलता है कि इस्लामी गणतंत्र की सामाजिक पूंजी में कमी आई है।
मशहद जैसे कुछ शहरों में शहीद राष्ट्रपति सैयद इब्राहीम रईसी के अंतिम संस्कार में, जनरल क़ासिम सुलेमानी के अंतिम संस्कार की तुलना में अधिक भीड़ थी।
यह लेख एक विचारशील विश्लेषण से ज़्यादा एक व्यक्तिगत बयान बाज़ी और ईरान विरोधी अमेरिकी चरमपंथी आंदोलन की इच्छाओं और भ्रमों पर आधारित एक लेख है जिसे ईरान के भी की घटनाओं की सही ढंग से समझ ही नहीं है।
एक ऐसा आर्टिकल जो हर प्रकार तथ्यों या दस्तावेजों से कोसों दूर है और ईरान की इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था के प्रति लेखिका और हिल पत्रिका की नफ़रत ज़ाहिर करने का एक हथकंडा है।
इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि ईरान में 1953 का सैन्य तख्तापलट जिसे 28 मुर्दाद के तख्तापलट के रूप में जाना जाता है, अमेरिका और इंग्लैंड द्वारा ईरानी सेना में प्रभावशाली तत्वों का इस्तेमाल करके निर्वाचित प्रधानमंत्री मुहम्मद मुसद्दिक़ की सरकार को उखाड़ फेंकने और पश्चिम पर निर्भर मुहम्मद रज़ा शाह पहलवी को बचाने के लिए था।
इटली में जी7 का 50वां शिखर सम्मेलन शुरू, यूक्रेन के लिए समर्पित होंगे अधिकांश सत्र
इटली में G7 देशों का 50वां शिखर सम्मेलन शुरू हो चुका है। इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत समेत दुनिया के कई देश के प्रमुख इटली पहुँच चुके हैं। जी7 शिखर सम्मेलन को लेकर यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने दावा करते हुए कहा कि आज से शुरू हुआ जी7 शिखर सम्मेलन यूक्रेन, उसकी रक्षा और आर्थिक लचीलेपन को समर्पित होगा।
यूक्रेन के लिए सहायता और निर्णायक फैसलों की अपील करते हुए जेलेंस्की ने इटली की पीएम मलोनी और कनाडा के पीएम ट्रूडो के साथ से मुलाकात की। जेलेंक्सी ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि वह विश्व के अन्य नेताओं और आईएमएफ के प्रबंध निदेशक के साथ भी बैठक करेंगे।
अमेरिका- यूक्रेन रक्षा समझौता, जेलेंस्की को नाटो सदस्यता पाने की उम्मीद
जी-7 शिखर सम्मेलन के दौरान यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने अमेरिका के साथ द्विपक्षीय सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इसके बाद वोलोदिमीर जेलेंस्की ने दावा करते हुए कहा कि इस समझौते से पूरी दुनिया को लाभ होगा। उन्होंने इस समझौते के बाद रूस का भी मुद्दा उठाया है और कहा यह समझौता सब की मदद करेगा। साथ ही ये यूक्रेन के लिए नाटो सदस्यता पाने का एक मार्ग और खुलेगा।
जेलेंस्की ने कहा कि यह समझौता कीव के नाटो में शामिल होने की कोशिश के लिए एक पुल है। जेलेंस्की ने कहा कि यह सुरक्षा पर एक समझौता है। यह सहयोग पर एक समझौता है और इस प्रकार हमारे राष्ट्र मजबूत बनेंगे। यह स्थायी शांति की गारंटी के कदमों पर एक समझौता है और इसलिए इससे दुनिया में सभी को लाभ होगा।
इस्लामी समाज में ग़दीर की स्थिति को उजागर करना बहुत महत्वपूर्ण
हुजतुल इस्लाम पूर आरयन ने कहा: इस्लामी समाज में इस महान दिन की स्थिति और महत्व को समझाने की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है और इन दिनों में हमारा सबसे महत्वपूर्ण कार्य हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अ) के गुणों का वर्णन करना और ग़दीर का उल्लेख करना चाहिए।
ईरान के क़ज़विन प्रांत में प्रचार मामलों के महानिदेशक, हुज्जतुल इस्लाम पूर आरयन ने प्रांत में ईद ग़दीर के अवसर पर जश्न मनाने और कार्यक्रम आयोजित करने के लिए आयोजित एक बैठक में बोलते हुए कहा: ग़दीर बहुत कीमती है।
उन्होंने पवित्र पैगंबर की एक हदीस का उल्लेख किया,और कहा: ग़दीर खुम का दिन इस्लामी उम्माह की सबसे बड़ी ईद है और यह वह दिन है जिसे भगवान ने आदेश दिया है और इसे एक सबसे बड़ी ईदों में से घोषित किया है और इस दिन मेरे भाई अमीरुल मोमिनीन (अ) को मेरे हबीब (स) के उम्मत का नेता और कमांडर नियुक्त किया गया है ताकि उनके बाद उनके माध्यम से मार्गदर्शन किया जा सके और यही वह दिन है जिस पर अल्लाह तआला ने अपने धर्म की स्थापना की और अपनी उम्मत पर पूर्णता और आशीर्वाद प्रदान किया और इस्लाम को अपना धर्म बनाया।
हुज्जतुल इस्लाम पूर आरयन ने कहा: इस्लामी समाज में इस महान दिन के महत्व का वर्णन करना सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है और इन दिनों में हमारा सबसे महत्वपूर्ण कार्य हज़रत अमीरुल मोमिनीन (उन पर शांति हो) के गुणों का वर्णन करना और ग़दीर का उल्लेख करना चाहिए।
उन्होंने ख़ुत्बा ग़दीर पढ़ने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया और कहा: हज़रत अली (अ) के गुणों का उल्लेख करने के उद्देश्य से विभिन्न स्थानों पर सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
फ़िलिस्तीन के उत्तर में स्थित तबरिया क्षेत्र पर हिज़्बुल्लाह का बड़ा हमला
एक रिपोर्ट के अनुसार,हिज़्बुल्लाह के सबसे बड़े हमले में 100 मिसाइलें फायर की गयीं और इस हमले में पहली बार अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन के उत्तर में स्थित तबरिया क्षेत्र को निशाना बनाया गया हैं।
प्राप्त रिपोर्टें इस बात की सूचक हैं कि हिज़्बुल्लाह ने बुधवार को अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन पर मिसाइलों से बड़ा हमला किया जिसकी वजह से जायोनी सरकार से सफ़द शहर के बहुत से क्षेत्रों की बिजली कट गई।
लेबनानी प्रतिरोध के सबसे बड़े हमले में 100 मिसाइलें फायर की गयीं और इस हमले में पहली बार अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन के उत्तर में स्थित तबरिया क्षेत्र को निशाना बनाया गया।
मिसाइलों की संख्या और उनके प्रकार की दृष्टि से यह हिज़्बुल्लाह का सबसे बड़ा हमला था। पार्सटुडे की रिपोर्ट के अनुसार इस मिसाइल हमले के दौरान अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन के उत्तर में सायरन बजने लगे।
कहा जा रहा है कि इस हमले में जायोनी सरकार की हथियार बनाने वाली राफ़ाएल कंपनी को सीधे रूप से निशाना बनाया गया हिज़्बुल्लाह के मिसाइल हमले कारण जायोनी सरकार के सफ़द शहर के बहुत से क्षेत्रों की बिजली कट गयी।
फ़िलिस्तीन की न्यूज़ एजेन्सी "समा" ने भी अपनी रिपोर्ट में एलान किया है कि बहुत से मिसाइल जायोनी सेना की स्ट्रैटेजिक हवाई छावनी मीरून और उसके पास के क्षेत्रों पर गिरे। इस हमले से होने वाली जानी व माली क्षति के बारे में अभी तक कोई रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई है।
पिछले कई महीनों से हिज़्बुल्लाह ग़ज्ज़ा पट्टी और दूसरे फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों में जायोनी सरकार के नस्ली सफ़ाये और भीषण व जघन्य अपराधों के जवाब में अवैध अधिकृत फिलिस्तीन के उत्तर में स्थित जायोनी सेना के ठिकानों को लक्ष्य बना रहा है।
भारत की दो टूक, कश्मीर पर किसी की दखलअंदाजी नहीं बर्दाश्त
भारत ने चीन और पाकिस्तान के द्वारा पीओके में बनाए जा रहे आर्थिक गलियारे का एक बार फिर विरोध करते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर के मसले पर किसी भी अन्य देश की दखलअंदाजी हमें बर्दाश्त नहीं है।
बीजिंग में चीन-पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर पर एक साझा बयान दिया था जिस पर भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग था, है और हमेशा रहेगा।
इस बयान में चीन ने कहा कि वह जम्मू-कश्मीर में भारत की एकतरफा कार्रवाई के विरोध में है। भारत और पाकिस्तान के बीच इस मुद्दे को लेकर लंबे समय से विरोध रहा है। ऐसे में इस मसले को शांति से हल करने के लिए यूएन चार्टर और यूएन काउंसिल के प्रस्तावों के जरिए हल किया जाना चाहिए।
चीन-पाकिस्तान इकोनाॅमिक कोरिडोर शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी योजना है। इसकी शुरुआत 2013 में हुई थी। इस प्रोजेक्ट के तहत पाकिस्तान के ग्वादर से चीन के काश्गर तक 3 लाख करोड़ रुपये की लागत से आर्थिक गलियारा बनाया जा रहा है। इस प्रोजेक्ट के जरिए की चीन का सामान सीधे अरब सागर के जरिए अफ्रीकी और मध्य एशियाई देशों तक पहुंच सकेगा। CPEC के तहत चीन पीओके में सड़क, बंदरगाह, ऊर्जा और रेलवे के प्रोजेक्ट्स पर एक साथ काम कर रहा है।
मुंबई हाई कोर्ट ने बकरीद पर कुर्बानी पर रोक लगाने से किया इनकार
मुंबई हाई कोर्ट ने जीव मैत्री ट्रस्ट और अनूप कुमार रज्जन पाल की याचिका पर सुनवाई करते हुए बकरीद पर जानवरों की कुर्बानी पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है।
बंबई हाई कोर्ट ने बृहस्पतिवार को बकरीद के दौरान मुंबई में पशुओं की कुर्बानी करने की इजाजत देने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। जस्टिस एम एस सोनक और न्यायमूर्ति कमल खता की बेंच ने जीव मैत्री ट्रस्ट और अनूप कुमार रज्जन पाल की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि पर्व से कुछ दिन पहले याचिकाकर्ता को कोई राहत देना उचित नहीं होगा।
पशुओं के संरक्षण के लिए काम करने वाले गैर-सरकारी संगठन ‘जीव मैत्री ट्रस्ट’ ने बीएमसी द्वारा 29 मई को जारी उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें बकरीद पर्व के मौके पर 17 से 19 जून तक 67 निजी दुकानों और नगर निकाय के 47 बाजारों में पशुओं के कुर्बानी की इजाजत दी गई थी।