
رضوی
ईरान के राष्ट्रपति की शहादत पर आयतुल्लाह सिस्तानी का शोक संदेश
आयतुल्लाहिल उज़मा सिस्तानी ने ईरान के राष्ट्रपति आयतुल्लाह सय्यद इब्राहीम रईसी की शहादत पर दुख व्यक्त करते हुए शोक संदेश जारी किया हैं।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , एक रिपोर्ट के अनुसार,आयतुल्लाहिल उज़मा सिस्तानी ने ईरान के राष्ट्रपति आयतुल्लाह सय्यद इब्राहीम रईसी की शहादत पर दुख व्यक्त करते हुए शोक संदेश जारी किया हैं।
शोक संदेश कुछ इस प्रकार है:
इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलाही राजेउन बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान के राष्ट्रपति आयतुल्लाह सय्यद इब्राहीम रईसी और उनके प्रतिष्ठित सहयोगियों की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मृत्यु की खबर सुनकर बहुत दु:ख हुआ।
इस दर्दनाक हदसे पर हम ईरान के सम्मानित लोगों और इस्लामी गणतंत्र ईरान के माननीय अधिकारियों, विशेष रूप से सुप्रीम लीडर और मरजाय इकराम के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करते हैं।
और अल्लाह तआला से दुआ करते हैं कि अल्लाह तआला मरहूमीन की मगफिरत करें और परिवार वालों को सब्र अता करें।
आयतुल्लाहिल उज़मा हुसैनी सिस्तानी
इस्लामी क्रांति के नेता और ईरानी राष्ट्र के प्रतित बशारूल असद का शोक संदेश
सीरिया के राष्ट्रपति बशर अलअसद ने कहा,अपनी और अपने देश की ओर से मैं ईरानी राष्ट्रपति सैयद इब्राहिम रईसी,और विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियन और उनके सहयोगियों की त्रासदी पर अपनी संवेदना व्यक्त करते हैं।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,एक रिपोर्ट के मुताबिक, सीरिया के राष्ट्रपति बशर अलअसद ने कहा,अपनी और अपने देश की ओर से मैं ईरानी राष्ट्रपति सैयद इब्राहिम रईसी,और विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियन और उनके सहयोगियों की त्रासदी पर अपनी संवेदना व्यक्त करते हैं।
उन्होने हज़रत इमाम खामेनेई, सरकार और ईरानी लोगों की सेवा में अपनी हार्दिक संवेदना व्यक्त की हैं।
अपने संदेश में बशर अलअसद ने इस्लामी गणतंत्र ईरान के साथ सीरिया की एकजुटता पर जोर दिया और दिवंगत राष्ट्रपति और उनके सहयोगियों के परिवारों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की हैं।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति राईसी अपने ईमानदार काम और जिम्मेदारियों के कारण अपने देश के लिए एक महत्वपूर्ण परियोजना का उद्घाटन करने के लिए पूर्वी अजरबैजान गए थे और अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए शहीद का दर्जा प्राप्त किए
अपने संदेश में, बशर अल-असद ने इस्लामी गणतंत्र ईरान के साथ सीरिया की एकजुटता पर जोर दिया और दिवंगत राष्ट्रपति और उनके सहयोगियों के परिवारों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की।
सीरिया के राष्ट्रपति ने कहा कि हमने दिवंगत राष्ट्रपति के साथ काम किया ताकि सीरिया और ईरान के बीच बातचीत के रिश्ते हमेशा उज्ज्वल रहें।
इमाम रज़ा का ख़ादिम होना मेरे लिए सम्मान हैं
यक़ीनी तौर पर इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के पाक रौज़े की सेवा अगर उस तरह अंजाम पाए जिस तरह उसे अंजाम पाना चाहिए तो, सबसे बड़े मूल्यों और सबसे बड़े सम्मान में से है और आज यह चीज़ मुमकिन और मौजूद है।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , सुप्रीम लीडर में फरमाया,यक़ीनी तौर पर इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के पाक रौज़े की सेवा अगर उस तरह अंजाम पाए जिस तरह उसे अंजाम पाना चाहिए तो, सबसे बड़े मूल्यों और सबसे बड़े सम्मान में से है और आज यह चीज़ मुमकिन और मौजूद है।
मुझे भी इस बात पर फ़ख़्र है कि मैं अमल में न सही नाम ही के लिए सही आप लोगों के समूह में शामिल हूं और मुझे इस पाक रौज़े में सेवा करने का सम्मान हासिल है।
यह बात मैं आप लोगों से इसलिए कह रहा हूं कि हमारा दिल भी वहीं है जहाँ रहने का शरफ़ आपको हमेशा हासिल है और क्या क़िसमत है आपकी! हक़ीक़त में मेरे लिए सबसे मीठे लम्हें वो हैं जब मैं इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की ज़ियारत का सौभाग्य पाता हूं।
इमाम ख़ामेनेई
ईरानी राष्ट्रपति की दुखद मौत पर मजलिस-ए-उलेमा-ए-हिंद क़ुम का शोक संदेश
मजलिस-ए-उलमा-ए-हिंद की शाखा क़ुम ने इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति और उनके साथी विदेश मंत्री सहित अन्य अधिकारियों की दुखद मौत पर गहरा दुख और अफसोस व्यक्त किया है और ईरानी राष्ट्र के प्रति संवेदना व्यक्त की है।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, क़ुम स्थित मजलिस-ए उलमाए हिंद का शोक संदेश इस प्रकार है.
शहीदों के अल्लाह के नाम से
इन्ना लिल्लाहे वा इन्ना इलैहे राजेऊन
हम अल्लाह के हैं और उसी की ओर लौटेंगे
अभी स्वास्थ्य, सुरक्षा और लंबी उम्र के लिए दुआओं के लिए हाथ उठ रहे थे, तभी शहादत की खबर मिली, जिस पर यकीन करना बहुत मुश्किल था, लेकिन रेजन बेकज़ाएही व तसलीमन लेअमरेह के अलावा कोई चारा नहीं था, क्योंकि सच्चाई पर बहुत देर तक पर्दा नही डाला जा सकता। अंततः भारी मन और आंसूओ से भरी आँखों से हमें यह स्वीकार करना पड़ा कि एक मुजाहिद पुरुष और उसके साथ के लोग, आशा करते हैं कि अपने हक़ीक़ी रब से मिलेगा।
इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति जो प्रिय थे। राजनीतिक प्रतिद्वंदी भी अच्छे संस्कारों के कायल थे, जो क्रांति के महान नेता की मजबूत बाज़ू थे और उनकी शहादत भी देश के विकास में सहायक हुई।
मजलिस-ए-उलमा-ए-हिंद, क़ुम शाखा, इस महान त्रासदी पर ईरान राष्ट्र के दुःख में और ज़माने के इमाम के इस महान नुकसान पर एक समान भागीदार है, इस बड़े नुक़सान पर इमामे ज़माना, सुप्रीम लीडर, मृतकों के परिवारों और ईरानी राष्ट्र की सेवा में संवेदना व्यक्त करते हुए, हम उनके बुलंद दरजात के लिए प्रार्थना करते हैं।
अल्लाह उन्हे चौदह मासूम के जवारे में जगह दे और जो बचे हैं उन्हें सब्र दे।
दुःख का भागीदार; मजलिस-ए-उलमा-ए-हिंद क़ुम शाखा
राष्ट्रपति रईसी और उनके साथियों की शहादत पर सरकारी बोर्ड का बयान
ईरान के राष्ट्रपति और उनके सहयोगियों की शहादत के बाद ईरान के गवर्निंग बोर्ड ने एक बयान जारी किया है।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, ईरान के राष्ट्रपति हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन सैय्यद इब्राहिम रईसी और उनके सहयोगियों की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में शहादत के बाद ईरान के सरकारी बोर्ड ने एक बयान जारी किया है, जिसका पाठ इस प्रकार है:
बिस्मिल्लाह अल रहमान अल रहीम
ईमान वाले लोगों में वे लोग हैं जो अल्लाह के वादे के प्रति सच्चे हैं, इसलिए उनमें से वे हैं जो उससे प्यार करते हैं, और उनमें से वे हैं जो प्रतीक्षा करते हैं और बदले में चीजों को बदलते हैं।
ईरान राष्ट्र के सेवक, खादिम अल-रज़ा (अ), ईरान के प्रिय राष्ट्रपति और हर दिल अजीज हज़रत अली इब्न मूसा अल-रज़ा (अ) के शुभ जन्म के दिन हज़रत आयतुल्लाह रईसी ने इस दारे फ़ानी को छोड़ दिया।
ईरानी जनता के अथक राष्ट्रपति, जो सदैव ईरानी जनता की सेवा में लगे रहते थे और देश को विकास और ऊंचाइयों पर पहुंचाना अपना कर्तव्य समझते थे, उन्होंने अपना वादा निभाया और इस राष्ट्र के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया।
इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान के सरकारी बोर्ड, ईरान के प्रिय राष्ट्रपति और ख़ादिम हज़रत आयतुल्लाह रईसी, जो इस भयानक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में शहीद हो गए, और उनके साथी विदेश मंत्री डॉ. हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियन पूर्वी अजरबैजान के तबरीज़ के इमाम जुमा हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन अल हाशिम, गवर्नर डॉ. मलिक रहमती और अन्य लोगों की शहादत पर इमाम ज़माना (अ) ईरान के लोगों और राष्ट्र के प्रति संवेदना व्यक्त करते हैं।
हम अपने वफादार, प्रशंसनीय और प्रिय लोगों को आश्वस्त करते हैं कि देश की सेवा देश के अनुभवी और सर्वोच्च नेता के सेवक और वफादार मित्र आयतुल्लाह रईसी की अथक भावना और अल्लाह तआली की मदद से जारी रहेगी। जनता का सहयोग, देश की व्यवस्थाओं में कोई व्यवधान नहीं आएगा।
ईरानी राष्ट्रपति इब्राहीम रईसी और उनके साथी हैलीकाप्टर दुर्घटना मे शहीद हो गए
ईरान के प्रिय राष्ट्रपति हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लेमीन सय्यद इब्राहीम रईसी और उनके साथी पूर्वी अज़रबैजान के वारज़गान क्षेत्र में एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में शहीद हो गए।
तबरीज़ से हमारे रिपोर्टर के अनुसार ईरान के प्रिय राष्ट्रपति हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लेमीन सय्यद इब्रहीम रईसी, पूर्वी अज़रबैजान के वारज़गान क्षेत्र में हेलीकॉप्टर दुर्घटना मे शहीद हो गए।
ईरानी राष्ट्रपति को लेजाने वाले हेलीकॉप्टर में शहीद होने वालों मे राष्ट्रपति की प्रोटेक्शन यूनिट के प्रमुख सरदार सैयद मेहदी मूसवी, सुरक्षा गार्ड के सदस्य अंसार अल-महदी, एक पायलट, एक सह-पायलट और एक तकनीकी अधिकारी भी शामिल है।
ज्ञात हो कि हुज्जतुल इस्लाम वल मुसलेमीन रईसी और उनके सहयोगी अज़रबैजान गणराज्य के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव की उपस्थिति में क़िज़कला बांध के उद्घाटन के बाद हेलीकॉप्टर से तबरीज़ जा रहे थे, तभी हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया।
राष्ट्रपति इब्राहीम रईसी का हेलीकॉप्टर क्रैश, कई घंटे बाद भी खबर नहीं, आपातकालीन बैठक बुलाई
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद इब्राहीम रईसी को ले जा रहा हेलीकॉप्टर वारज़कान क्षेत्र में दुर्घटनाग्रस्त हो गया है और पूर्वी अजरबैजान, अर्दबील और ज़ंजान से आपातकालीन टीमों को दुर्घटना स्थल पर भेज दिया गया हैं।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद इब्राहीम रईसी को ले जा रहा हेलीकॉप्टर वारज़कान क्षेत्र में दुर्घटनाग्रस्त हो गया है और पूर्वी अजरबैजान, अर्दबील और ज़ंजान से आपातकालीन टीमों को दुर्घटना स्थल पर भेज दिया गया हैं।
ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी के काफिले में तीन हेलीकॉप्टर थे, इनमें से एक की हार्ड लैंडिंंग हुई है. कहा जा रहा है कि इसी हेलीकॉ़प्टर में इब्राहिम रईसी सवार थे। ईरान के गृहमंत्री ने कहा कि राष्ट्रपति से संपर्क नहीं हो पा रहा है जिस जगह पर यह हादसा हुआ है वहां घना कोहरा छाया हुआ है।
रईसी ईरान के पूर्वी अजरबैजान प्रांत में यात्रा कर रहे थे। ईरान की राजधानी तेहरान से यह हादसा तकरीबन 600 किलोमीटर दूर अजरबैजान देश की सीमा पर स्थित जोल्फा के पास हुआ।
ईरान के सरकारी टीवी के मुताबिक बचावकर्मी घटनास्थल पर पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन खराब मौसम की वजह से इसमें बाधा आ रही है। यहां तेज हवा के साथ भारी बारिश की सूचना मिली है।
पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम
आज हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े के पावन प्रांगण का वातावरण ही कुछ और है। आपकी शहादत के दुखद अवसर पर आपके पवित्र रौज़े और उसके प्रांगण में विभिन्न संस्कृतियों व राष्ट्रों के हज़ारों श्रृद्धालु एकत्रित हैं ताकि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम और उनके पवित्र परिजनों के प्रति अपनी श्रृद्धा व्यक्त कर सकें। आपके पवित्र रौज़े के कोने-कोने से क़ुरआन पढ़ने और दुआ करने की आवाज़ें आ रही हैं। श्रृद्धालुओं की अपार भीड़ यहां पर एकत्रित हुई है ताकि अपने नेत्रों के आंसूओं से अपने हृदयों के मोर्चे को छुड़ा सके और इस पवित्र रौज़े में अपने हृदय व आत्मा को तरुणाई प्रदान कर सके। श्रृद्धालुओं के हृदय शोक में डूबे हुए हैं परंतु आपके पवित्र रौज़े एवं प्रांगण में उनकी उपस्थिति से जो आभास उत्पन्न हुआ है उसका उल्लेख शब्दों में नहीं किया जा सकता।
पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से प्रेम करने वालों के लिए आज एक अवसर है ताकि वे इन महान हस्तियों की आकांक्षाओं के साथ दोबारा प्रतिबद्धता व्यक्त करें। प्रिय श्रोताओ हम भी हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत के दुखद अवसर पर आप सबकी सेवा में हार्दिक संवेदना प्रस्तुत कर रहे हैं और हम आज के कार्यक्रम में हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के विभूतिपूर्ण जीवन के कुछ पहलुओं पर प्रकाश डालेंगे। इमाम रज़ा अली बिन मूसा अलैहिस्सलाम के पावन अस्तित्व का चेराग़ उस घर में प्रकाशित हुआ जिस घर के परिवार के अभिभावक सदाचारी, ईश्वरीय दास और पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम थे। अली बिन मूसा अलैहिस्सलाम की माता मोरक्को के एक गणमान्य व प्रतिष्ठित व्यक्ति की बुद्धिमान सुपुत्री थीं जिनका नाम नज्मा था। हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का नाम अली और आपकी सबसे प्रसिद्ध उपाधि रज़ा है जिसका अर्थ प्रसन्नता है। आपके सुपुत्र हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम अपने पिता की उपाधि रज़ा रखे जाने के बारे में कहते हैं" ईश्वर ने उन्हें रज़ा की उपाधि दी क्योंकि आसमान में ईश्वर और ज़मीन में पैग़म्बरे इस्लाम तथा उनके पवित्र परिजन उनसे प्रसन्न थे और इसी तरह उनके अच्छे स्वभाव के कारण उनके मित्र, निकटवर्ती और शत्रु भी उनसे प्रसन्न थे"हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम के परिजनों में से एक हैं जिन्होंने ईश्वरीय दायित्व इमामत के काल में लोगों को पवित्र क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की शिक्षा की पहचान करवाई।
हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का ज्ञान, धैर्य, बहादुरी, उपासना, सदाचारिता एवं ईश्वरीय भय और एक वाक्य में यह कि आपका अध्यात्मिक व्यक्तित्व इस सीमा तक था कि आपके काल में किसी को भी आपके ज्ञान एवं अध्यात्मिक श्रेष्ठता में कोई संदेह नहीं था और इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम अपने समय में "आलिमे आले मोहम्मद" अर्थात हज़रत मोहम्मद के परिवार के ज्ञानी के नाम से प्रसिद्ध थे।हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के काल में इस्लामी जगत ने भौगोलिक, आर्थिक और शैक्षिक दृष्टि से बहुत अधिक प्रगति की थी परंतु इन सबके साथ ही उस समय अब्बासी शासकों की अत्याचारी सरकार जारी थी।
हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के काल में बनी अब्बास, हारून रशीद और अमीन व मामून की तीन सरकारें थीं और आपके जीवन के अंतिम पांच वर्षों में बहुत ही धूर्त और पाखंडी अब्बासी ख़लीफा मामून की सरकार थी। मामून ने अपने भाई अमीन की हत्या कर देने के बाद सत्ता की बाग़डोर अपने हाथ में ले ली और उसने अपने मंत्री फज़्ल बिन सहल की बुद्धि व चालाकी से लाभ उठाकर अपनी सरकार के आधारों को मज़बूत बनाने का प्रयास किया। इसी दिशा में उसने हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को अपना उत्तराधिकारी बनने का सुझाव दिया ताकि पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से प्रेम करने वालों के ध्यान को अपनी ओर आकर्षित कर ले और इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को अपना उत्तराधिकारी बनाकर वह अपनी सरकार को वैध दर्शाना चाहता था।
अलबत्ता उसने बहुत चालाकी से यह दिखाने का प्रयास किया कि इस कार्य में उसकी पूरी निष्ठा है और उसने हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के प्रति सच्चे हृदय, विश्वास तथा लगाव से यह कार्य किया। मामून के इस निर्णय पर अब्बासी सरकार के समर्थकों व पक्षधरों ने जो आपत्ति जताई उसके जवाब में मामून ने जो चीज़ें बयान कीं उससे उसके इस कार्य के लक्ष्य स्पष्ट हो जाते हैं। मामून ने कहा" इन्होंने अर्थात इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने अपने कार्यों को हमसे छिपा रखा है और लोगों को अपनी इमामत की ओर बुलाते हैं। इस आधार पर वह जब हमारे उत्तराधिकारी बन जायेगें तो लोगों को हमारी ओर बुलायेंगे और हमारी सरकार को स्वीकार कर लेगा और साथ ही उनके चाहने वाले भी समझ जायेंगे कि सरकार के योग्य हम हैं न कि वह"इस आधार पर यदि मामून की इच्छानुसार हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम उसके उत्तराधिकारी होने को स्वीकार कर लेते तो यह एसा कि जैसे उन्होंने बनी अब्बासी सरकार की वैधता को स्वीकार कर लिया हो और यह अब्बासी ख़लीफ़ाओं के लिए बहुत बड़ी विशिष्टता समझी जाती। दूसरी बात यह थी कि मामून यह सोचता था कि हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम द्वारा उसके उत्तराधिकारी होने को स्वीकार कर लेने से उनका स्थान व महत्व कम हो जायेगा।
विदित में मामून की ये पाखंडी व धूर्त चालें बहुत सोची- समझी हुई थीं परंतु इन षडयंत्रों के मुक़ाबले में हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की क्या प्रतिक्रिया रही है?इस षडयंत्र के मुक़ाबले में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की पहली प्रतिक्रिया यह रही कि आप मामून की सरकार के केन्द्र मर्व आने से कतराते रहे यहां तक कि मामून के कारिन्दें इमाम को विवश करके मर्व लाये। प्रसिद्ध विद्वान शेख सदूक़ ने अपनी पुस्तक "ऊयूनो अख़बारि र्रेज़ा" में लिखा है" इमाम पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम से विदा लेने के लिए आपके मज़ार पर गये। कई बार वहां से बाहर निकले और फिर पलट आये तथा ऊंची आवाज़ में विलाप किया।
उसके पश्चात इमाम ने परिवार के लोगों को एकत्रित किया और उनसे विदा ली तथा उनसे कहा" अब मैं आप लोगों की ओर वापस नहीं आऊंगा"दूसरा महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम अपने परिवार के किसी भी व्यक्ति को अपने साथ नहीं ले गये। इन सब बातों से आपकी पहचान रखने वालों विशेषकर शीया मुसलमानों के लिए, जो सीधे आपके संपर्क में थे, स्पष्ट हो जाता है कि हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने विवश होकर इस यात्रा को स्वीकार किया था। दूसरे चरण में इमाम ने यह प्रयास किया कि अपना उत्तराधिकारी बनाने हेतु मामून के कार्य को पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के अधिकारों को पहचनवानें का माध्यम बना दें। क्योंकि उस समय तक अब्बासी और अमवी शासकों ने पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की इस योग्यता को स्वीकार नहीं किया था कि सरकार के वास्तविक पात्र पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजन ही हैं। मामून की कार्यवाही से अच्छी तरह पहले वाले अब्बासी शासकों की नीतियों व दृष्टिकोणों पर पानी फिर जाता। हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने मामून द्वारा उत्तराधिकारी का पद स्वीकार करने से पहले एक भाषण दिया जिसमें यह शर्त लगा दी कि उत्तराधिकारी का पद स्वीकार करने की स्थिति में वह किसी भी राजनीतिक मामले में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करेंगे, न किसी को काम पर रखेंगे और न ही किसी को उसके पद से बर्खास्त करेंगे। सरकार की कोई परम्परा नहीं तोड़ेंगे और उनसे केवल परामर्श किया जायेगा। दूसरे शब्दों में हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने मामून की अत्याचारी सरकार के किसी काम में कोई हस्तक्षेप नहीं किया ताकि उसकी अत्याचारी सरकार के ग़ैर इस्लामी क्रिया- कलापों को इमाम के खाते में न लिख दिया जाये और लोग यह सोचें कि हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम अब्बासी सरकार का समर्थन व पुष्टि कर रहे हैं।मामून इमाम को मदीने से मर्व लाने के बाद विभिन्न विद्वानों की उपस्थिति में शास्त्रार्थ की बैठकें आयोजित करता था।
इस कार्य से उसका विदित उद्देश्य यह था कि लोग यह समझें कि वह ज्ञानप्रेमी है जबकि उसका वास्तविक उद्देश्य इमाम को इस प्रकार की बैठकों में बुलाकर उनके ज्ञान की शक्ति को प्रभावित करने की चेष्टा थी परंतु हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के ज्ञान की शक्ति से मामून के लिए समस्याएं उत्पन्न हो गयीं। शेख़ सदूक़ इस बारे में लिखते हैं" मामून हर सम्प्रदाय के उच्च कोटि के विद्वानों के मुक़ाबले में हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को लाता था ताकि वे इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की इमामत के तर्क को अस्वीकार कर दें और यह इस कारण था कि वह इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के ज्ञान के स्थान एवं सामाजिक महत्व से ईर्ष्या करता था परंतु कोई भी व्यक्ति आपके सामने नहीं आता था किन्तु यह कि वह आपके स्थान व प्रतिष्ठा को स्वीकार न कर लेता हो। इमाम की ओर से सामने वाले पक्ष के विरुद्ध जो तर्क प्रस्तुत किये जाते थे।
वे उन्हें स्वीकार करने पर बाध्य हो जाते थे। जब मामून यह समझ गया कि इस प्रकार के शास्त्राथों से केवल हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के ज्ञान का स्थान और अधिक स्पष्ट होने का कारण बना है तो उसने ख़तरे का आभास किया और इमाम को पहले से अधिक सीमित कर दिया। एक अन्य घटना ईद की नमाज़ के लिए इमाम का जाना था जिसने मामून के षडयंत्रों का रहस्योदघाटन कर दिया। मामून ने इमाम से मांग की कि वह ईद की नमाज़ पढ़ायें।
आरंभ में इमाम ने स्वीकार नहीं किया परंतु मामून के काफी आग्रह के बाद इमाम ने कहा" तो मैं अपने नाना पैग़म्बरे इस्लाम की भांति नमाज़ पढ़ाने जाऊंगा" मामून ने इसे भी स्वीकार कर लिया। लोगों को आशा व अपेक्षा थी कि इमाम शासकों की भांति ताम झाम और दरबारियों की भीड़ के साथ घर से निकलेंगे परंतु लोग उस समय हतप्रभ रह गये जब उन्होंने यह देखा कि इमाम नंगे पैर अल्लाहो अकबर कहते हुए रास्ता चल रहे हैं। दरबारी लोगों ने, जो सरकारी वेशभूषा में थे, जब यह आध्यात्मिक दृश्य देखा तो वे अपने अपने घोड़ों से नीचे उतर आये और उन्होंने अपने जूते उतार दिये और वे लोग भी अल्लाहो अकबर कहते हुए इमाम के पीछे पीछे चलने लगे।
इस्लामी इतिहास में आया है कि सहल बिन फज़्ल ने, जो मामून का मंत्री था, मामून से कहा कि यदि इमाम इसी तरह ईदगाह तक पहुंच गये तो लोग इमाम के श्रृद्धालु बन जायेंगे और बेहतर यही है कि तू उनसे लौटने के लिए कहे" इसके बाद मामून ने एक व्यक्ति को भेजा और उसने इमाम से लौटने के लिए कहा। मामून अच्छी तरह समझ गया कि लोगों के निकट इमाम की लोकप्रियता दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। मामून ने इस घटना से जिस ख़तरे का आभास किया था उससे वह इस सोच में पड़ गया कि इमाम का अस्तित्व न केवल उसके दर्द की दवा नहीं कर रहा है बल्कि स्थिति और भी उसके विरुद्ध हो जायेगी। इस आधार पर उसने इमाम पर कड़ी दृष्टि रखने के लिए कुछ लोगों को तैनात किर दिया ताकि इमाम की गतिविधियों पर सूक्ष्म व पैनी दृष्टि रखें और सारी बातों की जानकारी मामून को दें ताकि कहीं एसा न हो कि इमाम उसके विरुद्ध कोई कार्यवाहीं कर बैठें। जो बात सही होती थी इमाम मामून से किसी प्रकार के भय के बिना उसे बयान कर देते थे।
बहुत से अवसरों पर इमाम स्पष्ट शब्दों में मामून के क्रिया- कलापों पर टीका- टिप्पणी करते थे। उनमें से एक अवसर यह है कि जब वह ग़ैर इस्लामी क्षेत्रों पर सैनिक चढ़ाई के प्रयास में था तो इमाम ने उसे संबोधित करते हुए कहा" तू क्यों मोहम्मद के अनुयाइयों की चिंता में नहीं है और उनकी भलाई व सुधार के लिए कार्य नहीं करता? इमाम की ये बातें उनके प्रति मामून की ईर्ष्या, द्वेष और शत्रुता में वृद्धि का कारण बनीं। इस आधार पर मामून समझ गया कि इमाम को मदीने से मर्व लाने का वांछित परिणाम नहीं निकला है और यदि स्थिति इसी तरह जारी रही तो उसे एसी क्षति का सामना करना पड़ेगा जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती। मामून अपनी सत्ता की सुरक्षा में किसी की हत्या करने में संकोच से काम नहीं लेता था और इस बार भी उसने अपनी सत्ता की सुरक्षा के उद्देश्य से पैग़म्बरे इस्लाम के प्राणप्रिय पौत्र की हत्या में संकोच से काम नहीं लिया।
इस प्रकार हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम भी अपने पवित्र पूर्वजों की भांति सत्य बोलने और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करने के मार्ग में शहीद हो गये परंतु उन्होंने मामून की अत्याचारी सरकार के साथ सहकारिता करने के अपमान को कभी स्वीकार नहीं किया। हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत के दुःखद अवसर पर एक बार फिर आप सबकी सेवा में संवेदना प्रस्तुत करते हैं और आज के कार्यक्रम को उनके स्वर्ण कथन से समाप्त कर रहे हैं।
आप कहते हैं" ऐसा न हो कि तुम मोहम्मद के परिवार से मित्रता के आधार पर भला कर्म करना छोड़ दो और ऐसा भी न हो कि भले कार्यों के आधार पर मोहम्मद के परिवार से मित्रता करना छोड़ दो क्योंकि इनमें से कोई भी अकेले स्वीकार नहीं किया जायेगा"
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का जन्मदिवस
आज इमाम अली इब्ने मूसर्रज़ा अलैहिस्सलाम का शुभ जन्म दिवस है। वह इमाम जो प्रकाशमई सूर्य की भांति अपना प्रकाश बिखेरता है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम का कथन है कि जो भी यह चाहता है कि प्रलय के दिन हंसते हुए तथा प्रसन्नचित मुद्रा में ईश्वर की सेवा में उपस्थित हो उसे चाहिए कि अली इब्ने मूसर्रज़ा से लौ लगाए।
इस समय पवित्र नगर मशहद में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का मक़बरा प्रकाश में डूबा हुआ है। हर वह व्यक्ति जो लंबी यात्रा करके इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में प्रविष्ट होता है, वहां पर विशेष शांति का आभास करता है। आइए हम भी इस महान इमाम की पहचान और उनकी महानता के अथाह सागर से अपने लिए कुछ मोती चुन ले। आज का दिन आप सब को मुबारक हो।
जिस समय तीर्थयात्रियों का जनसमूह उनके रौज़े से बाहर आता है तो उसके मुख पर उपस्थित हर्ष और संतोष का आभास सरलता से किया जा सकता है। मैं सोच में डूबा हुआ था और धीरे-धीरे इमाम रज़ा के मक़बरे की ओर आगे बढ़ रहा था। सहसा मैंने अपने सामने एक महिला को देखा। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह ग़ैर मुस्लिम है जो इमाम के मक़बरे में प्रविष्ट होना चाहती है। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। मैंने बड़े ही सम्मान से उससे पूछा, क्या मैं आपकी कोई सेवा कर सकता हूं? उसने मुस्कुराते हुए बड़ी विनम्रता से कहा, मैं मुसलमान नहीं, इसाई हूं। मैं इमाम रज़ा का आभार व्यक्त करने आई हूं।
उसने जब आश्चर्य से भरी मेरी आखों को देखा तो कहा, मेरा एक अपंग बेटा था। उसके उपचार के लिए मैंने हर संभव प्रयास किये किंतु उसे किसी भी दवा ने लाभ नहीं पहुंचाया। मेरा बेटा स्कूल जाया करता था। उसके मुसलमान मित्रों ने कहा कि तुम्हारी माता उपचार के लिए तुम्हें मशहद में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के मक़बरे पर क्यों नहीं ले जातीं? मेरा बेटा घर आया और उसने मुझसे कहा कि आपने यह कहा है कि मेरे उपचार के लिए आप मुझे अनेक विशेषज्ञों के पास ले गईं। तो फिर यह इमाम रज़ा कौन हैं जो बीमारों की बीमारियां दूर कर देते हैं। मैने निराशा के साथ उससे कहा कि इमाम रज़ा तो मुसलमानों के मार्गदर्शक हैं जबकि हम इसाई हैं। किंतु मेरा पुत्र लगातार इसी बात पर बल दे रहा था। एक दिन वह रोते हुए अपने बिस्तार पर गया। आधी रात को उसकी आवाज़ से मैं जाग पड़ी। मेरा बेटा लगातार मुझको पुकार रहा था और कहता जा रहा था, मां आइए और देखिये कि इन महाशय ने मेरे पैरों को ठीक कर दिया है। वे स्वयं ही मेरे घर पर आए और उन्होंने मुझसे कहा कि अपनी मां से कह दो कि जो भी मेरे दरवाज़े पर आता है उसे हम निरुत्तर नहीं जाने देते। उस महिला की बात जब यहां पर पहुंची तो सहसा मेरी आखों से आंसू बहने लगे।
इमामत, मार्गदर्शन और विकास का स्रोत है। इमाम स्वंय ईश्वर की ओर से मार्गदर्शन प्राप्त होता है और उसे मानवजाति के मार्गदर्शन की सबसे अधिक चिंता हुआ करती है। इमाम वास्तव में मानव की महानता और उसके मूल अधिकारों के संरक्षक होते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम के परिजन, मोक्ष तथा कल्याण की ओर मानवजाति के पथप्रदर्शक और अंधकार तथा समस्याओं में आशा की किरण हैं। कल्याण की ओर गतिशीलता उन प्रभावों में से है जो इमाम तथा अच्छे मार्गदर्शक समाज पर छोड़ते हैं अतः हर वह समाज जो इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम जैसे मार्गदर्शकों की शिक्षाओं को ग्रहण करते हैं वे जड़ता और पिछड़ेपन का शिकार नहीं बनते।
वाशिगटन पोस्ट समाचारपत्र के एक टीकाकार ईरान के बारे में अपनी रिपोर्ट में लिखते हैं कि अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के सत्तासीन होने के आरम्भिक सप्ताहों में उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती अर्थात ईरान पर अध्धयन आरंभ किया। मैंने ईरान के विभिन्न क्षेत्रों की यात्राएं कीं और इस बात को समझने का प्रयास किया कि वर्तमान समय में ईरानी जनता के लिए कौन सी चीज़ सबसे महत्वपूर्ण है? मैंने जो बातें सुनीं उनमें अधिकांश इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के बारे में थीं। इमाम रज़ा, अलैहिस्सलाम इस्लाम की सम्मानीय हस्तियों में से एक हैं जिनका रौज़ा मशहद में है।
शताब्दियों से लोग विभिन्न क्षेत्रों से उनके दर्शन के लिए मशहद जाते हैं। उस समय मैंने आभास किया कि हम पश्चिम में ईरान के परमाणु ईंधन की अधिवृद्धि जैसे विषय पर अपना ध्यान केन्द्रित किये हुए हैं, जो इस देश की शक्ति का प्रतीक है, जबकि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का मक़बरा इस गूढ़ विषय को दर्शाता है कि परमाणु विषय से अलग हटकर ईरान, एक महान आध्यात्मिक शक्ति का स्वामी है। मेरे गाइड ने मुझसे कहा कि प्रतिवर्ष एक करोड़ बीस लाख लोग पवित्र नगर मशहद की यात्रा करते हैं। इमाम रज़ा का अस्तित्व की बहुत अधिक अनुकंपाए हैं और यह ईरानी जनता के लिए गर्व का कारण है। उस समय मैने सोचा कि ईरान की वास्तविक शक्ति को प्रत्यक्ष रूप से इमाम रज़ा के रौज़े में देखा जा सकता है। वे लोगों के हृदयों और उनके विचारों पर राज करते हैं।
वर्ष १४८ हिजरी क़मरी में मदीना नगर में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का जन्म हुआ था। दूरदर्शिता, अत्यधिक ज्ञान, ईश्वर पर गहरी आस्था तथा लोगों का ध्यान आदि ऐसी विशेषताए हैं जो इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को दूसरों से श्रेष्ठ करती हैं। इमाम रज़ा ने लगभग २० वर्षों तक मुसलमानों का नेतृत्व किया।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की उपाधियों में से एक उपाधि कृपालु है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के संबन्ध निर्धन-धनवान, ज्ञानी-अज्ञानी, मित्रों यहां तक कि अपने विरोधियों के साथ भी मैत्रीपूर्ण थे। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के एक साथी का कहना है कि जब कभी इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम दैनिक कार्यों से छुटटी पाते तो अपने परिवाजनो तथा निकटवर्तियों के प्रति प्रेम एवं स्नेह व्यक्त करते थे। वे जब भी खाना खाने बैठते तो छोटे-बड़ें सबको यहां तक कि नौकरों को भी खाने पर निमंत्रित करते। ऐसे काल में कि जब दासों और नौकरों का किसी भी प्रकार का कोई अधिकार नहीं हुआ करता था, इमाम रज़ा उनके साथ प्रेम और सदभावना के साथ व्यवहार किया करते थे। यह लोग इमाम रज़ा के घर में सम्मान पाते थे और उनसे शिष्टाचार तथा मानवता का पाठ सीखते थे। इमाम इन वंचित लोगों के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार के साथ ही कहा करते थे कि यदि किसी व्यक्ति के साथ इसके अतिरिक्त व्यवहार किया जाए तो इसाक अर्थ यह है कि उसपर अत्याचार किया गया है।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के साथियों में से एक का कहना है कि मैं ख़ुरासान की यात्रा में इमाम रज़ा की सेवा में उपस्थित हुआ। एक दिन उन्होंने खाना मंगवाया। उन्होंने अपने सभी सेवकों को, जिनमें काले वर्ष वाले भी सम्मिलित थे, खाने के लिए निमंत्रित किया। मैंने उनसे कहा, मैं आप पर न्योछावर हो जाऊं, उचित यह होगा कि सेवक अन्य स्थान पर खाना खाएं। इसके उत्तर में उन्होंने कहा कि शांत रहो। सबका ईश्वर एक है। हम सबकी मां हव्वा और पिता आदम हैं। कल अर्थात प्रलय के दिन का पुरुस्कार और दण्ड, लोगों के कर्मों पर निर्भर है।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के शिष्टाचार और उनकी शालीनता के संबन्ध में इब्राहीम इब्ने अब्बास कहते हैं कि ऐसा कभी नहीं हुआ कि उन्होंने वार्ता में किसी पर अत्याचार किया हो। जो भी उनसे वार्ता करता वे उनकी बात को नहीं काटते और इसका पूरा अवसर देते कि वह अपनी बात पूरी करे। वे शिष्टाचारिक गुणों से इतने सुसज्जित थे कि मैंने कभी नहीं देखा कि किसी अन्य की उपस्थिति में वे पैर फैलाकर या टेक लगाकर बैठे हों। मैंने कभी नहीं देखा कि उन्होंने अपने किसी भी सेवक के साथ कड़ाई का व्यवहार किया हो। उन्हें मैंने ऊंची आवाज़ में हंसते हुए नहीं देखा। वे सामान्यतः मुस्कुराते रहते थे।
आज विश्व के कोने-कोने से लोग बड़ी उत्सुक्ता के साथ ऐसे इमाम के दर्शन के लिए जा रहे हैं जिसके जीवन काल में, यदि कोई भी उनसे कोई चीज़ मांगता था तो उनके भीतर उस व्यक्ति के चेहरे की पीड़ाभाव को सहन करने की शक्ति नहीं होती थी। एक इतिहासकार कहते हैं कि एक बार मैं इमाम रज़ा की सेवा में था। लोग उनसे विभिन्न विषयों पर प्रश्न कर रहे थे। सहसा एक ख़ुरासान वासी वहां पर आया। उसने सलाम किया और कहा कि हज की यात्रा से वापसी पर मेरा पैसा और मेरी वस्तुएं समाप्त हो गईं। इमाम ने कहा, बैठ जाओ। धीरे-धीरे सब लोग चले गए। मैं तथा कुछ अन्य लोग ही बाक़ी बचे। इमाम ने कहा कि ख़ुरासानी व्यक्ति कहा है? वह व्यक्ति उठा और कहने लगा कि मैं यहां पर हूं। इमाम ने उसकी ओर देखे बिना ही उसे २०० दीनार दे दिये। किसी ने कहा कि यद्यपि सहायता की राशि बहुत थी किंतु आपने अपना मुख उसकी ओर क्यों नही किया? इमाम ने उत्तर दिया कि मैं उसके मुख पर दुख के लक्षण नहीं देखना चाहता था। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शिष्टाचारिक विशेषताओं में इस प्रकार की बहुत सी घटनाएं देखने को मिलती हैं। निःसन्देह, प्रशिक्षण के इस सूक्ष्म बिंदु की पहचान उन नैतिक समस्याओं से बचने के लिए उचित मार्ग हो सकती है जिनमें हम वर्तमान समय में बुरी तरह से घिरे हुए हैं।
शियों के बीच इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की आध्यात्मिक भूमिका की ओर संकेत करते हुए अमरीका के वर्जीनिया विश्वविद्यालय में धार्मिक अध्धयन के विशेषज्ञ प्रोफेसर अब्दुल अज़ीज़ साशादीना कहते हैं कि समस्त विश्व के शिया अपने आठवें इमाम को सुरक्षा सुनिश्चित करने वाला इमाम मानते हैं अर्थात ऐसा इमाम जो भय और समस्याओं के समय आवश्यक सुरक्षा सुनिश्चित करता है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम आज भी अपने अनुयाइयों के दुख और सुख में सहभागी हैं। लोग उनको इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की भांति ऐसे मार्गदर्शक के रूप में याद करते हैं जो लोगों का मार्गदर्शन मोक्ष के तट तक करती है। दूसरे शब्दों में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम उन लोगों के लिए शांति एव आत्मविश्वास का स्रोत हैं जो ईश्वरीय मार्गदर्शन के इच्छुक हैं।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के ज्ञान एवं उनकी आध्यात्मिक महानता ने अपने समय में इस्लामी जगत को प्रभावित किया था। यह प्रभाव इतना अधिक था कि उनके विरोधी भी उनकी प्रशंसा किया करते थे। एक इतिहासकार मसऊदी लिखते हैं कि वर्ष २०० हिजरी क़मरी में मामून ने अपने समस्त निकटवर्तियों को मर्व में एकत्रित किया और उनसे कहा कि मैंने मुसलमानों के वरिष्ठ लोगों के बीच बहुत खोजबीन की किंतु ख़िलाफ़त अर्थात मुस्लिम समाज के नेतृत्व के लिए मुझे अली इब्ने मुसर्रेज़ा से शालीन, योग्य और सच्चा कोई अन्य दिखाई नहीं दिया।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का ज्ञान निर्मल जल के सोते की भांति था और विद्धान तथा वास्तविक्ता के खोजी लोग उससे लाभान्वित होते थे। अपने अथाह ज्ञान के बावजूद इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम, विभिन्न विचारधाराओं के प्रतिनिधियों और विभिन्न प्रकार के विचार रखने वालों के साथ ज्ञान संबधी शास्त्रार्थ में बड़ी ही शालीनता और सम्मान के साथ व्यवहार करते थे। वे उनके प्रत्येक प्रश्न का उत्तर देते और उनकी शंकाओं का समाधान करते थे। वे कभी भी ज्ञान-विज्ञान संबन्धी शास्त्रार्थ से पीछे नहीं हटते थे। वे शक्तिशाली तर्कों से अन्य लोगों को वास्तविक्ता की मिठास प्रदान करते और एकेश्वरवाद की विचारधारा की सफलता का प्रदर्शन करते थे। इन्ही शास्त्रार्थों के दौरान वास्तविक्ता प्रकट हुआ करती थी तथा इमाम रज़ा के तर्कों के सम्मुख ज्ञान के खोजी नतमस्तक हो जाया करते थे।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के जीवनकाल की विशेषताओं में से एक विशेषता, अत्याचार तथा अन्याय के मुख्य स्रोत के साथ संघर्ष है। वे विभिन्न शैलियों के माध्यम से अब्बासी शासक की अत्याचारपूर्ण तथा धोखा देने वाली नीतियों का विरोध किया करते थे। इस्लामी जगत की जनता के बीच इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के अभूतपूर्व प्रभाव के दृष्टिगत तत्कालीन अब्बासी शासक मामून बहुत ही भयभीत और चिन्तित रहा करता था। इसी कारण उसने इमाम रज़ा से अपने सत्ता केन्द्र मर्व नगर आने का अनुरोध किया। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने अनिच्छा से यह निमंत्रण स्वीकार किया। मामून, जनता के बीच इमाम रज़ा के वैचारिक तथा सांस्कृति प्रभाव को कम करने तथा इमाम और जनता के बीच दूरी उत्पन्न करने के प्रयास में था। इसीलिए उसने अपने उत्तराधिकार का प्रस्ताव इमाम को दिया। वह अपने प्रस्ताव पर लगातार बल देता रहता था। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने कुछ विशेष शर्तों के साथ उत्तराधिकार के विषय को स्वीकार किया। इमाम की शर्तों में से एक शर्त यह थी कि वे किसी भी स्थिति में सरकारी मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। इमाम की इस शर्त के कारण मामून अपना राजनैतिक उद्देश्य प्राप्त करने में विफल रहा।
एक पश्चिमी लेखक कहते हैं कि दूसरे धर्मों को सहन करने के बारे में इस्लाम का इतिहास उदाहरणीय है। इस्लाम का उद्देश्य यह है कि वह मानव जाति की प्रत्येक पीढ़ी को सौभाग्य के नियम से अवगत करवाए। इस्लाम इस बात के प्रयास में है कि अपने मार्गदर्शकों की शिक्षाओं के परिप्रेक्ष्य में एक ऐसे मानव समाज का गठन करे जिसमें धार्मिक एवं नैतिक नियमों के मापदण्डों के पालन में सब एकसमान हों। वर्तमान समय में न्यायप्रिय और बुद्धिमान लोग विश्व को इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम जैसे मार्गदर्शकों का ऋणी मानते हैं जिन्होंने उच्च नैतिक विशेषताओं तथा आध्यात्मिक गुणों से मानवता को सौभाग्य व कल्याण का मार्ग दिखाया।
हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के जन्म दिवस पर विशेष
आज एक मूल्यवान हस्ती का जन्मदिवस है। आज के दिन पूर्वोत्तरी ईरान में स्थित प्रकाशमयी रौज़े की ओर मन लगे हुए हैं और पवित्र नगर मश्हद में सदाचारियों के वंश से एक आध्यात्मिक हस्ती के दरबार में अतिथि हैं। यह वह स्थान है जहां पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र हज़रत अली इब्ने मूसा रज़ा अलैहिस्सलाम का रौज़ा है। हज़ार वर्ष से अधिक समय से यह पवित्र स्थल उन भटके हुए लोगों के लिए शांति का स्थान है जो आत्मा की शुद्धता व मन की शांति की खोज में हैं और वे इस महान हस्ती के रौज़े में ईश्वर से लोक परलोक की भलाई की प्रार्थना करते हैं। हम भी इन श्रद्धालुओं की भीड़ में शामिल होकर पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों पर सलाम व दुरूद भेजते हैं और ईश्वर से सत्य के मार्ग पर क़दम के जमे रहने की प्रार्थना करते हैं।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम 148 हिजरी क़मरी में मदीना नगर में पैदा हुए और अपने पिता इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की शहादत के पश्चात 35 वर्ष की आयु में उन्होंने मुसलमानों के मार्गदर्शन अर्थात इमामत का ईश्वरीय दायित्व संभाला और बीस वर्षों तक इस दायित्व को निभाते रहे किन्तु भाग्य ने कुछ इस प्रकार करवट ली कि उन्हें तत्कालीन अब्बासी शासक मामून के दबाव में पवित्र नगर मदीना से मर्व नगर जाना पड़ा जहां उन्होंने अपनी आयु के अंतिम तीन वर्ष गुज़ारे और इसी भूभाग में शहीद हुए। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने चाहे मदीना हो या मर्व में कुछ वर्षों के आवास का समय हो, लोगों के बीच धार्मिक पहचान व चेतना के स्तंभों को सुदृढ़ किया और समाज की आवश्यकता व क्षमता के अनुसार पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की शिक्षाओं व ईश्वरीय संदेश वहि की सही व्याख्या प्रचलित की। यद्यपि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की मदीना से मर्व यात्रा अब्बासी शासकों के उनके विरुद्ध षड्यंत्र व द्वेष का परिणाम थी किन्तु इस यात्रा की, लोगों के बीच पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों की स्थिति सुदृढ़ होने के अतिरिक्त और भी विभूतियां थीं क्योंकि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम जिस स्थान पर पहुंचते वहां कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती थी।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने इस विभूति भरी यात्रा के दौरान पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की महान स्थिति से संबंधित पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के विख्यात कथन को लोगों के सामने बयान किया। यह मूल्यवान कथन इस वास्तविकता का वर्णन करता है कि पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों पर एकेश्वरवाद सहित अन्य आस्था संबंधि विचारों को सुदृढ़ करने और इसी प्रकार मुसलमानों के राजनैतिक व सामाजिक मामलों में दृष्टिकोण अपनाने का महत्वपूर्ण दायित्व है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने अपनी पवित्र आयु के दौरान धार्मिक शिक्षाओं के विस्तार का बहुत प्रयास किया। विशेष कर इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के काल में धर्मों व विभिन्न मतों के बीच शास्त्रार्थ का काफ़ी चलन था और उन्होंने इन्हीं शास्त्रार्थों के माध्यम से सही धार्मिक शिक्षाओं को लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ईश्वरीय संदेश वहि के प्रतीक, क़ुरआन को धर्म की पहचान के मूल स्रोत के रूप में पेश करते थे। इमाम रज़ा अलैहिस्साम ने विभिन्न शैलियों द्वारा मुसलमानों को पवित्र क़ुरआन के उच्च स्थान को पहचनवाया है। पवित्र क़ुरआन के महत्व का उल्लेख करने के लिए इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की एक शैली यह थी कि आप बहुत से अवसरों पर चाहे वह शास्त्रार्थ हो या दूसरी बहसें हों, पवित्र क़ुरआन की आयतों को तर्क के रूप में पेश करते थे। इसी प्रकार इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम पवित्र क़ुरआन पढ़ने और उसकी आयतों में चिंतन मनन पर बहुत बल देते थे। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने क़ुरआन के महत्व के संबंध में कहा है कि क़ुरआन, ईश्वर का कथन है, उससे आगे न बढ़ो और उसके निर्देशों का उल्लंघन न करो और क़ुरआन को छोड़ कहीं और से मार्गदर्शन मत ढूंढो अन्यथा पथभ्रष्ट हो जाओगे।
प्रश्न, ज्ञान की उच्च चोटियों तक पहुंचने व प्रगति की सीढ़ी का पहला पाएदान है। पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजन चिंतन मनन व धार्मिक प्रश्नों को बहुत महत्व देते और अज्ञानता की कड़े शब्दों में निंदा करते थे। इस संदर्भ में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम, पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के एक कथन को उद्धरित करते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम फ़रमाते हैः ज्ञान, एक ख़ज़ाना है जिसकी कुंजी प्रश्न करना है अतः पूछो! कि प्रश्न पूछने वाले और उत्तर देने वाले को आध्यात्मिक पारितोषिक मिलता है।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम भी प्रश्न करने वालों का बड़े खुले मन से स्वागत करते और शास्त्रार्थ के निमंत्रण को स्वीकार करते थे। इस्लाम की जीवनदायी संस्कृति के विस्तार में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के शास्त्रार्थों का बहुत बड़ा योगदान है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के शास्त्रार्थों की एक विशेषता यह भी थी कि शास्त्रार्थों में आपका मुख्य उद्देश्य दूसरों का मार्गदर्शन होता न कि सामने वाले पर अपनी वरीयता सिद्ध करता। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं यदि लोगों को हमारी बातों का सौंदर्य बोध हो जाए तो निःसंदेह वे हमारा अनुसरण करेंगे।
कितनी बार ऐसा होता था कि वैज्ञानिक व आत्मबोध से भरी इन वार्ताओं के कारण बहुत सी शत्रुताएं, मित्रता में बदल जाया करती थीं। शास्त्रार्थों में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का एक उद्देश्य विभिन्न मतों के शास्त्रार्थियों के संदेहों को दूर करना भी था। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम उस समय के सांस्कृतिक स्तर व संबोधक के वैचारिक स्तर के अनुसार बात करते थे। कभी ऐसा भी होता था कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम विभिन्न धर्मों के विचारकों के साथ शास्त्रार्थों में संयुक्त बिन्दुओं का उल्लेख करते या फिर उन्हें उनकी पसंद के अनुसार तर्कपूर्ण बातों से समझाते थे। जैसे जब इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ईसाइयों से शास्त्रार्थ करते थे तो बाइबल से या जब यहूदियों से बहस करते तो तौरैत की आयतों को उद्धरित करते थे।
नीशापूर के फ़ज़्ल इब्ने शाज़ान, इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का एक कथन प्रस्तुत करते हैं कि यदि यह पूछा जाए कि धर्म का सबसे पहला आदेश क्या है? तो इसके उत्तर में कहा जाएगा कि पहला अनिवार्य काम ईश्वर, उसके पैग़म्बरों व पैग़म्बरे इस्लाम के वंश से बारह इमामों पर आस्था है। यदि यह प्रश्न किया जाए कि ईश्वर ने इसे क्यों अनिवार्य किया है तो इसका उत्तर यह है कि ईश्वर और उसके पैग़म्बरों पर ईमान की आवश्यकता के कई तर्क हैं जिनमें से एक यह है कि यदि लोग ईश्वर के अस्तित्व पर ईमान नहीं लाएंगे और उसके अस्तित्व को नहीं मानेंगे तो वे अत्याचार, अपराध व दूसरे बुरे कर्मों से दूर नहीं होंगे। जो चीज़ पसंद आएगी उसकी ओर, किसी को अपने ऊपर निरीक्षक समझे बिना बढ़ेंगे। यदि लोगों की यही सोच हो जाए तो मानव समाज का सर्वनाश हो जाएगा और हर व्यक्ति एक दूसरे पर अत्याचार द्वारा वर्चस्व जमाने का प्रयास करेगा।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम मन की बुराइयों को रोकने में ईश्वर पर आस्था की भूमिका को इन शब्दों में व्यक्त करते हैं कि व्यक्ति एकांत में कभी पाप करता है। इस स्थिति में कोई भी मानव क़ानून उसे ऐसा करने से नहीं रोक सकता, केवल ईश्वर पर आस्था ही व्यक्ति व समाज को एकांत में व खुल्लम खुल्ला ऐसा करने से रोक सकती है। यदि ईश्वर पर ईमान और उसका भय न होगा तो कोई भी व्यक्ति एकांत में पाप करने से नहीं चूकेगा।
जनसेवा, ईश्वर पर दृढ़ आस्था रखने वालों व परिपूर्ण व्यक्तियों की सबसे महत्वपूर्ण निशानियों में से है। पवित्र क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के परिजनों के आचरण व कथनों में, सहायता, ईश्वर के मार्ग में ख़र्च करने, वंचितों व अत्याचारियों के समर्थन तथा निर्धनों की आवश्यकतओं की पूर्ति जैसे शब्दों में इसका स्पष्ट उदाहरण मिलता है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की दृष्टि में वंचितों व निर्धनों की सेवा के बहुत मूल्यवान लाभ हैं। आप फ़रमाते हैं कि धरती पर ईश्वर के कुछ ऐसे बंदे हैं जो वंचितों की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं और जनसेवा में किसी भी प्रयास से पीछे नहीं हटते। ये लोग प्रलय के दिन के कष्ट से सुरक्षित रहेंगे। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम आगे फ़रमाते हैं कि जो भी किसी मोमिन को प्रसन्न करेगा तो ईश्वर प्रलय के दिन उसके मन को प्रसन्न करेगा। इतिहास साक्षी है कि सभी ईश्वरीय पैग़म्बर, लोगों से प्रेम व जनसेवा करते थे। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम केवल ईमान वालों की सेवा व उनके साथ भलाई की अनुशंसा नहीं करते बल्कि पवित्र क़ुरआन के अनुसार इस बिन्दु पर बल देते थे सेवा द्वारा शत्रु को मित्र में बदलो। उन्होंने लोगों को इस्लाम की ओर आकर्षित करने की पैग़म्बरे इस्लाम इस शैली को अपनाया था।
पैग़म्बरे इस्लाम व उनके पवित्र परिजनों के आचरण पर थोड़ा सा ध्यान देने से समाज में उनकी लोकप्रियता व सफलता के रहस्य को समझा जा सकता है। वे पवित्र क़ुरआन के सूरए फ़ुस्सेलत की इन आयतों का व्यवहारिक उदाहरण थे जिनमें ईश्वर कहता है कि भलाई व बुराई कदापि बराबर नहीं हो सकते, दुर्व्यवहार को भलाई से दूर करो इस स्थिति में तुम उसे सबसे अच्छा मित्र पाओगे जो तुम्हारा शत्रु है।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के वैचारिक व सांस्कृतिक प्रयासों में यह भी था कि आप इस्लामी जगत में धार्मिक नेतृत्व व शासन के विषय की व्याख्या करते थे। नेतृत्व ऐसा विषय है जिसका महत्व केवल इस्लामी समाज में हीं नहीं बल्कि सभी समाजों में विशेष महत्व है और इसे एक सामाजिक आवश्यकता समझा जाता है। इस संबंध में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं कि नेतृत्व समाज की स्थिरता का आधार है। इस नेतृत्व की छत्रछाया में जनसंपत्ति का सही उपयोग किया जा सकता है, शत्रु से लड़ा जा सकता है, पीड़ितों के सिर से अत्याचारियों के अत्याचार को दूर किया जा सकता है।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम इस्लामी समाज के नेता की विशेषताओं का इन शब्दों में उल्लेख करते हैं। उसे ईमानदार व आध्यात्मिक व धार्मिक मूल्यों का संरक्षक तथा भरोसे योग्य अभिभावक होना चाहिए। क्योंकि यदि इस्लामी जगत के शासक में ये गुण नहीं होंगे तो धर्म बाक़ी नहीं बचेगा। धार्मिक व ईश्वरीय आदेश व परंपरा बदल जाएगी। धर्म में बाहर की बातें अधिक शामिल हो जाएंगी और ऐसी स्थिति में अधर्मी टूट पड़ेंगे और मुसलमानों के सामने धर्म की बातें अस्पष्ट हो जाएंगी।