
رضوی
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के ज़माने के राजनीतिक हालात का वर्णन
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की इमामत वाला जीवन बीस साल का था जिसको हम तीन भागों में बांट सकते हैं।
- पहले दस साल हारून के ज़माने में
- दूसरे पाँच साल अमीन की ख़िलाफ़त के ज़माने में
- आपकी इमामत के अन्तिम पाँच साल मामून की ख़िलाफ़त के साथ थे।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का कुछ जीवन हारून रशीद की ख़िलाफ़त के साथ था, इसी ज़माने में अपकी पिता इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की शहादत हुई, इस ज़माने में हारून शहीद को बहुत अधिक भड़काया गया ताकि इमाम रज़ा को वह क़त्ल कर दे और अन्त में उसने आपको क़त्ल करने का मन बना लिया, लेकिन वह अपने जीवन में यह कार्य नहीं कर सका, हारून शरीद के निधन के बाद उसका बेटा अमीन ख़लीफ़ा हुआ, लेकिन चूँकि हारून की अभी अभी मौत हुई थी और अमीन स्वंय सदैव शराब और शबाब में लगा रहता था इसलिए हुकुमत अस्थिर हो गई थी और इसीलिए वह और सरकारी अमला इमाम पर अधिक ध्यान नहीं दे सका, इसी कारण हम यह कह सकते हैं कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के जीवन का यह दौर काफ़ी हद तक शांतिपूर्ण था।
लेकिन अन्तः मामून ने अपने भाई अमीन की हत्या कर दी और स्वंय ख़लीफ़ा बन बैठा और उसने विद्रोहियों का दमन करके इस्लामी देशों के कोने कोने में अपना अदेश चला दिया, उसने इराक़ की हुकूमत को अपने एक गवर्नर के हवाले की और स्वंय मर्व में आकर रहने लगा, और राजनीति में दक्ष फ़ज़्ल बिन सहल को अपना वज़ीर और सलाहकार बनाया।
लेकिन अलवी शिया उसकी हुकूमत के लिए एक बहुत बड़ा ख़तरा थे क्योंकि वह अहलेबैत के परिवार वालों को ख़िलाफ़त का वास्तविक हक़दार मसझते थे और, सालों यातना, हत्या पीड़ा सहने के बाद अब हुकूमत की कमज़ोरी के कारण इस स्थिति में थे कि वह हुकूमत के विरुद्ध उठ खड़े हों और अब्बासी हुकूमत का तख़्ता पलट दें और यह इसमें काफ़ी हद तक कामियाब भी रहे थे, और इसकी सबसे बड़ी दलील यह है कि जिस भी स्थान से अलवी विद्रोह करते थे वहां की जनता उनका साथ देती थी और वह भी हुकूमत के विरुद्ध उठ खड़ी होती थी। और यह दिखा रहा था कि उस समय की जनता हुकूमत के अत्याचारों से कितनी त्रस्त थी।
और चूँकि मामून ने इस ख़तरे को भांप लिया था इसलिए उसने अलवियों के इस ख़तरे से निपटने के लिए और हुकूमत को कमज़ोर करने वालों कारणों से निपटने के लिये कदम उठाने का संकल्प लिया उसने सोच लिया था कि अपनी हुकूमत को शक्तिशाली करेगा और इसीलिये उसने अवी वज़ीर फ़ज़्ल से सलाह ली और फ़ैसला किया कि अब धोखे बाज़ी से काम लेगा, उसने तै किया कि ख़िलाफ़ को इमाम रज़ा को देने का आहवान करेगा और ख़ुद ख़िलाफ़त से अलग हो जाएगा।
उसको पता था कि ख़िलाफ़ इमाम रज़ा के दिये जाने का आहवान का दो में से कोई एक नतीजा अवश्य निकलेगा, या इमाम ख़िलाफ़त स्वीकार कर लेंगे, या स्वीकार नहीं करेंगे, और दोनों सूरतों में उसकी और अब्बासियों की ख़िलाफ़त की जीत होगी।
क्योंकि अगर इमाम ने स्वीकार कर लिया तो मामून की शर्त के अनुसार वह इमाम का वलीअह्द या उत्तराधिकारी होता, और यह उसकी ख़िलाफ़त की वैधता की निशानी होता और इमाम के बाद उसकी ख़िलाफ़त को सभी को स्वीकार करना होता। और यह स्पष्ट है कि जब वह इमाम का उत्तराधिकारी हो जाता तो वह इमाम को रास्ते से हटा देता और शरई एवं क़ानूनी तौर पर हुकूमत फिर उसको मिल जाती, और इस सूरत में अलवी और शिया लोग उसकी हुकूमत को शरई एवं क़ानूनी समझते और उसको इमाम के ख़लीफ़ा के तौर पर स्वीकार कर लेते, और दूसरी तरफ़ चूँकि लोग यह देखते कि यह हुकूमत इमाम की तरफ़ से वैध है इसलिये जो भी इसके विरुद्ध उठता उसकी वैधता समाप्त हो जाती।
उसने सोंच लिया था (और उसको पता था कि इमाम को उसकी चालों के बारे में पता होगा) कि अगर इमाम ने ख़िलाफ़त के स्वीकार नहीं किया तो वह इमाम को अपना उत्तराधिकारी बनने पर विवश कर देगा, और इस सूरत में भी यह कार्य शियों की नज़रों में उसकी हुकूमत के लिए औचित्य बन जाएगा, और फ़िर अब्बासियों द्वारा ख़िलाफ़त को छीनने के बहाने से होने वाले एतेराज़ और विद्रोह समाप्त हो जाएगे, और फिर किसी विद्रोही का लोग साथ नहीं देंगे।
और दूसरी तरफ़ उत्तराधिकारी बनाने के बाद वह इमाम को अपनी नज़रों के सामने रख सकता था और इमाम या उनके शियों की तरफ़ से होने वाले किसी भी विद्रोह का दमन कर सकता था, और उसने यह भी सोंच रखा थी कि जब इमाम ख़िलाफ़त को लेने से इन्कार कर देंगे तो शिया और उसने दूसरे अनुयायी उनके इस कार्य की निंदा करेंगे और इस प्रकार दोस्तों और शियों के बीच उनका सम्मान कम हो जाएगा।
मामून ने सारे कार्य किये ताकि अपनी हुकूमत को वैध दर्शा सके और लोगों के विद्रोहों का दमन कर सके, और लोगों के बीच इमाम और इमामत के स्थान को नीचा कर सके लेकिन कहते हैं न कि अगर इन्सान सूरज की तरफ़ थूकने का प्रयत्न करता है तो वह स्वंय उसके मुंह पर ही गिरता है और यही मामून के साथ हुआ, इमाम ने विवशता में उत्तराधिकारी बनना स्वीकार तो कर लिया लेकिन यह कह दिया कि मैं हुकूमत के किसी कार्य में दख़ल नहीं दूँगा, और इस प्रकार लोगों को बता दिया कि मैं उत्तराधिकारी मजबूरी में बना हूँ वरना अगर मैं सच्चा उत्तराधिकारी होता तो हुकूमत के कार्यों में हस्तक्षेप भी अवश्य करता। और इस प्रकार मामून की सारी चालें धरी की धरी रह गईं
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का ज्ञान
मामून जो कि इमाम की तरफ़ लोगो की बढ़ती हुई मोहब्बत और लोगों के बीच आपके सम्मान को देख रहा था और आपके इस सम्मान को कम करने और लोगों के प्रेम में ख़लल डालने के लिए उसने बहुत से कार्य किये और उन्हीं कार्यों में से एक इमाम रज़ा और विभिन्न विषयों के ज्ञानियों के बीच मुनाज़ेरा और इल्मी बहसों की बैठकों का जायोजन है, ताकि यह लोग इमाम से बहस करें और अगर वह किसी भी प्रकार से इमाम को अपनी बातों से हरा दें तो यह मामून की बहुत बड़ी जीत होगी और इस प्रकार लोगों के बीच आपकी बढ़ती हुई लोकप्रियता को कम किया जा सकता था, इस लेख में हम आपके सामने इन्हीं बैठकों में से एक के बारे में बयान करेंगे और इमाम रज़ा (अ) के उच्च कोटि के ज्ञान को आपके सामने प्रस्तुत करेंगे।
मामून ने एक मुनाज़रे के लिए अपने वज़ीर फ़ज़्ल बिन सहल को आदेश दिया कि संसार के कोने कोने से कलाम और हिकमत के विद्वानों को एकत्र किया जाए ताकि वह इमाम से बहस करें।
फ़ज़्ल ने यहूदियों के सबसे बड़े विद्वान उसक़ुफ़ आज़मे नसारी, सबईयों ज़रतुश्तियों के विद्वान और दूसरे मुतकल्लिमों को निमंत्रण भेजा, मामून ने इस सबको अपने दरबार में बुलाया और उनसे कहाः “मैं चाहता हूँ कि आप लोग मेरे चचा ज़ाद (मामून पैग़म्बरे इस्लाम के चचा अब्बास की नस्ल से था जिस कारण वह इमाम रज़ा (अ) को अपना चचाज़ाद कहता था) से जो मदीने आया है बहस करो।“
दूसरे दिन बैठक आयोजित की गई और एक व्यक्ति को इमाम रज़ा (अ) को बुलाने के लिये भेजा, आपने उसके निमंत्रण को स्वीकार कर लिया और उस व्यक्ति से कहाः “क्या जानना चाहते को कि मामून अपने इस कार्य पर कब लज्जित होगा“? उसने कहाः हाँ। इमाम ने फ़रमायाः “जब मैं तौरैत के मानने वालों को तौरैत से इंजील के मानने वालों को इंजील से ज़बूर के मानने वालों को ज़बूर से साबईयों को उनकी भाषा में ज़रतुश्तियों को फ़ारसी भाषा में और रूमियों को उनकी भाषा में उत्तर दूँगा, और जब वह देखेगा कि मैं हर एक की बात को ग़लत साबित करूंगा और सब मेरी बात मान लेंगे उस समय मामून को समझ में आएगा कि वह जो कार्य करना चाहता है वह उसके बस की बात नहीं है और वह लज्जित होगा”।
फिर आप मामून की बैठक में पहुँचे, मामून ने आपका सबसे परिचय कराया और फिर कहने लगाः “मैं चाहता हूँ कि आप लोग इनसे इल्मी बहस करें”, आपने भी उस तमाम लोगों को उनकी ही किताबों से उत्तर दिया, फिर आपने फ़रमायाः “अगर तुम में से कोई इस्लाम का विरोधी है तो वह बिना झिझक प्रश्न कर सकता है”। इमरान साबी जो कि एक मुतकल्लिम था उसने इमाम से बहुत से प्रश्न किये और आपने उसे हर प्रश्न का उत्तर दिया और उसको लाजवाब कर दिया, उसने जब इमाम से अपने प्रश्नों का उत्तर सुना तो वह कलमा पढ़ने लगा और इस्लाम स्वीकार कर लिया, और इस प्रकार इमाम की जीत के साथ बैठक समाप्त हुई।
रजा इब्ने ज़हाक जो मामून की तरफ़ से इमाम को मदीने से मर्व की तरफ़ जाने के लिये नियुक्त था कहता हैः “इमाम किसी भी शहर में प्रवेश नहीं करते थे मगर यह कि लोग हर तरफ़ से आपकी तरफ़ दौड़ते थे और अपने दीनी मसअलों को इमाम से पूछते थे, आप भी लोगों को उत्तर देते थे, और पैग़म्बर की बहुत सी हदीसों को बयान फ़रमाते थे”। वह कहता है कि जब मैं इस यात्रा से वापस आया और मामून के पास पहुंचा तो उसने इस यात्रा में इमाम के व्यवहार के बारे में प्रश्न किया मैंने जो कुछ देखा था उसको बता दिया। तो मामून कहता हैः “हां हे ज़हाक के बेटे, आप (इमाम रज़ा) ज़मीन पर बसने वाले लोगों में सबसे बेहतरीन, सबसे ज्ञानी और इबादत करने वाले हैं”।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का अखलाके अज़ीम
आपके अख़्लाक़ो आदात और शमाएल ओ ख़साएल का लिखना इस लिये दुश्वार है कि वह बेशुमार हैं। ‘‘ मुश्ते नमूना अज़ ख़ुरदारे ’’ यह है बहवाले अल्लामा शिबलिन्जी इब्राहीम बिने अब्बास तहरीर फ़रमाते हैं कि हज़रत इमामे अली रज़ा (अ.स.) ने कभी किसी शख़्स के साथ गुफ़्तुगू करने में सख़्ती नहीं की और किसी बात को क़ता नहीं फ़रमाया। आपके मकारिमो आदात से था कि जब बात करने वाला अपनी बात ख़त्म कर लेता तब अपनी तरफ़ से आग़ाज़े कलाम फ़रमाते। किसी की हाजत रवाई और काम निकालने में हत्तल मक़दूर दरेग़ न फ़रमाते। कभी अपने हमनशीं के सामने पांव फ़ैला कर न बैठते और न अहले महफ़िल के रू ब रू तकिया लगा कर बैठते थे। कभी अपने ग़ुलामों को गाली न दी और चीज़ों का क्या ज़िक्र। मैंने कभी आपको थूकते और नाक साफ़ करते नहीं देखा। आप क़ह क़हा लगा कर हरगिज़ नहीं हंसते थे। ख़न्दा ज़नी के मौक़े पर आप तबस्सुम फ़रमाया करते थे। मुहासिने इख़्लाक़ और तवाज़ो व इन्केसारी की यह हालत थी कि दस्तरख़्वान पर साइस और दरबान तक को अपने साथ बिठा लेते । रातों को बहुत कम सोते और अक्सर रातों को शाम से सुबह तक शब्बेदारी करते थे और अक्सर औक़ात रोज़े से होते थे मगर तो आपसे कभी क़ज़ा नहीं हुए। इरशाद फ़रमाते थे कि हर माह में कम अज़ कम तीन रोज़े रख लेना ऐसा है जैसे कोई हमेशा रोज़े से रहे। आप कसरत से ख़ैरात किया करते थे और अकसर रात के तारीक परदे में इस इसतिहबाब को अदा फ़रमाया करते थे। मौसमे गर्मा में आपका फ़र्श जिस पर आप बैठ कर फ़तवा देते या मसाएल बयान किया करते बोरिया होता था और सरमा में कम्बल आपका यही तर्ज़े उस वक्त़ भी रहा जब आप वली अहदी हुकूमत थे। आपका लिबास घर में मोटा और ख़शन होता था और रफ़ए तान के लिये बाहर आप अच्छा लिबास पहनते थे। एक मरतबा किसी ने आप से कहा हुज़ूर इतना उम्दा लिबास क्यों इस्तेमाल फ़रमाते हैं ? आपने अन्दर का पैराहन दिखा कर फ़रमाया अच्छा लिबास दुनिया वालों के लिये और कम्बल का पैराहन ख़ुदा के लिये है। अल्लामा मौसूफ़ तहरीर फ़रमाते हैं कि एक मरतबा आप हम्माम में तशरीफ़ रखते थे कि एक शख़्स जुन्दी नामी आ गया और उसने भी नहाना शुरू किया। दौराने ग़ुस्ल में उसने इमामे रज़ा (अ.स.) से कहा कि मेरे जिस्म पर पानी डालिये आपने पानी डालना शुरू किया। इतने में एक शख़्स ने कहा ऐ जुन्दी ! फ़रज़न्दे रसूल (स.अ.) से खि़दमत ले रहा है , अरे यह इमामे रज़ा (अ.स.) हैं। यह सुनना था कि वह पैरों पर गिर पड़ा और माफ़ी मांगने लगा। (नूरूल अबसार सफ़ा 38 व सफ़ा 39)
एक मर्दे बलख़ी नाक़िल है कि मैं हज़रत के साथ एक सफ़र में था एक मक़ाम पर दस्तरख़्वान बिछा तो आपने तमाम ग़ुलामों को जिनमे हब्शी भी शामील थे , बुला कर बिठा लिया मैंने अर्ज़ किया मौला इन्हें अलाहिदा बिठाये ंतो क्या हर्ज़ है आपने फ़रमाया कि सब का रब एक है और मां बाप आदम ओ हव्वा भी एक हैं और जज़ा और सज़ा आमाल पर मौसूफ़ है , तो फिर तफ़रीक़ क्या। आपके एक ख़ादिम यासिर का कहना है कि आपका यह ताकीदी हुक्म था कि मेरे आने पर कोई ख़ादिम खाना खाने की हालत में मेरी ताज़ीम को न उठे। मुअम्मर बिने ख़लाद का बयान है कि जब भी दस्रख़्वान बिछता आप हर खाने में से एक एक लुक़मा निकाल लेते थे और उसे मिसकीनों और यतीमों को भेज दिया करते थे। शेख़ सुदूक़ तहरीर फ़रमाते हैं कि आपने एक सवाल का जवाब देते हुए फ़रमाया कि बुज़ुर्गी तक़वा से है जो मुसझे ज़्यादा मुत्तक़ी है वह मुझ से बेहतर है। एक शख़्स ने आपसे दरख़्वास्त की कि आप मुझे अपनी हैसियत के मुताबिक़ कुछ माल दुनियां से दीजिए। आपने फ़रमाया यह मुश्किल है। फिर उसने अर्ज़ की अच्छा मेरी हैसियत के मुताबिक़ इनायत कीजिये , फ़रमाया यह मुम्किन है। चुनान्चे आप ने उसे दो सौ अशरफ़ी इनायत फ़रमा दी। एक मरतबा नवीं ज़िलहिज्जा यौमे अर्फ़ा आपने राहे खु़दा में सारा घर लुटा दिया। यह देख कर फ़ज़्ल बिने सुहैल वज़ीरे मामून ने कहा , हज़रत यह तो ग़रामत यानी अपने आप को नुक़सान पहुँचाना है। आपने फ़रमाया यह ग़रामत नहीं ग़नीमत है मैं इसके इवज़ में खु़दा से नेकी और हसना लूंगा। आपके ख़ादिम यासिर का बयान है कि हम एक दिन मेवा खा रहे थे और खाने में ऐसा करते थे कि एक फल से कुछ खाते और कुछ फेंक देते थे हमारे इस अमल को आपने देख लिया और फ़रमाया नेमते ख़ुदा को ज़ाया न करो , ठीक से खाओ और जो बच जाए उसे किसी मोहताज को दे दो। आप फ़रमाया करते थे कि मज़दूर की मज़दूरी पहले तै करना चाहिये क्यों कि चुकाई हुई उजरत से ज़्यादा जो कुछ दिया जायेगा पाने वाला उसको इनाम समझेगा।
सूली का बयान है कि आप अक्सर ऊदे हिन्दी का बुख़ूर करते और मुश्क व गुलाब का पानी इस्तेमाल करते थे। इत्रयात का आपको बड़ा शौक़ था। नमाज़े सुबह अव्वल वक़्त पढ़ते उसके बाद सजदे में चले जाते थे और निहायत तूल देते थे फिर लोगों को नसीहत फ़रमाते।
सुलेमान बिन जाफ़र का कहना है कि आप अपने आबाओ अजदाद की तरह ख़ुरमें को बहुत पसन्द फ़रमाते थे। आप शबो रोज़ में एक हज़ार रकत नमाज़ पढ़ते थे। जब भी आप बिस्तर पर लेटते थे तो जब तक सो न जाते क़ुरआने मजीद के सूरे पढ़ा करते थे।
मूसा बिन सयार का बयान है कि आप अकसर अपने शियों की मय्यत में शिरकत फ़रमाते थे और कहा करते थे कि हर रोज़ शाम के वक़्त इमामे वक़्त के सामने आमाल पेश होते हैं , अगर कोई शिया गुनाहगार होता है तो इमाम उसके लिये असतग़फ़ार करते हैं।
अल्लामा तबरसी लिखते हैं कि आपके सामने जब भी कोई आता था आप पहचान लेते थे कि मोमिन है या मुनाफ़िक़। (आलाम अल वरा तोफ़ ए रिज़विया , कशफ़ुल ग़म्मा सफ़ा 122)
अल्लामा मोहम्मद रज़ा लिखते हैं कि आप हर सवाल का जवाब क़ुराने मजीद से देते थे और रोज़आना एक क़ुरआन ख़त्म करते थे। (जन्नात अल ख़ुलूद सफ़ा 31)
इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता का संदेश, पांच दिनों के राष्ट्रीय शोक का एलान
इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता द्वारा जारी शोक संदेश में कहा गया है: इस कड़वी घटना में, ईरानी राष्ट्र ने एक ईमानदार और मूल्यवान सेवक खो दिया। उनके लिए जनता की भलाई और उनकी मर्ज़ी जो अल्लाह की मर्ज़ी का प्रतीक है, हर चीज़ से ज़्यादा महत्वपूर्ण थी। इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने इस्लामी गणराज्य ईरान के राष्ट्रपति डॉक्टर सैयद इब्राहीम रईसी और ईरान के संघर्षील एवं कर्मठ विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान, तबरेज़ के लोकप्रिय प्रख्यात इमामे जुमा हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन आले हाशिम और पूर्वी आज़रबाइजान के क्रांतिकारी और ईमानदार गवर्नर जनाब मालिक रहमती साहब, राष्ट्रपति रईसी से सुरक्षा अधिकारी साथ ही हेलिकॉप्टर के क्रू मेंबर की शहादत पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए अपनी संवेदना और शोक प्रकट की है।
इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता द्वारा जारी किए गए शोक संदेश में इस प्रकार आया हैः
बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम
बेशक हम सिर्फ़ अल्लाह के लिए हैं और उसी की तरफ़ पलटकर जाने वाले हैं (सूरए बक़रह, आयत-156)
बहुत दुख और अफ़सोस के साथ मुजाहिद आलिम, जनता के हमदर्द, इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के ख़ादिम हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन जनाब सैयद इब्राहीम रईसी और उनके सम्मानीय साथियों की शहादत जैसी मौत की तल्ख़ ख़बर मिली। यह दुखद घटना, सेवा की एक कोशिश के दौरान घटी, इस महान और बलिदानी इंसान के सरकारी पदों का पूरा दौर चाहे वह थोड़ी मुद्दत का उनका राष्ट्रपति काल हो या उससे पहले का दौर हो, पूरी तरह जनता, देश और इस्लाम की लगातार सेवा में गुज़रा।
प्रिय रईसी जानते ही नहीं थे कि थकन क्या चीज़ होती है। इस हृदयविदारक हादसे में ईरानी राष्ट्र ने अपने एक ईमानदार, मूल्यवान और दिल से प्यार करने वाले सेवक को खो दिया। उनके लिए जनता की भलाई और उनकी मर्ज़ी जो अल्लाह की मर्ज़ी का प्रतीक है, हर चीज़ से ज़्यादा महत्वपूर्ण थी और इसी लिए कुछ लोगों की एहसान फरामोशी और कुछ दुर्भावना रखने वालों के ताने उन्हें विकास एवं तरक़्क़ी और मामलों के हल के लिए दिन रात कोशिश से रोक नहीं पाते थे।
इस गंभीर हादसे में तबरेज़ के लोकप्रिय प्रतिष्ठित इमामे जुमा हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन आले हाशिम, संघर्षील और कर्मठ विदेश मंत्री जनाब हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान साहब, पूर्वी आज़रबाइजान के क्रांतिकारी और ईमानदार गवर्नर जनाब मालिक रहमती साहब, क्रू मेंबर और साथ मौजूद कुछ दूसरे लोग भी इस दुनिया को छोड़कर अपने ईश्वर से जा मिले। मैं पाँच दिन के आम शोक का एलान करता हूं और प्रिय ईरानी राष्ट्र की सेवा में संवेदना व्यक्त करता हूं।
संविधान की धारा 131 के मुताबिक़, जनाब मुख़बिर साहब, कार्यपालिका के प्रमुख का पद संभालेंगे और उन्हें चाहिए कि विधिपालिका और न्यायपालिका के प्रमुखों के सहयोग से ज़्यादा से ज़्यादा 50 दिन में नए राष्ट्रपति के चयन को सुनिश्चित बनाएं।
आख़िर में, मैं जनाब रईसी साहब की माँ, उनकी विद्वान और अज़ीम पत्नी और राष्ट्रपति के दूसरे परिजनों और राष्ट्रपति के साथ मौजूद दूसरे लोगों के सम्मानीय घर वालों ख़ास तौर पर जनाब आले हाशिम साहब के पिता की सेवा में दिल से संवेदना व्यक्त करता हूं और अल्लाह से उनके लिए सब्र और मरहूमीन के लिए अल्लाह की रहमत की दुआ करता हूं।
सैयद अली ख़ामेनेई
20/05/2024
सऊदी अरब के राजा और युवराज ने ईरानी राष्ट्रपति की शहादत पर शोक व्यक्त किया है
सऊदी अरब के राजा सलमान बिन अब्दुलअज़ीज़ और सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान ने हेलीकॉप्टर दुर्घटना में ईरानी राष्ट्रपति हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद इब्राहिम राईसी और उनके सहयोगियों की शहादत पर अपनी संवेदना व्यक्त की हैं।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,सऊदी अरब के राजा सलमान बिन अब्दुलअज़ीज़ और सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान ने हेलीकॉप्टर दुर्घटना में ईरानी राष्ट्रपति हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद इब्राहिम राईसी और उनके सहयोगियों की शहादत पर अपनी संवेदना व्यक्त की हैं।
सऊदी प्रेस एजेंसी के अनुसार, सऊदी अरब के राजा और क्राउन प्रिंस ने ईरानी राष्ट्रपति हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद इब्राहिम रईसी की मृत्यु पर कार्यकारी शाखा के प्रमुख और ईरानी उपाध्यक्ष मोहम्मद मुख्बीर के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की है।
दुनिया से रुख़स्त हो गए राष्ट्रपति और विदेशमंत्री
हेलिकाप्टर दुर्घटना में ईरान के राष्ट्रपति और विदेशमंत्री सहित कई अधिकारी शहीद हो गए।
जनसेवा करते हुए राष्ट्रपति सैयद इब्राहीम रईसी और विदेशमंत्री अमीर अब्दुल्लाहियान हेलिकाप्टर के हादसे में शहीद हो गए। पूर्वी आज़रबाइजान प्रांत के वरज़क़ान क्षेत्र में उनका हेलिकाप्टर दुर्धटनाग्रस्त हो गया।
ईरान के राष्ट्रपति सैयद इब्राहीम रईसी और विदेशमंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान एक शिष्टमण्डल के साथ रविवार को बांध परियोजना क़ीज़क़िलेसी के उद्घाटन और ख़ुदाआफ़रीन नामक बांध की विकास योजना का संयुक्त रूप मे उद्घाटन करने के लिए आज़रबाइजान गणराज्य गए थे। यह काम का उद्घाटन ईरान और आज़रबाइजान गणराज्य के राष्ट्रपतियों को संयुक्त रूप में करना था।
इस कार्यक्रम के बाद राष्ट्रपति रईसी और उनके साथ गया शिष्टमण्डल हैलिकाप्टर से वापस आ रहा था कि इसी बीच ख़राब मौसम के कारण वह वरज़क़ान नामक क्षेत्र में दुर्घटनाग्रस्त हो गया।
रैपिड एक्शन फोर्स और दसियों एड ग्रुप्स ने दुर्घटनाग्रस्त हैलिकाप्टर को ढूंढने के बहुत प्रयास किये जिसमें ख़राब मौसम की वजह से कई घंटों का समय लग गया।
आख़िरकार सोमवार की सुबह सहायता कर्मियों के दल और रेड क्रीसेंट के सदस्यों ने ईरान के ट्रैकर ड्रोन की सहायता से दुर्घटना स्थल का पता लगा लिया।
इस हवाई दुर्घटना में राष्ट्रपति सैयद इब्राहीम रईसी के अलावा विदेशमंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान, तबरेज़ के इमामे जुमा आयतुल्लाह सैयद मुहम्मद अली आले हाशिम और पूर्वी आज़रबाइजान के गवर्नर मालिक रहमती भी शहीद हुए।
ईरानी राष्ट्रपति और उनके साथियों की शहादत पर हज़रत आयतुल्लाह जवादी आमोली का शोक संदेश
हज़रत आयतुल्लाह जवादी आमोली ने ईरानी राष्ट्रपति और उनके सहयोगियों की शहादत पर शोक व्यक्त किया है।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, हज़रत आयतुल्लाह जवादी आमोली द्वारा जारी शोक संदेश का पाठ इस प्रकार है:
बिस्मिल्लाह अल रहमान अल रहीम
इन्ना लिल्लाहे वा इन्ना इलैहे राजेऊन
एक गंभीर हेलीकॉप्टर दुर्घटना और दुखद घटना में इस्लामी गणतंत्र ईरान के माननीय राष्ट्रपति, तबरेज़ के इमाम जुमा, माननीय ईरानी विदेश मंत्री और उनके सहयोगियों की मृत्यु ने हम सभी को दुखी किया है।
मैं इस बड़ी आपदा के लिए आयतुल्लाह खामेनेई, ईरानी लोगों और शहीदों के परिवारों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करता हूं और स्थिरता और उत्थान के लिए प्रार्थना करता हूं।
जवादी आमोली 20 मई 2024
ईरानी राष्ट्रपति और उनके साथियों की शहादत पर जामिया मुदर्रेसीन हौज़ा इलमिया का शोक संदेश
जामिया मुदर्रेसीन हौज़ा इलमिया क़ुम ने राष्ट्रपति हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सैयद इब्राहिम रईसी और अन्य शहीदों की शहादत पर संवेदना व्यक्त की है।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, जामिया मुदर्रेसीन हौज़ा इल्मिया क़ुम द्वारा जारी शोक संदेश का पाठ इस प्रकार है:
बिस्मिल्लाह अल रहमान अल रहीम इन्ना लिल्लाहे वा इन्ना इलैहे राजेऊन
जनता और ईरान के इस्लामी गणराज्य के सेवारत राष्ट्रपति, आयतुल्लाह सैय्यद इब्राहिम रईसी और इस्लामी व्यवस्था के अन्य सेवक, जिनमें तबरेज़ के इमाम जुमा, आयतुल्लाह आले हाशिम, ईरानी विदेश मंत्री डॉ. अमीर अब्दुल्लाहियन, पूर्वी अजरबैजान के गवर्नर डॉ. मलिक रहमती शामिल हैं की दुर्घटना की दर्दनाक घटना में शहादत ने हम सभी को बहुत दुखी किया है।
इस्लामी व्यवस्था में अपनी सेवा के वर्षों के दौरान, ईरान राज्य के राष्ट्रपति ने धर्म और इस्लामी क्रांति की सेवा करने और लोगों के प्रति सहानुभूति रखने और सर्वोच्च नेता के आदेशों का पालन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
आस्ताने क़ुद्स रिज़वी (अ) का यह सेवक और अहले-बैत (अ) के स्कूल का शिष्य हमेशा ईश्वर की राह में अपनी जान देने की इच्छा रखता था और इस दर्दनाक घटना में, उसने वास्तव में अपने वर्षों के सपने को पूरा किया। इस्लामी गणतंत्र की पवित्र व्यवस्था की सेवा करके पूरा किया गया।
जामिया मुदर्रेसीन हौज़ा इलमिया क़ुम हज़रत वली अस्र के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करता है, इस मुजाहिद बेटे की शहादत पर इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता और पूरे ईरान राष्ट्र की ओर से संवेदना व्यक्त की जाती है। इस्लामी क्रांति के शहीदो और इस घटना के अन्य शहीदों के भगवान दरजात को बढ़ाए और उनके परिवारों को धैर्य प्रदान करे।
जामिया मुदर्रेसीन, हौज़ा इल्मीया, क़ुम
ईरानी राष्ट्रपति और उनके साथियों की शहादत पर जामिया मुदर्रेसीन हौज़ा इलमिया का शोक संदेश
जामिया मुदर्रेसीन हौज़ा इलमिया क़ुम ने राष्ट्रपति हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सैयद इब्राहिम रईसी और अन्य शहीदों की शहादत पर संवेदना व्यक्त की है।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, जामिया मुदर्रेसीन हौज़ा इल्मिया क़ुम द्वारा जारी शोक संदेश का पाठ इस प्रकार है:
बिस्मिल्लाह अल रहमान अल रहीम इन्ना लिल्लाहे वा इन्ना इलैहे राजेऊन
जनता और ईरान के इस्लामी गणराज्य के सेवारत राष्ट्रपति, आयतुल्लाह सैय्यद इब्राहिम रईसी और इस्लामी व्यवस्था के अन्य सेवक, जिनमें तबरेज़ के इमाम जुमा, आयतुल्लाह आले हाशिम, ईरानी विदेश मंत्री डॉ. अमीर अब्दुल्लाहियन, पूर्वी अजरबैजान के गवर्नर डॉ. मलिक रहमती शामिल हैं की दुर्घटना की दर्दनाक घटना में शहादत ने हम सभी को बहुत दुखी किया है।
इस्लामी व्यवस्था में अपनी सेवा के वर्षों के दौरान, ईरान राज्य के राष्ट्रपति ने धर्म और इस्लामी क्रांति की सेवा करने और लोगों के प्रति सहानुभूति रखने और सर्वोच्च नेता के आदेशों का पालन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
आस्ताने क़ुद्स रिज़वी (अ) का यह सेवक और अहले-बैत (अ) के स्कूल का शिष्य हमेशा ईश्वर की राह में अपनी जान देने की इच्छा रखता था और इस दर्दनाक घटना में, उसने वास्तव में अपने वर्षों के सपने को पूरा किया। इस्लामी गणतंत्र की पवित्र व्यवस्था की सेवा करके पूरा किया गया।
जामिया मुदर्रेसीन हौज़ा इलमिया क़ुम हज़रत वली अस्र के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करता है, इस मुजाहिद बेटे की शहादत पर इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता और पूरे ईरान राष्ट्र की ओर से संवेदना व्यक्त की जाती है। इस्लामी क्रांति के शहीदो और इस घटना के अन्य शहीदों के भगवान दरजात को बढ़ाए और उनके परिवारों को धैर्य प्रदान करे।
जामिया मुदर्रेसीन, हौज़ा इल्मीया, क़ुम
ईरानी राष्ट्रपति और उनके सहयोगियों की शहादत पर आयतुल्लाह नूरी हमदानी का शोक संदेश;
हज़रत आयतुल्लाह नूरी हमदानी ने ईरानी राष्ट्रपति और उनके सहयोगियों की शहादत पर शोक व्यक्त किया और कहा: मैंने 1975 से उनमें जो देखा है, उसके अनुसार मैं गवाही देता हूं कि "वह अपने मामलों में ईश्वर की प्रसन्नता के प्रति सचेत थे।" मेरा मानना है कि यह शहादत उनकी निष्ठावान सेवा का प्रतिफल थी।”
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, आयतुल्लाह नूरी हमदानी के शोक संदेश का पाठ इस प्रकार है:
बिस्मिल्लाह अल रहमान अल रहीम
इन्ना लिल्लाहे वा इन्ना इलैहे राजेऊन
हज़रत इमाम अली इब्ने मूसा अल-रज़ा (अ) के जन्म के शुभ दिन पर, माननीय ईरानी राष्ट्रपति और उनके सहयोगियों और उनके वफादार लोगों की शहादत की खबर से गहरा दुख और शोक हुआ।
दिवंगत हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लेमीन रईसी (र) ने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा और क्रांति में ईमानदारी, पवित्रता और विनम्रता के साथ बिताया और इस तरह सभी क्षेत्रों में अथक प्रयास किया।
1975 से अपने परिचय के दौरान मैंने उन्हें जो देखा है, उससे मैं उनकी गवाही देता हूं कि "वह अपने मामलों में भगवान की खुशी के प्रति सचेत थे और मेरा मानना है कि यह शहादत उनकी ईमानदार सेवाओं का प्रतिफल थी"।
निस्संदेह, ईरानी लोग इन सभी प्रयासों और कोशिशों की सराहना करते हैं, भगवान की इच्छा से,मासूम इमामों की सेवा करने का यह तरीका, विशेष रूप से हज़रत बकियातुल्हलाह अल-आज़म (अ) का ध्यान, इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता का नेतृत्व और समर्थन धर्मनिष्ठ लोगों का और सेवा करने वाले लोगों के माध्यम से यह जारी रहेगा।
मैं तबरेज़ के इमाम जुमा हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन शहीद अल हाशिम, माननीय विदेश मंत्री और अन्य लोगों की शहादत का उल्लेख करना और उनकी बहुमूल्य सेवाओं के लिए उन्हें श्रद्धांजलि देना भी आवश्यक समझता हूं।
अंत में, इन प्रियजनों की शहादत पर, मैं हज़रत वली अस्र और ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता और ईरान राष्ट्र की सेवा में अपनी संवेदना व्यक्त करता हूं, और शोहदा के दरजात बुलंदी के लिए प्रार्थना करता हूं।
हुसैन नूरी हमदानी
20 मई 2024